#5
पर गाडी के पास कोई नहीं था , थोड़ी दूर झाड़ियो में कुछ हलचल हो रही थी मैं दबे पाँव उस तरफ बढ़ा तो मैंने देखा की चाचा किसी आदमी से बात कर रहे थे , मैं थोडा दूर था इसलिए सुन नहीं पा रहा था पर उस अजीब से कपडे पहने आदमी को चाचा शायद कुछ समझाना चाह रहेथे उनके हाथो के इशारे इस प्रकार के ही थे.
फिर चाचा ने जेब से निकाल कर उसे कुछ पैसे दिए . मेरे लिए ये थोडा अजीब था क्योंकि चाचा एक अजीब ही प्रकार का चुतिया टाइप इन्सान था जो कालेज और खुद की लाइब्रेरी के सिवाय कही नहीं आता जाता था , पर फिर उनकी बाते खतम हो गयी और चचा गाड़ी की तरफ आने लगा तो मैं खिसक गया वहां से पर दिमाग में सवाल था की क्या बात कर रहा था .
सोचते सोचते मैं खेत पर आ पहुंचा , मौसम थोडा ठंडा हो चला था मैंने चारपाई बाहर निकाली और उस पर पसर गया. आस पास गहरा सन्नाटा लिए हवा लहरा रही थी . बस मैं था और ये तमाम जहाँ की तन्हाई , मेरे दिमाग में पिताजी के कहे शब्द गूँज रहे थे , “दिल्ली या बम्बई एक जगह चुन लो जहाँ तुम्हे आगे पढने जाना है ”
ऐसा नहीं था की मुझे पढाई में दिलचस्पी नहीं रही थी बस मैं यहाँ से दूर नहीं जाना चाहता था क्योंकि मैं सोचता था की पढाई के लिए बड़े कालेज का होना जरुरी नहीं है , साधारण सरकारी कालेज की डिग्री का भी उतना ही महत्त्व होता है . पर बाप को कौन समझाए . सोचते सोचते कब अँधेरा हो गया मालूम ही नहीं हुआ. मैंने उठ कर बल्ब जलाया , मन नहाने का था तो पानी की खेली में उतर गया . ठन्डे पानी ने मेरे सुलगते विचारो को राहत दी.
गले तक पानी में डूबा मैं एक बार फिर से उस लहराते आँचल की छाँव को महसूस करने लगा. गीले बालो की उस खुशबु को मैं भूल कर भी नहीं भुला पा रहा था . मेरी आँखों के सामने बार बार वो सांवला चेहरा आकर खड़ा हो जाता था , वो मर्ग नयनी आँखे जैसे सीधा मेरे दिल में झांकती थी , वो होंठ जैसे कुछ कहना चाहते हो .
“किस ख्याल में खोये हो बरखुर दार ” चाची की आवाज ने मेरी तन्द्रा भंग की , मैं चौंक गया .
“आप यहाँ ” मैंने सवाल किया
चाची- क्यों नहीं आ सकती क्या , वैसे मेरा ही खेत है
मैं- हाँ आपका ही है मेरा वो मतलब नहीं था मैं कहना चाहता था की रात घिर आई आप यहाँ क्या कर रही है आपको तो घर होना चाहिए था न .
मेरे यहाँ होने की वजह है घी का पीपा जो मैं दोपहर को भूल गयी थी ले जाना , चली तो शाम को ही थी रस्ते में मेरी एक सहेली के यहाँ बैठ गयी तो देर हो गयी , इधर आई तो रौशनी देख कर समझी तुम यही पर हो
मैं- ठीक है बस चलते है घर थोड़ी देर में
चाची- बेशक, वैसे तुम्हे मालूम तो होगा ही
मैं- क्या हुआ
चाची- अरे वो , बिमला थी न ,हलवाई की घरवाली वो किसी के साथ भाग गयी, गाँव में बड़ा शोर हुआ पड़ा है ,
मैं- शोर किसलिए उसकी मर्जी वो भागे या न भागे
चाची- कितना भोला है तू कब समझेगा तू दुनियादारी
मैं- चाची, उसकी जिन्दगी है वो चाहे कैसे भी जिए
चाची- समाज भी कुछ होता है , समाज के नियमो से दुनिया बंधी है
मैं- कोई और बात करते है
चाची- वैसे बहुरानी बता रही थी पूरी रात चोबारे में गाने बजते है आजकल क्या बात है
चाची ने चुटकी लेते हुए कहा
मैं- गाने सुनते सुनते आँख लग गयी थी तो बजता रहा बाजा , वैसे भी आवाज बेहद धीमी थी तो किसी को परेशानी नहीं हुई
“हाय रे ये लड़का ” चाची ने अपने माथे पर हाथ मारा
चाची- तू नहा ले तब तक मैं अन्दर होकर आती हु,
चाची अन्दर की तरफ जाने को दो कदम चली ही थी की तभी उसका पैर फिसला और वो गीली जमीन पर गिर गयी .
“आह , मैं तो मरी ” चाची चिल्लाई
मैं तुरंत खेली से बाहर निकला और चाची को उठाया
चाची- आह, लगता है टखना मुड गया मेरा तो आह्ह्ह्हह्ह
मैं- रुको जरा , देखने दो .
“मुढे पर बिठा मुझे जरा ” चाची ने कराहते हुए कहा .
मैंने चाची को बिठाया और चाची के कदमो में बैठते हुए उनके पांव को देखने लगा. इसी बीच चाची का लहंगा थोडा सा ऊँचा हो गया . बल्ब की रौशनी में मेरी नजर चाची की दोनों टांगो के बीच पहुँच गयी. बेहद गोरी जांघे मांस से भरी हुई , कांपते हुए हाथो से मैंने चाची के टखने को पकड़ा और कस कर दबाया .
“आईईईइ ” चाची जोर से चिल्लाई
मैं- बस हो गया .
मैंने टखने को घुमाते हुए कहा था . दरअसल मैं मोच देख रहा था पर मेरी आँखे कुछ और देख रही थी , न जाने मुझमे इतनी हिम्मत कहा से आ गयी थी मैंने चाची के पैर को उठा कर खुद के कंधे पर रखा चाची का लहंगा उनके पेट तक उठ गया और मैं उनकी दोनों नंगी जांघो को देख रहा और उस काली जालीदार कच्छी को भी जिसने उनकी योनी को छुपाया हुआ था .
मैंने देखा चाची की आँखे बंद दी. मैंने एक बार फिर से टखने को दबाया .
“आह, बस यही है दर्द ” चाची ने कहा .
मैं- बस हो गया .
मैंने अपना दूसरा हाथ चाची की ठोस जांघ पर रखा और कस कर उस मांसल भाग को दबाया. मैंने अपने निशान चाची की जांघो पर छपते हुए देखा. मेरी धडकने ईस्ट अरह भाग रहीथी जैसे की उन्हें कोई मैडल जीतना हो. पर तभी चाची ने अपनी आँखों को खोला और उनकी नजर मेरे उत्तेजित लिंग पर पड़ी, और दूसरी नजर उनकी अपनी हालत पर पड़ी जिसमे वो निचे से लगभग नंगी थी .
“हाय दैया ” चाची ने शर्म से अपनी आँखे मूँद ली और मैं वापिस बाहर भाग गया . ऐसा लग रहा था की दिल सीना फाड़ कर बाहर गिर जायेगा. उस से भी जायदा मुझे डर था की चाची मुझ पर गुस्सा करेंगी . मैंने जल्दी से गीला कच्छा फेंका और अपने कपडे पहन लिए. बेशक मैं अभी नहाया था पर अब डर से मुझे पसीना आने लगा. कुछ देर बाद चाची ने मुझे अन्दर आने को कहा तो मैं डरते हुए अन्दर गया .
चाची- तेरे दबाने से राहत तो हुई है मुझे लगता है मोच नहीं आई
मैं- घर चल कर मालिश करवा लेना आराम होगा .
चाची- दर्द हो रहा है घर तक कैसे चल पाऊँगी
मैं- साइकिल पर बिठा ले चलूँगा , घी कोई और ले जायेगा
चाची- ठीक है
मैंने चाची को सहारा देकर बाहर तक लाया और कमरे को ताला लगाया. पर चाची को पीछे बैठने में थोड़ी परेशानी हो रही थी .
मैं- एक काम करो आगे बैठ जाओ
चाची- न कोई देखेगा तो क्या कहेगा.
मैं- चारो तरफ अँधेरा है कौन देखेगा और बस्ती से पहले उतर जाना .
कुछ सोचकर चाची ने हाँ कह दी . मैंने चाची को साइकिल के डंडे पर बिठाया इसी बहाने मेरे हाथ उनके कुलहो को छू गए . उनकी आह को मैंने सुना . पैडल मारते हुए मेरे पैर बार बार चाची के कुलहो को छू रहे थे , उनके बदन की पसीने से भरी खुसबू मुझे पागल कर रही थी एक बार फिर मैं उत्तेजित होने लगा था और इसी उत्तेजना में ........ .....
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