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Adultery प्रीत +दिल अपना प्रीत पराई 2

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Chori hui toh baapu ke locker mein, churaya kya sala ek muthhi raakh --- kaheen chacha ka iske saath koi sambandh toh nahin.
Sala jab bhi milta hain noto kee gaddi hi deta hain, sala ek professor ho ke itna paisa kahan se lata hain.

Yhe aag aur ashman ka kya chakkar hai --- Aag se jal ke rakh bana sareer, ashman mein bhagwan ke pass.
kisi ke maut se talluk rakhta hain, kaheen wo shampoo waali ka bapu toh nahin. Lekin har baar koi larki hee hoti hai, koi aur hi hoga.

Aur yeh baapu kee masuka kee rakh thee kya, jo daru pe ke kuan pe baitha hua hain.

Ya phir jigri dost ke rakh, jiski yaad mein devdas bana hua hain.
Bapu bhala hi chahta hain bete ka, lekin tarika galat hain, kuchh gehra jakhm diye hain baap ne, bhugta hain bete ne.

Iss chachi ka kalyan kar hi do, professor admi ke pechhe laga hau hain, aur iski khujli badhti jaa rahi hain....
सब सवालों के जवाब आने वाले समय में है भाई, चाची का कल्याण होना ही है
 

aalu

Well-Known Member
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Nafrat bhi hain lekin pyar bhi, ek ke bhukhe rahne se doosra bhukha hain, bhabhi bechari (majboori hai kehna abhi tak isne apna kameenapan nahin dikhaya) dono ke beech fasi hui hain, parwah hain, karan janna chahti hain, na pati jawab deta hain na devar.

Akhir wajah kya hain jo isse waps kheench lata hain, kya koi wayda, yehan na toh usse kisi se prem hain, maa bhi jaise begano kee tarah hain, na parwah hain apne bete kee, bas hukam hi sunana hain aur baap bhi waisa. Bhaio kee beech mein muk wartalap chalta rahta hain.

Aaj chachi bechain hain, bhatije se khas neh, maa se jyada pyar/parwah toh yahee karti aaayee hain abhi tak, kehna chahti hain, lekin wakt na tha. Chacha rahasmayee kirdar, college se jyada jungle mein milta hain.

Man ke meet, mita-- uska varnan sun ke hi sukoon milta hain, sab se sundar gehna saadgi, iss dosti ko kya naam de.
Doosri jori kiske pass hain, koi kareebi hain, kharidne wala bhi yahee hain, abhi tak uski keemat gyat hain.

Banane waale jikra kyun kiya. Do jori payal, rakh , ashman aur ek kabeela.
Raste mein parta wo kuan.

jaane kya kehte hain.

adbhut...
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Nafrat bhi hain lekin pyar bhi, ek ke bhukhe rahne se doosra bhukha hain, bhabhi bechari (majboori hai kehna abhi tak isne apna kameenapan nahin dikhaya) dono ke beech fasi hui hain, parwah hain, karan janna chahti hain, na pati jawab deta hain na devar.

Akhir wajah kya hain jo isse waps kheench lata hain, kya koi wayda, yehan na toh usse kisi se prem hain, maa bhi jaise begano kee tarah hain, na parwah hain apne bete kee, bas hukam hi sunana hain aur baap bhi waisa. Bhaio kee beech mein muk wartalap chalta rahta hain.

Aaj chachi bechain hain, bhatije se khas neh, maa se jyada pyar/parwah toh yahee karti aaayee hain abhi tak, kehna chahti hain, lekin wakt na tha. Chacha rahasmayee kirdar, college se jyada jungle mein milta hain.

Man ke meet, mita-- uska varnan sun ke hi sukoon milta hain, sab se sundar gehna saadgi, iss dosti ko kya naam de.
Doosri jori kiske pass hain, koi kareebi hain, kharidne wala bhi yahee hain, abhi tak uski keemat gyat hain.

Banane waale jikra kyun kiya. Do jori payal, rakh , ashman aur ek kabeela.
Raste mein parta wo kuan.

jaane kya kehte hain.

adbhut...
Bas yahi choti choti bate jud kar kahani ban jati hai, meri kosish hai ki ye kahani readers ke dil me bas jaye
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#10



“क्या हुआ चाची ” मैंने कहा

चाची- मेरा कुछ सामान खो गया है

चाची ने नजरे चुराते हुए कहा और मैं समझ गया उस किताब के बारे में में ही जिक्र कर रही है वो .

“क्या चोरी हुआ ” मैंने अनजान बनते हुए कहा .

चाची मेरे पास आई, इतना पास की उसकी गर्म सांसे मेरे चेहरे से टकराने लगी,

“तुम जानते हो वो क्या है ” चाची ने कहा

मैं- जब तुम जानती हो मैं जानता हूँ तो अब क्या कहना क्या सुनना

चाची ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली- कुछ बातो में पर्दा रहना जरुरी है ,हमारा रिश्ता जो है हमें उसकी कद्र तो करनी होगी . हँसना बोलना एक बात है पर एक लाइन है हमारे बीच .

“कोई पर्दा नहीं है हमारे बीच, मेरी चाची हो सदा इसका सम्मान है पर चाची के आलावा आप मेरी दोस्त भी हो , मेरा सुख दुःख आपसे नहीं छिपा, इस घर में मुझे मुझसे ज्यादा कोई जानता है तो वो आप हो . और मैं इस परदे को गिरा देना चाहता हूँ तमाम उन दूरियों को मैं मिटा देना चाहता हूँ जो आपके और मेरे बीच है ” मैं एक सांस में बोल गया .

मुझे लगा यही सही समय है . मैंने चाची की कमर में हाथ डाला और उसे अपनी बाँहों में भर लिया. बिना कुछ सोचे मैंने अपने होंठ चाची के होंठो पर रख दिए. अपनी आँखों को बड़ी करके चाची ने मुझे देखा .पर मैंने उन्हें चूमना जारी रखा. चाची को अपनी बाँहों में लिए उनकी पीठ को सहलाते हुए उस लम्हे में उसे चूमना अपने आप में अद्भुद था . इ बेहद जावेदा चुम्बन के बाद मैंने चाची को छोड़ा.

“आपके जवाब का मुझे इंतज़ार रहेगा ” मैंने कहा और चाची के घर से निकल गया . बिस्तर पर लेटे बहुत देर तक मैं चाची की लिपस्टिक और मक्खन से होंठो के स्वाद को महसूस करता रहा . अँधेरे कमरे में धीमी आवाज में बजते कुमार सानु के गाने . मौसम अचानक से सुहाना लगने लगा था मुझे . जब तक की किसी ने कमरे में रौशनी नहीं की .

“अंधेरो से बड़ा लगाव हो रखा है आजकल देवर जी ” भाभी ने कहा .

मैं- इसका भी अपना मोल है

भाभी- सो तो है , मैंने सोचा आज साथ खाना खाया जाये.

मैं- न जाने क्यों मुझे भूख नहीं है .

भाभी- मैं ये तो नहीं जानती की तुम्हारे मन में क्या चल रहा है पर मुझे लगता है कुछ मामलो में हम क्लियर है , क्यों है न

मैं- कोई शक

भाभी- तो फिर ये ऐसा व्यवहार क्यों . ये रुखी बाते किसलिए . तुम तो कह कर चले जाते हो . तुम्हे क्या परवाह दुसरो पर क्या गुजरती है . इस घर की रौनके तुम से है पर तुम्हे क्या मालूम हम किस वीराने को महसूस करते है . तुम्हारा ये आवारापन , ये बंजारापन . जिदंगी को एक बार इस घर के नजरिये से देखो तो सही . हम सब से तो भाग लोगे पर खुद से कैसे भाग पाओगे.

मैं- कौन कमबख्त भागता है भाभी

भाभी- तो फिर वादा करो मुझसे आज के बाद कभी खाने के लिए मना नहीं करोगे और कम से कम एक टाइम का खाना मेरे साथ ही खाओगे .

मैं- वादे टूट जाते है , मैंने देखे है कसमो को बिखरते हुए

भाभी- तो कोशिश करना . आओ खाना खाते है मुझे भूख लगी है .

अब मैं क्या कहता , मैंने बस खाना खाया और सोने की कोशिश करने लगा . पर नींद भी जैसे दुश्मन हुई पड़ी थी . मेरी यादे, चाची की बाते उअर मीता के साथ बिताया एक खुबसूरत दिन . कभी इस करवट तो कभी उस करवट चैन जब भी नहीं मिला तो मैं घर से बाहर आया. सब कुछ खामोश था . गाँव सोया हुआ था. पैदल चलते हुए मैं गाँव से बाहर की तरफ हो लिया.



कुछ दूर चला था की कानो में लहर सी घुलने लगी . इतनी रात को किसको चुल हुई होगी . एक पल मैंने सोचा की किसी ये यहाँ ब्याह होगा तो बज रहा होगा. पर ये वैसा तराना नहीं था . एक शांत धुन जो क्या मालूम किसी सारंगी की थी या किसी बांसुरी की . पर जो भी थी कमाल थी . आवाज के सहारे मैं न जाने क्यों उस तरफ चल दिया.

काफी आगे जाने के बाद मैंने देखा की आग जल रही थी और उसके पास कोई बैठी थी .उसकी पीठ मेरी तरफ थी . दबे पाँव मैं उसकी तरफ गया .

“इन रातो को चोरी छिपे न घूमना चाहिए ” उसने बिना मुझे देखे ही कहा .

मैं उसके सामने गया . आंच की लौ में मैंने देखा वो कोई तीस पैंतीस साल की औरत थी . काले स्याह कपडे पहने , गोरा रंग .ठोड़ी पर तीन काले तीन . गहरी काली आँखे . दो पल में मैंने उसका हुलिया नाप लिया .

“माफी चाहूँगा, मैं अपने खेत में जा रहा था , ये तान सुनी तो इधर आ गया ” मैंने कहा .

“आ बैठ जरा. एक से भले दो .” उसने कहा तो मैं पास में रेत पर बैठ गया .

“खेत तो तेरे दो कोस दूर है यहाँ से , पर कोई न अब आया है तो बैठ दो बात कर , वैसे भी नींद तो तेरी है न साथ आज ” उसने कहा

मैं थोडा हैरान हो गया .

“आपको कैसे पता ” मैंने पूछा

“एक बंजारन मैं एक बंजारा तेरे अन्दर . सबके मन की जाने वो मस्त कलंदर ” ऐसा कहकर उसने आसमान की तरफ ध्यान दिया .

मैं- आप कोई भविष्य देखने वाली है क्या .

वो- ना रे , मुझे भी नींद नहीं आ रही थी तो इधर चली आई. सबके अपने अपने दुःख है , तू तेरे से दुखी मैं मेरे से .

उसने आग थोड़ी और सुलगाई . मैं बस उसे देखता रहा .

मैं- कुछ दिन पहले मैंने दो लोगो को ऐसे ही बैठे देखा था आग जलाए वो आसमान में कुछ देख रहे थे .

वो- तुझे क्या दीखता है ऊपर आसमान में

मैं- मुझे मेरी तन्हाई दिखती है

वो- आग में हाथ डाल जरा

मैं- जलेगा

वो- डाल तो सही


मैंने वैसा ही किया. आग की पीली बैंगनी लपटें लपकी मेरे हाथ की तरफ पर वो आग ठंडी लगी मुझे बर्फ सी ठंडी . उसने मेरा हाथ अपने हाथ में पकड़ा और फिर झटके से छोड़ दिया.
 
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