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Adultery प्रीत +दिल अपना प्रीत पराई 2

Naik

Well-Known Member
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#11

“क्या हुआ ” मैंने पूछा

वो- खाली है तेरा मन ये ठीक नहीं

मैं- तो क्या करे

वो- तू क्या करेगा नसीब करेगा. जिन गलियों को छोड़ आया है वो तुझे पुकारेंगी .

मैं- ऐसा नहीं होगा . वो दौर कोई और था ये दौर दूसरा है

वो- मैं मिलूंगी तुझसे फिर पूछूंगी

मैं- ठीक है मिलते है फिर

मैंने उस से कहा और उस से विदा ले ली. वो एक बार फिर अपनी सारंगी बजाने लगी.

सुबह घर गया . चाची कही दिखी नहीं मुझे . मैं आँगन में बैठा अख़बार पढ़ रहा था की माँ मेरे पास आई.

“बहुरानी कुछ दिन के लिए मायके जाएगी. तू छोड़ आना ” माँ ने कहा

मैं- ये मेरा काम नहीं है माँ. वहां से कोई आ जाये लेने या भाई छोड़ आये .

माँ- वैसे तो कहता है की माँ तेरा हर कहा मानता हु और जब कोई करने को कहूँ तो तेरे बहाने

मैं- ठीक है माँ आपका हुक्म सर माथे पर भाभी से कहना जल्दी से तैयार हो ले . पर मैं रुकुंगा नहीं वहां .

माँ- हाँ ठीक है मत रुकना .

अब क्या कहता मैं माँ से कुछ भी तो नहीं . घंटे भर बाद जब भाभी ऊपर से नीचे उतरी तो मैं बस उसे देखता ही रह गया. मेरी नजरो ने जो उस चेहरे का दीदार किया चाहते हुए भी मैं खुद को रोक न सका. एक सिम्पल सी गुलाबी साडी माथे पर एक टीका , कानो में बड़े बड़े झुमके . होंठो पर गुलाबी ही लिपस्टिक . खैर मैं भाभी को लेकर उनके मायके की तरफ चल पड़ा .

बहुत देर तक गाड़ी में हम दोनों के बीच ख़ामोशी सी रही .

“क्या बात है कुछ बोलते क्यों नहीं ” भाभी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा.

मैं- आप जानती थी न की मैं नहीं आना चाहता था .

भाभी- मैं चाहती थी की तुम आओ .

मैं- मेरा होना न होना क्या ही फर्क पड़ता है

भाभी- ये तुम कहते हो . तुम ये सोचते हो ?

मैं- कोई और बात करते है

भाभी- सारी बाते बस ये ही तो है .

मैं- कल किसी ने बताया मुझे की मेरा मन खाली है .

भाभी- बेवकूफ था वो जिसने ऐसा बताया .

मैं- मुझे भी ऐसा ही लगा.

भाभी ने अपना हाथ मेरे हाथ पर रखा और बोली- देवर जी , ये जो जीवन है न इसे जीना बड़ा दुश्वार होता है . हर चाह पूरी हो जाये ये सबके नसीब में तो नहीं होता न, किसी के बेहिसाब सुख मिल जाता है किसी को दुःख ये संसार का नियम है . पर इन्सान को निरंतर आगे बढ़ते रहना होता है . यही रीत है .

मैं- रीत के बाते सब करते है

भाभी- तुम किस की बात करते हो

मैं- क्या मालूम

भाभी-- एक दौर आये गा , जब जिंदगी गुलजार होगी आज रीत है पर तब प्रीत होगी . कोई ऐसी आयेगी जो हर कदम तुम्हे थाम कर चलेगी.

मैंने गाड़ी रोक दी . भाभी के गाँव की सीम आ गयी थी .

भाभी- क्या हुआ

मैं- सीम आ गयी है

भाभी- गाँव भी आएगा.

मैं- आप गाड़ी ले जाओ मैं यही से मुड जाता हूँ.

भाभी- मैं पैदल ही चली जाती हूँ कौन सा दूर है . कदमो ने खूब नापा है इन रास्तो को .

मैं- क्यों कर रही है आप ऐसा .

भाभी- मैंने सोचा था की दो दिन तुम मेरे साथ रहोगे यही . मेरे लिए रुक जाओ न , मेरे साथ रहो . तुमने कहा था मुझे

मैं- ठीक है आपकी यही चाह है तो ये ही सही ये भी ठीक है .

मैंने गाड़ी गेर में डाली और आगे बढ़ गए. गाँव शुरू होने से पहले वो बावड़ी आई . वो सरकंडे . वो टूटी सीढिया . दिल तो बहुत किया पर मैंने गाड़ी नहीं रोकी. गाँव का वो बाजार आज भी गुलजार था . वो चूडियो की दूकान वो हरी चुडिया आज भी वैसे ही टंगी थी . थोडा आगे वो बनारसी बर्फी वाले की दूकान . गलियों को पार करते हुए हम भाभी के घर की तरफ बढ़ रहे थे . दो मोड़ और पार किये और फिर हम हमारी मंजिल के सामने थे .गाड़ी से उतरे . भाभी ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली- आओ

मैं- आप चलो , मैं सामान लेकर आता हूँ .

भाभी- कोई और ले जायेगा .

हम अन्दर आये. सबने अच्छे से स्वागत किया हमारा. चाय नाश्ता हुआ. भाभी अन्दर चली गयी मैं मेहमान खाने में ही रुक गया . मेरे दिल में न जाने क्या था मैं क्या बताऊ .

“मैं थोडा बाहर होकर आता हूँ ” मैंने कहा और मैं वहा से दूर आ गया . मैं पैदल ही निकल पड़ा. मेरे कदम जहाँ मुझे ले जा रहे थे मैं जाना नहीं चाहता पर कुछ चीजों पर आपका बस नहीं होता . मैं एक बार फिर उसी बाजार में था . अर्जुनगढ़ के बाजार में .

“बाबु ये चुडिया देखो, जय पर्दा ने यही चुडिया पहनी थी ” चूड़ी वाली ने कहा .

मुझे हंसी आ गयी .

“सबको ऐसा ही कहती हो. अब तो कुछ नया बोलो. ” मैंने कहा

वो- तुम तो ऐसा कह रहे हो जैसे पहले मेरी दुकान से चूड़ी खरीदी है .

मैं- क्या नाम है आपका गुडिया

वो- जूही .

मैं- तो जूही , आपके पास सबसे अच्छी चुडिया कौन सी है .

“अरे तुझे बोला था न घर रहना तू फिर यहाँ आ गयी , नाक में दम करके रखा है तूने तो ”

जूही- अरे बाप रे माँ आ गयी , बाबू मुझे वो डांटेंगे दर्जन भर चूड़ी ले लो न .

मैं इस से पहले जवाब देता उसकी माँ हमारे पास आ गयी . हमारी नजरे मिली और वो मुझे पहचान गयी .

”आप, आप यहाँ इतने दिनों बाद ” इसके आगे वो कुछ बोलती मैंने इशारे से उसे चुप रहने को कहा .

“बड़ी प्यारी गुडिया है जूही . ” मैंने कहा और जेब से गड्डी निकाल कर जूही के सर पर वार कर उसकी माँ को दे दी. और जाने को मुड गया .

जूही- बाबु, पैसे दिए चूड़ी लेना भूल गए.

मैं- एक दिन आऊंगा


ऐसा लगता था की जैसे बस कल की ही बात हो . आँखों के सामने जैसे सब दौड़ने लगा था . मैंने मेरी साँसों को फूलते हुए महसूस किया. मुझे शायद चक्कर सा आ गया था . मैं वहां से चला ही था मेरे कानो में शंखनाद गूँज उठा.
Bahot behtareen update bhai
Bahot khoob shaandaar
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#12

मेरे गाँव से अर्जुनगढ़ की दुरी कोई ज्यादा नहीं थी मुश्किल से दस किलोमीटर होगी, पर कच्चे रस्ते से थोडा और कम हो जाती थी .ये शंखनाद जो मेरे कानो में गूँज रहा था. ये संकेत होता था की दोपहर का प्रसाद तैयार है . अर्जुनगढ़ का प्रसिद्ध मंदिर जहा पर हर दोपहर आलू की सब्जी और पूरी मिलती थी खाने को . ये नाद जैसे मुझसे कह रहा था की बहुत देर हुई अब और नहीं , किस का है इंतज़ार तुझे उठा कदम और आ पास मेरे .

पर मैंने उस दिशा से मुह मोड़ लिया . तबियत ठीक नहीं लग रही थी , चक्कर आ रहे थे तो मैं वापिस भाभी के घर आया और सो गया . आँख खुली तो मैंने देखा कमरे में बल्ब जल रहा था . मेरी नजर सामने दिवार घड़ी पर गयी रात का डेढ़ बज रहा था . पास सोफे पर भाभी बैठी थी जिनकी निगाहे मेरे ऊपर ही थी .

“आप अभी तक जाग रही है ” मैंने कहा

भाभी- तुम ऐसे ही सो गए थे . मैंने इंतजार करने का सोचा तुम्हारे जागने का क्योंकि जागते ही तुम्हे भूख लगती है

मैं- माफ़ी चाहूँगा, यु ऐसे आपको शर्मिंदा नहीं करना चाहता था जब आप अपने घर पर है , मुझे चक्कर आ रहे थे अवसाद में आँख लग गयी .

भाभी- तुम्हारी वजह से मैं कभी शर्मिंदा नहीं हो सकती . ऐसा सोचना भी गलत है . नींद का क्या है वैसे भी मैं बस थोड़ी देर पहले ही यहाँ आई वर्ना घरवालो से गप्पे ही लड़ा रही थी .

जग से गिलास भर का मैंने थोडा पानी पिया जो सीधा कलेजे को लगा.

“आप जाओ भाभी , सुबह मिलते है ” मैंने कहा और वापिस बिस्तर पर लेट गया .भाभी जाते जाते दरवाजे पर रुकी जिस तरह से उन्होंने पलट कर मुझे देखा , एक पल वो नजर मुझे दिल में उतरती दिखी .

अगली सुबह बड़ी खुशगवार और सुहानी थी . मैं सुबह सुबह ही बाहर निकल गया , अर्जुनगढ़ में ये दूसरा दिन था मेरा. घूमते घूमते मैं एक बार फिर बाजार की तरफ आ गया था . मैं बनारसी की दुकान पर जाना चाहता था पर मेरे कदम रस्ते से ही रुक गए . मैंने ठीक उसी तरह की तान सुनी जैसा वो औरत उस रात बियाबान में इकतारा बजा रही थी . मैं उस आवाज को साफ़ साफ़ महसूस कर पा रहा था .

और चलते चलते मैं ठीक उन सीढियों के पास आकर रुक गया जो ऊपर पहाड़ की तरफ जा रही थी . बहुत दूर वो शान से लहराता केसरिया झंडा हवा में गर्व से लहरा रहा था . सीढिया चढ़ कर मैं ऊपर पहुंचा. काली चट्टान के फर्श पर पानी बिखरा हुआ था और उसी फर्श पर बड़ी शान से बैठे वो इकतारा बजा रही थी .

हमारी नजरे मिली वो मुस्काई मैं मुस्कुराया.

“क्या ये इतेफाक है जो हम यहाँ यूँ मिले ” मैंने उसके पास जाकर कहा

वो- नियति भी हो सकती है . शायद इनकी मर्जी हो इस मुलाकात के पीछे

उसने सामने उस बड़ी सी मूर्ति की तरफ इशारा किया.

वो मूर्ति अपने आप में निराली ही थी . मिटटी की बनी हुई मूर्ति . जिस पर सिंदूर चढाया हुआ था .

“दर्शन कर आओ ” उसने कहा

मैं मूर्ति के पास गया शीश नवाया. दो पल मैं उस मूर्ति के पास बैठा.

“सकून मिलता है न यहाँ ” उसने मेरे पास बैठ्ते हुए कहा .

मैं- कुछ तो बात है

वो- क्या मालूम क्या होता है सकून, कुछ परछाई है सामने , एक धुंधलापन हमेशा साथ होता है .कुछ याद है कुछ नहीं . अपने आप से झुझता रहता हूँ.

वो- समझती हूँ इस बंजारेपन को

मैं- आपने उस रात जब मेरा हाथ पकड़ा था क्या देखा था

वो- कुछ नहीं

मैं- कम से कम इसके सामने तो झूठ न बोलो

मैंने मूर्ति की तरफ इशारा करते हुए कहा .

“”मैंने ज़माने भर का दुःख देखा था . वो दुःख जो तू हर घडी देखता है , वो दुःख जो तुझे जीने नहीं देगा और मर तू पायेगा नहीं .

“क्या कह रही है आप , बकवास है ये ” मैंने कहा

“फिर मुलाकात हुई तो बात करेंगे इस बारे में ” उसने कहा और उठ खड़ी हुई .

मैं- कहाँ जा रही है आप

वो- जहाँ नसीब ले जाए .

उसके जाने के बाद मैं भी उठ खड़ा हुआ . मैंने एक नजल कलाई पर बंधी घड़ी पर डाली और भाभी के घर की तरफ चल पड़ा. मैं बाजार पहुंचा ही था की आँखों में लश्कारे की चमक आन पड़ी . मैंने देखा तो थोड़ी दूर मीता थी . हाँ ये मीता ही दुपट्टे खरीदते हुए .

“ये क्या कर रही है यहाँ ” मैंने उस की तरफ जाते हुए सोचा .

“हलके केसरी रंग में दिखाओ न कुछ ” वो दूकान वाले से जिरह कर रही थी .

“गहरा नीला अच्छा लगेगा आप पर ” मैंने कहा .

वो मेरी तरह घूमी. हमारी नजरे मिली .

वो- तुम यहाँ

मैं- आप भी तो हैं यहाँ

वो- सो तो है , ठीक है भैया, गहरा नीला दुपट्टा ही दो मुझे .

उसने पैसे चुकाए .

“तो कैसे यहाँ ” उसने कहा

मैं- अपने आस पास के गाँवो में बड़ा बाजार यही है तो बस ऐसे ही चला आया.

मीता- न जाने क्यों आजकल हम दोनों के बहाने एक से ही होते है

मैं- शायद किसी किस्म का इशारा है ये .

हम बाते कर ही रहे थे की मैंने जूही को उसकी माँ के संग आते हुए देखा .

जूही- बाबु, आज आओगे न चूड़ी लेने .

“जूही , कितनी बार कहा है तुझे ” उसकी माँ ने उसे कहा .

मैं- बिलकुल आयेंगे, आप मेमसाहब से पूछो उनको कौन से रंग की पसंद है

मीता- क्या

जूही- दीदी आओ हमारी दूकान पर पास में ही है

जूही ने मीता का हाथ पकड़ा तो मैंने नजरो से उसे हाँ कहा .

हम जूही की दूकान पर आ गए .

जूही- दीदी ये देखो , ये वाली आप को अच्छी लगेगी . नहीं आप ये वाली देखो

मीता- तुम पसंद करो मेरे लिए

उसने मुझ से कहा .

मैं- मुझे तो बस हरी कांच की चुडिया पसंद है , लखोरी कांच की चूडियो की बात ही अलग है .

मीता- तो जूही मुझे वही दिखाओ .

“माँ ये कौन सी चुडिया है ” जूही ने माँ से पूछा

“नसीबो की चूडिया है वो बेटा. मैं निकालती हूँ ” जूही की माँ ने कहा और अन्दर से वो बक्सा ले आई. गहरे हरे कांच में जड़े सितारे धुप में चमकने लगे. उसने वो चुडिया मीता के हाथ में रखी और बोली-जोड़ी बनी रहे .


मीता एक पल हैरान हुई और मुस्कुरा पड़ी. मीता को कुछ सामान और खरीदना था वो एक दूकान में रुकी थी , तभी मेरी नजर सामने किसी पर पड़ी और ............. ...........
 

Dhansu

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#12

मेरे गाँव से अर्जुनगढ़ की दुरी कोई ज्यादा नहीं थी मुश्किल से दस किलोमीटर होगी, पर कच्चे रस्ते से थोडा और कम हो जाती थी .ये शंखनाद जो मेरे कानो में गूँज रहा था. ये संकेत होता था की दोपहर का प्रसाद तैयार है . अर्जुनगढ़ का प्रसिद्ध मंदिर जहा पर हर दोपहर आलू की सब्जी और पूरी मिलती थी खाने को . ये नाद जैसे मुझसे कह रहा था की बहुत देर हुई अब और नहीं , किस का है इंतज़ार तुझे उठा कदम और आ पास मेरे .

पर मैंने उस दिशा से मुह मोड़ लिया . तबियत ठीक नहीं लग रही थी , चक्कर आ रहे थे तो मैं वापिस भाभी के घर आया और सो गया . आँख खुली तो मैंने देखा कमरे में बल्ब जल रहा था . मेरी नजर सामने दिवार घड़ी पर गयी रात का डेढ़ बज रहा था . पास सोफे पर भाभी बैठी थी जिनकी निगाहे मेरे ऊपर ही थी .

“आप अभी तक जाग रही है ” मैंने कहा

भाभी- तुम ऐसे ही सो गए थे . मैंने इंतजार करने का सोचा तुम्हारे जागने का क्योंकि जागते ही तुम्हे भूख लगती है

मैं- माफ़ी चाहूँगा, यु ऐसे आपको शर्मिंदा नहीं करना चाहता था जब आप अपने घर पर है , मुझे चक्कर आ रहे थे अवसाद में आँख लग गयी .

भाभी- तुम्हारी वजह से मैं कभी शर्मिंदा नहीं हो सकती . ऐसा सोचना भी गलत है . नींद का क्या है वैसे भी मैं बस थोड़ी देर पहले ही यहाँ आई वर्ना घरवालो से गप्पे ही लड़ा रही थी .

जग से गिलास भर का मैंने थोडा पानी पिया जो सीधा कलेजे को लगा.

“आप जाओ भाभी , सुबह मिलते है ” मैंने कहा और वापिस बिस्तर पर लेट गया .भाभी जाते जाते दरवाजे पर रुकी जिस तरह से उन्होंने पलट कर मुझे देखा , एक पल वो नजर मुझे दिल में उतरती दिखी .

अगली सुबह बड़ी खुशगवार और सुहानी थी . मैं सुबह सुबह ही बाहर निकल गया , अर्जुनगढ़ में ये दूसरा दिन था मेरा. घूमते घूमते मैं एक बार फिर बाजार की तरफ आ गया था . मैं बनारसी की दुकान पर जाना चाहता था पर मेरे कदम रस्ते से ही रुक गए . मैंने ठीक उसी तरह की तान सुनी जैसा वो औरत उस रात बियाबान में इकतारा बजा रही थी . मैं उस आवाज को साफ़ साफ़ महसूस कर पा रहा था .

और चलते चलते मैं ठीक उन सीढियों के पास आकर रुक गया जो ऊपर पहाड़ की तरफ जा रही थी . बहुत दूर वो शान से लहराता केसरिया झंडा हवा में गर्व से लहरा रहा था . सीढिया चढ़ कर मैं ऊपर पहुंचा. काली चट्टान के फर्श पर पानी बिखरा हुआ था और उसी फर्श पर बड़ी शान से बैठे वो इकतारा बजा रही थी .

हमारी नजरे मिली वो मुस्काई मैं मुस्कुराया.

“क्या ये इतेफाक है जो हम यहाँ यूँ मिले ” मैंने उसके पास जाकर कहा

वो- नियति भी हो सकती है . शायद इनकी मर्जी हो इस मुलाकात के पीछे

उसने सामने उस बड़ी सी मूर्ति की तरफ इशारा किया.

वो मूर्ति अपने आप में निराली ही थी . मिटटी की बनी हुई मूर्ति . जिस पर सिंदूर चढाया हुआ था .

“दर्शन कर आओ ” उसने कहा

मैं मूर्ति के पास गया शीश नवाया. दो पल मैं उस मूर्ति के पास बैठा.

“सकून मिलता है न यहाँ ” उसने मेरे पास बैठ्ते हुए कहा .

मैं- कुछ तो बात है

वो- क्या मालूम क्या होता है सकून, कुछ परछाई है सामने , एक धुंधलापन हमेशा साथ होता है .कुछ याद है कुछ नहीं . अपने आप से झुझता रहता हूँ.

वो- समझती हूँ इस बंजारेपन को

मैं- आपने उस रात जब मेरा हाथ पकड़ा था क्या देखा था

वो- कुछ नहीं

मैं- कम से कम इसके सामने तो झूठ न बोलो

मैंने मूर्ति की तरफ इशारा करते हुए कहा .

“”मैंने ज़माने भर का दुःख देखा था . वो दुःख जो तू हर घडी देखता है , वो दुःख जो तुझे जीने नहीं देगा और मर तू पायेगा नहीं .

“क्या कह रही है आप , बकवास है ये ” मैंने कहा

“फिर मुलाकात हुई तो बात करेंगे इस बारे में ” उसने कहा और उठ खड़ी हुई .

मैं- कहाँ जा रही है आप

वो- जहाँ नसीब ले जाए .

उसके जाने के बाद मैं भी उठ खड़ा हुआ . मैंने एक नजल कलाई पर बंधी घड़ी पर डाली और भाभी के घर की तरफ चल पड़ा. मैं बाजार पहुंचा ही था की आँखों में लश्कारे की चमक आन पड़ी . मैंने देखा तो थोड़ी दूर मीता थी . हाँ ये मीता ही दुपट्टे खरीदते हुए .

“ये क्या कर रही है यहाँ ” मैंने उस की तरफ जाते हुए सोचा .

“हलके केसरी रंग में दिखाओ न कुछ ” वो दूकान वाले से जिरह कर रही थी .

“गहरा नीला अच्छा लगेगा आप पर ” मैंने कहा .

वो मेरी तरह घूमी. हमारी नजरे मिली .

वो- तुम यहाँ

मैं- आप भी तो हैं यहाँ

वो- सो तो है , ठीक है भैया, गहरा नीला दुपट्टा ही दो मुझे .

उसने पैसे चुकाए .

“तो कैसे यहाँ ” उसने कहा

मैं- अपने आस पास के गाँवो में बड़ा बाजार यही है तो बस ऐसे ही चला आया.

मीता- न जाने क्यों आजकल हम दोनों के बहाने एक से ही होते है

मैं- शायद किसी किस्म का इशारा है ये .

हम बाते कर ही रहे थे की मैंने जूही को उसकी माँ के संग आते हुए देखा .

जूही- बाबु, आज आओगे न चूड़ी लेने .

“जूही , कितनी बार कहा है तुझे ” उसकी माँ ने उसे कहा .

मैं- बिलकुल आयेंगे, आप मेमसाहब से पूछो उनको कौन से रंग की पसंद है

मीता- क्या

जूही- दीदी आओ हमारी दूकान पर पास में ही है

जूही ने मीता का हाथ पकड़ा तो मैंने नजरो से उसे हाँ कहा .

हम जूही की दूकान पर आ गए .

जूही- दीदी ये देखो , ये वाली आप को अच्छी लगेगी . नहीं आप ये वाली देखो

मीता- तुम पसंद करो मेरे लिए

उसने मुझ से कहा .

मैं- मुझे तो बस हरी कांच की चुडिया पसंद है , लखोरी कांच की चूडियो की बात ही अलग है .

मीता- तो जूही मुझे वही दिखाओ .

“माँ ये कौन सी चुडिया है ” जूही ने माँ से पूछा

“नसीबो की चूडिया है वो बेटा. मैं निकालती हूँ ” जूही की माँ ने कहा और अन्दर से वो बक्सा ले आई. गहरे हरे कांच में जड़े सितारे धुप में चमकने लगे. उसने वो चुडिया मीता के हाथ में रखी और बोली-जोड़ी बनी रहे .


मीता एक पल हैरान हुई और मुस्कुरा पड़ी. मीता को कुछ सामान और खरीदना था वो एक दूकान में रुकी थी , तभी मेरी नजर सामने किसी पर पड़ी और ............. ...........
Bhai bahut jabardast update
 
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