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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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सच मे रीत का दिमाग़ तो चाचा चौधरी से भी तेज़ है. आनंद बाबू से कुछ भी उगलवा सकती है. रियल साली वाली छेड़ छाड़ तो अब शुरू की है रीत ने. साले बनारस मे है तू.

अब क्या करें रीतवा भाभी भी तो लगी. वो भी बनारस वाली. अब बनारस मे दिल बहोत चोरी होते है.

सबसे मज़ेदार तो आनंद बाबू का कबूलनामा था. जो दिल चोरी बली बात पर बोला. और ज्यादा गुड्डी का देखना. भावुक और रोमांटिक सीन दिल छू लेने वाला.

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कई बार तो रीत की आँखें हीं बोल जाती हैं...
 

motaalund

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वाओ.... रीत तो काफ़ी मज़ेदार निकली. जितना गुंजा और गुड्डी ने नहीं छेड़ा उस से अधिक तो कुछ ही पल मे.
और बेचारे आनंद बाबू तो समजो ठगे गए. पर खुद से. मझा ही आ गया.


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ऐसी ठगने वाली हो तो बार बार ठगे जाने का मन करता है... आनंद बाबू का...
 

motaalund

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जबरदस्त. माझा आ गया. रीत की एंट्री और बस कुछ पलों की गुफ्तगू मज़े का लेवल ही अप कर दिया.

सही मे शेरलॉक लेडी बड़ी ख़तरनाक है. गुलामजामुन खाते ही हलवाई का पता बता दिया. मगर उसके दाहिवडे की कहानी तो आगे पता चलेगी क्या रंग लाई है. जबरदस्त.


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लेकिन अभी तो रीत के बड़े वाले गुझिया पर नजर है...
 

motaalund

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अमेज़िंग...... माझा आ गया.. पर रीत तो आनंद बाबू से भी 2 कदम आगे निकली. ग्लास कोल्ड्रिंक उन्हें ही पीला गई. साथ जाते हुए कुछ बोल भी दिया. अमेज़िंग.

लेकिन होली के लोक गीतों ने मन मोह लिया.


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होली पर कहानी तो कई लोगों ने इसी फोरम पर लिखी..
लेकिन जो रस यहाँ मिला...
खासकर होली के गीतों और लोक गीतों के साथ .. वो अनन्य है...
 

motaalund

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आपकी वह पोस्ट ही ऐसी महत्वपूर्ण थी, और अगली पोस्ट करीब करीब पूरी तरह नयी मैंने लिखी, रीत के चरित्र के कुछ पहलुओं की झलकी देने के लिए, जैसे वह कितनी आब्जर्वेंट है, विश्लेषण की क्षमता कितनी अधिक और कितनी तेज है, और आनंद बाबू से दोस्ती के लिए जो कॉमन इंट्रेस्ट है जैसे सत्यजीत राय, म्यूजिक डांस वो सब भी ,

अक्सर किसी भी महिला पात्र का प्रवेश होता है बात देह संबंध की ओर मुड़ने लगती है लेकिन मैं मानती हूँ की हर महिला या कोई भी कैरेक्टर हो भले ही वो छोटा सा रोल हो लेकिन उसे इस तरह से गढ़ा जाना चाहिए की वह एक दो पोस्ट में आने पर भी अपनी छाप छोड़ दे जैसे शोले में साम्भा या मौसी का कैरेक्टर है, इसलिए इस कहानी में अब तक जो तीन किशोरियां आयी सब का रोल, स्वरूप और आनंद बाबू से रिश्ता अलग है। गुड्डी की बात ही अलग है वो ऐसा बिन बोला रोमांस है जिसमे पात्र हर दूसरी लाइन में आयी लव यू नहीं बोलते लेकिन बिन बोले सब कुछ कहते हैं। और गुड्डी की सबसे बड़ी बात है, ' हक़ से ' , वो पूरा हक़ जताती है और आनंद बाबू ने वो हक़ उसे दे भी दिया है।

रीत से भी उन्होंने साफ़ साफ़ बोल दिया की दिल तो अब गुड्डी के पास है।

गूंजा एक जवानी की पहले सोपान पर चढ़ती किशोरी है, साली का रिश्ता, उत्सुकता

लेकिन रीत चंदा भाभी की तरह प्रौढ़ा तो नहीं , वय से किशोरी है पर मन और मस्तिष्क से पूरी तरह परिपक्व, और उस की एक बात " ज

' " कल अब नहीं है, आनेवाला कल भी नहीं है, बस आज है, बल्कि अभी है, उसे ही मुट्ठी में बाँध लो, उसी का रस लो, यह पल बस, "
इस ने आनंद बाबू को बता दिया रीत के मन और मानस के बारे में,

बहुत सी बातें शौक, आनंद बाबू और रीत में मिलते हैं, पहली बात तो साहित्य विशेष रूप से रीतिकालीन कवि

रसलीन के एक दोहे की अंतिम लाइन आनंद ने कही और रीत ने उसे पूरा कर दिया,

फिर सत्यजीत रे और फेलु दा और म्यूजिक और डांस, तो दोनों में दोस्ती के सारे बिंदु है

लेकिन ये कहाँ लिखा है दो दोस्त, मस्ती नहीं कर सकते या लड़का लड़की दोस्त नहीं हो सकते
Dance is vertical expression of horizontal desire...
 

motaalund

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HaHa...Madam aap majaak accha karti ho...agar aap mujhe apne story se bhaga bhi doge to main yeh story chhodunga nahi :)
It is my privilege to read such a lovely masterpiece. Thank you once again.

komaalrani
तेरा पीछा ना छोड़ूंगा .. सोणिए ...
 

motaalund

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बहुत बहुत धन्यवाद, इतने अच्छे कमेंट्स के लिए

रीत और आनंद में आपने एकदम सही कहा , कई उभयनिष्ठ बिंदु मिले जो उन्हें मित्र बनाते हैं,

आनंद ने रसलीन के एक दोहे की एक लाइन कही, जिसे रीत ने पूरा किया,

आनंद और रीत दोनों ही फेलू दा की कहानियों और फिल्मो के फैन निकले और आनंद रीत की ऑब्जर्वेशन क्षमता और तुरंत विश्लेषण के साथ साथ रीत के जीवन दर्शन के नजरिये से बहुत प्रभावित है

और जहाँ तक सत्यजीत राय की बात है इसी फोरम में मैंने एक थ्रेड सत्यजीत राय की जन्मशताब्दी पर शुरू किया था जिसमें उनके बारे में काफी जानकारी है और कई मित्र पाठकों ने भी उसमें कंट्रीब्यूट किया।

आनंद ने रीत को शुरू में ही बता दिया की दिल तो गुड्डी के पास है और फिर गुड्डी रीत की पुरानी सहेली, छोटी बहन सरीखी, तो दिल विल वाला मामला तो नहीं जहाँ पर बनारस के रिश्ते होली का माहौल और दोनों ने एक दूसरे को भांग खिला दिया है तो कुछ मस्ती , कुछ मजा तो होगा ही,

और वो सब अगली पोस्ट में

एक बार फिर से आपका आभार समय निकाल कर कहानी की पढ़ने और इतना विस्तृत और सहृदय टिप्पणी करने के लिए
कहानी से इतर भी जानकारी मन को मोह लेती है...
 

motaalund

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मम्मी और छुटकी की यह पोस्ट उन्हें बनारस से दूर रहने पर भी बनारस से जोड़ती है और खासतौर से छुटकी जिस तरह से चोली के अंदर रंगभरे गुब्बारे रखने की बात करती है

एक बार फिर से धन्यवाद
मम्मी और छुटकी गए हीं गुड्डी और आनंद बाबू को खुला मैदान देने के लिए... और बनारस का जलवा महसूस कराने के लिए...
 

motaalund

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बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
सांडे के तेल के साथ जबरदस्त क्लास चल रही है टीचर भी जबरदस्त है आनंद के तो आनंद हो गए
अभी आनंद के सागर में गोते लगाना बाकी है...
 
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