आपकी वह पोस्ट ही ऐसी महत्वपूर्ण थी, और अगली पोस्ट करीब करीब पूरी तरह नयी मैंने लिखी, रीत के चरित्र के कुछ पहलुओं की झलकी देने के लिए, जैसे वह कितनी आब्जर्वेंट है, विश्लेषण की क्षमता कितनी अधिक और कितनी तेज है, और आनंद बाबू से दोस्ती के लिए जो कॉमन इंट्रेस्ट है जैसे सत्यजीत राय, म्यूजिक डांस वो सब भी ,
अक्सर किसी भी महिला पात्र का प्रवेश होता है बात देह संबंध की ओर मुड़ने लगती है लेकिन मैं मानती हूँ की हर महिला या कोई भी कैरेक्टर हो भले ही वो छोटा सा रोल हो लेकिन उसे इस तरह से गढ़ा जाना चाहिए की वह एक दो पोस्ट में आने पर भी अपनी छाप छोड़ दे जैसे शोले में साम्भा या मौसी का कैरेक्टर है, इसलिए इस कहानी में अब तक जो तीन किशोरियां आयी सब का रोल, स्वरूप और आनंद बाबू से रिश्ता अलग है। गुड्डी की बात ही अलग है वो ऐसा बिन बोला रोमांस है जिसमे पात्र हर दूसरी लाइन में आयी लव यू नहीं बोलते लेकिन बिन बोले सब कुछ कहते हैं। और गुड्डी की सबसे बड़ी बात है, ' हक़ से ' , वो पूरा हक़ जताती है और आनंद बाबू ने वो हक़ उसे दे भी दिया है।
रीत से भी उन्होंने साफ़ साफ़ बोल दिया की दिल तो अब गुड्डी के पास है।
गूंजा एक जवानी की पहले सोपान पर चढ़ती किशोरी है, साली का रिश्ता, उत्सुकता
लेकिन रीत चंदा भाभी की तरह प्रौढ़ा तो नहीं , वय से किशोरी है पर मन और मस्तिष्क से पूरी तरह परिपक्व, और उस की एक बात " ज
' " कल अब नहीं है, आनेवाला कल भी नहीं है, बस आज है, बल्कि अभी है, उसे ही मुट्ठी में बाँध लो, उसी का रस लो, यह पल बस, "
इस ने आनंद बाबू को बता दिया रीत के मन और मानस के बारे में,
बहुत सी बातें शौक, आनंद बाबू और रीत में मिलते हैं, पहली बात तो साहित्य विशेष रूप से रीतिकालीन कवि
रसलीन के एक दोहे की अंतिम लाइन आनंद ने कही और रीत ने उसे पूरा कर दिया,
फिर सत्यजीत रे और फेलु दा और म्यूजिक और डांस, तो दोनों में दोस्ती के सारे बिंदु है
लेकिन ये कहाँ लिखा है दो दोस्त, मस्ती नहीं कर सकते या लड़का लड़की दोस्त नहीं हो सकते