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Erotica फागुन के दिन चार

Premkumar65

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भाग २६ ------------पूर्वांचल और,
गुड्डी

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“मतलब?” पतली सी अवाज थानेदार के गले से निकली।



सिद्दीकी बोला- “अरे साले तेरे बाप हैं। साल भर में आ जायेंगे यहीं…”

और अपने साथ आये दो आदमियों से मोहरों की तरफ इशारा करते हुये कहा-

“ये दोनों कचड़ा उठाकर पीएसी की ट्रक में डाल दो और शुकुल जी को (छोटा चेतन की ओर इशारा करते हुये) वज्र में बैठा दो। उठ नहीं पायेंगे। गंगा डोली करके ले जाना। हाँ एक पीएसी की ट्रक यहीं रहेगी गली पे और अपने दो-चार सफारी वालों को गली के मुहाने पे बैठा दो की कोई ज्यादा सवाल जवाब न हो। और न कोई ससुरा मिडिया सीडिया वाला। बोले तो साले की बहन चोद देना…”



जब वो सब हटा दिए गए तो थानेदार से वो बोला-


“मुझे मालूम है ना तो अपने जी॰डी॰ में कुछ लिखा है न एफ॰आई॰आर॰, फोन का लागबुक भी ब्लैंक हैं चार दिन से। तो जो कहानी साहब को सुना रहे थे, दुबारा न सुनाइएगा तो अच्छा होगा, और थानेदारिन जी को भी हम फोन कर दिए हैं। भाभीजी शाम तक आ जायेंगी तो जो हर रोज शाम को थाने में शिकार होता है ना उ बंद कर दीजिये। चलिए आप लोग। अगर एको मिडिया वाला, ह्यूमन राईट वाला, झोला वाला, साल्ला मक्खी की तरह भनभनाया ना। तो समझ लो। तुम्हरो नंबर लग जाएगा…”

थाने के पोलिस वाले चले गए।


तब तक एक गाड़ी की आवाज आई, वो हमारे लिए जो पोलिस की गाड़ी थी वो आ गई थी। हम लोग निकले तो दुकान के एक आदमी ने होली का जो हमने सामान खरीदा था वो दे दिया। सिद्दीकी हमें छोड़ने आया हमारे पीछे-पीछे अपनी गाड़ी में। गली के बाहर वो दूसरी तरफ मुड़ गया।

गुड्डी के चेहरे से अब जाकर डर थोड़ा-थोड़ा मिटा।
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“किधर चलें। तुम्हारा शहर है बोलो?” मैंने गुड्डी से पूछा।



“साहेब ने आलरेडी बोल दिया है मलदहिया पे एक होटल है। वहां से आप का रेस्टहाउस भी नजदीक है…”

आगे से ड्राइवर बोला।

पीछे से मैं बैठा सोच रहा था। थोड़ी ही देर में कहाँ कहाँ से गुजर गए। इतना टेंसन। लेकिन अब माहौल नार्मल कैसे होगा। गुड्डी क्या सोच रही होगी। मेरे कुछ दिमाग में नहीं घुस रहा था।

“ये ये तुम्हारी शर्ट पे चाकू लगा है क्या?”

गुड्डी ने परेशान होकर पूछा और टी-शर्ट की बांह ऊपर कर दी। वहां एक ताजा सा घाव था ज्यादा बड़ा नहीं लेकिन जैसे छिल गया हो। दो बूँद खून अभी भी रिस रहा था।

मुझे लगा वो घबड़ा जायेगी। लेकिन उसने लाइटली लिया और और चिढ़ाती सी बोली-


“अरे मैं सोच रही थी की फिल्मों के हीरों ऐसा कोई बड़ा घाव होगा और मैं अपने दुपट्टे को फाड़कर पट्टी बांधूंगी लेकिन ये तो एकदम छोटी सी पट्टी…”

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लेकिन उसकी आँखों में चिंता साफ झलक रही थी।
“ड्राइवर साहब कोई मेडिकल की दुकान पास में हो तो मैं एक बैंड-एड। …” मैं बोला।

लेकिन गुड्डी बीच में काटती बोली- “अरे नहीं कुछ जरूरत नहीं है। आप सीधे होटल ले चलिए बहुत भूख लगी है…” और उसने अपने बड़े से झोला नुमा पर्स से बैंड-एड निकला और एकदम मुझसे सटकर जितना जरूरी था उससे भी ज्यादा। मेरे हाथ में बैंड-एड लगा दिया लेकिन वैसे ही सटी रही अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ पकड़े जैसे खून बहने से रोके हो।



मैं बस सोच रहा था की कैसे उस दुस्वप्न से बाहर निकलूं।

पहले तो वो गुंडे और फिर पुलिस वाले। वो थानेदार। मैं अकेला होता तो ये यूजुअल बात होती लेकिन गुड्डी भी साथ। होली में उसके घर कितना मजा आया और घर पहुँचकर। कितना डर गई होगी, हदस गई होगी वो और मजे वजे लेने की बात तो दूर नार्मल बात भी शायद मुश्किल होगी।



लेकिन गुड्डी गुड्डी थी।


एक हाथ से मेरा हाथ पकड़े-पकड़े दूसरा हाथ सीधे मेरे पैरों पे और वहां से सीधे हल्के-हल्के ऊपर। मेरे कान में बोली-

“तुम डर गए हो तो कोई बात नहीं लेकिन कहीं ये तो नहीं डर के दुबक गया हो। वरना मेरा पांच दिन का इंतजार सब बेकार चला जाएगा…”
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मैं समझ गया की नार्मल होने की कोशिश वो मुझसे भी ज्यादा कर रही है।

मैं बस मुश्कुरा दिया। तब तक मेरा फोन बजा।
Things getting to normal.
 
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होटल
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तब तक होटल आ गया था। रेडीसन होटल। शायद नया बना था। थ्री स्टार रहा होगा।





मैं- “अरे हम लोगों को तो खाली खाना खाना था यहाँ कहाँ?” होटल की बिल्डिंग देखते हए मैंने ड्राइवर से कहा।


“नया खुला है साहब अच्छा है और साहब ने यहाँ बोल भी दिया है…” ड्राइवर ने कहा और जब हम उतरे तो होटल का मैनेजर खुद हमारा इंतजार कर रहा था।

मैनेजर- “सर का फोन आया था, ये होटल हमारा नया है लेकिन सारी सुविधा हैं…” कहकर उसने हाथ मिलाया और लेकर अन्दर चला।

सामने ही रेस्टोरेंट था।

मैंने कहा- “असल में हम लोग सिर्फ लंच के लिए आये हैं…” और रेस्टोरेंट की ओर मुड़ने लगा।

“एक्सक्यूज मी…” पीछे से एक मीठी सी आवाज आई। मैंने मुड़कर देखा।

डार्क कलर की साड़ी में। हल्के मेकअप में। रिसेप्शनिस्ट थी, - “अक्चुअली। वी हैव मेड अरेंजमेंटस एट आवर स्यूट। फोल्लो मी…”

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मैनेजर बोला- “असल में मैं भी यही कह रहा था। आज रेस्टोरेंट में थोड़ा रिनोवेशन चल रहा है एंड रूम इस कम्फर्टेबल। आप थोड़ा रिलेक्स भी कर सकते हैं…”



रूम क्या था पूरा घर था। दो कमरों का स्यूट।

मीठी आवाज वाली दरवाजे के बाहर तक छोड़कर गई और बोली-


“आप लोग चाहें तो थोड़ा फ्रेश हो लें। मैं 10 मिनट में वेट्रेस को भेजती हूँ, या 108 पे आप रूम सर्विस को भी आर्डर दे सकते हैं…”

कहकर दरवाजा उसने खुद बंद कर दिया था, और मैग्नेटिक चाभी टेबल पे छोड़ दी थी।

मैं जानता था अब ये कमरा सिर्फ अन्दर से खुल सकता है।

गुड्डी तो पागल हो गई।

बाहर वाले कमरे में सोफा, एक छोटी सी डाइनिंग टेबल 4 लोगों के लिए, मिनी फ्रिज, और एक बड़ा सा टीवी 32…” इंच का एल॰सीडी, और बेडरूम और भी बढ़िया। लेकिन सबसे अच्छा था बाथरूम।


बाथटब, शावर सारी चीजें जो कोई सोच सकता है।

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गुड्डी ने बाथरूम में ही मुझे किस कर लिया। एक-दो पांच 10 बार।

झूठ बोल रहा हूँ। किस करते समय भी कोई गिनता है।

गुड्डी फिर दूर खड़ी हो गई और वहीं से हुक्म दिया- “शर्ट उतारो…”

मैं एक मिनट सोचता रहा फिर बोला- “अरे यार मूड हो रहा है तो बेडरूम में चलते हैं ना। यहाँ कहाँ?”

गुड्डी मुश्कुरायी और बिना रुके पहले तो आराम से शर्ट के सारे बटन खोले और फिर उतारकर सीधे हुक पे, अगला नम्बर बनियान का था।

अब मैं पूरी तरह टापलेश था। गुड्डी ने पहले मुझे सामने से ध्यान से देखा, एकाध जगह हल्की खरोंच सी थी। वहां हल्के से उसने उंगली के टिप से सहलाया और फिर पीछे जाकर, एक जगह शायद हल्का सा लाल था, वहां उसने दबाया, तो मेरी धीमी सी चीख निकल गई।

गुड्डी- “खड़े रहना…”


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वो बोली और बाहर जाकर फ्रिज से बर्फ एक टिशू पेपर में रैप करके ले आई और उस जगह लगा दिया।

एक-दो जगह और शायद कुछ घूंसे लगे थे या गिरते पड़ते टेबल का कोना, वहां भी उसने बर्फ लगाकर हल्का-हल्का दबाया।

गुड्डी- “पैंट उतारो…” मैडम जी ने हुकुम सुनाया। पीछे से फिर बोली-

“मैं ही बेवकूफ हूँ। तुम आलसी से अपने हाथ से कुछ करने की उम्मीद करना बेकार है…”

और मुझे पीछे से पकड़े-पकड़े मेरी बेल्ट खोल दी, और पैंट भी हुक पे शर्ट के ऊपर, और अब वो अपने घुटनों के बल बैठ गई थी।


एक क्लोज इंस्पेक्शन मेरी टांगों का। फिर पीछे से घुटनों के पास एक बड़ी खरोंच थी।

वाश बेसिन पे होटल वालों ने जो आफ्टर शेव दिया था उसे हाथ में लेकर उसने ढेर सारा घुटने पे लगा दिया।

“उईईई…” मैं बड़ी जोर से चीखा।

गुड्डी- “ज्यादा चीखोगे। तो इसे खोलकर लगा दूंगी…”

मुश्कुराते हुए उसने अपनी लम्बी उंगलियों से चड्ढी के ऊपर से ‘उसे’ दबा दिया।


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दर्द, डर और मजे में बदल गया।


गुड्डी- “चड्ढी उतारोगे या मैं उतार दूँ? वैसे अन्दर वाला कई बार देख चुकी हूँ। आज इसलिए ज्यादा शर्माने की जरूरत नहीं है…”


“नहीं मैं वो उतार दूंगा…” और मैंने झट से नीचे सरका दिया।

गुड्डी- “देखा। चड्ढी उतारने में कोई देरी नहीं…” मुश्कुराते हुए वो बोली। फिर पीछे से उसने देखा, एक हाथ में उसके बर्फ के क्यूब थे। मैं जो डर रहा था वही हुआ। वो बोली- “झुको…”


मैं झुक गया।

गुड्डी- टांगें फैलाओ।

मैंने फैला दी।

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और बर्फ का क्यूब अपने होंठों में पकड़ के सीधे मेरे बाल्स पे और वहां से हटाने के बाद मेरे पिछवाड़े के छेद पे।


और असर वही जो होना था, वही हुआ। 90° डिग्री।



…”
Nice build up of story.
 
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इस अध्याय मे आपने अस्सी नब्बे के दशक के उत्तर प्रदेश के राजनीतिक और अपराधिक पहलू को उजागर किया है जिसका मै भी एक साक्षी रहा हूं ।
यह वह दौर था जब उत्तर प्रदेश और बिहार मे दबंग नेताओं और माफियाओं का दबदबा हुआ करता था । यह वह दौर था जब राजनैतिक दंगे , भू माफिया , अपहरण , हत्या साधारण बात हो गई थी । यह सब क्यों हुआ और इसका क्या राजनीतिक स्वार्थ था , अगर इसकी चर्चा शुरू कर दूं तो इस फोरम पर कई सारे विवाद शुरू हो जायेंगे ।
यह फोरम ऐसी चर्चा के लिए उपयुक्त मंच भी नही है ।

लेकिन इतना अवश्य कहना चाहता हूं कि पूर्वांचल उस दौरान माफियाओं से अत्यंत ही त्रस्त था । पश्चिम उत्तर प्रदेश के बारे मे क्या कहूं ! लोग बाग शाम 6 बजे के बाद अपने जानवरों को भी घर से बाहर नही जाना देना चाहते थे , बच्चे और महिलाओं की बात तो दूर की थी ।
चूंकि मेरा सम्बन्ध पश्चिम बंगाल , बिहार और उत्तर प्रदेश तीनो जगहों से है इसलिए मै यहां की घटनाओं से अच्छी तरह अवगत था ।

जहां तक बात है नैरेटिव की , राजनीति मे रियलिटी से अधिक प्रभावकारी नैरेटिव की होती है । आप के विषय मे आम लोगों की क्या धारणा बनती है , लोग आप के बारे मे क्या सोचते हैं , राजनीति मे यह अधिक मायने रखता है । रियलिस्टिक कोई खास मायने नही रखता ।
हमारे देश के एक प्राइम मिनिस्टर साहब के बारे मे आम जनता मे परसेप्शन बना कि उन्होने या उनके फैमिली मेम्बर के कुछ लोगों ने एक डिफेंस डील मे दलाली ली है । और यह परसेप्शन , यह नैरेटिव चुनाव मे उनके हार का कारण बना । जबकि हकीकत यह है कि आज तक उस आरोप को साबित नही किया जा सका । कम से कम प्राइम मिनिस्टर और उनके फैमिली पर तो यह आरोप सिद्ध नही हो पाया ।

जो राजनीतिक पार्टी जितना मजबूत , ठोस और तथ्यात्मक नैरेटिव गढ़ने मे सफल होती है , वह चुनाव मे उतना ही अधिक सफल होती है ।

एक बेहद ही शानदार विषय को आपने इस अपडेट का पार्ट बनाया , जो हैं तो बहुत ही उम्दा , पर इस फोरम के बहुतायत रीडर्स को शायद ही समझ मे आए !

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट कोमल जी ।
जगमग जगमग अपडेट ।
 
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जोरू का गुलाम भाग २३५ - शेयर, म्युचुअल फंड और नयी क्राइसिस पृष्ठ १४२६

अपडेट पोस्टेड

कृपया पढ़ें, आनंद लें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
 
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भाग २६ ------------पूर्वांचल और

last update is on page 318 please do read, enjoy, like and comment
 
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