इस अध्याय मे आपने अस्सी नब्बे के दशक के उत्तर प्रदेश के राजनीतिक और अपराधिक पहलू को उजागर किया है जिसका मै भी एक साक्षी रहा हूं ।
यह वह दौर था जब उत्तर प्रदेश और बिहार मे दबंग नेताओं और माफियाओं का दबदबा हुआ करता था । यह वह दौर था जब राजनैतिक दंगे , भू माफिया , अपहरण , हत्या साधारण बात हो गई थी । यह सब क्यों हुआ और इसका क्या राजनीतिक स्वार्थ था , अगर इसकी चर्चा शुरू कर दूं तो इस फोरम पर कई सारे विवाद शुरू हो जायेंगे ।
यह फोरम ऐसी चर्चा के लिए उपयुक्त मंच भी नही है ।
लेकिन इतना अवश्य कहना चाहता हूं कि पूर्वांचल उस दौरान माफियाओं से अत्यंत ही त्रस्त था । पश्चिम उत्तर प्रदेश के बारे मे क्या कहूं ! लोग बाग शाम 6 बजे के बाद अपने जानवरों को भी घर से बाहर नही जाना देना चाहते थे , बच्चे और महिलाओं की बात तो दूर की थी ।
चूंकि मेरा सम्बन्ध पश्चिम बंगाल , बिहार और उत्तर प्रदेश तीनो जगहों से है इसलिए मै यहां की घटनाओं से अच्छी तरह अवगत था ।
जहां तक बात है नैरेटिव की , राजनीति मे रियलिटी से अधिक प्रभावकारी नैरेटिव की होती है । आप के विषय मे आम लोगों की क्या धारणा बनती है , लोग आप के बारे मे क्या सोचते हैं , राजनीति मे यह अधिक मायने रखता है । रियलिस्टिक कोई खास मायने नही रखता ।
हमारे देश के एक प्राइम मिनिस्टर साहब के बारे मे आम जनता मे परसेप्शन बना कि उन्होने या उनके फैमिली मेम्बर के कुछ लोगों ने एक डिफेंस डील मे दलाली ली है । और यह परसेप्शन , यह नैरेटिव चुनाव मे उनके हार का कारण बना । जबकि हकीकत यह है कि आज तक उस आरोप को साबित नही किया जा सका । कम से कम प्राइम मिनिस्टर और उनके फैमिली पर तो यह आरोप सिद्ध नही हो पाया ।
जो राजनीतिक पार्टी जितना मजबूत , ठोस और तथ्यात्मक नैरेटिव गढ़ने मे सफल होती है , वह चुनाव मे उतना ही अधिक सफल होती है ।
एक बेहद ही शानदार विषय को आपने इस अपडेट का पार्ट बनाया , जो हैं तो बहुत ही उम्दा , पर इस फोरम के बहुतायत रीडर्स को शायद ही समझ मे आए !
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट कोमल जी ।
जगमग जगमग अपडेट ।