Quality Writing, + es time main khud Banaras main Didi k yaha aaya hu toh alag hi feel hai ese padne mainगुड्डी और गुँजा
तभी गुड्डी घुसी, एकदम जोश में। हम दोनों को देखकर जोर से बोली-
“अरे 10 मिनट कब के हो गए और तुमने चेंज भी नहीं किया, और ये कैसे पहन रहे हो। पहले साड़ी उतार दो…”
और ये कहकर पास में आकर साड़ी कम लुंगी खींचने लगी।
मेरे दोनों हाथ तो बरमुडा ऊपर चढ़ाने में फँसे थे। मैंने बहुत विरोध किया, लेकिन तब तक गुंजा को देखकर गुड्डी बोली-
“अच्छा तो इससे शर्मा रहे हो। क्यों देख लेगी तो बुरा लगेगा क्या?” गुंजा से उसने पूछा।
उसने ना में कसकर दायें से बाएं सिर हिलाया।
गुड्डी के एक झटके से चन्दा भाभी की साड़ी जो मैंने लुंगी की तरह पहन रखी थी उसके हाथ में। गुड्डी ने आधा पहना बर्मुडा भी नीचे खींच दिया। मेरे दोनों हाथ तो ‘वहां’ थे उसे किसी तरह छिपाने की कोशिश में और गूंजा और गुड्डी दोनों की निगाहें वहीँ, मुस्कराती छेड़तीं,
लुंगी गुड्डी के हाथ में, बारमूडा अभी घुटने तक भी नहीं पहुंचा था और इश्क मुश्क की तरह खड़ा खूंटा भी कहीं छुपता है, दोनों हाथों के पीछे से भी झांक रहा था।
ऊपर से गुड्डी और उसकी डांट,
" हे हाथ हटाओ, क्या पकड़ रखा है, शर्म नहीं आती। दो दो इत्ते मस्त माल सामने खड़े हैं और अभी भी ६१, ६२ कर रहे हो,"
और फिर जोर से घुड़की वो, "हटाओ हाथ दोनों हाथ एकदम पीछे, बोल तो दिया मेरी बहन ने बुरा नहीं मानेगी, तुरंत"
मेरे दोनों हाथ पीछे, गुड्डी की बात मेरे हाथ न माने ये हो नहीं सकता,
खुला पोस्टर निकला हीरो,
जैसे खटके वाला चाकू होता है न, बटन दबाया नौ इंच का चाकू बाहर, बस एकदम उसी तरह, और सामने खड़ी दोनों टीनेजर्स को सलाम ठोंकता, ' बाली उमर को सलाम'
गूंजा की आँखे वहीँ चिपकी, उसने पकड़ा था सहलाया था, दुलराया था, दबाया था, मोटाई और कड़ेपन का पक्का अंदाज हो गया था उसे, लेकिन देखा तो नहीं था,
दोनों किशोरियां थोड़ी देर तक आपस में फुसफुसाई, फिर खिलखिलायीं, फिर गुड्डी ही मुझसे बोली,
" इसी के लिए इत्ता शरमा रहे थे, देखा मेरी छोटी बहन ने एकदम बुरा नहीं माना "
मेरे मुंह से निकलते निकलते रह गया, बुर वालियों का क्या बुरा मानना, लेकिन गूंजा तो पता नहीं गुड्डी जबरदस्त पिटाई लगा देती .
वो नौवे में पढ़ने वाली लड़की,मेरी छोटी साली, गुँजा एकदम एकटक वहीँ देख रही थी, खुला मोटा सुपाड़ा, एकदम लाल भभुका, उसकी कलाई इतना मोटा खूंटा और निगाहों से नाप कर उसने अंदाज लगा लिया था उसके बित्ते से कम तो नहीं ही होगा, बड़ा भले ही हो,
मैंने बारमूडा ऊपर चढ़ाने की कोशिश की तो बड़ी बहन की डांट फिर पड़ गयी,
"किसने कहा था हाथ आगे करने को और कल क्या मना किया अब तेरे हाथों की कारस्तानी बंद, हम दोनों बहने सामने खड़ी है और ये अपना हाथ जरूर,"
हाथ फिर पीछे हो गए, गूंजा मुझे देख के चिढ़ाते हुए मुस्करा रही थी, गुड्डी ने अब उससे पूछा, " क्या देख रही है इत्ते ध्यान से "
" दी बस यही सोच रही हूँ, मैंने सोचा था की पांच कोट रंग लगाउंगी इस पर, चार कोट रंग फिर पेण्ट, और अब सोच रही हूँ की और ज्यादा तो नहीं, ...पांच से काम नहीं चलेगा,"
" अरे यार तू मेरी छोटी बहन है, पांच दस कोट जित्ता मन करे उत्ता लगाना, हाँ इनके दोनों हाथ एकदम इसी तरह पीछे रहेंगे, तुम्हे एकदम नहीं मना करेंगे, ये गुड्डी की गारंटी, तेरा पूरा हक है जो चाहे करना, और ये ज़रा भी इधर उधर करें तो मैं हूँ न, क्लास लूंगी कस के,और रहा रंग छुड़ाने का तो इन्हे इनके मायके ले ही चल रही हूँ, वहां इनकी बहने हैं चूस चूस के छुड़ायेंगी। बड़ी बहन से पहले छोटी बहन का हक होता है। "
गुड्डी के पास हर सवाल का जवाब था, एकदम बड़ी बहन की तरह बोली।
लेकिन तब तक नीचे से नीना की आवाज आयी। लग रहा था उसका यार बार बार मेसेज कर रहा थ।
झट से दोनों बहनों ने मिल के मेरा मतलब गूंजा का बारमूडा ऊपर चढ़ा दिया, हाँ खूंटा पकड़ के गूंजा ने ही अंदर किया और अंदर करने के पहले, अपने कोमल किशोर हाथों से कस के दबा भी दिया, हलके से मुठिया भी दिया और अंगूठे से खुले सुपाड़े को रगड़ दिया, उसकी आँखे मेरी आँखों में लगातार झांक रही थीं, जैसे कह रही हो,
"जीजू प्लीज होली खेल के जाना और अगर चूहा बिल में घुसना चाहे तो घुसे मेरी बिल को कोई परेशानी नहीं है। "
टी शर्ट मैंने खुद पहन ली। हम दोनों गूंजा के कमरे से निकल के छत पे आये जहाँ एक कोने में किचेन थ। वहीँ पास में ही नीचे जाने वाली सीढ़ी थी। हम तीनो के निकलने की आवाज सुन के चंदा भाभी भी बाहर आयी, गूंजा का टिफिन ले के। गुड्डी ने उनकी साडी वापस कर दी
" देखिये एकदम सही सलामत, और मेरी छोटी बहन ने आपकी साडी बचाने के लिए कितने त्याग बलिदान का परिचय दिया, अपना फेवरिट बारमूडा, "
लेकिन गुड्डी की आगे की बात चंदा भाभी की हंसी में खो गयी, हंसी रुके फिर चालू हो जाये, मुझे देख देख के
और अब गुड्डी भी फिर गूंजा भी, और बात साफ़ की, और किसने गुड्डी ने
" अरे इन्हे लड़कियों वाले कपडे अच्छे लगते हैं कल रात में आपकी साडी, आज दिन में मेरी बहन का बारमूडा और टी, फबते भी हैं उपपर और क्या पता लड़कियों वाली बाकी चीजें भी अच्छी लगती हों "
" एकदम सही बोल रही है तू " चंदा भाभी गुड्डी से बोलीं और फिर हंसने का दौर शुरू, फिर मुझसे वो बोलीं,
" ये मत कहना की छेद, अरे एक बार निहुरा देंगे न, लंबा छेद न सही गोल छेद सही, छेद तो छेद, बस घंटे भर में होली शुरू हो जाएगी यही छत पर, "
और अब चंदा भाभी की तोप गूंजा की ओर मुड़ गयी,
" सुबह से बोल रही थी न मेरे जीजू, मैंने क्या कहा था तेरे जीजू बुद्धू हैं एकदम बुद्धू जब अक्ल बंट रही थी अपनी बहनों के चक्कर में पड़े थे। अब तो मुझे लग रहा है तेरे जीजू बुद्धू नहीं है महा बुद्धू हैं एकदम ही बुद्धू। "
" हे मेरे जीजू को कुछ मत कहियेगा, इत्ते मुश्किल से तो एक जीजू मिले हैं होली के टाइम पे और आप भी "
गूंजा ने मुंह बनाया और एकदम मुझसे चिपक के खड़ी हो गयी, एक हाथ मेरी कमर में बाँध लिया। और फिर चमक के बोली,
" लेकिन आप ऐसे क्यूँ कह रही हैं "
चंदा भाभी पे एक बार फिर हंसने का दौर चढ़ गया था, उनकी निगाहें गूंजा के बारमूडा से जिसे मैं पहने था, चिपकी थी। फिर किसी तरह बोली,
" बुद्धू तो हैं ही, और बुद्धू बनाया तुम्ही ने, बेचारे को मिठाई का डिब्बा देकर टरका दिया, अंदर की मिठाई,, मेरे जीजू होते तो बिना अंदर की मिठाई खाये, डिब्बे के अंदर हाथ लगाए, छोड़ते नही। स्कूल की ऐसी की तैसी "
मैं भी समझ रहा था, गूंजा और गुड्डी भी की मिठाई का डिब्बा बारमूडा को कहा जा रहा है और अंदर की मिठाई,...
लेकिन तब तक सीढ़ी से किसी के चढ़ने की आवाज आयी, हम सब समझ गए की नीना ही होगी, बस गूंजा धड़धड़ा के नीचे,
लेकिन जाने के पहले पूरा प्रोग्राम बता गयी।
" बस दो घण्टे में आती हूँ स्कूल से, जीजू को बोल दिया है मेरे आने से पहले जाएंगे नहीं, और लौट के ऐसी होली में रगड़ाई करुँगी न की ये भी याद करेंगी एक गूंजा नाम की साली मिली थी बनारस वाली । "
बोल वो चंदा भाभी से रही थी लेकिन मेसेज मुझे दे रही थी, बस ब्रेक के बाद, साली पहले की सालियों से आगे निकलेगी। मिठाई मिलेगी और मन भर मिलेगी।
गूंजा नीचे चली गयी, गुड्डी को षड्यंत्रकारियों की तरह चंदा भाभी ने किचेन में गुड्डी को बुला लिय।
बचा मैं, और मैं छत के एक कोने की मुंडेर की ओर, जहाँ से नीचे सड़क दिख रही थी और गूंजा और उसकी सहेली, की बात साफ़ सुनाई पड़ रही थी।
गुंजा उसे हड़का रही थी, " स्साली, क्यों तेरे चींटे काट , रहे थे, दस मिनट रुक नहीं सकती थी क्य। मुझे भी मालूम है बस कब आती है ।
नीना उसे समझा रही थी, " अरे यार वो स्साला चूतिया बंटीवा, मेसेज पे मेसेज ठेले जा रहा था, और बस से किसे जाना है। मुझे तो उसकी बाइक पे, होली की शॉपिंग के लिए, तू भी प्लीज मेरी हाजिरी लगा देना, मेरी अच्छी मेरी प्यारी गुंजा, लेकिन ये बता तू क्या कर रही थी, तुझे क्यों देर लग रही थी, कोई था क्या, हाय हैंडसम टाइप। "
" और क्या " गुंजा खिलखिलाते हुए बोली। फिर उससे रहा नहीं गया , उगल दी । मेरे जीजू हैं, एकदम हैंडसम स्मार्ट, बहुत प्यारे से।
और फिर दोनों लड़कियों ने कुछ फुसफुसा के बात की जो सुनाई नहीं पड़ा लेकिन जिस तरह गुंजा की सहेली ने रिएक्ट किया, मुझे थोड़ा अंदाज लग गया,
" हाय सच्ची, यार एक बार मेरे साथ भी, " वो बोली।
" कत्तई नहीं, तेरे पास तो आलरेडी चार हैं, लेकिन मेरे जीजू अकेले उन चारों के बराबर हैं " गुंजा बड़े ठसके से बोली।
" यार जस्ट एक बाइट, उसकी सहेली रिक्वेस्ट करते बोली, फिर हँसते हुए चिढ़ाया, "यार अब तो तेरी चिड़िया भी जल्दी उड़ने लगेगी तू भी हम लोगों की बिरादरी में आ जायेगी। "
" जल्दी क्यों, आज क्यों नहीं " गुंजा ने मुंह फुला के बोला, और फिर राज खोला,
" जानती है मैंने उनसे कसम दिलवाई है वो मेरा वेट करेंगे होली के लिए, स्कूल से लौटने का वरना वो तो कल से जल्दी जाने की जिद किये थे, लेकिन मेरी बात, झट्ट मान गए। "
तब तक एक लड़का बाइक ले के दिखा और सहेली उस की बाइक पे पीछे और गुंजा पास के बस स्टैंड पे,
और मेरे पिछवाड़े तभी एक जोर की पड़ी, चटाक,
"स्साले लौंडिया ताड़ रहे हो, स्कूल की।"
और कौन होगा गुड्डी थी, उसके एक हाथ में तौलिया थी । पहले हड़काया फिर समझाया,
" इतना तो लौंडिया नहीं शर्माती जो लुंगी खोलने में लाज लग रही थी। अरे मेरी छोटी बहन है, तेरा देख लेगी तो क्या एकाध इंच कम हो जाएगा, बेवकूफों की तरह हाथ से छिपा रहे थे, और अब पीछे से उसके मटकते हुए चूतड़ देख रहे हो। चंदा भाभी सही कह रही थी , बेचारी मेरी छोटी बहन को कैसा जीजा मिला है, दूसरा जीजा होता तो अबतक साली के ताले में ताली लगा चुका होता। अभी स्कूल से लौटेगी न, उफ़ तुम भी न । "
गुड्डी झुंझला रही थी,
क्या हुआ मैंने पूछा
" चलो बारमूडा उतरो, माना तेरी साली की महक है इसके अंदर लेकिन फ़ौरन ये तौलिया,
और बारमूडा और टी अब गुड्डी के हाथ में था ।
पलंग पे पड़ा एक छोटा सा तौलिया उसने मेरी ओर बढ़ा दिया और बोली- “ये कपड़े नहाने तैयार होने के बाद…”
“मतलब?” मुश्किल से पीछे मुड़कर उस तौलिये को बाँधकर मैंने पूछा।
अब खुलकर हँसती हुई उस सारंग नयनी ने कहा-
“मतलब ये है की आपकी भाभी ने आदेश दिया है की आपको चिकनी चमेली बना दिया जाय। सुबह तो सिर्फ मंजन किया था ना। तो फिर…” और हाथ पकड़कर वो मुझे चंदा भाभी के कमरे में ले आई जहां मैं रात में सोया था।
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