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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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भाग ३१ ---चू दे कन्या विद्यालय- प्रवेश और गुड्डी के आनंद बाबू पृष्ठ ३५४

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भाग ३१
चू दे कन्या विद्यालय- प्रवेश और
गुड्डी के आनंद बाबू

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गुड्डी ने अपने पर्स, उर्फ जादू के पिटारे से कालिख की डिबिया जो बची खुची थी, दूबे भाभी ने उसे पकड़ा दी थी, और जो हम लोगों ने सेठजी के यहां से लिया था, निकाली और हम दोनों ने मिलकर। 4 मिनट गुजर गये थे। 11 मिनट बाकी थे।

मैंने पूछा- “तुम्हारे पास कोई चूड़ी है क्या?”

“पहनने का मन है क्या?” गुड्डी ने मुश्कुराकर पूछा और अपने बैग से हरी लाल चूड़ियां।


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जो उसने और रीत ने मिलकर मुझे पहनायी थी।

सब मैंने ऊपर के पाकेट में रख ली। मैंने फिर मांगा-
“चिमटी और बाल में लगाने वाला कांटा…”



“तुमको ना लड़कियों का मेक-अप लगता है बहुत पसन्द आने लगा। वैसे एकदम ए-वन माल लग रहे थे जब मैंने और रीत ने सुबह तुम्हारा मेक अप किया था। चलो घर कल से तुम्हारी भाभी के साथ मिलकर वहां इसी ड्रेस में रखेंगें…”

ये कहते हुये गुड्डी ने चिमटी और कांटा निकालकर दे दिया।
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मुझे अपनी एफबीआई के साथ एक महीने की क्वांटिको में ट्रेनिंग याद आ रही थी, जहाँ इन्वेस्टिगेशन के साथ पेन्ट्रेशन और कमांडो ट्रेनिंग का भी एक कोर्स था.
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और पुलिस अकादेमी सिकंदराबाद में कई एक्साम्स क्लियर करने के बाद ये मौका मिला था और दो तीन बाते बड़ी काम की थी,

जैसे किसी भी चीज को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना, और जो चीजें चेक में पकड़ी न जाएँ, या ले जाने में आसान हो और सबसे बड़ी बात
उपलब्ध हों। मुझे कमांडो आपरेशन का सबसे बड़ा डर ये था की वो मैक्सिमम फ़ोर्स इस्तेमाल करते हैं जिससे कम समय में ज्यादा डैमेज हो उन्हें एंट्री मिल जाए। कई बार नॉन -लीथल फ़ोर्स जैसे टीयर गैस या स्टन ग्रेनेड्स भी लड़ने के बाद उनके शेल अच्छी खासी चोट पहुंचा देते हैं

और फिर अटैक होने के बाद चुम्मन और उसका चमचा कहीं बॉम्ब डिस्पोज कर दें,


मैं किसी भी कीमत पर गुंजा और उसकी सहेलियों को खरोच भी नहीं लगने देना चाहता था।


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और उसके लिए परफेक्ट प्लानिंग और एक्जीक्यूशन जरूरी था और उसके साथ टाइम का ध्यान भी, क्योंकि सब कुछ डीबी के हाथ में नहीं था

एसटीफ स्टेट हेडक्वार्टस से उड़ चुकी थी और किसी भी पल बाबतपुर हवाई अड्डे पर उतरने वाली थी।

डीबी को उनके पहुंचने के पहले ही अपने पुलिस कमांडोज़ के आपरेशन को लांच करना था इसलिए एक एक मिनट का हिसाब करना था
लेकिन साथ में घबड़ाना भी नहीं था।

7 मिनट गुजर चुके थे, सिर्फ 8 मिनट बाकी थे।



निकलूं किधर से?

बाहर से निकलने का सवाल ही नहीं था, इस मेक-अप में?

सारा ऐड़वान्टेज खतम हो जाता। मैंने इधर-उधर देखा तो कमरे की खिड़की में छड़ थी, मुश्किल था। लेकिन उससे भी मुश्किल था, बाहर पुलिस वाले खड़े थे, कुछ मिलेट्री के कमांडो और दो एम्बुलेंस, बिना दिखे वहां से निकलना मुश्किल था, फिर कमरे में कभी भी कोई भी आ सकता था।



अटैच्ड बाथरूम।

मेरी चमकी, मेरी क्या, गुड्डी ने ही इशारा किया।

मैं आगे-आगे गुड्डी पीछे-पीछे। खिड़की में तिरछे शीशे लगे थे। मैंने एक-एक करके निकालने शुरू किये और गुड्डी ने एक-एक को सम्हाल कर रखना। जरा सी आवाज गड़बड़ कर सकती थी। 6-7 शीशे निकल गये और बाहर निकलने की जगह बन गई।


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9 मिनट। सिर्फ 6 मिनट बाकी।

बाहर आवाजें कुछ कम हो गई थीं, लगता है उन लोगों ने भी कुछ डिसिजन ले लिया था।

गुड्डी ने खिड़की से देखकर इशारा किया। रास्ता साफ था। मैं तिरछे होकर बाथरूम की खिड़की से बाहर निकल आया। बाथरूम वैसे भी पीछे की तरफ था और उससे एकदम सट कर पी ए सी की एक खाली ट्रक खड़ी थी।



वो दरवाजा 350 मीटर दूर था। यानी ढाई मिनट।

चारो ओर सन्नाटा पसरा था, वो चूड़ा देवी स्कूल की साइड थी तो वैसे भी पुलिस का ज्यादा फोकस उधर नहीं था। ज्यादातर फ़ोर्स मेन गेट के पास या अगल बगल की बिल्डिंगो पर थी। कुछ एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियां जरूर वहां आ के पार्क हो गयीं थी। कुछ दूरी पर स्कूल के पुलिस के बैरिकेड लगे थे, जहाँ पी ए सी के जवान लगे थे।


वो तो प्लान मैंने अच्छी तरह देख लिया था, वरना दरवाजा कहीं नजर नहीं आ रहा था। सिर्फ पिक्चर के पोस्टर। नजर बचाता, चुपके चुपके दीवारों के सहारे मैं उस छुपे दरवाजे तक पहुंच गया था। गुड्डी ने न बताया होता तो किसी को शक नहीं हो सकता था की यहाँ पर दरवाजा है इतने पिक्चर के पोस्टर,



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साथ में डाक्टर जैन की मर्दानी ताकत बढ़ाने वाली दवाओं और खानदानी शफाखाने के साथ बंगाली बाबा के इश्तहार चिपके थे। बाहर नाली बजबजा रही थी, उसके पास दो तीन पान की दूकान की गुमटियां और एक दो ठेले, लेकिन अभी सब बंद और खाली।



तभी वो हमारी मोबाईल का ड्राईवर दिखा, उसको मैंने बोला-

“तुम यहीं खड़े रहना और बस ये देखना कि दरवाजा खुला रहे…”



पास में कुछ पुलिस की एक टुकडी थी। ड्राइवर ने उन्हें हाथ से इशारा किया और वो वापस चले गये।


13 मिनट, सिर्फ दो मिनट बचे थे।
 
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खुला पोस्टर घुस गया हीरो
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मैं एकदम दीवाल से सटकर खड़ा था, कैसे खुलेगा ये दरवाजा? कुछ पकड़ने को नहीं मिल रहा था। एक पोस्टर चिपका था। सेन्सर की तेज कैन्ची से बच निकली, कामास्त्री। हीरोईन का खुला क्लिवेज दिखाती और वहीं कुछ उभरा था। हैंडल के ऊपर ही पोस्टर चिपका दिया था। और यह अकेला पोस्टर नहीं था, सिसकती कलियाँ, कच्ची जवानी, लेडीज हॉस्टल के नाम तो मैंने आसानी से पढ़ लिए और सब पर मोटा मोटा A और कुछ पुराने बस आधे तीहै,

कुछ भोजपुरी, ....सील टूट जाई

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तो कुछ दक्षिण भारतीय पिक्चरों के

मैंने गुड्डी को याद किया, पोस्टरों के ऊपर से ही हाथ फिरा के उस जंग लगे हैंडल को ढूंढा और फिर जैसे गुड्डी ने बताया था, दो बार आगे, तीन बार पीछे ।

सिमसिम।

दरवाजा खुल गया। वो भी पूरा नहीं थोड़ा सा। चूंचूं की आवाज हुयी, थोड़ा जोर लगाना पड़ा, कुछ जंग लगा सा था, और धीरे धीरे दरवाजा हल्का सा खुल गया। मैंने ज्यादा जोर लगाया भी नहीं, बस इधर उधर देखा, कोई देख नहीं रहा था।

15 मिनट हो गये थे। यानी जितना टाइम मैंने और गुड्डी ने सोचा था अंदर घुसने के लिए उसके अंदर मैंने गुड्डी और गुंजा के लड़कियों के स्कूल में सेंध लगा ली थी। लेकिन उस समय मैं न लड़कियों के स्कूल के बारे में सोच रहा था न उस स्कूल की लड़कियों के बारे में।

घटाटोप अँधेरा था। घुसते ही मैंने दरवाजे को अच्छी तरह से चिपका दिया था। और बाहर से रौशनी की एक किरण भी अंदर नहीं आ रही थी, ऊपर का दरवाजा भी बंद था ,



सीढ़ी सीधी थी लेकिन अन्धेरी, जाले, जगह-जगह कचडा।

थोड़ी देर में आँखें अन्धेरे की अभ्यस्त हो गई थी। मेरे पास सिर्फ 10 मिनट थे काम को अन्जाम देने के लिये।

सीढ़ी दो मिनट में पार कर ली।

साथ में कितनी सीढ़ीयां है रास्ते में, कौन सी सीढ़ी टूटी है, ऊपर के हिस्से पे सीढ़ी बस बन्द थी। लेकिन अन्दर की ओर इतना कबाड़, टूटी कुर्सियां, एक्जाम की कापियों के बन्डल, रस्सी। उसे मैंने एक किनारे कर दिया।

लौटते हुये बहुत कम टाइम मिलने वाला था। रबर सोल के जूते और एफबी आई के साथ क्वांटिको में दबे पाँव छापे डालने की गयी ट्रेनिंग, मैं श्योर था ऊपर जिन लोगों ने लड़कियों को अगवा कर रखा है, उन्हें ज़रा भी अंदाजा नहीं था की मैं कब अंदर घुस गया।



सीढ़ी का ऊपर दरवाजा खोल के भी मैंने चिपका दिया की अगर कोई देखे तो उसे अंदाजा न लगे की कोई स्कूल में दाखिल हो गया है। गुड्डी ने जो प्लान बनाया था, थर्मल इमेजिंग की जो पिक्स थी, सब मैंने मन में बैठा ली थी। सीढ़ी बरामदा सुर फिर वो कमरा जिसमे गुंजा की एक्स्ट्रा क्लास चल रही थी।



क्लास के पीछे के बरामदे में भी अन्धेरा था। मैं उस कमरे के बाहर पहुँचा और दरवाजे से कान लगाकर खड़ा हो गया।

हल्की-हल्की पदचाप सुनायी दे रही थी, बहुत हल्की।

मैंने दरवाजे को धक्का देने की कोशिश कि। वो बस हल्के से हिला।

मैंने नीचे झुक के देखा। दरवाजे में ताला लगा था।


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गुड्डी ने तो कहा था कि ये दरवाजा खुला रहता है।

अब?
 
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गुन्जा- बाम्ब
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अब ?




एक मोटा सा ताला लटक रहा था, दरवाजा बंद और दरवाजे के उस पार गुंजा और उस की साथ की दर्जा नौ की दो लड़कियां।

बॉम्ब और टिक टिक करता समय, और धक् धक कर रहा दिल,



गुड्डी ने साफ़ कहा था, ये दरवाजा खुला ही रहता है, लेकिन अब और टाइम ज्यादा बचा नहीं था। पुलिस का आपरेशन शरू ही होने वाला था ,

तब तक मैंने देखा मोबाइल का नेटवर्क चला गया। लाइट भी चली गई। अन्दर कमरें में घुप्प अन्धेरा छा गया। लाउडस्पीकर पर जोर से चुम्मन की माँ की आवाज आने लगी- “खुदा के लिये इन लड़कियों को छोड़ दो। इन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? अल्लाह तुम्हारा गुनाह माफ कर देंगें। पुलिस के साहब लोग भी। बाहर आ जाओ…”

प्लान दो शुरू हो चुका था। 17 मिनट हो गये थे। मेरे पास सिर्फ 8 मिनट थे।


मैंने गुड्डी की चिमटी निकाली और ताला खोलकर हल्के से दरवाजा खोल दिया, थोड़ा सा।

घुप्प अन्धेरा।

ट्रेनिंग में लॉक पिक करने के कम्टीशन में मैं हमेशा टॉप थ्री मेन रहता था और उसमें भी जब आँख पर पट्टी बंद के लॉक पिक से ताला खोलना हो, सिर्फ हल्की सी आवाज पहचान के, और हमेशा डेढ़ मिनट से कम समय में। और अब गुड्डी की चिमटी काम आयी,

लेकिन अभी भी ध्यान रखना था आवाज जरा भी नहीं हो, कहीं लड़कियां उचक गयीं और बॉम्ब एक्सप्लोड हो गया था उन दुष्टों को अंदाजा लग गया,



ताले का रहस्य मैं समझ गया था, ये चुम्मन का काम नहीं था। गुंजा का स्कूल तो बंद ही हो गया था होली की छुट्टी के लिए तो चौकीदार ने सारे कमरों में हर दरवाजे पे ताला लगा दिया होगा, हाँ इस कमरे में एक्स्ट्रा क्लास होनी थी तो सामने का मेन दरवाजा खोल दिया होगा।



थोड़ी देर में मेरी आँखें अन्धेरे की आदी हो गई।

एक बेन्च पे तीन लड़कियां, सिकुड़ी सहमी, गुन्जा की फ्राक मैंने पहचान ली। गुन्जा बीच में थी।

बेन्च के ठीक नीचे था बाम्ब। बिजली की हल्की सी रोशनी जल बुझ रही थी। कोई तार किसी लड़की से नहीं बन्धा था।

फर्श पर करीब करीब क्रॉल करते हुए मैं एकदम बॉम्ब के पास पहुँच गया था और बॉम्ब डिस्पोजल का मैं एक्सपर्ट नहीं था लेकिन दो तीन बातें साफ़ थी और दो तीन बातें साफ़ नहीं थीं।

एक तो इसमें कोई टाइमर नहीं था, यानी जैसा फिल्मो में दिखाते हैं वैसा कुछ नहीं था।

लेकिन डिटोनेशन का तरीका साफ़ नहीं लग रहा था एक तो साफ़ था की ये रिमोट ऑपरेटेड होगा, लेकिन साथ में ये प्रेशर ऑपरेटेड भी हो सकता है। बॉम्ब से जुड़ा तार किसी लड़की से नहीं बंधा था यानी किसी लड़की के हिलने डुलने से बॉम्ब एक्सप्लोड होगा ये नहीं था लेकिन बॉम्ब का संबंध बेंच से जिसपर तीनो लड़कियां थीं, उससे था। तो अगर प्रेशर में ज्यादा चेंज आया तो हो सकता है ये एक्सप्लोड करे, और जैसे ही कोई लड़की बेंच से अगर तेजी से या झटके से उठें तो ये फट जाए,



तीनो लड़कियां खिड़की के पास थीं, और मुझे लग रहा था की पुलिस का आपरेशन अब उसी खिड़की से ही लांच होगा, टीयर गैस या स्टन ग्रेनेड या ऐसा ही कुछ और फिर पुलिस कमांडो के बाद ही बॉम्ब डिस्पोजल वाले अंदर घुसेंगे जब साइट सिक्योर हो जायेगी, पर उस के पहले ही अगर बॉम्ब एक्सप्लोड हो गया, लड़कियां झटके से उठीं या बेहोश हो के गिर गयीं,.... या चुम्मन ने ही रिमोट से बॉम्ब एक्सप्लोड कर दिया

मैं,.... ये रिस्क नहीं ले सकता था



आपरेशन के पहले इन तीनो को यहाँ से हटाना था और बहुत जरूरी था।

दीवाल के पास एक आदमी खड़ा था जो कभी लड़कियों की ओर, कभी दरवाजे की ओर देखता।

बाहर लाउडस्पीकर पर आवाज और तेज हो गई थी। कभी चुम्मन की माँ की आवाज,.... कभी पुलिस की मेगाफोन पे वार्निग।

उस आदमी का ध्यान अब पूरी तरह बाहर से आती आवाजों पे था।



जमीन पर क्राल करते समय मुझे ये भी सावधानी रखनी पड़ रही थी की जो एक छोटा सा पिन्जड़ा मेरे पास था, वो जमीन से ना टकराये। उसमें दो मोटे-मोटे चूहे थे।

अब मैं उंकड़ू बैठ गया, एक खम्भे के पीछे जहाँ से उन तीनो लड़कियों को मैं बहुत अच्छी तरह से देख सकता था।



गुंजा साफ़ दिख रही थी,डरी सहमी, एकदम छाया की तरह, दोनों लड़कियों के बीच में, लेकिन तब भी वो बाकी दोनों लड़कियों से ज्यादा हिम्मत दिखा रही थी।

कभी हिम्मत बढ़ाने के लिए उन दोनों के हाथों को पकड़ लेती, दबा देती, लेकिन उस को भी उस बम्ब का अहसास बड़ी शिद्दत के साथ था और बचने की उम्मीद कहीं से नजर नहीं आ रही थी।

लेकिन उसके बगल में बैठी दोनों लड़कियों की हालत और ज्यादा खराब थी। दायीं ओर बैठी लड़की, एकदम टिपिकल पंजाबी कुड़ी, शायद महक होगी, दर्जा चार से गुंजा के साथ पढ़ने वाली और दूसरी ओर जो थी, वो डर से एकदम सफ़ेद हो गयी थी, पत्ते की तरह काँप रही थी, शायद क्या पक्का शाजिया, अभी कुछ देर पहले जो होली की मस्ती में अकेले कुछ देर पहले पूरे क्लास से टक्कर ले रही थी, गन्दी वाली गाली देने में गुंजा के मुताबिक़ उसके टक्कर का कोई नहीं, लेकिन अभी देख कर के लग रहा था की अब बेहोश हुयी की तब।

टाइम बहुत नहीं था।

सबसे पहले गुन्जा ने मुझे देखा।

गुंजा के चेहरे का रंग एकदम बदल गया। ख़ुशी से वो परीचेहरा चेहरा फिर से सुर्खरू हो गयी, जैसे पतझड़ की जगह सीधे बसंत आ गया। जहाँ एकदम निराशा थी, वहां उम्मीद का तालाब लहलहाने लगा। वो हलके से मुस्करायी। वही किशोर शरारत जो सुबह मिर्चों से भरे ब्रेड रोल खिलाते समय थी

वो चीखती उसके पहले मैंने उसे चुप रहने का इशारा किया और उंगली से समझाया की बाकी दोनों लड़कियों को भी समझा दे की पहले की तरह बैठी रहें रियेक्ट ना करें।

बॉम्ब को अब मैं करीब करीब समझ गया था । मैं उससे बस दो फीट दूर था। एक चीज मैं तुरन्त समझ गया की इसमें कोई टाईमर डिवाइस नहीं है। ना तो घड़ी की टिक-टिक थी ना वो सर्किटरी। तो सिर्फ ये हो सकता है की किसी तार से इसे बेन्च से बान्धा हो और जैसे ही बेन्च पर से वजन झटके से कम हो। बाम्ब ऐक्टिवेट हो जाय।
 
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डाइवर्ज़न- रिजक्यू

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बहुत मुश्किल था।

मैं खिड़की से चिपक के खड़ा था। कोई डाइवर्ज़न क्रियेट करना होगा। मैंने गुन्जा को इशारे से समझा दिया। मेरे जेब में पायल पड़ी थी, जो सुबह गुड्डी और रीत ने मुझे पहनायी थी और घर से निकलते समय भी नहीं उतारने दिया था। बाजार में पहुँचकर मैंने वो अपनी जेब में रख ली थी।


चूहे के पिंजरे से मैंने पनीर का एक टुकड़ा निकाला और पायल में लपेट के, पूरी ताकत से बाहर की ओर अधखुले दरवाजे की ओर फेंका। झन्न की आवाज हुई। दरवाजे से लड़कर पायल अधखुले दरवाजे के बाहर जा गिरी- “झन-झन-झन…”

“कौन है?” वो आदमी चिल्लाया और बाहर दरवाजे की ओर लपका जिधर से पायल की आवाज आई थी।


इतना डायवर्ज़न काफी था।

मैंने गुन्जा को पहले ही इशारा कर रखा था।

उसके दायीं ओर वाली लड़की को पहले उठकर मेरे पास आना था। वो झटके से उठकर मेरे पास आई। एक पल के लिये मेरे दिल कि धड़कन रुक सी गई थी।

कहीं बाम्ब,.... लेकिन कुछ नहीं हुआ।



और जब वो मेरे पास आई तो मेरे दिल की धड़कन दो पल के लिये रुक गई।

महक,… लम्बी, गोरी, सुरू के पेड़ जैसी छरहरी और सबसे बढ़कर उसकी फिगर।

लेकिन अभी उसका टाईम नहीं था। मैंने उसके कान में फुसफुसाया-

“दिवाल से सटकर जाना पीछे वाले दरवाजे पे। इसके बाद गुन्जा के बगल की दूसरी लड़की को मैं उठाऊँगा। तुम दरवाजे पे उस लड़की का इंतेजार करना और पीछे वाली सीढ़ी से…”

महक को सीढ़ी का रास्ता मालूम था। उसने मुझे आँखों में अश्योर किया और दीवाल से सटे-सटे बाहर की ओर।

मैं डर रहा था की जब वो दरवाजे से बाहर निकले तब कहीं कोई आवाज ना हो?

खतरा दरवाजे के पास खड़े आदमी से था, निश्चित रूप से मैनेजमेंट में वो थोड़े नीचे लेवल का था और चुम्मन ने उसे इन लड़कियों का ध्यान रखने के लिए बोला होगा, लेकिन अगर उसे महक के दरवाजा खोलने की आवाज भी सुनाई पड़ी और उसने बेंच की ओर देखा तो फिर सब काम गड़बड़ हो जाएगा।



नीचे से अनाउंसमेंट और तेज हो गए थे, कभी पुलिस की आवाज आती कभी चुम्मन की माँ की, और उस आदमी का ध्यान उन आवाजों की ओर,



और मेर ध्यान कभी उसकी ओर कभी महक की ओर, मुझे गुड्डी की बात का अंदाजा था की चुम्मन और उसका चमचा चूहे से डरते हैं

और मैंने एक चूहा छोड़ दिया।

वो आदमी दरवाजे के बाहर खड़ा था, पनीर का टुकड़ा उसके पैरों के पास, …और पल भर में चूहा वहीं।
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वो जोर से उछला- “चूहा…”



और महक,…. दरवाजे के पार हो गई।


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बाहर से लाउडस्पीकर की आवाजें बन्द हो गई थी और अब फायर ब्रिगेड वाले वाटर कैनन छोड़ रहे थे।

बन्द होने पर भी कुछ पानी बाहर के बरामदे में आ रहा था।

वो आदमी फिर बेचैन होकर बाहर की ओर गया और फिर.

डाइवर्जन और रिजक्यू का जो तरीका एक बार चल गया था, दुबारा फिर से वही, और बाहर के अनाउंसमेंट, वाटर कैनन के चक्कर मे चौकीदारी कर रहे चमचे के दिमाग में कुछ नहीं घुस पा रहा था।


और फिर से

पायल, पनीर का टुकड़ा और चूहा।

और अबकी चूहे ने उसे काट लिया।

वो चीखा और अब दूसरी लड़की दिवार से सटकर बाहर की ओर।



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चूहे हमेशा दिवार से सटकर चलते हैं और अंधेरे में देख सकते हैं। जो चूहे मैं लाया था इनके दांत बड़े तीखे होते हैं। ये बात उस आदमी को भी मालूम थी और वो दीवार के नजदीक नहीं आ सकता था। लेकिन अब मामला फँस गया।



अभी तक बेन्च पे कम से कम गुन्जा का वजन था। लेकिन उसके हटने के बाद,....?

मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था, एक तो टाइम बहुत तेजी से भाग रहा था, दूसरे बाकी दोनों लड़कियों के हटने के बाद सब प्रेशर गुंजा का था बेंच पर और अगर यह प्रेशर ऐक्टिवेटेड बॉम्ब है तो गुंजा के हटते ही पक्का बॉम्ब एक्क्सपलोड होगा और गुंजा मैक्सिमम रिस्क पर होगी,....
लेकिन और कोई चारा नहीं था,



वो चमचा जैसे ही अंदर आता देखता की दो लड़कियां गायब हैं वो चुम्मन को खबर करता और फिर रिमोट और बॉम्ब,....

और एक और परेशानी बची थी डाइवर्जन, पनीर, पायल चूहा अब कुछ नहीं था और बार बार चल भी नहीं सकता था।



दो लड़कियां तो बच के कमरे के बाहर निकल गयी थीं, और सीढ़ी वाले दरवाजे के पास होंगी,.... लेकिन गुंजा अभी भी खतरे में थीं।

वो आदमी अब और एलर्ट होकर अन्दर की ओर देख रहा था। जैसे ही वो रियलाईज करता की दो लड़कियां गायब हैं, तो मेरे लिये मुश्किलें टूट पड़ती।

क्या करूं? क्या करूं? मैं सोच रहा था। तब तक जोरदार आवाज हुई- “बूम। बूम…”

मैं समझ गया ये डमी ग्रेनेड है। धुआँ और आवाज। लेकिन उसने बरामदे में शीशा तोड़ दिया था और उसी के रास्ते वाटर कैनन का पानी।

गुंजा बस टिकी बैठी थी और अब दुबारा मौका नहीं मिलने वाला था।

मेरे इशारे के पहले ही, वो मेरी ओर कूद पड़ी।


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और मैं स्लिप के फील्डर की तरह पहले से तैयार। मैंने उसे कैच किया और उसी के साथ रोल करते हुये जमीन पर दरवाजे की ओर।



बाम्ब नहीं फूटा।

लेकिन एक दूसरा धमाका हो गया।
 
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चाक़ू

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कमरे में एक दूसरा आदमी दाखिल हो गया-

“क्या हो रहा है यहां? तू नीचे जा। अब लगता है की टाईम आ गया है…”

और उसने लाइटर निकालकर जला ली। और जैसे ही लाईटर की रोशनी बेन्च की ओर पड़ी। बेन्च खाली,

वो चिल्लाया- “लड़कियां कहां गईं?” देख जायेंगी कहां? यहीं कहीं होगीं, ढूँढ़ जल्दी…”

मैं और गुन्जा दम साधे फर्श पे थे, और लाइटर की रोशनी हम लोगों की ओर भी आ गई। पक्का यही चुम्मन था, फर्श पर गुंजा को पकडे, चिपके मैं उसकी आवाज से महसूस कर रहा था। उसकी आवाज में एक अथार्टी के साथ, एक डर एक हल्का सा फ्रस्ट्रेशन और झुंझलाहट भी थी, जैसे कोई जुआरी आखिर दांव मेन सब कुछ लगा दे और जीती हुयी बाजी जैसे अचानक उलट जाए, बेंच खाली, लड़कियां गायब, खिड़की के रस्ते वाटर कैनन से हमला शुरू हो गया था,



और जैसे कोई जंगली जानवर फंस जाए, उसके निकलने का कोई रास्ता नहीं बचे तो वो सिर्फ हमला कर सकता है और एकदम खूंख्वार हो जाता है, वो अपनी जान पर खेल कर जान लेने पर उतारू होता है, मैं समझ गया था चुम्मन अब उस मूड में होगा और गुंजा अभी भी उसी कमरे में है,



डीबी के खबरी ने बताया था, चुम्मन मशहूर चाक़ू बाज है, उसका निशाना कभी गलत नहीं होता,



एक चाकू तेजी से,… हवा में लहराता।

मैं सिर्फ इतना कर सका की रोल करके मैंने गुन्जा को अपने नीचे कर लिया। पूरी तरह मेरे नीचे दबी, चारों ओर मेरी बांहें, पैर।

चाकू मेरी बांह में लगा और अबकी बार वो खरोंच नहीं थी, घाव थोड़ा गहरा था। खून तेजी से निकलने लगा। अगर मैंने गुंजा को उस तरह पलक झपकते दबोचा नहीं होता तो निश्चित रूप से चाक़ू गुंजा के सीने में पैबस्त होता, और चाक़ू भी पूरे ९ इंच के फल वाला, तीखा,



मैंने गुंजा से बोला- “तू भाग। बाकी लड़कियां पीछे वाली सीढ़ी पे खड़ी होंगी। तू भी वहीं खड़ी होकर मेरा इंतजार करना। मैं रोकता हूँ इसको…”

हम लोग दरवाजे के पास ही थे।

गुंजा सरक कर, क्रॉल करती हुई दरवाजे के बाहर निकल गई और दौड़ती हुई सीढ़ी की ओर।
 
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एडवांटेज टीम गुंजा
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==


लाइटर के बुझने से कमरे में एक बार फिर से अँधेरा था,

लेकिन तीनो लड़कियां अब कमरे के बाहर थीं और सीढ़ी के दरवाजे पर, लेकिन कमरे में मैं अभी भी फंसा था, चाक़ू का घाव मेरे दाएं हाथ में, काफी गहरा था, खून बह रहा था और वो अब एकदम मेरे बगल में आकर खड़ा था, मेरे लिए बचना तो छोड़िये, उठना मुश्किल था।

वो आदमी मेरे पास आ चुका था।

लाईटर बुझ चुका था,लेकिन उस अन्धेरे में भी उसने एक बड़ा चाकू जो निकाला, उसकी चमक साफ दिख रही थी।



वो आदमी-
“क्यों साले, किसका आशिक है तू? उस महक का। बुरचोदी, उसकी बहन तो बच गई ये नहीं बचने वाली मेरे हाथ से। या गुंजा का? अब स्वर्ग में जाकर मिलना महक से। घबड़ाना मत दो-चार महीने मजे लेकर उसे भी भेज दूंगा तेरे पास, ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा…”

और उसने चाकू ऊपर की ओर उठाया।

मैं जमीन पे गिरा था, उसके पैरों के पास।

गुड्डी से जो मैंने बाल वाला कांटा लिया था और उसने मजाक में मेरे बालों में खोंस दिया था,... मेरे हाथ में था।

खच्च। खच्च। खच्च। दो बार दायें पैर में एक बार बायें पैर में। जितनी मेरे हाथ में ताकत हो सकती थी, उतनी ताकत लगा के, बस यही मौका था बचने का।

वो आदमी लड़खड़ाकर गिर पड़ा।

उठते हुये मैंने उसके दायें हाथ की मेन आर्टरी में, पूरी ताकत से कांटा चुभोया और खून छल-छल बहने लगा।



निकलते-निकलते मैंने देखा कि एक मोबाइल फर्श पे गिरा है।

मैंने उसे तुरन्त उठा लिया और कमरे के बाहर।

उसी समय एक आँसू गैस का शेल खिड़की तोड़ता हुआ कमरे में।

20 मिनट हो चुका था।

मुझे 5 मिनट में बाहर निकलकर आल क्लियर का मेसेज देना था, वरना कमांडो अन्दर।



लेकिन ज्यादा तुरन्त की समस्या ये थी.... ये दोनों पीछा तो करेंगे ही कैसे उसे कम से कम 5-10 मिनट के लिये डिले किया जाय।

दरवाजा बन्द करके मैंने टूटा हुआ ताला उसमें लटका दिया- ऐडवांटेज एक मिनट।

मैंने गुड्डी से जो चूड़ियां ली थी, सीढ़ी की उल्टी डायरेक्शन में मैंने बिखरा दी और कुछ एक कमरे के सामने। अगर वो कन्फुज हुये तो- ऐडवांटेज दो मिनट।



मैं वापस दौड़ता हुआ सीढ़ी की ओर।

तीनों लड़कियां सीढ़ी के पार खड़ी थी।

महक ने बोला- “चलें नीचे?”



मैंने कहा- “अभी नहीं…” और सीढ़ी का दरवाजा बन्द कर दिया।

पीछे से जोर-जोर से दरवाजा खड़खड़ाने की आवाज आ रही थी।

मैंने बोला- “ये जो कापियों का बन्डल रखा है ना उसे उठा-उठाकर यहां रखो…”

वो बोली- “मेरा नाम महक है। महक दीप…”

मैंने कहा- “मुझे मालूम है। लेकिन प्लीज जरा जल्दी…” और जल्दी-जल्दी कापियों से जो बैरीकेडिंग हो सकती थी किया।

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भाग ३१ ---चू दे कन्या विद्यालय- प्रवेश और गुड्डी के आनंद बाबू पृष्ठ ३५४

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भाग ३१
चू दे कन्या विद्यालय- प्रवेश और
गुड्डी के आनंद बाबू

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गुड्डी ने अपने पर्स, उर्फ जादू के पिटारे से कालिख की डिबिया जो बची खुची थी, दूबे भाभी ने उसे पकड़ा दी थी, और जो हम लोगों ने सेठजी के यहां से लिया था, निकाली और हम दोनों ने मिलकर। 4 मिनट गुजर गये थे। 11 मिनट बाकी थे।

मैंने पूछा- “तुम्हारे पास कोई चूड़ी है क्या?”

“पहनने का मन है क्या?” गुड्डी ने मुश्कुराकर पूछा और अपने बैग से हरी लाल चूड़ियां।


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जो उसने और रीत ने मिलकर मुझे पहनायी थी।

सब मैंने ऊपर के पाकेट में रख ली। मैंने फिर मांगा-
“चिमटी और बाल में लगाने वाला कांटा…”



“तुमको ना लड़कियों का मेक-अप लगता है बहुत पसन्द आने लगा। वैसे एकदम ए-वन माल लग रहे थे जब मैंने और रीत ने सुबह तुम्हारा मेक अप किया था। चलो घर कल से तुम्हारी भाभी के साथ मिलकर वहां इसी ड्रेस में रखेंगें…”

ये कहते हुये गुड्डी ने चिमटी और कांटा निकालकर दे दिया।
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मुझे अपनी एफबीआई के साथ एक महीने की क्वांटिको में ट्रेनिंग याद आ रही थी, जहाँ इन्वेस्टिगेशन के साथ पेन्ट्रेशन और कमांडो ट्रेनिंग का भी एक कोर्स था.
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और पुलिस अकादेमी सिकंदराबाद में कई एक्साम्स क्लियर करने के बाद ये मौका मिला था और दो तीन बाते बड़ी काम की थी,

जैसे किसी भी चीज को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना, और जो चीजें चेक में पकड़ी न जाएँ, या ले जाने में आसान हो और सबसे बड़ी बात
उपलब्ध हों। मुझे कमांडो आपरेशन का सबसे बड़ा डर ये था की वो मैक्सिमम फ़ोर्स इस्तेमाल करते हैं जिससे कम समय में ज्यादा डैमेज हो उन्हें एंट्री मिल जाए। कई बार नॉन -लीथल फ़ोर्स जैसे टीयर गैस या स्टन ग्रेनेड्स भी लड़ने के बाद उनके शेल अच्छी खासी चोट पहुंचा देते हैं

और फिर अटैक होने के बाद चुम्मन और उसका चमचा कहीं बॉम्ब डिस्पोज कर दें,


मैं किसी भी कीमत पर गुंजा और उसकी सहेलियों को खरोच भी नहीं लगने देना चाहता था।


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और उसके लिए परफेक्ट प्लानिंग और एक्जीक्यूशन जरूरी था और उसके साथ टाइम का ध्यान भी, क्योंकि सब कुछ डीबी के हाथ में नहीं था

एसटीफ स्टेट हेडक्वार्टस से उड़ चुकी थी और किसी भी पल बाबतपुर हवाई अड्डे पर उतरने वाली थी।

डीबी को उनके पहुंचने के पहले ही अपने पुलिस कमांडोज़ के आपरेशन को लांच करना था इसलिए एक एक मिनट का हिसाब करना था
लेकिन साथ में घबड़ाना भी नहीं था।

7 मिनट गुजर चुके थे, सिर्फ 8 मिनट बाकी थे।



निकलूं किधर से?

बाहर से निकलने का सवाल ही नहीं था, इस मेक-अप में?

सारा ऐड़वान्टेज खतम हो जाता। मैंने इधर-उधर देखा तो कमरे की खिड़की में छड़ थी, मुश्किल था। लेकिन उससे भी मुश्किल था, बाहर पुलिस वाले खड़े थे, कुछ मिलेट्री के कमांडो और दो एम्बुलेंस, बिना दिखे वहां से निकलना मुश्किल था, फिर कमरे में कभी भी कोई भी आ सकता था।



अटैच्ड बाथरूम।

मेरी चमकी, मेरी क्या, गुड्डी ने ही इशारा किया।

मैं आगे-आगे गुड्डी पीछे-पीछे। खिड़की में तिरछे शीशे लगे थे। मैंने एक-एक करके निकालने शुरू किये और गुड्डी ने एक-एक को सम्हाल कर रखना। जरा सी आवाज गड़बड़ कर सकती थी। 6-7 शीशे निकल गये और बाहर निकलने की जगह बन गई।


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9 मिनट। सिर्फ 6 मिनट बाकी।

बाहर आवाजें कुछ कम हो गई थीं, लगता है उन लोगों ने भी कुछ डिसिजन ले लिया था।

गुड्डी ने खिड़की से देखकर इशारा किया। रास्ता साफ था। मैं तिरछे होकर बाथरूम की खिड़की से बाहर निकल आया। बाथरूम वैसे भी पीछे की तरफ था और उससे एकदम सट कर पी ए सी की एक खाली ट्रक खड़ी थी।



वो दरवाजा 350 मीटर दूर था। यानी ढाई मिनट।

चारो ओर सन्नाटा पसरा था, वो चूड़ा देवी स्कूल की साइड थी तो वैसे भी पुलिस का ज्यादा फोकस उधर नहीं था। ज्यादातर फ़ोर्स मेन गेट के पास या अगल बगल की बिल्डिंगो पर थी। कुछ एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियां जरूर वहां आ के पार्क हो गयीं थी। कुछ दूरी पर स्कूल के पुलिस के बैरिकेड लगे थे, जहाँ पी ए सी के जवान लगे थे।


वो तो प्लान मैंने अच्छी तरह देख लिया था, वरना दरवाजा कहीं नजर नहीं आ रहा था। सिर्फ पिक्चर के पोस्टर। नजर बचाता, चुपके चुपके दीवारों के सहारे मैं उस छुपे दरवाजे तक पहुंच गया था। गुड्डी ने न बताया होता तो किसी को शक नहीं हो सकता था की यहाँ पर दरवाजा है इतने पिक्चर के पोस्टर,



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साथ में डाक्टर जैन की मर्दानी ताकत बढ़ाने वाली दवाओं और खानदानी शफाखाने के साथ बंगाली बाबा के इश्तहार चिपके थे। बाहर नाली बजबजा रही थी, उसके पास दो तीन पान की दूकान की गुमटियां और एक दो ठेले, लेकिन अभी सब बंद और खाली।



तभी वो हमारी मोबाईल का ड्राईवर दिखा, उसको मैंने बोला-

“तुम यहीं खड़े रहना और बस ये देखना कि दरवाजा खुला रहे…”



पास में कुछ पुलिस की एक टुकडी थी। ड्राइवर ने उन्हें हाथ से इशारा किया और वो वापस चले गये।


13 मिनट, सिर्फ दो मिनट बचे थे।
Once again komal Didi Rocks ..
 

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खुला पोस्टर घुस गया हीरो
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मैं एकदम दीवाल से सटकर खड़ा था, कैसे खुलेगा ये दरवाजा? कुछ पकड़ने को नहीं मिल रहा था। एक पोस्टर चिपका था। सेन्सर की तेज कैन्ची से बच निकली, कामास्त्री। हीरोईन का खुला क्लिवेज दिखाती और वहीं कुछ उभरा था। हैंडल के ऊपर ही पोस्टर चिपका दिया था। और यह अकेला पोस्टर नहीं था, सिसकती कलियाँ, कच्ची जवानी, लेडीज हॉस्टल के नाम तो मैंने आसानी से पढ़ लिए और सब पर मोटा मोटा A और कुछ पुराने बस आधे तीहै,

कुछ भोजपुरी, ....सील टूट जाई

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तो कुछ दक्षिण भारतीय पिक्चरों के

मैंने गुड्डी को याद किया, पोस्टरों के ऊपर से ही हाथ फिरा के उस जंग लगे हैंडल को ढूंढा और फिर जैसे गुड्डी ने बताया था, दो बार आगे, तीन बार पीछे ।

सिमसिम।

दरवाजा खुल गया। वो भी पूरा नहीं थोड़ा सा। चूंचूं की आवाज हुयी, थोड़ा जोर लगाना पड़ा, कुछ जंग लगा सा था, और धीरे धीरे दरवाजा हल्का सा खुल गया। मैंने ज्यादा जोर लगाया भी नहीं, बस इधर उधर देखा, कोई देख नहीं रहा था।

15 मिनट हो गये थे। यानी जितना टाइम मैंने और गुड्डी ने सोचा था अंदर घुसने के लिए उसके अंदर मैंने गुड्डी और गुंजा के लड़कियों के स्कूल में सेंध लगा ली थी। लेकिन उस समय मैं न लड़कियों के स्कूल के बारे में सोच रहा था न उस स्कूल की लड़कियों के बारे में।

घटाटोप अँधेरा था। घुसते ही मैंने दरवाजे को अच्छी तरह से चिपका दिया था। और बाहर से रौशनी की एक किरण भी अंदर नहीं आ रही थी, ऊपर का दरवाजा भी बंद था ,



सीढ़ी सीधी थी लेकिन अन्धेरी, जाले, जगह-जगह कचडा।

थोड़ी देर में आँखें अन्धेरे की अभ्यस्त हो गई थी। मेरे पास सिर्फ 10 मिनट थे काम को अन्जाम देने के लिये।

सीढ़ी दो मिनट में पार कर ली।

साथ में कितनी सीढ़ीयां है रास्ते में, कौन सी सीढ़ी टूटी है, ऊपर के हिस्से पे सीढ़ी बस बन्द थी। लेकिन अन्दर की ओर इतना कबाड़, टूटी कुर्सियां, एक्जाम की कापियों के बन्डल, रस्सी। उसे मैंने एक किनारे कर दिया।

लौटते हुये बहुत कम टाइम मिलने वाला था। रबर सोल के जूते और एफबी आई के साथ क्वांटिको में दबे पाँव छापे डालने की गयी ट्रेनिंग, मैं श्योर था ऊपर जिन लोगों ने लड़कियों को अगवा कर रखा है, उन्हें ज़रा भी अंदाजा नहीं था की मैं कब अंदर घुस गया।



सीढ़ी का ऊपर दरवाजा खोल के भी मैंने चिपका दिया की अगर कोई देखे तो उसे अंदाजा न लगे की कोई स्कूल में दाखिल हो गया है। गुड्डी ने जो प्लान बनाया था, थर्मल इमेजिंग की जो पिक्स थी, सब मैंने मन में बैठा ली थी। सीढ़ी बरामदा सुर फिर वो कमरा जिसमे गुंजा की एक्स्ट्रा क्लास चल रही थी।



क्लास के पीछे के बरामदे में भी अन्धेरा था। मैं उस कमरे के बाहर पहुँचा और दरवाजे से कान लगाकर खड़ा हो गया।

हल्की-हल्की पदचाप सुनायी दे रही थी, बहुत हल्की।

मैंने दरवाजे को धक्का देने की कोशिश कि। वो बस हल्के से हिला।

मैंने नीचे झुक के देखा। दरवाजे में ताला लगा था।


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गुड्डी ने तो कहा था कि ये दरवाजा खुला रहता है।

अब?
Un sabhi filmi posters me Ek Poster missing thee - 'JKG - X Forum Novel Ki'
 
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