थोड़ा सा भूल सुधार करुँगी
पहली बात हमला गुंजा और उसकी सहेलियों पर नहीं हुआ था, गुंजा, अपनी सहेली महक, के अंकल के साथ उनके मॉल पे गयी थी, साथ में गुंजा की सहेली शाजिया, गुड्डी और आनंद बाबू। मॉल के थोड़ी दूर पहले ही शाजिया का घर था, जिस गली में आनंद बाबू उसे छोड़ के आये, और फिर महक के साथ मॉल में, महक मॉल के पास ही अपने घर में चली गयी, हाँ मॉल में ही डीबी का फोन आया की वो गुंजा के साथ गुंजा के घर को निकल जाएँ और किसी तरह गुंजा को सेफ्ली पहुंचाए, और पुलिस से ज्यादा उम्मीद न रखें, हो सके तो सिद्दीकी से जरूर टच में रहें,
और गुड्डी महक की बड़ी बहन की बाइक पर अपने पीछे गुंजा और सबसे पीछे आनंद बाबू को ले के निकल गयी, जब वह अपनी सहेली की गली में पहुंची तो वहीँ दो बार हमला हुआ, गली से नहीं, बल्कि जो गलियां सड़क से आ के मिलती थीं वहां से।
इसलिए हमले का टारगेट सिर्फ गुंजा थी और गुंजा को अगर दंगे वाले उठा ले जाते तो या तो गैंग रेप करते या उससे भी ज्यादा और वही दंगे के लिए ट्रिगर होती,
दंगे वाले दोनों भागों को आप अगर याद करिये तो डिप्टी होम मिनिस्टर जो दंगा न हो पाने की वजह से दुखी हैं, किसी को फोन पर डांट रहे थे,
" छोटे ठाकुर उस समय बनारस में किसी से फोन पर उलझे थे और उसे गरिया रहे थे,
" ससुर क नाती, एक ठो बित्ते भर क लौंडिया नहीं उठा पाए, अरे अगर वो ससुरी हमरे मुट्ठी में आ गयी होती, तो, "
" अरे सरकार स्साली की किस्मत अच्छी थी, नहीं तो जिसको लगाए थे उसका निशाना आज तक चूका नहीं और एसिड भी ऐसा वैसा नहीं था,.... और दुबारा एक और टीम लगाए थे लेकिन, दोनों बार, .....और एक बार पकड़ में आ गयी होती तो लौंडे सब तैयार थे, जबरदस्त रगड्याई करते,..... चीर के रख देते, और ओकरे बाद तो,.... लेकिन, और सबसे बड़ा गड़बड़ ये हुआ, "
अब छोटे ठाकुर की ठनकी, " हे ससुरे पकडे तो नहीं गए, वो कप्तनवा बहुत दुष्ट है, उसको तो मैं बनारस में रहने नहीं दूंगा चाहे जो हो जाए, बोलो " अब का कहें, दोनों को बोले थे मुगलसराय निकल जाए उन्हे से ट्रेन पे बैठ के जनरल डिब्बा में लेकिन, पता नहीं का गड़बड़ हो गया, लेकिन आप एकदम चिंता न करे, वो सब सर कटा देंगे, जबान न खोलेंगे और वैसे भी उन्हें हमार नाम नहीं मालूम है "
तो ये बित्ते भर की लौंडिया गुंजा ही थी। और प्लान गैंग रेप का ही था, और उसके बाद जब वो मिलती, तो बस इलाज्म कुछ और लोगो पे, जिस गली में हमला हुआ उस के नाम पे और चुम्मन से जोड़ के
लेकिन गुंजा आंनद बाबू की छोटी साली थी, उसकी चुनमुनिया पे उसके जीजा का नाम लिखा था तो गुंडों को कहाँ से मिलती वो और फिर भी यह सवाल रह जाता है की गुंडों को पता कैसे चला
तो दंगा होने में जो लोग दिलचस्पी रखते थे उनमे छोटे ठाकुर भी थे, खुद डिप्टी होम मिनिस्टर, और पुलिस में थाने तक उनके आदमी थे, भले ही कप्तान वो न पोस्ट करवा पाए हो, और आनंद बाबू ने सिद्दीकी को बाइक का नंबर बता दिया था और शायद सिद्द्की ने पुलिस की पेट्रोल वांस को भी और उन्ही में से कोई मिला होगा,
इसलिए जब वो लोग अस्मा के घर में पहुंची तो उन्होंने बाइक बदल ली
उसी भाग की ये लाइने बात को साफ़ करेंगी
" दालमंडी में जब बाइक रुकी थी तब मैंने सिद्द्की को फोन कर के बाइक के डिटेल बताये थे और उसने पुलिस की वांस को हम लोगो की सिक्योरिटी के लिए बोला होगा, तभी कई जगह पुलिस की वान दिख रही थीं लेकिन उसी में से किसी ने लीक भी कर दिया होगा और अब जब दो बार हमला हो चुका है तो साफ़ है की बाइक अच्छी तरह पहचानी जा चुकी है, पर जाएंगे कैसे
और रास्ता भी जुबेदा ने निकाला, अस्मा और जीशान से उसने थोड़ी खुश्फुस की
और तय हुआ की हम सब पीछे से निकले, पैदल, पास में ही एक मकान खंडहर सा है, उस में से हो के बगल की गली में घुस सकते हैं , जीशान अपनी बाइक के साथ वहां मिलेगा और हम लोग उसी से
और वही हुआ,
गुड्डी का ये रास्ता जाना पहचाना था और थोड़ी देर में जब हम गुड्डी के मोहल्ले की गली में घुसी तो चैन की साँस ली
बाद में पता चला की जो बाइक हम लोगो ने अपनी अस्मा के घर के सामने छोड़ी थी, उस पर जीशान, जुबेदा और अस्मा गली से निकले, जिससे अगर कोई दूर से देख रहा हो तो उसे शक न हो और हम लोगो को बच निकलने का पूरा टाइम मिल जाए। वो लोग जहाँ गली ख़तम होती है, वहां तक आये