चंदा भाभी तो सारे राज भी उगलवा के रहेंगी...मुख सुख
चन्दा भाभी भी कुछ बिना बताये, खुद अपनी जांघें सरका के सीधे मेरे मुँह पे सेंटर करके और कुछ समझा के। क्या स्वाद था। एक बार जुबान को स्वाद लगा तो, पहले तो मैंने छोटे-छोटे किस लिए और फिर हल्के से जीभ से झुरमुट के बीच रसीले होंठों पे।
चन्दा भाभी भी सिसकियां भरने लगी। लेकिन दूसरी ओर मेरी हालत भी कम खराब नहीं थी।
वो कभी कसकर चूसती, कभी बस हल्के-हल्के सारा बाहर निकालकर जुबान से सुपाड़े को सहलाती
और उनका हाथ भी खाली नहीं बैठा था। वो मेरे बाल्स को छू रही थी, छेड़ रही थी, और साथ में उनकी लम्बी उंगलियां शरारत से मेरे पीछे वाले छेद पे कभी सहला देती तो कभी दबाकर बस लगता अन्दर ठेल देंगी, और जब मेरा ध्यान उधर जाता तो एक झटके में ही ¾ अन्दर गप्प कर लेती,
और फिर तो एक साथ, उनके होंठ कस-कसकर चूसते, जीभ चाटती चूमती और थोड़ी देर में जब मुझे लगता की बस मैं कगार पे पहुँच गया हूँ, जब मैं सोचता की भाभी अब ना रूकें, तो वो रुक जाती। और ‘उसको’ पूरी तरह से बाहर निकालकर मुझे चिढ़ाती-
“गन्ना तो तुम्हारा बहुत मीठा है किस-किस से चुसवाया?”
जवाब में मैं कस-कसकर उनकी ‘सहेली’ को चूसने लगता और वो भी सिसकियां भरने लगती। तीन-चार बार मुझे किनारे पे लेजाकर वो रुक गईं। हर बार मुझे लगता की बस अब हो जाने दें। लेकिन अचानक भाभी मुझे छोड़कर उठ गईं और मेरे पैरों के बीच में जाकर बैठ गईं। मुझे पुश करके बेड के बोर्ड के सहारे बैठा दिया और ‘उसे’ अपनी मुट्ठी में कसकर पकड़ लिया। मस्ती के मारे मैंने आँखें बंद कर ली।
आगे-पीछे हिलाते हुए उन्होंने पूछा- “क्यों 61-62 करते हो?”
मैं चुप रहा।
उन्होंने एक झटके में सुपाड़े को खोल दिया और फिर से पूछा- “बोलो ना?”
“नहीं। हाँ। कभी-कभी…”
“किसका नाम लेकर? कल जिसको ले जाओगे उसको। देखो तुम्हें देवर बनाया है मुझसे कुछ मत छिपाओ फायदे में रहोगे…” भाभी बोली।
“नहीं,... हाँ…”
आगे-पीछे जोर से करते हुए उन्होंने फिर से पूछा, और अपनी उस ममेरी बहन की चूँचिया उठान सोच के, सच बोलो , जिसका हाल आज हम लोग सुना रहे थे
“नहीं। कभी नहीं…” फिर मेरे मुँह से सच निकल ही गया- “हाँ। एक-दो बार…”
“साले। तेरी बहन की फुद्दी मारूं। तेरे अन्दर बहनचोद बनने के पूरे लक्षण हैं…”
फिर कुछ रुक के मुझे देखते हुए उन्होंने कहा-
“अब आगे से 61-62 मत करना। अरे मैं सिखा दूंगी तुम्हें सब ट्रिक। तेरे लिए लौंडियों की क्या कमी है। एक तो है ही जिसको तुमने पटा लिया है। फिर वो तेरा घर का माल। इत्ता मस्त हथियार तो सिर्फ, आगे-पीछे। मुह में जहाँ चाहे वहाँ… बोलो झाड़ दूँ…”
“हाँ, भाभी हाँ…” मस्ती से मेरी हालत खराब थी।
उन्होंने झुक के मेरे गुलाबी मस्त सुपाड़े पे कसकर एक चुम्मी ली और फिर एक झटके में उसे गप्प कर लिया। उनके दोनों हाथ भी साथ-साथ। एक मेरे जांघ पे फिसलता तो दूसरा मेरे सीने को सहलाता हुआ कभी मेरे निपल को फ्लिक कर देता तो कभी वहां कसकर चिकोटी काट लेता। उनकी जुबान गोल-गोल मेरे सुपाड़े के चारों और घूम रही थी, फिसल रही थी।
मैं मस्ती के मारे अपनी कमर उछाल रहा था।
भाभी ने फिर एक मोटा तकिया लेकर मेरे चूतड़ के नीचे अन्दर तक सरका के रख दिया। अपने लम्बे नाखूनों से एक-दो बार मेरे निपल फ्लिक करके और कस-कसकर पिंच करके उन्होंने उसे छोड़ दिया और मेरे पिछवाड़े की ओर। कभी उनका मोटा अंगूठा वहां दबाता, तो कभी वो एक साथ दो उंगलियां एक साथ मेरे नितम्बों के बीच छेद पे इस तरह दबाती की पूरा घुसेड़ के ही मानेंगी।
अब तक दो तिहाई हिस्सा उन्होंने गड़प कर लिया था और कस-कसकर चूस रही थी।
मैं मस्ती के मारे ना जाने क्या-क्या बोल रहा था। मुझे लग रहा था की अब गया तब गया। ये भी लग रहा था की कहीं भाभी के मुहं के अन्दर ही ना। तब तक उन्होंने पूरा बाहर निकाल लिया और मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा-
“क्यों आया मजा?”
“हाँ भाभी लेकिन। …” मैं आगे बोलता की भाभी ने वो किया की मेरी चीख निकल गई।
उन्होंने अपने कड़े खड़े निपल को मेरे सुपाड़े के छेद पे रगड़ दिया।
वो उसे मेरे पी-होल के अंदर डाल रही थी और उनकी मुश्कुराती आँखें मेरे मजे से पागल चहरे को देख रही थी। थोड़ी देर इसी तरह छेड़कर उन्होंने साइड से मेरे खड़े चर्म दंड को चाटना शुरू कर दिया। चारों और से उनकी जीभ लप-लप चाट रही थी।
ये एक नए ढंग का मजा था।
उन्होंने एक हाथ से मेरे बाल्स को पकड़ रखा था। उनकी जुबान जहां से मेरा शिश्न बाल से मिलता है वहीं से शुरू होकर सीधे सुपाड़े तक और फिर वहाँ से नीचे वापस। और दो-चार बार ऐसे करके जब उनकी जीभ नीचे गई तो बजाय ऊपर आने के। एक बार में उसने मेरी बाल गड़प कर ली।
मेरी तो जान निकल गई।
कुछ देर तक चूसने चुभलाने के बाद भाभी के होंठ वापस मेरे सुपाड़े पे आये और आँख नचाकर वो मुझे देखते हुए बोली-
“जरूर चुसवाना उससे। दोनों से…”
और जब तक मैं कुछ बोलता समझता, उन्होंने अबकी पूरा ही गड़प कर लिया।
और अब वो पूरे जोर से चूस रही थी। मेरा सुपाड़ा उनके गले के अंत तक जाकर टकरा रहा था, लेकिन जैसे उन्हें कोई फर्क ना पड़ रहा हो। उनके रसीले भरे-भरे होंठ जब रगड़ते हुए ऊपर-नीचे होते और वो कसकर चूसती। मेरी कमर साथ-साथ ऊपर-नीचे हो रही थी। वो करती रही करती रही। मुझे लगा की अब मैं निकल ही जाऊँगा, लेकिन मुझे लगा की कहीं भाभी के मुँह में ही,...
मैं जोर से बोला- “भाभी प्लीज छोड़ दीजिये। बाहर निकाल लीजिये। मेरा होने ही वाला है। ओह्ह…”
उन्होंने अपनी दोनों बाहों से कसकर मेरी जांघों को पकड़कर नीचे दबा दिया और मेरी ओर देखकर आँखों ही आँखों में मुश्कुरायीं जैसे कह रही हों, होने वाला हो तो हो जाय, और फिर दूनी तेजी से कस-कसकर चूसने लगी।
मुझे लगा की मेरी आँखों के आगे तारे नाच रहे हों, मेरी देह का सबकुछ निकल रहा हो।
“ओह्ह… ओह्ह… आह्ह… भाभी…” मेरी आवाज जोर से निकल रही थी।
लेकिन वो और जोर से चूस रही थी,,,, और जैसे कोई जोर का फव्वारा छूटे। मेरी कमर अपने आप बार-बार ऊपर-नीचे हो रही थी और भाभी बिना रुके।
मेरा पूरा लिंग उनके मुँह में था। उनके होंठ मेरे बाल से चिपके थे। मुझे पता नहीं चला की मैं कित्ती देर तक झड़ा। लेकिन जैसे ही मैं रुका। भाभी ने पहले हल्के से फिर कसकर मेरी बाल दबाया और दूसरे हाथ से मेरी गाण्ड के छेद में उगली दबाई।
ओह्ह्ह… ओह्ह… मैं दुबारा झड़ रहा था। आज तक ऐसा नहीं हुआ था। जब थोड़ी देर में तूफान ठंडा हो गया तभी भाभी ने अपना मुँह हटाया। दो-चार बूँद जो बाहर गिर पड़ी थी उसे भी समेट के उन्होंने अपने होंठों पे लगा लिया और फिर मेरे पास आकर लेट गईं।
ऐसी गुरु तो विरले लोगों को प्राप्त होती हैं...