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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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भाग ३१ ---चू दे कन्या विद्यालय- प्रवेश और गुड्डी के आनंद बाबू पृष्ठ ३५४

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फागुन के दिन चार भाग २९

गुड्डी का प्लान

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कागज आया और तीन-चार फोन भी। गुड्डी प्लान बनाने में बिजी हो गयी और डीबी फोन में



आखिरी फोन शायद एस॰टी॰एफ॰ के हेड का। डी॰बी॰ का चेहरा टेंस हो गया और आवाज भी तल्ख़ थी। वो सर सर तो बोल रहे थे, लेकिन टोन साफ था की उसे ये पसंद नहीं आ रहा था।

लेकिन कुछ फोन बगल के कमरे में भी बज रहे थे, जहां उनके साथ के और जूनियर अधिकारी बैठे थे, और डीबी उधर चले गए। दरवाजा खुला हुआ था और उनकी फोन की बात चीत और जो वो इंस्ट्रक्शन दे रहे थे साफ़ सुनाई दे रहा था।



गुड्डी पेन्सिल से लाइने खींच रही थी, कभी बंद खिड़की से बाहर अपने स्कूल की ओर देखती जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रही हो और फिर कागज की ओर मुड़ जाती।



और मैं सोच रहा था, डीबी ने जो बातें बतायीं एकदम सही थीं, लेकिन जो बाते गुड्डी सोच रही थी वो भी सही थीं और ज्यादा सही थीं। फिर एक तरह से मेरी सोच भी सही थी।


डीबी अंदाज लगा रहे थे स्कूल में लड़कियों को होस्टेज बनाने वाले कौन हैं, किस तरह के लोग है और उनका मोटिव क्या है ?

इससे उनका काम करने का तरीका पता चल सकता था और उन्हें टैकल करना ज्यादा आसान होता, लेकिन वह साफ़ नहीं हो रहा था। मैंने भी फाइलों में ही सही और केस स्टडी में बहुत से आतंकी ग्रुप्स के बारे में पढ़ा था। कश्मीर के बाहर तो आतंकी सिर्फ दहशत फैलाते हैं और बम्ब का इस्तेमाल करते हैं चाहे ट्रेन में हो या कार में, और हमेशा ज्यादा भीड़ वाली जगह पर और किसी को पता चलने के पहले गायब हो जाते हैं

अब यह जो भी है,... निश्चित रूप से पकडे जाएंगे या मारे जाएंगे।

पर गुंडे बदमाश भी समझ में नहीं आते, सिद्द्की का जलवा तो मैं देख ही चुका था तो कोतवाली के इतने पास और दिन दहाड़े किस गुंडे की हिम्मत होगी? और सबसे बड़ी बात ऐसा सॉफिस्टिकेटेड बम्ब कैसे उसके पास आ सकता है,


सामने टीवी चल रहा था, भले ही म्यूट पर हो लेकिन चल रहे रनर इस घटना को पूरी तरह आतंकी बताने पर तुले थे।

और इसमें फायदा उन्ही का था, .....टी आर पी बढ़ रही थी, लोग नेशनल चैनल छोड़ के लोकल लगा के देख रहे थे और अब नेशनल चैनल पर भीशुरू हो गयी थी ब्रेकिंग न्यूज में। एक लड़कियों के स्कूल में दो गुंडे घुसे तो कोई न्यूज नहीं बनती इसलिए आतंकी, और जितना मसाला हो, तो बनारस में हुए पुराने बॉम्ब ब्लास्ट की पिक्चर्स, पुरानी तबाही, और हेडलाइंस, के अभी कुछ देर बाद स्कूल में यही मंजर होगा

और बहुत से चैनल तो अलग अलग पार्टियों से जुड़े तो सरकार के खिलाफ आग उगलने से भी वो नहीं चूक रहे थे ,

ला एंड आर्डर के नाम पर आयी सरकार फेल, कोतवाली की नाक के नीचे आतंकी हमला,

और कुछ चैनल वाले अब उसे मजहबी रंग भी देने की तैयारी में थे

होली या खून की होली

अपोजिशन पार्टी के नेता तो मैदान में आ ही गए थे रूलिंग पार्टी में जो चीफ मिनिस्टर के खिलाफ थे अंदर अंदर वो मौके का फायदा उठा तहे थे और मैं समझ रहा था की डिप्टी होम मिनिस्टर का भी हाथ है इन चैनल को हवा देकर आतंकी बुलवाने में


आतंकी होने पर ही तो एस टी ऍफ़ का रोल आता।

एस टी ऍफ़ सीधे डीप्टी चीफ होम मिनिस्टर के अंदर और उनकी प्रायरटी होस्टेज को छुड़ाना नहीं बल्कि एनकाउंटर कर के पब्लिटीसीटी लेना होता । वो तो चले जाते रायता डीबी को साफ़ करना पड़ता।

और एस टी ऍफ़ के साथ डिप्टी होम मिनिसिटर की भी इज्जत बढ़ जाती।



लेकिन गुड्डी की सोच कुछ और थी

वो कोई भी हों उनका मोटिव कुछ भी हो, हमें अभी सिर्फ लड़कियों को छुड़ाने के बारे में सोचना चाहिए बस।
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और मेरा सोचना यह था की जो भी गुड्डी सोचती है वो ठीक है, मुझे तो बस ये सोचना है, ये होगा कैसे।

एक बार लड़कियां बच के निकल आयीं तो उन दुष्टों का कुछ भी, पुलिस पकडे, वो सरेंडर करें, पकडे जाने पर गाडी पलट जाए , एस टी ऍफ़ की फायरिंग में वो मारे जाएँ और उन के पास से वो दो चार एके ४७ बरामद करा दे, इससे हम लोगों का लेना देना नहीं, लेकिन लड़कियां किसी भी हालत में पुलिस आपरेशन से पहले बच जाए और एस टी ऍफ़ के आने पहले तो एकदम, क्योंकि जैसे ही फायरिंग शुरू होगी, वो बॉम्ब जरूर एक्सप्लोड कर देंगे, और उससे भी बड़ा खतरा ये था की कही पुलिस की फायरिंग में ही उनमे से कोई इंजर्ड न हो जाए,

तो अब ज्यादा टाइम नहीं था, शाम के पहले बल्कि एस टी ऍफ़ के आने के पहले किसी तरह लड़कियां वहां से निकल जाएँ पर उसके लिए जरूरी था बिल्डिंग प्लान, लड़कियां कहाँ होंगी और कैसे सेफली जहाँ लड़कियां हों उस जगह को एक्सेस कर सकते हैं और उन्हें निकाल सकते हैं



डीबी ने बताया था की उनके पास जो स्कूल का प्लान था उसमे बहुत चेंज हो गए हैं और वो ज्यादा काम का नहीं है

और गुड्डी वही प्लान बना रही थी।



लेकिन एक जंग और चल रही थी नैरेटिव की, आपत्ति में अवसर ढूंढने वालों की और डीबी उससे बाहर जूझ रहे थे ,

टीवी का वॉल्यूम मैंने थोड़ा बढ़ाया, और एक एंकर चीख रहा था,


" होली के मौके पर ही क्यों ? कौन है जो हमारे त्योहारों कोबर्बाद कर रहा है , होली को खून की होली बना रहा है। अपने अगल बगल देखिये, ....पड़ोस में देखिये, कौन लोग है जो आतंकियों को आश्रय देते हैं, पहचानियों उन्हें "


और मुझे याद आया, डीबी ने लो इंटेसिटी दंगो से पोलराइजेशन की बात की थी, कुछ पार्टियां यही चाहती हैं और मौका मिल गया तो

और डी बी सिटी मजिस्ट्रेट को समझा रहे थे,

"आप तब तक जो भी पीस कमिटी हैं उन्हें एक्टिवेट कर दीजिये, एक बार बात कर के ब्रीफ कर दीजिये, "

और फिर वो सिद्दीकी से बोले, ' जरा अफवाह वालों का पता कर के रखो, और ये लोकल चैनल वालों को टाइट करो। हाँ ट्रबुल स्पॉट है और ट्रबुल मेकर, सब थानों से एक बार बात कर के और पी ए सी की थोड़ी गश्त बढ़वा दो।


फिर सी ओ को उन्होंने बोला, " फायरिंग नहीं होगी, किसी भी हालत में नहीं होगी लेकिन अंदर घुसने की तैयारी पूरी कर लो, तीनो पेरिमीटर बन गए न और एस ओ दशाश्वमेध लीड करेंगे और बोट पुलिस को भी लगा दो, कहीं वो नदी के रस्ते न निकले '



और जब वो अंदर हम लोगो के पास आये तो गुड्डी प्लान ले के तैयार थी।
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चू दे स्कूल का प्लान

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गुड्डी ने प्लान खींच दिया, और बताने लगी- “ये ऊपर का रूम है। इसी में एक्स्ट्रा क्लास चल रही थी। लड़कियां यहीं होंगी…”

डी॰बी॰ ने आश्चर्य से पूछा- “ये तुम्हें कैसे मालूम?”

गुड्डी ने झुंझलाकर बोला- “तो किसको मालूम होगा?”

गुड्डी तो गुड्डी थी। गनीमत है। डी॰बी॰ अभी रीत से नहीं मिले थे, सुपर चाचा चौधरी। चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है और रीत का चाचा चौधरी से भी।

गुड्डी बोली- “अरे मैं पिछले छः साल से वहां पढ़ रही हूँ। और कितनी बार उस कमरे में एक्स्ट्रा क्लास अटेंड की है। एक्स्ट्रा क्लास वहीं लगती है। और आज तो गुंजा ने बोला भी था की क्लास वहीं लगेगी…”


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गनीमत था की डी॰बी॰ ने ये नहीं पूछा की गुंजा कौन है?



गुड्डी- “दो दरवाजे हैं एक बाहर का, जिससे सब लोग आते हैं और एक पीछे का जो नार्मली बंद रहता है, चार खिड़कियां हैं, एक खिड़की दायें साइड की है जो बंद नहीं होती…”



अबकी मैंने टोका- “क्यों?”



मुझे डांटने में उसने कोई गुरेज नहीं किया, न आँखों से ना आवाज से-

“क्यों का क्या मतलब? अरे हवा आती है, धूप आती है, मैं तो हमेशा वहीं बैठती थी। टीचर के पास से दिखाई भी नहीं पड़ता था तो एकाध झपकी भी आ जाय, एस॰एम॰एस॰ करते रहो। टीचर ने एकाध बार बंद करने की कोशिश की लेकिन नहीं बंद हुई और सबसे बड़ी बात, ....रुक के थोड़ा मुस्करा के वो बोली

बगल की छत से लड़के लाइन मारते थे। कई बार चिट्ठी फेंकते थे। उस फ्लोर पे पहले कोई कमरा बन रहा था था। फिर आधा बनकर रुक गया है काम, इसीलिए और,… कोई उन लड़कों को मना भी नहीं करता था…”


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मैंने गुड्डी को छेड़ा- “तभी तुम वहां बैठती थी?”



डी॰बी॰- “चुप रहो यार। ये बहुत काम की बात बता रही है और तुम। खाली 3 समोसे खा गये, कालेज में राकेश के यहाँ ब्रेड पकौड़े साफ करते थे और। आप बोलिए, ये ऐसा ही है। इसकी बात पे ध्यान मत दिया करिए…” वो गुड्डी से बोले।


“हमने बिल्डिंग के चारों ओर से फोटोग्राफ भी लिए हैं। लेकिन…” और अपनी बात रोक के उन्होंने फोटोग्राफ मंगाए।

मैंने देखा, गुड्डी ने करीब करीब सारी बिल्डिंग का नक्शा बना दिया था, दरवाजे, सीढियाँ, घुसने का रास्ता, बरामदे,

लेकिन अब जब ये गुड्डी ने बता दिया था की वो तीनो लड़कियां किस कमरे में थी तो मेरा दिमाग बस अब उस नक़्शे को दिमाग में उतार रहा था, चिड़िया की आँख की तरह, कमरे की लम्बाई चौड़ाई, वो खिड़की जिसके बगल में गुड्डी बैठती थी, उस कमरे में घुसने का दरवाजा, पीछे का बरामदा, बगल के क्लास रूम।

इस तरह से की मैं आँख बंद कर के बताऊँ तो एक एक डिटेल एकदम सही हो,

सिर्फ तीन लड़कियां थीं,....



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तो होस्टेज बनाने वाले ने उन्हें साथ ही रखा होगा, बल्कि इस तरह की एक ओर दीवाल हो, और शायद वो तीनो लड़कियां खिड़की के पास ही हों,

अभी दिन का समय है तो बंद खिड़की से भी थोड़ी रौशनी आ रही होगी, लाइट का कनेक्शन तो पुलिस ने काट दिया होगा या काट देंगे

और अब बिल्डिंग के फोटोग्राफ आ गए थे।

टेली लेंस से बगल की बिल्डिंग से हर एंगल से डीबी ने फोटोग्राफी करवाई थी जिससे ऑपरेशन के पहले कमांडो को ब्रीफ किया जा सके।

“यही खिड़की है…” गुड्डी ने उंगली से इशारा किया।
 
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खिड़की
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“लेकिन ये तो बंद है…” डी॰बी॰ ने बोला- “कोई भी खिड़की या दरवाजा नहीं खुला है…”



गुड्डी चालू हो गई-

“ओह्ह… मैंने पूरी बात नहीं बतायी। असल में, हम लोगों ने एक लकड़ी का पच्चा उसमें फँसा रखा था, बाहर से टीचर को दिखता नहीं था, कब्जे में लगा रखा था। जो लड़की सबसे पहले पहुँचती थी उसका काम होता था और वो खिड़की के बगल वाली डेस्क भी हथिया लेती थी। साल भर ये काम मैंने किया। रात को तो चौकीदार चेक करता था ना, इसलिए शाम को उसे हटा लिया जाता था…”



डी॰बी॰ प्लान पे तमाम निशान बना रहे थे, और किसी को बुलाकर उन्होंने तमाम आर्डर दिए और गुड्डी से पूछा- “वो जिस जगह काम हो रहा था, मतलब बंद था। कितना दूर था? गैप कितना था?”

दोनों हाथ फैलाकर गुड्डी बोली- “इतना,… थोड़ा सा ज्यादा…”

डी॰बी॰ ने पूछा- “10 फिट। 20 फिट…”



गुड्डी “नहीं नहीं। और कम, 5-6 फिट ज्यादा से ज्यादा। अरे कई बार लड़के तो पास में रखे पटरों की ओर इशारा करके बोलते, …

“आ जाऊं। आ जाऊं।

“और हम लोग उनको चिढ़ाते,.. “आ जाओ, आओ, इशारे करते और जब वो आने का नाटक करते तो हम उन्हें अंगूठा दिखा देते और खिड़की उठंगा देते…”
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डी॰बी॰ ने गुड्डी को चुप रहने का इशारा किया और सी॰ओ॰ अरिमर्दन सिंह को बुलाया। डी॰बी॰ ने पूछा- “बगल में जो मकान बन रहा है। वहां किसी को लगाया है?”

सी॰ओ॰ ने बोला- “जी जी। दो लोग एक गनर भी है…”



डी॰बी॰ ने बोला- “वहां 1+4 के दो सेक्शन लगा दो। एक ऊपर और एक उस बिल्डिंग से जहाँ उतरने का रास्ता हो, स्मार्ट लोगों को लगाना…” उन्होंने बात जारी रखी- “और एक आँसू गैस वाला सेक्शन भी। स्मोक बाम्ब के कुछ कैनिस्टर भी उनको दिलवा दो। हाँ वो सी॰सी॰टीवी वाले कैमरे लग गए चारों ओर?”

“जी…”

डी॰बी॰ ने फिर बोला- “तो उसके मेन फीड की स्क्रीन इसी कमरे में लगाओ…” और उसको जाने का इशारा किया।

उसके जाने के बाद वो गुड्डी से बोले- “यार तुमने,… छोटी हो,..तुम तो बोल सकता हूँ…”

“एकदम…” मुश्कुराकर वो बोली।

“बहुत बड़ी प्राब्लम तुमने साल्व कर दी…” डी॰बी॰ इतने देर में पहली बार मुश्कुराए।

डी॰बी॰ ने बात आगे बढ़ाई-

“असल में, हमें एंट्री समझ में नहीं आ रही थी। चौकीदार से मैंने खुद बात की। उसने लड़कियों के अलावा और किसी को स्कूल में घुसते नहीं देखा। सामने जो हलवाई की दुकान है, उसपे जो लड़का बैठता है, …”

“नंदू…” गुड्डी ने बात काटकर बोला।

डी॰बी॰ ने कहा- “हाँ वही। उसने यहाँ तक बताया की 9वीं क्लास की लड़कियां थी, 24 लड़कियां अन्दर गईं, सब डिटेल। लेकिन उसने भी बोला की किसी को उसने अन्दर जाते नहीं देखा और टीचर के आने के पहले ये हादसा हो गया, ”
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गुड्डी ने जोड़ा- “वो हमेशा लेट आती हैं। उनके पीरियड में बहुत मस्ती होती है…”

मुझे गुंजा की बात याद आयी उन टीचर के बारे में, मोहिनी मैडम, जैसा नाम वैसे सूरत।


मोहिनी मैडम कालेज के जो मारवाड़ी मालिक हैं उन के लड़के से फंसी है,


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और ज्यादातर टाइम उस की बाइक के पीछे चिपकी नजर आती हैं, क्लास वलास तो कम ही लेती हैं लेकिन स्टूडेंट्स उन से बहुत खुश रहती हैं, क्योंकि इम्तहान के पहले वो एक क्लास लेती हैं जिसमें दस वेरी इम्पोर्टेन्ट क्वेशन बताये जाते हैं, आठ शर्तिया आते हैं और करने पांच ही होते हैं। पर्चे मोहिनी मैडम के ताऊ की प्रेस में ही छपते हैं और उस मारवाड़ी मालिक के लड़के की कृपा से हर बार ठेका उन्ही को मिलता है।


और गुंजा ने आज की क्लास का स्पेशल अट्रैक्शन ये बताया की मोहिनी मैडम आज सिर्फ अपना सब्जेक्ट नहीं बल्कि तीन तीन पेपर, मैथ, इंग्लिश और सोसल, तीनो के ' इम्पोर्टेन्ट सवाल ' बताएंगी और मॉडल आंसर भी वो जिराक्स करा के लायी है तो वो भी, हाँ अगर आज उन की क्लास में जो नहीं गया, वो कॉपी में कुछ भी लिख के आये, उस का फेल होना पक्का,

तो हो सकता है जब अटैक हुआ तो मोहिनी मैडम क्लास में तबतक न पहुंची हो क्योंकि नंदू ने सिर्फ २४ लड़कियों की बात बताई थी टीचर की नहीं


“तो उस लड़के ने भी किसी आदमी को अन्दर आते नहीं देखा। इसका साफ मतलब है की वो इसी खिड़की से अन्दर गए और उनके साथ या उन्हें किसी ने इसके बारे में बताया होगा। और कोई रास्ता है क्या?”

डी॰बी॰ ने गुड्डी ने जो प्लान बनाया था उसे और फोटुयें देखते हुए पूछा।



गुड्डी- “उन्ह। नहीं नहीं। हाँ एक रास्ता है। लेकिन उसे सिर्फ मैं और कुछ लड़कियां जानती हैं। ज्यादातर लोगों को ये मालूम नहीं की ये रास्ता अन्दर जाता है। एक बहुत जंग खाया सा दरवाजा है उसपे फिल्मों के पोस्टर लगे रहते हैं। बाहर और अन्दर दोनों ओर से बंद रहता है। एक सीढ़ी है, बहुत पतली और एकदम अँधेरी सीधे ऊपर जाती है, उसके नीचे बहुत कचड़ा भी पड़ा रहता है। सीढ़ी ऊपर बरामदे में खुलती है। लेकिन उसकी सिटकिनी जरा सा झटके से खुल जाती है। बस वहां से निकलिए तो उस क्लास का पीछे वाला दरवाजा…”


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डी॰बी॰ बोले- “वो भी तो बंद रहता है। तुमने बताया था ना…”



गुड्डी- “हाँ एकदम। लेकिन दो बार अपनी ओर खींचकर हल्के से अन्दर की ओर धक्का दीजिये तो बस खुल जाता है…”

गुड्डी ने राज खोला, और मेरी ओर देखकर बोली-

“मुझे क्या मालूम था रीत ने बताया था मुझे…”

डी॰बी॰ फिर मुश्कुरा रहे थे।

गुड्डी- “एक बार, एक-दो महीने पहले मैं गई थी उधर से। अक्षय कुमार की एक पिक्चर देखने- राठोर। हाँ क्या करूँ क्लास बहुत बोरिंग थी, और एक-दो बार क्लास में चुपके से लेट होने पे। एक बार तो तुम्हारे से ही बात करने के चक्कर में…”

मेरी ओर देखकर उसने इल्जाम लगाया।
 
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गुंजा
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ब तक दो लोग आकर स्क्रीन सेट करने लगे, और एक रिमोट हम लोगों के पास लगा दिया जिससे कैमरा सेलेक्ट हो सकता था।

डी॰बी॰- “वो जो मकान बन रहा है ना, कैमरा उधर सेट करो। हाँ जूम करो। बस उसी खिड़की पे। हाँ और?”

खिड़की अच्छी तरह बंद थी।


डी॰बी॰- “इंटेलिजेंट। जाओ तुम सब…”

और उन्होंने हांक के जमूरों को बाहर कर दिया और हम लोगों को समझाया-

“उन सबों को ये अंदाज लग गया होगा की देर सबेर एंट्री प्वाइंट हमें पता चल जाएगा इसलिए उन्होंने अच्छी तरह से बंद कर दिया। ये कोई…”

तब तक एक और इंस्पेक्टर आलमोस्ट दौड़ता आया-

“सर साइटिंग हो गई। एक स्नाइपर ने देखा, ग्राउंड फ्लोर बाएं से तीसरी खिड़की। उसका कहना है की आब्जेक्ट अभी भी वहीं होगा, हालांकि खिड़की अब बंद हो गई है। वो पूछ रहा है की एंगेज करें उसे? एक्शन स्टार्ट करें?” उसने हांफते हुए पूछा- “कमांडो वाला ग्रुप भी रेडी है…”

डी॰बी॰- “अभी नहीं, कैमरा उधर करो, हाँ फोकस। दो लोगों को बोलना क्राल करके इनर पेरीमीटर के अन्दर घुसे। बट नो एक्शन नाट इवेन वार्निंग शाट, जाओ…” डी॰बी॰ ने आर्डर दिया।

अब कैमरा नीचे का फ्लोर दिखा रहा था। एक खिड़की हल्के से खुली थी लेकिन पर्दा गिरा था।

“मोबाइल। वो आप कह रहे थे न की उसका फोन…” गुड्डी भी अब पूरी तरह इन्वोल्व हो चुकी थी।

डी॰बी॰- “हाँ हाँ क्यों नहीं?” एकदम,...

और थोड़ी देर में रिकार्डिंग की कापी हमारे सामने बज रही थी।

शुरू में तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था, फिर एक कुर्सी घसीटने की आवाज, अस्फुट शब्द। फिर बैक ग्राउंड में एक हल्की सी चीख।

गुड्डी बोली-

“ये तो गुंजा लग रही है…” और उसने कान एकदम स्पीकर फोन से सटा लिए।
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फोन पर बोलने वाले ने एकाध लाइन बोली, फिर पीछे से आवाज आई-

“छोड़ो मुझे। हाथ छोड़ो…”

मेरा तो जी एकदम धक्क से रह गया, कलेजा मुंह को आ गया,



जैसे ही गुड्डी के मुंह से गुंजा निकला, मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया। न कुछ दिखाई दे रहा था न समझ में आ रहा था, कस के मैंने अपनी चेयर पकड़ ली।

डीबी ने रिवाइंड किया, एकदम गुंजा ही थी,



आज सुबह ही तो पहली बार उसे देखा, उससे मिला, एकदम झिलमिलाती, ख़ुशी से भरी, सुबह की कच्ची धूप की तरह, जवानी नहीं बस कैशोर्य के दरवाजे पर सांकल खड़काती,



वही याद आ गया, एकदम बिजली की तरह चमक गयी



एकदम बच्ची नहीं लग रही थी वो।सफेद ब्लाउज़ और नीली स्कर्ट, स्कूल यूनीफार्म में।


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मेरी आँखें बस टंगी रह गईं। चेहरा एकदम भोला-भाला, रंग गोरा चम्पई । लेकिन आँखें उसकी चुगली कर रही थी। खूब बड़ी-बड़ी, चुहल और शरारत से भरी, कजरारी, गाल भरे-भरे, एकदम चन्दा भाभी की तरह और होंठ भी, हल्के गुलाबी रसीले भरे-भरे उन्हीं की तरह। जैसे कह रहे हों- “किस मी। किस मी नाट…”

मुझे कल रात की बात याद आई जब गुड्डी ने उसका जिक्र किया था तो हँसकर मैंने पूछा था- “क्यों बी॰एच॰एम॰बी (बड़ा होकर माल बनेगी) है क्या?”

पलटकर, आँख नचाकर उस शैतान ने कहा था- “जी नहीं। बी॰एच॰ काट दो, और वैसे भी मिला दूंगी…”

मेरी आँखें जब थोड़ी और नीचे उतरी तो एकदम ठहर गई, उसके उभार।

उसके स्कूल की युनिफोर्म, सफेद शर्ट को जैसे फाड़ रहे हों और स्कूल टाई ठीक उनके बीच में, किसी का ध्यान ना जाना हो तो भी चला जाए। परफेक्ट किशोर उरोज। पता नहीं वो इत्ते बड़े-बड़े थे या जानबूझ के उसने शर्ट को इत्ती कसकर स्कर्ट में टाईट करके बेल्ट बाँधी थी।


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मुझे चंदा भाभी की बात याद आ रही थी,... चौदह की हुयी तो चुदवासी,

और जब होली में उनके मुंहबोले पड़ोस के जीजू ने उनकी चिड़िया उड़ाई थी वो गुड्डी की मंझली बहन से भी थोड़ी छोटी, मतलब गुंजा से भी कम उम्र,...



पता नहीं मैं कित्ती देर तक और बेशर्मों की तरह देखता रहता, अगर गुड्डी ने ना टोका होता-

“हे क्या देख रहे हो। गुंजा नमस्ते कर रही है…”

और उस के बाद जिस तरह से उसने अपने हाथ से लाल तीखे मिर्चों से भरे ब्रेड रोल खिलाये,

“जिसने बनाया है वो दे…” हँसकर गुंजा को घूरते हुए मैंने कहा।

मेरा द्विअर्थी डायलाग गुड्डी तुरंत समझ गई। और उसी तरह बोली- “देगी जरूर देगी। लेने की हिम्मत होनी चाहिए, क्यों गुंजा?”



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“एकदम…मैं उन स्सालियों में नहीं जो देने में पीछे हटजाएँ, हां लेने में, 'आपके उनके ' की हिम्मत पर डिपेंड करता है , और जिस तरह से उसने खिलाया



" जीजू आ बोलिये जैसे लड्डू खाने के लिए मुंह खोलते हैं एकदम वैसा और बड़ा, हाँ ऐसे।"

" " दी, एक बार में डाल दूँ पूरा,"

" आधे तीहै में न डालने वाले को मजा न डलवाने वाली को " बुदबुदाती गुंजा ने एक बार में बड़ा सा ब्रेड रोल खूब गरम मेरे मुंह मे।

ब्रेड रोल बहुत ही गरम, स्वाद बहुत ही अच्छा था।


लेकिन अगले ही पल में शायद मिर्च का कोई टुकड़ा। और फिर एक, दो, और मेरे मुँह में आग लग गई थी। पूरा मुँह भरा हुआ था इसलिए बोल नहीं निकल रहे थे।

वो दुष्ट , गुंजा। अपने दोनों हाथों से अपना भोला चेहरा पकड़े मेरे चेहरे की ओर टुकुर-टुकुर देख रही थी।

बस वही चेहरा मेरे आँखों के सामने घूम रहा था


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और अब, बम, होस्टेज, टेरर, बेचारी लड़की कहाँ से गुजर गयी और मैं यहाँ बैठ के समोसे खा रहा हूँ।



डीबी ने एक बार फिर से रिवाइंड कर दिया था, और गुंजा की चीख सुन के मेरे सीने में जैसे किसी ने गरम चाक़ू उतार दिया था। शाक अब गुस्से में बदल गया था। मुझे लग रहा था गुड्डी की हालत मुझसे भी ज्यादा खराब होगी, मैं तो आज मिला वो तो बचपन से ही सहेली, सगी बहन से बढ़कर



डीबी मेरी ओर पुष्टि के लिए देख रहे थे,



मैने बोला- “एकदम गुंजा ही है…”

लेकिन गुड्डी ने ध्यान नहीं दिया।

मैं समझ भी गया था और मान भी गया था गुड्डी को, वह आवाजों की रस्सी पकड़ के कमरे के अंदर घुसने की कोशिश कर रही थी,

साल भर पहले ही तो वो भी उसी क्लास में बैठती थी, एक एक आवाज को सुन के ध्यान से कमरे की हालत पढ़ने की कोशिश कर रही थी। सच में दुःख, शॉक पीने में लड़कियों का कोई मुकाबला नहीं। गुंजा है तो, मुसीबत में है, लेकिन सवाल है उसे बचाने का और ये रिकार्डिंग हेल्प कर सकती है तो चिंता से ऊपर उठ कर बस वो ध्यान से सुन रही थी।



अब फोन की आवाज साफ हो गई थी, गुड्डी ध्यान से सुन रही थी और उसकी आँखों में एक चमक सी आ गई। फिर वो एक मुश्कान में बदल गई और वो वापस कुर्सी पे आराम से बैठ गई। अब दूसरी बार के फोन की रिकार्डिंग बज रही थी।

डी॰बी॰ ने हल्की आवाज में गुड्डी से पूछा- “तुम्हें कुछ अंदाज लग रहा है?”

“हाँ…” उसी तरह गुड्डी धीमे से बोली।


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उन्होंने गुड्डी को होंठों पे उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया और एक मिनट। वो बोले और जाकर दरवाजा बंद कर दिया। लौटकर उन्होंने रिकार्डिंग फिर से आन की और फुसफुसाते हुए गुड्डी से बोले- “ध्यान से एक बार फिर से सुनो, और बहुत कम और बहुत धीमे बोलना…”

रिकार्डिंग एक बार फिर से बजने लगी।

खतम होने के पहले ही गुड्डी ने कहा- “बताऊँ मैं?”



डी॰बी॰ ने सिर हिलाया- “हाँ…”



चुम्मन…” गुड्डी ने बोला।
 
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फागुन के दिन चार भाग २९ गुड्डी का प्लान पृष्ठ ३४३

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komaalrani

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Story is taking fast turn and I will request every reader to please try to give your views even in one word.
 
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Sutradhar

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गुंजा
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ब तक दो लोग आकर स्क्रीन सेट करने लगे, और एक रिमोट हम लोगों के पास लगा दिया जिससे कैमरा सेलेक्ट हो सकता था।

डी॰बी॰- “वो जो मकान बन रहा है ना, कैमरा उधर सेट करो। हाँ जूम करो। बस उसी खिड़की पे। हाँ और?”

खिड़की अच्छी तरह बंद थी।


डी॰बी॰- “इंटेलिजेंट। जाओ तुम सब…”

और उन्होंने हांक के जमूरों को बाहर कर दिया और हम लोगों को समझाया-

“उन सबों को ये अंदाज लग गया होगा की देर सबेर एंट्री प्वाइंट हमें पता चल जाएगा इसलिए उन्होंने अच्छी तरह से बंद कर दिया। ये कोई…”

तब तक एक और इंस्पेक्टर आलमोस्ट दौड़ता आया-

“सर साइटिंग हो गई। एक स्नाइपर ने देखा, ग्राउंड फ्लोर बाएं से तीसरी खिड़की। उसका कहना है की आब्जेक्ट अभी भी वहीं होगा, हालांकि खिड़की अब बंद हो गई है। वो पूछ रहा है की एंगेज करें उसे? एक्शन स्टार्ट करें?” उसने हांफते हुए पूछा- “कमांडो वाला ग्रुप भी रेडी है…”

डी॰बी॰- “अभी नहीं, कैमरा उधर करो, हाँ फोकस। दो लोगों को बोलना क्राल करके इनर पेरीमीटर के अन्दर घुसे। बट नो एक्शन नाट इवेन वार्निंग शाट, जाओ…” डी॰बी॰ ने आर्डर दिया।

अब कैमरा नीचे का फ्लोर दिखा रहा था। एक खिड़की हल्के से खुली थी लेकिन पर्दा गिरा था।

“मोबाइल। वो आप कह रहे थे न की उसका फोन…” गुड्डी भी अब पूरी तरह इन्वोल्व हो चुकी थी।

डी॰बी॰- “हाँ हाँ क्यों नहीं?” एकदम,...

और थोड़ी देर में रिकार्डिंग की कापी हमारे सामने बज रही थी।


शुरू में तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था, फिर एक कुर्सी घसीटने की आवाज, अस्फुट शब्द। फिर बैक ग्राउंड में एक हल्की सी चीख।

गुड्डी बोली-

“ये तो गुंजा लग रही है…” और उसने कान एकदम स्पीकर फोन से सटा लिए।
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फोन पर बोलने वाले ने एकाध लाइन बोली, फिर पीछे से आवाज आई-

“छोड़ो मुझे। हाथ छोड़ो…”

मेरा तो जी एकदम धक्क से रह गया, कलेजा मुंह को आ गया,



जैसे ही गुड्डी के मुंह से गुंजा निकला, मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया। न कुछ दिखाई दे रहा था न समझ में आ रहा था, कस के मैंने अपनी चेयर पकड़ ली।

डीबी ने रिवाइंड किया, एकदम गुंजा ही थी,



आज सुबह ही तो पहली बार उसे देखा, उससे मिला, एकदम झिलमिलाती, ख़ुशी से भरी, सुबह की कच्ची धूप की तरह, जवानी नहीं बस कैशोर्य के दरवाजे पर सांकल खड़काती,



वही याद आ गया, एकदम बिजली की तरह चमक गयी



एकदम बच्ची नहीं लग रही थी वो।सफेद ब्लाउज़ और नीली स्कर्ट, स्कूल यूनीफार्म में।


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मेरी आँखें बस टंगी रह गईं। चेहरा एकदम भोला-भाला, रंग गोरा चम्पई । लेकिन आँखें उसकी चुगली कर रही थी। खूब बड़ी-बड़ी, चुहल और शरारत से भरी, कजरारी, गाल भरे-भरे, एकदम चन्दा भाभी की तरह और होंठ भी, हल्के गुलाबी रसीले भरे-भरे उन्हीं की तरह। जैसे कह रहे हों- “किस मी। किस मी नाट…”

मुझे कल रात की बात याद आई जब गुड्डी ने उसका जिक्र किया था तो हँसकर मैंने पूछा था- “क्यों बी॰एच॰एम॰बी (बड़ा होकर माल बनेगी) है क्या?”

पलटकर, आँख नचाकर उस शैतान ने कहा था- “जी नहीं। बी॰एच॰ काट दो, और वैसे भी मिला दूंगी…”

मेरी आँखें जब थोड़ी और नीचे उतरी तो एकदम ठहर गई, उसके उभार।

उसके स्कूल की युनिफोर्म, सफेद शर्ट को जैसे फाड़ रहे हों और स्कूल टाई ठीक उनके बीच में, किसी का ध्यान ना जाना हो तो भी चला जाए। परफेक्ट किशोर उरोज। पता नहीं वो इत्ते बड़े-बड़े थे या जानबूझ के उसने शर्ट को इत्ती कसकर स्कर्ट में टाईट करके बेल्ट बाँधी थी।


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मुझे चंदा भाभी की बात याद आ रही थी,... चौदह की हुयी तो चुदवासी,

और जब होली में उनके मुंहबोले पड़ोस के जीजू ने उनकी चिड़िया उड़ाई थी वो गुड्डी की मंझली बहन से भी थोड़ी छोटी, मतलब गुंजा से भी कम उम्र,...



पता नहीं मैं कित्ती देर तक और बेशर्मों की तरह देखता रहता, अगर गुड्डी ने ना टोका होता-

“हे क्या देख रहे हो। गुंजा नमस्ते कर रही है…”

और उस के बाद जिस तरह से उसने अपने हाथ से लाल तीखे मिर्चों से भरे ब्रेड रोल खिलाये,

“जिसने बनाया है वो दे…” हँसकर गुंजा को घूरते हुए मैंने कहा।

मेरा द्विअर्थी डायलाग गुड्डी तुरंत समझ गई। और उसी तरह बोली- “देगी जरूर देगी। लेने की हिम्मत होनी चाहिए, क्यों गुंजा?”



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“एकदम…मैं उन स्सालियों में नहीं जो देने में पीछे हटजाएँ, हां लेने में, 'आपके उनके ' की हिम्मत पर डिपेंड करता है , और जिस तरह से उसने खिलाया



" जीजू आ बोलिये जैसे लड्डू खाने के लिए मुंह खोलते हैं एकदम वैसा और बड़ा, हाँ ऐसे।"

" " दी, एक बार में डाल दूँ पूरा,"

" आधे तीहै में न डालने वाले को मजा न डलवाने वाली को " बुदबुदाती गुंजा ने एक बार में बड़ा सा ब्रेड रोल खूब गरम मेरे मुंह मे।

ब्रेड रोल बहुत ही गरम, स्वाद बहुत ही अच्छा था।


लेकिन अगले ही पल में शायद मिर्च का कोई टुकड़ा। और फिर एक, दो, और मेरे मुँह में आग लग गई थी। पूरा मुँह भरा हुआ था इसलिए बोल नहीं निकल रहे थे।

वो दुष्ट , गुंजा। अपने दोनों हाथों से अपना भोला चेहरा पकड़े मेरे चेहरे की ओर टुकुर-टुकुर देख रही थी।

बस वही चेहरा मेरे आँखों के सामने घूम रहा था


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और अब, बम, होस्टेज, टेरर, बेचारी लड़की कहाँ से गुजर गयी और मैं यहाँ बैठ के समोसे खा रहा हूँ।



डीबी ने एक बार फिर से रिवाइंड कर दिया था, और गुंजा की चीख सुन के मेरे सीने में जैसे किसी ने गरम चाक़ू उतार दिया था। शाक अब गुस्से में बदल गया था। मुझे लग रहा था गुड्डी की हालत मुझसे भी ज्यादा खराब होगी, मैं तो आज मिला वो तो बचपन से ही सहेली, सगी बहन से बढ़कर



डीबी मेरी ओर पुष्टि के लिए देख रहे थे,



मैने बोला- “एकदम गुंजा ही है…”

लेकिन गुड्डी ने ध्यान नहीं दिया।

मैं समझ भी गया था और मान भी गया था गुड्डी को, वह आवाजों की रस्सी पकड़ के कमरे के अंदर घुसने की कोशिश कर रही थी,

साल भर पहले ही तो वो भी उसी क्लास में बैठती थी, एक एक आवाज को सुन के ध्यान से कमरे की हालत पढ़ने की कोशिश कर रही थी। सच में दुःख, शॉक पीने में लड़कियों का कोई मुकाबला नहीं। गुंजा है तो, मुसीबत में है, लेकिन सवाल है उसे बचाने का और ये रिकार्डिंग हेल्प कर सकती है तो चिंता से ऊपर उठ कर बस वो ध्यान से सुन रही थी।



अब फोन की आवाज साफ हो गई थी, गुड्डी ध्यान से सुन रही थी और उसकी आँखों में एक चमक सी आ गई। फिर वो एक मुश्कान में बदल गई और वो वापस कुर्सी पे आराम से बैठ गई। अब दूसरी बार के फोन की रिकार्डिंग बज रही थी।

डी॰बी॰ ने हल्की आवाज में गुड्डी से पूछा- “तुम्हें कुछ अंदाज लग रहा है?”

“हाँ…” उसी तरह गुड्डी धीमे से बोली।


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उन्होंने गुड्डी को होंठों पे उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया और एक मिनट। वो बोले और जाकर दरवाजा बंद कर दिया। लौटकर उन्होंने रिकार्डिंग फिर से आन की और फुसफुसाते हुए गुड्डी से बोले- “ध्यान से एक बार फिर से सुनो, और बहुत कम और बहुत धीमे बोलना…”

रिकार्डिंग एक बार फिर से बजने लगी।

खतम होने के पहले ही गुड्डी ने कहा- “बताऊँ मैं?”



डी॰बी॰ ने सिर हिलाया- “हाँ…”



चुम्मन…” गुड्डी ने बोला।

कोमल मैम

शानदार अपडेट ।

कहानी अब और भी रोचक होती जा रही हैं।

अगले अपडेट का इंतजार रहेगा।

सादर
 

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गुड्डी
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उसके जाते ही गुड्डी उठी और तुरंत जाकर दरवाजा लाक भी कर दिया।

बाद में हम लोगों ने देखा की उसके लिए भी एक रिमोट था, और लौटकर दो काम किया।

पहला मेरे ‘जंगबहादुर’ को नेपकिन मुक्त किया। वो हुंकार करते हुए बाहर निकला।

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और दूसरा, कसकर मुझे बाहों में भर लिया और मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका के एक जबर्दस्त चुम्मी दी।

गुड्डी के अन्दर कई अच्छी बातें थी लेकिन एक सबसे अच्छी बात ये थी की वो अपनी बात बोलने के बाद जवाब सुनने का न तो इन्तजार करती थी ना उम्मीद। इसलिए उसको ये बताना बेकार था की जलवा मेरा नहीं मेरे सीनियर डी॰बी॰ का था।



फिर वो मुँह फुला कर बैठ गई, फिर मुश्कुराने लगी, और बोली-

“तुम कैसे लालचियों की तरह उसे देख रहे थे। खास तौर से उसके सीने को?”
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लेकिन फिर चालू हो गई- “वैसे माल मस्त था…”

और एक सिप उसने ड्रिंक का लिया। एक सिप मैंने भी।



इस वैरायटी में अल्कोहल बाकी रेड वाइन्स से थोड़ा ज्यादा होता है लेकिन उसका मजा भी है।

मेरा ‘वो’ जो नेपकिन से मुक्त हो गया था फिर कैद हो गया गुड्डी के बाएं हाथ में और सिर्फ कैद ही नहीं थी कैद बा-बा-मशक्कत थी। उसे मेहनत भी करनी पड़ रही थी। गुड्डी का हाथ आगे-पीछे हो रहा था।
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इस सांप का मंतर गुड्डी ने अच्छी तरह सीख लिया था। गुड्डी ने दूसरा, तीसरा सिप भी ले लिया।



पहले मैंने सोचा की बोलूं जरा धीरे-धीरे। लेकिन फिर टाल गया।


गुड्डी फिर बोली-

“यार वैसे आइडिया बुरा नहीं है। वो साली सिगनल इतना जबर्दस्त दे रही थी। यार मैं लड़कियों की आँख पहचानती हूँ। भले ऊपर से मना करें, और ये तो पिघली जा रही थी। वो आदमी था वरना। अबकी तो जरूर उसे इसकी झलक दिखलाऊँगी, गीली हो जायेगी, और खाने के बाद, स्वीट डिश में वही रस मलाई गप कर जाना। मेरा तो खुद मन कर रहा है लेकिन क्या करूँ? रात के पहले तो कुछ हो नहीं सकता। ये भी पगला रहा है बिचारा…”

मेरे लण्ड को कसकर मसलते वो बोली।


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गुड्डी आलमोस्ट मेरी गोद में बैठ गई थी।

लेकिन अब मुड़कर सीधे मेरी गोद में, मेरी ओर मुँह करके, मेरी ही चेयर पे। दोनों टांगें मेरी टांगों के बाहर की ओर फैलाकर गुड्डी के उभार मेरे सीने से रगड़ रहे थे और मेरा खड़ा मस्ताया खुला लण्ड उसकी शलवार के बीच में।

एक हाथ से उसने अपनी वाइन ग्लास की आधी बची वाइन सीधे एक बार में ही मेरे मुँह में उड़ेल दी और बोली-

“सच सच बतलाना। चलो तान्या की बात अभी छोड़ो…”


मैं- “पूछो ना जानम…” मेरे ऊपर भी हल्का सा एक साथ इतनी गई वाइन का सुरूर चढ़ गया और मैंने कसकर उसे अपनी बाहों में भींच लिया-

“तुमसे कोई बात छिपाता हूँ मैं?”

गुड्डी- “सच्ची। अगर तुम हिचकिचाए भी ना तो तुम जानते हो न मुझे…”



गुड्डी के होंठ मेरे होंठ से एक इंच भी दूर नहीं रहे होंगे।

मुझसे ज्यादा कौन जानता था उसको। अगर वो नाराज हो गई तो उसको मनाना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर था। आज रात क्या पूरी होली की छुट्टी सूखी-सूखी बीतने वाली थी। और फिर सबसे बड़ी बात मैं अगर कोशिश भी करता न। तो उससे झूठ नहीं बोल सकता था। मेरा दिल अब मुझसे ज्यादा उसके कंट्रोल में था।

गुड्डी बड़ी सीरियस हो के, मेरी आँखों में आँखे झाँक के बोली,

“ये बताओ। मैं मजाक नहीं कर रही हूँ, सच सच पूछ रही हूँ। वो जो मेरी नाम राशि है, तेरी ममेरी बहन,... गुड्डी। उसे देखकर कभी कुछ मन वन किया?”



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मैं हिचकिचा रहा था। फिर बोला- “ऐसा कोई चक्कर नहीं है…”

मेरे गाल पे एक किस करके फिर गुड्डी बोली-

“ये तो मुझे भी मालूम है की कोई अफेयर वफेयर नहीं है,... लेकिन। मैंने कई बार तुम्हें उसके उभारों को देखते देखा है, वैसे ही जैसे आज तुम इसके सीने को देख रहे थे। खुद मैंने देखा है इसलिए झूठ मत बोलना…”


मैं झेंपते हुए नीचे देखते हुए बोला- “नहीं। वो नहीं। मेरा मतलब। अब यार। कोई लड़की सामने होगी। उसके उभार सामने होंगे तो नजर तो पड़ ही जायेगी ना…”

गुड्डी फिर बोली- “अरे सिर्फ नजर पड़ गई या उसे देखकर कुछ हुआ भी। माना उसके मेरे से छोटे ही होंगे लेकिन इतने छोटे भी नहीं हैं। हैं तो मस्त गदराये…”



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“हुआ क्यों नहीं? ऐसा कुछ खास भी नहीं, लेकिन तुम तो खुद ही बोल रही हो की,... की,... उसके भी मस्त उभार हैं। तो बस वही हुआ। मन किया…”

मैं हकलाते हुए बोल रहा था।

गुड्डी ने अब मेरी ग्लास मुड़कर उठा ली। एक सिप खुद ली और बाकी फिर मुझे पिला दिया-

“हाँ तो क्या मन किया उसके उभार देखकर साफ-साफ बोलो यार?” गुड्डी ने फिर पूछा।

कुछ रेड वाइन का असर, कुछ मेरे लण्ड पे गुड्डी के मस्त चूतड़ों की रगड़ाई का असर। मैंने कबूल दिया-

“अरे वही यार। जो होता है। मन करता है बस पकड़ लो दबा दो, मसल दो कसकर, चूम लो। वही…”



गुड्डी अब पीछे पड़ गयी मेरी ममेरी बहन को लेकर “अरे बुद्धू साफ-साफ क्यों नहीं बोलते की तू उसकी चूची मसलने के लिए तड़प रहे थे। सिर्फ चूची? लेने का मन नहीं किया कभी। एकाध बार। यार बुरी तो नहीं है वो। और मैं बताऊँ। मेरी तो सहेली है, मुझसे तो सब बताती है। तुम इतने बुद्धू न होते न तो वो खुद ही चढ़ जाती तेरे ऊपर। मैं ये नहीं कह रही हूँ की कोई चक्कर है या तू उसको पटाना चाहता है। बस एकाध बार मजे के लिए, कभी तो मन किया होगा ये खड़ा हुआ होगा उसके बारे में सोचकर?”


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गुड्डी खुद कस-कसकर अपने चूतड़ मेरे लण्ड पे रगड़ते बोली।

मेरा लण्ड अब पागल हो रहा था था। उसका बस चलता तो गुड्डी की शलवार फाड़कर उसके अन्दर घुस जाता।

लेकिन हाथ तो कुछ कर सकते थे। मैंने उसके टाईट कुरते के ऊपर से ही उसकी चूचियां दबानी शुरू कर दी। वो बात भी ऐसी कर रही थी।

गुड्डी- “नहीं यार। नहीं मेरा मतलब एकाध बार तो। यार किसका नहीं हो जायेगा। वो खुद ही…”

मैंने मान लिया- “हाँ दो-चार बार हुआ था एकदम ज्यादा। बस मन कर रहा था लेकिन। वैसा कुछ है नहीं हम दोनों के बीच में। लेकिन हाँ… ये खड़ा हुआ भी था कई बार सोचकर। लेकिन…”

गुड्डी- “चलो चलो कोई बात नहीं। अबकी होली में मैं दिलवा दूंगी। लेकिन तुम पीछे मत हटना। समझे वरना? मन तो तुम्हारा किया था ना उसकी लेने का। तो बस। अब उसको पटाना मेरा काम है। मंजूर?” और ये कहकर उसने कसकर फिर दो-चार किस लिए और अपनी कुर्सी पे।
Guddi nhi, khajane ki chabi mili hai anand babu ko. Pata ki kitno ki dilwayegi anand babu ko
 

Shetan

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Update bahoot hi jald aayega
Koi bat nahi Komalji. Pahele chhutki ke updates padh lu. Uske bad fagun ki shararat to meri favourite hai hi.

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Shetan

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फागुन के दिन चार भाग २९

गुड्डी का प्लान

३,८२,842


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कागज आया और तीन-चार फोन भी। गुड्डी प्लान बनाने में बिजी हो गयी और डीबी फोन में



आखिरी फोन शायद एस॰टी॰एफ॰ के हेड का। डी॰बी॰ का चेहरा टेंस हो गया और आवाज भी तल्ख़ थी। वो सर सर तो बोल रहे थे, लेकिन टोन साफ था की उसे ये पसंद नहीं आ रहा था।

लेकिन कुछ फोन बगल के कमरे में भी बज रहे थे, जहां उनके साथ के और जूनियर अधिकारी बैठे थे, और डीबी उधर चले गए। दरवाजा खुला हुआ था और उनकी फोन की बात चीत और जो वो इंस्ट्रक्शन दे रहे थे साफ़ सुनाई दे रहा था।



गुड्डी पेन्सिल से लाइने खींच रही थी, कभी बंद खिड़की से बाहर अपने स्कूल की ओर देखती जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रही हो और फिर कागज की ओर मुड़ जाती।



और मैं सोच रहा था, डीबी ने जो बातें बतायीं एकदम सही थीं, लेकिन जो बाते गुड्डी सोच रही थी वो भी सही थीं और ज्यादा सही थीं। फिर एक तरह से मेरी सोच भी सही थी।


डीबी अंदाज लगा रहे थे स्कूल में लड़कियों को होस्टेज बनाने वाले कौन हैं, किस तरह के लोग है और उनका मोटिव क्या है ?

इससे उनका काम करने का तरीका पता चल सकता था और उन्हें टैकल करना ज्यादा आसान होता, लेकिन वह साफ़ नहीं हो रहा था। मैंने भी फाइलों में ही सही और केस स्टडी में बहुत से आतंकी ग्रुप्स के बारे में पढ़ा था। कश्मीर के बाहर तो आतंकी सिर्फ दहशत फैलाते हैं और बम्ब का इस्तेमाल करते हैं चाहे ट्रेन में हो या कार में, और हमेशा ज्यादा भीड़ वाली जगह पर और किसी को पता चलने के पहले गायब हो जाते हैं

अब यह जो भी है,... निश्चित रूप से पकडे जाएंगे या मारे जाएंगे।

पर गुंडे बदमाश भी समझ में नहीं आते, सिद्द्की का जलवा तो मैं देख ही चुका था तो कोतवाली के इतने पास और दिन दहाड़े किस गुंडे की हिम्मत होगी? और सबसे बड़ी बात ऐसा सॉफिस्टिकेटेड बम्ब कैसे उसके पास आ सकता है,


सामने टीवी चल रहा था, भले ही म्यूट पर हो लेकिन चल रहे रनर इस घटना को पूरी तरह आतंकी बताने पर तुले थे।

और इसमें फायदा उन्ही का था, .....टी आर पी बढ़ रही थी, लोग नेशनल चैनल छोड़ के लोकल लगा के देख रहे थे और अब नेशनल चैनल पर भीशुरू हो गयी थी ब्रेकिंग न्यूज में। एक लड़कियों के स्कूल में दो गुंडे घुसे तो कोई न्यूज नहीं बनती इसलिए आतंकी, और जितना मसाला हो, तो बनारस में हुए पुराने बॉम्ब ब्लास्ट की पिक्चर्स, पुरानी तबाही, और हेडलाइंस, के अभी कुछ देर बाद स्कूल में यही मंजर होगा

और बहुत से चैनल तो अलग अलग पार्टियों से जुड़े तो सरकार के खिलाफ आग उगलने से भी वो नहीं चूक रहे थे ,

ला एंड आर्डर के नाम पर आयी सरकार फेल, कोतवाली की नाक के नीचे आतंकी हमला,

और कुछ चैनल वाले अब उसे मजहबी रंग भी देने की तैयारी में थे

होली या खून की होली

अपोजिशन पार्टी के नेता तो मैदान में आ ही गए थे रूलिंग पार्टी में जो चीफ मिनिस्टर के खिलाफ थे अंदर अंदर वो मौके का फायदा उठा तहे थे और मैं समझ रहा था की डिप्टी होम मिनिस्टर का भी हाथ है इन चैनल को हवा देकर आतंकी बुलवाने में


आतंकी होने पर ही तो एस टी ऍफ़ का रोल आता।

एस टी ऍफ़ सीधे डीप्टी चीफ होम मिनिस्टर के अंदर और उनकी प्रायरटी होस्टेज को छुड़ाना नहीं बल्कि एनकाउंटर कर के पब्लिटीसीटी लेना होता । वो तो चले जाते रायता डीबी को साफ़ करना पड़ता।

और एस टी ऍफ़ के साथ डिप्टी होम मिनिसिटर की भी इज्जत बढ़ जाती।



लेकिन गुड्डी की सोच कुछ और थी

वो कोई भी हों उनका मोटिव कुछ भी हो, हमें अभी सिर्फ लड़कियों को छुड़ाने के बारे में सोचना चाहिए बस।
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और मेरा सोचना यह था की जो भी गुड्डी सोचती है वो ठीक है, मुझे तो बस ये सोचना है, ये होगा कैसे।

एक बार लड़कियां बच के निकल आयीं तो उन दुष्टों का कुछ भी, पुलिस पकडे, वो सरेंडर करें, पकडे जाने पर गाडी पलट जाए , एस टी ऍफ़ की फायरिंग में वो मारे जाएँ और उन के पास से वो दो चार एके ४७ बरामद करा दे, इससे हम लोगों का लेना देना नहीं, लेकिन लड़कियां किसी भी हालत में पुलिस आपरेशन से पहले बच जाए और एस टी ऍफ़ के आने पहले तो एकदम, क्योंकि जैसे ही फायरिंग शुरू होगी, वो बॉम्ब जरूर एक्सप्लोड कर देंगे, और उससे भी बड़ा खतरा ये था की कही पुलिस की फायरिंग में ही उनमे से कोई इंजर्ड न हो जाए,

तो अब ज्यादा टाइम नहीं था, शाम के पहले बल्कि एस टी ऍफ़ के आने के पहले किसी तरह लड़कियां वहां से निकल जाएँ पर उसके लिए जरूरी था बिल्डिंग प्लान, लड़कियां कहाँ होंगी और कैसे सेफली जहाँ लड़कियां हों उस जगह को एक्सेस कर सकते हैं और उन्हें निकाल सकते हैं



डीबी ने बताया था की उनके पास जो स्कूल का प्लान था उसमे बहुत चेंज हो गए हैं और वो ज्यादा काम का नहीं है

और गुड्डी वही प्लान बना रही थी।



लेकिन एक जंग और चल रही थी नैरेटिव की, आपत्ति में अवसर ढूंढने वालों की और डीबी उससे बाहर जूझ रहे थे ,

टीवी का वॉल्यूम मैंने थोड़ा बढ़ाया, और एक एंकर चीख रहा था,


" होली के मौके पर ही क्यों ? कौन है जो हमारे त्योहारों कोबर्बाद कर रहा है , होली को खून की होली बना रहा है। अपने अगल बगल देखिये, ....पड़ोस में देखिये, कौन लोग है जो आतंकियों को आश्रय देते हैं, पहचानियों उन्हें "


और मुझे याद आया, डीबी ने लो इंटेसिटी दंगो से पोलराइजेशन की बात की थी, कुछ पार्टियां यही चाहती हैं और मौका मिल गया तो

और डी बी सिटी मजिस्ट्रेट को समझा रहे थे,

"आप तब तक जो भी पीस कमिटी हैं उन्हें एक्टिवेट कर दीजिये, एक बार बात कर के ब्रीफ कर दीजिये, "

और फिर वो सिद्दीकी से बोले, ' जरा अफवाह वालों का पता कर के रखो, और ये लोकल चैनल वालों को टाइट करो। हाँ ट्रबुल स्पॉट है और ट्रबुल मेकर, सब थानों से एक बार बात कर के और पी ए सी की थोड़ी गश्त बढ़वा दो।


फिर सी ओ को उन्होंने बोला, " फायरिंग नहीं होगी, किसी भी हालत में नहीं होगी लेकिन अंदर घुसने की तैयारी पूरी कर लो, तीनो पेरिमीटर बन गए न और एस ओ दशाश्वमेध लीड करेंगे और बोट पुलिस को भी लगा दो, कहीं वो नदी के रस्ते न निकले '



और जब वो अंदर हम लोगो के पास आये तो गुड्डी प्लान ले के तैयार थी।
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Wow amezing. Guddi kagaz pen lekar plan bana rahi hai.
DB par pressure to aana hi hai. Vardat ka koi natija nahi nikla. Sayad NSG ko operation karne dene ka dabav ho ya fir mantralay dvara vardat ki jankari lene ke call ho.

Guddi ka school hai to use apni school me kya kaha hai sab pata hoga hi. Vo sab yaad kar ke naksha bana rahi hai.

Anand babu ka sochna bilkul sahi hai. Atnkvadi ka motive hota hai. Vo bheed vali jagah ko nishana banate hai. To is tarah hostage kyo. Vo bhi koi deshi bomb nahi hai. Pura time auto bomb.

Gunde to tv news ke jariye TRP bator rahe the. News anchor chikh chikh kar jo tv par news jo chala rahe the. Upar se sarkar par vipax ka hamla. News channel ki to chandi thi. Garma garam khabro me vo kya kya vardat ka chahera mot dete. Kabhi atankvadi hamla to kabhi komi dange.
Title bada mashaledar diya hai.
होली या खून की होली

Vipaksh ka hamla to chalta hi rahega. STF operation ko taiyar hai. Kyo ki vo home ministry ke under hai. Agar kamyab ho gai to home ministry ki to chandi ho jaegi.

Guddi to guddi hai. Ab pata chalega leed heroine ka jalva. Anand babu ho ya guddi. Dono ki soch ladkiyo ko bachana hai.


DB ka plan jyada kam ka nahi hai. Par guddi khud plan bana rahi hai. Ye mast laga amezing..

Vipaksh ka aur news channel ka to chalta hi rahega. Par Siddiqui ka kam sahi hai. Sabse pahele afvah udane vale ko pakdo. Local channel ko tight karna jyada jaruri hai.

Goli chalane ka Oder nahi hai. Taki plan na bigde. Police commands ak47 lekar taiyar hai. Teeno parameter ki taiyari. Kya ward use karte ho. Ashvmegh leed karenge.
Wow nadi tak ko block kiya gaya hai.

Ufff guddi ka plan. Ye ladki bhi na...

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