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बरसात का हमारी जीवन में एक विशेष स्थान है। हम सब सभी की बारिश के साथ कुछ यादें जुडी होती है। खास कर अचानक आई पहली बारिश। जब हम उसके लिए तैयार नहीं होते और तभी अचानक धुँवाधार बारिश आ जाती है। इसी दौरान अनपेक्षित घटनायें घट जाती है। कुछ अच्छी, तो कुछ बुरी। मगर कुछ ऐसी चीजें घट जाती है जो जिंदगी भर याद रह जाती है।
अचानक मौसम में हुए बदलाव के साथ ऐसी ही कुछ यादें जुडी होती है वो है श्रृंगार की। कभी कभी हमें कोई मिल जाता है जिसके साथ बिताया जादुई समय बिलकुल यादगार होता है। ये एक ऐसे ही बरसात की कहानी है। अचानक आई बारिश के कारण सब अस्तव्यस्त हो जाता है। कोई किसी मुसीबत में फस जाता है तो किसी को कुछ अलग ही मौका मिलता है।
आशा है की डॉक्टर आनंद की ये रोमैंटिक कहानी आपको पसंद आएगी। इस बरसात की रात में जो अनुभव आनंद ने लिया वो हम सब की कल्पना होती है। इस कहानी के मा iiध्यम से उसी कल्पना को महसूस करने का ये छोटा सा प्रयास है।
लगभग अंधेरा हो चुका था। बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। वैसे बारिश का मौसम शुरू होने में अभी काफी वक्त था। पर आज अचानक मौसम ने करवट बदल दी और जोर की बारिश होने लगी। आकाश दोपहर से ही धुंदला हुआ था। पर ये आज कुछ नया नहीं था। अकसर धुंदले बादल के साथ बढती गर्मी से लोग वाक़िफ़ थे। पर आज अचानक से आयी बारिश से सभी सरप्राईज थे। गड़गड़ाहट के साथ कड़कती बिजली ने सभी को अपनी जगह पे कैद कर रखा था। रास्ते सुमसान होने में देर नहीं लगी। पर जब दिन ढलने के बाद भी जब बारिश न रुकी तो लोगो ने भीगते हुए घर का रास्ता पकड़ लिया था।
डॉक्टर आनंद की शिफ्ट ख़तम हो चुकी थी। वैसे भी दोपहर से चल रही बारिश के कारण अस्पताल में ज्यादा पेशंट नहीं थे। उनके पास कार थी, इसलिए बारिश में निकलने की कोई समस्या नहीं थी। निकलते वक्त उन्होंने डॉक्टर वर्षा को घर छोड़ने का ऑफर दिया। किंतु डॉक्टर वर्षा ने साफ़ मना कर दिया। उन्होंने बाकि सहेलियोंके साथ रिक्शा का जुगाड़ कर लिया था। डॉक्टर आनंद का वर्षा पे क्रश था। मन ही मन वो उनको अच्छी लगने लगी थी। बात डॉक्टर वर्षा के नजरोंसे छूटी नहीं थी। इसलिए वो ज्यादातर आनंद से दूर रहने की कोशिश करती थी।
डॉक्टर आनंद की उम्र लगभग ३४ साल थी। उनका घर सिटी सेंटर से बहुत दूर तकरीबन शहर के सीमा पर था। वो इलाक़ा अभी ज्यादा विकसित नहीं हुआ था। पर सस्ती रिअल ईस्टेट के कारण उन्होंने वहाँ पर बड़ा आलीशान मकान बनाया था। इतने बड़े घर में वह अकेले रहते थे। उम्र बढ़ने के बावजूद भी उनकी शादी नहीं हुयी थी। उनकी जिंदगी में काफी लड़कियाँ आयी थी। पर किसी एक के साथ सेटल होना उनकी नसीब में नहीं था। उनका रंगीला स्वभाव इसकी और एक वजह थी।
मरीज का इलाज करने में डॉक्टर आनंद एकदम कुशल थे। इसलिए उनका रंगीला स्वभाव आजतक अस्पताल प्रबंधन ने दुर्लक्षित किया था। लेडी डॉक्टर के साथ फ़्लर्ट करना, नर्स के साथ रंगीला व्यवहार करना उनकी आदत थी। कई बार डॉक्टर के बहकावे में आके कुछ नर्स उनका साथ देती। फिर चुम्माचाटी के बदले में डॉक्टर उनको अपने मेहरबानी दिखाते थे। पर डॉक्टर आनंद ने पेशंट के साथ किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार नहीं होने दिया। पेशंट के इलाज मामले में वह एकदम व्यवसायी थे। इश्कबाजी के अलावा वही एक चीज़ थी जो उनको दिल से भाती थी।
गेट में आयी रिक्शा ने जैसे हॉर्न बजाया, बरामदे में खड़ी वर्षा और उसकी सहेलियोने अपना बैग उठाया। बारिश अभी भी काफी तेज थी। जैसे ही बरामदेसे बाहर निकली, बारिश से बचने के लिए वर्षा ने अपना पर्स सर के ऊपर पकड़ा। इससे बारिश से बचाना मुश्किल था, पर फिर भी बालों को भीगने से बचाने की उसकी कोशिश थी। धुँवाधार बारिश के कारण नज़ारा एकदम धुंदला हुआ था। पर उसी हालात में भी डॉक्टर आनंद उन महिलाओं को अपनी कामुक नजरोंसे घूर रहे थे। वैसे बारिश में दौड़ने वाली डॉक्टर का नज़ारा विलोभनीय था। खासकर डॉक्टर वर्षा का। तेजी से चलते वक्त मटकने वाले उसके नितंब आनंद को उत्तेजित कर रहे थे। बारिश ने इतने कम अंतर में ही उनको लगभग भीगा दिया था। शरीर से चिपके कपड़ों में से उनके अंग निखरकर आ रहे थे। भीगने से बचाने के लिए वर्षा ने अपना एप्रन और दुपट्टा उतार के पर्स में रख दिया था। इसी कारण उसके भीगी हुयी ड्रेस से उसकी ब्रा का दर्शन आसानी से हो रहा था। जैसे वो गेट के पास से गुज़री, गेट की लाईट में उसका भीगा बदन चमक उठा। लाईट की रोशनी में भीगे कपड़ों से चिपके उसके अंग आसानी से नजर आ रहे थे।
गेट से बाहर निकलते ही सभी डॉक्टर जल्दी से रिक्शा में सवार हो गए। रिक्शा के दोनों खुले दरवाजोंसे बारिश का पानी अपना रास्ता तलाश रहा था। वर्षा और उसकी सहेलियाँ अपना बचाव करने की कोशिश कर रही थी। पर तेज बारिश के सामने उनकी कोई एक चलने वाली नहीं थी। ड्रायवरने एक्सेलरेटर घुमा के रिक्शा को गति दी। रिक्शा आखोंसे पार ओझर होने के बाद ही आनंद ने अपनी नजर हटायी।
“वर्षा से बचने की कोशिश करनेवाली वर्षा आखिर वर्षा में भीग ही गयी।” डॉक्टर आनंद को खुद की पंक्तिपर खूब हंसी आयी।
‘जानेमन, हमारे साथ चलती तो ये बारिश से बचाकर हम तुम्हें अपनी इश्क़ की बारिश में भीगा देते।’ मन ही मन उन्होंने अपने भावनाओं का इज़हार किया।
आज न जाने डॉक्टर अलग ही मूड में थे। उनके अंदर का शायर आज जाग गया था। शायद ये अचानक आयी बारिश का असर हो।
पैंट में हुयी हलचल को हाथों से दबा कर वो अंदर निकल गए। हलचल तो होनी ही थी। आखिर उन्होंने डॉक्टर वर्षा का बारिश में भीगा बदन जो देखा था। अस्पताल में वैसे आवाजाही कम थी। ज़ोरदार बारिश के चलते नए पेशंट आने का संभव कम था। पेशंट के रिश्तेदार गलियारे में बैठकर बातें कर रहे थे। अचानक आयी बारिश उनकी बातों का विषय था। उनसे गुजरते हुए आनंद रिसेप्शन के पास पहुंचे। रिसेप्शन खाली पड़ा था। वैसे ही आगे निकलते हुए आनंद ने नर्स के कमरे में झाँका। वहाँ पर नर्स संध्या अपना डेस्क लगा रही थी। उसकी आज नाइट ड्यूटी थी। पर बारिश के कारण आज उसे थोड़ा लेट हुआ था।
“तुम भी भीग गयी क्या?”
“अरे डॉक्टर साहब, आप कब आये? हाँ तो बारिश इतनी तेज थी की छाता टिक नहीं रहा था।”
“वैसे भीगी हुयी ही अच्छी लग रही हो।” डॉक्टर ने आँख मारते हुए बोला।
“चलो, आप कुछ भी बोलते हो।”
“अरे सच्ची। यकीन नहीं होता तो इस आईने से पूछो।”
उसके भीगे बालों को सहलाने वाले हाँथ उसके कांधोंपर रखकर डॉक्टर ने उसको आईने की तरफ मुड़ाया। संध्या डॉक्टर आनंद के करीबी स्टाफ में से थी। डॉक्टर का फ़्लर्ट करना उसको अच्छा लगता था। वो उनका हमेशा साथ देती थी। आनंद ने इसका पूरा फायदा उठाया था। संध्या शादीशुदा थी। पर उसका पति नशेबाज था। डॉक्टर ने यही मौका देख कर उसको अपने पास आकर्षित किया था। उसको भी डॉक्टर का आकर्षक व्यक्तित्व पसंद था। जो प्यार पति से नहीं मिल पाया उसी की कमी डॉक्टर ने पूरी की थी। डॉक्टर आनंद सभी महिलाओं के साथ फ़्लर्ट करता है ये बात उसको पता थी। मगर फिर भी आनंद की हवस में उसने अपनी ख़ुशी ढूंढ ली थी। आनंद ने भी हमेशा उसके प्रति पक्षपात दिखाया था। इसका कारण सबको पता था। पर इस बात की फ़िक्र न ही डॉक्टर आनंद को थी और न ही संध्या को।
संध्या के कंधे पर रखे उनके हाथ धीरे धीरे उसके पीठ पर फिरने लगे। संध्या के चहरे की लाली आनंद को आईने में साफ़ दिख रही थी। उसकी पीठ सहलाने वाले उनके हाथ अब खुलकर संध्या के शरीर पर घूम रहे थे।
“मुझे कपड़े चेंज करने चाहिए।” संध्या ने डॉक्टर को कहा।
दोनों हाथ आगे की ओर लेते हुए आनंद ने उसको अपनी बाहोंमे ले लिया।
“जी बिलकुल चेंज करना चाहिए। हमने कहाँ रोका है? उल्टा हम तुम्हारी मदद करना चाहते है।” उसकी कंधे पर अपना सर रखते हुए डॉक्टर ने कहा।
“आप भी ना…” संध्या ने उनकी बाहोंसे छूटने की झूठी कोशिश की वैसे डॉक्टर ने उसे और कसकर पकड़ा।
“चले नर्स साहिबा?”
उनकी बातों से संध्या की हंसी निकल आयी। उसने इधर उधर देखा। रूम में सन्नाटा था। वैसे भी किसी के आने की संभावना नहीं थी। इस समय नयी शिफ्ट वाली नर्से अपने अपने वार्ड का राउंड लगाती थी। स्टाफ रूम में कोई भी नहीं रहता।
संध्या ने अपना बैग उठाया। डॉक्टर आनंद की बाँहे अभी भी उसको जखडे हुए थी। उसी अवस्था में संध्या चेंजिंग रूम की और बढ़ी। ये कमरा स्टाफ रूम के अंदर ही बना हुआ था। अपनी पकड़ बरकरार रखते हुए डॉक्टर उसके पीछे पीछे चले गए। कमरा वैसे छोटा था। अंदर जाते ही संध्या ने बत्ती जला दी। कमरे में लगे बड़े आईने में उसको डॉक्टर का चेहरा साफ़ दिख रहा था। उनके चेहरे पे वही शरारती मुस्कान थी।
“अब छोड़ो भी..” अपनी बैग से नर्स वाला यूनिफार्म निकालते हुए संध्या ने कहा।
उसकी गर्दन पे होठों से चूमते हुए डॉक्टर ने अपने हाथों की पकड़ ढीली की। संध्या ने हाथ दुपट्टे की ओर बढ़ाया।
“अरे ये सौभाग्य तो हमें दीजिये जानेमन।” आनंद ने उसके हाथों को रोकते हुए कहा।
डॉक्टर ने हलके हाथों से संध्या के गले का दुपट्टा निकला। भीगने की वजह से वह उसके ड्रेस को चिपक गया था। दुपट्टा निकलते ही संध्या की छाती अच्छे से दिखने लगी थी। बदन को चिपके गीले कपडोने अपना कमाल दिखाया था। उसमे उसके बड़े स्तनोंका आसानी से नजर में आ रहा था। उसको पिछेसे पकड़ते हुए डॉक्टर उसको आईने में देख रहे थे। ये कोई उनका संध्या के साथ पहला वक्त नहीं था। पर हर बार वह उनको उतनी ही आकर्षक लगती थी।
संध्या थोडीसी सांवली थी। वह बहुत पतली नहीं थी लेकिन उसका सुडौल शरीर बहुत ही आकर्षक था। इसीलिए डॉक्टर उसपे फ़िदा थे। जो सुख पति से नहीं मिल पाया वह उसने डॉक्टर आनंद की बाहोंमे खोज लिया था। डॉक्टर को भी अपनी वासना बुझाने का और एक विकल्प मिल गया था।
आनंद ने दोनों बाजूओंसे हाथ आगे आगे बढ़ाते हुए उसके दोनों स्तनोंपर रख दिए। उनके आगे बढ़ते हाथ संध्या ने आईने में देख लिए थे। जैसे ही डॉक्टर ने अपने हाथों से उसके स्तन हलके दबाये, संध्या के मुँह से सिसकारी निकल गयी। आँखे बंद करते हुए उसने अपना सिर आनंद के शरीर पर टिका दिया। उसके गीले बालों मे मोगरे की खुशबू आ रही थी। शायद ये उसकी बालों मे लगे तेल का सुगंध था। उसकी बालों पे अपनी नाक टिकाते हुए आनंद ने वो सुगंध अपने अंदर भर लिया। दोनों हाथोंसे उसको कसकर पकड़ते हुए आनंद ने संध्या की गर्दन को चुम लिया।
डॉक्टर आनंद ने हाथ पीछे की ओर लेते हुए उसकी कमीज़ के हुक खोलना शुरू किया। संध्या उनको आईने में देख रही थी। सारे हुक खोलतेही आनंद ने उसकी कमीज़ को कंधोंके ऊपर से खिसकाया। थोड़ा और निचे खिसकतेही संध्या की सफ़ेद रंग की ब्रा दिखने लगी। आनंद ने कमीज़ निचे सरकाते हुए उसकी कमर से होते हुए पैरोंमें गिरा दी। संध्या उसको उठाने के लिए झुकानेही वाली थी की डॉक्टर ने फिर एक बार उसकी स्तनोंको कसकर पकड़ा। इस बार उसके स्तन दबाते ही ब्रा के ऊपर से बाहर आने के लिए तरसने लगे। ज़मीन पर पड़ी कमीज़ पैरों के निचे आके ख़राब न हो इसलिए संध्या ने उसको पैरोंसे ही दूर खिसकाया। उसे उठानेका मौका शायद उसको मिलने वाला नहीं था।
और समय न बिताते हुए आनंद ने संध्या के कमर की तरफ अपना ध्यान बढ़ाया। उसके पजामे के नाड़े को उन्होंने एक झटके में खोल दिया। नाडा खुलते ही पजामा पैरोंसे फिसलकर जमीन पर जा गिरा। दोनों हाँथ उसकी कमरपे लिपटकर डॉक्टर ने उसको अपनी और खींच लिया। संध्या की शरीर पर अब सिर्फ सफ़ेद ब्रा और नेवी ब्लू कलर की पैंटी थी। डॉक्टर के लिपटने पर संध्या के नितम्ब उनकी कमर पे रगड़ गए। आनंद की पैंट में तने हुए उनके लिंग का अहसास संध्या को हुआ। पैंटी के पतले कपडे में वो उस लिंग की कठोरता आसानीसे महसूस कर रही थी।
डॉक्टर आनंद ने संध्या को घुमाते हुए उसका मुँह अपनी ओर कर लिया। आनंद की नजरों में भरी वासना देख के संध्या की नजर शर्म से झुक गयी। उसकी गालोंपे हाथ रख कर आनंद ने उसका सर उठा लिया और अपने ओठ आगे बढ़ाते हुए उसको हलकेसे चुम लिया। संध्या के बदन में भी आग तेजी से फ़ैल रही थी। जवाब में उसने आनंद के होंठो मे अपने होंठ मिलाये। दोनों ने एक आवेशपूर्ण चुम्बन लिया। आनंद की जीभ संध्या के मुँह में खुलकर घूम रही थी।
संध्या को अपने हाथोंमे कुछ हलकासा गरम महसूस हुआ। उसने आनंद की तरफ देख किया। दुसरेही पल उसको पता चला की वो और कुछ नहीं पर डॉक्टर आनंद का लिंग है। पैंट की ज़िप खोल कर आनंद ने अपना लिंग संध्या की हाथोंमे थमा दिया था। उनका लिंग बहोत कड़क था और गर्म हो चूका था। संध्या ने उसको अपने हाथोंमे सहलाना शुरू किया।
उधर डॉक्टर ने हाथ की ओर लेते हुए उसकी ब्रा के हुक खोल दिए। हुक खुलते ही संध्या के कैद स्तन उछलकर बाहर निकले। दूसरे ही पल आनंद ने ब्रा शरीर से अलग कर दी। संध्या अब उनके सामने अर्धनग्न अवस्था में खड़ी थी। आनंद ने झपटकर उसकी बड़ी स्तनोंपर हमला बोल दिया। दोनों हाथों से वो उसे मसलने लगा। संध्या लगभग अपना होश खो बैठी। उसने दोनों हाथों से आनंद का लिंग सहलाना शुरू किया। उसी स्थिति में डॉक्टर ने फिर एक बार संध्या के होठों से अपने होंठ चिपका दिए। दोनों के शरीर अब गर्म हो चुके थे।
डॉक्टर ने अपने होंठ संध्या की स्तनोंपर रखकर चूसना शुरू कर दिया। उसके बड़े स्तन आनंद के मुँह में आना मुश्किल था। जैसे ही आनंद ने उसके निप्पल को दांतोंके बीच दबाकर हलके से कांट लिया, संध्या के शरीर में बिजली सी दौड़ गयी। आनंद का सिर उसने और जोर से अपनी स्तनोंपर दबा दिया।
स्तनोंको चूसते हुए डॉक्टर ने संध्या की पैंटी कमर से निचे खिसकाई। अब संध्या बिलकुल नंगी हो चुकी थी। आनंद उसके पुरे शरीर को सहलाने लगा। संध्या के बड़े नितम्बों पर हाथ फेरते हुए उसको बहुत अच्छा लगा। जांघों पर हाथ फेरते हुए आनंद ने उसकी योनी को स्पर्श किया। दूसरे ही पल योनी को सहलाते हुए आनंद ने अपनी उंगली अंदर खिसका दी। ख़ुशी से उसकी सिसकारी निकल गयी। आनंद ने जैसे ही उंगली अंदर बाहर करना शुरू किया, संध्या के ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। ज्यादा समय टिकना उसके लिए मुश्किल था। उसके शरीर ने झटके लगाए। आनंद ने उंगली की गति बढ़ायी और अगले ही पल एक जोरदार सिसकारी देते होते संध्या ने पानी छोड़ दिया।
संध्या डॉक्टर की बाँहों में गिर पड़ी। आनंद ने कसकर पकड़ते हुए उसको सहलाया। उसका तना हुआ लिंग संध्या की योनि पर रगड़ रहा था। अब डॉक्टर को और रहा नहीं गया। संध्या के होंठोंको चूमते हुए उन्होंने अपना लिंग उसकी योनी पर रखा। अब वो अंदर प्रवेश करने ही वाले थे की बाहर कमरे में हलचल महसूस हुयी।
“कोई है अंदर?”
बाहर से किसी ने आवाज़ लगायी।
“ये अब कौन आ गया”, डॉक्टर ने पूछा।
“रामलाल होगा। झाड़ू-पोछा करने आता है।” संध्या ने डॉक्टर के बाहोंसे निकलने की कोशिश करते हुए कहा।
कोई जवाब न आने पर रामलाल नर्स रूम में आ गया। हड़बड़ी में संध्या अपने कपड़े ढूंढने लगी।
“शुsss.. आवाज मत करना।” आनंद ने संध्या को इशारा करते हुए कहा। “मैं उसको भगाता हूँ। तुम जल्दी से कपड़े पहनकर निकल जाना।”
तना हुआ लिंग पैंट में कैद करने में आनंद को थोड़ी मेहनत करनी पड़ी। पर बंद ज़िप में भी वो आसानी से नजर आ रहा था। कपड़े ठीक करते हुए वो तुरंत बाहर निकले। उनके बाल थोड़े बिखरे हुए थे।
“अरे डॉक्टर साब आप?”
रामलाल ने झाड़ू लगाना शुरू कर दिया था। यही उसका झाड़ू-पोछा करने का दैनिक समय था। सारी नर्से अपनी अपनी वार्ड में जाने के बाद, रामलाल कमरे की सफाई करता था। डॉक्टर के चक्कर में ये बात संध्या के दिमाग से फिसल गयी थी।
अचानक डॉक्टर आनंद को सामने देखकर वो चौंक गया।
“कितना समय लगेगा तुम्हें यहाँ सफाई करने में?”
“लगभग पंद्रह-बीस मिनट तोह लग जायेंगे।”
“थोड़ी देर चलो मेरे साथ, वहाँ पे कुछ काम है। ये बाद में कर लेना। मुझे तुरंत निकल जाना है।”
“जी डॉक्टर साब।”
रामलाल डॉक्टर के पीछे पीछे चला गया।
जैसे ही रामलाल के जाने की आवाज़ आयी, संध्या ने फटाफट कपड़े उठा लिए। मस्ती में आकर आनंद ने उसे जगह जगह बिखरा दिए थे। पर्स से अपना नर्स वाला यूनिफार्म निकाल कर उसने पहन लिया। डॉक्टर के साथ चली मस्ती से उसकी योनी अभी भी गीली थी। उसको हलकासा सहलाकर उसने पैंटी पहन ली। बड़े स्तन ब्रा में समेटते हुए उसको डॉक्टर के हाथों की कमी महसूस हुयी।
गीले कपड़े वही हुक पे लटकाकर संध्या बाहर आ गयी। कमरे में बिलकुल शांती थी। पर्स ड्रॉवर में रखकर उसने अपना सामान उठाया और अपने वार्ड की तरफ चल पड़ी।
रास्ते में वो डॉक्टर आनंद के कमरे से गुज़री। डॉक्टर ने रामलाल को कुछ फाइलें उठाने के काम लगाया था। उन्होंने संध्या को गुजरते हुए देखा। जैसे ही उनकी नजरे मिली, आनंद ने उसको आँख मारके इशारा किया। होठों से चुम्मे का इशारा करते वक्त उनका हाथ पैंट के ज़िप पर रगड़ा। उनका तना हुआ लिंग अभी भी मस्ती के मूड में था।
हलके से मुस्कुराते हुए संध्या आगे बढ़ गयी।
संध्या जैसे ही आखोंसे ओझल हो गयी डॉक्टर के चेहरे की मुस्कान चली गयी। रामलाल अभी भी फाइलें जुटा रहा था।
“ठीक है, बाकी बचा मैं कल कर दूंगा।” डॉक्टर ने उसको रोकते हुए कहा।
“अरे साब बस हो ही गया है।”
“मुझे अभी निकलना है। तुम जाओ, मैं इसको निपटा दूंगा।”
“जी डॉक्टर साब, जैसा आप कहो।” फाइलें किनारे रखकर रामलाल चला गया।
रामलाल को जिस वजह से लाया था वो काम हो गया था। पर संध्या के साथ अधूरे सेक्स की निराशा आनंद के चहरे पर साफ़ झलक रही थी। अभी भी तना हुआ लिंग पैंट के ऊपर से ही सहलाते हुए आनंद से अपना बैग पैक किया। बैग कंधे पर लगाकर उन्होंने लाईट बंद कर दी और कमरे से निकल पड़े।
गुड़ नाइट डॉक्टर।” रिसेप्शन की लड़की ने उनको अभिवादन किया।
गलियारे में बैठे कुछ पेशंट के रिश्तेदार डॉक्टर को देखकर मुस्कुराये। उनका अभिवादन स्वीकार करते हुए डॉक्टर प्रवेश द्वार की ओर बढे।
बाहर लगभग अंधेरा हो चुका था। बादल अभी भी तेजी से बरस रहे थे। आनंद ने घडी की ओर देखा।सात बज रहे थे। इस समय हलका उजाला रहता था, पर आज बारिश की कारण अंधेरा छाया हुआ था। आसमान में बिजली कड़क रही थी।
आनंद ने बैग सर के ऊपर पकड़ते हुए कार की तरफ दौड़ लगायी। कार तक पहुंचते पहुंचते वो लगभग भीग चूका था। अंदर बैठते ही उसने चैन की सांस ली। गाडी स्टार्ट करके वो घर की ओर निकल पड़ा। बारिश के कारण हवा में ठंड थी। पर ये ठंड रोमॅंटिक एहसास दे रही थी। इसी ख़ुशी में आनंद ने रेडिओ चलाया।
गाडी के मिरर में आनंद ने पीछे छूटता हुआ हॉस्पिटल देखा। तभी उसको संध्या की याद आयी। संध्या के साथ रोमांस करनेका अच्छा मौका रामलाल की वजह से निकल गया था। वो पल याद करके आनंद की पैंट में फिर एक बार हलचल हुयी। तना हुआ लिंग उन्होंने पैंट के ऊपर से ही हलके से सहलाया।
‘आज इसका कुछ करना पड़ेगा’ मन ही मन उन्होंने खुद को बताया।
ज़ोरदार बारिश की वजह से रास्ते पे कोई दिख नहीं रहा था। सारा नज़ारा धुंदला हो गया था। जैसे ही गाडी सिटी सेंटर से बाहर निकाली आबादी धीरे धीरे कम होने लगी। रेडिओ पे किशोर कुमार गा रहा था।
“इक लड़की भीगी भागी सी…” आनंद ने किशोर के सुरों में अपना सुर मिलाया। गुनगुनाते हुए सफर कट रहा था।
अचानक सुमसान रास्ते पर उन्हें दूर दो आकृतियाँ नजर आयी। पल भर के लिए आनंद घबरा गया। सुमसान अंधेरे रास्ते पे अचानक सामने आयी आकृतियोंसे कोई भी डर जाता। जैसे कार आगे बढ़ी, वो आकृतियाँ अब पास आ गयी थी। आनंद ने ध्यान से उनकी ओर देखा। शायद दो महिलायें वहाँ खड़ी थी।
जैसे ही गाडी उनके पास पहुँची, आनंद ने गति धीमी कर दी। वो एक बस स्टॉप था। एक पतली सी छत बारिश से बचने में नाकाम थी। पर शायद कड़कती बिजली में उन्हें वही बड़ा सहारा लगा। आनंद ने ध्यान से देखा। एक २०-२१ साल की लड़की और साथ में एक वृद्ध महिला। जैसे ही गाडी उन्हें पार करके आगे बढ़ी, वो वृध्द महिला फिर से बैठने लगी। शायद किसी मदद की आशा से वो खड़ी हुयी थी।
अचानक मौसम में हुए बदलाव के साथ ऐसी ही कुछ यादें जुडी होती है वो है श्रृंगार की। कभी कभी हमें कोई मिल जाता है जिसके साथ बिताया जादुई समय बिलकुल यादगार होता है। ये एक ऐसे ही बरसात की कहानी है। अचानक आई बारिश के कारण सब अस्तव्यस्त हो जाता है। कोई किसी मुसीबत में फस जाता है तो किसी को कुछ अलग ही मौका मिलता है।
आशा है की डॉक्टर आनंद की ये रोमैंटिक कहानी आपको पसंद आएगी। इस बरसात की रात में जो अनुभव आनंद ने लिया वो हम सब की कल्पना होती है। इस कहानी के मा iiध्यम से उसी कल्पना को महसूस करने का ये छोटा सा प्रयास है।
लगभग अंधेरा हो चुका था। बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। वैसे बारिश का मौसम शुरू होने में अभी काफी वक्त था। पर आज अचानक मौसम ने करवट बदल दी और जोर की बारिश होने लगी। आकाश दोपहर से ही धुंदला हुआ था। पर ये आज कुछ नया नहीं था। अकसर धुंदले बादल के साथ बढती गर्मी से लोग वाक़िफ़ थे। पर आज अचानक से आयी बारिश से सभी सरप्राईज थे। गड़गड़ाहट के साथ कड़कती बिजली ने सभी को अपनी जगह पे कैद कर रखा था। रास्ते सुमसान होने में देर नहीं लगी। पर जब दिन ढलने के बाद भी जब बारिश न रुकी तो लोगो ने भीगते हुए घर का रास्ता पकड़ लिया था।
डॉक्टर आनंद की शिफ्ट ख़तम हो चुकी थी। वैसे भी दोपहर से चल रही बारिश के कारण अस्पताल में ज्यादा पेशंट नहीं थे। उनके पास कार थी, इसलिए बारिश में निकलने की कोई समस्या नहीं थी। निकलते वक्त उन्होंने डॉक्टर वर्षा को घर छोड़ने का ऑफर दिया। किंतु डॉक्टर वर्षा ने साफ़ मना कर दिया। उन्होंने बाकि सहेलियोंके साथ रिक्शा का जुगाड़ कर लिया था। डॉक्टर आनंद का वर्षा पे क्रश था। मन ही मन वो उनको अच्छी लगने लगी थी। बात डॉक्टर वर्षा के नजरोंसे छूटी नहीं थी। इसलिए वो ज्यादातर आनंद से दूर रहने की कोशिश करती थी।
डॉक्टर आनंद की उम्र लगभग ३४ साल थी। उनका घर सिटी सेंटर से बहुत दूर तकरीबन शहर के सीमा पर था। वो इलाक़ा अभी ज्यादा विकसित नहीं हुआ था। पर सस्ती रिअल ईस्टेट के कारण उन्होंने वहाँ पर बड़ा आलीशान मकान बनाया था। इतने बड़े घर में वह अकेले रहते थे। उम्र बढ़ने के बावजूद भी उनकी शादी नहीं हुयी थी। उनकी जिंदगी में काफी लड़कियाँ आयी थी। पर किसी एक के साथ सेटल होना उनकी नसीब में नहीं था। उनका रंगीला स्वभाव इसकी और एक वजह थी।
मरीज का इलाज करने में डॉक्टर आनंद एकदम कुशल थे। इसलिए उनका रंगीला स्वभाव आजतक अस्पताल प्रबंधन ने दुर्लक्षित किया था। लेडी डॉक्टर के साथ फ़्लर्ट करना, नर्स के साथ रंगीला व्यवहार करना उनकी आदत थी। कई बार डॉक्टर के बहकावे में आके कुछ नर्स उनका साथ देती। फिर चुम्माचाटी के बदले में डॉक्टर उनको अपने मेहरबानी दिखाते थे। पर डॉक्टर आनंद ने पेशंट के साथ किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार नहीं होने दिया। पेशंट के इलाज मामले में वह एकदम व्यवसायी थे। इश्कबाजी के अलावा वही एक चीज़ थी जो उनको दिल से भाती थी।
गेट में आयी रिक्शा ने जैसे हॉर्न बजाया, बरामदे में खड़ी वर्षा और उसकी सहेलियोने अपना बैग उठाया। बारिश अभी भी काफी तेज थी। जैसे ही बरामदेसे बाहर निकली, बारिश से बचने के लिए वर्षा ने अपना पर्स सर के ऊपर पकड़ा। इससे बारिश से बचाना मुश्किल था, पर फिर भी बालों को भीगने से बचाने की उसकी कोशिश थी। धुँवाधार बारिश के कारण नज़ारा एकदम धुंदला हुआ था। पर उसी हालात में भी डॉक्टर आनंद उन महिलाओं को अपनी कामुक नजरोंसे घूर रहे थे। वैसे बारिश में दौड़ने वाली डॉक्टर का नज़ारा विलोभनीय था। खासकर डॉक्टर वर्षा का। तेजी से चलते वक्त मटकने वाले उसके नितंब आनंद को उत्तेजित कर रहे थे। बारिश ने इतने कम अंतर में ही उनको लगभग भीगा दिया था। शरीर से चिपके कपड़ों में से उनके अंग निखरकर आ रहे थे। भीगने से बचाने के लिए वर्षा ने अपना एप्रन और दुपट्टा उतार के पर्स में रख दिया था। इसी कारण उसके भीगी हुयी ड्रेस से उसकी ब्रा का दर्शन आसानी से हो रहा था। जैसे वो गेट के पास से गुज़री, गेट की लाईट में उसका भीगा बदन चमक उठा। लाईट की रोशनी में भीगे कपड़ों से चिपके उसके अंग आसानी से नजर आ रहे थे।
गेट से बाहर निकलते ही सभी डॉक्टर जल्दी से रिक्शा में सवार हो गए। रिक्शा के दोनों खुले दरवाजोंसे बारिश का पानी अपना रास्ता तलाश रहा था। वर्षा और उसकी सहेलियाँ अपना बचाव करने की कोशिश कर रही थी। पर तेज बारिश के सामने उनकी कोई एक चलने वाली नहीं थी। ड्रायवरने एक्सेलरेटर घुमा के रिक्शा को गति दी। रिक्शा आखोंसे पार ओझर होने के बाद ही आनंद ने अपनी नजर हटायी।
“वर्षा से बचने की कोशिश करनेवाली वर्षा आखिर वर्षा में भीग ही गयी।” डॉक्टर आनंद को खुद की पंक्तिपर खूब हंसी आयी।
‘जानेमन, हमारे साथ चलती तो ये बारिश से बचाकर हम तुम्हें अपनी इश्क़ की बारिश में भीगा देते।’ मन ही मन उन्होंने अपने भावनाओं का इज़हार किया।
आज न जाने डॉक्टर अलग ही मूड में थे। उनके अंदर का शायर आज जाग गया था। शायद ये अचानक आयी बारिश का असर हो।
पैंट में हुयी हलचल को हाथों से दबा कर वो अंदर निकल गए। हलचल तो होनी ही थी। आखिर उन्होंने डॉक्टर वर्षा का बारिश में भीगा बदन जो देखा था। अस्पताल में वैसे आवाजाही कम थी। ज़ोरदार बारिश के चलते नए पेशंट आने का संभव कम था। पेशंट के रिश्तेदार गलियारे में बैठकर बातें कर रहे थे। अचानक आयी बारिश उनकी बातों का विषय था। उनसे गुजरते हुए आनंद रिसेप्शन के पास पहुंचे। रिसेप्शन खाली पड़ा था। वैसे ही आगे निकलते हुए आनंद ने नर्स के कमरे में झाँका। वहाँ पर नर्स संध्या अपना डेस्क लगा रही थी। उसकी आज नाइट ड्यूटी थी। पर बारिश के कारण आज उसे थोड़ा लेट हुआ था।
“तुम भी भीग गयी क्या?”
“अरे डॉक्टर साहब, आप कब आये? हाँ तो बारिश इतनी तेज थी की छाता टिक नहीं रहा था।”
“वैसे भीगी हुयी ही अच्छी लग रही हो।” डॉक्टर ने आँख मारते हुए बोला।
“चलो, आप कुछ भी बोलते हो।”
“अरे सच्ची। यकीन नहीं होता तो इस आईने से पूछो।”
उसके भीगे बालों को सहलाने वाले हाँथ उसके कांधोंपर रखकर डॉक्टर ने उसको आईने की तरफ मुड़ाया। संध्या डॉक्टर आनंद के करीबी स्टाफ में से थी। डॉक्टर का फ़्लर्ट करना उसको अच्छा लगता था। वो उनका हमेशा साथ देती थी। आनंद ने इसका पूरा फायदा उठाया था। संध्या शादीशुदा थी। पर उसका पति नशेबाज था। डॉक्टर ने यही मौका देख कर उसको अपने पास आकर्षित किया था। उसको भी डॉक्टर का आकर्षक व्यक्तित्व पसंद था। जो प्यार पति से नहीं मिल पाया उसी की कमी डॉक्टर ने पूरी की थी। डॉक्टर आनंद सभी महिलाओं के साथ फ़्लर्ट करता है ये बात उसको पता थी। मगर फिर भी आनंद की हवस में उसने अपनी ख़ुशी ढूंढ ली थी। आनंद ने भी हमेशा उसके प्रति पक्षपात दिखाया था। इसका कारण सबको पता था। पर इस बात की फ़िक्र न ही डॉक्टर आनंद को थी और न ही संध्या को।
संध्या के कंधे पर रखे उनके हाथ धीरे धीरे उसके पीठ पर फिरने लगे। संध्या के चहरे की लाली आनंद को आईने में साफ़ दिख रही थी। उसकी पीठ सहलाने वाले उनके हाथ अब खुलकर संध्या के शरीर पर घूम रहे थे।
“मुझे कपड़े चेंज करने चाहिए।” संध्या ने डॉक्टर को कहा।
दोनों हाथ आगे की ओर लेते हुए आनंद ने उसको अपनी बाहोंमे ले लिया।
“जी बिलकुल चेंज करना चाहिए। हमने कहाँ रोका है? उल्टा हम तुम्हारी मदद करना चाहते है।” उसकी कंधे पर अपना सर रखते हुए डॉक्टर ने कहा।
“आप भी ना…” संध्या ने उनकी बाहोंसे छूटने की झूठी कोशिश की वैसे डॉक्टर ने उसे और कसकर पकड़ा।
“चले नर्स साहिबा?”
उनकी बातों से संध्या की हंसी निकल आयी। उसने इधर उधर देखा। रूम में सन्नाटा था। वैसे भी किसी के आने की संभावना नहीं थी। इस समय नयी शिफ्ट वाली नर्से अपने अपने वार्ड का राउंड लगाती थी। स्टाफ रूम में कोई भी नहीं रहता।
संध्या ने अपना बैग उठाया। डॉक्टर आनंद की बाँहे अभी भी उसको जखडे हुए थी। उसी अवस्था में संध्या चेंजिंग रूम की और बढ़ी। ये कमरा स्टाफ रूम के अंदर ही बना हुआ था। अपनी पकड़ बरकरार रखते हुए डॉक्टर उसके पीछे पीछे चले गए। कमरा वैसे छोटा था। अंदर जाते ही संध्या ने बत्ती जला दी। कमरे में लगे बड़े आईने में उसको डॉक्टर का चेहरा साफ़ दिख रहा था। उनके चेहरे पे वही शरारती मुस्कान थी।
“अब छोड़ो भी..” अपनी बैग से नर्स वाला यूनिफार्म निकालते हुए संध्या ने कहा।
उसकी गर्दन पे होठों से चूमते हुए डॉक्टर ने अपने हाथों की पकड़ ढीली की। संध्या ने हाथ दुपट्टे की ओर बढ़ाया।
“अरे ये सौभाग्य तो हमें दीजिये जानेमन।” आनंद ने उसके हाथों को रोकते हुए कहा।
डॉक्टर ने हलके हाथों से संध्या के गले का दुपट्टा निकला। भीगने की वजह से वह उसके ड्रेस को चिपक गया था। दुपट्टा निकलते ही संध्या की छाती अच्छे से दिखने लगी थी। बदन को चिपके गीले कपडोने अपना कमाल दिखाया था। उसमे उसके बड़े स्तनोंका आसानी से नजर में आ रहा था। उसको पिछेसे पकड़ते हुए डॉक्टर उसको आईने में देख रहे थे। ये कोई उनका संध्या के साथ पहला वक्त नहीं था। पर हर बार वह उनको उतनी ही आकर्षक लगती थी।
संध्या थोडीसी सांवली थी। वह बहुत पतली नहीं थी लेकिन उसका सुडौल शरीर बहुत ही आकर्षक था। इसीलिए डॉक्टर उसपे फ़िदा थे। जो सुख पति से नहीं मिल पाया वह उसने डॉक्टर आनंद की बाहोंमे खोज लिया था। डॉक्टर को भी अपनी वासना बुझाने का और एक विकल्प मिल गया था।
आनंद ने दोनों बाजूओंसे हाथ आगे आगे बढ़ाते हुए उसके दोनों स्तनोंपर रख दिए। उनके आगे बढ़ते हाथ संध्या ने आईने में देख लिए थे। जैसे ही डॉक्टर ने अपने हाथों से उसके स्तन हलके दबाये, संध्या के मुँह से सिसकारी निकल गयी। आँखे बंद करते हुए उसने अपना सिर आनंद के शरीर पर टिका दिया। उसके गीले बालों मे मोगरे की खुशबू आ रही थी। शायद ये उसकी बालों मे लगे तेल का सुगंध था। उसकी बालों पे अपनी नाक टिकाते हुए आनंद ने वो सुगंध अपने अंदर भर लिया। दोनों हाथोंसे उसको कसकर पकड़ते हुए आनंद ने संध्या की गर्दन को चुम लिया।
डॉक्टर आनंद ने हाथ पीछे की ओर लेते हुए उसकी कमीज़ के हुक खोलना शुरू किया। संध्या उनको आईने में देख रही थी। सारे हुक खोलतेही आनंद ने उसकी कमीज़ को कंधोंके ऊपर से खिसकाया। थोड़ा और निचे खिसकतेही संध्या की सफ़ेद रंग की ब्रा दिखने लगी। आनंद ने कमीज़ निचे सरकाते हुए उसकी कमर से होते हुए पैरोंमें गिरा दी। संध्या उसको उठाने के लिए झुकानेही वाली थी की डॉक्टर ने फिर एक बार उसकी स्तनोंको कसकर पकड़ा। इस बार उसके स्तन दबाते ही ब्रा के ऊपर से बाहर आने के लिए तरसने लगे। ज़मीन पर पड़ी कमीज़ पैरों के निचे आके ख़राब न हो इसलिए संध्या ने उसको पैरोंसे ही दूर खिसकाया। उसे उठानेका मौका शायद उसको मिलने वाला नहीं था।
और समय न बिताते हुए आनंद ने संध्या के कमर की तरफ अपना ध्यान बढ़ाया। उसके पजामे के नाड़े को उन्होंने एक झटके में खोल दिया। नाडा खुलते ही पजामा पैरोंसे फिसलकर जमीन पर जा गिरा। दोनों हाँथ उसकी कमरपे लिपटकर डॉक्टर ने उसको अपनी और खींच लिया। संध्या की शरीर पर अब सिर्फ सफ़ेद ब्रा और नेवी ब्लू कलर की पैंटी थी। डॉक्टर के लिपटने पर संध्या के नितम्ब उनकी कमर पे रगड़ गए। आनंद की पैंट में तने हुए उनके लिंग का अहसास संध्या को हुआ। पैंटी के पतले कपडे में वो उस लिंग की कठोरता आसानीसे महसूस कर रही थी।
डॉक्टर आनंद ने संध्या को घुमाते हुए उसका मुँह अपनी ओर कर लिया। आनंद की नजरों में भरी वासना देख के संध्या की नजर शर्म से झुक गयी। उसकी गालोंपे हाथ रख कर आनंद ने उसका सर उठा लिया और अपने ओठ आगे बढ़ाते हुए उसको हलकेसे चुम लिया। संध्या के बदन में भी आग तेजी से फ़ैल रही थी। जवाब में उसने आनंद के होंठो मे अपने होंठ मिलाये। दोनों ने एक आवेशपूर्ण चुम्बन लिया। आनंद की जीभ संध्या के मुँह में खुलकर घूम रही थी।
संध्या को अपने हाथोंमे कुछ हलकासा गरम महसूस हुआ। उसने आनंद की तरफ देख किया। दुसरेही पल उसको पता चला की वो और कुछ नहीं पर डॉक्टर आनंद का लिंग है। पैंट की ज़िप खोल कर आनंद ने अपना लिंग संध्या की हाथोंमे थमा दिया था। उनका लिंग बहोत कड़क था और गर्म हो चूका था। संध्या ने उसको अपने हाथोंमे सहलाना शुरू किया।
उधर डॉक्टर ने हाथ की ओर लेते हुए उसकी ब्रा के हुक खोल दिए। हुक खुलते ही संध्या के कैद स्तन उछलकर बाहर निकले। दूसरे ही पल आनंद ने ब्रा शरीर से अलग कर दी। संध्या अब उनके सामने अर्धनग्न अवस्था में खड़ी थी। आनंद ने झपटकर उसकी बड़ी स्तनोंपर हमला बोल दिया। दोनों हाथों से वो उसे मसलने लगा। संध्या लगभग अपना होश खो बैठी। उसने दोनों हाथों से आनंद का लिंग सहलाना शुरू किया। उसी स्थिति में डॉक्टर ने फिर एक बार संध्या के होठों से अपने होंठ चिपका दिए। दोनों के शरीर अब गर्म हो चुके थे।
डॉक्टर ने अपने होंठ संध्या की स्तनोंपर रखकर चूसना शुरू कर दिया। उसके बड़े स्तन आनंद के मुँह में आना मुश्किल था। जैसे ही आनंद ने उसके निप्पल को दांतोंके बीच दबाकर हलके से कांट लिया, संध्या के शरीर में बिजली सी दौड़ गयी। आनंद का सिर उसने और जोर से अपनी स्तनोंपर दबा दिया।
स्तनोंको चूसते हुए डॉक्टर ने संध्या की पैंटी कमर से निचे खिसकाई। अब संध्या बिलकुल नंगी हो चुकी थी। आनंद उसके पुरे शरीर को सहलाने लगा। संध्या के बड़े नितम्बों पर हाथ फेरते हुए उसको बहुत अच्छा लगा। जांघों पर हाथ फेरते हुए आनंद ने उसकी योनी को स्पर्श किया। दूसरे ही पल योनी को सहलाते हुए आनंद ने अपनी उंगली अंदर खिसका दी। ख़ुशी से उसकी सिसकारी निकल गयी। आनंद ने जैसे ही उंगली अंदर बाहर करना शुरू किया, संध्या के ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। ज्यादा समय टिकना उसके लिए मुश्किल था। उसके शरीर ने झटके लगाए। आनंद ने उंगली की गति बढ़ायी और अगले ही पल एक जोरदार सिसकारी देते होते संध्या ने पानी छोड़ दिया।
संध्या डॉक्टर की बाँहों में गिर पड़ी। आनंद ने कसकर पकड़ते हुए उसको सहलाया। उसका तना हुआ लिंग संध्या की योनि पर रगड़ रहा था। अब डॉक्टर को और रहा नहीं गया। संध्या के होंठोंको चूमते हुए उन्होंने अपना लिंग उसकी योनी पर रखा। अब वो अंदर प्रवेश करने ही वाले थे की बाहर कमरे में हलचल महसूस हुयी।
“कोई है अंदर?”
बाहर से किसी ने आवाज़ लगायी।
“ये अब कौन आ गया”, डॉक्टर ने पूछा।
“रामलाल होगा। झाड़ू-पोछा करने आता है।” संध्या ने डॉक्टर के बाहोंसे निकलने की कोशिश करते हुए कहा।
कोई जवाब न आने पर रामलाल नर्स रूम में आ गया। हड़बड़ी में संध्या अपने कपड़े ढूंढने लगी।
“शुsss.. आवाज मत करना।” आनंद ने संध्या को इशारा करते हुए कहा। “मैं उसको भगाता हूँ। तुम जल्दी से कपड़े पहनकर निकल जाना।”
तना हुआ लिंग पैंट में कैद करने में आनंद को थोड़ी मेहनत करनी पड़ी। पर बंद ज़िप में भी वो आसानी से नजर आ रहा था। कपड़े ठीक करते हुए वो तुरंत बाहर निकले। उनके बाल थोड़े बिखरे हुए थे।
“अरे डॉक्टर साब आप?”
रामलाल ने झाड़ू लगाना शुरू कर दिया था। यही उसका झाड़ू-पोछा करने का दैनिक समय था। सारी नर्से अपनी अपनी वार्ड में जाने के बाद, रामलाल कमरे की सफाई करता था। डॉक्टर के चक्कर में ये बात संध्या के दिमाग से फिसल गयी थी।
अचानक डॉक्टर आनंद को सामने देखकर वो चौंक गया।
“कितना समय लगेगा तुम्हें यहाँ सफाई करने में?”
“लगभग पंद्रह-बीस मिनट तोह लग जायेंगे।”
“थोड़ी देर चलो मेरे साथ, वहाँ पे कुछ काम है। ये बाद में कर लेना। मुझे तुरंत निकल जाना है।”
“जी डॉक्टर साब।”
रामलाल डॉक्टर के पीछे पीछे चला गया।
जैसे ही रामलाल के जाने की आवाज़ आयी, संध्या ने फटाफट कपड़े उठा लिए। मस्ती में आकर आनंद ने उसे जगह जगह बिखरा दिए थे। पर्स से अपना नर्स वाला यूनिफार्म निकाल कर उसने पहन लिया। डॉक्टर के साथ चली मस्ती से उसकी योनी अभी भी गीली थी। उसको हलकासा सहलाकर उसने पैंटी पहन ली। बड़े स्तन ब्रा में समेटते हुए उसको डॉक्टर के हाथों की कमी महसूस हुयी।
गीले कपड़े वही हुक पे लटकाकर संध्या बाहर आ गयी। कमरे में बिलकुल शांती थी। पर्स ड्रॉवर में रखकर उसने अपना सामान उठाया और अपने वार्ड की तरफ चल पड़ी।
रास्ते में वो डॉक्टर आनंद के कमरे से गुज़री। डॉक्टर ने रामलाल को कुछ फाइलें उठाने के काम लगाया था। उन्होंने संध्या को गुजरते हुए देखा। जैसे ही उनकी नजरे मिली, आनंद ने उसको आँख मारके इशारा किया। होठों से चुम्मे का इशारा करते वक्त उनका हाथ पैंट के ज़िप पर रगड़ा। उनका तना हुआ लिंग अभी भी मस्ती के मूड में था।
हलके से मुस्कुराते हुए संध्या आगे बढ़ गयी।
संध्या जैसे ही आखोंसे ओझल हो गयी डॉक्टर के चेहरे की मुस्कान चली गयी। रामलाल अभी भी फाइलें जुटा रहा था।
“ठीक है, बाकी बचा मैं कल कर दूंगा।” डॉक्टर ने उसको रोकते हुए कहा।
“अरे साब बस हो ही गया है।”
“मुझे अभी निकलना है। तुम जाओ, मैं इसको निपटा दूंगा।”
“जी डॉक्टर साब, जैसा आप कहो।” फाइलें किनारे रखकर रामलाल चला गया।
रामलाल को जिस वजह से लाया था वो काम हो गया था। पर संध्या के साथ अधूरे सेक्स की निराशा आनंद के चहरे पर साफ़ झलक रही थी। अभी भी तना हुआ लिंग पैंट के ऊपर से ही सहलाते हुए आनंद से अपना बैग पैक किया। बैग कंधे पर लगाकर उन्होंने लाईट बंद कर दी और कमरे से निकल पड़े।
गुड़ नाइट डॉक्टर।” रिसेप्शन की लड़की ने उनको अभिवादन किया।
गलियारे में बैठे कुछ पेशंट के रिश्तेदार डॉक्टर को देखकर मुस्कुराये। उनका अभिवादन स्वीकार करते हुए डॉक्टर प्रवेश द्वार की ओर बढे।
बाहर लगभग अंधेरा हो चुका था। बादल अभी भी तेजी से बरस रहे थे। आनंद ने घडी की ओर देखा।सात बज रहे थे। इस समय हलका उजाला रहता था, पर आज बारिश की कारण अंधेरा छाया हुआ था। आसमान में बिजली कड़क रही थी।
आनंद ने बैग सर के ऊपर पकड़ते हुए कार की तरफ दौड़ लगायी। कार तक पहुंचते पहुंचते वो लगभग भीग चूका था। अंदर बैठते ही उसने चैन की सांस ली। गाडी स्टार्ट करके वो घर की ओर निकल पड़ा। बारिश के कारण हवा में ठंड थी। पर ये ठंड रोमॅंटिक एहसास दे रही थी। इसी ख़ुशी में आनंद ने रेडिओ चलाया।
गाडी के मिरर में आनंद ने पीछे छूटता हुआ हॉस्पिटल देखा। तभी उसको संध्या की याद आयी। संध्या के साथ रोमांस करनेका अच्छा मौका रामलाल की वजह से निकल गया था। वो पल याद करके आनंद की पैंट में फिर एक बार हलचल हुयी। तना हुआ लिंग उन्होंने पैंट के ऊपर से ही हलके से सहलाया।
‘आज इसका कुछ करना पड़ेगा’ मन ही मन उन्होंने खुद को बताया।
ज़ोरदार बारिश की वजह से रास्ते पे कोई दिख नहीं रहा था। सारा नज़ारा धुंदला हो गया था। जैसे ही गाडी सिटी सेंटर से बाहर निकाली आबादी धीरे धीरे कम होने लगी। रेडिओ पे किशोर कुमार गा रहा था।
“इक लड़की भीगी भागी सी…” आनंद ने किशोर के सुरों में अपना सुर मिलाया। गुनगुनाते हुए सफर कट रहा था।
अचानक सुमसान रास्ते पर उन्हें दूर दो आकृतियाँ नजर आयी। पल भर के लिए आनंद घबरा गया। सुमसान अंधेरे रास्ते पे अचानक सामने आयी आकृतियोंसे कोई भी डर जाता। जैसे कार आगे बढ़ी, वो आकृतियाँ अब पास आ गयी थी। आनंद ने ध्यान से उनकी ओर देखा। शायद दो महिलायें वहाँ खड़ी थी।
जैसे ही गाडी उनके पास पहुँची, आनंद ने गति धीमी कर दी। वो एक बस स्टॉप था। एक पतली सी छत बारिश से बचने में नाकाम थी। पर शायद कड़कती बिजली में उन्हें वही बड़ा सहारा लगा। आनंद ने ध्यान से देखा। एक २०-२१ साल की लड़की और साथ में एक वृद्ध महिला। जैसे ही गाडी उन्हें पार करके आगे बढ़ी, वो वृध्द महिला फिर से बैठने लगी। शायद किसी मदद की आशा से वो खड़ी हुयी थी।
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