कोमल के लिए यह पहला मौका था जब वह ससुराल में आने के बाद पहली बार घर से बाहर निकल रही थी खुली हवा में सांस लेने के लिए,,, और किसी गैर जवान लड़के के साथ,,, कोमल का दिल जोरों से धड़क रहा था,,, उसे इस बात का डर था कि कहीं कोई देखना नहीं और यह भी चिंता सताए जा रही थी कहीं वो उसके ससुर जल्दी घर पर वापस ना जाए लेकिन फिर भी मन के किसी कोने में उसे अपने ससुर की बिल्कुल भी ठीक नहीं थी क्योंकि जिस तरह की हरकत उसके ससुर उसके साथ कर रहे थे और जिस तरह की बातें उसने रघु के मुंह से सुनी थी उसको लेकर वह अपने ससुर से बिल्कुल भी शर्म करना नहीं चाहती थी,,, इसलिए अपने ससुर का डर होने के बावजूद भी उसे अपने ससुर से डर नहीं लग रहा था,,, घूंघट डाले वह घर से बाहर निकल गई रघु उसे घर के पीछे के रास्ते से ले गया ताकि कोई उन दोनों को एक साथ देख ना ले,,, रघु आगे आगे चल रहा था और कोमल पीछे पीछे,,, रघु का मन ऊंचे आकाश में उड़ रहा था,,, एक बड़े घर की बहू को जो साथ घुमाने के लिए ले आया था,,,,,,
दोपहर का समय था वैसे भी इस समय कड़ी धूप होने की वजह से घर से कोई भी बाहर नहीं निकलता था लेकिन फिर भी रघु अपनी तरफ से पूरी एहतियात बरतना चाहता था क्योंकि वह नहीं चाहता था कि उसकी वजह से कोमल को खरी-खोटी सुननी पड़े,,, देखते ही देखते दोनों घर से काफी दूर आ गए ऊंची नीची कच्ची पगडंडी से होते हुए दोनों गुजर रहे थे,,,कभी रघु आगे चलता तो कभी कोमल उसके पायल की छनक ने की आवाज पूरे वातावरण को और मनमोहक बना रही थी,,, रघु कोमल के पायल की खनक में पूरी तरह से अपने आप को मग्न कर चुका था,,, जब भी कोमल आगे चलती तब रघु की नजर कोमल के गोलाकार नितंबों पर टिक जाती थी जो कि कसी हुई साड़ी में बेहद आकर्षक उभार लिए निखर रही थी,,, रघु को उसके पति पर गुस्सा भी आ रहा था और अच्छा भी लग रहा था क्योंकि अगर उसका पति नकारा ना होता तो शायद इतना अच्छा सुनहरा मौका उसे आज हाथ में लगता ,, आगे-आगे चल रही कोमल की गोलाकार गांड को देखकर रघु का मन बहक रहा था,,, रघु इस सुनसान जगह का फायदा उठाना चाहता था वह कोमल की मर्जी के बिना ही उसके साथ अपनी मनमानी करना चाहता था लेकिन ऐसा करने से उसका मन रोक रहा था,,,,,। वह यही चाहता था कि कोमल अपनी मर्जी से उसका तन मन उसे न्योछावर कर दे,,, क्योंकि यह बात होगी अच्छी तरह से जानता था कि जबरदस्ती से ज्यादा मजा ,,, सहमति से आता है,,,। कोमल के मन में भी रघु के द्वारा बताई गई उसके ससुर की कहानी उसके दिमाग में घूम रही थी,,, और ऊस बात को लेकर उसके बदन में सुरूर सा छा रहा था,,,,,दोनों के बीच किसी भी प्रकार की वार्तालाप नहीं हो रही थी दोनों चुप्पी साधे हुए थे लेकिन रघु इस चुप्पी को तोड़ते हुए बोला,,,।
अच्छा कोमल क्या तुम्हारा घूमने का मन बिल्कुल भी नहीं करता,,,।
क्यों नहीं करता शादी से पहले मैं अपने गांव में अपने घर पर सारा दिन इधर उधर अपनी सहेलियों के साथ घूमती रहती थी नदी में नहाना पेड़ों पर चढ़ाना बेर तोड़ना आम तोड़ना,,,, यही दिन भर का काम था और शादी के बाद ससुराल में आकर सब कुछ जैसे धुंधला सा हो गया लेकिन आज तुमने मुझे फिर से बचपन का दिन याद दिला दिया,,, यह खेत खलिहान,,,, ऊंची नीची पगडंडिया ,,,बड़े-बड़े पेड़,,, यही सब तो मेरी जिंदगी थी,,, लेकिन सब कुछ छुटता चला जा रहा है,,,(इतना कहते हुए वह जैसे ही अपना अगला कदम बढ़ाए ऊंची नीची पगडंडियों पर वह अपने पैर को बराबर नहीं रख पाई और वह फिसल कर गिरने ही वाली थी कि तभी रघु अपना दोनों हाथ आगे बढ़ाकर उसे झट से संभालते हुए पकड़ लिया,,,, लेकिन उसे संभालने के चक्कर में उसके दोनों हाथ कोमल की चूचियों पर पड़ गए,,, और कोमल को सहारा देने के चक्कर में उसे संभालने में रघु की हथेलियों का कसाव ब्लाउज के ऊपर से ही उसकी चूचियों पर बढ़ गया था जब तक कोमल संभल नहीं गई तब तक उसकी दोनों चूचियां ब्लाउज में होने के बावजूद भी रघु के हथेली में थी,,,, पहले तो रघु की प्राथमिकता कोमल को गिरने से बचाने में थी लेकिन जैसे उसे इस बात का एहसास हुआ किउसके दोनों हाथ उसकी चूचियों पर हैं तो वह इस मौके को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था वो जाने अनजाने में ही वह ब्लाउज के ऊपर से ही कुछ सेकेंड तक कोमल की दोनों रसभरी चुचियों को दबाने के आनंद से पूरी तरह से काम बिभोर हो गया,,, लेकिन जैसे ही कोमल को अपनी छातियों पर दर्द का एहसास हुआ ,,, तो उसका ध्यान रखो की हथेलियों की तरफ गया रघु उसकी दोनों चूचियों पर अपनी हथेलियों को रखकर उस पर अपनी हथेलीयो का कसाव बनाए हुए था,,,, कोमल उसका ध्यान उसकी गलती पर दिलाती उससे पहले ही रघु उसे संभाल कर अपने दोनों हाथों को पीछे खींच चुका था,,,। कोमल को लगा कि शायद उससे अनजाने में उसे संभालने के चक्कर में हो गया था लेकिन फिर भी जिस तरह से रघु ने उसकी तो हम सूचियों को ब्लाउज के ऊपर सही दबाया था कोमल पूरी तरह से सिहर उठी थी इस तरह से उसके पति ने कभी उसकी चूचीयो को हाथ तक नहीं लगाया था इसलिए पहली बार रघु के जवान हाथों में अपनी दशहरी आम को पाकर वह पूरी तरह से रोमांचित हो उठी थी,,, दर्द तो हुआ था लेकिन उत्तेजना की सिहरन उसके पूरे बदन में दौड़ने लगी थी,,,, उसके खूबसूरत चेहरे पर शर्म की लालिमा छाने लगी थी,,,। रघु मौके की नजाकत को समझते हुए बात की दिशा को दूसरी तरफ रुख देते हुए बोला,,,।
अच्छा हुआ समय रहते में संभाल लिया वरना गिर जाती,,,
पैर फिसल गया था,,,,
आराम से रखा करो पैर,,, गिरकर चोट लग जाती तो,,,,,, तुम्हें सही सलामत ले जाना और ले आना मेरी जिम्मेदारी है,,,
(रघु कि यह बातें कोमल के कोमल मन पर फूल बरसा रहे थे रघु की बातें उसे अपनेपन का एहसास दिला रही थी,,, इस तरह से एक पति क्या लगता है और बोलता है,,,, ना जाने क्यों रघु की बातें सुनकर कोमल को रघु से अपनेपन का एहसास हो रहा था,,,, वह शर्म के मारे नजरें झुकाए हुए ही बोली,,,।)
तुम हो तभी तो मुझे किसी बात की चिंता नहीं है,,,,
(कोमल के कहने के अंदाज़ का रघु पूरी तरह से कायल हो गया उसे भी कोमल से अपनेपन का एहसास हो रहा था,,,वह मन ही मन खुश हो रहा था,,, और दूर हाथ दिखाते हुए रघु बोला,,,)
वह दिखाई दे रहा है तुम्हारे आम का बगीचा,,,(इतना कहते हुए रघु एक बार फिर से कोमल की छातियों की तरफ घूर कर देखते हुए बोला इस बार कोमल रघु की नजरों की वजह से शर्म से पानी पानी होने लगी,,, लेकिन अनजान बनने का नाटक करते हुए बगीचे की तरफ देख कर बोली,,,)
वाह,,, रघु तुम मुझे बहुत ही अच्छी जगह लेकर आए हो मैं बता नहीं सकती कि मैं कितनी खुश हूं,,,,(कोमल के चेहरे से ही इस बात का आभास हो रहा था कि यहां पर आकर कोमल बहुत खुश थी शायद खेत खलियान बाग बगीचे नदिया तालाब यह सब कोमल की जिंदगी का अहम हिस्सा था जिससे वह बिछड़ती चली जा रही थी,,,दोनों वहीं खड़े बगीचे की तरफ देख रहे थे चारों तरफ बड़े-बड़े आम के पेड़ एकदम घना जंगल की तरह लग रहा था चारों तरफ खेत लहलहा रहे थे,,,, दूर दूर तक आदमी का नामो निशान नहीं था,,, तभी रघुवह पुराना घर दिखाते हुए बोला जहां पर वह लाला को पहली बार गांव की औरत के साथ संभोग का आनंद लूटते हुए देखा था,,,)
देखो कोमल वह घर दिखाई दे रहा है ना,,, वो वही घर है जिसमें लाला गांव की औरत की चुदाई कर रहा था,,,( चुदाई शब्द सुनकर कोमल के तन बदन में हलचल सी होने लगी और रघु ने यह सब्द जानबूझकर बोला था,,,रघु की बात सुनकर कोमल पूरी कुछ नहीं बस उसी दिशा में अपने कदम आगे बढ़ा दिया और पीछे पीछे रघु उसकी गोलाकार गांड को मटकते हुए देखकर गर्म आहे भरता हुआ वह भी उसके पीछे-पीछे चलने लगा,,, कोमल की मटकती गांड देखकर रघु का लंड अकड़ रहा था,, कोमल भी बहुत खुश थी और अजीब सा सुरूर तन बदन को अपनी आगोश में लिए हुए था,,, ठंडी ठंडी हवा चल रही थी बड़े बड़े घने पेड़ होने की वजह से धूप बिल्कुल भी नहीं लग रही थी,,, थोड़ी ही देर में रघु उस घर का दरवाजा खोल कर अंदर प्रवेश करने लगा चारों तरफ धूल मिट्टी नजर आ रही थी और बीच में वह बिस्तर पड़ा हुआ था जिस पर दो तकिया और बिछौना लपेटा हुआ था रघु समझ गया था कि लाला इस बगीचे में बने घर का उपयोग किस काम के लिए करता था,,, और रघु यही बात अपने अंदाज में कोमल को बताते हुए बोला,,,।
कोमल इस खंडहर नुमा घर में बड़े सलीके से रखा हुआ इस बिस्तर का मतलब समझ रही हो,,,,, लाला आए दिन यहां पर नई नई औरतों को लाकर उसकी चुदाई करता था,,,(कोमल की तरफ से किसी भी प्रकार का जवाब सुने बिना ही वह बोला,,,, रघु की बात सुनकर कोमल के तन बदन में कुछ कुछ होने लगा था,,, रघु बेझिझक चुदाई की बातें कर रहा था और इस तरह की अश्लील बातें करते समय उसके चेहरे पर जरा भी घबराहट या शर्म नजर नहीं आ रही थी ,,। रघु बहुत ही रुचि लेकर उसे सब कुछ बता रहा था,,)
कोमल मैं उस खिड़की से देख रहा था ( सामने की खिड़की की तरफ इशारा करते हुए बोला) खिड़की के बाहर जो आम का पेड़ नजर आ रहा है ना मैं उसी पर चढ़ा हुआ था और उस खिड़की में से मैंने जो देखा,,, वही मैं तुम्हें बता रहा हूं,,, यही विस्तर था,,,, इसी पर वह औरत अपनी दोनों टांगे फैला कर लेटी हुई थी ,,,, और लाला उसकी बुर चाट रहे थे,,,,(बुर चाटने वाली बात सुनकर कोमल एकदम शर्म से पानी पानी हो गई वह कुछ बोल नहीं पा रही थी,,,) मुझे साफ साफ नजर आ रहा था लाला उसकी दोनों चूचियों को दबाते हुए अपना लंड उसकी बुर में पेल रहे थे,,,,(रघु की बातें कोमल की दोनों टांगों के बीच चिकोटी काटती हुई महसूस हो रही थी,,,। कोमल को अपनी बुर के अंदर अजीब सी गुदगुदी होती हुई महसूस हो रही थी,,,। रघु की बातें उसके तन बदन में सुरूर पैदा कर रही थी,,, रघु की बातें वह कल्पनातीत कर रही थी,,, वह अपने मन में ही उस नजारे के बारे में सोच रही थी कल्पना कर रही थी कि कैसे उस बिस्तर पर सारा दृश्य खेला गया होगा वह अपनी कल्पना में साफ तौर पर देख पा रही थी उस गांव वाली औरत को जिसे वह जानती तक नहीं थी वह बिस्तर पर लेटी हुई थी और उसके ससुर अपने हाथों से उसकी टांगे फैला रहे थे और देते देते उसके ससुर से दोनों टांगों के बीच की पतली दरार पर अपना मुंह रखकर उसकी बुर चाटना शुरू कर दिए थे,,,, कोमल अपनी सांसो को गहरी होती हुई महसूस कर रही थी जब वह कल्पना में अपने ससुर को उस औरत को चोदते हुए पाती है,,,, कल्पना में उसकी निगाहें अपने ससुर के कमर पर टिकी हुई थी जो कि बड़ी तेजी से आगे पीछे हो रही थी,,,, और उस औरत के चेहरे पर जो उसके ससुर के हर धक्के पर मदहोश हो जा रही थी,,,, उस औरत की बुर में बड़ी तेजी से अंदर बाहर हो रहा उसके ससुर का लंड उसे कल्पना में साफ नजर आ रहा था,,,।
उस दृश्य को कल्पना करके कोमल खुद मदहोश हो जा रही थी,, वह अपने आप को कमजोर होती हुई महसूस कर रही थी उसे इस बात का डर था कि कहीं रघु की बातों से उन्मादक स्थिति में आकर वह भी उसी बिस्तर पर रघु के साथ हमबिस्तर ना हो जाए इसलिए वो जल्द से जल्द इस खंडहर नुमा घर से बाहर निकलना चाहती थी इसलिए वह रघु की बात सुनकर आश्चर्य जताते हुए बोली,,,)
हमें यकीन नहीं हो रहा है कि हमारा ससुर इतना गंदा इंसान हैं,,, हमें तो अब शर्म आने लगी है उसे अपना ससुर कहते हुए,,,,छी,,,,,, इस घर में एक पल भी करना हमारे लिए मुश्किल हो रहा है,,,(इतना कहने के साथ ही वह उस खंडहर नुमा घर से बाहर निकल गई,,,। और रघु भी उसके पीछे-पीछे बाहर आ गया अपनी बातों को कहकर और कोमल की उपस्थिति में वो काफी उत्तेजित हो चुका था जिससे उसके पजामे में तंबू सा बन गया था जिसे वह अपनी हथेली से बार-बार कोमल की नजरों से बचा रहा था लेकिन कोमल की नजर उसके पजामे के अग्रभाग पर पहुंच ही गई और वहां पर बने तंबू को देखकर उसके तन बदन में हलचल सी होने लगी,,,, और कोमल इधर-उधर बड़े-बड़े आम के पेड़ को देखने लगी जिस पर आम लदे हुए थे,,।)
रघु वो देखो कितने बड़े बड़े आम है,,, मुझे आप बहुत पसंद है,,,।
मुझे भी कोमल,,,(रघु कोमल की छातियों की तरफ देखते हुए बोला,,, एक बार फिर से रघु की नजरों से कोमल शर्म से पानी पानी हो गई,,,)
तुम तोड़कर लेकर आओ,,, हमे आम खाना है,,,,
बस इतनी सी बात अभी तोडकर लाया,,,,(इतना कहते हुए वह तुरंत पेड़ पर चढ़ने की तैयारी करने लगा और जैसे ही अपने पैर को पेड़ पर रखा जैसे ही वह कोमल की तरफ देखते हूए बोला)
कोमल तुम्हें भी तो पेड़ों पर चढ़ना अच्छा लगता था ना तो क्यों ना आज अपने मन की मुराद पूरी कर लो एक बार फिर से अपना बचपन जी लो,,,
नहीं नहीं अब हमसे नहीं होगा,,,
क्यों नहीं होगा,,,, होगा जरूर होगा,,,,, तुम कोशिश तो करो,,,, मैं भी तुमको पेड़ पर चढ़ते हुए देखना चाहता हूं क्योंकि मैंने आज तक किसी औरत को साड़ी पहनकर पेड़ पर चढ़ते नहीं देखा,,,, हां लड़कियों को देखा हुं,,,,
(रघु की बात कोमल बड़े ध्यान से सुन रही थी उसे लग रहा था कि जैसे रघु यह देखना चाह रहा था कि उसे पेड़ पर चढ़ना आता है या नहीं इसलिए कोमल को थोड़ा गुस्सा आ गया और वह बोली)
अच्छा तो तुम यह देखना चाहते हो कि हम पेड़ पर चढ़ पाते हैं कि नहीं,,,, तुम्हें हमारी कही गई बात सब झूठ लग रही है ना तो अभी हम दिखाते हैं,,,, रुक जाओ,,,,(इतना कहकर कॉमर्स अपनी साड़ी को पीछे से पकड़ कर उसे ऊपर उठाते हुए अपनी कमर में खोंस ली,,,, यह देख कर रघु के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी जिससे वह अपनी साड़ी को पकड़कर उठाते हुए अपनी कमर में खुशी थी उसकी यह अदा रघु के दिल पर छुरिया चला रही थी,,, रघु का लंड उसकी मदहोश कर देने वाली जवानी को सलामी भर रहा था,,,, कोमल पूरी तैयारी के साथ पेड़ पर चढ़ना शुरू कर दी,,,, दोनों हाथों से पेड़ को पकड़ कर उस पर पांव रखकर चढ़ने की कोशिश करने लगी,,,, रघु के मन में कुछ और चल रहा था उसका दिल जोरों से धड़क रहा था बस बस इंतजार कर रहा था कि कब कोमल पेड़ पर चढ़ जाए,,,पेड़ पर चढ़ते समय किस तरह से अपना बैलेंस बना रही थी उससे उसकी गोलाकार नितंब कुछ ज्यादा ही उभर कर आंखों में चमक पैदा कर रही थी,,,,रघु का मन कर रहा था कि पीछे से जाकर उसे अपनी बाहों में भर ले और उसकी गोल गोल गांड पर अपना लंड रगड़ दे,,,। रघु वही खड़ा गरम आहे भर रहा था,,, कोमल जैसे तैसे करके पेड़ पर चढ़ने लगी,,, तीन चार फीट चढ़ने के बाद उसे थोड़ा मुश्किल होने लगी तो वह रघु की तरफ देखते हूए बोली,,,।
थोड़ा मदद करोगे बहुत दिन गुजर गए पेड़ पर चढ़े इसलिए थोड़ी दिक्कत हो रही है,,,
कोई बात नहीं तुम्हारी मदद करने के लिए तो मैं हमेशा तैयार हूं,,,,(इतना कहते हुए रघु आगे बढ़ा और कोमल को पीछे से सहारा देते हुए उसे ऊपर की तरफ उठाने लगा,,,, कोमल धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगी लेकिन थोड़ी ऊंचाई पर और पहुंचने के बाद उसे थोड़ी और दिक्कत होने लगी रघु उसकी टांग पकड़ कर उसे ऊपर उठाने की कोशिश कर रहा था लेकिन ठीक से उठा नहीं पा रहा था,,,, तो कोमल ही बोली,,,)
क्या कर रहे हो रघु ,,, हट्टे कट्टे जवान हो लेकिन मुझे नहीं उठा पा रहे हो,,,,
(कोमल की बात सुनकर रघु एकदम तेश में आ गया और बोला,,)
उठाने को तो मैं तुम्हें अपनी गोद में उठाकर इधर उधर भाग सकता हूं लेकिन तुम्हारा बदन छुने में मुझे डर लगता है कि कहीं तुम मुझे डांट ना दो,,,,
अरे नहीं डाटुंगी,,,, तुम बताओ मुझे,,,,
(कोमल की इतनी सी बात सुनते ही रघु एकदम से उत्तेजित होता हुआ उसे सहारा देकर ऊपर उठाते हुए सीधे सीधे उसकी गांड को अपनी हथेली से सहारा देकर ऊपर की तरफ उठाने लगा,,,, धीरे-धीरे कोमल ऊपर की तरफ बढ़ रही थी और रघु उत्तेजित हुआ जा रहा था,,, और देखते ही देखते रघुकोमल की बड़ी बड़ी गोल-गोल कांड को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर और जोर लगाते हुए उसे ऊपर की तरफ ऊठाने लगा,,,कोमल को इस बात का अंदाजा तक नहीं था कि रघु उसकी गांड पकड़कर उसे ऊपर उठाएगा इसलिए वह उसे ना डांटने के लिए बोल चुकी थी,,, कोमल के तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी क्योंकि यह दूसरी बार था जब गैर मर्द के हाथों में उसकी चूची के साथ-साथ उसकी गांड भी आ चुकी थी जिसे वह जोर से अपनी हथेली में दबोचे हुए उसे ऊपर उठा रहा था,,,, कोमल का दिल जोरों से धड़क रहा था लेकिन अपने वादे के मुताबिक वह बिल्कुल भी ऐतराज ना जताते हुए पेड़ पर चल रही थी लेकिन अजीब सी कशमकश से गुजर भी रही थी क्योंकि उसे तो अंदाजा भी नहीं था कि रघु इस तरह की हरकत करेगा,,,, कोमल जानबूझकर यह जताना चाहती थी कि उसे रघु की हरकत के बारे में बिल्कुल भी पता नहीं है,,, और वह देखते ही देखते पेड़ पर चढ़ गई,,,, रघु नीचे ही खड़ा था,,, जहां से कोमल एकदम साफ नजर आ रही थी,,, और बिल्कुल साफ तौर पर नजर आ रही थी उसकी साड़ी के अंदर छिपा हुआ उसका खजाना,,, उसका बेहद खूबसूरत बेशकीमती गांड,,,,,आहहहहहहहहहह,,,, देख कर ही रघु के मुंह से गरम आह निकल गई,,, क्या खूबसूरत नजारा था,,,, बेहद अद्भुत और मादकता से भरा हुआ,,, जिस डाली पर कोमल चढ़ी हुई थी ठीक उसी डाली के नीचे रघु खड़ा था और साड़ी के अंदर से झलकता हुआ उसका बेशकीमती खजाने को देखकर मस्त हुआ जा रहा था,,,,,,, साड़ी के अंदर रघु को सब कुछ साफ नजर आ रहा था,,,, उसकी गोलाकार तरबूज जेसी गांड की दोनों फांकों के बीच की गहरी पतली दरार,,,सससहहहहहह,,,,,आहहहहहहहहह,,,,,देख देख कर ही रघु के मुंह से गर्म सिसकारी फूट पड़ रही थी,,,, हालांकि उसे कोमल की गुलाबी पुर नजर नहीं आ रही थी लेकिन पुरानी जगह से हल्के हल्के रेशमी बाल फांकों के बीच से बाहर निकले हुए नजर आ रहे थे,,, रेशमी बाल के गुच्छे को देखकर अनुभवी रघु इस बात का अंदाजा लग गया कि यह रेशमी बाल कोमल के झांट के बाल हैं उसकी बुर पर रेशमी बालों का झुरमुट है,,,,,,, यह एहसास रघु के लंड के अकड़ पन को और ज्यादा बढ़ावा देने लगा,,,, रघु की आंखें सब कुछ साफ देख रही थी,, क्योंकि पहले के जमाने की औरतें कच्छी नहीं पहनती थी,,,इस बात से बेखबर कि नीचे खड़ा रघु उसके बेशकीमती खजाने को देख कर मजा ले रहा है वह आम तोड़ने में ही मस्त हो गई,,, कोमल जो हम अच्छा लगता था उसे तोड़कर नीचे गिरा दे रही थी,,,, कोमल को आम तोड़ता हुआ देख कर रघु को और ज्यादा उत्तेजना का आभास हो रहा था,,,रघु जानबूझकर उसे दूर दूर के आम दिखा रहा था ताकि वह एक दूसरे डाली पर अपने पांव फैला कर रखें और उसे कोमल की टांगों के बीच का खूबसूरत हिस्सा साफ साफ नजर आने लगे और ऐसा हो भी रहा था,,,, रघु का लंड पूरी तरह से टनटनाकर खड़ा हो गया था,,, बेहद मादक दृश्य देखकर रघु को इस बात का डर था कि कहीं उसका लंड पानी ना फेंक दे,,, तभी एक और बड़े आम को तोड़ने के लिए कोमल अपना पैर दूसरी डाली पर रख दी,,, और नीचे देखते हुए रघु से बोली,,,
कौन सा ये वाला आम,,,,(ना कहते हुए जैसे ही हो और उसकी नजरों कै सीधान को समझी,,, वह तो तुरंत शर्म से पानी पानी हो गई,,, उसे समझ में आ गया कि रखो नीचे खड़ा होकर उसकी साडी के अंदर झांक रहा है,,,, दोनों पैर को एक दूसरी डाली पर फैला कर रखी हुई थी और उसे समझ में आ गया था कि जिस स्थिति में वह खड़ी थी नीचे खड़ा रघु उसकी साड़ी के अंदर से सब कुछ देख रहा होगा,,, कोमल को समझ में आ गया कि वह किस लिए उसे पेड़ पर चढ़ने के लिए बोला था,,,। उसे शर्म आ रही थी और वह बिना हम थोड़े यह बोलते हुए उतरने लगी की,,,)
बस इतना बहुत हो गया,,,,(और यह कहते हुए वह नीचे उतर गई नीचे उतर कर वह ठीक से रघु से नजरें नहीं मिला पा रही थी,,,। वह अपने मन में यही सोच सोच कर शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी कि रघु नीचे खड़ा उसके गुप्तअंगो को देख लिया होगा,,)
दो चार और तोड़ दी होती तो,,,,
नहीं नहीं बस इतना काफी है,,,,,
(इतना कहते हुए वह वहीं पर पेड़ की छाया के नीचे बैठ गई और कच्चे आम को दांतों से काट कर खाने लगी,,, रघु से आम खाता हुआ देख कर खुश हो रहा था आम खाते हुए उसका खूबसूरत चेहरा और भी ज्यादा खूबसूरत लग रहा था,,, कुछ देर तक दोनों वहीं बैठे रहे,,,,, अभी रघु का मन भरा नहीं था वह जिस उम्मीद से कोमल को अपने साथ लेकर आया था उसकी उम्मीद अभी पूरी नहीं हुई थी इसलिए वह बोला,,,)
कोमल तुम्हें झरना देखना है ठंडा पानी गिरता हुआ,,, ठंडे पानी में नहाने का कितना मजा आता है,,,
(झरने वाली बात सुनकर कोमल एकदम खुश हो गई,, और वहां चलने के लिए तैयार हो गई रघु उसे झरने की तरफ ले कर जाने लगा जो कि गांव से बाहर पहाड़ियों के बीच में थी,,,)