पल भर में ही रघु की हालत खराब हो चुकी थी ऐसा नहीं था कि पहली बार वह इस नजारे को अपनी आंखों से देख रहा था इससे पहले कि वह अपनी मां के खूबसूरत कथन के लगभग लगभग हर किस्से को देखे चुका था लेकिन अपनी मां के बदन में जिस तरह की लचक मरोड़ और कटाव को देखकर वह उत्तेजित होता था उस तरह से वह किसी भी औरत के खूबसूरत बदन को देखकर उत्तेजित नहीं होता था अपनी मां में उसे कुछ ज्यादा ही उत्तेजनापूर्ण अंगों का एहसास होता था,,,वह सब्जी काटते काटते जिस तरह से अपनी आंखें चौड़ी करके ब्लाउज में से झांक रहे उसकी बड़ी बड़ी चूची को देख रहा था उसे कजरी बेहद खुश नजर आ रही थी मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,,,,, कजरी को लगने लगा था कि उसका पहला वार ठीक निशाने पर जा लगा था,,,, वह उसी तरह से अपनी दोनों टांगों को चोरी करके रोटी दोनों टांगों के बीच से अपने दोनों हाथों को थाली में रखकर आटे को गुंथने लगी,,,, और आटे को गुंथते समय ऊपर नीचे हिलने की वजह से उसकी बड़ी-बड़ी खरबूजे जैसी चुचियों में जैसे जान आ गई हो इस तरह से आपस में रगड़ खाकर हिल रही थी,,, कुछ पल के लिए रघु सब्जी काटना भूल गया था और फटी आंखों से अपनी मां की चूचियों को ही देख रहा था मानो कि जैसे अभी दोनों हाथ आगे बढ़ाकर अपनी मां के ब्लाउज को खोल कर उसकी दोनों चूचियों को अपने हाथ में भरकर दबाना शुरु कर देगा,,,,,,रघु यह बात अच्छी तरह से जानता था कब तक जितनी भी चुचियों को वह देख चुका था उनमें से लाजवाब चुची उसकी मां की ही थी,,,, अपने बेटे को इस तरह से अपनी चुचियों को घूरता हुआ देखकर कजरी बोली,,,।
अरे सब्जी भी काटेगा कि देखता ही रहेगा,,,,
(अपनी मां की बात सुनते ही रघु एकदम से झेंपता हुआ फिर से सब्जी काटने लगा लेकिन चोर नजरों से बार-बार वह अपनी मां की चूची की तरफ देख ले रहा था आखिरकार आंखों के सामने इतना मादक दृश्य जो था भला उस देश से को देखने से वह अपने मन को कैसे मना कर सकता था,,,। बड़ा ही मोहक दृश्य के साथ-साथ मौसम भी बनता जा रहा था,, अंधेरा हो चुका था ठंडी हवा चल रही थी आसमान में धीरे-धीरे बादल छाने लगी,थे,,, बारिश पड़ने के आसार नजर आ रहे थे,,,, कजरी बन में बारिश पड़ने की प्रार्थना भी कर रही थी,,, क्योंकि वह अच्छी तरह से जानते थे कि बरसात के मौसम में तन बदन कुछ ज्यादा ही व्याकुल हो जाता है पुरुष संसर्ग के लिए और यही हाल मर्दों का भी होता है,,,,)
शालू के जाने के बाद मुझे लगता नहीं था कि तू मेरी इतनी मदद करेगा,,,(चूल्हे में सूखी हुई लकड़ी डालते हुए)
तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा था,,,,
वैसे भी तू घर का काम कहां करता था जब कोई काम बोलो तो बहाना बनाकर निकल जाता था लेकिन जिस तरह से तु शालू के जाने के बाद से मेरी मदद कर रहा है मुझे बहुत खुशी मिल रही है,,,,
पहले की बात कुछ और थी मा पहले शालू थी तो मुझे बिल्कुल भी फिकर नहीं होती थी मैं जानता था कि शालू सब कुछ कर देगी लेकिन शालु के जाने के बाद तुम अकेली पड़ गई हो,,,,,,(इतना कहने के बाद वह अपनी मां को गौर से देखने लगा उसकी मां की उसकी आंखों में देखने लगी रघु को यही सही मौका लगा अपनी मां के मन में चल रहे भावनाओं के बारे में जानने के लिए इसलिए वह बेझिझक अपनी मां से बोला) वैसे भी मैं पिताजी के जाने के बाद वर्षों से तुम अकेले ही हो,,,,
(अपनी बेटे के मुंह से इस बात को सुनते ही कजरी थोड़ा सा असहज महसूस करने लगी क्योंकि उसे उम्मीद नहीं थी कि रघु इस तरह का सवाल पूछ बैठेगा फिर भी अपने बेटे के सवाल का जवाब देते हुए वह बोली,,,)
नहीं रे अकेले कहां पड़ गई हूं तू है चालू है तुम दोनों तो हो,,,
यह तो मैं भी जानता हूं मां,,,, लेकिन पिताजी नहीं है इसका तो भरपाई नहीं हो सकता ना,,,,
हां वो तो है,,,,(आटे की लोई बनाते हुए बोली,,,)
कितना कठिन हो जाता है एक औरत के लिए बिना आदमी के जीवन गुजारना,,,(सब्जी काटते हुए रघु बोला,,,)
तु बात तो एकदम ठीक ही कह रहा है,,,, मुझे ही देख ले कैसे मैंने तुम दोनों को पाल पोस कर बड़ा किया,,,,, लेकिन सच कहूं तो तेरा मुझे बहुत सहारा है,,,(रोटी को बेलते हुए बोली,,,)
मेरा सहारा,,,, कैसे,,,?(सब्जी और चाकू को उसी तरह से हाथ में पकड़े हुए बोला)
अरे देखना,,, जो काम तेरे पिताजी को करना चाहिए था वह काम तूने किया,,,
कौन सा काम मां,,,,
अरे तेरी बहन की शादी,,,,अब तूने ही तो सब कुछ तय किया था,,, वरना मैं कहां मालकिन को जानती थी शादी की बात तो तेरे से ही शुरू हुई और देखा चालू अपनी ससुराल है और बड़ी हंसी खुशी से राज कर रही है,,,।
हां सो तो है लेकिन यह तो मेरा फर्ज था,,,,,,
फिर भी रघु इस दौरान तूने अपने बाबूजी की कमी महसूस होने नहीं दिया,,,
कुछ भी हो मा लेकिन उनकी जगह तो नहीं ले सकता ना,,,,
(रघु के कहने का मतलब को कजरी अच्छी तरह से समझ रही थी उसके पति की जगह लेने से उसका मतलब साफ था कि वह उसके साथ हमबिस्तर का संबंध बनाना चाहता था,,,, अपने बेटे की बात का मतलब समझते ही,,, कजरी को अपनी दोनों टांगों के बीच हलचल सी महसूस होने लगी,,, लेकिन कजरी बोली कुछ नहीं,,,, रघु उसी तरह से सब्जी करता रहा,,, ब्लाउज में से झांसी अपनी मां की चूचियों के ऊपर पसीने की बूंदे उपसता हुआ देखकर रघु बोला,,,)
इतनी ठंडी हवा चल रही है फिर भी तुम्हारी उस पर,,,( चुची की तरफ उंगली से इशारा करते हुए) पसीना हो रहा है,,,,
(अपने बेटे की बातें सुनकर उसके ऊंगली का इशारा अपनी चूची की तरफ होता देख कर अपनी चूची की तरफ देखने लगी जिसपर वास्तव में पसीने की बूंदे उपस रही थी,,,)
ओहहहह,,, चुल्हा जल रहा है ना इसकी वजह से,,, जरा इसे पोछ दे मेरे हाथों में आटा लगा है,,,,
(इतना सुनते ही रघु के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,,, वह तुरंत सब्जी छोड़कर घुटनों के बल चलता हुआ अपनी मां की करीब गया और अपनी मां की साड़ी का पल्लू अपने हाथ में लेकर अपनी मां की चूची पर से पसीने की बूंदों को साफ करने लगाअपनी मां की चूची पर हाथ लगाते ही उसके तन बदन में आग लगने लगी उसका लंड खड़ा होने लगा ब्लाउज में से झांक रही खरबूजे जैसी उसकी दोनों चूचियां दशहरी आम की तरह रस से भरी हुई थी जिसे रघु अपने दोनों हाथों में पकड़ कर दबाने के लिए उतावला हो रहा था,,,, कजरी भी अपने बेटे की हाथों का स्पर्श अपनी चूची पर पाते ही मस्त हो गई,,,,उसका दिल तो चाहता था कि अपने हाथों से अपनी ब्लाउज के सारे बटन खोल कर अपनी चूची को तोहफे के रूप में उसके हाथों में थमा दे,,, लेकिन कजरी अभी इतनी बेशर्म नहीं हुई थी,,, धीरे धीरे साड़ी के पल्लू से अपनी मां की चूची पर उपसी हुई पसीने की बूंदों को वह अच्छी तरह से साफ कर दिया,,,,,,,अपनी मां की चूची की नरमाहट को एक बार और महसूस करके वह पूरी तरह से गनगना गया,,,,उत्तेजना के मारे रघु की सांसें तेज हो चली थी जिसका एहसास कजरी को अच्छी तरह से हो रहा था अपने बेटे की हालत पर उसे अंदर ही मजा आ रहा था,,,,,,।
अब देखो अच्छी तरह से साफ हो गया ना,,,,(ऐसा कहते हुए वक्त पीछे की तरफ घुटनों के बल आने लगा तो उसकी मां बोली,,,)
यह तो फिर पसीने से भीग जाएगी,,,,
तो क्या हुआ मैं फिर साफ कर दूंगा,,,,
कब तक साफ करते रहेगा,,,
जब तक तुम्हारी गीली होती रहेगी,,,,(इस बार रघु अपनी मां की चूची के लिए नहीं बल्कि अपनी मां की बुर के लिए बोला था,,, जो की कजरी इतनी नादान नहीं थी कि अपनी बेटी के कहने का मतलब कुछ समझ ना पाए वह अपने बेटे के कहने का मतलब को समझ चुकी थी और उसकी बात सुनकर अपनी बुर में से पानी की बूंद को टपकती हुई महसूस भी की थी वह पूरी तरह से मदहोश हो चुकी थी,,,, वो ज्यादा कुछ नहीं बोली बस अपने बेटे की बात सुनकर बोली,,,)
चल देखूंगी कब तक तु साथ देता है,,,
हमेशा,,,, जब तक तुम संतुष्ट ना हो जाओ,,,,(अपने बेटे की बात सुनकर कजरी रघु कि तरफ आश्चर्य से देखी तो रघु तुरंत अपनी बात को बदलता हुआ बोला,,)
मेरा मतलब है कि जिंदगी भर,,,,
तुझ पर मुझे पूरा भरोसा है,,,,(इतना कहने के साथ गर्मी का बहाना करके अपनी साड़ी को थोड़ा सा और घुटनों के ऊपर ले जाकर बैठ गई जिससे उसकी दोनों टांगों के बीच अच्छा खासा जगह बन गया रघु सब्जी काट चुका था इसलिए एक बहाने से उसे खड़ा करती हो हुए बोली,,)
बेटा जरा लालटेन की रोशनी बढ़ा देना तो,,, कढ़ाई में सब्जी डालनी है,,,,,,(इतना कहने के साथ ही कजरी पास में पड़ी कढ़ाई को उठाकर चूल्हे पर रखने लगी रघु को लगा कि उसकी मां सच में कढ़ाई में सब्जी डालने के लिए उसे लालटेन की रोशनी बढ़ाने के लिए बोली ताकि कढ़ाई में अच्छी तरह से दिखाई दे सके लेकिन जैसे ही वह खड़ा होकर लालटेन की रोशनी को बढ़ाने लगा वैसे ही उसकी आंखें फटी की फटी रह गई क्योंकि उसकी नजर सीधे अपनी मां की दोनों टांगों के बीच साड़ी के बीचो बीच चली गई जिसमें लालटेन की रोशनी में रघु को अपनी मां की कसी हुई और फुली हुई बुर साफ नजर आ रही थी,,, जिस पर हल्के हल्के रेशमी बालों का गुच्छा भी नजर आ रहा था लोगों की तो हालत खराब हो गई पल भर में ही उसकी पजामी का आगे वाला भाग एकदम से तन कर तंबू हो गया कजरी की नजर जैसे यह अपने बेटे पर गई और साथ में उसके तंबू पर गई तो उसके भी होश उड़ गए लेकिन वह मन ही मन खुश हो गई क्योंकि उसकी यह तरकीब काम कर गई थी वो जानबूझकर अपनी दोनों टांगों के बीच जगह बनाकर लोगों को खड़े होकर रोशनी बढ़ाने के लिए बोली थी वह जानती थी कि जब वह खड़ा होगा तो उसकी नजर उसकी टांगों के बीच जरूर जाएगी और ऐसा ही हुआ,,,, कजरी कुछ बोली नहीं बस सब्जी डालकर उसने मसाला डालने लगी वह कुछ देर तक और अपने बेटे को अपनी मदमस्त कसी हुई बुर के दर्शन कराना चाहती थी ताकि रघु पूरी तरह से उसकी बुर देखकर मदहोश हो जाए और जो वह चाहती है वह करने के लिए बिना किसी रोक-टोक के तैयार हो जाए,,,। रघु की तो हालत खराब हो रही थी,,,ठंडी ठंडी हवा में भी उसके पसीने छूट रहे थे,,,, बडा ही मादक दृश्य उसकी आंखों के सामने था,,,वह फटी आंखों से लगातार घूर घुर के अपनी मां की बुर को देखे जा रहा था जो कि,,, साड़ी के पर्दे में कैद होने के बावजूद भी पड़ी साफ साफ नजर आ रही थी,,,,,,, उसके पजामे में अच्छा खासा तंबू बना हुआ था जिसे देख देख कर कजरी ललचा रही थी,,,,,, बस कजरी इस मादक दृश्य पर पर्दा डालना चाहती थी क्योंकि वह धीरे-धीरे पूरी तरह से रघु को उत्तेजित कर देना चाहती थी,,,,,, इसलिए अपनी टांगों को ठीक कर के वह रघु की तरफ देखे बिना ही बोली,,,,
थोड़ा सा तेल देना तो,,,
(और कजरी की आवाज सुनते ही रघु की जैसी तंद्रा भंग हुई हो और वह तुरंत तेल के डिब्बे को लेकर अपनी मां के पास रख दिया और वहीं बैठ गया क्योंकि तब तक उसे इस बात का अहसास हो गया था कि,, उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया है और पजामे में अच्छा खासा तंबू बन गया है इसलिए वह तुरंत नीचे बैठ गया था,,,,,,, रघु पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था और अपने बेटे के हाल पर कजरी मंद मंद मुस्कुरा रही थी वह जानती थी कि उसके बेटे के पजामे में छुपा हथियार कैसा है,,,,,,,क्योंकि बड़ी करीबी से उसने अपने बेटे के लंड को अपने बुर के इर्द-गिर्द महसूस कर चुकी थी,,, इसलिए उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी,,, रघु के हाथों से तेल का डिब्बा लेकर कढ़ाई में तेल डालने लगी और सब्जी को पकने के लिए ढक कर रख दी,,,, दूसरे चूल्हे पर दूसरी कढ़ाई रखकर रोटी बेल कर उस पर रखने लगी,,, रघु पूरी तरह से आवाक् हो चुका था,,,ऐसा नहीं था कि जिंदगी में पहली बार वह किसी बुर के दर्शन कर रहा हो,,,, ना जाने कितनी बार और न जाने कितनी औरतों की बुर चोद चुका था,,, लेकिन जो उत्तेजना जक्ष जो एहसास उसे अपनी मां की बुर देखने पर होता था,,, उस तरह का एहसास उसे किसी की भी बुर देखने में या उस में लंड डालकर चोदने में नहीं होता था,,, रघु पूरी तरह से अद्भुत अहसास से भर चुका था,,,,
कुछ क्षण के लिए दोनों खामोश हो चुके थे,, कजरी इस तरह के पल की विवसता ऊन्मादकता और कमजोरी को अच्छी तरह से समझती थी,,, इसलिए कुछ क्षण तक वह भी खामोश रहना ही उचित समझी,,,, रघु वही पास में बैठा अपनी मां की रसीली बुर की संरचना के बारे में कल्पना करने लगा,,,जबकि वह यह बात अच्छी तरह से जानता था कि औरतों की बुर एक जैसी ही होती है,,,,, फर्क सिर्फ कसाव और ढीलेपन के साथ-साथ बुर वाली के चरित्र का होता है,,,,
माहौल पूरी तरह से ठंडा हो चुका था लेकिन रसोई के दायरे का वातावरण पूरी तरह से उन्मादकता से भरा हुआ था उत्तेजना की गर्मी मां बेटे दोनों को सुलगा रही थी,,, कजरी प्रसन्न होते हुए उसी डिब्बे में से थोड़ा तेल कढ़ाई में डालकर उसमें बेली हुई पुडी को डालकर पका रही थी,,, जो कि थोड़ी ही देर में गर्म होकर फूल गई,,,,,,
तू जानता है की पूडी इतनी फूल क्यों जाती है,,,?(बड़े चमचे से गरम तेल में तेरती हुई पूडी को पलटते हुए बोली,,)
नहीं मैं नहीं जानता,,,,
मैं तुझे बताती हूं जब कोई चीज ज्यादा गर्म हो जाती है तो वह इसी तरह से फूल जाती है,,, जैसे कि यह पूडी,,, और भी ऐसी चीज है जो गरम होने के बाद फुल जाती है,,,(अपने बेटे की तरह मुस्कुराते हुए देख कर बोली)
पुड़ी के अलावा और कौन सी चीज है जो गर्म होने पर फुल जाती है,,,(रघु अपनी मां के कहने की मतलब को अच्छी तरह से समझ रहा था लेकिन वह अपनी मां के मुंह से जानना चाहता था इसलिए वह नादान बनता हुआ बोला)
हममम,,, ऐसी चीज बहुत ही खास लेकिन वक्त आने पर तुझे खुद ब खुद पता चल जाएगा,,,,
भला ऐसी कौन सी चीज है जो वक्त आने पर पता चल जाएगा अभी भी तो बता सकती हो,,,,
तू बड़ा बेसब्रा है,,, थोड़ा इंतजार तो कर समय आने पर मुझे बताने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी,,,,(कढ़ाई में दूसरी पुडी को तलते हुए बोली,,,,, अपनी मां के कहने का मतलब को रुको अच्छी तरह से समझ रहा था और जिस अंदाज में उसने गरम होकर फुलने वाली बात की थी अपनी मां का इशारा अपनी बुर की तरफ,,, एकदम साफ लफ्जो में कहते हुए देखकर वह पूरी तरह से उत्तेजना से भर गया था,,, वह समझ गया था कि उसकी मां बहुत ही जल्द उसके लिए अपनी दोनों टांगे फैलाकर अपनी बुर को उसके आगे परोस देगी,,, अपनी मां की बातों को सुनकर रघु की हालत इतनी ज्यादा खराब हो गई थी कि उसे लगने लगा था कि कहीं उसके लंड की नसें ना फट जाए,,, जिस तरह से उसकी मां दिलासा दे रही थी रघु कुछ और नहीं पूछा सका,,,, बस पूडी को बेलते हुए वह अपनी मां के खूबसूरत चेहरे के साथ-साथ ब्लाउज में हलचल कर रही चूचियों को देखता रहा,,,,,,मां बेटे दोनों उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो चुके थे