Hai photo bhi bich me uplod kiya hota to bahut maja aata
बहुत ही शानदार अपडेट हैरास्ते के लिए प्रताप सिंह की बीवी घर से खाना लेकर आई थी उसे मालूम था कि घर पहुंचते-पहुंचते काफी समय बीत जाएगा और खाने के लिए जरूरी सामान लेना आवश्यक है,,। दोनों पेड़ के घने छांव के नीचे बैठे हुए थे हरी हरी घास का ढेर नरम नरम गद्दे का एहसास करा रहा था,,,कुछ देर पहले जो नजारा रघु ने अपनी आंखों से देखा था उस नजारे को याद करके उसका रोम-रोम उत्तेजना से पुलकित हुए जा रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी रोटी और सब्जी रघु की तरफ बढ़ाते हुए खुद खाना शुरु कर दी रघु भी भूखा था वह भी खाना शुरु कर दिया लेकिन बार-बार उसकी नजर प्रताप सिंह की बीवी के ऊपर चली जा रही थी,,, प्रताप सिंह की बीवी के भी तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी क्योंकि वह इस बात से पूरी तरह से वाकिफ थी कि कुछ देर पहले रघु उसके नंगे बदन को पूरी तरह से देख लिया था,,, जिस तरह से वह लड़की होकर अपने कपड़े बदल रही थी उससे उसे ऐसा ही लग रहा था कि रघु उसकी मदमस्त गांड के साथ-साथ उसकी दोनों टांगों के बीच की रसीली बुर को भी देख लिया होगा जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं था,,, रघु केवल उसके नंगे बदन को देख पाया था उसके बेहतरीन और अनमोल खजाने पर उसकी नजर अब तक नहीं गई थी हालांकि वह पूरी कोशिश किया था प्रताप सिंह की बीवी की दोनों टांगों के बीच झांकने की लेकिन ऐसा अवसर उसे नहीं मिल पाया था,,। प्रताप सिंह की बीवी का मन कर रहा था कि वह उसे से पूछे कि वह नीचे झुककर क्या देख रहा था,,, लेकिन इस तरह की बात एक जवान लड़के से पूछने की उसकी हिम्मत नहीं हुई,,, दोनों खड़ी दोपहरी में ठंडी छांव में शीतल हवा के झोंकों के साथ खाने का लुफ्त उठा रहे थे रघु को तो दोनों भूख लगी थी पेट की भी और एक जवान औरत को भोगने की लेकिन रघु को पूरा विश्वास नहीं था कि उसकी सोच के मुताबिक वह आज प्रताप सिंह जैसे बड़े जमीदार की खूबसूरत बीवी को भोग पाएगा,,,,,, रघू डरते हुए उससे पूछा,,,।
मालकिन,,,,
क्या हुआ रघू,,,,?
मैं यह पूछना चाह रहा था कि आप इतनी खूबसूरत है,,,।
तुम फिर शुरू हो गए,,,,
नहीं नहीं आप सच में बहुत खूबसूरत है मालकिन,,,
तभी तु तांगे के नीचे से झांक रहा था ना,,,(वह एकटक रघु की तरफ देखते हुए बोली रघु उसके मुंह से इस तरह की बात सुनकर एकदम से शर्मा गया,,, और शर्मिंदगी के एहसास से वह इधर-उधर अपना चेहरा घुमाने लगा,, और अपनी तरफ से सफाई देते हुए बोला,,,)
नहीं नहीं मालकिन ऐसी कोई भी बात नहीं है वह तो मेरा कपड़ा नीचे गिर गया था और मैं उसे उठाने के लिए नीचे झुका था,,,
तो कपड़ा उठाकर खड़े हो जाना चाहिए था ना यों नजर गडा कर क्यों देख रहा था,,,
मालकिन अब तो आप बुरा मान रही है,,,, जैसा आप सोच रही है ऐसा बिल्कुल भी नहीं है बस मेरी नजर पड़ गई थी,,।(इतना कहकर वह चुप हो गया,,,,,)
तुम कुछ देखे तो नहीं थे ना,,,,( वह बड़े ही मादक अदा से बोली,,,)
नहीं-नहीं मालकिन में कुछ नहीं देखा था,,,,
कुछ तो देखा ही होगा,,,, तभी तो आंखें फटी की फटी रह गई थी,,,,(वह जानबूझकर इस तरह की बातें कर रही थी वह देखना चाहती थी कि रघु ने उसके बदन का कौन-कौन सा अंग देखा है,,,,)
मैं सच कह रहा हूं मालकीन में कुछ नहीं देखा था,,,बस,,,,बस,,,,(इतना कहकर वह इधर-उधर देखने लगा जैसे कि वह भी कुछ बताना चाह रहा हो लेकिन अंदर ही अंदर से घबरा रहा हो,,,, लेकिन रघू जानबूझकर नाटक कर रहा था,,,तीन तीन औरतों के साथ शारीरिक संबंध बनाकर उन्हें अपने मर्दाना ताकत का गुलाम बना चुका रघु इतना तो जानता ही था कि औरतों को किस तरह से काबू में किया जाता है,,, रघु को इस तरह से हकलाता हुआ देखकर प्रताप सिंह की बीवी बोली,,,)
क्या बस बस लगा रखे हो कुछ आगे भी बोलोगे,,,,
नहीं मालकिन ऐसी कोई बात नहीं है,,,, कुछ नहीं देखा था,,,
लेकिन अभी तो तुम कुछ बताना चाह रहे थे,,,
(उसकी बात सुनकर रघु समझ गया कि वह भी कुछ सुनना चाहती है,, इसलिए वह जानबूझकर घबराहट का नाटक करते हुए बोला,,,)
ऐसी कोई भी बात नहीं मालकिन लेकिन आप जानना चाहती हैं तो मैं बता सकता है कि मैंने आपकी सिर्फ टांगे ही देखी है,,,
और मेरी नंगी टांगों को देख कर ही तुम्हारा यह हाल हो गया है,,,, पता नहीं और कुछ देख लेते तो जाने क्या हो जाता,,,,!(प्रताप सिंह की बीवी गर्म आहें भरते हुए बोली,,, रघु को सब कुछ अपने पक्ष में आता हुआ नजर आ रहा था क्योंकि जिस तरह से वह बातें कर रही थी रघु को यह अहसास हो रहा था कि हलवाई की बीवी और रामू की मां की तरह यह भी अंदर से प्यासी है,,, बस प्यासे को कुवा दिखाना था बाकी सब काम अपने आप हो जाते हैं,,, प्रताप सिंह की बीवी की बात का जवाब देते हुए वह बोला,,,।)
लेकिन सच कहूं मालकिन आप बहुत खूबसूरत हैं,,,,।
(इस बार वह और जोर-जोर से हंसते हुए एक दम मस्त हो गई और हंसते हुए बोली)
मेरी नंगी टांगों को देख कर बोल रहे हो ना,,,,
नहीं नहीं मालकीन नंगी टांगे ही नहीं बल्कि आप का पूरा बदन आपका चेहरा बहुत खूबसूरत है,,,(रघु भी कुछ-कुछ खुलता हुआ बोल रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी अभी भी मुस्कुरा रही थी,,, कुछ देर तक दोनों के बीच फिर से खामोशी छा गई और इस खामोशी को तोड़ते हुए प्रताप सिंह की बीवी बोली,,,)
अच्छा तो रघ6 तुम क्या पूछना चाह रहे थे यह तो तुम बोले ही नहीं,,,
मैं यही पूछना चाह रहा था लेकिन कि आपका नाम क्या है,,,?
सुमन,,,,, सुमन नाम है मेरा,,,,(अपने होठों पर मादक मुस्कान बिखेरते हुए वह बोली,,,)
सुमन,,,, वह कितना खूबसूरत नाम है,,, वरना गांव में तो ललिया,,,, फुलवा,,,,, चमेली ,,,,रानी बस ऐसा ही नाम होता है,,,,( रघु ख्यालों में डूबता हुआ बोला,,,)
तुम्हें अच्छा लगा मेरा नाम,,
बहुत अच्छा है मालकिन मैं तो पहली बार नाम सुन रहा हूं और सच कहूं तो यह नाम आप पर खूब जच रहा है,,,
(जवाब में वह बोली कुछ नहीं बस मुस्कुरा दी,,, थोड़ी ही देर में दोनों खाना खा चुके थे,,,, रघु लोटा लेकर नदी की तरफ गया और वहां से पीने का पानी भर लाया,,, नदी का ठंडा पानी पीकर प्रताप सिंह की बीवी एकदम तृप्त हो चुकी थी लेकिन खाने के बाद की प्यास तो वह बुझा चुकी थी,,, लेकिन रघु के सानिध्य में जो तन की प्यास जाग रही थी वह उसे परेशान कर रही थी,,,,वह एक जमीदार की बीवी थी,, जिसका समाज में इज्जत था,,रुत्बा था,,,और सबसे बड़ी बात संस्कार और मर्यादा से पली-बडी थी,,, इसलिए कुछ ऊंच-नीच ना हो जाए इसका बड़ा ख्याल रखती थी लेकिन आज ना जाने क्यों उसके मन में हलचल सी हो रही थी,,, रघु जैसे जवान लड़के का साथ पाकर वह आज खुली हवा में अपने पंख फैला कर ऊडना चाहती थी,,,।
धीरे-धीरे समय अपनी गति से आगे बढ़ रहा था घने पेड़ की छांव के नीचे बैठे बैठे काफी समय गुजर गया था बार बार चोर नजरों से प्रताप सिंह की बीवी रघू की तरफ देख ले रही थी,,, रघु का जवान हट्टा कट्टा शरीर उसे बेहद लुभावना लग रहा था वह अपने आपको रघु की जवान चौड़ी छातीयों में छुपा देना चाहती थी,,, रघू भी कुछ कम नहीं था,,, वह भी चोर नजरों से जमीदार की बीवी के जवान बदन को देख ले रहा था और मन ही मन उत्तेजित भी हो रहा था,,,,,, दोनों के बीच की खामोशियों को रघु तोड़ते हुए बोला।)
मालकिन आपस में चलना चाहिए काफी समय हो गया है दिन ढलने लगा है,,,
हा तुम ठीक कह रहे हो रघु,,,,(इतना कहकर वह खड़ी हुई और अपने दोनों हाथों से अपने पिछवाड़े पर लगी धूल मिट्टी को झाड़ते हुए बात को आगे बढ़ाते हुए बोली) मुझे नहीं लगता कि समय पर हम घर पहुंच पाएंगे,,,,
यह तो आप जाने मालकिन मैं तो जानता नहीं हूं,,,(इतना क्या कर बताने पर सुखने के लिए रखे कुर्ते को उतार कर पहनने लगा और बात को आगे बढ़ाते हुए बोला) अब चलने के लिए तैयार हो जाइए तब तक मैं घोड़े को पानी पिला देता हूं,,,,(इतना कहकर वह घोड़े को खोलने लगा और उसे खोल कर नदी की तरफ ले जाने लगा,, प्रताप सिंह की बीवी भी सूखने के लिए तांगे पर रखे हुए कपड़ों को समेटने लगी और उसे इकट्ठा करके एक जगह पर रख दी काफी देर हो गए थे इसलिए उसे अहसास होने लगा कि उसे बड़ी जोरो की पिशाब लगी हुई है,,,, और वह भी रघु की तरफ देखकर जो कि इस समय घोड़े को पानी पिलाने में मशगूल था,,,, वह उसी तरह नदी की तरफ जाने लगी,,, नदी के किनारे ऊंची नीची टेकरियां थी,,,जिन की आड़ में वह बैठ कर के साफ करना चाहती थी ताकि रघू कि नजर उस पर ना पड सके,,,, देखते ही देखते वह टेकरी के पीछे पहुंच गई जहां से रघू तकरीबन 3 4 मीटर की दूरी पर ही खड़ा होकर घोड़े को पानी पिला रहा था,,,, उसको यह लग रहा था कि टेकरी की आड़ में बैठकर अगर वह पेसाब करेगी तो रघू को इस बारे में पता नहीं चलेगा,,, और वह अपनी साड़ी को कमर तक उठाकर वहीं बैठ गई पेशाब करने के लिए उसे इतनी जोरो की पिशाब लगी हुई थी कि बैठते बैठते उसके गुलाबी बुरके गुलाबी छेद से पेशाब की धार फुट पड़ी,,,और सर्रर्र्रर्र्र,,,,,, करके वह मूतने लगी,,,, रघु अब तक इस बात से अनजान घोड़े को पानी पिलाने में व्यस्त था कि तभी उसके कानों में ,,, सीटी जैसी मधुर आवाज पड़ने लगी,,,। आवाज जानी पहचानी थी इसलिए वह आवाज की दिशा में देखने के लिए बावला हो गया जो कि उस के बेहद करीब टेकरी के पीछे से आ रही थी,,,,,, घोड़े की लगाम छोड़कर वह उस टेकरी की तरफ धीरे-धीरे बढ़ने लगा क्योंकि उसके मन में अंदेशा हो गया था कि जरूर कुछ बेहतरीन नजारा नजर आने वाला है,,,, चार पांच कदम बढ़ाते हैं उसे जमीदार की बीवी का सर नजर आने लगा,,, रेशमी बालों को लहराते हुए देखकर वह समझ गया कि जमीदार की बीवी मुत रही है,,, इस बात का एहसास ही उसके तन बदन में आग लगा गया,,,, वह एक कदम और आगे बढ़ा कर जमीदार की बीवी के संपूर्ण वजूद को देखना चाहता था और उसका अगला कदम उसके सपनों की राजकुमारी को पेशाब करते हुए दिखा सकता था और उसने वैसा ही किया जैसे ही वह अपना एक कदम आगे बढ़ाया टेकरी के पीछे बैठकर मौत रही जमीदार की बीवी उसे पूरी तरह से नजर आने लगी,,,, रघ8 की नजर सीधे उसकी मदमस्त भारी-भरकम गोल गोल गांड पर गई,,, जो की बैठने की वजह से और ज्यादा गोलाकार और उभरी हुई नजर आ रही थी,,,,वह कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जमीदार की बीवी इतने बड़े घराने की औरत उसे पेशाब करती हुई नजर आएगी और उसकी मदमस्त गांड को अपनी आंखों से देख कर धन्य हो पाएगा,,,, टेकरी पर दोनों हाथ का सहारा देकर अपने सर को थोड़ा सा उठाकर रघु जमीदार की बीवी के संपूर्ण वजूद को देख रहा था उसकी नंगी नंगी गांड रघु के लंड का तनाव बढा रही थी,,,। जमीदार की बीवी इस बात से बे फ़िक्र के पीछे टेकरी का सहारा लेकर रघु उसकी नंगी गांड को और उसे पेशाब करता हुआ देख रहा है वह अपने आप में ही मस्त अपनी पूरी से सहारा पेशाब बाहर फेंक देना चाह रही थी,,, इसलिए तो बार-बार जोर लगाकर मुत रही थी,,,और हर बार जब तक वह जोर लगा दी थी तब तक पेशाब की धार उसकी गुलाबी बुर से बाहर वारे की तरह निकलती थी और हरी हरी घास को भिगो देती थी,,, उसे राहत महसूस होने लगी वह बहुत अच्छे से पेशाब कर चुकी थी,,,रघु को भी लगने लगा कि अब ज्यादा देर तक यहां खड़े रहना उचित नहीं है क्योंकि इस बात की भनक जमीदार को लगते ही कि वह उसकी बीवी को पेशाब करते हुए देख रहा था तो उसकी और उसके परिवार की तरह नहीं होगी,,, इसलिए वह अपना मन मार कर वहां से कदम पीछे ले लिया और तभी जमीदार की बीवी को कुछ आहट महसूस हुई और वह तुरंत खड़ी होकर पीछे की तरफ देखने लगी तो उसे रघु वापस जाता हुआ नजर आया एक पल के लिए तो एकदम से घबरा गए लेकिन दूसरे ही पल उसके होंठों पर मुस्कान आ गई,,,क्योंकि वह समझ गई थी कि उसे पेशाब करता हुआ कोई देख रहा था और इस बात का एहसास उसकी दोनों टांगों के बीच की गुलाबी पत्तियों में फडफडाहट महसूस करा गई,,,,
रघु के पजामे में तंबू बना हुआ था,,, वह जल्द ही घोड़े को तांगे से जोड़ दिया,,,और तांगे पर बैठकर जमीदार की बीवी का इंतजार करने लगा जो कि पीछे ही आ रही थी,,, वह अपने मन में यह सोच रही थी कि उसको पेशाब करता हुआ देखकर रघु के तन बदन में कैसी आग लगी होगी,,क्या उसकी नंगी गोरी गोरी गांड देखकर उसका लंड खड़ा होगा जिस तरह का तंबू नदी में नहाते समय उसके पजामे में बना हुआ था क्या अभी भी वैसा ही तंबू उसके पजामे में बना होगा ,,,यही देखने के लिए वह बेचैन हुए जा रही थी,,,, लेकिन रघु तांगे पर बैठ चुका था,,,, और वो ऊसके पजामे में बने तंबू को देखना चाहती थी,,, इसलिए बहाना बनाते हुए वह बोली,,,।
रघु मुझे जरा तांगे में बैठने में मदद करा दे थोड़ी सी टांग दुखने लगी है,,,,
जी मालकिन अभी आया,,,,(इतना कह कर रखो तुरंत हटाने से उतरकर पीछे की तरफ आ गया और जमीदार की बीवी को तांगे में बैठने मैं मदद कराने लगा,,, जैसे ही रघु पीछे आया और उसकी नजर सीधे रघु के पजामे पर गई जो की पूरी तरह से तंबू बना हुआ था,,, यह देख कर उसकी दोनों टांगों के बीच कंपन महसूस होने लगी वह अंदर ही अंदर प्रसन्न होने लगी,,,, रघु थोड़ा टांगे के बेहद करीब आकर खड़ा हो गया और जमीदार की बीवी उसे कंधे पर हाथ रखकर एक पाव तांगे पर रहती हो उस पर चढ़ने लगी लेकिन वह जानबूझकर उस पर चढ नहीं पा रही थी,,तो वह बोली,,,।
अरे थोड़ी मदद करोगे या ऐसे ही खड़े रहोगे,,,,
जी मालकिन आप कोशिश करो मैं मदद करता हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही जमीदार की बीवी एक बार फिर से तांगे पर चढ़ने की नाकाम कोशिश करते हुए तांगे पर चढ़ने लगी तो अफरा तफरी में रघु उसे सहारा देकर चढ़ाने मैं मदद करते हुए अपना दाया हाथ एका एक सीधे उसकी भारी भरकम गोल गोल गांड पर रखकर उसे लगभग धक्का देते हुए तांगे पर चढ़ाने लगा जैसे ही रघु की हथेली को जमीदार की बीवी अपनी कहां पर महसूस की वह एकदम से गनगना गई ,,, उसे तो समझ में नहीं आया कि रघू यह क्या कर रहा है,,,, उसके हथेली का दबाव अपनी गांड पर महसूस करते हैं उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,,,जब इस बात का एहसास रघु को हुआ कि वह सहारा देने के चक्कर में अपना दायां हाथ उसकी गांड पर रख दिया है तो इस बात का एहसास उसके तन बदन में आग लगा गया,,, वह एकदम से मदहोश हो गया,,,,नरम नरम गांड का स्पर्श भले ही साड़ी के ऊपर से ही उसकी हथेली में हुआ था लेकिन उसके संपूर्ण वजूद को गर्म कर गया था,,,,,, उसके बदन में कंपकंपी सी छाने लगी थी,,,, जमीदार की बीवी तांगे पर बैठ चुकी थी रघू एकदम शर्मिंदा हो गया था लेकिन उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो गया था,,, और यही हाल जमीदार की बीवी का भी था वह भी पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी पहली बार किसी पर आए जवान मर्द की हथेली को अपने गांड के ऊपर महसूस की थी,,,और उसकी हथेली का दबाव उसकी गांड पर भारी हो रहा था लेकिन उसकी दस्तक उसे अपनी बुर की गुलाबी द्वार पर महसूस हो रही थी,,,, ऐसा लग रहा था कि मानो कोई उसे अपनी बुरका द्वार खोलने के लिए मिन्नतें कर रहा है,,,, गिड़गिड़ा रहा है,,,, यह पल दोनों के लिए बेहद अद्भुत था,,,
धीरे धीरे दिन डरने लगा था शाम हो रही थी,,, रघु तांगे को कच्ची सड़क पर ऊंचे नीचे टेकरियो पर से लिए चला जा रहा था,,,,,दोनों में से कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था क्योंकि जो एहसास रघु को हुआ था वही एहसास जमीदार की बीवी को भी हुआ था,,,,देखते ही देखते चारों तरफ अंधेरा छाने लगा जमीदार की बीवी रास्ता अच्छी तरह से जानती थी,,, वह जानती थी कि रात को नहीं जाना जा सकता है इसलिए रघु से बोली,,,,।
रघु कोई अच्छी और सुरक्षित जगह देखकर तांगा रोक दो क्योंकि अब घर पर रात में जाना ठीक नहीं है,,, हम यहीं कहीं अच्छी जगह पर सुबह होने का इंतजार करेंगे और फिर चलेंगे,,,,
जमीदार की बीवी की यह बातें सुनते ही रघु के तन बदन में उत्तेजना कि लहर दौड़ने लगी क्योंकि,,, रात भर जगदार की बीवी के साथ रुकना जो था,,, ऐसा लग रहा था कि भगवान भी शायद उसका साथ दे रहे हैं,,, आज की रात का मौका उसके हाथ में था वह आज की रात कुछ कर गुजरने के चक्कर में था वैसे तो यह ख्याल उसके मन में कब से आ रहा था लेकिन इस बात का डर उसे अंदर ही अंदर सता रहा था कि अगर जमीदार की बीवी ऐसी कोई भी हरकत को अगर अपने पति को बता दी तो उसकी खैर नहीं होगी लेकिन जिस तरह से वह उसकी गांड पर हाथ रखकर उसे तांगे पर बैठने की मदद किया था और इस बात का एतराज उसे बिल्कुल भी नहीं हुआ था इस बात से उसकी हिम्मत बढ़ाने का दी थी उसे लगने लगा था कि शायद हलवाई की बीवी और रामू की मां के साथ-साथ जमीदार की बीवी भी वही चाहती है जो वह चाह रहा है,,,,इस बात का ख्याल रघू के लंड को पूरी तरह से खड़ा कर गया था,,,,,,उसे ना जाने कि वह अपनी किस्मत पर विश्वास होने लगा था कि आज की रात वह अपने मोटे तगड़े लंड को जमीदार की बीवी की बुर में डाल सकेगा,,, यही सोच कर एक अच्छी और सुरक्षित जगह जोड़ते हुए तांगे को धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा और तभी उसे एक सुरक्षित जगह नजर आने लगी,,,, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था और लगभग लगभग आम के बगीचे से होकर गुजर रहा था चारों तरफ बड़े-बड़े पेड़ थे,,,
यह जगह बिल्कुल ठीक हो की मालकिन मैं यही तांगा रोक देता हूं,,,,
जैसा ठीक समझो रघू,,,,,,
(यह कह कर जमीदार की बीवी अपनी सहमति दर्शा दी और रघु तांगा वही रोक दिया,,, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था एकदम सन्नाटा केवल उल्लू की आवाज और कुत्तों के भौंकने की आवाज आ रही थी कोई और समय होता तो शायद इस वीरान जगह पर रघु था वह कभी नहीं रुकता लेकिन उसके मन में हलचल बची हुई थी उसके साथ एक जवान औरत थी और वह भी बड़े घराने की बहू जो कि उस समय तांगे में बैठी हुई थी,,, और रघु उस बड़े घराने की औरत को चोदने के फिराक में इस तरह के वीरान और डरावने जगह पर तांगा रोक दिया था,,,,शायद यही ख्याल जमीदार की बीवी का भी था एक औरत होने के नाते इस तरह से विरान में रुकना बिल्कुल भी ठीक नहीं था,,, लेकिन उसके मन में भी यही चल रहा था जो रघु के मन में चल रहा था,,, जमीदार की बीवी का भी दिल जोरों से धड़क रहा था,,, वह तांगे से बाहर की तरफ झांक रही थी चारों तरफ कुछ भी नजर नहीं आ रहा था बस बड़े-बड़े पेड़ ही नजर आ रहे थे,,,,,, एक औरत होने के नाते उसे डर लगना चाहिए था लेकिन उसे डर बिल्कुल भी नहीं लग रहा था,,, क्योंकि उसके तन बदन में भी जवानी का जोश चढ़ा हुआ था,,,,,, वह तांगे में बैठकर रघु के बारे में ही सोच रहीं थीं,,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि उसे याद आ रहा था जब वह टेकरी के पीछे के साथ कर रही थी तो रघु टेकरी की आड़ में से उसे पेशाब करता हुआ देख रहा था और एकदम उत्तेजित हो गया था इसका अंदाजा उसे तांगे पर सहारा लेने के लिए रघु को बुलाना पड़ा और रघु के पजामे में बने तंबू को देखकर उसे इस बात का एहसास हो गया कि उसकी बातों पर जवानी देख कर रघू पूरी तरह से बावला हो गया है,,, पर वह पल याद आते ही उसकी गुलाबी बुर में खुजली होने लगी जब वहउसके कंधों का सहारा लेकर तांगे पर चल रही थी और उसे चढाने में मदद करने के बहाने उसकी गांड पर हाथ रख दिया था,,,,आहहहहहह,,,, यह ख्याल उसके तन बदन में चिकोटीया काटने लगी,,,, रघु तांगे से नीचे उतर चुका था वह चारों तरफ बड़े ध्यान से देख रहा था कि कहीं कोई जानवर ना हो पैरों के नीचे सांप बिच्छू ना हो,,,, सबसे पहले वह पीछे की तरफ आ कर,,,, तांगे में टंगी लालटेन को जला दिया और लालटेन के चलते ही तांगे के अंदर पूरी तरह से रोशनी फैल गई लालटेन की रोशनी में सबसे पहले वहां जमीदार की बीवी के खूबसूरत मुखड़े को देखने लगा जो कि और भी ज्यादा खूबसूरत लगने लगी थी,,,, रघु सब कुछ भूल कर उसे एकटक देखता ही रह गया,,, रघु को इस तरह से अपने चेहरे को देखता हुआ पाकर वह एकदम से शरमा गई और शर्मा कर दूसरी तरफ नजर घुमा दी,,, उसकी शर्मा हट को देख कर रघू एकदम से उसकी सादगी का कायल हो गया,,,ऐसा लग रहा था कि जैसे वजनदार की बीवी नहीं बल्कि उसकी खुद की नई नवेली दुल्हन हो उसके साथ वह आज की रात सुहागरात मनाने वाला है,,,। दोनों का दिल जोरों से धड़क रहा था जमीदार की बीवी शर्मा रही थी वह सीमटती जा रही थी,,,,, रघु एकदम से मदहोश होता जा रहा था वह धीरे-धीरे अपने चेहरे को उसके करीब लिए जा रहा था,,, रघू सब कुछ भूल चुका था,,,और जमीदार की बीवी शर्म से पानी पानी हो जा रही थी ना कि वह भी यही चाह रही थी लेकिन इतनी जल्दी उसे उम्मीद नहीं थी ,,, क्योंकि जिस तरह से वह उसकी तरफ आगे बढ़ता जा रहा था उसे लगने लगा था कि वह उसे अपनी बाहों में भर लेगा लेकिन तभी घोड़ा जोर से हीनहीनाने लगा तो रघु की तंद्रा भंग हुई और वह घोड़े की तरफ देखने लगा,,, वह अभी भी अपना दोनों पैर ऊपर की तरफ उठा रहा था ,,,, तो जमीदार की बीवी बोली,,,।
जाओ रघू जल्दी से देखो कोई जानवर तो नहीं है,,,,,
(इतना सुनते ही रघु तांगे में टंगी लालटेन तो अपने हाथ में लेकर आगे की तरफ आ गया और लालटेन की रोशनी में चारों तरफ देखने लगा तो उसे एक बड़ा सा काला सांप पास में से गुजरता हुआ नजर आया उस पर जमीदार की बीवी की भी नजर पड़ी और उसका मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया क्योंकि वह सांप बहुत बड़ा था,,,, वह सामने की घनी झाड़ियों में जाता हुआ नजर आया,,,,जब वह सांप चला गया तो घोड़ा भी एकदम शांत हो गया,,, रघु लालटेन लेकर तांगे के पीछे की तरफ आया और बोला,,,।)
मालकिन बहुत बड़ा सांप था इसलिए घोड़ा बिंदक रहा था,,,
हां मैं देखी बहुत बड़ा सांप था,,,,
मैं घोड़े को पेड़ से बांध देता हूं ताकि वह भी आराम कर ले,,,
ठीक है रघू,,,,
(रघु तांगे में से घोड़े को छुड़ाकर पेड़ से बांध दिया,,,,,, रघु के मन में हलचल हो रही थी मैं जानता था कि एक जवान औरत है इस वीराने में उसके साथ बिल्कुल अकेली है,,, पर वह भी बेहद खूबसूरत बड़े घराने की,,, इस बात का एहसास ही उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर बढ़ा रहा था,, यही हाल प्रताप सिंह की बीवी का भी था,,, उसका दिल भी जोरों से धड़क रहा था चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था बड़े-बड़े पेड़ इस अंधेरी रात में भयानक लग रहे थे,,, लेकिन इस वीराने में भी प्रताप सिंह की बीवी सुख ढूंढ रही थी और वह भी तन का जो इस समय उसे रघु ही दे सकता था,,, लेकिन वह ऐसी वैसी औरत तो थी नहीं कि अपने आप से अपने ही मुंह से रघू को उसे तन सुख देने के लिए बोले,,, और आज की रात का ही मौका था उसके पास वह कभी भी अभी तक अपने कदमों को डगमगाने नहीं दी थी एक उम्र दराज जमीदार के साथ शादी करके भले ही उसे अपने पति से दैहिक सुख की संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई थी लेकिन यह सुख वह बाहर भी नहीं ढूंढ़ी थी,,, सिर्फ अपने संस्कारों के बदौलत वह अपनी जिंदगी को जिए जा रही थी,,, लेकिन आज जवान लड़का रघु उसके मन में हलचल पैदा कर गया था,,, बार-बार रघु के पजामें मे बने तंबू को याद करके उसके तन बदन में कपकपी सी फैल जा रही थी,,, खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में,,, जिसका मुख शायद अभी ठीक तरह से खुला भी नहीं था क्योंकि जमींदार में लंड इतना ताकतवर और मोटा नहीं था क्योंकि उसकी गुलाबी पत्तियों को अपना संपूर्ण आकार दे सके और ना ही अब तक वह मां बनने का सुख प्राप्त कर पाई थी इसलिए अभी तक इस उमर में जिस तरह का आकार बुर का होना चाहिए था उस तरह का आकार उसका बिल्कुल भी नहीं था,,,,
हवा सांय सांय करके चल रही थी,,, गर्मी के मौसम में हरियाली पेड़ पौधों से भरा हुआ यह स्थान ठंडक दे रहा था,,, रघु घोड़े को पेड़ से बांध चुका था अब उसके सामने यह प्रश्न था कि सोना कहां है मन तो उसका यही कर रहा था कि वह जमीदार की बीवी के साथ तांगे में ही सो जाए लेकिन ऐसी किस्मत कहां थी कि जमीदार की बीवी के साथ उसे सोने को मिलता ऐसा वह सोच रहा था बल्कि उसका दूसरा मन तो आज उसे चोदने के लिए कर रहा था,,, वह घोड़े को पेड़ से बांधकर,,, तांगे पर चढ़ने लगा उसे आगे की तरफ चढ़ता हुआ देखकर प्रताप सिंह की बीवी बोली,,,,।
रघु सोओगे कहां,,,?
आप बिल्कुल भी चिंता मत करो मालकिन मैं यही सो जाऊंगा,,,,
नहीं नहीं रघू वहां कैसे सो पाओगे वहां तो सोने भर की जगह भी नहीं है,,, एक काम करो तुम भी इधर आ कर सो जाओ,,,
(जमीदार की बीवी की बात सुनते ही रघु का दिल धक्क से कर गया,,, यही तो वह चाहता था,,, लेकिन फिर भी ऊपरी मन से वह इनकार करते हुए बोला,,,)
नहीं नहीं मालकिन भला ऐसे कैसे हो सकता है,,, आप एक जवान औरत है और जमीदार की बीवी है भला मैं आप के बगल में कैसे सो सकता हूं मैं तो आपका मुलाजिम हूं,,,
पागल हो तुम रघू,,, मेरे लिए ऊंच-नीच अमीर गरीब छोटा बड़ा कोई मायने नहीं लगता,,, तुम बहुत अच्छे लड़के हो इसलिए मैं कह रही हूं,,,, अब आ जाओ ज्यादा बातें मत बनाओ,,,,
(उसकी बात सुनकर रघु को ऐसा लग रहा था कि जैसे वह खुद उसे चोदने के लिए बुला रही हो,,, रघु भला क्यों इंकार करता,,, वह मन ही मन प्रसन्न हो रहा था उसके तो हाथों में जैसे लड्डू आ गया हो,,, एक बार फिर से उसका पाजामा पूरी तरह से तन गया,,,, और प्रताप सिंह की बीवी के तन बदन में यह कहते हुए पूरी तरह से उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी ऐसा लग रहा था कि आज की रात से ही कुछ कर गुजरेगी,,, आज की रात का भी भरपूर आनंद ले लेना चाहती थी,,,, रघु तांगे से उतरता हुआ बोला।)
ठीक है मालकिन जैसी आपकी मर्जी,,,,,
(तांगे से उतरकर वह थोड़ी दूर पर जाकर पेशाब करने लगा अंधेरा एकदम घना था इसलिए कुछ भी नजर नहीं आ रहा था,,, रघु को खुद अपना लंड नहीं दिख रहा था हाथ में लेने पर उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसका लंड कुछ ज्यादा ही मोटा और तगड़ा हो गया है,,, अपने लंड को हाथ में पकड़े पेशाब करते हुए नहीं सोच रहा था कि अगर नहीं लैंड प्रताप सिंह की बीवी की बुर में डाल दिया जाए तो वह एकदम मस्त हो जाएगी क्योंकि उसकी बातों से उसकी हरकत से रघु को इतना तो एहसास होने लगा था कि वह तन की प्यासी है,,, भला एक उम्रदराज आदमी अपनी जवान बीवी को तन का सुख कैसे दे सकता है,,, इस उम्र में तो औरते अपने घर के अंदर मोटा तगड़ा लंड की कामना करती हैं,,,,, तांगे में बैठी हुई प्रताप सिंह की बीवीअपनी सांसो पर काबू नहीं कर पा रही थी उत्तेजना के मारे उसकी सास बड़ी तेजी से चल रही थी उसकी कानों में पानी के गिरने की आवाज साफ सुनाई दे रही थी जिससे उसे पता चल गया था कि रघु पेशाब कर रहा है और अपने मन में व कल्पना करने लगी कि कैसे अपना मोटा तगड़ा बाहर निकाल कर मुत रहा होगा,,,, हाथ में लेकर उसका लंड कैसा लग रहा होगा,,,, जब वह उसके मोटे तगड़े लंड को अपने हाथ में लेगी तो उसे कैसा लगेगा,,,, यह सोचकर ही उसका पसीना छूटने लगा,,,, थोड़ी ही देर में रघू पेसाब करके टांगे के पीछे आ गया जहां पर लालटेन की रोशनी में प्रताप सिंह की बीवी एकदम साफ नजर आ रही थी उसका खूबसूरत मुखड़ा एकदम दमक रहा था,,,, उसके खूबसूरत चेहरे को देखते ही रघू के तन बदन में उत्तेजना के शोले भडकने लगे,,,, तांगे पर चढ़ने में उसे शर्म महसूस हो रही थी वैसे तो उसे जोश में आ जाता है था तो औरत पर चढ़ने में उसे शर्म नहीं आती थी लेकिन आज प्रताप सिंह की बीवी के सामने तांगे पर चढ़ने में उसे शर्म महसूस हो रही थी,।,,, प्रताप सिंह की बीवी रघु के हाव भाव को देखकर वह अच्छी तरह से समझ गए कि वह अपने आप को असहज महसूस कर रहा है इसलिए वह उसका हौसला बढ़ाते हुए बोली,,।)
घबराओ मत रघू आ जाओ,,, कभी औरत के साथ सोए नहीं हो क्या,,,,(वह मुस्कुराते हुए बोली रघु अब इतना नादान नहीं रह गया था कि वह उसकी बातों का मतलब समझता ना हो लेकिन वह बोला कुछ नहीं और टांगे पर चढ़ने लगा उसे चढ़ता हुआ देखकर जगह बनाने के लिए प्रताप सिंह की बीवी थोड़ा सा और दूसरी तरफ सरक गई,,,, रघु तांगे पर चल गया था लालटेन की रोशनी में तांगा पूरा जगमगा रहा था,,, तांगा केवल आगे से और पीछे से खुला हुआ था ऊपर से ढका हुआ था जो कि अंदर से बहुत खूबसूरत लग रहा था,,, रघु के अंदर आते ही प्रताप सिंह की बीवी जगह बना कर लेट गई,,, प्रभु की नजर जैसे ही उसके ब्लाउज पर पड़ी वह एकदम से दंग रह गया क्योंकि नीचे के दो बटन खुले हुए थे जिससे लेटने के बाद उसकी दोनों चूचियां पानी भरे गुब्बारों की तरह बाहर की तरफ निकल आई थी,,,आधे से ज्यादा चुचियों नजर आ रही थी बस केवल उसके बीच की निप्पल ब्लाउज के अंदर दबी हुई थी शायद अपने नुकीले पन से ब्लाउज के अंदर अपनी जगह बनाई हुई थी वरना सरक कर पूरी की पूरी चूचियां बाहर आ जाती,,,, यह देख कर रघु के तन बदन में आग लगने लगी उसके पजामे में गदर मचने लगा,,,, प्रताप सिंह की बीवी ने यह हरकत जानबूझकर की थी जब वह पेशाब कर रहा था और उसके पेशाब करने की आवाज कानों में पड़ते ही प्रताप सिंह की बीवी अपने तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ते हुए महसूस की थी और उत्तेजित अवस्था में उसने जानबूझकर अपने ब्लाउज के नीचे के दो बटन खोल दिए थे,, और उसकी यह हरकत रघू पर बराबर काम कर रही थी,,, उत्तेजना के मारे रघु का गला सुख रहा था,,, और वह प्यासी आंखों से जमीदार की बीवी के ब्लाउज की तरफ देखते हुए पीठ के बल लेटने लगा प्रताप सिंह के बीवी को अच्छी तरह से मालूम था की रघु उसकी चुचियों को ही देख रहा है यह देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,,,
दोनों के बीच किसी भी तरह की वार्तालाप नहीं हो रही थी रघु चोर नजरों से सांसो के साथ उठती बैठती,,, जमीदार की बीवी की बड़ी-बड़ी चुचियों को देख रहा था जो कि बेहद मादक तरीके से अपना जलवा बिखेर रही थी,,,तकरीबन 10 मिनट गुजर गए थे लेकिन दोनों के बीच किसी भी तरह की बातचीत नहीं हो रही थी प्रताप सिंह की बीवी अपनी आंखों में भावनाओं का तूफान और हसरत लेकर रघू की तरफ देख रही थी कि रघू कुछ शुरुआत करें,,,, क्योंकि संस्कार के बोझ तले दबी जमीदार की बीवी को पहल करने मैं घबराहट हो रही थी हालांकि उसने रघू के लिए सारे रास्ते साफ करने के साथ-साथ खोलकर भी रख दिए थे,,, रघु की पैनी नजर अपनी चुचियों पर महसूस करके उसका दिल जोरों से धड़क रहा था,,,परघु का मन मचल रहा था उसकी दोनों चूचियों को अपने हाथ में लेकर दबाने के लिए,,, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी वह भी प्रताप सिंह की बीवी को पूरी तरह से उत्तेजित कर देना चाहता था ताकि उसकी गलत हरकत से वह मस्त हो जाएगा और जो वह करें इसे करने दे,,,, इसलिए वह जानबूझकर ऐसी हरकत किया कि जिसे देखकर प्रताप सिंह की बीवी एकदम से गरमा गई,,,,रघु के पजामे में उसका लंड पूरी तरह से खडा हो चुका था और अपने दोनों घुटने मोड़कर पीठ के बल लेटा हुआ था,,, मैं जानता था कि उसके पैर फैलाते ही उसके पजामे में बना तंबू जमीदार की बीवी की नजर के सामने आ जाएगा और इसलिए वह जानबूझकर अपने दोनों पैर फैला दिया,,, और उसके पजामे में बना दमदार तंबू एकदम से किसी सामियाना के तंबू की तरह नजर आने लगा और जमीदार की बीवी की नजर उस के तंबू पर पडते ही वो एकदम से उत्तेजित हो गई,,,वह एकदम से जोश से भर गई उसका मन लालच उठा रघु के तंबू को अपने हाथ से पकड़ने के लिए,,,, और वह अपना एक पैर धीरे से घुटनों से मोड़ दी जिससे उसकी साड़ी सरसराकर जांघों से होती हुई कमर के इर्द-गिर्द आकर इकट्ठा हो गई पलक झपकते ही उसकी मदमस्त गोरी गोरी सुडोल टांग और उसकी मोटी मोटी जांघें लालटेन की पीली रोशनी में चमकने लगी यह देख कर रघु से रहा नहीं गया और वह अपना एक हाथ बढ़ा कर सीधे जमीदार की बीवी के ब्लाउज पर रख दिया जिसमें से उसकी आधी से ज्यादा चूचियां बाहर को झलक रही थी,,,,,, जैसे ही रघू का हाथउसे अपनी चुचियों पर महसूस हुआ उसके मुंह से गर्म सिसकारी फूट पड़ी,,,।
सससहहहहह,,,,,आहहहहहहहह,,,,, रघू यह क्या कर रहे हो,,,,तुम्हें डर नहीं लगता मैं जमीदार की बीवी हूं अगर इस बारे में जमीदार को पता चल गया तो तुम्हारा क्या हश्र होगा,,,(वह सिर्फ बोल रही थी उसे रोकने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं कर रही थी,,, जिससे रघु को पता चल गया कि उसके साथ चाहे कुछ भी करेगा कुछ भी नहीं बोलने वाली और वह अपने मन में यही चाहती है कि वह कुछ करें रघु उसका इशारा समझ चुका था,,, इसलिए मैं रघु बिना डरे ब्लाउज के ऊपर से ही उसकी चूची को दबाते हुए बोला,,,)
मैं अच्छी तरह से जानता हूं मालकिन अगर यह बात मालिक को पता चल गया तो मेरी खैर नहीं होगी शायद वह मुझे जान से मार दें लेकिन मौत तो बाद में आएगी लेकिन उसके पहले जीने का सुख मैं नहीं छोड़ सकता आपकी खूबसूरत और मस्त कर देने वाली सूची को अपने हाथ से दबाने की लालच को मैं रोक नहीं पाऊंगा,,,(रघु अपने एक हाथ से जोर-जोर से ब्लाउज के ऊपर से ही उसकी चूची को दबाते हुए बोला)
क्या तुम्हें मेरी छोटी इतनी अच्छी लगती है,,,
हां मालकिन आपकी चुची बहुत खूबसूरत है,,,,
(एक बड़े घराने की औरत के मुंह से चुची शब्द सुनकर रघु एक दम मस्त हो चुका था,,,,)
तो लो मैं तुम्हें अच्छी तरह से दीखा देती हु,,,,।(इतना कहने के साथ ही वह अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी यह देखकर रघु का दिल जोरो से धड़कने लगा,,,,,रघु को साफ नजर आ रहा था कि अपने ब्लाउज के बटन खोलने में और वह भी उसकी आंखों के सामने उसके चेहरे पर जरा भी झिझक के भाव नजर नहीं आ रहे थे वह एकदम सहज होकर अपने ब्लाउज के बटन खोल रही थी,, पर जैसे ही बाकी के बटन खोल कर अपनी ब्लाउज के दोनों चोरों को पकड़ कर अपनी चूचियों पर से दूर हटाए वैसे ही बेहद खूबसूरत कबूतर अपने पंख फड़फड़ाते हुए मुस्कुराने लगे,,,, रघु तो आंखें फाड़े जमीदार की बीवी की छलकती जवानी को देखता ही रह गया,,,, और वह अपने होठों पर मादक मुस्कान बिखेरते हुए बोली।
कैसे लग रहे हैं,,,,?
बहुत खूबसूरत मालकिन,,,,( इतना कहते हुए रघु अपना एक हाथ आगे बढ़ाकर हल्के से अपनी उंगलियों को उसकी बड़ी बड़ी चूची पर फिराने लगा,,, रघु एक दम मस्त हो चुका था,,ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई अनमोल खजाने को देख लिया हो और उस पर ऊंगलिया स्पर्श करके उसके खरा खोटे होने की तसल्ली कर रहा हो,,, मदमस्त चुचियों को देखकर उसकी चमक रघु की आंखों में साफ नजर आ रही थी,,,,जिस तरह के हाव-भाव रघु के चेहरे पर बदल रहे थे उसे देखकर प्रताप सिंह की बीवी मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,,,,, इस बात का एहसास हो रहा था कि पहली बार कोई औरत के इन अंगों को देखता है तो शायद इसी तरह के हाव-भाव उसके चेहरे पर बदलते रहते हैं जिस तरह के हाव-भाव रघु के चेहरे पर बदल रहे थे,,, रघु से रहा नहीं गया और वह उसकी चूची को हल्के हल्के से स्पर्श करते हुए अपना दूसरा हाथ भी आकर बढ़ाकर दोनों चुचियों को दोनों हाथ में लेकर जोर से दबा दिया,,,, अपनी हथेली का दबाव इतनी जोर से लगाया था कि उसके मुंह से आह निकल गई,,,,
आहहहहहह,,, रघु थोड़ा धीरे,,,,
धीरे से दबाने लायक वह चीज नहीं है मालकिन,,,,
तो,,,,,,( वह आश्चर्य जताते हुए बोली)
इस पर तो पूरा जोर लगा कर इससे खेलना चाहिए,,,,(रघु अपने दोनों हाथों में उसकी चुचियों को लिए हुए बोला)
दर्द होता है,,,,
दर्द में ही तो मजा है मालकीन,,,,
मैं कुछ समझी नहीं,,,,,
अगर आप इजाजत दें तो मैं समझा भी सकता हूं,,,,
अपने हाथों से अपने ब्लाउज के बटन को खोलती हूं अब इससे ज्यादा तुझे किस बात की इजाजत चाहिए,,,,
ओहहहह,,,, मालकिन,,,,,(इतना कहने के साथ ही रघु जमीदार की बीवी की मदमस्त झलकती जवानी पर टूट पड़ा वह अपने दोनों हाथों से उसके दोनों दशहरी आम को जोर-जोर से दबाते हुएउसके चेहरे की तरफ देखने लगा वह लालटेन की रोशनी में उसके चेहरे पर बदलते भाव को देखना चाहता था,,,। रघु को साफ दिखाई दे रहा था किउसके चेहरे पर दर्द के भाव दिखाई दे रहे हैं लेकिन रघु चाहता था कि उसके चेहरे पर दर्द के नहीं बल्कि आनंद के भाव नजर आए इसलिए वह अपना मुंह आगे बढ़ा कर उसके एक दशहरी आम को अपने मुंह में भर कर चूसना शुरू कर दिया,,,,।
आहहहहहह,,,,,सहहहहहहहहह,,,,, रघू,,,,,,( वह एकदम से मस्ती भरी सिसकारी लेते हुए बोली,,, रघु की हरकत काम करने लगी थी,,,, रघू एकदम माहिर हो चुका था,,, रघु के हाथ में प्रताप सिंह की बीवी की चूचीया आते ही अपना रंग बदलना शुरू कर दी थी,,,,थोड़ी ही देर में रघू उन्हें दबा दबा कर और उनको मुंह में भर कर पी पी कर लाल कर दिया था,,,। प्रताप सिंह की बीवी हाथ की कोहनी का सहारा लेकर लेटी हुई थी और रघु भी लेटा हुआ था लेकिन वह पूरी तरह से जमीदार की बीवी पर छा गया,,, था,,। थोड़ी ही देर में तांगे के साथ-साथ उस वीरान जगह पर प्रताप सिंह की बीवी की मादक सिसकारियां गुंजने लगी,,,,जिस तरह से रघु उसकी चूचियों से खेल रहा था उस तरह से उसके पति प्रताप सिंह ने कभी भी उसकी चुचियों के साथ खेलना मुनासिब नहीं समझा,,,उन्हें बस एक ही काम आता था औरत के ऊपर चढ़ जाना और 2 मिनट में काम खत्म करके बगल में लेट जाना औरतों के बदन के साथ किस तरह से खेला जाता है किस तरह से उन्हें सुख दिया जाता है इस बारे में प्रताप सिंह बिल्कुल ही अनजान था,,, लेकिन रघु एकदम उस्ताद थाऔरतों के बदन के साथ खेल से खेला जाता है कैसे उन्हें सुख किया जाता है यह उसे अच्छी तरह से आता था,,, दोनों की सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी,,,,प्रताप सिंह की बीवी को मजा आ रहा था आनंद की ऐसी पराकाष्ठाउसने कभी भी अपने अंदर महसूस नहीं की थी जिस तरह की पराकाष्ठा रघु उसे महसूस करा रहा था,, वह मदहोश होने लगी पहली बार उसे ज्ञात हो रहा था कि औरतों के चुचियों से मर्द इस तरह से भी खेलते हैं,,, रघू के दोनों हाथों में प्रताप सिंह की बीवी के दोनों कबूतर जी जान से फड़फड़ा रहे थे,,,
कैसा लग रहा है मालकिन ,,,,,,(पल भर के लिए वह उसकी चूची से मुंह उठाकर ऊपर की तरफ देखते हुए बोला)
बहुत अच्छा लग रहा है रघु,,,, बहुत मजा आ रहा है,,,( वह एकदम मदहोश होते हुए मादक स्वर में बोली उसकी आंखें बंद हो रही थी जिससे साफ पता चल रहा था कि वह आनंद की पराकाष्ठा का अनुभव कर रही है उसे साफ महसूस हो रहा था कि उसकी बुर में से मदन रस बह रहा है,,, पर ऐसा तभी होता था जब वो एकदम से काम भावना से ग्रस्त हो जाती थी और आज ऐसा ही महसूस करके एकदम मस्त हुए जा रही थी,,,। अपनी मालकिन का जवाब सुनकर रखो फिर से दोनों खरबूजा पर टूट पड़ा रघु यही अदा औरतों को उसका दीवाना बना देती थी क्योंकि वह उनकी चुचियों के साथ जी भर के खेलता था इतना कि उन्हें इस बात का अहसास तक नहीं होता था कि कब उनकी बुर पानी छोड़ने लगी,,,,प्रताप सिंह की बीवी की बुर से इतना पानी निकलने लगा था कि उसकी पेटीकोट भीगने लगी थी,,,, कुछ देर तक उसकी चुचियों के साथ खेलने के बाद रघु थोड़ा सा अपने आपको विराम दे कर अपनी मालकिन के चेहरे को देखने लगा उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव नजर आ रहे थे उसे आनंद आ रहा था उसकी आंखें बंद थी रेशमी बालों की लट उसके चेहरे पर आ रही थी जिससे उसका चेहरा और खूबसूरत लग रहा था लालटेन की रोशनी में उसका गोरा मुखड़ा एकदम दमक रहा था,,,, रघू अपनी खूबसूरत मालकिन को एकदम नग्नवस्था में देखना चाहता था,,,,कपड़ों में जब वो इतनी खूबसूरत लगती थी तो वह अपने मन में ही सोच रहा था कि बिना कपड़ों के वह कितनी खूबसूरत लगती होगी इसलिए अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर उसके ब्लाउज को उसके कंधों से नीचे की तरफ सरकाने लगा,,, रघु को अपना ब्लाउज उतारता हुआ देखकर वह अपने बदन को एकदम ढीला छोड़ दी ताकि रखो आराम से उसके ब्लाउज को उसके बदन से अलग कर सके,,,, यह पूर्ण सहमति थी जिससे रघु एकदम खुश नजर आ रहा था देखते ही देखते वह उसके बदन पर से ब्लाउज को उतारकर तांगे में एक कोने पर रख दिया,,,, कमर के ऊपर बाइक दम से नंगी हो गई उसकी मां की मस्त चूचियां पानी भरे गुब्बारों की तरह छातियों पर लहरा रही थी जिसे देखकर एक बार फिर से उसके मुंह में पानी आ गया और वहां अपना दोनों हाथ आगे बढ़ाकर फिर से उन्हें अपने हाथों में थाम कर उन्हें दबाना शुरू कर दिया,,,,प्रताप सिंह की बीवी के मुख से एक बार फिर से गर्म सिसकारी की आवाज निकल पड़ी,,, वह मन ही मन में चाहती थी कि रघु इससे ज्यादा आगे बढ़े साथियों से शुरू किए गए खेल को वह उसकी दोनों टांगों के बीच आकर खत्म करें,,, लेकिन रघु के मन को वह समझ नहीं पा रही थी रघु जी जान लगाकर हद से ज्यादा औरतों के हर एक अंग से खेलता था उन्हें इस बात का एहसास दिलाता ताकि उनके बदन का हर एक अंग मर्दों के लिए उत्तेजना और आनंद की सीमा को तय करते हैं और हर एक मर्द अपनी सीमा में रहकर औरतों के हर एक अंग से खेलता था लेकिन रघु की बात कुछ अलग थी वह हद से ज्यादा औरतों के अंगों से खेलता था चाहे भले वह चूची हो उनकी बड़ी बड़ी गांड हो या रसीली बुर हो,,,, प्रताप सिंह की बीवी अपने आप को रघु की आंखों के सामने अर्धनग्न अवस्था में पाकर शर्म से गड़ी जा रही थी,,,,क्योंकि उसे इस बात का एहसास भी अच्छी तरह से हो रहा था कि दोनों की उम्र की सीमा एक बराबर बिल्कुल भी नहीं थी,,, कुछ ना कुछ उम्र की सीमा यह तय कर रही थी कि रघु उसके बेटे जैसा ही था लेकिन जिस्म की प्यास के आगे उम्र की कोई सीमा नहीं होती,,,,,,
रघु पागल हुए जा रहा था अपनी मदमस्त खूबसूरत जवानी से भरी हुई मालकिन के कपड़े उतारते हुए उसे अद्भुत सुख का अहसास हो रहा था पजामे में उसका लंड गदर मचाए हुए था,,, अपनी मालकिन के गुलाबी होंठ देखकर उसके मुंह में पानी आने लगा और वह अपना मुंह आगे बढ़ा कर उसके होठों पर अपना हॉट रखकर चूसना शुरू कर दिया प्रताप सिंह की बीवी के लिए बिल्कुल नया अनुभव था क्योंकि आज तक उसके पति ने उसके होठों पर इस तरह से चुंबन नहीं किया था एकदम मदहोश होने लगी आंखें बंद थी जिसे खोलने की हिम्मत शायद अब ऊसमें बिल्कुल भी नहीं थी और अब उसे नज़रें नहीं मिला पा रही थी एक जवान लड़के को इस तरह से अपने होंठों को चूसता हुआ पाकर वह मदहोश हुए जा रही थी,,, उसे शर्म भी आ रही थी,,,, रघु पागलों की तरह उसके होठों का रसपान कर रहा था और एक हाथ से उसकी चूची को भी दबा रहा था,,,, ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी चुचियों में ही सारा रस छुपा हुआ है,,,, देखो पागल हुए जा रहा था एक जवान औरत और वो भी बड़े घराने की उसकी बाहों में थी,,,,वह कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इतने बड़े घराने की औरत का सुख वह भोग पाएगा,,,वैसे भी उसकी किस्मत बड़ी तेज चल रही थी सबसे पहले हलवाई की बीवी उसके बाद रामू की मां और उसके बाद खुद की बड़ी बहन और आप जाकर एक बड़े घराने की एक जमीदार की औरत जो इस वीराने में घने जंगल के बीच उसे शरीर सुख दे रही थी,,, रघु प्रताप सिंह की बीवी का हाथ पकड़कर उसे धीरे-धीरे नीचे की तरफ लेकर आया और सीधे अपने पेंट में बने तंबू पर रख दिया,,यु एका एक रघू के तंबू पर हाथ पडते ही ,, एकदम से घबरा गई और घबराकर अपना हाथ पीछे खींच ली तो रघू एक बार फिर से उसका हाथ पकड़ कर अपने तंबू पर रखते हुए बोला,,,।
डरो मत मालकिन मेरा लंड है यही तो वह अंग है जिसे औरत सबसे ज्यादा पसंद करती है और उससे खेलने के लिए दिन रात मचलती रहती है,,,,यही लंड अगर आप इजाजत देंगी तो थोड़ी देर बाद तुम्हारी बुर के अंदर होगा तुम्हारी बुर की गहराई नाप रहा होगा,,,,(रघु एकदम बेशर्मी बनता हुआ बोला रघुवीर तरह की बातें प्रताप सिंह की बीवी के तन बदन में हलचल पैदा कर रही थी पहली बार वह ईतनी गंदी बातें अपने लिए सुन रही थी,,,,लेकिन उसे बुरा नहीं लग रहा था उसे तो रघू की बातें सुनकर मजा आ रहा था,,,।और इस किस तरह की गंदी बातें सुनकर उसका मदहोशी छाने लगी और इस बार वह रघु के तंबू पर से अपना हाथ नहीं हटाई करके उसे पकड़कर दबाने लगी,,, प्रताप सिंह की बीवी को मजा आ रहा था पहचाने के ऊपर से ही रघू के लंड को दबाते हुएउसे इस बात का एहसास हो गया कि रघु का हथियार कुछ ज्यादा ही तगड़ा है,,,, इसलिए वह धीरे से शरमाते हुए बोली,,,।)
रघु तुम्हारा तो ज्यादा ही मोटा और लंबा है,,,
क्यों मालकिन मालिक का ऐसा नहीं है क्या,,,?
नहीं उनका तो इससे आधा भी नहीं है,,,
तब तो मालिक तुम्हें चुदाई का पूरा सुख नहीं दे पाते होंगे,,,
मुझे क्या पता रघू,,,, शायद मे असली सुख से वाकिफ नहीं हो पाई हूं,,,,
चिंता मत करो मालकिन आज तुम्हें असली सुख में दूंगा आज तुम्हें चुदाई का ऐसा सुख दूंगा कि तुम जिंदगी भर याद रखोगी,,,,(रघु की मस्ती भरी औ सांत्वना भरी बातें सुनकर वर्षों से मदहोश होते हुए बोली,,)
ओहहह रघु तुम कितने अच्छी हो,,,,(इतना कहने के साथ ही वह इस बार खुद रघू के होंठों को अपने होंठों में भरकर चुसना शुरु कर दी,,, दोनों एक दूसरे के होंठों का रसपान करने में एकदम मगन हो गए,,,, प्रताप सिंह की बीवी पजामे के ऊपर से ही रघु के लंड से खेल रही थी और रघु धीरे से अपने पजामी की डोरी खोल दिया और प्रताप सिंह की बीवी का हाथ पकड़ कर उसे अपने पजामे में डाल दिया,,, रघु का मोटा तगड़ा नंगा लंड हाथ में आते ही प्रताप सिंह की बीवी एकदम से सिहर उठी लेकिन वह रघू के लंड को छोड़ी नहीं बल्कि और मजबूती से पकड़ ली,,, इतनी जोर से कि रघु के मुंह से आह निकल गई,,,। जवान औरत के हाथों से इस तरह से नींद दबाने पर रघु को आनंद ही आनंद प्राप्त हो रहा था,,,, रघु की हालत खराब हुए जा रही थी पर जल्द से जल्द प्रताप सिंह की बीवी को एकदम नंगी कर देना चाहता था इसलिए अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसकी साड़ी को नाभि के नीचे से खोलना शुरू कर दिया,,,,और देखते ही देखते रघु प्रताप सिंह की बीवी की साड़ी को उतार कर तांगे में एक कोने पर रख दिया,,,। प्रताप सिंह की बीवी का दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि उसे मालूम था कि उसे उसे पूरी तरह से नंगी करने वाला है उसकी जिंदगी में यह दूसरा मर्द था जिसके सामने वह पूर्ण रूप से निर्वस्त्र होने जा रही थी,,,, जिसे वो खुद अपने हाथों से उसके कपड़े उतार कर नंगी करने जा रहा था अपनी मालकिन की आंखों में झांकते हुए उसके पेटीकोट की डोरी को खोलने लगा,,, प्रताप सिंह की बीवी की आंखों में शर्म नजर आ रही थी,,,हालांकि अभी भी उसके हाथ में रघू का मोटा तगड़ा लंड था जिसे वह जोर-जोर से दबा रही थी,,,।उसका लंड इतना ज्यादा कड़क हो चुका था कि लग ही नहीं रहा था कि वह हाड मास का बना हुआ है ऐसा लग रहा था कि वह लोहे की छड़ हो।
देखते ही देखते रखो लालटेन की रोशनी में मदहोश मत मस्त जवानी के कमर से पेटीकोट की डोरी को खोल दिया और उसे दोनों हाथों से पकड़कर नीचे की तरफ खींचने लगा तो भारी-भरकम नितंबों के नीचे पेटीकोट तभी होने की वजह से नीचे नहीं आ रही थी तो प्रताप सिंह की बीवी खुद उसकी मदद करते हुए अपनी भारी-भरकम गांड को थोड़ा सा ऊपर की तरफ उठा दी और रघु मौका देखते ही अपने दोनों हाथों से ऊसकी पेटीकोट खींचकर तुरंत उसकी मोटी मोटी चिकनी जांघों से होती हुई उसकी टांगों से पेटिकोट निकाल कर उसे भी कोने पर रख दिया,,अब प्रताप सिंह की बीवी जमीदार की बीवी बड़े घर की औरत लोगों के सामने एकदम नंगी लेटी हुई थी रघु लालटेन की रोशनी में उसके गोरे बदन को दमकता हुआ देख रहा था,, रघु की आंखों में उसकी मदमस्त गोरी जवानी देखकर एकदम चमक आने लगी वह मदहोश होने लगा और ऊपर से नीचे की तरफ देखते हुए वह बोला,,,,।
वाहमालकिन आप तो बहुत खूबसूरत है ऐसा लग रहा है कि जैसे स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा मेरे तांगे में आकर बैठ गई है,,,(रघु की बात सुनकर प्रताप सिंह की बीवी शर्मा गईरघु अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उसकी दोनों टांगों को पकड़कर उसे हल्का सा खोलते हुए बोला) देखने तो दो मालकिन जिस चीज को देखने के लिए मैं तड़प रहा था वह चीज कैसी दिखती है,,,,(इतना कहकर वह अपनी मालकिन की दोनों टांगों को खोल दिया,,, टांगों के बीच उसकी मदमस्त फुली हुई बुर को देखकर एकदम बदहवास हो गया,,,वह तो उसे देखता ही रह गया उसका मुंह खुला का खुला रह गया था उत्तेजना के मारे प्रताप सिंह की बीवी की बुर तवे पर गर्म रोटी की तरह खुल चुकी थी जिसके एक दिखी रे रेशमी बालों का गुच्छा था लेकिन गुच्छे के बीच उसकी मखमली गुलाबी बुर बेहद हसीन लग रही थी,,। रघु तो उसे देखकर एकदम पागल हो गया था और प्रताप सिंह की बीवी की हालत खराब हो रही थी क्योंकि उसे अच्छी तरह से मालूम है कि इस समय रघु उसकी बुर को ही देख रहा है,,,
रघु अपनी लालच को रोक नहीं पा रहा था और अपना ही कहा था आगे बढ़ाकर उसकी गुलाबी बुर की गुलाबी पत्तियों को अपनी उंगली से छूकर उसे देखने लगा,,, जिसमें से मदन रास्ते रहा था और उसकी कुछ बोल दे उसकी उंगली पर लग गई और वह उंगली को अपने होठों पर रखकर उसे जीभ से चाटने लगा यह देखकर प्रताप सिंह की बीवी एकदम से शर्म से पानी पानी हो गई,,,,,
मालकिन आपकी बुर तो पानी छोड़ रही है,,,(इतना कहने के साथ ही रघुअपना मुंह के दोनों टांगों के बीच ले गया और उसकी बुर को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया,,,,,प्रताप सिंह की बीवी एकदम से मदहोश हो गई रघु की हरकत की वजह से उसके मुख से गरम सिसकारी फूट पड़ी तो कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि कोई अनजान जवान लड़का उसकी बुर को चाटेगा,,, लेकिन हकीकत तो यह था कि उसे इस बात का पता ही नहीं था कि औरत की बुर चाटी भी जाती है,,,,जब तक उसे इस बात का एहसास हुआ तब तक रघु उसके ऊपर पूरी तरह से छा चुका था मैं पागलों की तरह अपनी जीभ जितना अंदर जा सकती थी उस ना अंदर बुर के अंदर उतार देता था और जीभ से उसके मदनरस को चाट रहा था,,।
आहहहहहह,,,सीईईईईईईईई,,,आहहहहहहह,,,, रघू,,,आहहहहहहह,( प्रताप सिंह की बीवी अपने दोनों हाथ से उसका बाल पकड़कर उसको और जोर से अपनी बुर पर दबा रही थी उसे मज़ा आ रहा था उसने कभी सोची भी नहीं थी कि इस तरह का आनंद भी मिलता है रघु से पूरी तरह से मस्त कर रहा था देखते ही देखते वहां एक साथ अपनी दो उंगली उसकी बुर के अंदर डाल दिया,,,,,
आहहहहह,,,, रघु दर्द हो रहा है,,,,(दो उंगली बुर के अंदर जाने की वजह से वह कराहते हुए बोली,,,)
चिंता मत करो मालकिन थोड़ी देर में मजा आने लगेगा ( वह अपनी दो उंगली जोर-जोर से अंदर बाहर करना शुरू कर दिया उसे मज़ा आ रहा था वह पूरी मस्त हुए जा रही थी रघु उसकी बुर में अपनी दो उंगली जानबूझकर डाल रहा था वह अपने लंड के लिए जगह बना रहा था,,, प्रताप की बीवी एकदम मस्त हुए जा रही थी उत्तेजना के मारे अपनी कमर को ऊपर की तरफ उठा दे रही थी,,,,रघु को समझती थी और नहीं लगी कि लोहा गर्म हो चुका है बस हथोड़ा मारने की देरी है,,, क्योंकि जिस तरह का जोशप्रताप सिंह के बीवी पर छाया हुआ था उसे देखते हुए रघू को लगने लगा था कि वह उसके मोटे तगड़े लंड को अपनी बुरर के अंदर पूरा का पूरा ले लेगी,,,, यही सोचकर वह बिना एक पल गांवाए,,, अपना कुर्ता पजामा दोनों एक साथ उतार दिया तांगे के अंदर वह भी पूरा का पूरा नंगा हो गया,,, प्रताप सिंह की बीवी की नजर रघु के नंगे बदन पर पड़ी तो वह एकदम पूरी तरह से आकर्षित हो गई एकदम जवान गठीला बदन ऊपर से दोनों टांगों के बीच में लहराता हुआ उसका खंजर जो कि ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी का कत्ल करने जा रहा हो,,,, पहली बार वह रघु के नंगे लंड को देख रही थी जो कि बेहद आकर्षक और मर्दाना ताकत से भरा हुआ लग रहा था जिसे देखते ही उसकी बुर फुदकने लगी,,,,, देखते ही देखते रघूप्रताप सिंह की बीवी की दोनों टांगों के बीच आ गया और उसकी दोनों टांगों को फैलाता हुआ अपने लिए जगह बनाने लगा,,,, प्रताप सिंह की बीवी की गुलाबी बुर मुस्कुरा रही थी,,, मानो वह एकदम खुश हो रही होऔर यह जता रही हो कि आज उसकी बुर में पहली बार कोई मर्दाना लंड जाने वाला है,,,, प्रताप सिंह की बीवी का दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि उसे पता था कि अब रघु का मोटा तगड़ा बंद उसकी पुर के अंदर प्रवेश करने वाला है लेकिन इस बात का अंदेशा उसके मन में था कि इतने मोटे तगड़े लेने को अपनी बुरके गुलाबी छेद मैं पूरी तरह से ले पाएगी कि नहीं,,, लेकिन रघु को पूरा विश्वास था कि जमीदार की बीवी की जवानी पर पूरी तरह से विजय प्राप्त कर लेगा,,,।प्रताप सिंह की बीवी घबरा रही थी इतनी घबराहट तो उसे अपने पति के साथ संभोग करने से भी नहीं हुआ था जितनी घबराहट उसे रघू के साथ हो रहा था,,,
रघु अपने लिए जगह बना चुका था,,, प्रताप सिंह की बीवी की गरम जवानी के चलते उसके पसीने छूट रहे थे,,, देखते ही देखते रघू एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर मालकिन की गुलाबी बुर के ऊपर रख दिया,,,,,।
सससहहहहहह आहहहहहहह,,,,(एक जवान लड़के के मोटे तगड़े लंड को अपनी बुर की गुलाबी पत्ती पर महसूस करते ही प्रताप सिंह की बीवी अपनी गरम सिसकारी को रोक नहीं पाई और उसके मुख से गर्म सिसकारी फूट पड़ी,,, और उसको इस तरह से सिसकारी लेता हुआ देखकर रघु बोला)
क्या हुआ मालकिन,,,,
मुझे डर लग रहा है रघू,,,,
डरो मत मालकिन बहुत मजा आएगा,,, आखिर लंड बना ही होता है बुर के अंदर जाने के लिए,,, तो डर कैसा,,,(इतना कहकर वह प्रताप सिंह की बीवी की बुरके छेद पर अपना गर्म सुपाड़ा रखकर हल्के से दबाव देता हूंआ अपनी कमर आगे की तरफ ठेलने लगा,,,,, रघु को थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी लेकिन बुर अपने ही मदन रस से एकदम चिकना हो चुका था जिससे धीरे-धीरे रघु का लंड प्रताप सिंह की बीवी की बुर के अंदर दाखिल हो रहा था और देखते ही देखते गुलाबी बुरके गुलाबी छेद को छेंदता हुआ रघु का लंड अंदर की तरफ जाने लगा,,,,,जैसे-जैसे लंड का सुपाड़ा बुर के अंदर सरक रहा था वैसे वैसे प्रताप सिंह की बीवी के गोरे चेहरे का रंग बदलता जा रहा था,,,, आश्चर्य डर और घबराहट का मिलाजुला असर उसके चेहरे पर दिख रहा था उसका मुंह खुला का खुला था,, रघु एकदम मदहोश हो रहा था,,,,,धीरे-धीरे करके लंड का सुपाड़ा पूरी तरह से बुर के अंदर प्रवेश कर चुका था,,,और एकबार मुंह घुस जाए तो बाकी का शरीर जाने में कहा समय लगता है,,, रघू पसीने से तरबतर हो चुका था,,,।लंड का सुपाड़ा भर गया था,,,और रघू को लग रहा था की मालकिन का पानी
नीकालने में उसे मेहनत करनी होगी,,,
जमींदार की बीवी देखना चाह रही थी कि उसकी बुर में कीतना लंड घुसा हुआ है,,, इसलिए वह अपना मुंह ऊठा कर अपनी दोनों टांगों के बीच देखी तो हैरान रह गई और उसके मुंह से निकल गया कि,,,,
बाप रे अभी तो सुपाड़ा ही गया है अभी तो पूरा लंड बाकी है,,,,
( उसके मुंह से सुपाड़ा शब्द सुनकर रघू एकदम मस्त हो गया और मुस्कुराते हुए बोला)
चिंता मत करो मालकिन लंड भी चला जाएगा,,,बस थोड़ी देर और,,,,
लेकिन मुझे दर्द हो रहा है,, तुम्हारा लंड मोटा तगड़ा है,,,
मजा भी तो उतना ही देगा मालकिन,,,,तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारी बुर की ऐसी सेवा करुंगा कि आप जिंदगी भर याद रखोगी,,,( रघू लंबी सांस लेते हुए बोला,,, और फिर से जोर लगाता हुआ अपनी कमर का दबाव बढ़ाने लगा ,,,देखते ही देखते रघू का लंड ओर अंदर सरकने लगा,,,,थोड़ा थोड़ा करके रघू का लंड उसकी बुर में घुस रहा था,,,यह देखकर रघू के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी,,,और वह अपनी मालकीन से बोला,,,।
तुम्हारी बुर बहुत संकरी है,,,लगता है मालिक ठीक से आपकी चुदाई नहीं करते थे,,,।
तुम ठीक कह रहे हो रघू,,,जितनी देर में तुम बुर में सुपाड़ा घुसा पाए हो अभी वो होते तो इससे भी कम समय में पानी छोड़ दिए होते,,,
तब तो मालकिन,,आप चुदाई का भरपूर आनंद नहीं ले पाई हो,,,,
हां तुम ठीक कह रहे हो,,,, लेकिन आज ऐसा लग रहा है कि तुम मुझे असली सुख दोगे,,,,( वह आसा भरी निगाह से रघू की तरफ देखते हुए बोली,,,)
हां मालकिन,,,तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो,, मैं तुम्हें चुदाई का ऐसा सुख दुंगा की तुम जिंदगी भर याद रखोगी और मेरे लंड की ऐसी दीवानी हो जाओगी की मालीक को छोड़ कर मेरे पास चुदवाने आओगी,,,
( रघु की ईस बात पर वह एकदम से शर्मा गई,,,और शर्मा कर दुसरी तरफ मुंह फेर ली,, रघु को उसका इस तरह से शर्माना बेहद लुभावना लग रहा था और वह इस बार उसकी दोनों मोटी मोटी जांघों को अपने हाथों से पकड़ कर अपनी कमर का ऐसा झटका दिया कि उसका आधा लंड उसकी बुर में घुस गया,,,और जिस तरह से कचकचा कर उसने अपना लंड अंदर घुसेड़ा था प्रताप सिंह की बीवी के मुंह से एक चीख निकल गई,,,,,)
आहहहहह मर गई रे यह क्या किया रघू,,,(और यह देखने के लिए कि कहीं ऊसकी बुर तो नहीं फट गईवह तुरंत मोड खाकर अपनी दोनों टांगों के बीच की स्थिति को देखने लगी लेकिन सब कुछ वैसे का वैसा ही था तब उसके जान में जान आई लेकिन फिर भी उसे दर्द हो रहा था वह अपना लंड बाहर निकालने के लिए रघू को बोलने लगी लेकिन रघू कहा मानने वाला था,,,, वह एक बार फिर से उसकी कमर को थाम कर जोर का झटका दिया और इस बार बुर के अंदर की सारी अड़चनों को दूर करता हुआ उसका मोटा तगड़ा लंड उसकी बुर की गहराई नापता हुआ सीधे जाकर उसके बच्चेदानी से टकरा गया इस बार फिर से प्रताप सिंह की बीवी दर्द से बिलबिला उठी,,,,, उसे बहुत दर्द कर रहा था वह छटपटा रही थी सर को दाएं बाएं पटक रही थी,,,, औरत के अंगों से मर्द किस तरह से खेलते हैं उड़ी में कैसा सुख देते हैं इस बारे में उसे पहली बार पता चला था तो यह बात भी उसे पहली बार पता चली थी कि जब एक मर्दाना ताकत से भरा हुआ लंड बुर में घुसता है तो औरत को कैसा दर्द देता है वह तो बार-बार उसे अपना लंड बाहर निकालने के लिए बोल रही थी लेकिन रघु जानबूझकर अपना लंड बाहर नहीं निकाल रहा था क्योंकि वह जानता था कि अगर एक बार अपना लंड उसकी बुर से बाहर निकाल दिया तो वह दोबारा उसके अंदर डालने नहीं देगी,,, लेकिन ऐसी परिस्थिति में कैसे रास्ता निकाला जाता है इस बारे में रघू अच्छी तरह से सीख चुका था,,,, इसलिए वह प्रताप सिंह की बीवी को धैर्य बंधाते हुए बोला,,,)
बस बस मालकीन थोड़ा सा,,,,थोड़ी ही देर में सब कुछ बदल जाएगा तुम्हें मजा आने लगेगा बस थोड़ा सा धीरज रखो,,,,(इतना कहने के साथ ही रघु बिना अपनी कमर हिलाई अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर उसके दोनों दशहरी आम को अपने हाथों में भर लिया और उसे दबाते हुए उसके ऊपर जाकर उसके गुलाबी होठों को चूसना शुरू कर दिया रघु की हरकत रंग लाने लगी थोड़ी ही देर में दर्द से कराने की आवाज मत भरी सिसकारी में बदल गई उसे मजा आने लगा लेकिन अभी तक रघु अपनी कमर हिलाने का था लेकिन उसे गर्म सिसकारी लेते धीरे-धीरे वह अपनी कमर को ऊपर नीचे करते हुए उसे चोदना शुरू कर दिया,,, प्रताप सिंह की बीवी आनंद से भावविभोर हुए जा रही थी और रखो अपनी कला दिखाएं जा रहा था वह लगातार उसके होठों को चूसता हुआ अपनी कमर हिला रहा था और साथ ही उसकी दोनों चूचियों को दबा भी रहा था प्रताप सिंह की बीवी को दुगना मजा मिल रहा था स्तन मर्दन के साथ साथ चुदाई का आनंद प्राप्त कर रही थी,,,,थोड़ी देर में सी गर्म सिसकारी की आवाज तेज होने लगी तो रघु उसके ऊपर से उठ कर उसकी कमर थाम लिया और अब अपने झटको की गति को तेज कर दिया,,,,
अब कैसा लग रहा है मालकिन,,,,
बहुत मजा आ रहा है रघु,,,,(उत्तेजना के मारे अपने सूखे हुए होठों को थूक से गीला करते हुए बोली)
क्या मालिक ने कभी ऐसी चुदाई की है तुम्हारी,,,,
नहीं रे मुझे तो आज पहली बार मालूम पड़ रहा है की चुदाई ऐसी होती है वरना तेरे मालिक को तो चोदना नहीं आता वह बस ऊपर चढ़ जाते थे और लैंड को गया कि नहीं यह भी पता नहीं चलता था और पानी छोड़ देते थे,,,,
इसका मतलब है मालकिन की शादी के बाद तुम ने सुहागरात का मजा ली नहीं हूं,,,।
ऐसा ही समझ लो रघु,,,,
तो फिर तुम भी ऐसा समझ लो मालकिन कि आज तुम्हारी सुहागरात है आज मैं तुम्हें चुदाई का एहसास होगा कि आज की रात तुम जिंदगी भर नहीं भूलोगी,,,,
मैं भी यही चाहती हूं रघू,,,
जैसा आप चाहती हो वैसा ही होगा मालकिन,,,(इतना कहने के साथ रघु अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर एक बार फिर से अपनी मालकिन के दोनों दशहरी आम को अपनी हथेली में भर लिया और उसे दबाते हुए धकके लगाना शुरू कर दिया,,, रघु के हर धक्के के साथ प्रताप सिंह की बीवी के मुंह से गर्म सिसकारी की आवाज फूट पड़ रही थी।,,, घने जंगल के बीच बड़े-बड़े पेड़ों के नीचे चारों तरफ अंधेरा के अंदर तांगा खड़ा करके दोनों जवानी का मजा लूट रहे थे रघु के साथ चुदवाते हुए प्रताप सिंह की बीवी यह भूल चुकी थी कि वह बड़े घर की बहू है, एक बड़े जमीदार की औरत है,,, जिसका समाज में एक रुतबा है पहचान है,,, लेकिन जिस्म की प्यास यह सब कहां देखती है जिस्म की जरूरत यह सब बंधनों को कहां मानती है,,, जिस्म की प्यास के आगे सारे बंधन नाते बेफिजूल के लगने लगते हैं उन्हें तो बस अपने बदन की प्यास बुझाने से मतलब होता है अपनी वासना मिटाने में होता है और यही हो भी रहा था वरना कहां जमीदार की बीवी और कहां गांव का आवारा लड़का रखो दोनों का किसी भी तरह से मेलजोल नहीं था,,, लेकिन दोनों की जरूरत एक थी जमीदार की बीवी को तनसुख चाहिए था और गांव के लड़के रघु को एक बड़े घर की औरत की बुर चोदने के लिए चाहिए थी जो कि दोनों अपनी अपनी अभिलाषा में उतरते चले जा रहे थे दोनों एक दूसरे के बदन से अपने लिए सुख ढूंढ रहे थे,,,, देखते ही देखते रघु का जलवा टांग के अंदर लालटेन की रोशनी के बीच छाने लगा रघु के हर धक्के के साथ प्रताप सिंह की बीवी आगे की तरफ सरक जा रही थी और रघु यह देख कर अपना दोनों हाथ आगे बढ़ाकर उसके दोनों कंधों को थाम लिया और जोर जोर से धक्के लगाने लगा प्रताप सिंह की बीवी पहली बार जिंदगी में चुदाई के असली सुख से वाकिफ और संभोग सुख के अंदर कितनी मिठास कितनी देर कितनी तृप्ति भरी हुई है यह उसे पहली बार एहसास हो रहा था और वह इस एहसास में पूरी तरह से डूब चुकी थी अपने आपको भीगो चुकी थी,,,, रघु भी प्रताप सिंह की बीवी की टांगों के बीच के संकरे रास्ते से होता हुआ अपने लिए मंजिल ढूंढ लिया था,,, कुछ देर पहले प्रताप सिंह की बीवी को यही लग रहा था कि रघु का मोटा तगड़ा लंबा लंड उसकी बुर की गहराई में कभी नहीं घुस पाएगा लेकिन अब बिना किसी परेशानी के रघु का वही मोटा तगड़ा लंड उसकी बुर में बड़े आराम से अंदर बाहर हो रहा था और उसे आनंद की अनुभूति करा रहा था,,,,
तकरीबन 40 45 मिनट की गजब मदमस्त कर देने वाली चुदाई से भाव विभोर होकर प्रताप सिंह की बीवी के मुख से निकलने वाली सिसकारी की आवाज तेज होने लगी,,,वह बात अच्छी तरह से जानती थी कि इस वीराने में उसकी तेज सिसकारी की आवाज को सुनने वाला वहां कोई नहीं था इसलिए बेफिक्र होकर तेज तेज सिसकारी की आवाज निकाल रही थी और अपनी मालकिन की इस तरह की मादक सिसकारियां को सुनकर रघु का जोश बढ़ता जा रहा था,,, अपनी मालकिन की बढ़ती हुई शिसकारियों को देखकररघु समझ गया कि उसका पानी निकलने वाला है और साथ ही उसका भी चरम सुख की तरफ बढ़ने लगा था,,, रघु के धक्के तेज हो गए किसी मशीन की तरह उसकी कमर ऊपर नीचे हो रही थी,,, और देखते ही देखते रघू प्रताप सिंह की बीवी के पेट के नीचे अपनी दोनों हाथों को डालकर उसे अपनी बाहों में जकड़ दिया और जोर-जोर से अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया देखते ही देखते प्रताप सिंह की बीवी अपनी बुर से पानी छोड़ने लगी और थोड़ी देर बाद रघु भी अपना गरम लावा की पिचकारी प्रताप सिंह की बीवी की बुर में फेंकने लगा प्रताप सिंह की बीवी अपनी बुर के अंदर रघू के लंड से निकली हुई पिचकारी को अच्छी तरह से महसूस कर रही थी,,,। जो कि यह एहसास उसकी जिंदगी में पहली बार से हो रहा था पहली बार उसे महसूस हो रहा था कि लंड की पिचकारी इतनी तेज होती है,,, वह एकदम भाव विभोर हो गई थी और मदहोश होकर रघु को अपनी बाहों में भर ली थी,,, रघु भी हांफता हुआ उसके ऊपर पसर गया था,,,, लेकिन खेल अभी खत्म नहीं हुआ था अभी तो सारी रात बाकी थी।
very hotरास्ते के लिए प्रताप सिंह की बीवी घर से खाना लेकर आई थी उसे मालूम था कि घर पहुंचते-पहुंचते काफी समय बीत जाएगा और खाने के लिए जरूरी सामान लेना आवश्यक है,,। दोनों पेड़ के घने छांव के नीचे बैठे हुए थे हरी हरी घास का ढेर नरम नरम गद्दे का एहसास करा रहा था,,,कुछ देर पहले जो नजारा रघु ने अपनी आंखों से देखा था उस नजारे को याद करके उसका रोम-रोम उत्तेजना से पुलकित हुए जा रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी रोटी और सब्जी रघु की तरफ बढ़ाते हुए खुद खाना शुरु कर दी रघु भी भूखा था वह भी खाना शुरु कर दिया लेकिन बार-बार उसकी नजर प्रताप सिंह की बीवी के ऊपर चली जा रही थी,,, प्रताप सिंह की बीवी के भी तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी क्योंकि वह इस बात से पूरी तरह से वाकिफ थी कि कुछ देर पहले रघु उसके नंगे बदन को पूरी तरह से देख लिया था,,, जिस तरह से वह लड़की होकर अपने कपड़े बदल रही थी उससे उसे ऐसा ही लग रहा था कि रघु उसकी मदमस्त गांड के साथ-साथ उसकी दोनों टांगों के बीच की रसीली बुर को भी देख लिया होगा जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं था,,, रघु केवल उसके नंगे बदन को देख पाया था उसके बेहतरीन और अनमोल खजाने पर उसकी नजर अब तक नहीं गई थी हालांकि वह पूरी कोशिश किया था प्रताप सिंह की बीवी की दोनों टांगों के बीच झांकने की लेकिन ऐसा अवसर उसे नहीं मिल पाया था,,। प्रताप सिंह की बीवी का मन कर रहा था कि वह उसे से पूछे कि वह नीचे झुककर क्या देख रहा था,,, लेकिन इस तरह की बात एक जवान लड़के से पूछने की उसकी हिम्मत नहीं हुई,,, दोनों खड़ी दोपहरी में ठंडी छांव में शीतल हवा के झोंकों के साथ खाने का लुफ्त उठा रहे थे रघु को तो दोनों भूख लगी थी पेट की भी और एक जवान औरत को भोगने की लेकिन रघु को पूरा विश्वास नहीं था कि उसकी सोच के मुताबिक वह आज प्रताप सिंह जैसे बड़े जमीदार की खूबसूरत बीवी को भोग पाएगा,,,,,, रघू डरते हुए उससे पूछा,,,।
मालकिन,,,,
क्या हुआ रघू,,,,?
मैं यह पूछना चाह रहा था कि आप इतनी खूबसूरत है,,,।
तुम फिर शुरू हो गए,,,,
नहीं नहीं आप सच में बहुत खूबसूरत है मालकिन,,,
तभी तु तांगे के नीचे से झांक रहा था ना,,,(वह एकटक रघु की तरफ देखते हुए बोली रघु उसके मुंह से इस तरह की बात सुनकर एकदम से शर्मा गया,,, और शर्मिंदगी के एहसास से वह इधर-उधर अपना चेहरा घुमाने लगा,, और अपनी तरफ से सफाई देते हुए बोला,,,)
नहीं नहीं मालकिन ऐसी कोई भी बात नहीं है वह तो मेरा कपड़ा नीचे गिर गया था और मैं उसे उठाने के लिए नीचे झुका था,,,
तो कपड़ा उठाकर खड़े हो जाना चाहिए था ना यों नजर गडा कर क्यों देख रहा था,,,
मालकिन अब तो आप बुरा मान रही है,,,, जैसा आप सोच रही है ऐसा बिल्कुल भी नहीं है बस मेरी नजर पड़ गई थी,,।(इतना कहकर वह चुप हो गया,,,,,)
तुम कुछ देखे तो नहीं थे ना,,,,( वह बड़े ही मादक अदा से बोली,,,)
नहीं-नहीं मालकिन में कुछ नहीं देखा था,,,,
कुछ तो देखा ही होगा,,,, तभी तो आंखें फटी की फटी रह गई थी,,,,(वह जानबूझकर इस तरह की बातें कर रही थी वह देखना चाहती थी कि रघु ने उसके बदन का कौन-कौन सा अंग देखा है,,,,)
मैं सच कह रहा हूं मालकीन में कुछ नहीं देखा था,,,बस,,,,बस,,,,(इतना कहकर वह इधर-उधर देखने लगा जैसे कि वह भी कुछ बताना चाह रहा हो लेकिन अंदर ही अंदर से घबरा रहा हो,,,, लेकिन रघू जानबूझकर नाटक कर रहा था,,,तीन तीन औरतों के साथ शारीरिक संबंध बनाकर उन्हें अपने मर्दाना ताकत का गुलाम बना चुका रघु इतना तो जानता ही था कि औरतों को किस तरह से काबू में किया जाता है,,, रघु को इस तरह से हकलाता हुआ देखकर प्रताप सिंह की बीवी बोली,,,)
क्या बस बस लगा रखे हो कुछ आगे भी बोलोगे,,,,
नहीं मालकिन ऐसी कोई बात नहीं है,,,, कुछ नहीं देखा था,,,
लेकिन अभी तो तुम कुछ बताना चाह रहे थे,,,
(उसकी बात सुनकर रघु समझ गया कि वह भी कुछ सुनना चाहती है,, इसलिए वह जानबूझकर घबराहट का नाटक करते हुए बोला,,,)
ऐसी कोई भी बात नहीं मालकिन लेकिन आप जानना चाहती हैं तो मैं बता सकता है कि मैंने आपकी सिर्फ टांगे ही देखी है,,,
और मेरी नंगी टांगों को देख कर ही तुम्हारा यह हाल हो गया है,,,, पता नहीं और कुछ देख लेते तो जाने क्या हो जाता,,,,!(प्रताप सिंह की बीवी गर्म आहें भरते हुए बोली,,, रघु को सब कुछ अपने पक्ष में आता हुआ नजर आ रहा था क्योंकि जिस तरह से वह बातें कर रही थी रघु को यह अहसास हो रहा था कि हलवाई की बीवी और रामू की मां की तरह यह भी अंदर से प्यासी है,,, बस प्यासे को कुवा दिखाना था बाकी सब काम अपने आप हो जाते हैं,,, प्रताप सिंह की बीवी की बात का जवाब देते हुए वह बोला,,,।)
लेकिन सच कहूं मालकिन आप बहुत खूबसूरत हैं,,,,।
(इस बार वह और जोर-जोर से हंसते हुए एक दम मस्त हो गई और हंसते हुए बोली)
मेरी नंगी टांगों को देख कर बोल रहे हो ना,,,,
नहीं नहीं मालकीन नंगी टांगे ही नहीं बल्कि आप का पूरा बदन आपका चेहरा बहुत खूबसूरत है,,,(रघु भी कुछ-कुछ खुलता हुआ बोल रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी अभी भी मुस्कुरा रही थी,,, कुछ देर तक दोनों के बीच फिर से खामोशी छा गई और इस खामोशी को तोड़ते हुए प्रताप सिंह की बीवी बोली,,,)
अच्छा तो रघ6 तुम क्या पूछना चाह रहे थे यह तो तुम बोले ही नहीं,,,
मैं यही पूछना चाह रहा था लेकिन कि आपका नाम क्या है,,,?
सुमन,,,,, सुमन नाम है मेरा,,,,(अपने होठों पर मादक मुस्कान बिखेरते हुए वह बोली,,,)
सुमन,,,, वह कितना खूबसूरत नाम है,,, वरना गांव में तो ललिया,,,, फुलवा,,,,, चमेली ,,,,रानी बस ऐसा ही नाम होता है,,,,( रघु ख्यालों में डूबता हुआ बोला,,,)
तुम्हें अच्छा लगा मेरा नाम,,
बहुत अच्छा है मालकिन मैं तो पहली बार नाम सुन रहा हूं और सच कहूं तो यह नाम आप पर खूब जच रहा है,,,
(जवाब में वह बोली कुछ नहीं बस मुस्कुरा दी,,, थोड़ी ही देर में दोनों खाना खा चुके थे,,,, रघु लोटा लेकर नदी की तरफ गया और वहां से पीने का पानी भर लाया,,, नदी का ठंडा पानी पीकर प्रताप सिंह की बीवी एकदम तृप्त हो चुकी थी लेकिन खाने के बाद की प्यास तो वह बुझा चुकी थी,,, लेकिन रघु के सानिध्य में जो तन की प्यास जाग रही थी वह उसे परेशान कर रही थी,,,,वह एक जमीदार की बीवी थी,, जिसका समाज में इज्जत था,,रुत्बा था,,,और सबसे बड़ी बात संस्कार और मर्यादा से पली-बडी थी,,, इसलिए कुछ ऊंच-नीच ना हो जाए इसका बड़ा ख्याल रखती थी लेकिन आज ना जाने क्यों उसके मन में हलचल सी हो रही थी,,, रघु जैसे जवान लड़के का साथ पाकर वह आज खुली हवा में अपने पंख फैला कर ऊडना चाहती थी,,,।
धीरे-धीरे समय अपनी गति से आगे बढ़ रहा था घने पेड़ की छांव के नीचे बैठे बैठे काफी समय गुजर गया था बार बार चोर नजरों से प्रताप सिंह की बीवी रघू की तरफ देख ले रही थी,,, रघु का जवान हट्टा कट्टा शरीर उसे बेहद लुभावना लग रहा था वह अपने आपको रघु की जवान चौड़ी छातीयों में छुपा देना चाहती थी,,, रघू भी कुछ कम नहीं था,,, वह भी चोर नजरों से जमीदार की बीवी के जवान बदन को देख ले रहा था और मन ही मन उत्तेजित भी हो रहा था,,,,,, दोनों के बीच की खामोशियों को रघु तोड़ते हुए बोला।)
मालकिन आपस में चलना चाहिए काफी समय हो गया है दिन ढलने लगा है,,,
हा तुम ठीक कह रहे हो रघु,,,,(इतना कहकर वह खड़ी हुई और अपने दोनों हाथों से अपने पिछवाड़े पर लगी धूल मिट्टी को झाड़ते हुए बात को आगे बढ़ाते हुए बोली) मुझे नहीं लगता कि समय पर हम घर पहुंच पाएंगे,,,,
यह तो आप जाने मालकिन मैं तो जानता नहीं हूं,,,(इतना क्या कर बताने पर सुखने के लिए रखे कुर्ते को उतार कर पहनने लगा और बात को आगे बढ़ाते हुए बोला) अब चलने के लिए तैयार हो जाइए तब तक मैं घोड़े को पानी पिला देता हूं,,,,(इतना कहकर वह घोड़े को खोलने लगा और उसे खोल कर नदी की तरफ ले जाने लगा,, प्रताप सिंह की बीवी भी सूखने के लिए तांगे पर रखे हुए कपड़ों को समेटने लगी और उसे इकट्ठा करके एक जगह पर रख दी काफी देर हो गए थे इसलिए उसे अहसास होने लगा कि उसे बड़ी जोरो की पिशाब लगी हुई है,,,, और वह भी रघु की तरफ देखकर जो कि इस समय घोड़े को पानी पिलाने में मशगूल था,,,, वह उसी तरह नदी की तरफ जाने लगी,,, नदी के किनारे ऊंची नीची टेकरियां थी,,,जिन की आड़ में वह बैठ कर के साफ करना चाहती थी ताकि रघू कि नजर उस पर ना पड सके,,,, देखते ही देखते वह टेकरी के पीछे पहुंच गई जहां से रघू तकरीबन 3 4 मीटर की दूरी पर ही खड़ा होकर घोड़े को पानी पिला रहा था,,,, उसको यह लग रहा था कि टेकरी की आड़ में बैठकर अगर वह पेसाब करेगी तो रघू को इस बारे में पता नहीं चलेगा,,, और वह अपनी साड़ी को कमर तक उठाकर वहीं बैठ गई पेशाब करने के लिए उसे इतनी जोरो की पिशाब लगी हुई थी कि बैठते बैठते उसके गुलाबी बुरके गुलाबी छेद से पेशाब की धार फुट पड़ी,,,और सर्रर्र्रर्र्र,,,,,, करके वह मूतने लगी,,,, रघु अब तक इस बात से अनजान घोड़े को पानी पिलाने में व्यस्त था कि तभी उसके कानों में ,,, सीटी जैसी मधुर आवाज पड़ने लगी,,,। आवाज जानी पहचानी थी इसलिए वह आवाज की दिशा में देखने के लिए बावला हो गया जो कि उस के बेहद करीब टेकरी के पीछे से आ रही थी,,,,,, घोड़े की लगाम छोड़कर वह उस टेकरी की तरफ धीरे-धीरे बढ़ने लगा क्योंकि उसके मन में अंदेशा हो गया था कि जरूर कुछ बेहतरीन नजारा नजर आने वाला है,,,, चार पांच कदम बढ़ाते हैं उसे जमीदार की बीवी का सर नजर आने लगा,,, रेशमी बालों को लहराते हुए देखकर वह समझ गया कि जमीदार की बीवी मुत रही है,,, इस बात का एहसास ही उसके तन बदन में आग लगा गया,,,, वह एक कदम और आगे बढ़ा कर जमीदार की बीवी के संपूर्ण वजूद को देखना चाहता था और उसका अगला कदम उसके सपनों की राजकुमारी को पेशाब करते हुए दिखा सकता था और उसने वैसा ही किया जैसे ही वह अपना एक कदम आगे बढ़ाया टेकरी के पीछे बैठकर मौत रही जमीदार की बीवी उसे पूरी तरह से नजर आने लगी,,,, रघ8 की नजर सीधे उसकी मदमस्त भारी-भरकम गोल गोल गांड पर गई,,, जो की बैठने की वजह से और ज्यादा गोलाकार और उभरी हुई नजर आ रही थी,,,,वह कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जमीदार की बीवी इतने बड़े घराने की औरत उसे पेशाब करती हुई नजर आएगी और उसकी मदमस्त गांड को अपनी आंखों से देख कर धन्य हो पाएगा,,,, टेकरी पर दोनों हाथ का सहारा देकर अपने सर को थोड़ा सा उठाकर रघु जमीदार की बीवी के संपूर्ण वजूद को देख रहा था उसकी नंगी नंगी गांड रघु के लंड का तनाव बढा रही थी,,,। जमीदार की बीवी इस बात से बे फ़िक्र के पीछे टेकरी का सहारा लेकर रघु उसकी नंगी गांड को और उसे पेशाब करता हुआ देख रहा है वह अपने आप में ही मस्त अपनी पूरी से सहारा पेशाब बाहर फेंक देना चाह रही थी,,, इसलिए तो बार-बार जोर लगाकर मुत रही थी,,,और हर बार जब तक वह जोर लगा दी थी तब तक पेशाब की धार उसकी गुलाबी बुर से बाहर वारे की तरह निकलती थी और हरी हरी घास को भिगो देती थी,,, उसे राहत महसूस होने लगी वह बहुत अच्छे से पेशाब कर चुकी थी,,,रघु को भी लगने लगा कि अब ज्यादा देर तक यहां खड़े रहना उचित नहीं है क्योंकि इस बात की भनक जमीदार को लगते ही कि वह उसकी बीवी को पेशाब करते हुए देख रहा था तो उसकी और उसके परिवार की तरह नहीं होगी,,, इसलिए वह अपना मन मार कर वहां से कदम पीछे ले लिया और तभी जमीदार की बीवी को कुछ आहट महसूस हुई और वह तुरंत खड़ी होकर पीछे की तरफ देखने लगी तो उसे रघु वापस जाता हुआ नजर आया एक पल के लिए तो एकदम से घबरा गए लेकिन दूसरे ही पल उसके होंठों पर मुस्कान आ गई,,,क्योंकि वह समझ गई थी कि उसे पेशाब करता हुआ कोई देख रहा था और इस बात का एहसास उसकी दोनों टांगों के बीच की गुलाबी पत्तियों में फडफडाहट महसूस करा गई,,,,
रघु के पजामे में तंबू बना हुआ था,,, वह जल्द ही घोड़े को तांगे से जोड़ दिया,,,और तांगे पर बैठकर जमीदार की बीवी का इंतजार करने लगा जो कि पीछे ही आ रही थी,,, वह अपने मन में यह सोच रही थी कि उसको पेशाब करता हुआ देखकर रघु के तन बदन में कैसी आग लगी होगी,,क्या उसकी नंगी गोरी गोरी गांड देखकर उसका लंड खड़ा होगा जिस तरह का तंबू नदी में नहाते समय उसके पजामे में बना हुआ था क्या अभी भी वैसा ही तंबू उसके पजामे में बना होगा ,,,यही देखने के लिए वह बेचैन हुए जा रही थी,,,, लेकिन रघु तांगे पर बैठ चुका था,,,, और वो ऊसके पजामे में बने तंबू को देखना चाहती थी,,, इसलिए बहाना बनाते हुए वह बोली,,,।
रघु मुझे जरा तांगे में बैठने में मदद करा दे थोड़ी सी टांग दुखने लगी है,,,,
जी मालकिन अभी आया,,,,(इतना कह कर रखो तुरंत हटाने से उतरकर पीछे की तरफ आ गया और जमीदार की बीवी को तांगे में बैठने मैं मदद कराने लगा,,, जैसे ही रघु पीछे आया और उसकी नजर सीधे रघु के पजामे पर गई जो की पूरी तरह से तंबू बना हुआ था,,, यह देख कर उसकी दोनों टांगों के बीच कंपन महसूस होने लगी वह अंदर ही अंदर प्रसन्न होने लगी,,,, रघु थोड़ा टांगे के बेहद करीब आकर खड़ा हो गया और जमीदार की बीवी उसे कंधे पर हाथ रखकर एक पाव तांगे पर रहती हो उस पर चढ़ने लगी लेकिन वह जानबूझकर उस पर चढ नहीं पा रही थी,,तो वह बोली,,,।
अरे थोड़ी मदद करोगे या ऐसे ही खड़े रहोगे,,,,
जी मालकिन आप कोशिश करो मैं मदद करता हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही जमीदार की बीवी एक बार फिर से तांगे पर चढ़ने की नाकाम कोशिश करते हुए तांगे पर चढ़ने लगी तो अफरा तफरी में रघु उसे सहारा देकर चढ़ाने मैं मदद करते हुए अपना दाया हाथ एका एक सीधे उसकी भारी भरकम गोल गोल गांड पर रखकर उसे लगभग धक्का देते हुए तांगे पर चढ़ाने लगा जैसे ही रघु की हथेली को जमीदार की बीवी अपनी कहां पर महसूस की वह एकदम से गनगना गई ,,, उसे तो समझ में नहीं आया कि रघू यह क्या कर रहा है,,,, उसके हथेली का दबाव अपनी गांड पर महसूस करते हैं उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,,,जब इस बात का एहसास रघु को हुआ कि वह सहारा देने के चक्कर में अपना दायां हाथ उसकी गांड पर रख दिया है तो इस बात का एहसास उसके तन बदन में आग लगा गया,,, वह एकदम से मदहोश हो गया,,,,नरम नरम गांड का स्पर्श भले ही साड़ी के ऊपर से ही उसकी हथेली में हुआ था लेकिन उसके संपूर्ण वजूद को गर्म कर गया था,,,,,, उसके बदन में कंपकंपी सी छाने लगी थी,,,, जमीदार की बीवी तांगे पर बैठ चुकी थी रघू एकदम शर्मिंदा हो गया था लेकिन उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो गया था,,, और यही हाल जमीदार की बीवी का भी था वह भी पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी पहली बार किसी पर आए जवान मर्द की हथेली को अपने गांड के ऊपर महसूस की थी,,,और उसकी हथेली का दबाव उसकी गांड पर भारी हो रहा था लेकिन उसकी दस्तक उसे अपनी बुर की गुलाबी द्वार पर महसूस हो रही थी,,,, ऐसा लग रहा था कि मानो कोई उसे अपनी बुरका द्वार खोलने के लिए मिन्नतें कर रहा है,,,, गिड़गिड़ा रहा है,,,, यह पल दोनों के लिए बेहद अद्भुत था,,,
धीरे धीरे दिन डरने लगा था शाम हो रही थी,,, रघु तांगे को कच्ची सड़क पर ऊंचे नीचे टेकरियो पर से लिए चला जा रहा था,,,,,दोनों में से कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था क्योंकि जो एहसास रघु को हुआ था वही एहसास जमीदार की बीवी को भी हुआ था,,,,देखते ही देखते चारों तरफ अंधेरा छाने लगा जमीदार की बीवी रास्ता अच्छी तरह से जानती थी,,, वह जानती थी कि रात को नहीं जाना जा सकता है इसलिए रघु से बोली,,,,।
रघु कोई अच्छी और सुरक्षित जगह देखकर तांगा रोक दो क्योंकि अब घर पर रात में जाना ठीक नहीं है,,, हम यहीं कहीं अच्छी जगह पर सुबह होने का इंतजार करेंगे और फिर चलेंगे,,,,
जमीदार की बीवी की यह बातें सुनते ही रघु के तन बदन में उत्तेजना कि लहर दौड़ने लगी क्योंकि,,, रात भर जगदार की बीवी के साथ रुकना जो था,,, ऐसा लग रहा था कि भगवान भी शायद उसका साथ दे रहे हैं,,, आज की रात का मौका उसके हाथ में था वह आज की रात कुछ कर गुजरने के चक्कर में था वैसे तो यह ख्याल उसके मन में कब से आ रहा था लेकिन इस बात का डर उसे अंदर ही अंदर सता रहा था कि अगर जमीदार की बीवी ऐसी कोई भी हरकत को अगर अपने पति को बता दी तो उसकी खैर नहीं होगी लेकिन जिस तरह से वह उसकी गांड पर हाथ रखकर उसे तांगे पर बैठने की मदद किया था और इस बात का एतराज उसे बिल्कुल भी नहीं हुआ था इस बात से उसकी हिम्मत बढ़ाने का दी थी उसे लगने लगा था कि शायद हलवाई की बीवी और रामू की मां के साथ-साथ जमीदार की बीवी भी वही चाहती है जो वह चाह रहा है,,,,इस बात का ख्याल रघू के लंड को पूरी तरह से खड़ा कर गया था,,,,,,उसे ना जाने कि वह अपनी किस्मत पर विश्वास होने लगा था कि आज की रात वह अपने मोटे तगड़े लंड को जमीदार की बीवी की बुर में डाल सकेगा,,, यही सोच कर एक अच्छी और सुरक्षित जगह जोड़ते हुए तांगे को धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा और तभी उसे एक सुरक्षित जगह नजर आने लगी,,,, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था और लगभग लगभग आम के बगीचे से होकर गुजर रहा था चारों तरफ बड़े-बड़े पेड़ थे,,,
यह जगह बिल्कुल ठीक हो की मालकिन मैं यही तांगा रोक देता हूं,,,,
जैसा ठीक समझो रघू,,,,,,
(यह कह कर जमीदार की बीवी अपनी सहमति दर्शा दी और रघु तांगा वही रोक दिया,,, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था एकदम सन्नाटा केवल उल्लू की आवाज और कुत्तों के भौंकने की आवाज आ रही थी कोई और समय होता तो शायद इस वीरान जगह पर रघु था वह कभी नहीं रुकता लेकिन उसके मन में हलचल बची हुई थी उसके साथ एक जवान औरत थी और वह भी बड़े घराने की बहू जो कि उस समय तांगे में बैठी हुई थी,,, और रघु उस बड़े घराने की औरत को चोदने के फिराक में इस तरह के वीरान और डरावने जगह पर तांगा रोक दिया था,,,,शायद यही ख्याल जमीदार की बीवी का भी था एक औरत होने के नाते इस तरह से विरान में रुकना बिल्कुल भी ठीक नहीं था,,, लेकिन उसके मन में भी यही चल रहा था जो रघु के मन में चल रहा था,,, जमीदार की बीवी का भी दिल जोरों से धड़क रहा था,,, वह तांगे से बाहर की तरफ झांक रही थी चारों तरफ कुछ भी नजर नहीं आ रहा था बस बड़े-बड़े पेड़ ही नजर आ रहे थे,,,,,, एक औरत होने के नाते उसे डर लगना चाहिए था लेकिन उसे डर बिल्कुल भी नहीं लग रहा था,,, क्योंकि उसके तन बदन में भी जवानी का जोश चढ़ा हुआ था,,,,,, वह तांगे में बैठकर रघु के बारे में ही सोच रहीं थीं,,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि उसे याद आ रहा था जब वह टेकरी के पीछे के साथ कर रही थी तो रघु टेकरी की आड़ में से उसे पेशाब करता हुआ देख रहा था और एकदम उत्तेजित हो गया था इसका अंदाजा उसे तांगे पर सहारा लेने के लिए रघु को बुलाना पड़ा और रघु के पजामे में बने तंबू को देखकर उसे इस बात का एहसास हो गया कि उसकी बातों पर जवानी देख कर रघू पूरी तरह से बावला हो गया है,,, पर वह पल याद आते ही उसकी गुलाबी बुर में खुजली होने लगी जब वहउसके कंधों का सहारा लेकर तांगे पर चल रही थी और उसे चढाने में मदद करने के बहाने उसकी गांड पर हाथ रख दिया था,,,,आहहहहहह,,,, यह ख्याल उसके तन बदन में चिकोटीया काटने लगी,,,, रघु तांगे से नीचे उतर चुका था वह चारों तरफ बड़े ध्यान से देख रहा था कि कहीं कोई जानवर ना हो पैरों के नीचे सांप बिच्छू ना हो,,,, सबसे पहले वह पीछे की तरफ आ कर,,,, तांगे में टंगी लालटेन को जला दिया और लालटेन के चलते ही तांगे के अंदर पूरी तरह से रोशनी फैल गई लालटेन की रोशनी में सबसे पहले वहां जमीदार की बीवी के खूबसूरत मुखड़े को देखने लगा जो कि और भी ज्यादा खूबसूरत लगने लगी थी,,,, रघु सब कुछ भूल कर उसे एकटक देखता ही रह गया,,, रघु को इस तरह से अपने चेहरे को देखता हुआ पाकर वह एकदम से शरमा गई और शर्मा कर दूसरी तरफ नजर घुमा दी,,, उसकी शर्मा हट को देख कर रघू एकदम से उसकी सादगी का कायल हो गया,,,ऐसा लग रहा था कि जैसे वजनदार की बीवी नहीं बल्कि उसकी खुद की नई नवेली दुल्हन हो उसके साथ वह आज की रात सुहागरात मनाने वाला है,,,। दोनों का दिल जोरों से धड़क रहा था जमीदार की बीवी शर्मा रही थी वह सीमटती जा रही थी,,,,, रघु एकदम से मदहोश होता जा रहा था वह धीरे-धीरे अपने चेहरे को उसके करीब लिए जा रहा था,,, रघू सब कुछ भूल चुका था,,,और जमीदार की बीवी शर्म से पानी पानी हो जा रही थी ना कि वह भी यही चाह रही थी लेकिन इतनी जल्दी उसे उम्मीद नहीं थी ,,, क्योंकि जिस तरह से वह उसकी तरफ आगे बढ़ता जा रहा था उसे लगने लगा था कि वह उसे अपनी बाहों में भर लेगा लेकिन तभी घोड़ा जोर से हीनहीनाने लगा तो रघु की तंद्रा भंग हुई और वह घोड़े की तरफ देखने लगा,,, वह अभी भी अपना दोनों पैर ऊपर की तरफ उठा रहा था ,,,, तो जमीदार की बीवी बोली,,,।
जाओ रघू जल्दी से देखो कोई जानवर तो नहीं है,,,,,
(इतना सुनते ही रघु तांगे में टंगी लालटेन तो अपने हाथ में लेकर आगे की तरफ आ गया और लालटेन की रोशनी में चारों तरफ देखने लगा तो उसे एक बड़ा सा काला सांप पास में से गुजरता हुआ नजर आया उस पर जमीदार की बीवी की भी नजर पड़ी और उसका मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया क्योंकि वह सांप बहुत बड़ा था,,,, वह सामने की घनी झाड़ियों में जाता हुआ नजर आया,,,,जब वह सांप चला गया तो घोड़ा भी एकदम शांत हो गया,,, रघु लालटेन लेकर तांगे के पीछे की तरफ आया और बोला,,,।)
मालकिन बहुत बड़ा सांप था इसलिए घोड़ा बिंदक रहा था,,,
हां मैं देखी बहुत बड़ा सांप था,,,,
मैं घोड़े को पेड़ से बांध देता हूं ताकि वह भी आराम कर ले,,,
ठीक है रघू,,,,
(रघु तांगे में से घोड़े को छुड़ाकर पेड़ से बांध दिया,,,,,, रघु के मन में हलचल हो रही थी मैं जानता था कि एक जवान औरत है इस वीराने में उसके साथ बिल्कुल अकेली है,,, पर वह भी बेहद खूबसूरत बड़े घराने की,,, इस बात का एहसास ही उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर बढ़ा रहा था,, यही हाल प्रताप सिंह की बीवी का भी था,,, उसका दिल भी जोरों से धड़क रहा था चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था बड़े-बड़े पेड़ इस अंधेरी रात में भयानक लग रहे थे,,, लेकिन इस वीराने में भी प्रताप सिंह की बीवी सुख ढूंढ रही थी और वह भी तन का जो इस समय उसे रघु ही दे सकता था,,, लेकिन वह ऐसी वैसी औरत तो थी नहीं कि अपने आप से अपने ही मुंह से रघू को उसे तन सुख देने के लिए बोले,,, और आज की रात का ही मौका था उसके पास वह कभी भी अभी तक अपने कदमों को डगमगाने नहीं दी थी एक उम्र दराज जमीदार के साथ शादी करके भले ही उसे अपने पति से दैहिक सुख की संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई थी लेकिन यह सुख वह बाहर भी नहीं ढूंढ़ी थी,,, सिर्फ अपने संस्कारों के बदौलत वह अपनी जिंदगी को जिए जा रही थी,,, लेकिन आज जवान लड़का रघु उसके मन में हलचल पैदा कर गया था,,, बार-बार रघु के पजामें मे बने तंबू को याद करके उसके तन बदन में कपकपी सी फैल जा रही थी,,, खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में,,, जिसका मुख शायद अभी ठीक तरह से खुला भी नहीं था क्योंकि जमींदार में लंड इतना ताकतवर और मोटा नहीं था क्योंकि उसकी गुलाबी पत्तियों को अपना संपूर्ण आकार दे सके और ना ही अब तक वह मां बनने का सुख प्राप्त कर पाई थी इसलिए अभी तक इस उमर में जिस तरह का आकार बुर का होना चाहिए था उस तरह का आकार उसका बिल्कुल भी नहीं था,,,,
हवा सांय सांय करके चल रही थी,,, गर्मी के मौसम में हरियाली पेड़ पौधों से भरा हुआ यह स्थान ठंडक दे रहा था,,, रघु घोड़े को पेड़ से बांध चुका था अब उसके सामने यह प्रश्न था कि सोना कहां है मन तो उसका यही कर रहा था कि वह जमीदार की बीवी के साथ तांगे में ही सो जाए लेकिन ऐसी किस्मत कहां थी कि जमीदार की बीवी के साथ उसे सोने को मिलता ऐसा वह सोच रहा था बल्कि उसका दूसरा मन तो आज उसे चोदने के लिए कर रहा था,,, वह घोड़े को पेड़ से बांधकर,,, तांगे पर चढ़ने लगा उसे आगे की तरफ चढ़ता हुआ देखकर प्रताप सिंह की बीवी बोली,,,,।
रघु सोओगे कहां,,,?
आप बिल्कुल भी चिंता मत करो मालकिन मैं यही सो जाऊंगा,,,,
नहीं नहीं रघू वहां कैसे सो पाओगे वहां तो सोने भर की जगह भी नहीं है,,, एक काम करो तुम भी इधर आ कर सो जाओ,,,
(जमीदार की बीवी की बात सुनते ही रघु का दिल धक्क से कर गया,,, यही तो वह चाहता था,,, लेकिन फिर भी ऊपरी मन से वह इनकार करते हुए बोला,,,)
नहीं नहीं मालकिन भला ऐसे कैसे हो सकता है,,, आप एक जवान औरत है और जमीदार की बीवी है भला मैं आप के बगल में कैसे सो सकता हूं मैं तो आपका मुलाजिम हूं,,,
पागल हो तुम रघू,,, मेरे लिए ऊंच-नीच अमीर गरीब छोटा बड़ा कोई मायने नहीं लगता,,, तुम बहुत अच्छे लड़के हो इसलिए मैं कह रही हूं,,,, अब आ जाओ ज्यादा बातें मत बनाओ,,,,
(उसकी बात सुनकर रघु को ऐसा लग रहा था कि जैसे वह खुद उसे चोदने के लिए बुला रही हो,,, रघु भला क्यों इंकार करता,,, वह मन ही मन प्रसन्न हो रहा था उसके तो हाथों में जैसे लड्डू आ गया हो,,, एक बार फिर से उसका पाजामा पूरी तरह से तन गया,,,, और प्रताप सिंह की बीवी के तन बदन में यह कहते हुए पूरी तरह से उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी ऐसा लग रहा था कि आज की रात से ही कुछ कर गुजरेगी,,, आज की रात का भी भरपूर आनंद ले लेना चाहती थी,,,, रघु तांगे से उतरता हुआ बोला।)
ठीक है मालकिन जैसी आपकी मर्जी,,,,,
(तांगे से उतरकर वह थोड़ी दूर पर जाकर पेशाब करने लगा अंधेरा एकदम घना था इसलिए कुछ भी नजर नहीं आ रहा था,,, रघु को खुद अपना लंड नहीं दिख रहा था हाथ में लेने पर उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसका लंड कुछ ज्यादा ही मोटा और तगड़ा हो गया है,,, अपने लंड को हाथ में पकड़े पेशाब करते हुए नहीं सोच रहा था कि अगर नहीं लैंड प्रताप सिंह की बीवी की बुर में डाल दिया जाए तो वह एकदम मस्त हो जाएगी क्योंकि उसकी बातों से उसकी हरकत से रघु को इतना तो एहसास होने लगा था कि वह तन की प्यासी है,,, भला एक उम्रदराज आदमी अपनी जवान बीवी को तन का सुख कैसे दे सकता है,,, इस उम्र में तो औरते अपने घर के अंदर मोटा तगड़ा लंड की कामना करती हैं,,,,, तांगे में बैठी हुई प्रताप सिंह की बीवीअपनी सांसो पर काबू नहीं कर पा रही थी उत्तेजना के मारे उसकी सास बड़ी तेजी से चल रही थी उसकी कानों में पानी के गिरने की आवाज साफ सुनाई दे रही थी जिससे उसे पता चल गया था कि रघु पेशाब कर रहा है और अपने मन में व कल्पना करने लगी कि कैसे अपना मोटा तगड़ा बाहर निकाल कर मुत रहा होगा,,,, हाथ में लेकर उसका लंड कैसा लग रहा होगा,,,, जब वह उसके मोटे तगड़े लंड को अपने हाथ में लेगी तो उसे कैसा लगेगा,,,, यह सोचकर ही उसका पसीना छूटने लगा,,,, थोड़ी ही देर में रघू पेसाब करके टांगे के पीछे आ गया जहां पर लालटेन की रोशनी में प्रताप सिंह की बीवी एकदम साफ नजर आ रही थी उसका खूबसूरत मुखड़ा एकदम दमक रहा था,,,, उसके खूबसूरत चेहरे को देखते ही रघू के तन बदन में उत्तेजना के शोले भडकने लगे,,,, तांगे पर चढ़ने में उसे शर्म महसूस हो रही थी वैसे तो उसे जोश में आ जाता है था तो औरत पर चढ़ने में उसे शर्म नहीं आती थी लेकिन आज प्रताप सिंह की बीवी के सामने तांगे पर चढ़ने में उसे शर्म महसूस हो रही थी,।,,, प्रताप सिंह की बीवी रघु के हाव भाव को देखकर वह अच्छी तरह से समझ गए कि वह अपने आप को असहज महसूस कर रहा है इसलिए वह उसका हौसला बढ़ाते हुए बोली,,।)
घबराओ मत रघू आ जाओ,,, कभी औरत के साथ सोए नहीं हो क्या,,,,(वह मुस्कुराते हुए बोली रघु अब इतना नादान नहीं रह गया था कि वह उसकी बातों का मतलब समझता ना हो लेकिन वह बोला कुछ नहीं और टांगे पर चढ़ने लगा उसे चढ़ता हुआ देखकर जगह बनाने के लिए प्रताप सिंह की बीवी थोड़ा सा और दूसरी तरफ सरक गई,,,, रघु तांगे पर चल गया था लालटेन की रोशनी में तांगा पूरा जगमगा रहा था,,, तांगा केवल आगे से और पीछे से खुला हुआ था ऊपर से ढका हुआ था जो कि अंदर से बहुत खूबसूरत लग रहा था,,, रघु के अंदर आते ही प्रताप सिंह की बीवी जगह बना कर लेट गई,,, प्रभु की नजर जैसे ही उसके ब्लाउज पर पड़ी वह एकदम से दंग रह गया क्योंकि नीचे के दो बटन खुले हुए थे जिससे लेटने के बाद उसकी दोनों चूचियां पानी भरे गुब्बारों की तरह बाहर की तरफ निकल आई थी,,,आधे से ज्यादा चुचियों नजर आ रही थी बस केवल उसके बीच की निप्पल ब्लाउज के अंदर दबी हुई थी शायद अपने नुकीले पन से ब्लाउज के अंदर अपनी जगह बनाई हुई थी वरना सरक कर पूरी की पूरी चूचियां बाहर आ जाती,,,, यह देख कर रघु के तन बदन में आग लगने लगी उसके पजामे में गदर मचने लगा,,,, प्रताप सिंह की बीवी ने यह हरकत जानबूझकर की थी जब वह पेशाब कर रहा था और उसके पेशाब करने की आवाज कानों में पड़ते ही प्रताप सिंह की बीवी अपने तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ते हुए महसूस की थी और उत्तेजित अवस्था में उसने जानबूझकर अपने ब्लाउज के नीचे के दो बटन खोल दिए थे,, और उसकी यह हरकत रघू पर बराबर काम कर रही थी,,, उत्तेजना के मारे रघु का गला सुख रहा था,,, और वह प्यासी आंखों से जमीदार की बीवी के ब्लाउज की तरफ देखते हुए पीठ के बल लेटने लगा प्रताप सिंह के बीवी को अच्छी तरह से मालूम था की रघु उसकी चुचियों को ही देख रहा है यह देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,,,
दोनों के बीच किसी भी तरह की वार्तालाप नहीं हो रही थी रघु चोर नजरों से सांसो के साथ उठती बैठती,,, जमीदार की बीवी की बड़ी-बड़ी चुचियों को देख रहा था जो कि बेहद मादक तरीके से अपना जलवा बिखेर रही थी,,,तकरीबन 10 मिनट गुजर गए थे लेकिन दोनों के बीच किसी भी तरह की बातचीत नहीं हो रही थी प्रताप सिंह की बीवी अपनी आंखों में भावनाओं का तूफान और हसरत लेकर रघू की तरफ देख रही थी कि रघू कुछ शुरुआत करें,,,, क्योंकि संस्कार के बोझ तले दबी जमीदार की बीवी को पहल करने मैं घबराहट हो रही थी हालांकि उसने रघू के लिए सारे रास्ते साफ करने के साथ-साथ खोलकर भी रख दिए थे,,, रघु की पैनी नजर अपनी चुचियों पर महसूस करके उसका दिल जोरों से धड़क रहा था,,,परघु का मन मचल रहा था उसकी दोनों चूचियों को अपने हाथ में लेकर दबाने के लिए,,, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी वह भी प्रताप सिंह की बीवी को पूरी तरह से उत्तेजित कर देना चाहता था ताकि उसकी गलत हरकत से वह मस्त हो जाएगा और जो वह करें इसे करने दे,,,, इसलिए वह जानबूझकर ऐसी हरकत किया कि जिसे देखकर प्रताप सिंह की बीवी एकदम से गरमा गई,,,,रघु के पजामे में उसका लंड पूरी तरह से खडा हो चुका था और अपने दोनों घुटने मोड़कर पीठ के बल लेटा हुआ था,,, मैं जानता था कि उसके पैर फैलाते ही उसके पजामे में बना तंबू जमीदार की बीवी की नजर के सामने आ जाएगा और इसलिए वह जानबूझकर अपने दोनों पैर फैला दिया,,, और उसके पजामे में बना दमदार तंबू एकदम से किसी सामियाना के तंबू की तरह नजर आने लगा और जमीदार की बीवी की नजर उस के तंबू पर पडते ही वो एकदम से उत्तेजित हो गई,,,वह एकदम से जोश से भर गई उसका मन लालच उठा रघु के तंबू को अपने हाथ से पकड़ने के लिए,,,, और वह अपना एक पैर धीरे से घुटनों से मोड़ दी जिससे उसकी साड़ी सरसराकर जांघों से होती हुई कमर के इर्द-गिर्द आकर इकट्ठा हो गई पलक झपकते ही उसकी मदमस्त गोरी गोरी सुडोल टांग और उसकी मोटी मोटी जांघें लालटेन की पीली रोशनी में चमकने लगी यह देख कर रघु से रहा नहीं गया और वह अपना एक हाथ बढ़ा कर सीधे जमीदार की बीवी के ब्लाउज पर रख दिया जिसमें से उसकी आधी से ज्यादा चूचियां बाहर को झलक रही थी,,,,,, जैसे ही रघू का हाथउसे अपनी चुचियों पर महसूस हुआ उसके मुंह से गर्म सिसकारी फूट पड़ी,,,।
सससहहहहह,,,,,आहहहहहहहह,,,,, रघू यह क्या कर रहे हो,,,,तुम्हें डर नहीं लगता मैं जमीदार की बीवी हूं अगर इस बारे में जमीदार को पता चल गया तो तुम्हारा क्या हश्र होगा,,,(वह सिर्फ बोल रही थी उसे रोकने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं कर रही थी,,, जिससे रघु को पता चल गया कि उसके साथ चाहे कुछ भी करेगा कुछ भी नहीं बोलने वाली और वह अपने मन में यही चाहती है कि वह कुछ करें रघु उसका इशारा समझ चुका था,,, इसलिए मैं रघु बिना डरे ब्लाउज के ऊपर से ही उसकी चूची को दबाते हुए बोला,,,)
मैं अच्छी तरह से जानता हूं मालकिन अगर यह बात मालिक को पता चल गया तो मेरी खैर नहीं होगी शायद वह मुझे जान से मार दें लेकिन मौत तो बाद में आएगी लेकिन उसके पहले जीने का सुख मैं नहीं छोड़ सकता आपकी खूबसूरत और मस्त कर देने वाली सूची को अपने हाथ से दबाने की लालच को मैं रोक नहीं पाऊंगा,,,(रघु अपने एक हाथ से जोर-जोर से ब्लाउज के ऊपर से ही उसकी चूची को दबाते हुए बोला)
क्या तुम्हें मेरी छोटी इतनी अच्छी लगती है,,,
हां मालकिन आपकी चुची बहुत खूबसूरत है,,,,
(एक बड़े घराने की औरत के मुंह से चुची शब्द सुनकर रघु एक दम मस्त हो चुका था,,,,)
तो लो मैं तुम्हें अच्छी तरह से दीखा देती हु,,,,।(इतना कहने के साथ ही वह अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी यह देखकर रघु का दिल जोरो से धड़कने लगा,,,,,रघु को साफ नजर आ रहा था कि अपने ब्लाउज के बटन खोलने में और वह भी उसकी आंखों के सामने उसके चेहरे पर जरा भी झिझक के भाव नजर नहीं आ रहे थे वह एकदम सहज होकर अपने ब्लाउज के बटन खोल रही थी,, पर जैसे ही बाकी के बटन खोल कर अपनी ब्लाउज के दोनों चोरों को पकड़ कर अपनी चूचियों पर से दूर हटाए वैसे ही बेहद खूबसूरत कबूतर अपने पंख फड़फड़ाते हुए मुस्कुराने लगे,,,, रघु तो आंखें फाड़े जमीदार की बीवी की छलकती जवानी को देखता ही रह गया,,,, और वह अपने होठों पर मादक मुस्कान बिखेरते हुए बोली।
कैसे लग रहे हैं,,,,?
बहुत खूबसूरत मालकिन,,,,( इतना कहते हुए रघु अपना एक हाथ आगे बढ़ाकर हल्के से अपनी उंगलियों को उसकी बड़ी बड़ी चूची पर फिराने लगा,,, रघु एक दम मस्त हो चुका था,,ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई अनमोल खजाने को देख लिया हो और उस पर ऊंगलिया स्पर्श करके उसके खरा खोटे होने की तसल्ली कर रहा हो,,, मदमस्त चुचियों को देखकर उसकी चमक रघु की आंखों में साफ नजर आ रही थी,,,,जिस तरह के हाव-भाव रघु के चेहरे पर बदल रहे थे उसे देखकर प्रताप सिंह की बीवी मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,,,,, इस बात का एहसास हो रहा था कि पहली बार कोई औरत के इन अंगों को देखता है तो शायद इसी तरह के हाव-भाव उसके चेहरे पर बदलते रहते हैं जिस तरह के हाव-भाव रघु के चेहरे पर बदल रहे थे,,, रघु से रहा नहीं गया और वह उसकी चूची को हल्के हल्के से स्पर्श करते हुए अपना दूसरा हाथ भी आकर बढ़ाकर दोनों चुचियों को दोनों हाथ में लेकर जोर से दबा दिया,,,, अपनी हथेली का दबाव इतनी जोर से लगाया था कि उसके मुंह से आह निकल गई,,,,
आहहहहहह,,, रघु थोड़ा धीरे,,,,
धीरे से दबाने लायक वह चीज नहीं है मालकिन,,,,
तो,,,,,,( वह आश्चर्य जताते हुए बोली)
इस पर तो पूरा जोर लगा कर इससे खेलना चाहिए,,,,(रघु अपने दोनों हाथों में उसकी चुचियों को लिए हुए बोला)
दर्द होता है,,,,
दर्द में ही तो मजा है मालकीन,,,,
मैं कुछ समझी नहीं,,,,,
अगर आप इजाजत दें तो मैं समझा भी सकता हूं,,,,
अपने हाथों से अपने ब्लाउज के बटन को खोलती हूं अब इससे ज्यादा तुझे किस बात की इजाजत चाहिए,,,,
ओहहहह,,,, मालकिन,,,,,(इतना कहने के साथ ही रघु जमीदार की बीवी की मदमस्त झलकती जवानी पर टूट पड़ा वह अपने दोनों हाथों से उसके दोनों दशहरी आम को जोर-जोर से दबाते हुएउसके चेहरे की तरफ देखने लगा वह लालटेन की रोशनी में उसके चेहरे पर बदलते भाव को देखना चाहता था,,,। रघु को साफ दिखाई दे रहा था किउसके चेहरे पर दर्द के भाव दिखाई दे रहे हैं लेकिन रघु चाहता था कि उसके चेहरे पर दर्द के नहीं बल्कि आनंद के भाव नजर आए इसलिए वह अपना मुंह आगे बढ़ा कर उसके एक दशहरी आम को अपने मुंह में भर कर चूसना शुरू कर दिया,,,,।
आहहहहहह,,,,,सहहहहहहहहह,,,,, रघू,,,,,,( वह एकदम से मस्ती भरी सिसकारी लेते हुए बोली,,, रघु की हरकत काम करने लगी थी,,,, रघू एकदम माहिर हो चुका था,,, रघु के हाथ में प्रताप सिंह की बीवी की चूचीया आते ही अपना रंग बदलना शुरू कर दी थी,,,,थोड़ी ही देर में रघू उन्हें दबा दबा कर और उनको मुंह में भर कर पी पी कर लाल कर दिया था,,,। प्रताप सिंह की बीवी हाथ की कोहनी का सहारा लेकर लेटी हुई थी और रघु भी लेटा हुआ था लेकिन वह पूरी तरह से जमीदार की बीवी पर छा गया,,, था,,। थोड़ी ही देर में तांगे के साथ-साथ उस वीरान जगह पर प्रताप सिंह की बीवी की मादक सिसकारियां गुंजने लगी,,,,जिस तरह से रघु उसकी चूचियों से खेल रहा था उस तरह से उसके पति प्रताप सिंह ने कभी भी उसकी चुचियों के साथ खेलना मुनासिब नहीं समझा,,,उन्हें बस एक ही काम आता था औरत के ऊपर चढ़ जाना और 2 मिनट में काम खत्म करके बगल में लेट जाना औरतों के बदन के साथ किस तरह से खेला जाता है किस तरह से उन्हें सुख दिया जाता है इस बारे में प्रताप सिंह बिल्कुल ही अनजान था,,, लेकिन रघु एकदम उस्ताद थाऔरतों के बदन के साथ खेल से खेला जाता है कैसे उन्हें सुख किया जाता है यह उसे अच्छी तरह से आता था,,, दोनों की सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी,,,,प्रताप सिंह की बीवी को मजा आ रहा था आनंद की ऐसी पराकाष्ठाउसने कभी भी अपने अंदर महसूस नहीं की थी जिस तरह की पराकाष्ठा रघु उसे महसूस करा रहा था,, वह मदहोश होने लगी पहली बार उसे ज्ञात हो रहा था कि औरतों के चुचियों से मर्द इस तरह से भी खेलते हैं,,, रघू के दोनों हाथों में प्रताप सिंह की बीवी के दोनों कबूतर जी जान से फड़फड़ा रहे थे,,,
कैसा लग रहा है मालकिन ,,,,,,(पल भर के लिए वह उसकी चूची से मुंह उठाकर ऊपर की तरफ देखते हुए बोला)
बहुत अच्छा लग रहा है रघु,,,, बहुत मजा आ रहा है,,,( वह एकदम मदहोश होते हुए मादक स्वर में बोली उसकी आंखें बंद हो रही थी जिससे साफ पता चल रहा था कि वह आनंद की पराकाष्ठा का अनुभव कर रही है उसे साफ महसूस हो रहा था कि उसकी बुर में से मदन रस बह रहा है,,, पर ऐसा तभी होता था जब वो एकदम से काम भावना से ग्रस्त हो जाती थी और आज ऐसा ही महसूस करके एकदम मस्त हुए जा रही थी,,,। अपनी मालकिन का जवाब सुनकर रखो फिर से दोनों खरबूजा पर टूट पड़ा रघु यही अदा औरतों को उसका दीवाना बना देती थी क्योंकि वह उनकी चुचियों के साथ जी भर के खेलता था इतना कि उन्हें इस बात का अहसास तक नहीं होता था कि कब उनकी बुर पानी छोड़ने लगी,,,,प्रताप सिंह की बीवी की बुर से इतना पानी निकलने लगा था कि उसकी पेटीकोट भीगने लगी थी,,,, कुछ देर तक उसकी चुचियों के साथ खेलने के बाद रघु थोड़ा सा अपने आपको विराम दे कर अपनी मालकिन के चेहरे को देखने लगा उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव नजर आ रहे थे उसे आनंद आ रहा था उसकी आंखें बंद थी रेशमी बालों की लट उसके चेहरे पर आ रही थी जिससे उसका चेहरा और खूबसूरत लग रहा था लालटेन की रोशनी में उसका गोरा मुखड़ा एकदम दमक रहा था,,,, रघू अपनी खूबसूरत मालकिन को एकदम नग्नवस्था में देखना चाहता था,,,,कपड़ों में जब वो इतनी खूबसूरत लगती थी तो वह अपने मन में ही सोच रहा था कि बिना कपड़ों के वह कितनी खूबसूरत लगती होगी इसलिए अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर उसके ब्लाउज को उसके कंधों से नीचे की तरफ सरकाने लगा,,, रघु को अपना ब्लाउज उतारता हुआ देखकर वह अपने बदन को एकदम ढीला छोड़ दी ताकि रखो आराम से उसके ब्लाउज को उसके बदन से अलग कर सके,,,, यह पूर्ण सहमति थी जिससे रघु एकदम खुश नजर आ रहा था देखते ही देखते वह उसके बदन पर से ब्लाउज को उतारकर तांगे में एक कोने पर रख दिया,,,, कमर के ऊपर बाइक दम से नंगी हो गई उसकी मां की मस्त चूचियां पानी भरे गुब्बारों की तरह छातियों पर लहरा रही थी जिसे देखकर एक बार फिर से उसके मुंह में पानी आ गया और वहां अपना दोनों हाथ आगे बढ़ाकर फिर से उन्हें अपने हाथों में थाम कर उन्हें दबाना शुरू कर दिया,,,,प्रताप सिंह की बीवी के मुख से एक बार फिर से गर्म सिसकारी की आवाज निकल पड़ी,,, वह मन ही मन में चाहती थी कि रघु इससे ज्यादा आगे बढ़े साथियों से शुरू किए गए खेल को वह उसकी दोनों टांगों के बीच आकर खत्म करें,,, लेकिन रघु के मन को वह समझ नहीं पा रही थी रघु जी जान लगाकर हद से ज्यादा औरतों के हर एक अंग से खेलता था उन्हें इस बात का एहसास दिलाता ताकि उनके बदन का हर एक अंग मर्दों के लिए उत्तेजना और आनंद की सीमा को तय करते हैं और हर एक मर्द अपनी सीमा में रहकर औरतों के हर एक अंग से खेलता था लेकिन रघु की बात कुछ अलग थी वह हद से ज्यादा औरतों के अंगों से खेलता था चाहे भले वह चूची हो उनकी बड़ी बड़ी गांड हो या रसीली बुर हो,,,, प्रताप सिंह की बीवी अपने आप को रघु की आंखों के सामने अर्धनग्न अवस्था में पाकर शर्म से गड़ी जा रही थी,,,,क्योंकि उसे इस बात का एहसास भी अच्छी तरह से हो रहा था कि दोनों की उम्र की सीमा एक बराबर बिल्कुल भी नहीं थी,,, कुछ ना कुछ उम्र की सीमा यह तय कर रही थी कि रघु उसके बेटे जैसा ही था लेकिन जिस्म की प्यास के आगे उम्र की कोई सीमा नहीं होती,,,,,,
रघु पागल हुए जा रहा था अपनी मदमस्त खूबसूरत जवानी से भरी हुई मालकिन के कपड़े उतारते हुए उसे अद्भुत सुख का अहसास हो रहा था पजामे में उसका लंड गदर मचाए हुए था,,, अपनी मालकिन के गुलाबी होंठ देखकर उसके मुंह में पानी आने लगा और वह अपना मुंह आगे बढ़ा कर उसके होठों पर अपना हॉट रखकर चूसना शुरू कर दिया प्रताप सिंह की बीवी के लिए बिल्कुल नया अनुभव था क्योंकि आज तक उसके पति ने उसके होठों पर इस तरह से चुंबन नहीं किया था एकदम मदहोश होने लगी आंखें बंद थी जिसे खोलने की हिम्मत शायद अब ऊसमें बिल्कुल भी नहीं थी और अब उसे नज़रें नहीं मिला पा रही थी एक जवान लड़के को इस तरह से अपने होंठों को चूसता हुआ पाकर वह मदहोश हुए जा रही थी,,, उसे शर्म भी आ रही थी,,,, रघु पागलों की तरह उसके होठों का रसपान कर रहा था और एक हाथ से उसकी चूची को भी दबा रहा था,,,, ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी चुचियों में ही सारा रस छुपा हुआ है,,,, देखो पागल हुए जा रहा था एक जवान औरत और वो भी बड़े घराने की उसकी बाहों में थी,,,,वह कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इतने बड़े घराने की औरत का सुख वह भोग पाएगा,,,वैसे भी उसकी किस्मत बड़ी तेज चल रही थी सबसे पहले हलवाई की बीवी उसके बाद रामू की मां और उसके बाद खुद की बड़ी बहन और आप जाकर एक बड़े घराने की एक जमीदार की औरत जो इस वीराने में घने जंगल के बीच उसे शरीर सुख दे रही थी,,, रघु प्रताप सिंह की बीवी का हाथ पकड़कर उसे धीरे-धीरे नीचे की तरफ लेकर आया और सीधे अपने पेंट में बने तंबू पर रख दिया,,यु एका एक रघू के तंबू पर हाथ पडते ही ,, एकदम से घबरा गई और घबराकर अपना हाथ पीछे खींच ली तो रघू एक बार फिर से उसका हाथ पकड़ कर अपने तंबू पर रखते हुए बोला,,,।
डरो मत मालकिन मेरा लंड है यही तो वह अंग है जिसे औरत सबसे ज्यादा पसंद करती है और उससे खेलने के लिए दिन रात मचलती रहती है,,,,यही लंड अगर आप इजाजत देंगी तो थोड़ी देर बाद तुम्हारी बुर के अंदर होगा तुम्हारी बुर की गहराई नाप रहा होगा,,,,(रघु एकदम बेशर्मी बनता हुआ बोला रघुवीर तरह की बातें प्रताप सिंह की बीवी के तन बदन में हलचल पैदा कर रही थी पहली बार वह ईतनी गंदी बातें अपने लिए सुन रही थी,,,,लेकिन उसे बुरा नहीं लग रहा था उसे तो रघू की बातें सुनकर मजा आ रहा था,,,।और इस किस तरह की गंदी बातें सुनकर उसका मदहोशी छाने लगी और इस बार वह रघु के तंबू पर से अपना हाथ नहीं हटाई करके उसे पकड़कर दबाने लगी,,, प्रताप सिंह की बीवी को मजा आ रहा था पहचाने के ऊपर से ही रघू के लंड को दबाते हुएउसे इस बात का एहसास हो गया कि रघु का हथियार कुछ ज्यादा ही तगड़ा है,,,, इसलिए वह धीरे से शरमाते हुए बोली,,,।)
रघु तुम्हारा तो ज्यादा ही मोटा और लंबा है,,,
क्यों मालकिन मालिक का ऐसा नहीं है क्या,,,?
नहीं उनका तो इससे आधा भी नहीं है,,,
तब तो मालिक तुम्हें चुदाई का पूरा सुख नहीं दे पाते होंगे,,,
मुझे क्या पता रघू,,,, शायद मे असली सुख से वाकिफ नहीं हो पाई हूं,,,,
चिंता मत करो मालकिन आज तुम्हें असली सुख में दूंगा आज तुम्हें चुदाई का ऐसा सुख दूंगा कि तुम जिंदगी भर याद रखोगी,,,,(रघु की मस्ती भरी औ सांत्वना भरी बातें सुनकर वर्षों से मदहोश होते हुए बोली,,)
ओहहह रघु तुम कितने अच्छी हो,,,,(इतना कहने के साथ ही वह इस बार खुद रघू के होंठों को अपने होंठों में भरकर चुसना शुरु कर दी,,, दोनों एक दूसरे के होंठों का रसपान करने में एकदम मगन हो गए,,,, प्रताप सिंह की बीवी पजामे के ऊपर से ही रघु के लंड से खेल रही थी और रघु धीरे से अपने पजामी की डोरी खोल दिया और प्रताप सिंह की बीवी का हाथ पकड़ कर उसे अपने पजामे में डाल दिया,,, रघु का मोटा तगड़ा नंगा लंड हाथ में आते ही प्रताप सिंह की बीवी एकदम से सिहर उठी लेकिन वह रघू के लंड को छोड़ी नहीं बल्कि और मजबूती से पकड़ ली,,, इतनी जोर से कि रघु के मुंह से आह निकल गई,,,। जवान औरत के हाथों से इस तरह से नींद दबाने पर रघु को आनंद ही आनंद प्राप्त हो रहा था,,,, रघु की हालत खराब हुए जा रही थी पर जल्द से जल्द प्रताप सिंह की बीवी को एकदम नंगी कर देना चाहता था इसलिए अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसकी साड़ी को नाभि के नीचे से खोलना शुरू कर दिया,,,,और देखते ही देखते रघु प्रताप सिंह की बीवी की साड़ी को उतार कर तांगे में एक कोने पर रख दिया,,,। प्रताप सिंह की बीवी का दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि उसे मालूम था कि उसे उसे पूरी तरह से नंगी करने वाला है उसकी जिंदगी में यह दूसरा मर्द था जिसके सामने वह पूर्ण रूप से निर्वस्त्र होने जा रही थी,,,, जिसे वो खुद अपने हाथों से उसके कपड़े उतार कर नंगी करने जा रहा था अपनी मालकिन की आंखों में झांकते हुए उसके पेटीकोट की डोरी को खोलने लगा,,, प्रताप सिंह की बीवी की आंखों में शर्म नजर आ रही थी,,,हालांकि अभी भी उसके हाथ में रघू का मोटा तगड़ा लंड था जिसे वह जोर-जोर से दबा रही थी,,,।उसका लंड इतना ज्यादा कड़क हो चुका था कि लग ही नहीं रहा था कि वह हाड मास का बना हुआ है ऐसा लग रहा था कि वह लोहे की छड़ हो।
देखते ही देखते रखो लालटेन की रोशनी में मदहोश मत मस्त जवानी के कमर से पेटीकोट की डोरी को खोल दिया और उसे दोनों हाथों से पकड़कर नीचे की तरफ खींचने लगा तो भारी-भरकम नितंबों के नीचे पेटीकोट तभी होने की वजह से नीचे नहीं आ रही थी तो प्रताप सिंह की बीवी खुद उसकी मदद करते हुए अपनी भारी-भरकम गांड को थोड़ा सा ऊपर की तरफ उठा दी और रघु मौका देखते ही अपने दोनों हाथों से ऊसकी पेटीकोट खींचकर तुरंत उसकी मोटी मोटी चिकनी जांघों से होती हुई उसकी टांगों से पेटिकोट निकाल कर उसे भी कोने पर रख दिया,,अब प्रताप सिंह की बीवी जमीदार की बीवी बड़े घर की औरत लोगों के सामने एकदम नंगी लेटी हुई थी रघु लालटेन की रोशनी में उसके गोरे बदन को दमकता हुआ देख रहा था,, रघु की आंखों में उसकी मदमस्त गोरी जवानी देखकर एकदम चमक आने लगी वह मदहोश होने लगा और ऊपर से नीचे की तरफ देखते हुए वह बोला,,,,।
वाहमालकिन आप तो बहुत खूबसूरत है ऐसा लग रहा है कि जैसे स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा मेरे तांगे में आकर बैठ गई है,,,(रघु की बात सुनकर प्रताप सिंह की बीवी शर्मा गईरघु अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उसकी दोनों टांगों को पकड़कर उसे हल्का सा खोलते हुए बोला) देखने तो दो मालकिन जिस चीज को देखने के लिए मैं तड़प रहा था वह चीज कैसी दिखती है,,,,(इतना कहकर वह अपनी मालकिन की दोनों टांगों को खोल दिया,,, टांगों के बीच उसकी मदमस्त फुली हुई बुर को देखकर एकदम बदहवास हो गया,,,वह तो उसे देखता ही रह गया उसका मुंह खुला का खुला रह गया था उत्तेजना के मारे प्रताप सिंह की बीवी की बुर तवे पर गर्म रोटी की तरह खुल चुकी थी जिसके एक दिखी रे रेशमी बालों का गुच्छा था लेकिन गुच्छे के बीच उसकी मखमली गुलाबी बुर बेहद हसीन लग रही थी,,। रघु तो उसे देखकर एकदम पागल हो गया था और प्रताप सिंह की बीवी की हालत खराब हो रही थी क्योंकि उसे अच्छी तरह से मालूम है कि इस समय रघु उसकी बुर को ही देख रहा है,,,
रघु अपनी लालच को रोक नहीं पा रहा था और अपना ही कहा था आगे बढ़ाकर उसकी गुलाबी बुर की गुलाबी पत्तियों को अपनी उंगली से छूकर उसे देखने लगा,,, जिसमें से मदन रास्ते रहा था और उसकी कुछ बोल दे उसकी उंगली पर लग गई और वह उंगली को अपने होठों पर रखकर उसे जीभ से चाटने लगा यह देखकर प्रताप सिंह की बीवी एकदम से शर्म से पानी पानी हो गई,,,,,
मालकिन आपकी बुर तो पानी छोड़ रही है,,,(इतना कहने के साथ ही रघुअपना मुंह के दोनों टांगों के बीच ले गया और उसकी बुर को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया,,,,,प्रताप सिंह की बीवी एकदम से मदहोश हो गई रघु की हरकत की वजह से उसके मुख से गरम सिसकारी फूट पड़ी तो कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि कोई अनजान जवान लड़का उसकी बुर को चाटेगा,,, लेकिन हकीकत तो यह था कि उसे इस बात का पता ही नहीं था कि औरत की बुर चाटी भी जाती है,,,,जब तक उसे इस बात का एहसास हुआ तब तक रघु उसके ऊपर पूरी तरह से छा चुका था मैं पागलों की तरह अपनी जीभ जितना अंदर जा सकती थी उस ना अंदर बुर के अंदर उतार देता था और जीभ से उसके मदनरस को चाट रहा था,,।
आहहहहहह,,,सीईईईईईईईई,,,आहहहहहहह,,,, रघू,,,आहहहहहहह,( प्रताप सिंह की बीवी अपने दोनों हाथ से उसका बाल पकड़कर उसको और जोर से अपनी बुर पर दबा रही थी उसे मज़ा आ रहा था उसने कभी सोची भी नहीं थी कि इस तरह का आनंद भी मिलता है रघु से पूरी तरह से मस्त कर रहा था देखते ही देखते वहां एक साथ अपनी दो उंगली उसकी बुर के अंदर डाल दिया,,,,,
आहहहहह,,,, रघु दर्द हो रहा है,,,,(दो उंगली बुर के अंदर जाने की वजह से वह कराहते हुए बोली,,,)
चिंता मत करो मालकिन थोड़ी देर में मजा आने लगेगा ( वह अपनी दो उंगली जोर-जोर से अंदर बाहर करना शुरू कर दिया उसे मज़ा आ रहा था वह पूरी मस्त हुए जा रही थी रघु उसकी बुर में अपनी दो उंगली जानबूझकर डाल रहा था वह अपने लंड के लिए जगह बना रहा था,,, प्रताप की बीवी एकदम मस्त हुए जा रही थी उत्तेजना के मारे अपनी कमर को ऊपर की तरफ उठा दे रही थी,,,,रघु को समझती थी और नहीं लगी कि लोहा गर्म हो चुका है बस हथोड़ा मारने की देरी है,,, क्योंकि जिस तरह का जोशप्रताप सिंह के बीवी पर छाया हुआ था उसे देखते हुए रघू को लगने लगा था कि वह उसके मोटे तगड़े लंड को अपनी बुरर के अंदर पूरा का पूरा ले लेगी,,,, यही सोचकर वह बिना एक पल गांवाए,,, अपना कुर्ता पजामा दोनों एक साथ उतार दिया तांगे के अंदर वह भी पूरा का पूरा नंगा हो गया,,, प्रताप सिंह की बीवी की नजर रघु के नंगे बदन पर पड़ी तो वह एकदम पूरी तरह से आकर्षित हो गई एकदम जवान गठीला बदन ऊपर से दोनों टांगों के बीच में लहराता हुआ उसका खंजर जो कि ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी का कत्ल करने जा रहा हो,,,, पहली बार वह रघु के नंगे लंड को देख रही थी जो कि बेहद आकर्षक और मर्दाना ताकत से भरा हुआ लग रहा था जिसे देखते ही उसकी बुर फुदकने लगी,,,,, देखते ही देखते रघूप्रताप सिंह की बीवी की दोनों टांगों के बीच आ गया और उसकी दोनों टांगों को फैलाता हुआ अपने लिए जगह बनाने लगा,,,, प्रताप सिंह की बीवी की गुलाबी बुर मुस्कुरा रही थी,,, मानो वह एकदम खुश हो रही होऔर यह जता रही हो कि आज उसकी बुर में पहली बार कोई मर्दाना लंड जाने वाला है,,,, प्रताप सिंह की बीवी का दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि उसे पता था कि अब रघु का मोटा तगड़ा बंद उसकी पुर के अंदर प्रवेश करने वाला है लेकिन इस बात का अंदेशा उसके मन में था कि इतने मोटे तगड़े लेने को अपनी बुरके गुलाबी छेद मैं पूरी तरह से ले पाएगी कि नहीं,,, लेकिन रघु को पूरा विश्वास था कि जमीदार की बीवी की जवानी पर पूरी तरह से विजय प्राप्त कर लेगा,,,।प्रताप सिंह की बीवी घबरा रही थी इतनी घबराहट तो उसे अपने पति के साथ संभोग करने से भी नहीं हुआ था जितनी घबराहट उसे रघू के साथ हो रहा था,,,
रघु अपने लिए जगह बना चुका था,,, प्रताप सिंह की बीवी की गरम जवानी के चलते उसके पसीने छूट रहे थे,,, देखते ही देखते रघू एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर मालकिन की गुलाबी बुर के ऊपर रख दिया,,,,,।
सससहहहहहह आहहहहहहह,,,,(एक जवान लड़के के मोटे तगड़े लंड को अपनी बुर की गुलाबी पत्ती पर महसूस करते ही प्रताप सिंह की बीवी अपनी गरम सिसकारी को रोक नहीं पाई और उसके मुख से गर्म सिसकारी फूट पड़ी,,, और उसको इस तरह से सिसकारी लेता हुआ देखकर रघु बोला)
क्या हुआ मालकिन,,,,
मुझे डर लग रहा है रघू,,,,
डरो मत मालकिन बहुत मजा आएगा,,, आखिर लंड बना ही होता है बुर के अंदर जाने के लिए,,, तो डर कैसा,,,(इतना कहकर वह प्रताप सिंह की बीवी की बुरके छेद पर अपना गर्म सुपाड़ा रखकर हल्के से दबाव देता हूंआ अपनी कमर आगे की तरफ ठेलने लगा,,,,, रघु को थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी लेकिन बुर अपने ही मदन रस से एकदम चिकना हो चुका था जिससे धीरे-धीरे रघु का लंड प्रताप सिंह की बीवी की बुर के अंदर दाखिल हो रहा था और देखते ही देखते गुलाबी बुरके गुलाबी छेद को छेंदता हुआ रघु का लंड अंदर की तरफ जाने लगा,,,,,जैसे-जैसे लंड का सुपाड़ा बुर के अंदर सरक रहा था वैसे वैसे प्रताप सिंह की बीवी के गोरे चेहरे का रंग बदलता जा रहा था,,,, आश्चर्य डर और घबराहट का मिलाजुला असर उसके चेहरे पर दिख रहा था उसका मुंह खुला का खुला था,, रघु एकदम मदहोश हो रहा था,,,,,धीरे-धीरे करके लंड का सुपाड़ा पूरी तरह से बुर के अंदर प्रवेश कर चुका था,,,और एकबार मुंह घुस जाए तो बाकी का शरीर जाने में कहा समय लगता है,,, रघू पसीने से तरबतर हो चुका था,,,।लंड का सुपाड़ा भर गया था,,,और रघू को लग रहा था की मालकिन का पानी
नीकालने में उसे मेहनत करनी होगी,,,
जमींदार की बीवी देखना चाह रही थी कि उसकी बुर में कीतना लंड घुसा हुआ है,,, इसलिए वह अपना मुंह ऊठा कर अपनी दोनों टांगों के बीच देखी तो हैरान रह गई और उसके मुंह से निकल गया कि,,,,
बाप रे अभी तो सुपाड़ा ही गया है अभी तो पूरा लंड बाकी है,,,,
( उसके मुंह से सुपाड़ा शब्द सुनकर रघू एकदम मस्त हो गया और मुस्कुराते हुए बोला)
चिंता मत करो मालकिन लंड भी चला जाएगा,,,बस थोड़ी देर और,,,,
लेकिन मुझे दर्द हो रहा है,, तुम्हारा लंड मोटा तगड़ा है,,,
मजा भी तो उतना ही देगा मालकिन,,,,तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारी बुर की ऐसी सेवा करुंगा कि आप जिंदगी भर याद रखोगी,,,( रघू लंबी सांस लेते हुए बोला,,, और फिर से जोर लगाता हुआ अपनी कमर का दबाव बढ़ाने लगा ,,,देखते ही देखते रघू का लंड ओर अंदर सरकने लगा,,,,थोड़ा थोड़ा करके रघू का लंड उसकी बुर में घुस रहा था,,,यह देखकर रघू के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी,,,और वह अपनी मालकीन से बोला,,,।
तुम्हारी बुर बहुत संकरी है,,,लगता है मालिक ठीक से आपकी चुदाई नहीं करते थे,,,।
तुम ठीक कह रहे हो रघू,,,जितनी देर में तुम बुर में सुपाड़ा घुसा पाए हो अभी वो होते तो इससे भी कम समय में पानी छोड़ दिए होते,,,
तब तो मालकिन,,आप चुदाई का भरपूर आनंद नहीं ले पाई हो,,,,
हां तुम ठीक कह रहे हो,,,, लेकिन आज ऐसा लग रहा है कि तुम मुझे असली सुख दोगे,,,,( वह आसा भरी निगाह से रघू की तरफ देखते हुए बोली,,,)
हां मालकिन,,,तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो,, मैं तुम्हें चुदाई का ऐसा सुख दुंगा की तुम जिंदगी भर याद रखोगी और मेरे लंड की ऐसी दीवानी हो जाओगी की मालीक को छोड़ कर मेरे पास चुदवाने आओगी,,,
( रघु की ईस बात पर वह एकदम से शर्मा गई,,,और शर्मा कर दुसरी तरफ मुंह फेर ली,, रघु को उसका इस तरह से शर्माना बेहद लुभावना लग रहा था और वह इस बार उसकी दोनों मोटी मोटी जांघों को अपने हाथों से पकड़ कर अपनी कमर का ऐसा झटका दिया कि उसका आधा लंड उसकी बुर में घुस गया,,,और जिस तरह से कचकचा कर उसने अपना लंड अंदर घुसेड़ा था प्रताप सिंह की बीवी के मुंह से एक चीख निकल गई,,,,,)
आहहहहह मर गई रे यह क्या किया रघू,,,(और यह देखने के लिए कि कहीं ऊसकी बुर तो नहीं फट गईवह तुरंत मोड खाकर अपनी दोनों टांगों के बीच की स्थिति को देखने लगी लेकिन सब कुछ वैसे का वैसा ही था तब उसके जान में जान आई लेकिन फिर भी उसे दर्द हो रहा था वह अपना लंड बाहर निकालने के लिए रघू को बोलने लगी लेकिन रघू कहा मानने वाला था,,,, वह एक बार फिर से उसकी कमर को थाम कर जोर का झटका दिया और इस बार बुर के अंदर की सारी अड़चनों को दूर करता हुआ उसका मोटा तगड़ा लंड उसकी बुर की गहराई नापता हुआ सीधे जाकर उसके बच्चेदानी से टकरा गया इस बार फिर से प्रताप सिंह की बीवी दर्द से बिलबिला उठी,,,,, उसे बहुत दर्द कर रहा था वह छटपटा रही थी सर को दाएं बाएं पटक रही थी,,,, औरत के अंगों से मर्द किस तरह से खेलते हैं उड़ी में कैसा सुख देते हैं इस बारे में उसे पहली बार पता चला था तो यह बात भी उसे पहली बार पता चली थी कि जब एक मर्दाना ताकत से भरा हुआ लंड बुर में घुसता है तो औरत को कैसा दर्द देता है वह तो बार-बार उसे अपना लंड बाहर निकालने के लिए बोल रही थी लेकिन रघु जानबूझकर अपना लंड बाहर नहीं निकाल रहा था क्योंकि वह जानता था कि अगर एक बार अपना लंड उसकी बुर से बाहर निकाल दिया तो वह दोबारा उसके अंदर डालने नहीं देगी,,, लेकिन ऐसी परिस्थिति में कैसे रास्ता निकाला जाता है इस बारे में रघू अच्छी तरह से सीख चुका था,,,, इसलिए वह प्रताप सिंह की बीवी को धैर्य बंधाते हुए बोला,,,)
बस बस मालकीन थोड़ा सा,,,,थोड़ी ही देर में सब कुछ बदल जाएगा तुम्हें मजा आने लगेगा बस थोड़ा सा धीरज रखो,,,,(इतना कहने के साथ ही रघु बिना अपनी कमर हिलाई अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर उसके दोनों दशहरी आम को अपने हाथों में भर लिया और उसे दबाते हुए उसके ऊपर जाकर उसके गुलाबी होठों को चूसना शुरू कर दिया रघु की हरकत रंग लाने लगी थोड़ी ही देर में दर्द से कराने की आवाज मत भरी सिसकारी में बदल गई उसे मजा आने लगा लेकिन अभी तक रघु अपनी कमर हिलाने का था लेकिन उसे गर्म सिसकारी लेते धीरे-धीरे वह अपनी कमर को ऊपर नीचे करते हुए उसे चोदना शुरू कर दिया,,, प्रताप सिंह की बीवी आनंद से भावविभोर हुए जा रही थी और रखो अपनी कला दिखाएं जा रहा था वह लगातार उसके होठों को चूसता हुआ अपनी कमर हिला रहा था और साथ ही उसकी दोनों चूचियों को दबा भी रहा था प्रताप सिंह की बीवी को दुगना मजा मिल रहा था स्तन मर्दन के साथ साथ चुदाई का आनंद प्राप्त कर रही थी,,,,थोड़ी देर में सी गर्म सिसकारी की आवाज तेज होने लगी तो रघु उसके ऊपर से उठ कर उसकी कमर थाम लिया और अब अपने झटको की गति को तेज कर दिया,,,,
अब कैसा लग रहा है मालकिन,,,,
बहुत मजा आ रहा है रघु,,,,(उत्तेजना के मारे अपने सूखे हुए होठों को थूक से गीला करते हुए बोली)
क्या मालिक ने कभी ऐसी चुदाई की है तुम्हारी,,,,
नहीं रे मुझे तो आज पहली बार मालूम पड़ रहा है की चुदाई ऐसी होती है वरना तेरे मालिक को तो चोदना नहीं आता वह बस ऊपर चढ़ जाते थे और लैंड को गया कि नहीं यह भी पता नहीं चलता था और पानी छोड़ देते थे,,,,
इसका मतलब है मालकिन की शादी के बाद तुम ने सुहागरात का मजा ली नहीं हूं,,,।
ऐसा ही समझ लो रघु,,,,
तो फिर तुम भी ऐसा समझ लो मालकिन कि आज तुम्हारी सुहागरात है आज मैं तुम्हें चुदाई का एहसास होगा कि आज की रात तुम जिंदगी भर नहीं भूलोगी,,,,
मैं भी यही चाहती हूं रघू,,,
जैसा आप चाहती हो वैसा ही होगा मालकिन,,,(इतना कहने के साथ रघु अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर एक बार फिर से अपनी मालकिन के दोनों दशहरी आम को अपनी हथेली में भर लिया और उसे दबाते हुए धकके लगाना शुरू कर दिया,,, रघु के हर धक्के के साथ प्रताप सिंह की बीवी के मुंह से गर्म सिसकारी की आवाज फूट पड़ रही थी।,,, घने जंगल के बीच बड़े-बड़े पेड़ों के नीचे चारों तरफ अंधेरा के अंदर तांगा खड़ा करके दोनों जवानी का मजा लूट रहे थे रघु के साथ चुदवाते हुए प्रताप सिंह की बीवी यह भूल चुकी थी कि वह बड़े घर की बहू है, एक बड़े जमीदार की औरत है,,, जिसका समाज में एक रुतबा है पहचान है,,, लेकिन जिस्म की प्यास यह सब कहां देखती है जिस्म की जरूरत यह सब बंधनों को कहां मानती है,,, जिस्म की प्यास के आगे सारे बंधन नाते बेफिजूल के लगने लगते हैं उन्हें तो बस अपने बदन की प्यास बुझाने से मतलब होता है अपनी वासना मिटाने में होता है और यही हो भी रहा था वरना कहां जमीदार की बीवी और कहां गांव का आवारा लड़का रखो दोनों का किसी भी तरह से मेलजोल नहीं था,,, लेकिन दोनों की जरूरत एक थी जमीदार की बीवी को तनसुख चाहिए था और गांव के लड़के रघु को एक बड़े घर की औरत की बुर चोदने के लिए चाहिए थी जो कि दोनों अपनी अपनी अभिलाषा में उतरते चले जा रहे थे दोनों एक दूसरे के बदन से अपने लिए सुख ढूंढ रहे थे,,,, देखते ही देखते रघु का जलवा टांग के अंदर लालटेन की रोशनी के बीच छाने लगा रघु के हर धक्के के साथ प्रताप सिंह की बीवी आगे की तरफ सरक जा रही थी और रघु यह देख कर अपना दोनों हाथ आगे बढ़ाकर उसके दोनों कंधों को थाम लिया और जोर जोर से धक्के लगाने लगा प्रताप सिंह की बीवी पहली बार जिंदगी में चुदाई के असली सुख से वाकिफ और संभोग सुख के अंदर कितनी मिठास कितनी देर कितनी तृप्ति भरी हुई है यह उसे पहली बार एहसास हो रहा था और वह इस एहसास में पूरी तरह से डूब चुकी थी अपने आपको भीगो चुकी थी,,,, रघु भी प्रताप सिंह की बीवी की टांगों के बीच के संकरे रास्ते से होता हुआ अपने लिए मंजिल ढूंढ लिया था,,, कुछ देर पहले प्रताप सिंह की बीवी को यही लग रहा था कि रघु का मोटा तगड़ा लंबा लंड उसकी बुर की गहराई में कभी नहीं घुस पाएगा लेकिन अब बिना किसी परेशानी के रघु का वही मोटा तगड़ा लंड उसकी बुर में बड़े आराम से अंदर बाहर हो रहा था और उसे आनंद की अनुभूति करा रहा था,,,,
तकरीबन 40 45 मिनट की गजब मदमस्त कर देने वाली चुदाई से भाव विभोर होकर प्रताप सिंह की बीवी के मुख से निकलने वाली सिसकारी की आवाज तेज होने लगी,,,वह बात अच्छी तरह से जानती थी कि इस वीराने में उसकी तेज सिसकारी की आवाज को सुनने वाला वहां कोई नहीं था इसलिए बेफिक्र होकर तेज तेज सिसकारी की आवाज निकाल रही थी और अपनी मालकिन की इस तरह की मादक सिसकारियां को सुनकर रघु का जोश बढ़ता जा रहा था,,, अपनी मालकिन की बढ़ती हुई शिसकारियों को देखकररघु समझ गया कि उसका पानी निकलने वाला है और साथ ही उसका भी चरम सुख की तरफ बढ़ने लगा था,,, रघु के धक्के तेज हो गए किसी मशीन की तरह उसकी कमर ऊपर नीचे हो रही थी,,, और देखते ही देखते रघू प्रताप सिंह की बीवी के पेट के नीचे अपनी दोनों हाथों को डालकर उसे अपनी बाहों में जकड़ दिया और जोर-जोर से अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया देखते ही देखते प्रताप सिंह की बीवी अपनी बुर से पानी छोड़ने लगी और थोड़ी देर बाद रघु भी अपना गरम लावा की पिचकारी प्रताप सिंह की बीवी की बुर में फेंकने लगा प्रताप सिंह की बीवी अपनी बुर के अंदर रघू के लंड से निकली हुई पिचकारी को अच्छी तरह से महसूस कर रही थी,,,। जो कि यह एहसास उसकी जिंदगी में पहली बार से हो रहा था पहली बार उसे महसूस हो रहा था कि लंड की पिचकारी इतनी तेज होती है,,, वह एकदम भाव विभोर हो गई थी और मदहोश होकर रघु को अपनी बाहों में भर ली थी,,, रघु भी हांफता हुआ उसके ऊपर पसर गया था,,,, लेकिन खेल अभी खत्म नहीं हुआ था अभी तो सारी रात बाकी थी।