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Adultery बस का सफर (Reboot)

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Episode 3 : Part III

नीता फिर कन्फ्यूज्ड थी। बुढ्ढा बातों से बहुत शरीफ लगता है। पर, उसके व्यवहार से बार बार संदेह होता था। कहीं उसी ने उसके ब्लाउज पर से आँचल तो नहीं हटाया? ,नहीं, इतने पैसेंजर के सामने बुढ्ढे की हिम्मत नहीं होगी ऐसा करने की। कितना सीधा सादा बुढ्ढा है। शक्ल ख़राब होने से आदमी थोड़े ही ख़राब हो जाता है। मैं बिना मतलब ही इसपर संदेह कर रही हूँ। फिर उसके धोती में टेंट कैसा है? इसका लण्ड कहीं खड़ा तो नहीं? पर इतना बड़ा? इतना बड़ा कैसे हो सकता है? रवि का तो इतना सा है! कुछ और रखा होगा। गांव देहात में लोग धोती के अंदर पोटली में पैसा भी तो रखते हैं। शायद वही हो?

“कौन कौन है तुम्हारे परिवार में?”

“क्या बताएं मैडम? बीबी पहले बच्चे को जनम दे कर ऊपर चली गयी। बड़ा मुश्किल से बीटा को पाल पोष कर बड़ा किये त उ भी शादी के बाद बदल गया। जब से पुतोहु घर में आयी घर में हमरे लिए जगहे नहीं बचा। नहीं त आप ही बताइये ई बुढ़ापा में रात रात भर कहे खटते?”

नीता को बुढ्ढे की बात सुन कर उसपर दया आ गयी। अब वो बुढ्ढा उसे उतना घृणा का पात्र नहीं लग रहा था। “बीबी के मरने के बाद तुमने दूसरी शादी नहीं की?” नीता की नज़र बार बार उस बुढ्ढे की धोती में बने टेंट पर जा रही थी। वो ये कन्फर्म करना चाह रही थी कि लण्ड ही है या कुछ और?

नीता को अपने लण्ड की तरफ घूरते देख कर बुढ्ढे का लण्ड और तमतमा रहा था। “कइसे कर लेते मैडम? सौतेली माँ से बेटा को लाड प्यार थोड़े ही मिलता।”

“तो अभी कहाँ रहते हो?”

“कहाँ रहेंगे मैडम? अब त बस में ही जीना है, इसी में मरना है! आप आराम कीजिये, इस बुढ्ढे की कहानी सुन कर क्या करियेगा?”

नीता ने अपनी आँखें बंद कर ली। पर उसकी आँखों के सामने बार बार बुढ्ढे के धोती पर बना टेंट आ रहा था। वो जानना चाह रही थी कि वो आखिर है क्या? लण्ड ही है या कुछ और? और अगर लण्ड ही है तो इतना बड़ा लण्ड आखिर दिखता कैसा है? क्या कुणाल के साथ हाथापाई में उसने अपनी गाँड़ पर जो महसूस किया था वो भी लण्ड ही था? क्या सभी लण्ड बड़े होते हैं, केवल रवि का ही छोटा है? क्या इसलिए उसने चुदाई के बारे में जो भी सुना था उसे वैसा कोई भी मज़ा नहीं आया? क्या इसलिए रवि उसे गर्भवती नहीं कर पा रहा? ओह! अगर ऐसी बात है तो उसकी किस्मत तो इस बुढ्ढे से भी गयी गुजरी है। बस में खलासी है, बीबी के मरने के बाद कम से कम रंडी को तो चोदा ही होगा? वही है जिसे चुदाई का सुख अभी तक नहीं मिला है। और कुणाल? ओह! आज भी वो पल याद आते ही देखो कैसे दिल की धड़कन बढ़ गयी? पता नहीं उसने जान बूझ कर मेरे स्तन को दबाया था या अनजाने में। पर वो मज़ा कभी रवि के दबाने से नहीं आया था। क्या कुणाल मेरी चुदाई के इरादे से आया था? क्या उस दिन मौका मिलता तो वो मुझे चोद देता? ओह! काश ! कितना मज़ा आता? मैं भी बेवकूफ थी। थोड़ा सा बदन को ढ़ीला करके छोड़ती तो उसकी हिम्मत बढ़ती। नहीं कुछ तो चूची तो और अच्छे से तो मसलता ही। अब तो कोई मौका भी नहीं मिलना। क्या मेरी जिंदगी बिना चुदाई के मज़े लिए ही ख़तम हो जाएगी? पर इस बुढ्ढे की धोती में बना टेंट क्या है?

नीता ने जानने के लिए हल्का सा आँख खोल कर बुढ्ढे की गोद में देखा। उसका क़ुतुब मीनार अपनी पूरी ऊंचाइयों पर उसकी गोद में बस के साथ लय मिला कर डोल रहा था। नीता ने झट से अपनी आँखें बंद कर ली। ये तो लण्ड ही है। इतना बड़ा? हे भगवान्! रवि का मिर्च है और ये तो पूरा कद्दू है। इतना बड़ा अंदर जायेगा? मेरी तो चूत ही फट जाएगी! और ये बुढ्ढा बहुत भोला भाला बन रहा था। ये तो एक नंबर का हरामी है। पर कुछ करने की तो इसमें हिम्मत होगी नहीं। बस में और भी पैसेंजर हैं। बस मुझे देख कर खुश होता रहेगा। होने दो खुश, मुझे क्या प्रॉब्लम है? बस एक बार जी भर कर देखना चाहती हूँ, आखिर इतना बड़ा लण्ड होता कैसा है? नहीं, अगर बुढ्ढे ने देखते हुए देख लिया तो मेरे बारे में क्या सोचेगा? मेरी शादी हो चुकी है। ये ठीक नहीं। चुपचाप सोने की कोशिश करती हूँ।
 

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Episode 4 : Part I

इधर बुढ्ढा बेचैन था, तो उधर नीता का मन में उथल पुथल। पिछले ४ साल से वो किसी की पत्नी होने का सुख नहीं उठा पा रही थी। शादी का मतलब घर की नौकरानी होना तो नहीं होता? पति पत्नी को सम्भोग का सुख देता है, बदले में पत्नी पति को शारीरिक और सांसारिक सुख देती है। ये कैसा बंधन हुआ कि वो पति को सबकुछ दे और पति उसे सम्भोग का सुख भी न दे? नीता की आँखें बंद थी पर ह्रदय बेचैन! इधर बुढ्ढा नीता के सोने का इंतज़ार कर रहा था। जब वो आश्वस्त हो गया की नीता सो गयी होगी तो उसने हल्के से नीता के आँचल को पकड़ कर खींचा। नीता ने आँख के कोने से देखा की बुढ्ढा उसके बदन पर से आँचल हटा रहा है। वो समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे? उसके अंदर की पतिव्रता नारी कह रही थी की अभी उठ कर चिल्लाओ। जब पैसेंजर सब मिल कर बुढ्ढे की पिटाई करेंगे तो इसके सर पर से जवानी का भूत उतर जायेगा। पर उसके अंदर की अतृप्त कामना की मूर्ती कह रही थी की थोड़ा मज़ा तू भी ले ले। फिर शायद ऐसा मौका मिले न मिले? और फिर बुढ्ढा करेगा ही क्या? अधिक से अधिक ब्लाउज के ऊपर से निहारेगा। इसमें उसका क्या बिगड़ता है? कोई कपड़ा थोड़े ही उतार रहा, बस आँचल ही तो हटा रहा। कॉलेज में जब वो जीन्स टॉप में होती थी तो कौन सा उसके ऊपर आँचल होता था? जैसे टॉप में दिखती थी, वैसा ही तो ब्लाउज में दिखेगी। देख लेने दो!

इससे पहले नीता ने कभी जान बूझ कर ऐसी हरकत नहीं की थी। इस शरारत की बात से ही उसके दिल की धड़कने तेज़ होने लगी, उसकी साँसे तेज़ होने लगी। उसके निप्पल तन रहे थे और ब्लाउज टाइट होने लगी। अपने जाँघों के बीच भी नीता को एक अजीब सेंसेशन हो रहा था। कुछ कुछ वैसा ही जैसा कुणाल के चुची दबाने के बाद हुआ था। पर अबकी बार वो सेंसेशन और तीव्र है। शायद इसलिए की उस समय वो घर पर थी, परिवार, समाज के बंधन में। अभी वो सभी बंधनो से मुक्त है। बस में उसे कोई नहीं पहचानता। किसी ने खलासी को उसका पल्लू हटाते देख भी लिया तो सब खलासी को बोलेंगे। वो तो नींद में है। उसे भला कोई कैसे बुरा समझेगा? नीता अपने जाँघों के बीच से रिसती गीलापन महसूस कर सकती थी। वो अपने जांघ को फैला चूत को कुछ आज़ादी देना चाहती थी। पर वो तो सो रही है, अगर उसने पैर हिलाया तो बुढ्ढे को पता चल जायेगा की वो सोई नहीं है। नीता ने अपनी सारी ऊर्जा अपने साँस को कंट्रोल करने में लगा दी।

बुढ्ढा इस बार केवल नयनसुख लेकर रुक जाने के इरादे से नीता की तरफ नहीं बढ़ा था। नीता की नर्मी भड़ी बातों से बुढ्ढे की हिम्मत थोड़ी बढ़ गयी थी। उसके सीने पर से आँचल हटा देने के बाद बुढ्ढे ने अपना हाथ वापस नहीं खींचा, बल्कि उसकी चूची पर ही रखा, और हल्का हल्का उसकी चूची को सहलाने लगा। नीता की चूचियाँ ब्लाउज के बटन को तोड़ कर बाहर निकलने को बेताब हो उठीं। उसके दिल की धड़कने फुल स्पीड पर चल रही राजधानी एक्सप्रेस तरह चल रही थी। अरे! ये तो मेरी दबा रहा है? सीट ऊंची है, पीछे से दिख तो नहीं रहा होगा। पर मैं क्या करूँ? बुढ्ढे को मज़े लेने दूँ? देखती हूँ कहाँ तक जाता है। अधिक दूर तक जाने की हिम्मत तो इसमें है नहीं।

जब बुढ्ढे ने उसकी पूरी चूची को अपने हाथों में भरा और उसे दबाते हुए ऊपर की तरफ उठाया तो एक करंट की तरंग नीता की चूचियों से चलती हुई सीधी उसकी चूत तक पहुँच गयी। नीता को लगा जैसे उसके चूची से गीलापन की एक धारा बह निकली हो। आनंद के जिस झूले में अभी वो हिचकोले खा रही थी, इससे पहले उसने उस झूले को कभी देखा तक नहीं था। वो खुद अपने कंट्रोल से बाहर जा रही थी। वो अपनी दाँत को पीस रही थी, और आँख को ज़ोर से बंद किये हुए थी। उसका पूरा बदन अकड़ा हुआ था।

चूची पर दवाब बढ़ाने के बाद बुढ्ढे को नीता के दिल की धड़कन महसूस हुई, और वो समझ चूका था कि लोहा गरम है, अब बस हथौड़ा मारना है। उसका हथौड़ा भी काफी गरम हो चूका था! उसने नीता की चूची को और कॉन्फिडेंस से मसलना शुरू कर दिया। नीता आनंद के ऐसे मुकाम पर पहुँच थी जहाँ से सही-गलत, उचित-अनुचित, तर्क-कुतर्क ये सब मनुष्य नहीं सोचता। बस एक जंगली जानवर की तरह, सारी सभ्यताओं, सामाजिक बंधनों, दिन के उजाले में अपने अंदर की गन्दगी को छुपाने के लिए मनुष्य के द्वारा बनाये नियम जो केवल कमज़ोर असहाय लोगों के लिए हैं, से मुक्त हो वो बस अपनी मूल भूत आवश्यकताओं की तरफ निकल चुकी थी। उसका अंतर्मन बुढ्ढे से निवेदन कर रहा था - थोड़ा और ज़ोर से, तुम्हे रोका किसने है? किससे डर रहे हो? और ज़ोर से दबाओ न।
 
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मूलभूत आवश्यकता की और बढ़ती कहानी😃😄😆
 
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Sumit1990

सपनों का देवता
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Brother aap itne chote chote update deke time kharab kar rahe hai aur jab aap ke paas poori kahani hai to bade bade update dene me kya taklif hai......ek to aap ki kahani me kuch bhi alag nhi hai aur upar se kahani me naa to pics naa gif...... please kahani ko thoda alag tarike se likho aur kahani ne pics gif add karo......

iliana-dcruz-fans-20201023-1
 
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MastramNew

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Episode 4 : Part II

नीता से कोई विरोध न पा कर बुढ्ढे का हौसला उसके लण्ड की तरह ही सशक्त हो चूका था। उसने दोनों चूचियों के बीच में बानी घाटी में अपना उंगली घुसा दिया, पसीने से भीगी नीता की छाती में आसानी से उसकी ऊँगली फिसलती हुई अंदर चली गयी। उसने ऊँगली दायें बाएं घुमा कर नीता के चूची को छुआ। पैसे ऐसे थोड़ा थोड़ा रस से बुड्ढे की प्यास बुझने की जगह और तीव्र होती जा रही थी। उसने हिम्मत का एक झटका और देते हुए नीता के ब्लाउज का एक बटन को खोल दिया। अपने संपूर्ण अकार में नीता की उत्तेजित चूचियाँ बाहर आने को मचलने लगी, वो बस बिलख बिलख कर नीता से दया की भीख माँग रही थी - क्यों कैद कर रखा है हमें? हमें भी थोड़ी आज़ादी की हवा खाने दो, क्षण भर के लिए हमें भी खुशी से जीने दो।

बुढ्ढे का एक बटन पर ही रुक जाने का कोई इरादा नहीं था। कुछ ही देर बाद नीता के ब्लाउज के सभी बटन खुल चुके थे, और नीता का लाल ब्लाउज खुले हुए दरवाज़े की तरह उसके चूचियों के दोनों तरफ लटक रहा था। बस की दुँधली रौशनी में सफ़ेद संगमरमर जैसे गोल, सुडौल, मादक स्तन के ऊपर काला ब्रा ऐसा दृश्य उत्पन्न कर जिसे देख कर कोई कवी पूरी की पूरी काव्य की रचना कर दे। पर वो बुढ्ढा न तो कवी था, और न ही उसकी दिलचस्पी उस दृश्य की सुंदरता में थी। वो तो एक भेड़िये जैसा था, जो अपनी भूख मिटाने के लिए सामने पड़े शिकार को नोंच नोंच कर खा जाता है। बस भेड़िया अभी शिकार कर ही रहा था, एक बार शिकार गिरफ्त में आ जाये तो वहशी दरिंदे की तरह उसपर टूट पड़ेगा।

बुढ्ढे ने नीता की छाती को हाथ से सहलाया। उसने कभी किसी औरत को इतनी नज़ाक़त से नहीं छुआ था। वो तो रंडियों को चोदने वाला था। लोग रंडियों को नीच समझते हैं, और उसे चोदते भी घृणा से हैं। रंडियाँ प्रेम से चुम्बन लेने के लिए, या नज़ाक़त से बदन सहलाने के लिए नहीं होती, वो तो बस भूख मिटने के लिए होती हैं। जैसे कई दिनों से भूखा भिखारी सामने पड़ी रसमलाई पर टूट पड़ता है, वैसे ही रंडीबाज रंडी को देख कर उसके जिश्म पर टूट पड़ता है। पर नीता रंडी नहीं थी। नीता जैसी सुन्दर, कुलीन औरत को छूने की बात बुढ्ढे ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। जब वो उसके सामने अर्धनग्न अवस्था में लेटी हुई थी, तब उसके अंदर की वासना चाहे जितना उछाल ले रही हो, उसके अंदर इस कामना की मूर्ती के लिए एक इज्जत थी, एक सम्मान था। वो उसके इज्जत को लूटना नहीं चाहता था, बस उसके जिश्म से अपनी वासना की भूख को मिटाना चाहता था।

नीता को भी कभी किसी ने इस तरह से नहीं छुआ था। शादी के ४ साल में एक बार भी रवि ने नीता को निःवस्त्र नहीं किया था। बस उसकी साड़ी या नाइटी को ऊपर सरका कर उसे चोद लेता और फिर सो जाता। उसने न तो कभी उसकी चूची को मसला था, न ही चूमा था। रवि को तो ये भी नहीं पता होआ कि उसकी चूची कितनी बड़ी है, या उसके चूत पर बाल है या नहीं। पहली बार किसी दुसरे का हाथ उसकी जिश्म के उन हिस्सों पर पर रहा था जो वो दुनिया से छिपा कर रखती है। पहली बार उसे औरत होने का सुख मिल रहा था। वो इस सुख को बिना भोग किये इस बस से नहीं उतर सकती थी। उसके मन की बस यही तमन्ना थी की ये सफर कभी समाप्त न हो।

बुढ्ढे का हाथ रेंगते हुए नीता की ब्रा में घुस गया और उसके चूची को टटोलना लगी, मानो कुछ ढूंढ रहा हो। वो नीता की तरफ झुका हुआ था। उसने अपने क़ुतुब मीनार को नीता की जांघ पर दबाया। उसके पुरुषत्व के सम्पूर्ण सामर्थ्य को नीता अपने जांघ पर अनुभव कर रही थी। उसका संयम अब जवाब दे रहा था। वो बेकाबू हुई जा रही थी। बुढ्ढे ने उसकी बायीं चूची को अपने दाएं हाथ में पकड़ कर दबाया और अपने मुंह को नीता के होंठों के पास ले गया। उसके मुंह से देसी दारू की तेज़ बास आ रही थी। उसके तेज़ बास से नीता को उल्टी सा आने लगा, पर अपने चूची की मालिश के मज़े को वो उल्टी से ख़राब नहीं कर सकती थी। वो आँखें बंद किये सिथिल पड़ी रही। बुड्ढे में अभी नीता को चूमने की हिम्मत नहीं थी। उसने नीता के ब्रा के फीता को उसके कंधे से सरका दिया और ब्रा को नीचे सरका कर उसकी चूचियों को पूरा नंगा कर दिया।

हे भगवान्! ये बुढ्ढा क्या कर रहा है? मैं पागल हो जाउंगी। बस के सारे पैसेंजर सो रहे हैं क्या? सो ही रहे होंगे, बहुत रात हो चुकी है। पर अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा। ये रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। मेरी पूरी पैंटी गीली हो गयी होगी। बुढ्ढे ने नीता की गोद में पड़े उसकी हाथ को अपने लंड से छुआ। गरम गरम मोटा तगड़ा लण्ड हाथ में महसूस करके नीता विचलित हो रही थी। वो इस लण्ड को एक बार, बस एक बार अपने हाथ में लेकर ध्यान से देखना चाहती थी। पर वो अभी आँख नहीं खोल सकती थी। बुढ्ढे के लण्ड में बहती रक्त के प्रवाह को नीता महसूस कर रही थी, और इस एहसास ने उसकी चूत में रक्त के प्रवाह को बढ़ा दिया था। उसकी चूत अब धधक रही थी। मानो पूरे जंगल में आग लगा हुआ है। और उसी आग में फंसे हुए हिरन की भांति नीता का व्याकुल मन इधर उधर उछल रहा था।

बुढ्ढा नीता की साड़ी को ऊपर सरकाने लगा। उसकी सफ़ेद, नरम, मुलायम जांघों के स्पर्श से बुढ्ढा बेचैन हो रहा था। शायद इससे पहले जीवन में उसने कभी किसी औरत के सामने इतनी सब्र नहीं की थी। औरत सामने आते ही उसका सारा ध्यान चोदने पर होता था। चुदाई से पहले इतनी देर बर्दाश्त करने का सामर्थ्य उस बुढ्ढे में कभी नहीं था। पर आज न जाने क्यों? डर से या शायद इससे पहले उसने कभी किसी कुलीन, अच्छे घर की औरत को नहीं चोदा था इसलिए। पर कारन चाहे जो भी हो, आज उसका संयम सराहनीय था। बुढ्ढे का एक हाथ तो नीता के संतरे का रस निचोड़ने में लगा हुआ था, तो दूसरा हाथ जाँघों को सहलाते हुए उस गुलाबी गुफा की ओरे तेजी से बढ़ रहा था जिसमे नीता अपने यौवन के खजाने को छिपा रखी थी।

बुढ्ढा निचोड़ तो नीता की चूची को रहा था, पर उसका रस नीता के गुलाबी गुफा से रिस रिस कर बह रहा था। जब तक बुढ्ढा नीता की चूची तक था, तब तो नीता मज़े ले रही थी। पर, जब वो तेज़ी से नीता की चूत की तरफ बढ़ा तो नीता परेशान हो गई। नीता ने ये नहीं सोचा था की वो ऐसे बदसूरत, अधेड़ उम्र के दो कौड़ी के इंसान के सामने अपने तन का सबसे बहुमूल्य हिस्सा खोल देगी। नीता भी ये समझती थी की अगर बुढ्ढा उसकी चूत तक पहुँच गया तो वो उसे अंदर घुसने से रोक नहीं पायेगी। उसे तो ये भी नहीं पता था की वो खुद को रोक पाएगी या नहीं? वो शादीशुदा है। वो किसी गैर मर्द के साथ संभोग नहीं कर सकती। उसे रोकना ही होगा। पर कैसे? नहीं! वो बहुत तेज़ी से चूत की तरफ बढ़ रहा है। अगर उसने मेरी गीली पैंटी छू लिया तो उसे पता चल जायेगा कि मैं भी गरम हो गयी हूँ। न जाने वो मेरे बारे में क्या सोचेगा? ये विचित्र विडम्बना है कि आपके व्यवहार का निर्धारण आपके अपने विचार से अधिक दुसरे आपके बारे में क्या विचार रखते हैं इससे होता है। नहीं! अब सोचने का समय नहीं हैं, कुछ करना होगा।
 

Sumit1990

सपनों का देवता
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Happy New Year Bro.....
Bhai aap se nivedan hai iss kahani ko jaldi se jaldi aage badaoo aur chudai ka seen leke aaoo..... please.... waiting for bhudda hardcore sex Neeta......


indian-booty-queens-20201023-2
 
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Napster

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निता और बुढ्ढे की धमाकेदार चुदाई जल्दी से करावा दो
बहुत ही बढिया और कामुक अपडेट है मजा आ गया
अगले धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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MastramNew

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Episode 5 : Part I


“बद्तमीज़!” नीता ने बुढ्ढे को धक्का देकर अपने बदन से दूर हटाया। जल्दी से अपने साड़ी को नीचे सरका कर अपने ब्लाउज को ठीक करने लगी।

बुढ्ढा घबरा गया। उसका प्राण उसके कंठ में ही अटक गया। उसे पूरा विश्वास था कि नीता जगी हुई है और उसके हरकत का मज़ा ले रही है। पर नीता के प्रतिक्रिया ने उसे भौंचक कर दिया था। जब तक नीता अपने कपड़े को ठीक कर रही थी तब तक वो किंकर्तव्यविमूढ़ सा बगल वाली सीट पर बैठा रहा, मनो उसे लकवा मार दिया हो। उसका बुलंद क़ुतुब मीनार, जो अब भी धोती के बहार था, शाम के सूरजमुखी की तरह नीचे झुक चूका था। उसका दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था जैसे उसके सीने को फाड़ कर बाहर निकल जायेगा। बुढ्ढे को होश तब आयी जब नीता अपने कपड़े को ठीक कर खड़ी हुई और उसकी गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा जड़ दी।

“हरामखोर! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की?” नीता ज़ोर से बोली ताकि बस के बांकी पैसेंजर उसकी आवाज़ को सुन कर जाग जाएं। पर जब नीता ने पीछे मुड़ कर देखा तो उसके होश उड़ गए। वो पूरे बस में अकेली थी। वो घबड़ा गई। वो सहम कर सिमट गयी। हे भगवान्! पूरे बस में कोई नहीं है। अगर बुढ्ढे ने मेरे साथ ज़बरदस्ती की तो मैं क्या करुँगी? रात के १ बज रहे थे। दूर दूर तक सड़क पर अँधेरा था। वो चिल्ला कर मदद भी नहीं मांग सकती थी। उसने झट से अपने पर्स से मोबाइल निकाला और रवि को फ़ोन करने लगी।

बुढ्ढा नीता के पैरों पर गिर गया।

“मैडम, हमको माफ़ कर दीजिये। गलती हो गया। हम आपके पैर पकड़ते हैं, प्लीज हमरा कम्प्लेन नहीं करिये। हमारा कोई सहारा नहीं है। इस बुढ़ापा में हम कहाँ जायेंगे? हमको माफ़ कर दीजिये। बहुत दिन हो गए थे किसी औरत को छुए। आप जैसी सुन्दर औरत बगल में प् कर अपने ऊपर काबू नहीं रख सके। हम भगवान् कसम कहते हैं मैडम हम जीवन में दुबारा अइसन काम नहीं करेंगे। बस एक बार हमको माफ़ कर दीजिये।” बोलते बोलते बुढ्ढे की आवाज़ भाड़ी हो गयी थी। वो मगरमच्छ के आंसू रो रहा था। नीता समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे? रवि का फ़ोन रिंग होने लगा था। नीता ने फ़ोन काट दिया।

“तुम्हे शर्म नहीं आती ऐसी हरकत करते हुए? तुम्हारे बेटी की उम्र की हूँ मैं।” नीता की आवाज़ में थोड़ी नरमी आ गयी थी।

बुढ्ढे ने हाथ जोड़ते हुए कहा - “माफ़ कर दीजिये मैडम जी। हम बहक गए थे। आपकी अइसन सुन्दर औरत कभी इतना नज़दीक से नहीं देखे हैं न।” बुढ्ढा भांप गया था की नीता अपनी तारीफ सुन कर खुस हो गयी थी।

नीता की आवाज़ और नरम हुई “बकवास बंद करो!”

“बकवास नहीं कर रहे मैडम। खलासी हैं, हर दिन सैकड़ों औरत को देखते हैं पर आपकी जैसी बीसो बरस में नहीं देखे हैं।” नीता को बुढ्ढे ने फिर अपनी बातों में फंसा लिया था।
 
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