Episode 4 : Part II
नीता से कोई विरोध न पा कर बुढ्ढे का हौसला उसके लण्ड की तरह ही सशक्त हो चूका था। उसने दोनों चूचियों के बीच में बानी घाटी में अपना उंगली घुसा दिया, पसीने से भीगी नीता की छाती में आसानी से उसकी ऊँगली फिसलती हुई अंदर चली गयी। उसने ऊँगली दायें बाएं घुमा कर नीता के चूची को छुआ। पैसे ऐसे थोड़ा थोड़ा रस से बुड्ढे की प्यास बुझने की जगह और तीव्र होती जा रही थी। उसने हिम्मत का एक झटका और देते हुए नीता के ब्लाउज का एक बटन को खोल दिया। अपने संपूर्ण अकार में नीता की उत्तेजित चूचियाँ बाहर आने को मचलने लगी, वो बस बिलख बिलख कर नीता से दया की भीख माँग रही थी - क्यों कैद कर रखा है हमें? हमें भी थोड़ी आज़ादी की हवा खाने दो, क्षण भर के लिए हमें भी खुशी से जीने दो।
बुढ्ढे का एक बटन पर ही रुक जाने का कोई इरादा नहीं था। कुछ ही देर बाद नीता के ब्लाउज के सभी बटन खुल चुके थे, और नीता का लाल ब्लाउज खुले हुए दरवाज़े की तरह उसके चूचियों के दोनों तरफ लटक रहा था। बस की दुँधली रौशनी में सफ़ेद संगमरमर जैसे गोल, सुडौल, मादक स्तन के ऊपर काला ब्रा ऐसा दृश्य उत्पन्न कर जिसे देख कर कोई कवी पूरी की पूरी काव्य की रचना कर दे। पर वो बुढ्ढा न तो कवी था, और न ही उसकी दिलचस्पी उस दृश्य की सुंदरता में थी। वो तो एक भेड़िये जैसा था, जो अपनी भूख मिटाने के लिए सामने पड़े शिकार को नोंच नोंच कर खा जाता है। बस भेड़िया अभी शिकार कर ही रहा था, एक बार शिकार गिरफ्त में आ जाये तो वहशी दरिंदे की तरह उसपर टूट पड़ेगा।
बुढ्ढे ने नीता की छाती को हाथ से सहलाया। उसने कभी किसी औरत को इतनी नज़ाक़त से नहीं छुआ था। वो तो रंडियों को चोदने वाला था। लोग रंडियों को नीच समझते हैं, और उसे चोदते भी घृणा से हैं। रंडियाँ प्रेम से चुम्बन लेने के लिए, या नज़ाक़त से बदन सहलाने के लिए नहीं होती, वो तो बस भूख मिटने के लिए होती हैं। जैसे कई दिनों से भूखा भिखारी सामने पड़ी रसमलाई पर टूट पड़ता है, वैसे ही रंडीबाज रंडी को देख कर उसके जिश्म पर टूट पड़ता है। पर नीता रंडी नहीं थी। नीता जैसी सुन्दर, कुलीन औरत को छूने की बात बुढ्ढे ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। जब वो उसके सामने अर्धनग्न अवस्था में लेटी हुई थी, तब उसके अंदर की वासना चाहे जितना उछाल ले रही हो, उसके अंदर इस कामना की मूर्ती के लिए एक इज्जत थी, एक सम्मान था। वो उसके इज्जत को लूटना नहीं चाहता था, बस उसके जिश्म से अपनी वासना की भूख को मिटाना चाहता था।
नीता को भी कभी किसी ने इस तरह से नहीं छुआ था। शादी के ४ साल में एक बार भी रवि ने नीता को निःवस्त्र नहीं किया था। बस उसकी साड़ी या नाइटी को ऊपर सरका कर उसे चोद लेता और फिर सो जाता। उसने न तो कभी उसकी चूची को मसला था, न ही चूमा था। रवि को तो ये भी नहीं पता होआ कि उसकी चूची कितनी बड़ी है, या उसके चूत पर बाल है या नहीं। पहली बार किसी दुसरे का हाथ उसकी जिश्म के उन हिस्सों पर पर रहा था जो वो दुनिया से छिपा कर रखती है। पहली बार उसे औरत होने का सुख मिल रहा था। वो इस सुख को बिना भोग किये इस बस से नहीं उतर सकती थी। उसके मन की बस यही तमन्ना थी की ये सफर कभी समाप्त न हो।
बुढ्ढे का हाथ रेंगते हुए नीता की ब्रा में घुस गया और उसके चूची को टटोलना लगी, मानो कुछ ढूंढ रहा हो। वो नीता की तरफ झुका हुआ था। उसने अपने क़ुतुब मीनार को नीता की जांघ पर दबाया। उसके पुरुषत्व के सम्पूर्ण सामर्थ्य को नीता अपने जांघ पर अनुभव कर रही थी। उसका संयम अब जवाब दे रहा था। वो बेकाबू हुई जा रही थी। बुढ्ढे ने उसकी बायीं चूची को अपने दाएं हाथ में पकड़ कर दबाया और अपने मुंह को नीता के होंठों के पास ले गया। उसके मुंह से देसी दारू की तेज़ बास आ रही थी। उसके तेज़ बास से नीता को उल्टी सा आने लगा, पर अपने चूची की मालिश के मज़े को वो उल्टी से ख़राब नहीं कर सकती थी। वो आँखें बंद किये सिथिल पड़ी रही। बुड्ढे में अभी नीता को चूमने की हिम्मत नहीं थी। उसने नीता के ब्रा के फीता को उसके कंधे से सरका दिया और ब्रा को नीचे सरका कर उसकी चूचियों को पूरा नंगा कर दिया।
हे भगवान्! ये बुढ्ढा क्या कर रहा है? मैं पागल हो जाउंगी। बस के सारे पैसेंजर सो रहे हैं क्या? सो ही रहे होंगे, बहुत रात हो चुकी है। पर अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा। ये रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। मेरी पूरी पैंटी गीली हो गयी होगी। बुढ्ढे ने नीता की गोद में पड़े उसकी हाथ को अपने लंड से छुआ। गरम गरम मोटा तगड़ा लण्ड हाथ में महसूस करके नीता विचलित हो रही थी। वो इस लण्ड को एक बार, बस एक बार अपने हाथ में लेकर ध्यान से देखना चाहती थी। पर वो अभी आँख नहीं खोल सकती थी। बुढ्ढे के लण्ड में बहती रक्त के प्रवाह को नीता महसूस कर रही थी, और इस एहसास ने उसकी चूत में रक्त के प्रवाह को बढ़ा दिया था। उसकी चूत अब धधक रही थी। मानो पूरे जंगल में आग लगा हुआ है। और उसी आग में फंसे हुए हिरन की भांति नीता का व्याकुल मन इधर उधर उछल रहा था।
बुढ्ढा नीता की साड़ी को ऊपर सरकाने लगा। उसकी सफ़ेद, नरम, मुलायम जांघों के स्पर्श से बुढ्ढा बेचैन हो रहा था। शायद इससे पहले जीवन में उसने कभी किसी औरत के सामने इतनी सब्र नहीं की थी। औरत सामने आते ही उसका सारा ध्यान चोदने पर होता था। चुदाई से पहले इतनी देर बर्दाश्त करने का सामर्थ्य उस बुढ्ढे में कभी नहीं था। पर आज न जाने क्यों? डर से या शायद इससे पहले उसने कभी किसी कुलीन, अच्छे घर की औरत को नहीं चोदा था इसलिए। पर कारन चाहे जो भी हो, आज उसका संयम सराहनीय था। बुढ्ढे का एक हाथ तो नीता के संतरे का रस निचोड़ने में लगा हुआ था, तो दूसरा हाथ जाँघों को सहलाते हुए उस गुलाबी गुफा की ओरे तेजी से बढ़ रहा था जिसमे नीता अपने यौवन के खजाने को छिपा रखी थी।
बुढ्ढा निचोड़ तो नीता की चूची को रहा था, पर उसका रस नीता के गुलाबी गुफा से रिस रिस कर बह रहा था। जब तक बुढ्ढा नीता की चूची तक था, तब तो नीता मज़े ले रही थी। पर, जब वो तेज़ी से नीता की चूत की तरफ बढ़ा तो नीता परेशान हो गई। नीता ने ये नहीं सोचा था की वो ऐसे बदसूरत, अधेड़ उम्र के दो कौड़ी के इंसान के सामने अपने तन का सबसे बहुमूल्य हिस्सा खोल देगी। नीता भी ये समझती थी की अगर बुढ्ढा उसकी चूत तक पहुँच गया तो वो उसे अंदर घुसने से रोक नहीं पायेगी। उसे तो ये भी नहीं पता था की वो खुद को रोक पाएगी या नहीं? वो शादीशुदा है। वो किसी गैर मर्द के साथ संभोग नहीं कर सकती। उसे रोकना ही होगा। पर कैसे? नहीं! वो बहुत तेज़ी से चूत की तरफ बढ़ रहा है। अगर उसने मेरी गीली पैंटी छू लिया तो उसे पता चल जायेगा कि मैं भी गरम हो गयी हूँ। न जाने वो मेरे बारे में क्या सोचेगा? ये विचित्र विडम्बना है कि आपके व्यवहार का निर्धारण आपके अपने विचार से अधिक दुसरे आपके बारे में क्या विचार रखते हैं इससे होता है। नहीं! अब सोचने का समय नहीं हैं, कुछ करना होगा।