Episode 6 : Part III
"ठीक है, त आप आंख बंद कर लीजिए। हम खोल के देख लेते हैं।"
"ठीक है, पर पैंटी नहीं उतारोगे।" नीता आंख बंद कर खड़ी हो गई।
"जइसा आपका हुकुम!" बुड्ढे ने नीता की कमर से साड़ी को खींच कर हटा दिया और बड़े इत्मीनान से उसके पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया। नीता का पेटीकोट नीचे गिर गया। खिड़की से आ रही ठंडी हवा नीता के गीली पैंटी को छूकर निकली। अपनी चूत पर इस ठंडक को महसूस कर नीता उत्तेजना से पागल हुई जा रही थी।
नीता की गांड बुड्ढे के मुंह के ठीक सामने थी। उसकी चूत की महक बुड्ढे को बेकाबू किए जा रही थी। उसका दिल कर रहा था कि अभी इस रण्डी को पकड़ कर उसके गांड में बांस कर दे। पर वो कच्चा खिलाड़ी नहीं था। उसने भी ठान ली थी कि नीता के अंदर की रण्डी को वो बाहर निकाल कर ही रहेगा। अपने दोनो हाथों से पकड़ कर वो नीता के चूतड़ों को मसलने लगा। "क्या कर रहे हो?" नीता ने पूछा।
"देख रहे हैं - आम बढ़िया है कि तरबूज।" बुड्ढे ने नीता की पैंटी को उसकी गांड की दरार में समेट कर उसके पूरे नितम्ब को नंगा कर दिया था। "देख लिया? अब बताओ कौन बढ़िया है? आम या तरबूज।" नीता की आंखें बंद थीं।
"देखने में त दुनु मस्त है। अधिक स्वादिष्ट कोन है ई त चूस कर पाता चलेगा।"
"हट बदमाश! हाथ से जितना छूना है छू लो। मुंह नहीं लगाने दूंगी। इज्ज़तदार घर की शादीशुदा औरत हूं।" नीता बार बार खुद को याद दिला रही थी कि वो इज्ज़तदार घर की बहू है, उसके लिए गैर मर्द के साथ इस तरह खेलना महापाप है। पर अगर मनुष्य की कामना, उसकी वासना धर्म की बातों को समझती तो संसार में कहीं पाप होता ही नहीं। सारे संस्कार, सारे धर्म काम के सामने नपुंसक हो जाते हैं।