Episode 6 : Part II
"देखिए! पहिले आदमी जब जंगल में रहता था त नंगे ही रहता था। आदमी का एक झुंड, औरत मरद नंगा हो कर एक्के गुफा में रहते थे। तब जईसे लोग जंगल में जो फल मिले तोड़ के चाहे जो शिकार मिले मार के मुफ़्त में खा सकते थे, वइसे ही झुंड में जिसका फल मिले उसका मज़ा लो।" बुड्ढा धीरे धीरे नीता की साड़ी को ऊपर उठा कर उसकी चिकनी मखमली जांघों को सहला रहा था। "उन दिनों शादी बियाह ई सब त होता नहीं था। जब जिस मरद को जिस औरत का आम चूसने का मन होता चूस लेता, जिस औरत को जिसका केला चूसने का मन होता चूस लेती।" उसका हाथ ऊपर की तरफ रेंगते हुए धीरे धीरे नीता की नितम्ब की ओर बढ़ रहा था। बुड्ढे के कठोर और खुरदरे हाथ उसके अंदर की वासना को उत्तेजना में बदल कर नीता के तन में प्रवाहित कर रहे थे। नीता को लग रहा था जैसे उसकी चूत से बूंद बूंद कर रस नीचे टपक रहा हो! बुड्ढा अपने काम और भाषणबाजी दोनों में पूरी तन्मयता से लगा हुआ था। "फिर जइसे जइसे लोगों में सभ्यता का विकास हुआ लोग एक दूसरे से छुपाने लगे। खड़ा केला देख कर औरतों को पता चल जाता था कि मरद उसके आम को चूसना चाह रहा है। त ऊ नखरा दिखती, आम के बदले ऊ आदमी से कुच्छो करा सकती थी। आदमी सोचा की केला को ढक लेंगे तो औरत को कभी पता ही नहीं चलेगा। पहले पत्ता से, फिर धीरे धीरे कपड़ा से।" वो नीता की गांड तक पहुंच चुका था। नीता उत्तेजना में सराबोर खड़ी थी। वो अंध युग के रोम के गुलाम की तरह थी, जिसके साथ उसका मालिक कुछ भी कर सकता था और वो चुप चाप उसे करने देती। अंतर बस इतना था कि इतिहास हमें ये नहीं बताता कि गुलाम औरतें रोम के रईसों की वासना भरे विलासता से आनंदित होती थी या दुखी? पर, यहां नीता शत प्रतिशत आनंदमय थी। "और अगर औरत का आम बड़ा या खड़ा हो जाता या उसकी प्रेम गुफा से रस टपकने लगता तो मरद समझ जाते कि अब केला डालने में कोई अड़चन नहीं है।" 'प्रेम गुफा' बुड्ढे ने पहली बार चूत का नाम लिया था। ये सुन कर नीता के जिस्म में करंट दौड़ गया। उसके प्रेम गुफा की आग धधक उठी, और रस की फुहार निकलने लगी। नीता अपने जांघों को एक दूसरे पर दबाने लगी। उसकी गांड कि मांसपेशियां तन गई। "इससे औरत सब को मरद को अपने बस में करने में दिक्कत होता। इसलिए औरत सब अपने आम और प्रेम गुफा को ढकने लगी।" बुड्ढा नीता की तनी हुए गांड को एक हाथ से मसलने का प्रयास कर रहा था तो दूसरे हाथ की एक उंगली उसके दोनों जांघों के बीच घुस उसकी प्रेमगुफा के द्वार की तरफ बढ़ रही थी।
"इसलिए मरद अपना सब कपड़ा उतार देगा केवल खेला ढके रहेगा और औरत सब ऊपर नीचे ढके रहेगी। आप ही बताइए अगर कपड़ा पहनने का कोई और कारण होता तो मरद औरत दुनू एक जैसा कपड़ा पहनती। दोनों केवल नीचे ढकते या दोनों ऊपर नीचे ढकते। कपड़ा बस आदमी के बेईमानी को ढकने के लिए है। आदिवासी सब को देखिए, न कोई बेईमान होता है न कपड़ा पहनता है। गांव में देखिए। लोग कम बेईमान होता है त कम कपड़ा पहनता है। और शहर में - ऊपर से नीचे तक बीस ठो कपड़ा। सब इतना बेईमान कि 3 - 4 कपड़ा से उनका बेईमानी ढ़कायेगा ही नहीं।” बुड्ढे ने अपनी ऊँगली नीता की गीली पैंटी तक लेजा कर उसकी चूत को दबाया। नीता उछल पड़ी। झट से वो बुड्ढे से दूर होकर बुड्ढे की तरफ पलट गयी। चूची गांड तक तो ठीक था। पर वो ब्याहता है। किसी गैर मर्द को अपने चूत तक नहीं जाने दे सकती।
“देखिये हम ईमानदार हैं। हम अपना सब कपड़ा उतार देते हैं।” बुड्ढे ने अपना कुर्ता उतार कर नीचे फेंक दिया। बुड्ढे की दुबली पतली काया थी। सीने पर झाड़ी जैसे सफेद बाल थे। उसके पूरे बदन पर सबसे उन्नत उसका लंड ही था। बुड्ढे के सीने पर बाल देख कर नीता सोचने लगी। रवि के बदन पर तो एक भी बाल नहीं और इस बुड्ढे को देखो भालू की तरह पूरे बदन पर बाल है। ऐसे होते हैं मर्द। रवि तो बिल्कुल नामर्द है। वो मुझे क्या सुख देगा?
"अब आप उतारिए!"
"मैं नहीं उतारने वाली। मैं शादीशुदा हूं। गैर मर्द के सामने नंगी कैसे हो जाऊं?"
"मतलब आपके मन में बेईमानी है? आप खुद को छुपा रही हैं?"
"बेईमानी? मेरे मन में क्या बेईमानी होगी?"
"मेरे केले को देख कर आपकी गुफा गीली हो रही है। और आप ये बात छिपाना चाहती हैं।"
"जी नहीं! ऐसी कोई बात नहीं है। तुम दो कौड़ी के खलासी हो। मैं इज्ज़तदार परिवार की शादीशुदा औरत हूं। तुम्हारे इस गंदे काले केले से मेरे गुफा में कुछ नहीं होने वाला।" नीता बुड्ढे के बात की सच्चाई से तिलमिला गई थी।
"अगर ऐसी बात है तो आप कपड़े क्यूं नहीं उतार रही हैं? आप डर क्यों रही हैं?"
"मैं राजपूत हूं। किसी से नहीं डरती!"
"तो फिर उतारिए कपड़े?"
बुड्ढे ने नीता को शब्दजाल में फंसा लिया था। नीता की पैंटी सच में गीली हो चुकी थी। वो कपड़े नहीं उतारती तो भी मतलब यही होगा कि वो गर्म है और उतार देती है तब बुड्ढा उसकी गीली चूत देख सब समझ जाएगा। नीता को बिल्कुल नहीं सूझ रहा था कि अब वो क्या बहाना बनाए? "मुझे शर्म आती है।"