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Adulteryबहन की नथ उतारी माँ की गाँड़ और भाभी की चूत चोदी
मैने चाची को अपने बाहो में भरते हुए....आप क्यो सोई थी पापा के साथ....में ये सच जाने बिना आपको कहीं नही जाने दूँगा...
चाची की आँखो में अब आँसू आचुके थे....और वो अपनी सारी भडास निकालती चली गयी....जब उनके दिल का बोझ कम हुआ तो वो मेरे सामने किसी निर्जीव प्राणी को तरह खड़ी थी...
में--हाँ चाची मेरे मन में जो विश्वास भरा है....उसी के कारण मुझे पूरा भरोसा है में आपको बेटा दे सकता हूँ....लेकिन मेरी एक शर्त है....
चाची--अगर तू मुझे बेटा दे देगा तो तू जो कहेगा में वो करूँगी....
एक बार फिर से चाची के मन में बेटा पैदा करने की लालसा जाग गयी थी...
में--आपको कोमल और दीक्षा को मेरे हवाले करना होगा और धीरे धीरे उन्हे सारे सच भी बताने होंगे...
चाची--ये कैसी बात कर रहा है जय तू...एक खुशी देकर तू मेरी दोनो खुशिया छीनना चाहता है....
में--चाची में आपकी कोई भी खुशी नही छीन रहा हूँ...आप हमेशा कोमल और दीक्षा की माँ ही रहोगी....लेकिन उन्दोनो मे खून मेरे पापा का है इसलिए आप से ज़्यादा हक हमारा बनता है उन दोनो पर....और अगर वैसे भी आप उन्दोनो को ये सच नही बताऑगी तो ये सच मुझे ही बताना होगा....में आपको बेटा इस लिए देना चाहता हूँ ताकि आपका मन उन दोनो से अलग होने के बाद तडपे ना....
चाची--जय अगर तू मुझे बेटा दे सकता है तो में कुछ भी करने को रेडी हूँ लेकिन याद रखना तेरे बाप की तरह तूने भी मुझे धोका दिया तो तेरे बाप के पूरे वंश को जड़ से ख़तम कर दूँगी में....
में अब चाची के ब्लाउस के बटन खोल चुका था उन्होने अंदर से एक पिंक कलर की ब्रा पहन रखी थी....मैने उनका ब्लाउस और ब्रा दोनो उतार कर साइड में रख दिया और पहाड़ की छोटी की तरह उनके बड़े बड़े बूब्स देखे ही जा रहा था....उनके बूब्स की निप्पल्स अब बिल्कुल कठोर होकर तन चुकी थी....
में उनकी निप्पेल्स पर अपनी नाक को रगड़ने लगता हूँ और अचानक किसी बच्चे की तरह उनकी निपल अपने मुँह में भर कर चूसने लग जाता हूँ...
में अपने एक हाथ से उनका दूसरा बूब दबा रहा था और दूसरे हाथ से उनकी साड़ी खोलने लग गया था....
साड़ी खुल कर अब ज़मीन पर बिखर गयी थी. और मेरा हाथ उनके पेटिकोट के नाडे को खोलने में उलझ गया था...मैने एक ही झटके में वो नाडा खीच दिया और चाची का पेटिकोट सॅर्र्र्र की आवाज़ करता हुआ उनके पैरो में जा कर गिर गया.....चाची अब सिर्फ़ एक पिंक कलर की पैंटी में मेरे सामने खड़ी ग़ज़ब की खूबसूरत लग रही थी....मुझे इस तरह देख चाची ने शर्म से अपने चेहरे पर अपने हाथ रख लिए....में अपने घुटनो के बल बैठा और चाची की पैंटी एक ही झटके में उतार कर उनकी खूबसूरत चूत को देखने लग गया वो चूत काले बालो से धकि लगातार रिस रही थी....उसकी गर्म भभक मुझे अपने चेहरे पर महसूस होने लगी थी....
में उनकी चूत पर हाथ फेरता हुआ खड़ा हो गया और चाची को बाहो में लेकर उनके होंठ चूसने लग गया....होंठो के मिलन ने चाची की आग को और ज़्यादा भड़का दिया था...
उन्होने मुझे धक्का दिया और जल्दी जल्दी मेरे कपड़े उतार कर मुझे नंगा कर दिया ...उसके बाद चाची ने फिर से मेरे होंठों को अपने होंठों से जकड लिया. ....और धीरे धीरे एक हाथ से मेरे लिंग को सहलाने लगती है....काफ़ी देर तक ऐसे ही एक दूसरे की बाहो में लिपटे रहने के बाद में चाची को आराम से बेड पर लेटा देता हूँ....और उनकी गान्ड के नीचे एक पिल्लो रख कर उनकी टांगे फैला देता हूँ...उसके बाद अपने लिंग को चाची की चूत पर टिका कर एक ज़ोर दार धक्का लगा देता हूँ....एक हे झटके में मेरा आधा लिंग चाची की चूत में समा जाता है....
में चाची की दोनो जांघे अपने कंधे पर रखता हूँ और एक ज़ोर दार झटका फिर से लगा देता हूँ....चाची की दर्द की वजह से आहह निकल जाती है.....उसके बाद में उनके बूब्स सहलाता हुआ धीरे धीरे चाची की चूत के अंदर अपना लिंग रगड़ने लगता हूँ....
उसके बाद मेरे कमरे में एक तूफान सा आजाता है....में अपने धकको की रफ़्तार लगातार बढ़ाता ही चला जा रहा था...पता नही इतनी ताक़त मुझ में कहाँ से आ गयी....चाची अब तक 3 बार झड चुकी थी और जब चाची ने मेरी आँखो को बंद होते देखा उसी पल चौथी बार वो झड़ने लगती है इस बार मेरा भी लावा उनके गर्भ की दीवारो पर दस्तक दे रहा था....अब हम दोनो बेसूध पड़े थे....
तभी दरवाजे पर हुई दस्तक से मुझे होश आया....
में ऐसे ही बिना कुछ पहने ही दरवाजे की तरफ बढ़ गया और पूछा कौन है....
बाहर से मम्मी की आवाज़ सुनते ही मैने तुरंत दरवाजा खोल दिया....मम्मी जैसे ही अंदर आई रूम का हाल देख कर उनकी आँखे खुली की खुली रह गयी..
चाची अभी भी बेसूध अपनी टांगे चौड़ी करे बेड पर पड़ी थी....उनकी चूत में से हम दोनो के मिलन का सबूत रह रह कर बाहर रिस रहा था........कभी मम्मी मेरी तरफ़ देखती और कभी चाची की तरफ....
अपनी फटी फटी आँखो से लगातार ये नज़ारा वो देखे ही जा रही थी........
में बिल्कुल नंगा मम्मी के सामने खड़ा था...मम्मी लगातार मुझे देखते हुए....
मम्मी--जय अपने कपड़े पहन....और बता मुझे ये सब क्या चल रहा है....
मम्मी की आवाज़ सुन कर चाची को जैसे होश आ गया वो तुरंत अपने बेड से उठकर खुद के कपड़े पहनने लगी...
मेने अपना बरमूडा डाल लिया था जब तक...मम्मी ने दरवाजा लॉक किया और बेड पर जाकर बैठ गयी अपने सिर पर हाथ रख कर....
मम्मी--जय मैने तुझ से कुछ पूछा है जवाब दे मुझे....ये क्या हो रहा है....और क्यो हो रहा है...
ये बात लगभग उन्होने चीखते हुए कही थी....
में--मैने चाची से सौदा किया है....
मम्मी--कैसा सौदा....कहना क्या चाहता है तू...
में--इनको बेटा चाहिए था....और मुझे मेरी बहनें
इनकी कोख में बेटा मैने डाल दिया है अब इनका अपनी बेटियों पर कोई हक़ नही है....
मम्मी--ये उन लड़कियों की माँ है....तू ये हक़ कैसे ले सकता है...
में--वो सिर्फ़ मेरी बहनें है...उन लड़कियो को कभी इन्होने अपना समझा ही नही...इनको बेटा चाहिए था सो मैने इनको वो दे दिया....
मम्मी--माना ये तेरी बहने है लेकिन इन पर तेरा कोई हक़ नही है...
में--हक है मम्मी मेरी हर बहन पर मेरा हक़ है इन दोनो में भी पापा का ही खून है...बस कोख आपकी जगह चाची की है....मेरी एक बहन और है...जो कहीं दूर मुझे याद कर रही है...में उसे भी ढूँढ कर यहाँ ले आउन्गा...मेरा बस एक ही लक्ष्य है अपनी बहनो की खुशी...ये दोनो भी चाची के साथ नही रहना चाहती....उनको भी हमारी ज़रूरत है...जब उन्हे सच पता पड़ेगा तो वो वैसे भी मेरे साथ ही रुकेंगी....
मम्मी मेरी ये बात सुनकर चाची को एक टक घुरे जा रही थी...और चाची अपना सिर झुकाए वही पास में खड़ी थी...
मम्मी--जय तुझे हो क्या गया है पहले तो तू ऐसा नही था ये एक दम से जानवरों जैसा कैसे बन गया...
में--पहले मुझे कुछ पता नही था....
लेकिन में अब सब समझ गया हूँ...मेरी बहने अब कभी उस गाँव में नही जाएँगी और ये मेरा आख़िरी फ़ैसला है...अगर आपको मुझ पर यकीन नही है तो चाची भी मेरी इस बात को मना नही करेंगी....
मम्मी--लेकिन तू इतनी गॅरेंटी के साथ कैसे कह सकता है कि इसको अब बेटा ही होगा....
में--ये मेरा खुद पर विश्वास है..,इनको लड़का ही होगा...
मम्मी--लेकिन कल को तूने वो बच्चा भी इस से छीन लिया तो....
में--ये उस दिन होगा जब चाची अपना किया हुआ वादा तोड़ देंगी....मेरा काम है प्यार बाटना...अब वो प्यार चाहे आप सौदे के रूप में समझो या हवस के रूप में...
मम्मी--हो क्या गया है तुझे ये कैसी बहकी बहकी बाते कर रहा है...
तुझे इतना भी समझ में नही आरहा तेरी माँ खड़ी है तेरे सामने...
में--अगर आप को भी कुछ चाहिए तो मुझे बोल देना...
ये सुनने के साथ ही मम्मी ने मेरे बेड के पास पानी से भरा जग उठाया और मेरे सिर पर उडेल दिया.....
में जैसे नींद से जागा....
में --मम्मी मुझे गीला क्यो किया...
मम्मी--तू ये क्या अनापशनाप बके जा रहा था...
में--क्या बोला मैने मम्मी....में तो बाहर था यहाँ अंदर कैसे आया....
मम्मी--ये क्या बकवास कर रहा है पिछले आधे घंटे से हम बहस कर रहे है....और तू कहता है कि तूने क्या कहा....
में--सच में मम्मी मुझे नही पता में यहाँ कैसे आया...में तो बाहर नाश्ता कर रहा था और ये मेरे कपड़े कैसे चेंज हो गये....
मम्मी मेरी ऐसी हालत होते देख घबरा गयी और मेरे गीले बदन को अपनी साड़ी से पोछने लग गयी.....
ये क्या हुआ था मुझे....कुछ समझ नही आ रहा था....मुझे कुछ याद क्यों नही आ रहा....में अंदर कैसे आ गया....मम्मी को मैने ऐसा क्या बोल दिया जिस से उन्होने मुझे गीला कर दिया........
मम्मी मेरी बातो से काफ़ी घबरा गयी थी और वो मेरे सीने से लगकर रोने लगती है....
मम्मी--ये क्या हो गया है मेरे घर को किस की नज़र लग गयी है इसे....
चाची--भाभी मुझे लगता है किसीने जय के खाने पीने के सामान में कुछ मिलाया है....
मम्मी--मेरे घर में कोई ऐसा करने की सोच भी नही सकता.....लेकिन फिर भी कुछ तो ग़लत हुआ है इसके साथ...में अभी इसे पंडित जी के पास लेकर जाती हूँ और तू ये बात किसी को नही बताएगी तुझे जो चाहिए था वो तुझे मिल गया...अब मेरे घर से जाने की तैयारी कर लो...
उसके बाद चाची अपनी गर्दन झुकाए....रूम से बाहर निकल गयी....
मम्मी--जय तू अपने कपड़े बदल कर बाहर आजा हम लोगो को कहीं चलना है....
उसके बाद मम्मी बाहर चली जाती है और में अपने ख्यालो में डूबा हुआ अपने कपड़े चेंज करके बाहर निकल आता हूँ....बाहर आकर देखता हूँ मम्मी कार के पास खड़ी है और मुझे चलने के लिए बोल रही है....
में कार स्टार्ट करता हूँ और मुमनी के कहे अनुसार.....चलाने लगता हुँ....
थोड़ी ही देर में हम एक मंदिर के सामने पहुँच गये थे....मम्मी वही उतर गयी और मुझे कार पार्किंग में लगाकर आने का बोल कर वो लगभग भागते हुए मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने लगी...
में कार पार्क कर के मदिर में चला आया और अपने जूते बाहर ही उतार दिए...
अंदर गया तो वहाँ एक पुजारी के सामने मम्मी बैठी हुई थी...
मम्मी--पुजारी जी इसे देखिए मुझे लगता है इस पर किसी ने कुछ कर दिया है....
में भी वही मम्मी के पास बैठ जाता हूँ...और पुजारी मेरा हाथ पकड़ कर अपनी आँखे बंद करके ध्यान में चला जाता है....
थोड़ी देर बाद जब पुजारी आँखे खोलता है...तो वो मेरी तरफ आश्चर्य से देख रहा होता है....
पुजारी--बेटी तेरा बेटा एक महान इंसान है...इसने वो पा लिया जो हम लोगो के नसीब में शायद ही होगा....लेकिन तुम्हारे घर की एक कन्या ने इसके खाने में कुछ ऐसा मिला दिया था जिस से ये अजीब सा व्यवहार करने लग गया है....उस चीज़ के प्रभाव से इसका भीतरी मन जिसे ये हमेशा दबा कर रखता था वो उजागर हो जाता है.....मेडिकल की भाषा में इसे स्प्लिट पर्सनली कहते है....तुम इसे बिल्कुल सही समय पर यहाँ ले आई हो....वैसे उस चीज़ का प्रभाव इस पर से जा चुका है लेकिन इसे बार बार वो चीज़ दी जाती रही तो एक दिन ये पूरी तरह से बदल जाएगा ....
उसके बाद कोई कुछ नही कर पाएगा....
मम्मी--लेकिन में कैसे पता लगाऊ....कि ऐसा कौन कर रहा है....
पुजारी--इसके खाने पीने का ध्यान तुम खुद रखो....जब तुम इसकी हर चीज़ का ध्यान रखोगी तो वो कन्या कोई ना कोई ग़लती ज़रूर करेगी....या तो वो क्रोधित होकर तुम्हे भला बुरा कहेगी या फिर किसी भी तरह से तुम्हे अपने वश में करने की कोशिश करेगी....जो इसे दिया जा रहा है वो शायद किसी ख़ास प्रायोजन से अपना मतलब सिद्ध करने के लिए दिया जा रहा है.
मम्मी--पुजारी जी आपका आशीर्वाद ऐसे ही बनाए रखिए....में अब से इसके खाने पीने का ध्यान रखूँगी....
लेकिन आपने शुरू में कहा कि इसने ऐसा काम किया है जो आप शायद ही अपने जीवन में कर पाए...ऐसा क्या काम किया है इसने...
पुजारी जी-- मुस्कुराते हुए...आपका बेटा महादेव के दर्शन कर चुका है....जो हम सब को इतनी सेवा के बाद भी नही हुए....
उसके बाद पुजारी मेरे पैर छुने लग जाता है....और में पुजारी जी को रोकते हुए उन्हे फिर से अपनो जगह बैठा देता हूँ...
मम्मी--अगर इसके सिर पर महादेव का हाथ है फिर कोई कैसे इसका बुरा कर सकता है....
पुजारी--ये तो उनकी लीला वो ही जाने लेकिन....तुम्हे ये सब भूलकर बस इसके उपर ध्यान देना होगा....कुछ ही दिनो में उसकी सच्चाई तुम्हारे सामने होगी....
उसके बाद में और मम्मी पुजारी जी का आशीर्वाद लेकर घर की तरफ चल पड़ते है....रास्ते में गन्ने के जूस की दुकान देख कर में गाड़ी वहाँ लगा लेता हूँ और जूस वाले से 2 बड़े ग्लास बनाने की बोल देता हूँ...
हम दोनो जूस पीने के बाद वापस घर की तरफ बढ़ जाते है...घर पहुँच कर में मेरे रूम में घुस जाता हूँ और अपनी बुक्स उठा कर पढ़ने बैठ जाता हूँ....कल से कॉलेज जाना था .
थोड़ी देर बाद नीरा मेरे रूम में आती है....
नीरा--क्या बात है भैया आज बुक्स कैसे उठा ली...
में--कुछ नही यार कल से कॉलेज जाना है...और पता नही वहाँ कुछ पढ़ाया गया है भी या नही... तेरा आज स्कूल कैसा रहा वहाँ कोमल के लिए बात करी तूने....
नीरा--हाँ भैया प्रिन्सिपल ने कल कोमल को स्कूल बुलाया है और कुछ फ़ौरमलिटी है जो में करवा दूँगी कोमल के साथ जाकर...
में--चल अच्छा किया....अब कल में भी दीक्षा दीदी के लिए कॉलेज में बात कर लूँगा...
नीरा--भैया एक किस मिलेगी क्या....
ये सुनते ही में उसे कस कर बाहो में भर लेता हूँ और उसके गालो पर खूब सारी किस कर देता हूँ....बदले में नीरा भी मेरे गाल पर किस कर देती है....
में--मिल गयी किस??अब जा यहाँ से थोड़ी देर पढ़ने दे मुझे....और मम्मी को मेरे लिए एक कॉफी बनाने के लिए बोल दे...
नीरा--मम्मी को क्यो परेशान करते हो....में ही आपके लिए कॉफी बना कर ले आती हूँ...
में-- मुस्कुरा कर नीरा से कहता हूँ....तू मम्मी से बोल कर देख अगर वो तुझे बनाने दे तो बना ला....
उसके बाद नीरा रूम से निकल कर सीधा किचन में चली जाती है वहाँ मम्मी उसे मिल जाती है....
नीरा--मम्मी में भैया के लिए कॉफी बना रही हूँ आप भी लोगि....
मम्मी--कॉफी में बना देती हूँ....तुझे अगर पीनी है तो बोल दे मुझे....
नीरा--ठीक है मेरे लिए भी एक फुल मग कॉफी का बना दो...उसके बाद नीरा वहाँ से उछलती कुदति बाहर निकल जाती है....
तभी दीक्षा अंदर किचन में आजाती है....
दीक्षा--ताई जी आप क्या बना रही हो क्या में आपकी कुछ मदद करूँ....
मम्मी--नही बेटा में बना लूँगी....तेरी माँ क्या कर रही है....
दीक्षा--उनके सिर में दर्द हो रहा है...वो लेटी हुई है....आप बोलो तो बुलाउ उनको....
मम्मी--नही आराम करने दे....तुझे कॉफी पीनी है तो बोल दे में कॉफी बना रही हूँ....और कोमल और नेहा से भी पुच्छ कर आजा...
दीक्षा--ठीक है ताई जी...में अभी पूछ कर आजाती हूँ....
मम्मी--ये ताई ....ताई क्या लगा रखा है तूने या तो मम्मी बोल या फिर बड़ी मम्मी....दुबारा ताई बोली ना तो देख लेना...
दीक्षा--ठीक है ताई जी.....ओह्ह्ह इम सॉरी बड़ी मम्मी जी....
मम्मी--चल भाग यहाँ से और सब से पूछ कर बता दे मुझे....
उसके बाद वो सब से पूछ कर आजाती है बस चाची कॉफी के लिए मना करती है और बाकी सब कॉफी माँग रहे थे....दीक्षा जब रूही से पूछने के लिए रूम में जाती है...तो रूही भी दीक्षा के साथ किचन में आ जाती है...
रूही--मम्मी मुझे ही बोल देती कॉफी बनाने के लिए...आपने क्यो तकलीफ़ करी...
मम्मी--में बना लूँगी तो घीस नही जाउन्गि...चल अब तू तेरा काम कर और जब आवाज़ दूं तब कॉफी लेने आ जाना तेरी...
तेरे चाचा चाची भी शाम को निकलने वाले है वापस गाँव के लिए उनके लिए भी खाना बनाना है मुझे...
रूही--मम्मी आप से कुछ ज़रूरी बात करनी है...क्या आप थोड़ी देर बाद मुझ से बात कर सकती हो....
मम्मी--बोल क्या ज़रूरी बात है...यहीं बोल दे...
रूही--मम्मी रूम के अंदर बोलने वाली बात है किचन में कैसे बोल दूं....
उसके बाद रूही मम्मी के गाल पर किस करती है और किचन से बाहर चली जाती है.
सभी अपने अपने रूम्स में आ गये थे....में पढ़ता पढ़ता कॉफी की चुस्किया भी लगता जा रहा था....आज मेरा मन काफ़ी शांत था....
उधर मम्मी भी अपने रूम में चली गयी थी....और उनके पीछे पीछे रूही भी अंदर आ गई थी....
रूही ने मम्मी को पिछे से हग कर लिया था और अपने दोनो हाथ उनके बड़े बड़े बूब्स पर रख कर मसलने लगती है....
मम्मी--रूही क्या हुआ आज तू बड़े मूड में लग रही है...
रूही अपना एक हाथ नीचे ले जाकर मम्मी की चूत सारी के उपर से ही भींच देती है दूसरे हाथ उनके ब्लाउस में डालकर उनका बूब मसल्ने लग जाती है....
रूही--आप की याद मुझे बहुत आई...मन कर रहा है अभी आपके सामने अपने सारे कपड़े उतार कर आपसे मेरी चूत चुस्वा....
मम्मी--चल अब मुझे छोड़ जो करना हो वो रात को कर लेना...मुझे एक बात बता तुम तो कल शाम को आने वाले थे फिर इतनी रात को कैसे आए वहाँ से....
रूही--में अपने और आपके लिए किसी चीज़ का बंदोबस्त कर रही थी हमेशा के लिए....
रात को जब में जय के रूम में गयी उसे देखने के लिए और फिर मेरा मन नही माना तो मैने उसके होंठो पर किस करदी....जब मैने उसे किस किया तब उसमें से शराब की काफ़ी ज़्यादा स्मेल आरहि थी....मैने इस मोके का फ़ायदा उठा कर जय का लंड भी चूसा और उसका पानी भी पिया....
अब जल्दी ही हम दोनो की चूत में उसका लंड होगा....आपने तो कभी मेरी चूत में उंगली भी नही डाली....लेकिन कल जय का लंड देख कर,मेरी चूत उसका लन्द लेने को तड़प रही है....
हरिद्वार में जब हम निकलने वाले थे तब मुझे पता पड़ा था कि वहाँ कोई बड़ा तांत्रिक आया हुआ है...मैने जब उन्हे अपनी परेशानी बताई तब उन्होने एक दवाई मुझे जय के खाने मिलाने के लिए दे दी थी....जिस की वजह से जल्दी ही हम दोनो की चूत की आग ठंडी हो सकेगी.....
तड़ाक्ककक......एक ज़ोर दार थप्पड़ से रूही का पूरा वजूद झन्झना उठता है....
मम्मी--तेरी हिम्मत कैसे हुई जय को कुछ भी ऐसा वेसा खिला देने की....कहाँ है वो दवाई लेकर आ मेरे पास उसे....
रूही ने अपनी ब्रा के अंदर छुपि हुई एक पूडिया निकाल कर दे दी....और अपने गालो को मसल्ते हुए कहने लगी....
रूही--में जानती हूँ आप मुझे जय से सुख लेने नही दोगि और ना ही खुद लोगि....लेकिन में उसे अपना बना कर ही रहूंगी....
मम्मी--तू शायद जानती नही है तेरे जाने के बाद यहाँ क्या क्या हंगामा हुआ है...
और मम्मी रूही को नीरा से लेकर चाची तक की सारी बाते बताती चली जाती है....
रूही को जब ये सारी बाते पता चलती है तो उसको रुलाई फूट पड़ती है...वो मम्मी के पैरों में बैठकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगती है....
लेकिन मम्मी की आँखो में बस रूही के लिए नफ़रत ही थी....
रूही--मम्मी मुझे माफ़ कर दो....अगर मुझे ऐसा पता होता कि मेरे जाने के बाद यहाँ इतने तूफान आगये है....तो में कभी भी ऐसी हरकत नही करती....
मम्मी--तेरी ये ग़लती जय को पागलपन के अंधेरे में धकेल देती....तूने देखा नही था उसका वो रूप अगर देख लेती तो वही बेहोश हो जाती...मैने नीरा और जय की शादी के लिए हाँ इस लिए करी क्योकि नीरा उसे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करती है....उसे जय के जिस्म का लालच नही है....
रूही--मगर में भी जय से प्यार करती हूँ....में भी उसके लिए जान दे सकती हूँ....और रही बात हवस की तो ये तोहफा आपने ही मुझे बचपन में दे दिया था.....में जय के बिना ज़िंदा नही रह सकती....
मम्मी को भी अब शायद अपनी ग़लतियो का एहसास होने लगा था....कैसे उसने खुद के स्वार्थ के लिए उस मासूम को हवस के गहरे दल दल में धकेल दे दिया था....
मम्मी रूही को उठाते हुए...
मम्मी--रूही जो हुआ वो ग़लत था लेकिन उसके बाद तू जो कर रही थी ये उस से भी ज़्यादा ग़लत है....अगर तू जय से प्यार करती है तो उसका दिल जीत....उसका प्यार जीत....तभी तू उसे पा सकती है....लेकिन इस तरह टोने टॉट्को से तू उसका शरीर तो पा लेगी लेकिन कभी उसका प्यार नही पा पाएगी....
बोल मुझे तुझे क्या चाहिए अगर तुझे जय का शरीर चाहिए तो मेरे बोलने भर से वो तेरे साथ वो सब कुछ कर लेगा जो तू चाहती है....लेकिन अगर तुझे उसका प्यार चाहिए तो ये काम तुझे खुद करना पड़ेगा....
अब अपने आँसू पोछ और जो तूने किया है उसके बारे में सोच.....और सोच जय का प्यार तू कैसे पा सकती है....
उसके बाद मम्मी रूही को रूम के अंदर छोड़ कर बाहर निकल जाती है...
और अंदर रूम में रूही बेतहाशा रोए जा रही थी.....बस रोए जा रही थी....
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अब सब कुछ बदल गया था...मेरा हर रिश्ता बदल गया था....जिस बहन से में अपनी जान से ज़्यादा प्यार करता था वो अब मुझे पति के रूप में देखने लगी थी....चाची के साथ जो मैने किया.....उस वजह से एक रिश्ता और बदल गया....चाची की कोख में अपना बीज रोपीत कर चुका था....कुछ रिश्ते अभी और बदलने वाले थे....लेकिन रिश्ते बदलते बदलते कहीं में तो नही बदल जाउन्गा....कहीं में उस प्यार को तो नही भूल जाउन्गा जो मुझे मेरे संस्कारों में मिले ....ये क्या बेचैनी छा गयी है मेरे जीवन में....कैसे ख़तम होगा ये अध्याय....कौन निभाएगा मेरा साथ....क्या बस यही लिखा है मेरे जीवन में.....
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मम्मी--जय उठ जा रात होने वाली है कब तक सोता रहेगा ऐसे ही....
में--मम्मी पढ़ते पढ़ते मुझे कब नींद आ गयी कुछ पता ही नही चला ....
मम्मी--चल हाथ मुँह धो ले....और जल्दी से खाना खाने आजा...
उसके बाद तेरे चाचा चाची भी थोड़ी देर में जाने वाले है....
में-- मम्मी में खाना उनके जाने के बाद खा लूँगा अभी कुछ खाने का मन नही है....
मम्मी--ठीक है तेरा जब मन करे तब खा लेना...लेकिन फ्रेश होकर बाहर तो आजा तेरे चाचा कब से तेरा वेट कर रहे है...
में--ठीक है मम्मी में थोड़ी देर में आता हूँ...
उसके बाद में हाथ मुँह धोकर बाहर चाचा के साथ सोफे पर बैठ जाता हूँ...
में--चाचा हो गया आपका काम....ले लिए खाद और बीज...
चाचा--हाँ बेटा यहाँ अच्छी किस्म के बीज मिल्गये....और अगर इस बार बारिश अच्छी हुई तो फसल भी देखने लायक होगी...
उसके बाद चाचा अपने बेग में से 10 लाख रुपये निकाल कर मेरे हाथ मे रख देते है...
में चाचा जी ये पैसे किस लिए...
बेटा ये वैसे तो तेरे पापा की अमानत थी लेकिन अब ये तेरी है....में अपने हिस्से की खेती के साथ साथ तेरे पापा वाले हिस्से में भी खेती करता था....ये उसी खेती के हिस्से के पैसे है जो में जमा करता रहता था....पहले कभी उस बात पर ध्यान नही दिया मैने लेकिन जब में यहाँ आरहा था तब मुझे अहसास हुआ कि मुझे तेरे पापा के हिस्से वाले पैसे भी देने चाहिए....
में--चाचा जी ये पैसे में नही रख सकता...ये आपकी मेहनत का फल है अगर आप उस ज़मीन पर मेहनत नही करते तो वो बंज़र पड़ी रहती....इसलिए इसे आप ही रखिए...
चाचा--बेटा हिस्से का धन चाहे मेहनत का हो या ज़मीन का वो हिस्सा ही रहता है....अगर तू ये पैसे मुझ से नही लेगा तो में हमेशा तुम्हारा कर्ज़दार ही बना रहूँगा....इसलिए तू ये पैसे रख ले....
उसके बाद चाचा ज़बरदस्ती वो दस लाख रुपये मेरे हाथो में रख देते है....
में मम्मी को आवाज़ लगाकर अपने पास बुलाता हूँ और उनसे ये कहता हूँ...
में--मम्मी ये पैसे कल कोमल और दीक्षा दीदी का बॅंक में खाता खुलवाकर एफडी करवा देना और अपनी तरफ से भी 5-5 लाख रुपये मिला देना....
मम्मी--मुस्कुरा कर....मुझे तुझ से यही उम्मीद थी बेटा अपने परिवार का ध्यान अब तुझे ही रखना है और तूने पहला फ़ैसला ही बिल्कुल सही लिया है में कल तुम लोगो के स्कूल कॉलेज से आने के बाद इन्हे बॅंक ले जाउन्गि....
चाचा--जय है तो तू भी तेरे पापा की तरह जिद्दी का जिद्दी....अच्छा मेरा एक काम करेगा जहाँ से में ये बीज लेकर आया था उनके लड़के की परसो शादी है....मैने जब उन्हे बताया कि में किशोर भाई साब का छोटा भाई हूँ तो उन्होने ज़िद्द करते हुए अपने बेटे की शादी का कार्ड थमा दिया अब में तो वहाँ जा पाउन्गा नही इसलिए एक बार वहाँ जाकर उन्हे शादी का तोफ़ा ज़रूर दे आना...
में--ठीक है चाचा जी में चला जाउन्गा...
चाचा--बेटा वो कार्ड मैने तेरी मम्मी को दे दिया है तू वहाँ जाना भूल मत जाना क्योकि ये बुलावा मुझे नही है बल्कि तेरे पापा के सम्मान को था इसलिए अपने पापा के मान के लिए तू वहाँ ज़रूर चले जाना....
में--ठीक है चाचा जी में चला जाउन्गा आप चिंता ना करे...
उसके बाद चाचा और चाची अपना समान लेकर और हम सभी बच्चो को अपने गले से लगाकर विदा लेते है....
उसके बाद में भी अपनी बाइक उठा कर बाहर निकल जाता हूँ...मुझे डॉक्टर के यहाँ से वो डीयेने रिपोर्ट्स लेनी थी...जो कि में सुबह लेना भूल गया था.....
में हॉस्पिटल पहुँच गया था डॉक्टर आलोक अभी किसी मरीज को देखने में व्यस्त थे तब तक में बाहर ही वेट करने लग गया था....
में अपने आस पास दीवारो पर टॅंगी पंटिंग्स देख रहा था....तभी मेरी नज़र एक फॅमिली ट्री पर बनी हुई पैंटिंग पर पड़ी....
उसमे ट्री की रूट्स को पुरखो के रूप में दर्शाया गया था....और तने को फादर के रूप में....उस ट्री की ब्रॅंचस सन्स के रूप में थी और उन ब्रॅंचस में से छोटी छोटी ब्रॅंचस और निकल रही थी जो सन्स के सन्स की थी.....
तभी एक चपरासी मेरे पास आजाता है और कहता है....
चपरासी--डॉक्टर साहब आपको बुला रहे है....अब आप उनसे मिल सकते है....
में--ठीक है काफ़ी जल्दी फ्री हो गये...में आता हूँ...
इतना कह कर में अपनी जगह से उठ गया और डॉक्टर आलोक के कॅबिन की तरफ़ बढ़ गया....
डॉक्टर--आओ जय....लगता है तुम सुबह आना भूल गये थे....कोई बात नही....ये रिपोर्ट्स रेडी है तुम इन्हे ले जा सकते हो....
में--सर मुझे आप से एक सवाल पूछना है...मैने जो आपको डीयेने सम्पेल्स दिए थे वो एक पिता के एक बेटे के और दो बहनों के थे जो कि आपस में मिल रहे थे....लेकिन में एक बेटे के सम्पेल्स देना भूल गया क्या वो ज़रूरी है....
डॉक्टर--अगर कोई ऐसी वेसी प्रॉब्लम. नही है तब तक तो ठीक है लेकिन अगर उस बेटे का डीयेने भी मिल जाता तो अच्छा होता....वैसे तुम कहना क्या चाहते हो सॉफ सॉफ कहो....
ये बात सुनकर नीरा मुस्कुरा देती है....और मेरे गालो पर किस करके वहाँ से चली जाती है....
नीरा का मेरे प्रति प्यार लगातार बढ़ता ही जा रहा था....वो मुझे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करने लग गयी थी......
में बाहर हॉल में आकर बैठ गया था वहाँ दीक्षा भी बैठी हुई थी और टीवी देख रही थी....
में--दीदी कल कॉलेज का आपका पहला दिन है आइ थिंक आपने अपनी सारी तैयारी पूरी कर ली होगी...
दीक्षा--हाँ जय भैया.,,,तैयारी तो लगभग पूरी हो गयी है....बस अब तो वहाँ जाने का वेट कर रही हूँ....
में--में आपसे एक बात कहना चाहता.....कॉलेज में और स्कूल लाइफ में काफ़ी अंतर होता है....इसलिए अपने दोस्त हमेशा चुन कर बनाना....
दीक्षा--भैया में ये बात जानती हूँ...आप चिंता मत करे...
इतनी देर में मम्मी मेरे लिए खाना लेकर आ गयी थी....और में वही बैठ कर खाना खाने लगता हूँ.......
अगले दिन सुबह....रूही की आवाज़ मुझे नींद से जगा रही थी....आज कॉलेज जो जाना था...
में नीरा और कोमल एक बाइक पर थे और रूही और दीक्षा अपनी अक्तिवा पर...
रूही और दीक्षा को मैने कॉलेज जाने का बोल दिया था और कोमल और नीरा को उनके स्कूल छोड़कर उस स्कूल के प्रिन्सिपल से भी मिलना था....
वहाँ के प्रिन्सिपल से मिलकर में जल्दी ही कॉलेज भी पहुँच गया....वहाँ कुछ लेक्चर मैने अटेंड किए और कॅंटीन में आकर बैठ गया.....
कॅंटीन में उस दिन हुई घटना के बाद काफ़ी लोग मुझे जानने लग गये थे...इस लिए वहाँ पहुँचते ही कुछ लड़के लड़कियाँ मेरे पास आकर बैठ गये और पापा की डॅत का अफ़सोस जताने लग गये....उसके बाद बाकी सब चले गये और बस 2 लड़के और एक लड़की मेरे साथ ही बैठे रहे...एक लड़के का नाम अरमान था दूसरे का जॉनी....और जो लड़की थी उसका नाम मीना....
अरमान--जय भाई उस दिन जो कुछ भी हुआ उसके बाद पूरा कॉलेज आपका फॅन हो गया है.....
मीना--आपने उस दिन अच्छा सबक सिखाया था उन सब लड़को को....आपकी वजह से ही यहाँ रेजिंग बंद हो सकी है...
में--मैने ऐसा कुछ भी नही किया बस जो कुछ भी किया वो एक सेल्फ़ डिफेन्स में मुझ से हो गया...
मीना--क्या हम लोग आपके दोस्त बन सकते है....वो आक्च्युयली में हम तीनो ही इस शहर से नही है इस लिए यहाँ किसी को ज़्यादा जानते भी नही है.....
में--अरे ये भी कोई पूछने की बात हुई...वैसे भी मेरा इस कॉलेज में कोई दोस्त नही है....
अरमान--तो फिर आज के कॉफी और समोसे मेरी तरफ से....
में--हाँ....हाँ...क्यो नही मुझे तो कब से भूख लग रही थी....इसी बहाने समोसे की पार्टी भी हो जाएगी....
उसी समय रूही और दीक्षा भी वहाँ आ गये....अब वो तीनो मेरे दोस्त बन चुके थे इसलिए मैने उनसे कुछ ना छुपाते हुए रूही और दीक्षा का इंट्रो उन्हे दे दिया.....
मीना--मुझे तो लग रहा था में अकेली पड़ जाउन्गि इस गॅंग में.....अब तो बराबर की टक्कर हो गयी है....हम भी तीन और तुम लोग भी तीन....
और उसके बाद इसी तरह हँसते मुस्कुराते मेरे कॉलेज का दूसरा दिन ख़तम हो गया था....बड़ा अच्छा लग रहा था....नये दोस्त बना कर....इतने दिनो से लाइफ की गाड़ी जैसे रुक ही गयी थी वो फिर से चल पड़ी अपनी पूरी रफ़्तार से....
हम लोग वापस घर के लिए निकल चुके थे नीरा और कोमल का भी स्कूल अब छूटने ही वाला था....इसलिए में स्कूल के दरवाजे के बाहर ही उन दोनो का वेट करने लग गया.....दीक्षा और रूही को कुछ शॉपिंग करनी थी इसलिए वो सीधा मार्केट चली गयी....
तभी मुझे नीरा और कोमल भी आते हुए दिखाई देगयि....नीरा मेरे पीछे वाली सीट पर मुझ से चिपक कर बैठ गयी और कोमल नीरा के पीछे...नीरा बार बार मेरे पेट पर गुदगुदी करती जा रही थी....साथ ही साथ अपने बूब्स भी मेरी पीठ पर रगडे जा रही थी....जबकि कोमल लगातार स्कूल के पहले दिन क्या क्या हुआ ये बताती जाने लगी....
घर में आज माहॉल काफ़ी चेंज लग रहा था आज इतने दिनो के बाद भाभी किचन में काम कर रही थी और मम्मी अपने कमरे में आराम कर रही थी....
हम लोगो को आया देख सब से पहले भाभी ने हम सबको पानी पिलाया और उसके बाद कॉफी का पुच्छ कर वापस चली गयी....
में भी भाभी के पास ही किचन में चला गया और उनसे बाते करने लग गया....
में--भाभी क्यो ना आप अपनी प्रॅक्टीस फिर से शुरू कर दें.....
भाभी--क्यो तुझे में किचन में काम करती हुई अच्छी नही लग रही क्या....में वो काम अब छोड़ चुकी हूँ इसलिए में दुबारा वो अब फिर से नही करना चाहती....
में--ओके भाभी जेसी आपकी मर्ज़ी....वैसे आज खाने में क्या बनाया है....
भाभी--बाजरे की रोटी लहसुन की चटनी रायता और अगर तुम्हे गेहू की रोटी खानी है तो वो भी बनाई हुई है मेने....लेकिन में जानती हूँ बाजरे की रोटी तुम्हे सब से ज़्यादा पसंद है....
में--वाह भाभी मज़ा आ गया में जल्दी से चेंज करके आता हूँ तब तक रूही और दीक्षा भी शॉपिंग कर के आचुकी होंगी....
भाभी--उन दोनो को टाइम लगेगा वो शॉपिंग करने गयी है...तुम चेंज कर लो में तुम सब के लिए अभी खाना रेडी कर देती हू....
उसके बाद में अपने रूम में चला गया....आज का पूरा दिन बस ऐसे ही नौरमल निकल गया वरना कुछ दिन से तो ऐसा लग रहा था जैसे हंगामे कभी ख़तम ही नही होंगे मेरी ज़िंदगी से....
रात हो चुकी थी हम सब अपने अपने रूम्स में सोने की कोशिश कर रहे थे...
देर रात किसी को अपने पास पा कर मेरी नींद खुल गयी....नीरा मेरे सीने पर अपना हाथ रख कर सो रही थी....इस वक़्त उसके चेहरे की मासूमियत मेरे दिल को सुकून दे रही थी....ऐसा लग रहा था जैसे में किसी गार्डन में बैठ कर रंग बिरंगे फूलों को निहार रहा हूँ....तभी उसकी एक जुल्फ उसके चेहरे पर आ गयी थी....इस तरह उसकी जुल्फ का चेहरे पर आना मुझे ऐसा लग रहा था जैसे पूर्णिमा के चाँद के सामने एक छोटा सा काला बादल आ गया हो...
मैने अपनी एक उंगली से उसकी जुल्फ को उसके कानो के पीछे दबा दिया....मेरे इस तरह से करने से नीरा की आँखे खुल गयी....उसकी आँखे किसी बड़ी झील की तरह शांत लग रही थी इस समय....
नीरा--ऐसे क्यो देख रहे हो मुझे....
में--क्या करूँ तुझे इस तरह प्यार से मेरे पास सोता हुआ पाकर में तुझे देखने से खुद को रोक नही पाया....
नीरा ने अब मुझे कस कर अपने आलिंगन में भर लिया था...उसके बदन की खस्बू मेरी सांसो में समाने लग रही थी....
में--तू यहाँ कब आई....
नीरा--मुझे नींद नही आ रही थी तो सोचा थोड़ी देर आपसे बाते करलूँ लेकिन यहाँ आपको सोते देख कर में भी आपके पास ही सो गयी....
में उसके माथे पर किस करते हुए....उसकी पीठ पर हाथ फिराने लग जाता हूँ...
नीरा--आप मुझ से कितना प्यार करते हो....
मैने उसकी इस बात का कोई जवाब नही दिया...और में उसके गले पर किस करने लग जाता हूँ....
नीरा--सुनो ना.....क्यो तंग कर रहे हो आप मुझे....पहले मुझे मेरे सवाल का जवाब दो उसके बाद में आपको कुछ भी करने से नही रोकूंगी.....
में--कुछ भी करने से???
नीरा--मेरी हर साँस पर आपका अधिकार है....मेरे जिस्म का रोम रोम आपके अंदर समा जाना चाहता है....क्या आप भी ऐसा महसूस करते हो.....बताओ ना कितना प्यार करते हो मुझसे....
में--तू जान है मेरी...में तुझे पाने के लिए किसी भी हद तक चला जाउन्गा....में कैसे बताऊ तुझे में कितना प्यार करता हूँ....मुझे खुद भी नही पता....तेरे इस सवाल का जवाब कैसे दूं में....इसके जवाब का ना मुझे कही अंत दिखता है और ना ही शुरुआत....
नीरा ने मेरी ये बात सुनकर मेरे होंठो को अपने होंठो से दबोच लिया.....आज पता नही क्यो में उसे रोक नही पा रहा था किसी भी बात के लिए....मैने भी उसके होंठो का मीठा मीठा रस चूसना शुरू कर दिया.....
काफ़ी देर तक हम एक दूसरे के होंठो को ही चूमते रहे...जब हम दोनो की साँसे उखड़ने लगी तब जाकर हम अलग हुए.....
नीरा--अपनी सांसो पर काबू पाते हुए....पहले मुझे ऐसा लगता था जैसे मैने आपको शादी करने की कसम दे कर ग़लत किया....लेकिन अब मेरे मन से वो सारी बाते चली गयी है....आप मुझे कभी छोड़ना मत वरना में मर जाउन्गि आपके बिना....आप से ही साँसे चलती है मेरी और आपसे ही दिल.....
में--तेरी कसम.....मेरी जान में तुझे कभी खुद से अलग नही करूँगा चाहे इसके लिए मुझे सब कुछ छोड़ना पड़े....
ये कह कर मेने नीरा को अपने अंदर समेट लिया और इसी तरह एक दूसरे की बाहो मे हम दोनो को सोया देख नींद भी अपनी बाहे फैला कर हम दोनो को अपनी बाहो में भर लेती है.....
सवेरे सवेरे....
रूही हम दोनो को इस तरह एक दूसरे की बाहो में सोया हुआ देख कर थोड़ा सा विचिलित हो गयी थी....लेकिन उसकी जलन उसके प्यार पर कभी भारी नही पड़ सकती थी....वो भी मेरी तरह नीरा से प्यार करती थी....वो नीरा के पास बैठकर उसके बालो में हाथ फिराने लग जाती है....
नीरा अपने बालो में किसी को हाथ फेरता महसूस करके अपनी आँखे खोल देती है....वो अभी भी मेरी बाहो में ही थी....जैसे ही वो पलट कर देखती है वहाँ बैठी हुई रूही उसे नज़र आजाती है....
नीरा--दीदी आप कब आई...??
रूही--में बस अभी थोड़ी देर पहले ही आई हूँ...तुम लोगो को इतने प्यार से सोता देख कर तुम दोनो को जगाने का मन नही हुआ....
नीरा--मेरा हाथ अपने उपेर से हटाते हुए...दीदी बाकी सब लोग उठ गये क्या...
रूही--हाँ भाभी किचन में हैं दीक्षा और कोमल जाने के लिए रेडी हो रही है मम्मी बाहर हॉल में बैठी है....और में तुम दोनो को यहाँ जगाने आई हूँ....
नीरा--अब तो में भी जाग गयी हूँ...बस आप इन्हे उठा दो तब तक में फ्रेश होने चली जाती हूँ....
रूही--ठीक है में इसे उठाती हूँ तू जाकर जल्दी रेडी हो जा स्कूल के लिए देर हो जाएगी नही तो...
उसके बाद नीरा वहाँ से उठ कर चली गयी...नीरा के जाते ही रूही ने पहले मेरे माथे को चूमा फिर मुझे उठाने लग गयी...
में--क्या हुआ दीदी आज क्यो उठा रही हो...
रूही--क्यो आज कॉलेज नही जाना है क्या....
में--नही आज मुझे काफ़ी सारे काम है...में आज नही जाउन्गा...आप लोग कार लेकर चले जाना...अक्तिवा पर परेशान हो जाओगे...
रूही--चल ठीक है तो फिर सोता रह....जब मन करे उठ जाना....
में--अब नींद कैसे आएगी...आपने उठा जो दिया है....आप एक काम करोगी...
रूही--बोल क्या काम है...
में--मुझे दीक्षा और कोमल के सिर का एक एक बाल चाहिए अलग अलग...बस आप ये भूलना मत कि किसका कौनसा बाल है....
रूही--में समझ गयी...में लेकर आती हूँ अभी...
रूही अब बाहर निकल गयी थी और में भी फ्रेश होने चला जाता हूँ...
रूही--दीक्षा इधर आना तो....
जैसे ही दीक्षा रूही के पास आती है रूही उसका एक बाल खेंच के तोड़ देती है...
दीक्षा--उूउउइइ....दीदी बाल क्यों तोड़ा....वैसे ही इतने बाल झड रहे है मेरे....
रूही--ये बाल तेरा भाई मॅंगा रहा है...उसे कुछ टेस्ट करवाने है....
दीक्षा--अपने सिर पर हाथ मसल्ते हुए....कौन्से टेस्ट करवाने है भैया को...
रूही--ये मुझे नही पता...कोमल तू भी इधर आ...
कोमल--दीदी भैया अगर बाल माँग रहे है तो में खुद ही तोड़ कर दे देती हूँ....ये लो.
कोमल ने भी अपने सिर का बाल तोड़ कर रूही के हाथ में रख दिया....रूही ने दोनो बालो को अपने दोनो हाथो में अलग अलग कर के रख लिया और मेरे रूम में आ गयी...
रूही--ये लो दोनो के बाल....ये वाला दीक्षा का है और ये वाला कोमल का....
में वो दोनो बाल अलग अलग लिफाफे में डालकर उनपर उन दोनो का नाम लिख देता हूँ....
रूही--अब में जा रही हूँ...कॉलेज के लिए लेट हो रहा है मुझे....
में--ठीक है आप जाओ....
उसके बाद में भी रूही के साथ बाहर निकल जाता हूँ हॉल में सभी लोग बैठे थे मुझे देखते ही नीरा मुझ से चिपक गयी...
नीरा--आज अकेले अकेले छुट्टी क्यो मार रहे हो...
में--अरे दिन में एक शादी में जाना है...और गिफ्ट भी खरीदने है....
नीरा--किस की शादी में जाना है आपको....में भी चलूंगी.....
में--तू चुप चाप तेरे स्कूल भाग जा....चाचा जी के कोई जानकार है उनके लड़के की शादी है...में भी वहाँ से गिफ्ट देकर निकल जाउन्गा कुछ ज़रूरी कामो के लिए....
नीरा--ठीक है लेकिन शाम को मुझे बाइक पर घुमाने ले जाना पड़ेगा....
में--ठीक है गुंडी ले जाउन्गा तुझे शाम को घुमाने....अब जा स्कूल तेरे चक्कर में इन सब को भी देरी हो रही है...
उसके बाद वो सब चले गये....में मम्मी से..
में--मम्मी भैया के जदुले के बाल कहाँ रखे है आपने....मुझे वो चाहिए...
मम्मी--चल मेरे रूम में है...ले ले..
उसके बाद मम्मी ने अपनी अलमारी में रखे बॉक्स में से वो बाल दे दिया....मैने उन से पापा के बाल भी ले लिए थे और अपने रूम में आकर उन्हे भी लिफाफो में डालकर उन पर नाम लिख लिया....मेरे पास अब सभी के डीयेने आ चुके थे सिवाए मेरे खुद के इसलिए मैने भी अपना एक बाल तोड़कर नये लिफाफे में डाल दिया और उन्हे फोल्ड करके अपनी जेब में रख लिया....
मम्मी को मैने बता दिया कि में बाहर जा रहा हूँ....और अपनी बाइक उठा कर बाज़ार में चला गया....लेकिन मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या लूँ....क्योकि बात शादी की नही थी बात पापा की रेस्पेक्ट की थी...इसलिए में एक ज्यूयलरी शॉप में घुस गया....
दुकानदार मुझे अंदर आते ही पहचान गया जबकि में पहली बार इस दुकान परचढ़ा था..दुकानदार का नाम धर्मदास था
धर्म--अरे जय बेटा आओ आओ....आज मुझ ग़रीब की दुकान पर कैसे आना हो गया...
में--क्या आप मुझे जानते हो....में तो पहली बार ही आपकी दुकान पर आया हूँ....
धर्म--बेटा तुम्हारे पापा के अंतीमसंस्कार मे शाहर का हर एक छोटा बड़ा आदमी आया था....में तुम्हे तब से जानता हूँ जब तुम एक बार अपने पापा के साथ यहाँ आए थे....उस वक़्त तुम काफ़ी छोटे थे लेकिन अब तो गबरू हो गये हो...
अब मुझे बताओ यहाँ कैसे आना हुआ...
में--मुझे एक शादी के लिए गिफ्ट लेना है...और ये मान लो गिफ्ट पापा की इज़्ज़त के हिसाब से होना चाहिए....
धर्म--तुम्हारे पापा को इस शहर में हर छोटा बड़ा व्यापारी जानता है....तुम्हारी इस बात ने मुझे भी सोच में डाल दिया...क्योकि अगर आज वो हमारे बीच में होते तो कोई भी उन पर उंगली नही उठा सकता था....लेकिन कोई बात नही....चलो में तुम्हे कही ले कर चलता हूँ...
उसके बाद वो मुझे एक बड़े से शोरुम में लेकर गये जहाँ ज्वेलरी का काम होता था...
वो सीधा वहाँ बने सेल्स काउंटर से आगे बढ़ते हुए एक कॅबिन में मुझे ले जाते है....
धर्म--जुगल किशोर जी.....कैसे है आप....
जुगल किशोर इस शोरुम का मालिक था और ऐसे ही कितने सारे शोरूम्स पूरी दुनिया में फैले हुए थे....
जुगल--अरे आओ आओ धर्मदास भाई कैसे आना हुआ...
धर्म--मुझे एक लाजवाब चीज़ दिखाओ...
जुगल--अरे लेकिन बताओ तो सही इतनी जल्दी में क्यो हो...
धरम--जुगल भाई मेरे साथ आए बच्चे को तुमने शायद पहचाना नही.....
अब जुगल किशोर मेरी तरफ़ देखने लगते....मुझ पर पहली नज़र डालते ही वो मुझे पहचान जाते है...वो तुरंत अपनी सीट से खड़े होते है और मुझे अपने गले से लगा लेते है....
जुगल--जय बेटा मुझे माफ़ करना इस धर्म के चक्कर मे में तुन्हे देख भी ना पाया....ऐसे धड़धड़ाते हुए ये मेरी कॅबिन में घुसता है जैसे ये कोई डाकू लुटेरा हो...अब बोलो कैसे आना हुआ...क्या चाहिए तुम्हे...
धर्म--बात इज़्ज़त की है यार....कुछ ऐसी चीज़ निकाल जो जय के पापा की इज़्ज़त बाज़ार में और भी बढ़ा दे...
वैसे जय बेटा तुमने बताया नही तुम किस की शादी में जा रहे हो....
में--में कोई नंदू भाई है सीड्स और खाद का काम करते है....यही पास में ही उनका बंगलो है....
जुगल--अब समझ में आया नंदू ने तुम्हे शादी में क्यो बुलाया...
में--मुझे भी बताइए ऐसी क्या बात है...
जुगल--तुम्हारे पापा यहाँ के व्यापार संगठन के बॉस थे....जबकि नंदू बॉस बनना चाहता था...शायद इसीलिए तुम्हारे पापा के जाने के बाद वो तुम्हे शादी में बुला कर बेइज्जत करना चाहता हो....
में--तब तो कुछ ऐसा गिफ्ट देना होगा जिस से नंदू के साथ साथ वहाँ आए हर इंसान की आँखे चोंधिया जाए....
जुगल--बेटा माना तुनहरे पापा जितना पैसे वाला यहाँ कोई भी नही है....लेकिन अगर तुम नंदू जैसे कुत्तो पर अपना पैसा पानी की तरह बहाओगे तो तुम्हारे पापा की आत्मा को तकलीफ़ ही होगी.....
में--आप सही कह रहे है अंकल....लेकिन ये पैसे में बहुत जल्दी नंदू से वसूल भी कर लूँगा अगर आप मुझे अपने व्यापार संघ का बॉस बना दो....
जुगल--बेटा तुम्हारे पापा इस संघ के राजा थे....और वो मरने के बाद भी आज राजा ही है...और राजा का बेटा ही असली वारिस होता है....तुम्हारे बिज़्नेस और प्रॉपर्टी के हिसाब से तुम्हे इस संघ का बॉस बनने से कोई नही रोक सकता...
धर्मदास और जुगल अंकल मुझे संघ का बॉस बनाने के लिए राज़ी हो गये थे....और एक मीटिंग फिक्स कर ली गयी थी जो हफ्ते भर बाद होने वाली थी....
जुगल--बेटा तुम एक काम करो मेरे पास जो सब से एक्सपेन्सिव आइटम्स है तुम उनमे से कुछ पसंद कर लो....
उसके बाद वो मुझे काफ़ी सारे आइटम्स दिखाते है उनमें से दो चीज़े मुझे बेहद पसंद आती है....एक सोने से बनी रोलेक्स घड़ी और एक नेकलेस जो शानदार कारिगिरी से बना हुआ था....
में--अंकल आप इन्हे पॅक करवा दो....
जुगल--लेकिन बेटा ये गिफ्ट नंदू की ओकात से कही ज़्यादा मह्न्गे है ये लगभग 5 करोड़ का माल है....इतने में तो नंदू अपने बेटे की शादी 50 बार कर सकता है....
में--अंकल आप चिंता मत करो....में बिज़्नेस की दुनिया से दूर रहना चाहता था लेकिन मुझे लग रहा है....में ऐसा कर नही पाउन्गा...
ये 5 करोड़ में अपने बिज़्नेस में हे इनवेस्ट कर रहा हूँ....और मीटिंग से पहले नंदू सड़क पर होगा अगर उसने अपनी ग़लती की माफी नही माँगी तो.....
जुगल--मुस्कुराते हुए....तुम बिल्कुल अपने पापा की तरह हो....वो भी बिल्कुल इसी तरह बाते करते थे....
धरम--लगता है हम लोगो को अपना बॉस फिर से मिल गया अब धन्दे में फिर से ट्रॅन्स्परेन्सी आज़एगी जिस से छोटा बड़ा सभी व्यापारी आराम से कमा सकेगा.....
में--अंकल ये में ले जा रहा हूँ....में अपने साथ चेक बुक नही लाया कल सुबह में चेक भिजवा दूँगा.....
जुगल--कोई बात नही बेटा कभी भी भिजवा देना....वैसे भी ये सब में तुम्हारे पापा की वजह से ही कर पाया हूँ....तुम्हारा जब मन करे तब इसके पैसे दे देना....
में--नही अंकल....मन करे तब नही, में कल सुबह ही आपको वो चेक पहुचा दूँगा....
जुगल--ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी मर्ज़ी...मुझे कल फोन कर देना में किसी को घर ही भिजवा दूँगा.....
में--वैसे तो मुझे आपसे काफ़ी सारी बातें करनी है लेकिन अभी मुझे जाना होगा...
जुगल--एक काम करो कल शाम को मेरे फार्महाउस पर मिलते है....वही पर इतमीनान से सारी बाते कर लेंगे....
में उन्हे कल शाम को मिलने का बोलकर वहाँ से निकल जाता हूँ....
में उन्हे कल शाम को मिलने का बोलकर वहाँ से निकल जाता हूँ....कुछ देर पहले में सिर्फ़ एक साधारण लड़का था....लेकिन उस शोरुम से निकलते समय में एक बिज़्नेसमॅन बन चुका था....और जा रहा था अपनी पहली सीढ़ी की तरफ....जो मुझे रुतबे और दौलत के ढेर तक पहुचाएगी.....
में अब नंदू के बंगलो के बाहर पहुँच गया था....काफ़ी अच्छा सजाया गया था बंग्लॉ को अभी दिन के दो बज रहे थे....लेकिन मुझे ये समझ में नही आया ये दिन में कौनसी शादी हो रही है....क्योकि जो कार्ड मुझे दिया गया था उसमें 2 बजे आशीर्वाद समारोह का टाइम दिया हुआ था....लेकिन बंगलो के बाहर भी ज़्यादा चहल पहल दिखाई नही दे रही थी....कुछ 15 20 गाड़िया बंगलो के बाहर ज़रूर खड़ी थी....जो कि सभी बीएमडब्ल्यू और स्कोडा जेसी गाड़िया थी....यानी कोई फंक्षन तो चल ही रहा होगा अंदर,
लेकिन क्या.....
बंग्लॉ के मेन गेट से अंदर घुसते ही मुझे कुछ आवाज़े आने लग गयी थी जैसे कही घूंघुरू बज रहे हो तब्ब्ले पर थाप पड़ रही हो...
में जैसे ही दरवाजे तक पहुँचा 2 दरबानों ने वो दरवाजा खोल दिया.....जैसे ही में अंदर पहुँचा.. में बस एक टक लगातार बस एक ही जगह देखने लग गया जिसके होंठो से ये गीत छलक रहा था....
कभी होगी मुख़्तसर भी.....,
कभी होगी मुख़्तसर भी......!!
शब-ए-इंतजार आख़िर....कभी होगी मुख्त्सर भी......
ये चिराग बुझ रहे है.....ये चिराग बुझ रहे है.....ये चिराग बुझ रहे है...
मेरे साथ जलते....जलते....मेरे साथ जलते जलते
ये चिराग बुझ रहे है....मेरे साथ जलते जलते....
यूँ ही कोई मिल गया था... सरे राह चलते चलते
वही थम के रह गयी है...................... मेरी रात ढलते ढलते............
चलते चलते यूँही कोई मिल गया था....सरे राह चलते चलते.... चलते चलते....सारे राह चलते चलते....!!
इसी के साथ वो हॉल तालियो की गड़गड़ाहट के साथ गूँज उठा इतनी मधुर आवाज़ की मालकिन को देखने के लिए में बेचैन हो उठा....मुझे बस उसके होंठ ही नज़र आरहे थे बाकी पूरा चेहरा उसने अपने घूँघट से ढक रखा था....लोग उस पर नोटो की बरसात कर रहे थे... वो बस अपनी जगह किसी मूरत की तरह बैठी रही....
इसी के साथ वो हॉल तालियो की गड़गड़ाहट के साथ गूँज उठा इतनी मधुर आवाज़ की मालकिन को देखने के लिए में बेचैन हो उठा....मुझे बस उसके होंठ ही नज़र आरहे थे बाकी पूरा चेहरा उसने अपने घूँघट से ढक रखा था....लोग उस पर नोटो की बरसात कर रहे थे... वो बस अपनी जगह किसी मूरत की तरह बैठी रही....
तभी मेरे कंधे पर मुझे किसी का हाथ महसूस हुआ....जय साहब बड़ी देर कर दी आते आते ......कहाँ खो गये थे चलते चलते.....
में--माफ़ कीजिएगा इस लड़की की आवाज़ बहुत अच्छी है जैसे माँ सरस्वती इसके गले में विराज रही हो....
नंदू--मुझे शायद आपने पहचाना नही....मेरा नाम नांदेश्वर है....और प्यार से लोग मुझे नंदू भाई कह कर बुलाते है...
में--में आपको पहचान कैसे पाता नंदू अंकल....हम आज से पहले कभी मिले ही नही है.....
नंदू--बेटा मिलना जुलना ऐसे ही चलता रहेगा अब में तुम्हे अपने बेटे और बहू से मिलवाता हूँ उसके बाद बाते करेंगे....
में--ठीक है अंकल जैसा आप चाहे....
उसके बाद वो मुझे अपने बेटे और बहू से मिलवाते है....में जैसे ही अपने साथ लाए बेग को खोलकर वो गिफ्ट्स निकालने की कोशिश करता हूँ नंदू मेरा हाथ पकड़ के मुझे वो निकालने से मना कर देता है....
नंदू--जय बेटा अभी वक़्त नही आया है कि तुम्हे कुछ भी देने के लिए अपना बॅग खोलना पड़े....दोनो बच्चो को आप अपने पास से 10-10 रूपाए नेग के दे दो इनके लिए यही तुम्हारे पापा के आशीर्वाद से कम नही होगा....
में समझ नही पा रहा था नंदू आख़िर कहना क्या चाहता था....
में--लेकिन में इन दोनो के लिए अलग से गिफ्ट्स लाया हूँ....उनका में क्या करूँ....
नंदू--आप बस इन्हे नेग के रूप में 10 10 रुपये दे दो और कुछ भी देने की ज़रूरत नही है........
में अपनी जेब में 2 हज़ार के नोटो की गॅडी निकालता हूँ और उसमे से आधे नोट में लड़की के हाथ में रखता हूँ और आधे लड़के के....
में--नंदू अंकल ये तो हुआ बस नेग....लेकिन दूल्हा दुल्हन के लिए जो में गिफ्ट्स लाया हूँ वो दिए बिना नही जाउन्गा....
नंदू--हम भी तो यही चाहते है आप कहीं ना जाए ये घर भी आपका ही है....आप जब तक चाहे यहाँ रहे....लेकिन पहले कुछ ज़रूरी बाते करले ताकि आपके दिमाग़ में उठ रहे सारे सवालो को शांति मिल सके....
उसके बाद हम एक रूम में आजाते है....नंदू अंकल मेरे लिए एक पेग बढ़िया स्कॉच का बनाते है और मुझे देकर खुद के लिए भी बनाने लग जाते है....
नंदू--तुमने कभी सोचा नही तुम्हारे पापा की डॅत हुए अभी हफ़्ता भर भी नही हुआ और तुम्हारे पास शादी का इन्विटेशन क्यो पहुँच गया....जबकि इस शहर का बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा व्यापारी तुम्हारे पापा की डॅत के बारे में जानता था....
में--ये इन्विटेशन मेरे चाचा जी अपने साथ ले कर आए थे....उनके बार बार कहने पर हे में जाने के लिए राज़ी हुआ था....
लेकिन मुझे आपकी बातो से लग रहा है आपको ज़रूर कोई ख़ास काम होगा....
नंदू--काम तो वाकाई मेरे लिए काफ़ी ख़ास है....मेरे पास तुम्हारे पापा की अमानत पड़ी है वो तुम्हे देने के लिए इस से अच्छा दिन मेरे पास कभी हो भी नही सकता था....
में--अंकल जो भी है वो सॉफ सॉफ कहिए ना....कौनसी अमानत की बात कर रहे हो आप....कौन्से सही समय की बात कर रहे हो आप जो भी है सॉफ सॉफ बोलिए....
नंदू-- तुम्हारे पापा की डॅत से 6 महीने पहले....में उनसे मिला था.....
वैसे तो में उनके लिए हमेशा से एक मुसीबत ही था लेकिन उस दिन मैने उन्हे अपना भगवान मान लिया....
मेरे बेटे को ब्लड कॅन्सर था....में पैसे पैसे के लिए मोहताज होचुका था अपने बेटे के इलाज की खातिर....लेकिन जब में तुम्हारे पापा के पास हाथ फैलाए पहुँचा....एक पल का भी समय नही लगाया उन्होने सोचने के लिए....
उसी वक़्त उन्होने अमेरिका के बड़े से बड़े डॉक्टर को फोन लगा दिया....और हमे वहाँ भिजवा भी दिया पूरे 3 करोड़ रुपये मेरे बेटे के इलाज में खर्च हो चुके थे अमेरिका में....लेकिन उन्होने कभी मुझ से हिसाब नही माँगा....में जब अमेरिका से वापस भारत आया तब में उनसे एक बार मिला था...तब उन्होने मुझे कहा....एक समय था जब में किशोर गुप्ता अपने धंधे की शुरूवात पर था....तब किसी ने मेरी मदद नही करी....मैने अपना सब कुछ खोकर ये मुकाम हासिल किया है....और जब तुम मेरे सामने अपने बेटे की जिंदगी के लिए कुछ रुपये माँगने आए तब....मेरे सामने वही पुराने दिन आ गये थे....जो मैने खोया वो अब दुबारा नही होगा,,तुम्हारे बेटे के इल्लज में जो भी खर्चा आएगा वो में भरुन्गा....और जिस दिन ये ठीक हो जाय उस दिन मुझे बुलाना मत भूल जाना.....
ये कहते कहते नंदू अंकल की आँखो में आँसू आगये और साथ ही साथ मेरे पापा की ये बात सुनकर गर्व से मेरी भी आँखे छल्छला गयी थी....
नंदू--एक बेग मेरी तरफ बढ़ाते हुए....बेटा ये 50 लाख रुपये है....बाकी पैसे भी में जल्दी ही चुका दूँगा....आज मेरा बेटा पूरी तरह से ठीक हो गया है काश तुम्हारे पिता यहाँ होते....इसीलये मैने तुम्हे यहाँ बुला लिया....शायद तुम्हारे पिता की मेरे से जताई गयी आख़िरी इक्षा भी यही थी.....
इसीके साथ वो फूट फूट के रोने लगते है....में उन्हे अपने गले से लगाकर उन्हे धाँढस बांधने की कोशिश करने लगता हूँ....थोड़ी देर बाद वो कुछ नौरमल होते है....उसके बाद में वो बेग उठाता हूँ और बाहर उनका हाथ पकड़ कर ले आता हूँ....
उनके बेटे और बहू के सामने में वो बेग रख देता हूँ और अपने साथ लाए हुए गिफ्ट भी उनके सामने रख देता हूँ....
में--नंदू अंकल से.....मेरे लिए आपके दिए हुए ये 50 लाख भी अनमोल है....और जो गिफ्ट में इन दोनो के लिए लाया हूँ ये भी...
आप अपने बेटे और बहू से इनमें से एक अपने पास रखने के लिए बोल दीजिए ये मान लेना ये पापा की तरफ से वर वधू को तोहफा है....
नंदू अपने बेटे बहू को वो 50 लाख वाला बेग उठाने के लिए बोल देता है....
नंदू--बेटा ये 50 लाख तो में वापस ले रहा हूँ लेकिन बाकी की रकम तुम मुझ से लेने के लिए कभी मना नही करोगे....में एक कर्ज़दार की तरह कभी मरना नही चाहूँगा...
में--अंकल में वो रकम तो आपसे ज़रूर लूँगा....क्योकि अब आपको भी अपना वादा जो पूरा करना है....
नंदू--बेटा तुम बिल्कुल अपने पापा की तरह हो....तुम्हारे बड़े भैया तुम्हारे पापा की परच्छाई थे....लेकिन तुम तुम्हारे पापा की आत्मा हो....
उसके बाद वो मुझे अपने गले से लगा लेते है और मेरे सिर पर अपना हाथ फेरने लग जाते है....
नंदू--बेटा तुम्हारे पापा की कुर्सी खाली पड़ी है उसे सम्भालो....उस कुर्सी पर किसी और का हक़ नही है वो अब से तुम्हारी ही रहेगी....
में--जैसा आप चाहे अंकल....अब में जाने की इजाज़त चाहूँगा....
नंदू--बेटा घर पर आए हो कुछ खा पी कर तो जाओ...
में--नही अंकल आज नही फिर किसी और दिन सही....
नंदू--जैसा तुम चाहो बेटा ये घर तुम्हारा ही है आते रहा करना....
उसके बाद में वहाँ से निकल कर जाने लगता हूँ....में हॉल के दरवाजे के बाहर ही निकला था और अपनी जेब में से चाबी निकालने की कोशिश में वो डीयेने वाले लिफाफे नीचे गिर जाते है.....लेकिन किसी की नज़र उन पड़ जाती है और जैसे ही वो दरवाजे को खोलने की कोशिश करती है उसकी एक उंगली दरवाजे के बीच में आजाति है....और उसकी उंगली से खून की धारा फूट पड़ती है.....वो मेरा लिफ़ाफ़ा उठाए मेरे पीछे पीछे बाहर सड़क पर आजाती है....
सुनिए......सुनिए
में अपनी तरफ आती उस सुरीली आवाज़ की तरफ अपनी एडियों के बल घूम जाता हूँ मेरे सामने वही लड़की खड़ी थी घूँघट में....एक दम दूध से धुला हुआ रंग....होंठ पर जैसे गुलाब रख दिए हो किसीने....
में--जी आप मुझे आवाज़ लगा रही है क्या.....
लड़की--जी ये आपकी जेब में से कुछ गिर गया था वही देने आई हूँ...
में जैसे ही उसके हाथ की तरफ देखता हूँ मुझे वो डीयेने सॅंपल वाले लिफाफे नज़र आजाते है साथ ही साथ उसकी उंगली से निकलता हुआ खून भी जो उन लिफाफो को भिगोएे जा रहा था....
आज कुछ अजीब सा लग रहा था सीने में....उसके चेहरे को देखे बिना ही....वो शक्श मुझे अपना सा लगने लगा था....कुछ तो बात है उसमें....वरना किसी को जानने की बेचेनी मेरे दिल ने कभी महसूस नही करी थी....
में बाइक आगे दौड़ाए जा रहा था उसकी उंगली से अभी भी खून बह रहा था उसके खून से...मेरा बाँधा हुआ रुमाल पूरी तरह से सन चुका था.....उस से काफ़ी ज़िद करने के बाद में उसे डॉक्टर के पास चलने को मना पाया था....
उसके होंठो पर पानी की कुछ बूंदे आ गयी थी जो ऐसा लग रहा था जैसे गुलाबो पर किसीने मोती रख दिए हो...ये बूंदे उसके आँसू थे जो उसकी आँखो से बह रहे थे....
मैने जल्दी ही एक क्लिनिक के बाहर अपनी बाइक रोक दी और लगभग उसे खिचते हुए अपने साथ वहाँ बने एमर्जेन्सी रूम की तरफ बढ़ गया....
डॉक्टर ने उसके घाव पर स्टिचिंग कर के दवा लगाकर बॅंडेज बाँध दी...
उसके बाद वहाँ की फीस भरने के बाद हम लोग फिर से बाइक पर बैठ चुके थे....उसने अपना नाम मुझे शमा बताया था....,
में--शमा जी अब आप को दर्द तो नही हो रहा.....
शमा--नही दर्द नही होता मुझे....दर्द की आदत पड़ चुकी है....
में--ऐसा क्यो कह रही है आप....क्या मुझे आप अपने बारे में कुछ बता सकती है....
शमा--मेरे बारे में जानकार आप क्या करेंगे साहब....ना मेरा कोई जीवन है और ना ही कुछ ऐसा जिसे बताने में मुझे खुशी मिले....
में--अगर आप नही बताना चाहती तो ठीक है...लेकिन सुना है दिल का दर्द बाटने से दर्द कम हो जाता है...इसलिए में आपके दर्द को कम करने की कोशिश कर रहा हूँ....
शमा--पेशे से में एक तवायफ़ हूँ....गाना सुनाकर लोगो का मन बहलाती हूँ....अभी कुछ दिन पहले ही मैने अपना अट्ठरवा साल पूरा किया है....
अब कुछ दिनो बाद में गाने के साथ साथ अपना जिस्म लोगो को देकर उन सब का मन बहलाउन्गि....कुछ दिनो बाद मेरी नथ उतराई की रस्म होने वाली है....में चाह कर भी ये सब होने से नही रोक सकती....
उसकी ये बात सुनकर मैने झटके से अपनी बाइक ब्रेक लगा कर रोक दी....हमारे पास में से काफ़ी सारी गाड़िया तेज रफ़्तार में हॉरेन बजा बजा कर निकल रही थी....लेकिन ये बात सुनके हम लोगो के दरम्यान एक बहुत बड़ी खामोशी छा गयी थी....
उसकी ये बात सुनकर में ये कहने से खुद को रोक नही पाया....
में--अगर आप नही चाहती तो कोई आपको ज़बरदस्ती इस दलदल में कैसे फेक सकता है.....आप पोलीस में कंप्लेन क्यो नही कर देती.....
शमा अपने एक हाथ अपने घूँघट में डालकर अपने बह रहे आँसू पोछते हुए कहती है....
शमा--साहब यहाँ मेरी फरियाद सुनने वाला कोई नही है...और जिन लोगो के पास अपनी दरख़्वास्त ले जाने के लिए भेजना चाहते है....हम उन्ही लोगो की महफील रोशन करते है.....
में--अगर आप चाहो तो में आपकी मदद कर सकता हूँ आपको इस दलदल में से निकालने के लिए....
शमा--मेरी मदद तो मेरा भगवान भी नही करता साहब.....और आप क्यो एक तवायफ़ के पिछे अपना वक़्त ज़ाया करेंगे....
में--में तुम्हे वहाँ से निकालने के लिए अपना पूरा ज़ोर लगा दूँगा....तुम मुझे बोलो बस में तुम्हारे लिए क्या करसकता हूँ....
शमा--साहब आज से 10 दिन बाद मुझ पर बोली लगाई जाएगी....अगर कोई मेरी बोली लगाकर मुझे जीत जाता है तो मुझे सारी उमर उसकी गुलाम उसकी रखेल बन कर रहना होगा...लेकिन अगर कोई भी बोली नही लगाता है तो....मुझे एक रंडी का जीवन जीना होगा....मुझ पर खर्च हुए बचपन से अब तक का पैसा मुझे मेरा जिस्म बेच कर देना होगा....
में--अगर में तुम्हे अभी यहाँ से गायब कर दूं तो....वो लोग तुम्हे ढूँढ नही पाएँगे.....
शमा एक दर्दभरी मुस्कुराहट अपने होंठो पर ले आती है....
शमा--साहब छुप तो परछाई भी नही सकती....उसे भी छुप्ने के लिए अंधेरे में ही जाना पड़ता है...में कही भी भाग जाउ ये लोग मुझे ढूँढ ही लेंगे.....
में--अगर तुम चाहो तो में पोलीस की मदद लेकर तुम्हे वहाँ से निकलवा सकता हूँ....मेरे संबंध काफ़ी बड़े बड़े लोगो से है.....
शमा--हन साहब ऐसा हो सकता है....लेकिन फिर भी आपको मेरी कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी.....
में--अगर तुम उस दलदल से निकलना चाहती हो तो में तुम्हे वहाँ से निकालने के लिए कोई भी कीमत दे सकता हूँ.....
शमा--साहब आप मेरे लिए इतना सब क्यो कर रहे है....आप आज से पहले ना मुझे जानते थे ना ही अब तक आपने मेरा चेहरा देखा है....अगर मैने आपको धोका दे दिया तो....या सिर्फ़ आपसे पैसे लूटने के लिए आपका इस्तेमाल कर रही हूँ तो....आप मेरी मदद क्यो करना चाहते है....
में--तुम्हारी मदद में तुम्हे अपनी छोटी बहन समझ कर कर रहा हूँ...मेरी वो खोई हुई बहन जिसे में पता नही कैसे ढूँढ पाउन्गा....
मुझे किसी ने कहा था कि मेरी एक बहन और है जिसके बारे मे मैं नही जानता और वो तक़लीफ़ में अपना जीवन जी रही है..... इस लिए तक़लीफ़ से गुजरती हर लड़की मुझे अपनी बहन ही लगती है......
शमा--कितनी खुशनसीब होगी आपकी वो बहन जिस दिन आप उसे ढूँढ लेंगे....भगवान से में आज ही आपकी बहन के लिए प्रार्थना करूँगी....
में--शमा अगर आप बुरा ना मानो तो क्या में आपका चेहरा देख सकता हूँ......
शमा--इसमें बुरा मानने वाली क्या बात है आप ने मुझे अपनी बहन बोला है....बस बुरा एक ही बात का लग रहा है....आप मुझे बार बार मुझे आप कह कर मत बुलाए....
में--ठीक है शमा में तुम्हे आप नही कहूँगा....
इसके साथ शमा अपना चेहरे पर से अपना घूँघट हटा देती है.....
घर में आज माहॉल काफ़ी चेंज लग रहा था आज इतने दिनो के बाद भाभी किचन में काम कर रही थी और मम्मी अपने कमरे में आराम कर रही थी....
हम लोगो को आया देख सब से पहले भाभी ने हम सबको पानी पिलाया और उसके बाद कॉफी का पुच्छ कर वापस चली गयी....
में भी भाभी के पास ही किचन में चला गया और उनसे बाते करने लग गया....
में--भाभी क्यो ना आप अपनी प्रॅक्टीस फिर से शुरू कर दें.....
भाभी--क्यो तुझे में किचन में काम करती हुई अच्छी नही लग रही क्या....में वो काम अब छोड़ चुकी हूँ इसलिए में दुबारा वो अब फिर से नही करना चाहती....
में--ओके भाभी जेसी आपकी मर्ज़ी....वैसे आज खाने में क्या बनाया है....
भाभी--बाजरे की रोटी लहसुन की चटनी रायता और अगर तुम्हे गेहू की रोटी खानी है तो वो भी बनाई हुई है मेने....लेकिन में जानती हूँ बाजरे की रोटी तुम्हे सब से ज़्यादा पसंद है....
में--वाह भाभी मज़ा आ गया में जल्दी से चेंज करके आता हूँ तब तक रूही और दीक्षा भी शॉपिंग कर के आचुकी होंगी....
भाभी--उन दोनो को टाइम लगेगा वो शॉपिंग करने गयी है...तुम चेंज कर लो में तुम सब के लिए अभी खाना रेडी कर देती हू....
उसके बाद में अपने रूम में चला गया....आज का पूरा दिन बस ऐसे ही नौरमल निकल गया वरना कुछ दिन से तो ऐसा लग रहा था जैसे हंगामे कभी ख़तम ही नही होंगे मेरी ज़िंदगी से....
रात हो चुकी थी हम सब अपने अपने रूम्स में सोने की कोशिश कर रहे थे...
देर रात किसी को अपने पास पा कर मेरी नींद खुल गयी....नीरा मेरे सीने पर अपना हाथ रख कर सो रही थी....इस वक़्त उसके चेहरे की मासूमियत मेरे दिल को सुकून दे रही थी....ऐसा लग रहा था जैसे में किसी गार्डन में बैठ कर रंग बिरंगे फूलों को निहार रहा हूँ....तभी उसकी एक जुल्फ उसके चेहरे पर आ गयी थी....इस तरह उसकी जुल्फ का चेहरे पर आना मुझे ऐसा लग रहा था जैसे पूर्णिमा के चाँद के सामने एक छोटा सा काला बादल आ गया हो...
मैने अपनी एक उंगली से उसकी जुल्फ को उसके कानो के पीछे दबा दिया....मेरे इस तरह से करने से नीरा की आँखे खुल गयी....उसकी आँखे किसी बड़ी झील की तरह शांत लग रही थी इस समय....
नीरा--ऐसे क्यो देख रहे हो मुझे....
में--क्या करूँ तुझे इस तरह प्यार से मेरे पास सोता हुआ पाकर में तुझे देखने से खुद को रोक नही पाया....
नीरा ने अब मुझे कस कर अपने आलिंगन में भर लिया था...उसके बदन की खस्बू मेरी सांसो में समाने लग रही थी....
में--तू यहाँ कब आई....
नीरा--मुझे नींद नही आ रही थी तो सोचा थोड़ी देर आपसे बाते करलूँ लेकिन यहाँ आपको सोते देख कर में भी आपके पास ही सो गयी....
में उसके माथे पर किस करते हुए....उसकी पीठ पर हाथ फिराने लग जाता हूँ...
नीरा--आप मुझ से कितना प्यार करते हो....
मैने उसकी इस बात का कोई जवाब नही दिया...और में उसके गले पर किस करने लग जाता हूँ....
नीरा--सुनो ना.....क्यो तंग कर रहे हो आप मुझे....पहले मुझे मेरे सवाल का जवाब दो उसके बाद में आपको कुछ भी करने से नही रोकूंगी.....
में--कुछ भी करने से???
नीरा--मेरी हर साँस पर आपका अधिकार है....मेरे जिस्म का रोम रोम आपके अंदर समा जाना चाहता है....क्या आप भी ऐसा महसूस करते हो.....बताओ ना कितना प्यार करते हो मुझसे....
में--तू जान है मेरी...में तुझे पाने के लिए किसी भी हद तक चला जाउन्गा....में कैसे बताऊ तुझे में कितना प्यार करता हूँ....मुझे खुद भी नही पता....तेरे इस सवाल का जवाब कैसे दूं में....इसके जवाब का ना मुझे कही अंत दिखता है और ना ही शुरुआत....
नीरा ने मेरी ये बात सुनकर मेरे होंठो को अपने होंठो से दबोच लिया.....आज पता नही क्यो में उसे रोक नही पा रहा था किसी भी बात के लिए....मैने भी उसके होंठो का मीठा मीठा रस चूसना शुरू कर दिया.....
काफ़ी देर तक हम एक दूसरे के होंठो को ही चूमते रहे...जब हम दोनो की साँसे उखड़ने लगी तब जाकर हम अलग हुए.....
नीरा--अपनी सांसो पर काबू पाते हुए....पहले मुझे ऐसा लगता था जैसे मैने आपको शादी करने की कसम दे कर ग़लत किया....लेकिन अब मेरे मन से वो सारी बाते चली गयी है....आप मुझे कभी छोड़ना मत वरना में मर जाउन्गि आपके बिना....आप से ही साँसे चलती है मेरी और आपसे ही दिल.....
में--तेरी कसम.....मेरी जान में तुझे कभी खुद से अलग नही करूँगा चाहे इसके लिए मुझे सब कुछ छोड़ना पड़े....
ये कह कर मेने नीरा को अपने अंदर समेट लिया और इसी तरह एक दूसरे की बाहो मे हम दोनो को सोया देख नींद भी अपनी बाहे फैला कर हम दोनो को अपनी बाहो में भर लेती है.....
सवेरे सवेरे....
रूही हम दोनो को इस तरह एक दूसरे की बाहो में सोया हुआ देख कर थोड़ा सा विचिलित हो गयी थी....लेकिन उसकी जलन उसके प्यार पर कभी भारी नही पड़ सकती थी....वो भी मेरी तरह नीरा से प्यार करती थी....वो नीरा के पास बैठकर उसके बालो में हाथ फिराने लग जाती है....
नीरा अपने बालो में किसी को हाथ फेरता महसूस करके अपनी आँखे खोल देती है....वो अभी भी मेरी बाहो में ही थी....जैसे ही वो पलट कर देखती है वहाँ बैठी हुई रूही उसे नज़र आजाती है....
नीरा--दीदी आप कब आई...??
रूही--में बस अभी थोड़ी देर पहले ही आई हूँ...तुम लोगो को इतने प्यार से सोता देख कर तुम दोनो को जगाने का मन नही हुआ....
नीरा--मेरा हाथ अपने उपेर से हटाते हुए...दीदी बाकी सब लोग उठ गये क्या...
रूही--हाँ भाभी किचन में हैं दीक्षा और कोमल जाने के लिए रेडी हो रही है मम्मी बाहर हॉल में बैठी है....और में तुम दोनो को यहाँ जगाने आई हूँ....
नीरा--अब तो में भी जाग गयी हूँ...बस आप इन्हे उठा दो तब तक में फ्रेश होने चली जाती हूँ....
रूही--ठीक है में इसे उठाती हूँ तू जाकर जल्दी रेडी हो जा स्कूल के लिए देर हो जाएगी नही तो...
उसके बाद नीरा वहाँ से उठ कर चली गयी...नीरा के जाते ही रूही ने पहले मेरे माथे को चूमा फिर मुझे उठाने लग गयी...
में--क्या हुआ दीदी आज क्यो उठा रही हो...
रूही--क्यो आज कॉलेज नही जाना है क्या....
में--नही आज मुझे काफ़ी सारे काम है...में आज नही जाउन्गा...आप लोग कार लेकर चले जाना...अक्तिवा पर परेशान हो जाओगे...
रूही--चल ठीक है तो फिर सोता रह....जब मन करे उठ जाना....
में--अब नींद कैसे आएगी...आपने उठा जो दिया है....आप एक काम करोगी...
रूही--बोल क्या काम है...
में--मुझे दीक्षा और कोमल के सिर का एक एक बाल चाहिए अलग अलग...बस आप ये भूलना मत कि किसका कौनसा बाल है....
रूही--में समझ गयी...में लेकर आती हूँ अभी...
रूही अब बाहर निकल गयी थी और में भी फ्रेश होने चला जाता हूँ...
रूही--दीक्षा इधर आना तो....
जैसे ही दीक्षा रूही के पास आती है रूही उसका एक बाल खेंच के तोड़ देती है...
दीक्षा--उूउउइइ....दीदी बाल क्यों तोड़ा....वैसे ही इतने बाल झड रहे है मेरे....
रूही--ये बाल तेरा भाई मॅंगा रहा है...उसे कुछ टेस्ट करवाने है....
दीक्षा--अपने सिर पर हाथ मसल्ते हुए....कौन्से टेस्ट करवाने है भैया को...
रूही--ये मुझे नही पता...कोमल तू भी इधर आ...
कोमल--दीदी भैया अगर बाल माँग रहे है तो में खुद ही तोड़ कर दे देती हूँ....ये लो.
कोमल ने भी अपने सिर का बाल तोड़ कर रूही के हाथ में रख दिया....रूही ने दोनो बालो को अपने दोनो हाथो में अलग अलग कर के रख लिया और मेरे रूम में आ गयी...
रूही--ये लो दोनो के बाल....ये वाला दीक्षा का है और ये वाला कोमल का....
में वो दोनो बाल अलग अलग लिफाफे में डालकर उनपर उन दोनो का नाम लिख देता हूँ....
रूही--अब में जा रही हूँ...कॉलेज के लिए लेट हो रहा है मुझे....
में--ठीक है आप जाओ....
उसके बाद में भी रूही के साथ बाहर निकल जाता हूँ हॉल में सभी लोग बैठे थे मुझे देखते ही नीरा मुझ से चिपक गयी...
नीरा--आज अकेले अकेले छुट्टी क्यो मार रहे हो...
में--अरे दिन में एक शादी में जाना है...और गिफ्ट भी खरीदने है....
नीरा--किस की शादी में जाना है आपको....में भी चलूंगी.....
में--तू चुप चाप तेरे स्कूल भाग जा....चाचा जी के कोई जानकार है उनके लड़के की शादी है...में भी वहाँ से गिफ्ट देकर निकल जाउन्गा कुछ ज़रूरी कामो के लिए....
नीरा--ठीक है लेकिन शाम को मुझे बाइक पर घुमाने ले जाना पड़ेगा....
में--ठीक है गुंडी ले जाउन्गा तुझे शाम को घुमाने....अब जा स्कूल तेरे चक्कर में इन सब को भी देरी हो रही है...
उसके बाद वो सब चले गये....में मम्मी से..
में--मम्मी भैया के जदुले के बाल कहाँ रखे है आपने....मुझे वो चाहिए...
मम्मी--चल मेरे रूम में है...ले ले..
उसके बाद मम्मी ने अपनी अलमारी में रखे बॉक्स में से वो बाल दे दिया....मैने उन से पापा के बाल भी ले लिए थे और अपने रूम में आकर उन्हे भी लिफाफो में डालकर उन पर नाम लिख लिया....मेरे पास अब सभी के डीयेने आ चुके थे सिवाए मेरे खुद के इसलिए मैने भी अपना एक बाल तोड़कर नये लिफाफे में डाल दिया और उन्हे फोल्ड करके अपनी जेब में रख लिया....
मम्मी को मैने बता दिया कि में बाहर जा रहा हूँ....और अपनी बाइक उठा कर बाज़ार में चला गया....लेकिन मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या लूँ....क्योकि बात शादी की नही थी बात पापा की रेस्पेक्ट की थी...इसलिए में एक ज्यूयलरी शॉप में घुस गया....
दुकानदार मुझे अंदर आते ही पहचान गया जबकि में पहली बार इस दुकान परचढ़ा था..दुकानदार का नाम धर्मदास था
धर्म--अरे जय बेटा आओ आओ....आज मुझ ग़रीब की दुकान पर कैसे आना हो गया...
में--क्या आप मुझे जानते हो....में तो पहली बार ही आपकी दुकान पर आया हूँ....
धर्म--बेटा तुम्हारे पापा के अंतीमसंस्कार मे शाहर का हर एक छोटा बड़ा आदमी आया था....में तुम्हे तब से जानता हूँ जब तुम एक बार अपने पापा के साथ यहाँ आए थे....उस वक़्त तुम काफ़ी छोटे थे लेकिन अब तो गबरू हो गये हो...
अब मुझे बताओ यहाँ कैसे आना हुआ...
में--मुझे एक शादी के लिए गिफ्ट लेना है...और ये मान लो गिफ्ट पापा की इज़्ज़त के हिसाब से होना चाहिए....
धर्म--तुम्हारे पापा को इस शहर में हर छोटा बड़ा व्यापारी जानता है....तुम्हारी इस बात ने मुझे भी सोच में डाल दिया...क्योकि अगर आज वो हमारे बीच में होते तो कोई भी उन पर उंगली नही उठा सकता था....लेकिन कोई बात नही....चलो में तुम्हे कही ले कर चलता हूँ...
उसके बाद वो मुझे एक बड़े से शोरुम में लेकर गये जहाँ ज्वेलरी का काम होता था...
वो सीधा वहाँ बने सेल्स काउंटर से आगे बढ़ते हुए एक कॅबिन में मुझे ले जाते है....
धर्म--जुगल किशोर जी.....कैसे है आप....
जुगल किशोर इस शोरुम का मालिक था और ऐसे ही कितने सारे शोरूम्स पूरी दुनिया में फैले हुए थे....
जुगल--अरे आओ आओ धर्मदास भाई कैसे आना हुआ...
धर्म--मुझे एक लाजवाब चीज़ दिखाओ...
जुगल--अरे लेकिन बताओ तो सही इतनी जल्दी में क्यो हो...
धरम--जुगल भाई मेरे साथ आए बच्चे को तुमने शायद पहचाना नही.....
अब जुगल किशोर मेरी तरफ़ देखने लगते....मुझ पर पहली नज़र डालते ही वो मुझे पहचान जाते है...वो तुरंत अपनी सीट से खड़े होते है और मुझे अपने गले से लगा लेते है....
जुगल--जय बेटा मुझे माफ़ करना इस धर्म के चक्कर मे में तुन्हे देख भी ना पाया....ऐसे धड़धड़ाते हुए ये मेरी कॅबिन में घुसता है जैसे ये कोई डाकू लुटेरा हो...अब बोलो कैसे आना हुआ...क्या चाहिए तुम्हे...
धर्म--बात इज़्ज़त की है यार....कुछ ऐसी चीज़ निकाल जो जय के पापा की इज़्ज़त बाज़ार में और भी बढ़ा दे...
वैसे जय बेटा तुमने बताया नही तुम किस की शादी में जा रहे हो....
में--में कोई नंदू भाई है सीड्स और खाद का काम करते है....यही पास में ही उनका बंगलो है....
जुगल--अब समझ में आया नंदू ने तुम्हे शादी में क्यो बुलाया...
में--मुझे भी बताइए ऐसी क्या बात है...
जुगल--तुम्हारे पापा यहाँ के व्यापार संगठन के बॉस थे....जबकि नंदू बॉस बनना चाहता था...शायद इसीलिए तुम्हारे पापा के जाने के बाद वो तुम्हे शादी में बुला कर बेइज्जत करना चाहता हो....
में--तब तो कुछ ऐसा गिफ्ट देना होगा जिस से नंदू के साथ साथ वहाँ आए हर इंसान की आँखे चोंधिया जाए....
जुगल--बेटा माना तुनहरे पापा जितना पैसे वाला यहाँ कोई भी नही है....लेकिन अगर तुम नंदू जैसे कुत्तो पर अपना पैसा पानी की तरह बहाओगे तो तुम्हारे पापा की आत्मा को तकलीफ़ ही होगी.....
में--आप सही कह रहे है अंकल....लेकिन ये पैसे में बहुत जल्दी नंदू से वसूल भी कर लूँगा अगर आप मुझे अपने व्यापार संघ का बॉस बना दो....
जुगल--बेटा तुम्हारे पापा इस संघ के राजा थे....और वो मरने के बाद भी आज राजा ही है...और राजा का बेटा ही असली वारिस होता है....तुम्हारे बिज़्नेस और प्रॉपर्टी के हिसाब से तुम्हे इस संघ का बॉस बनने से कोई नही रोक सकता...
धर्मदास और जुगल अंकल मुझे संघ का बॉस बनाने के लिए राज़ी हो गये थे....और एक मीटिंग फिक्स कर ली गयी थी जो हफ्ते भर बाद होने वाली थी....
जुगल--बेटा तुम एक काम करो मेरे पास जो सब से एक्सपेन्सिव आइटम्स है तुम उनमे से कुछ पसंद कर लो....
उसके बाद वो मुझे काफ़ी सारे आइटम्स दिखाते है उनमें से दो चीज़े मुझे बेहद पसंद आती है....एक सोने से बनी रोलेक्स घड़ी और एक नेकलेस जो शानदार कारिगिरी से बना हुआ था....
में--अंकल आप इन्हे पॅक करवा दो....
जुगल--लेकिन बेटा ये गिफ्ट नंदू की ओकात से कही ज़्यादा मह्न्गे है ये लगभग 5 करोड़ का माल है....इतने में तो नंदू अपने बेटे की शादी 50 बार कर सकता है....
में--अंकल आप चिंता मत करो....में बिज़्नेस की दुनिया से दूर रहना चाहता था लेकिन मुझे लग रहा है....में ऐसा कर नही पाउन्गा...
ये 5 करोड़ में अपने बिज़्नेस में हे इनवेस्ट कर रहा हूँ....और मीटिंग से पहले नंदू सड़क पर होगा अगर उसने अपनी ग़लती की माफी नही माँगी तो.....
जुगल--मुस्कुराते हुए....तुम बिल्कुल अपने पापा की तरह हो....वो भी बिल्कुल इसी तरह बाते करते थे....
धरम--लगता है हम लोगो को अपना बॉस फिर से मिल गया अब धन्दे में फिर से ट्रॅन्स्परेन्सी आज़एगी जिस से छोटा बड़ा सभी व्यापारी आराम से कमा सकेगा.....
में--अंकल ये में ले जा रहा हूँ....में अपने साथ चेक बुक नही लाया कल सुबह में चेक भिजवा दूँगा.....
जुगल--कोई बात नही बेटा कभी भी भिजवा देना....वैसे भी ये सब में तुम्हारे पापा की वजह से ही कर पाया हूँ....तुम्हारा जब मन करे तब इसके पैसे दे देना....
में--नही अंकल....मन करे तब नही, में कल सुबह ही आपको वो चेक पहुचा दूँगा....
जुगल--ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी मर्ज़ी...मुझे कल फोन कर देना में किसी को घर ही भिजवा दूँगा.....
में--वैसे तो मुझे आपसे काफ़ी सारी बातें करनी है लेकिन अभी मुझे जाना होगा...
जुगल--एक काम करो कल शाम को मेरे फार्महाउस पर मिलते है....वही पर इतमीनान से सारी बाते कर लेंगे....
में उन्हे कल शाम को मिलने का बोलकर वहाँ से निकल जाता हूँ....
में उन्हे कल शाम को मिलने का बोलकर वहाँ से निकल जाता हूँ....कुछ देर पहले में सिर्फ़ एक साधारण लड़का था....लेकिन उस शोरुम से निकलते समय में एक बिज़्नेसमॅन बन चुका था....और जा रहा था अपनी पहली सीढ़ी की तरफ....जो मुझे रुतबे और दौलत के ढेर तक पहुचाएगी.....
में अब नंदू के बंगलो के बाहर पहुँच गया था....काफ़ी अच्छा सजाया गया था बंग्लॉ को अभी दिन के दो बज रहे थे....लेकिन मुझे ये समझ में नही आया ये दिन में कौनसी शादी हो रही है....क्योकि जो कार्ड मुझे दिया गया था उसमें 2 बजे आशीर्वाद समारोह का टाइम दिया हुआ था....लेकिन बंगलो के बाहर भी ज़्यादा चहल पहल दिखाई नही दे रही थी....कुछ 15 20 गाड़िया बंगलो के बाहर ज़रूर खड़ी थी....जो कि सभी बीएमडब्ल्यू और स्कोडा जेसी गाड़िया थी....यानी कोई फंक्षन तो चल ही रहा होगा अंदर,
लेकिन क्या.....
बंग्लॉ के मेन गेट से अंदर घुसते ही मुझे कुछ आवाज़े आने लग गयी थी जैसे कही घूंघुरू बज रहे हो तब्ब्ले पर थाप पड़ रही हो...
में जैसे ही दरवाजे तक पहुँचा 2 दरबानों ने वो दरवाजा खोल दिया.....जैसे ही में अंदर पहुँचा.. में बस एक टक लगातार बस एक ही जगह देखने लग गया जिसके होंठो से ये गीत छलक रहा था....
कभी होगी मुख़्तसर भी.....,
कभी होगी मुख़्तसर भी......!!
शब-ए-इंतजार आख़िर....कभी होगी मुख्त्सर भी......
ये चिराग बुझ रहे है.....ये चिराग बुझ रहे है.....ये चिराग बुझ रहे है...
मेरे साथ जलते....जलते....मेरे साथ जलते जलते
ये चिराग बुझ रहे है....मेरे साथ जलते जलते....
यूँ ही कोई मिल गया था... सरे राह चलते चलते
वही थम के रह गयी है...................... मेरी रात ढलते ढलते............
चलते चलते यूँही कोई मिल गया था....सरे राह चलते चलते.... चलते चलते....सारे राह चलते चलते....!!
इसी के साथ वो हॉल तालियो की गड़गड़ाहट के साथ गूँज उठा इतनी मधुर आवाज़ की मालकिन को देखने के लिए में बेचैन हो उठा....मुझे बस उसके होंठ ही नज़र आरहे थे बाकी पूरा चेहरा उसने अपने घूँघट से ढक रखा था....लोग उस पर नोटो की बरसात कर रहे थे... वो बस अपनी जगह किसी मूरत की तरह बैठी रही....
इसी के साथ वो हॉल तालियो की गड़गड़ाहट के साथ गूँज उठा इतनी मधुर आवाज़ की मालकिन को देखने के लिए में बेचैन हो उठा....मुझे बस उसके होंठ ही नज़र आरहे थे बाकी पूरा चेहरा उसने अपने घूँघट से ढक रखा था....लोग उस पर नोटो की बरसात कर रहे थे... वो बस अपनी जगह किसी मूरत की तरह बैठी रही....
तभी मेरे कंधे पर मुझे किसी का हाथ महसूस हुआ....जय साहब बड़ी देर कर दी आते आते ......कहाँ खो गये थे चलते चलते.....
में--माफ़ कीजिएगा इस लड़की की आवाज़ बहुत अच्छी है जैसे माँ सरस्वती इसके गले में विराज रही हो....
नंदू--मुझे शायद आपने पहचाना नही....मेरा नाम नांदेश्वर है....और प्यार से लोग मुझे नंदू भाई कह कर बुलाते है...
में--में आपको पहचान कैसे पाता नंदू अंकल....हम आज से पहले कभी मिले ही नही है.....
नंदू--बेटा मिलना जुलना ऐसे ही चलता रहेगा अब में तुम्हे अपने बेटे और बहू से मिलवाता हूँ उसके बाद बाते करेंगे....
में--ठीक है अंकल जैसा आप चाहे....
उसके बाद वो मुझे अपने बेटे और बहू से मिलवाते है....में जैसे ही अपने साथ लाए बेग को खोलकर वो गिफ्ट्स निकालने की कोशिश करता हूँ नंदू मेरा हाथ पकड़ के मुझे वो निकालने से मना कर देता है....
नंदू--जय बेटा अभी वक़्त नही आया है कि तुम्हे कुछ भी देने के लिए अपना बॅग खोलना पड़े....दोनो बच्चो को आप अपने पास से 10-10 रूपाए नेग के दे दो इनके लिए यही तुम्हारे पापा के आशीर्वाद से कम नही होगा....
में समझ नही पा रहा था नंदू आख़िर कहना क्या चाहता था....
में--लेकिन में इन दोनो के लिए अलग से गिफ्ट्स लाया हूँ....उनका में क्या करूँ....
नंदू--आप बस इन्हे नेग के रूप में 10 10 रुपये दे दो और कुछ भी देने की ज़रूरत नही है........
में अपनी जेब में 2 हज़ार के नोटो की गॅडी निकालता हूँ और उसमे से आधे नोट में लड़की के हाथ में रखता हूँ और आधे लड़के के....
में--नंदू अंकल ये तो हुआ बस नेग....लेकिन दूल्हा दुल्हन के लिए जो में गिफ्ट्स लाया हूँ वो दिए बिना नही जाउन्गा....
नंदू--हम भी तो यही चाहते है आप कहीं ना जाए ये घर भी आपका ही है....आप जब तक चाहे यहाँ रहे....लेकिन पहले कुछ ज़रूरी बाते करले ताकि आपके दिमाग़ में उठ रहे सारे सवालो को शांति मिल सके....
उसके बाद हम एक रूम में आजाते है....नंदू अंकल मेरे लिए एक पेग बढ़िया स्कॉच का बनाते है और मुझे देकर खुद के लिए भी बनाने लग जाते है....
नंदू--तुमने कभी सोचा नही तुम्हारे पापा की डॅत हुए अभी हफ़्ता भर भी नही हुआ और तुम्हारे पास शादी का इन्विटेशन क्यो पहुँच गया....जबकि इस शहर का बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा व्यापारी तुम्हारे पापा की डॅत के बारे में जानता था....
में--ये इन्विटेशन मेरे चाचा जी अपने साथ ले कर आए थे....उनके बार बार कहने पर हे में जाने के लिए राज़ी हुआ था....
लेकिन मुझे आपकी बातो से लग रहा है आपको ज़रूर कोई ख़ास काम होगा....
नंदू--काम तो वाकाई मेरे लिए काफ़ी ख़ास है....मेरे पास तुम्हारे पापा की अमानत पड़ी है वो तुम्हे देने के लिए इस से अच्छा दिन मेरे पास कभी हो भी नही सकता था....
में--अंकल जो भी है वो सॉफ सॉफ कहिए ना....कौनसी अमानत की बात कर रहे हो आप....कौन्से सही समय की बात कर रहे हो आप जो भी है सॉफ सॉफ बोलिए....
नंदू-- तुम्हारे पापा की डॅत से 6 महीने पहले....में उनसे मिला था.....
वैसे तो में उनके लिए हमेशा से एक मुसीबत ही था लेकिन उस दिन मैने उन्हे अपना भगवान मान लिया....
मेरे बेटे को ब्लड कॅन्सर था....में पैसे पैसे के लिए मोहताज होचुका था अपने बेटे के इलाज की खातिर....लेकिन जब में तुम्हारे पापा के पास हाथ फैलाए पहुँचा....एक पल का भी समय नही लगाया उन्होने सोचने के लिए....
उसी वक़्त उन्होने अमेरिका के बड़े से बड़े डॉक्टर को फोन लगा दिया....और हमे वहाँ भिजवा भी दिया पूरे 3 करोड़ रुपये मेरे बेटे के इलाज में खर्च हो चुके थे अमेरिका में....लेकिन उन्होने कभी मुझ से हिसाब नही माँगा....में जब अमेरिका से वापस भारत आया तब में उनसे एक बार मिला था...तब उन्होने मुझे कहा....एक समय था जब में किशोर गुप्ता अपने धंधे की शुरूवात पर था....तब किसी ने मेरी मदद नही करी....मैने अपना सब कुछ खोकर ये मुकाम हासिल किया है....और जब तुम मेरे सामने अपने बेटे की जिंदगी के लिए कुछ रुपये माँगने आए तब....मेरे सामने वही पुराने दिन आ गये थे....जो मैने खोया वो अब दुबारा नही होगा,,तुम्हारे बेटे के इल्लज में जो भी खर्चा आएगा वो में भरुन्गा....और जिस दिन ये ठीक हो जाय उस दिन मुझे बुलाना मत भूल जाना.....
ये कहते कहते नंदू अंकल की आँखो में आँसू आगये और साथ ही साथ मेरे पापा की ये बात सुनकर गर्व से मेरी भी आँखे छल्छला गयी थी....
नंदू--एक बेग मेरी तरफ बढ़ाते हुए....बेटा ये 50 लाख रुपये है....बाकी पैसे भी में जल्दी ही चुका दूँगा....आज मेरा बेटा पूरी तरह से ठीक हो गया है काश तुम्हारे पिता यहाँ होते....इसीलये मैने तुम्हे यहाँ बुला लिया....शायद तुम्हारे पिता की मेरे से जताई गयी आख़िरी इक्षा भी यही थी.....
इसीके साथ वो फूट फूट के रोने लगते है....में उन्हे अपने गले से लगाकर उन्हे धाँढस बांधने की कोशिश करने लगता हूँ....थोड़ी देर बाद वो कुछ नौरमल होते है....उसके बाद में वो बेग उठाता हूँ और बाहर उनका हाथ पकड़ कर ले आता हूँ....
उनके बेटे और बहू के सामने में वो बेग रख देता हूँ और अपने साथ लाए हुए गिफ्ट भी उनके सामने रख देता हूँ....
में--नंदू अंकल से.....मेरे लिए आपके दिए हुए ये 50 लाख भी अनमोल है....और जो गिफ्ट में इन दोनो के लिए लाया हूँ ये भी...
आप अपने बेटे और बहू से इनमें से एक अपने पास रखने के लिए बोल दीजिए ये मान लेना ये पापा की तरफ से वर वधू को तोहफा है....
नंदू अपने बेटे बहू को वो 50 लाख वाला बेग उठाने के लिए बोल देता है....
नंदू--बेटा ये 50 लाख तो में वापस ले रहा हूँ लेकिन बाकी की रकम तुम मुझ से लेने के लिए कभी मना नही करोगे....में एक कर्ज़दार की तरह कभी मरना नही चाहूँगा...
में--अंकल में वो रकम तो आपसे ज़रूर लूँगा....क्योकि अब आपको भी अपना वादा जो पूरा करना है....
नंदू--बेटा तुम बिल्कुल अपने पापा की तरह हो....तुम्हारे बड़े भैया तुम्हारे पापा की परच्छाई थे....लेकिन तुम तुम्हारे पापा की आत्मा हो....
उसके बाद वो मुझे अपने गले से लगा लेते है और मेरे सिर पर अपना हाथ फेरने लग जाते है....
नंदू--बेटा तुम्हारे पापा की कुर्सी खाली पड़ी है उसे सम्भालो....उस कुर्सी पर किसी और का हक़ नही है वो अब से तुम्हारी ही रहेगी....
में--जैसा आप चाहे अंकल....अब में जाने की इजाज़त चाहूँगा....
नंदू--बेटा घर पर आए हो कुछ खा पी कर तो जाओ...
में--नही अंकल आज नही फिर किसी और दिन सही....
नंदू--जैसा तुम चाहो बेटा ये घर तुम्हारा ही है आते रहा करना....
उसके बाद में वहाँ से निकल कर जाने लगता हूँ....में हॉल के दरवाजे के बाहर ही निकला था और अपनी जेब में से चाबी निकालने की कोशिश में वो डीयेने वाले लिफाफे नीचे गिर जाते है.....लेकिन किसी की नज़र उन पड़ जाती है और जैसे ही वो दरवाजे को खोलने की कोशिश करती है उसकी एक उंगली दरवाजे के बीच में आजाति है....और उसकी उंगली से खून की धारा फूट पड़ती है.....वो मेरा लिफ़ाफ़ा उठाए मेरे पीछे पीछे बाहर सड़क पर आजाती है....
सुनिए......सुनिए
में अपनी तरफ आती उस सुरीली आवाज़ की तरफ अपनी एडियों के बल घूम जाता हूँ मेरे सामने वही लड़की खड़ी थी घूँघट में....एक दम दूध से धुला हुआ रंग....होंठ पर जैसे गुलाब रख दिए हो किसीने....
में--जी आप मुझे आवाज़ लगा रही है क्या.....
लड़की--जी ये आपकी जेब में से कुछ गिर गया था वही देने आई हूँ...
में जैसे ही उसके हाथ की तरफ देखता हूँ मुझे वो डीयेने सॅंपल वाले लिफाफे नज़र आजाते है साथ ही साथ उसकी उंगली से निकलता हुआ खून भी जो उन लिफाफो को भिगोएे जा रहा था....
आज कुछ अजीब सा लग रहा था सीने में....उसके चेहरे को देखे बिना ही....वो शक्श मुझे अपना सा लगने लगा था....कुछ तो बात है उसमें....वरना किसी को जानने की बेचेनी मेरे दिल ने कभी महसूस नही करी थी....
में बाइक आगे दौड़ाए जा रहा था उसकी उंगली से अभी भी खून बह रहा था उसके खून से...मेरा बाँधा हुआ रुमाल पूरी तरह से सन चुका था.....उस से काफ़ी ज़िद करने के बाद में उसे डॉक्टर के पास चलने को मना पाया था....
उसके होंठो पर पानी की कुछ बूंदे आ गयी थी जो ऐसा लग रहा था जैसे गुलाबो पर किसीने मोती रख दिए हो...ये बूंदे उसके आँसू थे जो उसकी आँखो से बह रहे थे....
मैने जल्दी ही एक क्लिनिक के बाहर अपनी बाइक रोक दी और लगभग उसे खिचते हुए अपने साथ वहाँ बने एमर्जेन्सी रूम की तरफ बढ़ गया....
डॉक्टर ने उसके घाव पर स्टिचिंग कर के दवा लगाकर बॅंडेज बाँध दी...
उसके बाद वहाँ की फीस भरने के बाद हम लोग फिर से बाइक पर बैठ चुके थे....उसने अपना नाम मुझे शमा बताया था....,
में--शमा जी अब आप को दर्द तो नही हो रहा.....
शमा--नही दर्द नही होता मुझे....दर्द की आदत पड़ चुकी है....
में--ऐसा क्यो कह रही है आप....क्या मुझे आप अपने बारे में कुछ बता सकती है....
शमा--मेरे बारे में जानकार आप क्या करेंगे साहब....ना मेरा कोई जीवन है और ना ही कुछ ऐसा जिसे बताने में मुझे खुशी मिले....
में--अगर आप नही बताना चाहती तो ठीक है...लेकिन सुना है दिल का दर्द बाटने से दर्द कम हो जाता है...इसलिए में आपके दर्द को कम करने की कोशिश कर रहा हूँ....
शमा--पेशे से में एक तवायफ़ हूँ....गाना सुनाकर लोगो का मन बहलाती हूँ....अभी कुछ दिन पहले ही मैने अपना अट्ठरवा साल पूरा किया है....
अब कुछ दिनो बाद में गाने के साथ साथ अपना जिस्म लोगो को देकर उन सब का मन बहलाउन्गि....कुछ दिनो बाद मेरी नथ उतराई की रस्म होने वाली है....में चाह कर भी ये सब होने से नही रोक सकती....
उसकी ये बात सुनकर मैने झटके से अपनी बाइक ब्रेक लगा कर रोक दी....हमारे पास में से काफ़ी सारी गाड़िया तेज रफ़्तार में हॉरेन बजा बजा कर निकल रही थी....लेकिन ये बात सुनके हम लोगो के दरम्यान एक बहुत बड़ी खामोशी छा गयी थी....
उसकी ये बात सुनकर में ये कहने से खुद को रोक नही पाया....
में--अगर आप नही चाहती तो कोई आपको ज़बरदस्ती इस दलदल में कैसे फेक सकता है.....आप पोलीस में कंप्लेन क्यो नही कर देती.....
शमा अपने एक हाथ अपने घूँघट में डालकर अपने बह रहे आँसू पोछते हुए कहती है....
शमा--साहब यहाँ मेरी फरियाद सुनने वाला कोई नही है...और जिन लोगो के पास अपनी दरख़्वास्त ले जाने के लिए भेजना चाहते है....हम उन्ही लोगो की महफील रोशन करते है.....
में--अगर आप चाहो तो में आपकी मदद कर सकता हूँ आपको इस दलदल में से निकालने के लिए....
शमा--मेरी मदद तो मेरा भगवान भी नही करता साहब.....और आप क्यो एक तवायफ़ के पिछे अपना वक़्त ज़ाया करेंगे....
में--में तुम्हे वहाँ से निकालने के लिए अपना पूरा ज़ोर लगा दूँगा....तुम मुझे बोलो बस में तुम्हारे लिए क्या करसकता हूँ....
शमा--साहब आज से 10 दिन बाद मुझ पर बोली लगाई जाएगी....अगर कोई मेरी बोली लगाकर मुझे जीत जाता है तो मुझे सारी उमर उसकी गुलाम उसकी रखेल बन कर रहना होगा...लेकिन अगर कोई भी बोली नही लगाता है तो....मुझे एक रंडी का जीवन जीना होगा....मुझ पर खर्च हुए बचपन से अब तक का पैसा मुझे मेरा जिस्म बेच कर देना होगा....
में--अगर में तुम्हे अभी यहाँ से गायब कर दूं तो....वो लोग तुम्हे ढूँढ नही पाएँगे.....
शमा एक दर्दभरी मुस्कुराहट अपने होंठो पर ले आती है....
शमा--साहब छुप तो परछाई भी नही सकती....उसे भी छुप्ने के लिए अंधेरे में ही जाना पड़ता है...में कही भी भाग जाउ ये लोग मुझे ढूँढ ही लेंगे.....
में--अगर तुम चाहो तो में पोलीस की मदद लेकर तुम्हे वहाँ से निकलवा सकता हूँ....मेरे संबंध काफ़ी बड़े बड़े लोगो से है.....
शमा--हन साहब ऐसा हो सकता है....लेकिन फिर भी आपको मेरी कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी.....
में--अगर तुम उस दलदल से निकलना चाहती हो तो में तुम्हे वहाँ से निकालने के लिए कोई भी कीमत दे सकता हूँ.....
शमा--साहब आप मेरे लिए इतना सब क्यो कर रहे है....आप आज से पहले ना मुझे जानते थे ना ही अब तक आपने मेरा चेहरा देखा है....अगर मैने आपको धोका दे दिया तो....या सिर्फ़ आपसे पैसे लूटने के लिए आपका इस्तेमाल कर रही हूँ तो....आप मेरी मदद क्यो करना चाहते है....
में--तुम्हारी मदद में तुम्हे अपनी छोटी बहन समझ कर कर रहा हूँ...मेरी वो खोई हुई बहन जिसे में पता नही कैसे ढूँढ पाउन्गा....
मुझे किसी ने कहा था कि मेरी एक बहन और है जिसके बारे मे मैं नही जानता और वो तक़लीफ़ में अपना जीवन जी रही है..... इस लिए तक़लीफ़ से गुजरती हर लड़की मुझे अपनी बहन ही लगती है......
शमा--कितनी खुशनसीब होगी आपकी वो बहन जिस दिन आप उसे ढूँढ लेंगे....भगवान से में आज ही आपकी बहन के लिए प्रार्थना करूँगी....
में--शमा अगर आप बुरा ना मानो तो क्या में आपका चेहरा देख सकता हूँ......
शमा--इसमें बुरा मानने वाली क्या बात है आप ने मुझे अपनी बहन बोला है....बस बुरा एक ही बात का लग रहा है....आप मुझे बार बार मुझे आप कह कर मत बुलाए....
में--ठीक है शमा में तुम्हे आप नही कहूँगा....
इसके साथ शमा अपना चेहरे पर से अपना घूँघट हटा देती है.....