सेठ मनोहर लाल का,,,, घर पर आए लड़कियों के फोटो देखकर बहू चुनने का अब कोई इरादा नहीं था,,,, क्योंकि राकेश ने अपने पिताजी को बता दिया था कि उसे कौन सी लड़की पसंद है,,,, सेठ मनोहर लाल इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि राकेश जिस तरह की लड़की के बारे में बात कर रहा है उसे तो वह ठीक से देखा भी नहीं है ना हीं उसका नाम जानता है ना हीं उसका अता पता जानता है,,,, लेकिन फिर भी शेठ मनोहर लाल को अपने बेटे की पसंद पर पूरा भरोसा था,,, और वह जानते थे कि उनका बेटा जरूर उसे लड़की को पूरे शहर में जहां भी होगी खोज निकालेगा,,, खुद सेठ मनोहर लाल उसे लड़की को ढूंढने में अपने बेटे की मदद करना चाहते थे लेकिन वह तो उसे लड़की को जानते भी नहीं थे तो ढूंढने की बात ही नहीं थी लेकिन इस मूहीम में वह पूरी तरह से अपने बेटे के साथ थे,,,,।
राकेश का दिल जिस लड़की पर आ गया था उसे लड़की के बारे में बात कर राकेश को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसके सीने से बहुत बड़ा भार कम हो गया है,,, जिस तरह से उसके पिताजी लड़की पसंद करने के लिए उसके पीछे पड़े हुए थे उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने पिताजी से क्या बात करें लेकिन हिम्मत दिखा कर बात ही बात में उसने उस लड़की का जिक्र अपने पिताजी के सामने छेड़ दिया था,,,,,, और अपने पिता जी की स्वीकृति प्रकार वह भी पूरी तरह से उसे लड़की को ढूंढने में लग चुका था जिस रेस्टोरेंट में राकेश ने उसे लड़की को देखा था उसे रेस्टोरेंट में बार-बार जाने की सलाह उसके पिताजी ने ही दिया था इसलिए वह अब रोज उसे रेस्टोरेंट में सुबह शाम जाने लगा था इस उम्मीद से की वह लड़की जरूर उसे यहीं पर मिलेगी,,,,।
पहली नजर का प्यार राकेश के दिलों दिमाग पर चढ़ चुका था,,, पहली बार पहली मुलाकात में ही उसे लड़की को राकेश दिल दे बैठा था और यह प्यार का चक्कर उसके साथ पहली बार हो रहा था इसलिए वह बहुत परेशान भी था और इस बात से मायूस भी हो जाता था कि पता नहीं हुआ लड़की इस शहर में उसे मिलेगी भी या नहीं क्योंकि उसे लड़की को लेकर उसके मन में ढेर सारे सवाल थे जो कि वाकई में औपचारिक भी था,,,,।
वह अपने मन में सोच रहा था कि वह लड़की हो सकता है कि शहर की ना हो बस घूमने आई हो और उसे दिन के बाद से वह रेस्टोरेंट में आई ही ना हो अपने घर चली गई हो या फिर ऐसा भी हो सकता है कि उसे लड़की की सगाई किसी और से हुई हो या वह लड़की पहले से ही किसी से प्यार करती हो या विवाहित भी हो सकती है क्योंकि ठीक तरह से राकेश ने उसे लड़की को देखा भी नहीं था मतलब था कि राकेश की नजर सिर्फ उसके भोले भाले चेहरे पर ही गई थी उसकी मांग के सिंदूर में या फिर गले में लटक रहे मंगलसूत्र पर बिल्कुल भी नहीं गई थी इसीलिए उसके मन में उसे लड़की को लेकर ढेर सारे सवाल उठ रही थी और यह सोचकर वह परेशान भी था कि अगर वह लड़की उसे मिल भी गई और उसकी शादी हो गई हो विवाहित हो या फिर किसी और से प्यार करती हो तो फिर वह अपने पिताजी से क्या कहेगा उन्हें क्या मुंह दिखाएगा,,, यह सब सोच कर वह परेशान भी हो रहा था,,,।
जो कि उसका परेशान और चिंतित होना लाजिमी था क्योंकि वह बड़े विश्वास से अपने पिताजी से उस लड़की के बारे में बात कर चुका था,,, और मन ही मन वह उसे अनजान लड़की को अपनी पत्नी मान लिया था अपने जीवन संगिनी मान लिया था और इसीलिए वह परेशान भी था क्योंकि अगर वह लड़कि उसे नहीं मिली तो उसके पिताजी इस बारे में क्या सोचेंगे,,,, वह अपने मन में ही सोच रहा था कि उसके पिताजी को ऐसा ही लगेगा कि प्यार भर के चक्कर में उसका बेटा अभी पूरी तरह से कच्चा ही है,,,। इसलिए वह कुछ ज्यादा ही परेशान था,,,।
अपने पिता से इजाजत मिलने के बाद से वह सुबह शम रेस्टोरेंट के चक्कर लगाना शुरू कर दिया था यहां तक की वह शहर की सभी मार्केट सभी दुकानों में भी उसे ढूंढने के बहाने चक्कर लगाने लगा था लेकिन उसका कहीं अता-पता नहीं था साथ ही जहां एक तरफ मन में,,, उस लड़की को पत्नी बनाने का ख्याल पनपता था वहीं दूसरी तरफ उस औरत के बारे में भी सोच कर वह जहां भी जाता था तो उसे औरत को भी उसकी निगाहें ढूंढती रहती थी क्योंकि उसे औरत को जिस अवस्था में उसने देखा था वह कभी भूल नहीं पा रहा था इसलिए उसे औरत की भी तलाश में वह इधर-उधर भटक रहा था,,,,।
जैसे-जैसे करके 10 15 दिन गुजर गए लेकिन उसे लड़की का कहीं आता पता नहीं चला और ना हीं वह औरत कहीं नजर आई दोनों में से एक भी सफलता उसके हाथ में नहीं लगी थी इसलिए वह निराश हो चुका था अपने पिताजी से वह नजर मिलाने में भी शर्म महसूस करने लगा था,, क्योंकि सुबह शाम खाने की मेज पर उसके पिताजी उसे लड़की के बारे में उससे पूछते थे और हर बार वह इनकार कर देता था,,, राकेश को अपने पिताजी से ना कहने में बहुत शर्म महसूस होती थी,,, और उसकी नाकामयाबी की चिंता भारी लकीरें शेठ मनोहर लाल के चेहरे पर एकदम साफ दिखाई देती थी और इस बारे में राकेश को भी पता था,,,,।
दूसरी तरफ रूपलाल के घर में उसकी बीवी रोज-रोज इस बात पर हंगामा मचा देती थी कि रूपलाल अपनी बेटी के लिए कुछ कर नहीं पा रहे हैं,,,, तकरीबन 15 दिन गुजर जाने के बाद रमा देवी का गुस्सा एकदम से फूट पड़ा,,,। जब वह दोनों सुबह के समय चाय पी रहे थे,,,।
मैं कह रही हूं तुम्हें अपनी बेटी के फिक्र है कि नहीं,,, मनोहर लाल की पार्टी को खत्म हुए 15 दिन हो गए हैं लेकिन तुम इस बीच एक भी बार सेठ मनोहर लाल से शादी की बात नहीं किए हो,,,, आखिर तुम चाहते क्या हो,,,,।
कर लूंगा भाग्यवान तुम्हें हर चीज की जल्दी पड़ी रहती है,,,।
तुम्हें कुछ समझ में आ रहा है इस तरह की बात करते हो थोड़ा सा तो दिमाग लगाकर सोचो तुम्हें ऐसा लग रहा है कि जल्दी पड़ी है लेकिन यह नहीं जानते कि मनोहर लाल की बहू बनने के लिए ना जाने कितने लोग लाइन में लगे हैं अगर इसी बीच कोई लड़की उन्हें पसंद आ गई तब क्या करोगे,,,,।
अरे ऐसा कुछ भी नहीं होगा तुम भी खामखां घबराती हो,,,,(चाय की चुस्की लेते हुए रूप लाल बोले,,)
मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि तुम जिम्मेदार बाप हो,,, तुम्हारी बातें एकदम लापरवाह भरी है,, मेरी बातों को तुम गंभीरता से नहीं लेते,,,, आखिरकार तुम्हें भी समझना चाहिए की आरती के लिए 2 साल से अच्छे लड़के की तलाश कर रहे हैं लेकिन अभी तक नहीं मिला,,,,।
शादी तो किस्मत से होती है भाग्यवान,,,, जैसे तुम्हारी और हमारी,,,,।
ऐसी अगर किस्मत हो तो मुझे ऐसी किस्मत नहीं चाहिए तुम्हारे से तो शादी करके मुझे जिंदगी भर का रोना पड़ गया है,,,,।(मन की भड़ास निकालते हुए रमा बोली,,,, इसी बीच कॉलेज के लिए जाने के लिए आरती अपना बैग लेकर बाहर निकल ही रही थी कि अपनी मम्मी पापा की आवाज सुनकर दरवाजे के पीछे खड़ी होकर उन दोनों की बात सुनाने लगी क्योंकि वह जानती थी कि वह दोनों उसकी शादी की बात कर रहे थे और वह भी जानना चाहती थी कि उसके घर वाले उसकी शादी को लेकर खास करके मनोहर लाल की बहू बनाने के लिए किस कदर तक तैयार है शादी की बात आगे कर भी रहे हैं आप यूं ही हवा में गोलीबारी कर रहे हैं,,,,,।)
अरे ऐसी कौन सी किस्मत खराब हो गई मेरे से शादी करके इतना अच्छा तो जीवन दे रहा हूं रानी बनकर रहती हो घर में,,,,।
रानी बनाकर,,,ऊंहहह,,,(रमा मुंह टेढ़ा करते हुए बोली,,,)
क्यों जिंदगी के सारे ऐसो आराम नहीं मिल रहे हैं यहां पर,,,,
देखो जी अब मेरा मुंह मत खुलवाओ,,, बेटी की शादी की बात हो रही है इसलिए थोड़ा बात की गंभीरता को समझो मेरी जिंदगी तो तबाह हो ही गई है मैं अपनी बेटी की जिंदगी तबाह नहीं होने देना चाहती मैं उसके लिए अच्छा घर देखना चाहती हूं इसीलिए तुमसे कह रही हूं कि सेट मनोहर लाल से बात करो कहीं ऐसा ना हो कि सब कुछ बर्बाद हो जाए और तुम बस बैठे-बैठे देखते रह जाओ,,,,।
(रमा एकदम क्रोधित स्वर में बोल रही थी,, अपनी मां की बात सुनकर आरती को भी ऐसा ही लग रहा था कि उसके पिताजी उसकी बात अभी तक मनोहर लाल से नहीं किए हैं इसीलिए उसकी मां गुस्सा हो रही है,,,,, दरवाजे के पीछे से वह निकल जाना चाहती थी लेकिन वह उन दोनों की बातों को और भी सुनना चाहती थी वह देखना चाहती थी कि आपस में वह दोनों कैसी बहस करते हैं,,, रमा की बात सुनकर रूपलाल बोले,,,)
मैं तुम्हारी कौन सी जिंदगी तबाह कर दिया है इतने अच्छे से तो रख रहा हूं और क्या चाहिए तुम्हें,,,।
मैं आरती की शादी की बात कर रही हूं इसलिए मेरा मुंह मत खुलवाओ मुझे तो डर है कि कहीं बिस्तर पर जिस तरह से ढेर हो जाते हो कहीं आरती की शादी की बात में भी ढेर ना हो जाओ,,,,
यह कैसी बातें कर रही हो रमा,,, थोड़ा तो शर्म करो इस तरह से खुलकर बोल रही हो,,,,।
(आरती अपनी मां के कहने के मतलब को नहीं समझ पा रही थी,,, वह नहीं जानती थी कि उसकी मां किस बारे में बात कर रही है,,, रूपलाल की बात सुनकर रमा बोली,,,)
मैं बोलना नहीं चाहती थी लेकिन तुम बुलवा रहे हो खामखा मेरा मुंह खुलवा रहे हो,,,।
लेकिन इस बारे में बात करना जरूरी है अब मैं क्या करूं तुम्हारी प्यास नहीं बुझती तो,,, ।
(अपने पापा की बात सुनकर आरती को कुछ-कुछ समझ में आने लगा था कि दोनों के बीच किस तरह की बहस हो रही है इसलिए उसके कान एकदम से खड़े हो गए पहली बार वह अपनी मम्मी पापा को इस तरह की बातें करते हुए सुन रही थी,,,,)
प्यास नहीं बुझती तो,,, ऐसा क्यों नहीं कहते की प्यास बुझा नहीं पाते अब तुम्हारा दिया एकदम से बुझ गया है,,,,।
रुपलाल की बीवी
अरे थोड़ा तो शर्म करो भाग्यवान कुछ ही दिनों में तुम सांस बन जाओगी और अभी भी तुम जवान की बात कर रही हो इन सब का भी एक समय होता है और वह समय गुजर गया है,,,।
तुम्हारा गुजर गया होगा मेरा नहीं तुम बूढ़े हो गए हो मैं नहीं मेरे में जवानी अभी भी बरकरार है और सीधे-सीधे क्यों नहीं कहते थे कि तुम्हारी जवानी की प्यास में नहीं बुझा पाऊंगा मुझसे कोई उम्मीद मत रखना,,,।
आरती की मां अब तुम हद से ज्यादा बोल रही हो आप क्या रात भर तुम्हारी बुर में लंड डालकर पड़ा रहुं,,,,।
रुपलाल की बीवी की कल्पना
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(अपने पापा के मुंह से इस तरह की बात सुनकर लंड और बुर वाली बात सुनकर आरती के एकदम से होश उड़ गए,,,, दरवाजे के पीछे खड़ी होकर अपनी मम्मी पापा की बातों को सुन रही थी वह नहीं जानती थी कि दोनों इस कदर से गंदी बातें करने लगेंगे वह तो यही सोच रही थी कि वह दोनों उसकी शादी की बात कर रहे हैं और ऐसा हो भी रहा था लेकिन शादी की बात के साथ-साथ उसकी मां अपनी बदन की प्यास की भी बात को उभार दी थी,,,, अपने पापा के मुंह से लंड और बुर जैसे शब्दों को सुनकर वह एकदम शर्म से गड़ी जा रही थी,,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करें एकाएक दरवाजे से बाहर निकल भी नहीं सकती थी क्योंकि उसके मम्मी पापा की नजर उस पर पड़े सकती थी,,, इसलिए मजबूरन उसे वहीं पर खड़े रहना पड़ा,,,,, उसके पापा की बात सुनकर उसकी मम्मी बोली,,,,)
रुपलाल की बीवी की कल्पना
आहहा,,हा ,,,,(एकदम से इतराते हुए,,,) बुर में लंड डालकर रात भर पड़े रहने का मतलब जानते हो,,,, इसका मतलब होता है वह मर्द जो रातभर मे औरत की बुर का भोसड़ा बना दे,,,, और तुम्हें अपनी हालत मालूम है ना बुर पर छुआते ही पानी फेंक देता है तुम्हारा लंड,,,,, और आए हो रात भर डालकर पड़े रहने की बात कर रहे हो,,,,,।
(आरती की तो हालत खराब हो रही थी अपने पापा के साथ-साथ अपनी मम्मी के मुंह से भी इतनी गंदी गंदी बात सुनकर उसके तो होश उड़े जा रहे थे उसकी आंखों के सामने अंधेरा जा रहा था उसे कभी उम्मीद नहीं थी उसके मम्मी पापा इस तरह से गंदी बात करते होंगे क्योंकि वह पहली बार अपनी मम्मी पापा के मुंह से इस तरह की गंदी से भी गंदी बात सुन रही थी,,, वह अपने मन में ही भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि हे भगवान यह उसके मम्मी पापा को क्या हो गया है वह तूने इस तरह की बातें क्यों कर रही है लेकिन उसे इतना तो समझ में आ गया था कि उसकी मम्मी की प्यास उसके पापा नहीं बुझा पाते हैं उसके मम्मी के कहे अनुसार उसके पापा का लंड जैसे ही उनकी बुर पर स्पर्श होता है वैसे ही उनका पानी छूट जाता है,,,।
रुपलाल की बीवी की ख्वाहिश
अब जवान हो चुकी आरती इतना तो समझ ही सकते थे कि यह सब किस बारे में हो रहा है दोनों आपस में चुदाई के बारे में ही बात कर रहे थे आरती से सुना नहीं जा रहा था आरती इतना तो समझ ही गई थी कि उसकी मम्मी उसके पापा को उसकी मर्दानगी को ठेस पहुंचा रही थी लेकिन समझ नहीं पा रही थी कि इसमें गलती किसकी है क्योंकि आरती अभी औरत के उस महीन दौर से गुजरी नहीं थी जिसमें औरत को मर्द की बहुत जरूरत होती है,,,,,।
तुमसे तो बात ही करना बेकार है,,,,(अपनी पत्नी की बात सुनकर रूपलाल को गुस्सा तो आ ही रहा था लेकिन वह जानता था कि उसकी बीवी इस समय जो कुछ भी कह रही है वह बिल्कुल सच है,,,, वह सच में अपनी बीवी की प्यास को नहीं बुझा पा रहा था,,, वह इस बात को भी अच्छी तरह से जानता था कि वह अपनी बीवी के सामने उसकी बातों से आहत हो रहा था बेईज्जत हो रहा था,,, किसी और मुद्दे पर बात होती तो शायद वह उसका जवाब दे सकता था लेकिन जिस मुद्दे पर बात हो रही थी उसमें वह पूरी तरह से दोषी था,,,)
रुपलाल की बीवी
बात करना तो बेकार लगेगा ही क्योंकि किसी काम के जो नहीं रहे मैं तो मुझे खुश कर सकते हो ना ही अपनी बेटी का रिश्ता किसी अच्छे घर में तय कर सकते हो अब यह काम भी मुझे ही करना होगा,,,।
बेटी का रिश्ता ढूंढने की बात कर रही हो तो अपने लिए एक तगड़ा मर्द भी ढूंढ लेना जो दिन रात तुम्हारी बुर में लंड डालकर तुम्हारी बुर की प्यास बुझा सके,,,,,(और इतना कहने के साथ ही रूपलाल कुर्सी पर से उठकर खड़े हो गए और कपड़े की दुकान के लिए निकल गए,,, उनकी बीवी उन्हें जाते हुए देखती रह गई,,,,, लेकिन अपने पापा के बात पर आरती एकदम आश्चर्यचकित हो गई उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसके पापा उसकी मां को किसी गैर मर्द के साथ संबंध बनाने के लिए बोलेंगे,,,,, कुछ देर तक आरती उसी तरह से दरवाजे के पीछे खड़ी रही,,, जब थोड़ा समय बीत गया तो वहां धीरे से दरवाजे के पीछे से एकदम सहज होते हुए निकाली और अपनी मां से इस तरह से बात करने लगी जैसे कि कुछ वह जानती है ना हो वह हाथ में बाग टांगे अपनी मां से बोली,,,,)
रुपलाल की बीवी
अरे मम्मी पापा आज जल्दी दुकान के लिए निकल गए,,,(वह एकदम सहज होकर बोल रही थी क्योंकि वह एकदम वातावरण को सहज रखना चाहती थी वह नहीं चाहती थी कि उसकी मां को बिल्कुल भी इस बात की भनक लगे कि दोनों की बातों को वह सुन ली है लेकिन वह अभी देखना चाहती थी कि उसकी मां क्या जवाब देती है,,,,)
वह कहना कि आज नए कपड़ों का स्टॉक आने वाला था इसलिए जल्दी दुकान के लिए निकल गए,,,, ।
(अपनी मां की बात सुनकर आरती को इस बात की तसल्ली हुई कि अभी भी दोनों के बीच मान सम्मान बरकरार रखने की आदत बनी हुई है लेकिन जिस तरह का बवाल दोनों के बीच मचा हुआ था वह काफी चिंताजनक था,,, और उन दोनों में जिस तरह की बातें हो रही थी उन बातों को सुनना खुद उसके लिए बेहद शर्मिंदगी भरा था क्योंकि एक बेटी होने के नाते उसके संस्कार बिल्कुल भी इजाजत नहीं देते थे कि वह अपनी मम्मी पापा के अंदरूनी बातों को सुने लेकिन यह सब अनजाने में हुआ था वह नहीं जानती थी कि दोनों के बीच इस तरह की बहस हो जाएगी,,, मुझे भी नहीं जानती थी कि उन दोनों के बीच शारीरिक सुख को लेकर बवाल मचा हुआ है,,,, अपनी मां की बात सुनने के बाद वह मुस्कुराते हुए अपनी मां के गालों पर हल्के से चुंबन करके मुस्कुराते हुए वहां से चली गई,,,,,।
शाम को जब घर आई तो घर का माहौल बिल्कुल शांत था उसकी मम्मी किचन में खाना बना रही थी और उसके पापा अपने कमरे में कुछ हिसाब किताब देख रहे थे बारी-बारी से वह दोनों के पास जाकर आई थी लेकिन दोनों में से किसी ने पहले की तरफ से बात नहीं किए थे वह समझ सकती थी सुबह जिस तरह की बात हो रही थी ऐसे में दोनों के बीच तनाव पैदा होना लाजिमी था,,,,।
खाना खाने के बाद उसके मम्मी पापा अपने कमरे में चले गए थे और वहां पानी पीने के लिए किचन में आई तो अच्छी की दूध का गिलास किचन में ही पड़ा हुआ है और दूध के गिलास को देखकर आरती समझ गई थी कि सुबह के झगड़े की वजह से शायद उसकी मां उसके पापा को दूध का गिलास देने के लिए नहीं ले गई है भूल गई या तो शायद जानबूझकर नहीं थी और यही सोचकर वह अपने मन में सोचने लगी कि दूध का गिलास उसे ही देने जाना चाहिए और यह सोचकर वह दूध का गिलास हाथ में ले ली और उसे लेकर अपनी मम्मी पापा के कमरे की तरफ जाने लगी,,,,)