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Adultery बहुरानी,,,,एक तड़प

rohnny4545

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रूपलाल के साथ-साथ उनकी बीवी रमा देवी बहुत खुश थी और साथ में उनकी बेटी आरती भी,,, आरती को पहले ही विश्वास हो चुका था कि उनका बेटा उसे ही ढूंढ रहा है लेकिन फिर भी बहुत समय बीत जाने की वजह से उसके मन में भी थोड़ी शंका होने लग थी लेकिन आज सारी शंकाएं कुशंकाएं धरी की धरी रह गई थी,,, और इन सब का समाधान खुद सेठ मनोहर लाल ने हीं आकर कर दिया था,,, जितना खुश रूप लाल का परिवार था उससे कई ज्यादा खुश मनोहर लाल थे क्योंकि कुछ महीनो से जिस तरह का नाटक उनके घर रचा जा रहा था उसे देखते हुए उन्होंने उम्मीद ही छोड़ दी थी कभी वह बहू का मुंह देख पाएंगे,,,।




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रूपलाल खुश होते हुए अपनी बीवी से बोले,,,।

देखा भाग्यवान कह रहा था ना नसीब में होगा तो खुद चलकर आएगा और देख लो सेठ मनोहर लाल खुद चलकर आ गए,,,।

तुम बिल्कुल सही कह रहे थे आरती के पापा लेकिन क्या करूं एक मां हूं दूसरी मांओं की तरह मेरी भी तो इच्छा थी कि मेरी बेटी बड़े घर की बहू बनी इसीलिए मुझे रहा नहीं जा रहा था और बार-बार तुम्हें विवस कर रही थी उनसे मुलाकात करने के लिए।


चलो तेरा दुरुस्त आए,, अब तो कोई शिकायत नहीं है ना,,,,।


नहीं बिल्कुल भी नहीं,,,।


तो बस आप शादी की तैयारी करो क्योंकि मुझे नहीं लगता है कि ज्यादा दिन तक मनोहर लाल बिना बहू के रह पाएंगे उनका चेहरा बता रहा था कि कितने उतावले हैं चलते-चलते हमारी बेटी को अपने घर की बहू बनने के लिए,,,।



Rakesh apni saas k sath

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अरे होंगे क्यों नहीं आखिरकार लाखों में एक बेटी जो है हमारी,,,,।
(अपने मां-बाप की बात सुनकर वहीं पर खड़ी आरती मां ही मन मुस्कुरा रही थी तो उसकी मां आरती की तरफ देखते हुए बोली)

अब तो खुश है ना,,,।

क्या मम्मी फिर से मैं तो तुम्हें पहले भी कह चुकी हूं कि मुझे शादी में कोई इंटरेस्ट नहीं है वह तो आप लोग हैं जो जल्दबाजी दिखा रहे हैं,,,।

अब तो तू लाख मना कर लेगी तो भी तेरी बात मानने वाले नहीं है आखिरकार इतना अच्छा रिश्ता सपनों में भी नहीं मिलता तु तो उसे घर जाकर राज करेगी राज,,,।



Rakesh apni saas k sath

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मम्मी,,,,(इतना कहने के साथ ही शरमाते हुए वह वहां से लगभग भागते हुए अपने कमरे में पहुंच गई और बिस्तर पर पेट के बल एकदम से धम्म करके लेट गई,,, और गहरी गहरी सांस लेते हुए,,, अपने होने वाले पति के बारे में सोचने लगी और उस मुलाकात के बारे में सोचने लगी जो अनजाने में हुई थी आरती को तो याद भी नहीं था कि किसी रेस्टोरेंट में इस तरह से उसके होने वाले पति की मुलाकात हुई थी और नहीं कभी इस बारे में कभी सोची थी वह तो उसके पापा ही मनोहर लाल की बात सुनकर अपने घर पर बता रहे थे तो उसे एक याद आया था कि ऐसे ही उसकी भी मुलाकात किसी अनजान व्यक्ति से हुई थी इसी तरह से टकराई थी और तब से उसके मन में पक्के तौर पर यह बात बैठ गई थी कि होना हो राकेश वही है जो उसे पागलों की तरह ढूंढ रहा है,,,।




Rakesh or uski saas

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अपने होने वाले पति के बारे में सोचते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी,,, एक अजीब सी मदहोशी उसे अपनी आंखों में ले रही थी जिसके चलते उसे अपनी दोनों टांगों के बीच एक अजीब सा रिसाव महसूस हो रहा था जिसे वह अच्छी तरह से समझ रही थी,,, क्योंकि उसे कुछ-कुछ एहसास होने लगा था कि जब भी वह इस तरह की मदहोशी अपने बदन में महसूस करती थी तब उसकी बुर से इस तरह से पानी झड़ने लगता था और अपने हाथों से अपनी उंगलियों से बाहर कई बार इस तरह का पानी निकल चुकी थी लेकिन ऐसा करने में उसे मजा तो आता था लेकिन उसके बाद बहुत ही ग्लानी महसूस होती थी,,, और वह ऐसा दोबारा बिल्कुल भी नहीं करती थी लेकिन आज अनजाने में ही अपने होने वाले पति के बारे में सोचते ही उसकी पेंटिं गीली होने लगी थी,,,, एक तरह से वह परेशान हो गई थी और वह धीरे से करवट लेते हुए पीठ के बाल हो गई और अपनी दोनों टांगों को फैला कर हल्की सी चपत सलवार के ऊपर से ही अपनी बुर पर लगाते हुए बोली,,,,।



Rakesh apni saas k sath masti karta hua
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बस कर ज्यादा आंसू मत बहा,,, बस अब कुछ दिनों की बात है तेरा भी दुख दूर होने वाला है,,,,,,(और ऐसा कहकर मुस्कुराने लगी,,,,)

रात को खाने के टेबल पर मनोहर लाल को बिल्कुल भी अपने बेटे को बुलाना नहीं पड़ा हुआ खुद ही समय पर डाइनिंग टेबल पर पहुंच गया और एकदम उत्साहित होता हुआ अपने पिताजी से बोला,,,


क्या हुआ पिताजी बात बनी कि नहीं,,,,।


अरे बात कैसे नहीं बनेगी आखिरकार रिश्ता कौन लेकर गया था इनकार करने का तो सवाल ही नहीं उठता,,,।


क्या बात कर रहे हैं पिताजी,,,(एकदम उत्साहित होता हुआ राकेश बोला,,,)

तुझे लगता है कि मेरी बात का कोई इनकार कर सकता है,,,, और यहां तो बात थी बहू पसंद करने की भला इस शहर में कौन ऐसा होगा जो मेरा समधी ना बनना चाहता हो,,,,,,।



Rakesh apni saas k sath

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बात तो बिल्कुल सही है पिताजी,,,,,, लेकिन फिर भी क्या हुआ वहां पर कुछ तो बताइए,,,।

अरे पहले खाना तो खाना शुरू कर,,,।

ठीक हैपिताजी,,,(और इतना कहने के साथ ही राकेश खाना खाने की शुरुआत मुस्कुराते हुए कर दिया यह देखकर मनोहर लाल को बहुत खुशी मिली और वह मुस्कुराते हुए बोले)


महीनों बाद तेरे चेहरे पर खुशी देख रहा हूं तो नहीं जानता तेरे चेहरे पर खुशी देखकर मुझे कितनी खुशी मिल रही है मैं तो टूट गया था अंदर ही अंदर तेरी हालत देखकर,,,, मैं यही सोचता था कि कैसे तेरे चेहरे पर खुशी लाऊं,,,,।


मुझे मालूम पिताजी मैंने आपको बहुत दुख दिया हूं,,,, लेकिन अब बिल्कुल भी आपको कोई भी शिकायत का मौका नहीं दूंगा,,,।

हां वह तो दिख ही रहा है,,,(मुंह में निवाला डालते हुए मनोहर लाल बोले ,,)

वैसे वहां पर क्या हुआ था कुछ बताइए,,,।


Rakesh or uski saas
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अरे हुआ क्या था सीधे पहुंच गया अपने दोस्त रूपलाल के घर खुद ही उसके घर का गेट खोला और प्रवेश कर गया और वह तो मुझे देखकर एकदम से हक्का-बक्का रह गया,,,।

ऐसा क्यों,,,?


क्योंकि मैं उसके घर इतना आता जाता नहीं हूं बरसों गुजर गए उसके घर नहीं गया था इसलिए तो मुझे देखकर हुआ एकदम से हैरान हो गया था रूप लाल और उसकी बीवी दोनों के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी थी,,,, उन लोगों को ऐसे भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था और जब मैं बोला कि मुंह मीठा करवाइए पहली बार समधी अपने समधी के घर आया है,,, तब तो उन दोनों का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया उन दोनों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था,,,।

फिर क्या हुआ,,,?




Saas or damaad

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फिर क्या जिस तरह की हालात दोनों की बनी हुई थी मुझे ही बताना पड़ा कि आखिरकार माजरा क्या है तब जाकर उन लोगों के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी जब उन लोगों के मैंने बताया कि उनकी लड़की को मैं अपने घर की बहू बनाना चाहता हूं तब उन दोनों का चेहरा एकदम से देखने लायक हो गया था उन दोनों की खुशी नहीं समा रही थी,,,,।


आआआआआआ,,, आरती से मिले पिताजी,,,,।


मिल भी और मुंह दिखाई के शगुन के तौर पर सोने का हार भी देकर आया हूं,,,।

ओहहहह पिताजी आप कितने अच्छे हैं,,,, आपको कैसी लगी आरती,,,,,।


Rooplaal ki bibi apne damad k sath

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वैसे मुझे तो कोई खास नहीं लगी तू ही पता नहीं पहली मुलाकात में क्या देखकर आ गया था,,,,।

(इतना सुनते ही राकेश का चेहरा एकदम से उतर गया क्योंकि उसे पूरा विश्वास था कि जिस लड़की को उसने देखा था वह परी जैसी खूबसूरत थी कहीं ऐसा तो नहीं की कहानी पिताजी किसी और के घर चले गए हैं राकेश के चेहरे पर तो उदासी के भाव नजर आने लगे और मनोहर लाल अपने बेटे की हालत को देखकर जोर से हंसते हुए बोले)


डर गया ना तु,,,

(इतना सुनकर राकेश कुछ बोला नहीं तो मनोहर लाल अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोले,,)






Aarti kapde utarti huyi

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तू चिंता मत कर मुझे तेरी पसंद पर पूरा भरोसा था और आरती मेरे भरोसे पर एकदम खरी उतरी है एकदम स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा लगती है मेरी बहू,,,,।

ओहहहह पिताजी,,,,(इतना कहने के साथ ही राकेश अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और सीधा अपने पिताजी के गले लग गया उसके पिताजी भी उसे बाहों में भरते हुए प्यार करने लगे और बोले)


तू ही तो एक सहारा है मेरे जीने का अगर तेरी भी खुशी पूरी नहीं कर पाऊं तो इस जीवन का कोई मतलब नहीं है तु बिल्कुल भी चिंता मत कर चल अब जल्दी से खाना खत्म कर,,,,।
(इतना सुनकर राकेश वापस अपनी जगह पर जाकर बैठ गया और खाना खाने लगा लेकिन खाना खाते-खाते बोला)




Arti kapde utarti huyi

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अब आगे क्या करना है,,,।

मतलब,,,(राकेश की तरफ देखते हुए मनोहर लाल बोले ,)


मतलब की शादी,,,,।


तेरा उतावलापन में समझ रहा हूं लेकिन पहले सगाई तो हो जान दे मैं सोच रहा था कि इसी रविवार को तेरी सगाई कर दूं और एक महीने बाद शादी,,,,,।


एक महीना क्यों पिताजी,,,,।


अरे मेरे लाडले,,,,(हंसते हुए) अरे थोड़ा तो समय दे लड़की वालों को उनको अपनी तरफ से भी तो थोड़ी तैयारी करनी होगी उनके भी तो कुछ सपने होंगे अपनी बेटी की शादी को लेकर तू इतनी जल्दबाजी करेगा तो इतनी जल्दी वह लोग प्रबंध नहीं कर पाएंगे तो क्या सोचेंगे वह लोग उनकी भी तो एक ही लड़की है,,,.




Lahanga khol k nangi hoti huyi aarti

बात तो ठीक कह रहे हो पिताजी,,,,।


तो बस थोड़ा सब्र‌कर सब्र का फल मीठा ही होता है,,,।

(इतना कहकर मनोहर लाल खाना खाने लगे और राकेश तो सपनो की दुनिया में खोने लगा,,,, शेठ मनोहर लाल फोन करके रूपलाल को सगाई के बारे में सारी जानकारी देती है और रविवार का दिन तय कर दिया गया,,,,, सेठ मनोहर लाल उसे दिन छोटी सी पार्टी रखे थे जिसमें कुछ लोग ही जानने पहचानने वाले आए हुए थे रूपलाल भी अपने परिवार के साथ कुछ मेहमान को लेकर आए थे जो उनके रिश्तेदार ही थे,,,,।


राकेश तो आरती को देखा तो देखा ही रह गया गुलाबी साड़ी में स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा की तरह दिख रही थी आरती वाकई में बहुत खूबसूरत थी,,,, कब तक राकेश ने ठीक तरह से आरती की मां को नहीं देखा था,,,।





Saas or damaad

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आखिरकार सगाई की रस्म पूरी करने के लिए आरती आरती की मां और उसके पिताजी आगे आए और मनोहर लाल अपने बेटे को लेकर आगे आए शेठ मनोहर लाल अपनी कुर्ते की जेब में से एक बेस कीमती हीरे की अंगूठी जोक डिब्बे में बंद थी उसे खोलकर उसे अंगूठी को अपने बेटे की तरफ आगे बढ़ा दिए और ऐसा ही रूपलाल भी एक खूबसूरत अंगूठी जो की काफी महंगी थी उसे भी अपनी बेटी के सामने कर दिए आरती और राकेश अंगूठी लेकर एक दूसरे को अंगूठी पहनने लगे राकेश तिरछी नजरों से आरती की तरफ देख ले रहा था जो कि अाधे घूंघट में थी और उसके लाल-लाल होठ और उसकी टोढी एकदम साफ दिख रही थी और वह शर्मा रही थी राकेश तो खुशी से फुला नहीं समा रहा था।


उसका मन कर रहा था कि इसी समय अपने होने वाली बीवी को अपनी बाहों में ले ले और उसके लाल लाल होठो पर चुंबन जड़ दे,,,, लेकिन मर्यादा में बना हुआ राकेश ऐसा नहीं कर पाया और ना ही ऐसा करने की हिम्मत उसमें थी आरती शर्मा के मारे नजर उठाकर अपने होने वाले पति को ठीक से देख भी नहीं पा रही थी लेकिन पास मे हीं खड़ी आरती की मां जो एक तरफ पूरी तरह से खुश नजर आ रही थी लेकिन दूसरी तरफ अपने होने वाले दामाद की नजरों से बचना भी चाहती थी क्योंकि राकेश तो नहीं लेकिन रूपलाल की बीवी अच्छी तरह से जानती थी राकेश को क्योंकि राकेश के साथ उसकी कुछ इस तरह से मुलाकात हुई थी जो की शर्मिंदगी से भर देने वाली थी,,,,।



Rakesh apni saas k sath masti karta hua

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देखते ही देखते होने वाले वर वधु एक दूसरे को अंगूठी पहनकर सगाई की रस्म को पूरी कर चुके थे और तालिया की गड़गड़ाहट से पूरा माहौल खुशनुमा बन चुका था लेकिन तभी आरती के पास में खड़ी औरत के चेहरे पर क्यों नहीं लेकिन उसकी छातियों पर राकेश की नजर पहुंच चुकी थी क्योंकि वह जालीदार साड़ी पहनी हुई थी और जालीदार साड़ी में से उसकी भारी भरकम छतिया बीच की गहरी लकीर लिए हुए एकदम साफ नजर आ रही थी राकेश इतना तो समझ ही गया था कि आरती के पास में खड़ी औरत उसकी होने वाली सास थी लेकिन सास की चूचियां देखकर उसकी हालत खराब हो गई थी,,,। अपनी होने वाली सास की चूचियों को देखकर राकेश कुछ और समझ पाता इससे पहले ही सेठ मनोहर लाल बोले,,,,।


बेटा राकेश अपनी सास और ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद ले लो ,,,।

(इतना सुनकर राकेश को पूरा यकीन हो गया था कि पास में खड़ी औरत उसकी सांस है और वह मुस्कुराते हुए तुरंत पैरों में झुक गया और आशीर्वाद लेने लगा आरती की मां भी उसके सर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद देने लगी और ऐसा ही वह आरती के पिताजी के साथ भी किया और वह भी आशीर्वाद देने लगे और रूपलाल अपनी बेटी को भी अपने होने वाले पति और अपने ससुर का आशीर्वाद देने के लिए बोले तो आरती भी झुक कर आशीर्वाद लेने लगी राकेश भी अपने होने वाली पत्नी के सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और सेठ मनोहर काफी अपने होने वाली बहू को आशीर्वाद देकर अपने आप को धन्य महसूस करने लगे,,,, लेकिन तभी राकेश की नजर अपने होने वाली सास पर गई तो उनका चेहरा देखकर राकेश के चेहरे की हवाई उड़ने लगी,,,।


Chudai se bhari huyi rooplaal ki bibi

राकेश अपने मन में ही कुछ याद करने लगा वह उसे चेहरे को ढूंढने लगा उसे याद करने लगा क्योंकि उसे पूरा यकीन हो गया था कि उसने उसे चेहरे को पहले भी कहीं देख चुका है लेकिन उसे याद नहीं आ रहा था ज्यादा जोर देने पर उसे तुरंत याद आ गया कि वह उसे खूबसूरत चेहरे को कहां देखा था कपड़े की दुकान में कपड़े बदलते समय जब उसने अनजाने में ही उस दरवाजे को खोल दिया था जिसमें वही औरत कपड़े बदल रही थी और उसका बहुत कुछ दिख रहा था यहां सबके राकेश ने उसकी नंगी गांड को भी देख लिया था और यह पहला मौका था जब उसने अनजाने में किसी औरत की नंगी गांड के दर्शन किए थे और उसके दिलों दिमाग पर वह भारी भरकम गांड किसी चित्र की तरह छप गई थी और दूसरी बार उसे तुरंत याद आ गया कि उसने दोबारा उसी औरत को कहां देखा था,,,।

उसे याद आ गया कि इसी तरह की पार्टी में उसे औरत को अपने ही कमरे के अपने ही बाथरूम में पेशाब करते हुए देखा था जब वह जल्दबाजी करते हुए बिना बाथरूम का दरवाजा बंद किए हुए अपनी साड़ी उठाकर पेशाब करने के लिए बैठ गई थी यह सब याद करके पल भर में ही उसके पेंट में तंबू बनने लगा था जिसे वह बड़ी मुश्किल से छुपाया हुआ था,,,

सगाई की रस्में पूरी हो चुकी थी मेहमान लोग खाना खाना शुरू कर दिए थे मनोहर लाल ने अपने खास रिश्तेदार के लिए अलग व्यवस्था पास में ही करके रखे थे जहां पर सब बैठकर खाना खाने वाले थे और वहीं पर मनोहर लाल अपने होने वाले समधी और समधिन के साथ-साथ अपनी बहू और अपने बेटे के साथ-साथ खुद के लिए भोजन की व्यवस्था करके रखे थे,,,,, मेहमान खा चुके थे उसके बाद मनोहर लाल और उनके खास लोग बैठकर खाना खा रहे थे आरती भी अपनी मां के साथ एक तरफ बैठी थी लेकिन अपनी ससुर और अपने होने वाले पति के सामने उसे शर्म महसूस हो रही थी उसकी झिझक मनोहर लाल समझ चुके थे इसलिए रूपलाल की बीवी से बोले,,,।

भाभी जी हमारी बहू थोड़ा संकोच कर रही हूं इसलिए आप बहु को लेकर दूसरी तरफ बैठ जाए ताकि वह भी खाना खा ले,,,।


जी भाई साहब,,,( रुपलाल की बीवी भी अच्छी तरह से समझ रही थी और वह अभी राकेश की नजरों से दूर होना चाहती थी इसलिए भाभी दूसरी तरफ के टेबल पर अपनी बेटी को लेकर चले गए वहीं पर बैठकर दोनों खाना खाने लगे राकेश बिल्कुल भी जताना नहीं चाहता था कि वह उस औरत को पहचान लिया है जो उसके सामने और देखना अवस्था में दो बार आ चुकी थी इसलिए अनजान बनने का नाटक करने लगा और वह आरती की मां की तरफ देखना बंद कर दिया था।

लेकिन खाना खाते हुए वह अपने मन में यही सोच रहा था कि यह कैसा अद्भुत संयोग है कि वह अनजाने में ही अपने होने वाली सांस के बारे में सोच सोच कर कई बार मुठ मार चुका है और आज इस औरत की लड़की उसकी होने वाली बीवी बन चुकी थी जो कि कुछ ही दिनों बाद उसकी बीवी बन जाएगी इस बारे में सोच और उसके बाद में अजीब सी हलचल होने लगी थी क्योंकि अपने मन में सोचने लगा था कि जब मां इतनी कड़क है तो बेटी कैसी होगी,,,।


कुछ ही देर में सारे मेहमान जा चुके थे और राकेश भी अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रहा था तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और फिर मनोहर लाल अंदर आने की इजाजत मांगने लगी दरवाजा खुला हुआ था इसलिए राकेश बोला,,,।


क्या पिताजी अब मेरे कमरे में आने के लिए आपकी इजाजत मांगनी होगी,,,,।


अब तक तो नहीं लेकिन फिर भी प्रैक्टिस कर रहा था क्योंकि अब तो बहू आने वाली है तो इस तरह से कमरे में दाखिल तो नहीं हो सकता ना,,,,(कमरे में दाखिल होते हुए शेठ मनोहर लाल मुस्कुराते हुए बोले,,,)


क्या पिताजी आप भी,,, ।



अच्छा यह बता आरती कैसी लगी की तो पहले एक झलक दिखा था लेकिन आज तो देखा ही होगा ना,,,।

कहां पिताजी ठीक से कहां देख पाया घूंघट में थी ना,,,।

हां वो तो है लेकिन फिर भी लाखों में एक है मेरी बहू,,,,,,, अब एक महीने बाद की तारीख तय कर देता हूं शादी के लिए,,,।


जैसा आप ठीक समझे पिताजी,,,,।


चल अब सो जा,,,, मैं भी जाकर सो जाता हूं आखिरकार शादी की तैयारी जो करना है,,,।
(ऐसा कहते हुए शेठ मनोहर लाल अपनी जगह से उठकर खड़े हो गए और कमरे से बाहर जाने लगे कैमरे से बाहर जाते-जाते गुड नाइट बोलते हुए चलेंगे और राकेश चादर तानकर अपने होने वाली बीवी के बारे में सोता हुआ कब नींद की आगोश में चला गया उसे पता ही नहीं चला,,,,।)
 
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रूपलाल के साथ-साथ उनकी बीवी रमा देवी बहुत खुश थी और साथ में उनकी बेटी आरती भी,,, आरती को पहले ही विश्वास हो चुका था कि उनका बेटा उसे ही ढूंढ रहा है लेकिन फिर भी बहुत समय बीत जाने की वजह से उसके मन में भी थोड़ी शंका होने लग थी लेकिन आज सारी शंकाएं कुशंकाएं धरी की धरी रह गई थी,,, और इन सब का समाधान खुद सेठ मनोहर लाल ने हीं आकर कर दिया था,,, जितना खुश रूप लाल का परिवार था उससे कई ज्यादा खुश मनोहर लाल थे क्योंकि कुछ महीनो से जिस तरह का नाटक उनके घर रचा जा रहा था उसे देखते हुए उन्होंने उम्मीद ही छोड़ दी थी कभी वह बहू का मुंह देख पाएंगे,,,।




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रूपलाल खुश होते हुए अपनी बीवी से बोले,,,।

देखा भाग्यवान कह रहा था ना नसीब में होगा तो खुद चलकर आएगा और देख लो सेठ मनोहर लाल खुद चलकर आ गए,,,।

तुम बिल्कुल सही कह रहे थे आरती के पापा लेकिन क्या करूं एक मां हूं दूसरी मांओं की तरह मेरी भी तो इच्छा थी कि मेरी बेटी बड़े घर की बहू बनी इसीलिए मुझे रहा नहीं जा रहा था और बार-बार तुम्हें विवस कर रही थी उनसे मुलाकात करने के लिए।


चलो तेरा दुरुस्त आए,, अब तो कोई शिकायत नहीं है ना,,,,।


नहीं बिल्कुल भी नहीं,,,।


तो बस आप शादी की तैयारी करो क्योंकि मुझे नहीं लगता है कि ज्यादा दिन तक मनोहर लाल बिना बहू के रह पाएंगे उनका चेहरा बता रहा था कि कितने उतावले हैं चलते-चलते हमारी बेटी को अपने घर की बहू बनने के लिए,,,।



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अरे होंगे क्यों नहीं आखिरकार लाखों में एक बेटी जो है हमारी,,,,।
(अपने मां-बाप की बात सुनकर वहीं पर खड़ी आरती मां ही मन मुस्कुरा रही थी तो उसकी मां आरती की तरफ देखते हुए बोली)

अब तो खुश है ना,,,।

क्या मम्मी फिर से मैं तो तुम्हें पहले भी कह चुकी हूं कि मुझे शादी में कोई इंटरेस्ट नहीं है वह तो आप लोग हैं जो जल्दबाजी दिखा रहे हैं,,,।

अब तो तू लाख मना कर लेगी तो भी तेरी बात मानने वाले नहीं है आखिरकार इतना अच्छा रिश्ता सपनों में भी नहीं मिलता तु तो उसे घर जाकर राज करेगी राज,,,।



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मम्मी,,,,(इतना कहने के साथ ही शरमाते हुए वह वहां से लगभग भागते हुए अपने कमरे में पहुंच गई और बिस्तर पर पेट के बल एकदम से धम्म करके लेट गई,,, और गहरी गहरी सांस लेते हुए,,, अपने होने वाले पति के बारे में सोचने लगी और उस मुलाकात के बारे में सोचने लगी जो अनजाने में हुई थी आरती को तो याद भी नहीं था कि किसी रेस्टोरेंट में इस तरह से उसके होने वाले पति की मुलाकात हुई थी और नहीं कभी इस बारे में कभी सोची थी वह तो उसके पापा ही मनोहर लाल की बात सुनकर अपने घर पर बता रहे थे तो उसे एक याद आया था कि ऐसे ही उसकी भी मुलाकात किसी अनजान व्यक्ति से हुई थी इसी तरह से टकराई थी और तब से उसके मन में पक्के तौर पर यह बात बैठ गई थी कि होना हो राकेश वही है जो उसे पागलों की तरह ढूंढ रहा है,,,।




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अपने होने वाले पति के बारे में सोचते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी,,, एक अजीब सी मदहोशी उसे अपनी आंखों में ले रही थी जिसके चलते उसे अपनी दोनों टांगों के बीच एक अजीब सा रिसाव महसूस हो रहा था जिसे वह अच्छी तरह से समझ रही थी,,, क्योंकि उसे कुछ-कुछ एहसास होने लगा था कि जब भी वह इस तरह की मदहोशी अपने बदन में महसूस करती थी तब उसकी बुर से इस तरह से पानी झड़ने लगता था और अपने हाथों से अपनी उंगलियों से बाहर कई बार इस तरह का पानी निकल चुकी थी लेकिन ऐसा करने में उसे मजा तो आता था लेकिन उसके बाद बहुत ही ग्लानी महसूस होती थी,,, और वह ऐसा दोबारा बिल्कुल भी नहीं करती थी लेकिन आज अनजाने में ही अपने होने वाले पति के बारे में सोचते ही उसकी पेंटिं गीली होने लगी थी,,,, एक तरह से वह परेशान हो गई थी और वह धीरे से करवट लेते हुए पीठ के बाल हो गई और अपनी दोनों टांगों को फैला कर हल्की सी चपत सलवार के ऊपर से ही अपनी बुर पर लगाते हुए बोली,,,,।



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बस कर ज्यादा आंसू मत बहा,,, बस अब कुछ दिनों की बात है तेरा भी दुख दूर होने वाला है,,,,,,(और ऐसा कहकर मुस्कुराने लगी,,,,)

रात को खाने के टेबल पर मनोहर लाल को बिल्कुल भी अपने बेटे को बुलाना नहीं पड़ा हुआ खुद ही समय पर डाइनिंग टेबल पर पहुंच गया और एकदम उत्साहित होता हुआ अपने पिताजी से बोला,,,


क्या हुआ पिताजी बात बनी कि नहीं,,,,।


अरे बात कैसे नहीं बनेगी आखिरकार रिश्ता कौन लेकर गया था इनकार करने का तो सवाल ही नहीं उठता,,,।


क्या बात कर रहे हैं पिताजी,,,(एकदम उत्साहित होता हुआ राकेश बोला,,,)

तुझे लगता है कि मेरी बात का कोई इनकार कर सकता है,,,, और यहां तो बात थी बहू पसंद करने की भला इस शहर में कौन ऐसा होगा जो मेरा समधी ना बनना चाहता हो,,,,,,।



Rakesh apni saas k sath

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बात तो बिल्कुल सही है पिताजी,,,,,, लेकिन फिर भी क्या हुआ वहां पर कुछ तो बताइए,,,।

अरे पहले खाना तो खाना शुरू कर,,,।

ठीक हैपिताजी,,,(और इतना कहने के साथ ही राकेश खाना खाने की शुरुआत मुस्कुराते हुए कर दिया यह देखकर मनोहर लाल को बहुत खुशी मिली और वह मुस्कुराते हुए बोले)


महीनों बाद तेरे चेहरे पर खुशी देख रहा हूं तो नहीं जानता तेरे चेहरे पर खुशी देखकर मुझे कितनी खुशी मिल रही है मैं तो टूट गया था अंदर ही अंदर तेरी हालत देखकर,,,, मैं यही सोचता था कि कैसे तेरे चेहरे पर खुशी लाऊं,,,,।


मुझे मालूम पिताजी मैंने आपको बहुत दुख दिया हूं,,,, लेकिन अब बिल्कुल भी आपको कोई भी शिकायत का मौका नहीं दूंगा,,,।

हां वह तो दिख ही रहा है,,,(मुंह में निवाला डालते हुए मनोहर लाल बोले ,,)

वैसे वहां पर क्या हुआ था कुछ बताइए,,,।


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अरे हुआ क्या था सीधे पहुंच गया अपने दोस्त रूपलाल के घर खुद ही उसके घर का गेट खोला और प्रवेश कर गया और वह तो मुझे देखकर एकदम से हक्का-बक्का रह गया,,,।

ऐसा क्यों,,,?


क्योंकि मैं उसके घर इतना आता जाता नहीं हूं बरसों गुजर गए उसके घर नहीं गया था इसलिए तो मुझे देखकर हुआ एकदम से हैरान हो गया था रूप लाल और उसकी बीवी दोनों के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी थी,,,, उन लोगों को ऐसे भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था और जब मैं बोला कि मुंह मीठा करवाइए पहली बार समधी अपने समधी के घर आया है,,, तब तो उन दोनों का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया उन दोनों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था,,,।

फिर क्या हुआ,,,?


फिर क्या जिस तरह की हालात दोनों की बनी हुई थी मुझे ही बताना पड़ा कि आखिरकार माजरा क्या है तब जाकर उन लोगों के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी जब उन लोगों के मैंने बताया कि उनकी लड़की को मैं अपने घर की बहू बनाना चाहता हूं तब उन दोनों का चेहरा एकदम से देखने लायक हो गया था उन दोनों की खुशी नहीं समा रही थी,,,,।


आआआआआआ,,, आरती से मिले पिताजी,,,,।


मिल भी और मुंह दिखाई के शगुन के तौर पर सोने का हार भी देकर आया हूं,,,।

ओहहहह पिताजी आप कितने अच्छे हैं,,,, आपको कैसी लगी आरती,,,,,।


वैसे मुझे तो कोई खास नहीं लगी तू ही पता नहीं पहली मुलाकात में क्या देखकर आ गया था,,,,।

(इतना सुनते ही राकेश का चेहरा एकदम से उतर गया क्योंकि उसे पूरा विश्वास था कि जिस लड़की को उसने देखा था वह परी जैसी खूबसूरत थी कहीं ऐसा तो नहीं की कहानी पिताजी किसी और के घर चले गए हैं राकेश के चेहरे पर तो उदासी के भाव नजर आने लगे और मनोहर लाल अपने बेटे की हालत को देखकर जोर से हंसते हुए बोले)


डर गया ना तु,,,

(इतना सुनकर राकेश कुछ बोला नहीं तो मनोहर लाल अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोले,,)


तू चिंता मत कर मुझे तेरी पसंद पर पूरा भरोसा था और आरती मेरे भरोसे पर एकदम खरी उतरी है एकदम स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा लगती है मेरी बहू,,,,।

ओहहहह पिताजी,,,,(इतना कहने के साथ ही राकेश अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और सीधा अपने पिताजी के गले लग गया उसके पिताजी भी उसे बाहों में भरते हुए प्यार करने लगे और बोले)


तू ही तो एक सहारा है मेरे जीने का अगर तेरी भी खुशी पूरी नहीं कर पाऊं तो इस जीवन का कोई मतलब नहीं है तु बिल्कुल भी चिंता मत कर चल अब जल्दी से खाना खत्म कर,,,,।
(इतना सुनकर राकेश वापस अपनी जगह पर जाकर बैठ गया और खाना खाने लगा लेकिन खाना खाते-खाते बोला)

अब आगे क्या करना है,,,।

मतलब,,,(राकेश की तरफ देखते हुए मनोहर लाल बोले ,)


मतलब की शादी,,,,।


तेरा उतावलापन में समझ रहा हूं लेकिन पहले सगाई तो हो जान दे मैं सोच रहा था कि इसी रविवार को तेरी सगाई कर दूं और एक महीने बाद शादी,,,,,।


एक महीना क्यों पिताजी,,,,।


अरे मेरे लाडले,,,,(हंसते हुए) अरे थोड़ा तो समय दे लड़की वालों को उनको अपनी तरफ से भी तो थोड़ी तैयारी करनी होगी उनके भी तो कुछ सपने होंगे अपनी बेटी की शादी को लेकर तू इतनी जल्दबाजी करेगा तो इतनी जल्दी वह लोग प्रबंध नहीं कर पाएंगे तो क्या सोचेंगे वह लोग उनकी भी तो एक ही लड़की है,,,.

बात तो ठीक कह रहे हो पिताजी,,,,।


तो बस थोड़ा सब्र‌कर सब्र का फल मीठा ही होता है,,,।

(इतना कहकर मनोहर लाल खाना खाने लगे और राकेश तो सपनो की दुनिया में खोने लगा,,,, शेठ मनोहर लाल फोन करके रूपलाल को सगाई के बारे में सारी जानकारी देती है और रविवार का दिन तय कर दिया गया,,,,, सेठ मनोहर लाल उसे दिन छोटी सी पार्टी रखे थे जिसमें कुछ लोग ही जानने पहचानने वाले आए हुए थे रूपलाल भी अपने परिवार के साथ कुछ मेहमान को लेकर आए थे जो उनके रिश्तेदार ही थे,,,,।


राकेश तो आरती को देखा तो देखा ही रह गया गुलाबी साड़ी में स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा की तरह दिख रही थी आरती वाकई में बहुत खूबसूरत थी,,,, कब तक राकेश ने ठीक तरह से आरती की मां को नहीं देखा था,,,।

आखिरकार सगाई की रस्म पूरी करने के लिए आरती आरती की मां और उसके पिताजी आगे आए और मनोहर लाल अपने बेटे को लेकर आगे आए शेठ मनोहर लाल अपनी कुर्ते की जेब में से एक बेस कीमती हीरे की अंगूठी जोक डिब्बे में बंद थी उसे खोलकर उसे अंगूठी को अपने बेटे की तरफ आगे बढ़ा दिए और ऐसा ही रूपलाल भी एक खूबसूरत अंगूठी जो की काफी महंगी थी उसे भी अपनी बेटी के सामने कर दिए आरती और राकेश अंगूठी लेकर एक दूसरे को अंगूठी पहनने लगे राकेश तिरछी नजरों से आरती की तरफ देख ले रहा था जो कि अाधे घूंघट में थी और उसके लाल-लाल होठ और उसकी टोढी एकदम साफ दिख रही थी और वह शर्मा रही थी राकेश तो खुशी से फुला नहीं समा रहा था।


उसका मन कर रहा था कि इसी समय अपने होने वाली बीवी को अपनी बाहों में ले ले और उसके लाल लाल होठो पर चुंबन जड़ दे,,,, लेकिन मर्यादा में बना हुआ राकेश ऐसा नहीं कर पाया और ना ही ऐसा करने की हिम्मत उसमें थी आरती शर्मा के मारे नजर उठाकर अपने होने वाले पति को ठीक से देख भी नहीं पा रही थी लेकिन पास मे हीं खड़ी आरती की मां जो एक तरफ पूरी तरह से खुश नजर आ रही थी लेकिन दूसरी तरफ अपने होने वाले दामाद की नजरों से बचना भी चाहती थी क्योंकि राकेश तो नहीं लेकिन रूपलाल की बीवी अच्छी तरह से जानती थी राकेश को क्योंकि राकेश के साथ उसकी कुछ इस तरह से मुलाकात हुई थी जो की शर्मिंदगी से भर देने वाली थी,,,,।


देखते ही देखते होने वाले वर वधु एक दूसरे को अंगूठी पहनकर सगाई की रस्म को पूरी कर चुके थे और तालिया की गड़गड़ाहट से पूरा माहौल खुशनुमा बन चुका था लेकिन तभी आरती के पास में खड़ी औरत के चेहरे पर क्यों नहीं लेकिन उसकी छातियों पर राकेश की नजर पहुंच चुकी थी क्योंकि वह जालीदार साड़ी पहनी हुई थी और जालीदार साड़ी में से उसकी भारी भरकम छतिया बीच की गहरी लकीर लिए हुए एकदम साफ नजर आ रही थी राकेश इतना तो समझ ही गया था कि आरती के पास में खड़ी औरत उसकी होने वाली सास थी लेकिन सास की चूचियां देखकर उसकी हालत खराब हो गई थी,,,। अपनी होने वाली सास की चूचियों को देखकर राकेश कुछ और समझ पाता इससे पहले ही सेठ मनोहर लाल बोले,,,,।


बेटा राकेश अपनी सास और ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद ले लो ,,,।

(इतना सुनकर राकेश को पूरा यकीन हो गया था कि पास में खड़ी औरत उसकी सांस है और वह मुस्कुराते हुए तुरंत पैरों में झुक गया और आशीर्वाद लेने लगा आरती की मां भी उसके सर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद देने लगी और ऐसा ही वह आरती के पिताजी के साथ भी किया और वह भी आशीर्वाद देने लगे और रूपलाल अपनी बेटी को भी अपने होने वाले पति और अपने ससुर का आशीर्वाद देने के लिए बोले तो आरती भी झुक कर आशीर्वाद लेने लगी राकेश भी अपने होने वाली पत्नी के सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और सेठ मनोहर काफी अपने होने वाली बहू को आशीर्वाद देकर अपने आप को धन्य महसूस करने लगे,,,, लेकिन तभी राकेश की नजर अपने होने वाली सास पर गई तो उनका चेहरा देखकर राकेश के चेहरे की हवाई उड़ने लगी,,,।


राकेश अपने मन में ही कुछ याद करने लगा वह उसे चेहरे को ढूंढने लगा उसे याद करने लगा क्योंकि उसे पूरा यकीन हो गया था कि उसने उसे चेहरे को पहले भी कहीं देख चुका है लेकिन उसे याद नहीं आ रहा था ज्यादा जोर देने पर उसे तुरंत याद आ गया कि वह उसे खूबसूरत चेहरे को कहां देखा था कपड़े की दुकान में कपड़े बदलते समय जब उसने अनजाने में ही उस दरवाजे को खोल दिया था जिसमें वही औरत कपड़े बदल रही थी और उसका बहुत कुछ दिख रहा था यहां सबके राकेश ने उसकी नंगी गांड को भी देख लिया था और यह पहला मौका था जब उसने अनजाने में किसी औरत की नंगी गांड के दर्शन किए थे और उसके दिलों दिमाग पर वह भारी भरकम गांड किसी चित्र की तरह छप गई थी और दूसरी बार उसे तुरंत याद आ गया कि उसने दोबारा उसी औरत को कहां देखा था,,,।

उसे याद आ गया कि इसी तरह की पार्टी में उसे औरत को अपने ही कमरे के अपने ही बाथरूम में पेशाब करते हुए देखा था जब वह जल्दबाजी करते हुए बिना बाथरूम का दरवाजा बंद किए हुए अपनी साड़ी उठाकर पेशाब करने के लिए बैठ गई थी यह सब याद करके पल भर में ही उसके पेंट में तंबू बनने लगा था जिसे वह बड़ी मुश्किल से छुपाया हुआ था,,,

सगाई की रस्में पूरी हो चुकी थी मेहमान लोग खाना खाना शुरू कर दिए थे मनोहर लाल ने अपने खास रिश्तेदार के लिए अलग व्यवस्था पास में ही करके रखे थे जहां पर सब बैठकर खाना खाने वाले थे और वहीं पर मनोहर लाल अपने होने वाले समधी और समधिन के साथ-साथ अपनी बहू और अपने बेटे के साथ-साथ खुद के लिए भोजन की व्यवस्था करके रखे थे,,,,, मेहमान खा चुके थे उसके बाद मनोहर लाल और उनके खास लोग बैठकर खाना खा रहे थे आरती भी अपनी मां के साथ एक तरफ बैठी थी लेकिन अपनी ससुर और अपने होने वाले पति के सामने उसे शर्म महसूस हो रही थी उसकी झिझक मनोहर लाल समझ चुके थे इसलिए रूपलाल की बीवी से बोले,,,।

भाभी जी हमारी बहू थोड़ा संकोच कर रही हूं इसलिए आप बहु को लेकर दूसरी तरफ बैठ जाए ताकि वह भी खाना खा ले,,,।


जी भाई साहब,,,( रुपलाल की बीवी भी अच्छी तरह से समझ रही थी और वह अभी राकेश की नजरों से दूर होना चाहती थी इसलिए भाभी दूसरी तरफ के टेबल पर अपनी बेटी को लेकर चले गए वहीं पर बैठकर दोनों खाना खाने लगे राकेश बिल्कुल भी जताना नहीं चाहता था कि वह उस औरत को पहचान लिया है जो उसके सामने और देखना अवस्था में दो बार आ चुकी थी इसलिए अनजान बनने का नाटक करने लगा और वह आरती की मां की तरफ देखना बंद कर दिया था।

लेकिन खाना खाते हुए वह अपने मन में यही सोच रहा था कि यह कैसा अद्भुत संयोग है कि वह अनजाने में ही अपने होने वाली सांस के बारे में सोच सोच कर कई बार मुठ मार चुका है और आज इस औरत की लड़की उसकी होने वाली बीवी बन चुकी थी जो कि कुछ ही दिनों बाद उसकी बीवी बन जाएगी इस बारे में सोच और उसके बाद में अजीब सी हलचल होने लगी थी क्योंकि अपने मन में सोचने लगा था कि जब मां इतनी कड़क है तो बेटी कैसी होगी,,,।


कुछ ही देर में सारे मेहमान जा चुके थे और राकेश भी अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रहा था तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और फिर मनोहर लाल अंदर आने की इजाजत मांगने लगी दरवाजा खुला हुआ था इसलिए राकेश बोला,,,।


क्या पिताजी अब मेरे कमरे में आने के लिए आपकी इजाजत मांगनी होगी,,,,।


अब तक तो नहीं लेकिन फिर भी प्रैक्टिस कर रहा था क्योंकि अब तो बहू आने वाली है तो इस तरह से कमरे में दाखिल तो नहीं हो सकता ना,,,,(कमरे में दाखिल होते हुए शेठ मनोहर लाल मुस्कुराते हुए बोले,,,)


क्या पिताजी आप भी,,, ।



अच्छा यह बता आरती कैसी लगी की तो पहले एक झलक दिखा था लेकिन आज तो देखा ही होगा ना,,,।

कहां पिताजी ठीक से कहां देख पाया घूंघट में थी ना,,,।

हां वो तो है लेकिन फिर भी लाखों में एक है मेरी बहू,,,,,,, अब एक महीने बाद की तारीख तय कर देता हूं शादी के लिए,,,।


जैसा आप ठीक समझे पिताजी,,,,।


चल अब सो जा,,,, मैं भी जाकर सो जाता हूं आखिरकार शादी की तैयारी जो करना है,,,।
(ऐसा कहते हुए शेठ मनोहर लाल अपनी जगह से उठकर खड़े हो गए और कमरे से बाहर जाने लगे कैमरे से बाहर जाते-जाते गुड नाइट बोलते हुए चलेंगे और राकेश चादर तानकर अपने होने वाली बीवी के बारे में सोता हुआ कब नींद की आगोश में चला गया उसे पता ही नहीं चला,,,,।)
Bahut hee shaandar update ….
 

Pandu1990

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रूपलाल के साथ-साथ उनकी बीवी रमा देवी बहुत खुश थी और साथ में उनकी बेटी आरती भी,,, आरती को पहले ही विश्वास हो चुका था कि उनका बेटा उसे ही ढूंढ रहा है लेकिन फिर भी बहुत समय बीत जाने की वजह से उसके मन में भी थोड़ी शंका होने लग थी लेकिन आज सारी शंकाएं कुशंकाएं धरी की धरी रह गई थी,,, और इन सब का समाधान खुद सेठ मनोहर लाल ने हीं आकर कर दिया था,,, जितना खुश रूप लाल का परिवार था उससे कई ज्यादा खुश मनोहर लाल थे क्योंकि कुछ महीनो से जिस तरह का नाटक उनके घर रचा जा रहा था उसे देखते हुए उन्होंने उम्मीद ही छोड़ दी थी कभी वह बहू का मुंह देख पाएंगे,,,।




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रूपलाल खुश होते हुए अपनी बीवी से बोले,,,।

देखा भाग्यवान कह रहा था ना नसीब में होगा तो खुद चलकर आएगा और देख लो सेठ मनोहर लाल खुद चलकर आ गए,,,।

तुम बिल्कुल सही कह रहे थे आरती के पापा लेकिन क्या करूं एक मां हूं दूसरी मांओं की तरह मेरी भी तो इच्छा थी कि मेरी बेटी बड़े घर की बहू बनी इसीलिए मुझे रहा नहीं जा रहा था और बार-बार तुम्हें विवस कर रही थी उनसे मुलाकात करने के लिए।


चलो तेरा दुरुस्त आए,, अब तो कोई शिकायत नहीं है ना,,,,।


नहीं बिल्कुल भी नहीं,,,।


तो बस आप शादी की तैयारी करो क्योंकि मुझे नहीं लगता है कि ज्यादा दिन तक मनोहर लाल बिना बहू के रह पाएंगे उनका चेहरा बता रहा था कि कितने उतावले हैं चलते-चलते हमारी बेटी को अपने घर की बहू बनने के लिए,,,।



Rakesh apni saas k sath

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अरे होंगे क्यों नहीं आखिरकार लाखों में एक बेटी जो है हमारी,,,,।
(अपने मां-बाप की बात सुनकर वहीं पर खड़ी आरती मां ही मन मुस्कुरा रही थी तो उसकी मां आरती की तरफ देखते हुए बोली)

अब तो खुश है ना,,,।

क्या मम्मी फिर से मैं तो तुम्हें पहले भी कह चुकी हूं कि मुझे शादी में कोई इंटरेस्ट नहीं है वह तो आप लोग हैं जो जल्दबाजी दिखा रहे हैं,,,।

अब तो तू लाख मना कर लेगी तो भी तेरी बात मानने वाले नहीं है आखिरकार इतना अच्छा रिश्ता सपनों में भी नहीं मिलता तु तो उसे घर जाकर राज करेगी राज,,,।



Rakesh apni saas k sath

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मम्मी,,,,(इतना कहने के साथ ही शरमाते हुए वह वहां से लगभग भागते हुए अपने कमरे में पहुंच गई और बिस्तर पर पेट के बल एकदम से धम्म करके लेट गई,,, और गहरी गहरी सांस लेते हुए,,, अपने होने वाले पति के बारे में सोचने लगी और उस मुलाकात के बारे में सोचने लगी जो अनजाने में हुई थी आरती को तो याद भी नहीं था कि किसी रेस्टोरेंट में इस तरह से उसके होने वाले पति की मुलाकात हुई थी और नहीं कभी इस बारे में कभी सोची थी वह तो उसके पापा ही मनोहर लाल की बात सुनकर अपने घर पर बता रहे थे तो उसे एक याद आया था कि ऐसे ही उसकी भी मुलाकात किसी अनजान व्यक्ति से हुई थी इसी तरह से टकराई थी और तब से उसके मन में पक्के तौर पर यह बात बैठ गई थी कि होना हो राकेश वही है जो उसे पागलों की तरह ढूंढ रहा है,,,।




Rakesh or uski saas

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अपने होने वाले पति के बारे में सोचते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी,,, एक अजीब सी मदहोशी उसे अपनी आंखों में ले रही थी जिसके चलते उसे अपनी दोनों टांगों के बीच एक अजीब सा रिसाव महसूस हो रहा था जिसे वह अच्छी तरह से समझ रही थी,,, क्योंकि उसे कुछ-कुछ एहसास होने लगा था कि जब भी वह इस तरह की मदहोशी अपने बदन में महसूस करती थी तब उसकी बुर से इस तरह से पानी झड़ने लगता था और अपने हाथों से अपनी उंगलियों से बाहर कई बार इस तरह का पानी निकल चुकी थी लेकिन ऐसा करने में उसे मजा तो आता था लेकिन उसके बाद बहुत ही ग्लानी महसूस होती थी,,, और वह ऐसा दोबारा बिल्कुल भी नहीं करती थी लेकिन आज अनजाने में ही अपने होने वाले पति के बारे में सोचते ही उसकी पेंटिं गीली होने लगी थी,,,, एक तरह से वह परेशान हो गई थी और वह धीरे से करवट लेते हुए पीठ के बाल हो गई और अपनी दोनों टांगों को फैला कर हल्की सी चपत सलवार के ऊपर से ही अपनी बुर पर लगाते हुए बोली,,,,।



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बस कर ज्यादा आंसू मत बहा,,, बस अब कुछ दिनों की बात है तेरा भी दुख दूर होने वाला है,,,,,,(और ऐसा कहकर मुस्कुराने लगी,,,,)

रात को खाने के टेबल पर मनोहर लाल को बिल्कुल भी अपने बेटे को बुलाना नहीं पड़ा हुआ खुद ही समय पर डाइनिंग टेबल पर पहुंच गया और एकदम उत्साहित होता हुआ अपने पिताजी से बोला,,,


क्या हुआ पिताजी बात बनी कि नहीं,,,,।


अरे बात कैसे नहीं बनेगी आखिरकार रिश्ता कौन लेकर गया था इनकार करने का तो सवाल ही नहीं उठता,,,।


क्या बात कर रहे हैं पिताजी,,,(एकदम उत्साहित होता हुआ राकेश बोला,,,)

तुझे लगता है कि मेरी बात का कोई इनकार कर सकता है,,,, और यहां तो बात थी बहू पसंद करने की भला इस शहर में कौन ऐसा होगा जो मेरा समधी ना बनना चाहता हो,,,,,,।



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बात तो बिल्कुल सही है पिताजी,,,,,, लेकिन फिर भी क्या हुआ वहां पर कुछ तो बताइए,,,।

अरे पहले खाना तो खाना शुरू कर,,,।

ठीक हैपिताजी,,,(और इतना कहने के साथ ही राकेश खाना खाने की शुरुआत मुस्कुराते हुए कर दिया यह देखकर मनोहर लाल को बहुत खुशी मिली और वह मुस्कुराते हुए बोले)


महीनों बाद तेरे चेहरे पर खुशी देख रहा हूं तो नहीं जानता तेरे चेहरे पर खुशी देखकर मुझे कितनी खुशी मिल रही है मैं तो टूट गया था अंदर ही अंदर तेरी हालत देखकर,,,, मैं यही सोचता था कि कैसे तेरे चेहरे पर खुशी लाऊं,,,,।


मुझे मालूम पिताजी मैंने आपको बहुत दुख दिया हूं,,,, लेकिन अब बिल्कुल भी आपको कोई भी शिकायत का मौका नहीं दूंगा,,,।

हां वह तो दिख ही रहा है,,,(मुंह में निवाला डालते हुए मनोहर लाल बोले ,,)

वैसे वहां पर क्या हुआ था कुछ बताइए,,,।


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अरे हुआ क्या था सीधे पहुंच गया अपने दोस्त रूपलाल के घर खुद ही उसके घर का गेट खोला और प्रवेश कर गया और वह तो मुझे देखकर एकदम से हक्का-बक्का रह गया,,,।

ऐसा क्यों,,,?


क्योंकि मैं उसके घर इतना आता जाता नहीं हूं बरसों गुजर गए उसके घर नहीं गया था इसलिए तो मुझे देखकर हुआ एकदम से हैरान हो गया था रूप लाल और उसकी बीवी दोनों के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी थी,,,, उन लोगों को ऐसे भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था और जब मैं बोला कि मुंह मीठा करवाइए पहली बार समधी अपने समधी के घर आया है,,, तब तो उन दोनों का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया उन दोनों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था,,,।

फिर क्या हुआ,,,?


फिर क्या जिस तरह की हालात दोनों की बनी हुई थी मुझे ही बताना पड़ा कि आखिरकार माजरा क्या है तब जाकर उन लोगों के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी जब उन लोगों के मैंने बताया कि उनकी लड़की को मैं अपने घर की बहू बनाना चाहता हूं तब उन दोनों का चेहरा एकदम से देखने लायक हो गया था उन दोनों की खुशी नहीं समा रही थी,,,,।


आआआआआआ,,, आरती से मिले पिताजी,,,,।


मिल भी और मुंह दिखाई के शगुन के तौर पर सोने का हार भी देकर आया हूं,,,।

ओहहहह पिताजी आप कितने अच्छे हैं,,,, आपको कैसी लगी आरती,,,,,।


वैसे मुझे तो कोई खास नहीं लगी तू ही पता नहीं पहली मुलाकात में क्या देखकर आ गया था,,,,।

(इतना सुनते ही राकेश का चेहरा एकदम से उतर गया क्योंकि उसे पूरा विश्वास था कि जिस लड़की को उसने देखा था वह परी जैसी खूबसूरत थी कहीं ऐसा तो नहीं की कहानी पिताजी किसी और के घर चले गए हैं राकेश के चेहरे पर तो उदासी के भाव नजर आने लगे और मनोहर लाल अपने बेटे की हालत को देखकर जोर से हंसते हुए बोले)


डर गया ना तु,,,

(इतना सुनकर राकेश कुछ बोला नहीं तो मनोहर लाल अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोले,,)


तू चिंता मत कर मुझे तेरी पसंद पर पूरा भरोसा था और आरती मेरे भरोसे पर एकदम खरी उतरी है एकदम स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा लगती है मेरी बहू,,,,।

ओहहहह पिताजी,,,,(इतना कहने के साथ ही राकेश अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और सीधा अपने पिताजी के गले लग गया उसके पिताजी भी उसे बाहों में भरते हुए प्यार करने लगे और बोले)


तू ही तो एक सहारा है मेरे जीने का अगर तेरी भी खुशी पूरी नहीं कर पाऊं तो इस जीवन का कोई मतलब नहीं है तु बिल्कुल भी चिंता मत कर चल अब जल्दी से खाना खत्म कर,,,,।
(इतना सुनकर राकेश वापस अपनी जगह पर जाकर बैठ गया और खाना खाने लगा लेकिन खाना खाते-खाते बोला)

अब आगे क्या करना है,,,।

मतलब,,,(राकेश की तरफ देखते हुए मनोहर लाल बोले ,)


मतलब की शादी,,,,।


तेरा उतावलापन में समझ रहा हूं लेकिन पहले सगाई तो हो जान दे मैं सोच रहा था कि इसी रविवार को तेरी सगाई कर दूं और एक महीने बाद शादी,,,,,।


एक महीना क्यों पिताजी,,,,।


अरे मेरे लाडले,,,,(हंसते हुए) अरे थोड़ा तो समय दे लड़की वालों को उनको अपनी तरफ से भी तो थोड़ी तैयारी करनी होगी उनके भी तो कुछ सपने होंगे अपनी बेटी की शादी को लेकर तू इतनी जल्दबाजी करेगा तो इतनी जल्दी वह लोग प्रबंध नहीं कर पाएंगे तो क्या सोचेंगे वह लोग उनकी भी तो एक ही लड़की है,,,.

बात तो ठीक कह रहे हो पिताजी,,,,।


तो बस थोड़ा सब्र‌कर सब्र का फल मीठा ही होता है,,,।

(इतना कहकर मनोहर लाल खाना खाने लगे और राकेश तो सपनो की दुनिया में खोने लगा,,,, शेठ मनोहर लाल फोन करके रूपलाल को सगाई के बारे में सारी जानकारी देती है और रविवार का दिन तय कर दिया गया,,,,, सेठ मनोहर लाल उसे दिन छोटी सी पार्टी रखे थे जिसमें कुछ लोग ही जानने पहचानने वाले आए हुए थे रूपलाल भी अपने परिवार के साथ कुछ मेहमान को लेकर आए थे जो उनके रिश्तेदार ही थे,,,,।


राकेश तो आरती को देखा तो देखा ही रह गया गुलाबी साड़ी में स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा की तरह दिख रही थी आरती वाकई में बहुत खूबसूरत थी,,,, कब तक राकेश ने ठीक तरह से आरती की मां को नहीं देखा था,,,।

आखिरकार सगाई की रस्म पूरी करने के लिए आरती आरती की मां और उसके पिताजी आगे आए और मनोहर लाल अपने बेटे को लेकर आगे आए शेठ मनोहर लाल अपनी कुर्ते की जेब में से एक बेस कीमती हीरे की अंगूठी जोक डिब्बे में बंद थी उसे खोलकर उसे अंगूठी को अपने बेटे की तरफ आगे बढ़ा दिए और ऐसा ही रूपलाल भी एक खूबसूरत अंगूठी जो की काफी महंगी थी उसे भी अपनी बेटी के सामने कर दिए आरती और राकेश अंगूठी लेकर एक दूसरे को अंगूठी पहनने लगे राकेश तिरछी नजरों से आरती की तरफ देख ले रहा था जो कि अाधे घूंघट में थी और उसके लाल-लाल होठ और उसकी टोढी एकदम साफ दिख रही थी और वह शर्मा रही थी राकेश तो खुशी से फुला नहीं समा रहा था।


उसका मन कर रहा था कि इसी समय अपने होने वाली बीवी को अपनी बाहों में ले ले और उसके लाल लाल होठो पर चुंबन जड़ दे,,,, लेकिन मर्यादा में बना हुआ राकेश ऐसा नहीं कर पाया और ना ही ऐसा करने की हिम्मत उसमें थी आरती शर्मा के मारे नजर उठाकर अपने होने वाले पति को ठीक से देख भी नहीं पा रही थी लेकिन पास मे हीं खड़ी आरती की मां जो एक तरफ पूरी तरह से खुश नजर आ रही थी लेकिन दूसरी तरफ अपने होने वाले दामाद की नजरों से बचना भी चाहती थी क्योंकि राकेश तो नहीं लेकिन रूपलाल की बीवी अच्छी तरह से जानती थी राकेश को क्योंकि राकेश के साथ उसकी कुछ इस तरह से मुलाकात हुई थी जो की शर्मिंदगी से भर देने वाली थी,,,,।


देखते ही देखते होने वाले वर वधु एक दूसरे को अंगूठी पहनकर सगाई की रस्म को पूरी कर चुके थे और तालिया की गड़गड़ाहट से पूरा माहौल खुशनुमा बन चुका था लेकिन तभी आरती के पास में खड़ी औरत के चेहरे पर क्यों नहीं लेकिन उसकी छातियों पर राकेश की नजर पहुंच चुकी थी क्योंकि वह जालीदार साड़ी पहनी हुई थी और जालीदार साड़ी में से उसकी भारी भरकम छतिया बीच की गहरी लकीर लिए हुए एकदम साफ नजर आ रही थी राकेश इतना तो समझ ही गया था कि आरती के पास में खड़ी औरत उसकी होने वाली सास थी लेकिन सास की चूचियां देखकर उसकी हालत खराब हो गई थी,,,। अपनी होने वाली सास की चूचियों को देखकर राकेश कुछ और समझ पाता इससे पहले ही सेठ मनोहर लाल बोले,,,,।


बेटा राकेश अपनी सास और ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद ले लो ,,,।

(इतना सुनकर राकेश को पूरा यकीन हो गया था कि पास में खड़ी औरत उसकी सांस है और वह मुस्कुराते हुए तुरंत पैरों में झुक गया और आशीर्वाद लेने लगा आरती की मां भी उसके सर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद देने लगी और ऐसा ही वह आरती के पिताजी के साथ भी किया और वह भी आशीर्वाद देने लगे और रूपलाल अपनी बेटी को भी अपने होने वाले पति और अपने ससुर का आशीर्वाद देने के लिए बोले तो आरती भी झुक कर आशीर्वाद लेने लगी राकेश भी अपने होने वाली पत्नी के सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और सेठ मनोहर काफी अपने होने वाली बहू को आशीर्वाद देकर अपने आप को धन्य महसूस करने लगे,,,, लेकिन तभी राकेश की नजर अपने होने वाली सास पर गई तो उनका चेहरा देखकर राकेश के चेहरे की हवाई उड़ने लगी,,,।


राकेश अपने मन में ही कुछ याद करने लगा वह उसे चेहरे को ढूंढने लगा उसे याद करने लगा क्योंकि उसे पूरा यकीन हो गया था कि उसने उसे चेहरे को पहले भी कहीं देख चुका है लेकिन उसे याद नहीं आ रहा था ज्यादा जोर देने पर उसे तुरंत याद आ गया कि वह उसे खूबसूरत चेहरे को कहां देखा था कपड़े की दुकान में कपड़े बदलते समय जब उसने अनजाने में ही उस दरवाजे को खोल दिया था जिसमें वही औरत कपड़े बदल रही थी और उसका बहुत कुछ दिख रहा था यहां सबके राकेश ने उसकी नंगी गांड को भी देख लिया था और यह पहला मौका था जब उसने अनजाने में किसी औरत की नंगी गांड के दर्शन किए थे और उसके दिलों दिमाग पर वह भारी भरकम गांड किसी चित्र की तरह छप गई थी और दूसरी बार उसे तुरंत याद आ गया कि उसने दोबारा उसी औरत को कहां देखा था,,,।

उसे याद आ गया कि इसी तरह की पार्टी में उसे औरत को अपने ही कमरे के अपने ही बाथरूम में पेशाब करते हुए देखा था जब वह जल्दबाजी करते हुए बिना बाथरूम का दरवाजा बंद किए हुए अपनी साड़ी उठाकर पेशाब करने के लिए बैठ गई थी यह सब याद करके पल भर में ही उसके पेंट में तंबू बनने लगा था जिसे वह बड़ी मुश्किल से छुपाया हुआ था,,,

सगाई की रस्में पूरी हो चुकी थी मेहमान लोग खाना खाना शुरू कर दिए थे मनोहर लाल ने अपने खास रिश्तेदार के लिए अलग व्यवस्था पास में ही करके रखे थे जहां पर सब बैठकर खाना खाने वाले थे और वहीं पर मनोहर लाल अपने होने वाले समधी और समधिन के साथ-साथ अपनी बहू और अपने बेटे के साथ-साथ खुद के लिए भोजन की व्यवस्था करके रखे थे,,,,, मेहमान खा चुके थे उसके बाद मनोहर लाल और उनके खास लोग बैठकर खाना खा रहे थे आरती भी अपनी मां के साथ एक तरफ बैठी थी लेकिन अपनी ससुर और अपने होने वाले पति के सामने उसे शर्म महसूस हो रही थी उसकी झिझक मनोहर लाल समझ चुके थे इसलिए रूपलाल की बीवी से बोले,,,।

भाभी जी हमारी बहू थोड़ा संकोच कर रही हूं इसलिए आप बहु को लेकर दूसरी तरफ बैठ जाए ताकि वह भी खाना खा ले,,,।


जी भाई साहब,,,( रुपलाल की बीवी भी अच्छी तरह से समझ रही थी और वह अभी राकेश की नजरों से दूर होना चाहती थी इसलिए भाभी दूसरी तरफ के टेबल पर अपनी बेटी को लेकर चले गए वहीं पर बैठकर दोनों खाना खाने लगे राकेश बिल्कुल भी जताना नहीं चाहता था कि वह उस औरत को पहचान लिया है जो उसके सामने और देखना अवस्था में दो बार आ चुकी थी इसलिए अनजान बनने का नाटक करने लगा और वह आरती की मां की तरफ देखना बंद कर दिया था।

लेकिन खाना खाते हुए वह अपने मन में यही सोच रहा था कि यह कैसा अद्भुत संयोग है कि वह अनजाने में ही अपने होने वाली सांस के बारे में सोच सोच कर कई बार मुठ मार चुका है और आज इस औरत की लड़की उसकी होने वाली बीवी बन चुकी थी जो कि कुछ ही दिनों बाद उसकी बीवी बन जाएगी इस बारे में सोच और उसके बाद में अजीब सी हलचल होने लगी थी क्योंकि अपने मन में सोचने लगा था कि जब मां इतनी कड़क है तो बेटी कैसी होगी,,,।


कुछ ही देर में सारे मेहमान जा चुके थे और राकेश भी अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रहा था तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और फिर मनोहर लाल अंदर आने की इजाजत मांगने लगी दरवाजा खुला हुआ था इसलिए राकेश बोला,,,।


क्या पिताजी अब मेरे कमरे में आने के लिए आपकी इजाजत मांगनी होगी,,,,।


अब तक तो नहीं लेकिन फिर भी प्रैक्टिस कर रहा था क्योंकि अब तो बहू आने वाली है तो इस तरह से कमरे में दाखिल तो नहीं हो सकता ना,,,,(कमरे में दाखिल होते हुए शेठ मनोहर लाल मुस्कुराते हुए बोले,,,)


क्या पिताजी आप भी,,, ।



अच्छा यह बता आरती कैसी लगी की तो पहले एक झलक दिखा था लेकिन आज तो देखा ही होगा ना,,,।

कहां पिताजी ठीक से कहां देख पाया घूंघट में थी ना,,,।

हां वो तो है लेकिन फिर भी लाखों में एक है मेरी बहू,,,,,,, अब एक महीने बाद की तारीख तय कर देता हूं शादी के लिए,,,।


जैसा आप ठीक समझे पिताजी,,,,।


चल अब सो जा,,,, मैं भी जाकर सो जाता हूं आखिरकार शादी की तैयारी जो करना है,,,।
(ऐसा कहते हुए शेठ मनोहर लाल अपनी जगह से उठकर खड़े हो गए और कमरे से बाहर जाने लगे कैमरे से बाहर जाते-जाते गुड नाइट बोलते हुए चलेंगे और राकेश चादर तानकर अपने होने वाली बीवी के बारे में सोता हुआ कब नींद की आगोश में चला गया उसे पता ही नहीं चला,,,,।)
Awesome update guruji
रूपलाल के साथ-साथ उनकी बीवी रमा देवी बहुत खुश थी और साथ में उनकी बेटी आरती भी,,, आरती को पहले ही विश्वास हो चुका था कि उनका बेटा उसे ही ढूंढ रहा है लेकिन फिर भी बहुत समय बीत जाने की वजह से उसके मन में भी थोड़ी शंका होने लग थी लेकिन आज सारी शंकाएं कुशंकाएं धरी की धरी रह गई थी,,, और इन सब का समाधान खुद सेठ मनोहर लाल ने हीं आकर कर दिया था,,, जितना खुश रूप लाल का परिवार था उससे कई ज्यादा खुश मनोहर लाल थे क्योंकि कुछ महीनो से जिस तरह का नाटक उनके घर रचा जा रहा था उसे देखते हुए उन्होंने उम्मीद ही छोड़ दी थी कभी वह बहू का मुंह देख पाएंगे,,,।




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रूपलाल खुश होते हुए अपनी बीवी से बोले,,,।

देखा भाग्यवान कह रहा था ना नसीब में होगा तो खुद चलकर आएगा और देख लो सेठ मनोहर लाल खुद चलकर आ गए,,,।

तुम बिल्कुल सही कह रहे थे आरती के पापा लेकिन क्या करूं एक मां हूं दूसरी मांओं की तरह मेरी भी तो इच्छा थी कि मेरी बेटी बड़े घर की बहू बनी इसीलिए मुझे रहा नहीं जा रहा था और बार-बार तुम्हें विवस कर रही थी उनसे मुलाकात करने के लिए।


चलो तेरा दुरुस्त आए,, अब तो कोई शिकायत नहीं है ना,,,,।


नहीं बिल्कुल भी नहीं,,,।


तो बस आप शादी की तैयारी करो क्योंकि मुझे नहीं लगता है कि ज्यादा दिन तक मनोहर लाल बिना बहू के रह पाएंगे उनका चेहरा बता रहा था कि कितने उतावले हैं चलते-चलते हमारी बेटी को अपने घर की बहू बनने के लिए,,,।



Rakesh apni saas k sath

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अरे होंगे क्यों नहीं आखिरकार लाखों में एक बेटी जो है हमारी,,,,।
(अपने मां-बाप की बात सुनकर वहीं पर खड़ी आरती मां ही मन मुस्कुरा रही थी तो उसकी मां आरती की तरफ देखते हुए बोली)

अब तो खुश है ना,,,।

क्या मम्मी फिर से मैं तो तुम्हें पहले भी कह चुकी हूं कि मुझे शादी में कोई इंटरेस्ट नहीं है वह तो आप लोग हैं जो जल्दबाजी दिखा रहे हैं,,,।

अब तो तू लाख मना कर लेगी तो भी तेरी बात मानने वाले नहीं है आखिरकार इतना अच्छा रिश्ता सपनों में भी नहीं मिलता तु तो उसे घर जाकर राज करेगी राज,,,।



Rakesh apni saas k sath

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मम्मी,,,,(इतना कहने के साथ ही शरमाते हुए वह वहां से लगभग भागते हुए अपने कमरे में पहुंच गई और बिस्तर पर पेट के बल एकदम से धम्म करके लेट गई,,, और गहरी गहरी सांस लेते हुए,,, अपने होने वाले पति के बारे में सोचने लगी और उस मुलाकात के बारे में सोचने लगी जो अनजाने में हुई थी आरती को तो याद भी नहीं था कि किसी रेस्टोरेंट में इस तरह से उसके होने वाले पति की मुलाकात हुई थी और नहीं कभी इस बारे में कभी सोची थी वह तो उसके पापा ही मनोहर लाल की बात सुनकर अपने घर पर बता रहे थे तो उसे एक याद आया था कि ऐसे ही उसकी भी मुलाकात किसी अनजान व्यक्ति से हुई थी इसी तरह से टकराई थी और तब से उसके मन में पक्के तौर पर यह बात बैठ गई थी कि होना हो राकेश वही है जो उसे पागलों की तरह ढूंढ रहा है,,,।




Rakesh or uski saas

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अपने होने वाले पति के बारे में सोचते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी,,, एक अजीब सी मदहोशी उसे अपनी आंखों में ले रही थी जिसके चलते उसे अपनी दोनों टांगों के बीच एक अजीब सा रिसाव महसूस हो रहा था जिसे वह अच्छी तरह से समझ रही थी,,, क्योंकि उसे कुछ-कुछ एहसास होने लगा था कि जब भी वह इस तरह की मदहोशी अपने बदन में महसूस करती थी तब उसकी बुर से इस तरह से पानी झड़ने लगता था और अपने हाथों से अपनी उंगलियों से बाहर कई बार इस तरह का पानी निकल चुकी थी लेकिन ऐसा करने में उसे मजा तो आता था लेकिन उसके बाद बहुत ही ग्लानी महसूस होती थी,,, और वह ऐसा दोबारा बिल्कुल भी नहीं करती थी लेकिन आज अनजाने में ही अपने होने वाले पति के बारे में सोचते ही उसकी पेंटिं गीली होने लगी थी,,,, एक तरह से वह परेशान हो गई थी और वह धीरे से करवट लेते हुए पीठ के बाल हो गई और अपनी दोनों टांगों को फैला कर हल्की सी चपत सलवार के ऊपर से ही अपनी बुर पर लगाते हुए बोली,,,,।



Rakesh apni saas k sath masti karta hua
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बस कर ज्यादा आंसू मत बहा,,, बस अब कुछ दिनों की बात है तेरा भी दुख दूर होने वाला है,,,,,,(और ऐसा कहकर मुस्कुराने लगी,,,,)

रात को खाने के टेबल पर मनोहर लाल को बिल्कुल भी अपने बेटे को बुलाना नहीं पड़ा हुआ खुद ही समय पर डाइनिंग टेबल पर पहुंच गया और एकदम उत्साहित होता हुआ अपने पिताजी से बोला,,,


क्या हुआ पिताजी बात बनी कि नहीं,,,,।


अरे बात कैसे नहीं बनेगी आखिरकार रिश्ता कौन लेकर गया था इनकार करने का तो सवाल ही नहीं उठता,,,।


क्या बात कर रहे हैं पिताजी,,,(एकदम उत्साहित होता हुआ राकेश बोला,,,)

तुझे लगता है कि मेरी बात का कोई इनकार कर सकता है,,,, और यहां तो बात थी बहू पसंद करने की भला इस शहर में कौन ऐसा होगा जो मेरा समधी ना बनना चाहता हो,,,,,,।



Rakesh apni saas k sath

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बात तो बिल्कुल सही है पिताजी,,,,,, लेकिन फिर भी क्या हुआ वहां पर कुछ तो बताइए,,,।

अरे पहले खाना तो खाना शुरू कर,,,।

ठीक हैपिताजी,,,(और इतना कहने के साथ ही राकेश खाना खाने की शुरुआत मुस्कुराते हुए कर दिया यह देखकर मनोहर लाल को बहुत खुशी मिली और वह मुस्कुराते हुए बोले)


महीनों बाद तेरे चेहरे पर खुशी देख रहा हूं तो नहीं जानता तेरे चेहरे पर खुशी देखकर मुझे कितनी खुशी मिल रही है मैं तो टूट गया था अंदर ही अंदर तेरी हालत देखकर,,,, मैं यही सोचता था कि कैसे तेरे चेहरे पर खुशी लाऊं,,,,।


मुझे मालूम पिताजी मैंने आपको बहुत दुख दिया हूं,,,, लेकिन अब बिल्कुल भी आपको कोई भी शिकायत का मौका नहीं दूंगा,,,।

हां वह तो दिख ही रहा है,,,(मुंह में निवाला डालते हुए मनोहर लाल बोले ,,)

वैसे वहां पर क्या हुआ था कुछ बताइए,,,।


Rakesh or uski saas
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अरे हुआ क्या था सीधे पहुंच गया अपने दोस्त रूपलाल के घर खुद ही उसके घर का गेट खोला और प्रवेश कर गया और वह तो मुझे देखकर एकदम से हक्का-बक्का रह गया,,,।

ऐसा क्यों,,,?


क्योंकि मैं उसके घर इतना आता जाता नहीं हूं बरसों गुजर गए उसके घर नहीं गया था इसलिए तो मुझे देखकर हुआ एकदम से हैरान हो गया था रूप लाल और उसकी बीवी दोनों के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी थी,,,, उन लोगों को ऐसे भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था और जब मैं बोला कि मुंह मीठा करवाइए पहली बार समधी अपने समधी के घर आया है,,, तब तो उन दोनों का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया उन दोनों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था,,,।

फिर क्या हुआ,,,?


फिर क्या जिस तरह की हालात दोनों की बनी हुई थी मुझे ही बताना पड़ा कि आखिरकार माजरा क्या है तब जाकर उन लोगों के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी जब उन लोगों के मैंने बताया कि उनकी लड़की को मैं अपने घर की बहू बनाना चाहता हूं तब उन दोनों का चेहरा एकदम से देखने लायक हो गया था उन दोनों की खुशी नहीं समा रही थी,,,,।


आआआआआआ,,, आरती से मिले पिताजी,,,,।


मिल भी और मुंह दिखाई के शगुन के तौर पर सोने का हार भी देकर आया हूं,,,।

ओहहहह पिताजी आप कितने अच्छे हैं,,,, आपको कैसी लगी आरती,,,,,।


वैसे मुझे तो कोई खास नहीं लगी तू ही पता नहीं पहली मुलाकात में क्या देखकर आ गया था,,,,।

(इतना सुनते ही राकेश का चेहरा एकदम से उतर गया क्योंकि उसे पूरा विश्वास था कि जिस लड़की को उसने देखा था वह परी जैसी खूबसूरत थी कहीं ऐसा तो नहीं की कहानी पिताजी किसी और के घर चले गए हैं राकेश के चेहरे पर तो उदासी के भाव नजर आने लगे और मनोहर लाल अपने बेटे की हालत को देखकर जोर से हंसते हुए बोले)


डर गया ना तु,,,

(इतना सुनकर राकेश कुछ बोला नहीं तो मनोहर लाल अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोले,,)


तू चिंता मत कर मुझे तेरी पसंद पर पूरा भरोसा था और आरती मेरे भरोसे पर एकदम खरी उतरी है एकदम स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा लगती है मेरी बहू,,,,।

ओहहहह पिताजी,,,,(इतना कहने के साथ ही राकेश अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और सीधा अपने पिताजी के गले लग गया उसके पिताजी भी उसे बाहों में भरते हुए प्यार करने लगे और बोले)


तू ही तो एक सहारा है मेरे जीने का अगर तेरी भी खुशी पूरी नहीं कर पाऊं तो इस जीवन का कोई मतलब नहीं है तु बिल्कुल भी चिंता मत कर चल अब जल्दी से खाना खत्म कर,,,,।
(इतना सुनकर राकेश वापस अपनी जगह पर जाकर बैठ गया और खाना खाने लगा लेकिन खाना खाते-खाते बोला)

अब आगे क्या करना है,,,।

मतलब,,,(राकेश की तरफ देखते हुए मनोहर लाल बोले ,)


मतलब की शादी,,,,।


तेरा उतावलापन में समझ रहा हूं लेकिन पहले सगाई तो हो जान दे मैं सोच रहा था कि इसी रविवार को तेरी सगाई कर दूं और एक महीने बाद शादी,,,,,।


एक महीना क्यों पिताजी,,,,।


अरे मेरे लाडले,,,,(हंसते हुए) अरे थोड़ा तो समय दे लड़की वालों को उनको अपनी तरफ से भी तो थोड़ी तैयारी करनी होगी उनके भी तो कुछ सपने होंगे अपनी बेटी की शादी को लेकर तू इतनी जल्दबाजी करेगा तो इतनी जल्दी वह लोग प्रबंध नहीं कर पाएंगे तो क्या सोचेंगे वह लोग उनकी भी तो एक ही लड़की है,,,.

बात तो ठीक कह रहे हो पिताजी,,,,।


तो बस थोड़ा सब्र‌कर सब्र का फल मीठा ही होता है,,,।

(इतना कहकर मनोहर लाल खाना खाने लगे और राकेश तो सपनो की दुनिया में खोने लगा,,,, शेठ मनोहर लाल फोन करके रूपलाल को सगाई के बारे में सारी जानकारी देती है और रविवार का दिन तय कर दिया गया,,,,, सेठ मनोहर लाल उसे दिन छोटी सी पार्टी रखे थे जिसमें कुछ लोग ही जानने पहचानने वाले आए हुए थे रूपलाल भी अपने परिवार के साथ कुछ मेहमान को लेकर आए थे जो उनके रिश्तेदार ही थे,,,,।


राकेश तो आरती को देखा तो देखा ही रह गया गुलाबी साड़ी में स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा की तरह दिख रही थी आरती वाकई में बहुत खूबसूरत थी,,,, कब तक राकेश ने ठीक तरह से आरती की मां को नहीं देखा था,,,।

आखिरकार सगाई की रस्म पूरी करने के लिए आरती आरती की मां और उसके पिताजी आगे आए और मनोहर लाल अपने बेटे को लेकर आगे आए शेठ मनोहर लाल अपनी कुर्ते की जेब में से एक बेस कीमती हीरे की अंगूठी जोक डिब्बे में बंद थी उसे खोलकर उसे अंगूठी को अपने बेटे की तरफ आगे बढ़ा दिए और ऐसा ही रूपलाल भी एक खूबसूरत अंगूठी जो की काफी महंगी थी उसे भी अपनी बेटी के सामने कर दिए आरती और राकेश अंगूठी लेकर एक दूसरे को अंगूठी पहनने लगे राकेश तिरछी नजरों से आरती की तरफ देख ले रहा था जो कि अाधे घूंघट में थी और उसके लाल-लाल होठ और उसकी टोढी एकदम साफ दिख रही थी और वह शर्मा रही थी राकेश तो खुशी से फुला नहीं समा रहा था।


उसका मन कर रहा था कि इसी समय अपने होने वाली बीवी को अपनी बाहों में ले ले और उसके लाल लाल होठो पर चुंबन जड़ दे,,,, लेकिन मर्यादा में बना हुआ राकेश ऐसा नहीं कर पाया और ना ही ऐसा करने की हिम्मत उसमें थी आरती शर्मा के मारे नजर उठाकर अपने होने वाले पति को ठीक से देख भी नहीं पा रही थी लेकिन पास मे हीं खड़ी आरती की मां जो एक तरफ पूरी तरह से खुश नजर आ रही थी लेकिन दूसरी तरफ अपने होने वाले दामाद की नजरों से बचना भी चाहती थी क्योंकि राकेश तो नहीं लेकिन रूपलाल की बीवी अच्छी तरह से जानती थी राकेश को क्योंकि राकेश के साथ उसकी कुछ इस तरह से मुलाकात हुई थी जो की शर्मिंदगी से भर देने वाली थी,,,,।


देखते ही देखते होने वाले वर वधु एक दूसरे को अंगूठी पहनकर सगाई की रस्म को पूरी कर चुके थे और तालिया की गड़गड़ाहट से पूरा माहौल खुशनुमा बन चुका था लेकिन तभी आरती के पास में खड़ी औरत के चेहरे पर क्यों नहीं लेकिन उसकी छातियों पर राकेश की नजर पहुंच चुकी थी क्योंकि वह जालीदार साड़ी पहनी हुई थी और जालीदार साड़ी में से उसकी भारी भरकम छतिया बीच की गहरी लकीर लिए हुए एकदम साफ नजर आ रही थी राकेश इतना तो समझ ही गया था कि आरती के पास में खड़ी औरत उसकी होने वाली सास थी लेकिन सास की चूचियां देखकर उसकी हालत खराब हो गई थी,,,। अपनी होने वाली सास की चूचियों को देखकर राकेश कुछ और समझ पाता इससे पहले ही सेठ मनोहर लाल बोले,,,,।


बेटा राकेश अपनी सास और ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद ले लो ,,,।

(इतना सुनकर राकेश को पूरा यकीन हो गया था कि पास में खड़ी औरत उसकी सांस है और वह मुस्कुराते हुए तुरंत पैरों में झुक गया और आशीर्वाद लेने लगा आरती की मां भी उसके सर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद देने लगी और ऐसा ही वह आरती के पिताजी के साथ भी किया और वह भी आशीर्वाद देने लगे और रूपलाल अपनी बेटी को भी अपने होने वाले पति और अपने ससुर का आशीर्वाद देने के लिए बोले तो आरती भी झुक कर आशीर्वाद लेने लगी राकेश भी अपने होने वाली पत्नी के सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और सेठ मनोहर काफी अपने होने वाली बहू को आशीर्वाद देकर अपने आप को धन्य महसूस करने लगे,,,, लेकिन तभी राकेश की नजर अपने होने वाली सास पर गई तो उनका चेहरा देखकर राकेश के चेहरे की हवाई उड़ने लगी,,,।


राकेश अपने मन में ही कुछ याद करने लगा वह उसे चेहरे को ढूंढने लगा उसे याद करने लगा क्योंकि उसे पूरा यकीन हो गया था कि उसने उसे चेहरे को पहले भी कहीं देख चुका है लेकिन उसे याद नहीं आ रहा था ज्यादा जोर देने पर उसे तुरंत याद आ गया कि वह उसे खूबसूरत चेहरे को कहां देखा था कपड़े की दुकान में कपड़े बदलते समय जब उसने अनजाने में ही उस दरवाजे को खोल दिया था जिसमें वही औरत कपड़े बदल रही थी और उसका बहुत कुछ दिख रहा था यहां सबके राकेश ने उसकी नंगी गांड को भी देख लिया था और यह पहला मौका था जब उसने अनजाने में किसी औरत की नंगी गांड के दर्शन किए थे और उसके दिलों दिमाग पर वह भारी भरकम गांड किसी चित्र की तरह छप गई थी और दूसरी बार उसे तुरंत याद आ गया कि उसने दोबारा उसी औरत को कहां देखा था,,,।

उसे याद आ गया कि इसी तरह की पार्टी में उसे औरत को अपने ही कमरे के अपने ही बाथरूम में पेशाब करते हुए देखा था जब वह जल्दबाजी करते हुए बिना बाथरूम का दरवाजा बंद किए हुए अपनी साड़ी उठाकर पेशाब करने के लिए बैठ गई थी यह सब याद करके पल भर में ही उसके पेंट में तंबू बनने लगा था जिसे वह बड़ी मुश्किल से छुपाया हुआ था,,,

सगाई की रस्में पूरी हो चुकी थी मेहमान लोग खाना खाना शुरू कर दिए थे मनोहर लाल ने अपने खास रिश्तेदार के लिए अलग व्यवस्था पास में ही करके रखे थे जहां पर सब बैठकर खाना खाने वाले थे और वहीं पर मनोहर लाल अपने होने वाले समधी और समधिन के साथ-साथ अपनी बहू और अपने बेटे के साथ-साथ खुद के लिए भोजन की व्यवस्था करके रखे थे,,,,, मेहमान खा चुके थे उसके बाद मनोहर लाल और उनके खास लोग बैठकर खाना खा रहे थे आरती भी अपनी मां के साथ एक तरफ बैठी थी लेकिन अपनी ससुर और अपने होने वाले पति के सामने उसे शर्म महसूस हो रही थी उसकी झिझक मनोहर लाल समझ चुके थे इसलिए रूपलाल की बीवी से बोले,,,।

भाभी जी हमारी बहू थोड़ा संकोच कर रही हूं इसलिए आप बहु को लेकर दूसरी तरफ बैठ जाए ताकि वह भी खाना खा ले,,,।


जी भाई साहब,,,( रुपलाल की बीवी भी अच्छी तरह से समझ रही थी और वह अभी राकेश की नजरों से दूर होना चाहती थी इसलिए भाभी दूसरी तरफ के टेबल पर अपनी बेटी को लेकर चले गए वहीं पर बैठकर दोनों खाना खाने लगे राकेश बिल्कुल भी जताना नहीं चाहता था कि वह उस औरत को पहचान लिया है जो उसके सामने और देखना अवस्था में दो बार आ चुकी थी इसलिए अनजान बनने का नाटक करने लगा और वह आरती की मां की तरफ देखना बंद कर दिया था।

लेकिन खाना खाते हुए वह अपने मन में यही सोच रहा था कि यह कैसा अद्भुत संयोग है कि वह अनजाने में ही अपने होने वाली सांस के बारे में सोच सोच कर कई बार मुठ मार चुका है और आज इस औरत की लड़की उसकी होने वाली बीवी बन चुकी थी जो कि कुछ ही दिनों बाद उसकी बीवी बन जाएगी इस बारे में सोच और उसके बाद में अजीब सी हलचल होने लगी थी क्योंकि अपने मन में सोचने लगा था कि जब मां इतनी कड़क है तो बेटी कैसी होगी,,,।


कुछ ही देर में सारे मेहमान जा चुके थे और राकेश भी अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रहा था तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और फिर मनोहर लाल अंदर आने की इजाजत मांगने लगी दरवाजा खुला हुआ था इसलिए राकेश बोला,,,।


क्या पिताजी अब मेरे कमरे में आने के लिए आपकी इजाजत मांगनी होगी,,,,।


अब तक तो नहीं लेकिन फिर भी प्रैक्टिस कर रहा था क्योंकि अब तो बहू आने वाली है तो इस तरह से कमरे में दाखिल तो नहीं हो सकता ना,,,,(कमरे में दाखिल होते हुए शेठ मनोहर लाल मुस्कुराते हुए बोले,,,)


क्या पिताजी आप भी,,, ।



अच्छा यह बता आरती कैसी लगी की तो पहले एक झलक दिखा था लेकिन आज तो देखा ही होगा ना,,,।

कहां पिताजी ठीक से कहां देख पाया घूंघट में थी ना,,,।

हां वो तो है लेकिन फिर भी लाखों में एक है मेरी बहू,,,,,,, अब एक महीने बाद की तारीख तय कर देता हूं शादी के लिए,,,।


जैसा आप ठीक समझे पिताजी,,,,।


चल अब सो जा,,,, मैं भी जाकर सो जाता हूं आखिरकार शादी की तैयारी जो करना है,,,।
(ऐसा कहते हुए शेठ मनोहर लाल अपनी जगह से उठकर खड़े हो गए और कमरे से बाहर जाने लगे कैमरे से बाहर जाते-जाते गुड नाइट बोलते हुए चलेंगे और राकेश चादर तानकर अपने होने वाली बीवी के बारे में सोता हुआ कब नींद की आगोश में चला गया उसे पता ही नहीं चला,,,,।)
Awesome update guruji bahut bahut dhanyawad guruji
 

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रूपलाल के साथ-साथ उनकी बीवी रमा देवी बहुत खुश थी और साथ में उनकी बेटी आरती भी,,, आरती को पहले ही विश्वास हो चुका था कि उनका बेटा उसे ही ढूंढ रहा है लेकिन फिर भी बहुत समय बीत जाने की वजह से उसके मन में भी थोड़ी शंका होने लग थी लेकिन आज सारी शंकाएं कुशंकाएं धरी की धरी रह गई थी,,, और इन सब का समाधान खुद सेठ मनोहर लाल ने हीं आकर कर दिया था,,, जितना खुश रूप लाल का परिवार था उससे कई ज्यादा खुश मनोहर लाल थे क्योंकि कुछ महीनो से जिस तरह का नाटक उनके घर रचा जा रहा था उसे देखते हुए उन्होंने उम्मीद ही छोड़ दी थी कभी वह बहू का मुंह देख पाएंगे,,,।




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रूपलाल खुश होते हुए अपनी बीवी से बोले,,,।

देखा भाग्यवान कह रहा था ना नसीब में होगा तो खुद चलकर आएगा और देख लो सेठ मनोहर लाल खुद चलकर आ गए,,,।

तुम बिल्कुल सही कह रहे थे आरती के पापा लेकिन क्या करूं एक मां हूं दूसरी मांओं की तरह मेरी भी तो इच्छा थी कि मेरी बेटी बड़े घर की बहू बनी इसीलिए मुझे रहा नहीं जा रहा था और बार-बार तुम्हें विवस कर रही थी उनसे मुलाकात करने के लिए।


चलो तेरा दुरुस्त आए,, अब तो कोई शिकायत नहीं है ना,,,,।


नहीं बिल्कुल भी नहीं,,,।


तो बस आप शादी की तैयारी करो क्योंकि मुझे नहीं लगता है कि ज्यादा दिन तक मनोहर लाल बिना बहू के रह पाएंगे उनका चेहरा बता रहा था कि कितने उतावले हैं चलते-चलते हमारी बेटी को अपने घर की बहू बनने के लिए,,,।



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अरे होंगे क्यों नहीं आखिरकार लाखों में एक बेटी जो है हमारी,,,,।
(अपने मां-बाप की बात सुनकर वहीं पर खड़ी आरती मां ही मन मुस्कुरा रही थी तो उसकी मां आरती की तरफ देखते हुए बोली)

अब तो खुश है ना,,,।

क्या मम्मी फिर से मैं तो तुम्हें पहले भी कह चुकी हूं कि मुझे शादी में कोई इंटरेस्ट नहीं है वह तो आप लोग हैं जो जल्दबाजी दिखा रहे हैं,,,।

अब तो तू लाख मना कर लेगी तो भी तेरी बात मानने वाले नहीं है आखिरकार इतना अच्छा रिश्ता सपनों में भी नहीं मिलता तु तो उसे घर जाकर राज करेगी राज,,,।



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मम्मी,,,,(इतना कहने के साथ ही शरमाते हुए वह वहां से लगभग भागते हुए अपने कमरे में पहुंच गई और बिस्तर पर पेट के बल एकदम से धम्म करके लेट गई,,, और गहरी गहरी सांस लेते हुए,,, अपने होने वाले पति के बारे में सोचने लगी और उस मुलाकात के बारे में सोचने लगी जो अनजाने में हुई थी आरती को तो याद भी नहीं था कि किसी रेस्टोरेंट में इस तरह से उसके होने वाले पति की मुलाकात हुई थी और नहीं कभी इस बारे में कभी सोची थी वह तो उसके पापा ही मनोहर लाल की बात सुनकर अपने घर पर बता रहे थे तो उसे एक याद आया था कि ऐसे ही उसकी भी मुलाकात किसी अनजान व्यक्ति से हुई थी इसी तरह से टकराई थी और तब से उसके मन में पक्के तौर पर यह बात बैठ गई थी कि होना हो राकेश वही है जो उसे पागलों की तरह ढूंढ रहा है,,,।




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अपने होने वाले पति के बारे में सोचते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी,,, एक अजीब सी मदहोशी उसे अपनी आंखों में ले रही थी जिसके चलते उसे अपनी दोनों टांगों के बीच एक अजीब सा रिसाव महसूस हो रहा था जिसे वह अच्छी तरह से समझ रही थी,,, क्योंकि उसे कुछ-कुछ एहसास होने लगा था कि जब भी वह इस तरह की मदहोशी अपने बदन में महसूस करती थी तब उसकी बुर से इस तरह से पानी झड़ने लगता था और अपने हाथों से अपनी उंगलियों से बाहर कई बार इस तरह का पानी निकल चुकी थी लेकिन ऐसा करने में उसे मजा तो आता था लेकिन उसके बाद बहुत ही ग्लानी महसूस होती थी,,, और वह ऐसा दोबारा बिल्कुल भी नहीं करती थी लेकिन आज अनजाने में ही अपने होने वाले पति के बारे में सोचते ही उसकी पेंटिं गीली होने लगी थी,,,, एक तरह से वह परेशान हो गई थी और वह धीरे से करवट लेते हुए पीठ के बाल हो गई और अपनी दोनों टांगों को फैला कर हल्की सी चपत सलवार के ऊपर से ही अपनी बुर पर लगाते हुए बोली,,,,।



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बस कर ज्यादा आंसू मत बहा,,, बस अब कुछ दिनों की बात है तेरा भी दुख दूर होने वाला है,,,,,,(और ऐसा कहकर मुस्कुराने लगी,,,,)

रात को खाने के टेबल पर मनोहर लाल को बिल्कुल भी अपने बेटे को बुलाना नहीं पड़ा हुआ खुद ही समय पर डाइनिंग टेबल पर पहुंच गया और एकदम उत्साहित होता हुआ अपने पिताजी से बोला,,,


क्या हुआ पिताजी बात बनी कि नहीं,,,,।


अरे बात कैसे नहीं बनेगी आखिरकार रिश्ता कौन लेकर गया था इनकार करने का तो सवाल ही नहीं उठता,,,।


क्या बात कर रहे हैं पिताजी,,,(एकदम उत्साहित होता हुआ राकेश बोला,,,)

तुझे लगता है कि मेरी बात का कोई इनकार कर सकता है,,,, और यहां तो बात थी बहू पसंद करने की भला इस शहर में कौन ऐसा होगा जो मेरा समधी ना बनना चाहता हो,,,,,,।



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बात तो बिल्कुल सही है पिताजी,,,,,, लेकिन फिर भी क्या हुआ वहां पर कुछ तो बताइए,,,।

अरे पहले खाना तो खाना शुरू कर,,,।

ठीक हैपिताजी,,,(और इतना कहने के साथ ही राकेश खाना खाने की शुरुआत मुस्कुराते हुए कर दिया यह देखकर मनोहर लाल को बहुत खुशी मिली और वह मुस्कुराते हुए बोले)


महीनों बाद तेरे चेहरे पर खुशी देख रहा हूं तो नहीं जानता तेरे चेहरे पर खुशी देखकर मुझे कितनी खुशी मिल रही है मैं तो टूट गया था अंदर ही अंदर तेरी हालत देखकर,,,, मैं यही सोचता था कि कैसे तेरे चेहरे पर खुशी लाऊं,,,,।


मुझे मालूम पिताजी मैंने आपको बहुत दुख दिया हूं,,,, लेकिन अब बिल्कुल भी आपको कोई भी शिकायत का मौका नहीं दूंगा,,,।

हां वह तो दिख ही रहा है,,,(मुंह में निवाला डालते हुए मनोहर लाल बोले ,,)

वैसे वहां पर क्या हुआ था कुछ बताइए,,,।


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अरे हुआ क्या था सीधे पहुंच गया अपने दोस्त रूपलाल के घर खुद ही उसके घर का गेट खोला और प्रवेश कर गया और वह तो मुझे देखकर एकदम से हक्का-बक्का रह गया,,,।

ऐसा क्यों,,,?


क्योंकि मैं उसके घर इतना आता जाता नहीं हूं बरसों गुजर गए उसके घर नहीं गया था इसलिए तो मुझे देखकर हुआ एकदम से हैरान हो गया था रूप लाल और उसकी बीवी दोनों के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी थी,,,, उन लोगों को ऐसे भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था और जब मैं बोला कि मुंह मीठा करवाइए पहली बार समधी अपने समधी के घर आया है,,, तब तो उन दोनों का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया उन दोनों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था,,,।

फिर क्या हुआ,,,?


फिर क्या जिस तरह की हालात दोनों की बनी हुई थी मुझे ही बताना पड़ा कि आखिरकार माजरा क्या है तब जाकर उन लोगों के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी जब उन लोगों के मैंने बताया कि उनकी लड़की को मैं अपने घर की बहू बनाना चाहता हूं तब उन दोनों का चेहरा एकदम से देखने लायक हो गया था उन दोनों की खुशी नहीं समा रही थी,,,,।


आआआआआआ,,, आरती से मिले पिताजी,,,,।


मिल भी और मुंह दिखाई के शगुन के तौर पर सोने का हार भी देकर आया हूं,,,।

ओहहहह पिताजी आप कितने अच्छे हैं,,,, आपको कैसी लगी आरती,,,,,।


वैसे मुझे तो कोई खास नहीं लगी तू ही पता नहीं पहली मुलाकात में क्या देखकर आ गया था,,,,।

(इतना सुनते ही राकेश का चेहरा एकदम से उतर गया क्योंकि उसे पूरा विश्वास था कि जिस लड़की को उसने देखा था वह परी जैसी खूबसूरत थी कहीं ऐसा तो नहीं की कहानी पिताजी किसी और के घर चले गए हैं राकेश के चेहरे पर तो उदासी के भाव नजर आने लगे और मनोहर लाल अपने बेटे की हालत को देखकर जोर से हंसते हुए बोले)


डर गया ना तु,,,

(इतना सुनकर राकेश कुछ बोला नहीं तो मनोहर लाल अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोले,,)


तू चिंता मत कर मुझे तेरी पसंद पर पूरा भरोसा था और आरती मेरे भरोसे पर एकदम खरी उतरी है एकदम स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा लगती है मेरी बहू,,,,।

ओहहहह पिताजी,,,,(इतना कहने के साथ ही राकेश अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और सीधा अपने पिताजी के गले लग गया उसके पिताजी भी उसे बाहों में भरते हुए प्यार करने लगे और बोले)


तू ही तो एक सहारा है मेरे जीने का अगर तेरी भी खुशी पूरी नहीं कर पाऊं तो इस जीवन का कोई मतलब नहीं है तु बिल्कुल भी चिंता मत कर चल अब जल्दी से खाना खत्म कर,,,,।
(इतना सुनकर राकेश वापस अपनी जगह पर जाकर बैठ गया और खाना खाने लगा लेकिन खाना खाते-खाते बोला)

अब आगे क्या करना है,,,।

मतलब,,,(राकेश की तरफ देखते हुए मनोहर लाल बोले ,)


मतलब की शादी,,,,।


तेरा उतावलापन में समझ रहा हूं लेकिन पहले सगाई तो हो जान दे मैं सोच रहा था कि इसी रविवार को तेरी सगाई कर दूं और एक महीने बाद शादी,,,,,।


एक महीना क्यों पिताजी,,,,।


अरे मेरे लाडले,,,,(हंसते हुए) अरे थोड़ा तो समय दे लड़की वालों को उनको अपनी तरफ से भी तो थोड़ी तैयारी करनी होगी उनके भी तो कुछ सपने होंगे अपनी बेटी की शादी को लेकर तू इतनी जल्दबाजी करेगा तो इतनी जल्दी वह लोग प्रबंध नहीं कर पाएंगे तो क्या सोचेंगे वह लोग उनकी भी तो एक ही लड़की है,,,.

बात तो ठीक कह रहे हो पिताजी,,,,।


तो बस थोड़ा सब्र‌कर सब्र का फल मीठा ही होता है,,,।

(इतना कहकर मनोहर लाल खाना खाने लगे और राकेश तो सपनो की दुनिया में खोने लगा,,,, शेठ मनोहर लाल फोन करके रूपलाल को सगाई के बारे में सारी जानकारी देती है और रविवार का दिन तय कर दिया गया,,,,, सेठ मनोहर लाल उसे दिन छोटी सी पार्टी रखे थे जिसमें कुछ लोग ही जानने पहचानने वाले आए हुए थे रूपलाल भी अपने परिवार के साथ कुछ मेहमान को लेकर आए थे जो उनके रिश्तेदार ही थे,,,,।


राकेश तो आरती को देखा तो देखा ही रह गया गुलाबी साड़ी में स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा की तरह दिख रही थी आरती वाकई में बहुत खूबसूरत थी,,,, कब तक राकेश ने ठीक तरह से आरती की मां को नहीं देखा था,,,।

आखिरकार सगाई की रस्म पूरी करने के लिए आरती आरती की मां और उसके पिताजी आगे आए और मनोहर लाल अपने बेटे को लेकर आगे आए शेठ मनोहर लाल अपनी कुर्ते की जेब में से एक बेस कीमती हीरे की अंगूठी जोक डिब्बे में बंद थी उसे खोलकर उसे अंगूठी को अपने बेटे की तरफ आगे बढ़ा दिए और ऐसा ही रूपलाल भी एक खूबसूरत अंगूठी जो की काफी महंगी थी उसे भी अपनी बेटी के सामने कर दिए आरती और राकेश अंगूठी लेकर एक दूसरे को अंगूठी पहनने लगे राकेश तिरछी नजरों से आरती की तरफ देख ले रहा था जो कि अाधे घूंघट में थी और उसके लाल-लाल होठ और उसकी टोढी एकदम साफ दिख रही थी और वह शर्मा रही थी राकेश तो खुशी से फुला नहीं समा रहा था।


उसका मन कर रहा था कि इसी समय अपने होने वाली बीवी को अपनी बाहों में ले ले और उसके लाल लाल होठो पर चुंबन जड़ दे,,,, लेकिन मर्यादा में बना हुआ राकेश ऐसा नहीं कर पाया और ना ही ऐसा करने की हिम्मत उसमें थी आरती शर्मा के मारे नजर उठाकर अपने होने वाले पति को ठीक से देख भी नहीं पा रही थी लेकिन पास मे हीं खड़ी आरती की मां जो एक तरफ पूरी तरह से खुश नजर आ रही थी लेकिन दूसरी तरफ अपने होने वाले दामाद की नजरों से बचना भी चाहती थी क्योंकि राकेश तो नहीं लेकिन रूपलाल की बीवी अच्छी तरह से जानती थी राकेश को क्योंकि राकेश के साथ उसकी कुछ इस तरह से मुलाकात हुई थी जो की शर्मिंदगी से भर देने वाली थी,,,,।


देखते ही देखते होने वाले वर वधु एक दूसरे को अंगूठी पहनकर सगाई की रस्म को पूरी कर चुके थे और तालिया की गड़गड़ाहट से पूरा माहौल खुशनुमा बन चुका था लेकिन तभी आरती के पास में खड़ी औरत के चेहरे पर क्यों नहीं लेकिन उसकी छातियों पर राकेश की नजर पहुंच चुकी थी क्योंकि वह जालीदार साड़ी पहनी हुई थी और जालीदार साड़ी में से उसकी भारी भरकम छतिया बीच की गहरी लकीर लिए हुए एकदम साफ नजर आ रही थी राकेश इतना तो समझ ही गया था कि आरती के पास में खड़ी औरत उसकी होने वाली सास थी लेकिन सास की चूचियां देखकर उसकी हालत खराब हो गई थी,,,। अपनी होने वाली सास की चूचियों को देखकर राकेश कुछ और समझ पाता इससे पहले ही सेठ मनोहर लाल बोले,,,,।


बेटा राकेश अपनी सास और ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद ले लो ,,,।

(इतना सुनकर राकेश को पूरा यकीन हो गया था कि पास में खड़ी औरत उसकी सांस है और वह मुस्कुराते हुए तुरंत पैरों में झुक गया और आशीर्वाद लेने लगा आरती की मां भी उसके सर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद देने लगी और ऐसा ही वह आरती के पिताजी के साथ भी किया और वह भी आशीर्वाद देने लगे और रूपलाल अपनी बेटी को भी अपने होने वाले पति और अपने ससुर का आशीर्वाद देने के लिए बोले तो आरती भी झुक कर आशीर्वाद लेने लगी राकेश भी अपने होने वाली पत्नी के सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और सेठ मनोहर काफी अपने होने वाली बहू को आशीर्वाद देकर अपने आप को धन्य महसूस करने लगे,,,, लेकिन तभी राकेश की नजर अपने होने वाली सास पर गई तो उनका चेहरा देखकर राकेश के चेहरे की हवाई उड़ने लगी,,,।


राकेश अपने मन में ही कुछ याद करने लगा वह उसे चेहरे को ढूंढने लगा उसे याद करने लगा क्योंकि उसे पूरा यकीन हो गया था कि उसने उसे चेहरे को पहले भी कहीं देख चुका है लेकिन उसे याद नहीं आ रहा था ज्यादा जोर देने पर उसे तुरंत याद आ गया कि वह उसे खूबसूरत चेहरे को कहां देखा था कपड़े की दुकान में कपड़े बदलते समय जब उसने अनजाने में ही उस दरवाजे को खोल दिया था जिसमें वही औरत कपड़े बदल रही थी और उसका बहुत कुछ दिख रहा था यहां सबके राकेश ने उसकी नंगी गांड को भी देख लिया था और यह पहला मौका था जब उसने अनजाने में किसी औरत की नंगी गांड के दर्शन किए थे और उसके दिलों दिमाग पर वह भारी भरकम गांड किसी चित्र की तरह छप गई थी और दूसरी बार उसे तुरंत याद आ गया कि उसने दोबारा उसी औरत को कहां देखा था,,,।

उसे याद आ गया कि इसी तरह की पार्टी में उसे औरत को अपने ही कमरे के अपने ही बाथरूम में पेशाब करते हुए देखा था जब वह जल्दबाजी करते हुए बिना बाथरूम का दरवाजा बंद किए हुए अपनी साड़ी उठाकर पेशाब करने के लिए बैठ गई थी यह सब याद करके पल भर में ही उसके पेंट में तंबू बनने लगा था जिसे वह बड़ी मुश्किल से छुपाया हुआ था,,,

सगाई की रस्में पूरी हो चुकी थी मेहमान लोग खाना खाना शुरू कर दिए थे मनोहर लाल ने अपने खास रिश्तेदार के लिए अलग व्यवस्था पास में ही करके रखे थे जहां पर सब बैठकर खाना खाने वाले थे और वहीं पर मनोहर लाल अपने होने वाले समधी और समधिन के साथ-साथ अपनी बहू और अपने बेटे के साथ-साथ खुद के लिए भोजन की व्यवस्था करके रखे थे,,,,, मेहमान खा चुके थे उसके बाद मनोहर लाल और उनके खास लोग बैठकर खाना खा रहे थे आरती भी अपनी मां के साथ एक तरफ बैठी थी लेकिन अपनी ससुर और अपने होने वाले पति के सामने उसे शर्म महसूस हो रही थी उसकी झिझक मनोहर लाल समझ चुके थे इसलिए रूपलाल की बीवी से बोले,,,।

भाभी जी हमारी बहू थोड़ा संकोच कर रही हूं इसलिए आप बहु को लेकर दूसरी तरफ बैठ जाए ताकि वह भी खाना खा ले,,,।


जी भाई साहब,,,( रुपलाल की बीवी भी अच्छी तरह से समझ रही थी और वह अभी राकेश की नजरों से दूर होना चाहती थी इसलिए भाभी दूसरी तरफ के टेबल पर अपनी बेटी को लेकर चले गए वहीं पर बैठकर दोनों खाना खाने लगे राकेश बिल्कुल भी जताना नहीं चाहता था कि वह उस औरत को पहचान लिया है जो उसके सामने और देखना अवस्था में दो बार आ चुकी थी इसलिए अनजान बनने का नाटक करने लगा और वह आरती की मां की तरफ देखना बंद कर दिया था।

लेकिन खाना खाते हुए वह अपने मन में यही सोच रहा था कि यह कैसा अद्भुत संयोग है कि वह अनजाने में ही अपने होने वाली सांस के बारे में सोच सोच कर कई बार मुठ मार चुका है और आज इस औरत की लड़की उसकी होने वाली बीवी बन चुकी थी जो कि कुछ ही दिनों बाद उसकी बीवी बन जाएगी इस बारे में सोच और उसके बाद में अजीब सी हलचल होने लगी थी क्योंकि अपने मन में सोचने लगा था कि जब मां इतनी कड़क है तो बेटी कैसी होगी,,,।


कुछ ही देर में सारे मेहमान जा चुके थे और राकेश भी अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रहा था तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और फिर मनोहर लाल अंदर आने की इजाजत मांगने लगी दरवाजा खुला हुआ था इसलिए राकेश बोला,,,।


क्या पिताजी अब मेरे कमरे में आने के लिए आपकी इजाजत मांगनी होगी,,,,।


अब तक तो नहीं लेकिन फिर भी प्रैक्टिस कर रहा था क्योंकि अब तो बहू आने वाली है तो इस तरह से कमरे में दाखिल तो नहीं हो सकता ना,,,,(कमरे में दाखिल होते हुए शेठ मनोहर लाल मुस्कुराते हुए बोले,,,)


क्या पिताजी आप भी,,, ।



अच्छा यह बता आरती कैसी लगी की तो पहले एक झलक दिखा था लेकिन आज तो देखा ही होगा ना,,,।

कहां पिताजी ठीक से कहां देख पाया घूंघट में थी ना,,,।

हां वो तो है लेकिन फिर भी लाखों में एक है मेरी बहू,,,,,,, अब एक महीने बाद की तारीख तय कर देता हूं शादी के लिए,,,।


जैसा आप ठीक समझे पिताजी,,,,।


चल अब सो जा,,,, मैं भी जाकर सो जाता हूं आखिरकार शादी की तैयारी जो करना है,,,।
(ऐसा कहते हुए शेठ मनोहर लाल अपनी जगह से उठकर खड़े हो गए और कमरे से बाहर जाने लगे कैमरे से बाहर जाते-जाते गुड नाइट बोलते हुए चलेंगे और राकेश चादर तानकर अपने होने वाली बीवी के बारे में सोता हुआ कब नींद की आगोश में चला गया उसे पता ही नहीं चला,,,,।)
Shaandar Jabardast Romanchak Update 👌 💓 🔥
 

Ajju Landwalia

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रूपलाल के साथ-साथ उनकी बीवी रमा देवी बहुत खुश थी और साथ में उनकी बेटी आरती भी,,, आरती को पहले ही विश्वास हो चुका था कि उनका बेटा उसे ही ढूंढ रहा है लेकिन फिर भी बहुत समय बीत जाने की वजह से उसके मन में भी थोड़ी शंका होने लग थी लेकिन आज सारी शंकाएं कुशंकाएं धरी की धरी रह गई थी,,, और इन सब का समाधान खुद सेठ मनोहर लाल ने हीं आकर कर दिया था,,, जितना खुश रूप लाल का परिवार था उससे कई ज्यादा खुश मनोहर लाल थे क्योंकि कुछ महीनो से जिस तरह का नाटक उनके घर रचा जा रहा था उसे देखते हुए उन्होंने उम्मीद ही छोड़ दी थी कभी वह बहू का मुंह देख पाएंगे,,,।




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रूपलाल खुश होते हुए अपनी बीवी से बोले,,,।

देखा भाग्यवान कह रहा था ना नसीब में होगा तो खुद चलकर आएगा और देख लो सेठ मनोहर लाल खुद चलकर आ गए,,,।

तुम बिल्कुल सही कह रहे थे आरती के पापा लेकिन क्या करूं एक मां हूं दूसरी मांओं की तरह मेरी भी तो इच्छा थी कि मेरी बेटी बड़े घर की बहू बनी इसीलिए मुझे रहा नहीं जा रहा था और बार-बार तुम्हें विवस कर रही थी उनसे मुलाकात करने के लिए।


चलो तेरा दुरुस्त आए,, अब तो कोई शिकायत नहीं है ना,,,,।


नहीं बिल्कुल भी नहीं,,,।


तो बस आप शादी की तैयारी करो क्योंकि मुझे नहीं लगता है कि ज्यादा दिन तक मनोहर लाल बिना बहू के रह पाएंगे उनका चेहरा बता रहा था कि कितने उतावले हैं चलते-चलते हमारी बेटी को अपने घर की बहू बनने के लिए,,,।



Rakesh apni saas k sath

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अरे होंगे क्यों नहीं आखिरकार लाखों में एक बेटी जो है हमारी,,,,।
(अपने मां-बाप की बात सुनकर वहीं पर खड़ी आरती मां ही मन मुस्कुरा रही थी तो उसकी मां आरती की तरफ देखते हुए बोली)

अब तो खुश है ना,,,।

क्या मम्मी फिर से मैं तो तुम्हें पहले भी कह चुकी हूं कि मुझे शादी में कोई इंटरेस्ट नहीं है वह तो आप लोग हैं जो जल्दबाजी दिखा रहे हैं,,,।

अब तो तू लाख मना कर लेगी तो भी तेरी बात मानने वाले नहीं है आखिरकार इतना अच्छा रिश्ता सपनों में भी नहीं मिलता तु तो उसे घर जाकर राज करेगी राज,,,।



Rakesh apni saas k sath

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मम्मी,,,,(इतना कहने के साथ ही शरमाते हुए वह वहां से लगभग भागते हुए अपने कमरे में पहुंच गई और बिस्तर पर पेट के बल एकदम से धम्म करके लेट गई,,, और गहरी गहरी सांस लेते हुए,,, अपने होने वाले पति के बारे में सोचने लगी और उस मुलाकात के बारे में सोचने लगी जो अनजाने में हुई थी आरती को तो याद भी नहीं था कि किसी रेस्टोरेंट में इस तरह से उसके होने वाले पति की मुलाकात हुई थी और नहीं कभी इस बारे में कभी सोची थी वह तो उसके पापा ही मनोहर लाल की बात सुनकर अपने घर पर बता रहे थे तो उसे एक याद आया था कि ऐसे ही उसकी भी मुलाकात किसी अनजान व्यक्ति से हुई थी इसी तरह से टकराई थी और तब से उसके मन में पक्के तौर पर यह बात बैठ गई थी कि होना हो राकेश वही है जो उसे पागलों की तरह ढूंढ रहा है,,,।




Rakesh or uski saas

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अपने होने वाले पति के बारे में सोचते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी,,, एक अजीब सी मदहोशी उसे अपनी आंखों में ले रही थी जिसके चलते उसे अपनी दोनों टांगों के बीच एक अजीब सा रिसाव महसूस हो रहा था जिसे वह अच्छी तरह से समझ रही थी,,, क्योंकि उसे कुछ-कुछ एहसास होने लगा था कि जब भी वह इस तरह की मदहोशी अपने बदन में महसूस करती थी तब उसकी बुर से इस तरह से पानी झड़ने लगता था और अपने हाथों से अपनी उंगलियों से बाहर कई बार इस तरह का पानी निकल चुकी थी लेकिन ऐसा करने में उसे मजा तो आता था लेकिन उसके बाद बहुत ही ग्लानी महसूस होती थी,,, और वह ऐसा दोबारा बिल्कुल भी नहीं करती थी लेकिन आज अनजाने में ही अपने होने वाले पति के बारे में सोचते ही उसकी पेंटिं गीली होने लगी थी,,,, एक तरह से वह परेशान हो गई थी और वह धीरे से करवट लेते हुए पीठ के बाल हो गई और अपनी दोनों टांगों को फैला कर हल्की सी चपत सलवार के ऊपर से ही अपनी बुर पर लगाते हुए बोली,,,,।



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बस कर ज्यादा आंसू मत बहा,,, बस अब कुछ दिनों की बात है तेरा भी दुख दूर होने वाला है,,,,,,(और ऐसा कहकर मुस्कुराने लगी,,,,)

रात को खाने के टेबल पर मनोहर लाल को बिल्कुल भी अपने बेटे को बुलाना नहीं पड़ा हुआ खुद ही समय पर डाइनिंग टेबल पर पहुंच गया और एकदम उत्साहित होता हुआ अपने पिताजी से बोला,,,


क्या हुआ पिताजी बात बनी कि नहीं,,,,।


अरे बात कैसे नहीं बनेगी आखिरकार रिश्ता कौन लेकर गया था इनकार करने का तो सवाल ही नहीं उठता,,,।


क्या बात कर रहे हैं पिताजी,,,(एकदम उत्साहित होता हुआ राकेश बोला,,,)

तुझे लगता है कि मेरी बात का कोई इनकार कर सकता है,,,, और यहां तो बात थी बहू पसंद करने की भला इस शहर में कौन ऐसा होगा जो मेरा समधी ना बनना चाहता हो,,,,,,।



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बात तो बिल्कुल सही है पिताजी,,,,,, लेकिन फिर भी क्या हुआ वहां पर कुछ तो बताइए,,,।

अरे पहले खाना तो खाना शुरू कर,,,।

ठीक हैपिताजी,,,(और इतना कहने के साथ ही राकेश खाना खाने की शुरुआत मुस्कुराते हुए कर दिया यह देखकर मनोहर लाल को बहुत खुशी मिली और वह मुस्कुराते हुए बोले)


महीनों बाद तेरे चेहरे पर खुशी देख रहा हूं तो नहीं जानता तेरे चेहरे पर खुशी देखकर मुझे कितनी खुशी मिल रही है मैं तो टूट गया था अंदर ही अंदर तेरी हालत देखकर,,,, मैं यही सोचता था कि कैसे तेरे चेहरे पर खुशी लाऊं,,,,।


मुझे मालूम पिताजी मैंने आपको बहुत दुख दिया हूं,,,, लेकिन अब बिल्कुल भी आपको कोई भी शिकायत का मौका नहीं दूंगा,,,।

हां वह तो दिख ही रहा है,,,(मुंह में निवाला डालते हुए मनोहर लाल बोले ,,)

वैसे वहां पर क्या हुआ था कुछ बताइए,,,।


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अरे हुआ क्या था सीधे पहुंच गया अपने दोस्त रूपलाल के घर खुद ही उसके घर का गेट खोला और प्रवेश कर गया और वह तो मुझे देखकर एकदम से हक्का-बक्का रह गया,,,।

ऐसा क्यों,,,?


क्योंकि मैं उसके घर इतना आता जाता नहीं हूं बरसों गुजर गए उसके घर नहीं गया था इसलिए तो मुझे देखकर हुआ एकदम से हैरान हो गया था रूप लाल और उसकी बीवी दोनों के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी थी,,,, उन लोगों को ऐसे भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था और जब मैं बोला कि मुंह मीठा करवाइए पहली बार समधी अपने समधी के घर आया है,,, तब तो उन दोनों का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया उन दोनों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था,,,।

फिर क्या हुआ,,,?


फिर क्या जिस तरह की हालात दोनों की बनी हुई थी मुझे ही बताना पड़ा कि आखिरकार माजरा क्या है तब जाकर उन लोगों के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी जब उन लोगों के मैंने बताया कि उनकी लड़की को मैं अपने घर की बहू बनाना चाहता हूं तब उन दोनों का चेहरा एकदम से देखने लायक हो गया था उन दोनों की खुशी नहीं समा रही थी,,,,।


आआआआआआ,,, आरती से मिले पिताजी,,,,।


मिल भी और मुंह दिखाई के शगुन के तौर पर सोने का हार भी देकर आया हूं,,,।

ओहहहह पिताजी आप कितने अच्छे हैं,,,, आपको कैसी लगी आरती,,,,,।


वैसे मुझे तो कोई खास नहीं लगी तू ही पता नहीं पहली मुलाकात में क्या देखकर आ गया था,,,,।

(इतना सुनते ही राकेश का चेहरा एकदम से उतर गया क्योंकि उसे पूरा विश्वास था कि जिस लड़की को उसने देखा था वह परी जैसी खूबसूरत थी कहीं ऐसा तो नहीं की कहानी पिताजी किसी और के घर चले गए हैं राकेश के चेहरे पर तो उदासी के भाव नजर आने लगे और मनोहर लाल अपने बेटे की हालत को देखकर जोर से हंसते हुए बोले)


डर गया ना तु,,,

(इतना सुनकर राकेश कुछ बोला नहीं तो मनोहर लाल अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोले,,)


तू चिंता मत कर मुझे तेरी पसंद पर पूरा भरोसा था और आरती मेरे भरोसे पर एकदम खरी उतरी है एकदम स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा लगती है मेरी बहू,,,,।

ओहहहह पिताजी,,,,(इतना कहने के साथ ही राकेश अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और सीधा अपने पिताजी के गले लग गया उसके पिताजी भी उसे बाहों में भरते हुए प्यार करने लगे और बोले)


तू ही तो एक सहारा है मेरे जीने का अगर तेरी भी खुशी पूरी नहीं कर पाऊं तो इस जीवन का कोई मतलब नहीं है तु बिल्कुल भी चिंता मत कर चल अब जल्दी से खाना खत्म कर,,,,।
(इतना सुनकर राकेश वापस अपनी जगह पर जाकर बैठ गया और खाना खाने लगा लेकिन खाना खाते-खाते बोला)

अब आगे क्या करना है,,,।

मतलब,,,(राकेश की तरफ देखते हुए मनोहर लाल बोले ,)


मतलब की शादी,,,,।


तेरा उतावलापन में समझ रहा हूं लेकिन पहले सगाई तो हो जान दे मैं सोच रहा था कि इसी रविवार को तेरी सगाई कर दूं और एक महीने बाद शादी,,,,,।


एक महीना क्यों पिताजी,,,,।


अरे मेरे लाडले,,,,(हंसते हुए) अरे थोड़ा तो समय दे लड़की वालों को उनको अपनी तरफ से भी तो थोड़ी तैयारी करनी होगी उनके भी तो कुछ सपने होंगे अपनी बेटी की शादी को लेकर तू इतनी जल्दबाजी करेगा तो इतनी जल्दी वह लोग प्रबंध नहीं कर पाएंगे तो क्या सोचेंगे वह लोग उनकी भी तो एक ही लड़की है,,,.

बात तो ठीक कह रहे हो पिताजी,,,,।


तो बस थोड़ा सब्र‌कर सब्र का फल मीठा ही होता है,,,।

(इतना कहकर मनोहर लाल खाना खाने लगे और राकेश तो सपनो की दुनिया में खोने लगा,,,, शेठ मनोहर लाल फोन करके रूपलाल को सगाई के बारे में सारी जानकारी देती है और रविवार का दिन तय कर दिया गया,,,,, सेठ मनोहर लाल उसे दिन छोटी सी पार्टी रखे थे जिसमें कुछ लोग ही जानने पहचानने वाले आए हुए थे रूपलाल भी अपने परिवार के साथ कुछ मेहमान को लेकर आए थे जो उनके रिश्तेदार ही थे,,,,।


राकेश तो आरती को देखा तो देखा ही रह गया गुलाबी साड़ी में स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा की तरह दिख रही थी आरती वाकई में बहुत खूबसूरत थी,,,, कब तक राकेश ने ठीक तरह से आरती की मां को नहीं देखा था,,,।

आखिरकार सगाई की रस्म पूरी करने के लिए आरती आरती की मां और उसके पिताजी आगे आए और मनोहर लाल अपने बेटे को लेकर आगे आए शेठ मनोहर लाल अपनी कुर्ते की जेब में से एक बेस कीमती हीरे की अंगूठी जोक डिब्बे में बंद थी उसे खोलकर उसे अंगूठी को अपने बेटे की तरफ आगे बढ़ा दिए और ऐसा ही रूपलाल भी एक खूबसूरत अंगूठी जो की काफी महंगी थी उसे भी अपनी बेटी के सामने कर दिए आरती और राकेश अंगूठी लेकर एक दूसरे को अंगूठी पहनने लगे राकेश तिरछी नजरों से आरती की तरफ देख ले रहा था जो कि अाधे घूंघट में थी और उसके लाल-लाल होठ और उसकी टोढी एकदम साफ दिख रही थी और वह शर्मा रही थी राकेश तो खुशी से फुला नहीं समा रहा था।


उसका मन कर रहा था कि इसी समय अपने होने वाली बीवी को अपनी बाहों में ले ले और उसके लाल लाल होठो पर चुंबन जड़ दे,,,, लेकिन मर्यादा में बना हुआ राकेश ऐसा नहीं कर पाया और ना ही ऐसा करने की हिम्मत उसमें थी आरती शर्मा के मारे नजर उठाकर अपने होने वाले पति को ठीक से देख भी नहीं पा रही थी लेकिन पास मे हीं खड़ी आरती की मां जो एक तरफ पूरी तरह से खुश नजर आ रही थी लेकिन दूसरी तरफ अपने होने वाले दामाद की नजरों से बचना भी चाहती थी क्योंकि राकेश तो नहीं लेकिन रूपलाल की बीवी अच्छी तरह से जानती थी राकेश को क्योंकि राकेश के साथ उसकी कुछ इस तरह से मुलाकात हुई थी जो की शर्मिंदगी से भर देने वाली थी,,,,।


देखते ही देखते होने वाले वर वधु एक दूसरे को अंगूठी पहनकर सगाई की रस्म को पूरी कर चुके थे और तालिया की गड़गड़ाहट से पूरा माहौल खुशनुमा बन चुका था लेकिन तभी आरती के पास में खड़ी औरत के चेहरे पर क्यों नहीं लेकिन उसकी छातियों पर राकेश की नजर पहुंच चुकी थी क्योंकि वह जालीदार साड़ी पहनी हुई थी और जालीदार साड़ी में से उसकी भारी भरकम छतिया बीच की गहरी लकीर लिए हुए एकदम साफ नजर आ रही थी राकेश इतना तो समझ ही गया था कि आरती के पास में खड़ी औरत उसकी होने वाली सास थी लेकिन सास की चूचियां देखकर उसकी हालत खराब हो गई थी,,,। अपनी होने वाली सास की चूचियों को देखकर राकेश कुछ और समझ पाता इससे पहले ही सेठ मनोहर लाल बोले,,,,।


बेटा राकेश अपनी सास और ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद ले लो ,,,।

(इतना सुनकर राकेश को पूरा यकीन हो गया था कि पास में खड़ी औरत उसकी सांस है और वह मुस्कुराते हुए तुरंत पैरों में झुक गया और आशीर्वाद लेने लगा आरती की मां भी उसके सर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद देने लगी और ऐसा ही वह आरती के पिताजी के साथ भी किया और वह भी आशीर्वाद देने लगे और रूपलाल अपनी बेटी को भी अपने होने वाले पति और अपने ससुर का आशीर्वाद देने के लिए बोले तो आरती भी झुक कर आशीर्वाद लेने लगी राकेश भी अपने होने वाली पत्नी के सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और सेठ मनोहर काफी अपने होने वाली बहू को आशीर्वाद देकर अपने आप को धन्य महसूस करने लगे,,,, लेकिन तभी राकेश की नजर अपने होने वाली सास पर गई तो उनका चेहरा देखकर राकेश के चेहरे की हवाई उड़ने लगी,,,।


राकेश अपने मन में ही कुछ याद करने लगा वह उसे चेहरे को ढूंढने लगा उसे याद करने लगा क्योंकि उसे पूरा यकीन हो गया था कि उसने उसे चेहरे को पहले भी कहीं देख चुका है लेकिन उसे याद नहीं आ रहा था ज्यादा जोर देने पर उसे तुरंत याद आ गया कि वह उसे खूबसूरत चेहरे को कहां देखा था कपड़े की दुकान में कपड़े बदलते समय जब उसने अनजाने में ही उस दरवाजे को खोल दिया था जिसमें वही औरत कपड़े बदल रही थी और उसका बहुत कुछ दिख रहा था यहां सबके राकेश ने उसकी नंगी गांड को भी देख लिया था और यह पहला मौका था जब उसने अनजाने में किसी औरत की नंगी गांड के दर्शन किए थे और उसके दिलों दिमाग पर वह भारी भरकम गांड किसी चित्र की तरह छप गई थी और दूसरी बार उसे तुरंत याद आ गया कि उसने दोबारा उसी औरत को कहां देखा था,,,।

उसे याद आ गया कि इसी तरह की पार्टी में उसे औरत को अपने ही कमरे के अपने ही बाथरूम में पेशाब करते हुए देखा था जब वह जल्दबाजी करते हुए बिना बाथरूम का दरवाजा बंद किए हुए अपनी साड़ी उठाकर पेशाब करने के लिए बैठ गई थी यह सब याद करके पल भर में ही उसके पेंट में तंबू बनने लगा था जिसे वह बड़ी मुश्किल से छुपाया हुआ था,,,

सगाई की रस्में पूरी हो चुकी थी मेहमान लोग खाना खाना शुरू कर दिए थे मनोहर लाल ने अपने खास रिश्तेदार के लिए अलग व्यवस्था पास में ही करके रखे थे जहां पर सब बैठकर खाना खाने वाले थे और वहीं पर मनोहर लाल अपने होने वाले समधी और समधिन के साथ-साथ अपनी बहू और अपने बेटे के साथ-साथ खुद के लिए भोजन की व्यवस्था करके रखे थे,,,,, मेहमान खा चुके थे उसके बाद मनोहर लाल और उनके खास लोग बैठकर खाना खा रहे थे आरती भी अपनी मां के साथ एक तरफ बैठी थी लेकिन अपनी ससुर और अपने होने वाले पति के सामने उसे शर्म महसूस हो रही थी उसकी झिझक मनोहर लाल समझ चुके थे इसलिए रूपलाल की बीवी से बोले,,,।

भाभी जी हमारी बहू थोड़ा संकोच कर रही हूं इसलिए आप बहु को लेकर दूसरी तरफ बैठ जाए ताकि वह भी खाना खा ले,,,।


जी भाई साहब,,,( रुपलाल की बीवी भी अच्छी तरह से समझ रही थी और वह अभी राकेश की नजरों से दूर होना चाहती थी इसलिए भाभी दूसरी तरफ के टेबल पर अपनी बेटी को लेकर चले गए वहीं पर बैठकर दोनों खाना खाने लगे राकेश बिल्कुल भी जताना नहीं चाहता था कि वह उस औरत को पहचान लिया है जो उसके सामने और देखना अवस्था में दो बार आ चुकी थी इसलिए अनजान बनने का नाटक करने लगा और वह आरती की मां की तरफ देखना बंद कर दिया था।

लेकिन खाना खाते हुए वह अपने मन में यही सोच रहा था कि यह कैसा अद्भुत संयोग है कि वह अनजाने में ही अपने होने वाली सांस के बारे में सोच सोच कर कई बार मुठ मार चुका है और आज इस औरत की लड़की उसकी होने वाली बीवी बन चुकी थी जो कि कुछ ही दिनों बाद उसकी बीवी बन जाएगी इस बारे में सोच और उसके बाद में अजीब सी हलचल होने लगी थी क्योंकि अपने मन में सोचने लगा था कि जब मां इतनी कड़क है तो बेटी कैसी होगी,,,।


कुछ ही देर में सारे मेहमान जा चुके थे और राकेश भी अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रहा था तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और फिर मनोहर लाल अंदर आने की इजाजत मांगने लगी दरवाजा खुला हुआ था इसलिए राकेश बोला,,,।


क्या पिताजी अब मेरे कमरे में आने के लिए आपकी इजाजत मांगनी होगी,,,,।


अब तक तो नहीं लेकिन फिर भी प्रैक्टिस कर रहा था क्योंकि अब तो बहू आने वाली है तो इस तरह से कमरे में दाखिल तो नहीं हो सकता ना,,,,(कमरे में दाखिल होते हुए शेठ मनोहर लाल मुस्कुराते हुए बोले,,,)


क्या पिताजी आप भी,,, ।



अच्छा यह बता आरती कैसी लगी की तो पहले एक झलक दिखा था लेकिन आज तो देखा ही होगा ना,,,।

कहां पिताजी ठीक से कहां देख पाया घूंघट में थी ना,,,।

हां वो तो है लेकिन फिर भी लाखों में एक है मेरी बहू,,,,,,, अब एक महीने बाद की तारीख तय कर देता हूं शादी के लिए,,,।


जैसा आप ठीक समझे पिताजी,,,,।


चल अब सो जा,,,, मैं भी जाकर सो जाता हूं आखिरकार शादी की तैयारी जो करना है,,,।
(ऐसा कहते हुए शेठ मनोहर लाल अपनी जगह से उठकर खड़े हो गए और कमरे से बाहर जाने लगे कैमरे से बाहर जाते-जाते गुड नाइट बोलते हुए चलेंगे और राकेश चादर तानकर अपने होने वाली बीवी के बारे में सोता हुआ कब नींद की आगोश में चला गया उसे पता ही नहीं चला,,,,।)

Bahut hi gazab ki update he rohnny4545 Bhai,

Nice and Beautiful.................

Ab to rakesh ka aamna samna apni saas se hota hi rahega.............

Aur ho sakta he isi aamne samne me dono ke beech ilu ilu ho jaye......

Keep rocking Bro
 
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