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Adultery बाड़ के उस पार

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bekalol846

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Update 13

कई महीनों की चालबाज़ी और इंतज़ार के बाद, वो दिन आ ही गया। सुबह की ठंडी हवा में गीली घास की हल्की-सी महक थी, जब नेहा अपनी Innova की डिग्गी में सामान लाद रही थी। पास ही, अनन्या अपनी सीट पर मस्ती में बड़बड़ा रही थी, उसकी मासूम भूरी आँखें आसपास की दुनिया को उत्सुकता से देख रही थीं।
नेहा रुकी, गहरी साँस लेकर अपने धड़कते दिल को थामने की कोशिश की। अपने गुप्त यार और बच्ची के साथ गोवा की ट्रिप का रोमांच उसे कई सारी फीलिंग्स से भर रहा था—उत्साह, थोड़ा-सा गिल्ट, और वो गंदा वाला जोश जो इस नॉटी प्लान से आता था। वो झुकी, अनन्या को गोद में उठाकर प्यार से पीछे की सीट पर बिठाया। “तैयार हो, मेरी गुड़िया, अपने बड़े वाले ट्रिप के लिए?” उसने नरम आवाज़ में कहा, बच्ची के माथे पर प्यार भरा चुम्मा देते हुए। अनन्या ने खुशी से गुनगुनाया, उसकी छोटी-छोटी हथेलियाँ हवा में खेलने लगीं।

कदमों की आहट ने उस शांत पल को तोड़ा। नेहा मुड़ी, उसकी साँस हल्की-सी रुक गई जब उसने वर्मा जी को ड्राइववे में आते देखा, सामान का बैग लिए। उनकी वो हमेशा वाली शरारती मुस्कान होंठों पर खेल रही थी, और उनकी पुरानी आँखों में वही चमक थी जिसने नेहा को इस चक्कर में फँसाया था।
“अरे, मेरी दो प्यारी लड़कियाँ!” बूढ़े ने मज़ाकिया लहजे में कहा, उनकी आवाज़ इतनी हल्की थी कि मासूम नहीं लग सकती थी।
नेहा ने ज़बरदस्ती मुस्कराई, उसके गाल हल्के से लाल हो गए। “गुड मॉर्निंग, वर्मा जी,” उसने जवाब दिया, मुस्कराते हुए एक तरफ हटते हुए जब वो अपना बैग रखने लगे।

वर्मा जी की नज़रें नरम पड़ीं जब वो अनन्या की ओर देखने लगे, जो अपनी सीट पर उत्साह से पैर मार रही थी, अपनी छोटी हथेलियाँ उनकी ओर बढ़ाते हुए। “अरे, मेरी छोटी परी!” वो चिल्लाए, गाड़ी के पास झुकते हुए। उनकी आवाज़ में वो घमंडी लहजा गायब था जो नेहा से बात करते वक्त हमेशा रहता था। उन्होंने अनन्या की नन्हीं तोंद को गुदगुदाया, जिससे बच्ची की हँसी की आवाज़ गूँज उठी।

नेहा पीछे खड़ी थी, अपनी बाहें सीने पर बाँधे इस नज़ारे को देख रही थी। वर्मा जी की सारी खामियों के बावजूद—और नेहा के पास उनकी लंबी लिस्ट थी—वो अनन्या के साथ ज़बरदस्त थे। उन्हें अपनी बेटी को दुलारते देख नेहा के होंठों पर अनचाहे ही एक हल्की मुस्कान आ गई।
लेकिन वो मुस्कान जल्दी ही फीकी पड़ गई। अनन्या सिर्फ़ उसकी बेटी नहीं थी। वो उनकी बेटी थी। नेहा के उस चक्कर का सबूत, जिसे वो कितने ही महीनों बाद भी पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाई थी। अनन्या की वो चमकती भूरी आँखें, जो वर्मा जी की आँखों से मिलती थीं, उसे हर बार उसकी गलतियों की याद दिलाती थीं—वो राज़ जो वो दोनों छुपाए हुए थे और जो कभी सुलझ नहीं सकता था।

वर्मा जी ने नेहा की ओर देखा, उनकी नज़रें जैसे नेहा के दिमाग में उमड़ रहे गिल्ट को पढ़ रही हों। “अनन्या कितनी प्यारी है, है ना? एकदम परफेक्ट,” उन्होंने धीमे से कहा, उनकी आवाज़ में कुछ ऐसा था कि नेहा का पेट मरोड़ उठा।
नेहा ने अपने होंठ का कोना काटा, गहरी साँस लेते हुए अपनी बाहों को और कस लिया। उसने अनजाने में अपनी जाँघें सिकोड़ लीं, इस गंदे चक्कर के जोश से गीली होती हुई। “हाँ,” उसने धीमे से कहा। “वो है।”

वर्मा जी की मुस्कान और चौड़ी हो गई, उनकी पुरानी आँखों में एक गहरा तृप्ति का भाव चमका जब उन्होंने नेहा को उनका बैग डिग्गी में रखते देखा। उन्हें इस बात का गर्व था कि उन्होंने मानव के नाक के नीचे नेहा को प्रेगनेंट कर दिया, और मानव को कुछ पता भी नहीं। हर बार जब वो अनन्या को देखते—उसकी वो भूरी आँखें, जो उनकी अपनी थीं—उनके सीने में एक जीत का अहसास उमड़ता।

उनकी नज़रें नेहा पर टिक गईं, उसके गालों की लाली, और जिस तरह उसकी पुरानी लेगिंग्स और टाइट कुर्ते में उसकी कर्व्स उभर रही थीं, जब वो डिग्गी को धीमे से बंद कर रही थी। कुर्ता हल्का-सा ऊपर उठा, जिससे उसकी चिकनी कमर की एक झलक दिखी, जो वर्मा जी को जैसे न्योता दे रही थी। उनकी मुस्कान और गहरी हो गई, उनका लौड़ा पहले से ही पैंट में तन रहा था, उस ख्याल से जो होटल में उनका इंतज़ार कर रहा था।

चाहे कितनी बार उन्होंने नेहा को चोदा हो, उसे ऐसे कैज़ुअल और बिना किसी अंदाज़े के इतना हॉट देखकर उनकी भूख फिर से जाग उठती थी। वो उसे अपने नीचे नंगी, काँपती हुई, उसका नाम सिसकते हुए देखने की कल्पना कर रहे थे। ये तस्वीर उनके दिमाग में जल रही थी, उनकी हथेलियाँ उसे करीब खींचने को बेताब थीं, उसे बार-बार अपना बनाने को।

जब नेहा अनन्या की सीट ठीक करने लगी, गैरेज के दरवाज़े की चरमराहट ने उसे रुकने पर मजबूर कर दिया। मानव अंदर आया, चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए, और उनकी ओर बढ़ा।
“अरे, अब निकल रहे हो?” उसने हँसते हुए पूछा, उसकी आवाज़ में थोड़ी-सी हिचक थी।
“हाँ, बस अब,” नेहा ने नरम स्वर में जवाब दिया, अपनी लेगिंग्स को हल्के से झाड़ते हुए।

मानव अनन्या के पास गया, उसकी सीट के पास झुकते हुए। “और तू, मेरी छोटी गुड़िया,” उसने प्यार से कहा, अपनी उंगलियों से उसके नरम बालों को सहलाते हुए, “मम्मी और वर्मा जी के साथ अच्छे से रहना, ठीक है? अपनी ट्रिप पर ज़्यादा शरारत मत करना।”
अनन्या ने खुशी से बड़बड़ाया, अपनी छोटी हथेलियाँ उसकी ओर बढ़ाते हुए जब मानव ने उसके माथे पर एक चुम्मा दिया। “मुझे तेरी याद आएगी,” उसने धीमे से कहा, उसकी आवाज़ में प्यार था।

नेहा डिग्गी के पास खड़ी थी, अपनी बाहें हल्के से कमर पर रखे हुए, ये नज़ारा देख रही थी। उसने वर्मा जी की नज़रें पकड़ीं, उनकी तीखी भूरी आँखें उसकी आँखों से मिलीं, और एक जानकार नज़र ने उसके पेट में गुदगुदी मचा दी। दोनों को वो सच पता था—जो सच मानव को कभी शक भी नहीं होगा। अनन्या, अपनी सीट पर इतनी खुश और चमकती हुई, उसकी बेटी नहीं थी। वो वर्मा जी की थी, उनके बूढ़े पड़ोसी की।

वर्मा जी ने हल्की-सी मुस्कान दी, अपनी बाहें सीने पर बाँधे हुए, गाड़ी के पासेंजर दरवाज़े पर टिके हुए, मानव को उस बच्ची पर दुलार करते देख रहे थे जो उसकी नहीं थी। उनकी नज़रें शांत थीं, लगभग मज़ाकिया, जैसे वो इस विडंबना का मज़ा ले रहे हों।
“मेरी लड़कियों का ख्याल रखना, वर्मा जी,” मानव ने सीधा होते हुए कहा, हल्के से उनके कंधे पर थपथपाते हुए। “इस ट्रिप पर इनके साथ रहने के लिए थैंक्स।”

“कुछ फिक्र मत कर, भाई,” वर्मा जी ने मक्खन की तरह जवाब दिया, उनकी आवाज़ में वो प्रैक्टिस्ड चार्म था जो उन्हें इतना आसान लगता था। “तुझे पता है मैं नेहा और छोटी के लिए कुछ भी करूँगा।” उनके शब्द मासूम थे, लेकिन जब उनकी नज़रें नेहा की ओर फिसलीं, उनमें कुछ भी मासूम नहीं था।

मानव ने नेहा की ओर मुड़ा, उसे करीब खींचकर उसके होंठों पर एक लंबा चुम्मा दिया। “तुम दोनों मज़े करना,” उसने धीमे से कहा, उसका अंगूठा उसके गाल को प्यार से सहलाते हुए। “तुम इसके हकदार हो।”
नेहा ने सिर हिलाया, ज़बरदस्ती मुस्कराते हुए उसकी आँखों में देखा। “हाँ, करेंगे,” उसने शांत स्वर में कहा, हालाँकि वर्मा जी की नज़रों का वज़न उसकी नब्ज़ को तेज़ कर रहा था।

जब मानव पीछे हटा, आखिरी बार हाथ हिलाकर घर के अंदर चला गया, गैरेज फिर से शांत हो गया, सिवाय अनन्या की पीछे से हल्की बड़बड़ाहट के।
वर्मा जी ने सिर झुकाया, नेहा को उसी जानकार मुस्कान के साथ देखते हुए। “सुना ना उसने क्या कहा,” उन्होंने धीमे, छेड़छाड़ वाले लहजे में कहा, पासेंजर सीट पर सरकते हुए। “हमें मज़े करने हैं, मेरी सेक्सी रानी।”

नेहा ने अपनी भूरी आँखें घुमाईं, हालाँकि उसके गाल लाल हो गए जब वो ड्राइवर सीट पर बैठी। “हाँ, मैं तो मज़ा करूँगी ही,” उसने धीमे से कहा, स्टीयरिंग पकड़ते हुए एक शरारती मुस्कान के साथ।
वर्मा जी हँसे, पीछे टिकते हुए, और उन्होंने नेहा की ऊपरी जाँघ पर एक मज़बूत, मालिकाना हाथ रखा, उसे ज़ोर से दबाया। “वही बात, मेरी जान। अब चल, कहीं हमारी फ्लाइट मिस न हो जाए।”

नेहा ने इंजन स्टार्ट किया, गैरेज का दरवाज़ा उनके सामने बंद हुआ जब वो ड्राइववे से बाहर निकले। उनके बीच का टेंशन भारी और उत्तेजक था। जब वो सड़क पर निकले, घर को पीछे छोड़ते हुए, नेहा के पेट में एक रोमांच की लहर उठी।

जो भी गिल्ट बाकी था, वो उस बेताबी में डूब गया। वो मज़ा करेगी, जैसा वर्मा जी ने कहा।
 

bekalol846

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Update 14

लखनऊ के चौधरी चरण सिंह एयरपोर्ट की चहल-पहल अपने चरम पर थी—भागते-दौड़ते लोग, ऊपर से गूँजती अनाउंसमेंट्स, और सूटकेस के पहियों की सरसराहट। नेहा अनन्या के स्ट्रॉलर को धीमे-धीमे चला रही थी, जिसमें अनन्या आराम से लेटी थी, उसका छोटा सा सिर हल्के-हल्के झूल रहा था क्योंकि वो झपकी ले रही थी। पास में वर्मा जी मस्ती में चल रहे थे, हाथ जेब में डाले, जैसे दुनिया की कोई टेंशन ही न हो।

अब जब वो अकेले थे—कोई ताक-झांक करने वाली नज़रें नहीं, कोई मानव नहीं—वर्मा जी का रवैया बदल गया था। वो अब वो बनावटी शराफत और कंट्रोल नहीं दिखा रहे थे, जो वो दूसरों के सामने दिखाते थे। बल्कि, वो कॉन्फिडेंट होकर चल रहे थे, नेहा के और करीब आते हुए, जैसे वो अपना हक जता रहे हों।

सिक्योरिटी चेक पर वर्मा जी ने स्ट्रॉलर को मोड़ने के लिए लिया, और नेहा ने अनन्या को अपनी गोद में उठा लिया। जब वो स्कैनर से गुज़री, अनन्या को थामे हुए, वर्मा जी का पतला हाथ उसकी कमर के निचले हिस्से पर टिका, उनका स्पर्श मालिकाना और लंबा। नेहा ने उसे झटका नहीं। उसने खुद को समझाया कि ये तो बस नॉर्मल और भरोसेमंद है, लेकिन उनकी छुअन से उसकी रीढ़ में एक सिहरन दौड़ गई, जिसमें कुछ गहरा, गंदा सा था।

थोड़ी देर बाद वो अपने टर्मिनल पर पहुँचे। नेहा चुपके से बैठी थी, टाँगें क्रॉस की हुईं, अनन्या उसकी गोद में थी, बच्ची की छोटी हथेलियाँ उसकी अनारकली की साड़ी को पकड़े हुए थीं। पास में वर्मा जी अपनी सीट पर पीछे टिके हुए थे, एक टाँग दूसरी टाँग पर रखे, जैसे दुनिया उनके कदमों में हो।

लेकिन उनकी हरकत ने नेहा को चौंका दिया। उनका हाथ अचानक उसकी उंगलियों को छू गया, फिर उनकी उंगलियाँ नेहा के हाथ को मज़बूती से पकड़ लिया, बिना किसी बहस की गुंजाइश के। उनकी गर्म पकड़ ने नेहा को अजीब सा तनाव दिया, लेकिन उसने हाथ नहीं छुड़ाया।

एक पल के लिए नेहा ने इधर-उधर देखा, उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। टर्मिनल में भीड़ थी—लखनऊ के लोग, कुछ चाय की चुस्की लेते, कुछ अपने फोन में डूबे—लेकिन कोई उन्हें दूसरी नज़र से नहीं देख रहा था। कोई नहीं जानता था कि उनका रिश्ता क्या है। ज़्यादातर लोग फिक्र ही नहीं करते, और अगर कोई ध्यान देता भी, तो वो यही समझता कि वर्मा जी नेहा के पापा या दादा जी हैं।

“तू इतनी टेंशन में क्यों है, मेरी रानी?” वर्मा जी ने धीमे, गहरे लहजे में कहा, उसे देखते हुए, उनकी आवाज़ में वो गंदी वाली इंटिमेसी। “रिलैक्स कर। यहाँ छुपाने की कोई ज़रूरत नहीं। अरे, तेरा पति तो यहाँ है ही नहीं जो हमें देखे।”

नेहा ने तिरछी नज़र से उन्हें देखा, उनकी गर्म पकड़ को इग्नोर करने की कोशिश करते हुए। “वैसे, ये कोई आम बात तो है नहीं कि मैं अपने… गुप्त यार के साथ गोवा घूमने जा रही हूँ… तो… बस थोड़ा अजीब लग रहा है।”

वर्मा जी की मुस्कान और गहरी हो गई, उनका अंगूठा नेहा के हाथ के पीछे धीमे-धीमे गोल घेरे बनाते हुए। “गुप्त यार, हाँ? मुझे ये नाम बहुत पसंद आया,” उन्होंने मज़ाक में कहा, उनकी आवाज़ नरम लेकिन जीत की खुशी से भरी। वो थोड़ा और करीब झुके, उनके बीच की दूरी गायब होती हुई, उनकी नज़रें नेहा के लाल गालों पर टिकीं। “तू इसे इतना गंदा बना रही है, नेहा। Too hot, baby.”

“क्योंकि ये गंदा है,” नेहा ने फुसफुसाते हुए कहा, जल्दी से भीड़भाड़ वाले टर्मिनल में इधर-उधर देखते हुए, फिर अपनी आँखें सिकोड़कर उन्हें देखा। “मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा कि हम ये सब कर रहे हैं, वर्मा जी…”

वर्मा जी हँसे, बिल्कुल बेपरवाह, और उनकी उंगलियाँ नेहा की उंगलियों से और मज़बूती से जुड़ गईं। “बस चिल कर, मेरी जान। यहाँ कोई नहीं जानता हम कौन हैं। यहाँ हम बस एक और कपल हैं, अपनी छोटी सी गुड़िया के साथ, गोवा में मस्ती करने निकले हैं। इसमें गलत क्या है?”

नेहा ने धीमे से साँस छोड़ी, उनके बोल्ड लहजे के खिलाफ खुद को संभालने की कोशिश की। “आप मेरे पापा जितने उम्र के हैं… अनन्या के दादा जी जितने,” उसने अविश्वास और हल्की-सी मस्ती के साथ कहा। “लोग शायद यही सोचते होंगे जब हमें देखते हैं। भगवान… ये पागलपन है कि मैंने आपको मुझे… प्रेगनेंट करने दिया।”

वर्मा जी ने सिर हल्का-सा झुकाया, उनकी भूरी आँखें उस शरारती चमक के साथ जल रही थीं, जो नेहा को अब बहुत अच्छे से पता थी। “हम्म, यही सोचते होंगे…” उन्होंने दोहराया, उनकी आवाज़ में एक सोचने वाला लहजा। वो और करीब झुके, उनकी आवाज़ धीमी होकर सिर्फ़ नेहा के लिए फुसफुसाहट बन गई। “उन्हें सोचने दे। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। बल्कि, और मज़ा आता है, है ना? जब वो पूरी तरह गलत होते हैं, तब ये गंदा सा थ्रिल और बढ़ जाता है।”

नेहा ने गहरी साँस ली, अचानक इस बात का एहसास हो रहा था कि वो कितने करीब थे, उनके बीच का टेंशन अब एक ऐसी लहर की तरह था जिसे वो इग्नोर नहीं कर सकती थी। अपने होंठ काटते हुए, उसने अपनी उंगलियाँ उनकी पकड़ से छुड़ाईं और, थोड़ा हिचकते हुए, अपना हाथ उनकी गोद में ले गई, उसकी भूरी आँखें आसपास किसी को देखने की ताक में थीं। उसकी उंगलियाँ उनके लौड़े की सख्त रूपरेखा पर फिसलीं, पहले तो सावधानी से, लेकिन फिर जानबूझकर, उसे अपनी हथेली के नीचे और सख्त होता महसूस करते हुए।

वर्मा जी की तेज़ साँस ने उनके बीच की हवा को तोड़ा, उनकी आँखें गहरी हो गईं जब उन्होंने नेहा की ओर देखा। “अरे… नेहा… तू तो बिल्कुल नॉटी हो गई,” उन्होंने धीमे और खुरदुरे स्वर में कहा, उनकी आवाज़ दबी हुई चाहत से काँप रही थी।

नेहा की नब्ज़ तेज़ हो गई, एक गर्म लहर उसके अंदर दौड़ पड़ी, उसके गाल और लाल हो गए। “हम्म, चोद… मुझे ये इतना हॉट क्यों लग रहा है…” उसने फुसफुसाते हुए कहा, उसकी आवाज़ मुश्किल से सुनाई दी, उस उत्तेजना से भरी जो वो दबा नहीं पा रही थी।

वर्मा जी की मुस्कान वापस आई, धीमी और शिकारी जैसी। “तुझे पता है क्यों,” उन्होंने धीमे से कहा, उनकी आवाज़ में एक खुरदुरी गूँज। उनका हाथ आर्मरेस्ट के नीचे फिसला, उनकी उंगलियाँ नेहा की जाँघ को उसकी अनारकली के ऊपर से छू रही थीं, और वो और करीब झुके। “ऐसे ही करती रही, तो मैं गोवा के होटल में तुझ में एक और बच्चा ठोक दूँगा, मेरी रानी…”

नेहा की साँस अटक गई, लेकिन उसने हाथ नहीं हटाया, उसका हाथ अभी भी उनके ऊपर मज़बूती से दबा हुआ था। टर्मिनल का शोर जैसे गायब हो गया था।

वर्मा जी के शब्द हवा में लटके रहे, बोल्ड और बेपरवाह, जिससे नेहा की रीढ़ में एक सिहरन दौड़ गई। उस ख्याल से—उनका मर्दाना, बूढ़ा यार फिर से उसे अपना बनाए, उसे भरे, एक और चक्कर वाला बच्चा दे—उसका पेट सिकुड़ गया और उसकी जाँघें अपने आप सिकुड़ गईं। ये गलत था, पागलपन था, लेकिन फिर भी उसके अंदर कुछ गहरा हिल गया, एक एहसास जिसे वो नाम नहीं दे सकती थी और ज़ोर से बोलने की हिम्मत भी नहीं थी।

वर्मा जी उसे देख रहे थे, उनका अंगूठा उसकी जाँघ पर धीमे, आलसी गोल घेरे बनाते हुए, जैसे वो उसे उनके स्पर्श में खुलता महसूस कर सकते थे। “मैं अभी से देख सकता हूँ,” उन्होंने धीमे से फुसफुसाया, उनकी आवाज़ में गर्मी साफ थी। “तू फिर से गोल-मटोल, चमकती हुई, ये जानते हुए कि मैंने तुझे ऐसा किया। ये जानते हुए कि ये मेरा है, तेरे पति का नहीं।”

नेहा का सीना ऊपर-नीचे हो रहा था, उसकी साँसें अनियंत्रित थीं, उनके शब्द उसकी जाँघों के बीच जल रही आग को और भड़का रहे थे। उसने गहरी साँस ली, ज़बरदस्ती अपनी नज़रें हटाने की कोशिश की, किसी और चीज़ पर फोकस करने की कोशिश की, लेकिन उनकी आँखों की वो शरारती चमक उसे नहीं छोड़ रही थी।

लेकिन इससे पहले कि वो जवाब दे पाती, ऊपर के स्पीकर चटकने लगे, और उनकी फ्लाइट की अनाउंसमेंट टर्मिनल में गूँज उठी। “इंडिगो फ्लाइट 482 गोवा के लिए अब गेट 17 पर बोर्डिंग शुरू हो रही है। सभी यात्री कृपया गेट की ओर बढ़ें।”

वो पल शीशे की तरह टूट गया। नेहा ने अपना हाथ झटके से पीछे खींच लिया, जैसे उसे करंट लगा हो। उसने गला साफ किया, अजीब तरह से हिलते हुए, उसके गाल लाल हो गए।

वर्मा जी चुपके से हँसे, बिल्कुल बेपरवाह, और अपनी सीट पर सीधे बैठ गए, उनकी तृप्ति साफ दिख रही थी। “फ्लाइट ने बचा लिया,” उन्होंने मज़ाक में कहा, उनकी आवाज़ धीमी थी जब उन्होंने अपनी बाहें आलसी तरह से खींचीं। “लेकिन ये मत सोच कि मैं भूल जाऊँगा कि हम कहाँ रुके थे, मेरी जान।”

नेहा ने उन्हें तीखी नज़र से देखा, लेकिन उसमें कोई असली गुस्सा नहीं था। “उठो, वर्मा जी,” उसने बुदबुदाते हुए कहा, खड़ी होकर अनन्या के स्ट्रॉलर की ओर बढ़ी। “बोर्डिंग का टाइम हो गया।”

वर्मा जी की मुस्कान और गहरी हो गई जब नेहा खड़े होने की कोशिश की। लेकिन इससे पहले कि वो उठ पाती, उनकी जाँघ पर उनकी पकड़ और मज़बूत हो गई, और एक धीमी हँसी के साथ, वो करीब झुके, उनकी साँसें उसके होंठों पर गर्म थीं।

“इतनी आसानी से नहीं छूटने वाली, मेरी रानी,” उन्होंने मज़े और कंट्रोल से भरी आवाज़ में फुसफुसाया। “एक चुम्मा दे मुझे, जान…”

इससे पहले कि नेहा कुछ कर पाती, वर्मा जी ने उनके बीच की दूरी खत्म कर दी, उसके होंठों को एक गहरे, जानबूझकर किए गए चुम्मे में कैद कर लिया। ये जल्दबाज़ी वाला या हल्का नहीं था, उन्होंने उसे ऐसे चूमा जैसे वो असली कपल हों, उनका हाथ उसके चेहरे के किनारे को सहलाने के लिए उठा, उनके होंठ उसके साथ तालमेल में।

नेहा एक पल के लिए जम गई, हैरान, लेकिन उनका एहसास—मज़बूत, ज़िद्दी, कॉन्फिडेंट—उसके इरादों को पिघला गया। उसका शरीर उसे धोखा दे गया, उसकी आँखें धीरे-धीरे बंद हो गईं और उसने चुम्मा लौटाया, उसके होंठ हल्के से खुले जब उनकी जीभ उसकी जीभ से टकराई। ये बोल्ड था, लखनऊ के भीड़भाड़ वाले टर्मिनल के लिए ज़्यादा ही गंदा, लेकिन वो उन्हें रोक नहीं पाई।

जब वर्मा जी आखिरकार पीछे हटे, उसे साँस लेने के लिए छोड़ते हुए, उन्होंने उसकी आँखों में वही जानी-पहचानी शरारती चमक के साथ देखा, उनका अंगूठा उसके निचले होंठ पर एक सेकंड और रुका। “तू फ्लस्टर होकर इतनी सेक्सी लगती है, मेरी जान,” उन्होंने धीमे से फुसफुसाया, सिर्फ़ उसके लिए।

नेहा के गाल जल रहे थे, उसकी नब्ज़ दौड़ रही थी, और जब उसने आँखें खोलीं, तो उसे एहसास हुआ कि वो उतने छुपे हुए नहीं थे जितना वो सोच रहे थे। पास में कुछ लोग—कुछ लखनऊ की आंटियाँ, कुछ फोन में डूबे लड़के—ने सिर घुमाया, उनकी आँखें हैरानी से चौड़ी थीं।

एक बुज़ुर्ग आंटी, जो सामने बैठी थी, इस नज़ारे को भौंहें चढ़ाकर देख रही थी, उसकी नज़रें नेहा के लाल चेहरे और वर्मा जी की तृप्त मुस्कान के बीच डोल रही थीं। एक जवान लड़का, जिसके कान में ईयरबड्स थे, ने दो बार देखा और फिर जल्दी से नज़रें हटा लीं, हालाँकि उसकी उत्सुकता साफ थी।

उनके बीच का उम्र का फासला छुपा नहीं था—नेहा, 22 की जवान और चमकदार, और वर्मा जी, 65 के बूढ़े, पतले, लेकिन ज़बरदस्त कॉन्फिडेंट। ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था कि लोग क्या सोच रहे होंगे—शायद “ये तो उसका दादा जी है”—और उनकी चुपके नज़रों का वज़न नेहा को बेचैन कर रहा था।

नेहा ने गला साफ किया और जल्दी से अपनी सीट से उठी, वर्मा जी को एक चिंतित नज़र दी। “ये क्या था, वर्मा जी? हम एयरपोर्ट पर हैं, पब्लिक में!” उसने फुसफुसाते हुए कहा, उसकी आवाज़ मुश्किल से सुनाई दी, हालाँकि उसके होंठ अभी भी उनके चुम्मे से सिहर रहे थे।

वर्मा जी, बिल्कुल बेपरवाह, एक धीमी हँसी छोड़ते हुए अपनी कुर्सी से उठे। “क्या, जान?” उन्होंने मखमली आवाज़ में कहा, छेड़ते हुए। “एक मर्द अपनी यार और अपनी बच्ची की माँ को चुम्मा नहीं दे सकता?”

“लोग देख रहे हैं,” उसने तीखे स्वर में जवाब दिया, अपनी पर्स में बोर्डिंग पास ढूँढते हुए। “और आपने जीभ भी यूज़ की, मुझे महसूस हुआ। थोड़ा तो शर्म करो, पब्लिक में!”

“हाह, उन्हें देखने दे। हम किसी को परेशान तो नहीं कर रहे,” वर्मा जी ने कंधे उचकाते हुए कहा। “शायद वो बस जल रहे हैं, मेरी रानी। So what?”

नेहा ने अपनी भूरी आँखें घुमाईं, धीमे से बुदबुदाते हुए जब उसने अनन्या को अपनी बाहों में उठाया, स्ट्रॉलर से निकालते हुए। उसने उन नज़रों को इग्नोर करने की कोशिश की, लेकिन वो अपने गालों की गर्मी को—या वर्मा जी के चुम्मे से उठी उस गीली उत्तेजना को—नहीं झटक पा रही थी।

जब वर्मा जी उसके पास आए, इतने करीब कि उनकी बाँह उसकी बाँह से छू गई, वो फिर से झुके, उनकी आवाज़ धीमी और साफ तौर पर तृप्त। “तुझे वो चुम्मा पसंद आया, है ना? बेट करता हूँ तू अभी मेरे लिए पूरी गीली हो चुकी है…”

नेहा की आँखें चौड़ी हो गईं, उसके होंठ एक तंग रेखा में सिकुड़ गए जब उसने अनन्या के साथ व्यस्त होने का दिखावा किया, बच्ची को अपनी बाहों में प्यार से उठाते हुए। लेकिन सच उसके चेहरे पर लिखा था। “प्लीज़, अनन्या का स्ट्रॉलर मोड़ दो, जान,” उसकी आवाज़ मज़बूत और तीखी थी, ‘जान’ शब्द में एक काट थी जिसने वर्मा जी को एक झटका दिया।

उनकी भौंह हल्की-सी उठी, उनकी मुस्कान एक पल के लिए डगमगाई। उन्हें वो शब्द पसंद आया—जान। ये मालिकाना था, घरेलू, और खतरनाक रूप से उस तरह की चीज़ों के करीब जो असली कपल्स एक-दूसरे से कहते हैं। लेकिन इसने उन्हें थोड़ा डरा भी दिया, जिस तरह से उसने इसे कहा। उसमें एक चेतावनी थी, एक किनारा जो उन्हें याद दिलाता था कि ज़्यादा दूर न जाएँ।

वर्मा जी ने गला साफ किया और स्ट्रॉलर की ओर मुड़े, अपने हाथों को काम पर लगाते हुए और उसे मोड़ने लगे। “ठीक है, मेरी रानी,” उन्होंने मखमली स्वर में जवाब दिया, हालाँकि उनकी आवाज़ में वो कॉन्फिडेंट किनारा थोड़ा कम हो गया था। उन्होंने काम खत्म करते हुए उसकी ओर एक चोर नज़र डाली, उनकी भूरी आँखें उत्सुकता से चमक रही थीं।

नेहा ने अनन्या को अपनी बाहों में इधर-उधर किया, उसका चेहरा अब स्थिर था जब उसने उनकी ओर देखा। “थैंक्स, वर्मा जी,” उसने धीमे से कहा, उसकी आवाज़ अब और संयमित और छेड़छाड़ वाली थी, एक आकर्षक पलक झपकते हुए।

वर्मा जी की मुस्कान वापस आई, उन्हें राहत और तृप्ति की लहर महसूस हुई। जल्दी से, उन्होंने मोड़ा हुआ स्ट्रॉलर और कुछ कैरी-ऑन सामान पकड़ा। “तेरे लिए कुछ भी, मेरी जान,” उन्होंने धीमे से कहा।

नेहा ने हल्के से मुस्कराया, उसका ध्यान अनन्या पर केंद्रित था जब उसने बच्ची के सिर पर एक चुम्मा दिया। जब वो गेट की ओर बढ़े, वर्मा जी उसके साथ कदम मिलाकर चलने लगे, उसे अपनी आँखों के कोने से ध्यान से देखते हुए।

जब उन्होंने अपने टिकट सौंपे और गोवा जाने वाले इंडिगो प्लेन में चढ़ने की ओर बढ़े, नेहा अपने पेट में उठ रही उत्तेजना को, या वर्मा जी के उन शब्दों की गूँज को, जो उसके दिमाग में बार-बार चल रहे थे, नहीं झटक पा रही थी।
ऐसे ही करती रही, तो मैं तुझ में एक और बच्चा ठोक दूँगा…

सबसे बुरी बात ये थी कि उसे यकीन नहीं था कि उसके अंदर दौड़ रहा रोमांच डर से था… या उस गंदी चाहत से, जो गोवा की रेत और समंदर की लहरों में और भी जलने वाली थी।
 

bekalol846

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Update 15

बाथरूम में भाप का गुबार छाया हुआ था, पानी की फुहारें लगातार गिर रही थीं। नेहा की हथेलियाँ टाइल्स की दीवार पर चिपकी थीं, उसकी कमर झुकी हुई थी, और वर्मा जी पीछे से उसे धक्के मार रहे थे। उनके धक्के गहरे और बेरहम थे, उनके पतले हाथ उसकी घड़ी की तरह बनी कमर को कसकर पकड़े हुए थे, उसे जकड़कर रखते हुए।

“हाँ… ले मेरी जान… इस लौड़े को ले,” वर्मा जी ने गुर्राते हुए कहा, उनकी आवाज़ खुरदुरी और भारी। हर धक्के से नेहा आगे की ओर हिल रही थी, गीली त्वचा की चटक की आवाज़ दीवारों से टकरा रही थी, और उनके गोले उसकी जाँघों पर ज़ोर से थपक रहे थे।

नेहा ने एक काँपती हुई सिसकी छोड़ी, पानी उसके लाल चेहरे पर बह रहा था, उसका शरीर हर गंदी हरकत के साथ थरथरा रहा था। “हाँ… वर्मा जी… और गहरा… और गहरा…” उसने हाँफते हुए कहा, उसकी आवाज़ बेदम थी।

वर्मा जी आगे झुके, उनका सीना उसकी गीली पीठ से सट गया, उनके होंठ उसके कान को छू रहे थे। “तू इतनी मस्त लग रही है, नेहा… मेरे लिए इतनी टाइट और गीली,” उन्होंने गुर्राते हुए कहा, उनकी आवाज़ भूखी और तृप्ति से गहरी। “प्लेन में मेरा मन कर रहा था तुझे वहीं चोद दूँ… हाह, माइल-हाई क्लब जॉइन कर लें।”

नेहा ने हँसी छेड़ी, उसके होंठों पर एक मस्ती भरी मुस्कान थी, उसकी उंगलियाँ टाइल्स पर बेबस होकर सिकुड़ रही थीं। “आप तो गंदे बूढ़े हैं, वर्मा जी… हम्म… ओह्ह… आपको वो पसंद आता, ना?”

वर्मा जी ने हँसी लौटाई, उनके कूल्हे और ज़ोर से टकराए, जिससे नेहा के होंठों से एक और चीख निकल गई। “तुझे मेरी आदत हो गई है, ना…” उन्होंने फुसफुसाया, उनके हाथ उसकी गोल-मटोल चूचियों को दबाने के लिए ऊपर खिसके। “तू भी तो इसके बारे में सोच रही थी, है ना?”

नेहा ने अपनी आँखें बंद कर लीं, एक और सिसकी को दबाते हुए, क्योंकि मज़ा अब बर्दाश्त से बाहर हो रहा था। “हम्म… शायद… लेकिन अनन्या के साथ कुछ करना मुश्किल है, जान…” उसने फुसफुसाते हुए कहा, उसकी साँसें उनके कूल्हों के हर रोल के साथ अटक रही थीं।

वर्मा जी की मुस्कान और चौड़ी हो गई, उनकी भूरी आँखें तृप्ति से चमक रही थीं, क्योंकि उसके शब्द उनके दिमाग में गहरे उतर गए। वो एक शब्द—जान—ने उनके सीने में गर्व की लहर दौड़ा दी। ये बहुत पर्सनल था, ऐसा कुछ जो उसे उनके लिए नहीं कहना चाहिए था, लेकिन उसने कहा। ये कोई चूक नहीं थी: ये जानबूझकर था, उसकी आवाज़ उनके गुप्त रिश्ते के वज़न से भारी थी।

“हाँ, बिल्कुल…” वर्मा जी ने धीमे, जीत भरे गुर्राहट में कहा, उनका मोटा लौड़ा गहराई तक धकेल रहा था, उसकी कोख को टकरा रहा था। “मैंने तुझे वो बच्चा दिया… मैंने तेरी कोख भरी, और अब तू पूरी मेरी है।”

“हाँ… आपने मुझे प्रेगनेंट किया, वर्मा जी…” नेहा चीखी, उसका शरीर उनके छोटे कद में झुक गया, पानी दोनों के ऊपर से बह रहा था। “मैं आपकी हूँ… ओह्ह… हाँ! आपकी!”

भाप उनके चारों ओर एक गंदे कोहरे की तरह गाढ़ी हो रही थी, पानी उनके शरीरों पर बह रहा था। वर्मा जी ने उसे पलटने के लिए पीछे हटे, उसकी नंगी पीठ को गीली शावर की दीवार से मज़बूती से सटा दिया।

नेहा की साँस तेज़ हो गई, उसने नीचे की ओर देखा, उनके छोटे कद के बूढ़े मर्द को, पानी की बूँदें उसके खूबसूरत चेहरे से बह रही थीं, उसकी भूरी आँखें वासना से भारी थीं। वर्मा जी ने मुस्कराया, उनका तृप्त कॉन्फिडेंस अटल था, उनके हाथ उसकी मुलायम, गीली त्वचा पर ऊपर खिसके।

“तू बहुत सेक्सी है, मेरी रानी,” उन्होंने गुर्राते हुए कहा, उनकी आवाज़ धीमी और खुरदुरी थी, जब वो उसकी जाँघों के बीच अपनी जगह बना रहे थे।

नेहा ने धीमे से सिसकी भरी, जब उन्होंने अपना लौड़ा उसकी चूत में फिर से डाला, उसे पूरी तरह भरते हुए। उसका सिर दीवार के खिलाफ पीछे झुका, उसके होंठ खुल गए, जब वो गहरे, स्थिर धक्कों के साथ शुरू हुए, उसे ठंडी टाइल्स के खिलाफ और ज़ोर से दबाते हुए।

वर्मा जी और करीब झुके, उनका पतला शरीर हैरान करने वाली ताकत के साथ उसे थाम रहा था। “अपनी टाँग मेरे चारों ओर लपेट, मेरी जान,” उन्होंने उसके गाल के पास गर्मी भरी आवाज़ में फुसफुसाया।

नेहा ने वैसा ही किया, अपनी बायीं टाँग उनकी पतली कमर के चारों ओर लपेट दी, हर हरकत के साथ उसे और गहराई तक खींचते हुए। इस एंगल ने उसके अंदर मज़े की एक लहर दौड़ा दी, उसके हाथ उनके कंधों पर उड़ गए ताकि वो खुद को संभाल सके।

वर्मा जी ने सिसकी भरी, जब वो उसकी गीली चूत में धकेल रहे थे, उनका मुँह उसकी कॉलरबोन से लेकर उसके होंठों तक गया। “तू बहुत परफेक्ट है… मेरे पास तुझ जैसी औरत होने की किस्मत है…” उन्होंने बुदबुदाया, फिर उसके मुँह को एक चुम्मे में कैद कर लिया।

उनके होंठ ज़ोर से टकराए, भूखे और बेताब। वर्मा जी ने अपनी रानी को गहरे चूमा, उनकी जीभ उसके मुँह में घुसी, गरम और बेताबी से नाच रही थी। नेहा ने उनके खिलाफ सिसकी भरी, उसकी उंगलियाँ उनके गोल-मटोल गाँड को पकड़ने के लिए नीचे खिसकीं, उसे और तेज़… और ज़ोर से… और गहरा करने के लिए उकसाते हुए।

“वर्मा जी…” उसने चुम्मों के बीच सिसकी भरी, उसकी आवाज़ ज़रूरत से काँप रही थी, उसके परफेक्ट गुलाबी नेल्स उनकी झुर्रियों वाली त्वचा में गड़ रहे थे। “हम्म… चोद… आप इतना अच्छा लग रहे हैं…”

वर्मा जी ने उसके मुँह में सिसकी भरी, उनके कूल्हे तेज़, लयबद्ध धक्कों में उसके खिलाफ टकरा रहे थे। उनके शरीरों की चटक दीवारों से गूँज रही थी, पानी की धाराएँ उनके चारों ओर बह रही थीं, गर्मी के साथ मिल रही थीं।

“हाँ? तुझे ये लौड़ा पसंद है, ना?” उन्होंने फुसफुसाते हुए कहा, उनका माथा उसके माथे से सटा हुआ था, उनकी पुरानी आँखें उसकी आँखों में बंद। “पसंद है ना, जैसे मैं तुझे चोदता हूँ… जैसे तू मेरी है?”

“हाँ… हाँ… मुझे बहुत पसंद है, वर्मा जी…” नेहा ने हाँफते हुए कहा, उसकी आवाज़ एक काँपता हुआ इकबाल था, जब उसका शरीर काँपने लगा, मज़ा उसके अंदर और सख्त हो रहा था। “मैं आपकी हूँ… पूरी आपकी…”

वर्मा जी ने मुस्कराया, और ज़ोर से धक्के मारते हुए, उनके हाथ उसकी कमर को पकड़ रहे थे, उसे दीवार के खिलाफ स्थिर रखते हुए। “ये मेरी लड़की,” उन्होंने तृप्ति से भरी खुरदुरी आवाज़ में कहा।

नेहा की सिसकियाँ और तेज़ हो गईं, उसकी टाँग उनके चारों ओर और सख्त हो गई, जब उसके अंदर का टेंशन एक तनी हुई तार की तरह टूट गया। उसने चीख मारी, उसका शरीर बेकाबू होकर काँप रहा था, जब मज़े की लहरें उसके अंदर से गुज़रीं।

“वर्मा जी—” उसने हाँफते हुए कहा, उसका सिर दीवार के खिलाफ पीछे गिरा, जब वो उनके धड़कते लौड़े के चारों ओर झड़ी। “ओह्ह… हाँ!” उसने अपनी टाँग से उसे और गहरा खींचा, उसकी उंगलियाँ उनकी पतली कमर को पकड़ रही थीं, जब मज़ा उसके अंदर से उमड़ रहा था।

वर्मा जी ने करीब झुककर, उसके होंठों को एक ज़ख्मी चुम्मे में कैद किया, उनकी जीभें बेताब, भूखी हरकतों में उलझ रही थीं। उन्होंने उसकी सिसकियों को निगल लिया, और तेज़ी से धक्के मारते हुए, अपनी रिलीज़ की तलाश में पाशविक ज़रूरत के साथ। उसकी टाइट दीवारों का उसे जकड़ना दिमाग को पिघला देने वाला था, उनकी रफ्तार अब लड़खड़ा रही थी, क्योंकि रिलीज़ करीब थी।

वर्मा जी ने उसकी चूत के उनके नसों वाले शाफ्ट को जकड़ने की सनसनी पर सिसकी भरी। उनकी कमर पर पकड़ और सख्त हो गई, उनके धक्के अब अनियमित थे, और उन्होंने थोड़ा पीछे हटकर उसके लाल, धुंधले चेहरे को देखा।

“हाँ… घुटनों पर, मेरी जान,” उन्होंने ज़रूरत से भरी गुर्राहट में कहा।

अभी भी साँस लेने की कोशिश में, नेहा ने उनकी ओर पलक झपकाई, उसके रसीले होंठ खुले हुए थे, जब वो फोकस करने की कोशिश कर रही थी। इससे पहले कि वो जवाब दे पाती, वर्मा जी ने बाहर खींच लिया, उसकी टाँग को धीरे से नीचे करते हुए, उसे घुटनों पर बैठने के लिए गाइड किया। वो धीरे-धीरे शावर के फर्श पर बैठ गई, गर्म पानी उसके कंधों और लंबे, काले बालों पर बह रहा था, जब उसने अपने बूढ़े यार को देखा, समझते हुए कि वो क्या चाहते हैं।

वर्मा जी ने अपने पुराने हाथ को अपने धड़कते लौड़े के चारों ओर लपेटा और उसे सहलाने लगे, उनकी आँखें उसके चेहरे पर टिकी थीं, वही जीत भरी मुस्कान के साथ। “लो, आ रहा है, मेरी रानी,” उन्होंने उत्तेजना से भरी आवाज़ में फुसफुसाया। “अपना वो सुंदर सा मुँह खोल।”

नेहा ने उनकी नज़रों को थामे रखा, उसका सीना अभी भी हाँफ रहा था, जब पानी उसकी लाल त्वचा पर टपक रहा था। “मुझे वो मोटा लोड दे दो, वर्मा जी…” उसने धीमे से फुसफुसाया, सेक्सीली अपनी जीभ बाहर निकालकर उनके माल को लेने के लिए।
 
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