अध्याय ४
मैरी डिसूजा की गाड़ी के अंदर बैठने से पहले मेरी डिसूजा ने मेरा माथा चूमा और बोली, "जहां मेरी बच्ची- दिल खोलकर अपना जी बहला कर आ"
बारिश का मौसम अभी जारी था| पिछली रात भी काफी देर तक जोरदार बारिश हुई थी|
वास्तव में मौसम बहुत ही खुशनुमा और सुहावना हो रखा था| मानो किसी यात्रा के लिए एकदम उत्तम दिन|
मैं मैरी डिसूजा की पर्सनल महंगी सी और बड़ी सी SUV की पिछली सीट पर बैठी थी| गाड़ी की खिड़कियों में टिंटेड ग्लासेस लगे हुए थे|
मैंने गाड़ी की सारी खिड़कियां बंद कर की रखी थी ताकि बाहर की हवा और धूल के कारण मेरा मेकअप बर्बाद ना हो जाए| और गाड़ी के ड्राइवर अनवर मियां ने AC चला रखा था|
उस दिन रास्ते में ज्यादा ट्रैफिक नहीं था| मैं अपने ही ख्यालों की उधेड़बुन में लगी हुई थी इसलिए शायद रास्ते का पता नहीं चल रहा था... लेकिन जब मैंने देखा कि हम लोग हाईवे पर थे और रास्ते के दोनों तरफ गांव की हरियाली जैसे कि मानो मेरा स्वागत कर रही थी तब मैंने घड़ी देखी और मुझे एहसास हुआ कि हम लोग करीब 3 घंटे से ड्राइव कर रहे हैं|
मैंने हैरान होकर गाड़ी के ड्राइवर अनवर मियां से कहा, "हम लोग करीब 3 घंटे से ड्राइव कर रहे हैं- और आप कहीं रुके भी नहीं... अगर आपको चाय वाय पीनी थी तो आपने मेरे से कह दिया होता... चलिए कोई ढाबा वगैरह देख कर के कहीं बैठकर चाय पीते हैं... सुना है गांव की मिट्टी के कुल्हड़ में चाय का स्वाद अलग ही होता है"
आखिरकार अनवर मियां अपनी मालकिन की लाडली बेटी को अपनी गाड़ी में बैठा कर उसकी मंजिल तक पहुंचा रहे थे- और यह उनके लिए बहुत ही बड़ी जिम्मेदारी का काम था|
उन्होंने गाड़ी के ड्राइवर ने बड़ी ही कृतज्ञता भरी दृष्टि से रियर व्यू मिरर में मुझे देखा और खुशी से मुस्कुराते हुए बोले, "जी, अच्छा"
हाईवे के किनारे जल्दी ही हमें एक चाय की दुकान मिल गई| अनवर मियां ने उस दुकान के पास अपनी गाड़ी रोकी और गाड़ी की AC को बंद कर दिया| उस दुकान में पहले से ही कई ग्राहक मौजूद थे जिनमें कुछ महिलाएं और गांव के लौंडे लफाड़े भी शामिल थे|
गांव का नजारा अच्छी तरह से देखने के लिए मैंने गाड़ी की खिड़की का शीशा नीचे किया| गांव का वातावरण शहर के प्रदूषण से काफी हद तक मुक्त था|
गाड़ी की खिड़की के शीशे को नीचे होते ही सबकी निगाहें मानो मुझ पर ही टिक गई| इसलिए मैंने जितना हो सके अपने आपको बदन को साड़ी के आंचल से ढकने की कोशिश की... लेकिन फिर भी मुझे लग रहा था कि सभी लोग मुझे आंखें फाड़ फाड़ के देख रहे हैं|
क्योंकि गांव के इस रास्ते शायद ऐसा नजारा उनको कम ही देखने को मिलता है यहां मुझ जैसी एक उच्च वर्गीय सुंदर लड़की को इतनी महंगी सी और बड़ी सी गाड़ी में बैठी हुई हो|
मैं गाड़ी से नहीं उतरी| अनवर मियां मैं खुद दुकान से मेरे लिए मिट्टी के कुल्हड़ में चाय लेकर आए और खुद गाड़ी के पीछे जाकर चाय की चुस्की हो के साथ एक बीड़ी पीने लगे|
मुझे मालूम था कि जब तक हम लोग वहां रुके हुए थे दुकान में बैठा कोई भी मेरे ऊपर से अपनी नजरें नहीं हटा पा रहा था| खैर चाय पीना खत्म हुआ| अनवर मियां गाड़ी गाड़ी स्टार्ट की और गाड़ी AC चला दी और मैंने भी गाड़ी की खिड़की में लगी टिंटेड ग्लास को ऊपर कर दिया| और दोबारा गाड़ी में कैद हो गई हालांकि मेरा बहुत मन कर रहा था कि मैं गाड़ी की खिड़कियां खुद ही रखो और गांव के इस मादक वातावरण का मजा दे सकूं- पर इससे मेरे मेकअप के खराब होने का डर था|
इतने में अनवर मियां का फोन बज उठा|
मेरा अंदाजा बिल्कुल सही था| फोन बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ने ही किया था|
अनवर मियां उनसे बोल रहे थे, "जी हां बाबा ठाकुर- बोलिए... जी हां... जी हां... बस हम आधे घंटे में ही पहुंचने वाले हैं... यहां जी थोड़ी देर लग गई"
हम लोगों को इतनी भी देर नहीं हुई थी कि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को फिक्र होने लगे| इसलिए मैंने अनवर मियां से फोन मांगा और मैं खुद उनसे बात करने लगी|
"बाबा ठाकुर जी, प्रणाम! मैं पीयाली बोल रही हूं- वही पीयाली जिसे आपने पसंद किया था... माफ कीजिएगा रास्ते में थोड़ी देर लग रही है क्योंकि हमने यहां थोड़ी देर रुक कर थोड़ा चाय पीने का फैसला किया था... क्योंकि हमारे ड्राइवर साहब करीब 3 घंटे से लगातार गाड़ी चला रहे थे..."
फोन की दूसरी तरफ से एक शांत और गंभीर स्वर में आवाज आई, "ठीक है, ठीक है... मैं तो बस यूं ही तुम लोगों की खैरियत पूछ रहा था... और मैं यह जानना चाहता था कि तुम लोगों को रास्ते में कोई दिक्कत तो नहीं हो रही..."
"जी बिल्कुल नहीं" मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया मैं जानती थी की फोन पर वह मुझे देख नहीं सक रहे लेकिन मेरी मुस्कुराहट को वह जरूर भांप लेंगे|
"ठीक है... मैं तुम्हारे यहां पहुंचने का इंतजार करूंगा"
मैंने दोबारा बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को प्रणाम करके फोन काट दिया| उसके बाद मैं मन ही मन यही यह सोचने लगी कि मैरी डिसूजा तो मुझे बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ कि यहां बिल्कुल कामधेनु बनाकर भेज रही है, और मैं उम्मीद कर रही थीकि इस उद्देश्य में अब मेरा सफल होना बहुत जरूरी हो गया है|
बाबा ठाकुर की आवाज को मैं अच्छी तरह पहचानती थी| क्योंकि हर रोज मैं टीवी पर उनकी भविष्यवाणी का प्रोग्राम सुना करती थी और मैंयह भी जानती थी कि वह दिखने में कैसे हैं| करीब 50- 55 साल के लेकिन काफी आकर्षक व्यक्तित्व वाले एक स्वस्थ और हृष्टपुष्ट लंबे चौड़े आदमी|
लेकिन उन्होंने सिर्फ मेरी तस्वीर ही देखी थी
मैंने तिरछी नजर से खिड़की के बाहर देखा| गाड़ी की खिड़की के टिंटेड ग्लासेस चढ़े हुए थे| बाहर से अंदर कुछ दिखना बिल्कुल नामुमकिन था| लेकिन बाहर बैठे लौंडे लफाड़े फिर भी इसी कोशिश में लगे हुए थे कि शायद मेरी एक झलक उनको दिख जाए|
अनवर मियां ने गाड़ी को गियर में डाला और गाड़ी अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने लगी|
***
हम गांव के अंदर घुस चुके थे| रास्ते सन करें हो चले थे और पक्की सड़क हर जगह मौजूद नहीं थी| पिछली रात को यहां भी काफी बारिश हुई थी और जगह-जगह पानी भर गए थे| रास्ता भी उबड़ खाबड़ था... इसलिए अनवर मियां बड़े ध्यान से गाड़ी चला रहे थे पर रास्ते में गड्ढों की वजह से गाड़ी चलते चलते डगमगा रही थी|
आखिरकार हम लोग एक छोटे से रास्ते पर पहुंचे जिस पर सीमेंट की ढलाई की हुई थी|
करीब आधे किलोमीटर की दूरी पर हमें एक गांव की हवेली दिखी| मुझे समझते देर नहीं लगी कि कहीं बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ का घर था|
और यह दो मंजिला हवेली काफी बड़ी थी| कावेरी का पूरा अहाता करीब करीब 4 फुट ऊंची दीवारों से घिरा हुआ था| लेकिन हवेली के अंदर गाड़ी खुश नहीं सकती थी क्योंकि गेट काफी छोटा था और गाड़ी काफी बड़ी और चौड़ी थी|
हमारे पहुंचते-पहुंचते बारिश शुरू हो चुकी थी| गेट के बाहर एक लकड़ी का बोर्ड लगा हुआ था जिसमें बंगाली में लिखा हुआ था, "कृपया गेट को बंद रखें- बगीचे में गाय घुस जाति है"
यह पढ़कर मुझे हंसी आ गई| अनवर मियां ने गेट के बाहर गाड़ी रोक कर दो तीन बार गाड़ी का हॉर्न बजाया और मैंने देखा हवेली का मुख्य दरवाजा खोला और उसके अंदर एक उन्नीस या बीस साल की गाँव की लड़की एक बड़ी सी खुली हुई छतरी के नीचे बारिश से बजती हुई लगभग दौड़ती हुई गेट की तरफ आ रही है और यह साफ जाहिर था कि उसने कोई अंतर्वास नहीं पहन रखा था क्योंकि जब वह भागती हुई आ रही थी तो उसके अच्छी तरह से विकसित हुए स्तन उसके भागते वक्त कामुकता से फुदक रहे थे|
गाड़ी के शीशे जुड़े हुए थे| उसे आते देखकर मैंने गाड़ी की खिड़की का शीशा नीचे किया उसे देख कर मुस्कुराई|
क्रमशः