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Incest बेटा है या.....घोड़(ALL IN ONE)

फीर मचायेगें है की नही?

  • हां

    Votes: 9 81.8%
  • जरुर मचायेगें

    Votes: 8 72.7%
  • स्टोरी कैसी लगी

    Votes: 0 0.0%

  • Total voters
    11
  • Poll closed .

Siraj Patel

The name is enough
Staff member
Sr. Moderator
135,625
112,376
354
Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).

Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words tak ho sakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. . Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writers ko Awards k alawa Cash prizes bhi milenge jinki jaankaari rules thread mein dedi gayi hai, Total 7000 Rupees k prizes iss baar USC k liye diye jaa rahe hain, sahi Suna aapne total 7000 Rupees k cash prizes aap jeet shaktey hain issliye derr matt kijiye or apni kahani likhna suru kijiye.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 28th February tak open rahega is dauraan aap apni story post kar shakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.


Rules Check karne ke liye is thread ka use karein — Rules & Queries Thread

Contest ke regarding Chit Chat karne ke liye is thread ka use karein — Chit Chat Thread



Prizes
Position Benifits
Winner 3000 Rupees + Award + 5000 Likes + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 1500 Rupees + Award + 3000 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 1000 Rupees + 2000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories)
3rd Runner-UP 750 Rupees + 1000 Likes
Best Supporting Reader 750 Rupees Award + 1000 Likes
Members reporting CnP Stories with Valid Proof 200 Likes for each report



Regards :- XForum Staff
 

basudeo

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कजरी वो कजरी.....अपनी बकरीया सम्भाल देख मेरी सारी सब्जीया खा रही है......

ये आवाज सुनकर कजरी भागते हुए घर से बाहर नीकलती है, और अपनी बकरीयों को पकड़ कर बांधती है।

अगर तू अपनी बकरीयां सम्भाल नही पाती तो बकरीया पालती क्यूं है?

कजरी-- क्या करु दीदी.....घर में कोई कमाने वाला है नही, घर का सारा खर्चा इन बकरीयों की वजह से ही चलता है।


अरे तो एक सांड जैसा बेटा पैदा कीया है...उसे क्यूं नही बोलती की कुछ काम धंधा करे। देख एक मेरा लड़का है ठाकुर साहब के यहां काम करता है....उसे भी क्यूं नही लगा देती ठाकुर साहब के यहां काम पर।

कजरी-- बात तो ठीक है रज्जो दीदी, लेकीन मेरा लड़का तो दीन रात बस गांव में मटरगस्ती करता रहता है......क्या बोलू मैं उसे?


कहानी के पात्र--

कजरी (40)
कजरी एक बहुत ही खुबसुरत औरत है....इतनी खुबसुरत है की पुरा गांव उसके फीराक में लगा रहता है। उसकी गरीबी उसकी सबसे बड़ी दुश्मन है...जीसका फायदा गांव के लाला.....ठाकुर और दुकानदार उठाने के फीराक में लगे रहते है। लेकीन कजरी आज तक अपने आप को पवीत्र रखी थी.....गांव भर में उसके खुबसुरती के चर्चे चलते रहते है और पता नही कीतने मर्द उसके नाम से मुठ मार मार कर कमजोर दीलवाले बन गये है।



रीतेश(22)
कजरी के जीने का सहारा यहीं जनाब है.....लेकीन इन जनाब को अपनी मां की परेशानीयो के बारे में कोइ फिक्र नही.....ये तो बस अपने आवारा दोस्तो के साथ दीनभर घुमते फीरते रहते है.....अगर बाप होता तो थोड़ा बहुत डर लगा रहता लेकीन बाप तो ना जाने 3 साल पहले घर छोड़ कर पता नही कहां नीकल गये थे।



रज्जो(40)
रज्जो कजरी की पड़ोसन है.....ये मुहतरमां की एक ही परेशानी है, और वो है कजरी......इनको कजरी के खुबसुरती से बहुत जलन होती है। हमेशा सज संवर के रहने के बाद भी कजरी की खुबसुरती के आगे पानी कम चाय वाला हाल हो जाता है।

पप्पू(22)

पप्पू रज्जो का लाडला....इनका सीर्फ नाम पप्पू नही बल्की ये खुद पप्पू है। क्यूकीं पप्पू का चप्पू 2 मीनट ही चलता है.....क्यूकीं इन्होने बचपन से अपना चप्पू अपने हाथों की मदद से कुछ ज्यादा ही चला दीया था।

सलोनी(24)
रज्जो की छिनाल बेटी......इनकी बुर में इतने चप्पू चले हैं की पुछों मत लेकीन इस बात की भनक अभी तक रज्जो को भी नही चला है।


संगीता(42)
कजरी की सबसे अच्छी सहेली....अगर कजरी को खुबसुरती में कोई अजू बाजू पहुंच सकता है तो यही मुतरमा है।


आंचल(20)
संगीता की लाडली और रितेश के दील की धड़कन......इनको सचने संवरने का बहुत शौक है.....अगर ये गांव में नीकल दे
तो बेचारे लड़को के लंड और धड़कन की रफ्तार तेज हो जाती है......


ठाकुर परम सींह(48)
ईनका काम दो नबंर का धंधा करना , और कीसी तरह कजरी की जवानी का रस पी सके


कहानी में और भी कीरेदार जीसका जीक्र हम आगे करते चलेंगे.......हम और आप मीलकर


तो चलीये कहानी शुरु करते है......और मज़े लेते है......लेकीन पहले आप भाईयो का क्या राय है वो तो जान लूं.......फीर मचांयेगे....
fantastic update
 

basudeo

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  1. बेटा है या घोड़ा
अपडेट--1



रोज रोज ये सुखी रोटी.....और बकरी का दुध खाकर थक चुका हूं मैं॥

कजरी-- अरे बेटा...यही सुखी रोटी और बकरी का दुध खाकर पहलवान बन गया है....देख जरा खुद को पुरे गांव भर में कीसी का भी शरीर तेरे जैसा नही है।

रितेश.(गुस्से में)-- तो इसका मतलब मैं यही सुखी रोटी खाउं?


कजरी-- गुस्सा मत हो मेरे लाल....आज खा ले कल कुछ इंतजाम करुगीं, और तुझे तो अपनी हालत पता ही है बेटा।

रीतेश(गुस्से में)-- जब हालात ठीक नही थे तो पैदा क्यूं कीया .....ये सुखी रोटी खीलाने के लीये....नही खाना है मुझे ये तू ही खा।

' इतना कह कर रितेश खाने की थाली गुस्से में अपनी मां की तरफ करता है और घर से बाहर की ओर जाने लगता है।

कजरी-- अरे.....बेटा सुना तो...रुक जा थोड़ा ही खा ले। लेकीन तब तक रितेश घर से बाहर जा चुका था।
कजरी वहीं बैठी रितेश को बाहर जाते देखती रहती है.....उसकी आंखो में आंशु आ चुके थे.....वो अपनी कीस्मत को कोस रही थी.....लेकीन कीसी ने सच कहा है ना जो तकदीर में लीखा है भला उसे कौन मीटा पाये फीर कीस्मत को कोस कर क्या फायदा।

कजरी वो....कजरी....कहां है तू।
कजरी के कानो में जैसे ही ये आवाज़ पहुचीं वो रसोई घर से बाहर आती है।

कजरी-- अरे संगीता तू आ बैठ।
संगीता-- तू तो मेरी ख़बर लेने से रही तो सोचा मैं ही तेरी खबर ले आती हूं॥

कजरी-- अरे संगीता अब क्या बताऊ तूझे तो सब पता ही है.....घर का काम और सब चीजे करते करते समय का पता ही नही चलता.....

संगीता-- अच्छा अब रहने दे....चल जल्दी तैयार हो जा।
कजरी-- क्यूं कहां जाना है?

संगीता-- अरे आज ठाकुर साहब का प्रधानी का प्रचार है....और उसमे शामील होने वालो को एक हजार रुपये मील रहे है.....तो गांव की औरते जा रही थी तो सोचा मैं और तुम भी चलते है अपना भी काम हो जायेगा।

कजरी-- बात तो तू ठीक कह रही है.....लेकीन मेरा बेटा?
संगीता-- तेरा बेटा क्या?

कजरी-- अगर कहीं मेरे बेटे ने गांव में घुमते हुए देख लीया तो मेरी खैर नही।

संगीता-- अरे क्या खैर नही लगा रखी है.....एक तो तू इधर उधर से ला के तू उसको खीलाती है.....खुद तो कुछ करता नही और तेरे उपर रौब जमाता है।

कजरी-- ऐसा मत बोल संगीता वो जीदंगी है मेरी....उसके लीये तो सब कुछ कुर्बान।

संगीता-- हां तो वो बच्चा थोड़ी है उसे भी तो सोचना चाहीये....तू चल मै देखती हूं की क्या बोलेगा वो तूझे फीर मैं उसे जवाब दूंगी।

कजरी-- ठीक है रुक चलती हूं॥

कजरी घर के अंदर जाती है और एक लाल साड़ी अपने बक्से में नीकालती है......।

कजरी अपनी पहनी हुई साड़ी अपने बदन पर से नीकाल देती है .....वो अब सीर्फ ब्लाउज और पेटीकोट मे थी....उसका कसा हुआ दुधीया गोरा बदन और ब्लाउज में कसी हुई गोल गोल बड़ी चुचीयां जो शायद ब्लाउज फाड़ कर बाहर आने को उतावली हो रही थी.....कजरी की पतली गोरी कमर तो सुराही दार एक बार कोई देख ले तो उसके कमर को हाथो से रगड़ने को जी मचल जाये......और गांड तो उफ.....क्या बनावट थी उपर वाले की .....एकदम कसी हुई बाहर की तरफ नीकली हुई कयामत ढ़ा रही थी.....ये सब नज़ारा देख कर संगीता की नज़रे ही नही हट रही थी।

कजरी-- ऐसे क्या देख रही है तू?
संगीता-- देख रही हूं की भगवान ने तूझे सच में फुरसत से बनाया है.....कीतनी खुबसुरत है तू कजरी।

कजरी-- अरे अब क्या करुगीं ये खुबसुरती ले के पती तो रहे नही तो फीर इस खुबसुरती का क्या मतलब?

संगीता-- सही कहां तूने....हम दोनो की कीस्मत तो फूटी है.....अच्छा तेरा मन नही करता कजरी की तेरे ये खुबसुरत जीस्म को कोई मसल मसल कर रख दे.....।

कजरी-- अच्छा अब बस कर तू अब चल....मैं तैयार हो गयी हूं॥

संगीता-- हां चल गांव के तेरे सारे आशीक तो आज मर ही जायेगें...।
कह कर दोनो हंसने लगती है.....और घर से बाहर नीकल पड़ते है।


ठाकुर परम सींह के घर के सामने भारी संख्या में भीड़ लगी थी.....ठाकुर के गाड़ीयो में पोस्टर लगे हुए थे.....उनका चुनाव चीन्ह था खाट, कुछ लोगो के हाथों मे झंडे भी थे...।


गांव की कयी सारी औरते एक तरफ खड़ी थी.....उन औरतो में रज्जो एकदम सज धज कर खड़ी थी और कुछ औरतो से बात कर रही थी.....की तभी उनमे से एक औरत बोली.......हाय राम देखो कजरी आ रही है कीतनी सुंदर लग रही है।
ये सुनते ही सारी औरतों की नज़र कजरी पर पड़ती है।
हां....सच में कीतनी सुदंर है कजरी देखो ना सारे मर्दो की नज़र सीर्फ कजरी पर ही है.....काश भगवान ने मुझे इतना सुँदर बनाया होता तो जींदगी के मजे खुब लुटती ॥
उस औरत की बात सुनकर रज्जो बोली॥
रज्जो-- हां लेकीन ये महारानी तो अपने आप को पता नही क्या समझती है....कीसी को घास ही नही डालती।

रज्जो अंदर ही अँदर खुब जल रही थी....॥

संगीता-- देख कजरी सब हरामजादे मर्दो की नज़र तुझ पर ही है....कैसे खा जाने वाली नज़रो से देख रहे है तूझे।

कजरी-- छोड़ जाने दे तू .....चल सीधा प्रचार करेगें और घर चलेंगे....॥
और फीर दोनो ठाकुर के द्वार पर आ जाते है।

ठाकुर अपने दोस्तो के साथ हवेली के अंदर बैठा था.....तभी उसे कीसी ने आवाज़ दी।

ठाकुर साहब......ठाकुर साहब.....। ठाकुर ने पीछे मुड़ कर देखा....

ठाकुर-- अरे दीवान क्यू चील्ला रहा है.....।
दिवान-- वो....वो कजरी आयी है।
इतना सुनना था की 48 साल का ठाकुर कीसी 20 साल के जवान लौडें की तरह बाहर भागते हुए नीकला....।

वहां बैठे ठाकुर के दोस्त सब हैरान रह गये की आखीर ये कजरी कौन है जीसके बारे में सुनते ही ठाकुर कीसी कुत्ते की तरह भागते हुए गया.....यही उत्सुकता ठाकुर के दोस्तो को भी बाहर ले के चला।

ठाकुर-- अरे कजरी.....तुम , आज मेरे घर का रास्ता कैसे याद आ गया?

कजरी तो एकदम से डर गयी थी....क्यूकीं ठाकुर उससे सीधा जो बात करने लगा था.....और गांव के सभी लोग की नज़र उन पर ही थी.....वो सोचने लगी की गांव वाले कही कुछ उल्टा सीधा ना सोच ले.....और कुछ गलत बात गांव में फैल गयी तो मेरा बेटा क्या सोचेगा.....

ठाकुर-- क्या हुआ कजरी क्या सोचने लगी?
कजरी जैसे नीदं से जागी॥

कजरी-- क.....कुछ नही ठाकुर साहब। वो....वो मैने सोचा की मैं भी प्रचार में हीस्सा लूं तो चली आयी।

ठाकुर के खुशी का ठीकाना ना था....वो यकीन नही कर रहा था की कजरी खुद चल कर उसके घर आयी है......

ठाकुर-- बहुत अच्छा कीया.....कजरी।

दिवान-- ठाकुर साहब रैली नीकालने का वक्त हो गया है.....चलीये आप गाड़ी मे बैठ जाईये....।

ठाकुर-- हां....हां चलो कजरी तुम भी गाड़ी में ही मेरे साथ बैठ जाओ।

कजरी-- अरे.....नही ठाकुर साहब.....गांव की औरतो के साथ ही प्रचार कर लूगीं.....और वैसे भी मुझे बहुत अजीब लगेगा अगर मैं अकेली आपके साथ गाड़ी में बैठुगीं तो।

ठाकुर-- हां.....तो संगीता को भी बीठा लो गाड़ी में क्यू संगीता तुम भी बैठ जाओ।

संगीता-- ठीक है ठाकुर साहब....जैसा आप कहे।

कजरी-- लेकीन संगीता?
ठाकुर-- लेकीन वेकीन कुछ नही.....मेरा प्रचार करने आयी हो तो मेरे साथ ही करना होगा।

कजरी और संगीता को अच्छा तो नही लग रहा था लेकीन फीर भी कुछ बोल नही पाई और जीप में बैठ गयी......।

दिवान ने ठाकुर को इशारा करके एक कोने में बुलाया.....ठाकुर दीवान के तरफ चल दीया।

ठाकुर-- अब क्या हुआ दीवान.....?
दिवान-- ठाकुर साहब......राजकरन की रैली नीकल पड़ी है.....आपने जैसा कहा था मैने सब गांव वालो को पैसा देकर बुला लीया है.....मुझे लगता है की उसके चुनाव प्रचार में सीर्फ राजकरन का परीवार ही होगा।

ठाकुर(हंसते हुए)-- हा......हा......हा, अब इस राजकरन को अपनी औकात का पता चलेगा.....ये दलीत नीचे जाती वाला साला ठाकुर परम सींह से टक्कर ले रहा है मादरचोद। देखते है क्या करेगा ?



यार रितेश लगता है चुनाव में पापा खड़े होकर गलती कर गये.....

रितेश-- तू ऐसा क्यू बोल रहा है अजय?
अजय(रितेश का दोस्त)-- अरे देख ना सारे गांव वाले उस ठाकुर के तरफ़ चल दीये एक तू ही है जो गांव से आया है।

रितेश-- अरे भोसड़ी के ये चुनावी दावपेच है दीखाने को कुछ और करने को कुछ वाली हाल है....ये तो सिर्फ रैली है गांव के सारे वोट तो तेरे पापा को ही मीलेंगे।

अजय-- तू बोलता है तो ठीक ही होगा.....चल अब अपनी भी रैली नीकालते है।

रितेश अजय के साथ.....चल देता है राजकरन के रैली में कुछ बीस से पच्चीस आदमी ही होगें वो भी घर वाले और यार दोस्त।

दोनो तरफ से रैली चली आ रही थी ठाकुर जीप में खड़ा हाथ जोड़े और उसके साथ दीवान, कजरी और संगीता थे और पिछे भारी भीड़ जो नारा लगा रहे थे ' वोट हमारा खाट पे, ठाकुर साहब राज पे।

ये नारा ठाकुर के तरफ से लग रहे थे.....राजकरन का चुनाव चिन्ह था इट , लेकीन उनका नारा तो सीधा साधा था.....हमारा प्रधान कैसा हो, राजकरन जी जैसा हो।

इन नारो में जोश था....रितेश अजय के साथ बाकी दोस्त भी जोर जोर से चिल्ला रहे थे।

दोनो की रैली गांव भर से गुजर रही थी.....और फीर आमने सामने भी पहुचं गयी।

अजय-- अरे....यार रितेश तेरी मां तो ठाकुर के तरफ से प्रचार कर रही है लगता है।
ये सुनते ही रितेश चक्का बक्का हो गया.....और नज़र उठा कर देखा तो सच में उसकी मां ही थी जो ठाकुर के जीप में बैठी नारा लगा रही थी......।
रितेश को बहुत गुस्सा आ रहा था......आखीर कार दोनो की रैली आमने सामने पहुचं गयी।

कजरी ने जैसे ही रितेश को देखा तो उसके होश ही उड़ गये कजरी का बदन थर थर कापंने लगा और उसे पसीने आने लगा।

रितेश के गुस्से का ठीकाना न था....लेकीन फीर भी वो अपनी मां को नज़र अदांज कर के चुनाव प्रचार में लग गया......।


पुरे दीन प्रचार हुआ.....शाम को कजरी और संगीता बीना ठाकुर से मीले घर चली आती है.....

संगीता-- अरे कजरी तू इतना घबरा क्यूं रही है...रितेश पुछेगा तो बोल देना सिर्फ प्रचार करने ही तो गयी थी।

कजरी-- पता नही क्यूं मेरा दील घबरा सा रहा है तू रुक जा ना रितेश के आने तक।

संगीता-- अच्छा तू घबरा मत मैं रुकती हू....।

शाम से रात हो गयी करीब 9 बज गये लेकीन रितेश अभी तक घर नही आया था...।

कजरी की तो धड़कन बढ़ने लगी.....वो परेशान होने लगी। अब संगीता भी परेशान होने लगी।

संगीता-- अरे कजरी , होगा वो अपने दोस्तो के साथ आ जायेगा बच्चा थोड़ी है वो....


और इधर रितेश अजय के साथ गांव के पुलीया पर बैठ कर पहली बार शराब पी रहे थे......

अजय-- यार रितेश ये दारु भी कमाल की चिज है....एक बेकार आदमी भी पीने के बाद अपने आप को बादशाह समझने लगता है।


रितेश-- सही कहा यार......मज़ा आ गया।

अजय-- भाई रितेश आज तो बुर चोदने का मन कर रहा है।
रितेश अपनी खाली हो चुकी ग्लास में दारु डालते हुए....

रितेश-- अरे भोसड़ी के मन तो मेरा भी कर रहा है .....लेकीन बुर कोई ऐसी वैसी चीज थोड़ी है जो मील जायेगी....।

अजय-- एक जुगाड़ है.....बोल तो बताऊं॥
रितेश-- अरे बोल तू जल्दी.....।
अजय-- पप्पू की बहन है.....बड़ी चुदक्कड़ है मादरचोद और तेरे घर के बगल में ही रहती है.....पटा ले साली को फीर मजे लूट खूब।

रितेश-- सही कह रहा है.....वैसे भी जब भी वो साली मुझे देखती है तो मचलने लगती है।
अजय-- तो चोद दे साली को......।
रितेश-- हां यार और वैसे भी लंड खड़ा हो कर के झुल जाता है.....ईसको भी अब बुर की जरुरत है...।

अजय-- हां यार सही कहा.....चल अब घर चलते है बहुत देर हो गयी है.....10 बज गया है मेरी मां तो आज चपेट लगायेगी जरुर मुझे।

फीर दोनो उठते है और अपने अपने घर की तरफ नीकल पड़ते है......

अजय अपने घर की तरफ बढ़ा जा रहा था.....रात काफी ज्यादा हो गया था अंधेरा था....रास्ते भी ठीक से नही दीख रहा था।

वो गांव के पुराने स्कूल से जैसे ही गुजर रहा था उसे कुछ खुसुर फुसुर की आवाज सुनाई दीया.....वो थोड़ा हैरान हो गया की ये आवाज़ कहा से आ रही है।
वो वहीं रुक गया और ध्यान से सुनने लगा तो आवाज़ उसे स्कूल के एक कमरे से आती हुई सुनाई दी......

उसने आवाज़ का पीछा कीया और स्कूल के उस कमरे की तरफ बढ़ा.....अजय धीरे धिरे कमरे की तरफ बढ़ रहा था.....वो जैसे ही कमरे के नज़दीक पहुचां तो उसने अंदर झांका उसे एक औरत की सीसकने की आवाज़ आई........आ......ई.......आ.......ह।

आवाज़ इतनी धीमी थी की अजय पता ना लगा सका की ये गांव की कौन औरत है.....लेकीन उसे इतना तो पता चल गया था की इस कमरे में चुदाई हो रही है,॥

अजय ने पहले सोचा की रुक कर पता करता हू की कौन है ये लोग.....लेकीन फीर बाद में सोचा की इस गांव में तो बहुत सी छिनाल औरते है....इन लोग के उपर समय बरबाद करके क्या मतलब....और फीर वो पीछे मुड़ा और घर की तरफ नीकल गया।

रितेश जैसे ही घर पहुचां तो कजरी और संगीता दोनो बैठ कर रितेश का इतंजार कर रहे थे.....रितेश के पैर डगमगा रहे थे।
कजरी और संगीता को समझने में देर नही लगी की रितेश दारु पी के आया है.....।

रितेश की हालत देख कर कजरी को बहुत गुस्सा आया की उसने दारु पीया है।

कजरी(गुस्से में)-- तू दारु पी कर आया है घर पर।

रितेश की आंखे अधखुली थी.....उसने इतना पीया था की ठीक से चलना तो दुर ठीक से खड़ा भी नही हो पा रहा था.....रितेश ने अपने लड़खड़ाते हुए जबान से बोला।

रितेश-- हां.....पी है मैने....तो क्या हुआ तेरी तरह बेशरमो की तरह गांव के ठाकुर के साथ थोड़ी घुम रहा था।

ये सुनते ही कजरी का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुंच गया......कजरी ने खीच कर रितेश को 3 , 4 थप्पड़ जम दीया।

कजरी-- नालायक अपनी मां को बारे में ऐसा बोलते हुए शरम नही आयी तूझे।

रितेश-- ओ.....हो मुझे बोलने में शरम आनी चाहीए और तूझे शरम नही आ रही थी ठाकुर के साथ घुमने में और वो भी ठाकुर के जीप पर......॥

कजरी-- मैं अपने मन से नही बैठी थी....ठाकुर साहब ने जबरजस्ती बैठने पर मजबुर कीया तो बैठी।

रितेश-- सही है....यार, तू मुझे ये बता गांव में बहुत सारी औरते है ठाकुर ने तूझे ही बैठने के लीये क्यूं बोला?

रितेश की बात सुनकर कजरी घबरा गयी और समझ नही पा रही थी की क्या जवाब दे और यही हाल संगीता का भी था....क्यूकीं वो दोनो अच्छी तरह से जानती थी की ठाकुर की नीयत उस पर खराब है लेकीन ये बात रितेश को बोलना मतलब खुद के पैर पर कुल्हाड़ी चलाने जैसा था।

इतने में वहां खड़ी संगीता ने बोला.....

संगीता-- तू पागल हो गया है क्या रितेश क्या अनाब शनाब बक रहा है....तूझे पता है हम वहां क्यूं गये थे.....पैसो के लीये गये थे। तूझे सुखी रोटी अच्छी नही लगती ना....तो तेरी मां और मै ठाकुर के चुनाव प्रचार में गये थे हज़ार रुपये मील रहे थे....वो अपने लीये नही गयी थी तेरे लीये गयी थी ताकी तूझे कुछ अच्छा खीला सके.....और एक तू है की अपनी देवी जैसी मां पर ही शक कर रहा है थू।

संगीता की बात सुनकर कजरी रोने लगती है। संगीता कजरी को संभालने लगती है.....और उसे गले से लगा कर बोली।

संगीता-- तू क्यूं रो रही है.....तूने तो अपने मां होने का फर्ज बखुबी नीभाई है....लेकीन ये अपने बेटे होने का फर्ज आज तक नही नीभाया......पुरा गांव इसे नालायक बोलता है......और तूझे एक बात बताती हूं कजरी जो मैने तूझे नही बताया था।

कजरी-- कैसी बात?
संगीता-- ये सच में नालायक है.....मेरी बेटी स्कूल से आती है तो....ये अपने आवारा दोस्तो के साथ उसे छेड़ता है....कल मेरी बेटी आकर मुझे बताने लगी और रोने भी लगी.......।

कजरी को फीर से गुस्सा आया और वो रितेश को मारने के लीए जैसे ही उठी संगीता ने उसे फीर से पकड़ लीया.....

कजरी-- ये इकदम हरामी हो गया है.....अब लड़कीया भी छेड़ने लगा नालायक।

बहुत देर से सुन रहा रितेश ने गुस्से में बोला।

रितेश-- छेड़ता नही उसको पसंद है वो मुझे प्यार करता हू मैं उससे।

संगीता-- ओ.....हो बड़ा प्यार करता है। खीलायेगा क्या उसको काम धंधा तो कुछ करता नही तूझे तो खुद तेरी मां पाल रही है.....अरे तुझ जैसे नालायक को तो कोइ अपनी लगंड़ी लड़की भी ना दे....... मैं मेरी बेटी भला क्यूं दूगीं?

रितेश को अब इतना गुस्सा आया की॥

रितेश-- हां तो ठीक है तू जा और अपनी बेटी की शादी उस ठाकुर के छोकरो से कर दे।

संगीता-- हां तो कर दूंगी वो खुश तो रहेगी वहां यहां करुगीं तो तील तील कर मर जायेगी।

रितेश खड़ा ये सब बाते सुन कर उसे अपनी बेइज्जती महेसुस होने लगी तो वो घर से बाहर लड़खड़ाते हुए नीकलने लगा तो उसे उसकी मां कजरी और संगीता दोनो ने पकड़ लीया।

कजरी-- कहां जा रहा है तू?
रितेश(अपने आप को छुड़ाते हुए)-- कहीं भी जाऊं तूझे उससे क्या ? मैं यहा अपनी बेइज्जती कराने आया हूं क्या.....और तूझसे नही बोला गया तो इसे लेकर आयी है मेरी बेइज्जती करने।

रितेश की आंखो में आशुं आ गये थे.....जिसे देख कजरी और संगीता दोनो घबरा गये उन्होने ने तो ये बात सीर्फ उसे सुधरने के लिये बोला था.....लेकीन ये बात रितेश को लग सी गयी।

रितेश ने अपना हाथ झटका और वो नाजुक सी दोनो औरते इधर उधर गीर गयी......और रितेश अपना आंशु पोछता लड़खड़ाते हुए तेजी से बाहर नीकल गया......और कजरी , संगीता उसे देखती रहती है।



कहानी शुरु कर दी है दोस्तो अपनी राय जरुर बतायें की कहानी में और क्या नया हो सकता है.......आगे आने वाले अपडेट आप सब के लम्बू का चप्पू देर तक जरुर चलायेगा ये वादा रहा......

धन्यवाद
fantastic update
 

basudeo

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अपडेट--3




कजरी.......और रीतेश आज सुबह सुबह ही खाना खा लिये थ........हालाकीँ कजरी नही खा रही थी....लकीन रितेश ने जबरदस्ती खाना खीला दीया।

कजरी-- बेटा सुबह सुबह ही तूने खाना खीला दीया.....अभी तक तो मैं नहायी भी नही थी...।

रितेश-- तो क्या हुआ मा.....कल से कुछ खायी भी तो नही थी......॥

कजरी-- अच्छा जी....मेरे बेटे को कब से मेरी फीक्र होने लगी?

रितेश-- बस यूं ही।

कजरी और रितेश दोनो बाते कर ही रहे थे की ......उसकी पड़ोसन रज्जो आ गयी....।

रज्जो-- क्या बातें हो रही है मां बेटे में?
रज्जो की बात सुनकर , दोनो ने अपनी नज़र उठायी तो देखा , पास में रज्जो खड़ी थी.....॥

कजरी-- अरे , रज्जो कुछ नही बस ऐसे ही...। बैठ तू .....।

वैसे तो रज्जो हमेशा सज संवर कर ही रहती है.....लेकीन आज उसने एक हरे रंग की साड़ी पहन रखी थी.....जो उसकी भारी भरकम शरीर से चीपकी हुई थी.....जीसमे उसकी मोटी गांड का उभार साफ दीख रहा था.......ब्लाउज तो इतने कसे हुए थे की.....उसकी आधी से ज्यादा चुचींया ब्लाउज के बाहर ही उछल कूद कर रही थी..।

रज्जो के बैठते ही....रितेश की नज़र सीधा रज्जो की बाहर नीकली हुई चुचीयों पर पड़ी।

रज्जो-- आज नही चलेगी.....कजरी ठाकुर के प्रचार में?

कजरी-- नही रज्जो.....अब तो मैं कीसी प्रचार व्रचार में नही जाउगीं॥

रज्जो-- अच्छा.....तो रितेश बेटा तू क्यू नही चलता?
रितेश के उपर रज्जो के बात का कोई असर ही नही पड़ा.....उसकी नज़र तो....रज्जो की अधखुली चुचींयो पर थी....वो एकटक रज्जो की चुचीयों को नीहारे जा रहा था।

रज्जो के एक बार बुलाने पर जब रितेश को कोई फरक नही पड़ा तो....रज्जो और कजरी दोनो की नज़रे रितेश के नज़रो का पीछा कीया तो.....पाया की रितेश की नज़र तो रज्जो की चुचीयों पर टीकी थी।

ये देख रज्जो ने....रितेश को छिंछोड़ाते हुए बोली-

रज्जो-- कहां ध्यान है तेरा बेटा.....मै तूझसे बात कर रही हूं॥
इतना सुनते ही रितेश .....जैसे होश में आया।

रितेश-- क....क.....कहीं नही काकी। वो मैं कुछ सोच रहा था।

रज्जो ये सुनकर मुस्कुरा देती है......और अपनी चुचींयो पर से साड़ी का पल्लू थोड़ा और हटाते हुए बोली-

रज्जो-- अरे बेटा.....अभी तू बच्चा है....ज्यादा सोचा मत कीया कर.....है की नही कजरी?

कजरी-- हां.....सही कहा रज्जो ने।
कजरी(मन में)- - छीनाल.....एक तो अपनी चुचींया दीखा कर मेरे बेटे को भड़का रही है.....और उपर से कह रही है की ज्यादा सोचा मत कीया कर , छिनाल कही की इससे तो अपने बेटे को दूर रखना पड़ेगा नही तो ये छिनाल मेरे बेटे को बिगाड़ कर रख देगी......यही सोचते हुए.....

कजरी-- अरे.....बेटा, तूझे आज अजय के साथ प्रचार में नही जाना है क्या?

रितेश-- हां ......मां बस जा रहा हूं॥
और रितेश उठ कर खड़ा हो जाता है....।

रज्जो-- अरे बेटा रितेश मैं भी ठाकुर के यहां जा रही हूं तो तेरे साथ ही कुछ दूर तक चली चलती हूं॥

इतना सुनते ही.....रितेश की बाछें खील गयी.....उसने सोचा क्या बात है साली की चुचींया देखने का थोड़ा और मौका मील जायेगा।

रितेश-- हां.....काकी चलो ना।

और फीर रज्जो रितेश के साथ चल देती है॥

कजरी बैठे बैठे उन दोनो को जाते हुए देखती रहती है.....और रज्जो के उपर उसका गुस्सा चढ़ा चला जाता हे...।

कजरी(मन में)-- ये छिनाल कहीं मेरे बेटे को बिगाड़ ना दे....क्या करू कुछ समझ में नही आ रहा है.....कैसे दुर रखु अपने बेटे को इस छिनाल से......यही सोचते हुए कजरी उठ कर घर के अँदर चली जाती है।


रास्ते में रितेश रज्जो की चुचींयो को कनखी से ताड़े जा रहा था....जीसका पता रज्जो को था।

रज्जो(मन में)-- अरे रज्जो......इससे अच्छा मौका नही मीलेगा .....रितेश के मोटे और लम्बे लंड से अपने बुर की खुजली मीटवाने का......इस बेचारे को तो इतना भी नही पता है की इसने अपने पास कीतना दमदार हथीयार छुपा रखा है.......आह.....क्या बताउं जब से इसे घर के पिछवाड़े मुतते समय इसका लंड देखा है.....मेरी बुर तो फड़क रही है.....साले का क्या लंड है.....मेरी बुर का भी कचुम्बर बना दे....ऐसा लंड है इसका।

रितेश लगातार रज्जो की चुचीयों पर अपनी नज़र जमाये था.....ये देख रज्जो ने बोला-

रज्जो-- बेटा रितश क्या देख रहा है?
ये सुनकर रितेश थोड़ा घबरा गया....और हकलाते हुए बोला।

रितेश-- क.....कुछ नही काकी।

रज्जो-- देख झूठ मत बोल.....मैं जानती हू तू कब से क्या देख रहा है.....लेकीन तू सच सच बता की क्या देख रहा था?

रज्जो की इस बात से तो रितेश की गांड ही फट गयी.....उसने सोचा की कही साली ने मुझे इसकी चुचींया देखते हुए तो नही देख ली।

रज्जो-- क्या सोचने लगा......बता ना की क्या देख रहा था?

रितेश(हकलाते हुए)-- सच कह रहा हूं काकी....कुछ नही देख रहा था।

रज्जो-- अच्छा.....चल ठीक है....लेकीन तूझे एक बात बता दू....की कुछ चीजें देखने के लीये नही होती।

रितेश-- मैं कुछ समझा......नही काकी।
रज्जो-- धिरे.....धिरे सब समझ जायेगा बेटा....की कुछ चीजे देखने के लीये नही होती(कहकर रज्जो ने अपनी एक चुचीं खो हल्के से दबा देती है)

रज्जो के ऐसा करते देख.....रितेश की हालत खराब हो जाती है.....उसके लंड में खुन का प्रवाह होने लगता है......और फीर धीरे धिरे उसका लंड खड़ा होने लगता हे।

रज्जो की नज़र अचानक ही रितेश क पैटं पर पड़ा जो अब तक उभार ले चुका था.....जीसै देख रज्जो ये समझ गयी थी की ये रितेश का घोड़े जैसा लंड ही है.....रज्जो के कल्पना मात्र से ही उसके बुर में झनझनाहट होने लगती है.....।

गांव के कच्चे सड़क पर चल रहे रज्जो और रितेश दोनो ही अपने अपने हथीयार को समझा कर चल रहे थे......की तभी कुछ दुर आगे......एक कुत्ता एक कुतीया के उपर चढ़ कर चुदाई कर रहा था.....जिस पर उन दोनो की नज़र पड़ जाती है।

उन दोनो की गरमी बढ़ाने के लीये......ये नज़ारा कीसी आग में पड़ रहे घी की तरह था.....।

कुतीया......मुह फाड़ कर चील्ला रही थी.....और कुत्ता जोर जोर से.....उस कुतीया को चोदे जा रहा था.....।

वो दोनो जैसे ही पास में पहुंचते हे.....कुत्ता और कुतीया भाग खड़े होते है....।

रितेश तो चुप था......लेकीन रज्जो से रहा नही जा रहा था....।

रज्जो-- ये आज कल कुत्ते भी ना.....कही भी चालू हो जाते है।

रितश-- हां काकी.....थोड़ा भी दीमाग नही है इन कुत्तो को.....॥

रज्जो-- हां ......अब देख ना की कुतीया मुह फाड़ फाड़ कर चील्ला रही थी लेकीन.....कुत्ता साला जबरजस्ती कीये जा रहा था....।

रज्जो के मुहं से ऐसी बाते सुनकर रितेश का.....लंड उफान पर पहुच गया.....उसका पैट तो मानो जैसे फट जायेगा उसके लंड के तनाव से......रज्जो ने देखा की रितेश का लंड झटके मार रहा है.....तो छिनाल रज्जो ने अपना चाल चलते हुए कहा-

रज्जो-- अरे......बेटा रितेश क्या हुआ तूझे?
रितेश-- कहां क्या हुआ काकी?

रज्जो-- इशारा करते हुए .....ये तेरे नुन्नी को क्या हुआ.....पैटं में झटके मार रहा है।

रितेश की तो सिट्टी पिट्टी गुल हो.....गयी क्यूकीं उसे थोड़ा भी अदांजा नही था की, रज्जो काकी ऐसी बाते कह देगी.....रितेश तो इकदम शरमा गया.....वो समझ नही पा रहा था की क्या बोले।

रज्जो-- अरे क्या हुआ बेटा.....शरमा क्यूं रहा है.....पेशाब लगी है क्या? जो ये तेरा नुन्नी झटके मार रहा है।

रितेश-- ह......हां काकी.....मुझे पेशाब ही लगी है।

रज्जो-- तो कर ले ना, इसमे शरमाने वाली कौन सी बात है....।

रितेश(मन में)-- अरे.....रंडी साली तेरे मुह में पेशाब करने का मन कर रहा है....।

रज्जो-- अरे अब क्या सोचने लगा.....जगह पसंद नही आयी क्या? की अपनी काकी के मुह में मुतेगा।

रितेश तो ये सुनकर दंग रह गया.....ये तो वो बात हो गयी की जैसे उसके मन की बात रज्जो ने सुन ली हो......रितेश ने सोचा की ये साली तो पुरी चुदासी है.....और इतना खुल कर बात कर रही है......तो मैं क्यूं शरमा रहा हूं॥

रितेश-- काकी मन तो मेरा भी है.....की मैं तेरे मुह में ही मुतु ......लेकीन तू थोड़ी ही मेरा मुत पीयेगी......।

ये.......बात सुनकर तो रज्जो पहले तो दंग रह गयी लेकीन फीर उसके दुसर छंड़ ही उसके चेहरे पर एक कातीलाना मुस्कान भी फैली...।

रज्जो-- हे.....भगवान तू.....मेरे मुह में मुतेगा। कीतना गंदा है रे तू......ऐसा सोचता है तू मेरे बारे मे......चल आज तो मैं तेरे मां से मीलुगीं॥

रितेश की सीट्टी पिट्टी गुल......रज्जो की बात उसके होश उड़ा दीये थे.....।

रितेश-- नही.....काकी गलती से.....नीकल गया.....तूने मुह में मुतने की बात की तो मेरे भी मुहं से नीकल गया......माफ़ कर दे काकी मां से कुछ मत कहना(रितेश एक हद तक गीड़गीड़ा कर बोला)

रितेश की हवा टाइट होते देख.....रज्जो की तो बांछे खील गयी.....उसने थोड़ा बनावटी गुस्से में बोली।

रज्जो-- तो क्या....अगर मैं बोलूगीं की मुझे चोद तो तू मुझे चोद देगा....आं.....बोल।

अब तो रितेश और ज्यादा घबरा गया.....उसके पास कोई जवाब ही न था....तो चुपचाप खड़ा रहा।

रज्जो-- खड़ा.....क्यूं हैं बोल.....चोदेगा मुझे तू......अगर मैं बोलूगीं तो.....हा.....बोलता क्यूं नही.....तू अपना मुसल घोड़े जैसा लंड मेरी बुर में डालकर चोदेगा.....बोल।

रितेश तो हक्का बक्का रह गया.....रज्जो के मुह से ऐसी बाते सुनकर।

रितेश-- नही काकी.....गलती हो गयी माफ़ कर दे.....।

रज्जो-- नही....कुछ गलती नही....अब तो तूझे सज़ा मीलेगी ही.....अगर तू चाहता है...की ये बात तेरी मां तक ना पहुचें तो आज.....रात को चुपके से मेरे घर में आ जाना। तूझे तेरी सज़ा वही सुनाउगीं......समझा।

रितेश बेचारा मरता क्या ना करता.....उसे रज्जो की बात माननी पड़ी.....और हां में सर हीला कर.....अजय के घर की तरफ़ चल दीया......और रज्जो ठाकुर की तरफ।



कहानी जारी रहेगा दोस्तो.......अपना सुझाव और कहानी को पसंद करने के लीये.....थैक्सं दोस्तो......कल मीलते है अगले अपडेट के साथ
fantastic update
 
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