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Incest बेटा है या.....घोड़(ALL IN ONE)

फीर मचायेगें है की नही?

  • हां

    Votes: 9 81.8%
  • जरुर मचायेगें

    Votes: 8 72.7%
  • स्टोरी कैसी लगी

    Votes: 0 0.0%

  • Total voters
    11
  • Poll closed .

basudeo

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52
33
18
अपडेट---4






रितेश अजय के घर पहुचता है......जंहा अजय पहले से ही चुनाव प्रचार की तैयारी में था।

अजय-- अरे भाई इतनी देरी से आ रहा है.....।

रितेश-- अरे.....हाँ यार खल थोड़ा देर से सोया था तो नीद नही खुली...॥

अजय-- चल कोइ बात नही......वैसे आज तुझे चुनाव प्रचार करने में बहुत मज़ा आयेगा!

रितेश-- वो क्यूं बे?
अजय-- अरे भाई क्यूकीं आज तेरी जान आई है....मेरी बहन के साथ चुनाव प्रचार करने में॥

ये सुनकर एक समय के लीये रितेश के चेहरे पर चमक आ जाती है....जो साफ साफ अजय देख सकता था....लेकीन कुछ पल बाद ही उसका चेहरा उतर जाता है.....।

अजय-- क्या हुआ बे....तेरा चेहरा उतर क्यूं गया? तूझे खुशी नही हुइ क्या?

रितेश-- अरे काहे की खुशी बे......वो मुझे पसंद ही नही करती......मेरी शिकायत अपने मां से करती है की मै उसे छेड़ता हूं।

अजय-- चल ठीक है.....यारा छोड़ जाने दे। ऐसी लड़कीयां प्यार को नही समझती.....सुना है.....आंचल के पीछे ठाकुर का छोटा बेटा लगा है.....स्कूल में दोनो की बहुत पटती है....।

रितेश-- तू सही कह रहा है.....मेरे जीवन का कालचक्र ये ठाकुर का ही परीवार है......एक तो ये ठाकुर मेरी मां के पीछे लगा है.....और ये दुसरा उसका बेटा मेरी जान के पीछे......कुछ समझ ही नही आता की क्या करुं?

अजय -- यार सही कह रहा है तू.....जब कोई अपनी मां को गदीं नीगाह से देखता है ना तो खून खौल जाता है.....।

रितेश-- हां सही कहा तूने.....और हद तो तब हो जाती है जब वही मां हंस हंस कर उन लोगो से बात करने लगती है.....।

अजय-- एक बात बोलू भाई?
रितेश-- हां बोल ना।
अजय-- ये जो मां है ना......भाई ये भी औरत ही है.....भगवान ने इनको भी भोसड़ा दीया है.....तो लंड तो चाहीए ही ना।

रितेश-- तो इसका मतलब कीसी का भी लंड ले लेंगी ये लोग।

अजय-- सही कहा यारा......कभी कभी तो मन करता है की मै ही चोद दू और जीतना लंड चाहीए उतना अंदर डाल कर इनका भोसड़ा फाड़ दूं।

ये सुनकर रितेश हंसने लगता है और बोला--

रितेश-- अरे तो तू अपनी मां चोदेगा?
अजय-- हां तो क्या करुं ? दुसरे से चुदवायेगीं तो इससे अच्छा हमसे ही चुदवाले ना....। साला घर की बात घर में.
....और मज़ा अलग से...।

रितेश-- अरे भोसड़ी के 5 इचं का लंड लेकर तू अपनी मां के भोसड़े में क्या गदर मचायेगा?

अजय-- तो भोसड़ी के तू चोद ना.....तेरे पास तो घोड़े का है ना......कसम से तेरे जैसा लंड मेरे पास होता ना तो अपनी मां कब का चोद देता।

रितेश.......ये सुनकर सोच में पड़ गया की यार अजय के बात में तो दम है......साला ठाकुर पिछे पड़ा है......कही साले ने कुछ इधर उधर की पट्टी पढ़ा कर मां को फंसा लीया तो गड़बड़ हो जायेगा.....कहीं मुह दीखाने लायक नही रहूंगा......लेकीन क्या मां के साथ ये सब करना......मां क्या सोचेगी......वो तो जान से मार देगी मुझे।

रितेश यही सब सोच रहा था की तभी अजय ने उसे झींझोड़ा....।

अजय-- क्या सोचने लग गया बे?
रितेश-- क......कुछ तो नही। चल......प्रचार करते है।

और रितेश जाने ही वाला था की अजय ने कहा--

अजय-- भाई तू जो सोच रहा था ना एक बार कर के देख.....कसम से उससे ज्यादा मज़ा जींदगी में और कुछ नही।

ये सुनकर रितेश थोड़ा मुस्कुराया और बोला@

रितेश-- भाई अगर कही गड़बड़ हो गया तो उससे बड़ा तकलीफ भी जींदगी में कही नही...।

ये सुनकर अजय भी हंस पड़ा......दोनो हंस ही रहे थे की तभी अजय के घर के अँदर से उसकी बहन निलम के साथ आंचल बाहर नीकली.....

दोनो को हंसता देख आंचल ने नीलम से कहा-

आंचल-- नीलम तूझे एक बात बता दूं की तू अपने भाई को इस लोफड़ से दूर रखा कर नही तो वो भी बर्बाद हो जायेगा।

नीलम-- मुझे तू एक बात बता ? आखीर तू रितेश से इतना जलती क्यूं है?

आंचल-- तो इसमें पसंद करने जैसा है ही क्या? दीन भर आवारा गरदी करता है.....बेचारी काकी इधर उधर से हाथं पैर मार के पैसा लाती है तो इसको खीलाती है....ईसको जब अपनी मां की नही पड़ी है तो मेरा क्या खयाल रखेगा?

आंचल की बात सुनकर नीलम हंसने लगी....नीलम को हंसता देख आंचल न कहा-

आंचल-- तू हंस क्यू रही है?
निलम-- हंस इसलीये रही हूँ की तेरे ख्याल रखने वाली तो मैने की नही.....तू ही बोल रही है की....वो मेरा खयाल क्या रखेगा? इसका मतलब वो तूझे पंसद है सीर्फ वो कुछ काम धाम नही करता इसलीये तू उसपे गुस्सा होती है.....!

निलम की बात सुनकर आंचल शरम से लाल हो जाती है....जो नीलम अच्छी तरह से देख सकती थी।

निलम-- ओ....हो शरमा क्यूं रही हो.....प्यार करती है की नही....अगर नही करती तो बोल दे मैं अपना जुगाड़ लगा लूं........।

आंचल-- मुंह तोड़ दूंगी तेरे....जो उसकी तरफ देखा भी तो।

निलम-- ओ हो....बड़ा प्यार आ रहा है....।
हां तो आ रहा है तो तूझे क्या चल चुनाव प्रचार करने.....।

और फीर सब लोग.....चुनाव प्रचार मेँ चल देते है॥


दोपहर का समय था......कजरी घर पर थी....पेड़ के छांव में अपनी बकरीया बांध कर उसे चारा डाल रही थी.....की तभी उसके घर पर एक गाड़ी आकर रुकती है....कजरी गाड़ी को देख कर बकरीयो को चारा डाल छोड़ खड़ी हो जाती है....।

गाड़ी में से ठाकुर बाहर नीकलता है.....जीसे देख कजरी हील जाती है.....उसने सोचा की ठाकुर क्यूं आया है उसके घर?

ठाकुर मुनीम के साथ सीधा कजरी के पास आता है.....।

ठाकुर-- अरे......कजरी कैसी हो तूम?
कजरी-- ठ.....ठीक हूं ठाकुर साहब.....बोलीये कैसे आना हुआ?

ठाकुर-- अगर कुछ काम होगा तो ही आ सकता हूं क्या?

कजरी-- न....नही ठाकुर साहब मेरे कहने का मतलब ये नही था....।

ठाकुर-- अच्छा ठीक है.....मैं तो ये पुछने आया था.....की आज तुम चुनाव प्रचार में क्यूं नही आयी?

कजरी-- वो.....वो ठाकुर साहब.....घर पर इतना काम है की.....मैं आ नही पाती...।

ठाकुर-- अरे......घर का काम तो रोज ही रहता है.....लेकीन मेरा चुनाव प्रचार तो कुछ ही दीनो का है.....मुझे तो लगता है की तुम जानबुछ कर नही आती....।

कजरी-- नही.....ठाकुर साहब ऐसी कोई बात नही है......दरशल बात ये है की....मेरे बेटे को अच्छा नही लगता की मैं गांव में घुमु। तो इसीलीये मैं नही आती....।

ठाकुर-- ये तो बिल्कुल सही बात है कजरी....की कीसी का भी बेटा ऐसा नही चाहता की उसकी मां पुरे गांव में घुमे.....खास कर वो बेटा जीसका बाप ना हो...। कोई बात नही कजरी अगर तुम्हारे बेटे को अच्छा नही लगता तो मुझे तुम्हारे उपर जोर जबरदस्ती करके कुछ मतलब नही है.....ठीक है तो फीर मैं चलता हूं.....।

ठाकुर जाने के लीये जैसे ही मुड़ा.....की अचानक रुक कर बोला-

ठाकुर-- अच्छा.....तुम्हारा वोट तो मीलेगा ना.....की वोट भी बेटे के मन से डालोगी?

कजरी-- वो...वो.....मै.....तो।
ठाकुर-- कोई बात नही जंहा मन हो वहीं डालना.....लेकीन फीर भी एक बार हाथ जोड़ कर विनती करुगां की वोट खाट के चुनाव चिन्ह पर डालना.....और बोलकर ठाकुर मुनीम के साथ गाड़ी में बैठकर चल देता है......।

कजरी वही खड़ी ठाकुर को देखती रहती है......उसे समझ में नही आ रहा था.....क्यूकीं जीस तरीके से ठाकुर ने आज बात की थी....कही ना कही कजरी को ठाकुर के बारे में सोचने पर मजबुर कर दीया था.....।

कजरी(मन में)-- आज ठाकुर साहब कीतने अच्छे से बात कर रहे थे......क्या सच में ठाकुर साहब ऐसे ही है.....या फीर कुछ और.....।


और इधर ठाकुर के साथ गाड़ी में मुनीम बैठा था.....और गाड़ी हवेली की तरफ बढ़ रही थी....।

ठाकुर-- मुनीम.....क्या लगता है तूझे.....तेरा तरकीब काम करेगा?

मुनीम-- 100 प्रतिशत ठाकुर साहब.....बस मैं जैसा कह रहा हूं बस आप वैसा करते जाइये.......याद है आपको जब कजरी के...।

ठाकुर-- खामोश मुनीम! वो बात अगर कभी दुबारा तेरी जुबां पर आया तो.....हलक से जुबान खींच लूगा....मुझे तेरी तरकीब पर भरोसा है....।

मुनीम-- गलती माफ हो ठाकुर साहब......लेकीन कजरी के जवानी का रस आपको लूटना है.....तो उसके बेटे का कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा...।

ठाकुर-- अब तू ही कोई तरकीब लगा मुनीम की उसका क्या करना है....।

और फीर गाड़ी तेज रफ्तार के साथ हवेली में दाखील हो जाती है........


दीन भर चुनाव प्रचार करके आंचल अपने घर आ चुकी थी.....वो आज थोड़ा परेशान लग रही थी.....वो सीधा चुपचाप अपने कमरे में चली गयी.....यहां तक की बाहर उसकी मां संगीता बैठी थी....उसे भी बीना कुछ बोले वो अंदर चली गयी..।

ये देख संगीता भी हैरान रह गयी की इसको क्या हो गया बीना कुछ बोले ही अंदर चली गयी...।
तो संगीता भी उठ कर आंचल के कमरे में चली आती है.....।

आंचल खाट पर लेटी .....अपना चेहरा तकीये में घुसा कर रो रही थी....।

संगीता-- आंचल.....क्या हुआ बेटी क्यूं रो रही है...।
आंचल वैसे ही पड़ी रो रही थी......और बोली-

आंचल-- कुछ नही मां तू जा...।

संगीता आंचल के सिरहाने बैठ जाती है और प्यार से उसकै सर पर हाथ फीराती हुई बोली-

संगीता-- रितेश ने फीर छेड़ां क्या तूझे.....तू बोल मैं उसकी खबर लेती हूं.....छेंड़ा क्या उसने तूझ?

आंचल रोते हुए खाट पर उठकर बैठते हुए बोली-

आंचल-- नही छेंड़ा मां ......इसी लीये तो रो रही हूं।

'आंचल की बात सुनकर संगीता दंग रही है.....उसने सोचा की ये लड़की क्या बोल रही हो।

संगीता-- तू क्या बोल रही है....मुझे कुछ समझ नही आ रहा है....।

आंचल(अपने आंशु पोछते)-- अ...आज मै.....नीलम के यहां चुनाव प्रचार में गयी थी.....पुरा दीन मेरे आजू बाजू ही था.....लेकीन एक बार भी मेरी तरफ नही देखा.....उसने....वो क्या सोचता है मां......की मै उसको नीचा दीखाती हूं तो क्या मैं उससे प्यार नही करती....।

आंचल की बातो ने तो संगीता के बदन में चीटीया दौड़ा दी.....वो सोचने लगी की ये कैसी लड़की है.....जीस लड़के की बुराईया करते थकती नही थी......आज उसी के लीये ये रो रही है वो भी इसलीये की उसने आज एक बार भी इसे देखा नही..।

संगीता-- तो तू रितेश को पंसद करती है?
आंचल-- पसंद.......मेरी तो दीन उसके खयालो से और रात उसके हसीं सपनो से कटती है.....मै उस पर चिल्लाती थी की ताकी वो अपनी जीम्मेदारीयो को समझे और घर परीवार के बारे में सोचे.....।

कसम से संगीता के लीये ये सब एक सपना सा लग रहा था.....क्यूकीं उसने आज तक आंचल के जुबान पर रितेश के लिये कड़वे शब्द छोड़ कुछ नही सुनी थी...।

वह यह जानती थी की रितेश ने आंचल को क्यूं नही देखा एक बार भी! क्यूकीं उस दीन उसने रितेश को इतना सुना जो दीया था.....।

संगीता ने ठहरे हुए लफ्जो में कहा-- कुछ नही मेरी बीटीया रानी अगर तुझे रितेश पंसद है तो तेरी शादी मैं उससे करा कर ही रहूंगी।

ये सुनते ही आंचल खुश हो जाती है....और अपनी माँ के सीने से लग जाती है.....॥

कुछ समय बाद संगीता.......कजरी के घर की तरफ नीकल देती है......कजरी घर पर बैठी थी.....और रितेश का इतंजार कर रही थी.....की तभी वहां संगीता पहुचं जाती है....।

संगीता(पहुचंते ही)-- क्या हो रहा है....कजरी मुझे तो कुछ समझ में ही नही आ रहा है।

कजरी-- मुझे भी कुछ समझ में नही आ रहा है....।

ये सुन संगीता बोली-- तेरे साथ क्या हुआ जो तुझे समझ में नही आ रहा है.....।

फीर कजरी ने आज की बात संगीता से बताई और संगीता ने आंचल की बात कजरी को बताई....॥

दोनो हैरान परेशान थे.....की तभी संगीता बोली-

संगीता-- देख कजरी कभी कभी सच्चाई वो नही जो हमे दीखता है.... मुझे तो लगता है.....ठाकुर साहब भी भले इंसान है......वो तो गांव वालो ने उनके बारे मे खीचड़ी कर रखी है...। हां ठाकुर की नज़र तेरे उपर है.....लेकीन वैसे देखा जाये तो खुबसुरत औरतो पर नज़र तो हर कीसी पर होती है.....तो इसका मतलब ये तो नही की वो इंसान ही बुरा है.....।

संगीता की बात सुनकर कजरी सोच मे पड़ गयी फीर बोली-

कजरी-- मुझे तो कुछ समझ में नही आ रहा है की खौन बुरा है और कौन भला!

संगीता-- तो ठीक है.....ये सारी चीजें हालात पर छोड़ दे....क्यूकीं हालात सबकी सच्चाई बाहर लाती है....।


इधर रितेश अजय के घर से सिधा अपने घर चला आ रहा था........और आज उसके भी मन में बहुत सारे खयाल उठ रहे थे......एक तो आज सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात ये थी की सुबह ही अजय ने उसके लंड मे जो आग लगाई थी की अपनी ही मां पटा के चोदो.....घर की बात घर मे और मज़े भी।
दुसरी ये की आज रात रज्जो पता नही उसके साथ क्या गुल खीलाने वाली है......और तीसरी ये की ठाकुर भी उसके मां के पिछे पड़ा है......और उसका बेटा उसके प्यार के।

इतने सारे सवालों से झुझता......रितेश के कदम उसके घर की तरफ बढ़ रहे थे......


सबसे पहले तो sorrrrrrry dosto ki itne dino se update nahi de paya.....thoda busy tha!

Dusra ye ki update dene ke chakkar me update chhota hi rah gaya.....aur tisra ye ki ritesh ke sare sawal ke jawab isi kahani me milenge.......to padhte rahiye......update kabhi kabhi late ho sakte hai....aur kabhi kabhi chhota hamesha nahi!

Thanks frnds.
fantastic update
 

basudeo

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सवालो में उलझा रितेश के कदम घर की तरफ बढ़े चले आ रहे थे।

जल्द ही वो घर पहुंच गया......घर पर उसकी मां कजरी के साथ बैठी बाते कर रही थी......।

वो भी उन लोग के पास ही आकर खाट पर बैठ गया....।

कजरी-- अरे बेटा तू आ गया....बैठ तू मैं तेरे लिये पानी लाती हूं.....मुह हाथ धो ले फीर खाना खा ले....।

रितेश खाट पर बैठा अपनी मां को एक टक नीहारे जा रहा था.....आज वो अपनी मां को बहुत गौर से नीहार रहा था...... कजरी का खुबसुरत गोरा चेहरा जीस पर लालीमा बीखरी हुई थी......उसे ना जाने क्यूं आज बहुत मोहीत कर रहा था.....रितेश की नज़रे जब अपनी मां के होठो पर पड़ी तो न जाने क्यूं उसके दील की धड़कने तेज होने लगी....गुलाबी होठ कीसी रस से भरी हुई थी.....दोनो गाल कीसी फूल की पखुंड़ी की तरह खली थी.....रितेश के बड़ते हुए धड़कन ने उसे थोड़ा और नीचे देखने को उकसाया तो रितेश की नज़रे कज़री के सुराहीदार लम्बी गर्दनो पर आ कर टीकी.....रितेश तो जैसे अपनी मां की खुबसुरती में खो सा गया.....उसका मन कर रहा था की......अभी अपनी मां को बांहो में भर ले और उसे चुमता जाये.....लेकीन मन ही तो है कुछ भी करने लगता है....।
रितेश का दील थोड़ा और नीचे देखने को बेसब्र था.....लेकीन हीम्मत ही नही पड़ा।

रितेश को ईस तरह अपने आप को देखते हुए कजरी हैरान सी हो गयी और पास में बैठी संगीता का भी यही हाल था....।

क्यूकीं अब तक कजरी ने रितेश को दो चार बार आवाज़ लगा चुकी थी....। लेकीन रितेश तो जैसे कजरी की खुबसुरती में डुब सा गया था......उसे कुछ सुनाई नही दे रहा था।

'कजरी ने रितेश को झींझोड़ते हुए बोला'

कजरी-- बेटा.....बेटा.....क्या हुआ? कहा खो गया?
रितेश को जैसे होश आया और सपनो की दुनीया से बाहर आते ही-

रितेश-- ह.....हा.....मां।
कजरी-- क्या हुआ बेटा.....कहां खो गया?

रितेश अपने हाव भाव को ठीक करते हुए'
रितेश-- क.....कहीं नही मां.....बस चुनाव के बारे में सोच रहा था....।

कजरी-- चुनाव के बारे में......क्या?
रितेश-- बस यही की.....अजय का पापा चुनाव ठाकुर के विपच्छ खड़े हैं.....और ठाकुर के साथ गांव के कुछ ज्यादा ही लोग खड़े है.....।

कजरी-- बेटा......ठाकुर साहब बड़े आदमी है.....अगर जीतते भी है तो गांव की भलाई के बारे में ही सोचेगें.....।

रितेश-- तो तुम्हारे हीसाब से.....अगर अजय के पापा जीतेगें तो गांव के बारे में नही सोचेगें?

कजरी-- नही.....मेरे कहने का वो मतलब नही था.....अब तू ही बोल रहा है की गांव के ज्यादा तर लोग ठाकुर साहब के साथ है....तो , बात वही आती है की ठाकुर साहब ही जीतेगें......।

रितेश-- कुछ भी हो मां.....ठाकुर को तो मैं जीतने नही दूगां॥

कजरी-- भला वो कैसे?
रितेश-- इसके लिए मैने तरकीब बना ली है...।

कजरी-- कैसी तरकीब बेटा?
रितेश-- है एक तरकीब मां......जीसको मैं और अजय मीलकर अंजाम देगें॥

ये सुनकर कजरी थोड़ा घबरा जाती है.।
कजरी-- बेटा कोइ खतरे वाला काम मत करना की तू मुश्कील में पड़ जाये।

रितेश-- कोई खतरा वतरा नही है मां....तू चिंता मत कर।

कजरी-- अच्छा ठीक है.....मेरा राजा बेटा॥ अब चुनाव के दावपेंच छोड़ और मैं खाना लाती हूं तू खा ले...।

रितेश-- अरे....मां तू भी ना....शाम के 6 बज रहे है। अब सीधा रात को खाउगां.....।

तभी वहां बैठी संगीता बोली-
संगीता-- अरे.....बेटा खा ले। सुबह से कुछ खाया नही होगा भूख लगी होगी...।

रितेश संगीता की बात सुनता तो है लेकीन कुछ बोले बीना ही वंहा से उठ कर चला जाता है...।

संगीता बेचारी बहुत दुखी होती है....और रितेश को जाते हुए देखती रहती है।

रात का समय था.....कजरी रसोई में बैठी खाना बना रही थी.....और रितेश घर के बाहर खाट लगा कर उसपर लेटा था.....।

ठंढी हवायें चल रही थी.....रितेश के दील और दीमाग पर बस उसकी मां ही बैठी थी....वो अभी भी सीर्फ अपनी मां के बारे में ही सोच रहा था....और वो ये भी भूल गया था की आज रात उसे रज्जो ने बुलाया हो...।

रितेश(मन में)-- मां तूने तो मुझे उस चक्रब्यूह में डाल दीया है की मैं उससे बाहर ही नीकल पा रहा हूं.....तू इतनी खूबसुरत क्यूं है मां.....देख ना मैं कीतना बेचैन हो गया हूं......तू कहती है ना की मैं तेरे दील का टुकड़ा हू.....आज यही टुकड़ा तेरे दील से जुड़ने को बेकरार है....मां
*जीन होठो,और गालो को चुम कर मैं बड़ा हुआ मां.......आज उन्ही होठो को चुमने के लीये बेचैन हूं।
मैं कैसे बताउं की कीतना बेचैन हूं मां॥
तेरे ममता के आंचल में बंध चुर हू मां॥

अपने आप से ही बाते करता रहा.....लेकीन जब उसे अपनी खुबसुरत मां को देखने का मन कीया तो वो सीधा उठ कर अपनी मां के पास रसोई घर में जाकर खड़ा हो गया...।

कजरी-- अरे......बेटा, तू यहां क्या कर रहा है..इतनी गर्मी में?
रितश-- कुछ नही मां बस ना जाने क्यूं तूझे देखने का मन कीया तो चला आया।

रितेश की बात सुनकर कजरी , जो इस वक्त रोटीया बना रही थीं.....उसके हाथ रुक गये और नज़रे सीधा अपने बेटे पर डाली......रितेश की आंखो में बहुत सारा प्यार था......जो कजरी पहचान चुकी थी....लेकीन उसने ये नही पहचाना की

"कैसे बताऊं की कीतना बेचैन हूं मा, तेरे ममता के आंचल मे बंध चुर हूं मां"

कजरी को भी रितेश पे प्यार आया....।

कजरी-- आ.....इधर आ....मेरे पास बैठ।

ऐसा पहले कभी नही हुआ था......ना जाने कीतनी दफ़ा रितेश अपने मां के सीरहाने बैठा था.....लेकीन आज अपनी मां के बगल बैठ कर उसे ऐसा लग रहा था की वक्त यूं ही थम जायें......रितेश के दील की धड़कन तब तेज हो जाती है.....जब कजरी रितेश का सर पकड़ कर अपने सीने से लगा लेती है......।

रितेश की हालत तो ऐसी थी की क्या बताएं......गला सुखने लगा.....दील जोरों से धड़कने लगा.....।
क्यूकीं वो अपनी मां की बड़ी बड़ी और कसी चुचीयों पर अपना सर रखा था......और कजरी ने भी उसका सर इतनी जोर से अपने सीने से चीपकाया था की......उसकी चुचीया थोड़ी दब गयी थी.....और उसके लम्बे नुकीले नीप्पल रितेश के गालो पर एक आनंद की अनुभुती के साथ साथ सासों की गती भी बढ़ा रही थी........कजरी ने तो रितेश को ममता वश अपने सीने से लगा रखी थी.....लेकीन रितेश कहीं ना कहीं ममता की दीवार लांघ आनंदमयी दुनीया के सोच में प्रवेश कर चुका था।

कजरी-- क्या हुआ मेरे राजा बेटे को.....आज अपनी मां पर इतना प्यार....की मुझे देखने का मन कर दीया......मेरा तो जीवन धन्य हो गया।

रितेश अपनी तेज चल रही सासों को काबु करते हुए बोला--

रितेश-- क्यूं मां क्या एक बेटे को अपनी मां को देखने का दील नही करता क्या?

कजरी एक हाथ से रोटीया बनाती हुई और दुसरे हाथ से अपने बेटे को सीने से चीपकाये उसके बालो में अपनी उगलींया फीराती हुई बोली--

कजरी-- क्यूं नही होता बेटा.....अपनी मां को देखने का दील तो सबका करता है.....लेकीन जो अपनी मां से दूर होते है....उनका करता हैं......पर तू तो मेरे पास ही है....।

रितेश-- हां.....मां मै तो तेरे पास ही हूं.....सच कहूं तो आज से पहले ऐसा कभी नही हुआ.....पहले तो ऐसा लगता था की तू मेरे पास ही है......लेकीन आज पता नही क्यूं ऐसा लग रहा है की.....तू पास होते हुए भी मुझसे बहुत दूर है....ऐसा क्यूं हो रहा है मां.......।

एक पल के लीये तो कजरी का भी दीमाग झन्ना गया......की रितेश को क्या हो गया लेकीन फीर उसने कहा-

कजरी-- बेटा.......जरुर तूझे बचपन की याद आ गयी होगी.....जब तू छोटा था ना तब मैं कभी कभी तेरे नानी के घर जाती थी तूझे तेरे पापा के पास छोड़ कर......और जब मैं वापस आती थी तो तू मुझसे लीपट कर बहुत रोता था....।और मुझे एक पल के लीये भी नही छोड़ता था.....।

रितेश मन मे सोचा की हालत तो वही है.....मां , लेकीन तुझसे जिदंगी भर लीपट के रहु ऐसा दील कह रहा है...।

रितेश यही सोचते हुए गुमसुम अपनी मां के सीने से चीपका था.।

कजरी-- अच्छा..... चल अब खाना खा ले.....और हां एक बात बता देती हूं......की मैं तेरा साथ जीदंगी भर नही छोड़ने वाली.....और कहकर रितेश से लीपट जाती है....।
रितेश भी अपनी मां से लीपट जाता है...मन में ये कहते हुए की, हां मा लेकीन मेरा साथ अब तू मां बनकर नही बल्की मेरी पत्नी बनकर जींदगी गुजार.....।

रितेश के दील और दीमाग दोनो ये फैसला कर लीया था की......अब चाहे कुछ भी हो जाये.......इतनी खुबसुरत औरत को अपनी पत्नी बनाकर ही रहूगां.........।

रितेश फीर से सपनो की दुनीया में खो जाता है......की कीतना अजीब और अनोखा अहेसास होगा.....जब मां मेरी पत्नी बनेगी.....क्या मरी मां भी मेरी वैसी ही इज्जत करेगी....जैसी पत्नीया अपने पती की इज्जत करती है?....क्या मेरी मां भी सुहाग सेज पर मेरा उतनी ही बेसब्री से इतंजार करेगी जैसे पत्नीया अपने पती का इतंजार करती है?......और क्या मेरी मां भी मेरे बच्चे की मां बनेगी जैसे पत्नीया अपने पती के बच्चे की मां बनती है?
इन सवालो ने रितेश के लंड की लम्बाई सामान्य दीनो से ज्यादा आज बड़ा कर दी थी......लंड के नस नस फट रही थी.....पैटं में तंबू बन गया था......लेकीन चुस्त पैटं पहनने की वजह से तंबू खड़ा नही हो पाया..।

रितेश ने कीसी तरह अपने आप को समझाया और सपनो की दुनीया से बाहर नीकल कर असल जीदंगी मे आया......और सबसे पहले तो अपने लंड महाराज को शांत कीया....।

अब तक कजरी भी रितेश को अपनी आगोश से अलग कर के बोली-

कजरी-- चल.....मेरे राजा बेटा खाना खा ले.....सुबह से कुछ नही खाया है।

ना जाने क्यूं रितेश के चेहरे पर एक मुस्कान सी फैल गयी......जीसे कजरी ने देख लीया....।

कजरी-- अरे......क्या बात है मेरा राजा बेटा इतना मुस्कुरा क्यूं रहा है?

रितेश-- बस ऐसे ही मां.......अगर कोई नामुमकीन चीज मुमकीन हो जाये तो कैसा लगता है।

कजरी-- अगर .....नामुमकीन काम हो जाये तो वैसी खुशी बंया करना मुस्कील है...।

रितेश(मन में)-- तो वही बात है ना मा.....अगर तू मेरी पत्नी बन जायेगी तो .....खाना खाने के बुलाने का अंदाज तेरा कुछ इस तरह होगा (चलीये जी...खाना खा लीजीये....सुबह से आपने कुछ खाया नही है)...........आह.......कीतना अच्छा लगेगा....हे भगवान, मैं पागल ना हो जाऊं॥

कजरी-- अरे......बेटा क्या मन में सोच कर मुस्कुराये जा रहा है......मुझे भी बता की वो नामुमकीन काम है.....कौन सा?

रितेश-- आ.....ह, मां बस इतना समझ ले की तेरे बीना वो काम होगा नही।

कजरी-- म.......मेरे बीना।
रितेश-- हां.....मतलब की तेरे आशीर्वाद के बीना.....।

कजरी ये सुनकर हंसने लगती है ......हे भगवान ये लड़के की बात तो मेरे समझ से परे है......चल अच्छा खाना खा ले....।


फीर कजरी खाना नीकालती है.......खाना दोनो साथ में खाते है......और फीर दोनो अपने अपने बिस्तर पर चले जाते है.....।

रितेश की आंखो में निदं नही था......वो तो बस अपने मां के हसीन खयालो में खो चुका था......और ये भूल चुका था की.....उसका कोई इँतजार भी कर रहा है........।



हवेली के सबसे उपर के कमरे में बिजली जल रही थी......उस कमरे में ठाकुर का दोस्त सेठ जी......एक गद्देदार बीस्तर पर एक चड्ढी पहने बैठा था.....हाथ की उगंलीयो के बीच सीगरेट फंसी हुई थी....और सेठ मुह से धुवां उड़ा रहा था...।

सेठ-- अरे.....आ जा चम्पा रानी......अब क्या जान लेगी मादरचोद....।


जैसा की आप सब लोग जानते ही है......की चम्पा ठाकुर के घर की नौकरानी है......और ठाकुर ने अपने दो नम्बर का काम कराने के लीये चम्पा को सेठ से चुदने को तैयार कीया है.......।




first i would like to thanks to all my frnds for suporting. you likes and your comments. ........but

hamare kuchh dost hai jo bol rahe hai ki kahani.....incest hi rahe ki kajri thakur ke hath na lage......to kuchh frnds bol rahe hai ki kahani thoda audltary honi chahiye!

sach batau to aap sab log yaha tak ki mai sab log ki pasand hoti hai.....to kahani ko mai uss tarike se banane ki koshish karunga ki mere kisi bhi reader ko aisa nahi lagega ki yaar kahani to incest hi rah gai....ya kahani to adultary ban gai......jo bhi hoga......aap sab log ko may be bahut jyada pasand aayega.....itna mai koshish karunga!

apni ray zarur dete rahiyega aur kahani kaisi lag rahi hai zarur reply kare.......thanks to everyone.....take care
fantastic update
 

basudeo

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ठाकुर........मुनीम के साथ......बैठा दारु पीने में मस्त था......उसके बगल वाले कमरे में ही सेठ चम्पा का बेसब्री से इतंजार कर रहा था.....।

सेठ सीगरेट का कश लगाते हुए बीस्तर पर से उठा और कमरे की खीड़की खोल देता है.....चांद की रौशनी कमरे के अंदर प्रवेश करती है.....और साथ ही साथ चम्पा भी कमरे के अँदर प्रवेश करती है.....।

चम्पा तो आज इकदम सज धज के आयी थी.....लाल रंग की साड़ी पहने हुए चम्पा गजब ढ़ा रही थी......
सेठ की नज़रे चम्पा के बदन की नुमाईस करने लगी।
सेठ की नजरे चम्पा की मस्तानी गांड पर आ कर टीक जाती है......चम्पा की मदमस्त गांड साड़ी के अँदर ही गजब का उभार लीये तनी थी.....ये देख सेठ के सब्र का बांध टुट पड़ता है.....।

वो करीब करीब लपक कर चम्पा के करीब पहुंचता है.....और चम्पा को अपनी बांहो में भर लेता है......और साड़ी के उपर ही चम्पा की गांड को हथेलीयो में कस जोर जोर से दबाने लगता है......।

चम्पा-- आह.......सेठ जी.....धिरे दबाईये ना....।

सेठ-- चंपा की गांड और तेज दबाने लगता है......अरे जानेमन क्या बताऊं कसम से एकदम कसी गांड है तेरी.....।

चंपा-- हाय......राम......तभी तो कह रही.....हूं......आह धीरे दबाईय आ....ह कही दबाने पर ही सील ना टुट जाये....।

सेठ के लंड ने ये बात सुनकर कुछ ज्यादा ही उत्पाद माचाने लगा.

सेठ-- अरे मेरी चम्पा रानी . . . .इसका...मतलब की अभी तक तेरी गांड का सुराख नही खुला है.....।

चंपा-- हां सेठ जी.....आ....ह नही खुला है....और खुलवांउगीं भी नही....।

सेठ-- आह.....चंपा रानी......अपनी गांड का छेंद मुझे सौप दे....रानी .....कसम से मजा आ जायेगा...।

चंपा-- नही......सेठ जी.....मैं आप मर्दो को अच्छी तरह जानती हूं.....कोरी गांड अगर मर्द पा जाते है.....तो इतनी बुरी तरह मारते है.....की बेचारी औरतो की जान नीकल जाती है.....न.....बाबा.....ना, मैने अपनी गांड आज तक अपने मरद से भी नही मरवायी तो पराये मर्दो को भला गांड दे कर क्या फायदा?

चंपा की बात सुनकर.....सेठ को लगा की सच में ये अपनी गांड नही देगी लगता है....तो सेठ ने कहा-

सेठ-- देख चंपा......अपनी गांड तू मेरे हवाले करेगी तो.....तू जो बोलेगी मैं तूझे वो दूगां...।

सेठ की बात सुनकर चंपा के चेहरे पर एक अलग सी चमक आ गयी....लेकीन फीर भी नाटक करती हुई बोली-

चंपा-- हटो.....सेठ जी....सब यही बोलते है....लेकीन काम खत्म होने पर। सब मुकर जाते है.....मैं जानती हूं मर्द जात को...।

सेठ-- देख.....चंपा मैं झूठ नही बोल रहा हू.....मेरे पास बहुत पैसा है....रानी एक बार ये तेरी कोरी गांड दे दे तो मजा आ जायेगा....और कहते हुए सेठ चंपा का ब्लाउज हाथ से पकड़ फ़ाड़ देता है.....जीससे चंपा की चुचींया आजाद होते ही बाहर लटकने लगती है....।

चंपा-- हाय.....रे सेठ जी ईतने उतावले मत हो जाइये......मै कही भागी थोड़ी जा रही हूं॥

सेठ ने चंपा की चुचींयो को हथेली में लेकर मसलने लगता है......जीससे चंपा को मजा आने लगता है....।

चंपा-- आ.....ह.....सेठ जी.....इतनी उमर में भी आपका जवाब नही.....हाय.....बहुत मस्त मसल रहे हो.....आह मजा आ....र.....हा है।

सेठ चंपा की एक चुचीं को अपने मुह में भर लेता है.....और चुसने लगता है.....और एक हाथ से चंपा की चुचींया मसलने लगता है...।

सेठ-- उ.....म्ह.....म.....क्या मस्त चुचींया है तेरी चंपा......दबाने में बहुत मजा.....आ....रहा है....।

चंपा-- आ....ह सेठ.....जी, चुसते रही.....ये....मेरी.....चुचीया......आपके....लीये.....आ.......ही....है...।

सेठ ने चंपा की चुचीया.....चुस.....चुस कर लाल कर दीया.....चंपा भी अपनी मस्ती में मस्त अपनी चुचींया पकड़ कर कभी ये चुचीं तो कभी दुसरी सेठ के मुह में ठुंस देती.....और सेठ उसकी चुचींयो को मजे ले ले कर चुसता...।

सेठ ने उसकी चुचींया चुसने के बाद.....जा कर बीस्तरे पर लेट जाता है....।

मदमस्त हो चुकी चंपा......जीसकी ढ़गं से चुदाई आज तक उसका मरद भी नही कर पाया था.....या ये कहीए की चंपा आज तक चुदाई का पूरा सुख नही ले पाई थी.....आज उसे सेठ के लंड से बहुत उम्मीदे थी.....

'चंपा झट से अपनी साड़ी नीकाल फेकती है......सेठ की हालत तो अब और खराब हो जाती है......चंपा की मस्त बड़ी गांड जीसपर लाल रंग की चड्ढ़ी चढ़ी थी....जो देखने में काफी आकर्षक लग रही थी....।

चंपा की गांड देखते ही.....सेठ ने अपनी भी चड्ढ़ी नीकाल फैकीं॥
सेठ का लंड देखकर चंपा की मन की सारी इच्छाओ पर पानी फीर जाता है.....सेठ का लंड करीब करीब 4.5 इंच का पतला सुखी हुई कीसी पेड़ की टहनी की तरह ही खड़ा था....।

चंपा एकटक सेठ के लंड को देख कर अपनी कीस्मत को कोसती हुई मन मे बोली-

चंपा(मन में)-- ये भंडवा.....सुखे हुए लंड से चंपा की गांड मारेगा.....साला.....चल मुझे क्या चोदे चाहे चाटे.....मुझे तो पैसे से मतलब.....लेकीन काश इसका लंड मोटा तगड़ा होता तो मजा आ जाता....।

सेठ-- क्या हुआ.....चंपा रानी.....लंड देखकर कीस सोच में पड़ गयी.....कही गांड फड़वाने में डर तो नही लग रहा है....।

सेठ की बात पर चंपा अंदर ही अँदर हंस पड़ी और मन मे बोली-- अरे.....भड़वे.....तेरा सुखा लंड कही टुट ना जाये मेरी गांड की सुराख खोलने मे....।

चंपा-- ह.....हां सेठ जी......अपका लंड देखकर तो मुझे सच में डर लगने लग गया है.....की मेरी गांड का ना जाने क्या हालत करेगाः?

सेठ-- अरे.....चंपा रानी.....तेरी गांड तो मैं आराम......आराम से फाड़ुगां॥
चल आ......जा थोड़ा गीला तो कर दे....अपने मुंह में लेकर...।

चंपा.......बेचारी कीस्मत की मारी.....बीस्तरे पे आकर सेठ का लंड मुह में डालकर चुसने लगती है.....।

चंपा के लंड चुसने के अँदाज से सेठ.....इक दम मस्त हो जाता है......चंपा अपनी हाथ की दो तीन उंगलीयो से सेठ का लंड पकड़ कर जोर जोर से चुसने लगती.....है।

सेठ-- हाय.....रे चंपा रानी.....बहुत मस्त चुसती है रे......मज़ा आ......रहा है.....बोल ,तूझे क्या चाहीए?

चंपा-- उ.....म्ह.....हं.......आ.....सेठ जी.....मुझे जो भी चाहीए मैं आपसे बाद में मांग लूंगी.....अभी तो आप लंड चुसाई के मजे लो.....और चंपा एकबार फीर सेठ का लंड मुह घप्प करके भर लेती है....और जोर जोर से चुसने लगती है.....।

लंड चुस के अभी 1 मीनट भी नही हुआ होगा....।

सेठ-- आ.....ह चंपा....भोसड़ी.....छिनाल......लंड मत नीकालना......आ.....ह......चु.....स........मै.....गया......रे.......रं.....डीं तेरे.......मुह.......मे....।

और सेठ.......की सांसे.......तेज.......तेज चलने लगती.......है........उसका बदन पुरा अकड़ जाता......है.....उसने अपने......बदन को करीब करीब उपर उठाया और धड़ाम से नीचे गीर गया.......।

चंपा......अपने मुह में सेठ का पानी लीये.....अपनी मुंडी उपर उठाती है.....तो देखती है की सेठ नीढ़ाल हो कर बिस्तर पर गीरा था......उसने सेठ के लंड से नीकला पानी एक बार में ही गटक लेती है......और हांफते हुई बोली--

चंपा-- क्यूं सेठ......जी कैसा लगा....चंपा की लंड चुसाई.......।

लेकीन सेठ की तरफ से कोई भी प्रतीक्रीया......नही आती......।

चंपा-- अरे......सेठ जी......लगता है.....मेरी चुसाई से कुछ ज्यादा ही पानी छोड़ दीये हो आप......जो अभी तक......सुस्त पड़े हो......अगर इतनी जल्दी सुस्त हो जाओगे तो मेरी......गांड का क्या होगा?

चंपा के इतना बोलने पर भी जब सेठ के मुह से एक भी शब्द नही नीकला तो....चंपा ने सेठ को झींझोड़ना शुरु कीया......लेकीन सेठ वैसा का वैसा ही पड़ा रहा.....।

चंपा इकदम से डर गयी......उसे कुछ भी समझ में नही आ.....रहा था.....उसने फटाफट अपनी साड़ी पहनी.....और फटा हुआ ब्लाउज से अपनी कुछ चुचीयों को ढक कर कमरे से बाहर भागते हुए.........सिढ़ीयों पर से.....होते हुए.....ठाकुर के कमरे तक पहुचीं और ठाकुर के कमरे का दरवाजा धड़ाम से जोर देते हुए खोलती है.......।

दरवाजा शायद अँदर से बंद था.....लेकीन चंपा ने इतनी जोर से दरवाजे को ठेला था की दरवाजे की सीटकीनी टुट गयी......और अँदर का नजारा देख कर चंपा की तो हालत को सांप सुंघ गया.....।

उसने देखा की.......मुनीम बीस्तर पर नंगा लेटा था.....और मुनीम की औरत सन्नो मुनीम के मुह पर अपनी बुर रखी थी.....और मुनीम अपनी औरत के बुर को जीभ नीकाल कर कीसी कुत्ते की तरह चाट रहा था.......और ठाकुर पीछे से मुनीम की औरत के गांड मे अपना लंड घुसा कर जोर जोर से उसकी गांड मार रहा था.....।


चंपा को देख.....ठाकुर के साथ....साथ.....मुनीम और उसकी औरत सब बिस्तर पर से उठ खड़े होते है......सन्नो तो अपने कपड़े समेटती है.....और नंगी ही बाहर चली जाती है......।

ठाकुर अपना लंड खड़ा कीये हुए......खड़ा चंपा की हालत देख कर सकपका गया.....चंपा बहुत तेज हाफ रही थी.....उसके फट चुके ब्लाउज में से उसकी चुचींया उपर नीचे हो रही थी....।

ठाकुर और मुनीम को अपने हालत का अँदाजा भी न था की....वो दोनो नंगे खड़े है चंपा के सामने

ठाकुर-- क्या......हुआ चंपा तू इतनी घबरायी हुई क्यू है....? तू तो सेठ जी के साथ थी ना......?

चंपा की हालत तो एकदम खराब थी......उसके मुह से आवाज़ तक नही नीकल रही थी......

चंपा-- वो......वो....सेठ......जी...।
ठाकुर-- हां.....क्या हुआ......सेठ जी को?
चंपा-- पता.....नही....क्या हुआ....क....कुछ बोल नही रहे है।

चंपा की बात सुनकर ठाकुर......और मुनीम दोनो घबरा गये.....और फटाफट अपने कपड़े पहनते हुए......सेठ के कमरे की तरफ भागते है.....॥

ठाकुर जैसे ही सेठ के कमरे में पहुचता है.....सेठ एकदम नंगा बिस्तर पर पड़ा था.....सेठ के नाक से खून बहा था.....ये देख ठाकुर की हालत को लकवा मार गया...।

ठाकुर के साथ.....मुनीम.....और चंपा भी खड़े थे...।

ठाकुर(घबरा कर)-- ये.....ये क्या कीया चंपा?

चंपा-- म.....मैने क.....कुछ नही कीया ठाकुर....साहब.....ये तो अपने आप ही....।

ठाकुर-- चंपा देख सच सच बता की तूने क्या कीया?

चंपा-- मै सच कह रही हूं मालीक की मैने कुछ नही कीया....भला ईन्हे मार कर मुझे क्या मीलने वाला?

ठाकुर भी सोचा की सही है....भला ये क्यूं मारेगी....।

ठाकुर और मुनीम ने सेठ को कपड़ा पहनाया और फीर ठाकुर मुनीम से बोला-

ठाकुर-- मुनीम.....दरोगा को फ़ोन लगा....वो सब संभाल लेगा।

मुनीम-- जी.....मालीक!
और फीर मुनीम....दरोगा को फ़ोन लगा के ईस दुर्घटना के बारे में बताता है...।

मुनीम-- ठाकुर साहब दरोगा नही था...कोई हवलदार था...वो दरोगा को लेकर आता ही होगा.....।

ठाकुर-- अच्छा ठीक है.....सेठ को उठा और नीचे लेकर चल....।

उसके बाद मुनीम.....और ठाकुर सेठ को उठा कर नीचे बाहर ले कर आते है....।

हवेली के सदस्य भी भनक लगते ही नीचे आ गये....॥ठाकुर की पत्नी रेनुका....जो की ज्यादातर शांत ही रहती है....। उसने ठाकुर से पूछा की क्या ....हुआ तो......ठाकुर ने रेनुका को सारी बात बता दीया....।

चांद की रौशनी में सब बाहर बैठ कर.....पुलीस का इतंजार कर रहे थे...।

मुनीम-- ठाकुर.....साहब हमे पुलीस को नही बताना....चाहीए था.....क्यूकीं चुनाव का माहौल है...।

ठाकुर-- चींता की कोई बात नही है.....मुनीम.....दरोगा सब संभाल लेगा..।

तभी पुलीस की दो जीप ठाकुर के घर पर आकर रुकी.....।

जीप मे से.....दरोगा और दो चार हवलदार नीचे उतरते है.....दरोगा को देखकर ठाकुर बोला-

ठाकुर-- चल दरोगा.....जल्दी से अपना काम कर...।

लेकीन दरोगा के बोलने तक.....दुसरे जीप मे से एक और दरोगा नीकला और बोला--

अरे.....ठाकुर साहब हम तो अपना काम करने ही आये है।

ठाकुर और मुनीम तो एकदम भौचक्के हो जाते है......ईस नये दरोगा को देखकर।

ठाकुर-- अ.....आप का परीचय...।
दरोगा-- मेरे.....परीचय के लीये मेरे नाम की जरुरत नही है......ठाकुर साहब.....मेरे बदन की वर्दी ही मेरा परीचय है....लेकीन फीर भी आपको अपना परीचय देने में मुझे खुशी होगी.....मेरा नाम है......सतीश सींह और मै आपके ईलाके का नया दरोगा....।

ठाकुर और मुनीम की हालत तो देखने लायक थी.......वो लोग दरोगा को ही देख रहे थे...।

दरोगा-- हवलदार.....लाश को बरामद करो.....और चलो.....और हां ठाकुर साहब कल मैं फीर आउगां.....कही जाना मत.....कत्ल के बारे में.....जांच पड़ताल करनी है।

ठाकुर-- ल.....लेकीन दरोगा साहब.....कल तो मुझे चुनाव प्रचार करने जाना है....।

दरोगा-- उसकी.....जरुरत नही पड़ेगी.....ठाकुर साहब, क्यूकीं जीसके घर में कत्ल हुआ हो......वो कोई भी चुनाव नही लड़ सकता.....जब तक की कातील पकड़ा ना जाये.....।

ठाकुर की उम्मीदो पर पानी फीरता हुआ लग रहा था.....क्यूकीं ठाकुर प्रधानी का चुनाव जीतकर कलेक्टर का चुनाव लड़ना चाहता था.....ताकी वो अपना दो नम्बर का धंधा आसानी से.....बीना पुलीस के नोक झोक से चला सके....।

ठाकुर-- लेकीन दरोगा.....जी ये खुन मैने नही कीया है.....।
दरोगा-- उसका......फैसला तो जांच पड़ताल होने के बाद ही पता चलेगा.....है की नही ठाकुर साहब! अच्छा तो हम चलते है...कल मुलाकात होगी......और हां....आपके चुनाव प्रधान का पर्चा वो नीरस्त कर दीया जायेगा.....।

ठाकुर और मुनीम एक दुसरे का मुहं ही देखते रह जाते है......और इधर दरोगा अपने जीप में बैठ कर थाने की तरफ नीकल देता है..........।



dost kahani.........incest hi rahegi.....lekin kahani jab aap padhoge to aap log ko lagega shayad.....ye adultary hai.....but aisa nahi hoga......padhte rahiye.....raat ko ek update aur post ho jayega.....thanks
fantastic update
 

basudeo

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कजरी अब तक रितेश को दो चार बार आवाज लगा चुकी थी....लेकीन रितेश अभी तक रज्जो के बारे में ही सोंच रहा था..उसके माथे पर से पसीने की बुंद टपक रही थी.....

बेटा.....क्या हुआ? कजरी के झींझोड़ने से जैसे रितेश को होश आया.।

रितेश-- क....कुछ नही मां॥
कजरी-- क्या हुआ बेटा? तू इतना परेशान क्यूं है...और ये तुझे पसीने क्यूं हो रहे है।

रितेश ने अपना हाथ अपने माथे पर लगाया तो उसे सच में पसीने हुए थे।

रितेश-- अ....अरे वो....वो....मां...मु....मुझे।

कजरी-- सच...सच बता ....क्या कीया रज्जो ने तेरे साथ?

रितेश झट से खाट पर से उठ जाता है...और थोड़ा आगे जाकर

रितेश-- क....काकी ने क..कुछ नही कीया।

कजरी उठ कर रितेश का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ घुमाते हुए...

कजरी-- अच्छा...तो तुझे पसीने क्यूं हो रहे है....और तू हकला कर क्यू बोल रहा है....बात क्या है बता?

रितेश अब और ज्यादा डर गया....उसने सोचा की मां को अब सारी बात बताने में ही भलायी है....अगर मैं नही बताउगां तो रज्जो काकी ज़रुर बतायेगी।

रितेश-- मां बात ये है की.....
बात ये है की....रितेश बेटा चुहे से डर कर भाग आया...।

ये आवाज़ सुनते ही...कजरी और रितेश दोनो मुड़कर देखते है....तो रज्जो खड़ी थी।

रज्जो-- अरे....हां कजरी, ये गेहुं की बोरी नीकाल रहा था....तभी इसने चुहा देख लीया और समझा सांप हे....तो डर गया है ना रितेश।

रितेश-- ह.....हां.....मां, स.....सापं समझ कर डर गया था.....अच्छा मां मै अजय के घर जा रहा हूं।


ये कहकर रितेश घर से बाहर नीकल जाता है.......कजरी और रज्जो रितेश को बाहर जाते हुए देखती रहती है...

कजरी-- रज्जो साफ साफ बता, की तूने मेरे बेटे के साथ क्या कीया?

रज्जो-- अरे. ....कजरी तू पागल हो गयी है, क्या भला मैं क्या करुगीं?

कजरी-- देख रज्जो, बन मत तू, मुझे पता है तू कैसी औरत है.....अगर तू मेरे बेटे के साथ कुछ ऐसा वैसा कीया तो...

रज्जो-- तो.....तो क्या? ऐसा वैसा करुगीं नही...कर ली मैने, हाय क्या लड़का है।

रज्जो के मुहं से ऐसी बात सुनकर कजरी के पैरो तले ज़मीन खीसक गयी.

कजरी(गुस्से में) -- रज्जो............

रज्जो(शरारती) - अ....हां गुस्सा नही करते कजरी....तेरा बेटा अब जवान हो गया है...जवान नही पूरा सांड हो गया है...और उसका वो तो घोड़े जैसा है...

कजरी-- छी....

रज्जो(शरारती) -- छि...नही कजरी, वाह बोल वाह, क्या लड़का पैदा कीया है...एक छटके में सीर्फ एक छटके में कजरी उसने मेरी चुदी चादी बुर को फाड़ कर रख दीया...तु.....तुझे यकीन नही होता ना...ये देख मेरा ब्लाउज देख इस पर जो खून लगा है ना, तेरा बेटा मेरा बुर फाड़ कर अपने लंड पर लगा खून इसी से साफ कर के भाग आया....

कजरी चुप चाप खड़ी रज्जो की बाते सुन रही थी और रज्जो कीसी शातीर खीलाड़ी की तरह कजरी के चारो तरफ घुम घुम कर सुना रही थी..।

कजरी(चिल्लाते) -- चुप कर रंडी....तुझे शरम ना आयी अपने बेटे के जैसे लड़के के साथ ये सब करते हुए।

रज्जो(शातीराना) -- अरे...हां, शरम तो बहुत आयी की कैसे मै रितेश को अपनी बुर दीखाउगीं....रज्जो बोल ही रही थी की।

कजरी अपने कानो पर दोनो हाथ रखते हुए चील्ला कर बोली-- चुप हो जा छिनाल, भगवान के लीये चुप हो जा...

रज्जो-- अच्छा ठीक है...तू बोलती है तो चुप हो जाती हूं...

कजरी(गुस्से मेँ) - नीकल जा यहां से रंडी और दुबारा मेरे बेटे के उपर नज़र मत डालना।

रज्जो(शातीराना) - ठीक है...लेकीन तेरा बेटा अगर नही माना तो।

कजरी-- वो तेरी तरह नही है छिनाल, वो मेरी बात कभी नही टालेगा...और मैं उसे तेरे आस पास भी नही भटकने दुगीं।

रज्जो-- अच्छा...तो इतना भरोसा है तुझे खुद पर।

कजरी-- और नही तो क्या मैं उसकी मां हू, वो मेरी बात जरुर मानेगा।

रज्जो-- अच्छा....ये बुर की लत है कजरी, जो मैं दे सकती हूं वो मां नही दे सकती।
ये कहकर रज्जो अपने घर की तरफ़ चल देती है.....उसकी चाल भी बदली थी थोड़ा भचक भचक कर चल रही थी....जीसे कजरी देख रही थी....।


कुछ पल के लीये कजरी....एकदम शांत वही खड़ी रही फीर वो अपने सर पर हाथ रखकर खाट पर बैठ जाती है।
कजरी को आज कुछ समझ में नही आ रहा था....उसने जो बाते रज्जो के मुंह से सुनी थी....वो सच है या गलत इसका फैसला करने के लीये वो ऐसी बाते वो अपने बेटे से भी नही कर सकती थी....लेकीन रितेश की परेशानी कही ना कही रज्जो की बात को सच कर रहा था....बहुत सारे सवाले के ठेर में फंसी कजरी ये सब सोचं ही रही थी की...


कजरी....वो कजरी.....

कजरी-- अरे संगीता तू क्या हुआ? इतनी घबरायी हुई क्यूं हैं?

संगीता-- अरे कजरी.....वो ठाकुर साहब के दोस्त का ख़ून हो गया है।

ये सुनकर कजरी भी चौंक गयी..।

कजरी-- क्या...कैसे?
कजरी बोलते बोलते उठ गयी....और संगीता के साथ घर से करीब भागते भागते नीकल कर ठाकुर के घर की तरफ चल दी.

संगीता-- वो तो पता नही लेकीन...सुना है की ठाकुर साहब चुनाव ना लड़ सके इसलीये कीसी ने शाजीश कर के ये काम को अंजाम दीया है...

यही सब बाते करते हुए कजरी और संगीता ठाकुर के घर पर पहुचं गये....जंहा बड़ी तादात में भीड़ इकट्ठा हुई थी।

ठाकुर के घर पर दरोगा....शतीस सींह के साथ चार हवलदार खड़े थे....

दरोगा-- तो ठाकुर साहब.....आप एक कष्ट कीजीए की आप अपने घर के सभी सदस्य को बुलाईये और थोड़ा हमे भी परीचय कराइये।
और कहकर दरोगा ने जेब से एक लंवाग नीकाल कर मुंह में डाल कर उसे अपने दांत के नीचे दबा लीया।

ठाकुर-- जी दरोगा साहब!

कुछ ही पल में ठाकुर के घर के सभी सदस्य नीचे जमा हुए-



i m so so sory................frnds ki itne dino se update nahi de paya.....kuchh durghtna hone ki vajah se!
kuchh readers to hamare itne gusse ho gaye ki kah rahe hai ki story hi close ho gaya....par aisa nahi hai
i am back.....lets rock!
subah tak ek update aur-
fantastic update
 

basudeo

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रितेश के कदम धीरे धिरे...कजरी के तरफ बढ़ रहे थे.....ये देख कजरी का दील जोरो से धड़कने लगा.....

उसकी तेज चल रही सांसो की वजह से....कजरी की बड़ी बड़ी चुचीयां उपर नीचे हो रही थी.....माथे पर से पसीने की बुंदे चुते हुए उसके चेहरे से होते हुए कजरी की चुचीयों के कटाव में अँदर घुस जाती.....

रितेश का भी कुछ ऐसा ही हाल था....उसे भी पसीने आ रहे थे....और दील की धड़कन तेज होने लगी थी.....


रितेश धिरे धिरे अपने मां के करीब पहुचं गया.....रितेश और उसकी मां के बीच कुछ जगह का ही फासला था......
रितेश खड़ा होकर एकटक अपनी मां को देख रहा था......कजरी भी रितेश की आंखो में देखे जा रही थी....

कजरी- ऐसे क्या देख रहा है?
रितेश- तू सच में बहुत खुबसुरत है मां।

ये बात सुनकर कजरी अपनी आंखे नीचे कर लेती है.....भले ही वह ये सब एक नाटक कर रही थी....लेकीन रितेश के मुह से उसकी तारीफ उसके अंदर एक अजीब सा नशा चढ़ा देता था......

कजरी-- हां पता है....बहुत बार बोल चुका है तू।

रितेश की नजरें लगातार कजरी को ही देखे जा रही थी....रितेश ने थोड़ी हीम्मत करके अपने हाथ से कजरी की झुकी हुई गर्दन को उपर उठाता है.....

कजरी का चेहरा उपर उठते ही....रितेश कजरी के चेहरो को एक बार फीर से गौर से देखने लगता है.....कजरी की आंखे बंद थी।

रितेश-- मां आखें क्यूं बदं की है?
कजरी के बदन में कंपकपीं फैलने लगी थी....जैसे ही रितेश ने अपने हाथो से.....उसके गोरे मुखड़े को उपर उठाता है....फीलहाल कजरी की आंखे बंद थी....रितेश के पुछने पर भी कजरी ने अपनी आंखे नही खोली....

कजरी-- मुझे...शर्म आ रही है.....मैं भले ही तुझसे प्यार करती हूं बेटा.....लेकीन एक मां से प्रेमीका बनने के लीये अभी मैं पूरी तरह से तैयार नही हूं बेटा.....मै तेरे दील के जज्बात समझ सकती हूं बेटा.....की तु चाहता है की तू अपनी मां को.....खुब प्यार करे.....और ये सब चीजे सीर्फ तूझे ही नही बल्की मुझे भी मन करता है....लेकीन बेटा अभी इस चीज के लीये मैं पूरी तरह से तैयार नही हूं.....

रितेश- मैं समझ सकता हूं मां.....लेकीन तू चींता मत कर .....मैँ बीना तेरे इजाजत के ऐसा कोई भी काम नही करुगा.....जिससे तुझे तकलीफ हो.....लेकीन कोशीश करुगां की मेरी मां बहुत जल्द मेरी बांहो मे और फीर कजरी के कान के पास जिकर धिरे से बोला......बिस्तर पर मेरीं बांहो मे हो....।

ये सुनकर कजरी का बदन पुरा कांप गया....पसीनो से पुरी भीग गयी....और मारे शरम के वो रितेश से नज़रे नही मीला पा रही थी.....वो करीब करीब भागते हुए दुसरे कमरे में जाती है.....और अंदर से दरवाजा बंद कर के दरवाजे से चीपक कर खड़ी हो जाती है......

पसीने से पूरी भीग चुकी कजरी की सासों की गती तेज होते चली जा रही थी.....उसकी चुचींया तो तेज चल रही सांसो की वजह से इतनी टाइट हो गयी की ब्लाउज के उपर का बटन करीब दो तीन सांस लेने पर टुट गयी....।

कजरी दरवाजे से चीपकी मन मे सोचती हुई....हे भगवान, ये मैं क्या कर रही हूं, इतना बड़ा पाप....और तो और मैं अपने बेटे के दील के साथ ही खेल रही हूं......लेकीन ये सब तो मैं उसी के भलाई के लीये ही तो कर रही हूं.....कजरी ये सब सोचते हुए अपनी आंखे खोलती है.....जब उसे अपनी हालत का अंदाजा होता है तो उसे पता चलता है की.....उसका ब्लाउज पुरा पसीने से भीग चुका है....और ब्लाउज का एक बटन भी टुट गया है.....

जब कजरी ने देखा की उसके ब्लाउज का बटन टुट गया है तो वो समझ गयी की रितेश के द्वारा कही गयी बात उसके कानो में उसी के वजह से मारे उत्तेजना के उसकी चुचीया टाईट हो गयी जीससे ब्लाउज का बटन टुट गया....कजरी एक बार फीर शरमा जाती है......

कजरी(मन में) - आह.....ईस दुनीया में अगर बेटे से प्रेम करने का हक अगर कीसी मां को होता तो......हम औरते हमेशा पसीने से भीगी रहती......कीतनी जल्दी बदन गरम हो गया.......

कुछ देर तक कजरी घर के अँदर रही फीर वो कमरे से बाहर आ जाती है.......

चांद की रौशनी में रितेश छत पर नीचे जमीन पर ही बिस्तारा लगाया था.....एक अपना और कुछ दुर पर अपनी मां का.....

कुछ देर बाद कजरी भी उपर छत पर आती है......उसके हाथं में खाने की थाली थी....।

कजरी-- ये ले बेटा खाना खाले..।

रितेश खाने की थाली ले लेता है...कजरी भी बगल में बैठ जाती है.....

रितश(खाते हुए) - मां तू नही खायेगी क्या?
कजरी-- आज खाने का मन नही है बेटा।

रितेश-- क्यूं मां?
कजरी-- पता नही क्यूं खाने का मन नही कर रहा।

रितेश कजरी का हाथ पकड़ कर बोला-

रितेश- आ....जा मां मैं खीला देता हूं।
कजरी- अरे नही तू खा ले मुझे भुख नही है।

रितेश-- तो फीर खाना ले के जा......मुझे भी भुख नही है......

इतना सुनने पर कजरी अंदर ही अँदर खुश हो जाती है.......उसने सोचा सच में मेरा बेटा मुझसे कीतना प्यार करता है....

कजरी सीधा उठी और रितेश के पास जाकर बैठ जाती है.....

कजरी-- अच्छा ठीक है......खीला दे।

रितेश ने जब से अपनी मां के मुंह से सुना की वो भी उससे प्यार करती है.....तब से उसका दील कजरी को अपनी बांहो में भरकर चुमने के लिये बेकरार था....

रितेश-- मां तूं मेरी बांहो में आजा.....फीर अच्छे से खाना खीलाता हूं.....अगर तूझे बुरा ना लगे तो......

कजरी ये सुनकर एक पल के लीये सोच में पड़ गयी की अब क्या करे? लेकीन अगले पल उसने सोचा की सीर्फ बांहो में ही तो बैठने के लीये कह रहा है...

कजरी-- एक शर्त पर बैठुगीं।
रितेश- कैसी शर्त?

कजरी-- यही की तू कोई ऐसी वैसी हरकत नही करेगा.....

रितेश-- ठीक है मां....कोशीश करुगां।


ये बोलकर रितेश और कजरी दोनो हंस पड़ते है...

फीर कजरी उठ कर रितेश की गोद में बैठ जाती है....

कजरी के बैठते ही रितेश के अँदर एक उमंग की लहर दौड़ जाती है....

कजरी-- बैठ तो गयी....लेकीन कोइ हरकत मत करना...

रितेश-- अच्छा ठीक है...नही करुगां।

रितेश थाली में से खाना नीकाल कर अपने हाथो से खीलाने लगता है.....

कजरी जीस तरह बैठी थी....उसकी मदमस्त गांड रितेश के लंड के उपर ही थी....जीसे रितश ने सीर्फ महसूस ही कीया था कजरी की गांड इतनी गरम थी की उसकी गरमी रितेश के लंड में जान फूंक रही थी......

कजरी-- अब मुझे.....तेरी शादी करनी पड़ेगी.....।

रितेश-- वो क्यूं मां....?
कजरी-- क्यूकीं अब तू जवान हो गया है....इसलीए।

रितेश-- नही......मां, मुझे शादी वादी नही करनी है...।

कजरी-- क्यूं?
रितेश-- क्यूकीं मैं तुझसे प्यार करता हूं....और शादी करुगां तो तुझसे ही करुगां।

ये सुनकर कजरी का दील धक्क हो जाता है.....वो रितेश की गोद से सीधा उठ जाती है......और गुस्से में रितेश को खीच कर एक तप्पड़ रसीद कर देती है...।

कजरी-- तू सच में बहुत हरामी है.....तूझे शरम आती है की नही मुझसे ऐसी बात करते हुए......और मैं तुझसे कोई प्यार व्यार नही करती......वो तो मैं बस नाटक कर रही थी .....की ताकी तू रज्जो जैसी औरतो के चक्कर में ना पड़े......लेकीन तेरे साथ तो मैं एक दीन का भी नाटक नही कर पायी......चल अच्छा भी हुआ इसी बहाने तेरी नीयत भी तो पता चल गयी.....ये कहते हुए कजरी गुस्से में छत से नीचे चली जाती है....।

रितेश तो एक पुतले की तरह वही खड़ा रहा.....उसे यकीन नही हो रहा था की उसकी मां ने सीर्फ प्यार का नाटक कीया था और कुछ नही.......रितेश की आंखो में आंशु आ गये .....और होगा भी क्यूं नही उसके सपने जो टुट गये थे......वो हाथ धो कर वही बीस्तरे पर लेट जाता है.......




उसी राता रज्जो अपने कमरे में लेटी थी......और वो एकदम नंगी थी......रज्जो का एक हाथ उसके बुर पर था......और हाथ की दो उंगलीया उसके बुर के अंदर आगे पीछे हो रही थी.......

रज्जो-- आह.....आ......मां.......रिते....श.....डाल दे रज्जो की बुर.....में......अपना लंड......आह....

तो ले......साली.....आ गया मै.....अपना लंड ले के......।


इस आवाज से रज्जो ने जैसे ही.....अपनी आखें खोली तो देखा.....रीतेश सामने खड़ा था.......


रज्जो-- रितेश......बेटा तू......हाय रे.....मै मर गयी......मेरी कीस्मत क्या बताउं कीतनी खुश हूं मै...।

रितेश का दीमाग आज बहुत खराब था.....उसका दील जो टुटा था......और इसीलीए वो गुस्से में रज्जो के पास चला आया था.......

रितेश-- तू खुश है......तो आज मुझे भी खुश कर दे....साली....।

रज्जो-- हाय.....तेरी गालीयां भी कीतनी प्यारी लगती है....।

ये बोलकर रज्जो ने रितेश का हाथ पकड़ कर अपने उपर खीच लेती है......और अपने होठो को रितेश के होठो से सटा देती है.........
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basudeo

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आज रज्जो......रितेश को अपने उपर लिये उसके होठो को जोर जोर से चुस रही थी॥

रितेश भी......पूरी तरह रज्जो के अँदर घुल जाना चाहता था....खैर ये सब रितेश के लीये पहला अनुभव था तो उसे भी बहुत मजा आ रहा था.......वो भी रज्जो के मुह में अपना पूरा मुहं घुसा कर चुसने लगा.......।

रज्जो की हालत खराब होने लगी.......उसकीबुर गीली होकर आंसुआ बहाने लगी थी......वैसे तो उसने आज तक कयी मर्दो से चुदवाया था.....लेकीन वो मर्द गांव के नही थे......सब के सब रज्जो के कहीं ना कहीं के रिश्तेदार ही थे...।

करीब 5 मीनट चुसने के बाद.....दोनो अलग हुए.....दोनो एकदम हाफ रहे थे....।

रज्जो-- आह.....मजा आ रहा है बेटा?
रितेश-- पूंछ मत काकी बहुत मज़ा आ रहा है...

रज्जो रितेश के सामने ही अपनी एक चुचींया पकड़ कर मसलने लगी......जीसे देख रितेश के अंदर और चींगारी भड़कने लगी......

रज्जो-- बेटा.....तुझे मेरी चुचींया कैसी लगती है......

रितेश- बहुत मस्त है काकी.....बड़ी बड़ी है....लगता है.....जैसे बहुत सारा दुध भरा हो...।

रज्जो-- तो बेटा नीचोड़ कर पी जा.....इसे....।

इतना सुनते ही रितेश रज्जो की चुचीयों पर टुट पड़ा......उसकी एक चुचीयों को पकड़ कर उसने मुहं में घुसा लीया.....और जोर जोर से चुसने लगा.....और दुसरी चुचीं को अपने हाथोँ से मसलने लगा.......

रज्जो को इतना मजा पहले कभी नही आया था......उसकी सीसकीया......पूरे कमरे में गुंज रही थी......

रज्जो-- आह.....बेटा.....चुस ले.....बेटा.....हां.....ऐसे ही.....बहुत मस्त चुसता है.....आईंईंईंईंईंई......स्स्स्स्स्स।

रितेश ने रज्जो की दोनो चुचीयों को जमकर चुसा.....रज्जो की दमदार चुसाई से......उसकी दोनो चुचींया लाल हो चुकी थी.......

रितेश ने बीना देरी कीये झट से खड़ा हो जाता है.....और अपना पैंट नीकाल देता है.....उसका तनतनाया हुआ 8.5 का लंड देखकर रज्जो की आंखो में एकबार फीर चमक आ जाती है.....

रज्जो रितेश के लंड को हाथ में पकड़ लेती है......

रज्जो-- द इया.....रे द इया.....ऐसा लंड भी होता है.....मैने अपने पूरे 42 साल की उम्र में ऐसा लंड कभी नही देखा.....तेरी मां ने तूझे खीला पीला कर तेरे लंड को घोड़े का आकार दे दीया है......जो कीसी भी औरत की हालत खराब कर दे......

रज्जो की मदमस्त बाते सुनकर रितेश का लंड रज्जो के हाथ में ही झटके मारने लगता है......

अभी रज्जो रितेश के लंड को हाथ में पकड़ी ही थी की......अचानकर से दरवाजा धड़ाम से खुलता है.....दरवाजा खुलने के आवाज़ से....रितेश और रज्जो की नज़रे दरवाजे की तरफ़ गयी.....दोनो की आंखे फटी की फटी रह जाती है.....क्यूकीं सामने कजरी खड़ी थी....।

कजरी भी अँदर का नज़ारा देख कर एक दम चौंक जाती है....।

कजरी की नज़रे......की आंखे तब खुली की खुली रह जाती है.....जब उसकी नज़र रितेश के मस्ताने लंड पर पड़ती है.....जो की इस समय रज्जो के हाथ में था....।

कुछ देर के लीय तीनो को जैसे लकवा मार गया था.....तीनो अँसमंजस के भाव लीये अपने चेहरे पर मुर्ती बने खड़े रहे.....

लेकीन तभी कजरी दरवाजे की तरफ मुह करके घुम जाती है.....ये देख रज्जो ने भी रितेश का लंड हाथ से छोड़ दीया....
रज्जो जल्दी से अपने कपड़े पहन लेती है.....और रातेश भी अपना पैटं पहन कर जल्दी से कमरे के बाहर नीकल जाता है.....कजरी अभी भी वही खड़ी थी......

रज्जो अपने कपड़े पहन कर चुपचाप खड़ी थी......

तभी कजरी उसके पास आती है.......और खींच कर एक तमाचा रज्जो के गाल पर जड़ देती है......

कजरी-- तू सच में एक रंडी है........छीनाल, आखीर तू मेरे बेटे का पीछा क्यूं नही छोड़ देती?

रज्जो(शरारती) - अरे कजरी.......तूझे शायद पहले भले ही ना पता हो........लेकीन आज जो तूने देखा उसे देखने के बाद तो तूझे ये समझ में आ ही गया होगा की....क्यूं मैं तेरे बेटे के पीछे दीवानी हूं...........लेकीन तू हर बार मेरी ख्वाहीसों को पूरी होने नही देती.......मेरी प्यास अधुरी रह जाती है।

कजरी-- और तेरी प्यास हमेशा अधुरी ही रहेगी..........।

रज्जो-- तू ना ही एक औरत बन पायी.......और ना ही एक मां........तूने सीर्फ मुझे प्यासी नही रखा है.........बल्की एक मां के तौर पर तूने अपने बेटे को और एक औरत के तौर पर ठाकुर साहब दोनो को प्यासा रखा है........।

कजरी-- अरे घटीया औरत, तू क्या जाने एक औरत क्या होती है.......मैने आज तक अपने पती के अलावा और कीसी के बारे में सोचा तक भी नही........और रही बात मेरे बेटे की, तो आज नही तो कल उसकी शादी हो ही जायेगी......तड़पेगी तो तू। और तूझे शरम आनी चाहीए ठाकुर जैसे भले इंसान पर एसा इल्जाम लगाते हुए.........पहले मै भी तेरी तरह यही सोचती थी की.......ठाकुर साहब की नीयत मुझ पर अटकी है.......लेकीन मैं गलत थी........वो तो एक भले इंसान हैं..

इतना कहकर कजरी भी कमरे के बाहर चली जाती है..........और रज्जो कमरे में खड़ी कजरी को जाते हुए देखते रहती है।



दुसरे दीन सुबह.........ठाकुर की गाड़ी सीधा थाने में रुकती है........गाड़ी के अँदर से ठाकुर के साथ एक और आदमी नीकलता है और दोनो तेज कदमो से थाने के अंदर प्रवेश करते है।

थाने में दरोगा सतीश सींह अपने कुर्सी पर बैठा था.......॥

क्यूं रे दरोगा........तूझे मेरी बात समझ में नही आती.......क्या?

इस आवाज़ को सुनकर दरोगा अपनी नज़रे उपर उठाता है...........और झट से खड़ा हो कर सेल्यूट करता है।

दरोगा-- जय हीदं साहब!

ये कोई और नही बल्की उस ब्लाक के वीधायक समसेर सींह थे।

विधायक पास में रखी कुर्सी पर बैठकर एक सीगरेट जलाता है.....और कश भरता हुआ....अपनी हाथ की उगंलीयो से इशारा करता है......

दरोगा-- हवलदार छोड़ दे इन लोग को।
हवलदार-- जी साहब!

फीर हवलदार ने चंपा के साथ......ठाकुर के दोस्तो को भी छोड़ दीया.....

विधायक कुर्सी पर से उठा.....और थाने के बाहर चल दीया.....ठाकुर के साथ साथ चंपा और ठाकुर के दोस्त भी विधायक के पीछे पीछे चल दीये......

विधायक ठाकुर के साथ बाहर आकर गाड़ी के पास खड़ा हो गया...।

ठाकुर-- आपका बहुत बहुत धन्यवाद विधायक जी........

विधायक-- अरे ठाकुर साहब, इतनी छोटी सी बात के लीये आप भी क्या धन्यवाद कर रहे है.....और हां आपके प्रधानी के चुनाव का परचा निरस्त नही हुआ है......आप चुनाव लड़ सकते है......

ये सुनकर ठाकुर के खुशी का ठीकाना न रहा.....

विधायक-- अच्छा तो ठाकुर साहब मै चलता हूं

ये कहकर विधायक अपने गाड़ी में बैठकर चल देता है.......

ठाकुर भी अपनी गाड़ी में बैठकर घर आ जाता है....और मुनीम से बोलकर चुनाव प्रचार की तैयारी कराता है.....

ठाकुर अपने दोस्तो के साथ बैठा था......

ठाकुर को बस एक बात की चिंता हो रही थी की..........आखीर सेठ मरा कैसे?

करीब 1 घंटे तक बैठ कर ठाकुर अपने दोस्तो के साथ बाते करता रहा.....फीर वो मुनीम के साथ चुनाव प्रचार के लीये नीकल पड़ा......


इधर रितेश अपने घर पर अभी भी सो रहा था....सुबह के 11 बज रहे थे....

आज कजरी भी रितेश को उठाने नही गयी थी.....क्यूकीं वो रितेश से बहुत ज्यादा नाराज़ थी......तभी वहां अजय पहुचं जाता है......

अजय- काकी रितेश कहां है? आज वो चुनाव प्रचार में नही आया?

कजरी- वो सो रहा है......।
अजय-- अभी तक सो रहा है.....और ये कहते हुए अजय रितेश के कमरे की ओर बढ़ जाता है......

रितेश तो सोया ही नही था......वो परेशान तो था ही लेकीन उसकी परेशानी तब और बढ़ जाती है, जब उसकी मां उसे उठाने नही आती ..।

रितेश ये सब सोच ही रहा था की......तभी उसके दरवाजे पर खट खट होती है......रितेश ने समझा की मां ही होगी.....वो खुश हो जाता है.....तभी

रितेश.....रितेश.....कीतना सोयेगा....

अजय की आवाज़ सुनकर रितेश का चेहरा उतर जाता है.....उसे लगा शायद उसकी मां होगी लेकी न ये तो अजय था....।

रितेश उठ कर अपनी आंखे मलते हुए बाहर नीकला......

जंहा अजय और कजरी खड़े थे.....

अजय-- क्या हुआ भाई कीतना सो रहा है.....
रितेश-- बस यार तबीयत थोड़ा ठीक नही लग रही है.....

अजय-- अच्छा, तो ठीक है तू आराम कर मैं प्रचार के लीये जा रहा हूं।

रितेश - अरे अब प्रचार करने की क्या जरुरत है.....ठाकुर का तो चुनावी परचा ही नीरस्त हो गया.....अब तो प्रधानी तेरी ही है।

अजय-- यार गड़बड़ हो गयी है .....वो विधायक है ना.....उसने ठाकुर का परचा निरस्त होने से बचा लीया है.....और ठाकुर जोरो शोरो से प्रचार कर रहा है।

रितेश अजय से बात करते करते अपनी मां की तरफ भी देखे जा रहा था.....लेकीन कजरी रितेश की तरफ़ एक बार भी नही देखी.....।

रितेश-- अच्छा ठीक है.....तू चल मैं एक दो घंटे में आता हूं।
अजय-- ठीक है......ये बोलकर अजय वंहा से चला जाता है...।

अजय के जाते ही कजरी भी उठ कर रसोइ घर में जाती है......और खाने की थाली लाकर रितेश की तरफ बढ़ा देती है......लेकीन कुछ बोलती नही.....

रितेश- नही.....भुख नही है....।

कजरी कुछ नही बोलती और खाने की थाली वही रखकर जैसे ही जाने के लीये मुड़ी तो रितेश ने कजरी का पकड़ लीया.....और खीचं कर उसे जोर से अपनी बांहो में जकड़ लीया....

रितेश ने कजरी को अपनी बाहों में इतना जोर सें जकड़ा था की......कजरी की चुचींया रितेश के सीने में चीपक कर रह गयी थी......

कजरी सकपका गयी......और अपने आप को छुड़ाने लगी.....लेकीन रितेश के मजबुत बांहों से छुटना मुश्कील था.....

रितेश-- नाराज हो....मुझसे!

अब कजरी छुटने की कोशीश तो नही कर रही थी......लेकीन अपना मुंह दुसरे तरफ घुमा रखी थी और रितेश की बातो का जवाब भी नही दे रही थी.......

रितेश-- ओ मेरी दुल्हन......ऐसे तो मत नाराज़ हो मुझसे......मेरी जान नीकल जायेगी।

ये सुनकर कजरी ने.......अपना मुंह रितेश की तरह घुमाया, वो बोली तो कुछ नही लेकीन गुस्से में अपनी आंखे इतनी बड़ी कर के रितेश को देखा की....पुछो मत!

रितेश-- हाय.....इतने प्यार से मत देखो कही इस नज़र से घायल ना हो जांउं!

ये सुनते ही कजरी को हंसी आने लगी.....वो अपनी हंसी रोकना चाहती थी.....लेकीन उसके चेहरे पर एक मुस्कान बिखर ही गयी!

रितेश-- सच में.......तेरा जवाब नही......इसमे मेरी कोइ गलती नही.....तूझे भगवान ने बनाया ही ऐसा है की तेरी एक मुस्कान पर तेरा बेटा भी पागल हो जाता है......पर शायद तू मुझे कभी कबुल नही करेगी......और मैं हमेशा तड़पता रहुगां।

कजरी ने अपनी खुबसुरती की तारीफें तो बहुत सुनी थी......लेकीन आज जीस तरह से रितेश ने उसकी तारीफ़ की......कजरी रितेश के अल्फाज़ो में कही खो सी गयी......और उसकी आंखे रितेश की आंखो से टकरा गयी......

दोनो मां बेटे एक दुसरे की आंखो में इस कदर खोये थे की.....कुछ लम्हा बित गया लेकीन वो दोनो एक दुसरे से नज़रे हटाने को तैयार ही ना थे.......

रितेश धिरे धिरे अपने होठ अपनी मां के होठ के पास ले जा रहा था......कजरी भी इस तरह खो गयी थी की.....उसके भी कापते गुलाबी होठ जैसे रितेश के होठो से मील जाना चाहती हो.......दोनो के होठ इतने करीब आ गये थे की......दोनो के दील की बढ़ चुकी धड़कन से गरम सांसे आपस में मील रहे थे......जैसे ही दोनो के कांपते होठ एक दुसरे से थोड़ा सा मिले.......वैसे ही एक जोर की आवाज सुनकर कजरी का प्रेम जाल टुटा और होश में आते ही रितेश को अपने इतने करीब पाते ही......उसने रितेश को जोर का धक्का दीया और उससे अलग हो कर खड़ी हो गयी.....

रितेश नें इधर उधर देखा तो एक बील्ली थी जीसने घर के बर्तन गीरा कर वहीं बैठी थी.....जीसकी आवाज सुनकर ही कजरी रितेश से अलग हो गयी थी......

उस बिल्ली को देख कर रितेश को इतना गुस्सा आया की.....उसने एक डंडा लेकर उस बिल्ली को खदेर लीया......

और ये दे कर कजरी एक बार फीर जोर जोर से खीलखीला कर हंसने लगी.......


कहानी कैसी लग रही है.......आप लोग जरुर बताईयेगा.........अगला अपडेट आज रात तक!

thanks to my all readers ....
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आज रज्जो......रितेश को अपने उपर लिये उसके होठो को जोर जोर से चुस रही थी॥

रितेश भी......पूरी तरह रज्जो के अँदर घुल जाना चाहता था....खैर ये सब रितेश के लीये पहला अनुभव था तो उसे भी बहुत मजा आ रहा था.......वो भी रज्जो के मुह में अपना पूरा मुहं घुसा कर चुसने लगा.......।

रज्जो की हालत खराब होने लगी.......उसकीबुर गीली होकर आंसुआ बहाने लगी थी......वैसे तो उसने आज तक कयी मर्दो से चुदवाया था.....लेकीन वो मर्द गांव के नही थे......सब के सब रज्जो के कहीं ना कहीं के रिश्तेदार ही थे...।

करीब 5 मीनट चुसने के बाद.....दोनो अलग हुए.....दोनो एकदम हाफ रहे थे....।

रज्जो-- आह.....मजा आ रहा है बेटा?
रितेश-- पूंछ मत काकी बहुत मज़ा आ रहा है...

रज्जो रितेश के सामने ही अपनी एक चुचींया पकड़ कर मसलने लगी......जीसे देख रितेश के अंदर और चींगारी भड़कने लगी......

रज्जो-- बेटा.....तुझे मेरी चुचींया कैसी लगती है......

रितेश- बहुत मस्त है काकी.....बड़ी बड़ी है....लगता है.....जैसे बहुत सारा दुध भरा हो...।

रज्जो-- तो बेटा नीचोड़ कर पी जा.....इसे....।

इतना सुनते ही रितेश रज्जो की चुचीयों पर टुट पड़ा......उसकी एक चुचीयों को पकड़ कर उसने मुहं में घुसा लीया.....और जोर जोर से चुसने लगा.....और दुसरी चुचीं को अपने हाथोँ से मसलने लगा.......

रज्जो को इतना मजा पहले कभी नही आया था......उसकी सीसकीया......पूरे कमरे में गुंज रही थी......

रज्जो-- आह.....बेटा.....चुस ले.....बेटा.....हां.....ऐसे ही.....बहुत मस्त चुसता है.....आईंईंईंईंईंई......स्स्स्स्स्स।

रितेश ने रज्जो की दोनो चुचीयों को जमकर चुसा.....रज्जो की दमदार चुसाई से......उसकी दोनो चुचींया लाल हो चुकी थी.......

रितेश ने बीना देरी कीये झट से खड़ा हो जाता है.....और अपना पैंट नीकाल देता है.....उसका तनतनाया हुआ 8.5 का लंड देखकर रज्जो की आंखो में एकबार फीर चमक आ जाती है.....

रज्जो रितेश के लंड को हाथ में पकड़ लेती है......

रज्जो-- द इया.....रे द इया.....ऐसा लंड भी होता है.....मैने अपने पूरे 42 साल की उम्र में ऐसा लंड कभी नही देखा.....तेरी मां ने तूझे खीला पीला कर तेरे लंड को घोड़े का आकार दे दीया है......जो कीसी भी औरत की हालत खराब कर दे......

रज्जो की मदमस्त बाते सुनकर रितेश का लंड रज्जो के हाथ में ही झटके मारने लगता है......

अभी रज्जो रितेश के लंड को हाथ में पकड़ी ही थी की......अचानकर से दरवाजा धड़ाम से खुलता है.....दरवाजा खुलने के आवाज़ से....रितेश और रज्जो की नज़रे दरवाजे की तरफ़ गयी.....दोनो की आंखे फटी की फटी रह जाती है.....क्यूकीं सामने कजरी खड़ी थी....।

कजरी भी अँदर का नज़ारा देख कर एक दम चौंक जाती है....।

कजरी की नज़रे......की आंखे तब खुली की खुली रह जाती है.....जब उसकी नज़र रितेश के मस्ताने लंड पर पड़ती है.....जो की इस समय रज्जो के हाथ में था....।

कुछ देर के लीय तीनो को जैसे लकवा मार गया था.....तीनो अँसमंजस के भाव लीये अपने चेहरे पर मुर्ती बने खड़े रहे.....

लेकीन तभी कजरी दरवाजे की तरफ मुह करके घुम जाती है.....ये देख रज्जो ने भी रितेश का लंड हाथ से छोड़ दीया....
रज्जो जल्दी से अपने कपड़े पहन लेती है.....और रातेश भी अपना पैटं पहन कर जल्दी से कमरे के बाहर नीकल जाता है.....कजरी अभी भी वही खड़ी थी......

रज्जो अपने कपड़े पहन कर चुपचाप खड़ी थी......

तभी कजरी उसके पास आती है.......और खींच कर एक तमाचा रज्जो के गाल पर जड़ देती है......

कजरी-- तू सच में एक रंडी है........छीनाल, आखीर तू मेरे बेटे का पीछा क्यूं नही छोड़ देती?

रज्जो(शरारती) - अरे कजरी.......तूझे शायद पहले भले ही ना पता हो........लेकीन आज जो तूने देखा उसे देखने के बाद तो तूझे ये समझ में आ ही गया होगा की....क्यूं मैं तेरे बेटे के पीछे दीवानी हूं...........लेकीन तू हर बार मेरी ख्वाहीसों को पूरी होने नही देती.......मेरी प्यास अधुरी रह जाती है।

कजरी-- और तेरी प्यास हमेशा अधुरी ही रहेगी..........।

रज्जो-- तू ना ही एक औरत बन पायी.......और ना ही एक मां........तूने सीर्फ मुझे प्यासी नही रखा है.........बल्की एक मां के तौर पर तूने अपने बेटे को और एक औरत के तौर पर ठाकुर साहब दोनो को प्यासा रखा है........।

कजरी-- अरे घटीया औरत, तू क्या जाने एक औरत क्या होती है.......मैने आज तक अपने पती के अलावा और कीसी के बारे में सोचा तक भी नही........और रही बात मेरे बेटे की, तो आज नही तो कल उसकी शादी हो ही जायेगी......तड़पेगी तो तू। और तूझे शरम आनी चाहीए ठाकुर जैसे भले इंसान पर एसा इल्जाम लगाते हुए.........पहले मै भी तेरी तरह यही सोचती थी की.......ठाकुर साहब की नीयत मुझ पर अटकी है.......लेकीन मैं गलत थी........वो तो एक भले इंसान हैं..

इतना कहकर कजरी भी कमरे के बाहर चली जाती है..........और रज्जो कमरे में खड़ी कजरी को जाते हुए देखते रहती है।



दुसरे दीन सुबह.........ठाकुर की गाड़ी सीधा थाने में रुकती है........गाड़ी के अँदर से ठाकुर के साथ एक और आदमी नीकलता है और दोनो तेज कदमो से थाने के अंदर प्रवेश करते है।

थाने में दरोगा सतीश सींह अपने कुर्सी पर बैठा था.......॥

क्यूं रे दरोगा........तूझे मेरी बात समझ में नही आती.......क्या?

इस आवाज़ को सुनकर दरोगा अपनी नज़रे उपर उठाता है...........और झट से खड़ा हो कर सेल्यूट करता है।

दरोगा-- जय हीदं साहब!

ये कोई और नही बल्की उस ब्लाक के वीधायक समसेर सींह थे।

विधायक पास में रखी कुर्सी पर बैठकर एक सीगरेट जलाता है.....और कश भरता हुआ....अपनी हाथ की उगंलीयो से इशारा करता है......

दरोगा-- हवलदार छोड़ दे इन लोग को।
हवलदार-- जी साहब!

फीर हवलदार ने चंपा के साथ......ठाकुर के दोस्तो को भी छोड़ दीया.....

विधायक कुर्सी पर से उठा.....और थाने के बाहर चल दीया.....ठाकुर के साथ साथ चंपा और ठाकुर के दोस्त भी विधायक के पीछे पीछे चल दीये......

विधायक ठाकुर के साथ बाहर आकर गाड़ी के पास खड़ा हो गया...।

ठाकुर-- आपका बहुत बहुत धन्यवाद विधायक जी........

विधायक-- अरे ठाकुर साहब, इतनी छोटी सी बात के लीये आप भी क्या धन्यवाद कर रहे है.....और हां आपके प्रधानी के चुनाव का परचा निरस्त नही हुआ है......आप चुनाव लड़ सकते है......

ये सुनकर ठाकुर के खुशी का ठीकाना न रहा.....

विधायक-- अच्छा तो ठाकुर साहब मै चलता हूं

ये कहकर विधायक अपने गाड़ी में बैठकर चल देता है.......

ठाकुर भी अपनी गाड़ी में बैठकर घर आ जाता है....और मुनीम से बोलकर चुनाव प्रचार की तैयारी कराता है.....

ठाकुर अपने दोस्तो के साथ बैठा था......

ठाकुर को बस एक बात की चिंता हो रही थी की..........आखीर सेठ मरा कैसे?

करीब 1 घंटे तक बैठ कर ठाकुर अपने दोस्तो के साथ बाते करता रहा.....फीर वो मुनीम के साथ चुनाव प्रचार के लीये नीकल पड़ा......


इधर रितेश अपने घर पर अभी भी सो रहा था....सुबह के 11 बज रहे थे....

आज कजरी भी रितेश को उठाने नही गयी थी.....क्यूकीं वो रितेश से बहुत ज्यादा नाराज़ थी......तभी वहां अजय पहुचं जाता है......

अजय- काकी रितेश कहां है? आज वो चुनाव प्रचार में नही आया?

कजरी- वो सो रहा है......।
अजय-- अभी तक सो रहा है.....और ये कहते हुए अजय रितेश के कमरे की ओर बढ़ जाता है......

रितेश तो सोया ही नही था......वो परेशान तो था ही लेकीन उसकी परेशानी तब और बढ़ जाती है, जब उसकी मां उसे उठाने नही आती ..।

रितेश ये सब सोच ही रहा था की......तभी उसके दरवाजे पर खट खट होती है......रितेश ने समझा की मां ही होगी.....वो खुश हो जाता है.....तभी

रितेश.....रितेश.....कीतना सोयेगा....

अजय की आवाज़ सुनकर रितेश का चेहरा उतर जाता है.....उसे लगा शायद उसकी मां होगी लेकी न ये तो अजय था....।

रितेश उठ कर अपनी आंखे मलते हुए बाहर नीकला......

जंहा अजय और कजरी खड़े थे.....

अजय-- क्या हुआ भाई कीतना सो रहा है.....
रितेश-- बस यार तबीयत थोड़ा ठीक नही लग रही है.....

अजय-- अच्छा, तो ठीक है तू आराम कर मैं प्रचार के लीये जा रहा हूं।

रितेश - अरे अब प्रचार करने की क्या जरुरत है.....ठाकुर का तो चुनावी परचा ही नीरस्त हो गया.....अब तो प्रधानी तेरी ही है।

अजय-- यार गड़बड़ हो गयी है .....वो विधायक है ना.....उसने ठाकुर का परचा निरस्त होने से बचा लीया है.....और ठाकुर जोरो शोरो से प्रचार कर रहा है।

रितेश अजय से बात करते करते अपनी मां की तरफ भी देखे जा रहा था.....लेकीन कजरी रितेश की तरफ़ एक बार भी नही देखी.....।

रितेश-- अच्छा ठीक है.....तू चल मैं एक दो घंटे में आता हूं।
अजय-- ठीक है......ये बोलकर अजय वंहा से चला जाता है...।

अजय के जाते ही कजरी भी उठ कर रसोइ घर में जाती है......और खाने की थाली लाकर रितेश की तरफ बढ़ा देती है......लेकीन कुछ बोलती नही.....

रितेश- नही.....भुख नही है....।

कजरी कुछ नही बोलती और खाने की थाली वही रखकर जैसे ही जाने के लीये मुड़ी तो रितेश ने कजरी का पकड़ लीया.....और खीचं कर उसे जोर से अपनी बांहो में जकड़ लीया....

रितेश ने कजरी को अपनी बाहों में इतना जोर सें जकड़ा था की......कजरी की चुचींया रितेश के सीने में चीपक कर रह गयी थी......

कजरी सकपका गयी......और अपने आप को छुड़ाने लगी.....लेकीन रितेश के मजबुत बांहों से छुटना मुश्कील था.....

रितेश-- नाराज हो....मुझसे!

अब कजरी छुटने की कोशीश तो नही कर रही थी......लेकीन अपना मुंह दुसरे तरफ घुमा रखी थी और रितेश की बातो का जवाब भी नही दे रही थी.......

रितेश-- ओ मेरी दुल्हन......ऐसे तो मत नाराज़ हो मुझसे......मेरी जान नीकल जायेगी।

ये सुनकर कजरी ने.......अपना मुंह रितेश की तरह घुमाया, वो बोली तो कुछ नही लेकीन गुस्से में अपनी आंखे इतनी बड़ी कर के रितेश को देखा की....पुछो मत!

रितेश-- हाय.....इतने प्यार से मत देखो कही इस नज़र से घायल ना हो जांउं!

ये सुनते ही कजरी को हंसी आने लगी.....वो अपनी हंसी रोकना चाहती थी.....लेकीन उसके चेहरे पर एक मुस्कान बिखर ही गयी!

रितेश-- सच में.......तेरा जवाब नही......इसमे मेरी कोइ गलती नही.....तूझे भगवान ने बनाया ही ऐसा है की तेरी एक मुस्कान पर तेरा बेटा भी पागल हो जाता है......पर शायद तू मुझे कभी कबुल नही करेगी......और मैं हमेशा तड़पता रहुगां।

कजरी ने अपनी खुबसुरती की तारीफें तो बहुत सुनी थी......लेकीन आज जीस तरह से रितेश ने उसकी तारीफ़ की......कजरी रितेश के अल्फाज़ो में कही खो सी गयी......और उसकी आंखे रितेश की आंखो से टकरा गयी......

दोनो मां बेटे एक दुसरे की आंखो में इस कदर खोये थे की.....कुछ लम्हा बित गया लेकीन वो दोनो एक दुसरे से नज़रे हटाने को तैयार ही ना थे.......

रितेश धिरे धिरे अपने होठ अपनी मां के होठ के पास ले जा रहा था......कजरी भी इस तरह खो गयी थी की.....उसके भी कापते गुलाबी होठ जैसे रितेश के होठो से मील जाना चाहती हो.......दोनो के होठ इतने करीब आ गये थे की......दोनो के दील की बढ़ चुकी धड़कन से गरम सांसे आपस में मील रहे थे......जैसे ही दोनो के कांपते होठ एक दुसरे से थोड़ा सा मिले.......वैसे ही एक जोर की आवाज सुनकर कजरी का प्रेम जाल टुटा और होश में आते ही रितेश को अपने इतने करीब पाते ही......उसने रितेश को जोर का धक्का दीया और उससे अलग हो कर खड़ी हो गयी.....

रितेश नें इधर उधर देखा तो एक बील्ली थी जीसने घर के बर्तन गीरा कर वहीं बैठी थी.....जीसकी आवाज सुनकर ही कजरी रितेश से अलग हो गयी थी......

उस बिल्ली को देख कर रितेश को इतना गुस्सा आया की.....उसने एक डंडा लेकर उस बिल्ली को खदेर लीया......

और ये दे कर कजरी एक बार फीर जोर जोर से खीलखीला कर हंसने लगी.......


कहानी कैसी लग रही है.......आप लोग जरुर बताईयेगा.........अगला अपडेट आज रात तक!

thanks to my all readers ....
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अपडेट-- 12





ठाकुर चुनाव प्रचार के लीये नीकल पड़ा था......
ठाकुर के घर में सीर्फ उसकी पत्नी रेनुका थी......रेनुका 48 साल की गोरी चीट्टी औरत थी....भरा हुआ बदन पर शांत रहने वाली औरत थी......

जैसे ही सब चुनाव प्रचार के लीये नीकले..... रेनुका फीर से अपने कमरे में चली गयी......।

रेनुका कमरे में अकेले बैठी थी.....की तभी वहां चंपा आ गयी.....चंपा के हाथ में चाय का कप था.....

चंपा चाय का कप रेनुका के तरफ करते हुए-

चंपा- ये लीजीये मालकीन चाय पीलीजीए!
रेनुका ने अपना हाथ बढ़ाकर चाय का कप ले लीया.....

चंपा चाय दे कर जैसे ही जा रही थी , रेनुका ने चंपा को रोक लीया.....

चंपा- जी कहीए मालकीन क्या हुआ?
रेनुका- चंपा जीस रात सेठ जी का कत्ल हुआ....उस रात तू यहां क्या कर रही थी?

रेनुका के इस जवाब ने चंपा के पसीने छुड़ा दीये.....वो कशमकश में पड़ गयी और रेनुका के बातो का क्या जवाब दे उसे कुछ समझ में नही आ रहा था....

चंपा-- वो......वो मै....मै.....उस रात...।
रेनुका-- डरने की जरुरत नही है चंपा तू खुल कर बोल.....

चंपा ने सोचा की छुपा कर कुछ फायदा नही है......और वैसे भी सेठ जी का कत्ल मैने थोड़ी ही कीया है.....जो डरु......और ये बात तो मैने उस दरोगा को भी बता दीया है।

फीर चंपा ने उस रात की घटना रेनुका को पुरा साफ साफ बता दीया.....

ये सुनकर रेनुका ने कहा....

रेनुका- तो तू उस रात सेठ जी के साथ कुछ नही कर पायी!

चंपा-- कहां मालकीन.....सेठ जी का पानी छुटते ही, दुबारा उठे ही नही....

रेनुका- कीतना बुरा लगता है ना....जब कोई औरत अधुरी प्यासी रह जाती है, तो।

रेनुका की बात सुनकर चंपा फीर असमंजस में पड़ जाती है....उसने सोचा की मालकीन ये कैसी बात कर रही है.....घर में कतल हो गया है.....और ये कैसी बात....तभी

रेनुका-- मुझे पता है तू क्या सोच रही है....लेकीन अब तू ही बता की इस घर में कोई औरत तो है नही जीससे मैं अपने दील की बात कर सकूं , मेरी बेटी है तो उससे मै अपनी हालत बंया नही कर सकती....


चंपा-- कैसी हालत मालकीन?
रेनुका-- एक प्यासी अकेली औरत की कैसी हालत होती है?

चंपा-- लेकीन मालकीन........ठाकुर साहब के होते हुए आप!

रेनुका- तेरे मालीक बड़े रंगीन कीस्म के मर्द है........उन्हे तो दुसरी औरतो में सुख मीलता है.......मेरे पास तो उनको आये ज़माना हो गया.......और सुना है की अब तेरे मालीक कीसी कज़री नाम के औरत के पीछे पड़े है.........लेकीन वो औरत इनके हाथ नही आ रही....क्या तू जानती है उस औरत को?

चंपा- लो कर लो बात , भला कजरी को कौन नही जानता..........सच कहूं तो कजरी के पीछे मालीक ही नही, बल्की पूरा का पूरा गांव लगा है।

रेनुका-- क्या सच में वो इतनी सुंदर है।
चंपा-- सुंदर नही मालकीन सुदंरता की मुरत कहो.......

रेनुका- काश भगवान ने मुझे भी उतना सुदंर बनाया होता तो मेरा पती दीन रात मेरे पीछे ही घुमता...

चंपा- बुरा ना मानो तो एक बात कहूं मालकीन!

रेनुका-- अरे बोल तू......मै भला बुरा क्यूं मानूगीं?

चंपा-- प्यास बुझाने के लीये जरुरी थोड़ी है की पती का ही होना जरुरी हो......कभी कभी दो औरते मीलकर भी अपनी अपनी प्यास बुझा लेती है.....हां वो बात अलग है की मर्द से मीला हुआ सुख अलग ही एहसास देता है लेकीन जंहा मर्दो की उम्मीद कम लगे वंहा अगर एक औरत दुसरे औरत के काम आ जाये तो बुरा क्या ?

ये बात सुनकर रेनुका की आंखो में चमक सी आ गयी.....

चंपा-- अगर आप कहे तो, इस काम में मै माहीर हूं।

रेनुका कुछ बोलने ही वाली थी की....तभी उसका छोटा बेटा राजीव वंहा पहुचं गया...

राजीव को देखकर रेनुका और चंपा दोनो की आंखे फटी पड़ जाती है,

क्यूकीं राजीव अपने फोन में उन दोनो की बाते रीकार्ड करके अपने फोन में चालू करके उनके सामने ही खड़ा हो गया।

राजीव-- इस काम मे सीर्फ तू नही मैं भी माहीर हू चंपा.....और मेरी मां की हालत तुझसे बेहतर मैं समझ सकता हूं.....है की नही मां।

रेनुका हंसते हुए बीस्तरे पर से उठी और अपने बेटे के करीब जा कर उसके गले में अपनी बांहे डाल देती है.

रेनुका-- पिछले एक सालो से तू ही तो अपनी मां की हालत समझ रहा है बेटा!

चंपा अब तक जीसे भोली भाली नादान समझ रही थी....उसका ये रुप देखकर तो वो हैरान रह गयी , और सबसे बड़ी हैरानी की बात तो मां बेटे के रीश्तो में संबध की थी....चंपा कुछ बोलती इससे पहले ही

रेनुका- मुझे पता है तू इस समय क्या सोच रही है....और तू जो सोच रही है बिलकुल सही सोच रही है.....ये मेरा बेटा पिछले एक सालो से तेरी मालकीन की बुर को शांत कर रहा है.......

चंपा की हालत को लकवा मार गया....उसे कुछ समझ में नही आ रहा था।

चंपा- तो....तो मालकीन अ...आप मेरे साथ ये कब से क्या?

रेनुका-- तेरे साथ ये थोड़ा बहुत खेल खेलना पड़ा....वो हमारी आदत है क्यूं बेटा! असली काम तो हमारा मोहरा ढ़ुढ़ने का था।

चंपा(चौकते हुए) - मोहरा! कैसा मोहरा?

रेनुका- मोहरा...मतलब तू!

ये बात पर चंपा को पसीने आने लगे.....वो एकदम घबरा गयी....वो अपने चेहरे पर से पसीने पोछते हुए बोली-

चंपा- म.....मै कुछ समझी नही!

रेनुका- ठीक है मै समझाती हूं.....यहां से करीब 500 कीलो मीटर दुर एक घनी पहाड़ी है....और वो पहाड़ी करीब हजार कीलोमीटर के दायरे में स्थीत है....

उस पहाड़ी का नक्शा वो तो ठाकुर के पास है, यानी की मेरे पती के पास।

और वो नक्सा मेरे पती ने अपने बाप को मारकर हांसील की थी.....लेकीन उस पहाड़ी के नक्से का एक छोटा सा टुकड़ा वो जीसके पास है वो मेरे पती के अलावा मैं भी जानती हूं की वो कीसके पास है।

अब मेरा सबसे बड़ा खतरा मेरा पती है....क्यूकीं उसने उस नक्से के चक्कर में सीर्फ अपने बाप की ही जान नही ली थी....बल्की मेरे बाप की भी जान ली थी....लेकीन उस नक्से का जो छोटा टुकड़ा था उसे एक आदमी ले कर नीकल गया था.....ऐसे बहुत सारे राज़ है उस पहाड़ी के जो सीर्फ एक शख्स जानता है....और उस इसांन के पास मेरा पती पहुचें इससे पहले मैं उसको उपर पहुचाँ दूगीं॥

एक बार मैने कोशीश भी की थी....लेकीन उस कोशीश में बेचार सेठ मर गया.....

चंपा की हालत को अब लकवा मार गया....

रेनुका- - तू डर मत मैं तुझे ठाकुर को मारने के लीये नही कह रही.....तूझे सीर्फ एक काम करना है.....जीसके बदले तूझे मुहमागीं कीमत मीलेगी......

चंपा के चेहरे पर घने बादल मड़रा रहे थे....वो सोचने लगी की कहीं ये लोग पैसे के लालच में मेरी जान का सौदा ना कर दे....

रेनुका- - क्या सोचने लग गयी...?
चंपा (चौकते हुए) - हां.....हां....करूगीं॥

चंपा के मुह से अनायास ही ये शब्द नीकल पड़े।

रेनुका-- तो तुझे जो काम मै दे रही हूं वो तुझे सोच समझ कर करना होगा.....तुझे मै एक पहेली बता रही हूं उस पहेली का मतलब ही तूझे ठाकुर साहब से पता करना है...।

चंपा-- पर मालकीन ये तो आप सीधा ठाकुर साहब से पुछ सकते हो....इसमे मेरी क्या जरुरत!

रेनुका- इस पहेली का जवाब , अगर ठाकुर साहब से आसानी से मील जाता तो मैं कब का पुछं चुकी होती।

चंपा- अगर पहेली का जवाब इतना ही जरुरी है तो.....आप ने पहेली के जवाब मीलने से पहले ठकुर साहब को क्यूं मारने का प्रयास कीया।

रेनुका-- क्यूकीं इस पहेली का जवाब ठाकुर को भी नही पता....लेकीन कीसको पता है ये ठाकुर जानता है।
ठाकुर साहब ने मुझे उसका नाम बताया था....लेकीन उसने मुझसे झूठ कहा था ये बात मुझे कल पता चली...

चंपा - ले....लेकीन पहेली क्या है?

रेनुका - तो सुन
"सावन के गीत बने तो, बने नाम वो प्राण प्रीये का॥ प्राण प्रीये का प्राण अश्व समुखा, जो तन भोगे प्राण प्रीये का प्राण नाथ समुखा॥ वो संकीला होय॥

ये पहेली सुनकर चंपा चौकते हुए बोली-

चंपा- ये......ये पहेली मैने कही सुनी है।

चंपा के मुह से ये सुनकर राजीव और रेनुका एक दुसरे का मुह देखने लगे.....और चौकंते हुए बोले-
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basudeo

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अपडेट--




राजीव और रेनुका चौंकते हुए चंपा से पुछें-

रेनुका- कहां सुना था ये पहेली?

चंपा अपना दीमाग चला कर सोचते हुए कुछ समय बाद बोली-

चंपा- हां याद आया......एक बार ठाकुर साहब अपने कमरे में रात के समय दारु पी रहे थे....उसी समय मैं खाने के लीये पुछने गयी .....तो ठाकुर साहब यही पहेली बड़बड़ा रहे थे....और बार बार एक ही चीज बोल रहेथे!

रेनुका- क्या बोल रहे थे?

चंपा- वो बोल रहे थे की , बेटा है या घोड़ा!

रेनुका- बेटा है या घोड़ा, इसका क्या मतलब हुआ...रेनुका ने सोचते हुए बोला!

चंपा- मालकीन लेकीन मुझे एक बात समझ में नही आयी की, ये पहाड़ी का क्या राज है?

रेनुका- वो तो पता नही, लेकीन जो भी है पता लगाकर ही छोड़ुगीं...

राजीव- अच्छा मां मैं जा रहा हूं....चुनाव प्रचार में!

और इतना कहकर राजीव जैसे ही जाने के लीये मुड़ा....रेनुका ने उसका हाथ पकड़ लीया!

रेनुका- कहा जा रहा है? अपनी मां की गरमी बीना शांत कीये!

रेनुका के इस कथन पर चंपा का मुह खुला रह गया , उसने सोचा की क्या अब ये मां बेटे चुदाई करेगें वो भी मेरे सामन!

चंपा सोच ही रही थी की तभी...रेनुका ने कहा-
रेनुका- और वैसे भी बेटा....बीना तेरे लंड के मुझे चैन नही आता....साल भर चोद चोद कर तुने तेरी मां का भोसड़ा खुश कर दीया।

रेनुका की मस्त बातो से चंपा का भी बदन गरम होने लगा....वो बस वही खड़ी होकर रेनुका की बाते सुन रही थी......

राजीव भी अपनी मां की बात सुनकर मस्त हो गया......उसने अपनी मां का बाल अपने हाथो में पकड़ कर जोर से खीचा......

रेनुका - आईईईईई बेटा........
राजीव- साली......साल भर से रोज तेरी बुर 4 बार चोदता हूं लेकीन तेरी बुर की गरमी शांत नही हो रही...

रेनुका(कराहते हुए) - आ.....ह बेटा तेरा जोश मेरे बुर में .....आग लगा देता है।

चंपा हैरान हो जाती है ये सोच कर की ये मां बेटे कीतनी गंदी बात कर रहे है....लेकीन उनकी बातो से चंपा भी मस्त हुई जा रही थी.....

राजीव एक हाथ से अपनी मां का बाल खीचें हुए था.....और दुसरे हाथ से अपना पैंट खोल दीया......और जैसे ही अपना लंड हाथ मे नीकाल कर लीया......चंपा की सांसे रुक गयी......

राजीव का 7.5 इंच का लंड और करीब 3 इँच मोटा एक दम टाइट राजीव के हाथो में था.....चंपा ने इतना बड़ा और मोटा लंड कभी नही देखा था......

तभी राजीव ने अपनी मां का बाल खीचंते हुए उसे अपने घुटने के नीचे बीठा दीया...

रेनुका- आ.........ह.......!

राजीव का फनफनाता लंड उसकी मां के आखों के सामने था......रेनुका ने झट से राजीव का लंड अपने मुह घुसा लीया.....और उसे जोर जोर से चुसने लगी....वो राजीव के लंड को पुरा अपने गले तक ले लेती......

ये देख कर चंपा हैरान रह गयी की इतना मोटा और लबां लंड भला मालकीन पुरा अपने मुह में कैसे ले रही है..।

राजीव खड़ा मस्ती से अपना लंड चुसवा रहा था.....उसने चंपा की तरफ देखा तो चंपा की नज़रे उसके लंड और मां पर टीकी थी.....


तभी राजीव ने.......अपनी मां का सर दोनो हाथों से कस कर पकड़ लीया......और अपनी मां के मुहं मे जोर जोर से धक्का लगाने लगा.......
रेनुका इस झटके के लीये तैयार नही थी......जैसे ही रेनुका के मुंह में एक के बाद एक झटके लगने शुरु हुआ......रेनुका का मुह तकलीफ के कारण लाल हो गया......उसकी आंखे बड़ी होने लगी.....और आंखो से पानी भी नीकलने लगा.......फच्च फच्च की आवाज़ से राजीव अपना लंड झटके से अपनी मां के गले तक अपना समुचा लंड पहुचां देता......और वो जब अपना लंड बाहर खीचंता तो रेनुका के मुहं से ढेर सारा थुक भी नीकल कर जीमन फर्श पर गीर जाता......

चंपा को पसीने आने लगे.......उसने लंड तो चुसे थे......लेकीन मुह की इस प्रकार से जोरदार चुदाई पहली बार देख रही थी.......खड़े खड़े चंपा का पांव कापने लगा.....और ऐसा नज़ारा देख जंहा एक बेटा अपनी मां के मुहं को बेरहमी से चोद रहा था.......और वो मां जो इस अपने बेटे के लंड से झटपटा रही थी.......गुं.....गुं.....गु....करते हुए रेनुका अपने बेटे का लंड अपने गले तक ले रही थी......जो चंपा की भी हालत खराब कर रहा था.....राजीव अपना गांड पीछे ले जाकर ऐसे झटके मार रहा था.....जैसे आज वो अपनी मां का मुह ही फाड़ देगा......वो रेनुका को सांस लेने तक की भी फुर सत नही दे रहा था.......

राजीव - ले.......साली.....कुतीया......ठाकुर की छीनाल औरत......मेरी रंडी , कहते हुए राजीव ने एक जोर के झटके के साथ अपना लंड गले तक पहुचां दीया ......

रेनुका कीसी जल बीन मछली के तड़प रही थी......वो अपना हाथ राजीव के पैर पर मारने लगी.....और छटपटाने लगी......लेकीन राजीव था की उसे छोड़ ही नही रहा था......

रेनुका को इस तरह छटपटाता देख चंपा के भी रौगंटे खड़े हो गये......

तभी राजीव ने झटके से अपना लंड अपनी मां के मुह से नीकाला तो रेनुका अपने सीने पर हाथ रखकर खासने लगी......

रेनुका वहीं फर्श पर बैठी खांस रही थी....

राजीव- चंपा थोड़ा पानी लेकर आ....
चंपा- जी छोटे मालीक!

ये कहकर चंपा पानी लाने केलीये चली गयी.........

और जब वो लौटी तो देखती है की...... राजीव अपनी मां को घोड़ी बनाया था.....और वो बीस्तर के छोर पर खड़ा अपनी मां के बुर में लंड घुसाये उसे जोर जोर से चोद रहा है.......और रेनुका की चींखो से पूरा कमरा गुंज रहा था......

चंपा पानी का ग्लास राजीव को देकर फीर से वहीं खड़ी हो जाती है........उसने सोचा की छोटे मालीक पानी मालकीन को पीने को देंगे लेकीन ये क्या ये तो खुद पी रहे है।

एक 19 साल के लड़के को ऐसे चोदते हुए देख चंपा की भी बुर की फांके फुलने पीकने लगी......

रेनुका- हाय......रे.......इ....ईईईईईइ....बे.....टा.....आज मार डालेगा क्या...........आह.....चोदते रह......बेटा.....मजा आ रहा है.........

रेनुका को अपना पुरा मुह फाड़ कर चील्लाते हुए देख......चंपा को भी बर्दाश्त से बाहर होने लगा.......उसने अपना एक हाथ.....साड़ी के उपर से ही रखकर अपनी बुर मसलने लगी.......उसने सोचा की काश इस वक्त मैं मालकीन की जगह होती और छोटे मालीका इसी तरह मुझे भी चोदते.....लेकीन चंपा जानती थी की इस समय मां बेटे की चुदाई में विध्न डालना सही नही.....

राजीव अपनी मां को कीसी कुत्ते की तरह चोद रहा था......उसकी रफ्तार से......रेनुका के साथ साथ पुरी की पुरी चारपायी.....हचर पचर कर रही थी......और राजीव अपनी मां का बाल खीचें रेनुका को चोदे पड़ा था.......

कुछ 20 मीनट की चुदाई होती रही.......तभी

रेनुका- आ.......ई......ईईईईस्स्स.......बेटा मै गयी......

ये कहते हुए रेनुका अपना मुह बिस्तर में गड़ा लेती है.......उसका बदन अकड़ने लगता है.....और कुछ ही समय में वो झर जाती है...........राजीव भी धक्के पर धक्के लगाने के बाद जब वो झड़ने के कगार पे आया तो........

राजीव- आ......ह गया......मै भी.......रंडी....।

और फीर राजीव ने जोर का झटका मारा और फीर अपना पुरा रस अपनी मां की बुर में छोड़ने लगा.......

दोनो पसीने पसीने हो गये थे.......और हाफ रहे थे......राजीव का लंड ठीला पड़ गया था.....उसने आपनी मां के गांड पर जोर का थप्पड़ मारते हुए बोला-

राजीव- ठंढ़ी हो गयी तेरी बुर मेरी रंडी!
रेनुका उठ कर अपनी बांहे राजीव के गले में डालती हुई!

रेनुका - जब तू बेरहमी से चोदेगा तो ठंड़ी तो हो ही जायेगी तेरी रंडी।

राजीव अपने कपड़े पहन कर चुनाव प्रचार में नीकल जाता है।

रेनुका बिस्तर पर नंगी पड़ी थी......तभी चंपा उसके पास आती है.....चंपा की नज़र रेनुका के बुर पर पड़ती है......जो की एकदम चौड़ी हो चुकी थी......और उसमे से राजीव का पानी टपक रहा था.......

चंपा- वाह.......मालकीन.....छोटे मालीक का जवाब नही......आपको सच में कीसी रंडी की तरह चोद रहे थे।
रेनुका- सच कहा तुने चंपा......चोद चोद कर मुझे वो अपनी रंडी बना लीया है......

चंपा- हां देखो ना कैसे आपकी बुर चौड़ी हो गयी है।

रेनुका- तू घबरा मत, तेरी भी बुर अपने बेटे से जल्द ही चौड़ी कराउगीं।

ये सुनकर चंपा खुश हो जाती है......।

रेनुका- चल अच्छा अब अपने छोटे मालीक का पानी मेरे बुर पर से चाट कर साफ कर दे....

रेनुका के इतना कहते ही चंपा कुदकर बीस्तर पर चढ़ गयी और अपने जीभ से रेनुका की बुर कीसी कुतीया की तरह चाटने लगी........



आज सबकी नज़रे......आंचल पर ही टीकी थी....क्यूकीं आज आंचल एकदम बनठन के आयी थी.....रोज रोज ठाकुर के चुनाव प्रचार में जाने वाले गांव के लड़के आज आंचल की खुबसुरती के कायल हो गये थे.....और वो सारे लड़के आज अजय के चुनाव प्रचार में लगे थे......

निलम- यार आंचल तू रोज आया कर चुनाव प्रचार में।
आंचल- वो क्यूं?

निलम- क्यूकीं जब तू आती है.....तो हमारे चुनाव प्रचार की जनसंख्या मे इज़ाफा हो जाता है......

ये कहकर नीलम और आँचल दोनो हंसने लगती है.....

आंचल - हां लेकीन जीसे आना था.....आज वही नही आया है....

नीलम झट से समझ जाती है की आंचल रितेश की बात कर रही है.....

आंचल- पुछ ना अपने भैया सै की आज क्यूं नही आया वो..।

नीलम- उसका तबीयत खराब है.....इसीलीये आज नही आया.....भैया ने खुद बताया था सुबह.....

ये सुनकर आंचल थोड़ा हैरान हो जाती है....जीसे नीलम ने साफ परख लीया था!

नीलम- ज्यादा तबीयत नही खराब है , तू हैरान मत हो!

आंचल- चल ना थोड़ा उसे देख कर आते है...

निलम- हमें कही जाने की जरुरत नही है....वो देख आ गया तेरी जान!

आंचल ने जैसे ही अपने नज़रे उठा कर देखा तो रितेश आ गया था और वो अजय के पास खड़ा था.।

नीलम- अब पड़ गयी दील को ठंढ़क!
आंचल कुछ बोली तो नही लेकीन शर्मा जरुर गयी.......

अजय- कैसी है तबीयत?
रितेश- ठीक है.....भाई, लेकीन आज ये गांव के सारे लड़के क्यू जमा हो गये है.....तू भी कहीं चुनाव प्रचार के लीये पैसे तो नही बांट रहा है।

अजय- अरे इतनी औकात कहां मेरी.....ये सारे लड़के तो तेरी जान के पीछे आये है....जरा उधर देख!

रितेश ने अजय के उगंली के इशारे की तरफ़ अपनी नज़रे घुमायी तो देखता रह गया...

रितेश- बहुत ख़ुब यार.......मतलब एक हद होती है खुबसुरती की.....और इसने वो हद पार कर दी है......तू रुक मै मीलकर आता हूं।

रितेश आंचल की तरफ बढ़ने लगा.....

निलम- वो देख रितेश तो इधर ही आ रहा है।

आंचल का दील जोरो से धड़कने लगा......रितेश आंचल के करीब जैसे ही पहुचंता है।

रितेश- निलम थोड़ा पानी ले कर आ!

नीलम आंचल की तरफ देख कर हल्का सा मुस्कुराती है और फीर पानी लाने चली जाती है......

आंचल- अब कैसी तबीयत है तुम्हारी?
रितेश- तुम्हे कैसे पता की मेरी तबीयत खराब है।

आंचल- वो.....निलम ने बताया।
रितेश- मेरी तबीयत तो तुम्हे देख कर ही खराब हो जाती है.
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आंचल अपनी नज़रे झुकायी बोलती है!

आंचल- तुम्हारी हालत क्यूं खराब होने लगी भला, वो भी मुझे देखकर?

रितेश- अब तुम इस तरह तड़पाओगी मुझे तो हालत तो खराब होगी ही ना मेरी!

आंचल को ये सुनकर बहुत खुशी हुई की रितेश मुझसे प्यार करता है....और आज वो जो इतनी सज धज के आयी थी...वो रितेश को रिझाने के लीये ही तो आयी थी...

आंचल और रितेश दोनो चुप थे की तभी वहां नीलम पानी ले कर आ जाती है.....

नीलम- ये लो रितेश भैया...पानी!
रितेश पानी का ग्लास ले कर आंचल की तरफ बढ़ा देता है।

रितेश - ये लो पी लो......दील की धड़कन शांत हो जायेगी।

आंचल ये सुनकर और ज्यादा शरम से लाल हो जाती है....और पानी का ग्लास ले लेती है.....

कुछ देर में सब चुनाव प्रचार के लीये नीकल पड़ते है.......


सारा दीन चुनाव प्रचार करने के बाद.....रितेश अजय के साथ गांव के पुलीया पर बैठा था।

अजय - यार भाई, चुनाव के लीये मुझे कुछ ज्यादा ही परेशानी हो रही है.....

रितेश - कैसी परेशानी बे?
अजय - अरे यार भाई.....ये ठाकुर की पहुचं बहुत उपर तक है......चुनाव तो अपने हाथ में नही हैं समझ।

रितेश - हम्म्म......चल तू पहले ठेके पर....
अजय रितेश के साथ शराब के ठेके पर पहुचंता है....वंहा अजय ने शराब की दो बोतल खरीदी......और फीर गांव के बाहर तालाब पर बने पुलीया पर बैठ कर शराब पीने लगते है.......

रितेश और अजय बैठ कर दारु पी रहे थे.....चादं धरती पर अपना उज़ाला बीखेरी थी......और ठंढ़ी हंवाये चल रही थी.....।

रितेश - यार एक बीड़ी जला!
अजय ने एक बींड़ी अपने मुह में डालकर जैसे ही माचीस की तीली मारने को हुआ.......

रितेश- यार.....अजय इतनी रात को इस जंगल में तुझे कुछ उज़ाला ......नही दीख रहा है!

अजय बींड़ी को वापस मुहं मे से हाथ मे ले लेता है.....।

अजय - अरे भाई तू भी क्या बात कर रहा है.....इतनी रात को भला इस घने जंगल मे कौन आयेगा? जंहा सब दीन में आने से भी डरते है.....

अजय अपनी बात अभी पूरी भी नही की थी की......उन्हे गोली चलने की आवाज़ सुनायी पड़ी.....।

धांय.....धांय.......धांय......

एक के बाद एक करीब तीन बार गोलीया चलने की आवाज़ ने.......रितेश और अजय के चढ़ चुके शराब के नशे भी उतर गये.....

रितेश झट से पुलीया पर से उठ कर गोलींयो की आवाज़ की तरफ भागता है...

अजय भी रितेश के पीछे भागते हुए , जंगल की तरफ नीकल देता है.....

अजय रितेश के पीछे पीछे उस जगह तक पहुचं जाता है.......
कुछ 10 कदमों से दुर वंहा लकड़ीया , जल रही थी.... और उस आग के चारो तरफ़ करीब 10 लोग जो की , अपने चेहरे पर काले कपड़े बांधे हुए थे।

रितेश एक झांड़ी के पिछे खड़ा हो कर ये सब देख कर दंग रह गया......

अजय - भाई ये सब कौन है?
रितेश - चुप .......धिरे बोल, पता करते हैं की कौन है।

थोड़ी समय बाद....उन दोनो की आंखे खुली की खुली रह गयी....

राजू जो की रज्जो का बेटा था....वो कुछ आदमीयो के साथ एक बक्सा ले कर ठाकुर के गोदाम से बाहर नीकला....दो लोग एक हवलदार को पकड़े हुए थे.....

और तभी कुछ आदमी....अँदर से एक और आदमी को पकड़ कर ले आते है....जीसे देख कर रितेश और आजय चौकं जाते है..।

वो आदमी कोई और नही दरोगा था....दरोगा के कपड़े फटे थे....और उसके चेहरे पुरे सुजे हुए थे....औल पेट गर्दन पर खुन भी लगे हुए थे।

ये नज़ारा देखकर रितेश और अजय की हालत खराब हो गयी....दोनो झांडीयो के पीछे छुपकर ये सब देख रहे थे....

तभी उस जगह एक गाड़ी आकर रुकी....

अजय(आश्चर्य से) - अब ये कौन है?
रितेश कुछ बोला नही लेकीन अपनी एक उंगली अपने होठ पर रखकर चुप रहने का इशारा कीया!

तभी दरवाज़े का गेट खुलता है....उसमे से दो आदमी उतरते है.....
रितेश और अजय ये देखकर चौक जाते है की.....गाड़ी में से उतरने वाला कोई और नही बल्की विधायक और ठाकुर था!

अजय - भाई ये तो....
रितेश - चुप....चुप रह एकदम!

ठाकुर गाड़ी से नीचे उतर कर दरोगा के नज़दीक जाता है....दरोगा अपने घुटने पर बैठा था और दो आदमी....दरोगा के हाथ पकड़े हुए थे!

ठाकुर दरोगा के पास बैठते हुए-

ठाकुर - अरे....दरोगा साहब आप इस हालत मे ....ओ हो....सच बताउं दरोगा साहब.....आपको इस हालत में देखकर अच्छा नही लग रहा!

ठाकुर की बात सुनकर ......दरोगा ने अपने गर्दन को धीरे धीरे कराहते हुए उठाया और फीर बोला-

दरोगा - क्यूं....गांड फट गयी क्या तेरी ठाकुर?

दरोगा की बात पर ठाकुर को गुस्सा आया और जोर का थप्पड़ दरोगा के गाल पर ज़ड़ दीया!

ठाकुर - अबे....कुत्ते मौत के मुह में खड़ा है...और मुझे डरा रहा है! साले।

ये सुनकर दरोगा हंसने लगता है.....और बोला-

दरोगा - अबे तू क्या मुझे डरायेगा.....साले मादरचोद!

ठाकुर का गुस्सा आसमान पर पहुचं गया....

ठाकुर अपने बगल में खड़ा एक आदमी से बंदुक छीनते हुए दरोगा के कनपटी पर सटा कर गोली चला देता है....

ठाकुर - साले, मुझे गाली देता है....
दरोगा वहीं जमीन पर गीर जाता है....

ये खौफनाक मजंर देख कर अजय कांपने लगता है....रितेश को भी पसीने आने लगते है...

ठाकुर - मेरे काम में जो टांग लड़ायेगा वो जान से जायेगा....सुनो रे! लाश को ठीकाने लगा दो!

और इतना बोलकर ठाकुर विधायक के साथ गाड़ी में बैठ जाता है....और गाड़ी वंहा से नीकल जाती है।

थोड़ी देर बाद धिरे से अजय और रितेश भी वंहा से नीकल कर गांव के पुलीया पर आ जाते है...

रितेश ने अजय को देखा ....तो एकदम डरा हुआ था....चांद के रौशनी में रितेश अजय का चेहरा साफ देख सकता था!

रितेश - क्या हुआ?
अजय - भाई गलत पंगा ले लीया! ये ठाकुर तो बहुत खतरनाक आदमी नीकला...इसने तो दरोगा को ही मार दीया....

ये सुनकर रितेश हंसने लगा.....

अजय - अरे भाई यंहा गांड फटी पड़ी है...और तू हंस रहा है।

रितेश - अबे साले....मैं तो ठाकुर के बरबादी पर हंस रहा हूं।

अजय - ठाकुर की बरबादी.... वो कैसे?

रीतेश - तू एक काम कर...अभी घर जा...कल मुझे बनवारी के ठेले पर मील!

अजय - लेकीन!
रीतेश - अभी जा....बहुत रात हो गयी है!

अजय - ठीक है!
और फीर रितेश और अजय अपने अपने घर की ओर नीकल जाते है।

रितेश जैसे ही घर पहुचंता है....वो बाहर खाट पर बैठ जाता है....आज के हादसे ने उसे परेशानी में डाल दीया था.....।

वो अपना दोनो हाथ सर पर रखे हुए था....और कुछ सोच रहा था.....की तभी कजरी वंहा आ जाती है।

कजरी जब रितेश को देखती है तो वो हैरान हो जाती है।

कजरी (मन में ) - आज इसे क्या हो गया..? ऐसे सर पर हाथ रख कर क्यूं बैठा है, कहीं कीसी परेशानी में तो नही हैँ। क्या करुं पुछु की नही.....पुछ ही लेती हू....नाराज हूं तो क्या हुआ है तो मेरा बेटा ही ना!

कजरी - क्या हुआ.....ऐसे क्यूं बैठा है?
ये आवाज़ सुनकर रितेश ने अपनी नज़रे उठा कर अपनी मां की तरफ देखता है।

कजरी का चेहरा देखते ही मानो रितेश अपनी सारी परेशानीया भूल जाता है.।

रितेश खाट पर से उठ कर खड़ा हो जाता है....और कजरी को बांहो में भर लेता है।

कजरी(छुड़ाते हुए) - छोड़ मुझे....छोड़ !

रितेश कजरी को अपनी बांहो में और कसते हुए बोला-

रितेश - मैं भला अपनी दुल्हन को क्यूं छोड़ूं?
कजरी - अरे....मैं तेरी दुल्हन थोड़ी हूं...मैने तुझसे क्या शादी की है....जो तू मुझे अपनी दुल्हन समझ रहा है?

रितेश - तो क्या शादी करने पर ही दुल्हन बनती है..।
कजरी - और नही तो क्या? लेकीन तू मुझसे शादी करने का खयाल भी मत लाना....क्यूकीं मै तेरी मां हूं।

रितेश - बस ...बस यही बात की तू मेरी मां है....और मैं तुझसे प्यार करता हूं इसीलीये मैं तुझसे शादी करना चाहता हूं।

कजरी - ये प्यार नही हवस है....हवह!
रितेश गुस्से में आकर......अपनी मां को जोर का तमाचा मारता है...

तप्पड़ पड़ने से कजरी की गाल लाल हो जाती है....उसकी आंखो में आशुं आ जाते है।
जीसे देखकर रितेश को अपने आप पर गुस्सा आता है....वो प्यार से अपनी मां के चेहरे को अपने दोनो हथेलीयों में पकड़ अपनी उगंलीयो से कजरी के आखों से आंशु पोछते हुए बोला-

रितेश - ये हवस नही है मां, मैं सच में तुझसे प्यार करता हूं....अगर मुझे अपनी हवस ही मिटानी होती तो तूझे ये तो पता है की रज्जो हैं....और रज्जो ही क्यूं बल्की मैं कीसी से भी शादी कर लेता!

कजरी अपने गोरे खुबसुरत मासुम चेहरे को अपने बेटे के हथेलीयो में डाले अपनी कारी,कजरारी आंखो से रितेश को देखते हुए सोचा....

कजरी - बात तो ठीक है...अगर ये हवस होता तो सच में रज्जो तो हाथ धो के....हाथ क्या पुरा नहा धो के पड़ी है....तो क्या सच में वो सीर्फ मुझे अपनी!

कजरी - तो तू क्या चाहता है?
रितेश - यही की तू मेरी दुल्हन बन के मेरे साथ रह...

कजरी - उससे क्या हो जायेगा? अगर मैं तेरी दुल्हन बन भी जाती हूं तो तेरे मेरे बीच एक पती पत्नी का वो रिश्ता ....

'कजरी आगे बोलने ही वाली थी की'

रितेश - जीस्मानी संबध यही ना....नही बनाना मुझे ये संबध...बस तू मेरी दुल्हन बन कर रह...इससे मेरे मन को शातीं मीलेगी बस!

कजरी कुछ सोचती है और फीर बोली-

कजरी - ठीक है तू मुझे अपनी दुल्हन ही बनाना चाहता है ना , तो ठीक है...मैं तुझसे शादी करने के लीये तैयार हूं। लेकीन मैं तेरी एक पूरी दुल्हन कभी नही बन पांउगी....और ना ही तू इसकी कोशीश करना!

रितेश की आंखो में ऐसी चमक पहले शायद कभी नही आयी होगी....वो इतना खुश हो जाता है की मारे खुशी के उसने कजरी के गालो को चूम लेता है।

लेकीन तभी उसे अपनी गलती का एहसास होता है-

रितेश - अरे...अरे...गलती हो गयी!
कजरी - नही जाने दे तू...तू अपनी बात पर टीक नही सकता....मैं तुझसे शादी नही कर सकती!

रितेश ने सोचा अरे यार ये क्या हो गया सब कुछ ठीक हो गया था , ये क्या कर दीया मैने....और गुस्से में ही अपने आप को दो तीन थप्पड़ जड़ देता है।

ये देख कजरी को हंसी आ जाती है....वो अपने होठो पर एक दो उंगलीया रख कर थोड़ा मुस्कुरा देती है....कजरी को मुस्कुराता देख रितेश को चैन मीलता है।

रितेश(हकलाते हुए) - म...म...मां गलती हो गयी ...अब से आगे कभी नही छुउगां...सच में।

कजरी - पक्का आगे से नही होगा?
रीतेश - पक्का नही होगा।

कजरी - तो फीर ठीक है....कल जा कर मंदीर में शादी कर लेगें।

रितेश - कल नही मेरी दुल्हन!
कजरी - ऐ खबरदार! अभी मैं तेरी दुल्हन नही बनी हूं...एक बार पहले मुझे अपनी दुल्हन बना ले , फीर जीतना चाहें उतना बोल लेना मुझे दुल्हन!

रितेश - अच्छा ठीक है...मां।
कजरी - और ये बता कल क्यूं नही करना चाहता तू शादी?

ये सुनकर रितेश थोड़ा शरारती हो कर बोला-

रितेश - ओ....हो बड़ी उतावली हो रही हो शादी के लीये मां...

कजरी - अच्छा......। जा नही करती मै शादी।

रितेश - अरे....अरे मां मज़ाक कर रहा था...कल इस लीये शादी नही कर सकता क्यूकीं कपड़े खरीदने है....अब मेरी होने वाली दुल्हन अगर दुल्हन के जोड़े में ना सजे तो फीर वो मेरी दुल्हन कैसे लगेगी।

कजरी - वो अच्छा....लेकीन पैसे कहां है कपड़े खरीदने के लीये?

रितेश - अरे क्या है मां...तू पैस की चींता मत कर....लेकीन मैने ऐसी बात बोली तू थोड़ा शरमायी भी नही...कभी , कभी मौके पर शरमा भी दीया कर....मेरे दील पर बीजलीया गीरं जायेगी।

कजरी - अच्छा ठीक है.....शरमाउगीं , अब चल और खाना खा ले....सुबह से कुछ नही खाया है तूने!

और फीर कजरी हंसते हुए रसोयी घर की तरफ चली जाती है-

रितेश कजरी को जाते हुए देख कर बोला....यार ये औरत मुझे पागल कर देगी!
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सुबह जैसे ही रितेश की नीदं खुलती है....

वो उठकर बकरीयो को चारा डालता है....
अरे उठ गया बेटा........

रितेश ने पिछे मुड़ कर देखा तो उसकी मां खड़ी थी.......रीतेश अपनी मां को जैसे ही देखता है.....उसके बदन में झनझनाहट फैल जाती है।

कजरी अभी अभी नहा के आयी.......थी, उसके बाल गीले थे और खुले भी जो कजरी की खुबसुरती पर चार चांद लगा रहे थे।

रितेश की हालत तब और खराब हो जाती है...जब उसने देखा की उसकी मां ब्लाउज नही पहनी है......उसने खाली अपनी चुचींयो को साड़ी से ढ़का था.......कजरी की मस्त चुचीया इतनी बड़ी और कसी थी की......साड़ी उपर होने के बाद भी उसकी गोरी चुचींया झलक रही थी.......उसके मोटे और बड़े नीप्पल का उभार भी रितेश साफ देख सकता था.......ऐसा नज़ारा उसने कभी नही देखा था। और शायद इतनी मस्त मदहोश कर देने वाली चुचींया भी नही देखी थी.......रितेश को सुबह सुबह ही पसीने होने लगे......और हो भी क्यूं ना, उसके सामने रुप की देवी जो खड़ी थी.......रितेश की नज़रे तो अपनी मां की चुचींयो पर गड़ सी गयी थी मानो.......

कजरी - अरे कहां खो गया.....?
रितेश - क.....कहीं नही.....।

कजरी - अच्छा कल मैने नहा कर.....अपना ब्लाउज छत पर डाला था......कहीं दीख नही रहा हैं........तूने देखा क्या?

रितेश - नही मां ......मैने नही देखा!

कजरी - अच्छा......तो लगता है शायद हवा उड़ा ले गया! लेकीन अब मैं क्या पहनू।

रितेश ने मन में ही कहा- कुछ मत पहन मां , कसम से तू परी लग रही है.....।

रितेश - क्यूं मां दुसरा नही है क्या?
कजरी - अच्छा......बेटा कभी ला के दीया एक भी कपड़ा अपनी मां को.....जो पुछ रहा है.।

रितेश अपनी मां के करीब जा कर........
रितेश - मां क्या मैं तुझे अपनी बांहो में भर सकता हूं?

कजरी - क्यूं?
रितेश - पता नही.....लेकीन ना जाने क्यूं बहुत मन कर रहा है.....।

कजरी - नही.....नही.....तू बड़ा जादुगर है....अपनी नज़रो में फंसा कर पता नही क्या क्या कर देगा?
रितेश - अरे सच में कुछ नही करुगां सीर्फ बांहों में भरुगां बस।

कजरी - खा मेरी कसम, की तू कुछ नही करेगा!
रितेश - तेरी कसम.....

कजरी - ठीक है.....लेकीन अपनी छातीया मत सटाना.....क्यूकीं मैं कुछ पहनी नही हूं॥

कजरी बोल ही रही थी की.....रितेश ने कजरी को झट से अपनी बांहो में कैद कर लीया......

रितेश की तो हालत खराब हो गयी......कजरी की चुचींया उसके सीने में धंसते ही.....रितेश भी उपर से कुछ नही पहना था......और कजरी के उपर तो सीर्फ एक पतली सी साड़ी थी.....।

कजरी की चुचींया इतनी गरम थी की......रितेश अपने सीने पर साफ महसुस कर रहा था......भले ही कजरी के चुचींयो पर एक पतली सी साड़ी थी......लेकीन रितेश को ऐसा लग रहा था की......उसने अपनी मां की नंगी चुचीयों को अपने सीने से सटाया है।

क्यूकीं रितेश कजरी की मांसल चुचींया और उसके नीप्पल को अपने सीने पर साफ महसुस कर रहा था......।

कजरी - अरे.....मैने कहा था ना की झातीया मत सटाना?
रितेश - कहां मत सटाना?
कजरी - बन मत तुझे सब पता है.....की कहां नही सटाना था.....।

रितेश - एक बात बोलूं मां, जंहा भी सटायी है.....वो चीज बहुत मस्त है.......कसम से इतना बड़ा और कसा है की.....मेरी हालत खराब कर दे रहा है।

कजरी अपने बेटे के मुहं से अपनी चुचीयों के बारे में सुनकर पानी पानी हो जाती है......लेकीन वो शरमायी नही......और रितेश को देखती रही....।

रितेश - मां तूझे शरम नही आयी?
कजरी - ओ......हो, गंदे काम तू करे और शरम मुझे आनी चाहीये?

रितेश - अरे वो वाला शरम नही.....जब औरते अपने बारे में कुछ सुन कर प्यार से शरमाती है ना वो वाला!

कजरी - नही......आयी शरम वो वाला भी तूने ऐसा क्या बोल दीया जो मै शरमाउ?

रितेश कजरी को और जोर से अपनी बांहो में भर लेता है.......

कजरी - आह.....छोड़ बेटा.....मुझे तकलीफ हो रही है।
रितेश - होने दे......पर मुझे अच्छा लग रहा है।

कजरी - अपने दांतो से रीतेश के कानो में काट लेती है...।

कजरी के काटते ही रितेश चीखते हुए......

रितेश - आ.......मां क्या कर रही है दर्द हो रहा है।

कजरी - अब समझ में आया तकलीफ क्या होता है?
रितेश - अच्छा.......।

कजरी - हां......बेटा!

रितेश कजरी के कान के पास अपने होठ ले जाते हुऐ धिरे से बोला-

रितेश - मां .........एक बार मेरी दुल्हन बन कर मेरी सेज सजा दे......कसम से तुझे इतना तकलीफ पहुचाउगां की तू उन तकलीफो की कायल हो जायेगी।

अपने बेटे के मुहं से ऐसे शब्द सुनकर कजरी अंदर तक हील गयी......उसे समझ में आ गया था की उसका बेटा कीस तकलीफ के बारे में बात कर रहा था......उसका बदन और हाथ के रोवें खड़े होने लगे थे......तभी उसे अचानक से वो द्रिश्य उसके आंखो के सामने घुमने लगा.....जब रितेश रज्जो के मुंह में अपना शानदार लंड घुसाये था......और कजरी वंहा पहुचं गयी थी.....

रितेश का शानदार लंड जब कजरी के आंखो में तैरने लगा तो.....कजरी की सांसे भी तेज होने लगी.....कजरी ने अपनी पूरी जीदंगी में सीर्फ एक लंड देखा था और वो भी अपने पती का........और रितेश का लंड देखने के बाद वो अंदाजा लगाने लगी और सोचने लगी की......ऐसा भी होता है......इतना बड़ा और मोटा......और वो छिनाल रज्जो उसे मुह में डालकर चुस रही थी......भला ये चीज भी मुंह में डालने वाली चीज है......

कजरी ये सब सोच ही रही थी की तभी.....

रितेश - क्या हुआ मां तकलीफ से घबरा गयी क्या?
कजरी रीतेश की बात सुनकर अपने हाव भाव और तेज चल रही सांसो को काबू करते हुए वो भी रितेश के कानो के पास अपना मुह ले जाकर बोली-

कजरी - अगर मैने तेरी सेज सजा दी तो मुझे पता है......की तू मुझे तकलीफ़ नही बल्की बहुत तकलीफ देगा....और शायद मै उस तकलीफ़ की कायल भी हो जाउगीं....लेकीन मै तेरी सेज कभी नही सजाउगीं....मुझे मेरी मर्यादा पता है। और रितेश के गाल पर एक छोटी सी चुम्मी देकर घर के अँदर चली जाती है......रितेश वंही खड़ा कजरी को जाते हुए देखते रहता है।



दोपहर के दो बज रहे थे......हवेली में ठाकुर और विधायक के साथ साथ मुनीम एक कमरे में बैठे दारु पी रहे थे और जोर जोर से हंस रहे थे।

हंसी के ठहाके सुनकर चंपा जो इस वक्त रसोई घर में जा रही थी.......वो उपर के कमरे की तरफ बढ़ी......

चंपा ठाकुर के कमरे के बाहर खड़ी होकर कान लगा दी.........

ठाकुर दारु का एक घुंट पीकर ग्लास टेबल पर रखते हुए.।

ठाकुर(हंसते हुए) - हा......हा.....हा, वो साला दरोगा.......चला था ठाकुर को सलांखो के पीछे डालनें........खुद साला मौत की नींद सो गया।

ये सुनकर विधायक और मुनीम दोनो हंसने लगे।

विधायक - वो सब तो ठीक है ठाकुर, लेकीन सबसे अहम काम जीसके लीये मैं और तुम ना जाने कीतने सालो से पीछे पड़े..है। 'संकीरा' उस पहेली के बारे में कुछ पता चला!

ठाकुर - हां विधायक , उस पहेली का राज सीर्फ एक शक्श जानता है।

विधायक (चौकतें हुए) - कौन?

इतना बात जब चंपा के कानो में पड़ी तो....वो अपना कान दरवाज़े से और सटा दी।

ठाकुर - चामुडां बाबा।
विधायक - चामुडां बाबा?
मुनीम - चामुडां बाबा?
चंपा (आश्चर्य से) - चामुडां बाबा?

ठाकुर - हां चामुडां बाबा.......और ये बाबा बहुत ही जिस्मखोर बाबा है.....और इसका मठ काली पहाड़ी के अँदर है.....।

विधायक - हां तो चलते है...और सीधा इस पहेली का जवाब उस बाबा से पुछते है।

ठाकुर - मैं उस बाबा के पास कयी बार गया था.....विधायक , लेकीन वो साला सीर्फ एक ही बात बोलता है.......उस पहेली का जवाब अगर मैं तुझे बता भी दीया तो तू कुछ नही कर सकता।

विधायक - तो तुमने उससे और कुछ नही पुछा!
ठाकुर - अरे विधायक पुछा था.....तो उसने कहा- आने वाली पुर्णमासी की रात वो औरत जो संकीरा पहाड़ी की रानी बनेगी....वो औरत पुर्णमासी की रात दुनीया की सबसे खुबसुरत औरत बन जायेगी.....क्यूकीं संकीरा पहाड़ी की पहेली में उस औरत का नाम है....।

विधायक (चौंकते हुए) - फीर क्या हुआ?
ठाकुर - तो मैने पुछा की बाबा नाम तो बहुत सारे औरतो का हो सकता है। तो उसने बोला नही.....सीर्फ नाम ही नही बल्की पुरी की पुरी पहेली उससे मीलती है....। तो मैने पुछा की बाबा हम उस औरत को पहचानेगें कैसे?
तो बाबा ने बोला - वो औरत पुर्णमासी की रात अपने असली रुप में आ जायेगी....दुनीया की सबसे सुदंर और मोहीत कर देने वाली औरत होगी और उसके नाभी पर एक संकीरा पहाड़ी का नक्सा जैसा बन जायेगा ....इससे तूझे पता चल जायेगा!

विधायक और मुनीम अपनी आंखे फाड़े ठाकुर को देख रहे थे...

विधायक - और.....और क्या कहा बाबा ने?
ठाकुर - मैने और पुछा, लेकीन फीर बाबा ने कहा तू सीर्फ इंतजार कर पुर्णमासी की रात का....पुर्णमासी की रात जैसे ही वो औरत अपनी खुबसुरती नीखार रही होगी , हंवाओ में एक मदंमुख कर देने वाली खुशबू फैलने लगेगी और वो खुशबू ही मुझे उस औरत तक पहुचांयेगी। इतना कहकर वो बाबा एक औरत को चोदने लगा!


विधायक - ठाकुर अगर इस बाबा को संकीरा पहाड़ी के बारे में इतना कुछ पता है , तो तुम्हे लगता है की संकीरा अपने हाथ लगने देगा।

ठाकुर - कभी नही लगने देगा....लेकीन समय आने पर हम उस बाबा का भी काम तमाम कर देगें।

ये सुनकर चंपा जैसे ही पीछे मुड़ी उसे एक नौकर आते हुए दीखा उसके हाथो में कुछ था...ये देख चंपा वही एक पीलर के आटं मे छुप जाती है..॥

वो नौकर सीधा उस कमरे में जाता है, जंहा ठाकुर बैठा था।

ठाकुर अपने ग्लास का शराब जैसे ही खतम होता है.....वैसे ही वो नौकर वहां पहुचं जाता है.

ठाकुर - अरे हरीया तू?
हरीया - मालीक , एक बड्ढी औरत आयी थी और ये खत पकड़ा गयी बोला की ठाकुर साहब को दे देना।

ठाकुर खत को लेते हुए। उसे खोल कर पढ़ने लगता है।

ठाकुर के एकदम सन्न रह जाता है।और चील्लाते हुए हरीया से पुछा!

ठाकुर - कीसने दीया ये खत?

ठाकुर को चील्लाता देख विधायक और मुनीम भी हैरान रह गये।

विधायक - क्या हुआ ठाकुर?
ठाकुर ने वो खत विधायक को पकड़ा दीया..

विधायक(खत पढ़ते) - नमस्कार ठाकुर , हमे ये खत लिखते हुए खुशी हो रही है और आपको पढ़ते हुए दुख की , कल रात तालाब के पास वाले जंगल में हमने दरोगा का खुन होते हुए देखा....तो सोचा की इतनी बड़ी बात गांव के ठाकुर और विधायक को जरुर बतानी चाहीए.....ये खुन कीसने की या और क्यूं कीया ये तो आप पता लगा ही लेंगे। हमे कुछ नही बस ये खत लीखने में हमारे कलम की स्याही खत्म हो गयी तो , आप तक इतनी जरुरी बात पहुचांयी हमने तो आप बस हमारे स्याही का दाम जो बहुत छोटी सी है , 20 लाख रुपया लेकर आज रात उसी तालाब के कीनारे एक पुलीया है बस उसी पुलीया के नीचे एक छोला होगा, तो आप वो सारे पैसे उस झोले में डाल कर वंहा से चुपचाप नीकल जाना, और हां ठाकुर जी आप अपना चुनावी पर्चा भी नीरस्त करने की महान शुभ काम जरुर करें। धन्यवाद!


ये खत पढ़ने के बाद तो विधायक का भी गांड फट गया।

ठाकुर - हरीया!
हरीया - जी मालीक!

ठाकुर - जीस बुढ़ी औरत ने तुझे ये खत दीया उसे ढ़ुढ़ं चाहे जीतने आदमी ले के जा लेकीन उस बुड्ढी का पता लगा!

हरीया - जी मालीक.!

ये कहकर हरीया वंहा से चला जाता है।

विधायक - देखो ठाकुर, अब बात मेरी विधायकी पर भी आ गयी है। अगर कहीं उसने दरोगा की कत्ल का सुबुत उन लोगो ने थाने तक पहुचां दीया तो गजब हो जायेगी....तो इससे अच्छा है की अभी पैसे दे देते है और तुम चुनाव का परचा भी नीरस्त करा लो बाद में देखेगें.....


कहानी जारी रहेगी.....





hello dosto , aap sabko kahani pasand aa rahi hai........isi josh aur khumari me mai bhi iss kahani ko kafi soch samjh kar likh raha hu........mujhse galti bas yahi ho jati hai ki update kafi late se deta hu jiske vajah se hamare readers ki utsukta kam hone lagti hai......aur mujhe pata hai ki jab aap log ki utsukta kam hone lagegi to kahani ka koi fayda nahi hoga!

to mai ye zarur koshish karunga ki update zyada se zyada du....thanks!

kahani par apni raay zarur de!
fantastic update
 
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