अपडेट -- 15
सुबह जैसे ही रितेश की नीदं खुलती है....
वो उठकर बकरीयो को चारा डालता है....
अरे उठ गया बेटा........
रितेश ने पिछे मुड़ कर देखा तो उसकी मां खड़ी थी.......रीतेश अपनी मां को जैसे ही देखता है.....उसके बदन में झनझनाहट फैल जाती है।
कजरी अभी अभी नहा के आयी.......थी, उसके बाल गीले थे और खुले भी जो कजरी की खुबसुरती पर चार चांद लगा रहे थे।
रितेश की हालत तब और खराब हो जाती है...जब उसने देखा की उसकी मां ब्लाउज नही पहनी है......उसने खाली अपनी चुचींयो को साड़ी से ढ़का था.......कजरी की मस्त चुचीया इतनी बड़ी और कसी थी की......साड़ी उपर होने के बाद भी उसकी गोरी चुचींया झलक रही थी.......उसके मोटे और बड़े नीप्पल का उभार भी रितेश साफ देख सकता था.......ऐसा नज़ारा उसने कभी नही देखा था। और शायद इतनी मस्त मदहोश कर देने वाली चुचींया भी नही देखी थी.......रितेश को सुबह सुबह ही पसीने होने लगे......और हो भी क्यूं ना, उसके सामने रुप की देवी जो खड़ी थी.......रितेश की नज़रे तो अपनी मां की चुचींयो पर गड़ सी गयी थी मानो.......
कजरी - अरे कहां खो गया.....?
रितेश - क.....कहीं नही.....।
कजरी - अच्छा कल मैने नहा कर.....अपना ब्लाउज छत पर डाला था......कहीं दीख नही रहा हैं........तूने देखा क्या?
रितेश - नही मां ......मैने नही देखा!
कजरी - अच्छा......तो लगता है शायद हवा उड़ा ले गया! लेकीन अब मैं क्या पहनू।
रितेश ने मन में ही कहा- कुछ मत पहन मां , कसम से तू परी लग रही है.....।
रितेश - क्यूं मां दुसरा नही है क्या?
कजरी - अच्छा......बेटा कभी ला के दीया एक भी कपड़ा अपनी मां को.....जो पुछ रहा है.।
रितेश अपनी मां के करीब जा कर........
रितेश - मां क्या मैं तुझे अपनी बांहो में भर सकता हूं?
कजरी - क्यूं?
रितेश - पता नही.....लेकीन ना जाने क्यूं बहुत मन कर रहा है.....।
कजरी - नही.....नही.....तू बड़ा जादुगर है....अपनी नज़रो में फंसा कर पता नही क्या क्या कर देगा?
रितेश - अरे सच में कुछ नही करुगां सीर्फ बांहों में भरुगां बस।
कजरी - खा मेरी कसम, की तू कुछ नही करेगा!
रितेश - तेरी कसम.....
कजरी - ठीक है.....लेकीन अपनी छातीया मत सटाना.....क्यूकीं मैं कुछ पहनी नही हूं॥
कजरी बोल ही रही थी की.....रितेश ने कजरी को झट से अपनी बांहो में कैद कर लीया......
रितेश की तो हालत खराब हो गयी......कजरी की चुचींया उसके सीने में धंसते ही.....रितेश भी उपर से कुछ नही पहना था......और कजरी के उपर तो सीर्फ एक पतली सी साड़ी थी.....।
कजरी की चुचींया इतनी गरम थी की......रितेश अपने सीने पर साफ महसुस कर रहा था......भले ही कजरी के चुचींयो पर एक पतली सी साड़ी थी......लेकीन रितेश को ऐसा लग रहा था की......उसने अपनी मां की नंगी चुचीयों को अपने सीने से सटाया है।
क्यूकीं रितेश कजरी की मांसल चुचींया और उसके नीप्पल को अपने सीने पर साफ महसुस कर रहा था......।
कजरी - अरे.....मैने कहा था ना की झातीया मत सटाना?
रितेश - कहां मत सटाना?
कजरी - बन मत तुझे सब पता है.....की कहां नही सटाना था.....।
रितेश - एक बात बोलूं मां, जंहा भी सटायी है.....वो चीज बहुत मस्त है.......कसम से इतना बड़ा और कसा है की.....मेरी हालत खराब कर दे रहा है।
कजरी अपने बेटे के मुहं से अपनी चुचीयों के बारे में सुनकर पानी पानी हो जाती है......लेकीन वो शरमायी नही......और रितेश को देखती रही....।
रितेश - मां तूझे शरम नही आयी?
कजरी - ओ......हो, गंदे काम तू करे और शरम मुझे आनी चाहीये?
रितेश - अरे वो वाला शरम नही.....जब औरते अपने बारे में कुछ सुन कर प्यार से शरमाती है ना वो वाला!
कजरी - नही......आयी शरम वो वाला भी तूने ऐसा क्या बोल दीया जो मै शरमाउ?
रितेश कजरी को और जोर से अपनी बांहो में भर लेता है.......
कजरी - आह.....छोड़ बेटा.....मुझे तकलीफ हो रही है।
रितेश - होने दे......पर मुझे अच्छा लग रहा है।
कजरी - अपने दांतो से रीतेश के कानो में काट लेती है...।
कजरी के काटते ही रितेश चीखते हुए......
रितेश - आ.......मां क्या कर रही है दर्द हो रहा है।
कजरी - अब समझ में आया तकलीफ क्या होता है?
रितेश - अच्छा.......।
कजरी - हां......बेटा!
रितेश कजरी के कान के पास अपने होठ ले जाते हुऐ धिरे से बोला-
रितेश - मां .........एक बार मेरी दुल्हन बन कर मेरी सेज सजा दे......कसम से तुझे इतना तकलीफ पहुचाउगां की तू उन तकलीफो की कायल हो जायेगी।
अपने बेटे के मुहं से ऐसे शब्द सुनकर कजरी अंदर तक हील गयी......उसे समझ में आ गया था की उसका बेटा कीस तकलीफ के बारे में बात कर रहा था......उसका बदन और हाथ के रोवें खड़े होने लगे थे......तभी उसे अचानक से वो द्रिश्य उसके आंखो के सामने घुमने लगा.....जब रितेश रज्जो के मुंह में अपना शानदार लंड घुसाये था......और कजरी वंहा पहुचं गयी थी.....
रितेश का शानदार लंड जब कजरी के आंखो में तैरने लगा तो.....कजरी की सांसे भी तेज होने लगी.....कजरी ने अपनी पूरी जीदंगी में सीर्फ एक लंड देखा था और वो भी अपने पती का........और रितेश का लंड देखने के बाद वो अंदाजा लगाने लगी और सोचने लगी की......ऐसा भी होता है......इतना बड़ा और मोटा......और वो छिनाल रज्जो उसे मुह में डालकर चुस रही थी......भला ये चीज भी मुंह में डालने वाली चीज है......
कजरी ये सब सोच ही रही थी की तभी.....
रितेश - क्या हुआ मां तकलीफ से घबरा गयी क्या?
कजरी रीतेश की बात सुनकर अपने हाव भाव और तेज चल रही सांसो को काबू करते हुए वो भी रितेश के कानो के पास अपना मुह ले जाकर बोली-
कजरी - अगर मैने तेरी सेज सजा दी तो मुझे पता है......की तू मुझे तकलीफ़ नही बल्की बहुत तकलीफ देगा....और शायद मै उस तकलीफ़ की कायल भी हो जाउगीं....लेकीन मै तेरी सेज कभी नही सजाउगीं....मुझे मेरी मर्यादा पता है। और रितेश के गाल पर एक छोटी सी चुम्मी देकर घर के अँदर चली जाती है......रितेश वंही खड़ा कजरी को जाते हुए देखते रहता है।
दोपहर के दो बज रहे थे......हवेली में ठाकुर और विधायक के साथ साथ मुनीम एक कमरे में बैठे दारु पी रहे थे और जोर जोर से हंस रहे थे।
हंसी के ठहाके सुनकर चंपा जो इस वक्त रसोई घर में जा रही थी.......वो उपर के कमरे की तरफ बढ़ी......
चंपा ठाकुर के कमरे के बाहर खड़ी होकर कान लगा दी.........
ठाकुर दारु का एक घुंट पीकर ग्लास टेबल पर रखते हुए.।
ठाकुर(हंसते हुए) - हा......हा.....हा, वो साला दरोगा.......चला था ठाकुर को सलांखो के पीछे डालनें........खुद साला मौत की नींद सो गया।
ये सुनकर विधायक और मुनीम दोनो हंसने लगे।
विधायक - वो सब तो ठीक है ठाकुर, लेकीन सबसे अहम काम जीसके लीये मैं और तुम ना जाने कीतने सालो से पीछे पड़े..है। 'संकीरा' उस पहेली के बारे में कुछ पता चला!
ठाकुर - हां विधायक , उस पहेली का राज सीर्फ एक शक्श जानता है।
विधायक (चौकतें हुए) - कौन?
इतना बात जब चंपा के कानो में पड़ी तो....वो अपना कान दरवाज़े से और सटा दी।
ठाकुर - चामुडां बाबा।
विधायक - चामुडां बाबा?
मुनीम - चामुडां बाबा?
चंपा (आश्चर्य से) - चामुडां बाबा?
ठाकुर - हां चामुडां बाबा.......और ये बाबा बहुत ही जिस्मखोर बाबा है.....और इसका मठ काली पहाड़ी के अँदर है.....।
विधायक - हां तो चलते है...और सीधा इस पहेली का जवाब उस बाबा से पुछते है।
ठाकुर - मैं उस बाबा के पास कयी बार गया था.....विधायक , लेकीन वो साला सीर्फ एक ही बात बोलता है.......उस पहेली का जवाब अगर मैं तुझे बता भी दीया तो तू कुछ नही कर सकता।
विधायक - तो तुमने उससे और कुछ नही पुछा!
ठाकुर - अरे विधायक पुछा था.....तो उसने कहा- आने वाली पुर्णमासी की रात वो औरत जो संकीरा पहाड़ी की रानी बनेगी....वो औरत पुर्णमासी की रात दुनीया की सबसे खुबसुरत औरत बन जायेगी.....क्यूकीं संकीरा पहाड़ी की पहेली में उस औरत का नाम है....।
विधायक (चौंकते हुए) - फीर क्या हुआ?
ठाकुर - तो मैने पुछा की बाबा नाम तो बहुत सारे औरतो का हो सकता है। तो उसने बोला नही.....सीर्फ नाम ही नही बल्की पुरी की पुरी पहेली उससे मीलती है....। तो मैने पुछा की बाबा हम उस औरत को पहचानेगें कैसे?
तो बाबा ने बोला - वो औरत पुर्णमासी की रात अपने असली रुप में आ जायेगी....दुनीया की सबसे सुदंर और मोहीत कर देने वाली औरत होगी और उसके नाभी पर एक संकीरा पहाड़ी का नक्सा जैसा बन जायेगा ....इससे तूझे पता चल जायेगा!
विधायक और मुनीम अपनी आंखे फाड़े ठाकुर को देख रहे थे...
विधायक - और.....और क्या कहा बाबा ने?
ठाकुर - मैने और पुछा, लेकीन फीर बाबा ने कहा तू सीर्फ इंतजार कर पुर्णमासी की रात का....पुर्णमासी की रात जैसे ही वो औरत अपनी खुबसुरती नीखार रही होगी , हंवाओ में एक मदंमुख कर देने वाली खुशबू फैलने लगेगी और वो खुशबू ही मुझे उस औरत तक पहुचांयेगी। इतना कहकर वो बाबा एक औरत को चोदने लगा!
विधायक - ठाकुर अगर इस बाबा को संकीरा पहाड़ी के बारे में इतना कुछ पता है , तो तुम्हे लगता है की संकीरा अपने हाथ लगने देगा।
ठाकुर - कभी नही लगने देगा....लेकीन समय आने पर हम उस बाबा का भी काम तमाम कर देगें।
ये सुनकर चंपा जैसे ही पीछे मुड़ी उसे एक नौकर आते हुए दीखा उसके हाथो में कुछ था...ये देख चंपा वही एक पीलर के आटं मे छुप जाती है..॥
वो नौकर सीधा उस कमरे में जाता है, जंहा ठाकुर बैठा था।
ठाकुर अपने ग्लास का शराब जैसे ही खतम होता है.....वैसे ही वो नौकर वहां पहुचं जाता है.
ठाकुर - अरे हरीया तू?
हरीया - मालीक , एक बड्ढी औरत आयी थी और ये खत पकड़ा गयी बोला की ठाकुर साहब को दे देना।
ठाकुर खत को लेते हुए। उसे खोल कर पढ़ने लगता है।
ठाकुर के एकदम सन्न रह जाता है।और चील्लाते हुए हरीया से पुछा!
ठाकुर - कीसने दीया ये खत?
ठाकुर को चील्लाता देख विधायक और मुनीम भी हैरान रह गये।
विधायक - क्या हुआ ठाकुर?
ठाकुर ने वो खत विधायक को पकड़ा दीया..
विधायक(खत पढ़ते) - नमस्कार ठाकुर , हमे ये खत लिखते हुए खुशी हो रही है और आपको पढ़ते हुए दुख की , कल रात तालाब के पास वाले जंगल में हमने दरोगा का खुन होते हुए देखा....तो सोचा की इतनी बड़ी बात गांव के ठाकुर और विधायक को जरुर बतानी चाहीए.....ये खुन कीसने की या और क्यूं कीया ये तो आप पता लगा ही लेंगे। हमे कुछ नही बस ये खत लीखने में हमारे कलम की स्याही खत्म हो गयी तो , आप तक इतनी जरुरी बात पहुचांयी हमने तो आप बस हमारे स्याही का दाम जो बहुत छोटी सी है , 20 लाख रुपया लेकर आज रात उसी तालाब के कीनारे एक पुलीया है बस उसी पुलीया के नीचे एक छोला होगा, तो आप वो सारे पैसे उस झोले में डाल कर वंहा से चुपचाप नीकल जाना, और हां ठाकुर जी आप अपना चुनावी पर्चा भी नीरस्त करने की महान शुभ काम जरुर करें। धन्यवाद!
ये खत पढ़ने के बाद तो विधायक का भी गांड फट गया।
ठाकुर - हरीया!
हरीया - जी मालीक!
ठाकुर - जीस बुढ़ी औरत ने तुझे ये खत दीया उसे ढ़ुढ़ं चाहे जीतने आदमी ले के जा लेकीन उस बुड्ढी का पता लगा!
हरीया - जी मालीक.!
ये कहकर हरीया वंहा से चला जाता है।
विधायक - देखो ठाकुर, अब बात मेरी विधायकी पर भी आ गयी है। अगर कहीं उसने दरोगा की कत्ल का सुबुत उन लोगो ने थाने तक पहुचां दीया तो गजब हो जायेगी....तो इससे अच्छा है की अभी पैसे दे देते है और तुम चुनाव का परचा भी नीरस्त करा लो बाद में देखेगें.....
कहानी जारी रहेगी.....
hello dosto , aap sabko kahani pasand aa rahi hai........isi josh aur khumari me mai bhi iss kahani ko kafi soch samjh kar likh raha hu........mujhse galti bas yahi ho jati hai ki update kafi late se deta hu jiske vajah se hamare readers ki utsukta kam hone lagti hai......aur mujhe pata hai ki jab aap log ki utsukta kam hone lagegi to kahani ka koi fayda nahi hoga!
to mai ye zarur koshish karunga ki update zyada se zyada du....thanks!
kahani par apni raay zarur de!