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Incest बेटी की जवानी - बाप ने अपनी ही बेटी को पटाया - 🔥 Super Hot 🔥

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कहानी में अंग्रेज़ी संवाद अब देवनागरी की जगह लैटिन में अप्डेट किया गया है. साथ ही, कहानी के कुछ अध्याय डिलीट कर दिए गए हैं, उनकी जगह नए पोस्ट कर रही हूँ. पुराने पाठक शुरू से या फिर 'बुरा सपना' से आगे पढ़ें.

INDEX:

 

Premkumar65

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30 - उलझन

जब इंसान का नैतिक पतन होने लगता है तो कोई सीमा उसे बांध नहीं सकती. जैसे जयसिंह ने पिता-पुत्री के रिश्ते को ताक पर रखते हुए अपनी बेटी के लिए गंदे इरादे पाले थे ठीक वही एहसास अब मनिका को हो रहे थे. अपने पिता के साथ वो अंतरंग पल बिताने के बाद जब वह आकार सोई तो उसके तन-मन में आग लगी हुई थी. यह सोच-सोच कर उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा रहा था कि कितनी बेशर्मी से उसने अपने पिता का आलिंगन किया था. उनका उसके नग्न नितम्बों को सहलाना,

“ऊँह!”

इतना सोचना था कि बरबस ही मनिका की आह निकल गई थी.

अब इस बात में कोई शक-शुबहा या गुंजाइश नहीं बची थी कि उसने अपने पिता के साथ एक नापाक रिश्ता बना लिया था. फिर भी उसका मन मानो उनके ही बारे में सोचना चाह रहा था. जब जयसिंह ने उसके नितम्बों पर चपत लगाई थी मनिका को अपनी योनि में एक गरमाहट और गीलेपन का एहसास हुआ था, जो उसने पहले कभी महसूस न किया था. वो क्षण याद आते ही मनिका ने पाँव सिकोड़ कर अपने जिस्म को भींच लिया. ऊपर से माहवारी का वो विकट समय, उसकी साँसें गहरी होने लगी.

उस आख़िरी आलिंगन के बाद भी जयसिंह ने उसे जाने न दिया था जब तक उसने उनसे अलग हो कर कुछ और मिन्नतें नहीं की थी. पूरा समय वे उसके नितम्ब सहलाते रहे थे. जब उन्होंने उसे आख़िरकार जाने दिया था उस से पहले बड़ी ही बेशर्मी से उसके वक्ष को घूरते रहे थे. मनिका ने भी जब देखा कि उनकी नज़रें कहाँ है तो न जाने क्यूँ अपना वक्ष थोड़ा आगे की तरफ़ तान दिया था जिस पर उसके पिता के चेहरे पर एक हवस भरी मुस्कान तैर गई थी.

आश्चर्य की बात यह थी कि इस तरह जलील होने के बाद भी कमरे से बाहर निकलते ही मनिका का मन वापस अपने पिता के पास जाने को करने लगा था. कुछ समय बाद कनिका भी उठी और आकर लेट गई थी. लेकिन मनिका को फिर एक बार देर तक नींद नहीं आई.

-​

लेकिन जब अगली सुबह मनिका की आँख खुली तो उसके मन में कुछ अलग ही भाव थे. वो एक बार फिर जल्दी उठ गई थी और कनिका अभी स्कूल के लिए तैयार हो कमरे से बाहर निकल ही रही थी. जब वो बाथरूम गई थी तो पाया कि उसके पिरीयडस् ख़त्म होने को थे. उसका मन कुछ उदास था, अब रात की अपनी सोच पर उसे ग़ुस्सा भी आ रहा था और शर्म भी.

वैसे तो वह अधिकतर नाश्ता करने के बाद नहाया करती थी लेकिन आज उसे एक गंदा सा एहसास हो रहा था. सो वो बाथरूम से निकली और अपना तौलिया लेकर वापस नहाने घुस गई. नहा लेने के बाद जब उसने अपना बदन सुखाया था तो बाथरूम में लगे शीशे पर उसकी नज़र चली गई थी. अपनी नग्नता देख ना जाने क्यूँ वह सिहर गई थी.

एक अजीब सा एहसास था वो, मानो आज पहली बार वह अपने पिता की नज़र से अपना बदन देख रही थी. उसके अंग-अंग में कसाव था, जिसे उसके पापा कितनी बेशर्मी से ताड़ते थे. एक पल के लिए उसने मुड़ कर अपने अधोभाग को शीशे में देखा था फिर यह जान कर कि उसके पिता उसे इस स्थिति में देख चुके थे उसका बदन काँपने लगा था.

-​

जब मनिका नीचे आई तो देखा उसके भाई-बहन डाइनिंग टेबल पर बैठे थे और माँ भी रसोई से निकल कर आ रही थी. उसने एक लम्बा कुर्ता पहन था जो उसके बदन को अच्छे से ढँके हुए था. असमंजस से भरी मनिका ने जब अपने परिवार को देखा तो उसकी आँखें नम होने लगी. ये कैसा रास्ता था जिसपर वह चल पड़ी थी, और उसके पापा भी, क्या उन दोनों के लिए कोई वापसी न थी?

मनिका भी आकर उनके साथ बैठ गई और अनमनी सी प्लेट में नाश्ते का सामान रखने लगी.

तभी जयसिंह भी कमरे से निकल आए. हमेशा की तरह मनिका की नज़र उनसे मिली और फिर झुक गई. जयसिंह आ कर उसकी बग़ल वाली कुर्सी पर बैठ गए थे. बैठते ही उन्होंने अपना हाथ मनिका की पीठ पर रखते हुए सहलाया था और सबसे मुस्कुराते हुए बोले थे,

"Good morning."
"Good morning papa." कनिका और हितेश ने कहा था.

उनके हाथ लगाते ही मनिका थोड़ी उचक कर आगे हो गई थी, और उनके अभिवादन का भी कोई जवाब नहीं दिया था. जयसिंह ने हाथ हटाते हुए एक सवालिया निगाह से उसे देखा.

"Good morning, papa." मनिका ने अपनी प्लेट में देखते हुए धीमे स्वर में कहा.

तभी मधु भी आकर बैठ गई और आम बातचीत का दौर चल पड़ा. कुछ देर तो मनिका बैठी हाँ-हूँ करती रही फिर 'ज़्यादा खाने का मन नहीं है' कह उठ खड़ी हुई. मधु ने उसे कहा कि कम से कम सब नाश्ता कर लें तब तक उनके साथ बैठी रहे मगर वो कुछ बहाना कर वापस अपने कमरे में आ गई. उसे आकर बैठे हुए कुछ ही पल बीते होंगे कि जयसिंह का मेसेज आ गया.

Papa: Kya hua?

लेकिन मनिका ने उसका कोई जवाब नहीं दिया और फ़ोन एक तरफ़ रख लेट गई. कुछ-कुछ देर में फ़ोन में मेसेज आते जा रहे थे मगर मनिका आँखें मींचे पड़ी रही. आख़िर रात को कम सोई होने और मानसिक थकान के चलते मनिका की आँख लग गई. दोपहर के खाने के समय जब उसकी माँ ने बाई जी को उसे बुलाने भेजा था तब भी मनिका ने खाने से इनकार कर दिया था.

कुछ देर बाद उसकी बहन भी स्कूल से लौट आई. उसे सोता देख उसने भी उसे पूछा कि क्या वह ठीक है, मगर मनिका ने उसे भी टाल दिया. उसे सब कुछ बेमानी लग रहा था और जयसिंह से ज़्यादा अपने आप पर खीझ और ग़ुस्सा आ रहा था कि उसने यह सब कैसे हो जाने दिया.

-​

उधर ऑफ़िस में बैठे हुए जयसिंह भी मनिका के इस बर्ताव से हैरान-परेशान हो रहे थे. कल रात तक तो सब ठीक था, बल्कि उन्हें तो ऐसा लगा था कि मंज़िल अब ज़्यादा दूर नहीं,

"क्या हो गया साली कुतिया जवाब नहीं दे रही..." उन्होंने झुंझलाते हुए सोचा था.

उन्होंने तीन चार-बार मनिका को मेसेज किया था और उसे डार्लिंग व स्वीटहार्ट जैसे शब्दों से रिझाने की कोशिश की थी. मगर मनिका ने उनके मेसेज पढ़े तक नहीं थे. यह देख उनका संशय और अधिक बढ़ गया था. पूरा दिन ऑफ़िस के कामकाज में उनका मन नहीं लगा और शाम होते-होते उन्होंने तय किया कि आज घर जल्दी चला जाए.

-​

जब जयसिंह घर आए तो पाया कि उनकी पत्नी, माँ और भाभी हॉल में बैठीं चाय पी रहीं थी. पूछने पर पता चला कि हितेश क्रिकेट खेलने गया है और मनिका-कनिका अपने कमरे में हैं. जयसिंह भी उनके पास बैठ गए और बतियाने लगे, लेकिन उनका ध्यान मनिका में ही लगा हुआ था. कुछ देर बाद मधु ने केतली उठा कर देखी, उसमें अभी चाय बाक़ी थी, तो वह अपनी सास और जेठानी से थोड़ी और चाय लेने को कहने लगी. मगर दोनों ने ही मना कर दिया.

जयसिंह को मौक़ा मिल गया था. उन्होंने मधु से कहा कि लड़कियों को भी चाय के लिए नीचे बुला ले. बेचारी मधु उनका कुतर्क कैसे समझ पाती, वो उठी और सीढ़ियों के पास जाकर आवाज़ दी,

"मनि! कनु! नीचे आ जाओ चाय पी लो, क्या सारा दिन कमरे में घुसी रहती हो."
"हाँ मम्मा आ रहे हैं." कुछ पल बाद कनिका की आवाज़ आई थी.

एक-आध मिनट बाद कनिका कमरे से निकाल आई और सीढ़ियाँ उतरने लगी. जयसिंह ने आशंकित मन से देखा ही था जब मनिका भी उसके पीछे-पीछे आती दिखी. उनकी नज़र मिली और मनिका एक पल के लिए ठिठक गई थी. पर फिर नीचे उतर आई.

दोनों लड़कियाँ भी आ कर बैठ गई और एक बार फिर औरतों में बातचीत चल पड़ी. आज मनिका जयसिंह के पास आ कर नहीं बैठी थी. जयसिंह नज़रें चुरा कर कभी-कभी उसे देख रहे थे और उधर मनिका की नज़र भी अक्सर उनसे मिल रही थी. मगर उसके चेहरे से लग रहा था कि कुछ गड़बड़ है. जयसिंह की परेशानी बढ़ती जा रही थी जब गेट बजा और जयसिंह के भाई की बेटी नीरा अंदर आई.

घर की औरतों के जमघट के बीच जयसिंह अब अकेले मर्द थे.

नीरा और कनिका क्यूँकि हम उम्र थी और एक ही क्लास में पढ़ती थी तो उनके बीच अलग बातें चल पड़ीं. सिर्फ़ मनिका और जयसिंह ही अब कटे-कटे बैठे थे. नीरा के आ जाने के बाद चाय कम पड़ गई, सो मधु ने बाई जी को आवाज़ दी कि और चाय बना लाए.

उधर कनिका और नीरा ने हॉल में लगा टी.वी. चला लिया था, और एक फ़िल्मी गानों का चैनल देखने लगीं. घर में एक शोरगुल भरा माहौल बन गया था. जयसिंह को लगने लगा था कि अभी के लिया यहाँ से उठ का जाना ही ठीक होगा. तभी बाई जी चाय लेकर आ गई और मधु ने उनके कप में फिर से चाय डाल दी. इस दौरान बातचीत रुक गई थी और थोड़ी शांति हुई. सिर्फ़ टी.वी. पर चल रहे गाने की आवाज़ आ रही थी.

मनिका की दादी ने टी.वी. देख रही कनिका और नीरा की ओर देखा था. टेलिविज़न में एक रीमिक्स गाना चल रहा था जिसमें लड़कियाँ शॉर्ट्स और गंजियाँ पहने नाच रही थी.

दादी पुराने ज़माने की औरत थी, वो बोल पड़ीं,
"या आजकल रि राँडां न तो कोई लाग-शरम ही ना है." (ये आजकल की राँडों को तो कोई लाज-शरम ही नहीं है)

कनिका और नीरा उनकी बात सुन लोटपोट होने लगी,
"क्या दादी... हाहाहा... फिर से कहना प्लीज़..." कनिका हंसते हुए बोली.
"चुप करो दोनों... ये क्या देखती रहती है सारा दिन, पढ़ाई करने को कहते ही नींद आने लगती है तुझे." मधु ने चेताया.
"हाहाहा... अरे पढ़ लूँगी मम्मा..." कनिका ने मुँह बनाते हुए कहा और फिर मुड़ कर फिर से नीरा के साथ खुसपुस करने लगी.

मगर दादी की बात सुनते ही मनिका की नज़र जयसिंह से मिली थी. बात का आशय समझ मनिका को पिछले कुछ दिनों का अपना चाल-चलन याद आ गया था, और एक शब्द उसके मन में घर कर गया 'राँड'. सो जब जयसिंह की नज़र उस से मिली तो वो शर्म से पानी-पानी हो गई.

-​

कुछ देर बाद जयसिंह वहाँ से उठ कर अपने कमरे में चले गए थे.

थोड़ी देर बाद मनिका की ताई जी ने भी नीरा से उठ कर घर चलने को कहा. शाम ढल आई थी और मनिका के ताऊजी घर आने ही वाले थे. इस पर कनिका और नीरा में फिर से कुछ खुसर-पुसर हुई और फिर नीरा ने आँखें टिमटिमाते हुए मधु से पूछा,

"चाची! आज कनु हमारे इधर सो जाए?"
"क्यूँ? ये खुद तो पढ़ती नहीं है तुझे और ख़राब करेगी..." मधु ने कहा था, मगर उसका लहजा मज़ाक़िया था.
"क्या है मम्मा... पढ़ने के लिए ही जा रही हूँ. आप ही तो कहते रहते हो कि नीरा से सीखो..." कनिका ने भी अंत में आते-आते शरारती मुस्कान के साथ जोड़ दिया था.
"अच्छा भई चली जाना. भौजी ध्यान रखना इनका." मधु ने उठते हुए कहा. "चल अभी ये बर्तन किचन में रख के आ पहले."

सब उठ खड़े हुए. मनिका ने भी एक दो बर्तन उठाए और रसोई में रखने के बाद वापस अपने कमरे में चली आई.

-​

'राँड'

वो शब्द रह-रह कर मनिका के मन में गूंज रहा था. दिल्ली में अपना रहन-सहन और पहनावा याद कर उसकी लज्जा और बढ़ती जा रही थी. उसे याद आने लगा कि कैसे पहली बार वो बुरा सपना देखने के बाद जब वह उठी थी तो उसने सोचा भी था के अपने पिता के साथ शीलता से रहेगी. मगर अगली सुबह अपनी बात पर क़ायम न रह सकी थी. बल्कि कुछ ग़लत हो रहा है यह एहसास हो जाने के बाद भी उसने जयसिंह से करीबी बढ़ाए रखी थी.

"हाय! पापा के सामने कैसे वो कपड़े पहन-पहन कर दिखाए थे और वो लेग्गिंग़्स में तो अंडरवियर भी दिख रही थी. पापा भी कैसे गंदे हैं, सब देखते थे और मुझे रोकते भी नहीं थे. Obviously, he liked seeing me like that! और मैं भी उनका साथ देती रही... हाय! दादी सही कहती है, क्या मैं सच में...?

'राँड'

डिनर के लिए कनिका उसे बुलाने आई तब उसकी तंद्रा टूटी.

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मनिका का खाने का मन तो नहीं था मगर अपनी माँ के सवालों से बचने के लिए वो जैसे तैसे नीचे आई थी. टेबल ख़ाली था, कनिका फिर से टेलिविज़न के सामने जमी थी और उसकी माँ किचन में थी. हितेश और जयसिंह भी अपने-अपने कमरों में थे. दादी को खाना कमरे में ही दिया जाता था सो वे वहाँ नहीं थी.

मनिका हमेशा से ही अपने पिता के बग़ल वाली कुर्सी पर बैठती आई थी. लेकिन आज वो जाकर उनके स्थान से दूसरी तरफ़ साइड वाली कुर्सी पर बैठ गई. कुछ देर बाद सीढ़ियों से उछलता हुआ हितेश भी उतर आया और उसकी माँ भी टेबल पर आ बैठी. मधु ने कनिका को भी एक उलाहना दिया और आकर डिनर करने को बोला. तभी जयसिंह भी अपने कमरे से निकल आए.

कनिका जब टेबल के पास आई तो मनिका को अपने स्थान पर बैठे पाया.

"दीदी आप मेरी जगह बैठ गए." कनिका ने मचलते हुए कहा.
"हेहे..." मनिका एक झूठी हंसी के साथ बैठी रही.
"Yayy... आज मैं पापा के पास बैठूँगी." कनिका बैठते हुए बोली थी.

अपनी छोटी बहन के मुँह से यह सुन मनिका के रोंगटे खड़े हो गए थे. उसने अपने मन में आते विचारों को झटक कर दूर करना चाहा था. मगर फिर उसकी नज़र अपने पिता से मिली जो उसे ही देख रहे थे और वो सिमट कर जैसे कुर्सी में गड़ने लगी.

डिनर ख़त्म होते-होते क्या बातचीत चली मनिका को कुछ ध्यान न रहा था. लेकिन जब सब उठने लगे तो मधु ने कहा,
"कनु टाइम देख क्या हो गया है, जाना नहीं है तुझे?"
"हाँ मम्मा बस बुक्स लेकर आई ऊपर से..."
"कहाँ जा रही है?" जयसिंह ने पूछा.
"अरे पापा, आज मैं और नीरा पढ़ाई करेंगे, तो ताऊजी के घर सोऊँगी." कनिका ने सीढ़ियों की तरफ़ जाते हुए बताया.
"अच्छा-अच्छा." जयसिंह बोले.
"हाँ ज़रूर, क्यूँ नहीं." मधु ने व्यंग्य किया.
"मम्मा... क्या है?" कह कनिका नख़रे से भागती हुई सीढ़ियाँ चढ़ गई.

जयसिंह ने एक नज़र मनिका की तरफ़ डाली थी मगर वो उठ कर वाशबेसिन पर हाथ धो रही थी.

-​

जयसिंह की परेशानी भी अब बढ़ती जा रही थी, क्या पिछली रात उन्होंने मनिका को ज़्यादा छेड़ दिया था? जिस वजह से अब वो उनसे दूरी बना रही थी, अगर कहीं उसने किसी से कुछ कह दिया तो क्या होगा ये अंदेशा भी उन्हें सता रहा था. उन्होंने एक बार फिर से उसे बहलाने के लिए मेसेज किए मगर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. समय ज़्यादा नहीं हुआ था लेकिन सब अपने-अपने कमरों में जा चुके थे. आख़िर कुछ सोच कर वे उठे और अपनी अलमारी खोली.

-​

रात के क़रीब 10:30 बजे होंगे जब जयसिंह का फिर से मेसेज आया. कमरे की लाइट बंद थी मगर एक नाइट बल्ब जल रहा था. मनिका ने नोटिफ़िकेशन देखा मगर मेसेज नहीं खोला. एक के बाद एक कई मेसेज आते गए थे. आख़िर जयसिंह ने मेसेज करना बंद कर दिया. दिन में इतना सो लेने के बाद नींद मनिका की आँखों से दूर थी.

वो लेटी हुई सोच ही रही थी जब उसके कमरे का दरवाज़ा धीरे से खुलने लगा. हल्की रौशनी में उसने देखा कि जयसिंह अंदर आ रहे हैं.

मनिका उचक कर उठ बैठी और खड़ी होने लगी. उसका दिल धड़-धड़ कर रहा था.

"पापा उसके रूम में आ गए थे और उन्होंने... सिर्फ़ बरमूडा पहना था!"

डर के मारे उसका बुरा हाल था. मनिका बेड से उतरी ही तब तक जयसिंह भी उसकी तरफ़ आने लगे थे.

"क्या हुआ?" जयसिंह का सवाल था.

उन्होंने अपने हाथ उसे थामने के लिए बढ़ाए मगर मनिका पीछे हट गई.

"आप यहाँ क्या कर... रहे हो?" मनिका कांपते स्वर में बोली.
"क्या हुआ मनिका, नाराज़ हो क्या?" जयसिंह ने उसकी बात अनसुना करते हुए कहा.
"पापा! आप जाओ... कोई आ जाएगा, आपने कुछ पहना नहीं है..."
"पहले बताओ क्या हुआ है?"

जयसिंह उसके क़रीब आते जा रहे थे. अब मनिका के पास पीछे हटने के लिए भी जगह नहीं थी. उसके पैर बेड से टकराए.

"आप जाओ पहले, मैं मेसेज कर... करती हूँ." मनिका लड़खड़ाते हुए बोली.
"नहीं, पहले बताओ क्यूँ नाराज़ हो?" जयसिंह अब उसके बिल्कुल क़रीब आ गए थे.
"पापा ऐसा क्यूँ कर रहे हो... प्लीज़!" मनिका गिड़गिड़ाई.

उन्होंने उसके कंधों से उसे पकड़ लिया था.

'खट्ट!'

फिर दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई. हितेश ने अपने कमरे का गेट खोला था.

एक पल के लिए दोनों के बीच सन्नाटा पसर गया.

"हितेश... हितेश जगा हुआ है... पापाऽऽऽ अब क्या होगा?" मनिका हाथ हवा में हिलाते हुए बोली.

फिर उसे बाथरूम का खुला गेट दिखा, बदहवास सी मनिका ने उन्हें इशारा करते हुए उस ओर धकेला. जयसिंह भी उसकी बात समझ गए और झट बाथरूम के अंदर घुसे, और तभी मनिका के कमरे का गेट फिर से खुला और उसका भाई हितेश अंदर दाखिल हुआ.

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Papa is after monika. Uski le kar hi chain padega.
 

Premkumar65

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31 - राँड

हितेश कमरे में दाखिल हुआ तो अंधेरे में मनिका को बेड के पास खड़ा देख एक पल ठिठक गया.

"आऽऽऽ..." उसके मुँह से निकला.
"क...क्या?" मनिका ने घबरा कर कहा. हितेश की आवाज़ सुन कहीं उसकी माँ ऊपर आ गई तो?
"ओह! दीदी डरा दिया आपने." हितेश बोला.
"क्या कर रहा है इतनी रात को, सोता क्यूँ नहीं?"

डरी होने के बावजूद मनिका ने आवाज़ में थोड़ी सख़्ती लाते हुए कहा था. उधर हितेश ने गेट के पास लगे स्विच से कमरे की लाइट ऑन कर दी थी.

"अरे दीदी वो कनु के पास मेरे लैपटॉप का चार्जर था. वो लेने आया... था." हितेश बोलते-बोलते लड़खड़ा गया. मनिका ने गंजी और शॉर्ट्स वाला वही नाइट सूट पहन रखा था जिसने उसके पिता को बहका दिया था.
"ले ले जा, और टाइम से सो जाना." मनिका ने धड़कते दिल से कहा.
"हाँ हाँ, आप भी मम्मी की तरह चिढ़ते रहते हो बस." हितेश ने नज़र घुमा जल्दी से टेबल की ओर जाते हुए कहा.

हितेश ने जल्दी से चार्जर निकाला था और कमरे से बाहर निकल गया था. मनिका ने मन ही मन शुक्र मनाया, पर अभी मुसीबत टली नहीं थी. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जयसिंह उसके कमरे में चले आए थे और वो भी सिर्फ़ बरमूडा पहन कर. अब जल्दी से पापा को नीचे भेजना पड़ेगा.

हितेश के जाते ही मनिका लगभग भाग कर बाथरूम की तरफ़ गई.

-​

आमतौर पर जल्दी से ना घबराने वाले जयसिंह भी बाथरूम के दरवाज़े की ओट में थोड़ा घबराए हुए खड़े थे. लेकिन हितेश और मनिका के बीच की बातचीत सुनने के बाद उनका संयम लौटने लगा था. हितेश सिर्फ़ अपने काम से आया था न कि उनकी आहट या बातचीत सुनकर. तभी मनिका बाथरूम में घुसी.

"पापा! आप जाओ जल्दी..." उसने फुसफुसाते हुए कहा.

जयसिंह ने हाथ से लाइट का स्विच टटोला और बाथरूम में भी उजाला हो गया. उन्हें इस तरह सामने पा कर मनिका ठिठक गई और पीछे हटी. जयसिंह ने आगे बढ़ उसे पकड़ना चाहा था.

"पापाऽऽऽ! पागल हो गए हो क्या आप. जाओ ना!" मनिका के चेहरे पर घबराहट साफ़ झलक रही थी.
"क्या हुआ मनिका, बात नहीं कर रही मुझसे?" जयसिंह ने उसकी कलाई थाम अपनी ओर खींचा.
"कर लूँगी पापा... आप प्लीज़ अभी चले जाओ. हितेश आ जाएगा..." मनिका ने मिन्नत की.
"पहले बताओ मुझे क्या हुआ?" जयसिंह ने हाथ से उसका चेहरा अपनी ओर घुमाया.
"कुछ नहीं पापा... थोड़ा अजीब सा लग रहा था..?" पहले ही डरी हुई मनिका ने उनके स्पर्श से कांपते हुए कहा.
"क्या अजीब लग रहा है?" जयसिंह ने उसकी आँखों में झांक कर पूछा.
"आ... आपके साथ ऐसे..." मनिका बड़बड़ाई.
"हम्म." कहते हुए जयसिंह ने उसे अपने नग्न आग़ोश में ले लिया.
"पापा प्लीज़... मत करो ना." मनिका ने कहा.
"क्या?" जयसिंह ने उसकी पीठ सहलाते हुए उसके कान में कहा था.

डर और उत्तेजना का एक पुराना रिश्ता है. पकड़े जाने का डर और जयसिंह के प्रति उसका आकर्षण अब मनिका के उन नैतिक मूल्यों पर हावी होने लगे थे जिनके चलते उसने अपने पिता से दूरी बनाने का प्रयास किया था.

जयसिंह उसके बदन को सहलाते हुए उसके कान में मीठी-मीठी बातें किए जा रहे थे, कि वह बहुत सुंदर है और कैसे वे उसे इतना चाहते हैं. आख़िर मनिका के हाथ, जो उसने उनका आलिंगन रोकने के लिए जयसिंह के कंधों पर रख रखे थे, ढीले पड़ने लगे. ये एहसास होते ही जयसिंह ने उसे बाँहों में कस लिया था.

पूरे दिन की चिंता के बाद जयसिंह का सहारा पाते ही मनिका निढाल हो गई, और उनके बाजुओं में अपने शरीर को ढीला छोड़ समाने लगी.

"ओह पापा! आप तो मेरी जान निकाल कर ही मानोगे..." उसने तड़पते हुए कहा.
"हाहा, अरे अपनी जान की जान कैसे निकाल सकता हूँ मैं... मेरी जान तो तुमने निकाल रखी है सुबह से, क्या हुआ बताओ ना, क्यूँ नाराज़ हो?" जयसिंह ने उसके कान के पास मादकता से फुसफुसा कर कहा.
"ऊँह... पापा, आज वो दादी जो कह रही थी..."
"क्या कह रही थी?"
"आपको पता तो है... आप भी तो वहीं बैठे थे." मनिका ने जयसिंह की छाती में मुँह छुपा रखा था.
"नहीं मुझे नहीं पता तुम किस बात के लिए कह रही हो." जयसिंह अनजान बने रहे.
"रहने दो फिर..."
"नहीं, बताओ ना, क्या कह दिया दादी ने ऐसा कि तुम मुझसे नाराज़ हो गई, मैं भी तो जानूँ?"
"आप मानते ही नहीं मेरी कोई बात... आपको पता तो है मैं उस... रा...'राँड'... वाली बात का कह रही हूँ."
"हैं? लेकिन उस से तुम्हारी नाराज़गी का क्या वास्ता?" जयसिंह भोले बनते हुए बोले.
"मैं भी तो... उन लड़कियों जैसे कपड़े... आप को पता तो है मैं क्या कह रही हूँ!" मनिका ने चेहरा ऊपर कर एक नज़र उनके चेहरे पर डाली थी. उसके माथे पर शिकन थी.
"ओहो, तुम भी ना..." जयसिंह ने कहा और एकदम से पीछे हट अपना एक हाथ मनिका के घुटनों के पीछे लेजा कर उसे गोद में उठा लिया.
"पापा! क्या कर रहे हो?" मनिका सकपका गई और उसकी घबराहट लौट आई.

जयसिंह ने उसकी प्रतिक्रिया को नज़रअन्दाज़ कर दिया और उसे लिए हुए बाथरूम से बाहर आ गए. वे चलते हुए कमरे के दरवाज़े तक गए और मनिका की आँखों में देखते हुए दरवाज़े की कुंडी की तरफ़ देखा. मनिका उनका इशारा समझ गई और उसने कांपता हुआ हाथ बढ़ा गेट अंदर से बंद कर दिया. अब जयसिंह उसे लेकर बिस्तर की ओर बढ़े.

"मनिका, देखो तुम जो सोच रही हो वो ग़लत नहीं है."

जयसिंह मनिका को बिस्तर पर अपनी गोद में लिए बैठे थे. जयसिंह के इस तरह उसे उठाने के बाद शॉर्ट्स खिंच कर ऊपर हो गईं थी और मनिका के नितम्ब बीते कल की भाँति नग्न हो चुके थे और अब जयसिंह की नंगी जांघ पर टिके थे.

"पापा?" शर्म से तार-तार मनिका ने सवालिया निगाह से उन्हें देखा था.
"तुम्हारी दादी का उन लड़कियों को राँड कहना अपनी जगह सही है. क्यूँकि तुम्हारी दादी की परवरिश एक अलग जमाने में हुई है. उसी तरह वो लड़कियाँ भी अपनी जगह सही हैं, क्यूँकि वो नए जमाने की मॉडर्न लड़कियाँ है, जैसे कि तुम हो." जयसिंह बोले.
"तो फिर पापा, दादी के हिसाब से तो मैं भी..." मनिका अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाई.
"हाँ, तुम भी एक राँड हो." जयसिंह ने अपने हाथ से उसका गाल सहलाया था और फिर अंगूठे से उसके होंठों को मसलते हुए कहा था.

मनिका पर जैसे घड़ों पानी गिर पड़ा था. उसने जयसिंह से अलग होने की कोशिश करते हुए कहा,

"हाय पापा! मतलब आप भी मुझे रा... रा... बिगड़ैल समझते हो. आप पहले झूठ कह रहे थे कि नहीं समझते..."
"हम्म. मेरी पूरी बात सुनो पहले." जयसिंह ने मनिका को अपनी गिरफ़्त में जकड़ते हुए कहा.
"मुझे नहीं सुनना... हाय आप कितने गंदे हो." मनिका के आँसू निकल पड़े.
"देखो मनिका, मैंने तुमसे कहा था कि लोग क्या कहेंगे इसकी फ़िक्र करोगी तो कभी ख़ुश नहीं रह पाओगी. लेकिन तुम वही सब वापस सोचने लगी."
"लेकिन लोग नहीं, आप भी तो मुझे ऐसे बोल रहे हो..." मनिका ने रुँधे गले से कहा.
"और क्या ये सच नहीं है?" जयसिंह बोले.

मनिका से कुछ कहते न बना.

"देखो मनिका, मैं तुम्हें बिगड़ैल नहीं समझता, ये मैंने तुम्हें पहले भी कहा था और अब भी कह रहा हूँ, लेकिन जिन लड़कियों को तुम्हारी दादी राँड कह रही थी, तुम उनके जैसी हो ये हम दोनों जानते हैं, और मैं ये मानता हूँ कि ये तुम्हारा नेचर है, तुम्हें वैसा पहनावा, वैसा बर्ताव अच्छा लगता है और इसके लिए मैं तुम्हें बुरा नहीं समझता." जयसिंह ने कहा.
"प... पर पापा... बात तो वही हुई ना... आप मुझे ऐसा गंदा समझते हो." मनिका ने फिर से उनसे दूर जाना चाहा.
"नहीं, बात वही नहीं हुई. तुम्हारी दादी या कोई भी और उन लड़कियों को नफ़रत से देखते हैं और मैं तुम्हें प्यार से देखता हूँ. ये फ़र्क़ है. अगर तुम राँड भी हो तो मेरी राँड हो." जयसिंह ने एक बार फिर उसके चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहा.

जयसिंह द्वारा उसे इस तरह जलील किए जाने पर भी मनिका मानो उनके मोह से बंध गई थी. उसके पापा उसे अपनी राँड कह रहे थे. "हाय! कितना गंदा बोल रहे हैं पापा मुझे... लेकिन मुझे कुछ-कुछ हो रहा है." उसके गालों पर ग्लानि और पश्चाताप की लाली की जगह अब हया की सुर्ख़ी ने ले ली थी.

जयसिंह भी उसके बदलते हाव-भाव ताड़ गए थे. उन्होंने झट उसे अपने सीने से लगा लिया, और मनिका की ओर से कोई प्रतिकार भी नहीं हुआ.

"हम्म... तो हो ना फिर तुम पापा कि राँड गर्लफ़्रेंड?" जयसिंह ने हौले से अपनी बेटी के अधनंगे नितम्बों को सहलाते हुए कहा.
"हाय पापा! कितनी गंदी हूँ मैं... हायऽऽऽऽ." मनिका उनके जिस्म में समाती जा रही थी.
"गंदी बच्ची को अभी ठीक कर देता हूँ..." कहते हुए जयसिंह ने मनिका के कूल्हों पर लगातार तीन-चार चपत लगा दीं.
"आऽऽऽऽ पापा..." मनिका की आ निकल गई थी और फिर अपने भाई के जगे होने का ख़याल मन में आते ही उसने अपनी सिसक को जयसिंह के कंधे पर होंठ गड़ाते हुए दबा लिया था.

कुछ पल बाद जयसिंह ने हौले से मनिका को पीछे हटाया, मनिका ने शर्मीली नज़र से उन्हें देखा और अपना होंठ दाँतो में दबा कर लजा गई.

"तो फिर अब मेरी गुड नाइट किस्स का टाइम हो गया है." जयसिंह ने शरारती अन्दाज़ में कहा.
"हेहे... गुड नाइट पापा!" मनिका मुस्का दी और धीरे से उनके गाल पर चुम्बन देने के लिए आगे हुई.

लेकिन जयसिंह ने ऐन वक्त पर अपना मुँह घुमा उसके होंठों पर होंठ रख दिए.

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Very very cunning father. Apni beti ko fusel hi liya.
 

Premkumar65

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31 - राँड

हितेश कमरे में दाखिल हुआ तो अंधेरे में मनिका को बेड के पास खड़ा देख एक पल ठिठक गया.

"आऽऽऽ..." उसके मुँह से निकला.
"क...क्या?" मनिका ने घबरा कर कहा. हितेश की आवाज़ सुन कहीं उसकी माँ ऊपर आ गई तो?
"ओह! दीदी डरा दिया आपने." हितेश बोला.
"क्या कर रहा है इतनी रात को, सोता क्यूँ नहीं?"

डरी होने के बावजूद मनिका ने आवाज़ में थोड़ी सख़्ती लाते हुए कहा था. उधर हितेश ने गेट के पास लगे स्विच से कमरे की लाइट ऑन कर दी थी.

"अरे दीदी वो कनु के पास मेरे लैपटॉप का चार्जर था. वो लेने आया... था." हितेश बोलते-बोलते लड़खड़ा गया. मनिका ने गंजी और शॉर्ट्स वाला वही नाइट सूट पहन रखा था जिसने उसके पिता को बहका दिया था.
"ले ले जा, और टाइम से सो जाना." मनिका ने धड़कते दिल से कहा.
"हाँ हाँ, आप भी मम्मी की तरह चिढ़ते रहते हो बस." हितेश ने नज़र घुमा जल्दी से टेबल की ओर जाते हुए कहा.

हितेश ने जल्दी से चार्जर निकाला था और कमरे से बाहर निकल गया था. मनिका ने मन ही मन शुक्र मनाया, पर अभी मुसीबत टली नहीं थी. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जयसिंह उसके कमरे में चले आए थे और वो भी सिर्फ़ बरमूडा पहन कर. अब जल्दी से पापा को नीचे भेजना पड़ेगा.

हितेश के जाते ही मनिका लगभग भाग कर बाथरूम की तरफ़ गई.

-​

आमतौर पर जल्दी से ना घबराने वाले जयसिंह भी बाथरूम के दरवाज़े की ओट में थोड़ा घबराए हुए खड़े थे. लेकिन हितेश और मनिका के बीच की बातचीत सुनने के बाद उनका संयम लौटने लगा था. हितेश सिर्फ़ अपने काम से आया था न कि उनकी आहट या बातचीत सुनकर. तभी मनिका बाथरूम में घुसी.

"पापा! आप जाओ जल्दी..." उसने फुसफुसाते हुए कहा.

जयसिंह ने हाथ से लाइट का स्विच टटोला और बाथरूम में भी उजाला हो गया. उन्हें इस तरह सामने पा कर मनिका ठिठक गई और पीछे हटी. जयसिंह ने आगे बढ़ उसे पकड़ना चाहा था.

"पापाऽऽऽ! पागल हो गए हो क्या आप. जाओ ना!" मनिका के चेहरे पर घबराहट साफ़ झलक रही थी.
"क्या हुआ मनिका, बात नहीं कर रही मुझसे?" जयसिंह ने उसकी कलाई थाम अपनी ओर खींचा.
"कर लूँगी पापा... आप प्लीज़ अभी चले जाओ. हितेश आ जाएगा..." मनिका ने मिन्नत की.
"पहले बताओ मुझे क्या हुआ?" जयसिंह ने हाथ से उसका चेहरा अपनी ओर घुमाया.
"कुछ नहीं पापा... थोड़ा अजीब सा लग रहा था..?" पहले ही डरी हुई मनिका ने उनके स्पर्श से कांपते हुए कहा.
"क्या अजीब लग रहा है?" जयसिंह ने उसकी आँखों में झांक कर पूछा.
"आ... आपके साथ ऐसे..." मनिका बड़बड़ाई.
"हम्म." कहते हुए जयसिंह ने उसे अपने नग्न आग़ोश में ले लिया.
"पापा प्लीज़... मत करो ना." मनिका ने कहा.
"क्या?" जयसिंह ने उसकी पीठ सहलाते हुए उसके कान में कहा था.

डर और उत्तेजना का एक पुराना रिश्ता है. पकड़े जाने का डर और जयसिंह के प्रति उसका आकर्षण अब मनिका के उन नैतिक मूल्यों पर हावी होने लगे थे जिनके चलते उसने अपने पिता से दूरी बनाने का प्रयास किया था.

जयसिंह उसके बदन को सहलाते हुए उसके कान में मीठी-मीठी बातें किए जा रहे थे, कि वह बहुत सुंदर है और कैसे वे उसे इतना चाहते हैं. आख़िर मनिका के हाथ, जो उसने उनका आलिंगन रोकने के लिए जयसिंह के कंधों पर रख रखे थे, ढीले पड़ने लगे. ये एहसास होते ही जयसिंह ने उसे बाँहों में कस लिया था.

पूरे दिन की चिंता के बाद जयसिंह का सहारा पाते ही मनिका निढाल हो गई, और उनके बाजुओं में अपने शरीर को ढीला छोड़ समाने लगी.

"ओह पापा! आप तो मेरी जान निकाल कर ही मानोगे..." उसने तड़पते हुए कहा.
"हाहा, अरे अपनी जान की जान कैसे निकाल सकता हूँ मैं... मेरी जान तो तुमने निकाल रखी है सुबह से, क्या हुआ बताओ ना, क्यूँ नाराज़ हो?" जयसिंह ने उसके कान के पास मादकता से फुसफुसा कर कहा.
"ऊँह... पापा, आज वो दादी जो कह रही थी..."
"क्या कह रही थी?"
"आपको पता तो है... आप भी तो वहीं बैठे थे." मनिका ने जयसिंह की छाती में मुँह छुपा रखा था.
"नहीं मुझे नहीं पता तुम किस बात के लिए कह रही हो." जयसिंह अनजान बने रहे.
"रहने दो फिर..."
"नहीं, बताओ ना, क्या कह दिया दादी ने ऐसा कि तुम मुझसे नाराज़ हो गई, मैं भी तो जानूँ?"
"आप मानते ही नहीं मेरी कोई बात... आपको पता तो है मैं उस... रा...'राँड'... वाली बात का कह रही हूँ."
"हैं? लेकिन उस से तुम्हारी नाराज़गी का क्या वास्ता?" जयसिंह भोले बनते हुए बोले.
"मैं भी तो... उन लड़कियों जैसे कपड़े... आप को पता तो है मैं क्या कह रही हूँ!" मनिका ने चेहरा ऊपर कर एक नज़र उनके चेहरे पर डाली थी. उसके माथे पर शिकन थी.
"ओहो, तुम भी ना..." जयसिंह ने कहा और एकदम से पीछे हट अपना एक हाथ मनिका के घुटनों के पीछे लेजा कर उसे गोद में उठा लिया.
"पापा! क्या कर रहे हो?" मनिका सकपका गई और उसकी घबराहट लौट आई.

जयसिंह ने उसकी प्रतिक्रिया को नज़रअन्दाज़ कर दिया और उसे लिए हुए बाथरूम से बाहर आ गए. वे चलते हुए कमरे के दरवाज़े तक गए और मनिका की आँखों में देखते हुए दरवाज़े की कुंडी की तरफ़ देखा. मनिका उनका इशारा समझ गई और उसने कांपता हुआ हाथ बढ़ा गेट अंदर से बंद कर दिया. अब जयसिंह उसे लेकर बिस्तर की ओर बढ़े.

"मनिका, देखो तुम जो सोच रही हो वो ग़लत नहीं है."

जयसिंह मनिका को बिस्तर पर अपनी गोद में लिए बैठे थे. जयसिंह के इस तरह उसे उठाने के बाद शॉर्ट्स खिंच कर ऊपर हो गईं थी और मनिका के नितम्ब बीते कल की भाँति नग्न हो चुके थे और अब जयसिंह की नंगी जांघ पर टिके थे.

"पापा?" शर्म से तार-तार मनिका ने सवालिया निगाह से उन्हें देखा था.
"तुम्हारी दादी का उन लड़कियों को राँड कहना अपनी जगह सही है. क्यूँकि तुम्हारी दादी की परवरिश एक अलग जमाने में हुई है. उसी तरह वो लड़कियाँ भी अपनी जगह सही हैं, क्यूँकि वो नए जमाने की मॉडर्न लड़कियाँ है, जैसे कि तुम हो." जयसिंह बोले.
"तो फिर पापा, दादी के हिसाब से तो मैं भी..." मनिका अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाई.
"हाँ, तुम भी एक राँड हो." जयसिंह ने अपने हाथ से उसका गाल सहलाया था और फिर अंगूठे से उसके होंठों को मसलते हुए कहा था.

मनिका पर जैसे घड़ों पानी गिर पड़ा था. उसने जयसिंह से अलग होने की कोशिश करते हुए कहा,

"हाय पापा! मतलब आप भी मुझे रा... रा... बिगड़ैल समझते हो. आप पहले झूठ कह रहे थे कि नहीं समझते..."
"हम्म. मेरी पूरी बात सुनो पहले." जयसिंह ने मनिका को अपनी गिरफ़्त में जकड़ते हुए कहा.
"मुझे नहीं सुनना... हाय आप कितने गंदे हो." मनिका के आँसू निकल पड़े.
"देखो मनिका, मैंने तुमसे कहा था कि लोग क्या कहेंगे इसकी फ़िक्र करोगी तो कभी ख़ुश नहीं रह पाओगी. लेकिन तुम वही सब वापस सोचने लगी."
"लेकिन लोग नहीं, आप भी तो मुझे ऐसे बोल रहे हो..." मनिका ने रुँधे गले से कहा.
"और क्या ये सच नहीं है?" जयसिंह बोले.

मनिका से कुछ कहते न बना.

"देखो मनिका, मैं तुम्हें बिगड़ैल नहीं समझता, ये मैंने तुम्हें पहले भी कहा था और अब भी कह रहा हूँ, लेकिन जिन लड़कियों को तुम्हारी दादी राँड कह रही थी, तुम उनके जैसी हो ये हम दोनों जानते हैं, और मैं ये मानता हूँ कि ये तुम्हारा नेचर है, तुम्हें वैसा पहनावा, वैसा बर्ताव अच्छा लगता है और इसके लिए मैं तुम्हें बुरा नहीं समझता." जयसिंह ने कहा.
"प... पर पापा... बात तो वही हुई ना... आप मुझे ऐसा गंदा समझते हो." मनिका ने फिर से उनसे दूर जाना चाहा.
"नहीं, बात वही नहीं हुई. तुम्हारी दादी या कोई भी और उन लड़कियों को नफ़रत से देखते हैं और मैं तुम्हें प्यार से देखता हूँ. ये फ़र्क़ है. अगर तुम राँड भी हो तो मेरी राँड हो." जयसिंह ने एक बार फिर उसके चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहा.

जयसिंह द्वारा उसे इस तरह जलील किए जाने पर भी मनिका मानो उनके मोह से बंध गई थी. उसके पापा उसे अपनी राँड कह रहे थे. "हाय! कितना गंदा बोल रहे हैं पापा मुझे... लेकिन मुझे कुछ-कुछ हो रहा है." उसके गालों पर ग्लानि और पश्चाताप की लाली की जगह अब हया की सुर्ख़ी ने ले ली थी.

जयसिंह भी उसके बदलते हाव-भाव ताड़ गए थे. उन्होंने झट उसे अपने सीने से लगा लिया, और मनिका की ओर से कोई प्रतिकार भी नहीं हुआ.

"हम्म... तो हो ना फिर तुम पापा कि राँड गर्लफ़्रेंड?" जयसिंह ने हौले से अपनी बेटी के अधनंगे नितम्बों को सहलाते हुए कहा.
"हाय पापा! कितनी गंदी हूँ मैं... हायऽऽऽऽ." मनिका उनके जिस्म में समाती जा रही थी.
"गंदी बच्ची को अभी ठीक कर देता हूँ..." कहते हुए जयसिंह ने मनिका के कूल्हों पर लगातार तीन-चार चपत लगा दीं.
"आऽऽऽऽ पापा..." मनिका की आ निकल गई थी और फिर अपने भाई के जगे होने का ख़याल मन में आते ही उसने अपनी सिसक को जयसिंह के कंधे पर होंठ गड़ाते हुए दबा लिया था.

कुछ पल बाद जयसिंह ने हौले से मनिका को पीछे हटाया, मनिका ने शर्मीली नज़र से उन्हें देखा और अपना होंठ दाँतो में दबा कर लजा गई.

"तो फिर अब मेरी गुड नाइट किस्स का टाइम हो गया है." जयसिंह ने शरारती अन्दाज़ में कहा.
"हेहे... गुड नाइट पापा!" मनिका मुस्का दी और धीरे से उनके गाल पर चुम्बन देने के लिए आगे हुई.

लेकिन जयसिंह ने ऐन वक्त पर अपना मुँह घुमा उसके होंठों पर होंठ रख दिए.

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32 - अपवित्र रिश्ता

जयसिंह जा चुके थे.

मनिका अपने बिस्तर पर औंधे मुँह लेटी हुई थी. उसके सुर्ख़ होंठों में एक अजीब सी दहक उठ रही थी.

"हाय! Papa kissed me... oh my god! My first kiss..." मनिका ने तकिए में मुँह छिपाते हुए सोचा.

जयसिंह ने जैसे ही उसे चूमा था, उसका दिमाग़ कुछ पल के लिए सन्न रह गया था और साँसे थम गयीं थी. उसने अपने होंठ भींच लिए. लेकिन जयसिंह ने उसे चूमना जारी रखा और उसके अर्धनग्न कूल्हों को सहला-सहला कर थपकियाँ देते रहे. आख़िर उसकी थमी साँसें जवाब दे गईं और उसने एक सिसक भरने के लिए अपने होंठ खोले थे. जयसिंह को तो इसी का इंतज़ार था. उन्होंने अपनी जीभ उसके मुँह में डालते हुए उसके होंठों को अपने होंठों में दबा लिया था और चूसने लगे.

वे कभी उसका ऊपर का होंठ चूसते तो कभी नीचे वाले होंठ को दांतों से दबा कर खींचते और फिर उसके मुँह में जीभ डाल उसकी जीभ को चूसते. इधर मनिका निढाल सी पल-पल बस उनकी नंगी छाती में अपना वक्ष गड़ा उनके जिस्म के साथ मिल जाने की कोशिश कर रही थी. उसकी आँखें बंद दी और उसे कुछ नहीं सूझ रहा था.

न जाने कितनी ही देर तक बाप-बेटी इसी तरह पाप के भागीदार बने रहे थे. जो एक पतली सी दीवार उनके जायज़ और नाजायज़ रिश्ते के बीच खड़ी थी वो अब गिर चुकी थी. हालाँकि पिता-पुत्री के पावन रिश्ते को वे पहले भी तार-तार कर चुके थे लेकिन जयसिंह के उसे होंठों पर चूमने के साथ ही उनके लिए वापसी के सभी दरवाज़े बंद हो चुके थे. मनिका ने अब तक जो आत्मग्लानि और शर्म महसूस की थी और जयसिंह ने शुरुआत में थोड़ा बहुत पश्चाताप किया था, अब उनके कोई मायने नहीं रह गए थे.

पापिनि मनिका अपने पापी पिता के साथ अपने ही घर में आलिंगन कर रही थी. जहाँ उसकी गंदी हरकतों से अनजान माँ और एक ज़माना देख चुकी दादी नीचे कमरे में सो रहीं थी, जहाँ उसका भोला सा छोटा भाई पास के कमरे में कम्प्यूटर चला रहा था, और जहाँ आज उसे उसकी छोटी बहन अकेला छोड़ पढ़ने गई थी. आज उसी बिस्तर पर मनिका ने अपना यौवन अपने अधेड़ लेकिन मर्दाना पिता के हवाले कर दिया था जिस पर वह रोज़ अपनी अबोध बहन के साथ सोती थी.

जयसिंह ने उसे इतने जुनून से चूमा था कि उसके होंठ हल्के-हल्के सूज गए थे.

आख़िर जब उनके उन्माद का सबब टूटा तो वे धीरे से अलग हुए. मनिका अब जयसिंह से आँख मिलाने की स्थिति में नहीं थी. जयसिंह ने उसे अपने साथ सटा कर सुला लिया था और उसके कानों में मीठी-मीठी बातें करने लगे. इस दौरान उनके हाथ उसके जिस्म पर चलते जा रहे थे, कभी वे उसकी पीठ और कमर सहलाते तो कभी उसके कूल्हे थपथपाते और उसकी नंगी जाँघें दबाते. मनिका बेसुध सी उनकी बातें सुन सिसकियाँ लेती और वे उसे फिर चूम लेते. लेकिन उनकी लाख कोशिशों के बाद भी मनिका ने उनसे नज़र न मिलाई और उनके आग़ोश में मुँह दबाए उनसे चिपटी रही. लगभग एक घंटा बीतते-बीतते मनिका को उनके पकड़े जाने की चिंता होने लगी थी.

आख़िर उसने हौले से कहा था,

"पापा... उह... अब जाओ ना... कोई आ जाएगा..."

जयसिंह भी जानते थे कि ख़तरा तो है. वे कुछ देर और उसका जिस्म सहलाने के बाद धीरे से उस से अलग हुए.

"हम्म... आज तो नींद बहुत अच्छी आएगी... है ना?"

उनके इस सवाल पर बरबस ही मनिका की आँखें उनके चेहरे पर चली गई थी, और फिर उसका सुर्ख़ चेहरा और सुर्ख़ हो गया और उसने पलट कर तकिए में मुँह छिपा लिया.

"हाहाहा..." जयसिंह दबी आवाज़ में हंसते हुए उठ बैठे और फिर 'थप्प' के साथ उलटी लेटी मनिका के कूल्हों पर एक चपत जमाई.
"ऊँहह्ह्..." मनिका ने तड़प कर अपना अधोभाग थोड़ा ऊपर उठा दिया. मानो अपने पिता को अपना जिस्म पेश कर रही हो.

जयसिंह की उत्तेजना आज सारी हदें पार कर चुकी थी, लेकिन मनिका के ऐसा करते ही वे मानो और बेक़ाबू हो गए.

"साली रंडी, छिनाल... देखो कैसे गांड उठा-उठा कर दे रही है..." सोचते हुए वे उन्माद और ग़ुस्से से भर उठे. आख़िर थी तो मनिका उनकी बेटी ही.

उन्होंने पकड़े जाने की सारी परवाह छोड़ चार-पांच ज़ोरदार हाथ मनिका के नंगे कूल्हों पर जड़ दिए. लेकिन मनिका मानो यही चाहती थी, उसने उनके हर ज़ोरदार प्रहार के बदले में अपना अधोभाग ऊपर उठा कर अगली चोट के लिए पेश किया था.

जयसिंह जानते थे कि अगर उन्होंने अपने-आप को नहीं सम्भाला तो कोई आहट सुन आ सकता है. आख़िर उन्होंने अपने हवस से पागल होते जा रहे मन को वश में करते हुए हौले से मनिका के उठे हुए अधोभाग को सहलाया और बोले,

"गुड नाइट डार्लिंग."

मनिका की तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया लेकिन उसकी ज़रूरत भी नहीं थी. जयसिंह को अपना जवाब मिल चुका था.

-​

'टिंग' की आवाज़ सुन मनिका की तंद्रा टूटी.

जयसिंह का मेसेज आया था. उनको गए अभी 5 मिनट से ज़्यादा नहीं हुए थे और मनिका अपने विचारों को सम्भाल भी नहीं पाई थी.

Papa: Kya kar rahi ho darling?

अपने पिता का मेसेज पढ़ते ही मनिका के कांपते हाथ से फ़ोन दो-तीन बार छूट कर बिस्तर पर गिर पड़ा. आख़िर उसने फ़ोन को दोनों हाथों से पकड़ा.

Manika: Sleeping.
Papa: Fir mujhse kaun baat karega?
Manika: Aap bhi so jao.
Papa: Ab neend nahi aa rahi. Tumhe aa rahi hai?
Manika: Papa matt satao na.
Papa: Arey ab main apni girlfriend se baat bhi nahi kar sakta kya?
Manika: Hmmm.
Papa: Kya hmmm?
Manika: Kuch nahin.
Papa: Bolo na darling.
Manika: Papa, I love you.
Papa: I love you too sweetheart, you know that.
Manika: Yes papa.

कुछ देर के लिए जयसिंह का कोई मेसेज नहीं आया. मनिका से भी कुछ कहते नहीं बना. फिर एक बार फिर स्क्रीन पर लिखा आने लगा "Papa is typing".

Papa: Kiss kaisi lagi?

अब जवाब का इंतज़ार करने कि बारी जयसिंह की थी.

Manika: Matt satao na.
Papa: Bolo na, kaisi lagi meri kiss?
Papa: Pehle kisi ko kiss kiya hai?
Papa: Bolo na Manika.
Manika: No papa, I haven't kissed anybody.
Papa: Matlab tumhari first kiss thi?
Manika: Yes papa.
Papa: Kaisi lagi?
Manika: Haay, aap to maan hi nahi rahe.
Manika: It was so sweet papa, I love you so much.
Papa: Mujhe pehle pata hota ki tum itni tasty ho to itne din waste nahi karta 😘
Manika: Oh papa, stop it na, kuch bhi bolte ho.
Manika: You are so tasty too papa 🙈❤️
Papa: Ab to sirf tasty waali kiss hi karunga main.
Manika: No papa... koi dekh lega... please na.

जयसिंह का आशय भाँपते ही मनिका थोड़ा डर गई, रोज़-रोज़ इस तरह से किस्स करना, वो भी घर पर रहते हुए, ख़तरे से ख़ाली नहीं था.

Papa: Kuch nahin hoga, main hoon na.
Manika: Fir bhi papa, I am scared.
Papa: Don't be scared darling, I will take care of everything.
Manika: Okay pa.
Papa: Vaise ek baat bolun?

जयसिंह का ऐसा कहते ही मनिका का दिल धड़क उठा, उसके निर्लज्ज पिता अब ना जाने क्या कहने वाले थे.

Manika: Kya?
Papa: I like the way you dress Manika. You look so beautiful.
Manika: Hehe... ye to aap hamesha kehte ho.
Papa: Haan... lekin main tumhare underwear ki baat kar raha hu.

मनिका एक पल के लिए फिर से बेसुध सी हो गई, उसने आँखें बंद कर लीं और सोचने लगी "हाय पापा कितने गंदे और चालबाज़ हैं, कैसे मुझे अपनी बातों में फँसा लेते हैं... उह... underwear का बोल रहे हैं... हाय!"

Manika: Papaa!
Papa: Kya hua darling?
Manika: Kyun sataate ho?
Papa: Main kahan sataata hu, sataati to tum ho chhoti chhoti panty pehen ke.
Papa: Aur tumhari bra bhi kaafi beautiful design waali hain 😘
Manika: Haay papa, stop it na.
Papa: Arey taareef karna kaam hai boyfriend ka.
Manika: Papaa! Kitne gande ho aap...
Papa: Haha... aur tum?

कुछ देर मनिका का कोई जवाब न आया, फिर

Manika: Main bhi 🙈
Papa: Waise tumne abhi tak apna figure nahin bataya mujhe.
Manika: Ishh papa... aap to maan hi nahin rahe.
Papa: Batao na please.
Manika: Kya karoge jaan kar?
Papa: Tumhe nayi bra aur panty dilwaunga na.

एक वो दिन था जब मनिका उनकी इस बात पर भड़क उठी थी और एक ये दिन था जब उनकी ऐसी गंदी बात ने उसे तड़पा दिया था.

Manika: Happ. Main apne aap le lungi.
Papa: Na. Abse tum sirf meri pasand ke underwear pehenogi.

जयसिंह के जवाब में एक आदेश छुपा था. मनिका उनके इस मर्दाना शक्ति प्रदर्शन से दहक उठी थी और अपने तकिए से आलिंगन कर सिसकने लगी. कुछ देर बाद उसने लिखा,

Manika: Ji.
Papa: To size batao na bra ka, panty to mujhe pata hai 34 hai.
Manika: Haay papa, matt chhedo na...
Papa: Bolo na, mujhe achha lagega. You don't want to make me happy darling?
Manika: 32D
Papa: Umm... so big you have become my darling... pata hi nahi chala kab itni jawan ho gayi.
Manika: Haay papa, kuch bhi kehte rehte ho. Ye message delete kar dena please🤞🏻
Papa: Poora figure batao na ek baar.
Manika: 32-27-34... happy?
Papa: Yes. Very happy, my girlfriend is so sexy 😘
Manika: Thank you papa! You are also very handsome papa.
Papa: Ek aur baat poochun?
Manika: Ab kya?
Manika: Sote kyu nahi aap, mujhe sataate ja rahe ho.
Papa: Bas last question.
Papa: Mera matlab aaj ka last question.
Manika: Haha... aap koi aur shaitaani hi karoge I know, chalo poocho.

हवस के हिचकोलों से तड़पती मनिका जयसिंह के अगले सवाल का इंतज़ार करने लगी. उधर जयसिंह कुछ टाइप करते फिर मिटा देते, फिर टाइप करते, फिर मिटा देते. आख़िर लगभग दो मिनट बाद, मनिका पर एक और गाज गिराने, उनका मेसेज आया.

Papa: Ye sexy underwear kabse pehen rahi ho?

इस बात का जवाब सोच मनिका बिस्तर पर पड़ी-पड़ी ही चक्कर खाने लगी. जब उसका कोई जवाब नहीं आया तो जयसिंह ने एक-दो मेसेज और कर डाले.

Papa: Batao na. Kisne sikhaya tumhen iss tarah ki panty pehen-na?
Papa: Ghar mein to maine kisi ko aisi underwear pehente nahi dekha.
Papa: Madhu ne to aaj tak aise underwear nahin pehne.

अपनी माँ का नाम आते ही मनिका के अंदर की ईर्ष्या जाग उठी.

Manika: Papa please na, so jao na.
Manika: And please don't compare me with her.
Papa: Haha, I am not comparing darling, there is no one like you sweety.
Manika: Hmmm.
Papa: Arey sach keh raha hu, maine to pehle bhi kaha hai ki vo tumhari khoobsoorti se jalti hai.
Manika: Hmmm.

जयसिंह समझ गए कि मनिका थोड़ी रूठ गई है.

Papa: Sorry na darling. Batao na ab.
Manika: Kya karoge jaan kar.
Papa: Kaha na mujhe tumhari har baat jaan ni hai.
Manika: Please na papa. Aap mujhe vaise hi bigdail samjhte ho.
Papa: Ab to mujhe jaan na hai... batao.

जयसिंह के मेसेज में फिर से एक आदेश छुपा था, और यही मनिका को उन्हें अपनी अंतरंग बातें बताने पर विवश करता था.

उसने जवाब लिख भेजा.

-​

जयसिंह को लगा था कि मनिका के होंठों को चूमते हुए वे अपनी उत्तेजना का चरम महसूस कर चुके थे, लेकिन वे ग़लत थे. मनिका के लिखे कुछ शब्दों ने उनकी स्खलित न होने वाली प्रतिज्ञा तोड़ डाली थी. उनके लंड ने एक तीव्र उछाल मारा और वे रोक पाते उस से पहले वीर्य की एक धार उनके बरमुडे में छूट गई.

वे हवस से हाँफने लगे, "साली राँड... हाय रंडी, कुतिया, इतने सालों से ऐसी कच्छियाँ पहन रही है... आऽऽऽऽऽऽऽऽ!"

कुछ देर बाद उनका उफान थोड़ा शांत हुआ. मनिका की ओर से कोई और मेसेज नहीं आया था. लेकिन उधर वो भी धड़कते दिल से अपने पिता की प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रही थी. आख़िर वे फिर से लिखने लगे.

Papa: Neeche aao mere room mein.
Manika: No no papa. Kya hua?
Papa: Come down Manika, come to my room now.

उनके जवाब ने मनिका को आतंकित कर दिया था. पापा क्या करने वाले थे.

Manika: Please papa, koi uth jaayega.
Papa: Kuch nahin hoga, bol dena paani peene aayi thi.
Manika: But what happened papa?
Papa: Come.
Manika: You are scaring me papa. Abhi to aap gaye the mil ke.
Papa: Don't be scared darling, just come once.
Manika: Please na.
Papa: Come Manika.
Manika: Okay.

-​

मनिका धड़कते दिल से उठी. उसने अपने अस्त-व्यस्त कपड़ों को थोड़ा ठीक करने की कोशिश कि लेकिन वह जानती थी कि उसका कोई फ़ायदा नहीं है. "पता नहीं पापा को क्या हो गया? Is he angry with me?"

लेकिन अपना लिखा जवाब सोच उसके भी रोंगटे खड़े हो गए थे, "क्या यार, झूठ ही कह देती. I am so dumb. पापा से झूठ भी नहीं कह पाती."

मनिका धीरे-धीरे कर कमरे से बाहर निकली और किसी चोरनी की तरह सीढ़ियाँ उतरते हुए अपने माँ-बाप के कमरे के बाहर पहुँची. उसने बहुत ही हौले से कमरे का दरवाज़ा खोला और जल्दी से अंदर घुस दरवाज़ा बंद कर दिया.

"कुंडी लगा दो." अंधेरे में जयसिंह की धीमी सी आवाज़ आई.
"पापाऽऽ, क्या हुआ?" मनिका ने घबराई आवाज़ में पूछा लेकिन उनके कहे अनुसार कुंडी भी लगा दी.

'खट' जयसिंह ने लाइट का स्विच ऑन किया, वे बिस्तर पर ही बैठे थे. मनिका रौशनी होते ही घबरा गई और सधे पाँव उनके पास आ कर फुसफुसाई.

"Papa, switch off the lights... कोई आ जाएगा!"

लेकिन जयसिंह ने उसकी बात अनसुना करते हुए एक पल में उसका हाथ पकड़ अपनी ओर खींचा और झटके से बिस्तर पर ले लिया. मनिका कुछ समझ पाती उस से पहले ही जयसिंह उसके ऊपर थे और उसे अपनी मज़बूत गिरफ़्त में ले रखा था. उनकी आँखें हवस से लाल हो रखीं थी.

"पपाऽऽ?"
"क्या सच में तब से पहन रही हो?"

मनिका उनका आशय समझ गई थी, उसका चेहरा तमतमा उठा.

"जी पापा." उसने आँखें मींचते हुए कहा.

जयसिंह की गिरफ़्त और मज़बूत हो गई. उसका जवान वक्ष उनकी विशाल छाती में गड़ने लगा. एक अजीब सी चुभन जो जवान होती लड़कियों की छाती में होती है और जो सिर्फ़ किसी मर्द के आलिंगन से ही शांत हो सकती है, मनिका को मदहोश करने लगी.

जब कुछ देर तक जयसिंह कुछ नहीं बोले तो मनिका ने हौले से आँखें खोल उनकी तरफ़ देखा. उनके चेहरे पर वही उन्माद था जो उसने उस गंदी पॉर्न फ़िल्म में देखा था. लेकिन अब उसे वह सब गंदा नहीं लग रहा था.

"पपाऽऽ? क्या हुआ पापाऽऽऽऽऽऽं" वो फुसफुसाई.

जयसिंह कुछ नहीं बोले लेकिन उनकी आँखें कह रहीं थी वो उसका पूरा जवाब चाहते हैं.

"वो पापा, summer vacations में गई थी ना जयपुर, मासी के यहाँ... तब वहाँ... शॉपिंग करते टाइम... लीं थी फ़र्स्ट टाइम..."

जयसिंह ने उसे कमर से पकड़ ऊपर उठाया और बरमुडे में खड़े अपने लिंग पर बिठा लिया.

"आऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ" मनिका को जैसे ही एहसास हुआ उसके पिता क्या कर रहे हैं, वो थरथराने लगी. इस बार वो फुसफुसाई न थी.
"पापा को बताया नहीं कभी... हम्म..." जयसिंह ने उसके कान में कहा. वे धीरे-धीरे अपना लिंग कपड़ों के अंदर से ही उसकी योनि पर गड़ा रहे थे.
"स्ससस... सॉरी पापा... सॉरी... बताया नहीं... क्या करते हो... हाय."

जब एक बार पाप का आग़ाज़ हो जाता है तो फिर उसकी कोई सीमा नहीं रहती.

"हम्म... सॉरी से काम नहीं चलेगा... क्यूँ नहीं बताया? बोलो." जयसिंह ने शॉर्ट्स के नीचे वाले भाग में हाथ फँसा कर ऊपर खींचा और उसके कूल्हे उघाड़ उन्हें हाथों से कचोटते हुए कहा.
"आऽऽऽ... papa someone will come... क्या कर रहे हो... हाय... सॉरी ना... I love youuu..."
"अबसे सिर्फ़ मेरी पसंद की पैंटी पहनोगी... बोलो..."
"जी पापा..."

जयसिंह ने एक बार फिर उसके होंठ चूमने शुरू किए. इस बार मनिका ने अपना मुँह बंद करने की बिलकुल कोशिश नहीं की थी.

"कौनसी पैंटी पहनी है?" जयसिंह ने एक पल के लिए उसके चेहरे से मुँह हटा कर पूछा.
"पाऽऽऽ... क्या?"
"पैंटी का कलर बताओ..."
"आऽऽ..."
"बताओ..."
"ग्रीन... पापा... ग्रीन."

जयसिंह ने अब एक हाथ पीछे से उसकी टी-शर्ट में डाला और उसकी पीठ सहलाने लगे. उनका हाथ उसके ब्रा स्ट्रैप के ऊपर से आ-जा रहा था.

"और ब्रा?"
"प्पपप... पिंक." मनिका सिसकी.
"हम्म... अबसे रोज़ बताओगी."
"येस पापा..."

उनके इस आवेश को महसूस करके ही मनिका अपनी सुध-बुध खो बैठी थी. जयसिंह उसके होंठ चूसने लगे.

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Ohhhh what an erotic update. Wonderful experience to kiss a teenager while she is sitting on your lap. Aaaaaahhhhhhhh. Superb.
 

Premkumar65

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33 - सेक्रेटरी

अगली सुबह जब मनिका उठी तो उसका तन-बदन टूट रहा था. उसका बदन गरम था और हल्का बुख़ार सा लग रहा था. वो उठ कर बाथरूम में गई और शीशे में अपना अक्स देखा.

उसका बदन उनके पाप की गवाही दे रहा था.

बिखरे बाल, ठीक से ना सोने की वजह से गुलाबी हुई आँखें, और उसके पिता के जुल्म से कुछ-कुछ सूज चुके होंठ जो थोड़े काले पड़ चुके थे. उसके गोरे हाथों पर जयसिंह के आक्रमक आलिंगन से खरोंचों के निशान थे. फिर उसने थोड़ा पलट कर अपने अधनंगे अधोभाग को देखा तो पाया कि जयसिंह के ज़ोरदार तमाचों से उसके गोरे कूल्हे गुलाबी हो गए थे और उनमें भी हल्की-हल्की जलन हो रही थी. उसने गंजी उतारी, पूरी पीठ और कमर पर लाल-लाल खरोंचें थी.

पिछली रात जब उसने नीचे जाकर दूसरी बार अपने पिता का आलिंगन किया था, शायद वही पल था जब उसने अपनी नई पहचान को पूरी तरह अपना लिया था. जयसिंह अपने मिशन में कामयाब हो चुके थे, मनिका अब सिर्फ़ उनकी थी.

"हाय, पापा के साथ... किस्स... उम्मम हम कैसे प्यार कर रहे थे... और उन्होंने मुझे अपने डिक पर... कितना अजीब और अच्छा लग रहा था... papa's big black cock... ईश! I am in love with papa."

लेकिन उसकी बहन कभी भी आ सकती थी. वो फ़्रेश हुई, टॉयलेट पर बैठे हुए उसकी योनि में एक अजीब सी चुभन होती रही थी. फिर उसने नहा कर अपना मेक-अप बॉक्स निकाला और अपने जिस्म के दाग मिटाने लगी. जब वो तैयार होके निकली तो पाया कि कनिका अभी तक नहीं आई है. उसने थोड़ा बेड सही किया और रूम में ही बैठी रही, उसकी अकेले नीचे जाने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी.

कुछ देर फ़ोन देखते रहने के बाद वो उसे एक तरफ़ रखने ही वाली थी कि 'टिंग' और जयसिंह का मेसेज आया.

Papa: Uth gayi meri jaan?
Manika: Good morning papa.
Papa: Kya kar rahi ho?
Manika: Kuch nahi bas baithi thi.
Papa: All okay?
Manika: Yes. Took a bath. Kanika aane waali hai.
Papa: Hmmm.
Manika: Aap kya kar rahe ho?
Papa: Bas tumhara intezaar, meri good morning kiss kab dogi.
Manika: Happ. Papa thoda control karo.
Papa: Don't worry, majak kar raha hu.
Papa: Panty change karli?

मनिका का दिल उछल पड़ा. पापा पता नहीं कहाँ की बात कहाँ लेजा कर उसे सताने लगते थे.

Manika: Yes pa.
Papa: What about our deal? Kuch batana hai abse roz tumhe.
Manika: You are so bad.
Papa: Batao.
Manika: Pink undies, white bra.
Papa: Mujhe kab dikhaogi?
Papa: Bolo na.
Manika: Papaaa! Aise matt karo na.
Papa: Kaise?
Manika: Delete these messages please.
Papa: Haha theek hai. Chalo vo saali kuttiya Madhu bula rahi hai abhi. Neeche aa jao.
Manika: Haaw!

मनिका ने जयसिंह के उसकी माँ को गाली देने पर प्रतिक्रिया तो दी थी, लेकिन मन ही मन उसे बहुत अच्छा लगा था. उसके बाद जयसिंह का कोई जवाब नहीं आया. शायद वे कुछ काम में लग गए थे. मनिका उनके कहे अनुसार उठी और उठ कर नीचे चल दी.

-​

नीचे हॉल में जयसिंह नाश्ता कर रहे थे. पास ही उसकी दादी बैठी थी और उसकी माँ शायद रसोई में थी. मनिका सीढ़ियों से उतर रही थी तो उसकी नज़र अपने पिता से मिली. उसके गालों पर लालिमा छाने लगी.

उसने एक हल्के बैंगनी रंग का सूट पहन रखा था जिसके नीचे मॉडर्न पैंटनुमा सलवार थी. पिछली रात की करतूतें छिपाने के लिए आज उसे चेहरे पर काफ़ी मेक-अप करना पड़ा था. उसने सुर्ख़ लाल लिपस्टिक के भी दो कोट किए थे, ताकि उसके सूजे हुए होंठ थोड़े कम नज़र आएँ.

टेबल के नीचे जयसिंह ने अपने उबलते लंड को पकड़ कर अंडरवियर के इलास्टिक में फँसाया.

"Good morning." मनिका ने मेज़ के पास आते हुए कहा. लेकिन बोलते-बोलते उसकी आवाज़ भर्रा गई थी.
"Good morning बेटा." जयसिंह ने कहा और शैतानी से मुस्कुरा दिए. उनका सम्बोधन सुन मनिका शर्म से पानी-पानी हो गई.
"नमस्ते दादी." उसने अपनी दादी से कहा.
"जल्दी उठा कर." दादी ने अपने चिर-परिचित अन्दाज़ में कहा, "और आज ये सुबह-सुबह मुँह लाल कर कहाँ जा रही है?"

यह जानकर कि उसका मेक-अप सब नोटिस कर पाएँगे मनिका का दिल डर से धड़कने लगा.

"क्या दादी, आप और मम्मी तो हर वक्त टोकते ही रहते हो. कहीं नहीं जा रही."
"जवान लड़की घर की ज़िम्मेदारी होती है." दादी ने बस इतना ही कहा और अपना दलिया खाने लगी.

मनिका ने जयसिंह की तरफ़ देखा, वे मंद-मंद मुस्कुराते हुए नाश्ता कर रहे थे. उसे उनपे प्यार भी आने लगा और झल्लाहट भी हो रही थी. उतने में उसकी माँ आ गई.

"उठ गई?" मधु ने आते ही दादी वाली बात दोहराई, "कोई उस लड़के को भी उठाओ."

मनिका ने कुछ जवाब नहीं दिया और शुक्र मनाया कि उसकी माँ ने उसके मेक-अप किए चेहरे पर कोई कॉमेंट नहीं किया था. मधु ने सीढ़ियों के पास जा कर हितेश को आवाज़ दी और फिर आकर मेज़ पर बैठ गई. वे लोग नाश्ता करने लगे.

हितेश तो उठ कर नहीं आया लेकिन थोड़ी देर बाद कनिका बाहर से अंदर आई. उसने सबको 'Good Morning' कहा और ऊपर अपने कमरे में जाने लगी.

"कनु नाश्ता?" मधु बोली.
"कर के आई हूँ..." कहते हुए वो ऊपर चली गई.
"तो क्या प्लान है आज का?" जयसिंह ने मनिका से पूछा.
“प... प्लान?" मनिका हड़बड़ा गई, ये पापा क्या पूछ रहे थे?
"अरे तुम ही तो कह रही थी प्रोजेक्ट सबमिट करना है, ऑफ़िस चलोगी साथ में..." जयसिंह की आँखों में चमक थी.
"ओह... हाँ पापा." मनिका उनका आशय समझ बोली. जयसिंह की इस चालबाज़ी ने उसके दिल को पागल कर दिया था.
"चलो कुछ देर तो घर में शांति रहेगी." मधु ने कहा.
"क्या मम्मी, मैं कब हंगामा करती हूँ?" मनिका ने तुनक कर कहा.
"हाहाहा... अरे अब फिर से माँ-बेटी शुरू मत हो जाओ." जयसिंह ने हंस कर कहा और बोले, "चलो फिर, मेरा तो हो गया है ब्रेकफ़ास्ट फ़िनिश करके आओ."
"और थोड़ा प्रोफेशनल लुक बना के आओ अब तो MBA कर रही हो." जयसिंह ने उठते हुए कहा.

जयसिंह ने उठते हुए पास बैठी मनिका की पीठ सहलाई थी. उसका जिस्म एक पल के लिए अकड़ गया. तब तक जयसिंह अपने रूम में जा चुके थे. पर कुछ पल बाद मनिका के फ़ोन पर मेसेज आया.

Papa: Leggings aur t-shirt jo room me pehni thi.

मनिका के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी थी. उसने झट अपनी माँ और दादी की तरफ़ देखा, क्या उन्होंने उसका चेहरा पढ़ तो नहीं लिया था. लेकिन पाया कि उनका ध्यान उसकी तरफ़ नहीं था और दोनों आपस में बातें लगीं थी.

Manika: Papa, vo to... mummy daantegi.
Papa: Kuch nahi hoga jaldi aao. T-shirt ke upar kurta daal lena.
Manika: Aap na, fasaoge mujhe.
Papa: Aa jao.

नाश्ता कर मनिका धड़कते दिल से फिर ऊपर चल दी. कमरे में कनु बिस्तर पर लेटी फ़ोन देख रही थी.

"दीदी." उसने उसे अंदर आते देख कहा.
"क्या कर रही है?"
"कुछ नहीं बस Insta चेक कर रही थी."

मनिका को अलमारी से कपड़े लेकर बाथरूम में घुसते देख उसने आगे पूछा.

"आप कहाँ जा रहे हो?"
"पापा के साथ ऑफ़िस, कुछ प्रोजेक्ट सबमिट करना है कॉलेज के लिए तो अपने बिज़नेस पर ही केस-स्टडी कर रही हूँ.
"अच्छा... तो चेंज कर रहे हो?" कनिका बोली और अपने फ़ोन में मशगूल हो गई.
"पापा ने कहा..." मनिका बोली और अंदर चली गई.

बाथरूम में जा कर मनिका ने कपड़े उतारे और अपना जिस्म निहारा, और खुद ही शरमा गई. उसने वो झीनी टाइट लेग्गिंग किसी तरह पहनी और फिर ऊपर वो छोटा सा टॉप. सब वैसे ही नज़र आ रहा था जैसा उस दिन होटल के कमरे में था, लेकिन आज मनिका की लाज उसे रोकने की बजाय उकसाने का काम कर रही थी. उसने एक लम्बा कुर्ता ऊपर से पहना और बाहर निकल आई.

कनिका फ़ोन एक तरफ़ रख ऊँघ रही थी. मनिका बिना कुछ बोले जल्दी से अलमारी के पास गई और अपने हील्स निकाल कर पहने और बाहर निकल गई.

-​

जब मनिका घर से बाहर आई तो पाया कि जयसिंह ड्राइविंग सीट पर बैठे थे और ड्राइवर एक ओर खड़ा देख रहा था.

"क्या हुआ भैया?" मनिका ने पूछा.
"मैडम आज साहब खुद लेके जाएँगे बोले." उसने सिर झुका सलाम करते हुए कहा.

मनिका समझ गई. वो धड़कते दिल से कार की दूसरी साइड गई और गेट खोल जयसिंह के बग़ल में बैठ गई. उनकी नज़रें मिली, दोनों के चेहरे पर एक नापाक ख़ुशी की दमक थी.

-​

घर से कुछ दूर आते-आते जयसिंह का हाथ मनिका की जाँघों पर था. हालाँकि आज वह कपड़े के ऊपर से ही उनका स्पर्श महसूस कर पा रही थी लेकिन उसके उन्माद की कोई सीमा नहीं थी. पापा कैसे चालाकी से उसे अपने साथ ले जा रहे थे यह सोच कर उसका दिल धड़क-धड़क जाता था.

जयसिंह ने हौले से उसकी जाँघ को सहलाया और इस बार हाथ थोड़ा और ऊपर उसकी योनि के पास ले गए. मनिका की साँस उसके हलक में अटक सी गई और उसने एकदम से अपने पिता का हाथ पकड़ उन्हें रोकना चाहा. उनकी नज़र मिली.

"कैसा लग रहा है?" जयसिंह ने मद भरे अन्दाज़ में पूछा.
"इह..." मनिका ने सिसक कर उनके हाथ को थामे रखा.
"बोलो ना."
"I love you papa." मनिका बोली.

पिछली रात के बाद से जब भी मनिका को अपने पिता की निर्लज्ज हरकतों को अनुमति देनी होती तो वो उन्हें "I love you" कह देती. जयसिंह भी यह बात समझ चुके थे. लेकिन कार में थे, सो उन्होंने कुछ और नहीं किया और फिर से उसकी जाँघ सहलाने लगे. मनिका ने अपनी रुकी हुई साँस छोड़ी.

कुछ देर बाद एक जगह ट्रैफ़िक थोड़ा कम देख जयसिंह ने कार को सड़क से उतार कर टेढ़ा खड़ा किया.

"क्या हुआ पापा?" मनिका ने सवालिया नज़र से पूछा.
"ये उतार लो ना." जयसिंह ने कुर्ते की तरफ़ इशारा कर कहा.

मनिका सकपका गई.

"यहाँ... क... कैसे? कोई देख लेगा."
"अरे जल्दी से उतारो, कोई नहीं है." जयसिंह ने आगे-पीछे देखते हुए कहा.

मनिका एक पल रुकी फिर उनकी बात मानते हुए ऊपर उठ कुर्ते को अपने नीचे से निकला और उतारने लगी. कुर्ता लम्बा था और उसे कार में हाथ ऊपर उठा उतारते वक्त उसके बालों में थोड़ा फँस गया था, और साथ ही उसकी टी-शर्ट भी ऊपर हो गई थी. जयसिंह ने आव-देखा ना ताव उसकी नंगी कमर पर हाथ रख दिया. मनिका ने सिहरते हुए कुर्ता किसी तरह अलग किया और अपनी टी-शर्ट खींच के नीचे करने लगी.

"पापाऽऽ..." उसने तड़पते हुए कहा.
"डार्लिंग..." जयसिंह बोले और उसका कुर्ता लेकर पीछे की सीट पर फेंक दिया.

कार फिर चल पड़ी. मनिका को लगा था कि पापा उसे कहीं घुमाने ले जा रहे हैं. लेकिन पाया कि वे अभी भी ऑफ़िस की रोड पर ही थे.

"पापा! हम कहाँ जा रहे हैं?"
"बताया ना ऑफ़िस..." जयसिंह बोले.
"Whaat! No papa... I am dressed like this!" मनिका घबराते हुए बोली.
"अरे कोई नोटिस नहीं करेगा."
"Noooo papa! वहाँ माथुर अंकल भी होंगे... आप पागल हो क्या?"
"हाहा... कुछ नहीं होगा. चलो..." जयसिंह ने उसकी बात अनसुनी करते हुए ऑफ़िस की बिल्डिंग वाली सड़क पर कार मोड़ी.

मनिका को मानो चक्कर से आने लगे थे लेकिन अपने पिता के सामने वो बेबस थी.

-​

"Morning sir." अपने बॉस को अंदर आते देख देवेश ने ठिठक कर कहा.
"Good morning Devesh, कैसा चल रहा है सब?" जयसिंह बोले.
"All okay sir, वो मित्तल साहब का कॉल आ रहा था बार-बार." देवेश ने बताया.

फिर उसकी नज़र जयसिंह के पीछे खड़ी मनिका और उसके पहनावे पर गई.

हालाँकि उसे पता था कि जयसिंह की दो बेटियाँ है और उसने उसे और कनिका को एक-दो बार देखा भी था. लेकिन इस कामरूपा मनिका को वो पहचान नहीं पाया. उसके चेहरे पर असमंजस और झेंप के भाव आ गए. जयसिंह यह भाँप चुके थे.

"हाहा... meet my new secretary..." जयसिंह ने कहा.
"Oh... hello ma'am." देवेश अटकते हुए बोला. उसे समझ नहीं आ रहा था कहाँ देखे.
"हाहाहा... अरे तुम मिल चुके हो पहले. My daughter Manika..." जयसिंह ने स्थिति साफ़ की.
"ओह... जी जी..." मनिका उनकी बेटी है इतना सुनते ही देवेश ने नज़र नीची कर ली.

ऑफ़िस के गलियारे से जयसिंह के केबिन तक जाते-जाते मनिका की इज़्ज़त तार-तार होती गई. सभी उसे पहचानते थे और उसका यह रूप देख दंग रह गए थे.

केबिन में घुसते-घुसते मनिका का चेहरा तमतमा चुका था और आँखें भर आईं थी. तभी गेट पर दस्तक हुई. मनिका ने किसी तरह अपने-आप को सम्भाला.

माथुर अंदर दाखिल हुआ. वह सीधा अपने केबिन से आ रहा था तो उसने अभी तक मनिका को नहीं देखा था. अभी मनिका की पीठ उसकी तरफ़ थी, उसकी जवानी देख माथुर भी अचकचा कर खड़ा हो गया.

"सर वो..."

मनिका पलटी.

“हेलो अंकल." उसने किसी तरह अपनी आवाज़ सम्भालते हुए कहा.
"अरे मनि बेटा... कैसे हो?" माथुर ने एक नज़र मनिका को सिर से पाँव तक देखा.
"जी अच्छी हूँ."
"हाँ माथुर साहब बोलो..." जयसिंह ने बीच में आते हुए कहा.
"जी वो दिल्ली वाली डील फ़ाइनल हो गई है. हो सकता है हमें एक बार मिलने वापस जाना पड़े."
"वो मैं सम्भाल लूँगा."
"जी सर."

एक उम्र से जयसिंह के साथ काम कर रहे माथुर को भी समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा था.

"अच्छा आज थोड़ा बिज़ी रहूँगा, मनि के कॉलेज का कुछ केस-स्टडी सबमिट करना है, तुम सम्भाल लो जो भी मीटिंग्स वग़ैरह हैं."
"ठीक है सर." माथुर बोला.

माथुर जानता था कि जयसिंह हमेशा अपने परिवार की ज़रूरतों को तवज्जो देते हैं. बस मनिका का पहनावा उसे खटक रहा था, लेकिन क्या कहता. सो मनिका को एक मुस्कान के साथ अलविदा कह केबिन से निकल गया.

जयसिंह के केबिन में उनकी कुर्सी के पीछे एक विशाल शीशा लगा था. शर्म से घायल मनिका ने एक नज़र उसपर देख तो उसकी जान सूख गई. वह सच में बहुत-बड़ी “वो लग रही थी जो उसकी दादी कह रही थी”.

-​

"पापाऽऽऽ, everybody was looking at me!" एकांत पाते ही मनिका ने घबराहट भरे स्वर में कहा.
"हाहा... don't worry darling." जयसिंह उसके क़रीब आते हुए बोले.
"But papa, what will they think?" मनिका ने चेहरा हाथों में छिपा लिया.
"कुछ नहीं... मैंने कहा ना don't worry." जयसिंह उसके क़रीब आ गए थे.

बाहर इतने लोग बैठे थे और पापा उसके पास यूँ खड़े हैं ये सोच मनिका और डर गई और पीछे होना चाहा. लेकिन जयसिंह ने उसके हाथ पकड़े और किसी मनचले आशिक़ की तरह अपने पास खींच लिया.

"मर्दों को अपनी गर्लफ़्रेंड की नुमाइश करना पसंद होता है, you know." जयसिंह ने खरखराती आवाज़ में कहा.
"पापा कोई आ जाएगा."
"सब बेल बजा कर आते हैं... यहाँ आओ." कहते हुए जयसिंह ने उसे खींचा और उसके होंठों पर होंठ रख दिए.

मनिका का बदन डर से अकड़ गया था लेकिन जयसिंह की पकड़ के आगे उसकी एक ना चली. शेर के मुँह एक बार खून लग जाता है तो छूटता नहीं है. वे क़रीब पाँच मिनट तक उसके होंठ चूसते रहे. लेकिन आज पकड़े जाने के डर से मनिका उनका साथ नहीं दे रही थी. आख़िर जयसिंह ने भी उसे छोड़ दिया.

"हाय पापा... आप भी ना." मनिका ने बिदकते हुए कहा था.

जयसिंह अब अपनी कुर्सी पर बैठ गए और मनिका भी कुछ देर खड़ी रहने के बाद पास लगे सोफ़े पर बैठ गई. बार-बार उनकी नज़र मिलती और जयसिंह मुस्कुरा देते, कुछ देर बाद मनिका भी सहज होने लगी और हल्का-हल्का शरमाने, मुस्कुराने लगी. जयसिंह को तो जैसे इसी बात का इंतज़ार था, उन्होंने उसे पास आने का इशारा किया. मनिका ने कुछ देर तो मुँह बना कर मना किया लेकिन फिर शर्म से लाल मुँह लिए उनके पास आ गई. जयसिंह ने पैर खोले और अपनी जाँघ थपथपाई. मनिका को तो इसकी ट्रेनिंग पहले से ही थी, वो उनकी जाँघ पर बैठ गई.

"पापा, कोई आ जाएगा." एक बार फिर उसने अपने मन की शंका ज़ाहिर की थी.
"मैंने कहा ना, सब बेल बजा कर ही आते हैं. Don't worry." कहते हुए जयसिंह ने एक छोटा सा किस्स उसके होंठों पर किया.
"आप ना..." मनिका इतना बोल चुप हो गई.

जयसिंह उसका बदन सहला रहे थे. कुछ पल बाद जयसिंह बोले,

"ऐसा लग रहा है जैसे फ़िल्मों में बॉस की सेक्सी सेक्रेटेरी होती है वैसे मेरी भी है."
"हेहेहे... क्या बोलते हो पापा."
"क्यूँ? तुम सेक्सी नहीं हो?"
"ईश!"
"उम्म..." जयसिंह ने मनिका की कान की पास मुँह लेजा कर धीरे से उसका गाल चूमा, "एक बात पूछूँ?"
"क... क्या?"
"वर्जिन हो अभी तक?" जयसिंह ने कहा. यह बोलते-बोलते मनिका की जाँघों पर रखे उनके हाथों कि पकड़ मज़बूत हो गई थी.
"Whaat?" मनिका कांप उठी.
"सेक्स किया है कभी?" जयसिंह ने वैसे ही मादकता से पूछा.
"नन्... नहीं... नो पापा!" मनिका ने तड़पते हुए कहा.
"गुड."

जयसिंह ने हौले से कहा और एक बार फिर उसका चेहरा अपनी ओर घुमा उसके होंठ चूमे.

इस बार मनिका ने प्रतिरोध नहीं किया.

-​

जैसा कि जयसिंह ने कहा था, जो भी उनके ऑफिस में आता था घंटी बजा कर ही आता था. उस दिन दो-तीन बार से ज़्यादा बार कोई नहीं आया. माथुर ने जयसिंह के कहे अनुसार सबसे कह दिया था कि बॉस आज बिजी हैं.

और जब भी कोई आता था, मनिका को एक ओर बैठे लैपटॉप पर काम करते पाता था. शाम ढले धीरे-धीरे ऑफिस ख़ाली होने लगा. आख़िर में माथुर आया और उसने भी जयसिंह को एक दो फ़ाइलें पकड़ा घर जाने की इजाज़त ली और चला गया. इस बार उसने मनिका की तरफ़ देख भी नहीं था.

माथुर के जाने के बाद ऑफिस में सिर्फ़ मनिका और उसके पिता ही बचे थे. गार्ड लोग सब बाहर ड्यूटी बजा रहे थे.

अब जयसिंह उठे. मनिका को लगा कि वे लोग भी अब घर जाएँगे. लेकिन जयसिंह ने जा कर अपने केबिन का दरवाज़ा अंदर से लॉक कर लिया और उसकी तरफ़ पलटे. अब मनिका को भी समझ आ गया कि अभी उसके पिता घर जाने के मूड में नहीं है. आगे क्या होने वाला है यह सोच उसका तन-बदन आतंकित होने लगा था.

जयसिंह को पास आता देख, वह भी खड़ी हो गई.

“पापा? हम क्या कर रहे हैं?” उसने नीची आवाज़ में पूछा.

आख़िर पता तो उसे भी था कि वे दोनों क्या कर रहे थे.

“कुछ नहीं डार्लिंग.” जयसिंह ने उसे आग़ोश में लिया और बोले, “अब तुम चली जाओगी तो मेरा मन कैसे लगा करेगा? सो मैंने सोचा कुछ स्पेशल किया जाए.”
“क… क्या पापा?”
“तुम्हारा एक स्पेशल फ़ोटो-शूट. ताकि जब तुम चली जाओगी तो मेरे पास तुम्हारी प्यारी-प्यारी निशानियों बाक़ी रहें.”
“फ़ोटोज़? नहीं ना पापा! कोई देख लेगा तो…” आशंकित हो मनिका ने कहा, “आपका फ़ोन तो वैसे भी इधर-उधर लोग देखते रहते हैं.”
“अरे डरो नहीं, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.” जयसिंह ने उसके होंठों को हौले से चूम कर कहा, “तुम्हारी स्पेशल पिक्स के लिए ख़ास तौर पर नया आईफ़ोन मँगवाया है, जो मेरे लॉकर में रहेगा.”

मनिका ने बहुत से MMS और वीडियो लीक होने की बातें देखीं सुनीं थी. इसलिए जयसिंह के इस आग्रह ने उसे थोड़ा असहज कर दिया था. लेकिन वह आगे कुछ सोच पाती उस से पहले जयसिंह ने अपनी जेब से एक नया चमचमाता आईफ़ोन निकाला और उसके चेहरे की तरफ़ कर दिया.

“क्लिक” की आवाज़ आई और मनिका चिंतित सा का खूबसूरत चेहरा उनके फ़ोन में क़ैद हो गया. मनिका ने एन मौक़े पर अपना चेहरा छुपाना भी चाहा था, मगर न छिपा सकी.
“पापा! आप कहाँ से लाते हो ऐसे क्रेजी आइडियाज़?” मनिका ने हौले से उन्हें झकझोर कर पूछा. इस पर जयसिंह मुस्कुरा भर दिए और फिर उसका हाथ पकड़ उसे केबिन में रखे काउच की तरफ़ ले गए.

उन्होंने नया फ़ोन एक तरफ़ रखा और ख़ुद मनिका को अपनी बाँहों में कस काउच पर ले बैठे.

“मनि डार्लिंग…”
“पापा! आप मुझे ‘मनि’ क्यों कह रहे हो?” मनिका उनके उस अभिवादन से ठिठक गई थी.
“हाहाहा… मुझे लग ही रहा था तुम नोटिस कर लोगी.” जयसिंह ने हंसते हुए कहा.
“पर क्यों पापा? You said you will call me Manika.” उसने पूछा.
“Because… कल जब तुमने वो ‘राँड’ वाली बात मुझे बताई तो मैंने महसूस किया कि…” कह जयसिंह चुप हो गए.
“क्या पापा?” मनिका ने सवालिया नज़रों से उन्हें देखा.
“यही कि… I enjoy more when I think of you as my daughter… शायद तुम्हें भी मुझे ‘पापा’ कहना ज़्यादा अच्छा लगता है… instead of boyfriend… am I right?”

मनिका चुप हो गई. उसके पापा ने एक-बार फिर खेल घुमा दिया था. कहाँ तो उन्होंने मर्द और औरत के रिश्ते की दुहाई दे-दे कर उसे अपने साथ पाप में भागीदार होने को कहा था. और अब वे उसी नापाक रिश्ते को फिर से बाप-बेटी के रिश्ते का नाम देने को कह रहे थे.

“But papa… आपने तो कहा था कि हम… as man and woman… ये सब…” मनिका ने शर्मिंदा हो सिर झुका लिया.

“हाँ डार्लिंग… लेकिन कल जब तुमने मुझे बताया कि उस बात ने तुम्हें किस तरह अफेक्ट किया है तो मुझे समझ आया कि अगर हम बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड बनेंगे तो एक पॉइंट के बाद हमारा रिलेशन वैसा ही नीरस हो जाएगा जैसा किसी आम बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड का होता है. लेकिन अगर…”

“लेकिन… क्या पापा?” मनिका उनकी बातों से असहज होने लगी थी.

“लेकिन अगर हम… as father and daughter… आगे बढ़ें तो मुझे लगता है ज़्यादा इंजॉय कर पाएँगे. क्योंकि उस रिश्ते में एक कशिश होगी… और जैसा कि तुम्हारा नेचर है… कि तुम अपनी इमेज को लेकर काफ़ी सेंसिटिव हो, तो इसमें मुझे ज़्यादा मज़ा आएगा और शायद तुम्हें भी. क्योंकि… घर में जहाँ सब लोग तुम्हें थोड़ी नकचढ़ी लेकिन एक आदर्श लड़की समझते हैं, वहीं सिर्फ़ हम दोनों जानते हैं कि सच क्या है…”

जयसिंह ने हौले से मनिका के पेट पर हाथ फिराते हुए कहा.

मनिका उनका आशय समझ लज्जित हो उठी.

“देखो मनि… मुझे पता है कि तुम सोच रही होगी कि कल रात तो मैंने तुम्हें कुछ और कहा था. लेकिन उस वक्त हम ऐसी जगह पर थे जहाँ तुम्हारा शांत होना ज़रूरी था. हम खुल कर बात नहीं कर सकते थे. लेकिन मैं तब भी जान गया था कि हमारे असली रिश्ते की डोर बार-बार तुम्हारा मन बदलेगी. लेकिन अब तुम इतना आगे बढ़ चुकी हो कि वापस नहीं जा सकती. इसलिए इसे एक्सेप्ट करना ही बेस्ट ऑप्शन है.”

जयसिंह ने आगे कहा,

“जब हम यहाँ से दिल्ली गए थे, तभी से… I started liking you… but I seriously thought… कि तुम मेरी बेटी हो और हमारे बीच वैसा कुछ नहीं हो सकता… लेकिन फिर जब मैंने तुम्हें क़रीब से जाना, तो मुझे लगा कि… we can be together… और तुम्हें भी पता है कि मैं बस तुम्हें इस सच्चाई को एक्सेप्ट करने को कह रहा हूँ. ताकि हम आगे बढ़ अच्छे से इंजॉय कर सकें.”

जयसिंह किसी चालाक बहेलिये की तरह गलती से जाल में आ बैठी चिड़िया को फाँसने में लगे थे. उन्होंने अपने भारी स्वर में कहा, जिसे वे अक्सर सीरियस बातों के लिए इस्तेमाल किया करते थे.

“जैसे तुम्हें मुझे इतना सब होने के बाद भी पापा कहना अच्छा लगता है वैसे ही मुझे भी तुम्हें अपनी डॉटर कहने पर अच्छा लगेगा ना?”

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उनका इतना कहना था कि मनिका तड़प उठी. उसके पापा ने दिल्ली जाते समय ही उसके बारे में ऐसा सोचना शुरू कर दिया था, यह बात अगर उसे कुछ समय पहले पता चलती तो शायद उसकी प्रतिक्रिया कुछ अलग होती. लेकिन अब तो यह जान कर भी वो उनकी चाहत में तड़पने लगी थी. जयसिंह की बात सही थी, उसे उन्हें ‘पापा’ कहने में मज़ा आता था. और जैसे ही उन्होंने कहा था कि वे उसे अपनी गर्लफ्रेंड नहीं डॉटर कहना चाहते हैं, मनिका के पूरे बदन में करंट सा दौड़ गया था.

उसे पूरी तरह से इस बात का एहसास हुआ कि वो अपने पापा के साथ इस तरह की नापाक रिलेशनशिप बना रही थी. और दूसरा यह ऑफिस एक जानी-पहचानी जगह थी, जहाँ उनका पूरा परिवार आता-जाता था, वहाँ ऐसी गंदी हरकतें करने का सोच कर ही उसकी आँखों में वासना का नशा सा छा गया था.

जयसिंह की लगाई फसल अब कटने को तैयार थी.

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“ओह पापा!” उसने मचलते हुए उनका आलिंगन किया, “You make me so mad!”
“हाहाहा… that’s my darling Mani…” जयसिंह बोले तो मनिका के रोम-रोम में एक स्पंदन सा होने लगा, “Ready for your special photoshoot?”
“Eh… papa!” मनिका सिसकी और घूम गई.

जयसिंह ने पीछे से उसे पकड़ लिया. मनिका ने सामने शीशे में देखा, तो उसे लगा कि वह उस पॉर्न साईट पर लगी तस्वीर को हू-ब-हू देख रही है. एक पक्के रंग का मर्द और उसके साथ एक जवान लड़की. फ़र्क़ सिर्फ़ इतना था कि यहाँ वो मर्द एक पिता था और लड़की उसकी बिगड़ैल बेटी.

जयसिंह ने पीछे से अपना मुँह उसके गाल के बग़ल में ला कर उसपर एक चुंबन दिया और फिर अपने दोनों हाथ छाती पर ले गए.

“आँऽऽऽऽ…” मनिका को जैसे एक झटका सा लगा.

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एक लड़की की छाती भी उसके होंठों की तरह होती है. जिसे छूने का अधिकार वह अपने जीवनकाल में बहुत कम लोगों को दिया करती है. ख़ास-तौर पर अपने पिता को तो कभी नहीं. सो जब जयसिंह ने उसके स्तनों को पकड़ा तो मनिका दहल उठी थी.

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मनिका को तो मानो साँस आना ही बंद हो गया था. उसने चेहरा झुका लिया था और उसके खुले बाल चेहरे के सामने आ गए थे.

जयसिंह ने कहा, “Look at me darling.”

जयसिंह अब हौले-हौले उसकी जवान छाती मसल रहे थे. और उसके कान में फुसफुसा रहे थे.

“उम्म… सच में यार मनि तुम तो बहुत जवान हो गई हो.”
“इह... पापा.” मनिका बोली, “क्या करते हो…”
“अपनी बेटी की जवानी चेक कर रहा हूँ.” जयसिंह मद भरे अन्दाज़ में बोले, “कैसा लग रहा है?”
“हाय पापा… this is so wrong papa.” उसने ढीले हाथों से उनके हाथों को अपने वक्ष से हटाने की नाकाम कोशिश की.
“उम्म…”

फिर जयसिंह उसके कान में कुछ ऐसा बोले कि मनिका को मानो साँप सूंघ गया.

“कितने बड़े कर लिए तुमने… हम्म… ये भी नहीं बताया पापा को… चलो अब दिखाओ मुझे…”
“नहींऽऽऽ पापा… प्लीज़ नोऽऽऽ” मनिका उनका आशय समझ कर बोली.
“हम्म… पर फिर पापा के लिए स्पेशल फ़ोटो-शूट कैसे करवाओगी…”

यह जान कर कि जयसिंह उसकी नंगी तस्वीरें खींचना चाहते हैं, मनिका उनकी गिरफ़्त से निकालने को हुई. लेकिन उनकी पकड़ काफ़ी मज़बूत थी. उन्होंने उसे जाने न दिया और उल्टे वापस अपनी तरफ़ घुमा लिया.

उनके चेहरे की नापाक मुस्कुराहट मनिका के कलेजे पर छुर्रियाँ चला रहीं थी.

जयसिंह ने उसे सामने से आलिंगन में भरते हुए उसके कान में कहा,

“मेरे साथ अकेले में अब तुम्हारा ड्रेस-कोड अलग होगा…”
“क… क्या पापाऽऽऽ?” मनिका थरथराई.

कुछ पल चुप रहने के बाद जयसिंह ने कहा,

“सिर्फ़ ब्रा-पैंटी और हील्स.”
“Whaaat!”
“Yes darling…”

जयसिंह ने उसका चेहरा उठा उस से नज़र मिलाते हुए कहा. उनकी आँखों में एक आदेश था.

फिर उन्होंने उसका गाल हौले से थपथपाया और बोले,

“तो चलो, अब उतारो…”

कह जयसिंह ने उसे छोड़ दिया. वे पीछे हो कर काउच पर बैठ गए और वो नया फ़ोन उठा कर कैमरा ऑन कर लिया.

“नहीं ना पापा… प्लीज़.” मनिका ने मिन्नत की.

जयसिंह उसका वीडियो बनाना शुरू कर चुके थे. उनकी बातें अब वीडियो में रिकॉर्ड होने लगी.

“उतारो ना डार्लिंग, तुम तो कहती थी कि पापा की हर बात मानोगी.”
“प्लीज़ पापा… ये मत करो ना… किसी को पता चल जाएगा.”
“कुछ नहीं होगा मनि… do as I a say… कपड़े उतारो… मैं चाहता हूँ कि पहली बार तुम अपने आप उतार के मुझे खुश करो.” जयसिंह ने खरखराती आवाज़ में कहा, “अगली बार से मैं अपने-आप उतार दिया करूँगा.”
“हाय पापा!”

जब जयसिंह ने देखा कि मनिका कपड़े उतारने में हिचक रही है तो वे उठ खड़े हुए और मनिका के पास गए.

“करना है कि नहीं?” उन्होंने थोड़ी तल्ख़ी से कहा.

मनिका उनका मूड चेंज भाँप गई, “पापा को ग़ुस्सा आ रहा है!”

“प्लीज़ ना पापा…” उसने एक आख़िरी बार मिन्नत की.

वैसे तो मनिका भी जानती थी कि एक ना एक दिन उनके बीच यह होना ही था. लेकिन जयसिंह के अचानक उसे इस तरह की स्थिति में ला देने ने उसे भयभीत कर दिया था. अगर वे होटल के किसी रूम में हौले-हौले उसे बहला कर नंगी करते तो शायद वह इतना ना-नुकुर नहीं करती. लेकिन जयसिंह की चाल तो यही थी, मनिका को हमेशा इस तरह से उत्साहित रखना कि वह एक आम रिलेशनशिप के बारे में सोच ही ना सके.

“कुछ नहीं होगा मनि… मैं कह रहा हूँ ना?”
“ये… येस…”
“हम्म… चलो…” कह जयसिंह एक कदम पीछे हट गए.

मनिका ने बहुत ही धीरे-धीरे अपनी छोटी सी टी-शर्ट को ऊपर करना शुरू किया. उसके क़रीब आते हुए जयसिंह ने फ़ोन वाला हाथ नीचे कर लिया था, लेकिन अब उन्होंने फिर से कैमरा ऑन कर लिया. मनिका कैमरा देखते ही एक पल के लिए ठिठक गई थी लेकिन जयसिंह ने हाथ से उसे कपड़े उतारते रहने का इशारा किया और काउच पर बैठ गए.

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Till now he was behaving nicely. But now he is exploiting his daughter by forcing her.
 

abhayincest

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Incest ka apna hi mja h jab beti apne baap ke sath sex kre or kisi ke sath na kre ek alg hi ehsash hota sukoon milta h baap ke land ko Manika g ab update kr bhi do story ko mt intjar krwao ...
 
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