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Incest बेटी की जवानी - बाप ने अपनी ही बेटी को पटाया - 🔥 Super Hot 🔥

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कहानी में अंग्रेज़ी संवाद अब देवनागरी की जगह लैटिन में अप्डेट किया गया है. साथ ही, कहानी के कुछ अध्याय डिलीट कर दिए गए हैं, उनकी जगह नए पोस्ट कर रही हूँ. पुराने पाठक शुरू से या फिर 'बुरा सपना' से आगे पढ़ें.

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abhayincest

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कहानी में अंग्रेज़ी संवाद अब देवनागरी की जगह लैटिन में अप्डेट किया गया है. साथ ही, कहानी के कुछ अध्याय डिलीट कर दिए गए हैं, उनकी जगह नए पोस्ट कर रही हूँ. पुराने पाठक शुरू से या फिर 'बुरा सपना' से आगे पढ़ें.

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19 - रात का नशा

मनिका पीछे हट कर फिर से अपनी जगह पर लेट गई थी.

जयसिंह ने लाइट बुझा कर नाईट-लैम्प जला दिया था. अब वे एक-दूसरे की तरफ करवट लिए सोने लगे. बाप-बेटी के बीच एक लुका-छिपी का खेल चल पड़ा था, कभी मनिका तो कभी जयसिंह आँख खोल कर एक-दूसरे को देख रहे थे. जब कभी उनकी आँखें साथ में खुल जाती थी तो दोनों झट से आँखें मींच लेते थे. पर उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान होती.

यूँ तो दिल्ली आने के बाद से मनिका और जयसिंह के बीच दुनियाँ-जहान की बातें हो चुकीं थी, लेकिन अभी तक उन्होंने अपने रिश्ते के दायरों का उल्लंघन नहीं किया था. हालाँकि कभी-कभी जयसिंह की चालाकी से उनके बीच की बातचीत ने कुछ रोचक मोड़ ज़रूर लिए थे. पर आज जिस तरह से जयसिंह ने बात घुमाते-घुमाते मनिका के सामने उनके रिश्ते की परिभाषा को बदल सा दिया था. उस से मनिका की सोच एक नया मोड़ लेने लगी थी. जयसिंह ने समाज को एक दीवार के रूप में पेश किया था, जिससे मनिका अशांत, और थोड़ी आतंकित हो गई थी.

वह लेटी-लेटी सोचने लगी,

"पापा भी कैसी अजीब बातें सोचते हैं… सबसे डिफरेंट… लड़कियों के बारे में… कि वो अपनी आज़ादी से रहें… सोसाइटी के बनाए हर रूल से उलट…! वैसे वे भी कुछ गलत तो नहीं कह रहे थे… I mean… अगर हम अपनी लाइफ़ अपने हिसाब से जीना चाहते हैं तो उससे सोसाइटी को क्यूँ दिक्कत होती है?"

उसे जयसिंह के कुछ तर्क सही लग रहे थे. वो अब आँखें मूँद सोच में पड़ गई,

"और पापा ने कहा कि उन फूहड़ लोगों का भी अपना लाइफ़ स्टाइल है वो चाहें मूवी में हूटिंग करें या कुछ और… पापा के हिसाब से बात तो तब गलत होगी जब वे किसी और को जान-बूझ कर परेशान करें या छेड़ें… और पापा ने सही कहा कि मैं भी मम्मी से बातें छुपाने लगी हूँ… हाँ क्योंकि वे हमेशा मुझसे चिढ़ती रहती हैं… पापा ही तो कहते हैं कि सब बातें सबको बताने की नहीं होती… मैंने भी तो यही सोचा था कि अगर मम्मी को पता चले कि हम यहाँ दिल्ली में ऐश कर रहे थे तो कितना बखेड़ा खड़ा हो जाएगा… जैसा मम्मी का स्वभाव है, हमें तो ज़िन्दगी भर ताने सुनने पड़ें शायद… और अगर..! अगर मम्मी को पता चले कि मैं पापा के सामने कैसे expose हो चुकी हूँ… वो भी दो-तीन बार… तो फिर तो गए समझो!"

जयसिंह की लगाई वैचारिक आग अब मनिका के मन में ज़ोर पकड़ती जा रही थी.

"कैसे हम दोनों इतने दिनों से एक ही रूम में रह रहे हैं और… वो अंडरगारमेंट्स वाली बात पर हुई लड़ाई… पापा ने कहा कि अगर उनकी जगह कोई और होता तो मैं शायद उतना ग़ुस्सा नहीं करती… क्या सच में? कभी किसी ने ऐसी बात तो कही नहीं है मुझसे… आखिर मूवीज़ में ये सब चलता है. पर पापा थे इसलिए मैंने इतना ग़ुस्सा किया… सुबह उनसे फिर से सॉरी कहूँगी… पापा कितने समझदार हैं और कितने कूल भी… उन्होंने कहा कि वे सच में मुझे एक अडल्ट की तरह ट्रीट करते हैं… हाँ वो तो है!"

मनिका ने करवट बदल ली.

–​

उधर जयसिंह लेटे हुए उसे देख रहे थे. उसके करवट बदलने पर उन्होंने अच्छे से आँखें खोल कर उसकी तरफ देखा था.

"आज तो पता नहीं क्या-क्या बोल गया मैं… पर कुतिया को ज़्यादा मौक़ा मिला नहीं मेरी बातें काटने का… साली के मन में पता नहीं क्या चल रहा होगा. कैसी मचकी थी छिनाल जब साली की जाँघ मेरे लंड से टकराई थी… पर फिर भी सब लग तो सही ही रहा है… वरना चुम्मा ना देती इतने आराम से… देखो कल कितना काम आता है ये ज्ञान…"

जयसिंह जानते थे कि आज उनके बीच जैसी बातें हुई थी वैसी आज से पंद्रह दिन पहले तक नामुमकिन थी. ये उनके रचे चक्रव्यूह का ही कमाल था कि मनिका अब उनके चंगुल में फंसती चली जा रही थी. आख़िरकार अपनी बेटी की पटाने की उनकी चाल कामयाब होने लगी थी. क्योंकि उन्होंने मनिका के साथ एक कदम आगे बढ़ने के बाद दो कदम पीछे भी खींचे थे. कभी वे मनिका को शर्मिंदगी के कगार पर पहुंचा देते थे और कभी खुद ही उसे आश्वस्त कर देते कि उनके बीच होनेवाली बातों में कुछ गलत नहीं है. जाने-अनजाने मनिका उनकी और ज्यादा कायल हो जाती थी.

वैसे भी 22 साल की मनिका जयसिंह जैसे मंजे हुए व्यापारी के साथ क्या होड़ कर सकती थी? उन्होंने देखा कि मनिका ने अपना हाथ उठा कर अपने नितम्ब पर रखा हुआ था और एक बार उसे हल्के से सहलाया था. उनके चेहरे पर एक लम्बी मुस्कान तैर गई.

–​

"और मम्मी ने मुझे आज तक इतने अच्छे से ट्रीट नहीं किया है… छोड़ो मम्मी की किसे ज़रूरत है?"

मनिका के विचारों की उथल-पुथल जारी थी.

"अगर उन्हें पता चले कि पापा और मैं एक ही रूम में रहते है… और पापा ने मेरी ब्रा और थोंग देख ली थी तो…! हाय! पापा ने कैसा सताया था… और मैंने जो उनका डिक… देख लिया? हाय रे!"
मनिका एक पल के लिए फिर से सिहर उठी.

"पापा बार-बार कहते हैं कि हमें घर पर सावधान रहना होगा… पर ये बात तो मैं वैसे भी किसी से शेयर नहीं कर सकती… कितना बड़ा है पापा का बिग ब्लैक कॉक…! हाय…!"

मनिका ने उस सेक्स फ़ोरम के पेज पर कुछ लड़कियों के कॉमेंट्स भी पढ़े थे. कुछ ने लिखा था कि बड़े डिक वाले मर्द उन्हें बहुत भाते हैं. उसके कान लाल हो गए.

"कैसे खिसिया जाते हैं जब उनको सताती हूँ मूवी वाली हिरोइनों के नाम पर… क्या उनके छोटे-छोटे कपड़े देख कर पापा को कैसा लगता होगा… क्या उनका डिक इरेक्ट…? हाय…क्या सोचने लगी मैं!"
उसने अपने विचारों को फिर से थामा.

"और बोले की मैं मम्मी से भी ज्यादा ख़ूबसूरत हूँ… तो क्या उनको इरेक्शन हुआ होगा मुझे देखने के… नहीं-नहीं वो तो पापा हैं मेरे ऐसा थोड़े ही सोचेंगे…! छीः यार मनिका क्या सोचे जा रही हो…!"
मनिका के मन में उलटे-सीधे विचारों के ज्वार उमड़ते जा रहे थे.

"पर पापा तो कहते हैं कि सब रिश्ते समाज ने बनाए हैं. मैंने भी पागलों की तरह उन्हें बता दिया कि सब मुझे उनकी गर्लफ्रेंड समझते हैं… कैसे मजाक बनाते हैं उस बात का भी वे… और दो-तीन बार तो मुझे डार्लिंग भी कह चुके हैं… मनिका डार्लिंग… ये तो मैंने सोचा ही नहीं था… घर जाने के बाद देखती हूँ कितना डार्लिंग-डार्लिंग करके बुलाते हैं मुझे… पर वो तो वे प्यार से कहते होंगे… हे भगवान मैं क्या ग़लत-सलत सोचती जा रही हूँ आज ये…?”

मनिका ने एक बार फिर अपने ख़यालों को विराम देने की कोशिश की पर विफल रही.

"और आज तो… goodnight kiss… मुझे तो एक बार लगा कि… he is going to kiss my lips… जैसा उस मूवी में था… उनकी पकड़ कितनी मजबूत है, चेहरा घुमा तक नहीं सकी थी मैं… उस दिन कॉलेज में भी तो उनकी बाँहों में… सबके सामने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया था… उह्ह… और जब हम साथ सोए थे काउच पर! कितनी स्वीटली नींद आई थी…"

जयसिंह की बातों से सम्मोहित मनिका को अचानक उनका उसकी गांड पर चपत लगाना याद आ गया और उसे अचानक वहाँ एक स्पंदन का एहसास होने लगा. इसीलिए उसने हाथ से वहाँ पर सहलाया था जहाँ उसके पिता ने उसे छुआ था. यही देख जयसिंह की बाँछें खिल उठी थीं.

–​

जयसिंह जानते थे कि आज मनिका इतनी जल्दी नहीं सो पाएगी सो वे देर तक सोने का नाटक करते रहे थे.

"आहा आज तो मजा आ गया! साली का दिमाग़ पलटने में अगर कामयाबी मिल जाती है तो उसके बाद तो कुतिया के बचने का सवाल ही पैदा नहीं होता… जल्दी से सो जाए तो थोड़ा मजा कर लूँ काफी दिन हो गए… उफ़्फ़… अब तो वापसी का वक़्त भी करीब आ गया है."

करीब दो घंटे तक जयसिंह ने कोई हरकत नहीं की. जब उन्हें लगा कि अब तो मनिका गहरी नींद सो चुकी होगी, वे उसकी तरफ़ घूमे.

मनिका बेड की लेफ़्ट साइड में लेटी थी. उसकी करवट फिर से उनकी तरफ हो चुकी थी. कमरे में आज नाईट-लैम्प की हल्की रौशनी फैली हुई थी. मनिका बेफिक्र नींद के आँचल में समाए हुई थी. एक पल के लिए उसके मासूम-ख़ूबसूरत चेहरे को देख जयसिंह को अपने इरादों पर शर्मिंदगी का एहसास हो आया. पर फिर हवस का राक्षस उन पर दोगुनी गति से सवार हो गया.

"रांड छिनाल कुतिया… छोटी-छोटी कच्छीयाँ पहनती है मेरे पैसों से! ऐश करती है मेरे पैसों से… और मजे लेगा कोई और? हँह!"

जयसिंह ने उसे पुकारा.

“मनिका!"

आज उन्होंने अपनी आवाज़ भी नीची नहीं की. मनिका सोती रही.

आज जयसिंह की हिमाक़त बढ़ चुकी थी. वे अब बेख़ौफ़ खिसक कर मनिका के करीब हो कर लेट गए. उन्होंने अपना हाथ उसके गाल पर रखा और सहलाने लगे. कुछ पल के बाद उन्होंने अपने हाथ का अँगूठा मनिका के गुलाबी होंठों पर रखा और उन्हें मसला. मनिका के रसीले होंठों को मसलते-मसलते उन्होंने अपना अँगूठा उसके मुँह में डाल दिया. मनिका के होंठों पर लगे लिपग्लॉस की ख़ुशबू उसकी साँसों के साथ बाहर आने लगी थी. जयसिंह की उत्तेजना बढ़ने लगी, उनका इरादा सिर्फ मजे लेने का नहीं था.

मनिका ने अपना दाहिना हाथ अपने सिर के नीचे रखा हुआ था और बायाँ हाथ मोड़ कर अपनी छाती के सामने बेड पर. जयसिंह ने बेड पर रखे उसके हाथ को धीरे-धीरे सहलाया. थोड़ा आश्वस्त होने पर वे खिसक कर मनिका के क़रीब आ गए और उसका हाथ उठा अपनी कमर पर रख लिया. दोनों के बीच अब सिर्फ कुछ ही इंच की दूरी थी. जयसिंह ने कुछ पल का विराम लिया. फिर उन्होंने अपना बायाँ हाथ धीरे-धीरे मनिका की कमर के नीचे घुसाना शुरू किया. कुछ पल की कोशिश के बाद उन्हें सफलता मिल गई और वे फिर थोड़ा रुक गए. उसके बाद वे अपना दाहिना हाथ मनिका की पीठ पर ले गए और उसके नीचे दबे अपने बाएँ हाथ से उसकी कमर को थाम लिया. इसके बावजूद मनिका ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. जयसिंह ने अब अपने बाजू कस मनिका को अपने से चिपटा लिया.

कुछ पल जयसिंह यूँ ही अपनी सोती हुई बेटी को बाँहों में लिए रहे, फिर एकदम से उसे अपने साथ खींचते हुए सीधे हो कर लेट गए. उनके ऐसा करते ही मनिका भी उनके साथ ही खिंच कर बेड पर उनकी साइड आ गई. इस दौरान मनिका जैसे ही थोड़ा ऊपर हुई थी उन्होंने उसके नीचे दब अपना हाथ ऊपर कर उसकी बगल में डाल लिया था. अब मनिका आधी उनकी बगल में और आधी उनकी छाती पर लगी हुई सो रही थी.

जयसिंह के इस कारनामे ने मनिका की नींद को थोड़ा कच्चा कर दिया था और वह थोड़ा हिलने-डुलने लगी. जयसिंह ने जड़वत: हो आँखें मींच ली ताकि उसके उठ जाने की स्थिति में बचा जा सके. लेकिन मनिका ने थोड़ा सा हिलने के बाद अपना सिर उनकी छाती पर टिकाया और अपनी एक टांग उठा कर उनकी जाँघ पर रख कर सोने लगी. जयसिंह को अपनी जाँघ से सटी अपनी बेटी की उभरी हुई योनि का आभास मिलने लगा और वे दहक उठे.

अब जयसिंह ने अपना दाहिना हाथ, जो अभी मनिका की पीठ पर था, उसे नीचे ले जा कर उसकी टी-शर्ट का छोर पकड़ा और ऊपर उठाने लगे. क्योंकि आज उनका एक हाथ मनिका के नीचे था, सो टी-शर्ट ऊपर करने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा. कुछ ही देर में वे अपनी बेटी की टी-शर्ट उसकी कमर से ऊपर कर उसकी पीठ तक उघाड़ चुके थे. पीछे से ऊपर होती टी-शर्ट आगे से भी ऊपर हो गई थी. मनिका की नाभि से ऊपर तक उसका बदन अब नग्न था.

जब जयसिंह को मनिका की टी-शर्ट के नीचे उसकी ब्रा का एहसास हुआ तो वे एक पल के लिए रुक गए. उनकी धड़कनें उनका साथ छोड़ने को हो रहीं थी. उन्होंने अब मनिका की टी-शर्ट को छोड़ा और धीरे-धीरे उसकी नंगी पीठ और कमर सहलाने लगे.

मनिका के नीचे दबे होने की वजह से वे अपना सिर उठा कर उसका नंगापन तो अच्छे से नहीं देख सकते थे, लेकिन अब उनके हाथ ही उनकी आँखें बन चुके थे. उन्होंने अब एक और दुस्साहसी कदम उठाते हुए, मनिका का लोअर भी नीचे करना शुरू कर दिया. लेकिन कुछ पल बाद उन्हें रुकना पड़ा क्योंकि लोअर मनिका के नीचे दबा हुआ था और उसने एक पैर भी मोड़ रखा था. फिर भी उन्होंने कुछ देर की कोशिश के बाद अपनी सोती हुई बेटी की गांड का ऊपरी हिस्सा उसके लोअर से बाहर निकाल ही लिया.

मनिका की सेक्सी थोंग पैंटी का इलास्टिक और उसके नितम्बों के बीच फंसा पैंटी का पतला सा पिछला भाग अब उघड़ चुके थे. जयसिंह हौले-हौले मनिका की गांड से लेकर पीठ तक हाथ चला रहे थे. मनिका के मखमली स्पर्श ने उनके लंड को तान दिया था और वह अब मनिका की जाँघ के नीचे दबा हुआ कसमसा रहा था.

जयसिंह ने अपने दाहिने हाथ को उनकी टांग पर रखी मनिका की जाँघ के नीचे डाला और अपने लंड को सीधा कर थोड़ा आज़ाद किया. वे अपना हाथ वापस निकालने लगे ही थे कि उनकी उत्तेजना चरम पर आ पहुँची. उन्होंने अपना हाथ बाहर न निकाल, मनिका की टांगों के बीच दे दिया और उसकी जवान योनि को छुआ. जयसिंह के बदन में मानो गरमाहट का एक सैलाब सा उठने लगा. मनिका की योनि उनके हाथ में किसी तपते अंगारे सी महसूस हो रही थी. वे आनंद से निढाल हो गए और बरबस ही अपनी बेटी की कसी हुई चूत को दबाने लगे.

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Woww very sexy actions.
 

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22 - खूबसूरत

कमरे में चुप्पी छाई थी.

मनिका के मन में रह-रह कर एक ही ख़याल चल रहा था.

“मेरी थोंग! क्या नहाने जाने से पहले वहाँ गिर गई थी?”

उसने किसी तरह अपने पिता के हाथ से वो छोटी सी पैंटी लेकर जल्दी से अपनी अटैची में रखे कपड़ों के बीच ठूँस दी थी. जयसिंह भी बिना कुछ बोले बिस्तर पर अपनी साइड जा बैठे थे.

कुछ पल बाद उन्हें आभास हुआ कि मनिका उनसे मुख़ातिब हुई है. उन्होंने उसकी तरफ़ देखा.

“पापा…” मनिका ने रुँधे गले से कहा और सिसक उठी.

जयसिंह को तो इसी मौक़े का इंतज़ार था.

“अरे क्या हुआ..?”

उन्होंने आश्चर्य और चिंता का मिलाजुला भाव दिखाया और झट खिसक कर मनिका के पास आ गए.

“पापा… वो… सॉरी.” मनिका के मुँह से इतना ही निकला.
“अरे क्या बात हुई… बताओ मुझे.” जयसिंह ने उसकी ठुड्डी पकड़ मुँह अपनी ओर करते हुए पूछा.
“वो पापा… आपके सामने जितना डीसेंट होने की कोशिश करती हूँ… पता नहीं उतना ही उल्टा हो जाता है… अभी वो मेरी अंडरवियर… आपके सामने यूँ…” कहते हुए मनिका फफक उठी.
“ओह मनिका… स्वीटहार्ट… ऐसे मत सोचो…” कहते हुए जयसिंह ने मनिका की पीठ सहलाई.
“पर पापाऽऽऽ… आप सोच रहे होंगे कैसी बिगड़ैल हूँ मैं… आँऽऽऽऽ…” मनिका रोने लगी.

जयसिंह ने मौक़ा न गँवाते हुए उसे पकड़ा और अपने बलिष्ठ बाजुओं से खींच कर अपनी छाती से लगा लिया. भावुक मनिका उनकी कुचेष्टा कहाँ समझ पाती.

“अरे मैं बिलकुल ऐसा नहीं सोचता… पगली हो क्या तुम…”
“आँऽऽऽऽ…” करते हुए मनिका का दर्द और ग्लानि बहने लगे.

कुछ पल बाद वो थोड़ा शांत हुई. उसे अपनी स्थिति का भी थोड़ा आभास हुआ. पापा उसे बाँहों में लिए थे. पर उनसे अलग कैसे हो? तभी जयसिंह बोले,

“अच्छा सुनो मेरी बात… हूँ?”
“आँऽऽऽऽ…” मनिका की फिर से रुलाई फूट पड़ी.

लेकिन इस बार जयसिंह ने उसके गालों से आँसू पोंछते हुए उसे पुचकारा और फिर से कहा,
“मनिका… पापा की बात नहीं सुनोगी?”
“ज… ज… जी प… पापा…” मनिका सिसकते हुए बोली.
“मनिका, मैंने बिलकुल वैसा नहीं सोचा डार्लिंग, जैसा तुम्हें लग रहा है…”
“सस्स… सच पापा..?”
“हाँ, सच और मुच दोनों…” जयसिंह ने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा.

वे उसे आश्वस्त करने के लिए मुस्का भी दिए.

“पर पापा… मैं ये सब जानबूझकर नहीं करती… please believe me…” मनिका ने फिर मिन्नत की.
“मनिका… मैं कह रहा हूँ ना… अच्छा पहले चुप हो जाओ… फिर मेरी बात सुनो.”
“जी… जी पापा.” मनिका ने कांपते हाथों से आँसू पोंछे.
“पानी पीना है? पानी दूँ आपको?” जयसिंह उसकी पीठ और कमर पर हाथ फेरते हुए बोले.
“N… no papa…”
“Okay, then listen to me… okay?”
“हम्म…” मनिका ने हामी में सिर हिलाया.
“Manika.. we are both adults… और जिन बातों को लेकर तुम इतना परेशान हो रही हो… वो सब नॉर्मल है… हम्म?”
“पर पापा… आपके सामने यूँ… मुझे बुरा लग रहा है…”
“मनिका… कल भी मैंने कहा था… कि तुम हमारे समाज के बनाए रिश्ते के बारे में सोच-सोच कर परेशान होती हो…”
“ऊह… जी पापा…”
“But what are we before being a father and daughter?”
“W… what papa?” मनिका उनका तात्पर्य नहीं समझी थी.
“A man and a woman… yes?” जयसिंह बोले.
“Y… yes…”
“And we are staying together, right?”
“जी…”
“तो हम अपनी ज़रूरतों को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते… हम्म?”

मनिका कुछ नहीं बोली.

“हमारे शरीर की बनावट अलग-अलग हैं… उनके कपड़े अलग-अलग हैं… उनकी ज़रूरतें अलग-अलग हैं… और यह समझ हम दोनों को है. है कि नहीं?”
“Yes… s.. papa…”
“तो फिर इन बातों को लेकर बुरा महसूस नहीं करो… हम्म. मैं फिर कहता हूँ, मैंने तुम्हें बिलकुल बिगड़ैल या ऐसा कुछ नहीं समझ… okay?”
“ज… जी पापा…” मनिका ने सिर झुका कर कहा.

जयसिंह ने फिर से उसका चेहरा पकड़ कर उठाया और बोले,
“Then smile for me darling… ऐसे उदासी नहीं चलेगी पापा के साथ…”

मनिका ने उनका आदेश मानते हुए एक शर्मीली सी मुस्कान बिखेर दी और फिर उनके कंधे में चेहरा छुपा कर बोली,
“Oh papa… I love you so much…”
“I love you too darling… अब रोना नहीं है… okay?”
“Yes papa…” मनिका ने गिली आँखें टिमटिमाईं.

फिर जयसिंह ने मनिका को अपनी गिरफ़्त से आज़ाद किया. मनिका थोड़ा पीछे होके बैठ गई. जयसिंह भी अपनी साइड पर जा कर बेड से टेक लगा कर बैठ गए और मनिका की तरफ़ देखा. उनकी नज़र मिली तो जयसिंह ने उसे पास आ जाने का इशारा किया.

मनिका उनके क़रीब आ कर उनसे सट कर लेट गई. एक पल के लिए उसके मन में पिछली रात अपने पिता से लिपट कर सोने वाला दृश्य घूम गया था, लेकिन उसने उसे नज़रंदाज़ कर दिया.

“मुझे लगा पता नहीं क्या हो गया… ऐसे कोई रोता है भला… हम्म?” जयसिंह ने उसके बालों में हाथ फिराते हुए कहा.
“ऊँह… पापा…” मनिका ने सिर हिला कर ना कहा.
“मैं देख रहा था सुबह से चुप-चुप हो… यही चल रहा था क्या सुबह से दिमाग़ में?”
“Oh papa! You noticed?” मनिका ने मुँह उठा उन्हें प्यार से देखते हुए कहा.
“Yes darling.”

उनके ऐसा कहने पर मनिका ने उनके बाजू में चेहरा रगड़ कर नेह जताया.

“वो पापा… मुझे बुरा लग रहा था… ऐसा दो-तीन बार हो गया ना… and I have grown up now… so…” मनिका ने बात अधूरी छोड़ दी.
“Hmm… it’s okay Manika… I am also a grown up… hmm?”
“Yes papa… but I thought… may be… आप सोचोगे कि इस लड़की को तो बिलकुल भी शरम नहीं है…”
“हाहाहा… अच्छा है शरम नहीं है… ज़्यादा शर्मीली लड़की किस काम की…”
“हाहा… पापा… आप तो ना मेरी टांग खींचते रहते हो…” मनिका ने उन्हें हल्का सा धक्का देते हुए कहा.
“टांग क्या मैं तो तुम्हें पूरा ही खींच लूँ…" कहते हुए जयसिंह ने मनिका को थोड़ा ज़ोर से भींचा.
“हेहे पापा…” मनिका का मन हल्का हो चला था, उसने अब थोड़ा खुल कर कहा, “सच में पापा… एक आप ही इतने कूल हो… वरना लोग तो मुझे बिगड़ैल ही समझते…”
“वो तो मैंने तुमसे कहा ही था… कि लोगों के सहारे चलोगी तो हर वक्त सही-ग़लत के फेर में ही रहोगी… just enjoy yourself darling… बाक़ी मैं हूँ ना तुम्हारे साथ…”

मनिका के मन में अचानक एक बात आई.

“पापा, एक बात पूछूँ?”
“हम्म.”
“आजकल आप मुझे मनिका कहकर बुलाते हो… पहले घर पर तो आप मनी कहते थे… why?”
“Well… बस ऐसे ही… तुम्हारा नाम मनिका है इसलिए…” जयसिंह इस सवाल की आशा नहीं कर रहे थे.

लेकिन उनके हरामी मन ने जवाब बुनना शुरू कर दिया था.

“बताओ ना पापा… you are hiding something.”
“अरे कुछ बात नहीं है…” जयसिंह की आवाज़ से पता चल रहा था कि वे मनिका को उकसा रहे हैं.
“No papa… tell me… जाओ मैं आपसे बात नहीं करती…”
“अच्छा भई…” जयसिंह बोले.
“तो बताओ.” मनिका नख़रे से बोली.
“Well… ऐसा इसीलिए है क्यूँकि... जैसा तुमने कहा... you have grown up so much… you know?"
"व... वो कैसे पापा?"
"तुम्हें याद है यहाँ आने से पहले तुम्हारी मधु से लड़ाई हुई थी और उस रात हम यहाँ आकर रुके थे…”
“हाँ… तो..?”
“तो… मुझे कुछ-कुछ एहसास हुआ कि… तुम अब बड़ी हो गई हो...”

उनकी आवाज़ में एक बात छिपी थी.

मनिका को अभी तक जयसिंह की बातें मजाक लग रहीं थी. लेकिन जब उन्होंने उस पहली रात का ज़िक्र किया तो उसे अपने पिता का इशारा समझते देर ना लगी. वो चुप रही.

"क्या हुआ?" जयसिंह ने मनिका का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.
"कुछ नहीं…" मनिका ने हौले से कहा.

एक ही पल में पासा पलट गया था और उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई.

"पापा ने सब नोटिस किया था मतलब… Oh God!”

मनिका और जयसिंह के बीच चुप्पी छा गई थी.

कुछ पल बीतने के बाद मनिका रुक ना सकी और भर्राई आवाज में बोली,
“Papa, I am sorry!”
"अरे तुम फिर वही सब बोलने लगी. मेरी बात तो सुनो.” जयसिंह ने उसे सहलाते हुए कहा.
"वो… वो पापा उस रात है ना मुझे ध्यान नहीं रहा… वो मैं अपने घर वाले कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गई थी और फिर… फिर पहले वाली ड्रेस शॉवर में भीग गई सो… I had to wear those clothes and come out." उसने उन्हें बताया.

फिर मनिका ने एक और दलील दी,
“तब भी मैंने सोचा था की आप क्या सोचोगे… कि मैं कैसी बिगड़ैल हूँ… but the way you reacted, I thought you were embarrassed by my behaviour… तभी आपने मुझे डांटा नहीं… you know…”
"अरे! पागल लड़की हो तुम…" जयसिंह ने मनिका का चेहरा ऊपर उठाते हुए कहा.
"पापा?"

मनिका की नज़र में अचरज था. जयसिंह ने उसके चेहरे से उसके मन की बात पढ़ ली थी.

"तुम्हें लगा कि मैं तुम्हें डांटने वाला हूँ?" मनिका की चुप्पी का फायदा उठा कर जयसिंह बोले.
"हाँ… मुझे लगा आप सोचोगे कि मम्मी सही कह रही थी कि मैं कपड़ों का ध्यान नहीं रखती." मनिका ने बताया.

जयसिंह धीमे-धीमे बोलने लगे ताकि मनिका को पता रहे कि वे मजाक नहीं कर रहे.

“अब मेरी बात सुनो… तुम्हें तो शुक्रगुजार होना चाहिए कि तुमने वो ड्रेस पहनी…”
"क… क्या मतलब पापा?" मनिका के कानों में जयसिंह की आवाज़ गूँज सी रही थी.
“When I realised that you have grown up so much…”

इस बार मनिका उनके आशय से शरमा गई.

सो जयसिंह ने शब्द-जाल बुनना शुरू किया और आगे बोले,
“तभी मुझे लगा कि… I should treat you like an adult, confident girl… न कि तुम्हारी मम्मी की तरह… so I started calling you Manika… you know… ना कि किसी बच्ची की तरह 'मनी' जो सब तुम्हें घर पे बुलाते हैं...”
"ओह…" मनिका ने हौले से कहा.
“तभी तो मैंने तुमसे इंटर्व्यू कैंसिल होने के बाद यहाँ रुकने के लिए भी कहा… because I thought… कि तुम इतना जल्दी वापस नहीं जाना चाहोगी." वे बोले.

जब मनिका चुप रही तो जयसिंह ने उसे कुरेदते हुए पूछा,
“What happened sweetheart?”
"कुछ नहीं ना पापा. I am so embarrassed… एक तो आप मेरा इतना ख़याल रखते हो… and I keep comparing you with mom… और फिर वो आपके सामने ऐसे… I mean… वो ड्रेस थोड़ा… you know… indecent… था ना?"

मनिका ने अंत में आते-आते अपने जवाब को सवाल बना दिया था और एक पल जयसिंह से नज़र मिलाई थी.

"ओह मनिका यार! You are embarrassed again… I am admiring you here… अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ… look at me…"
"जी…" मनिका ने उन्हें देखते हुए कहा.
"देखो, तुम फिर हमारे रिश्ते के बारे में सोचने लगी हो ना?
“जी… "
"पर मैंने तो तुम्हें सपोर्ट ही किया था… did I make you feel uncomfortable?"
“No papa… but…" मनिका से दो शब्द मुश्किल से निकले.
“But what Manika? क्या मनिका?" जयसिंह बोले, "तुम इतनी ख़ूबसूरत लग रही थी… that’s not a crime… and I admired your beauty…"
“But I am your daughter… papa…”
“I know, I know… मुझे पता है… but you are also a young adult woman… and I am a man… right?”
“Yes papa.”
“अब तुम ये सोचोगी कि सोसाइटी-समाज क्या कहेगा… तो जैसा मैं पहले कह चुका हूँ… you cannot understand what I am trying to say.”

मनिका चुप रही.

“अरे भई मुझे तो बहुत अच्छा लगा कि मेरी मनिका इतनी ब्यूटीफुल हो गई है… हम्म?" उसके पिता ने उसका गाल सहलाते हुए कहा.

मनिका के झेंप भरे चेहरे पर एक पल के लिए छोटी सी मुस्कान आई और चली गई थी.

–​
Monica is enjoying talking to father.
 

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22 - खूबसूरत

कमरे में चुप्पी छाई थी.

मनिका के मन में रह-रह कर एक ही ख़याल चल रहा था.

“मेरी थोंग! क्या नहाने जाने से पहले वहाँ गिर गई थी?”

उसने किसी तरह अपने पिता के हाथ से वो छोटी सी पैंटी लेकर जल्दी से अपनी अटैची में रखे कपड़ों के बीच ठूँस दी थी. जयसिंह भी बिना कुछ बोले बिस्तर पर अपनी साइड जा बैठे थे.

कुछ पल बाद उन्हें आभास हुआ कि मनिका उनसे मुख़ातिब हुई है. उन्होंने उसकी तरफ़ देखा.

“पापा…” मनिका ने रुँधे गले से कहा और सिसक उठी.

जयसिंह को तो इसी मौक़े का इंतज़ार था.

“अरे क्या हुआ..?”

उन्होंने आश्चर्य और चिंता का मिलाजुला भाव दिखाया और झट खिसक कर मनिका के पास आ गए.

“पापा… वो… सॉरी.” मनिका के मुँह से इतना ही निकला.
“अरे क्या बात हुई… बताओ मुझे.” जयसिंह ने उसकी ठुड्डी पकड़ मुँह अपनी ओर करते हुए पूछा.
“वो पापा… आपके सामने जितना डीसेंट होने की कोशिश करती हूँ… पता नहीं उतना ही उल्टा हो जाता है… अभी वो मेरी अंडरवियर… आपके सामने यूँ…” कहते हुए मनिका फफक उठी.
“ओह मनिका… स्वीटहार्ट… ऐसे मत सोचो…” कहते हुए जयसिंह ने मनिका की पीठ सहलाई.
“पर पापाऽऽऽ… आप सोच रहे होंगे कैसी बिगड़ैल हूँ मैं… आँऽऽऽऽ…” मनिका रोने लगी.

जयसिंह ने मौक़ा न गँवाते हुए उसे पकड़ा और अपने बलिष्ठ बाजुओं से खींच कर अपनी छाती से लगा लिया. भावुक मनिका उनकी कुचेष्टा कहाँ समझ पाती.

“अरे मैं बिलकुल ऐसा नहीं सोचता… पगली हो क्या तुम…”
“आँऽऽऽऽ…” करते हुए मनिका का दर्द और ग्लानि बहने लगे.

कुछ पल बाद वो थोड़ा शांत हुई. उसे अपनी स्थिति का भी थोड़ा आभास हुआ. पापा उसे बाँहों में लिए थे. पर उनसे अलग कैसे हो? तभी जयसिंह बोले,

“अच्छा सुनो मेरी बात… हूँ?”
“आँऽऽऽऽ…” मनिका की फिर से रुलाई फूट पड़ी.

लेकिन इस बार जयसिंह ने उसके गालों से आँसू पोंछते हुए उसे पुचकारा और फिर से कहा,
“मनिका… पापा की बात नहीं सुनोगी?”
“ज… ज… जी प… पापा…” मनिका सिसकते हुए बोली.
“मनिका, मैंने बिलकुल वैसा नहीं सोचा डार्लिंग, जैसा तुम्हें लग रहा है…”
“सस्स… सच पापा..?”
“हाँ, सच और मुच दोनों…” जयसिंह ने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा.

वे उसे आश्वस्त करने के लिए मुस्का भी दिए.

“पर पापा… मैं ये सब जानबूझकर नहीं करती… please believe me…” मनिका ने फिर मिन्नत की.
“मनिका… मैं कह रहा हूँ ना… अच्छा पहले चुप हो जाओ… फिर मेरी बात सुनो.”
“जी… जी पापा.” मनिका ने कांपते हाथों से आँसू पोंछे.
“पानी पीना है? पानी दूँ आपको?” जयसिंह उसकी पीठ और कमर पर हाथ फेरते हुए बोले.
“N… no papa…”
“Okay, then listen to me… okay?”
“हम्म…” मनिका ने हामी में सिर हिलाया.
“Manika.. we are both adults… और जिन बातों को लेकर तुम इतना परेशान हो रही हो… वो सब नॉर्मल है… हम्म?”
“पर पापा… आपके सामने यूँ… मुझे बुरा लग रहा है…”
“मनिका… कल भी मैंने कहा था… कि तुम हमारे समाज के बनाए रिश्ते के बारे में सोच-सोच कर परेशान होती हो…”
“ऊह… जी पापा…”
“But what are we before being a father and daughter?”
“W… what papa?” मनिका उनका तात्पर्य नहीं समझी थी.
“A man and a woman… yes?” जयसिंह बोले.
“Y… yes…”
“And we are staying together, right?”
“जी…”
“तो हम अपनी ज़रूरतों को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते… हम्म?”

मनिका कुछ नहीं बोली.

“हमारे शरीर की बनावट अलग-अलग हैं… उनके कपड़े अलग-अलग हैं… उनकी ज़रूरतें अलग-अलग हैं… और यह समझ हम दोनों को है. है कि नहीं?”
“Yes… s.. papa…”
“तो फिर इन बातों को लेकर बुरा महसूस नहीं करो… हम्म. मैं फिर कहता हूँ, मैंने तुम्हें बिलकुल बिगड़ैल या ऐसा कुछ नहीं समझ… okay?”
“ज… जी पापा…” मनिका ने सिर झुका कर कहा.

जयसिंह ने फिर से उसका चेहरा पकड़ कर उठाया और बोले,
“Then smile for me darling… ऐसे उदासी नहीं चलेगी पापा के साथ…”

मनिका ने उनका आदेश मानते हुए एक शर्मीली सी मुस्कान बिखेर दी और फिर उनके कंधे में चेहरा छुपा कर बोली,
“Oh papa… I love you so much…”
“I love you too darling… अब रोना नहीं है… okay?”
“Yes papa…” मनिका ने गिली आँखें टिमटिमाईं.

फिर जयसिंह ने मनिका को अपनी गिरफ़्त से आज़ाद किया. मनिका थोड़ा पीछे होके बैठ गई. जयसिंह भी अपनी साइड पर जा कर बेड से टेक लगा कर बैठ गए और मनिका की तरफ़ देखा. उनकी नज़र मिली तो जयसिंह ने उसे पास आ जाने का इशारा किया.

मनिका उनके क़रीब आ कर उनसे सट कर लेट गई. एक पल के लिए उसके मन में पिछली रात अपने पिता से लिपट कर सोने वाला दृश्य घूम गया था, लेकिन उसने उसे नज़रंदाज़ कर दिया.

“मुझे लगा पता नहीं क्या हो गया… ऐसे कोई रोता है भला… हम्म?” जयसिंह ने उसके बालों में हाथ फिराते हुए कहा.
“ऊँह… पापा…” मनिका ने सिर हिला कर ना कहा.
“मैं देख रहा था सुबह से चुप-चुप हो… यही चल रहा था क्या सुबह से दिमाग़ में?”
“Oh papa! You noticed?” मनिका ने मुँह उठा उन्हें प्यार से देखते हुए कहा.
“Yes darling.”

उनके ऐसा कहने पर मनिका ने उनके बाजू में चेहरा रगड़ कर नेह जताया.

“वो पापा… मुझे बुरा लग रहा था… ऐसा दो-तीन बार हो गया ना… and I have grown up now… so…” मनिका ने बात अधूरी छोड़ दी.
“Hmm… it’s okay Manika… I am also a grown up… hmm?”
“Yes papa… but I thought… may be… आप सोचोगे कि इस लड़की को तो बिलकुल भी शरम नहीं है…”
“हाहाहा… अच्छा है शरम नहीं है… ज़्यादा शर्मीली लड़की किस काम की…”
“हाहा… पापा… आप तो ना मेरी टांग खींचते रहते हो…” मनिका ने उन्हें हल्का सा धक्का देते हुए कहा.
“टांग क्या मैं तो तुम्हें पूरा ही खींच लूँ…" कहते हुए जयसिंह ने मनिका को थोड़ा ज़ोर से भींचा.
“हेहे पापा…” मनिका का मन हल्का हो चला था, उसने अब थोड़ा खुल कर कहा, “सच में पापा… एक आप ही इतने कूल हो… वरना लोग तो मुझे बिगड़ैल ही समझते…”
“वो तो मैंने तुमसे कहा ही था… कि लोगों के सहारे चलोगी तो हर वक्त सही-ग़लत के फेर में ही रहोगी… just enjoy yourself darling… बाक़ी मैं हूँ ना तुम्हारे साथ…”

मनिका के मन में अचानक एक बात आई.

“पापा, एक बात पूछूँ?”
“हम्म.”
“आजकल आप मुझे मनिका कहकर बुलाते हो… पहले घर पर तो आप मनी कहते थे… why?”
“Well… बस ऐसे ही… तुम्हारा नाम मनिका है इसलिए…” जयसिंह इस सवाल की आशा नहीं कर रहे थे.

लेकिन उनके हरामी मन ने जवाब बुनना शुरू कर दिया था.

“बताओ ना पापा… you are hiding something.”
“अरे कुछ बात नहीं है…” जयसिंह की आवाज़ से पता चल रहा था कि वे मनिका को उकसा रहे हैं.
“No papa… tell me… जाओ मैं आपसे बात नहीं करती…”
“अच्छा भई…” जयसिंह बोले.
“तो बताओ.” मनिका नख़रे से बोली.
“Well… ऐसा इसीलिए है क्यूँकि... जैसा तुमने कहा... you have grown up so much… you know?"
"व... वो कैसे पापा?"
"तुम्हें याद है यहाँ आने से पहले तुम्हारी मधु से लड़ाई हुई थी और उस रात हम यहाँ आकर रुके थे…”
“हाँ… तो..?”
“तो… मुझे कुछ-कुछ एहसास हुआ कि… तुम अब बड़ी हो गई हो...”

उनकी आवाज़ में एक बात छिपी थी.

मनिका को अभी तक जयसिंह की बातें मजाक लग रहीं थी. लेकिन जब उन्होंने उस पहली रात का ज़िक्र किया तो उसे अपने पिता का इशारा समझते देर ना लगी. वो चुप रही.

"क्या हुआ?" जयसिंह ने मनिका का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.
"कुछ नहीं…" मनिका ने हौले से कहा.

एक ही पल में पासा पलट गया था और उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई.

"पापा ने सब नोटिस किया था मतलब… Oh God!”

मनिका और जयसिंह के बीच चुप्पी छा गई थी.

कुछ पल बीतने के बाद मनिका रुक ना सकी और भर्राई आवाज में बोली,
“Papa, I am sorry!”
"अरे तुम फिर वही सब बोलने लगी. मेरी बात तो सुनो.” जयसिंह ने उसे सहलाते हुए कहा.
"वो… वो पापा उस रात है ना मुझे ध्यान नहीं रहा… वो मैं अपने घर वाले कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गई थी और फिर… फिर पहले वाली ड्रेस शॉवर में भीग गई सो… I had to wear those clothes and come out." उसने उन्हें बताया.

फिर मनिका ने एक और दलील दी,
“तब भी मैंने सोचा था की आप क्या सोचोगे… कि मैं कैसी बिगड़ैल हूँ… but the way you reacted, I thought you were embarrassed by my behaviour… तभी आपने मुझे डांटा नहीं… you know…”
"अरे! पागल लड़की हो तुम…" जयसिंह ने मनिका का चेहरा ऊपर उठाते हुए कहा.
"पापा?"

मनिका की नज़र में अचरज था. जयसिंह ने उसके चेहरे से उसके मन की बात पढ़ ली थी.

"तुम्हें लगा कि मैं तुम्हें डांटने वाला हूँ?" मनिका की चुप्पी का फायदा उठा कर जयसिंह बोले.
"हाँ… मुझे लगा आप सोचोगे कि मम्मी सही कह रही थी कि मैं कपड़ों का ध्यान नहीं रखती." मनिका ने बताया.

जयसिंह धीमे-धीमे बोलने लगे ताकि मनिका को पता रहे कि वे मजाक नहीं कर रहे.

“अब मेरी बात सुनो… तुम्हें तो शुक्रगुजार होना चाहिए कि तुमने वो ड्रेस पहनी…”
"क… क्या मतलब पापा?" मनिका के कानों में जयसिंह की आवाज़ गूँज सी रही थी.
“When I realised that you have grown up so much…”

इस बार मनिका उनके आशय से शरमा गई.

सो जयसिंह ने शब्द-जाल बुनना शुरू किया और आगे बोले,
“तभी मुझे लगा कि… I should treat you like an adult, confident girl… न कि तुम्हारी मम्मी की तरह… so I started calling you Manika… you know… ना कि किसी बच्ची की तरह 'मनी' जो सब तुम्हें घर पे बुलाते हैं...”
"ओह…" मनिका ने हौले से कहा.
“तभी तो मैंने तुमसे इंटर्व्यू कैंसिल होने के बाद यहाँ रुकने के लिए भी कहा… because I thought… कि तुम इतना जल्दी वापस नहीं जाना चाहोगी." वे बोले.

जब मनिका चुप रही तो जयसिंह ने उसे कुरेदते हुए पूछा,
“What happened sweetheart?”
"कुछ नहीं ना पापा. I am so embarrassed… एक तो आप मेरा इतना ख़याल रखते हो… and I keep comparing you with mom… और फिर वो आपके सामने ऐसे… I mean… वो ड्रेस थोड़ा… you know… indecent… था ना?"

मनिका ने अंत में आते-आते अपने जवाब को सवाल बना दिया था और एक पल जयसिंह से नज़र मिलाई थी.

"ओह मनिका यार! You are embarrassed again… I am admiring you here… अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ… look at me…"
"जी…" मनिका ने उन्हें देखते हुए कहा.
"देखो, तुम फिर हमारे रिश्ते के बारे में सोचने लगी हो ना?
“जी… "
"पर मैंने तो तुम्हें सपोर्ट ही किया था… did I make you feel uncomfortable?"
“No papa… but…" मनिका से दो शब्द मुश्किल से निकले.
“But what Manika? क्या मनिका?" जयसिंह बोले, "तुम इतनी ख़ूबसूरत लग रही थी… that’s not a crime… and I admired your beauty…"
“But I am your daughter… papa…”
“I know, I know… मुझे पता है… but you are also a young adult woman… and I am a man… right?”
“Yes papa.”
“अब तुम ये सोचोगी कि सोसाइटी-समाज क्या कहेगा… तो जैसा मैं पहले कह चुका हूँ… you cannot understand what I am trying to say.”

मनिका चुप रही.

“अरे भई मुझे तो बहुत अच्छा लगा कि मेरी मनिका इतनी ब्यूटीफुल हो गई है… हम्म?" उसके पिता ने उसका गाल सहलाते हुए कहा.

मनिका के झेंप भरे चेहरे पर एक पल के लिए छोटी सी मुस्कान आई और चली गई थी.

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Monica is enjoying talking to father.
23 - पापा

कुछ देर बाद मनिका ने हौले से हिल कर अपने पिता से कहा कि वे आराम से सो जाएँ. जयसिंह ने भी उसे जाने दिया.

मनिका बेड पर अपनी साइड आ कर लेट गई. उसने करवट दूसरी तरफ़ कर रखी थी.

“हाय! पापा ने उस रात मुझे नोटिस किया था… शॉर्ट्स में… पर कुछ कहा नहीं था ताकि मुझे बुरा ना लग जाए… कितने अच्छे है पापा… पर कितनी तारीफ कर रहे थे अभी कि… I was looking very beautiful… हाय, सब कुछ देख लिया था उन्होंने सुबह-सुबह मतलब… शॉर्ट्स तो पूरी ऊपर हुई पड़ी थी… he saw my naked bums… तो क्या उनका डिक इरेक्ट हुआ था… नहीं! Oh God!”

उसका ये सोचना हुआ कि उसे अपने पीछे जयसिंह के होने का एहसास हुआ. उसका दिल जैसे थम गया. “पापा क्या कर रहे हैं?”

जयसिंह ने पीछे से उसके साथ सटकर उसके गाल पर एक किस्स करते हुए कहा,
“I forgot our goodnight kiss… good night darling.”
“Oh papa… good night…” मनिका सिहरते हुए बोली.

जयसिंह ने अब उसे अपने आग़ोश में लेते हुए अपना गाल आगे कर दिया. मनिका ने भी हौले से उनके गाल पर पप्पी कर दी,

‘पुच्च’

फिर उसका चेहरा मोहरा सब सफ़ेद पड़ गए.

जयसिंह उसे छोड़ पीछे होने लगे थे, लेकिन पीछे होने से पहले उन्होंने धीरे से अपना अधोभाग आगे किया और हौले से मनिका की गांड पर अपना खड़ा लंड गड़ा दिया.

“आह!” मनिका के मुँह से एक मादक सी आ निकली.

तब तक जयसिंह पीछे हो कर सो चुके थे, लेकिन वो एक क्षणिक एहसास जो उन्होंने दिया था, उसने मनिका को फिर से उस अंधेरी दुनिया में धकेल दिया था जहाँ से निकलने के वो लाख जतन कर रही थी.

“हाय! क्या वो… पापा का डिक था… हाय… भगवान… पापा ने पीछे से हग किया था मुझे… और उनका वो… बिग ब्लैक कॉक… मेरे बम्स पर लग गया…”

उसने अपने आप को भींच कर उस एहसास को झटकना चाहा, लेकिन उसकी गांड से लेकर उसकी योनि में एक तरंग दौड़ रही थी. कैसा एहसास था ये?

“आज फिर देख लिया था उनका डिक मैंने… हाय कैसे लटकता है… कितना बड़ा है… सच में… उस पॉर्न साइट वाले आदमी जैसा है… तो क्या मर्दों का डिक बाक़ी जनों से बड़ा होता है? उस आदमी का भी पूरे टाइम इरेक्ट ही था… और पापा का भी… कैसे पैंट में रखते होंगे… इतना बड़ा…”

सोचते-सोचते मनिका के कानों में सीटी बजने लगी थी.

“पापा बोले कि… he treats me like a grown up girl… तभी मुझे मनिका कहते हैं… बोल रहे थे हमारी बॉडी की ज़रूरतें अलग-अलग है… and he understands that… सो मैं शरम ना करूँ… पर वो मेरे पापा है… शरम तो आएगी ही ना… he says… सोसाइटी के लिए हम फादर और डॉटर हैं… लेकिन… we are also a man and woman… and he admires me like that… हाय… I also admire him so much… काश पापा जैसा कोई बॉयफ़्रेंड मिल जाता… बड़े डिक वाला… हाय… नहीं-नहीं… उनके जैसा अच्छा…”

मनिका ने अब करवट बदली और अपने पिता की ओर हो कर सोने लगी.

जयसिंह का विशाल शरीर मानो उसकी नज़रों को आमंत्रित कर रहा था. वो रह-रहकर उन्हें देख रही थी.

आज जयसिंह की तरफ़ का नाइट लैम्प बंद था, सो उसे सिर्फ़ खिड़की से आती हल्की रौशनी का ही सहारा था. उसमें भी उसे उनके शरीर के बलिष्ठ उभारों की झलक मिल रही थी.

“जब अभी पापा ने मुझे चुप कराते टाइम अपनी बाँहों में ले लिया था… कितने पावरफुल है वो… जब बाँहों में लेकर कसते हैं तो सारी बॉडी में… अजीब सा लगता है ना? हाय… पक्के मर्द हैं पापा…”

कुछ देर बाद मनिका की आँख लग गई.

–​

कई बार यूँ भी होता है कि हम एक ही सपने को बार-बार देखते हैं, और फिर सपने के बीच हमें एहसास होता है कि ‘ये तो वही सपना है’ और फिर हम उसे अपने हिसाब से ढालने की कोशिश करने लगते है.

मनिका एक बार फिर उस अंधेरे कमरे में थी.

एक अजीब सा भय और उत्सुकता लिया वह आगे बढ़ रही थी. फिर कमरे में हल्की रौशनी हुई और उसने पाया कि वह घर पर अपने कमरे में थी. सामने बिस्तर पर कोई बैठा था.

"मनिका, आओ बिस्तर में आ जाओ.” आवाज़ आई.

उसके पापा थे. उन्होंने बिलकुल होटल वाले जैसा एक कम्बल ओढ़ रखा था. वह मुस्कुरा कर आगे बढ़ी, लेकिन उसके दिल की धड़कन भी बढ़ने लगी. जैसे उसे मालूम हो आगे क्या होने वाला है.

"पापा?" मनिका ने कहा.
"हाँ डार्लिंग?" उसके पापा मुस्कुराए.

वही कुटिल, गंदी मुस्कुराहट जिसे वो इतना अच्छे से जानती थी. जयसिंह ने हाथ बढ़ा कर उसका हाथ पकड़ लिया, उनकी आक्रामकता मनिका को पागल करने लगी थी. उसके पिता ने उसे अपनी ओर खींचा, उन्होंने ऊपर कुछ भी नहीं पहन रखा था.

"पापा, क्या करते हो?” मनिका फुसफुसाई.
"रात हो गई है, सोना नहीं है?" उसके पापा ने आगे कहा.
“हाँ पापा…” मनिका मदहोश सी बोली.
“तो आ जाओ…” कह उसके पापा ने कम्बल एक तरफ कर दिया.
“पापाऽऽऽ… हाय…!" मनिका कंपकंपाने लगी.

उसके पापा कम्बल के अन्दर पूरे नंगे थे, उनका काला लंड ऊपर उठा हुआ हौले-हौले हिल रहा था.

“हाय पापा… आप… आप नंगे हो!”
"पर तुम भी तो नंगी हो मेरी जान…" जयसिंह ने उसी कुटिल मुस्कान के साथ कहा.
“हम्प मैं…? मैं भी!” मनिका ने नीचे देखा.

वह भी पूरी तरह से नंगी थी.

उसके पिता ने उसे फिर खींचा और अपने आग़ोश में ले लिया. मनिका उस नंगे जिस्मों के स्पर्श से तड़प उठी. पापा का वो… उसकी योनि पर छू रहा था.

“हाय पापा… कितना बड़ा है… आपका….”
“क्या? क्या बड़ा है पापा का..?”
“बिग ब्लैक कॉक पापा… हाय…” उसने अपने हाथ से अपने पापा का लंड कस कर पकड़ते हुए कहा.

"आह… नाआऽऽऽ…"

अंधेरे में मनिका की आँख खुली.
–​
Innocent Monica is getting into father's trap.
 

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22 - खूबसूरत

कमरे में चुप्पी छाई थी.

मनिका के मन में रह-रह कर एक ही ख़याल चल रहा था.

“मेरी थोंग! क्या नहाने जाने से पहले वहाँ गिर गई थी?”

उसने किसी तरह अपने पिता के हाथ से वो छोटी सी पैंटी लेकर जल्दी से अपनी अटैची में रखे कपड़ों के बीच ठूँस दी थी. जयसिंह भी बिना कुछ बोले बिस्तर पर अपनी साइड जा बैठे थे.

कुछ पल बाद उन्हें आभास हुआ कि मनिका उनसे मुख़ातिब हुई है. उन्होंने उसकी तरफ़ देखा.

“पापा…” मनिका ने रुँधे गले से कहा और सिसक उठी.

जयसिंह को तो इसी मौक़े का इंतज़ार था.

“अरे क्या हुआ..?”

उन्होंने आश्चर्य और चिंता का मिलाजुला भाव दिखाया और झट खिसक कर मनिका के पास आ गए.

“पापा… वो… सॉरी.” मनिका के मुँह से इतना ही निकला.
“अरे क्या बात हुई… बताओ मुझे.” जयसिंह ने उसकी ठुड्डी पकड़ मुँह अपनी ओर करते हुए पूछा.
“वो पापा… आपके सामने जितना डीसेंट होने की कोशिश करती हूँ… पता नहीं उतना ही उल्टा हो जाता है… अभी वो मेरी अंडरवियर… आपके सामने यूँ…” कहते हुए मनिका फफक उठी.
“ओह मनिका… स्वीटहार्ट… ऐसे मत सोचो…” कहते हुए जयसिंह ने मनिका की पीठ सहलाई.
“पर पापाऽऽऽ… आप सोच रहे होंगे कैसी बिगड़ैल हूँ मैं… आँऽऽऽऽ…” मनिका रोने लगी.

जयसिंह ने मौक़ा न गँवाते हुए उसे पकड़ा और अपने बलिष्ठ बाजुओं से खींच कर अपनी छाती से लगा लिया. भावुक मनिका उनकी कुचेष्टा कहाँ समझ पाती.

“अरे मैं बिलकुल ऐसा नहीं सोचता… पगली हो क्या तुम…”
“आँऽऽऽऽ…” करते हुए मनिका का दर्द और ग्लानि बहने लगे.

कुछ पल बाद वो थोड़ा शांत हुई. उसे अपनी स्थिति का भी थोड़ा आभास हुआ. पापा उसे बाँहों में लिए थे. पर उनसे अलग कैसे हो? तभी जयसिंह बोले,

“अच्छा सुनो मेरी बात… हूँ?”
“आँऽऽऽऽ…” मनिका की फिर से रुलाई फूट पड़ी.

लेकिन इस बार जयसिंह ने उसके गालों से आँसू पोंछते हुए उसे पुचकारा और फिर से कहा,
“मनिका… पापा की बात नहीं सुनोगी?”
“ज… ज… जी प… पापा…” मनिका सिसकते हुए बोली.
“मनिका, मैंने बिलकुल वैसा नहीं सोचा डार्लिंग, जैसा तुम्हें लग रहा है…”
“सस्स… सच पापा..?”
“हाँ, सच और मुच दोनों…” जयसिंह ने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा.

वे उसे आश्वस्त करने के लिए मुस्का भी दिए.

“पर पापा… मैं ये सब जानबूझकर नहीं करती… please believe me…” मनिका ने फिर मिन्नत की.
“मनिका… मैं कह रहा हूँ ना… अच्छा पहले चुप हो जाओ… फिर मेरी बात सुनो.”
“जी… जी पापा.” मनिका ने कांपते हाथों से आँसू पोंछे.
“पानी पीना है? पानी दूँ आपको?” जयसिंह उसकी पीठ और कमर पर हाथ फेरते हुए बोले.
“N… no papa…”
“Okay, then listen to me… okay?”
“हम्म…” मनिका ने हामी में सिर हिलाया.
“Manika.. we are both adults… और जिन बातों को लेकर तुम इतना परेशान हो रही हो… वो सब नॉर्मल है… हम्म?”
“पर पापा… आपके सामने यूँ… मुझे बुरा लग रहा है…”
“मनिका… कल भी मैंने कहा था… कि तुम हमारे समाज के बनाए रिश्ते के बारे में सोच-सोच कर परेशान होती हो…”
“ऊह… जी पापा…”
“But what are we before being a father and daughter?”
“W… what papa?” मनिका उनका तात्पर्य नहीं समझी थी.
“A man and a woman… yes?” जयसिंह बोले.
“Y… yes…”
“And we are staying together, right?”
“जी…”
“तो हम अपनी ज़रूरतों को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते… हम्म?”

मनिका कुछ नहीं बोली.

“हमारे शरीर की बनावट अलग-अलग हैं… उनके कपड़े अलग-अलग हैं… उनकी ज़रूरतें अलग-अलग हैं… और यह समझ हम दोनों को है. है कि नहीं?”
“Yes… s.. papa…”
“तो फिर इन बातों को लेकर बुरा महसूस नहीं करो… हम्म. मैं फिर कहता हूँ, मैंने तुम्हें बिलकुल बिगड़ैल या ऐसा कुछ नहीं समझ… okay?”
“ज… जी पापा…” मनिका ने सिर झुका कर कहा.

जयसिंह ने फिर से उसका चेहरा पकड़ कर उठाया और बोले,
“Then smile for me darling… ऐसे उदासी नहीं चलेगी पापा के साथ…”

मनिका ने उनका आदेश मानते हुए एक शर्मीली सी मुस्कान बिखेर दी और फिर उनके कंधे में चेहरा छुपा कर बोली,
“Oh papa… I love you so much…”
“I love you too darling… अब रोना नहीं है… okay?”
“Yes papa…” मनिका ने गिली आँखें टिमटिमाईं.

फिर जयसिंह ने मनिका को अपनी गिरफ़्त से आज़ाद किया. मनिका थोड़ा पीछे होके बैठ गई. जयसिंह भी अपनी साइड पर जा कर बेड से टेक लगा कर बैठ गए और मनिका की तरफ़ देखा. उनकी नज़र मिली तो जयसिंह ने उसे पास आ जाने का इशारा किया.

मनिका उनके क़रीब आ कर उनसे सट कर लेट गई. एक पल के लिए उसके मन में पिछली रात अपने पिता से लिपट कर सोने वाला दृश्य घूम गया था, लेकिन उसने उसे नज़रंदाज़ कर दिया.

“मुझे लगा पता नहीं क्या हो गया… ऐसे कोई रोता है भला… हम्म?” जयसिंह ने उसके बालों में हाथ फिराते हुए कहा.
“ऊँह… पापा…” मनिका ने सिर हिला कर ना कहा.
“मैं देख रहा था सुबह से चुप-चुप हो… यही चल रहा था क्या सुबह से दिमाग़ में?”
“Oh papa! You noticed?” मनिका ने मुँह उठा उन्हें प्यार से देखते हुए कहा.
“Yes darling.”

उनके ऐसा कहने पर मनिका ने उनके बाजू में चेहरा रगड़ कर नेह जताया.

“वो पापा… मुझे बुरा लग रहा था… ऐसा दो-तीन बार हो गया ना… and I have grown up now… so…” मनिका ने बात अधूरी छोड़ दी.
“Hmm… it’s okay Manika… I am also a grown up… hmm?”
“Yes papa… but I thought… may be… आप सोचोगे कि इस लड़की को तो बिलकुल भी शरम नहीं है…”
“हाहाहा… अच्छा है शरम नहीं है… ज़्यादा शर्मीली लड़की किस काम की…”
“हाहा… पापा… आप तो ना मेरी टांग खींचते रहते हो…” मनिका ने उन्हें हल्का सा धक्का देते हुए कहा.
“टांग क्या मैं तो तुम्हें पूरा ही खींच लूँ…" कहते हुए जयसिंह ने मनिका को थोड़ा ज़ोर से भींचा.
“हेहे पापा…” मनिका का मन हल्का हो चला था, उसने अब थोड़ा खुल कर कहा, “सच में पापा… एक आप ही इतने कूल हो… वरना लोग तो मुझे बिगड़ैल ही समझते…”
“वो तो मैंने तुमसे कहा ही था… कि लोगों के सहारे चलोगी तो हर वक्त सही-ग़लत के फेर में ही रहोगी… just enjoy yourself darling… बाक़ी मैं हूँ ना तुम्हारे साथ…”

मनिका के मन में अचानक एक बात आई.

“पापा, एक बात पूछूँ?”
“हम्म.”
“आजकल आप मुझे मनिका कहकर बुलाते हो… पहले घर पर तो आप मनी कहते थे… why?”
“Well… बस ऐसे ही… तुम्हारा नाम मनिका है इसलिए…” जयसिंह इस सवाल की आशा नहीं कर रहे थे.

लेकिन उनके हरामी मन ने जवाब बुनना शुरू कर दिया था.

“बताओ ना पापा… you are hiding something.”
“अरे कुछ बात नहीं है…” जयसिंह की आवाज़ से पता चल रहा था कि वे मनिका को उकसा रहे हैं.
“No papa… tell me… जाओ मैं आपसे बात नहीं करती…”
“अच्छा भई…” जयसिंह बोले.
“तो बताओ.” मनिका नख़रे से बोली.
“Well… ऐसा इसीलिए है क्यूँकि... जैसा तुमने कहा... you have grown up so much… you know?"
"व... वो कैसे पापा?"
"तुम्हें याद है यहाँ आने से पहले तुम्हारी मधु से लड़ाई हुई थी और उस रात हम यहाँ आकर रुके थे…”
“हाँ… तो..?”
“तो… मुझे कुछ-कुछ एहसास हुआ कि… तुम अब बड़ी हो गई हो...”

उनकी आवाज़ में एक बात छिपी थी.

मनिका को अभी तक जयसिंह की बातें मजाक लग रहीं थी. लेकिन जब उन्होंने उस पहली रात का ज़िक्र किया तो उसे अपने पिता का इशारा समझते देर ना लगी. वो चुप रही.

"क्या हुआ?" जयसिंह ने मनिका का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.
"कुछ नहीं…" मनिका ने हौले से कहा.

एक ही पल में पासा पलट गया था और उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई.

"पापा ने सब नोटिस किया था मतलब… Oh God!”

मनिका और जयसिंह के बीच चुप्पी छा गई थी.

कुछ पल बीतने के बाद मनिका रुक ना सकी और भर्राई आवाज में बोली,
“Papa, I am sorry!”
"अरे तुम फिर वही सब बोलने लगी. मेरी बात तो सुनो.” जयसिंह ने उसे सहलाते हुए कहा.
"वो… वो पापा उस रात है ना मुझे ध्यान नहीं रहा… वो मैं अपने घर वाले कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गई थी और फिर… फिर पहले वाली ड्रेस शॉवर में भीग गई सो… I had to wear those clothes and come out." उसने उन्हें बताया.

फिर मनिका ने एक और दलील दी,
“तब भी मैंने सोचा था की आप क्या सोचोगे… कि मैं कैसी बिगड़ैल हूँ… but the way you reacted, I thought you were embarrassed by my behaviour… तभी आपने मुझे डांटा नहीं… you know…”
"अरे! पागल लड़की हो तुम…" जयसिंह ने मनिका का चेहरा ऊपर उठाते हुए कहा.
"पापा?"

मनिका की नज़र में अचरज था. जयसिंह ने उसके चेहरे से उसके मन की बात पढ़ ली थी.

"तुम्हें लगा कि मैं तुम्हें डांटने वाला हूँ?" मनिका की चुप्पी का फायदा उठा कर जयसिंह बोले.
"हाँ… मुझे लगा आप सोचोगे कि मम्मी सही कह रही थी कि मैं कपड़ों का ध्यान नहीं रखती." मनिका ने बताया.

जयसिंह धीमे-धीमे बोलने लगे ताकि मनिका को पता रहे कि वे मजाक नहीं कर रहे.

“अब मेरी बात सुनो… तुम्हें तो शुक्रगुजार होना चाहिए कि तुमने वो ड्रेस पहनी…”
"क… क्या मतलब पापा?" मनिका के कानों में जयसिंह की आवाज़ गूँज सी रही थी.
“When I realised that you have grown up so much…”

इस बार मनिका उनके आशय से शरमा गई.

सो जयसिंह ने शब्द-जाल बुनना शुरू किया और आगे बोले,
“तभी मुझे लगा कि… I should treat you like an adult, confident girl… न कि तुम्हारी मम्मी की तरह… so I started calling you Manika… you know… ना कि किसी बच्ची की तरह 'मनी' जो सब तुम्हें घर पे बुलाते हैं...”
"ओह…" मनिका ने हौले से कहा.
“तभी तो मैंने तुमसे इंटर्व्यू कैंसिल होने के बाद यहाँ रुकने के लिए भी कहा… because I thought… कि तुम इतना जल्दी वापस नहीं जाना चाहोगी." वे बोले.

जब मनिका चुप रही तो जयसिंह ने उसे कुरेदते हुए पूछा,
“What happened sweetheart?”
"कुछ नहीं ना पापा. I am so embarrassed… एक तो आप मेरा इतना ख़याल रखते हो… and I keep comparing you with mom… और फिर वो आपके सामने ऐसे… I mean… वो ड्रेस थोड़ा… you know… indecent… था ना?"

मनिका ने अंत में आते-आते अपने जवाब को सवाल बना दिया था और एक पल जयसिंह से नज़र मिलाई थी.

"ओह मनिका यार! You are embarrassed again… I am admiring you here… अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ… look at me…"
"जी…" मनिका ने उन्हें देखते हुए कहा.
"देखो, तुम फिर हमारे रिश्ते के बारे में सोचने लगी हो ना?
“जी… "
"पर मैंने तो तुम्हें सपोर्ट ही किया था… did I make you feel uncomfortable?"
“No papa… but…" मनिका से दो शब्द मुश्किल से निकले.
“But what Manika? क्या मनिका?" जयसिंह बोले, "तुम इतनी ख़ूबसूरत लग रही थी… that’s not a crime… and I admired your beauty…"
“But I am your daughter… papa…”
“I know, I know… मुझे पता है… but you are also a young adult woman… and I am a man… right?”
“Yes papa.”
“अब तुम ये सोचोगी कि सोसाइटी-समाज क्या कहेगा… तो जैसा मैं पहले कह चुका हूँ… you cannot understand what I am trying to say.”

मनिका चुप रही.

“अरे भई मुझे तो बहुत अच्छा लगा कि मेरी मनिका इतनी ब्यूटीफुल हो गई है… हम्म?" उसके पिता ने उसका गाल सहलाते हुए कहा.

मनिका के झेंप भरे चेहरे पर एक पल के लिए छोटी सी मुस्कान आई और चली गई थी.

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Monica is enjoying talking to father.
23 - पापा

कुछ देर बाद मनिका ने हौले से हिल कर अपने पिता से कहा कि वे आराम से सो जाएँ. जयसिंह ने भी उसे जाने दिया.

मनिका बेड पर अपनी साइड आ कर लेट गई. उसने करवट दूसरी तरफ़ कर रखी थी.

“हाय! पापा ने उस रात मुझे नोटिस किया था… शॉर्ट्स में… पर कुछ कहा नहीं था ताकि मुझे बुरा ना लग जाए… कितने अच्छे है पापा… पर कितनी तारीफ कर रहे थे अभी कि… I was looking very beautiful… हाय, सब कुछ देख लिया था उन्होंने सुबह-सुबह मतलब… शॉर्ट्स तो पूरी ऊपर हुई पड़ी थी… he saw my naked bums… तो क्या उनका डिक इरेक्ट हुआ था… नहीं! Oh God!”

उसका ये सोचना हुआ कि उसे अपने पीछे जयसिंह के होने का एहसास हुआ. उसका दिल जैसे थम गया. “पापा क्या कर रहे हैं?”

जयसिंह ने पीछे से उसके साथ सटकर उसके गाल पर एक किस्स करते हुए कहा,
“I forgot our goodnight kiss… good night darling.”
“Oh papa… good night…” मनिका सिहरते हुए बोली.

जयसिंह ने अब उसे अपने आग़ोश में लेते हुए अपना गाल आगे कर दिया. मनिका ने भी हौले से उनके गाल पर पप्पी कर दी,

‘पुच्च’

फिर उसका चेहरा मोहरा सब सफ़ेद पड़ गए.

जयसिंह उसे छोड़ पीछे होने लगे थे, लेकिन पीछे होने से पहले उन्होंने धीरे से अपना अधोभाग आगे किया और हौले से मनिका की गांड पर अपना खड़ा लंड गड़ा दिया.

“आह!” मनिका के मुँह से एक मादक सी आ निकली.

तब तक जयसिंह पीछे हो कर सो चुके थे, लेकिन वो एक क्षणिक एहसास जो उन्होंने दिया था, उसने मनिका को फिर से उस अंधेरी दुनिया में धकेल दिया था जहाँ से निकलने के वो लाख जतन कर रही थी.

“हाय! क्या वो… पापा का डिक था… हाय… भगवान… पापा ने पीछे से हग किया था मुझे… और उनका वो… बिग ब्लैक कॉक… मेरे बम्स पर लग गया…”

उसने अपने आप को भींच कर उस एहसास को झटकना चाहा, लेकिन उसकी गांड से लेकर उसकी योनि में एक तरंग दौड़ रही थी. कैसा एहसास था ये?

“आज फिर देख लिया था उनका डिक मैंने… हाय कैसे लटकता है… कितना बड़ा है… सच में… उस पॉर्न साइट वाले आदमी जैसा है… तो क्या मर्दों का डिक बाक़ी जनों से बड़ा होता है? उस आदमी का भी पूरे टाइम इरेक्ट ही था… और पापा का भी… कैसे पैंट में रखते होंगे… इतना बड़ा…”

सोचते-सोचते मनिका के कानों में सीटी बजने लगी थी.

“पापा बोले कि… he treats me like a grown up girl… तभी मुझे मनिका कहते हैं… बोल रहे थे हमारी बॉडी की ज़रूरतें अलग-अलग है… and he understands that… सो मैं शरम ना करूँ… पर वो मेरे पापा है… शरम तो आएगी ही ना… he says… सोसाइटी के लिए हम फादर और डॉटर हैं… लेकिन… we are also a man and woman… and he admires me like that… हाय… I also admire him so much… काश पापा जैसा कोई बॉयफ़्रेंड मिल जाता… बड़े डिक वाला… हाय… नहीं-नहीं… उनके जैसा अच्छा…”

मनिका ने अब करवट बदली और अपने पिता की ओर हो कर सोने लगी.

जयसिंह का विशाल शरीर मानो उसकी नज़रों को आमंत्रित कर रहा था. वो रह-रहकर उन्हें देख रही थी.

आज जयसिंह की तरफ़ का नाइट लैम्प बंद था, सो उसे सिर्फ़ खिड़की से आती हल्की रौशनी का ही सहारा था. उसमें भी उसे उनके शरीर के बलिष्ठ उभारों की झलक मिल रही थी.

“जब अभी पापा ने मुझे चुप कराते टाइम अपनी बाँहों में ले लिया था… कितने पावरफुल है वो… जब बाँहों में लेकर कसते हैं तो सारी बॉडी में… अजीब सा लगता है ना? हाय… पक्के मर्द हैं पापा…”

कुछ देर बाद मनिका की आँख लग गई.

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कई बार यूँ भी होता है कि हम एक ही सपने को बार-बार देखते हैं, और फिर सपने के बीच हमें एहसास होता है कि ‘ये तो वही सपना है’ और फिर हम उसे अपने हिसाब से ढालने की कोशिश करने लगते है.

मनिका एक बार फिर उस अंधेरे कमरे में थी.

एक अजीब सा भय और उत्सुकता लिया वह आगे बढ़ रही थी. फिर कमरे में हल्की रौशनी हुई और उसने पाया कि वह घर पर अपने कमरे में थी. सामने बिस्तर पर कोई बैठा था.

"मनिका, आओ बिस्तर में आ जाओ.” आवाज़ आई.

उसके पापा थे. उन्होंने बिलकुल होटल वाले जैसा एक कम्बल ओढ़ रखा था. वह मुस्कुरा कर आगे बढ़ी, लेकिन उसके दिल की धड़कन भी बढ़ने लगी. जैसे उसे मालूम हो आगे क्या होने वाला है.

"पापा?" मनिका ने कहा.
"हाँ डार्लिंग?" उसके पापा मुस्कुराए.

वही कुटिल, गंदी मुस्कुराहट जिसे वो इतना अच्छे से जानती थी. जयसिंह ने हाथ बढ़ा कर उसका हाथ पकड़ लिया, उनकी आक्रामकता मनिका को पागल करने लगी थी. उसके पिता ने उसे अपनी ओर खींचा, उन्होंने ऊपर कुछ भी नहीं पहन रखा था.

"पापा, क्या करते हो?” मनिका फुसफुसाई.
"रात हो गई है, सोना नहीं है?" उसके पापा ने आगे कहा.
“हाँ पापा…” मनिका मदहोश सी बोली.
“तो आ जाओ…” कह उसके पापा ने कम्बल एक तरफ कर दिया.
“पापाऽऽऽ… हाय…!" मनिका कंपकंपाने लगी.

उसके पापा कम्बल के अन्दर पूरे नंगे थे, उनका काला लंड ऊपर उठा हुआ हौले-हौले हिल रहा था.

“हाय पापा… आप… आप नंगे हो!”
"पर तुम भी तो नंगी हो मेरी जान…" जयसिंह ने उसी कुटिल मुस्कान के साथ कहा.
“हम्प मैं…? मैं भी!” मनिका ने नीचे देखा.

वह भी पूरी तरह से नंगी थी.

उसके पिता ने उसे फिर खींचा और अपने आग़ोश में ले लिया. मनिका उस नंगे जिस्मों के स्पर्श से तड़प उठी. पापा का वो… उसकी योनि पर छू रहा था.

“हाय पापा… कितना बड़ा है… आपका….”
“क्या? क्या बड़ा है पापा का..?”
“बिग ब्लैक कॉक पापा… हाय…” उसने अपने हाथ से अपने पापा का लंड कस कर पकड़ते हुए कहा.

"आह… नाआऽऽऽ…"

अंधेरे में मनिका की आँख खुली.
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Innocent Monica is getting into father's trap.
25 - गुड नाइट

जब मनिका की आँख खुली तो ग़ज़ब हो चुका था. उसके पापा उसके ऊपर थे और अपनी टांगे खोल कर उसे बीच में ले रखा था. उनके लिंग वाला हिस्सा ठीक उसकी योनि पर टिका था. जयसिंह का चेहरा उसकी चेहरे के बग़ल में उसके बालों में था. उनकी गरम साँसें उसे अपने गालों और गले पर महसूस हो रही थी. और उसके स्तन, उसके पिता की चौड़ी छाती के नीचे दबे थे.

“हम्प!” मनिका कसमसाई.
“उम्म…” जयसिंह भी थोड़ा हिले-डुले.
“पापा?” मनिका ने हौले से उन्हें दूर हटाना चाहा.
“हम्म?” वो ऊँघे.
“उठो ना…” मनिका ने मंद आवाज़ में कहा.
“हम्म…” कहते हुए जयसिंह थोड़ा सीधा हुए, “क्या टाइम हो गया?”

मनिका की जान में जान आई.

“पता नहीं…” वो उनकी गिरफ़्त से आज़ाद होते ही उठ बैठी और अपने अस्त-व्यस्त कपड़े ठीक करने लगी. “शाम हो गई है.”
“हैं..? सच में?” जयसिंह ने भी थोड़ा उठ कर बैठते हुए कहा, “आज तो हमने लंच भी मिस कर दिया लगता है.”
“ज… जी पापा.” मनिका की नज़र उनकी टांगों के बीच गई.

क्या उनकी पैंट में एक उठाव सा नज़र आ रहा था?

“हाय… हम कैसे सो रहे थे?”

कुछ बात चालू हो, इसके लिए मनिका ने दीवार घड़ी की ओर देखा. 5 बजने को आए थे.

“Papa… it’s 5 O’clock…”
“सच में? समय का पता ही नहीं चला आज तो… चलो कुछ खाने-पीने को मँगवा लो…”
“हाँ पापा… अभी तो हमारी पैकिंग भी बाक़ी पड़ी है.”

जयसिंह भी काउच से उठ चुके थे. उन्होंने एक नज़र मनिका से मिलाई और हँस कर बोले.

“नई गर्लफ़्रेंड के साथ ऐसी नींद आई कि पता ही नहीं चला.”
“हेहे पापा… आप तो ना… जाओ जाके मुँह हाथ धो लो, मैं कुछ ऑर्डर करती हूँ…”
“जो हुकुम मेरे आका…” जयसिंह बोले और उसे एक हवाई किस्स दिया.
“पागल..!” मनिका ने हौले से कहा.

फिर चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कान लिए मनिका फ़ोन के पास पहुँची. लंच न करने और डिनर का वक्त क़रीब होने की वजह से उसने सोचा कि दोनों टाइम का खान-पान साथ ही कर लिया जाए. यही सोच कर उसने काठी-रोल, पाव-भाजी और चाऊमिन का ऑर्डर कर दिया.
जयसिंह बाहर आ गए थे और धीरे-धीरे अपना कुछ सामान अटैची में जचाने लगे.

इस दौरान मनिका भी जा कर टॉयलेट कर आई. कमोड की सीट पर बैठते वक्त उसे एक पल ख़याल आया कि पापा कैसे वहीं सामने खड़े हो कर पेशाब करते होंगे. हालाँकि उसने अपने-आप को धिक्कारा था लेकिन इस तरह के ख़यालों को अब मन से निकालना उसके बस से बाहर हो चुका था.

खाना-पीना करने के बाद जयसिंह ने सुझाया कि कुछ देर घूम आया जाए. आख़िर सुबह तो उन्हें जाना ही था. मनिका भी राज़ी हो गई.
सो वे गुड़गाँव की MG Road घूमने चल दिए. वहाँ काफ़ी सारे मॉल और रेस्तराँ इत्यादि हैं.

घूमते-घूमते जयसिंह ने मनिका से पूछा अगर वह कुछ लेना चाहती हो. पर मनिका ने शरारत भरी मुस्कान से कहा कि बाक़ी शॉपिंग वह दिल्ली वापस आ कर कर लेगी. कुछ देर window shopping करते रहने के बाद, जयसिंह और मनिका एक आलीशान शोरूम के आगे से गुजरे, ‘Victoria’s Secret’. बाहर डिस्प्ले में जो चीज़ें लगी थी, उन्हें देख अनायास ही बाप-बेटी की नज़रें मिल गई.

जयसिंह की आँखों में चमक थी और मनिका के चेहरे पर हया. जयसिंह ने कुछ ना कहा लेकिन उसका हाथ पकड़ लिया और आगे बढ़ चले.
मनिका को जयसिंह का वो स्पर्श मानो लालायित कर रहा था.

कुछ आगे चलने पर एक बहुत बड़ा ज़ेवेलरी स्टोर आया. जयसिंह ने देखा कि मनिका ने बड़े गौर से बाहर डिस्प्ले में लगे आभूषण देखे थे. हालाँकि उसके बाद वे कुछ कदम आगे बढ़ चुके थे, पर फिर जयसिंह रुके और मनिका को साथ ले वापस मुड़ आए.

“Papa… where are you going?”
“अरे आओ ना…” जयसिंह बोले.

जयसिंह उसे आभूषणों के उस आलीशान शोरूम में ले गए. मनिका मंत्रमुग्ध सी उनके साथ चल रही थी.

“पापा? क्या ले रहे हो यहाँ से..?” आख़िर उसने पूछा.
“अपनी गर्लफ़्रेंड के लिए गिफ़्ट…” जयसिंह ने रहस्यमई अन्दाज़ में कहा.

जयसिंह ने मनिका को एक अंगूठी को बहुत कौतुहल से देखते हुए देखा था. सो जब शोरूम के सेल्स-बॉय ने उनसे पूछा कि वे क्या लेना पसंद करेंगे तो वे बोले,

“वो बाहर… नीले डिस्प्ले में जो अंगूठी लगी है… वो दिखा सकते हैं.”

सेल्स-बॉय की बाँछे खिल उठी. आख़िर बाहर के डिस्प्ले में शोरूम वाले सबसे महंगी और लुभावनी चीज़ें ही लगा कर रखते हैं. उसने फट से हामी भरी और अदब से झुक अपने मैनेजर की तरफ़ दौड़ा.

जयसिंह ने मनिका की तरफ़ देखा. उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं.

“Papa… what..?”
“Shh… you are my girlfriend, remember?” जयसिंह उसके होंठों पर अंगुली रख बोले.
“But…”

उतने में वो लड़का मैनेजर को ले आया था,

“Hello sir… welcome to Sarathi Jewellers sir… बैठिए ना…” मोटी आसामी देख, मैनेजर की आँखे चमक रहीं थी.
“वो बताया ना आपके लड़के को रिंग का…” जयसिंह थोड़ी तल्ख़ी और रौब से बोले.
“हाँ जी… हाँ जी… विपिन! जाओ वो मुग़ल कलेक्शन वाला रिंग सेट लेकर आओ सर के लिए… कब से वेट कर रहे हैं सर…” मैनेजर ने लड़के को हड़काया.

फिर उनसे मुख़ातिब हो बोला,

“आप बैठिए ना सर… क्या लेंगे? चाय-कॉफ़ी, कोई शेक वग़ैरह?”
“नहीं-नहीं… बस ठीक है.” कहते हुए जयसिंह बैठ गए.

मनिका क्या करती, वह भी उनके बग़ल में बैठ गई. उसकी आँखों के आगे तो तारे नाच रहे थे.

“Papa noticed me looking at the ring… is he going to buy it? It was looking so expensive..!”

सेल्स वाला लड़का लौट आया था. उसने पाँच-सात नीली डिब्बियाँ खोल कर उनके सामने जँचा दी. इतने असमंजस के बावजूद उन खूबसूरत अंगुठियों को देख मनिका के मन ने आह भरी.

“हे भगवान! क्या कमाल की रिंग्स हैं…”

मैनेजर अब एक-एक कर उन्हें अंगुठियाँ दिखाने लगा,

“Pure gold sir… worked by special artists… with diamond face… you can also pick a stone of your choice sir…”

जयसिंह ने उसकी दिखाई अंगूठी हाथ में ली. फिर मनिका को दिखाई.

“Buying for ma’am sir?” मैनेजर ने पूछा, “your..?”
“Girlfriend…” जयसिंह ने एकदम सामान्य आवाज़ में मनिका का परिचय करवाया.
“Of course sir…” मैनेजर ने मुस्तैदी से कहा, “ये वाली देखिए मैम…”

–​

वे लोग होटल लौट आए थे.

सारथी ज़ेवेलर्स का बैग कॉफ़ी टेबल पर रखा था और मनिका स्तब्ध सी सोफ़े पर बैठी थी.

“हाहा… क्या हुआ भई? इतनी चुप्पी?” जयसिंह हंसते हुए उसके पास आ बैठे.
“पापा! तीन लाख… तीन लाख की रिंग… आप पागल हो क्या?” मनिका हैरान-परेशान सी बोली.
“अरे… तीन लाख कहाँ… two lakh ninety nine thousand nine hundred only…” जयसिंह ने उस शोरूम वाले मैनेजर की सी आवाज़ निकालते हुए कहा.
“पापा… मसखरी मत करो… वापस दे आते हैं…”

अब जयसिंह ने उसे अपनी गोद में खींच लिया. मनिका उनके पास आ गई, मगर उसने मुँह फेर रखा था.

“अरे भई… क्या हो गया? मुझे लगा गर्लफ़्रेंड खुश होगी… ये तो मुँह फुलाए बैठी है…”
“हाय पापा… इतने पैसे लगाता है क्या कोई… पागल हो आप…” मनिका ने थोड़ा भर्राए गले से कहा.
“ओहो… तुम्हें नहीं पसंद… तो चलो वापस कर आते हैं… नहीं पसंद है ना?”
“Papa it’s so costly na…” मनिका ने मचल कर उनकी तरफ़ देखा. आख़िर अंगूठी तो उसे बहुत पसंद आई थी.
“Manika, I told you na darling, don’t worry about the money?” जयसिंह ने उसका गाल सहला कर कहा.
“हाँ पापा… पर इतना खर्चा… घर पे क्या बोलूँगी…”
“ओहो… बताया तो था… कुछ चीज़ें सबसे बोलने की नहीं होती… घर पे कुछ नहीं बोलना… हम्म?” जयसिंह ने उसका गाल थपथपाया.
“हाय पापा… आप तो बस… मेरी जान निकाल देते हो…” मनिका उनके हाथ पर गाल रगड़ते हुए बोली.
“तो फिर रखनी है ना… या वापस करनी है?” जयसिंह ने मुस्कुराते हुए पूछा.
“रखनी है पापा…” मनिका बरबस उनके गले लग कर बोली.

जयसिंह का मुँह उसके कान के पास था. उनके मन में एक और हिमाक़त आई. वे उसके कान के पास फुसफुसाए,

“पता नहीं कैसी गर्लफ़्रेंड मिली है मुझे… हूँ… अंगूठी दिलाओ तो नाराज़… पैंटी दिलाओ तो नाराज़…”
“हाय पापा! क्या बोलते हो…” मनिका उनकी बात सुन मचल उठी.

उसके चेहरे पर शरम की सुर्ख़ लालिमा छा गई थी.

–​

मनिका बाथरूम में नहा रही थी.

“Oh god! Papa bought that ring… three lakh… और मैंने तो कहा भी नहीं लेने को… बस देखा भर था… हाय! ऐसा कौन करता है… सच में पागल होते हैं क्या ये मर्द लोग..?”

फिर उसे जयसिंह का छेड़ना याद आ गया.

“हाय… बोले पैंटी दिलाऊँ तो नाराज़… हाय ऐसे अपनी बेटी को कोई छेड़ता है भला… पर पापा तो मुझे अपनी गर्लफ़्रेंड कहने लगे हैं… मुझे ‘मनिका’ कहते है… क्या पापा मुझसे मोहब्बत करते हैं..? हाय मैं क्या सोचने लगी…”

मनिका अपने जवान उरोजों पर साबुन मलते हुए तरंगित हो रही थी. फिर उसने अपने विचारों की डोर थामते हुए सोचा,

“ऐसा कुछ नहीं है… पापा तो पापा हैं… बस थोड़े पागल हैं…”

लेकिन लड़कियों को जो बात सबसे ज़्यादा उत्तेजित करती हैं वो है मर्दों का पागलपन और बेबाक़ी. वैसे भी, जयसिंह के खिलंदनपड़ और आत्मविश्वास ने उसके अंतर्मन में स्थान बना लिया था. और आज जिस तरह से बिना सोचे-समझे उन्होंने उसकी एक नज़र पर इतना पैसा उड़ा दिया था, उसके बाद मनिका उनके चंगुल से निकल पाती इसका सवाल ही पैदा नहीं होता था.

नहा लेने के बाद मनिका ने अपनी धोई हुई बैंगनी ब्रा और गुलाबी थोंग तार पर डाली. एक पल उसे फिर पापा का सताना याद आ गया और उसने लजाते हुए सोचा,

“अभी पापा नहाने आएँगे… इन्हें ऐसे ही छोड़ दूँ…?”

फिर अपनी सोच पर घबरा कर उसने अपने अंतःवस्त्र तौलिए से ढँक दिए और बाहर निकल आई.

–​

आज जयसिंह तौलिया लपेटे बेड पर बैठे थे. फिर से उन्होंने अपनी टी-शर्ट और बनियान निकाल दिए थे.

मनिका उन्हें देख मुस्काई. जयसिंह बोले,

“मनिका वो मेरे कपड़े उधर काउच पर रखे हैं. उन्हें ज़रा मेरे छोटे बैग में रख देना. घर जा कर धुलवा लेंगे.”
“जी पापा.” कह मनिका काउच की तरफ़ बढ़ी.

जयसिंह भी बेड से उठने को हुए. मनिका की चोर नज़र मानो उनके उठने का इंतज़ार ही कर रही थी. उसने धीरे से मुँह फेर उनकी टांगों के बीच देखा.

जयसिंह ने ऐसे जता रहे थे मानो अपने फ़ोन में कुछ देखते हुए उसे साइड में रख रहे हैं. लेकिन उनकी असली मंशा तो मनिका को लंड का दीदार करवाने की थी. कुछ सेकंड तक वो आधे उठे हुए, बेड पर टेक लगाए फ़ोन में देखते रहे.

इस बीच मनिका को अपने पिता के मूसल का भरपूर दीदार मिला. मनिका की नज़र जैसे उसपर जम चुकी थी.

उनका काला चमकता मर्दांग मानो फड़क सा रहा था.

जयसिंह ने फ़ोन एक तरफ़ रखा और उठ खड़े हुए. मनिका ने घबरा कर उनसे नज़र मिलाई, वे उसे देख मुस्कुराए. मनिका भी धीमे से मुस्कुरा कर पलट गई और उनके खोले कपड़े उठाने लगी.

बाथरूम का दरवाज़ा बंद होते ही मनिका ने गहरी साँसें भरीं.

“हाय राम! कितना बड़ा है… और आज फिर… पापा तो इतने रिलैक्स हो गए हैं… उनको अंदाज़ा ही नहीं कि उनका वो… ऐसे दिखता है… मैं भी तो वहीं देखने लगती हूँ… बिग ब्लैक कॉक… डोंग… हाय!”

अनायास ही उसने अपने आप को भींच लिया. एक पल बाद उसके नाक में जयसिंह के जिस्म की गंध पड़ी. अपने हाथ में लिए उनके कपड़ों को देख वो सिहर गई.

“पापा की बॉडी की ख़ुशबू… कैसी अजीब सी है… मर्दाना सी…” उसने एक गहरी साँस भरी.

फिर उसने देखा कि काउच पर जयसिंह का निकाला हुआ कच्छा भी पड़ा था.

“हाय पापा ने अपना अंडरवियर भी यहीं छोड़ दिया.”

कांपते हाथ से उसने अपने पिता का अंडरवियर उठाया. उसके हाथ में जैसे लकवा मार गया था. तेज कदमों से वो जयसिंह के बैग के पास गई और उनके कपड़े उसमें रखे. एक पल के लिए उसके मन में विचार आया कि जयसिंह का अंडरवियर सूंघ के देखे, और वो थर्रा उठी थी.

–​

जब जयसिंह नहा कर आए तो मनिका अपना सामान जमा रही थी.

“हो गई पैकिंग?” उन्होंने पूछा.
“जी पापा… बस हो ही गई…” मनिका ने कुछ कपड़े तह करके रखते हुए कहा.

उसने अपनी नई ली पोशाकें अटैची में नीचे दबा कर रख दी थी और ऊपर पुराने कपड़े रख रही थी.

“वो कपड़े डाल दिए मेरे बैग में?” जयसिंह ने अपने सिर से पानी झटकते पूछा.
“ह… हाँ पापा.” मनिका ने अपराधबोध भरी आवाज़ में कहा.

जयसिंह के कहने पर मनिका ने उनकी अटैची से सुबह पहनने के लिए एक पैंट-शर्ट निकाल कर काउच पर रख दिए थे. उसने अपना भी एक सलवार-सूट अटैची में ऊपर रख लिया था. पैकिंग करने के बाद उन्होंने अपना सामान एक ओर जमा दिया.

“सुबह ट्रेन 9 बजे की है… थोड़ा जल्दी उठ कर ब्रेकफ़ास्ट मँगवा लेंगे… फिर चल चलेंगे… हम्म?”

जयसिंह ने फ़ोन में आया टिकट वाला मेसेज पढ़ते हुए कहा.

“जी पापा.” मनिका बिस्तर में आते हुए बोली.

वे उसे देख मुसकाए और अपने पास आने का इशारा किया. मनिका उनके बाजू में आ लेटी.

“अंगूठी रख ली सम्भाल के?”
“हेहे… हाँ पापा. Thank you…”
“हाहा. अभी तो बस शुरुआत है… वापस डेल्ही आ कर भी तो शॉपिंग करनी है ना?”
“हाँ…” मनिका ने कसमसा कर खनकती हुई आवाज़ में कहा.
“हम्म खुश है मेरी जान?”
“हाँ पापा…” मनिका ने धीमे से कहा.

कुछ पल चुप्पी छाई रही. फिर मनिका बोली,

“हम कितने… close… हो गए हैं ना पापा?”
“हम्म… क्यूँ पहले नहीं थे क्या?”

जयसिंह उसका आशय तो समझ गए थे पर उसे उलझाने के लिए बोले.

“थे… तो सही… पर मेरा मतलब है… यहाँ आकर… ऐसे…”
“कैसे?” जयसिंह ने उसकी आँखों में आँखें डाल पूछा.
“यही… इतना frankly एक दूसरे से बात करना… you know…”
“अब दिल्ली की हवा तो बड़े-बड़ों को लग जाती है, थोड़ी हमें भी लग गई…”
“हेहे पापा…” मनिका ने थोड़ा सकुचा कर आगे कहा, “थोड़ा अजीब लगता है ना मगर?”
“हम्म…”
“आपको नहीं लगता?” जयसिंह से मन माफ़िक़ जवाब न पा, मनिका ने फिर पूछा.
“ऐसे गर्लफ़्रेंड-बॉयफ़्रेंड होना?” जयसिंह ने कहा.
“ह… हाँ…” मनिका सकपका गई.
“Well… मैंने तो पहले ही कहा था… हम अडल्ट हैं… हमें जो अच्छा लगे कर सकते हैं… इसमें अजीब क्या है?”
“प… पर आप मेरे… I know… मैं हमारे सोशल रिश्ते के बारे में बोल रही हूँ… पर वो भी तो एक सच है.”
“हाहा… तो मैंने कहा तो था… डेल्ही में गर्लफ़्रेंड और घर पे डॉटर… हम्म?” जयसिंह ने उसकी ठुड्डी पकड़ कर हिलाई.
“ह… हाँ…” मनिका को उनकी बात का जवाब नहीं सूझा.
“और कभी-कभी… घर पे भी गर्लफ़्रेंड… हम्म?” जयसिंह ने उसे गुदगुदाया.
“हीही… पापा… क्या कहते हो?” मनिका उनके हाथ पकड़ मचली.
“अरे भई… सब के सामने नहीं तो सब के पीठ पीछे तो हम enjoy कर सकते हैं कि नहीं?” जयसिंह की आवाज़ में एक भारीपन था.
“हाय पापा… लग रहा है आप तो मरवाओगे मुझे…”
“हाहा… अरे कुछ नहीं होगा… मैं हूँ ना…”

मनिका समझ नहीं पा रही थी कि उनकी बातचीत कैसा अजीब मोड़ लेने लगी थी.

“पर पापा… हम… real girlfriend-boyfriend थोड़े ही हो सकते हैं..?”
“क्यूँ नहीं हो सकते…” जयसिंह ने फिर उस से नज़र मिलाई.
“वो… आप की तो मम्मी से शादी हो गई है ना…” मनिका से और कुछ कहते नहीं बना.
“हाहा… तो गर्लफ़्रेंड तो बीवी से अलग होती है… कि नहीं?”
“हेहे… आप तो कुछ ज़्यादा ही बिगड़ गए हो…” मनिका ने शरमा कर उलाहना दिया.
“तुम मधु की चिंता मत करो… उसे सम्भालना मुझे अच्छे से आता है… तुम बस enjoy करो पापा के साथ… हम्म?”
“जी पापा…”

मनिका न जाने क्यूँ अपने पिता का प्रतिकार ना कर सकी थी.

“घर जा कर कहीं अपनी बात से बदल मत जाना…” जयसिंह ने उसे चेताया, “कहीं वहाँ जाकर फिर से तुम… फादर-डॉटर… और सोसाइटी के चक्करों में पड़ जाओ.”
“हेहे पापा… नहीं…” मनिका ने धड़कते दिल से उनको आश्वस्त किया.

फिर उसे एक बात याद आई.

“पापा?”
“हम्म?”
“वो आपने मेरी पिक्स ली थी ना… ड्रेसेज़ वाली…”
“हाँ…”
“वो तो डिलीट कर देते…”
“क्यूँ?”

मनिका ये तो कैसे कहती की वो तस्वीरें बेहद अश्लील हैं. सो उसने हौले से कहा,

“कोई देख ना ले…”
“हाहा… अरे कोई नहीं देखेगा… तुम चिंता मत करो…”
“पर पापा…”
“मैंने कहा ना… it’s okay…” जयसिंह की आँखों में एक आक्रोश था.
“ज… जी पापा.”

जब और मनिका कुछ नहीं बोली, तो जयसिंह ने छेड़ा,

“घर जा कर मन लग जाएगा… मेरी जान का?”
“उन्हु…” मनिका ने ना में सिर हिलाया.
“उदास है मेरी जान?” उन्होंने आगे पूछा.
“हूँ…” मनिका ने हाँ कहा.
“तो कैसे खुश करूँ उसे?”

जयसिंह ने इस बार ज़ोर से उसे गुदगुदाया.

“आऽऽई… पापा!” मनिका खिलखिला उठी.
“बोलो ना…”

मनिका अब पीठ के बल लेटी थी और जयसिंह उसे गुदगुदा रहे थे. कभी उसका पेट तो कभी उसके बाजू और बग़लें.

“हाहाहा पापा… क्या करते हो… ईईई… छोड़ो ना! नहीं हूँ उदास…”

कुछ पल इस तरह मनिका के जिस्म पर हाथ सेंकने के बाद जयसिंह ने उसे छोड़ दिया.

“मैंने पहले ही कहा था… उदास नहीं रहना है… कहा था ना…”
“हेहे… हाँ पापा… मान तो रही हूँ आपकी बात…” मनिका उनके हाथों को देखते हुए मचली.
“तो चलो अब मेरी किस्स दो और सो जाओ… सुबह जाना भी है…”

मनिका के चेहरे पर शर्मीली लाली थी. वो हौले से उठी और जयसिंह के गाल पर पप्पी कर दी.

“Good night papa…”
“हम्म…” जयसिंह ने हामी भरी.

फिर उन्होंने उसके बाजू पकड़ उसे फिर से पीठ के बल लेटा दिया. वे उसके ऊपर झुक आए थे. मनिका ने उनका इशारा समझ चेहरा एक तरफ़ कर लिया था.

‘पुच्च, पुच्च, पुच्च’

जयसिंह ने उसके गाल पर तीन-चार चुम्बन जड़ दिए.

लेकिन मनिका का दिल तो कोई और बात दहला रही थी.

इस तरह उसके ऊपर झुकते ही उसके पिता का लंड उसकी जाँघ छूने लगा था. उसकी सख़्ती का एहसास होते ही मनिका निढाल, निश्चल पड़ गई थी.

जयसिंह ने हौले से कहा,

“Good night darling…”

–​
Achhi chide chad chal rahi hai baap beti me.
 

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22 - खूबसूरत

कमरे में चुप्पी छाई थी.

मनिका के मन में रह-रह कर एक ही ख़याल चल रहा था.

“मेरी थोंग! क्या नहाने जाने से पहले वहाँ गिर गई थी?”

उसने किसी तरह अपने पिता के हाथ से वो छोटी सी पैंटी लेकर जल्दी से अपनी अटैची में रखे कपड़ों के बीच ठूँस दी थी. जयसिंह भी बिना कुछ बोले बिस्तर पर अपनी साइड जा बैठे थे.

कुछ पल बाद उन्हें आभास हुआ कि मनिका उनसे मुख़ातिब हुई है. उन्होंने उसकी तरफ़ देखा.

“पापा…” मनिका ने रुँधे गले से कहा और सिसक उठी.

जयसिंह को तो इसी मौक़े का इंतज़ार था.

“अरे क्या हुआ..?”

उन्होंने आश्चर्य और चिंता का मिलाजुला भाव दिखाया और झट खिसक कर मनिका के पास आ गए.

“पापा… वो… सॉरी.” मनिका के मुँह से इतना ही निकला.
“अरे क्या बात हुई… बताओ मुझे.” जयसिंह ने उसकी ठुड्डी पकड़ मुँह अपनी ओर करते हुए पूछा.
“वो पापा… आपके सामने जितना डीसेंट होने की कोशिश करती हूँ… पता नहीं उतना ही उल्टा हो जाता है… अभी वो मेरी अंडरवियर… आपके सामने यूँ…” कहते हुए मनिका फफक उठी.
“ओह मनिका… स्वीटहार्ट… ऐसे मत सोचो…” कहते हुए जयसिंह ने मनिका की पीठ सहलाई.
“पर पापाऽऽऽ… आप सोच रहे होंगे कैसी बिगड़ैल हूँ मैं… आँऽऽऽऽ…” मनिका रोने लगी.

जयसिंह ने मौक़ा न गँवाते हुए उसे पकड़ा और अपने बलिष्ठ बाजुओं से खींच कर अपनी छाती से लगा लिया. भावुक मनिका उनकी कुचेष्टा कहाँ समझ पाती.

“अरे मैं बिलकुल ऐसा नहीं सोचता… पगली हो क्या तुम…”
“आँऽऽऽऽ…” करते हुए मनिका का दर्द और ग्लानि बहने लगे.

कुछ पल बाद वो थोड़ा शांत हुई. उसे अपनी स्थिति का भी थोड़ा आभास हुआ. पापा उसे बाँहों में लिए थे. पर उनसे अलग कैसे हो? तभी जयसिंह बोले,

“अच्छा सुनो मेरी बात… हूँ?”
“आँऽऽऽऽ…” मनिका की फिर से रुलाई फूट पड़ी.

लेकिन इस बार जयसिंह ने उसके गालों से आँसू पोंछते हुए उसे पुचकारा और फिर से कहा,
“मनिका… पापा की बात नहीं सुनोगी?”
“ज… ज… जी प… पापा…” मनिका सिसकते हुए बोली.
“मनिका, मैंने बिलकुल वैसा नहीं सोचा डार्लिंग, जैसा तुम्हें लग रहा है…”
“सस्स… सच पापा..?”
“हाँ, सच और मुच दोनों…” जयसिंह ने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा.

वे उसे आश्वस्त करने के लिए मुस्का भी दिए.

“पर पापा… मैं ये सब जानबूझकर नहीं करती… please believe me…” मनिका ने फिर मिन्नत की.
“मनिका… मैं कह रहा हूँ ना… अच्छा पहले चुप हो जाओ… फिर मेरी बात सुनो.”
“जी… जी पापा.” मनिका ने कांपते हाथों से आँसू पोंछे.
“पानी पीना है? पानी दूँ आपको?” जयसिंह उसकी पीठ और कमर पर हाथ फेरते हुए बोले.
“N… no papa…”
“Okay, then listen to me… okay?”
“हम्म…” मनिका ने हामी में सिर हिलाया.
“Manika.. we are both adults… और जिन बातों को लेकर तुम इतना परेशान हो रही हो… वो सब नॉर्मल है… हम्म?”
“पर पापा… आपके सामने यूँ… मुझे बुरा लग रहा है…”
“मनिका… कल भी मैंने कहा था… कि तुम हमारे समाज के बनाए रिश्ते के बारे में सोच-सोच कर परेशान होती हो…”
“ऊह… जी पापा…”
“But what are we before being a father and daughter?”
“W… what papa?” मनिका उनका तात्पर्य नहीं समझी थी.
“A man and a woman… yes?” जयसिंह बोले.
“Y… yes…”
“And we are staying together, right?”
“जी…”
“तो हम अपनी ज़रूरतों को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते… हम्म?”

मनिका कुछ नहीं बोली.

“हमारे शरीर की बनावट अलग-अलग हैं… उनके कपड़े अलग-अलग हैं… उनकी ज़रूरतें अलग-अलग हैं… और यह समझ हम दोनों को है. है कि नहीं?”
“Yes… s.. papa…”
“तो फिर इन बातों को लेकर बुरा महसूस नहीं करो… हम्म. मैं फिर कहता हूँ, मैंने तुम्हें बिलकुल बिगड़ैल या ऐसा कुछ नहीं समझ… okay?”
“ज… जी पापा…” मनिका ने सिर झुका कर कहा.

जयसिंह ने फिर से उसका चेहरा पकड़ कर उठाया और बोले,
“Then smile for me darling… ऐसे उदासी नहीं चलेगी पापा के साथ…”

मनिका ने उनका आदेश मानते हुए एक शर्मीली सी मुस्कान बिखेर दी और फिर उनके कंधे में चेहरा छुपा कर बोली,
“Oh papa… I love you so much…”
“I love you too darling… अब रोना नहीं है… okay?”
“Yes papa…” मनिका ने गिली आँखें टिमटिमाईं.

फिर जयसिंह ने मनिका को अपनी गिरफ़्त से आज़ाद किया. मनिका थोड़ा पीछे होके बैठ गई. जयसिंह भी अपनी साइड पर जा कर बेड से टेक लगा कर बैठ गए और मनिका की तरफ़ देखा. उनकी नज़र मिली तो जयसिंह ने उसे पास आ जाने का इशारा किया.

मनिका उनके क़रीब आ कर उनसे सट कर लेट गई. एक पल के लिए उसके मन में पिछली रात अपने पिता से लिपट कर सोने वाला दृश्य घूम गया था, लेकिन उसने उसे नज़रंदाज़ कर दिया.

“मुझे लगा पता नहीं क्या हो गया… ऐसे कोई रोता है भला… हम्म?” जयसिंह ने उसके बालों में हाथ फिराते हुए कहा.
“ऊँह… पापा…” मनिका ने सिर हिला कर ना कहा.
“मैं देख रहा था सुबह से चुप-चुप हो… यही चल रहा था क्या सुबह से दिमाग़ में?”
“Oh papa! You noticed?” मनिका ने मुँह उठा उन्हें प्यार से देखते हुए कहा.
“Yes darling.”

उनके ऐसा कहने पर मनिका ने उनके बाजू में चेहरा रगड़ कर नेह जताया.

“वो पापा… मुझे बुरा लग रहा था… ऐसा दो-तीन बार हो गया ना… and I have grown up now… so…” मनिका ने बात अधूरी छोड़ दी.
“Hmm… it’s okay Manika… I am also a grown up… hmm?”
“Yes papa… but I thought… may be… आप सोचोगे कि इस लड़की को तो बिलकुल भी शरम नहीं है…”
“हाहाहा… अच्छा है शरम नहीं है… ज़्यादा शर्मीली लड़की किस काम की…”
“हाहा… पापा… आप तो ना मेरी टांग खींचते रहते हो…” मनिका ने उन्हें हल्का सा धक्का देते हुए कहा.
“टांग क्या मैं तो तुम्हें पूरा ही खींच लूँ…" कहते हुए जयसिंह ने मनिका को थोड़ा ज़ोर से भींचा.
“हेहे पापा…” मनिका का मन हल्का हो चला था, उसने अब थोड़ा खुल कर कहा, “सच में पापा… एक आप ही इतने कूल हो… वरना लोग तो मुझे बिगड़ैल ही समझते…”
“वो तो मैंने तुमसे कहा ही था… कि लोगों के सहारे चलोगी तो हर वक्त सही-ग़लत के फेर में ही रहोगी… just enjoy yourself darling… बाक़ी मैं हूँ ना तुम्हारे साथ…”

मनिका के मन में अचानक एक बात आई.

“पापा, एक बात पूछूँ?”
“हम्म.”
“आजकल आप मुझे मनिका कहकर बुलाते हो… पहले घर पर तो आप मनी कहते थे… why?”
“Well… बस ऐसे ही… तुम्हारा नाम मनिका है इसलिए…” जयसिंह इस सवाल की आशा नहीं कर रहे थे.

लेकिन उनके हरामी मन ने जवाब बुनना शुरू कर दिया था.

“बताओ ना पापा… you are hiding something.”
“अरे कुछ बात नहीं है…” जयसिंह की आवाज़ से पता चल रहा था कि वे मनिका को उकसा रहे हैं.
“No papa… tell me… जाओ मैं आपसे बात नहीं करती…”
“अच्छा भई…” जयसिंह बोले.
“तो बताओ.” मनिका नख़रे से बोली.
“Well… ऐसा इसीलिए है क्यूँकि... जैसा तुमने कहा... you have grown up so much… you know?"
"व... वो कैसे पापा?"
"तुम्हें याद है यहाँ आने से पहले तुम्हारी मधु से लड़ाई हुई थी और उस रात हम यहाँ आकर रुके थे…”
“हाँ… तो..?”
“तो… मुझे कुछ-कुछ एहसास हुआ कि… तुम अब बड़ी हो गई हो...”

उनकी आवाज़ में एक बात छिपी थी.

मनिका को अभी तक जयसिंह की बातें मजाक लग रहीं थी. लेकिन जब उन्होंने उस पहली रात का ज़िक्र किया तो उसे अपने पिता का इशारा समझते देर ना लगी. वो चुप रही.

"क्या हुआ?" जयसिंह ने मनिका का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.
"कुछ नहीं…" मनिका ने हौले से कहा.

एक ही पल में पासा पलट गया था और उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई.

"पापा ने सब नोटिस किया था मतलब… Oh God!”

मनिका और जयसिंह के बीच चुप्पी छा गई थी.

कुछ पल बीतने के बाद मनिका रुक ना सकी और भर्राई आवाज में बोली,
“Papa, I am sorry!”
"अरे तुम फिर वही सब बोलने लगी. मेरी बात तो सुनो.” जयसिंह ने उसे सहलाते हुए कहा.
"वो… वो पापा उस रात है ना मुझे ध्यान नहीं रहा… वो मैं अपने घर वाले कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गई थी और फिर… फिर पहले वाली ड्रेस शॉवर में भीग गई सो… I had to wear those clothes and come out." उसने उन्हें बताया.

फिर मनिका ने एक और दलील दी,
“तब भी मैंने सोचा था की आप क्या सोचोगे… कि मैं कैसी बिगड़ैल हूँ… but the way you reacted, I thought you were embarrassed by my behaviour… तभी आपने मुझे डांटा नहीं… you know…”
"अरे! पागल लड़की हो तुम…" जयसिंह ने मनिका का चेहरा ऊपर उठाते हुए कहा.
"पापा?"

मनिका की नज़र में अचरज था. जयसिंह ने उसके चेहरे से उसके मन की बात पढ़ ली थी.

"तुम्हें लगा कि मैं तुम्हें डांटने वाला हूँ?" मनिका की चुप्पी का फायदा उठा कर जयसिंह बोले.
"हाँ… मुझे लगा आप सोचोगे कि मम्मी सही कह रही थी कि मैं कपड़ों का ध्यान नहीं रखती." मनिका ने बताया.

जयसिंह धीमे-धीमे बोलने लगे ताकि मनिका को पता रहे कि वे मजाक नहीं कर रहे.

“अब मेरी बात सुनो… तुम्हें तो शुक्रगुजार होना चाहिए कि तुमने वो ड्रेस पहनी…”
"क… क्या मतलब पापा?" मनिका के कानों में जयसिंह की आवाज़ गूँज सी रही थी.
“When I realised that you have grown up so much…”

इस बार मनिका उनके आशय से शरमा गई.

सो जयसिंह ने शब्द-जाल बुनना शुरू किया और आगे बोले,
“तभी मुझे लगा कि… I should treat you like an adult, confident girl… न कि तुम्हारी मम्मी की तरह… so I started calling you Manika… you know… ना कि किसी बच्ची की तरह 'मनी' जो सब तुम्हें घर पे बुलाते हैं...”
"ओह…" मनिका ने हौले से कहा.
“तभी तो मैंने तुमसे इंटर्व्यू कैंसिल होने के बाद यहाँ रुकने के लिए भी कहा… because I thought… कि तुम इतना जल्दी वापस नहीं जाना चाहोगी." वे बोले.

जब मनिका चुप रही तो जयसिंह ने उसे कुरेदते हुए पूछा,
“What happened sweetheart?”
"कुछ नहीं ना पापा. I am so embarrassed… एक तो आप मेरा इतना ख़याल रखते हो… and I keep comparing you with mom… और फिर वो आपके सामने ऐसे… I mean… वो ड्रेस थोड़ा… you know… indecent… था ना?"

मनिका ने अंत में आते-आते अपने जवाब को सवाल बना दिया था और एक पल जयसिंह से नज़र मिलाई थी.

"ओह मनिका यार! You are embarrassed again… I am admiring you here… अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ… look at me…"
"जी…" मनिका ने उन्हें देखते हुए कहा.
"देखो, तुम फिर हमारे रिश्ते के बारे में सोचने लगी हो ना?
“जी… "
"पर मैंने तो तुम्हें सपोर्ट ही किया था… did I make you feel uncomfortable?"
“No papa… but…" मनिका से दो शब्द मुश्किल से निकले.
“But what Manika? क्या मनिका?" जयसिंह बोले, "तुम इतनी ख़ूबसूरत लग रही थी… that’s not a crime… and I admired your beauty…"
“But I am your daughter… papa…”
“I know, I know… मुझे पता है… but you are also a young adult woman… and I am a man… right?”
“Yes papa.”
“अब तुम ये सोचोगी कि सोसाइटी-समाज क्या कहेगा… तो जैसा मैं पहले कह चुका हूँ… you cannot understand what I am trying to say.”

मनिका चुप रही.

“अरे भई मुझे तो बहुत अच्छा लगा कि मेरी मनिका इतनी ब्यूटीफुल हो गई है… हम्म?" उसके पिता ने उसका गाल सहलाते हुए कहा.

मनिका के झेंप भरे चेहरे पर एक पल के लिए छोटी सी मुस्कान आई और चली गई थी.

–​
Monica is enjoying talking to father.
23 - पापा

कुछ देर बाद मनिका ने हौले से हिल कर अपने पिता से कहा कि वे आराम से सो जाएँ. जयसिंह ने भी उसे जाने दिया.

मनिका बेड पर अपनी साइड आ कर लेट गई. उसने करवट दूसरी तरफ़ कर रखी थी.

“हाय! पापा ने उस रात मुझे नोटिस किया था… शॉर्ट्स में… पर कुछ कहा नहीं था ताकि मुझे बुरा ना लग जाए… कितने अच्छे है पापा… पर कितनी तारीफ कर रहे थे अभी कि… I was looking very beautiful… हाय, सब कुछ देख लिया था उन्होंने सुबह-सुबह मतलब… शॉर्ट्स तो पूरी ऊपर हुई पड़ी थी… he saw my naked bums… तो क्या उनका डिक इरेक्ट हुआ था… नहीं! Oh God!”

उसका ये सोचना हुआ कि उसे अपने पीछे जयसिंह के होने का एहसास हुआ. उसका दिल जैसे थम गया. “पापा क्या कर रहे हैं?”

जयसिंह ने पीछे से उसके साथ सटकर उसके गाल पर एक किस्स करते हुए कहा,
“I forgot our goodnight kiss… good night darling.”
“Oh papa… good night…” मनिका सिहरते हुए बोली.

जयसिंह ने अब उसे अपने आग़ोश में लेते हुए अपना गाल आगे कर दिया. मनिका ने भी हौले से उनके गाल पर पप्पी कर दी,

‘पुच्च’

फिर उसका चेहरा मोहरा सब सफ़ेद पड़ गए.

जयसिंह उसे छोड़ पीछे होने लगे थे, लेकिन पीछे होने से पहले उन्होंने धीरे से अपना अधोभाग आगे किया और हौले से मनिका की गांड पर अपना खड़ा लंड गड़ा दिया.

“आह!” मनिका के मुँह से एक मादक सी आ निकली.

तब तक जयसिंह पीछे हो कर सो चुके थे, लेकिन वो एक क्षणिक एहसास जो उन्होंने दिया था, उसने मनिका को फिर से उस अंधेरी दुनिया में धकेल दिया था जहाँ से निकलने के वो लाख जतन कर रही थी.

“हाय! क्या वो… पापा का डिक था… हाय… भगवान… पापा ने पीछे से हग किया था मुझे… और उनका वो… बिग ब्लैक कॉक… मेरे बम्स पर लग गया…”

उसने अपने आप को भींच कर उस एहसास को झटकना चाहा, लेकिन उसकी गांड से लेकर उसकी योनि में एक तरंग दौड़ रही थी. कैसा एहसास था ये?

“आज फिर देख लिया था उनका डिक मैंने… हाय कैसे लटकता है… कितना बड़ा है… सच में… उस पॉर्न साइट वाले आदमी जैसा है… तो क्या मर्दों का डिक बाक़ी जनों से बड़ा होता है? उस आदमी का भी पूरे टाइम इरेक्ट ही था… और पापा का भी… कैसे पैंट में रखते होंगे… इतना बड़ा…”

सोचते-सोचते मनिका के कानों में सीटी बजने लगी थी.

“पापा बोले कि… he treats me like a grown up girl… तभी मुझे मनिका कहते हैं… बोल रहे थे हमारी बॉडी की ज़रूरतें अलग-अलग है… and he understands that… सो मैं शरम ना करूँ… पर वो मेरे पापा है… शरम तो आएगी ही ना… he says… सोसाइटी के लिए हम फादर और डॉटर हैं… लेकिन… we are also a man and woman… and he admires me like that… हाय… I also admire him so much… काश पापा जैसा कोई बॉयफ़्रेंड मिल जाता… बड़े डिक वाला… हाय… नहीं-नहीं… उनके जैसा अच्छा…”

मनिका ने अब करवट बदली और अपने पिता की ओर हो कर सोने लगी.

जयसिंह का विशाल शरीर मानो उसकी नज़रों को आमंत्रित कर रहा था. वो रह-रहकर उन्हें देख रही थी.

आज जयसिंह की तरफ़ का नाइट लैम्प बंद था, सो उसे सिर्फ़ खिड़की से आती हल्की रौशनी का ही सहारा था. उसमें भी उसे उनके शरीर के बलिष्ठ उभारों की झलक मिल रही थी.

“जब अभी पापा ने मुझे चुप कराते टाइम अपनी बाँहों में ले लिया था… कितने पावरफुल है वो… जब बाँहों में लेकर कसते हैं तो सारी बॉडी में… अजीब सा लगता है ना? हाय… पक्के मर्द हैं पापा…”

कुछ देर बाद मनिका की आँख लग गई.

–​

कई बार यूँ भी होता है कि हम एक ही सपने को बार-बार देखते हैं, और फिर सपने के बीच हमें एहसास होता है कि ‘ये तो वही सपना है’ और फिर हम उसे अपने हिसाब से ढालने की कोशिश करने लगते है.

मनिका एक बार फिर उस अंधेरे कमरे में थी.

एक अजीब सा भय और उत्सुकता लिया वह आगे बढ़ रही थी. फिर कमरे में हल्की रौशनी हुई और उसने पाया कि वह घर पर अपने कमरे में थी. सामने बिस्तर पर कोई बैठा था.

"मनिका, आओ बिस्तर में आ जाओ.” आवाज़ आई.

उसके पापा थे. उन्होंने बिलकुल होटल वाले जैसा एक कम्बल ओढ़ रखा था. वह मुस्कुरा कर आगे बढ़ी, लेकिन उसके दिल की धड़कन भी बढ़ने लगी. जैसे उसे मालूम हो आगे क्या होने वाला है.

"पापा?" मनिका ने कहा.
"हाँ डार्लिंग?" उसके पापा मुस्कुराए.

वही कुटिल, गंदी मुस्कुराहट जिसे वो इतना अच्छे से जानती थी. जयसिंह ने हाथ बढ़ा कर उसका हाथ पकड़ लिया, उनकी आक्रामकता मनिका को पागल करने लगी थी. उसके पिता ने उसे अपनी ओर खींचा, उन्होंने ऊपर कुछ भी नहीं पहन रखा था.

"पापा, क्या करते हो?” मनिका फुसफुसाई.
"रात हो गई है, सोना नहीं है?" उसके पापा ने आगे कहा.
“हाँ पापा…” मनिका मदहोश सी बोली.
“तो आ जाओ…” कह उसके पापा ने कम्बल एक तरफ कर दिया.
“पापाऽऽऽ… हाय…!" मनिका कंपकंपाने लगी.

उसके पापा कम्बल के अन्दर पूरे नंगे थे, उनका काला लंड ऊपर उठा हुआ हौले-हौले हिल रहा था.

“हाय पापा… आप… आप नंगे हो!”
"पर तुम भी तो नंगी हो मेरी जान…" जयसिंह ने उसी कुटिल मुस्कान के साथ कहा.
“हम्प मैं…? मैं भी!” मनिका ने नीचे देखा.

वह भी पूरी तरह से नंगी थी.

उसके पिता ने उसे फिर खींचा और अपने आग़ोश में ले लिया. मनिका उस नंगे जिस्मों के स्पर्श से तड़प उठी. पापा का वो… उसकी योनि पर छू रहा था.

“हाय पापा… कितना बड़ा है… आपका….”
“क्या? क्या बड़ा है पापा का..?”
“बिग ब्लैक कॉक पापा… हाय…” उसने अपने हाथ से अपने पापा का लंड कस कर पकड़ते हुए कहा.

"आह… नाआऽऽऽ…"

अंधेरे में मनिका की आँख खुली.
–​
Innocent Monica is getting into father's trap.
25 - गुड नाइट

जब मनिका की आँख खुली तो ग़ज़ब हो चुका था. उसके पापा उसके ऊपर थे और अपनी टांगे खोल कर उसे बीच में ले रखा था. उनके लिंग वाला हिस्सा ठीक उसकी योनि पर टिका था. जयसिंह का चेहरा उसकी चेहरे के बग़ल में उसके बालों में था. उनकी गरम साँसें उसे अपने गालों और गले पर महसूस हो रही थी. और उसके स्तन, उसके पिता की चौड़ी छाती के नीचे दबे थे.

“हम्प!” मनिका कसमसाई.
“उम्म…” जयसिंह भी थोड़ा हिले-डुले.
“पापा?” मनिका ने हौले से उन्हें दूर हटाना चाहा.
“हम्म?” वो ऊँघे.
“उठो ना…” मनिका ने मंद आवाज़ में कहा.
“हम्म…” कहते हुए जयसिंह थोड़ा सीधा हुए, “क्या टाइम हो गया?”

मनिका की जान में जान आई.

“पता नहीं…” वो उनकी गिरफ़्त से आज़ाद होते ही उठ बैठी और अपने अस्त-व्यस्त कपड़े ठीक करने लगी. “शाम हो गई है.”
“हैं..? सच में?” जयसिंह ने भी थोड़ा उठ कर बैठते हुए कहा, “आज तो हमने लंच भी मिस कर दिया लगता है.”
“ज… जी पापा.” मनिका की नज़र उनकी टांगों के बीच गई.

क्या उनकी पैंट में एक उठाव सा नज़र आ रहा था?

“हाय… हम कैसे सो रहे थे?”

कुछ बात चालू हो, इसके लिए मनिका ने दीवार घड़ी की ओर देखा. 5 बजने को आए थे.

“Papa… it’s 5 O’clock…”
“सच में? समय का पता ही नहीं चला आज तो… चलो कुछ खाने-पीने को मँगवा लो…”
“हाँ पापा… अभी तो हमारी पैकिंग भी बाक़ी पड़ी है.”

जयसिंह भी काउच से उठ चुके थे. उन्होंने एक नज़र मनिका से मिलाई और हँस कर बोले.

“नई गर्लफ़्रेंड के साथ ऐसी नींद आई कि पता ही नहीं चला.”
“हेहे पापा… आप तो ना… जाओ जाके मुँह हाथ धो लो, मैं कुछ ऑर्डर करती हूँ…”
“जो हुकुम मेरे आका…” जयसिंह बोले और उसे एक हवाई किस्स दिया.
“पागल..!” मनिका ने हौले से कहा.

फिर चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कान लिए मनिका फ़ोन के पास पहुँची. लंच न करने और डिनर का वक्त क़रीब होने की वजह से उसने सोचा कि दोनों टाइम का खान-पान साथ ही कर लिया जाए. यही सोच कर उसने काठी-रोल, पाव-भाजी और चाऊमिन का ऑर्डर कर दिया.
जयसिंह बाहर आ गए थे और धीरे-धीरे अपना कुछ सामान अटैची में जचाने लगे.

इस दौरान मनिका भी जा कर टॉयलेट कर आई. कमोड की सीट पर बैठते वक्त उसे एक पल ख़याल आया कि पापा कैसे वहीं सामने खड़े हो कर पेशाब करते होंगे. हालाँकि उसने अपने-आप को धिक्कारा था लेकिन इस तरह के ख़यालों को अब मन से निकालना उसके बस से बाहर हो चुका था.

खाना-पीना करने के बाद जयसिंह ने सुझाया कि कुछ देर घूम आया जाए. आख़िर सुबह तो उन्हें जाना ही था. मनिका भी राज़ी हो गई.
सो वे गुड़गाँव की MG Road घूमने चल दिए. वहाँ काफ़ी सारे मॉल और रेस्तराँ इत्यादि हैं.

घूमते-घूमते जयसिंह ने मनिका से पूछा अगर वह कुछ लेना चाहती हो. पर मनिका ने शरारत भरी मुस्कान से कहा कि बाक़ी शॉपिंग वह दिल्ली वापस आ कर कर लेगी. कुछ देर window shopping करते रहने के बाद, जयसिंह और मनिका एक आलीशान शोरूम के आगे से गुजरे, ‘Victoria’s Secret’. बाहर डिस्प्ले में जो चीज़ें लगी थी, उन्हें देख अनायास ही बाप-बेटी की नज़रें मिल गई.

जयसिंह की आँखों में चमक थी और मनिका के चेहरे पर हया. जयसिंह ने कुछ ना कहा लेकिन उसका हाथ पकड़ लिया और आगे बढ़ चले.
मनिका को जयसिंह का वो स्पर्श मानो लालायित कर रहा था.

कुछ आगे चलने पर एक बहुत बड़ा ज़ेवेलरी स्टोर आया. जयसिंह ने देखा कि मनिका ने बड़े गौर से बाहर डिस्प्ले में लगे आभूषण देखे थे. हालाँकि उसके बाद वे कुछ कदम आगे बढ़ चुके थे, पर फिर जयसिंह रुके और मनिका को साथ ले वापस मुड़ आए.

“Papa… where are you going?”
“अरे आओ ना…” जयसिंह बोले.

जयसिंह उसे आभूषणों के उस आलीशान शोरूम में ले गए. मनिका मंत्रमुग्ध सी उनके साथ चल रही थी.

“पापा? क्या ले रहे हो यहाँ से..?” आख़िर उसने पूछा.
“अपनी गर्लफ़्रेंड के लिए गिफ़्ट…” जयसिंह ने रहस्यमई अन्दाज़ में कहा.

जयसिंह ने मनिका को एक अंगूठी को बहुत कौतुहल से देखते हुए देखा था. सो जब शोरूम के सेल्स-बॉय ने उनसे पूछा कि वे क्या लेना पसंद करेंगे तो वे बोले,

“वो बाहर… नीले डिस्प्ले में जो अंगूठी लगी है… वो दिखा सकते हैं.”

सेल्स-बॉय की बाँछे खिल उठी. आख़िर बाहर के डिस्प्ले में शोरूम वाले सबसे महंगी और लुभावनी चीज़ें ही लगा कर रखते हैं. उसने फट से हामी भरी और अदब से झुक अपने मैनेजर की तरफ़ दौड़ा.

जयसिंह ने मनिका की तरफ़ देखा. उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं.

“Papa… what..?”
“Shh… you are my girlfriend, remember?” जयसिंह उसके होंठों पर अंगुली रख बोले.
“But…”

उतने में वो लड़का मैनेजर को ले आया था,

“Hello sir… welcome to Sarathi Jewellers sir… बैठिए ना…” मोटी आसामी देख, मैनेजर की आँखे चमक रहीं थी.
“वो बताया ना आपके लड़के को रिंग का…” जयसिंह थोड़ी तल्ख़ी और रौब से बोले.
“हाँ जी… हाँ जी… विपिन! जाओ वो मुग़ल कलेक्शन वाला रिंग सेट लेकर आओ सर के लिए… कब से वेट कर रहे हैं सर…” मैनेजर ने लड़के को हड़काया.

फिर उनसे मुख़ातिब हो बोला,

“आप बैठिए ना सर… क्या लेंगे? चाय-कॉफ़ी, कोई शेक वग़ैरह?”
“नहीं-नहीं… बस ठीक है.” कहते हुए जयसिंह बैठ गए.

मनिका क्या करती, वह भी उनके बग़ल में बैठ गई. उसकी आँखों के आगे तो तारे नाच रहे थे.

“Papa noticed me looking at the ring… is he going to buy it? It was looking so expensive..!”

सेल्स वाला लड़का लौट आया था. उसने पाँच-सात नीली डिब्बियाँ खोल कर उनके सामने जँचा दी. इतने असमंजस के बावजूद उन खूबसूरत अंगुठियों को देख मनिका के मन ने आह भरी.

“हे भगवान! क्या कमाल की रिंग्स हैं…”

मैनेजर अब एक-एक कर उन्हें अंगुठियाँ दिखाने लगा,

“Pure gold sir… worked by special artists… with diamond face… you can also pick a stone of your choice sir…”

जयसिंह ने उसकी दिखाई अंगूठी हाथ में ली. फिर मनिका को दिखाई.

“Buying for ma’am sir?” मैनेजर ने पूछा, “your..?”
“Girlfriend…” जयसिंह ने एकदम सामान्य आवाज़ में मनिका का परिचय करवाया.
“Of course sir…” मैनेजर ने मुस्तैदी से कहा, “ये वाली देखिए मैम…”

–​

वे लोग होटल लौट आए थे.

सारथी ज़ेवेलर्स का बैग कॉफ़ी टेबल पर रखा था और मनिका स्तब्ध सी सोफ़े पर बैठी थी.

“हाहा… क्या हुआ भई? इतनी चुप्पी?” जयसिंह हंसते हुए उसके पास आ बैठे.
“पापा! तीन लाख… तीन लाख की रिंग… आप पागल हो क्या?” मनिका हैरान-परेशान सी बोली.
“अरे… तीन लाख कहाँ… two lakh ninety nine thousand nine hundred only…” जयसिंह ने उस शोरूम वाले मैनेजर की सी आवाज़ निकालते हुए कहा.
“पापा… मसखरी मत करो… वापस दे आते हैं…”

अब जयसिंह ने उसे अपनी गोद में खींच लिया. मनिका उनके पास आ गई, मगर उसने मुँह फेर रखा था.

“अरे भई… क्या हो गया? मुझे लगा गर्लफ़्रेंड खुश होगी… ये तो मुँह फुलाए बैठी है…”
“हाय पापा… इतने पैसे लगाता है क्या कोई… पागल हो आप…” मनिका ने थोड़ा भर्राए गले से कहा.
“ओहो… तुम्हें नहीं पसंद… तो चलो वापस कर आते हैं… नहीं पसंद है ना?”
“Papa it’s so costly na…” मनिका ने मचल कर उनकी तरफ़ देखा. आख़िर अंगूठी तो उसे बहुत पसंद आई थी.
“Manika, I told you na darling, don’t worry about the money?” जयसिंह ने उसका गाल सहला कर कहा.
“हाँ पापा… पर इतना खर्चा… घर पे क्या बोलूँगी…”
“ओहो… बताया तो था… कुछ चीज़ें सबसे बोलने की नहीं होती… घर पे कुछ नहीं बोलना… हम्म?” जयसिंह ने उसका गाल थपथपाया.
“हाय पापा… आप तो बस… मेरी जान निकाल देते हो…” मनिका उनके हाथ पर गाल रगड़ते हुए बोली.
“तो फिर रखनी है ना… या वापस करनी है?” जयसिंह ने मुस्कुराते हुए पूछा.
“रखनी है पापा…” मनिका बरबस उनके गले लग कर बोली.

जयसिंह का मुँह उसके कान के पास था. उनके मन में एक और हिमाक़त आई. वे उसके कान के पास फुसफुसाए,

“पता नहीं कैसी गर्लफ़्रेंड मिली है मुझे… हूँ… अंगूठी दिलाओ तो नाराज़… पैंटी दिलाओ तो नाराज़…”
“हाय पापा! क्या बोलते हो…” मनिका उनकी बात सुन मचल उठी.

उसके चेहरे पर शरम की सुर्ख़ लालिमा छा गई थी.

–​

मनिका बाथरूम में नहा रही थी.

“Oh god! Papa bought that ring… three lakh… और मैंने तो कहा भी नहीं लेने को… बस देखा भर था… हाय! ऐसा कौन करता है… सच में पागल होते हैं क्या ये मर्द लोग..?”

फिर उसे जयसिंह का छेड़ना याद आ गया.

“हाय… बोले पैंटी दिलाऊँ तो नाराज़… हाय ऐसे अपनी बेटी को कोई छेड़ता है भला… पर पापा तो मुझे अपनी गर्लफ़्रेंड कहने लगे हैं… मुझे ‘मनिका’ कहते है… क्या पापा मुझसे मोहब्बत करते हैं..? हाय मैं क्या सोचने लगी…”

मनिका अपने जवान उरोजों पर साबुन मलते हुए तरंगित हो रही थी. फिर उसने अपने विचारों की डोर थामते हुए सोचा,

“ऐसा कुछ नहीं है… पापा तो पापा हैं… बस थोड़े पागल हैं…”

लेकिन लड़कियों को जो बात सबसे ज़्यादा उत्तेजित करती हैं वो है मर्दों का पागलपन और बेबाक़ी. वैसे भी, जयसिंह के खिलंदनपड़ और आत्मविश्वास ने उसके अंतर्मन में स्थान बना लिया था. और आज जिस तरह से बिना सोचे-समझे उन्होंने उसकी एक नज़र पर इतना पैसा उड़ा दिया था, उसके बाद मनिका उनके चंगुल से निकल पाती इसका सवाल ही पैदा नहीं होता था.

नहा लेने के बाद मनिका ने अपनी धोई हुई बैंगनी ब्रा और गुलाबी थोंग तार पर डाली. एक पल उसे फिर पापा का सताना याद आ गया और उसने लजाते हुए सोचा,

“अभी पापा नहाने आएँगे… इन्हें ऐसे ही छोड़ दूँ…?”

फिर अपनी सोच पर घबरा कर उसने अपने अंतःवस्त्र तौलिए से ढँक दिए और बाहर निकल आई.

–​

आज जयसिंह तौलिया लपेटे बेड पर बैठे थे. फिर से उन्होंने अपनी टी-शर्ट और बनियान निकाल दिए थे.

मनिका उन्हें देख मुस्काई. जयसिंह बोले,

“मनिका वो मेरे कपड़े उधर काउच पर रखे हैं. उन्हें ज़रा मेरे छोटे बैग में रख देना. घर जा कर धुलवा लेंगे.”
“जी पापा.” कह मनिका काउच की तरफ़ बढ़ी.

जयसिंह भी बेड से उठने को हुए. मनिका की चोर नज़र मानो उनके उठने का इंतज़ार ही कर रही थी. उसने धीरे से मुँह फेर उनकी टांगों के बीच देखा.

जयसिंह ने ऐसे जता रहे थे मानो अपने फ़ोन में कुछ देखते हुए उसे साइड में रख रहे हैं. लेकिन उनकी असली मंशा तो मनिका को लंड का दीदार करवाने की थी. कुछ सेकंड तक वो आधे उठे हुए, बेड पर टेक लगाए फ़ोन में देखते रहे.

इस बीच मनिका को अपने पिता के मूसल का भरपूर दीदार मिला. मनिका की नज़र जैसे उसपर जम चुकी थी.

उनका काला चमकता मर्दांग मानो फड़क सा रहा था.

जयसिंह ने फ़ोन एक तरफ़ रखा और उठ खड़े हुए. मनिका ने घबरा कर उनसे नज़र मिलाई, वे उसे देख मुस्कुराए. मनिका भी धीमे से मुस्कुरा कर पलट गई और उनके खोले कपड़े उठाने लगी.

बाथरूम का दरवाज़ा बंद होते ही मनिका ने गहरी साँसें भरीं.

“हाय राम! कितना बड़ा है… और आज फिर… पापा तो इतने रिलैक्स हो गए हैं… उनको अंदाज़ा ही नहीं कि उनका वो… ऐसे दिखता है… मैं भी तो वहीं देखने लगती हूँ… बिग ब्लैक कॉक… डोंग… हाय!”

अनायास ही उसने अपने आप को भींच लिया. एक पल बाद उसके नाक में जयसिंह के जिस्म की गंध पड़ी. अपने हाथ में लिए उनके कपड़ों को देख वो सिहर गई.

“पापा की बॉडी की ख़ुशबू… कैसी अजीब सी है… मर्दाना सी…” उसने एक गहरी साँस भरी.

फिर उसने देखा कि काउच पर जयसिंह का निकाला हुआ कच्छा भी पड़ा था.

“हाय पापा ने अपना अंडरवियर भी यहीं छोड़ दिया.”

कांपते हाथ से उसने अपने पिता का अंडरवियर उठाया. उसके हाथ में जैसे लकवा मार गया था. तेज कदमों से वो जयसिंह के बैग के पास गई और उनके कपड़े उसमें रखे. एक पल के लिए उसके मन में विचार आया कि जयसिंह का अंडरवियर सूंघ के देखे, और वो थर्रा उठी थी.

–​

जब जयसिंह नहा कर आए तो मनिका अपना सामान जमा रही थी.

“हो गई पैकिंग?” उन्होंने पूछा.
“जी पापा… बस हो ही गई…” मनिका ने कुछ कपड़े तह करके रखते हुए कहा.

उसने अपनी नई ली पोशाकें अटैची में नीचे दबा कर रख दी थी और ऊपर पुराने कपड़े रख रही थी.

“वो कपड़े डाल दिए मेरे बैग में?” जयसिंह ने अपने सिर से पानी झटकते पूछा.
“ह… हाँ पापा.” मनिका ने अपराधबोध भरी आवाज़ में कहा.

जयसिंह के कहने पर मनिका ने उनकी अटैची से सुबह पहनने के लिए एक पैंट-शर्ट निकाल कर काउच पर रख दिए थे. उसने अपना भी एक सलवार-सूट अटैची में ऊपर रख लिया था. पैकिंग करने के बाद उन्होंने अपना सामान एक ओर जमा दिया.

“सुबह ट्रेन 9 बजे की है… थोड़ा जल्दी उठ कर ब्रेकफ़ास्ट मँगवा लेंगे… फिर चल चलेंगे… हम्म?”

जयसिंह ने फ़ोन में आया टिकट वाला मेसेज पढ़ते हुए कहा.

“जी पापा.” मनिका बिस्तर में आते हुए बोली.

वे उसे देख मुसकाए और अपने पास आने का इशारा किया. मनिका उनके बाजू में आ लेटी.

“अंगूठी रख ली सम्भाल के?”
“हेहे… हाँ पापा. Thank you…”
“हाहा. अभी तो बस शुरुआत है… वापस डेल्ही आ कर भी तो शॉपिंग करनी है ना?”
“हाँ…” मनिका ने कसमसा कर खनकती हुई आवाज़ में कहा.
“हम्म खुश है मेरी जान?”
“हाँ पापा…” मनिका ने धीमे से कहा.

कुछ पल चुप्पी छाई रही. फिर मनिका बोली,

“हम कितने… close… हो गए हैं ना पापा?”
“हम्म… क्यूँ पहले नहीं थे क्या?”

जयसिंह उसका आशय तो समझ गए थे पर उसे उलझाने के लिए बोले.

“थे… तो सही… पर मेरा मतलब है… यहाँ आकर… ऐसे…”
“कैसे?” जयसिंह ने उसकी आँखों में आँखें डाल पूछा.
“यही… इतना frankly एक दूसरे से बात करना… you know…”
“अब दिल्ली की हवा तो बड़े-बड़ों को लग जाती है, थोड़ी हमें भी लग गई…”
“हेहे पापा…” मनिका ने थोड़ा सकुचा कर आगे कहा, “थोड़ा अजीब लगता है ना मगर?”
“हम्म…”
“आपको नहीं लगता?” जयसिंह से मन माफ़िक़ जवाब न पा, मनिका ने फिर पूछा.
“ऐसे गर्लफ़्रेंड-बॉयफ़्रेंड होना?” जयसिंह ने कहा.
“ह… हाँ…” मनिका सकपका गई.
“Well… मैंने तो पहले ही कहा था… हम अडल्ट हैं… हमें जो अच्छा लगे कर सकते हैं… इसमें अजीब क्या है?”
“प… पर आप मेरे… I know… मैं हमारे सोशल रिश्ते के बारे में बोल रही हूँ… पर वो भी तो एक सच है.”
“हाहा… तो मैंने कहा तो था… डेल्ही में गर्लफ़्रेंड और घर पे डॉटर… हम्म?” जयसिंह ने उसकी ठुड्डी पकड़ कर हिलाई.
“ह… हाँ…” मनिका को उनकी बात का जवाब नहीं सूझा.
“और कभी-कभी… घर पे भी गर्लफ़्रेंड… हम्म?” जयसिंह ने उसे गुदगुदाया.
“हीही… पापा… क्या कहते हो?” मनिका उनके हाथ पकड़ मचली.
“अरे भई… सब के सामने नहीं तो सब के पीठ पीछे तो हम enjoy कर सकते हैं कि नहीं?” जयसिंह की आवाज़ में एक भारीपन था.
“हाय पापा… लग रहा है आप तो मरवाओगे मुझे…”
“हाहा… अरे कुछ नहीं होगा… मैं हूँ ना…”

मनिका समझ नहीं पा रही थी कि उनकी बातचीत कैसा अजीब मोड़ लेने लगी थी.

“पर पापा… हम… real girlfriend-boyfriend थोड़े ही हो सकते हैं..?”
“क्यूँ नहीं हो सकते…” जयसिंह ने फिर उस से नज़र मिलाई.
“वो… आप की तो मम्मी से शादी हो गई है ना…” मनिका से और कुछ कहते नहीं बना.
“हाहा… तो गर्लफ़्रेंड तो बीवी से अलग होती है… कि नहीं?”
“हेहे… आप तो कुछ ज़्यादा ही बिगड़ गए हो…” मनिका ने शरमा कर उलाहना दिया.
“तुम मधु की चिंता मत करो… उसे सम्भालना मुझे अच्छे से आता है… तुम बस enjoy करो पापा के साथ… हम्म?”
“जी पापा…”

मनिका न जाने क्यूँ अपने पिता का प्रतिकार ना कर सकी थी.

“घर जा कर कहीं अपनी बात से बदल मत जाना…” जयसिंह ने उसे चेताया, “कहीं वहाँ जाकर फिर से तुम… फादर-डॉटर… और सोसाइटी के चक्करों में पड़ जाओ.”
“हेहे पापा… नहीं…” मनिका ने धड़कते दिल से उनको आश्वस्त किया.

फिर उसे एक बात याद आई.

“पापा?”
“हम्म?”
“वो आपने मेरी पिक्स ली थी ना… ड्रेसेज़ वाली…”
“हाँ…”
“वो तो डिलीट कर देते…”
“क्यूँ?”

मनिका ये तो कैसे कहती की वो तस्वीरें बेहद अश्लील हैं. सो उसने हौले से कहा,

“कोई देख ना ले…”
“हाहा… अरे कोई नहीं देखेगा… तुम चिंता मत करो…”
“पर पापा…”
“मैंने कहा ना… it’s okay…” जयसिंह की आँखों में एक आक्रोश था.
“ज… जी पापा.”

जब और मनिका कुछ नहीं बोली, तो जयसिंह ने छेड़ा,

“घर जा कर मन लग जाएगा… मेरी जान का?”
“उन्हु…” मनिका ने ना में सिर हिलाया.
“उदास है मेरी जान?” उन्होंने आगे पूछा.
“हूँ…” मनिका ने हाँ कहा.
“तो कैसे खुश करूँ उसे?”

जयसिंह ने इस बार ज़ोर से उसे गुदगुदाया.

“आऽऽई… पापा!” मनिका खिलखिला उठी.
“बोलो ना…”

मनिका अब पीठ के बल लेटी थी और जयसिंह उसे गुदगुदा रहे थे. कभी उसका पेट तो कभी उसके बाजू और बग़लें.

“हाहाहा पापा… क्या करते हो… ईईई… छोड़ो ना! नहीं हूँ उदास…”

कुछ पल इस तरह मनिका के जिस्म पर हाथ सेंकने के बाद जयसिंह ने उसे छोड़ दिया.

“मैंने पहले ही कहा था… उदास नहीं रहना है… कहा था ना…”
“हेहे… हाँ पापा… मान तो रही हूँ आपकी बात…” मनिका उनके हाथों को देखते हुए मचली.
“तो चलो अब मेरी किस्स दो और सो जाओ… सुबह जाना भी है…”

मनिका के चेहरे पर शर्मीली लाली थी. वो हौले से उठी और जयसिंह के गाल पर पप्पी कर दी.

“Good night papa…”
“हम्म…” जयसिंह ने हामी भरी.

फिर उन्होंने उसके बाजू पकड़ उसे फिर से पीठ के बल लेटा दिया. वे उसके ऊपर झुक आए थे. मनिका ने उनका इशारा समझ चेहरा एक तरफ़ कर लिया था.

‘पुच्च, पुच्च, पुच्च’

जयसिंह ने उसके गाल पर तीन-चार चुम्बन जड़ दिए.

लेकिन मनिका का दिल तो कोई और बात दहला रही थी.

इस तरह उसके ऊपर झुकते ही उसके पिता का लंड उसकी जाँघ छूने लगा था. उसकी सख़्ती का एहसास होते ही मनिका निढाल, निश्चल पड़ गई थी.

जयसिंह ने हौले से कहा,

“Good night darling…”

–​
Achhi chide chad chal rahi hai baap beti me.
26 - वापसी

जयसिंह की बातों से मनिका एक चीज़ तो समझ चुकी थी.

उसके पापा उनके रिश्ते को एक अलग ही नज़रिए से देख रहे थे. उनकी कही बातें अब उसके मन में गूँज सी रही थी,

“डेल्ही में गर्लफ़्रेंड और घर पे डॉटर… हम्म… घर जा कर कहीं अपनी बात से बदल मत जाना… और कभी-कभी… घर पे भी गर्लफ़्रेंड… हम्म?”

और फिर उनके वो चुम्बन,

“पापा कैसे किस्स कर रहे थे… दो-तीन बार… वरना एक बार करते थे… और पहले तो वो भी नहीं… तो क्या सच में पापा समाज के नियमों को नहीं मानते..? और उनका डिक जो… क्या उन्हें पता चला होगा..? पता तो चला ही होगा… हाय! ये तो पाप है… पर पापा को रोक नहीं पाई मैं… उनका डोंग… कितना बड़ा है… आज कैसे टॉवल में… और दोपहर में काउच पर मेरे ऊपर सो रहे थे… उनका वो पार्ट मेरे ऊपर था… क्या मैं भी पापा से मोहब्बत करने लगी हूँ?”

वो पलट कर जयसिंह की तरफ़ देखने लगी.

वो पीठ के बल थे, और रोज़ की तरह मनिका के दिल का क्लेश वो तम्बू नज़र आ रहा था.

“हाय! पापा कैसे सो रहे हैं आराम से… और कितना ख़र्चा कर आए आज… तीन लाख कि डायमंड रिंग और पापा ने ऐसे ही दिला दी… बोलते हैं enjoy करो… सोचो मत… अच्छा तो लगता है पापा के साथ… पर उनकी गर्लफ़्रेंड बनना..? नहीं-नहीं ऐसा नहीं करूँगी…”

मनिका आँखें बंद सोने की कोशिश करने लगी. पर उस रात उसने कोरी करवटें ही बदलीं थी, उसके धर्मसंकट ने उसे सोने नहीं दिया.

–​

“मनिका!”

अगली सुबह जयसिंह की आवाज़ से उसकी आँख खुली.

“हूँ… क्या?” उसने ऊनींदी सी होकर कहा था.

फिर एक झटके में उसकी आँख खुल गई. पापा बिलकुल उस के क़रीब थे और धीरे-धीरे उसका गाल सहला रहे थे.

“पापा?” उसने बड़ी-बड़ी आँखें खोलते हुए कहा.
“उठ जाओ… चलना नहीं है?”
“ज… जी…” मनिका उठने को हुई.

लेकिन जयसिंह ने उसे थामे रखा था.

“हाहा… अरे आराम से… इतनी भी जल्दी नहीं है… नाश्ता ला रहा है वेटर…”
“ओह… पापा… मैं उठ कर फ़्रेश… हो जाती हूँ…”

उसकी नज़र जयसिंह के बरमुडे में खड़े लंड पर जा टिकी थी और अटकते-अटकते उसने अपनी बात पूरी की.

लेकिन उसके बाद उनका समय दौड़-भाग में ही बीता. नाश्ता करते ही वे लोग तैयार होकर नीचे लॉबी में आ गए. जयसिंह ने कहा था कि नहा कर तो सोए ही थे, हाथ-मुँह धो, फ़्रेश हो ही लिए, अब चलते हैं. कैब पहले से आई खड़ी थी.

वे लोग स्टेशन पहुँचे और एक कूली कर अपने कम्पार्ट्मेंट में आ बैठे. जयसिंह ने कैब वाले को और कूली को बढ़िया टिप दी थी.
कुछ ही पल में ट्रेन चल पड़ी.

–​

मनिका को बरबस ही उनके पहले ट्रेन के सफ़र की याद आ गई.

एक वो दिन था और एक आज का दिन था. बाप बेटी के बीच सब कुछ बदल चुका था.

जयसिंह आज भी सामने बैठे मुस्कुरा रहे थे, और मनिका लाख जतन के बाद भी उन्हें एक शर्मीली मुस्कान दिए बिना ना रह सकी.

जयसिंह ने अपने पैर खोलते हुए उसे आमंत्रण दिया. एक पल की झिझक के बाद वो उनकी गोद में थी.

“हाय! कल रात कितना सोचा था कि पाप को मना करूँगी… पर कर ही नहीं पाती… कितनी शैतानी से मुझे उठाया था उन्होंने… हर बार सोचती कुछ हूँ होता कुछ है…”

दरअसल एक लड़की को वश में करने का सबसे बड़ा हथियार है उसकी आत्मीयता प्राप्त कर लेना. जयसिंह ने मनिका को अपने साथ इतना अंतरंग कर लिया था कि अब वह सोचने-समझने के काबिल नहीं रही थी. वैसे भी 22 साल की बाली उमर में उसे क्या पता था कि मर्द जात कितनी सयानी होती है.

“बड़ी अच्छी लग रही हो…” जयसिंह ने उसकी तारीफ़ का पुल बाँधना शुरू किया.
“ईश… thanks papa…” उसने बहलते हुए कहा.
“खुश हो अब?” जयसिंह के सवाल के कई मतलब हो सकते थे, और थे भी.

मनिका को भी इसका एहसास था.

“जी…” उसने धीमे से कहा.
“जी क्या?” जयसिंह ने कुरेदा.
“जी पापा… खुश हूँ…” मनिका ने लजा कर बताया.

तभी टिकट चेकर कम्पार्ट्मेंट का गेट खोल अंदर दाखिल हुआ.

मनिका उसे देख कर इतनी घबराई जैसे उसकी कोई चोरी पकड़ी गई हो. उस से न हिलते बना ना डुलते. टिकट चेकर भी सरकारी कर्मचारी था, एक जवान बाला को एक अधेड़ की गोद में बैठा पा कर सकपका गया.

लेकिन जयसिंह ने ऐसा जताया मानो कुछ हुआ ही ना हो.

आख़िर टिकट चेकर बोला,

“मनिका सिंह और जयसिंह?”
“हाँ.” जयसिंह ने कहा और अपना ID card दिखाया.
“ठीक है.” कह टिकट चेकर चलता बना.

मनिका किसी सधी हिरणी सी बैठी थी. उसके जाते ही वो उचकी.

“पापा! वो… टीटी…”
“हाहा… अरे कुछ नहीं कहेगा वो… बैठो तुम आराम से…”

जयसिंह ने बेपरवाह होकर कहा, और अपना हाथ मनिका की जाँघ पर रख लिया.

मनिका ने आज एक चूड़ीदार सलवार-सूट पहन रखा था. लेग्गिंग्स की तरह सलवार भी टाइट थी. जयसिंह के स्पर्श का उसे एक ही पल में आभास हो गया था.

अब वे उसकी जाँघ सहलाने लगे.

मनिका के तन और मन दोनों ने उसका साथ छोड़ दिया था. उसमें मानों अपने पिता के प्रतिरोध की बिलकुल क्षमता नहीं बची थी.

“मैंने कहा ना मनिका… enjoy करो… हम्म?” जयसिंह ने उसके गाल से गाल लगाते हुए उसके कान में कहा.
“हूँ…” मनिका ने आह भरी और उनके हवाले हो गई.

–​

कुछ देर बाद जयसिंह ने मनिका को अपनी सीट पर जाने दिया. वो शर्मीली सी मुस्कान लिए सधी हुई बैठी थी.

अब जयसिंह के प्लान का अंतिम चरण शुरू हो चुका था.

मनिका को यहाँ तक ले आने के बाद अब उन्हें उसे दो कदम पीछे धकेलना था. ताकि उसका आचरण इतना ना बदल जाए कि घर जाते ही सबको शक हो जाए. वे आराम से अपनी सीट पर लम्बे हो कर बैठ गए और कम्पार्ट्मेंट की दीवार के साथ टेक लगा लिया.

“वैसे पता ही नहीं चला कब पंद्रह दिन बीत गए… नहीं?” उन्होंने कहा.

मनिका जो फिर उनके और उसके बीच चल रही शरारतों के बारे में सोच रही थी उनकी बात सुन थोड़ी सकपकाई. फिर उसने भी मुस्काते हुए कहा,

“हाँ पापा… अभी कल ही की बात लगती है हम डेल्ही जा रहे थे.”
“और नहीं तो क्या… तुम माँ-बेटी प्लेटफ़ॉर्म पर लड़ रहीं थी… और आज तुम पक्की दिल्लीवाली हो चुकी हो…” कह जयसिंह हँसे.
“हेहे पापा… सही में… इतना फ़न किया हमने इस ट्रिप पर…” मनिका भी थोड़ी हँस कर बोली.
“अब घर जाते ही दोनों माँ-बेटी फिर शुरू मत हो जाना… हम्म? मधु चिक-चिक करे तो सुन लेना थोड़ा… वरना वो मेरी जान को आफ़त करेगी…” जयसिंह ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा था.
“हाहाहा… क्यूँ पापा… मम्मी से इतना डर लगता है आपको?” मनिका खिलखिला दी थी.
“डरता तो मैं किसी के बाप से नहीं हूँ…” जयसिंह ने मज़ाक़िया अन्दाज़ में कहा था.
“हाहाहा… बस मेरी माँ से हो…” मनिका लोटपोट होने लगी.

जयसिंह यही तो चाहते थे, कि वो उनके रिश्ते से इतर सोचे, ताकि एक तो उसकी झिझक कम हो और दूसरा उसका ध्यान एक बार फिर से घर-परिवार के बंधनों पर जाए. यही तो वो ज़ालिम सीमाएँ थी जिनके बीच के उन्हें अपना झंडा गाड़ना था.

उनका तीर फिर एक बार बिलकुल निशाने पर लगा था. कुछ ही देर में मनिका और उनके बीच वापस उन विषयों पर बातें होने लगी जिनकी परवाह पिछले पंद्रह दिनों में उन्होंने छोड़ दी थी. ताऊजी की पीठ का दर्द कुछ कम हुआ होगा के नहीं, श्याम अंकल की बेटी की शादी, और कनिका का बोर्ड ईयर. ट्रेन चलती रही और मनिका एक बार फिर अपने बाड़मेर वाले स्वरूप में ढलती गई.

लेकिन अगर कोई पर्दा हटा कर देखता तो वो अब ‘मनि’ नहीं, सच में ‘जयसिंह की जवान बेटी मनिका’ थी.

जयसिंह ने इसके बाद पूरे सफ़र में कोई ऐसी बात या हरकत नहीं दोहराई थी जिस से मनिका को लगता कि वे उसे बेटी के सिवा और कुछ भी समझते हैं. दोनों ने दिल्ली जाने से पहले वाली हँसी-ठिठोली करते हुए खाना खाया था. उसी दौरान टिकट चेकर भी एक और चक्कर लगा गया था, सरकारी आदमी था, उसे लगा कुछ ऐसा-वैसा चल रहा होगा तो धमका कर दो पैसे बटोर लेगा. लेकिन बाप-बेटी को अपनी-अपनी जगह बैठे बतियाते देख वो भी खिसिया कर निकल लिया.

शाम ढले जब वे लोग बाड़मेर पहुँचे तो ड्राइवर पहले से उनका इंतज़ार कर रहा था.

आज मनिका वैसे भी अच्छे से ढँकी छुपी थी. वैसे भी अब जयसिंह उसकी गंदी नज़र की क्या परवाह करते, वे तो खुद पथभ्रष्ट हो चुके थे.

–​

वे लोग घर आ गए.

मधु दरवाज़े पर ही खड़ी मिली.

“मम्मी!” मनिका मुस्का कर उसके पास गई.
“आ गई वापस मेरी जान को आफ़त करने?” मधु ने कहा, मगर वो मुस्कुरा रही थी.
“हेहे मम्मी… और क्या तो… आपका सुख-चैन मुझे बर्दाश्त नहीं…” मनिका थोड़ी ठिठक कर अपनी माँ के गले लगते हुए बोली.

पास खड़े कनिका और हितेश भी हँस पड़े. मनिका ने हितेश को थोड़ा बग़ल से पकड़ गले लगाया, आख़िर लड़का बड़ा होने लगा था. फिर कनिका को गले लगाते हुए पूछा,

“पढ़ रही है कि नहीं, इस बार बोर्ड है तेरे…”
“क्या दीदी… पूरा साल पड़ा है, पढ़ लूँगी…” कनिका भी मचली.
“कुछ नहीं पढ़ती ये आजकल… वो ताऊजी वाली नीरा को देखो… जब जाओ किताब लिए बैठी होती है. यूनिट टेस्ट सिर पर हैं पर इसको डांस क्लास जाने के लिए फ़ुरसत है पर पढ़ने के लिए टाइम नहीं…” मधु ने हमेशा की तरह लम्बा राग अलापा.
“क्या मम्मी?” कनिका अभी अपने पापा से थोड़ा डरती थी. अपने माँ की शिकायत सुन वो थोड़ा सहम गई थी.

पर जयसिंह हँस पड़े और बोले,

“अरे पढ़ लेगी… कोई बात नहीं… क्यूँ?” और कनिका के सिर पर हाथ फेरते हुए आगे बोले, “अंदर तो चलें अब के नहीं…”

उसके बाद रात होने तक घर में उत्सव का सा ही माहौल रहा. कनिका को जहां ये जानना था मनिका को डेल्ही जा कर कैसा लगा, वहीं हितेश को सिर्फ़ इस से मतलब था कि वे उसके लिए कुछ लेकर आए हैं कि नहीं. जयसिंह ने हँसते हुए हितेश को उसका मनपसंद गैजेट ले देने का वादा किया था.

“आते ही बच्चों को बिगाड़ दो आप…” मधु ने मुस्कुराते हुए उलाहना दिया था.
“हाहाहा….” जयसिंह हँस पड़े और बोले, “सुना भई? बिगड़ोगे?”
“हाँ पापा…” मनिका, कनिका और हितेश एक स्वर में बोले.

कनिका के ज़्यादा ही पूछने पर मनिका ने झूठ-मूठ कहा कि,

“वहाँ कोई घूमने थोड़े ही गई थी… एडमिशन के लिए गए थे, पूरा टाइम पढ़ाई करती थी… तेरी तरह नहीं…”
“हाहाहा आप तो रहने दो दीदी… बुक्स तो लेकर नहीं गए थे… इंटर्व्यू के राउंडस का पता तो वहाँ जाकर चला, मम्मी कह रही थी.”

झूठ पकड़ा जाने पर मनिका सकपका गई.

“अरे भई कॉलेज वालों ने लाइब्रेरी में पढ़ने की छूट दे रखी थी…” जयसिंह ने तपाक से कहा था, “वहीं ज़ाया करती थी… अब पढ़ती थी कि नहीं ये तो राम जाने…”
“हाहाहा पापा… पढ़ती थी तभी तो एडमिशन हुआ है… आप भी ना कितने पलटू हो…” मनिका हँस पड़ी.

मन ही मन उसे अपने पिता की अक़्लमंदी भा गई थी.

सबने डिनर साथ किया. उसके बाद एक-एक कर बच्चे अपने कमरों में और जयसिंह और मधु अपने बेडरूम की तरफ़ हो लिए. आज कोई गुड नाइट किस्स नहीं होने वाली थी.

–​

मनिका और कनिका अपने कमरे में आ गई थी.

मनिका ने कुछ-कुछ सामान अनपैक किया और नहाने घुस गई. नहाते वक्त उसके मन में कुछ-कुछ दिल्ली की यादें ताज़ा होने लगी. वहाँ का आलीशान कमरा और वो बाथरूम जिसमें इतने प्रेशर से शॉवर का पानी आता था कि नहाने का मज़ा ही आ जाए. वैसे उनका घर भी अच्छा ख़ासा पैसा लगाकर बना था, पर Marriott की बात तो कुछ और ही थी. नहाते-नहाते उसने जयसिंह की हाज़िरजवाबी कर भी अचरज किया था.

“पापा कितने होशियार हैं… कैसे एक सेकंड में लाइब्रेरी वाली बात बोल दी… मैं तो इतना सोच भी नहीं पाती… थोड़ा संभल कर रहूँगी अबसे…”
नहा कर मनिका ने घर पर रखा एक पुराना नाइट सूट निकाल कर पहन लिया.

ऊपर रूम में आते वक्त उसकी मम्मी ने कहा था कि कोई मैले कपड़े हों तो धुलने डाल दें. सो उसने अपना डेल्ही वाला नाइट सूट और वो गंजी और शॉर्ट्स, जो तब से अटैची में रखी थी, मैले कपड़ों के बास्केट में डाल दिए थे.

नहा कर बाहर आने के बाद मनिका और कनिका बैठ कर काफ़ी देर बतियाते रहे. मनिका उसे सिर्फ़ सामान्य सी घटनाएँ ही बता रही थी, कि कैसे उन्हें पता चला कि इंटर्व्यू इतने दिन तक चलेंगे, को कि ख़ैर एक सफ़ेद झूठ था, और कैसे उसने कॉलेज जाते वक्त मेट्रो देखी थी, और वहाँ कितने आलीशान मॉल इत्यादि थे. कनिका मंत्रमुग्ध सी उसकी झूठी-सच्ची बातें सुन रही थी.

सच कहो तो मनिका को भी वो झूठी कहानियाँ गढ़ने में बहुत मज़ा आ रहा था.

काफ़ी देर बतियाने के बाद आख़िर दोनों बहने सो गईं.

–​

उधर कमरे में जाने के बाद जयसिंह नहा आए और मधु उनके लिए दूध ले आई.

उसके बाद मधु ने एक उनके ऑफ़िस से आए कुछ पत्राचार से लेकर पास-पड़ोस और रिश्तेदारी में हुई घटनाओं का वर्णन शुरू किया. जयसिंह भी कुछ मन से और कुछ अनमने उसकी गाथाएँ सुनते बैठे रहे.

“अच्छा मनि का कॉलेज कब शुरू हो रहा है? वहाँ हॉस्टल मिल गया?” मधु ने कुछ देर बाद पूछा.
“हैं?” अपने ही कुछ ख़यालों में तल्लीन जयसिंह अचकचा गए.
“मनि का कॉलेज कब से लगेगा… मैं पूछ रही हूँ… रहेगी कहाँ?”

तो जयसिंह ने बताया कि कॉलेज में ही हॉस्टल है जिसकी फ़ीस वो भर आए हैं, लगभग 20 दिन बाद उसे वापस छोड़ कर आना होगा. इस बारे में सोचते ही जयसिंह का लंड जो आज एक अरसे बाद बैठ कर सुस्ता रहा था फिर से खड़ा होने लगा. कहीं मधु यह देख ना ले, इस करके वे अब लेट गए और जताने लगे कि उन्हें नींद आ रही है.

मधु ने भी उठ कर कमरे की लाइट बुझा दी और नौकर ने रसोई समेटी कि नहीं यह देखने चली गई.

“अब इसको कौन चोदेगा… हम्प!” मधु को हिक़ारत भरी नज़र से देखते हुए जयसिंह ने अपने सख़्त होते लंड को मरोड़ा और सोने लगे.

–​
Ab bibi par man nahin lag raha hai?
 

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27 - पीरियड

अगली सुबह जब मनिका की आँख खुली तो उसे अपने बदन में आनेवाले मासिक परिवर्तन की आहट महसूस हुई.

पास में कनिका बेफ़िक्र सो रही थी. उसने एक टी-शर्ट और लम्बा सा नेकर पहना था, जिसमें उसकी कुछ-कुछ उघड़ी जाँघें देख मनिका को अपने पिता के साथ बिताई वह रात याद आ गई.

“पापा भी उठे होंगे तो मुझे ऐसे ही पड़ा देखा होगा…” उस समय की अपनी परिस्थिति याद कर मनिका को हल्की लाज महसूस हुई.

वो कनिका को उठाने को हुई, फिर उसे याद आया कि आज रविवार था और कनिका के स्कूल की छुट्टी थी. सो वह धीमे से उठ अपनी अलमारी के पास गई और रात को उसमें रखा अपना लांज़रे बॉक्स निकला.

अब कुछ दिन थोंग छोड़कर नॉर्मल पैंटी पहनने का वक्त आ गया था.

-​

जब तक मनिका और कनिका नहा धो कर नीचे आए, नाश्ता लग चुका था. जयसिंह एक उदासीन सा चेहरा लिए मधु अपनी प्लेट में पोहा उलटते देख रहे थे. लड़कियों के आते ही उनका चेहरा खिल उठा.

“Good morning papa…” उनकी दोनों बेटियाँ एक स्वर बोलीं.
“Good morning, good morning… बैठो बैठो.” जयसिंह ने मुस्कुरा कर दोनों का अभिवादन स्वीकारा.

मनिका और कनिका उनके सामने की ओर बैठ गईं.

“मम्मी… हितेश कहाँ है?” मनिका ने पूछा.
“सो रहा होगा… जब से मोबाइल लेकर दिया है उसे, टाइम से नहीं सोता ये लड़का.” मधु बोली.

फिर उसकी माँ ने हॉल की सीढ़ियों के पास जा कर आवाज़ दी, “हितेश… नाश्ता कर ले नीचे आकर, पापा इंतज़ार कर रहे हैं.”

हालाँकि मनिका, कनिका और जयसिंह नाश्ता शुरू कर चुके थे. लेकिन पिता के नाम से घर के लड़कों को अक्सर डराया जाता रहा है और मधु वही पैंतरा आज़मा रही थी.

कुछ देर में आँखें मलता हुआ हितेश भी डाइनिंग टेबल पर आ बैठा. मधु भी कुर्सी खींच बैठ गई, खाने-पीने और बातचीत का दौर चल पड़ा. नाश्ता कर लेने के बाद जयसिंह उठ कर हाथ धोने चल दिए.

छुट्टी का दिन था लेकिन जयसिंह अपने दफ़्तर का एक चक्कर लगा कर आना चाहते थे, साथ ही दिल्ली में इतने दिन लगाने पर उनके रोज़मर्रा के संगी-साथी उलाहने देने लगे थे. सो उन्होंने अपने ड्राइवर को बुला रखा था ताकि कुछ काम निपटा लिया जाए और कुछ मौज-मस्ती.

वे हाथ धोकर डाइनिंग टेबल की तरफ़ लौटे. मनिका और बाक़ी परिवार अभी भी चाय-नाश्ता करते हुए बतिया रहे थे.

“ठीक है भई… चलता हूँ मैं…” जयसिंह ने कहा.
“Okay papa…” कनिका दूध का घूँट भरते हुए बोली.
“Bye papa…” हितेश ने अपने फ़ोन में देखते हुए कहा.
“जी पापा…” मनिका ने थोड़ा सकपका कर, थोड़ा मुस्का कर कहा.

उनकी नज़र मिली. फिर मधु की आवाज़ आई,

“ठीक है ठीक है, जाइए अब, हरी कब से बाहर गाड़ी स्टार्ट किए बैठा है. उसको कुछ कहा करो आप… AC चला कर ना बैठा करे… फ़ालतू तेल जलाता है.”
“अरे तुम भी ना… अच्छा चलो मैं जाता हूँ, कहीं हरी ने सारा तेल जला दिया तो क्या करेंगे… है ना?” जयसिंह मधु को छेड़ते हुए बाहर निकल गए.

तीनों बच्चों के चेहरे पर शैतानी मुस्कान देख मधु बोली,

“क्या बत्तीसी बघार रहे हो… चलो नाश्ता खतम करो और फिर होमवर्क करने बैठो तुम दोनों… और मनि, तू सामने ताऊजी के यहाँ मिल आना. सब पूछ रहे थे कल ही तेरा.”
“क्या मम्मी! आज तो संडे है. शाम को कर लूँगी होमवर्क… मैं भी जा रही हूँ दीदी के साथ…” कनिका मचलते हुए बोली.
“मुझे गौरव के घर जाना है, हमारा मैच है आज.” उधर हितेश ने कहा.

थोड़ी नोंक-झोंक के बाद मधु ने भी बच्चों के बहानों और टाल-मटोल के सामने हार मान ली.

“ठीक है भई… जाओ… लेकिन अगली बार स्कूल से कोई शिकायत आई तो मम्मी नहीं जाएगी… पापा को लेकर जाना अपने.”

उसके बाद मनिका और कनिका अपने कमरे में आ गए.

मनिका ने अपनी अटैची ख़ाली की और सामान अलमारी में रखने लगी. जयसिंह के दिलाए नए कपड़े निकालते वक्त वह कनखियों से कनिका पर नज़र रखे हुए थी. जब कनिका का ध्यान उसकी ओर नहीं था, उसने जल्दी से वो कपड़े अलमारी में पीछे की तरफ़ छुपा कर रख दिए थे. उसके बाद दोनों बहनें हँसते-बतियाते अपने ताऊजी के घर निकल पड़ीं.

जयसिंह और उनके बड़े भाई, जयंतसिंह के मकान आमने-सामने ही थे.

-​

दिन कैसे बीता पता ही नहीं चला.

मनिका के ताऊजी के एक बेटी और एक बेटा थे. बेटा बाहर नौकरी कर रहा था और बेटी वहीं बाड़मेर के कन्या महाविद्यालय में पढ़ रही थी व कनिका की हमउम्र थी.

ताऊजी और ताईजी से मिलने के बाद मनिका अपनी दोनों बहनों के साथ बतियाने बैठ गई थी. फिर उनका मूवी देखने का प्लान बन गया. नीरा ने पास ही एक सीडी वाले से ‘जाने तू या जाने ना’ की पायरटेड सीडी ला रखी थी. मनिका उन्हें थोड़े ही बताने वाली थी कि फ़िल्म तो वह देख चुकी है. लेकिन उस धुंधली तस्वीर और ख़राब साउंड वाली सीडी से फ़िल्म देखने में भी उसे बड़ा मज़ा आया. उसे हर सीन के साथ सिनेमा हॉल में अपने पिता के साथ बिताए पल याद आ रहे थे.

ताईजी के कहने पर मनिका और कनिका ने लंच उनके यहाँ ही किया था. उसके बाद तीनों लड़कियाँ फिर से बतियाने बैठ गईं.
आख़िर शाम ढले दोनों बहनें चलने को हुईं.

“आप भी आना ताईजी… मम्मी कह रही थी काफ़ी दिन हो गए हम सबने साथ में डिनर नहीं किया.” मनिका ने कहा.
“हाँ-हाँ बोलती हूँ तेरे ताऊजी को… दो दिन तो तेरे ताऊजी किसी काम से जयपुर जा रहे हैं. मम्मी को कहना बुधवार को मैं आ जाऊँगी दिन में… खाना वग़ैरह तैयार कर लेंगे. ये भी आ जाएँगे तब तक.” उसकी ताईजी बोलीं.
“जी ताईजी…”

-​

उधर जयसिंह भी ऑफ़िस का चक्कर लगाने के बाद अपने यार-दोस्तों से मिलने चले गए थे. लेकिन कुछ देर इधर-उधर की करने के बाद वे घर वापस लौट आए थे. पर घर से मनिका को नदारद पा उन्होंने लंच किया था और फिर सोने चले गए.

दरअसल घर आने के बाद उनके तेज रफ़्तार प्लान पर भी ब्रेक लग गया था. हालाँकि इसका अंदेशा उन्हें पहले से था लेकिन शायद अपनी और मनिका की सामाजिक परिस्थिति भाँपने में उनसे थोड़ी चूक हो गई थी. आज सुबह घर से निकलने से पहले हुआ वाक़या वे भूले नहीं थे. मनिका उनसे मुख़ातिब होते वक्त थोड़ी सकपकाई थी. सो उन्हें अब यह डर सताने लगा था कि कहीं बिछी-बिछाई बिसात उलट ना जाए. अगर मनिका फिर से घरेलू परिस्थितियों में ढल गई तो उनका प्लान कभी सफल नहीं हो सकेगा.

जब उनकी आँख खुली तब एक बार फिर से घर में शोरगुल का माहौल था. मनिका, कनिका और हितेश हॉल में बैठे मज़ाक़-मस्ती कर रहे थे.
जयसिंह भी झटपट उठ कर बाहर चल दिए.

-​

“हाँ भई… क्या चल रहा है?” जयसिंह ने हॉल में आते हुए कहा.
“कुछ नहीं पापा, ऐसे ही बैठे हैं.” कनिका बोली, “ताऊजी के घर जा कर आए, मैं और दीदी.”
“अच्छा… घर पर ही थे भाईसाहब?”
“जी. लेकिन रात को जयपुर जा रहे हैं किसी काम से…” इस बार मनिका ने बताया.
“हाँ वो उनका प्लॉट है वहाँ उसकी कुछ चारदीवारी का काम करवा रहे हैं.” जयसिंह ने सोचते हुए कहा, “और मम्मी कहाँ है तुम्हारी?”
“चाय बना रही है शायद… अभी किचन में गईं थी.” मनिका बोली.
“तो उनको बोलो हमें भी कुछ चाय-पानी करवा दे…” जयसिंह ने कनिका को इशारा किया.
“तो आप ही बोल दो… आप डरते हो क्या मम्मी से?” मनिका के मुँह से निकल गया.

कनिका और हितेश हँस पड़े.

“हाहा… अच्छा जी… चलो मैं बोल देता हूँ… और डरता-वरता नहीं हूँ मैं…” जयसिंह ने नाटकीय मुद्रा में कहा और फिर आवाज़ में झूठा ख़ौफ़ लाते हुए बोले, “अजी सुनती हो…”

तीनों बच्चों को हँस-हँस कर लोटपोट होता छोड़ जयसिंह रसोई की तरफ़ चल दिए.

कुछ देर बाद मधु और पीछे-पीछे जयसिंह चाय-बिस्कुट वाली ट्रे लिए आ गए. जयसिंह अभी भी डरा होने का नाटक कर रहे थे.

“जी कहाँ रख दूँ?” उन्होंने मधु से पूछा.
“अरे आप तो ना… रहने दो सब पता है मुझे कितनी बात मानते हो मेरी.” मधु उनकी शैतानी पर मुस्काए बिना न रह सकी थी.

बच्चे तो हँस ही रहे थे.

इसी तरह ठिठोली करते-करते वक्त बीत गया और रात के खाने का समय हो गया. खाना-पीना कर एक बार फिर सब लोग अपने-अपने कमरों की तरफ़ चल दिए थे. मधु ने हितेश और कनिका को इतनी मौज-मस्ती के बाद अब होमवर्क करने बैठने की सख़्त हिदायत दी थी.

सो कमरे में आने के बाद कनिका स्टडी टेबल पर बैठ अपना काम करने लगी. मनिका भी लेटी हुई अपनी सहेलियों से मेसेजिंग करने लगी. वो उनसे मिलने का प्लान बनाने को कह रही थी, ताकि अपने दिल्ली दर्शन की कुछ बातें उन्हें भी बता कर वाहवाही लूट सके.

“दीदी..?” कुछ देर बाद कनिका बोली.
“हाँ?” मनिका ने उसकी ओर देख पूछा.
“आपको प्यास नहीं लग रही…” कनिका ने कनखियों से मुस्कुराते हुए पूछा.

उसका आशय समझ मनिका हँस पड़ी.

“पानी लाकर दूँ?”
“हाहाहा… हाँ दीदी प्लीज़ ना… नीचे जाऊँगी तो मम्मी फिर डाँटेगी कि पढ़ नहीं रही.”
“हाहा… लाती हूँ बाबा.” मनिका उठते हुए बोली.

–​

मनिका फ़्रिज में से ठंडे पानी की एक बोतल निकाल ऊपर अपने कमरे में जाने के लिए सीढ़ियों की ओर बढ़ी.

“मनिका?” जयसिंह थे.
“हैं… ज… जी पापा.” मनिका अचकचा कर खड़ी हो गई.

उसके पिता अपने कमरे से निकल कर किचन की तरफ़ जा रहे थे. घर आने के बाद शायद एकांत में उनका पहला पल था. और उन्होंने उसे ‘मनिका’ बुलाया था.

“क्या कर रही हो?” जयसिंह ने पास आते हुए पूछा.
“जी पापा… वो कनु पानी माँग रही थी तो लेने आई थी…” मनिका ने एक पल उनके चेहरे की तरफ़ देखा था फिर नज़र झुका ली.
“ओह… हम्म. तुम ठीक हो?” जयसिंह ने पूछा.
“जी पापा…” मनिका ने धीमे से हामी भरी, फिर एक पल बाद आगे कहा, “पिरीयड्स स्टार्ट हो गए…”
“ओह…” जयसिंह इतना बोल चुप हो गए.

मनिका के मन में अचानक शर्मिंदगी का भूचाल आ गया था.

“हाय! मैंने ये बात पापा को क्यूँ बताई?”

उधर जयसिंह ने हौले से उसकी पीठ सहलाई और कहा,

“कुछ चाहिए हो तो बताना… हम्म?”
“जी पापा.” बोल मनिका तेज़ी से सीढ़ियाँ चढ़ गई.

–​
Hot hot story.
 

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28 - बहकते कदम

रात काफ़ी हो चुकी थी. मनिका बेड पर लेटी हुई थी और कनिका भी कब की आकर सो चुकी थी. मगर मनिका की आँखों में नींद का नामोनिशान न था.

घर आने के बाद ठीक वैसा ही हुआ था जिसका जयसिंह को अंदेशा था, मनिका धीरे-धीरे अपने पुराने रूप में ढलने लगी थी. लेकिन वे नहीं जानते थे कि उनका बिछाया चक्रव्यूह मनिका के मन पर कितना गहरा असर कर चुका है. जैसे ही मनिका के अंतर्मन को इस बदलाव का एहसास हुआ था, उसने मनिका से ऐसी अंतरंग बात कहलवा दी जो वह नॉर्मली अपने पिता से शेयर नहीं करती. इसी के चलते अब उसकी नींद उड़ी हुई थी.

“हाय… मैंने पापा को पिरीयड्स का बता दिया… पता नहीं कैसे मुँह से निकल गया. पापा क्या सोच रहे होंगे… कितनी पर्सनल बात है ये… पर अब तो पापा के साथ कितना ही कुछ शेयर कर चुकी हूँ… और एक पापा हैं कि बिलकुल unexpected reaction देते हैं…”

मनिका की मानसिक स्थिति वैसे ही माहवारी की वजह से प्रभावित थी. सो अब उसे अपने पिता के साथ बिताया अनाचार भरा वक्त और अधिक सताने लगा. हर एक वाक़या उसे दोगुनी-तिगुनी तीव्रता से याद आने लगा जैसे वो इंटर्नेट पर देखी गंदी तस्वीरें, वो गंदे सपने, और उसके बदन पर जयसिंह के लिंग की छुहन. पर सबसे ज़्यादा विचलित करने वाली बात यह थी कि बाप-बेटी के पावन रिश्ते को तार-तार कर देने वाली ये घटनाएँ उसे शर्मसार करने के बजाए उत्तेजित कर रही थी. उसे जयसिंह की याद आने लगी, उनकी कुटिल मुस्कान और उसके तन-बदन को कुरेदती उनकी नज़र, उनका अनायास आलिंगन और मज़बूत पकड़, यह सब याद कर वो सिसक उठी.

सुबह होने को थी मगर मनिका को एक पल नींद नहीं आई थी. आतुर मन से वो सबके उठने का इंतज़ार करने लगी, ताकि जल्द से जल्द जयसिंह के सामने जा सके.

-​

उस रोज़ जब मधु रसोई में आई तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा. अमूमन देर तक सोने वाली मनिका, चाय-नाश्ता बना रही थी.

“मनि?” मधु ने अवाक् होकर कहा.

मनिका भी खिसियानी बिल्ली की तरह पलटी.
“उठ गए मम्मी?”
“ये सब क्या कर रही हो?”
“वो कुछ नहीं मम्मी, आज जल्दी आँख खुल गई तो सोचा ब्रेकफ़ास्ट बना दूँ.”
“अरे वाह… आज सूरज किस दिशा से निकला है देखूँ तो ज़रा…” खिड़की से बाहर देखने का नाटक करते हुए मधु हँस पड़ी.
“क्या मम्मी… आप भी ना.” मनिका खिसियाते हुए बोली और फिर अपने पापी मन की बात पूछी, “पापा उठ गए? उनको चाय दे आऊँ?”
“हाँ जगे तो हैं लेकिन आलस कर रहे हैं, जाकर उठा दे उनको.” मधु रसोई का जायज़ा लेते हुए बोली, “तब तक मैं मेरी रसोई सम्भालूँ… देखूँ तो सही तूने क्या गड़बड़ की है…”

मनिका ने तो पहले से ही ट्रे सजा रखी थी. मधु की बात अनसुनी कर वो झट से अपने पिता के कमरे की ओर चल दी.
जब वह उनके बेडरूम में पहुँची तो देखा कि जयसिंह बिस्तर में लेते ऊँघ रहे हैं.

“पापा..?”
“हम्म… मनि… क्या हुआ?” जयसिंह उसकी आवाज़ सुन अचकचा कर उठ बैठे. फिर उनकी नज़र उसके हाथ में पकड़ी ट्रे पर गई.
“पापा… आपकी मॉर्निंग टी…” मनिका ने ट्रे आगे बढ़ाई.
“बड़ी फुर्ती दिखाई आज तो तुम्हारी माँ ने… अभी तो उठ कर गई थी.” जयसिंह ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा.
“मैंने बनाई है पापा.” मनिका न जाने क्यूँ ऐसा कहते समय सकुचा गई थी.
“हैं? क्या सच में?” जयसिंह ने हैरान हो कर पूछा.
तभी मनिका के पीछे कदमों की आहट हुई.
“वही तो मैं कह रही हूँ… कहीं छोरी बदल तो नहीं लाए आप दिल्ली से…” मधु ने कमरे में आते हुए कहा.
“हाहाहा…” जयसिंह हँस पड़े. उनकी नज़र मनिका से मिली, “बदल तो लाया हूँ… है ना मनिका?”

मधु उनकी बात का आशय कैसे समझ सकती थी, लेकिन मनिका समझ गई. उसके पिता के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान जो तैर रही थी, और उन्होंने उसे मनिका कह कर पुकारा था.
वो अनायास ही मचल उठी और मुस्कुरा कर सिर झुका लिया.

-​

“दिल्ली में गर्लफ़्रेंड और घर पे डॉटर… और कभी-कभी… घर पे भी गर्लफ़्रेंड… हम्म?”

मनिका अपने कमरे में बैठी थी. उसे जयसिंह की कही बात रह-रह कर याद आ रही थी. क्या सच में पापा उसे अब अपनी गर्लफ़्रेंड ही मानते थे या वो सिर्फ़ दिल बहलाने के लिए कही गई बातें भर थीं? लेकिन पापा का उसे यूँ देखना उसकी तारीफ़ें करना और उसे अपने साथ सुलाना, सहलाना, उसे उनके रिश्ते को मर्द और औरत का रिश्ता समझने को कहना, वो सब इसी तरफ़ इशारा कर रहा था कि उनका रिश्ता अब बदल चुका था.

अपने मन की उधेड़बुन से निकलने के लिए मनिका उठी और नीचे चली आई.

अगले दो दिन मनिका और जयसिंह के बीच कोई ख़ास बात-चीत नहीं हुई और दोनों बाप-बेटी रोज़मर्रा की पारिवारिक हलचल में रमे रहे. इसी बीच मनिका एक बार अपनी सहेलियों से भी मिलकर उन्हें अपने दिल्ली दर्शन के कुछ वाक़ये सुना मंत्रमुग्ध कर आई थी. घर में जब भी मनिका और जयसिंह आस-पास होते तो उनकी नज़र अक्सर मिले बिना न रह पाती और मनिका के चेहरे पर एक मंद सी मुस्कान आ जाती थी. जयसिंह की आँखों में भी एक अजीब सी चमक होती थी जो मनिका को अंदर ही अंदर बेहद भाती भी थी और सताती भी. ऊपर से माहवारी के चलते उसका मन हर वक्त डोलता रहता था. कभी सोचती सब बंद हो जाए और चीजें पहले जैसी हो जाएँ और कभी लगता कि पापा की नज़रों के सामने बैठी ही रहे. ये कैसा रिश्ता था जो उनके बीच बनता जा रहा था यही सोचती हुई वह उस रात लेटी हुई थी जब उसका फ़ोन वाइब्रेट हुआ.

Papa: So gayi kya?

मेसेज देख मनिका की धड़कनें तेज हो गई. यह पहली बार था जब जयसिंह ने घर आने के बाद उसे फ़ोन से मेसेज किया था. उसने किसी चोरनी की तरह झट से पास सोती अपनी बहन की तरफ़ देखा, लेकिन कनिका नींद में थी.

Manika: Bas so hi rahi thi papa.
Papa: Okay.

जयसिंह का संक्षिप्त सा जवाब आया. लेकिन अब नींद मनिका की आँखों से भी ग़ायब हो चुकी थी. जब जयसिंह ने कुछ और मेसेज नहीं भेजा तो मनिका ने धड़कते दिल से टाइप किया.

Manika: Kya keh rahe the aap?

उसका मेसेज जाते ही जयसिंह ने पढ़ लिया था और टाइप करने लगे थे.

Papa: Kuch nahin bas, neend nahin aa rahi thi to socha kuch der apni girlfriend se baatein kar lu.
Manika: Hehe papa. Aap bhi na.
Papa: Lagta hai ghar aate hi girlfriend ne mann badal liya hai, hmm?

उनका सवाल पढ़ मनिका कुछ पल सोचती रही, क्या पापा को मना कर दे? क्या सब पहले जैसा हो सकता है? मगर फिर रह ना सकी.

Manika: No papa, bas ghar aake busy ho gaye, aapko bhi office jaana hota hai.
Papa: Hmm. Phir bhi, kabhi kabhi to papa ko pyar kar diya karo. Tumhari goodnight kiss ke bina neend bhi nahin aati aajkal.
Manika: Haha papa, rehne do aap. Wife ke paas aakar aapko girlfriend ki yaad kahan aati hai.

मनिका ने जयसिंह का उलाहना उन्हीं को सुनाते हुए कहा. यह लिखते-लिखते अचानक उसे अपनी माँ से जलन होने लगी थी.

Papa: Mera bas chale to abhi upar aa jaun tumhare paas.

अपने पिता का जवाब सुन मनिका मुस्काए बिना न रह सकी.

Manika: Haan aur pakde gaye to kya kahoge?
Papa: Yahi ki ab girlfriend ke saath hi sona hai.
Manika: Hahaha, haay papa kuch bhi bolte ho aap.
Papa: Sach me, I miss our bedtime together Manika.

जयसिंह का जवाब मनिका का दिल धड़का गया था.

Manika: Yes papa, me too. I love you papa.
Papa: Hmm. Iss baar lamba plan banaate hain Delhi ka.

जयसिंह की बात के पीछे का आशय समझ मनिका सिहर गई थी. उसके पिता उसके साथ के लिए इतना कुछ सोच रहे हैं यह उसे गुदगुदा गया था.

Manika: Oh papa, kisi ko pata chal jayega to...
Papa: Kuch nahin hoga, main sambhaal lunga darling.
Manika: Ji.

मधु सोई पड़ी थी और जयसिंह दूसरी ओर करवट लिए अपनी बेटी से नापाक बातें कर रहे थे. मनिका के जवाब सुन उन्हें थोड़ी तसल्ली मिली कि अभी बाज़ी उनके हाथ में ही थी. सो उन्होंने एक हिमाक़त करने की सोची.

Papa: Waise ab to ghar aa gayi ho, to night dress bhi change karli hogi na?

जयसिंह का मेसेज पढ़ अंधेरे में भी मनिका का चेहरा तमतमा गया था. वह अपने पिता का आशय अच्छे से समझ गई थी. कुछ पल उसने कोई जवाब नहीं दिया तो जयसिंह का मेसेज फिर से आया.

Papa: Kya hua?
Manika: Kuch nahin papa.
Papa: Naraaz to nahin ho gayi? Main to vaise hi pooch raha tha.
Manika: Nahin papa.
Papa: Kya, naraaz nahin ho ya night dress nahin change ki?

जयसिंह की शातिर हाज़िरजवाबी ने एक बार फिर मनिका को मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया था.

Manika: Nahin papa, nahin hu naraaz. So jao na!
Papa: Aur night dress change kar li?
Manika: Kya karoge jaan kar aap?
Papa: Kuch nahin, bas tum keh rahi thi na ke ghar par wahi pehen ke soti ho to pooch raha tha.

जयसिंह के टाल-मटोल भरे जवाब ने मनिका को उत्तर देने पर विवश कर ही दिया.

Manika: Nahin papa, abhi nahin peheni vo dress.
Papa: Oh.
Manika: Kya hua?
Papa: Mujhe laga peheni hoti to milne aa jaata tumse.

मनिका को कुछ जवाब ना सूझा.

Papa: Kya hua?
Manika: Kuch nahin, pata nahin aur kya bolun. Aap to uss dress ke peeche hi pad gaye.
Papa: Haha, tumhen to pata hi hai mujhe pasand hai chhoti chhoti dress, uss din to bada chhed rahi thi mujhe.
Manika: Hehehe, meko kya pata tha aap mere hi peeche padd jaaoge.
Papa: Ab tum itni khoobsurat ho to main kya karun.
Manika: Papaa! Kuch bhi bolte rehte ho aap.
Papa: Sach to sach hi hai sweetheart.
Manika: Hmmm, theek hai.

जयसिंह की बातें मनिका के तन-मन में उफान ला रहीं थी.

Papa: Neend nahin aa rahi?
Manika: Haan papa, I am sleepy. Aap bhi so jao.
Papa: Pehle meri goodnight kiss to de do.

जयसिंह कुछ पल तक मनिका के जवाब का इंतज़ार करते रहे.

Manika: Umaaaa! 😘
Papa: Good night darling.
Manika: Good night papa.

मनिका ने फ़ोन साइड में रखा और आँखें मूँद सोने की कोशिश करने लगी. पर उसके पिता की बातों ने उसे झकझोर के रख दिया था. हालाँकि घर आए उन्हें कुछ ही दिन हुए थे मगर एक बार फिर जयसिंह के मुँह से अपनी तारीफ़ सुन उसका रोम-रोम खिल उठा था.

"पापा भी ना, कितने ख़राब हैं." जयसिंह के उसके कपड़ों को लेकर कही बात याद कर उसने सोचा था. उसे याद आया कि उसने वो नाइट ड्रेस धोने के लिए डाली थी, शायद धुले कपड़ों में होगी. "कल पहनूँगी." यह सोचना हुआ कि उसके रोंगटे खड़े हो गए.

रात ढलते-ढलते मनिका आख़िर नींद के आग़ोश में समा गई.

अगली रोज़ जब मनिका की आँख खुली तो उसने पाया कि कनिका उठ कर स्कूल जा चुकी है. वो लेटी हुई रात की बातों को याद कर ही रही थी कि उसकी माँ आ गई.

"मनि? कभी तो ये लड़की सुबह-सवेरे ही रसोई सम्भालने लगती है और आज दिन चढ़ गया फिर भी सोई पड़ी है." उसकी माँ बुदबुदाते हुए कमरे में घुसी.
"ओहो मम्मा, उठ रही हूँ बस." कहते हुए मनिका उठ बैठी.
"जल्दी से उठ कर नाश्ता कर लो, मैं और ताईजी बाज़ार जा कर आ रहे हैं. माथुर साहब के यहाँ फ़ंक्शन है शाम को." उसकी माँ ने कहा.
"माथुर अंकल के यहाँ? किस चीज़ का?" मनिका ने आँखें मलते हुए पूछा.
"उनकी ऐनिवर्सरी है." मनिका की माँ ने कनिका का कम्बल तह करते हुए कहा.
"ओह. ठीक है." कह मनिका बिस्तर से निकली और बाथरूम की ओर बढ़ी.
"ओ मैडम, ये कम्बल कौन समेटेगा?" मनिका की माँ की आवाज़ आई.
"कर दो ना आप." मनिका ने आँखें टिमटिमाई और बाथरूम में घुस गई.

जब तक मनिका नाश्ते के लिए नीचे आई थी, उसकी माँ बाज़ार जा चुकी थी. कनिका और हितेश स्कूल चले गए थे और जयसिंह ऑफ़िस. सो उसने अकेले ही बैठ कर नाश्ता किया और वापस अपने रूम में चली आई.

कमरे में आते ही एक बार फिर मनिका को अपने पिता से हुई बातें याद आने लगी और वो फ़ोन में चैट खोल कर वापस पढ़ने लगी. जयसिंह की बातें पढ़ कर एक बार फिर वो शर्मसार हो उठी थी.
दोपहर बाद का समय था जब मधु बाज़ार से लौट कर आई. कनिका और हितेश भी स्कूल से आ चुके थे और तीनों बच्चे टी.वी. के सामने जमे थे.

"खाना खाया या यहीं बैठे हो?" मधु ने अंदर घुसते हुए पूछा था.
"बस मम्मी खा रहे हैं." कनिका बोली, लेकिन उसका ध्यान टेलिविज़न पर जमा था.
"जल्दी से लंच कर लो, माथुर साहब के यहाँ सात बजे तक जाने का कह रहे थे तुम्हारे पापा." मधु अपने कमरे में जाते हुए कह गई थी.

उस शाम जयसिंह ऑफ़िस से जल्दी लौट आए थे. शाम के 6 बजते-बजते घर में चहल-पहल हो गई थी. माथुर एक लम्बे अरसे से जयसिंह का मैनेजर रहा था और उनके घरों में अच्छी जान-पहचान थी. सो घर के सभी लोग जा रहे थे. मनिका और कनिका ऊपर अपने कमरे में तैयार हो रहीं थी. हितेश तो पहले ही एक टी-शर्ट और जींस पहन कर नीचे हॉल में अपने प्लेस्टेशन पर खेल रहा था. मधु भी तैयार हो कर बाहर आई ही थी जब जयसिंह भी ऑफ़िस से लौट आए.

"जल्दी से तैयार हो जाइए आप भी और ये लड़कियाँ पता नहीं क्या कर रही हैं ऊपर." मधु झुंझलाते हुए सीढ़ियाँ चढ़ने लगी.

जयसिंह अपने कमरे में गए और अलमारी से कोट-पैंट निकाल तैयार होने लगे. कुछ देर में मधु भी आ गई और उनसे पूछ कर उनकी पसंद की टाई, बेल्ट और घड़ी वग़ैरह निकाल कर बेड पर रखने लगी. तभी कनिका कमरे में आई, उसने लाल रंग का सूट पहना था.

"मम्मी, वो सेफ़्टीपिन कहाँ रखी हैं? दीदी को चाहिए." उसने कहा.
"ओहो, रुक देती हूँ." कहते हुए मधु अपनी अलमारी में कुछ टटोलने लगी.
तभी बाहर से हितेश की आवाज़ आई कि उनके ताऊजी की बेटी नीरा पूछने आई है सब तैयार हुए के नहीं.
"हाँ बस आ रहे हैं, तू ड्राइवर भैया को बोल गाड़ी निकालें." मधु ने हॉल में आवाज़ दी.
"हाँ बोल रहा हूँ, बस एक मिनट." हितेश ने कहा.
"कनि तू जा बेटा, इसका एक मिनट तो होगा नहीं, कहा था ये पिटारा ना लेकर बैठे जाने से पहले पर सुनता कहाँ है."
"वो मम्मी दीदी को सेफ़्टीपिन दे आना." कहते हुए कनिका बाहर चली गई.
"इतनी देर से कह रही थी सबको तैयार हो जाओ पर बस आख़िरी टाइम पे किसी को गेम खेलना है किसी को सेफ़्टीपिन याद आ रही है." मधु ने बड़बड़ाते हुए सेफ़्टीपिन का एक गुच्छा निकाला.
"अरे तुम ये सब समेट कर रखो, लाओ मैं दे आता हूँ. अभी टाइम पड़ा है क्यूँ चिंता करती हो." जयसिंह ने कहा और मधु के हाथ से सेफ़्टीपिन लेते हुए कहा.

मनिका कमरे में बैठी कनिका का इंतज़ार कर रही थी. उसने फ़ंक्शन के लिए एक काली साड़ी निकाल कर रही थी और उसी को बांधने के लिए कनिका को सेफ़्टीपिन लेने दौड़ाया था. कमरे का दरवाज़ा खुला. वो उठ खड़ी हुई.

"कितनी देर लगा दी, फिर मम्मी ग़ुस्सा..." कहते-कहते मनिका रुक गई. कनिका नहीं उसके पिता कमरे में आ रहे थे.

एक पल के लिए बाप-बेटी की नज़र मिली. मनिका सिर्फ़ ब्लाउज़ और पेटिकोट पहने हुए थी. जयसिंह के सामने पा कर उसने अनायास ही अपना वक्ष ढँकने की कोशिश की थी. लेकिन जयसिंह एक पल अचकचाने के बाद चलते हुए उसके पास आ गए.

"ये सेफ़्टीपिन." जयसिंह ने हाथ आगे बढ़ाया.
"ओह... Thank you papa." मनिका को उनके हाथ से सेफ़्टीपिन लेने के लिए अपना एक हाथ वक्ष से हटाना पड़ा.

जयसिंह खड़े रहे और उसके चेहरे को ताकते रहे. मनिका ने शरमा कर नज़र झुका ली थी. जयसिंह ने हाथ बढ़ा कर उसकी गर्दन सहलाई और बोले,

"अच्छी लग रही हो."
"Th... thank you papa." मनिका ने फिर से कहा.
"तैयार हो जाओ चलो, हम्म?"
"जी."

जयसिंह मुड़े और कमरे से बाहर चले गए.

मनिका खुमार में एक पल तो बेड पर बैठ गई थी. फिर किसी तरह उठ कर उसने जल्दी से साड़ी लपेटने लगी.

जब मनिका तैयार होकर नीचे आई तो सभी हॉल में खड़े थे. उसके खड़कते सैंडिलों की आवाज़ सुन सबकी नज़र उसकी ओर पड़ी थी, लेकिन उसकी नज़र थी कि सीधा जयसिंह से मिली और उसके गालों पर लालिमा छा गई थी. बाहर दोनों घरों के ड्राइवर गाड़ियाँ लिए खड़े थे. मनिका के ताऊजी, ताईजी और उनकी बेटी भी बाहर आ गए थे. सभी गाड़ियों में बैठे और माथुर साहब के यहाँ रवाना हो गए.
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Very nice update.
 

Premkumar65

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29 - पार्टी

जब जयसिंह अपने परिवार के साथ पार्टी में पहुँचे तो माथुर और उनकी बीवी रेणु ने उनका भरपूर स्वागत किया. सभी मेहमान लगभग परिचित लोग ही थे. मनिका के चाचा जो पुराने शहर में रहते थे वे भी मनिका की दादी, जो उनके साथ रह रहीं थी, उन्हें लेकर वहाँ आए हुए थे. बाक़ी माथुर के परिवार और मिलने वाले लोग तो थे ही.

माथुर के बेटा-बेटी भी मनिका के हम उम्र थे और वे लोग अक्सर पारिवारिक उत्सवों में मिलते रहते थे. कुछ देर परिवार के लोगों से मिलने जुलने के बाद मनिका और उसके भाई-बहन माथुर के बच्चों के साथ एक तरफ़ बैठ हंसी-मज़ाक़ और बतियाने में लग गए. घर के बड़े लोग भी एक तरफ़ एकत्रित हो गपशप करने लगे थे. माथुर ने भी जयसिंह के यहाँ काम करके अच्छा पैसा बना लिया था, सो इंतज़ाम भी उसी हिसाब का था. सजे-धजे बैरे भाग-भाग कर सबको स्नैक्स सर्व कर रहे थे.

जब सभी मेहमान आ गए तो फ़ंक्शन शुरू हुआ, एक छोटी पूजा का आयोजन किया गया था जिसके बाद माथुर के बच्चों ने अपने माता-पिता के लिए एक सरप्राइज़ वरमाला प्रोग्राम रखा हुआ था. काफ़ी हंसी-मज़ाक़ के माहौल में सब कुछ हुआ जिसके बाद माथुर और उनकी बीवी को एक काउच पर किसी नव-विवाहित जोड़े की तरह बैठा दिया और सभी मेहमान उनके साथ फ़ोटो खिंचवाने लगे. कुछ देर बाद जयसिंह और उनके परिवार से भी अनुरोध किया गया कि एक फ़ोटो खिंचवाएँ.

जयसिंह और मधु आकर फ़ोटो खिंचवाने के लिए खड़े हो गए. मनिका, कनिका और हितेश को भी आवाज़ देकर बुला लिया गया. फ़ोटोग्राफ़र के कहे अनुसार बीच में जयसिंह और उनकी बीवी मधु खड़े थे, मधु की बाईं तरफ़ हितेश खड़ा था और जयसिंह की दाईं ओर पहले कनिका और फिर मनिका खड़ी हो गईं. माथुर और उनकी बीवी तो आगे काउच पर बैठे ही थे.

यह सब शायद एक मिनट से भी कम समय में हुआ होगा. जब फ़ोटोग्राफ़र ने फ़ोटो खींचने से पहले उन्हें थोड़ा-थोड़ा क़रीब होने को कहा. जयसिंह ने हाथ फैला कर अपने दोनों तरफ़ खड़े परिवार के सदस्यों के पीछे किए, जैसा पोज़ अक्सर बीच में खड़े व्यक्ति बनाया करते हैं. उनका बायाँ हाथ अब हितेश के कंधे पर था. लेकिन जब वे दाहिना हाथ ऊपर कर मनिका के कंधे पर रखने जा रहे थे उस से पहले ही उनका हाथ उसके ब्लाउज़ के ऊपर से होता हुआ उसकी पीठ के उघड़े हिस्से पर छू गया, और वहीं रुक गया.

उनका स्पर्श पाते ही मनिका भी सिहर गई और उसका जिस्म अकड़ गया था. फ़ोटोग्राफ़र ने उन सबसे स्माइल करने को कहा. तब तक जयसिंह ने मनिका की पीठ के नंगे हिस्से को एक-दो बार सहला दिया था. सबने स्माइल की, मनिका का चेहरा थोड़ा लाल हो गया था पर वो भी मुस्का दी थी, और फ़ोटो खिंच गई. जब वे काउच के पीछे से हटने लगे तो मनिका और जयसिंह की नज़र मिली. मनिका ने अपने पिता के चेहरे परे एक शरारत भरी मुस्कान तैरती देखी और शरमा कर आगे चल दी.

उसके बाद डिनर लगा दिया गया और सब लोग इधर-उधर लगी मेज़-कुर्सियों पर बैठ खाना खाने लगे.

उसके बाद बातचीत और घुलने-मिलने का एक दौर और चला. ज़्यादातर मेहमान खाना खा कर विदा ले चुके थे. जयसिंह और उनके भाइयों के परिवार के अलावा एक-दो मेहमान ही रुके रहे थे. सो इस बार बढ़े-छोटे सब एक ही जगह एकत्रित हो बैठ गए. केटरिंग वाले भी सामान समेटने लग गए थे. लेकिन मनिका, कनिका और नीरा अभी गोलगप्पे वाले के पास ही खड़ी थी. कुछ देर बाद वे तीनों भी उस तरफ़ आ गईं जिधर सब लोग बैठे थे. सब लोग बातचीत में मशगूल थे, सबकी अलग-अलग बातें चल रहीं थी. मगर वहाँ ख़ाली कुर्सियाँ नहीं बचीं थी.

तीनों लड़कियाँ अचकचाकर खड़ी हो गई. जब माथुर ने देखा कि कुर्सियाँ नहीं है तो उसने केटरिंग वाले को आवाज़ दी कि और कुर्सियाँ लेकर आए. एक लड़का दोनों हाथों में कुर्सियाँ उठाए आया और रख गया. माथुर उसे एक और कुर्सी लाने को कहने ही वाला था जब मनिका की नज़र अपने पिता से मिली. वे उसके ताऊजी और चाचा के बीच में बैठे थे. उन्होंने मुस्कुरा कर अपने पैर बिलकुल उसी अन्दाज़ में खोल दिए जिस से वे उसे अपनी गोद में बुलाते थे. सब के सामने उनका ऐसा करना मनिका को झकझोर गया था, लेकिन उसके कदम मानो अपने-आप ही उनकी ओर बढ़ गए और वह सबके सामने उनकी जाँघ पर जा बैठी.

मनिका के अंदेशे के विपरीत किसी ने उसके इस तरह अपने पिता की गोद में बैठने पर आपत्ति नहीं की थी. हालाँकि उसकी दादी ने ज़रूर कहा था कि "छोरी इत्ति बड़ी हो गई लेकिन बचपना नहीं गया." जिसपर सब हँस पड़े थे.

"अरे भई एक कुर्सी और पकड़ाओ इधर." माथुर ने फिर से लड़के को आवाज़ दी.
"कोई बात नहीं माथुर." जयसिंह ने उसे कहा.

फिर वे धीरे से अपना हाथ मनिका की नंगी कमर पर रख सहलाने लगे. मनिका भी सबके मज़ाक़ पर हँसी थी मगर उसकी असली वजह अपनी शरम छुपाना था.

सब लोग बतिया रहे थे और जयसिंह उसकी कमर और पीठ के नंगे हिस्से को हौले-हौले सहला रहे थे. एक दो बार उन्होंने उसकी कमर से हाथ आगे की ओर ला, पल्लू के नीचे ढँके उसके पेट को भी गुदगुदा दिया था. किसी तरह मनिका अपने चेहरे को नॉर्मल बनाए बैठी रही और ऐसा जताती रही जैसे वो उसके ताऊजी और चाचा के बीच हो रही बिज़नस की बातों में दिलचस्पी ले रही है. उसके मन में तो बस एक ही विचार चल रहा था.

"कभी-कभी… घर पे भी गर्लफ़्रेंड… हम्म?"

कुछ देर बाद एक बैरा सबके लिए आइसक्रीम ले आया. मनिका की मन:स्थिति ऐसी नहीं थी कि आइसक्रीम खा पाती सो उसने मना कर दिया. लेकिन जयसिंह ने उसकी कमर से हाथ हटा एक कप उठा लिया था. अब सभी का ध्यान आइसक्रीम खाने और बातों में फिर से लग गया. इधर जयसिंह ने धीरे-धीरे एक दो चम्मच खाने के बाद अगला चम्मच मनिका के मुँह की तरफ़ बढ़ा दिया.

मनिका ने एक नज़र उनसे नज़र मिलाई थी और अपने गुलाबी होंठ हल्के से खोल लिए. अब जयसिंह एक चम्मच खुद खाते और एक उसे खिलाते. पहले भी वह अपने पिता के साथ खाने-पीने की चीजें शेयर कर चुकी थी लेकिन आज जयसिंह के साथ इस तरह आइसक्रीम शेयर करना मनिका को रोमांचित किए जा रहा था. ठीक उसी तरह जैसे कभी जयसिंह मनिका की झूठी स्ट्रॉ से कोल्ड-ड्रिंक पी कर आनंदित हुए थे.

आइसक्रीम ज़्यादा नहीं बची थी, इधर मनिका तो मानो अगले चम्मच के इंतज़ार में ही बैठी थी. मनिका को खिलाने के बाद जयसिंह ने एक बार फिर कप से आइसक्रीम लेकर चम्मच अपने मुँह में डाला. लेकिन मनिका ने देखा कि इस बार जब उन्होंने चम्मच मुँह से निकाला तो उस पर आइसक्रीम बची हुई थी. उन्होंने वही चम्मच उसके होंठों की तरफ़ बढ़ा दिया. मनिका एक पल मुँह बंद किए रही फिर उसने जयसिंह की आँखों में झांका और मुँह खोल लिया. जयसिंह के मुँह से निकली आइसक्रीम अब उसके मुँह में थी. इतनी देर से जो हया उसने अपने चेहरे पर नहीं आने दी थी उसे अब वह रोक ना सकी और शरम से लाल हो गई. जयसिंह ने उसे दो-तीन चम्मच और इसी तरह खिलाया जिसके बाद आइसक्रीम ख़त्म हो गई.

जयसिंह ने कप एक ओर रखा और एक बार फिर उसकी नंगी कमर सहलाने लगे. किसी का ध्यान उनकी ओर नहीं गया था.

-

क़रीब आधा-पौना घंटा वहाँ बैठने के बाद सब लोग अपने-अपने घरों को रवाना हो गए. आते समय मनिका की दादी उनके साथ आई थी. वे तीनों बेटों के पास बारी-बारी से आती जाती रहती थीं. सब लोग घर आ गए और अपने-अपने कमरों में कपड़े बदल सोने की तैयारी में लग गए.

ग्राउंड फ़्लोर पर जयसिंह और मधु के कमरे के बग़ल वाला कमरा गेस्ट रूम की तरह इस्तेमाल किया जाता था. लेकिन सब लोग उसे दादी का कमरा कहते थे क्यूँकि जब वे आती थीं तो उसी में रहती थी. इस दौरान मधु भी अक्सर उनके पास सोया करती थी. कपड़े बदल मधु ने जयसिंह को रात का दूध दिया और फिर ख़ाली ग्लास ले अपनी सास के पास सोने चल दी. यह एक अनकहा नियम था सो जयसिंह ने भी कुछ पूछा-कहा नहीं और लेट गए.

उधर मनिका आज की घटनाओं के बाद बेहद रोमांचित स्थिति में अपने कमरे में पहुँची थी. कनिका बाथरूम में चेंज कर रही थी जब उसने धड़कते दिल से अपने धुले हुए कपड़े उठा कर उनमें से वो शॉर्ट्स और गंजी निकाल कर एक तरफ़ रख ली. "क्या पापा का मेसेज आज भी आएगा?" यह ख़याल उसे एक अजीब से आवेश से भरे दे रहा था.

कनिका कपड़े बदल का बाहर आ गई तो मनिका ने भी जल्दी से बाथरूम में जा कर चेंज किया और मुँह धो कर मेकअप साफ़ किया और बाहर निकल आई. वो बिस्तर तक पहुँची भी नहीं थी कि जयसिंह का मेसेज आ गया.

Papa: Hello darling.

मनिका ने घबरा कर कनिका की तरफ़ देखा, अपने स्टडी टेबल पर बैठी थी. उसकी माँ ने वैसे भी उसे घर आते ही हिदायत दी थी कि पढ़ाई किए बिना सोना नहीं है. मनिका बेड पर लेट गई और करवट फेर टाइप करने लगी.

Manika: Papa, kanu jagi huyi hai abhi, padh rahi hai.
Papa: Hmmm. To ham to baat kar sakte hain, bol dena kisi friend se baat kar rahi ho.
Manika: Ji. Par mummy so gayi?
Papa: Madhu to daadi ke paas so rahi hai.
Manika: Oh haan, main bhool gayi thi.
Papa: Hmmm. Aur meri girlfriend kya kar rahi hai?

मनिका ने नज़र फेर एक पल अपनी बहन की तरफ़ देखा. उसका सिर किताब पर झुका था और वो कुछ पढ़ते हुए बुदबुदा रही थी.

Manika: Kuch nahi papa, bas leti huyi hu, aap kya kar rahe ho?
Papa: Tumhein yaad kar raha hu.
Manika: Issh papa.
Papa: Aaj party mein maja aaya?

पिछली रात की तरह फिर से मनिका से कुछ लिखते न बना.

Papa: Kya hua?
Manika: Kuch nahi, haay papa, meko itna dar lag raha tha.
Papa: Par maja bhi aa raha tha, hmm?
Manika: Hmmm.
Papa: Manika bol ke bataya karo, pehle bhi kaha hai.
Manika: Yes papa...❤️

फिर कुछ देर तक जयसिंह का कोई जवाब नहीं आया. मनिका फ़ोन की स्क्रीन तकती जा रही थी और कुछ टाइप करने ही वाली थी जब फिर से जयसिंह का मेसेज आया.

Papa: Bahut sexy lag rahi thi aaj.

मनिका का हाथ काँपने लगा था. उसने फिर धड़कते दिल से कनिका की तरफ़ देखा, और टाइप करने लगी.

Manika: Thank you papa. You were also looking very handsome in the party.
Papa: Main uss se pehle ki baat kar raha tha.

जयसिंह का आशय समझ मनिका और ज़्यादा दहक उठी.

Manika: Haay papa aap to na... thank you!
Papa: Vese aaj kya pehena hai?

आख़िर एक बार फिर जयसिंह ने वो सवाल किया था जिसका शायद मनिका भी इंतज़ार कर रही थी.

Manika: Night dress.
Papa: Kaunsi?

इस बार जवाब देने से पहले मनिका ने जयसिंह को कुछ देर इंतज़ार करवाया, फिर कांपती अंगुलियों से टाइप किया.

Manika: Jo aapko pasand hai.
Papa: Sach mein.
Manika: Yes.
Papa: Main aa raha hun dekhne.
Manika: No papa! Aap pagal ho, kanu is awake.
Papa: To kya ho gaya?

जयसिंह का इरादा जान मनिका की जान गले में अटक गई थी. वह उनके स्वभाव से भी परिचित थी, वे सच में भी आ सकते थे.

Manika: No, no, no! Don't come, please.
Papa: To tum aa jao.
Manika: What? Aap aise kyun kar rahe ho, sab jage huye hain.
Papa: Arey to neeche aa jao na paani peene ka bol kar.
Manika: No papa, you are scaring me now.
Papa: Kuch nahin hoga darling, main hu na. Come now.
Manika: Papa! Aise matt karo na, koi dekh lega... I wear this dress in my room only.
Papa: Aa jao na, sab apne rooms me hai.
Manika: No na papa.

मनिका ने फिर से मिन्नत की.

Papa: Tumne to kaha tha meri har baat maanogi, that nothing will change between us. Ab kya hua?
Manika: But papa not like this na.
Papa: Okay.

जयसिंह का जवाब पढ़ मनिका समझ गई कि उन्होंने तल्ख़ी से लिखा था.

Manika: Papa please understand na.

इस बार जयसिंह ने मेसेज seen नहीं किया था. मनिका ने फिर से लिखा.

Manika: Papa? Please na... ab aise to matt karo.
Manika: Papa talk to me na!

लेकिन जयसिंह का कोई जवाब नहीं आया और ना ही उन्होंने उसके मेसेज पढ़े.

मनिका काफ़ी देर तक असमंजस में पड़ी रही. पापा के नाराज़ हो जाने पर उसे रोना आ रहा था. आख़िर वह उठ बैठी और कनिका से बोली,

"कनु?" उसकी आवाज़ में एक कंपन था.
"जी दीदी?" कनिका ने मुड़ कर पूछा.
"पानी पीना है? मैं नीचे जा कर आ रही हूँ."
"नहीं-नहीं. आप पी आओ." कनिका ने कहा.

मगर उसकी नज़र एक बार मनिका की पहनी पोशाक पर ज़रूर ठहर गई थी. वह भी जानती थी कि ये ड्रेस मनिका सिर्फ़ रूम में ही पहना करती थी. पर उसने कुछ ना कहा और मुड़ कर पढ़ने लगी.

मनिका उठ कर कमरे से बाहर निकली. हितेश के कमरे के गेट के नीचे से लाइट आ रही थी, उसका डर और बढ़ गया. वह दबे पाँव चलती हुई नीचे उतरी. हॉल में एक नाइट-लाइट जल रही थी. उसकी की रौशनी के सहारे वो धीरे-धीरे चलती हुई अपने पिता के कमरे के गेट तक आई. बग़ल के कमरे से उसकी दादी और मम्मी के बातें करने की आवाज़ आ रही थी. उसका डर चरम पर पहुँच गया, एक बार वापस जाने का सोचा मगर फिर धीरे से उसने गेट का हैंडल मोड़ा और उसे धकेला. हल्की सी आवाज़ हुई थी मगर मनिका का घबराहट के मारे बुरा हाल हो गया था. वो अपने पिता के कमरे में दाखिल हुई, अंदर घुप्प अंधेरा था.

"पापा?" मनिका हौले से फुसफुसाई.

उसके अंदर आते ही बिस्तर में हलचल हुई थी. जयसिंह ने मोबाइल की लाइट जला कर उसकी ओर की, मनिका ने अनायास ही अपना बदन उस रौशनी से ढँकना चाहा था. फिर उसने देखा, जयसिंह बेड से उठ रहे थे. वो भी कांपते कदमों से थोड़ा आगे बढ़ी. जयसिंह अब उसके क़रीब आ गए थे.

"पापा." मनिका एक बार फिर दबी आवाज़ में बोली.
"हम्म." जयसिंह के हाथ उसकी कमर पर थे.

मनिका का जिस्म डर और उत्तेजना से अकड़ गया था.

"हेल्लो डार्लिंग..." जयसिंह ने कहा और फिर उसे अपनी तरफ़ खींचा.
"पापा, कोई आ जाएगा... मैं जा रही हूँ." मनिका ने हल्का प्रतिरोध किया.

मगर अब तक जयसिंह ने उसकी कलाई पकड़ ली थी और उसे अपने साथ ले जाने के लिए खींच रहे थे. मनिका कुछ समझ पाती उस से पहले ही जयसिंह उसे बेड की तरफ़ ले गए थे और लाइट ऑन कर दी. कमरे में रौशनी होते ही मनिका किसी डरी हुई हिरनी की तरह वापस भागने को हुई. लेकिन जयसिंह ने उसे एक झटके से खींच कर अपनी बाँहों में भर लिया था.

"पापाऽऽऽऽ!" मनिका फुसफुसाती हुई उनसे अलग होने की कोशिश कर रही थी. "प्लीज़ लाइट ऑफ़ करो, कोई आ जाएगा."
"हम्प! कुछ नहीं होगा... डार्लिंग." जयसिंह ने उसे अपनी गिरफ़्त से आज़ाद किया और ऊपर से नीचे तक देखा.

आख़िर मनिका को अपनी नग्नता का एहसास हुआ. इतनी देर से कुछ अंधेरे और कुछ डर की वजह से उसे एहसास नहीं हुआ था लेकिन अब उसका ध्यान अपने कपड़ों की स्थिति पर गया. हालाँकि गंजी फिर भी ठीक थी मगर ऊपर से नीचे तक चल कर आने की वजह से शॉर्ट्स पीछे से ऊपर हो गई थी. वो उन्हें खींच कर नीचे करना चाहती थी मगर उसकी दोनों कलाईयाँ जयसिंह पकड़े हुए थे.

"पापाऽऽऽ, प्लीज़ जाने दो ना! देख लिया ना आपने बस..." मनिका ने फुसफुसाते हुए मिन्नत की.

उसकी नज़रें जयसिंह के चेहरे पर थीं जब उसने देखा कि उनका जयसिंह की आँखों में एक कठोर सा भाव आ गया था. उन्होंने उसे फिर से अपनी ओर खींचा, उनके चेहरे एकदम क़रीब आ गए थे.

"मैं कह रहा हूँ ना... हम्म?" उन्होंने आँख दिखाते हुए कहा. वे इस बार फुसफुसाए न थे.
उनका इतना कहना था कि मनिका का सारा प्रतिरोध ख़त्म हो गया.
"जी..." उसने निढाल होते हुए कहा.

जयसिंह ने अब उसके हाथ छोड़ दिए और उसका चेहरे पर हाथ रख उसकी ओर झुकते हुए उसके गाल पर किस्स किया "पुच्च."

"Don't worry darling... मैं कह रहा हूँ ना, हम्म?" अब उन्होंने थोड़ा नरम स्वर में कहा था.
"Yes papa." मनिका ने आँखें बंद करते हुए कहा था.

"पुच्च, पुच्च, पुच्च." जयसिंह ने उसकी गर्दन और गाल पर तीन-चार किस्स और करते हुए उसे अपने आग़ोश में भींच लिया.

"ओह पापाऽऽऽ... what are we doing?" मनिका भी उनके गले में हाथ डाल उनसे चिपट गई और उनके कान में फुसफुसाई.

जयसिंह कुछ ना बोले बस उसे चूमते रहे. मनिका अब रह ना सकी और उसने अपने दोनों पैर हवा में उठा जयसिंह की कमर पर कस लिए और उनके जिस्म में धँसने लगी. ऐसा करते ही उसकी शॉर्ट्स अब पूरी ऊपर हो चुकी थी, जयसिंह ने उसके चेहरे से हाथ हटाया और उसके अर्धनग्न नितम्बों पर ले गए उन्हें सहलाने लगे.

"आँआऽऽऽऽऽऽ..." मनिका उनके स्पर्श से तड़प उठी और अपनी टाँगे और ज़ोर से उनकी कमर पर कसने लगी. रह रह कर वो अपना वक्ष अपने पिता के सीने में गड़ा रही थी.

कुछ पल का उन्माद रहा उसके बाद मनिका का खुमार उतरा, उसे अपनी स्थिति का अंदाज़ा हुआ और उसकी पकड़ ढीली पड़ने लगी. जयसिंह ने भी अपनी गिरफ़्त थोड़ी ढीली की, मनिका ने अपने पैर खोले और ज़मीन पर रखे. वो एक बार के लिए लड़खड़ा गई थी, मानो उसके पैरों में जान ही नहीं बची थी. जयसिंह का एक हाथ अभी भी उसके जवान कसे हुए नितम्बों पर था और वे उन्हें हौले-हौले सहला रहे थे. अब दूसरे हाथ से उन्होंने उसके नीचे होते चेहरे को पकड़ कर ऊपर किया और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोले.

"You are so sexy Manika, you know that?"
एक पल बाद कांपते होंठों से मनिका बोली,
"Thank you papa..."

उनकी नज़र अभी भी बंधी हुई थी.

"थप्प!"

जयसिंह ने हौले से उसके उघड़ चुके नितम्बों पर चपत लगाई. आज उनकी हरकत मनिका के लिए और अधिक शर्मनाक थी.

"आह!"

मनिका के मुँह से निकला और उसका चेहरा और ज़्यादा लाल हो गया. वो अपने पिता की नज़र का सामना ना कर पाई और सिर झुका उनके आग़ोश में समा गई.

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जब मनिका अपने कमरे में वापस आई तो कनिका को पढ़ते हुए ही पाया. उसके और जयसिंह के बीच अभी-अभी जो हुआ था वो शायद पाँच मिनट से ज़्यादा न चला होगा मगर मनिका के लिए मानो घंटों का बीत चुके थे. वो दबे पाँव आकर बिस्तर में घुस गई और चादर खींच कर अपने अधनंगे तन को ढँक लिया. उसने इस बात का शुक्र मनाया कि कनिका ने कुछ नहीं कहा था.

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Papa is desperate to get daughter.
 
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