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Incest बेटी की जवानी - बाप ने अपनी ही बेटी को पटाया - 🔥 Super Hot 🔥

Daddy's Whore

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कहानी में अंग्रेज़ी संवाद अब देवनागरी की जगह लैटिन में अप्डेट किया गया है. साथ ही, कहानी के कुछ अध्याय डिलीट कर दिए गए हैं, उनकी जगह नए पोस्ट कर रही हूँ. पुराने पाठक शुरू से या फिर 'बुरा सपना' से आगे पढ़ें.

INDEX:

 
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26 - वापसी

जयसिंह की बातों से मनिका एक चीज़ तो समझ चुकी थी.

उसके पापा उनके रिश्ते को एक अलग ही नज़रिए से देख रहे थे. उनकी कही बातें अब उसके मन में गूँज सी रही थी,

“डेल्ही में गर्लफ़्रेंड और घर पे डॉटर… हम्म… घर जा कर कहीं अपनी बात से बदल मत जाना… और कभी-कभी… घर पे भी गर्लफ़्रेंड… हम्म?”

और फिर उनके वो चुम्बन,

“पापा कैसे किस्स कर रहे थे… दो-तीन बार… वरना एक बार करते थे… और पहले तो वो भी नहीं… तो क्या सच में पापा समाज के नियमों को नहीं मानते..? और उनका डिक जो… क्या उन्हें पता चला होगा..? पता तो चला ही होगा… हाय! ये तो पाप है… पर पापा को रोक नहीं पाई मैं… उनका डोंग… कितना बड़ा है… आज कैसे टॉवल में… और दोपहर में काउच पर मेरे ऊपर सो रहे थे… उनका वो पार्ट मेरे ऊपर था… क्या मैं भी पापा से मोहब्बत करने लगी हूँ?”

वो पलट कर जयसिंह की तरफ़ देखने लगी.

वो पीठ के बल थे, और रोज़ की तरह मनिका के दिल का क्लेश वो तम्बू नज़र आ रहा था.

“हाय! पापा कैसे सो रहे हैं आराम से… और कितना ख़र्चा कर आए आज… तीन लाख कि डायमंड रिंग और पापा ने ऐसे ही दिला दी… बोलते हैं enjoy करो… सोचो मत… अच्छा तो लगता है पापा के साथ… पर उनकी गर्लफ़्रेंड बनना..? नहीं-नहीं ऐसा नहीं करूँगी…”

मनिका आँखें बंद सोने की कोशिश करने लगी. पर उस रात उसने कोरी करवटें ही बदलीं थी, उसके धर्मसंकट ने उसे सोने नहीं दिया.

–​

“मनिका!”

अगली सुबह जयसिंह की आवाज़ से उसकी आँख खुली.

“हूँ… क्या?” उसने ऊनींदी सी होकर कहा था.

फिर एक झटके में उसकी आँख खुल गई. पापा बिलकुल उस के क़रीब थे और धीरे-धीरे उसका गाल सहला रहे थे.

“पापा?” उसने बड़ी-बड़ी आँखें खोलते हुए कहा.
“उठ जाओ… चलना नहीं है?”
“ज… जी…” मनिका उठने को हुई.

लेकिन जयसिंह ने उसे थामे रखा था.

“हाहा… अरे आराम से… इतनी भी जल्दी नहीं है… नाश्ता ला रहा है वेटर…”
“ओह… पापा… मैं उठ कर फ़्रेश… हो जाती हूँ…”

उसकी नज़र जयसिंह के बरमुडे में खड़े लंड पर जा टिकी थी और अटकते-अटकते उसने अपनी बात पूरी की.

लेकिन उसके बाद उनका समय दौड़-भाग में ही बीता. नाश्ता करते ही वे लोग तैयार होकर नीचे लॉबी में आ गए. जयसिंह ने कहा था कि नहा कर तो सोए ही थे, हाथ-मुँह धो, फ़्रेश हो ही लिए, अब चलते हैं. कैब पहले से आई खड़ी थी.

वे लोग स्टेशन पहुँचे और एक कूली कर अपने कम्पार्ट्मेंट में आ बैठे. जयसिंह ने कैब वाले को और कूली को बढ़िया टिप दी थी.
कुछ ही पल में ट्रेन चल पड़ी.

–​

मनिका को बरबस ही उनके पहले ट्रेन के सफ़र की याद आ गई.

एक वो दिन था और एक आज का दिन था. बाप बेटी के बीच सब कुछ बदल चुका था.

जयसिंह आज भी सामने बैठे मुस्कुरा रहे थे, और मनिका लाख जतन के बाद भी उन्हें एक शर्मीली मुस्कान दिए बिना ना रह सकी.

जयसिंह ने अपने पैर खोलते हुए उसे आमंत्रण दिया. एक पल की झिझक के बाद वो उनकी गोद में थी.

“हाय! कल रात कितना सोचा था कि पाप को मना करूँगी… पर कर ही नहीं पाती… कितनी शैतानी से मुझे उठाया था उन्होंने… हर बार सोचती कुछ हूँ होता कुछ है…”

दरअसल एक लड़की को वश में करने का सबसे बड़ा हथियार है उसकी आत्मीयता प्राप्त कर लेना. जयसिंह ने मनिका को अपने साथ इतना अंतरंग कर लिया था कि अब वह सोचने-समझने के काबिल नहीं रही थी. वैसे भी 22 साल की बाली उमर में उसे क्या पता था कि मर्द जात कितनी सयानी होती है.

“बड़ी अच्छी लग रही हो…” जयसिंह ने उसकी तारीफ़ का पुल बाँधना शुरू किया.
“ईश… thanks papa…” उसने बहलते हुए कहा.
“खुश हो अब?” जयसिंह के सवाल के कई मतलब हो सकते थे, और थे भी.

मनिका को भी इसका एहसास था.

“जी…” उसने धीमे से कहा.
“जी क्या?” जयसिंह ने कुरेदा.
“जी पापा… खुश हूँ…” मनिका ने लजा कर बताया.

तभी टिकट चेकर कम्पार्ट्मेंट का गेट खोल अंदर दाखिल हुआ.

मनिका उसे देख कर इतनी घबराई जैसे उसकी कोई चोरी पकड़ी गई हो. उस से न हिलते बना ना डुलते. टिकट चेकर भी सरकारी कर्मचारी था, एक जवान बाला को एक अधेड़ की गोद में बैठा पा कर सकपका गया.

लेकिन जयसिंह ने ऐसा जताया मानो कुछ हुआ ही ना हो.

आख़िर टिकट चेकर बोला,

“मनिका सिंह और जयसिंह?”
“हाँ.” जयसिंह ने कहा और अपना ID card दिखाया.
“ठीक है.” कह टिकट चेकर चलता बना.

मनिका किसी सधी हिरणी सी बैठी थी. उसके जाते ही वो उचकी.

“पापा! वो… टीटी…”
“हाहा… अरे कुछ नहीं कहेगा वो… बैठो तुम आराम से…”

जयसिंह ने बेपरवाह होकर कहा, और अपना हाथ मनिका की जाँघ पर रख लिया.

मनिका ने आज एक चूड़ीदार सलवार-सूट पहन रखा था. लेग्गिंग्स की तरह सलवार भी टाइट थी. जयसिंह के स्पर्श का उसे एक ही पल में आभास हो गया था.

अब वे उसकी जाँघ सहलाने लगे.

मनिका के तन और मन दोनों ने उसका साथ छोड़ दिया था. उसमें मानों अपने पिता के प्रतिरोध की बिलकुल क्षमता नहीं बची थी.

“मैंने कहा ना मनिका… enjoy करो… हम्म?” जयसिंह ने उसके गाल से गाल लगाते हुए उसके कान में कहा.
“हूँ…” मनिका ने आह भरी और उनके हवाले हो गई.

–​

कुछ देर बाद जयसिंह ने मनिका को अपनी सीट पर जाने दिया. वो शर्मीली सी मुस्कान लिए सधी हुई बैठी थी.

अब जयसिंह के प्लान का अंतिम चरण शुरू हो चुका था.

मनिका को यहाँ तक ले आने के बाद अब उन्हें उसे दो कदम पीछे धकेलना था. ताकि उसका आचरण इतना ना बदल जाए कि घर जाते ही सबको शक हो जाए. वे आराम से अपनी सीट पर लम्बे हो कर बैठ गए और कम्पार्ट्मेंट की दीवार के साथ टेक लगा लिया.

“वैसे पता ही नहीं चला कब पंद्रह दिन बीत गए… नहीं?” उन्होंने कहा.

मनिका जो फिर उनके और उसके बीच चल रही शरारतों के बारे में सोच रही थी उनकी बात सुन थोड़ी सकपकाई. फिर उसने भी मुस्काते हुए कहा,

“हाँ पापा… अभी कल ही की बात लगती है हम डेल्ही जा रहे थे.”
“और नहीं तो क्या… तुम माँ-बेटी प्लेटफ़ॉर्म पर लड़ रहीं थी… और आज तुम पक्की दिल्लीवाली हो चुकी हो…” कह जयसिंह हँसे.
“हेहे पापा… सही में… इतना फ़न किया हमने इस ट्रिप पर…” मनिका भी थोड़ी हँस कर बोली.
“अब घर जाते ही दोनों माँ-बेटी फिर शुरू मत हो जाना… हम्म? मधु चिक-चिक करे तो सुन लेना थोड़ा… वरना वो मेरी जान को आफ़त करेगी…” जयसिंह ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा था.
“हाहाहा… क्यूँ पापा… मम्मी से इतना डर लगता है आपको?” मनिका खिलखिला दी थी.
“डरता तो मैं किसी के बाप से नहीं हूँ…” जयसिंह ने मज़ाक़िया अन्दाज़ में कहा था.
“हाहाहा… बस मेरी माँ से हो…” मनिका लोटपोट होने लगी.

जयसिंह यही तो चाहते थे, कि वो उनके रिश्ते से इतर सोचे, ताकि एक तो उसकी झिझक कम हो और दूसरा उसका ध्यान एक बार फिर से घर-परिवार के बंधनों पर जाए. यही तो वो ज़ालिम सीमाएँ थी जिनके बीच के उन्हें अपना झंडा गाड़ना था.

उनका तीर फिर एक बार बिलकुल निशाने पर लगा था. कुछ ही देर में मनिका और उनके बीच वापस उन विषयों पर बातें होने लगी जिनकी परवाह पिछले पंद्रह दिनों में उन्होंने छोड़ दी थी. ताऊजी की पीठ का दर्द कुछ कम हुआ होगा के नहीं, श्याम अंकल की बेटी की शादी, और कनिका का बोर्ड ईयर. ट्रेन चलती रही और मनिका एक बार फिर अपने बाड़मेर वाले स्वरूप में ढलती गई.

लेकिन अगर कोई पर्दा हटा कर देखता तो वो अब ‘मनि’ नहीं, सच में ‘जयसिंह की जवान बेटी मनिका’ थी.

जयसिंह ने इसके बाद पूरे सफ़र में कोई ऐसी बात या हरकत नहीं दोहराई थी जिस से मनिका को लगता कि वे उसे बेटी के सिवा और कुछ भी समझते हैं. दोनों ने दिल्ली जाने से पहले वाली हँसी-ठिठोली करते हुए खाना खाया था. उसी दौरान टिकट चेकर भी एक और चक्कर लगा गया था, सरकारी आदमी था, उसे लगा कुछ ऐसा-वैसा चल रहा होगा तो धमका कर दो पैसे बटोर लेगा. लेकिन बाप-बेटी को अपनी-अपनी जगह बैठे बतियाते देख वो भी खिसिया कर निकल लिया.

शाम ढले जब वे लोग बाड़मेर पहुँचे तो ड्राइवर पहले से उनका इंतज़ार कर रहा था.

आज मनिका वैसे भी अच्छे से ढँकी छुपी थी. वैसे भी अब जयसिंह उसकी गंदी नज़र की क्या परवाह करते, वे तो खुद पथभ्रष्ट हो चुके थे.

–​

वे लोग घर आ गए.

मधु दरवाज़े पर ही खड़ी मिली.

“मम्मी!” मनिका मुस्का कर उसके पास गई.
“आ गई वापस मेरी जान को आफ़त करने?” मधु ने कहा, मगर वो मुस्कुरा रही थी.
“हेहे मम्मी… और क्या तो… आपका सुख-चैन मुझे बर्दाश्त नहीं…” मनिका थोड़ी ठिठक कर अपनी माँ के गले लगते हुए बोली.

पास खड़े कनिका और हितेश भी हँस पड़े. मनिका ने हितेश को थोड़ा बग़ल से पकड़ गले लगाया, आख़िर लड़का बड़ा होने लगा था. फिर कनिका को गले लगाते हुए पूछा,

“पढ़ रही है कि नहीं, इस बार बोर्ड है तेरे…”
“क्या दीदी… पूरा साल पड़ा है, पढ़ लूँगी…” कनिका भी मचली.
“कुछ नहीं पढ़ती ये आजकल… वो ताऊजी वाली नीरा को देखो… जब जाओ किताब लिए बैठी होती है. यूनिट टेस्ट सिर पर हैं पर इसको डांस क्लास जाने के लिए फ़ुरसत है पर पढ़ने के लिए टाइम नहीं…” मधु ने हमेशा की तरह लम्बा राग अलापा.
“क्या मम्मी?” कनिका अभी अपने पापा से थोड़ा डरती थी. अपने माँ की शिकायत सुन वो थोड़ा सहम गई थी.

पर जयसिंह हँस पड़े और बोले,

“अरे पढ़ लेगी… कोई बात नहीं… क्यूँ?” और कनिका के सिर पर हाथ फेरते हुए आगे बोले, “अंदर तो चलें अब के नहीं…”

उसके बाद रात होने तक घर में उत्सव का सा ही माहौल रहा. कनिका को जहां ये जानना था मनिका को डेल्ही जा कर कैसा लगा, वहीं हितेश को सिर्फ़ इस से मतलब था कि वे उसके लिए कुछ लेकर आए हैं कि नहीं. जयसिंह ने हँसते हुए हितेश को उसका मनपसंद गैजेट ले देने का वादा किया था.

“आते ही बच्चों को बिगाड़ दो आप…” मधु ने मुस्कुराते हुए उलाहना दिया था.
“हाहाहा….” जयसिंह हँस पड़े और बोले, “सुना भई? बिगड़ोगे?”
“हाँ पापा…” मनिका, कनिका और हितेश एक स्वर में बोले.

कनिका के ज़्यादा ही पूछने पर मनिका ने झूठ-मूठ कहा कि,

“वहाँ कोई घूमने थोड़े ही गई थी… एडमिशन के लिए गए थे, पूरा टाइम पढ़ाई करती थी… तेरी तरह नहीं…”
“हाहाहा आप तो रहने दो दीदी… बुक्स तो लेकर नहीं गए थे… इंटर्व्यू के राउंडस का पता तो वहाँ जाकर चला, मम्मी कह रही थी.”

झूठ पकड़ा जाने पर मनिका सकपका गई.

“अरे भई कॉलेज वालों ने लाइब्रेरी में पढ़ने की छूट दे रखी थी…” जयसिंह ने तपाक से कहा था, “वहीं ज़ाया करती थी… अब पढ़ती थी कि नहीं ये तो राम जाने…”
“हाहाहा पापा… पढ़ती थी तभी तो एडमिशन हुआ है… आप भी ना कितने पलटू हो…” मनिका हँस पड़ी.

मन ही मन उसे अपने पिता की अक़्लमंदी भा गई थी.

सबने डिनर साथ किया. उसके बाद एक-एक कर बच्चे अपने कमरों में और जयसिंह और मधु अपने बेडरूम की तरफ़ हो लिए. आज कोई गुड नाइट किस्स नहीं होने वाली थी.

–​

मनिका और कनिका अपने कमरे में आ गई थी.

मनिका ने कुछ-कुछ सामान अनपैक किया और नहाने घुस गई. नहाते वक्त उसके मन में कुछ-कुछ दिल्ली की यादें ताज़ा होने लगी. वहाँ का आलीशान कमरा और वो बाथरूम जिसमें इतने प्रेशर से शॉवर का पानी आता था कि नहाने का मज़ा ही आ जाए. वैसे उनका घर भी अच्छा ख़ासा पैसा लगाकर बना था, पर Marriott की बात तो कुछ और ही थी. नहाते-नहाते उसने जयसिंह की हाज़िरजवाबी कर भी अचरज किया था.

“पापा कितने होशियार हैं… कैसे एक सेकंड में लाइब्रेरी वाली बात बोल दी… मैं तो इतना सोच भी नहीं पाती… थोड़ा संभल कर रहूँगी अबसे…”
नहा कर मनिका ने घर पर रखा एक पुराना नाइट सूट निकाल कर पहन लिया.

ऊपर रूम में आते वक्त उसकी मम्मी ने कहा था कि कोई मैले कपड़े हों तो धुलने डाल दें. सो उसने अपना डेल्ही वाला नाइट सूट और वो गंजी और शॉर्ट्स, जो तब से अटैची में रखी थी, मैले कपड़ों के बास्केट में डाल दिए थे.

नहा कर बाहर आने के बाद मनिका और कनिका बैठ कर काफ़ी देर बतियाते रहे. मनिका उसे सिर्फ़ सामान्य सी घटनाएँ ही बता रही थी, कि कैसे उन्हें पता चला कि इंटर्व्यू इतने दिन तक चलेंगे, को कि ख़ैर एक सफ़ेद झूठ था, और कैसे उसने कॉलेज जाते वक्त मेट्रो देखी थी, और वहाँ कितने आलीशान मॉल इत्यादि थे. कनिका मंत्रमुग्ध सी उसकी झूठी-सच्ची बातें सुन रही थी.

सच कहो तो मनिका को भी वो झूठी कहानियाँ गढ़ने में बहुत मज़ा आ रहा था.

काफ़ी देर बतियाने के बाद आख़िर दोनों बहने सो गईं.

–​

उधर कमरे में जाने के बाद जयसिंह नहा आए और मधु उनके लिए दूध ले आई.

उसके बाद मधु ने एक उनके ऑफ़िस से आए कुछ पत्राचार से लेकर पास-पड़ोस और रिश्तेदारी में हुई घटनाओं का वर्णन शुरू किया. जयसिंह भी कुछ मन से और कुछ अनमने उसकी गाथाएँ सुनते बैठे रहे.

“अच्छा मनि का कॉलेज कब शुरू हो रहा है? वहाँ हॉस्टल मिल गया?” मधु ने कुछ देर बाद पूछा.
“हैं?” अपने ही कुछ ख़यालों में तल्लीन जयसिंह अचकचा गए.
“मनि का कॉलेज कब से लगेगा… मैं पूछ रही हूँ… रहेगी कहाँ?”

तो जयसिंह ने बताया कि कॉलेज में ही हॉस्टल है जिसकी फ़ीस वो भर आए हैं, लगभग 20 दिन बाद उसे वापस छोड़ कर आना होगा. इस बारे में सोचते ही जयसिंह का लंड जो आज एक अरसे बाद बैठ कर सुस्ता रहा था फिर से खड़ा होने लगा. कहीं मधु यह देख ना ले, इस करके वे अब लेट गए और जताने लगे कि उन्हें नींद आ रही है.

मधु ने भी उठ कर कमरे की लाइट बुझा दी और नौकर ने रसोई समेटी कि नहीं यह देखने चली गई.

“अब इसको कौन चोदेगा… हम्प!” मधु को हिक़ारत भरी नज़र से देखते हुए जयसिंह ने अपने सख़्त होते लंड को मरोड़ा और सोने लगे.

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Kanika jo board likne ja rhi he uski figure aise honi chayiye !!!
 
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