22 - ऑफ़र
"पापा ऐसे मत देखो ना." मनिका ने मन ही मन कहा.
उसके पिता जयसिंह आ चुके थे और वे दोनों आमने-सामने बैठे हुए खाना आने का वेट कर रहे थे. मीटिंग में बिजी होने के कारण जयसिंह ने भी दोपहर का खाना नहीं खाया था. मनिका और जयसिंह की नज़र बार-बार मिल रही थी. जहाँ जयसिंह के चेहरे पर एक उन्माद भरी कुटिल मुस्कान तैर रही थी वहीं मनिका अपने पिता को हया से बोझिल मुस्कुराहट से जवाब दे रही थी.
जब शर्म की मारी मनिका ने कुछ देर उनकी तरफ नहीं देखा था तो जयसिंह ने टेबल के नीचे उसकी टांग पर अपने पैर से हल्का सा छुआ था. मनिका ने घबरा कर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें उनसे मिलाई और एक बार फिर शर्म से लाल होते हुए मुस्का दी.
जब वे खाना खा चुके तो जयसिंह ने सुझाया कि कुछ देर होटल में ही बने पार्क में घूमा जाए. वे मनिका का हाथ अपने हाथ में ले उसके साथ बाहर चल दिए. मनिका को उनके स्पर्श से ही जैसे करंट लग रहा था. वह यंत्रवत उनके साथ चल रही थी. कुछ देर पार्क में टहलते रहने के बाद मनिका और जयसिंह अपने रूम में आ गए. उन दोनों के बीच कोई बात भी नहीं हुई थी, वे बस मंद-मंद मुस्काते घूमते रहे थे. अभी भी शाम के करीब सात ही बजे थे.
कमरे में आने के बाद मनिका थोड़ी असहज हो गई. जयसिंह आगे क्या करने वाले हैं यह सोच-सोच कर उसका दिल जोरों से धड़क रहा था.
इधर जयसिंह ने जानबूझकर मनिका को बाहर पार्क में घूमने चलने को कहा था. ताकि उसे यह न लगे के वे उसके जिस्म के पीछे पागल हैं. मनिका ने तो यही सोच रखा था कि वे इतना लेट लंच करने के बाद रूम में ही जाएंगे. लेकिन जयसिंह के प्रस्ताव ने उसे भी सरप्राइज कर दिया था. किन्तु उनके साथ घूमते-घूमते उसे बड़ा मजा आया था. हर एक पल ने उसकी तृष्णा को बढ़ाने का ही काम किया था. पर अब रूम में आने के बाद वह थोड़ी सहमी सी लग रही थी. वो सोफे के पास खड़ी हुई कुछ-कुछ देर में उनसे नज़र मिला कर शरम से मुस्का दे रही थी.
जयसिंह ने कमरे में आकर अपने मीटिंग के दस्तावेज़ सम्भाल के रखे, वे यूँ जता रहे थे जैसे सब कुछ नॉर्मल ही था.
तभी मनिका को याद आया,
"पापा! मेरा कॉलेज का फ़ॉर्म और फ़ीस…?" उसने एकदम से चिंतित हो कर कहा.
पिछले दिन की घटनाओं ने मनिका को सब भुला दिया था.
जयसिंह भी आशंकित से बोले,
"अरे! कहाँ है फ़ॉर्म? जल्दी दो… शिट! वैसे तो हम काफ़ी लेट हो चुके है शायद…!"
मनिका भाग कर बेड-साइड टेबल के पास गई जहाँ उसने फ़ॉर्म भर कर रखा था, लेकिन उसे नदारद पाया.
"क्या रूम सर्विस वाला सफ़ाई करते वक़्त उसे उठा ले गया था?”
मनिका रुआंसी हो गई और जयसिंह की तरफ़ देख कर बोली.
"पापा! फ़ॉर्म तो यहीं रखा था मैंने…!"
उसने देखा कि जयसिंह मुस्का रहे थे. उन्होंने अपनी जेब से एक काग़ज़ निकाल कर उसकी तरफ़ बढ़ा दिया.
मनिका धीमे क़दमों से चलती उनके पास गई और उनसे काग़ज़ के कर देखा. फ़ॉर्म और फ़ीस जमा होने की रसीद थी.
"तुम्हारी कोई चीज़ भूल सकता हूँ क्या…?" जयसिंह ने डायलोग मारा.
मनिका के ख़ुशी के मारे आँसू ही आने को थे.
"ओह पापा…" उसने पूरी आत्मीयता से कहा.
जयसिंह अब मनिका के बिलकुल क़रीब आ गए व उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में ले लिया. मनिका ने सकुचाते हुए नज़र ऊपर उठाई.
“हम्म…" जयसिंह ने हुंकार भरते हुए कहा, "खुश है मेरी जान?"
"हूँ… ज… जी…" मनिका ने हामी में सर हिलाते हुए कहा.
"अच्छा है, अच्छा है…" जयसिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, फिर अपना स्वर जरा नीचे कर बोले, "आज बिस्तर में जरा जल्दी चलें… कल तो सुबह ट्रेन है ही, हम्म?"
मनिका उनके सवाल से तड़प उठी थी,
"पापा को तो बिलकुल भी शरम नहीं है…!" , उस से कुछ कहते न बना, बस उसने अपना शरम से लाल मुँह झुका लिया.
जयसिंह ने इसे उसकी हाँ समझ आगे कहा,
"मैं तो आज सिर्फ नाईट-ड्रेस में चेंज करने के मूड में हूँ… तुम देख लो क्या करना है."
वे मनिका का हाथ छोड़ एक पल रुके रहे. फिर मुस्का कर अपने सूटकेस से अपना बरमूडा और टी-शर्ट लेकर बाथरूम में चले गए.
लेकिन इस से पहले कि मनिका अपने-आप को इस नई परिस्थिति में ढाल पाती, जयसिंह कपड़े बदल कर बाहर भी आ चुके थे. उसने उनकी तरफ देखा, वे मुस्कुरा रहे थे. मनिका की नज़र फिर से उनके लंड पर चली गई, बरमूडे का तम्बू बना हुआ था. उसने एक पल जयसिंह की तरफ देखा और पाया कि वे यह सब देख रहे थे. उसकी जान गले में अटक गई, वह तेज़ क़दमों से चलती हुई अपने बैग के पास पहुँची और अपनी नाईट-ड्रेस निकालने लगी.
—
मनिका के बाथरूम में जाने के बाद जयसिंह बेड पर जा बैठे और अपनी बेटी के बिस्तर में आने का इंतज़ार करने लगे. उनका दिल ख़ुशी और आशंका से धड़क रहा था.
इधर बाथरूम में मनिका गेट के पास खड़ी थी. वह नहा ली थी और उसने कपड़े भी बदल लिए थे, लेकिन अब बाहर जाने की हिम्मत जुटाने की कोशिश कर रही थी. कुछ देर खड़ी रहने के बाद उसने गेट के पीछे लगे हुक से अपना पहले पहना हुआ सूट लिया और अपनी नाईट-ड्रेस उतार उसे पहन लिया.
लेकिन कुछ वक्त और बीत गया और वह फिर भी बाहर न निकली. उसने फिर से एक बार सूट उतार कर नाईट-ड्रेस पहन ली थी. एक दो बार ऐसा रिपीट करने के बाद भी उस से कोई फैसला न हो सका. अब वह नाईट-ड्रेस में थी. यंत्रवत सी मनिका ने बाल्टी में पानी चलाया और इस बार सूट को हुक पर टांगने की बजाय बाल्टी में डाल दिया. उसके हाथ कांप रहे थे.
अब वह बाथरूम में लगे शीशे के सामने जा खड़ी हुई और अपने साथ लाया छोटा सा किट खोला.
—
"कहाँ मर गई कुतिया?" जयसिंह ने झुंझलाते हुए सोचा.
मनिका को बहलाने के लिए जयसिंह कब से अपना फोन हाथ में लिए ऐसा जता रहे थे कि वे उसमें व्यस्त हैं. तभी,
‘खट'
बाथरूम के दरवाजे की कुण्डी खुलने की आवाज़ आई.
जयसिंह ने झट नज़रें मोबाइल में गड़ा लीं. कनखियों से उन्हें मनिका के सधे हुए क़दमों से कमरे में आने का आभास हुआ. आख़िर उन्होंने मनिका की तरफ देखा और वे आश्चर्य से भर उठे.
जब वे लोग दिल्ली आए थे एक वह दिन था और एक आज का दिन था.
मनिका ने वही शॉर्ट्स और गंजी पहन रखी थी जो वह उनकी साथ बिताई पहली रात को पहन कर आई थी. जयसिंह अवाक रह गए.
मनिका हौले से आकर बेड पर चढ़ी, कम्बल उसी की तरफ तह करके रखा था. मनिका ने धीरे से उसे खोला और ओढ़ कर लेट गई. उसने अपने पिता की तरफ एक नज़र देखा तो पाया के वे अपना फोन बेड-साइड टेबल पर रख रहे थे. उसकी नज़र उनके बदन पर फिसलती हुई उनके बरमूडे पे जा टिकी. पापा का लंड तन चुका था. मनिका ने आँखें मींच लीं.
"मनिका?" कुछ पल बाद जयसिंह की आवाज़ आई.
मनिका ने आँखें खोलीं तो पाया कि जयसिंह ने टी-शर्ट उतार दी थी. उसकी तो जैसे साँसे रुक गई थी.
जयसिंह अब खिसक कर उसके करीब आ गए. उनके अधनंगे बदन को इतना क़रीब पा कर मनिका ने एक पल के लिए अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से उनसे नज़र मिलाईं और फिर नज़र नीची कर ली. नीचे देखते ही उसने अपने-आप को अपने पिता के बरमूडे में फनफनाते लंड से मुखातिब पाया, उसकी कंपकंपी छूट गई.
जयसिंह ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर मनिका के कंधे पे रखा और सहलाने लगे.
"क्या हुआ मनिका? चुप-चुप कैसे हो?" उन्होंने बात बनाने के बहाने से पूछा.
उधर मनिका से कुछ बोलते नहीं बन रहा था. उसे अहसास हुआ के जयसिंह का हाथ धीरे-धीरे उसके कंधे से कम्बल को नीचे खिसका रहा था.
"हूँ?" जयसिंह ने अपने सवाल का जवाब चाहा.
"कुछ नहीं पा…?" मनिका ने हौले से मुँह नीचे किये हुए ही जवाब दिया.
"पैकिंग वगैरह कर ली तुमने?" जयसिंह ने पूछा.
कम्बल अब मनिका की बगल से थोड़ा नीचे तक उतर चुका था.
"जी पापा." मनिका ने बिलकुल मरी सी आवाज़ में कहा.
उसे अपने बदन से उतरते जा रहे कम्बल के आभास ने निश्चल कर दिया था. जयसिंह ने अब कम्बल उसकी कमर तक ला दिया था.
मनिका का दिल जैसे उसके मुँह में आने को हो रहा था. यकायक उसे अपने फैसले पर अफ़सोस होने लगा,
"हाय ये मैंने क्या कर लिया. क्यूँ पहन ली मैंने ये बेकार सी नाईट-ड्रेस…? पापा तो रुक ही नहीं रहे, कम्बल हटा कर ही छोड़ेंगे…”
मनिका ने अपने-आप को कोसा, फिर उसने धीरे से अपने हाथ से कम्बल पकड़ कर ऊपर करने की कोशिश की.
जयसिंह उसकी मंशा ताड़ गए थे. जैसे ही मनिका ने कम्बल को धीरे से पकड़ कर ऊपर खींचने की कोशिश की जयसिंह ने अपना हाथ ऊपर उठा लिया और साथ ही उसमें कम्बल का एक सिरा भी फँसा लिया था. अगले ही पल मनिका अपने पिता के सामने अर्धनग्न अवस्था में पड़ी थी.
"उन्ह…" मनिका के गले से घुटी सी आवाज़ निकली.
जयसिंह ने अब बिना लाग-लपेट के कम्बल एक तरफ़ कर दिया.
मनिका की नज़र उठने को नहीं हो पा रही थी. उसने अपनी टाँगे भींच कर अपनी मर्यादा बचाने की कोशिश की. पर जयसिंह का पलड़ा आज भारी था. उन्होंने अपना हाथ अपनी बेटी की कमर पर रखा और उसे ऊपर से नीचे तक देखने लगे. जब मनिका ने एक पल के लिए नज़र उठा उनकी तरफ़ देखा तो पाया के वे उसके वक्ष को ताड़ रहे थे.
मनिका की नज़र उठते ही जयसिंह ने भी उसके चेहरे की तरफ़ देखा और मुस्कुराते हुए अपना हाथ उसकी कमर से उठा कर उसके गले पर ले आए और सहलाते हुए कहा,
"क्या बात है मनिका…?" मनिका क्या कहती, जयसिंह ही आगे बोले, "आज ये वाली नाइट ड्रेस कैसे पहन ली?"
मनिका एक बार फिर नज़र झुकाए रही तो जयसिंह थोड़ा और क़रीब आ गए. मनिका ने देखा कि उसके पिता का लंड अब उसे छूने को हो रहा था.
"बोलो ना?" जयसिंह ने हमेशा की तरह उसपर दबाव बनाने के लिए पूछा.
"वो… वो… आपने कहा न पापा कल…" मनिका ने अटकते हुए कहा.
"काश पहले पता होता… कि मेरे कहने पर तुम इस तरह… तो पता नहीं कब का कह देता." जयसिंह की आवाज़ में भी एक थर्राहट थी.
"क्या… आह्ह… क्या बोल रहे हो आप पापा…?" मनिका ने भी उनकी उत्तेजना को भाँप लिया था और उनकी गंदी सोच ने एक बार फिर उसे तड़पा दिया था.
"यही कि काफ़ी जवान हो गई हो तुम…" जयसिंह ने एक बार फिर उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा.
मनिका की तो नज़र ही नहीं उठ रही थी.
जयसिंह ने अब अपना हाथ अपनी मनिका की नंगी जाँघ पर रखा और सहलाने लगे.
मनिका लाज से मरी जा रही थी,
"हाय…! पापा इस टचिंग मीं…! कितने गन्दे हैं पापा…"
मनिका ने हौले से अपने पिता के हाथ पर हाथ रख उसे रोकना चाहा.
"क्या हुआ?" जयसिंह ने अपना हाथ रोक लिया था पर अब मनिका की मांसल जाँघ को दबाते हुए पूछा.
मनिका फिर भी शर्म के मारे चुप ही रही.
"अच्छा नहीं लग रहा डार्लिंग?" जयसिंह अपना चेहरा मनिका के चेहरे के बिलकुल क़रीब लाते हुए बोले. "बोलो ना…?"
"ओह पापा… सोते हैं ना… प्लीज़…" मनिका ने तड़प कर कहा.
"सो ही तो रहे हैं स्वीट्हार्ट…" जयसिंह के सम्बोधन बदलते जा रहे थे. "कम गिव मीं माय गुड नाइट किस्स…"
जयसिंह ने मनिका का चेहरा पकड़ अपनी तरफ़ खींचा.
मनिका कांपती हुई थोड़ी सी उठी और उनके गाल पर किस्स किया.
’पुच्च'.
“म्म्म…" जयसिंह ने एक उन्माद भरी आह ली. "यू आर सो स्वीट माय डार्लिंग…" वे बोले.
"थैंक यू पापा… यू आर ऑल्सो वेरी स्वीट…" मनिका ने आख़िर हौले से जवाब दिया.
"ओह… तुम बोलती भी हो?" जयसिंह ने मज़ाक़ किया.
"हेहे… पापा! स्टॉप पुल्लिंग माय लेग ना…" मनिका ने हौले से उन्हें अपने हाथ से मारते हुए कहा.
जयसिंह ने उसका हाथ पकड़ लिया.
“मनिका… एक बात कहूँ?”
“क्या पापा?”
“मेरे पास तुम्हारे लिए एक ऑफ़र है.”
“ऑफ़र?” मनिका कुछ समझ नहीं पाई. “कैसा ऑफ़र, पापा?”
जयसिंह चुप रहे. पर उन्होंने मनिका के हाथ पर अपनी पकड़ ज़रा ढीली कर दी थी.
“बोलो ना पापा.” कौतुहलवश मनिका एक पल के लिए अपने नंगेपन को भूल चुकी थी.
जयसिंह ने एक नज़र उसकी आँखों में देखा, और बोले,
“मैं नहीं जानता कि तुम क्या फ़ील कर रही हो, पर जब तुमने कहा कि मेरे कहने पर आज तुमने ये ड्रेस पहनी है, तो मुझे लगा कि अपने मन की बात कह दूँ.”
“क्क… क्या मन की बात पापा?” मनिका अपने पिता के द्वारा उसके कपड़ों पर किए इशारे से सकपका गई थी.
“यही कि, तुम अब अडल्ट हो गई हो, और हमने दिल्ली आने के बाद काफ़ी कुछ एक्सपिरीयेंस किया है… यू नो?”
जयसिंह की इस बात पर मनिका से कुछ कहते न बना.
“पर इस से पहले कि मैं तुम्हें अपना ऑफ़र दूँ, मैं ये जानना चाहता हूँ कि जब मैं तुम्हें अपनी गर्ल्फ़्रेंड कहता हूँ तो तुम्हें कैसा लगता है? अच्छा या बुरा?”
“पापा, आई डोंट माइंड…” मनिका ने धीमे से कहा.
“हाँ, बट मनिका, आई एम योर फ़ादर. तो तुम्हें अजीब नहीं लगता?”
जयसिंह ने अचानक उन दोनों के बीच का रिश्ता मनिका के सामने रख दिया था. मनिका कुछ पल सोचती रही.
“आइ गेस पापा, पहले मुझे थोड़ा अजीब लगा था… बट मैंने ही तो आपको बताया था कि मेरी बेवक़ूफ़ फ़्रेंड्ज़ ऐसा बोलतीं है… सो नाउ आई डोंट माइंड…” मनिका हौले से बोली.
“सिर्फ़ इतना सा रीज़न है? या कुछ और वजह भी है कि तुम्हें मेरा ऐसा कहना अजीब नहीं लगता?” जयसिंह ने सवालिया नज़र से उसे देखते हुए पूछा.
“वट डू यू मीन पापा?” मनिका ने पूछा. पर उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था.
“आई मीन लुक एट यॉर्सेल्फ़ डार्लिंग…” जयसिंह ने मंद सी आवाज़ में कहा, “क्या ये भी तुम माइंड नहीं कर रही?”
मनिका चुप रही.
“अगर तुम्हारी मम्मी या कोई भी इस रूम में अभी आ जाए, तो वट विल दे थिंक? कैन यू टेल मीं? ” जयसिंह ने आगे कहा.
मनिका को जैसे साँप सूंघ गया था. पापा, जो इतने दिनों से उसे उकसा रहे थे, आज ख़ुद ही वो सवाल पूछ रहे थे जो उसके मन में पहले उठ चुके थे. क्या ये उनकी कोई चाल थी? मनिका का सारा नशा उतर चुका था.
“पापा… ?” उसने हौले से अपने कम्बल को फिर से ऊपर खींचना चाहा.
लेकिन जयसिंह ने उसे काफ़ी नीचे खिसका दिया था.
“सो मनिका, तुम्हें भी पता है मैं क्या कह रहा हूँ, है ना?.” जयसिंह बोले, और साथ ही मनिका का हाथ थोड़ा सहलाया.
“प… पापा…” मनिका ने कंपकंपा कर कुछ कहना चाहा लेकिन फिर भी बोल ना सकी.
“घबराओ नहीं मनिका, मैं नाराज़ नहीं हो रहा हूँ. पर अब जो मैं कहने जा रहा हूँ, वो शायद थोड़ा डाइरेक्ट हो.”
“क्क… क्या पापा?” मनिका ने एक बार फिर अचकचाते हुए पूछा.
कुछ पल शांत रह जयसिंह ने फिर थोड़ी भूमिका बनाई, और बोले,
“मैं चाहता हूँ कि तुम इसी तरह मेरी बातों को मानती रहो.”
“म्म… मतलब?” मनिका का दिल धड़धड़ा रहा था.
“मतलब, जैसे मेरे कहने पर तुमने ये नाइट ड्रेस पहनी है, जैसे मेरे कहने पर तुम मेरी बाँहों में आ जाती हो… वैसे ही, मेरी और बातें भी माना करो.”
“और… और बातें पापा?” मनिका की बड़ी-बड़ी आँखों में जयसिंह के इस खुले न्योते ने असमंजस और ख़ौफ़ भर दिया था.
“हाँ… कुछ बातें बिना कहे ही समझने की होतीं है… उनको कह देने पर उनका मज़ा बिगड़ जाता है, है ना?”
“पापा…” उस एक शब्द के सिवा मनिका और कुछ न बोल सकी.
जयसिंह ने अब मनिका के गाल पर हाथ रखा और हौले से सहलाते हुए बोले,
“देखो मनिका, आई प्रॉमिस कि तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं होगी. जितना चाहोगी उतना पैसा मिलेगा, जैसे चाहोगी वैसे रहने को मिलेगा, मधु… या और कोई तुम्हें कुछ नहीं कहेगा… समझ रही हो ना?”
मनिका ने शर्म से भरी एक नज़र अपने पिता की तरफ़ देखा. वे उसे किसी कॉल-गर्ल की तरह पैसा ऑफ़र कर रहे थे.
“जितनी चाहे शॉपिंग करना, जैसे मर्ज़ी कपड़े पहनना, आई मीन उनमें से कुछ मेरी मर्ज़ी के भी होंगे, यू नो?” जयसिंह ने एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा.
मनिका चुपचाप उनकी बात सुन रही थी, लेकिन उसके मन में अभी अंतर्द्वन्द चल रहा था.
“बट पापा, आई एम योर डॉटर…” उसने हौले से कहा.
“येस मनिका… आई नो दैट.” जयसिंह बोले, “लेकिन हमने बात की थी ना… एंड इफ़ यू आर माय डॉटर देन वाई आर यू वीयरिंग दिस ड्रेस?”
“ब्ब… बट पापा… “ मनिका फुसफुसाई.
“मनिका, मुझे नहीं पता कि तुमने नोटिस किया या नहीं… बट मैं काफ़ी दिनों से तुम्हें मनि कह कर नहीं बुलाता हूँ…” जयसिंह ने कहा.
“येस पापा, मैंने… मैंने नोटिस किया…” मनिका बोली.
“यू नो वाई?” जयसिंह ने पूछा.
“न… नो…” मनिका बोली.
“क्योंकि मुझे लगता है कि हमारा ये स्पेशल रिलेशन हमारे पुराने रिलेशन से अलग होना चाहिए… मनि मेरी बेटी का नाम है, और मनिका मेरी स्पेशल डार्लिंग का… हम्म?”
मनिका चुप रही.
“और बेस्ट पार्ट ये है कि इस बात का पता सिर्फ़ हमको रहेगा… यू नो… इस तरह सब के सामने हम फादर-डॉटर की तरह बिहेव कर सकते हैं… और अपना स्पेशल रिलेशन भी कंटिन्यू कर सकते हैं.”
“बट मैं तो… मैं तो आपको पापा ही… कहती हूँ… पापा.” मनिका ने सकुचा कर कहा.
“येस डार्लिंग… बट आई थिंक उसमें भी एक अलग मज़ा है…” जयसिंह ने उसका होंठ फिर मसला.
िका आँखें खोलती और जयसिंह की हवस को देख फिर मींच लेती.
“कैसा लग रहा है?” जयसिंह ने अपने आलिंगन में बंधी मनिका के कान में फुसफुसाया.
“उम्म!”
“ये जवानी की आग है… ऐसा ही लगता है जब ये आग लग जाती है… यू नो…”
“ईश! क्या कह रहे हो पापा ये सब.”खती गुलाबी पैंटी…”
“ह्ह… हाय!”
“और कभी छोटी-छोटी नाइट ड्रेस में अधनंगी होकर पापा के साथ सोना…”
“म्म… मैंने वो ग़लती स… से पहनी… आपको बताया तो था.”
“और कभी बाथरूम में तुम्हारे थोंग और ब्रा…”
“हाय पापा! आप तो सब नोटिस कर रहे थे.”
“तुम भी तो कर रही थी डार्लिंग… हम्म? कर रही थी कि नहीं?”
“हाय… पापा. आप तो शुरू से ही…”
“शुरू से क्या… जो तुम्हें अच्छा लगता है वही तो किया मैंने…”
“म्म्म…! वी आर सो बैड पापा… इह.”
जयसिंह अपना हाथ मनिका की अधनंगी गांड पर ले गए और हौले-हौले चपत लगाने लगे.
“हाय! पापा…”
मनिका कसमसाई, और अपनी योनि अपने पिता के लंड पर रगड़ने लगी.
“अब पनिश तो करना पड़ेगा ना… यू आर सच ए बैड गर्ल…” जयसिंह बोले.
“आह! आह! ऊँह!” मनिका तड़पी.
“मैंने तो पहले ही दिन सोच लिया था कि तुम्हें किसी और की नहीं होने दूँगा… यू नो?”
“हाय, पापा… कितने शातिर हो आप!”
“म्म… पर तुमने भी तो साथ दिया मेरा…”
“इहह!”
“तुम्हारी पैंटी देख कर ही मैं समझ गया था कि तुम पापा को ख़ुश करोगी… कब से पहन रही हो ये थोंग्स तुम, हम्म?”
“हाय!”
“बोलो ना?”
उनके इस गंदे सवाल पर मनिका ने अपना अधोभाग उठा कर जयसिंह के लंड पर पटकते हुए कहा.
“ईश पापा… टेंथ क्लास से… आऽऽऽह!”
“आऽऽह! हाय पापा… उम्म… क्या ह… हुआ?”
“टेंथ क्लास से तुम ये छोटी कच्छीयाँ पहन कर घूम रही हो? पहले पता होता कि मुझसे पैसे लेजा-लेजा कर ये सब लेती हो तो… उम्म… इतने दिन इंतज़ार न करता!”
“हाय पापा! बड़े गंदे हो आप… कैसा सोचते हो!”
“उम्म… क्या सच में? टेंथ से थोंग पहन रही हो तुम?”
“हाय पापा…. हाँ!”
“ओह मनिका!”
“इहह… क… क्या हुआ पापा?”
“कहाँ से सीखी ये सब तुम…हम्म?”
“वो… वो केबल-टीवी ल… लिया था ना हमने… उसमें… उसमें फ़ैशन वाला चैनल आ… आता था… एफ टीवी, उसमें… द… देखा था पापा!”
“हम्फ! नीचे के बाल भी तभी से काट रही हो?”
“आऽऽह… हाय! पापा… क… क्या… हाँ पापा… ह… हाँ! आपको कैसे प… पता?”
“जब थोंग देखा होगा तो ये भी तो देखा होगा ना डार्लिंग?”
“म्म्म… जी!”
“तुम भी तो कुछ बोलो, मैं ही कब से बोले जा रहा हूँ?”
“क… क्या बोलूँ पापा…?”
“कुछ भी… अच्छा सा.”
“हाय… पापा… आई लव यू… उम्म.”
“हाँ डार्लिंग… आई लव यू टू… पर और कुछ अच्छा सा कहो ना.”
“आऽऽऽह…. पापा. नॉट लाइक दैट… नॉट लाइक यॉर डॉटर… मम्म… आई लव यू लाइक यॉर गर्लफ़्रेंड…”
“उम्म… हम्प! ओह मनिका… किसी मर्द को बहलाना तो कोई तुमसे सीखे.”
मनिका ने अपनी बात से जयसिंह को दीवाना बना दिया था.
उन्होंने मनिका की नंगी गांड पर दो-तीन ज़ोरदार थपकियाँ दे मारीं थी. मनिका का पूरा जिस्म जैसे एक नई आग में जल उठा. वो जयसिंह की छाती पर दाँत गड़ाने लगी और उनके बाज़ुओं को अपने हाथों से नोचने लगी.
“डू यू लाइक दैट?”
जयसिंह मनिका के पागलपन को देख और उत्तेजित हो उसकी गांड पर मारने लगे. मनिका गांड उछाल-उछाल कर उनकी मार का स्वागत कर रही थी.
“उम्म… ओह पापा! ऊहह!”
“पापा को तड़पाने की सजा है ये… अब से रोज़ मिलेगी…” जयसिंह ने अपने थप्पड़ तेज करते हुए कहा.
‘पट्ट-पट्ट’ की आवाज़ें कमरे में गूंज रहीं थी.
जयसिंह समझ गए थे कि मनिका की उत्तेजना चरम पर है. वासना के इस खुले खेल में वे ख़ुद भी पता नहीं अभी तक कैसे नहीं झड़े थे.
इस बार जैसे ही मनिका ने अपना अधनंगा अधोभाग उठा कर जयसिंह के हवाले किया, उन्होंने उसे चपत लगाने के बजाए उसकी योनि को मुट्ठी में भर लिया. एक पल के लिए जैसे मनिका की दुनिया थम सी गई. उसके पापा का हाथ उसकी पुसी पे था.
ये आभास होते ही मनिका का सारा उन्माद बह निकला.
“आऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽह! आऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽह! पाऽऽऽऽऽऽपाऽऽऽ! उम्म्म्म्म्म!” मनिका चीख़ी.
उसकी रिसती हुई योनि जैसे फट पड़ी थी. उसे ज़िंदगी में कभी ऐसा एहसास नहीं हुआ था. ऐसा लग रहा था जैसे उसके बदन का हर एक पोर उबल रहा था और वो सारा उन्माद उसकी टांगों के बीच जा कर झर रहा था.
उधर उसके पापा भी जैसे उसके यौवन को निचोड़ लेना चाहते थे, उनका हाथ उसको कच्ची, जवान चूत को मसल और कचोट रहा था. बाप और बेटी के बीच की मर्यादा तार-तार हो चुकी थी. मनिका उन हसीन लम्हों में हिचकोले खा ही रही थी कि जयसिंह ने उसकी शॉर्ट्स और पैंटी के कपड़े को टांगों के बीच से हटा उसकी चूत में दो अंगुलियाँ ठूँस दी. मनिका जैसे आसमान से ज़मीन पर आ गिरी.
“आऽऽऽह! पापाऽऽऽ… क्या… ये क्या… कर… हाए दर्द हो रहा है!” मनिका की आँखों में आँसू आ गए.
उसकी कसी हुई चूत में जयसिंह की एक नहीं दो मोटी-मोटी अंगुलियाँ थीं. दर्द से बिलबिलाते हुए वो उनका हाथ पकड़ने को हुई. जयसिंह ने भी उसके बिलखते ही अपनी अंगुलियाँ मनिका की चूत से निकाल लीं थी. पर मनिका का नशा उड़ चुका था.
अचानक मनिका को अपने नंगेपन और अभी-अभी हुए वाक़ये के मायने समझ आने लगे. वो अभी भी जयसिंह के ऊपर पड़ी थी लेकिन उसके जिस्म की जगह अब उसका दिमाग़ चल रहा था. पहली बार झड़ी मनिका को ये भी लग रहा था कि उसने पेशाब कर दिया है. उसका हाथ यकायक ही उसकी योनि पर गया. लेकिन उसे ये आभास नहीं रहा था की वहाँ नीचे ही उसके पिता का लंड भी है. उसका हाथ सीधा जयसिंह के लंड से जा लगा. मनिका उचक कर उठने को हुई. जयसिंह ने उसे पकड़ लिया.
“आराम से… डोंट वरी…” जयसिंह मनिका की मन:स्थिति ताड़ चुके थे.
उन्होंने उसकी पीठ सहलाते हुए उसे रिलैक्स कराना चाहा. उनका लंड अभी भी मरोड़े खा रहा था.
“उह…” मनिका की रूलाई फूटने वाली थी.
“अरे, क्या हुआ…?” जयसिंह जानते थे कि पहली मस्ती के बाद लड़की का भावुक होना स्वभाविक होता है.
उन्होंने भी तो मनिका की चूत में अंगुलियाँ डाल कर उसे थोड़ा डरा दिया था. उन्होंने मनिका को अपने आलिंगन में खींच कर थोड़ा प्यार से कहा,
“रिलैक्स डार्लिंग… पहली-पहली बार ऐसा ही होता है.
वो गीला सा एहसास उसे पागल किए दे रहा था.
“क्या हुआ मनिका… हूँ?” जयसिंह ने
उसकी चूत सहलाते उसके पिता की इस प्रतिक्रिया का जवाब मनिका चाह कर भी आक्रामकता से न दे सकी.
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