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Incest बेटी की जवानी - बाप ने अपनी ही बेटी को पटाया - 🔥 Super Hot 🔥

Daddy's Whore

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कहानी में अंग्रेज़ी संवाद अब देवनागरी की जगह लैटिन में अप्डेट किया गया है. साथ ही, कहानी के कुछ अध्याय डिलीट कर दिए गए हैं, उनकी जगह नए पोस्ट कर रही हूँ. पुराने पाठक शुरू से या फिर 'बुरा सपना' से आगे पढ़ें.

INDEX:

 

Pardhan

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08 - शॉपिंग

आधा घंटा बीतते-बीतते मनिका ने तीन जीन्स और चार-पाँच टॉप्स पसंद कर लिए थे.

जयसिंह एक तरफ़ खड़े शॉपिंग करती हुई मनिका को देख रहे थे. मनिका अब वहाँ रखी शॉर्ट्स और स्कर्टें उठा कर देख रही थी. फिर वह धीरे-धीरे आगे बढ़ती हुई पार्टी-वियर ड्रेसेज़ के पास पहुँची. फिर आगे बढ़ते हुए उसने कुछ और टॉप्स उठा कर देखे. इस तरह घूमते हुए वह बैगों, बेल्टों और परफ़्यूम वाले सेक्शन में हो कर वापस उनकी तरफ आ गई.

"क्या हुआ? देख लिया सब कुछ?" जयसिंह ने पूछा.
"कहाँ पापा. इतना कुछ है यहाँ कि पूरा दिन लग जाए मेरा तो." मनिका ने मुस्का कर कहा.
"और कुछ पसंद आया तुम्हें?"
"पसंद तो पूरा स्टोर ही आ गया है पापा… पर क्या करूँ… आज के बाद कहीं आप फिर कभी मुझसे पैसों की चिंता ना करने को नहीं बोले तो…" मनिका ने शरारत भरी नज़र से उन्हें देखते हुए कहा.
"हाहाहा… अच्छा तो ये बात है. बड़ी सयानी हो तुम भी." जयसिंह ने हँस कर कहा.
"वो तो मैं हूँ…" मनिका इठलाई.
"लेकिन अभी तो और चीज़ें ले सकती हो अगर तुम्हारा मन है तो. उधर क्या है, कुछ पसंद नहीं आया तुम्हें?"

जयसिंह ने जिस तरफ से वो घूम कर आई थी उधर हाथ से इशारा करते हुए पूछा.

"ओह उधर?" मनिका ने एक रहस्यमय मुस्कान बिखेरते हुए कहा, "वो आप देखोगे तो लेने से मना कर दोगे."
"क्यूँ? ऐसा क्या है." जयसिंह अनजान बनते हुए बोले.
"है तो कपड़े ही पापा… कपड़ों के स्टोर में टमाटर थोड़े ही होंगे…" मनिका ने होशियारी दिखाते हुए कहा, "लेकिन आप को पसंद नहीं आएँगे. वो थोड़े छोटे-टाइप्स हैं…"

उसने दोनों हाथों से हवा में छोटा होने का हाव बनाकर कहा.

"अरे तो मैं तुम्हारी मम्मी थोड़े ही हूँ, buy whatever you like sweetheart?” जयसिंह ने भी चतुराई से कहा.
“Oh papa, you are so great.” मनिका खिलखिला दी.
"हाँ तो फिर जाओ ले आओ. ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलेगा." जयसिंह ने उसकी पीठ पर थपकी देकर कहा.
"हाहाहा… पापा अब आप इतना कह रहे हो तो ले ही लेती हूँ." मनिका ने फिर से शरारत भरी स्माइल देकर कहा.

मनिका के मन में लड्डू फूट रहे थे. वो दोबारा शॉर्ट्स और स्कर्ट वाले सेक्शन में जा पहुँची और कपड़े देखने लगी.

इधर जयसिंह वहीं लगे एक सोफे पर बैठ कर उसका इंतज़ार करने लगे. इस बार मनिका काफी देर लगा कर वापस आई. जयसिंह ने उसे फिर से हर एक सेक्शन में जाते हुए देखा था.

"आज पहली बार क्रेडिट-कार्ड का पूरा सही इस्तेमाल होगा." जयसिंह ने बैठे हुए सोचा था और मुस्कुरा उठे.

"हेय पापा." मनिका ने उनके पास आते हुए कहा.
"हाँ भई? हो गई शॉपिंग पूरी?" उन्होंने पूछा.
“Yes papa, done.” मनिका ख़ुशी-ख़ुशी बोली.
"ले लिया सब कुछ या अभी और कुछ बाकी है?" जयसिंह ने उठते हुए पूछा.
"हेहेहे! पापा वो तो आपको बिल देख कर पता चल जाएगा." मनिका ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा.

वो आगे बोली,

"वैसे आपको मम्मी के लिए कुछ लेना हो तो ले सकते हो. वहाँ आगे की तरफ साड़ी-सूट भी हैं."
"उसे तो मैं लक्ष्मी क्लॉथ स्टोर से दिला दूंगा." जयसिंह ने अपने शहर की एक दुकान का नाम लेकर कहा.
"ईहहाहाऽऽ पापाऽऽ!" उनकी बात सुन कर मनिका की जोर की हँसी छूट गई.

उसके ज़ोर से हँसने से आस-पास खड़े लोगों का ध्यान भी उन दोनों की तरफ आकर्षित हो गया था. कुछ लोग उन्हें देख कर मुस्कुरा भी रहे थे.

"अरे अब बस करो मनिका… लोग देख रहें हैं कि कहीं पागल तो नहीं है ये लड़की." मनिका की रह-रह छूटती हँसी को देख कर जयसिंह ने कहा.
“Papa! You are so funny… really… लक्ष्मी क्लॉथ स्टोर… हाहाहा" मनिका ने आखिर अपनी हँसी पर काबू पाते हुए कहा.
"अरे भई, अगर मधु को कपड़े दिलाने होते तो उसे न लेकर आता यहाँ?” जयसिंह ने भी शरारती लहजे में कहा, “वैसे भी ज़िन्दगी भर दिलाता आया हूँ उसे तो… आज तुम्हारी बारी है."
"Oooh! Really papa…" मनिका ने अपनी हसीन अदा से पूछा.
"और नहीं तो क्या…?" जयसिंह उसे निहारते हुए बोले.
"पर पापा आपने तो मुझे कुछ दिलाया ही नहीं…" मनिका ने भोला सा चेहरा बना कर कहा.
"हैं? तो फिर ये सब शॉपिंग जो तुमने की है, इसका बिल क्या…" जयसिंह बोलते हुए रुक गए.

वे कहने वाले थे कि 'बिल क्या तुम्हारा बाप भरेगा'. लेकिन मनिका समझ गई थी.

"हिहाहा हाँ पापा… वही भरेगा." उसने उन्हें छेड़ा.
"अब मुझे लग रहा है कि गलत ले आया मैं तुम्हें शॉपिंग कराने." जयसिंह भी कहाँ पीछे रहने वाले थे.
"हेहे पापा. पर मेरा वो नहीं था मतलब. I mean… आप तो सिर्फ पैसे दे रहे हो… इस सब के लिए." मनिका ने उन्हें समझाते हुए कहा, "आपने अपनी पसंद से तो मुझे कुछ दिलाया ही नहीं…"
"ओह, तो ऐसा क्या?" जयसिंह के मन में लड्डू फूटा.
"हाँ ऐसा." मनिका ने उनकी नक़ल करते हुए कहा.

जयसिंह ने कुछ पल सोच कर कहा,

"तो क्या दिलाऊं फिर मैं तुम्हें?"
"अगर मैं ही बताऊँगी तो फिर वही बात रहेगी ना पापा." मनिका ने मजे लेते हुए कहा.
"हम्म…"
"सोचो-सोचो कुछ अच्छा सा." मनिका उन्हें उकसा कर खुश हो रही थी.
"चीज़ तो मैंने सोच ली है बट उसे कहते क्या हैं ये मुझे नहीं पता… और हो सकता है तुम वो पहले ही खरीद चुकी हो."
“क्या-क्या? मुझे बताओ… you can describe, I will help you out.” मनिका ने उत्सुकता से कहा.
"अरे वही पैंट जो तुम घर से पहन कर निकली थी…" जयसिंह बोल ही रहे थे कि मनिका ने ठहाका लगा कर उनकी बात काट दी.
“हाहाहा… not pant papa! आपको तो सच में कुछ नहीं पता." मनिका बोली, “leggings… they are called leggings… और मैंने वो नहीं ली है सो आप मुझे दिला सकते हो." वो फिर से खिलखिलाने लगी.

जब मनिका ने कहा कि उन्हें तो कुछ भी नहीं पता तो जयसिंह के मन में विचार आया था,

"पता तो मुझे तेरी कच्छी के रंग का भी है जानेमन."

पर वे मुस्का के बोले,

"तो आओ, चलो मेरी पसंद की लेग्गिंग्स लेते हैं तुम्हारे लिए…"

जयसिंह मनिका को लेकर फिर से सेल्स-गर्ल के पास पहुँचे और उसे लेग्गिंग्स दिखाने को कहा. सेल्स गर्ल ने मनिका की तरफ देख कर पूछा.

“For you ma’am?"
"Yes." मनिका ने हाँ भरी.
“Same size as before ma’am? I am sorry, what was it again?” सेल्स-गर्ल ने पूछा.

मनिका ने पहले कपड़े लेते वक्त उसे साइज़ बताया था पर इस बार वह उसका सवाल सुन सकपका गई. पापा के सामने कैसे बताए?
पर जब सेल्स-गर्ल उसे सवालिया नज़रों से देखती रही तो मनिका ने धीमे से सकुचा कर कहा,

“Thirty four…" मनिका ने यह बिलकुल नहीं सोचा था कि उसे अपने फिगर का माप बताना पड़ेगा, उसका उत्साह थोड़ा ठंडा पड़ गया.

उधर जयसिंह के मन हिलोरे उठने लगे.

"आह चौंतीस… मुझे लग ही रहा था कुतिया की गांड है तो भरी-भरी…"

ऊपर से सेल्स-गर्ल बोली.

“But ma’am, I recommend that you take a smaller size for leggings.”
"क्यूँ? वो छोटी नहीं रहेंगी?" मनिका की जगह जयसिंह ने सवाल किया.

फिर उन्होंने मनिका की तरफ देखा था, उसकी नज़रें काउंटर पर गड़ी थी.

“Actually sir, leggings are made from very stretchable material… सो छोटे साइज़ वाली मैम के बिलकुल फिट आएँगी." सेल्स-गर्ल ने उन्हें समझाया.
“Hmm okay. आप 30 साइज़ में दिखा दीजिए फिर तो…" जयसिंह पूरे चार साइज़ कम करके बोले. “वैसे भी, she keeps talking about losing weight… you know.”

थोड़ा शर्मिंदा होने के बावजूद मनिका जयसिंह की बात पर मुसकाए बिना न रह सकी. उसने बातों-बातों में पापा से कहा था कि उसे वजन कम करना है, और यह बात पापा भूले नहीं थे. पर जयसिंह और सेल्स-गर्ल की बातों ने उसे थोड़ा असहज कर दिया था. वह अब सोच रही थी कि काश उसने अपना मुँह बंद रखा होता.

"वैसे भी मैंने इतनी शॉपिंग तो कर ही ली है…" उसने अफ़सोस करते हुए सोचा.

सेल्स-गर्ल लेग्गिंग्स दिखाने लगी.

जयसिंह ने उनमें से सबसे झीने कपड़े वाली दो-तीन लेग्गिंग मनिका को दिखा कर पूछा कि उसे वे कैसी लगी.

वहाँ से जल्दी हटने के मारे मनिका ने बिना देखे ही कहा कि, आप दिला दो जो भी आपको पसंद है. जयसिंह ने मंद-मंद मुसकाते हुए वो लेग्गिंग्स सेलेक्ट कर ली.
मनिका ने आखिर चैन की साँस ली और जयसिंह के साथ बिलिंग डेस्क पर जाने के लिए मुड़ी.

“Ma'am?" पीछे से सेल्स-गर्ल की आवाज आई.
“Yes?" मनिका ने पूछा.

जयसिंह भी रुक गए थे.

“We have a new lingerie collection, that just came in, if you would like to have a look?” सेल्स-गर्ल ने पूछा.

सेल्स वालों को यही सिखाया जाता है कि जब कोई जोड़ा आए तो उन्हें ज्यादा से ज्यादा लुभा कर रोके रखें. ऊपर से दिल्ली में अमीर, ठरकी बुड्ढों की भी कमी नहीं है. जयसिंह को उसे लेग्गिंग्स दिलाते देख उस बेचारी सेल्स-गर्ल को कैसे पता चलता की वे मनिका के पिता हैं.

इधर मनिका को जैसे काटो तो खून नहीं.

"WHAT…?" उसके मुँह से निकला.
“Yes ma’am… nighties, bras and panties in lace and silk…" सेल्स-गर्ल को लगा था कि मनिका पूछ रही है कि कलेक्शन में क्या-क्या है?

यह सुनते ही मनिका का मुँह जयसिंह की तरफ घूमा. ज़ाहिर था उन्होंने सब सुन लिया था, वे उसकी बगल में ही तो खड़े थे. मनिका का चेहरा शर्म से लाल हो गया.

“N… No!” उसने सेल्स-गर्ल को जरा तल्खी से कहा.
"ले लो मनिका अगर चाहिए तो…" इस बार जयसिंह थे.

मनिका को जैसे चार सौ वॉल्ट का झटका लगा, उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था की जयसिंह ने ऐसा कह दिया था.

उसके पिता उसे ब्रा-पैंटी लेने को कह रहे थे.

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25 - गुड नाइट

जब मनिका की आँख खुली तो ग़ज़ब हो चुका था. उसके पापा उसके ऊपर थे और अपनी टांगे खोल कर उसे बीच में ले रखा था. उनके लिंग वाला हिस्सा ठीक उसकी योनि पर टिका था. जयसिंह का चेहरा उसकी चेहरे के बग़ल में उसके बालों में था. उनकी गरम साँसें उसे अपने गालों और गले पर महसूस हो रही थी. और उसके स्तन, उसके पिता की चौड़ी छाती के नीचे दबे थे.

“हम्प!” मनिका कसमसाई.
“उम्म…” जयसिंह भी थोड़ा हिले-डुले.
“पापा?” मनिका ने हौले से उन्हें दूर हटाना चाहा.
“हम्म?” वो ऊँघे.
“उठो ना…” मनिका ने मंद आवाज़ में कहा.
“हम्म…” कहते हुए जयसिंह थोड़ा सीधा हुए, “क्या टाइम हो गया?”

मनिका की जान में जान आई.

“पता नहीं…” वो उनकी गिरफ़्त से आज़ाद होते ही उठ बैठी और अपने अस्त-व्यस्त कपड़े ठीक करने लगी. “शाम हो गई है.”
“हैं..? सच में?” जयसिंह ने भी थोड़ा उठ कर बैठते हुए कहा, “आज तो हमने लंच भी मिस कर दिया लगता है.”
“ज… जी पापा.” मनिका की नज़र उनकी टांगों के बीच गई.

क्या उनकी पैंट में एक उठाव सा नज़र आ रहा था?

“हाय… हम कैसे सो रहे थे?”

कुछ बात चालू हो, इसके लिए मनिका ने दीवार घड़ी की ओर देखा. 5 बजने को आए थे.

“Papa… it’s 5 O’clock…”
“सच में? समय का पता ही नहीं चला आज तो… चलो कुछ खाने-पीने को मँगवा लो…”
“हाँ पापा… अभी तो हमारी पैकिंग भी बाक़ी पड़ी है.”

जयसिंह भी काउच से उठ चुके थे. उन्होंने एक नज़र मनिका से मिलाई और हँस कर बोले.

“नई गर्लफ़्रेंड के साथ ऐसी नींद आई कि पता ही नहीं चला.”
“हेहे पापा… आप तो ना… जाओ जाके मुँह हाथ धो लो, मैं कुछ ऑर्डर करती हूँ…”
“जो हुकुम मेरे आका…” जयसिंह बोले और उसे एक हवाई किस्स दिया.
“पागल..!” मनिका ने हौले से कहा.

फिर चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कान लिए मनिका फ़ोन के पास पहुँची. लंच न करने और डिनर का वक्त क़रीब होने की वजह से उसने सोचा कि दोनों टाइम का खान-पान साथ ही कर लिया जाए. यही सोच कर उसने काठी-रोल, पाव-भाजी और चाऊमिन का ऑर्डर कर दिया.
जयसिंह बाहर आ गए थे और धीरे-धीरे अपना कुछ सामान अटैची में जचाने लगे.

इस दौरान मनिका भी जा कर टॉयलेट कर आई. कमोड की सीट पर बैठते वक्त उसे एक पल ख़याल आया कि पापा कैसे वहीं सामने खड़े हो कर पेशाब करते होंगे. हालाँकि उसने अपने-आप को धिक्कारा था लेकिन इस तरह के ख़यालों को अब मन से निकालना उसके बस से बाहर हो चुका था.

खाना-पीना करने के बाद जयसिंह ने सुझाया कि कुछ देर घूम आया जाए. आख़िर सुबह तो उन्हें जाना ही था. मनिका भी राज़ी हो गई.
सो वे गुड़गाँव की MG Road घूमने चल दिए. वहाँ काफ़ी सारे मॉल और रेस्तराँ इत्यादि हैं.

घूमते-घूमते जयसिंह ने मनिका से पूछा अगर वह कुछ लेना चाहती हो. पर मनिका ने शरारत भरी मुस्कान से कहा कि बाक़ी शॉपिंग वह दिल्ली वापस आ कर कर लेगी. कुछ देर window shopping करते रहने के बाद, जयसिंह और मनिका एक आलीशान शोरूम के आगे से गुजरे, ‘Victoria’s Secret’. बाहर डिस्प्ले में जो चीज़ें लगी थी, उन्हें देख अनायास ही बाप-बेटी की नज़रें मिल गई.

जयसिंह की आँखों में चमक थी और मनिका के चेहरे पर हया. जयसिंह ने कुछ ना कहा लेकिन उसका हाथ पकड़ लिया और आगे बढ़ चले.
मनिका को जयसिंह का वो स्पर्श मानो लालायित कर रहा था.

कुछ आगे चलने पर एक बहुत बड़ा ज़ेवेलरी स्टोर आया. जयसिंह ने देखा कि मनिका ने बड़े गौर से बाहर डिस्प्ले में लगे आभूषण देखे थे. हालाँकि उसके बाद वे कुछ कदम आगे बढ़ चुके थे, पर फिर जयसिंह रुके और मनिका को साथ ले वापस मुड़ आए.

“Papa… where are you going?”
“अरे आओ ना…” जयसिंह बोले.

जयसिंह उसे आभूषणों के उस आलीशान शोरूम में ले गए. मनिका मंत्रमुग्ध सी उनके साथ चल रही थी.

“पापा? क्या ले रहे हो यहाँ से..?” आख़िर उसने पूछा.
“अपनी गर्लफ़्रेंड के लिए गिफ़्ट…” जयसिंह ने रहस्यमई अन्दाज़ में कहा.

जयसिंह ने मनिका को एक अंगूठी को बहुत कौतुहल से देखते हुए देखा था. सो जब शोरूम के सेल्स-बॉय ने उनसे पूछा कि वे क्या लेना पसंद करेंगे तो वे बोले,

“वो बाहर… नीले डिस्प्ले में जो अंगूठी लगी है… वो दिखा सकते हैं.”

सेल्स-बॉय की बाँछे खिल उठी. आख़िर बाहर के डिस्प्ले में शोरूम वाले सबसे महंगी और लुभावनी चीज़ें ही लगा कर रखते हैं. उसने फट से हामी भरी और अदब से झुक अपने मैनेजर की तरफ़ दौड़ा.

जयसिंह ने मनिका की तरफ़ देखा. उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं.

“Papa… what..?”
“Shh… you are my girlfriend, remember?” जयसिंह उसके होंठों पर अंगुली रख बोले.
“But…”

उतने में वो लड़का मैनेजर को ले आया था,

“Hello sir… welcome to Sarathi Jewellers sir… बैठिए ना…” मोटी आसामी देख, मैनेजर की आँखे चमक रहीं थी.
“वो बताया ना आपके लड़के को रिंग का…” जयसिंह थोड़ी तल्ख़ी और रौब से बोले.
“हाँ जी… हाँ जी… विपिन! जाओ वो मुग़ल कलेक्शन वाला रिंग सेट लेकर आओ सर के लिए… कब से वेट कर रहे हैं सर…” मैनेजर ने लड़के को हड़काया.

फिर उनसे मुख़ातिब हो बोला,

“आप बैठिए ना सर… क्या लेंगे? चाय-कॉफ़ी, कोई शेक वग़ैरह?”
“नहीं-नहीं… बस ठीक है.” कहते हुए जयसिंह बैठ गए.

मनिका क्या करती, वह भी उनके बग़ल में बैठ गई. उसकी आँखों के आगे तो तारे नाच रहे थे.

“Papa noticed me looking at the ring… is he going to buy it? It was looking so expensive..!”

सेल्स वाला लड़का लौट आया था. उसने पाँच-सात नीली डिब्बियाँ खोल कर उनके सामने जँचा दी. इतने असमंजस के बावजूद उन खूबसूरत अंगुठियों को देख मनिका के मन ने आह भरी.

“हे भगवान! क्या कमाल की रिंग्स हैं…”

मैनेजर अब एक-एक कर उन्हें अंगुठियाँ दिखाने लगा,

“Pure gold sir… worked by special artists… with diamond face… you can also pick a stone of your choice sir…”

जयसिंह ने उसकी दिखाई अंगूठी हाथ में ली. फिर मनिका को दिखाई.

“Buying for ma’am sir?” मैनेजर ने पूछा, “your..?”
“Girlfriend…” जयसिंह ने एकदम सामान्य आवाज़ में मनिका का परिचय करवाया.
“Of course sir…” मैनेजर ने मुस्तैदी से कहा, “ये वाली देखिए मैम…”

–​

वे लोग होटल लौट आए थे.

सारथी ज़ेवेलर्स का बैग कॉफ़ी टेबल पर रखा था और मनिका स्तब्ध सी सोफ़े पर बैठी थी.

“हाहा… क्या हुआ भई? इतनी चुप्पी?” जयसिंह हंसते हुए उसके पास आ बैठे.
“पापा! तीन लाख… तीन लाख की रिंग… आप पागल हो क्या?” मनिका हैरान-परेशान सी बोली.
“अरे… तीन लाख कहाँ… two lakh ninety nine thousand nine hundred only…” जयसिंह ने उस शोरूम वाले मैनेजर की सी आवाज़ निकालते हुए कहा.
“पापा… मसखरी मत करो… वापस दे आते हैं…”

अब जयसिंह ने उसे अपनी गोद में खींच लिया. मनिका उनके पास आ गई, मगर उसने मुँह फेर रखा था.

“अरे भई… क्या हो गया? मुझे लगा गर्लफ़्रेंड खुश होगी… ये तो मुँह फुलाए बैठी है…”
“हाय पापा… इतने पैसे लगाता है क्या कोई… पागल हो आप…” मनिका ने थोड़ा भर्राए गले से कहा.
“ओहो… तुम्हें नहीं पसंद… तो चलो वापस कर आते हैं… नहीं पसंद है ना?”
“Papa it’s so costly na…” मनिका ने मचल कर उनकी तरफ़ देखा. आख़िर अंगूठी तो उसे बहुत पसंद आई थी.
“Manika, I told you na darling, don’t worry about the money?” जयसिंह ने उसका गाल सहला कर कहा.
“हाँ पापा… पर इतना खर्चा… घर पे क्या बोलूँगी…”
“ओहो… बताया तो था… कुछ चीज़ें सबसे बोलने की नहीं होती… घर पे कुछ नहीं बोलना… हम्म?” जयसिंह ने उसका गाल थपथपाया.
“हाय पापा… आप तो बस… मेरी जान निकाल देते हो…” मनिका उनके हाथ पर गाल रगड़ते हुए बोली.
“तो फिर रखनी है ना… या वापस करनी है?” जयसिंह ने मुस्कुराते हुए पूछा.
“रखनी है पापा…” मनिका बरबस उनके गले लग कर बोली.

जयसिंह का मुँह उसके कान के पास था. उनके मन में एक और हिमाक़त आई. वे उसके कान के पास फुसफुसाए,

“पता नहीं कैसी गर्लफ़्रेंड मिली है मुझे… हूँ… अंगूठी दिलाओ तो नाराज़… पैंटी दिलाओ तो नाराज़…”
“हाय पापा! क्या बोलते हो…” मनिका उनकी बात सुन मचल उठी.

उसके चेहरे पर शरम की सुर्ख़ लालिमा छा गई थी.

–​

मनिका बाथरूम में नहा रही थी.

“Oh god! Papa bought that ring… three lakh… और मैंने तो कहा भी नहीं लेने को… बस देखा भर था… हाय! ऐसा कौन करता है… सच में पागल होते हैं क्या ये मर्द लोग..?”

फिर उसे जयसिंह का छेड़ना याद आ गया.

“हाय… बोले पैंटी दिलाऊँ तो नाराज़… हाय ऐसे अपनी बेटी को कोई छेड़ता है भला… पर पापा तो मुझे अपनी गर्लफ़्रेंड कहने लगे हैं… मुझे ‘मनिका’ कहते है… क्या पापा मुझसे मोहब्बत करते हैं..? हाय मैं क्या सोचने लगी…”

मनिका अपने जवान उरोजों पर साबुन मलते हुए तरंगित हो रही थी. फिर उसने अपने विचारों की डोर थामते हुए सोचा,

“ऐसा कुछ नहीं है… पापा तो पापा हैं… बस थोड़े पागल हैं…”

लेकिन लड़कियों को जो बात सबसे ज़्यादा उत्तेजित करती हैं वो है मर्दों का पागलपन और बेबाक़ी. वैसे भी, जयसिंह के खिलंदनपड़ और आत्मविश्वास ने उसके अंतर्मन में स्थान बना लिया था. और आज जिस तरह से बिना सोचे-समझे उन्होंने उसकी एक नज़र पर इतना पैसा उड़ा दिया था, उसके बाद मनिका उनके चंगुल से निकल पाती इसका सवाल ही पैदा नहीं होता था.

नहा लेने के बाद मनिका ने अपनी धोई हुई बैंगनी ब्रा और गुलाबी थोंग तार पर डाली. एक पल उसे फिर पापा का सताना याद आ गया और उसने लजाते हुए सोचा,

“अभी पापा नहाने आएँगे… इन्हें ऐसे ही छोड़ दूँ…?”

फिर अपनी सोच पर घबरा कर उसने अपने अंतःवस्त्र तौलिए से ढँक दिए और बाहर निकल आई.

–​

आज जयसिंह तौलिया लपेटे बेड पर बैठे थे. फिर से उन्होंने अपनी टी-शर्ट और बनियान निकाल दिए थे.

मनिका उन्हें देख मुस्काई. जयसिंह बोले,

“मनिका वो मेरे कपड़े उधर काउच पर रखे हैं. उन्हें ज़रा मेरे छोटे बैग में रख देना. घर जा कर धुलवा लेंगे.”
“जी पापा.” कह मनिका काउच की तरफ़ बढ़ी.

जयसिंह भी बेड से उठने को हुए. मनिका की चोर नज़र मानो उनके उठने का इंतज़ार ही कर रही थी. उसने धीरे से मुँह फेर उनकी टांगों के बीच देखा.

जयसिंह ने ऐसे जता रहे थे मानो अपने फ़ोन में कुछ देखते हुए उसे साइड में रख रहे हैं. लेकिन उनकी असली मंशा तो मनिका को लंड का दीदार करवाने की थी. कुछ सेकंड तक वो आधे उठे हुए, बेड पर टेक लगाए फ़ोन में देखते रहे.

इस बीच मनिका को अपने पिता के मूसल का भरपूर दीदार मिला. मनिका की नज़र जैसे उसपर जम चुकी थी.

उनका काला चमकता मर्दांग मानो फड़क सा रहा था.

जयसिंह ने फ़ोन एक तरफ़ रखा और उठ खड़े हुए. मनिका ने घबरा कर उनसे नज़र मिलाई, वे उसे देख मुस्कुराए. मनिका भी धीमे से मुस्कुरा कर पलट गई और उनके खोले कपड़े उठाने लगी.

बाथरूम का दरवाज़ा बंद होते ही मनिका ने गहरी साँसें भरीं.

“हाय राम! कितना बड़ा है… और आज फिर… पापा तो इतने रिलैक्स हो गए हैं… उनको अंदाज़ा ही नहीं कि उनका वो… ऐसे दिखता है… मैं भी तो वहीं देखने लगती हूँ… बिग ब्लैक कॉक… डोंग… हाय!”

अनायास ही उसने अपने आप को भींच लिया. एक पल बाद उसके नाक में जयसिंह के जिस्म की गंध पड़ी. अपने हाथ में लिए उनके कपड़ों को देख वो सिहर गई.

“पापा की बॉडी की ख़ुशबू… कैसी अजीब सी है… मर्दाना सी…” उसने एक गहरी साँस भरी.

फिर उसने देखा कि काउच पर जयसिंह का निकाला हुआ कच्छा भी पड़ा था.

“हाय पापा ने अपना अंडरवियर भी यहीं छोड़ दिया.”

कांपते हाथ से उसने अपने पिता का अंडरवियर उठाया. उसके हाथ में जैसे लकवा मार गया था. तेज कदमों से वो जयसिंह के बैग के पास गई और उनके कपड़े उसमें रखे. एक पल के लिए उसके मन में विचार आया कि जयसिंह का अंडरवियर सूंघ के देखे, और वो थर्रा उठी थी.

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जब जयसिंह नहा कर आए तो मनिका अपना सामान जमा रही थी.

“हो गई पैकिंग?” उन्होंने पूछा.
“जी पापा… बस हो ही गई…” मनिका ने कुछ कपड़े तह करके रखते हुए कहा.

उसने अपनी नई ली पोशाकें अटैची में नीचे दबा कर रख दी थी और ऊपर पुराने कपड़े रख रही थी.

“वो कपड़े डाल दिए मेरे बैग में?” जयसिंह ने अपने सिर से पानी झटकते पूछा.
“ह… हाँ पापा.” मनिका ने अपराधबोध भरी आवाज़ में कहा.

जयसिंह के कहने पर मनिका ने उनकी अटैची से सुबह पहनने के लिए एक पैंट-शर्ट निकाल कर काउच पर रख दिए थे. उसने अपना भी एक सलवार-सूट अटैची में ऊपर रख लिया था. पैकिंग करने के बाद उन्होंने अपना सामान एक ओर जमा दिया.

“सुबह ट्रेन 9 बजे की है… थोड़ा जल्दी उठ कर ब्रेकफ़ास्ट मँगवा लेंगे… फिर चल चलेंगे… हम्म?”

जयसिंह ने फ़ोन में आया टिकट वाला मेसेज पढ़ते हुए कहा.

“जी पापा.” मनिका बिस्तर में आते हुए बोली.

वे उसे देख मुसकाए और अपने पास आने का इशारा किया. मनिका उनके बाजू में आ लेटी.

“अंगूठी रख ली सम्भाल के?”
“हेहे… हाँ पापा. Thank you…”
“हाहा. अभी तो बस शुरुआत है… वापस डेल्ही आ कर भी तो शॉपिंग करनी है ना?”
“हाँ…” मनिका ने कसमसा कर खनकती हुई आवाज़ में कहा.
“हम्म खुश है मेरी जान?”
“हाँ पापा…” मनिका ने धीमे से कहा.

कुछ पल चुप्पी छाई रही. फिर मनिका बोली,

“हम कितने… close… हो गए हैं ना पापा?”
“हम्म… क्यूँ पहले नहीं थे क्या?”

जयसिंह उसका आशय तो समझ गए थे पर उसे उलझाने के लिए बोले.

“थे… तो सही… पर मेरा मतलब है… यहाँ आकर… ऐसे…”
“कैसे?” जयसिंह ने उसकी आँखों में आँखें डाल पूछा.
“यही… इतना frankly एक दूसरे से बात करना… you know…”
“अब दिल्ली की हवा तो बड़े-बड़ों को लग जाती है, थोड़ी हमें भी लग गई…”
“हेहे पापा…” मनिका ने थोड़ा सकुचा कर आगे कहा, “थोड़ा अजीब लगता है ना मगर?”
“हम्म…”
“आपको नहीं लगता?” जयसिंह से मन माफ़िक़ जवाब न पा, मनिका ने फिर पूछा.
“ऐसे गर्लफ़्रेंड-बॉयफ़्रेंड होना?” जयसिंह ने कहा.
“ह… हाँ…” मनिका सकपका गई.
“Well… मैंने तो पहले ही कहा था… हम अडल्ट हैं… हमें जो अच्छा लगे कर सकते हैं… इसमें अजीब क्या है?”
“प… पर आप मेरे… I know… मैं हमारे सोशल रिश्ते के बारे में बोल रही हूँ… पर वो भी तो एक सच है.”
“हाहा… तो मैंने कहा तो था… डेल्ही में गर्लफ़्रेंड और घर पे डॉटर… हम्म?” जयसिंह ने उसकी ठुड्डी पकड़ कर हिलाई.
“ह… हाँ…” मनिका को उनकी बात का जवाब नहीं सूझा.
“और कभी-कभी… घर पे भी गर्लफ़्रेंड… हम्म?” जयसिंह ने उसे गुदगुदाया.
“हीही… पापा… क्या कहते हो?” मनिका उनके हाथ पकड़ मचली.
“अरे भई… सब के सामने नहीं तो सब के पीठ पीछे तो हम enjoy कर सकते हैं कि नहीं?” जयसिंह की आवाज़ में एक भारीपन था.
“हाय पापा… लग रहा है आप तो मरवाओगे मुझे…”
“हाहा… अरे कुछ नहीं होगा… मैं हूँ ना…”

मनिका समझ नहीं पा रही थी कि उनकी बातचीत कैसा अजीब मोड़ लेने लगी थी.

“पर पापा… हम… real girlfriend-boyfriend थोड़े ही हो सकते हैं..?”
“क्यूँ नहीं हो सकते…” जयसिंह ने फिर उस से नज़र मिलाई.
“वो… आप की तो मम्मी से शादी हो गई है ना…” मनिका से और कुछ कहते नहीं बना.
“हाहा… तो गर्लफ़्रेंड तो बीवी से अलग होती है… कि नहीं?”
“हेहे… आप तो कुछ ज़्यादा ही बिगड़ गए हो…” मनिका ने शरमा कर उलाहना दिया.
“तुम मधु की चिंता मत करो… उसे सम्भालना मुझे अच्छे से आता है… तुम बस enjoy करो पापा के साथ… हम्म?”
“जी पापा…”

मनिका न जाने क्यूँ अपने पिता का प्रतिकार ना कर सकी थी.

“घर जा कर कहीं अपनी बात से बदल मत जाना…” जयसिंह ने उसे चेताया, “कहीं वहाँ जाकर फिर से तुम… फादर-डॉटर… और सोसाइटी के चक्करों में पड़ जाओ.”
“हेहे पापा… नहीं…” मनिका ने धड़कते दिल से उनको आश्वस्त किया.

फिर उसे एक बात याद आई.

“पापा?”
“हम्म?”
“वो आपने मेरी पिक्स ली थी ना… ड्रेसेज़ वाली…”
“हाँ…”
“वो तो डिलीट कर देते…”
“क्यूँ?”

मनिका ये तो कैसे कहती की वो तस्वीरें बेहद अश्लील हैं. सो उसने हौले से कहा,

“कोई देख ना ले…”
“हाहा… अरे कोई नहीं देखेगा… तुम चिंता मत करो…”
“पर पापा…”
“मैंने कहा ना… it’s okay…” जयसिंह की आँखों में एक आक्रोश था.
“ज… जी पापा.”

जब और मनिका कुछ नहीं बोली, तो जयसिंह ने छेड़ा,

“घर जा कर मन लग जाएगा… मेरी जान का?”
“उन्हु…” मनिका ने ना में सिर हिलाया.
“उदास है मेरी जान?” उन्होंने आगे पूछा.
“हूँ…” मनिका ने हाँ कहा.
“तो कैसे खुश करूँ उसे?”

जयसिंह ने इस बार ज़ोर से उसे गुदगुदाया.

“आऽऽई… पापा!” मनिका खिलखिला उठी.
“बोलो ना…”

मनिका अब पीठ के बल लेटी थी और जयसिंह उसे गुदगुदा रहे थे. कभी उसका पेट तो कभी उसके बाजू और बग़लें.

“हाहाहा पापा… क्या करते हो… ईईई… छोड़ो ना! नहीं हूँ उदास…”

कुछ पल इस तरह मनिका के जिस्म पर हाथ सेंकने के बाद जयसिंह ने उसे छोड़ दिया.

“मैंने पहले ही कहा था… उदास नहीं रहना है… कहा था ना…”
“हेहे… हाँ पापा… मान तो रही हूँ आपकी बात…” मनिका उनके हाथों को देखते हुए मचली.
“तो चलो अब मेरी किस्स दो और सो जाओ… सुबह जाना भी है…”

मनिका के चेहरे पर शर्मीली लाली थी. वो हौले से उठी और जयसिंह के गाल पर पप्पी कर दी.

“Good night papa…”
“हम्म…” जयसिंह ने हामी भरी.

फिर उन्होंने उसके बाजू पकड़ उसे फिर से पीठ के बल लेटा दिया. वे उसके ऊपर झुक आए थे. मनिका ने उनका इशारा समझ चेहरा एक तरफ़ कर लिया था.

‘पुच्च, पुच्च, पुच्च’

जयसिंह ने उसके गाल पर तीन-चार चुम्बन जड़ दिए.

लेकिन मनिका का दिल तो कोई और बात दहला रही थी.

इस तरह उसके ऊपर झुकते ही उसके पिता का लंड उसकी जाँघ छूने लगा था. उसकी सख़्ती का एहसास होते ही मनिका निढाल, निश्चल पड़ गई थी.

जयसिंह ने हौले से कहा,

“Good night darling…”

–​
 

Pardhan

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1,636
159
25 - गुड नाइट

जब मनिका की आँख खुली तो ग़ज़ब हो चुका था. उसके पापा उसके ऊपर थे और अपनी टांगे खोल कर उसे बीच में ले रखा था. उनके लिंग वाला हिस्सा ठीक उसकी योनि पर टिका था. जयसिंह का चेहरा उसकी चेहरे के बग़ल में उसके बालों में था. उनकी गरम साँसें उसे अपने गालों और गले पर महसूस हो रही थी. और उसके स्तन, उसके पिता की चौड़ी छाती के नीचे दबे थे.

“हम्प!” मनिका कसमसाई.
“उम्म…” जयसिंह भी थोड़ा हिले-डुले.
“पापा?” मनिका ने हौले से उन्हें दूर हटाना चाहा.
“हम्म?” वो ऊँघे.
“उठो ना…” मनिका ने मंद आवाज़ में कहा.
“हम्म…” कहते हुए जयसिंह थोड़ा सीधा हुए, “क्या टाइम हो गया?”

मनिका की जान में जान आई.

“पता नहीं…” वो उनकी गिरफ़्त से आज़ाद होते ही उठ बैठी और अपने अस्त-व्यस्त कपड़े ठीक करने लगी. “शाम हो गई है.”
“हैं..? सच में?” जयसिंह ने भी थोड़ा उठ कर बैठते हुए कहा, “आज तो हमने लंच भी मिस कर दिया लगता है.”
“ज… जी पापा.” मनिका की नज़र उनकी टांगों के बीच गई.

क्या उनकी पैंट में एक उठाव सा नज़र आ रहा था?

“हाय… हम कैसे सो रहे थे?”

कुछ बात चालू हो, इसके लिए मनिका ने दीवार घड़ी की ओर देखा. 5 बजने को आए थे.

“Papa… it’s 5 O’clock…”
“सच में? समय का पता ही नहीं चला आज तो… चलो कुछ खाने-पीने को मँगवा लो…”
“हाँ पापा… अभी तो हमारी पैकिंग भी बाक़ी पड़ी है.”

जयसिंह भी काउच से उठ चुके थे. उन्होंने एक नज़र मनिका से मिलाई और हँस कर बोले.

“नई गर्लफ़्रेंड के साथ ऐसी नींद आई कि पता ही नहीं चला.”
“हेहे पापा… आप तो ना… जाओ जाके मुँह हाथ धो लो, मैं कुछ ऑर्डर करती हूँ…”
“जो हुकुम मेरे आका…” जयसिंह बोले और उसे एक हवाई किस्स दिया.
“पागल..!” मनिका ने हौले से कहा.

फिर चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कान लिए मनिका फ़ोन के पास पहुँची. लंच न करने और डिनर का वक्त क़रीब होने की वजह से उसने सोचा कि दोनों टाइम का खान-पान साथ ही कर लिया जाए. यही सोच कर उसने काठी-रोल, पाव-भाजी और चाऊमिन का ऑर्डर कर दिया.
जयसिंह बाहर आ गए थे और धीरे-धीरे अपना कुछ सामान अटैची में जचाने लगे.

इस दौरान मनिका भी जा कर टॉयलेट कर आई. कमोड की सीट पर बैठते वक्त उसे एक पल ख़याल आया कि पापा कैसे वहीं सामने खड़े हो कर पेशाब करते होंगे. हालाँकि उसने अपने-आप को धिक्कारा था लेकिन इस तरह के ख़यालों को अब मन से निकालना उसके बस से बाहर हो चुका था.

खाना-पीना करने के बाद जयसिंह ने सुझाया कि कुछ देर घूम आया जाए. आख़िर सुबह तो उन्हें जाना ही था. मनिका भी राज़ी हो गई.
सो वे गुड़गाँव की MG Road घूमने चल दिए. वहाँ काफ़ी सारे मॉल और रेस्तराँ इत्यादि हैं.

घूमते-घूमते जयसिंह ने मनिका से पूछा अगर वह कुछ लेना चाहती हो. पर मनिका ने शरारत भरी मुस्कान से कहा कि बाक़ी शॉपिंग वह दिल्ली वापस आ कर कर लेगी. कुछ देर window shopping करते रहने के बाद, जयसिंह और मनिका एक आलीशान शोरूम के आगे से गुजरे, ‘Victoria’s Secret’. बाहर डिस्प्ले में जो चीज़ें लगी थी, उन्हें देख अनायास ही बाप-बेटी की नज़रें मिल गई.

जयसिंह की आँखों में चमक थी और मनिका के चेहरे पर हया. जयसिंह ने कुछ ना कहा लेकिन उसका हाथ पकड़ लिया और आगे बढ़ चले.
मनिका को जयसिंह का वो स्पर्श मानो लालायित कर रहा था.

कुछ आगे चलने पर एक बहुत बड़ा ज़ेवेलरी स्टोर आया. जयसिंह ने देखा कि मनिका ने बड़े गौर से बाहर डिस्प्ले में लगे आभूषण देखे थे. हालाँकि उसके बाद वे कुछ कदम आगे बढ़ चुके थे, पर फिर जयसिंह रुके और मनिका को साथ ले वापस मुड़ आए.

“Papa… where are you going?”
“अरे आओ ना…” जयसिंह बोले.

जयसिंह उसे आभूषणों के उस आलीशान शोरूम में ले गए. मनिका मंत्रमुग्ध सी उनके साथ चल रही थी.

“पापा? क्या ले रहे हो यहाँ से..?” आख़िर उसने पूछा.
“अपनी गर्लफ़्रेंड के लिए गिफ़्ट…” जयसिंह ने रहस्यमई अन्दाज़ में कहा.

जयसिंह ने मनिका को एक अंगूठी को बहुत कौतुहल से देखते हुए देखा था. सो जब शोरूम के सेल्स-बॉय ने उनसे पूछा कि वे क्या लेना पसंद करेंगे तो वे बोले,

“वो बाहर… नीले डिस्प्ले में जो अंगूठी लगी है… वो दिखा सकते हैं.”

सेल्स-बॉय की बाँछे खिल उठी. आख़िर बाहर के डिस्प्ले में शोरूम वाले सबसे महंगी और लुभावनी चीज़ें ही लगा कर रखते हैं. उसने फट से हामी भरी और अदब से झुक अपने मैनेजर की तरफ़ दौड़ा.

जयसिंह ने मनिका की तरफ़ देखा. उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं.

“Papa… what..?”
“Shh… you are my girlfriend, remember?” जयसिंह उसके होंठों पर अंगुली रख बोले.
“But…”

उतने में वो लड़का मैनेजर को ले आया था,

“Hello sir… welcome to Sarathi Jewellers sir… बैठिए ना…” मोटी आसामी देख, मैनेजर की आँखे चमक रहीं थी.
“वो बताया ना आपके लड़के को रिंग का…” जयसिंह थोड़ी तल्ख़ी और रौब से बोले.
“हाँ जी… हाँ जी… विपिन! जाओ वो मुग़ल कलेक्शन वाला रिंग सेट लेकर आओ सर के लिए… कब से वेट कर रहे हैं सर…” मैनेजर ने लड़के को हड़काया.

फिर उनसे मुख़ातिब हो बोला,

“आप बैठिए ना सर… क्या लेंगे? चाय-कॉफ़ी, कोई शेक वग़ैरह?”
“नहीं-नहीं… बस ठीक है.” कहते हुए जयसिंह बैठ गए.

मनिका क्या करती, वह भी उनके बग़ल में बैठ गई. उसकी आँखों के आगे तो तारे नाच रहे थे.

“Papa noticed me looking at the ring… is he going to buy it? It was looking so expensive..!”

सेल्स वाला लड़का लौट आया था. उसने पाँच-सात नीली डिब्बियाँ खोल कर उनके सामने जँचा दी. इतने असमंजस के बावजूद उन खूबसूरत अंगुठियों को देख मनिका के मन ने आह भरी.

“हे भगवान! क्या कमाल की रिंग्स हैं…”

मैनेजर अब एक-एक कर उन्हें अंगुठियाँ दिखाने लगा,

“Pure gold sir… worked by special artists… with diamond face… you can also pick a stone of your choice sir…”

जयसिंह ने उसकी दिखाई अंगूठी हाथ में ली. फिर मनिका को दिखाई.

“Buying for ma’am sir?” मैनेजर ने पूछा, “your..?”
“Girlfriend…” जयसिंह ने एकदम सामान्य आवाज़ में मनिका का परिचय करवाया.
“Of course sir…” मैनेजर ने मुस्तैदी से कहा, “ये वाली देखिए मैम…”

–​

वे लोग होटल लौट आए थे.

सारथी ज़ेवेलर्स का बैग कॉफ़ी टेबल पर रखा था और मनिका स्तब्ध सी सोफ़े पर बैठी थी.

“हाहा… क्या हुआ भई? इतनी चुप्पी?” जयसिंह हंसते हुए उसके पास आ बैठे.
“पापा! तीन लाख… तीन लाख की रिंग… आप पागल हो क्या?” मनिका हैरान-परेशान सी बोली.
“अरे… तीन लाख कहाँ… two lakh ninety nine thousand nine hundred only…” जयसिंह ने उस शोरूम वाले मैनेजर की सी आवाज़ निकालते हुए कहा.
“पापा… मसखरी मत करो… वापस दे आते हैं…”

अब जयसिंह ने उसे अपनी गोद में खींच लिया. मनिका उनके पास आ गई, मगर उसने मुँह फेर रखा था.

“अरे भई… क्या हो गया? मुझे लगा गर्लफ़्रेंड खुश होगी… ये तो मुँह फुलाए बैठी है…”
“हाय पापा… इतने पैसे लगाता है क्या कोई… पागल हो आप…” मनिका ने थोड़ा भर्राए गले से कहा.
“ओहो… तुम्हें नहीं पसंद… तो चलो वापस कर आते हैं… नहीं पसंद है ना?”
“Papa it’s so costly na…” मनिका ने मचल कर उनकी तरफ़ देखा. आख़िर अंगूठी तो उसे बहुत पसंद आई थी.
“Manika, I told you na darling, don’t worry about the money?” जयसिंह ने उसका गाल सहला कर कहा.
“हाँ पापा… पर इतना खर्चा… घर पे क्या बोलूँगी…”
“ओहो… बताया तो था… कुछ चीज़ें सबसे बोलने की नहीं होती… घर पे कुछ नहीं बोलना… हम्म?” जयसिंह ने उसका गाल थपथपाया.
“हाय पापा… आप तो बस… मेरी जान निकाल देते हो…” मनिका उनके हाथ पर गाल रगड़ते हुए बोली.
“तो फिर रखनी है ना… या वापस करनी है?” जयसिंह ने मुस्कुराते हुए पूछा.
“रखनी है पापा…” मनिका बरबस उनके गले लग कर बोली.

जयसिंह का मुँह उसके कान के पास था. उनके मन में एक और हिमाक़त आई.

“पता नहीं कैसी गर्लफ़्रेंड मिली है मुझे… हूँ… अंगूठी दिलाओ तो नाराज़… पैंटी दिलाओ तो नाराज़…” वे उसके कान के पास फुसफुसाए.
“हाय पापा! क्या बोलते हो…” मनिका उनकी बात सुन मचल उठी.

उसके चेहरे पर शरम की सुर्ख़ लालिमा छा गई थी.

–​

मनिका बाथरूम में नहा रही थी.

“Oh god! Papa bought that ring… three lakh… और मैंने तो कहा भी नहीं लेने को… बस देखा भर था… हाय! ऐसा कौन करता है… सच में पागल होते हैं क्या ये मर्द लोग..?”

फिर उसे जयसिंह का छेड़ना याद आ गया.

“हाय… बोले पैंटी दिलाऊँ तो नाराज़… हाय ऐसे अपनी बेटी को कोई छेड़ता है भला… पर पापा तो मुझे अपनी गर्लफ़्रेंड कहने लगे हैं… मुझे ‘मनिका’ कहते है… क्या पापा मुझसे मोहब्बत करते हैं..? हाय मैं क्या सोचने लगी…”

मनिका अपने जवान उरोजों पर साबुन मलते हुए तरंगित हो रही थी. फिर उसने अपने विचारों की डोर थामते हुए सोचा,

“ऐसा कुछ नहीं है… पापा तो पापा हैं… बस थोड़े पागल हैं…”

लेकिन लड़कियों को जो बात सबसे ज़्यादा उत्तेजित करती हैं वो है मर्दों का पागलपन और बेबाक़ी. वैसे भी, जयसिंह के खिलंदनपड़ और आत्मविश्वास ने उसके अंतर्मन में स्थान बना लिया था. और आज जिस तरह से बिना सोचे-समझे उन्होंने उसकी एक नज़र पर इतना पैसा उड़ा दिया था, उसके बाद मनिका उनके चंगुल से निकल पाती इसका सवाल ही पैदा नहीं होता था.

नहा लेने के बाद मनिका ने अपनी धोई हुई बैंगनी ब्रा और गुलाबी थोंग तार पर डाली. एक पल उसे फिर पापा का सताना याद आ गया और उसने लजाते हुए सोचा,

“अभी पापा नहाने आएँगे… इन्हें ऐसे ही छोड़ दूँ…?”

फिर अपनी सोच पर घबरा कर उसने अपने अंतःवस्त्र तौलिए से ढँक दिए और बाहर निकल आई.

–​

आज जयसिंह तौलिया लपेटे बेड पर बैठे थे. फिर से उन्होंने अपनी टी-शर्ट और बनियान निकाल दिए थे.
मनिका उन्हें देख मुस्काई.

जयसिंह बोले,
“मनिका वो मेरे कपड़े उधर काउच पर रखे हैं. उन्हें ज़रा मेरे छोटे बैग में रख देना. घर जा कर धुलवा लेंगे.”
“जी पापा.” कह मनिका काउच की तरफ़ बढ़ी.

जयसिंह भी बेड से उठने को हुए. मनिका की चोर नज़र मानो उनके उठने का इंतज़ार ही कर रही थी. उसने धीरे से मुँह फेर उनकी टांगों के बीच देखा.

जयसिंह ने ऐसे जता रहे थे मानो अपने फ़ोन में कुछ देखते हुए उसे साइड में रख रहे हैं. लेकिन उनकी असली मंशा तो मनिका को लंड का दीदार करवाने की थी. कुछ सेकंड तक वो आधे उठे हुए, बेड पर टेक लगाए फ़ोन में देखते रहे.

इस बीच मनिका को अपने पिता के मूसल का भरपूर दीदार मिला. मनिका की नज़र जैसे उसपर जम चुकी थी.

उनका काला चमकता मर्दांग मानो फड़क सा रहा था.

जयसिंह ने फ़ोन एक तरफ़ रखा और उठ खड़े हुए. मनिका ने घबरा कर उनसे नज़र मिलाई, वे उसे देख मुस्कुराए. मनिका भी धीमे से मुस्कुरा कर पलट गई और उनके खोले कपड़े उठाने लगी.

बाथरूम का दरवाज़ा बंद होते ही मनिका ने गहरी साँसें भरीं.

“हाय राम! कितना बड़ा है… और आज फिर… पापा तो इतने रिलैक्स हो गए हैं… उनको अंदाज़ा ही नहीं कि उनका वो… ऐसे दिखता है… मैं भी तो वहीं देखने लगती हूँ… बिग ब्लैक कॉक… डोंग… हाय!”

अनायास ही उसने अपने आप को भींच लिया. एक पल बाद उसके नाक में जयसिंह के जिस्म की गंध पड़ी. अपने हाथ में लिए उनके कपड़ों को देख वो सिहर गई.

“पापा की बॉडी की ख़ुशबू… कैसी अजीब सी है… मर्दाना सी…” उसने एक गहरी साँस भरी.

फिर उसने देखा कि काउच पर जयसिंह का निकाला हुआ कच्छा भी पड़ा था.

“हाय पापा ने अपना अंडरवियर भी यहीं छोड़ दिया.”

कांपते हाथ से उसने अपने पिता का अंडरवियर उठाया. उसके हाथ में जैसे लकवा मार गया था. तेज कदमों से वो जयसिंह के बैग के पास गई और उनके कपड़े उसमें रखे. एक पल के लिए उसके मन में विचार आया कि जयसिंह का अंडरवियर सूंघ के देखे, और वो थर्रा उठी थी.

–​

जब जयसिंह नहा कर आए तो मनिका अपना सामान जमा रही थी.

“हो गई पैकिंग?” उन्होंने पूछा.
“जी पापा… बस हो ही गई…” मनिका ने कुछ कपड़े तह करके रखते हुए कहा.

उसने अपनी नई ली पोशाकें अटैची में नीचे दबा कर रख दी थी और ऊपर पुराने कपड़े रख रही थी.

“वो कपड़े डाल दिए मेरे बैग में?” जयसिंह ने अपने सिर से पानी झटकते पूछा.
“ह… हाँ पापा.” मनिका ने अपराधबोध भरी आवाज़ में कहा.

जयसिंह के कहने पर मनिका ने उनकी अटैची से सुबह पहनने के लिए एक पैंट-शर्ट निकाल कर काउच पर रख दिए थे. उसने अपना भी एक सलवार-सूट अटैची में ऊपर रख लिया था. पैकिंग करने के बाद उन्होंने अपना सामान एक ओर जमा दिया.

“सुबह ट्रेन 9 बजे की है… थोड़ा जल्दी उठ कर ब्रेकफ़ास्ट मँगवा लेंगे… फिर चल चलेंगे… हम्म?”

जयसिंह ने फ़ोन में आया टिकट वाला मेसेज पढ़ते हुए कहा.

“जी पापा.” मनिका बिस्तर में आते हुए बोली.

वे उसे देख मुसकाए और अपने पास आने का इशारा किया. मनिका उनके बाजू में आ लेटी.

“अंगूठी रख ली सम्भाल के?”
“हेहे… हाँ पापा. Thank you…”
“हाहा. अभी तो बस शुरुआत है… वापस डेल्ही आ कर भी तो शॉपिंग करनी है ना?”
“हाँ…” मनिका ने कसमसा कर खनकती हुई आवाज़ में कहा.
“हम्म खुश है मेरी जान?”
“हाँ पापा…” मनिका ने धीमे से कहा.

कुछ पल चुप्पी छाई रही. फिर मनिका बोली,

“हम कितने… close… हो गए हैं ना पापा?”
“हम्म… क्यूँ पहले नहीं थे क्या?”

जयसिंह उसका आशय तो समझ गए थे पर उसे उलझाने के लिए बोले.

“थे… तो सही… पर मेरा मतलब है… यहाँ आकर… ऐसे…”
“कैसे?” जयसिंह ने उसकी आँखों में आँखें डाल पूछा.
“यही… इतना frankly एक दूसरे से बात करना… you know…”
“अब दिल्ली की हवा तो बड़े-बड़ों को लग जाती है, थोड़ी हमें भी लग गई…”
“हेहे पापा…” मनिका ने थोड़ा सकुचा कर आगे कहा, “थोड़ा अजीब लगता है ना मगर?”
“हम्म…”
“आपको नहीं लगता?” जयसिंह से मन माफ़िक़ जवाब न पा, मनिका ने फिर पूछा.
“ऐसे गर्लफ़्रेंड-बॉयफ़्रेंड होना?” जयसिंह ने कहा.
“ह… हाँ…” मनिका सकपका गई.
“Well… मैंने तो पहले ही कहा था… हम अडल्ट हैं… हमें जो अच्छा लगे कर सकते हैं… इसमें अजीब क्या है?”
“प… पर आप मेरे… I know… मैं हमारे सोशल रिश्ते के बारे में बोल रही हूँ… पर वो भी तो एक सच है.”
“हाहा… तो मैंने कहा तो था… डेल्ही में गर्लफ़्रेंड और घर पे डॉटर… हम्म?” जयसिंह ने उसकी ठुड्डी पकड़ कर हिलाई.
“ह… हाँ…” मनिका को उनकी बात का जवाब नहीं सूझा.
“और कभी-कभी… घर पे भी गर्लफ़्रेंड… हम्म?” जयसिंह ने उसे गुदगुदाया.
“हीही… पापा… क्या कहते हो?” मनिका उनके हाथ पकड़ मचली.
“अरे भई… सब के सामने नहीं तो सब के पीठ पीछे तो हम enjoy कर सकते हैं कि नहीं?” जयसिंह की आवाज़ में एक भारीपन था.
“हाय पापा… लग रहा है आप तो मरवाओगे मुझे…”
“हाहा… अरे कुछ नहीं होगा… मैं हूँ ना…”

मनिका समझ नहीं पा रही थी कि उनकी बातचीत कैसा अजीब मोड़ लेने लगी थी.

“पर पापा… हम… real girlfriend-boyfriend थोड़े ही हो सकते हैं..?”
“क्यूँ नहीं हो सकते…” जयसिंह ने फिर उस से नज़र मिलाई.
“वो… आप की तो मम्मी से शादी हो गई है ना…” मनिका से और कुछ कहते नहीं बना.
“हाहा… तो गर्लफ़्रेंड तो बीवी से अलग होती है… कि नहीं?”
“हेहे… आप तो कुछ ज़्यादा ही बिगड़ गए हो…” मनिका ने शरमा कर उलाहना दिया.
“तुम मधु की चिंता मत करो… उसे सम्भालना मुझे अच्छे से आता है… तुम बस enjoy करो पापा के साथ… हम्म?”
“जी पापा…”

मनिका न जाने क्यूँ अपने पिता का प्रतिकार ना कर सकी थी.

“घर जा कर कहीं अपनी बात से बदल मत जाना…” जयसिंह ने उसे चेताया, “कहीं वहाँ जाकर फिर से तुम… फादर-डॉटर… और सोसाइटी के चक्करों में पड़ जाओ.”
“हेहे पापा… नहीं…” मनिका ने धड़कते दिल से उनको आश्वस्त किया.

फिर उसे एक बात याद आई.

“पापा?”
“हम्म?”
“वो आपने मेरी पिक्स ली थी ना… ड्रेसेज़ वाली…”
“हाँ…”
“वो तो डिलीट कर देते…”
“क्यूँ?”

मनिका ये तो कैसे कहती की वो तस्वीरें बेहद अश्लील हैं. सो उसने हौले से कहा,

“कोई देख ना ले…”
“हाहा… अरे कोई नहीं देखेगा… तुम चिंता मत करो…”
“पर पापा…”
“मैंने कहा ना… it’s okay…” जयसिंह की आँखों में एक आक्रोश था.
“ज… जी पापा.”

जब और मनिका कुछ नहीं बोली, तो जयसिंह ने छेड़ा,

“घर जा कर मन लग जाएगा… मेरी जान का?”
“उन्हु…” मनिका ने ना में सिर हिलाया.
“उदास है मेरी जान?” उन्होंने आगे पूछा.
“हूँ…” मनिका ने हाँ कहा.
“तो कैसे खुश करूँ उसे?”

जयसिंह ने इस बार ज़ोर से उसे गुदगुदाया.

“आऽऽई… पापा!” मनिका खिलखिला उठी.
“बोलो ना…”

मनिका अब पीठ के बल लेटी थी और जयसिंह उसे गुदगुदा रहे थे. कभी उसका पेट तो कभी उसके बाजू और बग़लें.

“हाहाहा पापा… क्या करते हो… ईईई… छोड़ो ना! नहीं हूँ उदास…”

कुछ पल इस तरह मनिका के जिस्म पर हाथ सेंकने के बाद जयसिंह ने उसे छोड़ दिया.

“मैंने पहले ही कहा था… उदास नहीं रहना है… कहा था ना…”
“हेहे… हाँ पापा… मान तो रही हूँ आपकी बात…” मनिका उनके हाथों को देखते हुए मचली.
“तो चलो अब मेरी किस्स दो और सो जाओ… सुबह जाना भी है…”

मनिका के चेहरे पर शर्मीली लाली थी. वो हौले से उठी और जयसिंह के गाल पर पप्पी कर दी.

“Good night papa…”
“हम्म…” जयसिंह ने हामी भरी.

फिर उन्होंने उसके बाजू पकड़ उसे फिर से पीठ के बल लेटा दिया. वे उसके ऊपर झुक आए थे. मनिका ने उनका इशारा समझ चेहरा एक तरफ़ कर लिया था.

‘पुच्च, पुच्च, पुच्च’

जयसिंह ने उसके गाल पर तीन-चार चुम्बन जड़ दिए.

लेकिन मनिका का दिल तो कोई और बात दहला रही थी.

इस तरह उसके ऊपर झुकते ही उसके पिता का लंड उसकी जाँघ छूने लगा था. उसकी सख़्ती का एहसास होते ही मनिका निढाल, निश्चल पड़ गई थी.

जयसिंह ने हौले से कहा,

“Good night darling…”

–​
Great
 

odin chacha

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143
25 - गुड नाइट

जब मनिका की आँख खुली तो ग़ज़ब हो चुका था. उसके पापा उसके ऊपर थे और अपनी टांगे खोल कर उसे बीच में ले रखा था. उनके लिंग वाला हिस्सा ठीक उसकी योनि पर टिका था. जयसिंह का चेहरा उसकी चेहरे के बग़ल में उसके बालों में था. उनकी गरम साँसें उसे अपने गालों और गले पर महसूस हो रही थी. और उसके स्तन, उसके पिता की चौड़ी छाती के नीचे दबे थे.

“हम्प!” मनिका कसमसाई.
“उम्म…” जयसिंह भी थोड़ा हिले-डुले.
“पापा?” मनिका ने हौले से उन्हें दूर हटाना चाहा.
“हम्म?” वो ऊँघे.
“उठो ना…” मनिका ने मंद आवाज़ में कहा.
“हम्म…” कहते हुए जयसिंह थोड़ा सीधा हुए, “क्या टाइम हो गया?”

मनिका की जान में जान आई.

“पता नहीं…” वो उनकी गिरफ़्त से आज़ाद होते ही उठ बैठी और अपने अस्त-व्यस्त कपड़े ठीक करने लगी. “शाम हो गई है.”
“हैं..? सच में?” जयसिंह ने भी थोड़ा उठ कर बैठते हुए कहा, “आज तो हमने लंच भी मिस कर दिया लगता है.”
“ज… जी पापा.” मनिका की नज़र उनकी टांगों के बीच गई.

क्या उनकी पैंट में एक उठाव सा नज़र आ रहा था?

“हाय… हम कैसे सो रहे थे?”

कुछ बात चालू हो, इसके लिए मनिका ने दीवार घड़ी की ओर देखा. 5 बजने को आए थे.

“Papa… it’s 5 O’clock…”
“सच में? समय का पता ही नहीं चला आज तो… चलो कुछ खाने-पीने को मँगवा लो…”
“हाँ पापा… अभी तो हमारी पैकिंग भी बाक़ी पड़ी है.”

जयसिंह भी काउच से उठ चुके थे. उन्होंने एक नज़र मनिका से मिलाई और हँस कर बोले.

“नई गर्लफ़्रेंड के साथ ऐसी नींद आई कि पता ही नहीं चला.”
“हेहे पापा… आप तो ना… जाओ जाके मुँह हाथ धो लो, मैं कुछ ऑर्डर करती हूँ…”
“जो हुकुम मेरे आका…” जयसिंह बोले और उसे एक हवाई किस्स दिया.
“पागल..!” मनिका ने हौले से कहा.

फिर चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कान लिए मनिका फ़ोन के पास पहुँची. लंच न करने और डिनर का वक्त क़रीब होने की वजह से उसने सोचा कि दोनों टाइम का खान-पान साथ ही कर लिया जाए. यही सोच कर उसने काठी-रोल, पाव-भाजी और चाऊमिन का ऑर्डर कर दिया.
जयसिंह बाहर आ गए थे और धीरे-धीरे अपना कुछ सामान अटैची में जचाने लगे.

इस दौरान मनिका भी जा कर टॉयलेट कर आई. कमोड की सीट पर बैठते वक्त उसे एक पल ख़याल आया कि पापा कैसे वहीं सामने खड़े हो कर पेशाब करते होंगे. हालाँकि उसने अपने-आप को धिक्कारा था लेकिन इस तरह के ख़यालों को अब मन से निकालना उसके बस से बाहर हो चुका था.

खाना-पीना करने के बाद जयसिंह ने सुझाया कि कुछ देर घूम आया जाए. आख़िर सुबह तो उन्हें जाना ही था. मनिका भी राज़ी हो गई.
सो वे गुड़गाँव की MG Road घूमने चल दिए. वहाँ काफ़ी सारे मॉल और रेस्तराँ इत्यादि हैं.

घूमते-घूमते जयसिंह ने मनिका से पूछा अगर वह कुछ लेना चाहती हो. पर मनिका ने शरारत भरी मुस्कान से कहा कि बाक़ी शॉपिंग वह दिल्ली वापस आ कर कर लेगी. कुछ देर window shopping करते रहने के बाद, जयसिंह और मनिका एक आलीशान शोरूम के आगे से गुजरे, ‘Victoria’s Secret’. बाहर डिस्प्ले में जो चीज़ें लगी थी, उन्हें देख अनायास ही बाप-बेटी की नज़रें मिल गई.

जयसिंह की आँखों में चमक थी और मनिका के चेहरे पर हया. जयसिंह ने कुछ ना कहा लेकिन उसका हाथ पकड़ लिया और आगे बढ़ चले.
मनिका को जयसिंह का वो स्पर्श मानो लालायित कर रहा था.

कुछ आगे चलने पर एक बहुत बड़ा ज़ेवेलरी स्टोर आया. जयसिंह ने देखा कि मनिका ने बड़े गौर से बाहर डिस्प्ले में लगे आभूषण देखे थे. हालाँकि उसके बाद वे कुछ कदम आगे बढ़ चुके थे, पर फिर जयसिंह रुके और मनिका को साथ ले वापस मुड़ आए.

“Papa… where are you going?”
“अरे आओ ना…” जयसिंह बोले.

जयसिंह उसे आभूषणों के उस आलीशान शोरूम में ले गए. मनिका मंत्रमुग्ध सी उनके साथ चल रही थी.

“पापा? क्या ले रहे हो यहाँ से..?” आख़िर उसने पूछा.
“अपनी गर्लफ़्रेंड के लिए गिफ़्ट…” जयसिंह ने रहस्यमई अन्दाज़ में कहा.

जयसिंह ने मनिका को एक अंगूठी को बहुत कौतुहल से देखते हुए देखा था. सो जब शोरूम के सेल्स-बॉय ने उनसे पूछा कि वे क्या लेना पसंद करेंगे तो वे बोले,

“वो बाहर… नीले डिस्प्ले में जो अंगूठी लगी है… वो दिखा सकते हैं.”

सेल्स-बॉय की बाँछे खिल उठी. आख़िर बाहर के डिस्प्ले में शोरूम वाले सबसे महंगी और लुभावनी चीज़ें ही लगा कर रखते हैं. उसने फट से हामी भरी और अदब से झुक अपने मैनेजर की तरफ़ दौड़ा.

जयसिंह ने मनिका की तरफ़ देखा. उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं.

“Papa… what..?”
“Shh… you are my girlfriend, remember?” जयसिंह उसके होंठों पर अंगुली रख बोले.
“But…”

उतने में वो लड़का मैनेजर को ले आया था,

“Hello sir… welcome to Sarathi Jewellers sir… बैठिए ना…” मोटी आसामी देख, मैनेजर की आँखे चमक रहीं थी.
“वो बताया ना आपके लड़के को रिंग का…” जयसिंह थोड़ी तल्ख़ी और रौब से बोले.
“हाँ जी… हाँ जी… विपिन! जाओ वो मुग़ल कलेक्शन वाला रिंग सेट लेकर आओ सर के लिए… कब से वेट कर रहे हैं सर…” मैनेजर ने लड़के को हड़काया.

फिर उनसे मुख़ातिब हो बोला,

“आप बैठिए ना सर… क्या लेंगे? चाय-कॉफ़ी, कोई शेक वग़ैरह?”
“नहीं-नहीं… बस ठीक है.” कहते हुए जयसिंह बैठ गए.

मनिका क्या करती, वह भी उनके बग़ल में बैठ गई. उसकी आँखों के आगे तो तारे नाच रहे थे.

“Papa noticed me looking at the ring… is he going to buy it? It was looking so expensive..!”

सेल्स वाला लड़का लौट आया था. उसने पाँच-सात नीली डिब्बियाँ खोल कर उनके सामने जँचा दी. इतने असमंजस के बावजूद उन खूबसूरत अंगुठियों को देख मनिका के मन ने आह भरी.

“हे भगवान! क्या कमाल की रिंग्स हैं…”

मैनेजर अब एक-एक कर उन्हें अंगुठियाँ दिखाने लगा,

“Pure gold sir… worked by special artists… with diamond face… you can also pick a stone of your choice sir…”

जयसिंह ने उसकी दिखाई अंगूठी हाथ में ली. फिर मनिका को दिखाई.

“Buying for ma’am sir?” मैनेजर ने पूछा, “your..?”
“Girlfriend…” जयसिंह ने एकदम सामान्य आवाज़ में मनिका का परिचय करवाया.
“Of course sir…” मैनेजर ने मुस्तैदी से कहा, “ये वाली देखिए मैम…”

–​

वे लोग होटल लौट आए थे.

सारथी ज़ेवेलर्स का बैग कॉफ़ी टेबल पर रखा था और मनिका स्तब्ध सी सोफ़े पर बैठी थी.

“हाहा… क्या हुआ भई? इतनी चुप्पी?” जयसिंह हंसते हुए उसके पास आ बैठे.
“पापा! तीन लाख… तीन लाख की रिंग… आप पागल हो क्या?” मनिका हैरान-परेशान सी बोली.
“अरे… तीन लाख कहाँ… two lakh ninety nine thousand nine hundred only…” जयसिंह ने उस शोरूम वाले मैनेजर की सी आवाज़ निकालते हुए कहा.
“पापा… मसखरी मत करो… वापस दे आते हैं…”

अब जयसिंह ने उसे अपनी गोद में खींच लिया. मनिका उनके पास आ गई, मगर उसने मुँह फेर रखा था.

“अरे भई… क्या हो गया? मुझे लगा गर्लफ़्रेंड खुश होगी… ये तो मुँह फुलाए बैठी है…”
“हाय पापा… इतने पैसे लगाता है क्या कोई… पागल हो आप…” मनिका ने थोड़ा भर्राए गले से कहा.
“ओहो… तुम्हें नहीं पसंद… तो चलो वापस कर आते हैं… नहीं पसंद है ना?”
“Papa it’s so costly na…” मनिका ने मचल कर उनकी तरफ़ देखा. आख़िर अंगूठी तो उसे बहुत पसंद आई थी.
“Manika, I told you na darling, don’t worry about the money?” जयसिंह ने उसका गाल सहला कर कहा.
“हाँ पापा… पर इतना खर्चा… घर पे क्या बोलूँगी…”
“ओहो… बताया तो था… कुछ चीज़ें सबसे बोलने की नहीं होती… घर पे कुछ नहीं बोलना… हम्म?” जयसिंह ने उसका गाल थपथपाया.
“हाय पापा… आप तो बस… मेरी जान निकाल देते हो…” मनिका उनके हाथ पर गाल रगड़ते हुए बोली.
“तो फिर रखनी है ना… या वापस करनी है?” जयसिंह ने मुस्कुराते हुए पूछा.
“रखनी है पापा…” मनिका बरबस उनके गले लग कर बोली.

जयसिंह का मुँह उसके कान के पास था. उनके मन में एक और हिमाक़त आई.

“पता नहीं कैसी गर्लफ़्रेंड मिली है मुझे… हूँ… अंगूठी दिलाओ तो नाराज़… पैंटी दिलाओ तो नाराज़…” वे उसके कान के पास फुसफुसाए.
“हाय पापा! क्या बोलते हो…” मनिका उनकी बात सुन मचल उठी.

उसके चेहरे पर शरम की सुर्ख़ लालिमा छा गई थी.

–​

मनिका बाथरूम में नहा रही थी.

“Oh god! Papa bought that ring… three lakh… और मैंने तो कहा भी नहीं लेने को… बस देखा भर था… हाय! ऐसा कौन करता है… सच में पागल होते हैं क्या ये मर्द लोग..?”

फिर उसे जयसिंह का छेड़ना याद आ गया.

“हाय… बोले पैंटी दिलाऊँ तो नाराज़… हाय ऐसे अपनी बेटी को कोई छेड़ता है भला… पर पापा तो मुझे अपनी गर्लफ़्रेंड कहने लगे हैं… मुझे ‘मनिका’ कहते है… क्या पापा मुझसे मोहब्बत करते हैं..? हाय मैं क्या सोचने लगी…”

मनिका अपने जवान उरोजों पर साबुन मलते हुए तरंगित हो रही थी. फिर उसने अपने विचारों की डोर थामते हुए सोचा,

“ऐसा कुछ नहीं है… पापा तो पापा हैं… बस थोड़े पागल हैं…”

लेकिन लड़कियों को जो बात सबसे ज़्यादा उत्तेजित करती हैं वो है मर्दों का पागलपन और बेबाक़ी. वैसे भी, जयसिंह के खिलंदनपड़ और आत्मविश्वास ने उसके अंतर्मन में स्थान बना लिया था. और आज जिस तरह से बिना सोचे-समझे उन्होंने उसकी एक नज़र पर इतना पैसा उड़ा दिया था, उसके बाद मनिका उनके चंगुल से निकल पाती इसका सवाल ही पैदा नहीं होता था.

नहा लेने के बाद मनिका ने अपनी धोई हुई बैंगनी ब्रा और गुलाबी थोंग तार पर डाली. एक पल उसे फिर पापा का सताना याद आ गया और उसने लजाते हुए सोचा,

“अभी पापा नहाने आएँगे… इन्हें ऐसे ही छोड़ दूँ…?”

फिर अपनी सोच पर घबरा कर उसने अपने अंतःवस्त्र तौलिए से ढँक दिए और बाहर निकल आई.

–​

आज जयसिंह तौलिया लपेटे बेड पर बैठे थे. फिर से उन्होंने अपनी टी-शर्ट और बनियान निकाल दिए थे.
मनिका उन्हें देख मुस्काई.

जयसिंह बोले,
“मनिका वो मेरे कपड़े उधर काउच पर रखे हैं. उन्हें ज़रा मेरे छोटे बैग में रख देना. घर जा कर धुलवा लेंगे.”
“जी पापा.” कह मनिका काउच की तरफ़ बढ़ी.

जयसिंह भी बेड से उठने को हुए. मनिका की चोर नज़र मानो उनके उठने का इंतज़ार ही कर रही थी. उसने धीरे से मुँह फेर उनकी टांगों के बीच देखा.

जयसिंह ने ऐसे जता रहे थे मानो अपने फ़ोन में कुछ देखते हुए उसे साइड में रख रहे हैं. लेकिन उनकी असली मंशा तो मनिका को लंड का दीदार करवाने की थी. कुछ सेकंड तक वो आधे उठे हुए, बेड पर टेक लगाए फ़ोन में देखते रहे.

इस बीच मनिका को अपने पिता के मूसल का भरपूर दीदार मिला. मनिका की नज़र जैसे उसपर जम चुकी थी.

उनका काला चमकता मर्दांग मानो फड़क सा रहा था.

जयसिंह ने फ़ोन एक तरफ़ रखा और उठ खड़े हुए. मनिका ने घबरा कर उनसे नज़र मिलाई, वे उसे देख मुस्कुराए. मनिका भी धीमे से मुस्कुरा कर पलट गई और उनके खोले कपड़े उठाने लगी.

बाथरूम का दरवाज़ा बंद होते ही मनिका ने गहरी साँसें भरीं.

“हाय राम! कितना बड़ा है… और आज फिर… पापा तो इतने रिलैक्स हो गए हैं… उनको अंदाज़ा ही नहीं कि उनका वो… ऐसे दिखता है… मैं भी तो वहीं देखने लगती हूँ… बिग ब्लैक कॉक… डोंग… हाय!”

अनायास ही उसने अपने आप को भींच लिया. एक पल बाद उसके नाक में जयसिंह के जिस्म की गंध पड़ी. अपने हाथ में लिए उनके कपड़ों को देख वो सिहर गई.

“पापा की बॉडी की ख़ुशबू… कैसी अजीब सी है… मर्दाना सी…” उसने एक गहरी साँस भरी.

फिर उसने देखा कि काउच पर जयसिंह का निकाला हुआ कच्छा भी पड़ा था.

“हाय पापा ने अपना अंडरवियर भी यहीं छोड़ दिया.”

कांपते हाथ से उसने अपने पिता का अंडरवियर उठाया. उसके हाथ में जैसे लकवा मार गया था. तेज कदमों से वो जयसिंह के बैग के पास गई और उनके कपड़े उसमें रखे. एक पल के लिए उसके मन में विचार आया कि जयसिंह का अंडरवियर सूंघ के देखे, और वो थर्रा उठी थी.

–​

जब जयसिंह नहा कर आए तो मनिका अपना सामान जमा रही थी.

“हो गई पैकिंग?” उन्होंने पूछा.
“जी पापा… बस हो ही गई…” मनिका ने कुछ कपड़े तह करके रखते हुए कहा.

उसने अपनी नई ली पोशाकें अटैची में नीचे दबा कर रख दी थी और ऊपर पुराने कपड़े रख रही थी.

“वो कपड़े डाल दिए मेरे बैग में?” जयसिंह ने अपने सिर से पानी झटकते पूछा.
“ह… हाँ पापा.” मनिका ने अपराधबोध भरी आवाज़ में कहा.

जयसिंह के कहने पर मनिका ने उनकी अटैची से सुबह पहनने के लिए एक पैंट-शर्ट निकाल कर काउच पर रख दिए थे. उसने अपना भी एक सलवार-सूट अटैची में ऊपर रख लिया था. पैकिंग करने के बाद उन्होंने अपना सामान एक ओर जमा दिया.

“सुबह ट्रेन 9 बजे की है… थोड़ा जल्दी उठ कर ब्रेकफ़ास्ट मँगवा लेंगे… फिर चल चलेंगे… हम्म?”

जयसिंह ने फ़ोन में आया टिकट वाला मेसेज पढ़ते हुए कहा.

“जी पापा.” मनिका बिस्तर में आते हुए बोली.

वे उसे देख मुसकाए और अपने पास आने का इशारा किया. मनिका उनके बाजू में आ लेटी.

“अंगूठी रख ली सम्भाल के?”
“हेहे… हाँ पापा. Thank you…”
“हाहा. अभी तो बस शुरुआत है… वापस डेल्ही आ कर भी तो शॉपिंग करनी है ना?”
“हाँ…” मनिका ने कसमसा कर खनकती हुई आवाज़ में कहा.
“हम्म खुश है मेरी जान?”
“हाँ पापा…” मनिका ने धीमे से कहा.

कुछ पल चुप्पी छाई रही. फिर मनिका बोली,

“हम कितने… close… हो गए हैं ना पापा?”
“हम्म… क्यूँ पहले नहीं थे क्या?”

जयसिंह उसका आशय तो समझ गए थे पर उसे उलझाने के लिए बोले.

“थे… तो सही… पर मेरा मतलब है… यहाँ आकर… ऐसे…”
“कैसे?” जयसिंह ने उसकी आँखों में आँखें डाल पूछा.
“यही… इतना frankly एक दूसरे से बात करना… you know…”
“अब दिल्ली की हवा तो बड़े-बड़ों को लग जाती है, थोड़ी हमें भी लग गई…”
“हेहे पापा…” मनिका ने थोड़ा सकुचा कर आगे कहा, “थोड़ा अजीब लगता है ना मगर?”
“हम्म…”
“आपको नहीं लगता?” जयसिंह से मन माफ़िक़ जवाब न पा, मनिका ने फिर पूछा.
“ऐसे गर्लफ़्रेंड-बॉयफ़्रेंड होना?” जयसिंह ने कहा.
“ह… हाँ…” मनिका सकपका गई.
“Well… मैंने तो पहले ही कहा था… हम अडल्ट हैं… हमें जो अच्छा लगे कर सकते हैं… इसमें अजीब क्या है?”
“प… पर आप मेरे… I know… मैं हमारे सोशल रिश्ते के बारे में बोल रही हूँ… पर वो भी तो एक सच है.”
“हाहा… तो मैंने कहा तो था… डेल्ही में गर्लफ़्रेंड और घर पे डॉटर… हम्म?” जयसिंह ने उसकी ठुड्डी पकड़ कर हिलाई.
“ह… हाँ…” मनिका को उनकी बात का जवाब नहीं सूझा.
“और कभी-कभी… घर पे भी गर्लफ़्रेंड… हम्म?” जयसिंह ने उसे गुदगुदाया.
“हीही… पापा… क्या कहते हो?” मनिका उनके हाथ पकड़ मचली.
“अरे भई… सब के सामने नहीं तो सब के पीठ पीछे तो हम enjoy कर सकते हैं कि नहीं?” जयसिंह की आवाज़ में एक भारीपन था.
“हाय पापा… लग रहा है आप तो मरवाओगे मुझे…”
“हाहा… अरे कुछ नहीं होगा… मैं हूँ ना…”

मनिका समझ नहीं पा रही थी कि उनकी बातचीत कैसा अजीब मोड़ लेने लगी थी.

“पर पापा… हम… real girlfriend-boyfriend थोड़े ही हो सकते हैं..?”
“क्यूँ नहीं हो सकते…” जयसिंह ने फिर उस से नज़र मिलाई.
“वो… आप की तो मम्मी से शादी हो गई है ना…” मनिका से और कुछ कहते नहीं बना.
“हाहा… तो गर्लफ़्रेंड तो बीवी से अलग होती है… कि नहीं?”
“हेहे… आप तो कुछ ज़्यादा ही बिगड़ गए हो…” मनिका ने शरमा कर उलाहना दिया.
“तुम मधु की चिंता मत करो… उसे सम्भालना मुझे अच्छे से आता है… तुम बस enjoy करो पापा के साथ… हम्म?”
“जी पापा…”

मनिका न जाने क्यूँ अपने पिता का प्रतिकार ना कर सकी थी.

“घर जा कर कहीं अपनी बात से बदल मत जाना…” जयसिंह ने उसे चेताया, “कहीं वहाँ जाकर फिर से तुम… फादर-डॉटर… और सोसाइटी के चक्करों में पड़ जाओ.”
“हेहे पापा… नहीं…” मनिका ने धड़कते दिल से उनको आश्वस्त किया.

फिर उसे एक बात याद आई.

“पापा?”
“हम्म?”
“वो आपने मेरी पिक्स ली थी ना… ड्रेसेज़ वाली…”
“हाँ…”
“वो तो डिलीट कर देते…”
“क्यूँ?”

मनिका ये तो कैसे कहती की वो तस्वीरें बेहद अश्लील हैं. सो उसने हौले से कहा,

“कोई देख ना ले…”
“हाहा… अरे कोई नहीं देखेगा… तुम चिंता मत करो…”
“पर पापा…”
“मैंने कहा ना… it’s okay…” जयसिंह की आँखों में एक आक्रोश था.
“ज… जी पापा.”

जब और मनिका कुछ नहीं बोली, तो जयसिंह ने छेड़ा,

“घर जा कर मन लग जाएगा… मेरी जान का?”
“उन्हु…” मनिका ने ना में सिर हिलाया.
“उदास है मेरी जान?” उन्होंने आगे पूछा.
“हूँ…” मनिका ने हाँ कहा.
“तो कैसे खुश करूँ उसे?”

जयसिंह ने इस बार ज़ोर से उसे गुदगुदाया.

“आऽऽई… पापा!” मनिका खिलखिला उठी.
“बोलो ना…”

मनिका अब पीठ के बल लेटी थी और जयसिंह उसे गुदगुदा रहे थे. कभी उसका पेट तो कभी उसके बाजू और बग़लें.

“हाहाहा पापा… क्या करते हो… ईईई… छोड़ो ना! नहीं हूँ उदास…”

कुछ पल इस तरह मनिका के जिस्म पर हाथ सेंकने के बाद जयसिंह ने उसे छोड़ दिया.

“मैंने पहले ही कहा था… उदास नहीं रहना है… कहा था ना…”
“हेहे… हाँ पापा… मान तो रही हूँ आपकी बात…” मनिका उनके हाथों को देखते हुए मचली.
“तो चलो अब मेरी किस्स दो और सो जाओ… सुबह जाना भी है…”

मनिका के चेहरे पर शर्मीली लाली थी. वो हौले से उठी और जयसिंह के गाल पर पप्पी कर दी.

“Good night papa…”
“हम्म…” जयसिंह ने हामी भरी.

फिर उन्होंने उसके बाजू पकड़ उसे फिर से पीठ के बल लेटा दिया. वे उसके ऊपर झुक आए थे. मनिका ने उनका इशारा समझ चेहरा एक तरफ़ कर लिया था.

‘पुच्च, पुच्च, पुच्च’

जयसिंह ने उसके गाल पर तीन-चार चुम्बन जड़ दिए.

लेकिन मनिका का दिल तो कोई और बात दहला रही थी.

इस तरह उसके ऊपर झुकते ही उसके पिता का लंड उसकी जाँघ छूने लगा था. उसकी सख़्ती का एहसास होते ही मनिका निढाल, निश्चल पड़ गई थी.

जयसिंह ने हौले से कहा,

“Good night darling…”

–​
बहुत ही खूबसूरत अपडेट था दिल्ली में उनके आखरी दिन में जय सिंह जैसे मनिका का दिल जीत लिया हो महंगी रिंग दिलवा कर वहीं कानों में सरगोशी कर अपनी मंशा बता दिया था की उस रिंग से ज्यादा कुछ और चीज दिलाने में उनका ज्यादा इंट्रेस्ट था :Bb: फिर होटल में लौट कर मनिका अपने पापा की आतचि में कपड़े रख रही थी तो उसके पापा के द्वारा उतरे हुए कपड़ो से आती मर्दाना खुशबू उसको एक अलग नशा और रोमांच दे गई फिर अपडेट के आखरी भाग में दोनो घर जाकर अपने नए बने जीएफ - बीएफ के रिश्ते को कैसे कायम रखेंगे उसके चर्चा में लगे रहे फिर रात की गुड नाईट किस 😘 के साथ इस अपडेट की समाप्ति हुई,overall मैडम जी आज का अपडेट बहुत मजेदार था👍❤️
 

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Great lazawab skill
 
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Raja jani

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बहुत बढ़िया लिखा गया अपडेट सिर्फ मनिका ही ऐसा लिख सकती हैं।
 
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बहुत ही खूबसूरत अपडेट था दिल्ली में उनके आखरी दिन में जय सिंह जैसे मनिका का दिल जीत लिया हो महंगी रिंग दिलवा कर वहीं कानों में सरगोशी कर अपनी मंशा बता दिया था की उस रिंग से ज्यादा कुछ और चीज दिलाने में उनका ज्यादा इंट्रेस्ट था, फिर होटल में लौट कर मनिका अपने पापा की आतचि में कपड़े रख रही थी तो उसके पापा के द्वारा उतरे हुए कपड़ो से आती मर्दाना खुशबू उसको एक अलग नशा और रोमांच दे गई फिर अपडेट के आखरी भाग में दोनो घर जाकर अपने नए बने जीएफ - बीएफ के रिश्ते को कैसे कायम रखेंगे उसके चर्चा में लगे रहे फिर रात की गुड नाईट किस 😘 के साथ इस अपडेट की समाप्ति हुई,overall मैडम जी आज का अपडेट बहुत मजेदार था👍

Aapne to poori summary chipka di. koi aapka update mere waale se pehle na padh le :D thanks waise...
 

odin chacha

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Aapne to poori summary chipka di. koi aapka update mere waale se pehle na padh le :D thanks waise...
कोई बात नही मैडम जी आपके नीचे ही मेरा है (कॉमेंट 😜) जो भी देखेगा पहले आपके मजेदार अपडेट ही पढ़ेगा फिर मेरा देखेगा कोई(कॉमेंट 😬)
 
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