04 - किस्मत
जैसे ही जयसिंह ने मनिका की तरफ देखा उनका कलेजा जैसे मुँह में आ गया. काउच बाथरूम के गेट के बिलकुल सामने रखा हुआ था, बाहर निकलती मनिका भी उन्हें सामने बैठा देख ठिठक कर खड़ी हो गई. उसने झट से अपने हाथ अपनी छाती के सामने फोल्ड कर लिए. वह शर्म से मरी जा रही थी. उसने अपने-आप में सिमटते हुए अपना एक पैर दूसरे पैर पर रख लिया और नज़रें नीची किए खड़ी रही.
जयसिंह के लिए यह सब मानो स्लो-मोशन में चल रहा था. मनिका को इस तरह अधनंगी देख उनकी अंतरात्मा की आवाज़ उड़न-छू: हो चुकी थी. उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था. मनिका के पहने नाम मात्र के कपड़ों में से झलकते उसके जिस्म ने जयसिंह के दिमाग़ के फ्यूज उड़ा दिए थे. ऊपर से वह उस सेक्सी पोज़ में खड़ी थी.
मनिका ने सकुचा कर अपने सूटकेस की तरफ कदम बढ़ाए. जयसिंह की तन्द्रा भी टूटी.
असल में यह सब एक ही पल में घटित हो गया था. जयसिंह को सूटकेस की तरफ़ जाती मनिका का अधोभाग नज़र आ रहा था. उसकी शॉर्ट्स में से बाहर झांकते नितम्बों को देख उनके लंड की नसें फटने को हो आई थी.
"ये मनिका तो साली मेनका निकली!" उन्होंने मन में सोचा.
मगर इस सब के बावजूद भी उनका अपनी सोच पर पूरा काबू था. मनिका के हाव-भाव देखते ही वे समझ गए थे कि चाहे जो भी कारण हो मनिका ने ये कपड़े जान-बूझकर तो नहीं पहने थे.
"जिसका मतलब है कि वह अब कपड़े बदलने की कोशिश करेगी… नहीं! ये मौका मैं हाथ से नहीं जाने दे सकता…" जयसिंह ये सोचते ही उठ खड़े हुए.
"मनिका!"
"जी पापा…?" मनिका उनके संबोधन से उचक गई और उसने सहमी सी आवाज़ में पूछा.
"तुम जरा टीवी बंद करके बिस्तर में चलो. मैं टॉयलेट जा कर आता हूँ." जयसिंह ने कहा.
"जी…" मनिका ने छोटा सा जवाब दिया.
बाथरूम में जयसिंह का दिमाग़ तेज़ी से दौड़ रहा था.
"आखिर क्यूँ मनिका ने ऐसे कपड़े पहन लिए थे?" उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, पर उनका एक काम बन गया था.
“शुक्र है, मैंने मनिका को देख चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिए वरना खेल शुरू होने से पहले ही बिगड़ जाता." उन्होंने अपने फड़फड़ाते लंड को मसल कर शांत करते हुए सोचा.
जयसिंह ने जाने-अनजाने में ही बेहद दिमागी चाल चल डाली थी. वे जानते थे कि लड़कियाँ देखने वाले की नज़र से ही उसकी नीयत भांपने में माहिर होती है. उन्होंने मनिका को एक पल देखने के बाद ही ऐसा व्यक्त किया था जैसे सब नॉर्मल हो. अगर उनके चेहरे पर उनकी असली फीलिंग्स आ गई होती तो मनिका, जो अभी सिर्फ उनके सामने असहज थी, उनसे सतर्क हो जाती.
उधर कमरे में मनिका घबराई सी खड़ी थी. उसने सोचा था कि वह जल्दी से दूसरे कपड़े लेकर चेंज कर लेगी. लेकिन जयसिंह को इस तरह बिलकुल अपने सामने पा उसकी घिग्घी बंध गई थी और अब उसके पिता बाथरूम में घुस गए थे. मनिका ने जयसिंह के कहे अनुसार टीवी ऑफ कर दिया था और जा कर बेड के पास खड़ी हो गई. सामने उसका सूटकेस खुला हुआ था पर वह समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करे?
एक बार तो उसने सोचा कि,
"जब तक पापा बाथरूम में है मैं ड्रेस बदल लेती हूँ."
पर अगले ही पल उसे एहसास हुआ की,
"अगर पापा बीच में बाहर निकल आए तो मैं नंगी पकड़ी जाऊँगी.”
मनिका सिहर उठी.
"वैसे भी पापा टॉयलेट गए हैं, उसमें कितना तो टाइम लगेगा."
मनिका का दिमाग़ आगे से आगे चलता जा रहा था,
"मैं बाहर नंगी, पापा अंदर नंगे… shit Manika, what are you thinking?”
उसने अपनी सोच को कोसते हुए विराम दिया.
नंगेपन का एहसास अब उसे विचलित करने लगा था, उधर जयसिंह भी बाहर नहीं आ रहे थे. ऊपर से उनके बाहर आने पर भी मनिका को बाथरूम तक उनके सामने ही जाना पड़ता. सो उसने तय किया कि अभी वह बेड में घुस कम्बल ओढ़ कर अपना बदन ढांप लेगी,
"और सुबह पापा से पहले उठ कर कपड़े बदल लूंगी."
उसने अपना सूटकेस बंद कर एक तरफ रखा और बिस्तर में घुस गई.
"पर ये क्या…? ये ब्लैंकेट तो डबल-बेड का है!"
मनिका बिस्तर में सिर्फ एक ही कम्बल पा चकरा गई.
उसे क्या पता था की जयसिंह ने रूम एक कपल के लिए बुक कराया था.
-
"पापा!"
आख़िरकार जब जयसिंह बाथरूम से बाहर आए तो कम्बल ओढ़े बैठी मनिका चिंतित स्वर में कहा.
"क्या हुआ मनिका? सोई नहीं तुम?" जयसिंह ने बनावटी हैरानी से पूछा.
मनिका अपने-आप को पूरी तरह कम्बल से ढंके हुए थी.
"पापा यहाँ तो सिर्फ एक ही blanket है!" मनिका की आवाज़ में घबराहट की झलक थी.
"हाँ तो डबल बेड का होगा न?" जयसिंह ने बिलकुल आश्चर्य नहीं जताया.
"जी." मनिका हौले से बोली.
"हाँ तो फिर क्या दिक्कत है?" जयसिंह ने ऐसे पूछा जैसे कोई बात ही न हो.
"जी… क… कुछ नहीं मुझे लगा… कि कम से कम दो blankets मिलते होंगे सो…"
मनिका से आगे कुछ कहते नहीं बना था.
"क्या मुझे पापा के साथ कम्बल शेयर करना पड़ेगा… Oh God!"
उसने मन में सोचा और झेंप गई.
"हाहाहा! अरे जब मैं यहाँ पहली बार आया था तब मुझे भी अजीब लगा था. मैंने सोचा कि ये एक कम्बल देना भूल गए हैं, पर फिर पता चला इन रूम्स में यही डबल-बेड वाला एक ब्लैंकेट होता है." जयसिंह बोले.
मनिका असहज सी बैठी उन्हें ताक रही थी, तो उन्होंने आगे कहा,
"हद होती है मतलब दस हज़ार रुपए एक रात का रेट और उसमे इंसान को सिर्फ एक कम्बल मिलता है…" उन्होंने हँस कर यह बात कही थी ताकि मनिका थोड़ी सहज हो सके.
"हैं?" मनिका चौंकी, "पापा इस रूम का रेंट ten thousand है?" मनिका एक पल के लिए अपनी लाज-शर्म और चिंता भूल गई थी.
"अरे भई भूल गई? फाइव स्टार है ये…" जयसिंह फिर से मुस्काए.
“Oh god papa, फिर भी, it’s so costly?" मनिका बोली.
"मनिका मैंने कहा न तुम खर्चे की चिंता मत करो, just enjoy." जयसिंह बिस्तर पर आते हुए बोले.
उन्हें बिस्तर पर आते देख मनिका ने अनायास ही कम्बल अपनी ओर खींच लिया. जयसिंह समझ गए की वह अभी सहज नहीं हुई थी, और करती भी क्या? सो उन्होंने एक बार फिर हँस कर उसका डर कम करने के उद्देश्य से कहा,
“अच्छा हुआ आज तुम मेरे साथ हो, पिछली बार तो मीटिंग से मेरे बिज़नस पार्टनर का एक रिश्तेदार साथ में टंग आया था. सोचो, उसके साथ एक कम्बल में सोना पड़ा था. ऊपर से उसने शराब पी रखी थी, सारी रात सो नहीं पाया था मैं.”
इस बार मनिका भी हँस पड़ी, “Oh shit papa… सच में? हाहाहा."
–
जयसिंह कम्बल में घुस कर पीठ के बल लेट गए. कुछ देर बाद मनिका भी थोड़ा सहज होने लगी क्योंकि अब उसका बदन ढंका हुआ था. ऊपर से, उसके पिता ने अगर उसके कपड़े नोटिस भी किए थे तो उसे इस बात का एहसास नहीं होने दिया था.
जयसिंह ने हाथ बढ़ा कर बेड-साइड से रूम की लाइट ऑफ कर दी और पास की टेबल पर रखा नाईट-लैम्प जला दिया.
"चलो मनिका थक गई होगी तुम भी…" जयसिंह मनिका की तरफ पलट कर बोले, “Good night.”
“Good Night Papa." मनिका ने नाईट-लैम्प की धीमी रौशनी में मुस्कुरा कर कहा, “Sweet dreams."
जयसिंह ने अब मनिका की तरफ करवट ली और हाथ बढ़ा कर एक पल के लिए उसके गाल पर रख सहलाते हुए बोले,
"अच्छे से सोना. Tomorrow is your big day."
मनिका जयसिंह की बात सुन मुस्कुरा दी और आँखें बंद कर ली. हालाँकि इंटर्व्यू को लेकर वो थोड़ी चिंतित थी, लेकिन उसके मन में एक उत्साह भी था. “अगले दिन क्या होगा, क्या उसका एडमिशन यहाँ हो जाएगा?" सोचते-सोचते उसकी आँख लग गई.
–
मनिका और जयसिंह को सोए हुए करीब आधा घंटा हो गया था.
जयसिंह ने धीरे से आँखें खोली, मनिका दूसरी तरफ करवट लिए सो रही थी और उसकी पीठ उनकी तरफ थी. वे उठ बैठे. उन्होंने हौले से मनिका के तन से कम्बल खींचा, मनिका ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. उनका हौंसला थोड़ा बढ़ गया, उन्होंने धीरे-धीरे कम्बल नीचे करना शुरू किया. मनिका ने कम्बल को अपनी छाती के पास हाथ से पकड़ रखा था. सो वे सिर्फ़ पीछे से ही कम्बल हटा पा रहे थे.
कुछ ही देर में उन्होंने अपनी बेटी को पीछे से पूरी तरह उघाड़ दिया.
नाईट-लैम्प की हल्की रौशनी में मनिका की दूध सी सफ़ेद, नंगी जाँघें चमक रहीं थी. वह अपने पाँव थोड़ा मोड़ कर लेटी हुई थी जिससे उसकी शॉर्ट्स थोड़ी और ऊपर हो कर उसके नितम्बों के बीच की दरार में फँस गई थी. जयसिंह तो जैसे बावले हो गए. वे कुछ देर वैसे ही उसे निहारते रहे पर फिर उनसे रहा न गया.
उन्होंने अपना काँपता हुआ हाथ बढ़ा कर उसकी शॉर्ट्स को धीरे-धीरे ऊपर करना शुरू किया. उन्होंने मनिका के गोल-मटोल कूल्हे लगभग नग्न कर दिए थे. उनके मन के पाप ने उन्हें थोड़ा और उकसाया. वे कुछ देर डर और कामिच्छा से जूझते रहे फिर उन्होंने अपनी बेटी के नंगे अधोभाग पर हौले से एक चपत लगा दी. मनिका फिर भी बेखबर सोती रही.
पर जयसिंह इस से ज्यादा हिमाकत न कर सके. वे लेट गए और अपनी बेटी की मोटी, नंगी गांड को निहारते-निहारते कब उनकी आँख लग गई उन्हें पता भी न चला.
–
किसी के बोलने की आवाजें सुन मनिका की आँख खुली, सुबह हो चुकी थी. वह उनींदी सी लेटी थी कि उसे कहीं दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई. फिर अचानक मनिका को अपने दिल्ली के एक होटल में अपने पिता के साथ होना याद आया. अगले ही पल उसे अपने पहने कपड़े भी याद आ गए और साथ ही उन्हें सुबह जल्दी उठ कर बदलने का फैसला भी.
मनिका की नींद एक ही पल में उड़ चुकी थी. उसने हाथ झटक कर रात को ओढ़े अपने कम्बल को टटोलने की कोशिश की, लेकिन कम्बल वहाँ नहीं था. उस नंगेपन के एहसास ने मनिका को झकझोर कर रख दिया. उसके बदन को जैसे लकवा मार गया था. धीरे-धीरे उसे अपने कपड़ों की अस्त-व्यस्त स्थिति का अंदाजा होता चला जा रहा था. उसकी टी-शर्ट लगभग पूरी तरह से ऊपर हो रखी थी, ग़नीमत थी कि उसकी छाती अभी भी ढंकी हुई थी. पर उसकी शॉर्ट्स पूरी तरह से ऊपर हो चुकीं थी और उसके नितम्ब और जाँघें पूरी तरह नंगे थे.
फिर उसे बेड पर बैठे उसके पिता जयसिंह की मौजूदगी का भी भान हुआ.
–
मनिका के हाथ झटकने के साथ ही जयसिंह अलर्ट हो गए थे. अभी तक मनिका का मुँह दूसरी तरफ था सो वे बेफिक्र उसका नंगा बदन ताड़ रहे थे. उन्होंने देखा की अचानक मनिका की नंगी टांगों और गांड पर दाने से उभर आए थे. असल में मनिका के जिस्म के रोंगटे खड़े हो गए थे. वे समझ गए की मनिका को अपने नंगेपन का एहसास हो चुका है. उनका लंड जो पहले ही खड़ा था यह देखने के बाद बेकाबू हो गया.
"आह तो उठ ही गई रंडी." उनका मन खिल उठा.
जयसिंह कब से उसके उठने का इंतज़ार कर रहे थे, ताकि उसकी बदहवास प्रतिक्रिया देख सकें. उन्होंने देखा कि मनिका ने हौले से अपना हाथ अपनी नंगी गांड पर ला कर अपनी शॉर्ट्स को नीचे करने की कोशिश की थी. इतना तो उनके लिए काफी था.
"उठ गई मनिका?" वे बोल पड़े.
मनिका को जैसे बिजली का झटका लगा था, वह एकदम से उठ बैठी और शर्म भरी नज़रों से एक पल अपने पिता की तरफ देखा.
जयसिंह बेड पर उसके पास ही बैठे थे. उनके एक हाथ में चाय का कप था और दूसरे में दिन का अखबार. उनकी नज़रें मिली, जयसिंह के चेहरे पर मुस्कुराहट थी. मनिका एक पल से ज्यादा उनसे नज़रें मिलाए न रख सकी.
"नींद खुल गई या अभी और सोना है?" जयसिंह ने प्यार भरे लहजे में मनिका से फिर पूछा.
"नहीं पापा…" मनिका ने धीमे से कहा.
"अच्छे से नींद आ तो गई थी न? कभी-कभी नई जगह पर नींद नहीं आया करती." जयसिंह ऐसे बात कर रहे थे जैसे कुछ हुआ ही ना हो.
"नहीं पापा आ गई थी." मनिका सकुचाते हुए बोली और एक नज़र उनकी ओर देखा. उसने पाया की उनका ध्यान तो अखबार में लगा था.
"आप अभी किस से बात कर रहे थे?" मनिका ने थोड़ी हिम्मत कर पूछा.
"अरे तुम उठी हुई थी तब?" जयसिंह ने अनजान बनते हुए कहा.
"रूम-सर्विस से चाय ऑर्डर की थी वही लेकर आया था लड़का. मुझे लगा तुम नींद में हो, नहीं तो तुम्हारे लिए भी कुछ जूस वग़ैरह ऑर्डर कर देते साथ के साथ. बस अभी-अभी ही तो गया है वो." उन्होंने आगे बताया.
मनिका का चेहरा शर्म से लाल टमाटर सा हो चुका था.
“Oh god, oh god, oh god! रूम-सर्विस वाले ने भी मुझे इस तरह नंगी पड़े देख लिया? हे भगवान! उसने क्या सोचा होगा…? पर पापा ने रूम बुक कराते हुए बताया तो होगा कि मैं उनकी बेटी हूँ… लेकिन ये बात रूम-सर्विस वाले को क्या पता होगी… oh shit! और मेरा कम्बल भी…?" मनिका ने देखा कि कम्बल उसके पैरों के पास पड़ा था. "नींद में मैंने कम्बल भी हटा दिया… शिट."
उसने एक बार फिर जयसिंह को नजरें चुरा कर देखा, उनका ध्यान अभी भी अखबार में ही लगा था.
मनिका के विचलित मन में एक पल के लिए विचार आया,
"क्या पापा ने मेरा कम्बल…? Oh god! नहीं ये मैं क्या सोच रही हूँ पापा ऐसा थोड़े ही करेंगे. मैंने ऐसी गन्दी बात सोच भी कैसे ली… छि:."
लेकिन उस विचार के पूरा होने से पहले ही मनिका ने अपने-आप को धिक्कारते हुए शर्मिंदगी से सिर झुका लिया.
अब मनिका मन ही मन इस शर्मनाक परिस्थिति से निकलने की राह ढूंढने लगी,
"जब तक पापा का ध्यान न्यूज़पेपर में लगा है, मैं जल्दी से बाथरूम में घुस सकती हूँ. पर अगर पापा ने मेरी तरफ देख लिया तो…? ये मुई शॉर्ट्स भी पूरी तरह से ऊपर हो गई है."
मनिका कुछ देर इसी उधेड़बुन में बैठी रही पर उसे और कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. सो आखिर उसने धीरे से जयसिंह को संबोधित किया.
"पापा?"
"हूँ?" जयसिंह जानबूझकर मनिका को इग्नोर कर रहे थे.
"वो मैं… मैं कह रही थी कि मैं एक बार फ़्रेश हो लेती हूँ फिर कुछ ऑर्डर कर देंगे." मनिका अटकते हुए बोली.
"ओके. जैसी आपकी इच्छा." जयसिंह ने शरारती मुस्कुराहट के साथ कहा.
"हेहे पापा." मनिका भी थोड़ा झेंप के हँस दी. जयसिंह फिर से अखबार पढ़ने में तल्लीन हो गए.
मनिका धीरे से बिस्तर से उतर कर अपने सामान की ओर बढ़ी. उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था.
"क्या पापा ने पीछे से मेरी तरफ देखा होगा?"
यह सोच उसके बदन में जैसे बुख़ार सा आ गया और वह थोड़ा लड़खड़ा उठी.
उसने अपना सूटकेस खोला और एक जोड़ी ब्रा-पैंटी व एक जीन्स और टॉप निकाला. उसने कनखियों से एक नज़र फिर जयसिंह की तरफ देखा, वे अभी भी अखबार ही पढ़ रहे थे. आशंकित सी मनिका तेज़ क़दमों से चलती हुई बाथरूम में जा घुसी.
–
मनिका के बाथरूम में घुसने तक जयसिंह अपनी पूरी इच्छाशक्ति से अखबार में नज़र गड़ाए बैठे रहे थे. लेकिन बाथरूम का गेट बंद होते ही उन्होंने अखबार एक ओर फेंका और अपने कसमसाते लंड को दबा कर काबू में लाने की कोशिश करने लगे.
"हे भगवान! जाने कब शांति मिलेगी इस बेचारे औजार को…" जयसिंह ने तड़प कर आह भरी. "आज साली रांड का इंटर्व्यू भी है… देखो आज क्या रूप धर कर बाहर निकलेगी… ओह! इंटर्व्यू से याद आया… साली कुतिया के कॉलेज में फ़ोन कर अपॉइंटमेंट भी तो लेनी है."
सो जयसिंह ने पास पड़े अपने मोबाइल से मनिका के कॉलेज का नंबर डायल किया. लेकिन उन्हें यह कॉल उनकी ज़िंदगी बदल देने वाला था.
"Hello?" जयसिंह ने फोन उठाने की आवाज़ सुन कहा “Amity University?"
“Yes sir, good morning.” सामने से आवाज़ आई.
“Yes, I am calling to confirm an appointment for my daughter’s interview for MBA entrance." जयसिंह ने कहा.
“Okay sir, may I know her name?"
“Yes… ah… Manika Singh”
“Thank you sir, when would your daughter be able to come for the interview?"
जयसिंह कुछ समझे नहीं, इंटर्व्यू तो आज ही था न?
“When..? Sorry, I did not understand.” उन्होंने पूछा.
“Well sir, MBA के इंटर्व्यू अगले 15 दिन तक चलेंगे, so your daughter can take an appointment as per her convenience."
"ओह." जयसिंह का मन नाच उठा था.
उन्होंने मन ही मन अपनी किस्मत को धन्यवाद दिया और बोले,
“हमें दिल्ली आने में थोड़ा टाइम लगेगा, तो आप हमें लास्ट दिन स्लॉट दे दीजिए. वैसे भी मेरी डॉटर को अभी थोड़ा और प्रेपरेशन करना है… हेहे."
“Okay sir, no problem, I will book your slot for the last day.”
अब जयसिंह को दिल्ली में रुके रहने के लिए कोई बहाना बनाने की ज़रूरत नहीं थी.
–
उधर बाथरूम में मनिका के मन में अलग ही उथल-पुथल मची हुई थी.
"ये कैसा अनर्थ हो गया. सोचा था सवेरे जल्दी उठ जाऊँगी पर आँख ही नहीं खुली, ऊपर से पापा और उठे हुए थे… वे तो वैसे भी रोज जल्दी ही उठ जाते हैं… शिट मैं ये जानते हुए भी पता नहीं कैसे भूल गई? उन्होंने मुझे सोते हुए देखा तो होगा ही, हाय राम…"
यह सोचते हुए मनिका की कंपकंपी छूट गई. उसने आज शॉवर ऑन नहीं किया था और बाथटब में बैठ कर नहा रही थी.
"और तो और वह रूम-सर्विस वाला वेटर भी मुझे इस तरह देख गया… हाय… और पापा मेरे पास बैठे थे… क्या सोचा होगा उसने हमारे बारे में…?"
मनिका इस से आगे नहीं सोच पाई और अपनी आँखें भींच ली. उसे बहुत बुरा फील हो रहा था.
अब वह धीरे-धीरे अपने बदन पर साबुन लगा नहाने लगी. परंतु कुछ क्षणों में ही उसके विचारों की धार एक बार फिर से बहने लगी.
"पर पापा का बर्ताव… उन्होंने मुझे इस तरह देख कर भी… वो तो बिलकुल नॉर्मल बात कर रहे थे… पर बेचारे कहते भी क्या? मैं उनकी बेटी हूँ, मुझे ऐसे देख कर शायद उन्हें भी शर्म आ रही हो. हाँ, तभी तो पापा अखबार में नज़र गड़ाए बैठे थे… और जब मैंने उनसे बात कर रही थी तब भी मेरी तरफ़ नहीं देख रहे थे… हाय… papa is so nice.”
मनिका ने मन ही मन जयसिंह की सराहना करते हुए सोचा.
"ये तो पापा हैं जो मुझे कुछ नहीं कहते… अगर मम्मी को पता चल जाए इस बात का तो… तूफ़ान खड़ा कर दें वो तो… thank god it’s only me and papa… पर अब से अपने रहने-पहनने का पूरा ख़याल रखूँगी."
जब मनिका नहा कर निकली तो जयसिंह को बेड पर ही बैठे पाया. इस बार मनिका पूरे कपड़ों में थी और उसने बाथरूम में से अपने अंत:वस्त्र भी ले लिए थे. उसे देख जयसिंह मुस्कुराए और बेड से उठते हुए बोले,
"नहा ली मनिका?"
"जी पापा." मनिका ने हौले से मुस्का कर कहा.
पूरे कपड़े पहने होने की वजह से उसका आत्मविश्वास लौटने लगा था.
"तो फिर अब मुझे यह बताओ कि तुम्हारे call letter में क्या लिखा हुआ था?" जयसिंह ने पूछा.
मनिका कुछ समझी नहीं.
"क्यूँ पापा? उसमें तो बस यही लिखा था कि MBA के इंटर्व्यू 12 जुलाई से…”
मनिका बोल ही रही थी कि जयसिंह ने उसकी बात बीच में ही काट दी,
"मतलब उसमें लिखा था 12 जुलाई से शुरू होने हैं, ना कि 17 जुलाई को है?
“ज… जी पापा." मनिका को कुछ समझ नहीं आ रहा था.
"हम्म… अभी मैंने तुम्हारे कॉलेज में बात करी थी. उन्होंने कहा है कि इंटर्व्यू पन्द्रह दिन चलेंगे और पता है..? आपका इंटर्व्यू लास्ट डे को है." जयसिंह ने मनिका से नज़र मिलाई.
"Oh shit." मनिका ने साँस भरी.
"हाँ वही." जयसिंह मुस्कुरा कर बोले.
"पापा! आपको मजाक सूझ रहा है! अब हमें पंद्रह दिन बाद फिर से आना पड़ेगा." मनिका सीरियस होते हुए बोली. "हमने फ़ालतू इतना खर्चा भी कर दिया है… रुकिए मैं कॉलेज फ़ोन करके पूछती हूँ कि क्या वो मेरा इंटर्व्यू पहले ले सकते हैं.”
"मैं वो भी पूछ चुका हूँ, उन्होंने कहा कि, नहीं हो पाएगा क्यूँकि दूसरे लोगों ने स्लॉट बुक कर लिए हैं.” जयसिंह ने कहा.
"ओह." मनिका का मूड ऑफ़ हो गया, "तो अब हमें वापस ही जाना पड़ेगा मतलब."
"हाँ वो भी कर सकते हैं." जयसिंह ने उसे स्माइल दी, "या फिर…"
और इतना कह कर बात अधूरी छोड़ दी.
"हैं? क्या बोल रहे हो पापा आप…? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा." जयसिंह की गोल-गोल बातें मनिका का असमंजस बढ़ाती जा रहीं थी.
"अरे भई! या फिर हम तुम्हारा इंटर्व्यू हो जाने तक यहीं रुक सकते हैं." जयसिंह ने कहा.
मनिका जयसिंह का सुझाव सुन आश्चर्यचकित रह गई. उसे विश्वास नहीं हुआ कि पापा उसे अगले पंद्रह दिन के लिए वहीं, उस आलीशान होटल में रुके रहने को कह रहे थे. पिछली रात यहाँ का रूम रेंट सुन कर ही उसके तो होश उड़ गए थे.
उसने अपनी दुविधा जयसिंह को बताई.
"अरे भई कितनी बार समझाना पड़ेगा कि पैसे की चिंता न किया करो तुम. हाथ का मैल है पैसा…" जयसिंह डायलॉग मार हँस दिए.
"ओहो पापा… फिर भी…" मनिका ने असमंजस से कहा.
वैसे मन तो उसका भी रुकने का था. फिर जब जयसिंह ने उस से कहा कि इतने दिन वे दिल्ली में घूम-फिर लेंगे तो मनिका की रही-सही आनाकानी भी जाती रही.
"लेकिन पापा! घर पे तो हम दो दिन का ही बोल कर आए हैं ना?" मनिका ने फिर थोड़ा आशंकित हो कर पूछा, "और आपका ऑफिस भी तो है?"
"ओह हाँ! मैं तो भूल ही गया था. तुम अपनी मम्मी से ना कह देना कहीं कि हम यहाँ घूमने के लिए रुक रहे हैं… मरवा दोगी मुझे, वैसे ही वो मुझ पर तुम्हें बिगाड़ने का इलज़ाम लगाती रहती है." जयसिंह ने मनिका को एक शरारत भरी स्माइल दी.
"ओह पापा हाँ ये तो मैंने सोचा ही नहीं था." मनिका ने माथे पर हाथ रख कहा. फिर उसने भी शरारती लहजे में जयसिंह को छेड़ते हुए कहा, "इसका मतलब डरते हो मम्मी से आप, है ना? हाहाहा…"
"हाहा." जयसिंह भी हँस दिए, "लेकिन ये मत भूलो की यह सब मैं तुम्हारे लिए कर रहा हूँ." वे बोले.
"ओह पापा आप कितने अच्छे हो." मनिका ने मुस्कुरा उठी, "पर आपका ऑफिस?"
"अरे ऑफिस का मालिक तो मैं ही हूँ. फ़ोन कर दूंगा माथुर को, वो सम्भाल लेगा सब."
"पापा?" मनिका उनके करीब आते हुए बोली.
"अब क्या?" जयसिंह ने बनते हुए पूछा.
“Papa, I love you so much. You are really the best…” मनिका ने नेहिल नज़रों से उन्हें देख कर कहा.
जयसिंह एक बार फिर मनिका के गाल पर हाथ रख सहलाने लगे और उसे अपने थोड़ा और करीब ले आए. मनिका उन्हें देख कर मंद-मंद मुस्का रही थी, जयसिंह ने आँखों में चमक ला कर कहा,
"वो तो मैं हूँ ही… हाहाहा." और ठहाका लगा हँस दिए.
“Papa! You are so naughty…" मनिका भी खिलखिला कर हँस दी.
जयसिंह ने अब उसे बाजू में लेकर अपने से सटा लिया और बोले,
"तो फिर हम कहाँ घूमने चलें बताओ?"
–
जयसिंह के पास अब पंद्रह दिन की मोहलत थी.
अभी तक उनकी किस्मत ने उनका काफी साथ दिया था. जाने-अनजाने में मनिका से हुई गलतियाँ का फायदा उठाने में वे सफल रहे थे. पिछली रात मनिका को अर्धनग्न देखने के बाद भी उन्होंने जो संयम बरता था उसकी बदौलत वे मनिका का भरोसा जीतने में कामयाब रहे थे. उनकी प्रतिक्रिया देख मनिका को भी लगा के उसके पापा बहुत खुले विचारों के हैं. इसकी बदौलत उनकी सोची-समझी साज़िश अब सफल होने लगी थी.
मनिका बिना किसी आनाकानी, अपनी माँ से उनके वहाँ रुकने की बात को छिपाने के लिए मान गई थी.
लेकिन जयसिंह जानते थे इतनी सी सफलता पाते ही हवा में उड़ना ठीक नहीं, अभी तक जो हुआ मनिका की वजह से हुआ था, उनकी अग्निपरीक्षा तो अभी बाक़ी थी.
–