21 - चीज़
अगली सुबह मनिका की आँख एक बार फिर जयसिंह से पहले खुल गई.
वैसे भी रात की घटना के बाद उसे ज़्यादा गहरी नींद नहीं आई थी. उठते ही उसकी नज़र अपने पिता की तरफ़ गई. जयसिंह की करवट अब दूसरी तरफ़ थी, मगर उनके सुडौल कूल्हों की बनावट बरमुडे में से झलक रही थी. मनिका की धड़कनें बढ़ने लगी.
“पापा की बॉडी… हाय उनके बम्स कितने बड़े हैं… और उनका डिक तो…”
मनिका ने किसी तरह अपने-आप को सम्भाला और उठ कर बाथरूम में गई. टॉयलेट सीट पर बैठ कर जब वो पेशाब करने लगी तो उसे अपनी योनि में एक तरंग उठती हुई महसूस हुई. उसका रोम-रोम सिहर उठा था.
“पापा का हाथ मेरी पुसी पर था… हाय! कैसे ज़ोर से दब गया था जब मैं पीछे हटी थी… ये मैं फिर से उल्टा-सीधा सोचने लगी हूँ…”
कुछ देर बाद मनिका फ़्रेश हो कर बाहर निकल आई. जयसिंह अभी भी सो रहे थे.
कुछ देर खड़े-खड़े उन्हें देखने के बाद, जैसे किसी मंत्र की वशीभूत सी वो दबे पाँव बेड की दूसरी ओर गई.
उसके पिता का बरमूडा पिछली रात की भाँति ही तना हुआ था. जयसिंह का लंड सुबह की मस्ती में था. मनिका ने एक पल उसे निहारा और फिर किसी चोरनी की तरह जल्दी से पलट कर काउच पर जा बैठी. लेकिन वहाँ बैठे-बैठे भी उसे जयसिंह का पूरा नजारा मिल रहा था.
“मेरा तो दिमाग़ ख़राब हो गया है… ये मैं क्या सोच रही हूँ… पापा कितने अच्छे हैं… मुझे कितना प्यार से रखते हैं… और एक मैं हूँ कि… और वो गंदा सपना… पक्का उन्हें तो मैं बिगड़ैल ही लगती होऊँगी…”
मनिका ने मुँह फेर कर अपने विचारों के क्रम को सम्भालना चाहा. लेकिन लाख कोशिश के बाद भी उसका चेहरा थोड़ी-थोड़ी देर में अपने पिता की देह की ओर घूम जाता था. आज मानो एक-एक पल मुश्किल से कट रहा था.
उधर रोज़ जल्दी उठ जाने वाले जयसिंह थे की उठने का नाम नहीं ले रहे थे.
“और मैंने पापा को ऐसे भी बोल दिया कि मेरी फ़्रेंड्स उन्हें मेरा बॉयफ़्रेंड कहती हैं… ऐसी बात अपने पापा को बोलता है कोई भला? पर पापा भी तो अब मुझे गर्लफ़्रेंड के देते हैं… और स्वीटहार्ट और डार्लिंग भी बुलाते हैं कभी-कभी… पर वो तो प्यार से बुलाते हैं… मेरी ही मत मारी गई है…”
आख़िर मनिका ने मन ही मन एक फ़ैसला लिया.
“अब से पापा के साथ बिलकुल अच्छे से रहूँगी… decent… बन के…”
उसका ऐसा सोचना हुआ और जयसिंह करवट ले सीधे लेटे. उनके लंड का तम्बू अब सीधा खड़ा था.
मनिका के कान गरम हो गए.
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उस रोज़ जब जयसिंह की आँख खुली तो पाया कि कमरे में हलचल है. वेटर नाश्ता लगा रहा था.
उन्होंने कमरे में नज़र दौड़ाई तो पाया मनिका नहाई-धोई काउच पर बैठी है. उस से भी अचरज की बात थी कि उसने आज एक सलवार-सूट पहन रखा था.
“पापा! उठ गए आप… कितना आलस करते हो…” मनिका ने चहक कर कहा था.
“हम्म… क्या..?” जयसिंह आँखें मलते हुए उठ बैठे.
“पापा, आज मेरे एडमिशन का प्रॉसेस पूरा करना है… और आप इतना देर से उठे हो.”
“हाँ भई… एक दिन जल्दी क्या उठ गई तुम…” जयसिंह होश सम्भालते हुए बोले.
वेटर भी उनकी ठिठोली पर मंद-मंद मुस्कुरा रहा था.
“हाहाहा… पापा मज़ाक़ कर रही हूँ…” मनिका वेटर की तरफ़ देख खिलखिलाई, “और मैं कल भी जल्दी उठी थी…”
“हाँ-हाँ मान लिया… मैं ही लेटलतीफ हूँ…” जयसिंह नाटकीय अन्दाज़ में बोल कर बेड से उठे.
मनिका और वो वेटर दोनों ही उनकी तरफ़ देख रहे थे.
वेटर के चेहरे पर अचरज था और मनिका के चेहरे पर ख़ौफ़ भारी लालिमा.
जयसिंह अपने लंड का तम्बू बिना समेटे ही उठ खड़े हुए थे, और जब उनको इसका एहसास हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
कमरे में खामोशी छा गई.
लेकिन जयसिंह ने यूँ जताया जैसे कुछ हुआ ही न हो, और बाथरूम की ओर बढ़ चले.
“हो गया मैम…” वेटर ने हौले से कहा.
“हैं..?” मनिका की तंद्रा टूटी.
“जी वो ब्रेकफ़ास्ट लग गया है…” वेटर जाने को हुआ.
मनिका ने आदत अनुसार पास रखा जयसिंह का बटुआ उठाया और उसे पाँच सौ रुपए थमा दिए.
“ये आपके फादर हैं?” बैरे ने थोड़ा संयम से पूछा.
“ज… जी…” मनिका ने यंत्रवत कहा.
“Thank you ma’am…”
वेटर के जाने के बाद मनिका धम्म से सोफ़े पर बैठ गई.
“हे राम! उस वेटर के सामने पापा… उनका डिक कैसा लग रहा था… और उस वेटर ने क्या सोचा होगा… कि मैं अपने पापा के साथ ऐसे सोती हूँ… shit!”
उसने आज सुबह जो समझदारी और सुश्रिता से रहने का प्रण लिया था, उसकी धज्जियाँ इस बार उसके पिता उड़ा गए थे.
उसने तो इसी के चलते आज एक सलवार-सूट पहना था और पापा के लिए नाश्ता भी मँगवाया था. लेकिन अब उसका दिमाग़ फिर उसी दिशा में चल पड़ा.
“पापा को पता नहीं चला कि उनका डिक ऐसे… इरेक्ट… है?”
पर फिर उसे ध्यान आया कि जयसिंह भी जल्दी से बाथरूम में चले गए थे. मतलब उन्हें भी इस बात का पता तो चल गया था.
“पर ऑनलाइन तो जो… डिक… मैंने देखे थे… वो नॉर्मल भी थे… I mean… सब तो इरेक्ट नहीं थे… लेकिन पापा का तो हमेशा… ऐसे ही रहता है… हे भगवान! मैं फिर वही सब सोचने लगी… पर वो वेटर तो… अपने साथ वालों को बता देगा… हाय!”
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बाथरूम में जयसिंह भी थोड़ा सोच में पड़े थे.
“अनर्थ तो नहीं हो गया… रांड आज पहले कैसे उठ गई… रात को इसकी चूत दबाते हुए कब नींद आ गई पता ही नहीं चला… सुबह उठी होगी तब इसने अपनी हालत देखी तो होगी ही..? और आज सलवार-सूट पहने कैसे बैठी है ये… और उस वेटर के सामने पापा-पापा कर रही थी साली, इधर मैं खड़ा लंड लिए था… चलो वो तो कोई बात नहीं… होटल वालों को अपने पैसे से मतलब है…”
क्यूँकि अंडरवियर तो उनके पास था नहीं सो जयसिंह जब फ़्रेश होकर बाहर आए तो उन्होंने लंड को बरमुडे के इलास्टिक में दबा लिया था.
मनिका सोफ़े पर थोड़ा सधी हुई बैठी थी. उनकी तरफ़ देख उसने हल्की सी मुस्कान दी.
“पापा, ब्रेकफ़ास्ट..?”
“हाँ भई. क्या कुछ है देखें, आज तो जल्दी उठ कर मेम-साहिबा ने ऑर्डर किया है.” जयसिंह ने माहौल थोड़ा सम्भालने के उद्देश्य से मज़ाक़ किया.
“हेहे पापा… आज मैंने पास्ता और जूस, और सैंडविच मंगाए हैं.”
मनिका ने सूट की चुन्नी अपनी छाती के आगे सेट करते हुए कहा.
दोनों बैठ कर नाश्ता करने लगे. जयसिंह ने रोज़ की तरह अख़बार खोल लिया था.
उधर मनिका की नज़र ना चाहते हुए भी उनकी टांगों के बीच जा ठहरी.
जयसिंह ज़रा टांगें खोल कर बैठे थे, जिससे बरमूडा उनके अधोभाग पर कस गया था. लंड को ऊपर कर दबाने की वजह से मनिका को लंड की एक मूसल-नुमा आकृति नज़र आ रही थी. उसकी चौड़ाई देख पास्ता उसके हलक में जैसे अटक सा गया था. लंड की वह आकृति जयसिंह कि टी-शर्ट के नीचे जाकर विलीन हो रही थी.
“Oh god! Is that papa’s cock?”
फिर उसका ध्यान बरमुडे में कसमसा कर क़ैद जयसिंह के टट्टों पर गया.
“And his balls..!”
अनायास ही उसकी आँखों के सामने वो पॉर्न साइट का नजारा तैर गया जिसमें वो लड़की उस मर्द का लंड पकड़ कर उसके टट्टे चाट रही थी.
मनिका ने झटपट जयसिंह की तरफ़ देखा, कि कहीं उन्होंने उसकी नज़र भाँप ना ली हो. लेकिन वे तो अख़बार पढ़ने में तल्लीन थे.
“छी: मैं क्या सोचती जा रही हूँ कल से…” उसने अपने-आप को धिक्कारा.
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नाश्ता कर जयसिंह नहाने घुस गए.
मनिका ने वेटर को बुला कर टेबल साफ़ करवा दी और काउच पर जा बैठी.
कुछ देर बाद जयसिंह तैयार हो कर निकल आए. जब उन्होंने मनिका से कहा कि उसके कॉलेज का काम पूरा कर आते हैं, तो मनिका बोली,
“पापा, आप चले जाओ ना… मेरा वैसे भी काम नहीं है वहाँ कुछ…”
“अरे, पर तुम क्या करोगी अकेले…”
“कुछ नहीं पापा, थोड़ा रेस्ट करने का मन है आज.”
“अच्छा जी. एक दिन जल्दी क्या उठी कि नाश्ता करते ही वापस सोने की तैयारी.” जयसिंह ने मज़ाक़ में उलाहना दिया.
“हेहे पापा… आप चले जाओ ना… please?” मनिका ने झेंपते हुए कहा.
“ठीक है, ठीक है…”
जयसिंह को अंदेशा हो चला था कि मनिका का मन अशांत है. अपने प्लान को सफल बनाने के लिए वे उसे इसी तरह असमंजस में रखना चाहते थे. वे जानते थे कि जितना वह अकेले में सोचेगी और परेशान होगी, उतना ही उसे बहलाना उनके लिए आसान होता जाएगा. सो वे उसे वहीं काउच पर बैठा छोड़ उसकी कॉलेज की फ़ीस जमा कराने निकल पड़े.
वैसे अपनी अनुपस्थिति में भी मनिका को सताने का एक प्लान उनके मन में बन चुका था.
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जयसिंह के चले जाने के कुछ देर बाद मनिका अपना अशांत मन लिया काउच से उठी.
अपनी चुन्नी एक तरफ़ रख वो बेड पर जा लेटी और सोचने लगी,
“अब बस… मैंने जबसे वो गंदी वेबसाइट देखी है तभी से मेरा दिमाग़ ख़राब होने लगा है… अपने पापा के बारे में गंदा-गंदा सोच रही हूँ. पापा और मेरे बीच एक स्पेशल रिश्ता बन गया है… लेकिन मैं पता नहीं क्या-क्या सोचे जा रही हूँ… सुबह जो हुआ वो पापा से अनजाने में हुआ था… वरना रोज़ तो ऐसा नहीं होता… बस क़िस्मत ही ख़राब चल रही है, एक गलती सुधारने जाती हूँ उतने में कुछ और अनर्थ हो जाता है…”
उसका ऐसा सोचना था कि ‘टिंग!’ उसके फ़ोन की मेसेज टोन बजी.
उसने देखा पापा का मेसेज आया था. न जाने क्यूँ वो थोड़ा असहज हो गई.
फिर जब उसने मेसेज पढ़ा तो उसका दिल और तेज धड़क उठा.
Papa: Kya kar rahi hai meri jaan?
मनिका ने जयसिंह के सम्बोधन पर बहकते अपने मन को क़ाबू करते हुए लिखा.
Manika: Kuch nahin papa, bas rest hi kar rahi thi. Aap pahunch gaye?
उसने देखा कि उसका जवाब जाते ही जयसिंह टाइप करने लगे थे.
Papa: Haan, pahunch to gaya hu lekin bheed kaafi hai… aur fees waali line bhi kaafi lambi hai.
Manika: Oh… mujhe aa jana chahiye tha aapke saath… main karwa aati fees deposit.
Papa: Arey koi baat nahin… tum chinta matt karo. Aaj tumhara admission pakka karwa kar hi aaunga.
Manika: Ji papa.
Papa: Waise agar tum saath aa jaati to mera mann thoda laga rehta. Ab yahan baith kar koi aur girlfriend dekhni padegi.
मनिका अनायास ही मुस्का उठी थी.
Manika: Dekh lo to… main kahan kuch keh rahi hu.
Papa: Nahin bhyi… mere liye meri girlfriend hi achhi hai.
Manika: Hehe papa…
इसके बाद कुछ देर तक जयसिंह का कोई जवाब नहीं आया.
पापा शायद फ़ीस वाला काम करने लग गए हों यह सोचकर मनिका ने फ़ोन एक तरफ़ रखा ही था कि एक के बाद एक उसके फ़ोन में मेसेज आने लगे, ‘टिंग, टिंग, टिंग!’
मनिका ने फ़ोन अनलॉक कर देखा तो पाया कि पापा उसकी तस्वीरें भेज रहे थे, जो उन्होंने उसके नए कपड़ों में लीं थी.
एक-एक कर तस्वीरें डाउनलोड होने लगी और मनिका की सरगर्मी बढ़ने लगी.
शुरू की तस्वीरों में तो वह जींस और टॉप पहने थी लेकिन फिर जब उसकी शॉर्ट्स और स्कर्ट वाली फ़ोटो आईं तो मनिका के गाल गरम होने लगे. पिछली रात की घटना के बाद अब उसे ये सभी पिक्स बहुत ज़्यादा अभद्र लग रही थी.
“Oh God! These pics are so revealing… मैंने उस वक्त क्यूँ नहीं सोचा ये..?”
लेकिन अभी तो जयसिंह का खेल बाक़ी था. उन्होंने उसकी पार्टी ड्रेस वाली फ़ोटो भेजनी शुरू की.
मनिका को याद आया कि उस दिन जब वो इन फ़ोटोज़ को डिलीट कर रही थी उसी बीच पापा के ऑफ़िस से कॉल आ गई थी. मतलब ये सब पिक्स पापा के पास ही पड़ी थी.
“हाय!” उसके मुँह से बरबस ही निकला.
फिर वो तस्वीरें आईं जिनमें वह उनकी गोद में बैठी थी.
“पर ये तो मैंने डिलीट करी थी ना…?” उसके मन में खटका, “शायद सारी नहीं की…”
अपना उभरा वक्ष, गोरी जाँघें और उसके चेहरे के साथ लगा जयसिंह का मुस्कुराता चेहरा देख वो आतंकित हो उठी.
तभी जयसिंह ने उसकी लेग्गिंग्स वाली तस्वीरें भेजनी शुरू कर दी. पहली तस्वीर देखते ही मनिका के होश उड़ गए.
कैमरे से तस्वीर लेने पर वैसे भी ज़्यादा विस्तृत छवि उभर कर आती है. उन तस्वीरों में उसकी वो महीन स्किन-कलर की लेग्गिंग मानो नज़र ही नहीं आ रही थी. ऊपर से जयसिंह ने उसके बाथरूम से बाहर आते ही फ़ोटो लेना शुरू कर दिया था. हर तस्वीर में वह उनके क़रीब आती जा रही थी, और ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उसने नीचे सिर्फ़ पैंटी पहन रखी है.
“हाऽऽऽऽ! पापा ने ऐसी पिक्स ली थी उस दिन..!” मनिका को बुख़ार आने लगा था.
आख़िरी की कुछ तस्वीरों में, जिनमें वह अपने पिता के बिलकुल सामने खड़ी इठला रही थी, उसके अधोभाग का एक-एक उभार साफ़ नज़र आ रहा था. उस छोटी सी पैंटी में उभर रहे अपने योनि के कसाव को देख मनिका के माथे पर पसीने की बूँदें छलक आईं थी.
Papa: Ye lo bhyi tumhari pics…
इस बार मेसेज टोन बजते ही मनिका उचक पड़ी थी. कांपते हाथों से उसने लिखा,
Manika: Thank you papa…
Papa: Pasand aayi pics tumhen?
इधर मनिका का दिल दहल रहा था, फिर भी उसने लिखा,
Manika: Ji papa…
Papa: Chalo achcha hai, varna tum hamesha kehti rehti ho ki aapko photo lena nahin aata.
ये बात मनिका ने जयसिंह से कई बार कही थी जब वे घूमने जाते थे और एक दूसरे की फ़ोटो खींचा करते थे. लेकिन अब उस से कुछ कहते न बना.
Manika: Hehe papa… kaam khatam ho gaya?
Papa: Abhi kahan… aadha ghanta aur lag jayega yahan se nikalne mein…
Manika: Oh… okay.
Papa: Tab tak tum rest karlo, fir kahin bahar lunch pe chalte hain, what say?
Manika: Ji papa.
Papa: Bye sweetheart, see you soon
Manika: Bye papa.
मनिका ने फिर से वो तस्वीरें देखनी शुरू की. हर फ़ोटो के साथ उसके बदन का ताव बढ़ता जा रहा था.
“पापा के फ़ोन में ये सारी पिक्स हैं… हाय राम! पापा पक्का मुझे बिगड़ैल समझते होंगे ये पिक्स देखने के बाद तो… पर वो कुछ कहते क्यूँ नहीं..? अभी बाहर कहीं जाने का बोल रहे थे… उनको फ़र्क़ नहीं पड़ता क्या?”
उसके अंतर्मन ने उसे कचोटा,
“क्या उन्हें ऐसी पिक्स देख कर… वैसा नहीं लगता होगा?”
मनिका का हाथ उस फ़ोटो पर रुका हुआ था जिसमें वो उस छोटी सी पार्टी ड्रेस में जयसिंह की गोद में बैठी थी. उसकी जाँघें लगभग पूरी नंगी थी, ऐसा लग रहा था मानो उसने नीचे कुछ पहना ही ना हो. उसे ऐसा लगा कि उसने ये तस्वीर पहले भी देखी है.
उसने कांपती अंगुलियों से फिर एक बार ब्राउज़र खोल सर्च किया “Big Black Cock Lover”. एक दो क्लिक करते ही उसे वो साइट मिल गई, और कुछ ही पल बाद वो फ़ोटो भी. ठीक वैसा ही दृश्य था, उसकी हमउम्र वो गोरी लड़की उस काले आदमी की गोद में बैठी थी. उसने भी एक काली टी-शर्ट पहनी थी, जिसके नीचे गोरी जाँघें उघड़ी पड़ी थी, बस मनिका और जयसिंह वाली तस्वीर के मुक़ाबले उसका वक्ष थोड़ा ज़्यादा नज़र आ रहा था.
मनिका ने झटपट वो साइट बंद कर दी. आतंकित, आशंकित मन से उसने फ़ोन एक तरफ़ रखा और पास रखे दूसरे तकिए को बाँहों में भींच आँखें मींच ली.
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कमरे में खटर-पटर सुन मनिका की तंद्रा टूटी.
जयसिंह आ चुके थे. मनिका को याद आया कि उनके पास भी कमरे में घुसने के लिए की-कार्ड था. वो थोड़ा घबरा कर उठ बैठी.
अपने पिता को देखते ही उसका हाथ अपने वक्ष की ओर गया था. उसकी चुन्नी तो काउच पर रखी थी.
“अरे उठ गई…” जयसिंह ने मुस्कुरा कर कहा और उसकी ओर आने लगे.
“ज… जी पापा… आ गए आप?” मनिका से और कुछ कहते न बना.
“हाँ भई आ गया हूँ, तभी तो दिखाई पड़ रहा हूँ सामने…” जयसिंह ने कुछ दिन पहले उसके किए मज़ाक़ की तरह ही चुटकी ली.
“हेहे पापा…” मनिका का ध्यान तो उसके पहने खुले गले के सूट में अटका था. चुन्नी भी मुई दूर पड़ी थी.
जयसिंह उसके पास आ बैठे. उनके हाथ में एक काग़ज़ था, जिस उन्होंने उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा,
“लो भई… अब आप पक्की दिल्ली की रहनेवाली हो गई हैं.”
अपने चिंतित मन के बावजूद मनिका का ध्यान एक पल भटक गया. उसने अपने एडमिशन वाली स्लिप को हाथ में लेते हुए ख़ुशी से कहा,
“Oh papa! Really! Thank you so much!”
“Anything for you my darling.” जयसिंह का फिर वही सम्बोधन था, फिर उन्होंने पूछा, “लंच करने चलें फिर?”
“जी पापा…” मनिका ने थोड़ा धीमे से सिर हिलाते हुए कहा.
उस दिन जयसिंह उसे एक हेरिटेज रेस्टोरेंट में खाना खिलाने लेकर गए. वहाँ बिलकुल राजसी ठाठ-बाठ से उनका स्वागत सत्कार किया गया. मनिका भी अपने मन की शंकाओं से मुक्त हो एन्जॉय करने लगी. खाना खा लेने के बाद उसने और जयसिंह ने वहाँ रखे पुराने जमाने के फ़र्निचर और साजो-सामान के साथ कुछ तस्वीरें भी ली. उस दौरान एक पुराने तख़्त पर बैठ जयसिंह ने उसे अपनी गोद में आने का इशारा किया था. मनिका एक पल तो ठिठक गई थी, लेकिन फिर उनकी गोद में जा बैठी. उसने सोचा कहीं उसके मना कर देने पर पापा को अजीब ना लग जाए.
खाना-पीना कर वे दोनों वापस होटल लौट आए.
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लेकिन कमरे में आते ही एक बार फिर मनिका थोड़ी आशंकित हो गई.
“सो मनिका जी… अब तो पैकिंग वग़ैरह कर ली जाए? सब काम हो गए दिल्ली के… कि नहीं?” जयसिंह काउच पर बैठते हुए बोले.
“हेहे पापा… हाँ हो तो गए…” उनका सहज बर्ताव देख मनिका भी थोड़ी सहज हुई.
“या और कुछ दिन मस्ती करनी है..?” जयसिंह ने मुस्कुरा कर कहा.
“हैं… अब क्या कहेंगे घर पे..?” मनिका ने अचरज से पूछा.
“अरे उसकी टेन्शन तुम मत लो… रुकना है तो बताओ…”
मनिका कुछ पल चुप रहने के बाद बोली,
“नहीं पापा. अब चलते हैं घर. वैसे भी मुझे कुछ दिन में वापस आना ही होगा.”
“जैसी तुम्हारी मर्ज़ी…” जयसिंह ने नाटकीय अन्दाज़ में सिर झुकाते हुए कहा.
“हाहाहा… पापा कितने नाटक आते हैं आपको.” मनिका खिलखिला उठी.
उसके बाद जयसिंह ने ट्रेन में सीट करवाने के लिए अपने ऑफ़िस में फ़ोन किया. ट्रेन का रिज़र्वेशन एक दिन बाद का मिला.
“जहाँ इतने दिन रुक गए वहाँ एक दिन और सही… क्यूँ?” जयसिंह ने फिर मज़ाक़िया अन्दाज़ में मनिका से कहा था.
मनिका ने भी मुस्कुरा कर हामी भर दी थी.
अब जयसिंह काउच पर जा बैठे और टीवी चला लिया. मनिका भी बिस्तर में बैठी अपने फ़ोन में देख रही थी. हालाँकि उसका ध्यान अपने पिता की ओर ही था.
“पापा कितने आराम से बात कर रहे हैं… और मैं… कितना फ़ालतू दिमाग़ चला रही हूँ दो दिन से… पर वो पिक्स वाली बात… पापा ने तो कुछ नहीं कहा पर… सॉरी बोलूँ क्या उनको?”
इसी ऊहापोह में वो दिन भी बीत गया.
उस शाम मनिका ने उठ कर थोड़ी बहुत पैकिंग कर ली थी. बाक़ी उनके पहनने के कपड़े इत्यादि उसने अगले दिन पैक करने का सोच छोड़ दिए थे.
रात को डिनर के बाद जयसिंह के कहने पर वे कुछ देर होटल के पार्क में घूम आए थे. हालाँकि जयसिंह ने जताया नहीं लेकिन मनिका की चुप्पी पर उनका पूरा ध्यान था.
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घूमने के बाद उन्होंने मनिका को उसकी फ़ेवरेट आइसक्रीम खिलाई थी और फिर वे कमरे में आ गए.
रोज़ की तरह मनिका नहाने चली गई.
बाहर जयसिंह ने अब अपने प्लान के आख़िरी चरण का उदघाटन शुरू किया. मनिका के जाते ही जयसिंह ने उसकी अटैची खोली और उसमें रखा लांज़रे बॉक्स निकला. उसमें मनिका की गुलाबी और आसमानी थोंग रखी थी.
“मतलब आज रांड हरी या बैंगनी कच्छी में है… मेरा बैंगन कब लेगी पता नहीं…” उन्होंने हवस से हाँफते हुए सोचा था.
फिर उन्होंने उसकी आसमानी थोंग निकाल कर सब सामान जस का तस रख दिया.
कुछ देर बाद मनिका नहा कर निकाल आई. जयसिंह पिछली रोज़ की तरह ही सिर्फ़ तौलिया लपेटे बैठे थे. लेकिन आज उन्होंने टांगें नहीं खोल रखीं थी. आख़िर रोज़-रोज़ एक पैंतरा काम में लेने से बात बिगड़ सकती थी.
एक बार फिर मनिका उन्हें देख अचकचाकर खड़ी हो गई थी. तो वे मुस्कुराते हुए उठे, और उस समय बहुत ही चतुराई से सिर्फ़ इतने पैर खोले कि मनिका को उनके लटकते लौड़े की झलक मिल जाए.
बाथरूम से घुसते वक्त उन्होंने एक नज़र मुड़ कर देखा तो मनिका को निढाल सा बेड पर बैठते पाया. उसकी नज़र नीची थी.
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“हे भगवान! फिर से… पापा का डिक… मेरी नज़र भी तो सीधा वहीं जाती है…” मनिका ने बेसुध बैठे हुए सोचा.
इसी तरह बैठे हुए मनिका अपने आप को कोस रही थी कि जयसिंह नहा कर निकल भी आए. मनिका ने अब तक बिस्तर में घुस कर कम्बल ओढ़ लिया था. उसे क्या पता था अभी तो उसके पिता उस पर एक और वज्रपात करने वाले थे.
जयसिंह अपने कपड़े और तौलिया रखने बिस्तर की बग़ल में पहुँचे. मनिका उसी तरफ़ सोया करती थी. उन्होंने बड़ी ही चतुराई से अपने कपड़ों के बीच छुपाई उसकी थोंग वहाँ सामान के पास नीचे गिरा दी.
“हाँ भई… क्या इरादा है फिर?” जयसिंह ने मनिका को बहलाते हुए कहा.
“क्या पापा… कुछ इरादा नहीं है मेरा तो…” मनिका हल्का मुस्काई.
“पूरा सामान नहीं पैक किया तुमने तो पूछ रहा हूँ… कहीं रुकने का इरादा तो नहीं?”
“हेहे… नहीं पापा. ट्रेन तो परसों की है, सो कल पैक कर लूँगी बाक़ी का सामान.” मनिका बोली.
“अच्छा-अच्छा…” कहते हुए जयसिंह अपनी अटैची में सामान रखने लगे.
मनिका उनकी ओर ही देख रही थी.
सामान रखने के बाद जयसिंह थोड़ा घूमे और फिर थम गए. मनिका ने देखा कि उन्होंने अपना पैर एक ओर कर फ़र्श से कुछ उठाया था.
“पूरा दिन इस रूमाल को जेब में ढूँढ रहा था… और ये यहाँ… ओह!” जयसिंह ने किसी मंझे हुए ऐक्टर की तरह प्रतिक्रिया दी.
मनिका कुछ समझ पाती उस से पहले ही, उन्होंने अपने हाथ में पकड़ी पैंटी उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा,
“ये तो आपकी चीज़ लग रही है.”
मनिका सन्न रह गई.
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