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Incest बेटी की जवानी - बाप ने अपनी ही बेटी को पटाया - 🔥 Super Hot 🔥

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कहानी में अंग्रेज़ी संवाद अब देवनागरी की जगह लैटिन में अप्डेट किया गया है. साथ ही, कहानी के कुछ अध्याय डिलीट कर दिए गए हैं, उनकी जगह नए पोस्ट कर रही हूँ. पुराने पाठक शुरू से या फिर 'बुरा सपना' से आगे पढ़ें.

INDEX:

 

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09 - सज़ा

आखिरकार जयसिंह की किस्मत जवाब दे ही गई.

वे लोग अपने होटल रूम में लौट चुके थे. जयसिंह एक तकिया लेकर काउच पर अधलेटे हुए सो रहे थे. मनिका बेड पर अकेली कम्बल से अपने-आप को ढंके हुए थी. दोनों सोने का नाटक कर रहे थे पर नींद उनके आस-पास भी नहीं थी.

जयसिंह के मन में निराशा की उथल-पुथल मची हुई थी,
"अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली मैंने…!"

उनके मनिका से ब्रा-पैंटी लेने को कहते ही मनिका का बदन अकड़ गया था. उसने एक क्षण रुकने के बाद मुड़ कर उनकी तरफ देखा था और जयसिंह उसकी नज़र से ही समझ गए थे कि उनके किए-धरे पर पानी फिर चुका है. उनकी बेटी की आँखों में शर्म, गुस्से और नफरत का मिला-जुला सैलाब उमड़ रहा था.

जयसिंह कुछ न बोल सके थे और मनिका तेज़ क़दमों से चलती हुई वहाँ से बाहर निकल गई थी.

किसी तरह वे बिल चुका कर मनिका के खरीदे सामान के साथ उसे ढूँढ़ते हुए आख़िर कार पार्किंग में पहुंचे. मनिका पहले से कैब में बैठी थी. उन्होंने ड्राईवर से डिक्की में सामान रखवाया था और चुपचाप आगे ड्राईवर की बगल वाली सीट पर बैठ उसे होटल चलने को बोला था.

होटल पहुँच कर भी वे दोनों बिना कोई बात किए अपने कमरे तक आए. आज मनिका उनसे अलग होकर चल रही थी. जयसिंह ने कमरे में घुस कर अपने हाथों में उठाए शॉपिंग-बैग एक तरफ रखे ही थे कि मनिका का गुस्सा फट पड़ा था.

"बदतमीज़ी की भी कोई हद होती है!" मनिका ने ऊँची आवाज़ में कहा था.

जयसिंह ने सीधे हो कर उसकी तरफ अपराधबोध से भरी नज़रों से देखा था.

"आप होश में तो हो कि नहीं? क्या बके जा रहे थे वहाँ… आपको जरा भी शर्म नहीं आई मुझसे ऐसी बात कहते हुए पापा?" मनिका अब तैश में थी.

जयसिंह क्या जवाब देते. एक-एक कर उनके बनाए हवाई-महल उनके आस-पास ध्वस्त हो गिर रहे थे.

“I am your daughter for god’s sake! कोई अपनी बेटी से इस तरह…" मनिका आगे की बात कह न सकी थी.
“Don’t you talk to me, I am sick of you…" और लगभग भागती हुई बाथरूम में घुस गई थी.

उसकी आँखों में शर्म और गुस्से के आँसू थे. जयसिंह बेड के पास हक्के-बक्के से खड़े थे.

–​

मनिका ने बाथरूम में जा कर ठंडे पानी से अपना मुँह धोया. आज तक उसे इतनी शर्म और जिल्लत महसूस नहीं हुई थी.

“OH GOD! ये क्या हो रहा है मेरे साथ?" उसने धड़कते दिल से सोचा, उसे एहसास हुआ कि जयसिंह की बदतमीजी के बाद से ही उसके दिल की धड़कने बढ़ी हुईं थी. "पापा ऐसा कैसे कह सकते हैं कि… l… lingerie… चाहिए तो… अब कैसे उनके साथ नॉर्मल हो सकूँगी मैं… शायद कभी नहीं… अभी तक तो वे भी कुछ नहीं बोले… वैसे भी कुछ बोलना बाकी तो रह नहीं गया है…"

बाहर जयसिंह भी अपनी हार को बर्दाश्त करने की कोशिश कर रहे थे. उनकी अंतरात्मा भी एक बार फिर से सिर उठाने लगी थी.

"यह तो सब खेल चौपट हो गया. मेरी भी मत मारी गई थी जो मैंने संयम से काम नहीं लिया… लेकिन वैसे भी बुरे काम का अंत तो हमेशा बुरा ही होता आया है… अगर कहीं उसने घर पे यह बात जाहिर कर दी तो…?" जयसिंह को भी अब अपने किए को लेकर तरह-तरह की अनिश्चित्ताओं ने घेर लिया था. "पता नहीं क्या सोच कर मैंने ये कदम उठाए थे… मनिका और मेरे बीच ऐसा कुछ हो सकता है यह सोचना ही मेरी सबसे बड़ी गलती थी… अपने ही घर में आग लगा ली मैंने… अपनी बेटी की जवानी देख कर बहक गया यह भी नहीं सोचा कि कितनी बदनामी हो सकती है…"

जयसिंह अपनी पराजय के बाद अब खुद पर ही दोष मढ़ रहे थे. वैसे भी ये सब उनकी हवस से ही उपजा था.

मनिका जब बाथरूम से बाहर निकली तो पाया कि जयसिंह तकिया लिए हुए काउच पर लेटे थे. उन्होंने एक नज़र उसे देखा था पर मनिका की हिकारत भरी नज़रों से अपनी नज़र नहीं मिला पाए और आँखें झुका लीं थी.

–​

असल में मनिका तभी असहज हो गई थी जब जयसिंह उसके लिए लेग्गिंग्स ले रहे थे. सो जब उन्होंने अंडरवियर वाली बात कही तो उसका सब्र टूट गया और वे मनिका का भरोसा खो बैठे. जो मनिका कुछ घंटे पहले तक उनकी तारीफों के पुल बांधती नहीं थकती थी वह अब उनकी शक्ल देख कर भी खुश नहीं थी.

मनिका को भी जयसिंह से मिले इस विश्वासघात का बेहद गहरा धक्का लगा था. उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक पिता अपनी जवान बेटी से इस तरह का निर्लज्ज व्यवहार कर सकता है.
उस रात अपने-अपने टूटे हुए सपने लिए वे दोनों बहुत देर तक जागते रहे.

–​

अगली सुबह जयसिंह की नींद देर से खुली. काउच पर वे आराम से सो भी नहीं पाए थे. उन्होंने बेड की तरफ देखा तो पाया कि मनिका अभी भी लेटी हुई थी. कुछ देर वैसे ही लेटे रहने के बाद जयसिंह धीरे से उठे.

मनिका बेड पर जिस ओर करवट ले कर सो रही थी उसी तरफ उनका लगेज भी पड़ा था. जयसिंह दबे पाँव अपनी अटैची के पास गए और कपड़े निकालने लगे. जब वे कपड़े ले कर वापस जाने को हुए तो उन्होंने एक नज़र मनिका की तरफ़ देखा. उसने जल्दी से अपनी आँखें मीचीं थी.

जयसिंह बिना कुछ बोले चुपचाप बाथरूम में घुस गए. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या कहें या करें. उनके जाते ही मनिका उठ बैठी और पास रखी बोतल से पानी पिया. वह भी, अपने और जयसिंह के बीच बढ़ी दूरियों का सामना कैसे करे, इस उलझन में थी.

उस दिन जयसिंह जल्दी ही नहा कर बाहर निकल आए. उन्होंने मनिका को बिस्तर में बैठे पाया. उनके बाहर आने तक मनिका ने तय का लिया था कि वह पीछे नहीं हटेगी. इसीलिए अब वह सोने का नाटक नहीं कर रही थी.

जयसिंह बाथरूम से निकले ही थे कि फोन की घंटी बजने लगी. मनिका और जयसिंह दोनों अपनी-अपनी जगह जड़वत: थे. कुछ देर जब फोन बजता रहा तो आखिर जयसिंह ने जा कर फोन उठाया.

“हेल्लो?" जयसिंह की आवाज़ भर्रा कर निकली थी.

फोन रिसेप्शन से था. रोज़ की तरह आज भी उनकी कैब आ चुकी थी और ड्राइवर उनका इंतज़ार कर रहा था. जयसिंह ने उनसे कहा कि अब उन्हें कैब की ज़रूरत नहीं रहेगी, सो वे उनकी बुकिंग कैंसिल कर दें.

मनिका भी उनकी बातों से समझ गई कि फोन कहाँ से आया है.

जयसिंह ने फोन रखा और फिर अपने चेंज किए कपड़े रूम में रखे लॉंड्री बास्केट में डाल कमरे से बाहर चले गए.

उनके चले जाने के बाद मनिका उठी और नहा धो कर आई. अपनी ज़िन्दगी में आए इस तूफ़ान के बारे में सोचते-सोचते उसका पूरा दिन बीत गया. जब उसे कुछ भूख लगी थी तो उसने रूम-सर्विस पर कॉल कर खाने के लिए एक-दो चीज़ें ऑर्डर कीं थी. लेकिन जब वेटर खाना लेकर आया तो उसने थोड़ा सा खाकर छोड़ दिया और वापस बेड पर जा लेटी थी. उधर जयसिंह का सुबह से कोई अता-पता न था.

रात होते-होते मनिका को नींद की झपकी आ गई. ऊनींदेपन में ही उसे कमरे का गेट खुलने का आभास हुआ. मनिका ने कमरे की लाइट बुझा रखी थी. अँधेरे में किसी ने राह टटोलते हुए आ कर लाइट जलाई. जयसिंह ही थे.

मनिका ने बेड से सिर उठा कर उनींदी आँखों से उन्हें देखा और अजीब सा मुँह बनाया. फिर वह उठ कर बैठ गई. जयसिंह एक बार फिर अपना पायजामा कुरता ले कर बाथरूम में घुस रहे थे.
"मुझे यहाँ एडमिशन नहीं लेना है."

मनिका की आवाज़ सुन जयसिंह ठिठक कर खड़े हो गए.

"मुझे घर जाना है." मनिका आगे बोली.

जयसिंह ने उसकी तरफ देखा, मनिका ने भी दो पल उनसे नज़र मिलाए रखी और घूरती रही. जयसिंह ने नज़र झुका ली.

"दो-चार दिन की बात है… इतने दिन से यहाँ हम आपके एडमिशन के लिए ही रुके हुए है. हमारे वहाँ वैसे भी कोई ढंग के कॉलेज नहीं है." उन्होंने धीरे-धीरे बोलते हुए कहा, "देख लो अगर रुकना है तो… नहीं फिर मैं कल टिकट्स करवा आऊँगा."

इतना कहकर वे बाथरूम में घुस गए.

मनिका ने पूरा दिन यही सोचते हुए बिताया था कि वह जयसिंह से वापस चल-चलने को कहेगी, क्योंकि अब वो उनके भरोसे नहीं रहना चाहती थी. पर जयसिंह के सधे हुए जवाब में तर्क था. साथ ही, बाड़मेर वापस जाने पर उसे घर पर ही रहना पड़ता जहाँ उसका अपने पिता से रोज सामना होना था. लेकिन यह बात वह जयसिंह से नहीं कहना चाहती थी. सो उनके बाथरूम से निकल आने के बाद भी मनिका उनसे कुछ नहीं बोली और बेड पर लेटी रही. जयसिंह ने भी आगे कुछ नहीं कहा था और लाइट बुझा फिर से काउच पर जा लेटे थे.

–​

अगले दिन सवेरे-सवेरे जयसिंह एक बार फिर कमरे से नदारद हो गए. मनिका ने उन्हें उठ कर कमरे में खटर-पटर करते हुए सुना तो था, पर जब वो उठी तो वे नहीं थे.

मनिका की फिर से वही दिनचर्या रही. आज फिर उसने थोड़ा सा ही खाना खाया था. उसके मन में रह-रह कर जयसिंह की बात आ जाती थी और उसके विचारों का चक्र फिर से शुरू हो जाता. आखिर उसने दिल बहलाने के लिए उठकर टीवी चालू किया और बैठी-बैठी चैनल बदलने लगी.

कुछ देर बाद मनिका एक अंग्रेज़ी फ़िल्म चैनल पर जा कर रुक गई, उस पर एक रोमांटिक कॉमेडी वाली फिल्म चल रही थी. मनिका का पूरा ध्यान तो उसमें नहीं था, पर वह फिर भी देखने लगी.

कुछ देर बाद फिल्म में एक सीन आया जिसमें एक परिवार समुद्र किनारे पिकनिक मनाने जाता है. उस परिवार में माँ-पिता और उनके जवान बेटा-बेटी साथ होते हैं. बीच पर पहुँच कर वे अपनी पिकनिक एन्जॉय कर रहे होते हैं. तभी वहाँ एक और फ़ैमिली आ जाती है और सब आपस में घुलने-मिलने लगते हैं. पहली आई फ़ैमिली वाला आदमी एक-एक कर बाद में आए लोगों से अपने परिवार का इंट्रोडक्शन करवा रहा होता है. जब वह अपनी बेटी का नाम लेता है तो पाता है कि वो वहाँ नहीं है. सो वह आवाज़ लगा कर उसे बुलाता है. इस पर उसकी बेटी उनकी वैन के पीछे से निकल कर आती है. उसने एक लाल बिकिनी पहनी होती है, जिसे देख दूसरी फ़ैमिली के साथ आए लड़के का मुँह खुला रह जाता है और सीन स्लो-मोशन में चलता है. फिल्म चलती रहती है. अब दोनों परिवार साथ मिल बैठ कर मस्ती कर रहे होते हैं जिस दौरान कुछ हास्यास्पद घटनाएँ घटती हैं.

लेकिन मनिका का ध्यान उस बिकिनी वाले सीन को देखने के बाद फिल्म से हट चुका था.

"ये अंग्रेज भी कितने अजीब होते हैं… बेटी को बाप के सामने बिकिनी पहने दिखा दिया बताओ…"

मनिका का दिमाग़ तो वैसे ही अपने पिता के व्यवहार से ख़राब हो रखा था. अब ऐसा सीन देख उसके मन में फिर खटास सी आ गई थी.

"कैसे वह लड़की बिकिनी में आकर अपने माँ-बाप के सामने खड़ी हो गई यार… और उसका बाप हँस-हँस कर उसका इंट्रोडक्शन और करवा रहा था… यहाँ तो मेरे पापा के… ओह यह मैं क्या सोचने लगी… नहीं बाहर ऐसा चलता होगा, गलती तो पापा की ही थी… पर ये अंग्रेज ऐसे क्यूँ होते हैं? कोई कल्चर नहीं है क्या इनका, बेटी बाप के सामने अधनंगी खड़ी है बोलो…"

मनिका ने पिछले दो दिन से खाना भी ठीक से नहीं खाया था, सो उसका तन और मन वैसे ही थोड़ा कम काम कर रहे थे. अब उसके विचलित मन में ऐसे विचार उठ रहे थे जिन पर वह चाह कर भी लगाम नहीं लगा पा रही थी.

"तुम भी तो कुछ दिन पहले पापा के साथ अधनंगी हो कर पड़ी थी…" मनिका के अंतर्मन ने उसे याद कराया. "हाय ये मैं क्या… पर मैंने जान-बूझकर थोड़े ही किया था वो…"

मनिका ने अपने-आप को ही सफाई पेश की.

"और पापा ने मुझे कुछ बोला भी नहीं… पापा वैसे भी हमेशा मेरी ही साइड लेते हैं…"

मनिका का दिमाग़ उसे एक अलग ही राह पर ले जा रहा था.

"और वहाँ शॉप में भी पापा ने कहा था कि वो मम्मी की तरह मुझे रोकने-टोकने वाले नहीं हैं… और शायद तभी यहाँ आने के बाद मैंने इतना… enjoy… किया है. इस मूवी में भी तो सब पिकनिक पर मस्ती करने ही गए थे… तभी उस लड़की को उसके घरवाले बिकिनी पहनने के लिए कुछ नहीं कहते… क्योंकि पानी में तो सब वही पहनते हैं… मतलब लड़कियाँ… पर हमारे यहाँ तो नहीं करते ये सब… हम जब वॉटर-पार्क जाते हैं तो पूरे कपड़ों में ही नहाते हैं… पर पापा ने कहा उनकी तरफ़ से कोई रोक-टोक नहीं हैं… papa has let me enjoy everything here… वरना तो हम कब के घर चले जाते."

मनिका ने अब टीवी बंद कर दिया था. उसका दिल और दिमाग़ दोनों बेचैन थे.

“How caring of papa to treat me like this… और मैंने… मैंने क्या किया… उनके मुझे लांज़रे लेने को कहने पर… पर इसमें तो गलती उन्हीं की थी…" मनिका कुछ देर गहरी सोच में डूबी रही. "पर क्या सच में? He did not say anything directly… वो तो उस कमीनी सेल्स-गर्ल ने अपनी सेल बढ़ाने के लिए बक दिया था… पर पापा ने भी तो… पर नहीं उन्होंने इतना ही तो कहा था कि… चाहिए तो ले लो…"

मनिका की ख़ुद से बातें चलतीं रही.

“GOD! It was so embarrassing… हम्म… पर उन्हें उस सेक्शन में लेकर तो मैं ही गई थी… गलती मेरी भी तो है…"

मनिका की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. हालाँकि जयसिंह के नापाक इरादों पर शक करने का ख़याल अभी भी उसके मन में नहीं आया था. पर अब जयसिंह से उसकी नाराज़गी के कारण कम होते जा रहे थे.

"तो क्या गुस्से में मैंने कुछ ज़्यादा ही बोल दिया पापा को? पापा भी दो दिन से कितने अपसेट लग रहे हैं… पता नहीं कहाँ जाते हैं? वे मेरे साथ इतने कूल पेश आ रहे थे और मैंने इतनी सी बात का बतंगड़ बना दिया…!"

अब मनिका जैसे अपने-आप को ही दोष देने लगी थी.

"दो दिन से हमारी बात तक नहीं हुई… कल थोड़ी सी बात हुई उसमें भी वे मुझे आप कह कर बुला रहे थे… पापा इतना खर्चा कर रहे हैं यहाँ और मुझे बोलते हैं चिंता न करो… और एक मैं हूँ कि… oh shit! I am such a fool… अब क्या करूँ…?"

–​
ओह मस्त अपडेट
 

DesiPathan87

इश्क ओदा पौणा ही आ मैनू किंवे वी
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Lagta hai Manika ko Roz dher saare assignments mil rahe ya internal or external exams chal rahe tabhi nhi de paa rahi hain update ?
 
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13 - बुख़ार

मनिका ने देखा कि जयसिंह कपड़े बदले बिना ही सो गए थे. उसके पास भी करने को कोई काम न था, सो वह भी नहाकर आई और सोने की तैयारी करने लगी. उसके बिस्तर में घुसने से पहले कमरे के गेट पर दस्तक हुई.

लॉंड्री वाला उनके कपड़े ले कर आया था. मनिका ने कपड़े रखवा कर उसे कुछ टिप दे दी.

अब मनिका भी जयसिंह के बगल में लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी. लेकिन क्योंकि वह दिन में सो चुकी थी तो उसे नींद नहीं आ रही थी.

वह लेटी-लेटी उस दिन की घटनाओं के बारे में सोचने लगी, कि कैसे दिन की शुरुआत में उसे उसके अंडरगारमेंट्स शॉवर में पड़े मिले थे और जयसिंह ने उसका कितना मजाक बनाया था. फिर जब वह सैलून से वापस आई थी तब भी उसके पापा ने कितना स्वीट रिऐक्शन दिया था. उसे एहसास हुआ था कि जयसिंह भले ही मजाक कर रहे थे पर उसमें तारीफ भी छुपी थी. इसीलिए मनिका को लाज आने लगी थी और वो मेकअप उतार आई थी. फिर कैसे वो पापा के साथ काउच पर सोई थी.

"हाय. कितना अजीब था पापा के पास सोना… और जब हम उठे थे तो… I was literally hugging him.”

उसके गाल लाल हो गए.

ऊपर से, आज एक बार फिर से लोगों ने उसे जयसिंह की गर्लफ्रेंड समझ लिया था.

“कितनी हैरान थीं वे लड़कियाँ जब मैंने कहा कि ये मेरे पापा हैं… लोग भी न पता नहीं क्या-क्या सोचते रहते हैं."

मनिका ने थोड़ा तुनक कर सोचा, पर फिर उसका ध्यान जयसिंह की शारीरिक बनावट पर चला गया. वह सोचने लगी कि 46 साल की उम्र में भी जयसिंह उसके चाचा और ताऊजी की तरह मोटे व बेडौल नहीं थे. उन्होंने अपनी बॉडी को फिट रखा हुआ था.

“May be, that’s why… लोग मुझे और पापा को कपल समझ लेते हैं… वैसे भी दिल्ली में कुछ ज़्यादा ही खुलापन है… and papa has maintained his body so well… सो कोई सोचता ही नहीं कि वो मेरे पापा हैं."

ये सब सोचते हुए मनिका ने जयसिंह की तरफ देखा. कुछ ही पल पहले वे हिले थे और करवट बदल उसकी तरफ मुँह किया था. उन्हें सोता पा मनिका धीरे से उठ कर अधलेटी हुई और अपने हाथ टी-शर्ट में पीछे डाल अपनी ब्रा का हुक खोला और वापिस लेट गई.

इतने दिनों से मनिका और जयसिंह रोज बाहर घूम कर आते थे तो थके हुए होते थे. सो रूम में आ कर मनिका को जल्दी नींद आ जाया करती थी. फिर उनकी अनबन हो जाने के बाद दो दिन तनाव में बीत गए थे. लेकिन आज पूरा दिन होटल में रहकर मनिका ने आराम किया था. सो कुछ देर बाद उसे अपनी ब्रा का कसाव खटकने लगा था. वैसे भी उसे ब्रा पहन कर सोने की आदत नहीं थी. इसी वजह से उसने जयसिंह को सोते पा अपनी ब्रा का हुक खोल लिया था.

–​

आग में घी डालना किसे कहते हैं जयसिंह को आज समझ आया था.

खाना खा कर लौटने के बाद जयसिंह मनिका के कहने पर लेट कर रेस्ट करने लगे थे. उन्हें पता था कि अगर वे रोजमर्रा की तरह नहाने घुसे तो शायद अपनी हवस की आँधी को रोक नहीं पाएंगे और मुठ मार बैठेंगे. अपने इस अजीबोगरीब वचन को निभाने के मारे वे बिस्तर पर जा लेटे थे.

साथ ही वे इस ताक में भी थे कि क्या पता उनके सो जाने पर मनिका को भी जल्दी नींद आ जाए. फिर शायद वे कुछ छेड़छाड़ कर अपनी प्यास कुछ शांत कर सकें. इसी के चलते मनिका के बिस्तर में आ जाने के बाद उन्होंने करवट बदली थी. पर मनिका ने तो उनके मन की आँधी को भूचाल में तब्दील कर दिया था.

जब मनिका ने अपनी ब्रा का हुक खोला था तो उसकी टी-शर्ट पीछे से ऊपर हो गई थी. कमरे की हल्की रौशनी में अपनी बेटी की नंगी कमर और पीठ का दूधिया रंग जयसिंह ने अधखुली आँखों से देखा था.

"उह्…उम्म्…" जयसिंह के मुँह से दबी हुई आह निकल गई.

शुक्र इस बात का था कि मनिका के वापस लेट जाने तक वे किसी तरह रुके रहे थे. मनिका ने चौंक कर उनकी तरफ देखा. जयसिंह के माथे पर पसीने की बूँदें छलक आई थी.

"पापा?"

मनिका उठ बैठी थी और एक पल के लिए उसका हाथ अपनी पीठ पर चला गया था.

"पापा उठे हुए हैं…?" उसने धड़कते दिल से सोचा.

पर जयसिंह पहले की भाँति जड़ पड़े रहे.

"पापा आप जाग रहे हो क्या?" मनिका ने फिर से पूछा.

जयसिंह से कोई जवाब तो नहीं मिला पर इस बार उन्होंने फिर से एक आह भरी.

मनिका ने अब बेड-साइड से लाइट ऑन की और उन्हें ध्यान से देखा. उनके चेहरे पर पसीना आया हुआ था.

“Papa! Are you alright?" मनिका ने थोड़ा घबराकर उन्हें हिलाया और उठाने लगी.

जयसिंह ने भी एक-दो पल बाद हड़बड़ाने का नाटक किया और आँखें खोल दीं. वे गहरी साँसें भरने लगे.

“Papa, you are sick!” मनिका ने उनके तपते माथे पर हाथ रखते हुए कहा.

वह उनके ऊपर झुकी हुई थी और उसकी खुली ब्रा में झूलते उरोज जयसिंह के चेहरे के सामने थे.

"हम्प्…" उनका पारा और बढ़ गया.

जयसिंह उठ कर बैठ गए. आशंकाओं से भरी मनिका बार-बार उनसे पूछ रही थी कि वे कैसा फील कर रहे हैं. इधर जयसिंह कम्बल के अंदर अपने लंड का गला दबाते हुए उसे आश्वस्त करने की कोशिश कर रहे थे कि वे ठीक हैं, उन्हें बस माइनर सा माइग्रेन का अटैक आया है.

लंड को शांति न मिलती देख आख़िर उन्होंने कहा कि वे नहा कर आते हैं ताकि थोड़ा फ्रेश हो जाएँ.

"साला अब तो प्रण गया भाड़ में… लगता है मुठ मारना ही पड़ेगा वरना आज तो लंड और आंड दोनों की एक्सपायरी डेट आ जाएगी."

यह सोच जयसिंह ने कम्बल के अंदर अपने लंड का मुँह ऊपर की तरफ कर उसे अपने अंडरवियर के इलास्टिक में कैद किया. ताकि उठने पर उनकी पैंट में कहीं तम्बू न बना हो. जब वे उठे तो लंड का मुहाना उनके अंडरवियर और पैंट से चार इंच बाहर झाँक रहा था, पर उनकी शर्ट से ढँका हुआ था. वे भारी क़दमों से चलते हुए बाथरूम में घुस गए.

बेड पर बैठी मनिका के चेहरे पर चिंता के भाव थे. उसने हाथ पीछे ले जा कर अपनी ब्रा का हुक फिर से लगाया और जयसिंह के बाहर आने का इंतजार करने लगी.

–​

बाथरूम में जा कर जयसिंह ने बाथटब में ठंडा पानी भरा और उसमें अपना बदन डुबो कर लेट गए. अंदर आते-आते एक बार फिर वे अपनी प्रतिज्ञा के प्रति थोड़ा सीरियस हो गए थे. ठंडे पानी से भरे टब में डूबे वे अपने लंड और टट्टों को रगड़ रहे थे ताकि उनकी गर्मी कुछ शांत कर सकें.

"ये अचानक मुझे क्या हो गया…? बिलकुल भी काबू नहीं कर पा रहा हूँ अपने-आप को… कुतिया की जवानी ने आखिर मेरे दिमाग़ का फ्यूज उड़ा ही दिया है लगता है… क्या होंठ है रांड के, मेरे लंड-रस का स्वाद तो आया ही होगा उसे… आह्ह!"

जयसिंह का लंड उनके हाथ की कैद से बाहर निकलने को फड़फड़ा उठा था.

"भड़वी ने ब्रा का हुक और खोल लिया ऊपर से… क्या झूल रहे थे साली के बोबे… ओहोहो! मसल-मसल कर लाल कर दूँगा भेंचोद एक दिन…"

इसी तरह के गंदे-गंदे विचारों से अपनी बेटी का बलात्कार करते वे आधे घंटे तक पानी में पड़े रहे.

पर फिर धीरे-धीरे ठंडे पानी का असर होने लगा, उनके बदन की गर्मी निकलने लगी और बदन सुन्न होने लगा. लंड और आंड भी शांत पड़ने लगे और जयसिंह के दिमाग़ ने एक बार फिर काम करना शुरू कर दिया.

"अगर ये हाल रहा तो फिर तो मनिका की झाँट भी हाथ नहीं लगेगी… मुझे अपने बस में रहना ही होगा! लेकिन साली हर वक्त जिस्म की नुमाइश करती रहेगी तो दिमाग़ तो ख़राब होगा ही… पर उसकी लिपग्लॉस तो मैंने ही ख़राब की थी. हाँ, तो मुझे क्या पता था ऐसे सामने बैठ कर होंठ चाटेगी रांड…? जो भी हो आज इतना समझ आ गया है कि लंड के आगे दिमाग़ की एक नहीं चलती है… हाहाहाहा…" जयसिंह मन ही मन हँसे.

अब वे थोड़ी राहत महसूस कर रहे थे.

उनका इरेक्शन भी अब मामूली सा रह गया था. उन्होंने मन ही मन तय किया कि जल्द ही उन्हें कोई अहम कदम उठाना होगा. मनिका के इंटर्व्यू को सिर्फ दो दिन बचे थे. अब वे अपनी मंज़िल से भटकने का खतरा मोल नहीं ले सकते थे. अगर घर वापस जाने से पहले कुछ ठोस कदम नहीं उठाया तो उनका किया कराया मिट्टी में मिल जाना था.

यह विचार आते ही उनके लंड का रहा-सहा विरोध भी खत्म हो गया.

जयसिंह ने कामना की के उनकी किस्मत, जिसने अब तक उनका साथ इतना अच्छे से निभाया था, शायद आगे का रास्ता भी दिखा दे. इस तरह एक नए जोश के साथ वे बाथटब से बाहर निकल आए और तौलिए से बदन पोंछ कर अपना पायजामा-कुरता पहन लिया.

जब वे बाहर निकल कर आए तो मनिका बेड से उतरकर उनके पास आई और उनकी ख़ैरियत जाननी चाही.

जयसिंह ने मुस्कुरा कर कहा,

“Don’t worry Manika… अब सब ठीक है…"

और उसका हाथ पकड़ उसे वापस बिस्तर में ले गए.

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Lovely jee kuch baap beti ke beech sexy seduction kerwo
 

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19 - रात का नशा

मनिका पीछे हट कर फिर से अपनी जगह पर लेट गई थी.

जयसिंह ने लाइट बुझा कर नाईट-लैम्प जला दिया था. अब वे एक-दूसरे की तरफ करवट लिए सोने लगे. बाप-बेटी के बीच एक लुका-छिपी का खेल चल पड़ा था, कभी मनिका तो कभी जयसिंह आँख खोल कर एक-दूसरे को देख रहे थे. जब कभी उनकी आँखें साथ में खुल जाती थी तो दोनों झट से आँखें मींच लेते थे. पर उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान होती.

यूँ तो दिल्ली आने के बाद से मनिका और जयसिंह के बीच दुनियाँ-जहान की बातें हो चुकीं थी, लेकिन अभी तक उन्होंने अपने रिश्ते के दायरों का उल्लंघन नहीं किया था. हालाँकि कभी-कभी जयसिंह की चालाकी से उनके बीच की बातचीत ने कुछ रोचक मोड़ ज़रूर लिए थे. पर आज जिस तरह से जयसिंह ने बात घुमाते-घुमाते मनिका के सामने उनके रिश्ते की परिभाषा को बदल सा दिया था. उस से मनिका की सोच एक नया मोड़ लेने लगी थी. जयसिंह ने समाज को एक दीवार के रूप में पेश किया था, जिससे मनिका अशांत, और थोड़ी आतंकित हो गई थी.

वह लेटी-लेटी सोचने लगी,

"पापा भी कैसी अजीब बातें सोचते हैं… सबसे डिफरेंट… लड़कियों के बारे में… कि वो अपनी आज़ादी से रहें… सोसाइटी के बनाए हर रूल से उलट…! वैसे वे भी कुछ गलत तो नहीं कह रहे थे… I mean… अगर हम अपनी लाइफ़ अपने हिसाब से जीना चाहते हैं तो उससे सोसाइटी को क्यूँ दिक्कत होती है?"

उसे जयसिंह के कुछ तर्क सही लग रहे थे. वो अब आँखें मूँद सोच में पड़ गई,

"और पापा ने कहा कि उन फूहड़ लोगों का भी अपना लाइफ़ स्टाइल है वो चाहें मूवी में हूटिंग करें या कुछ और… पापा के हिसाब से बात तो तब गलत होगी जब वे किसी और को जान-बूझ कर परेशान करें या छेड़ें… और पापा ने सही कहा कि मैं भी मम्मी से बातें छुपाने लगी हूँ… हाँ क्योंकि वे हमेशा मुझसे चिढ़ती रहती हैं… पापा ही तो कहते हैं कि सब बातें सबको बताने की नहीं होती… मैंने भी तो यही सोचा था कि अगर मम्मी को पता चले कि हम यहाँ दिल्ली में ऐश कर रहे थे तो कितना बखेड़ा खड़ा हो जाएगा… जैसा मम्मी का स्वभाव है, हमें तो ज़िन्दगी भर ताने सुनने पड़ें शायद… और अगर..! अगर मम्मी को पता चले कि मैं पापा के सामने कैसे expose हो चुकी हूँ… वो भी दो-तीन बार… तो फिर तो गए समझो!"

जयसिंह की लगाई वैचारिक आग अब मनिका के मन में ज़ोर पकड़ती जा रही थी.

"कैसे हम दोनों इतने दिनों से एक ही रूम में रह रहे हैं और… वो अंडरगारमेंट्स वाली बात पर हुई लड़ाई… पापा ने कहा कि अगर उनकी जगह कोई और होता तो मैं शायद उतना ग़ुस्सा नहीं करती… क्या सच में? कभी किसी ने ऐसी बात तो कही नहीं है मुझसे… आखिर मूवीज़ में ये सब चलता है. पर पापा थे इसलिए मैंने इतना ग़ुस्सा किया… सुबह उनसे फिर से सॉरी कहूँगी… पापा कितने समझदार हैं और कितने कूल भी… उन्होंने कहा कि वे सच में मुझे एक अडल्ट की तरह ट्रीट करते हैं… हाँ वो तो है!"

मनिका ने करवट बदल ली.

–​

उधर जयसिंह लेटे हुए उसे देख रहे थे. उसके करवट बदलने पर उन्होंने अच्छे से आँखें खोल कर उसकी तरफ देखा था.

"आज तो पता नहीं क्या-क्या बोल गया मैं… पर कुतिया को ज़्यादा मौक़ा मिला नहीं मेरी बातें काटने का… साली के मन में पता नहीं क्या चल रहा होगा. कैसी मचकी थी छिनाल जब साली की जाँघ मेरे लंड से टकराई थी… पर फिर भी सब लग तो सही ही रहा है… वरना चुम्मा ना देती इतने आराम से… देखो कल कितना काम आता है ये ज्ञान…"

जयसिंह जानते थे कि आज उनके बीच जैसी बातें हुई थी वैसी आज से पंद्रह दिन पहले तक नामुमकिन थी. ये उनके रचे चक्रव्यूह का ही कमाल था कि मनिका अब उनके चंगुल में फंसती चली जा रही थी. आख़िरकार अपनी बेटी की पटाने की उनकी चाल कामयाब होने लगी थी. क्योंकि उन्होंने मनिका के साथ एक कदम आगे बढ़ने के बाद दो कदम पीछे भी खींचे थे. कभी वे मनिका को शर्मिंदगी के कगार पर पहुंचा देते थे और कभी खुद ही उसे आश्वस्त कर देते कि उनके बीच होनेवाली बातों में कुछ गलत नहीं है. जाने-अनजाने मनिका उनकी और ज्यादा कायल हो जाती थी.

वैसे भी 22 साल की मनिका जयसिंह जैसे मंजे हुए व्यापारी के साथ क्या होड़ कर सकती थी? उन्होंने देखा कि मनिका ने अपना हाथ उठा कर अपने नितम्ब पर रखा हुआ था और एक बार उसे हल्के से सहलाया था. उनके चेहरे पर एक लम्बी मुस्कान तैर गई.

–​

"और मम्मी ने मुझे आज तक इतने अच्छे से ट्रीट नहीं किया है… छोड़ो मम्मी की किसे ज़रूरत है?"

मनिका के विचारों की उथल-पुथल जारी थी.

"अगर उन्हें पता चले कि पापा और मैं एक ही रूम में रहते है… और पापा ने मेरी ब्रा और थोंग देख ली थी तो…! हाय! पापा ने कैसा सताया था… और मैंने जो उनका डिक… देख लिया? हाय रे!"
मनिका एक पल के लिए फिर से सिहर उठी.

"पापा बार-बार कहते हैं कि हमें घर पर सावधान रहना होगा… पर ये बात तो मैं वैसे भी किसी से शेयर नहीं कर सकती… कितना बड़ा है पापा का बिग ब्लैक कॉक…! हाय…!"

मनिका ने उस सेक्स फ़ोरम के पेज पर कुछ लड़कियों के कॉमेंट्स भी पढ़े थे. कुछ ने लिखा था कि बड़े डिक वाले मर्द उन्हें बहुत भाते हैं. उसके कान लाल हो गए.

"कैसे खिसिया जाते हैं जब उनको सताती हूँ मूवी वाली हिरोइनों के नाम पर… क्या उनके छोटे-छोटे कपड़े देख कर पापा को कैसा लगता होगा… क्या उनका डिक इरेक्ट…? हाय…क्या सोचने लगी मैं!"
उसने अपने विचारों को फिर से थामा.

"और बोले की मैं मम्मी से भी ज्यादा ख़ूबसूरत हूँ… तो क्या उनको इरेक्शन हुआ होगा मुझे देखने के… नहीं-नहीं वो तो पापा हैं मेरे ऐसा थोड़े ही सोचेंगे…! छीः यार मनिका क्या सोचे जा रही हो…!"
मनिका के मन में उलटे-सीधे विचारों के ज्वार उमड़ते जा रहे थे.

"पर पापा तो कहते हैं कि सब रिश्ते समाज ने बनाए हैं. मैंने भी पागलों की तरह उन्हें बता दिया कि सब मुझे उनकी गर्लफ्रेंड समझते हैं… कैसे मजाक बनाते हैं उस बात का भी वे… और दो-तीन बार तो मुझे डार्लिंग भी कह चुके हैं… मनिका डार्लिंग… ये तो मैंने सोचा ही नहीं था… घर जाने के बाद देखती हूँ कितना डार्लिंग-डार्लिंग करके बुलाते हैं मुझे… पर वो तो वे प्यार से कहते होंगे… हे भगवान मैं क्या ग़लत-सलत सोचती जा रही हूँ आज ये…?”

मनिका ने एक बार फिर अपने ख़यालों को विराम देने की कोशिश की पर विफल रही.

"और आज तो… goodnight kiss… मुझे तो एक बार लगा कि… he is going to kiss my lips… जैसा उस मूवी में था… उनकी पकड़ कितनी मजबूत है, चेहरा घुमा तक नहीं सकी थी मैं… उस दिन कॉलेज में भी तो उनकी बाँहों में… सबके सामने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया था… उह्ह… और जब हम साथ सोए थे काउच पर! कितनी स्वीटली नींद आई थी…"

जयसिंह की बातों से सम्मोहित मनिका को अचानक उनका उसकी गांड पर चपत लगाना याद आ गया और उसे अचानक वहाँ एक स्पंदन का एहसास होने लगा. इसीलिए उसने हाथ से वहाँ पर सहलाया था जहाँ उसके पिता ने उसे छुआ था. यही देख जयसिंह की बाँछें खिल उठी थीं.

–​

जयसिंह जानते थे कि आज मनिका इतनी जल्दी नहीं सो पाएगी सो वे देर तक सोने का नाटक करते रहे थे.

"आहा आज तो मजा आ गया! साली का दिमाग़ पलटने में अगर कामयाबी मिल जाती है तो उसके बाद तो कुतिया के बचने का सवाल ही पैदा नहीं होता… जल्दी से सो जाए तो थोड़ा मजा कर लूँ काफी दिन हो गए… उफ़्फ़… अब तो वापसी का वक़्त भी करीब आ गया है."

करीब दो घंटे तक जयसिंह ने कोई हरकत नहीं की. जब उन्हें लगा कि अब तो मनिका गहरी नींद सो चुकी होगी, वे उसकी तरफ़ घूमे.

मनिका बेड की लेफ़्ट साइड में लेटी थी. उसकी करवट फिर से उनकी तरफ हो चुकी थी. कमरे में आज नाईट-लैम्प की हल्की रौशनी फैली हुई थी. मनिका बेफिक्र नींद के आँचल में समाए हुई थी. एक पल के लिए उसके मासूम-ख़ूबसूरत चेहरे को देख जयसिंह को अपने इरादों पर शर्मिंदगी का एहसास हो आया. पर फिर हवस का राक्षस उन पर दोगुनी गति से सवार हो गया.

"रांड छिनाल कुतिया… छोटी-छोटी कच्छीयाँ पहनती है मेरे पैसों से! ऐश करती है मेरे पैसों से… और मजे लेगा कोई और? हँह!"

जयसिंह ने उसे पुकारा.

“मनिका!"

आज उन्होंने अपनी आवाज़ भी नीची नहीं की. मनिका सोती रही.

आज जयसिंह की हिमाक़त बढ़ चुकी थी. वे अब बेख़ौफ़ खिसक कर मनिका के करीब हो कर लेट गए. उन्होंने अपना हाथ उसके गाल पर रखा और सहलाने लगे. कुछ पल के बाद उन्होंने अपने हाथ का अँगूठा मनिका के गुलाबी होंठों पर रखा और उन्हें मसला. मनिका के रसीले होंठों को मसलते-मसलते उन्होंने अपना अँगूठा उसके मुँह में डाल दिया. मनिका के होंठों पर लगे लिपग्लॉस की ख़ुशबू उसकी साँसों के साथ बाहर आने लगी थी. जयसिंह की उत्तेजना बढ़ने लगी, उनका इरादा सिर्फ मजे लेने का नहीं था.

मनिका ने अपना दाहिना हाथ अपने सिर के नीचे रखा हुआ था और बायाँ हाथ मोड़ कर अपनी छाती के सामने बेड पर. जयसिंह ने बेड पर रखे उसके हाथ को धीरे-धीरे सहलाया. थोड़ा आश्वस्त होने पर वे खिसक कर मनिका के क़रीब आ गए और उसका हाथ उठा अपनी कमर पर रख लिया. दोनों के बीच अब सिर्फ कुछ ही इंच की दूरी थी. जयसिंह ने कुछ पल का विराम लिया. फिर उन्होंने अपना बायाँ हाथ धीरे-धीरे मनिका की कमर के नीचे घुसाना शुरू किया. कुछ पल की कोशिश के बाद उन्हें सफलता मिल गई और वे फिर थोड़ा रुक गए. उसके बाद वे अपना दाहिना हाथ मनिका की पीठ पर ले गए और उसके नीचे दबे अपने बाएँ हाथ से उसकी कमर को थाम लिया. इसके बावजूद मनिका ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. जयसिंह ने अब अपने बाजू कस मनिका को अपने से चिपटा लिया.

कुछ पल जयसिंह यूँ ही अपनी सोती हुई बेटी को बाँहों में लिए रहे, फिर एकदम से उसे अपने साथ खींचते हुए सीधे हो कर लेट गए. उनके ऐसा करते ही मनिका भी उनके साथ ही खिंच कर बेड पर उनकी साइड आ गई. इस दौरान मनिका जैसे ही थोड़ा ऊपर हुई थी उन्होंने उसके नीचे दब अपना हाथ ऊपर कर उसकी बगल में डाल लिया था. अब मनिका आधी उनकी बगल में और आधी उनकी छाती पर लगी हुई सो रही थी.

जयसिंह के इस कारनामे ने मनिका की नींद को थोड़ा कच्चा कर दिया था और वह थोड़ा हिलने-डुलने लगी. जयसिंह ने जड़वत: हो आँखें मींच ली ताकि उसके उठ जाने की स्थिति में बचा जा सके. लेकिन मनिका ने थोड़ा सा हिलने के बाद अपना सिर उनकी छाती पर टिकाया और अपनी एक टांग उठा कर उनकी जाँघ पर रख कर सोने लगी. जयसिंह को अपनी जाँघ से सटी अपनी बेटी की उभरी हुई योनि का आभास मिलने लगा और वे दहक उठे.

अब जयसिंह ने अपना दाहिना हाथ, जो अभी मनिका की पीठ पर था, उसे नीचे ले जा कर उसकी टी-शर्ट का छोर पकड़ा और ऊपर उठाने लगे. क्योंकि आज उनका एक हाथ मनिका के नीचे था, सो टी-शर्ट ऊपर करने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा. कुछ ही देर में वे अपनी बेटी की टी-शर्ट उसकी कमर से ऊपर कर उसकी पीठ तक उघाड़ चुके थे. पीछे से ऊपर होती टी-शर्ट आगे से भी ऊपर हो गई थी. मनिका की नाभि से ऊपर तक उसका बदन अब नग्न था.

जब जयसिंह को मनिका की टी-शर्ट के नीचे उसकी ब्रा का एहसास हुआ तो वे एक पल के लिए रुक गए. उनकी धड़कनें उनका साथ छोड़ने को हो रहीं थी. उन्होंने अब मनिका की टी-शर्ट को छोड़ा और धीरे-धीरे उसकी नंगी पीठ और कमर सहलाने लगे.

मनिका के नीचे दबे होने की वजह से वे अपना सिर उठा कर उसका नंगापन तो अच्छे से नहीं देख सकते थे, लेकिन अब उनके हाथ ही उनकी आँखें बन चुके थे. उन्होंने अब एक और दुस्साहसी कदम उठाते हुए, मनिका का लोअर भी नीचे करना शुरू कर दिया. लेकिन कुछ पल बाद उन्हें रुकना पड़ा क्योंकि लोअर मनिका के नीचे दबा हुआ था और उसने एक पैर भी मोड़ रखा था. फिर भी उन्होंने कुछ देर की कोशिश के बाद अपनी सोती हुई बेटी की गांड का ऊपरी हिस्सा उसके लोअर से बाहर निकाल ही लिया.

मनिका की सेक्सी थोंग पैंटी का इलास्टिक और उसके नितम्बों के बीच फंसा पैंटी का पतला सा पिछला भाग अब उघड़ चुके थे. जयसिंह हौले-हौले मनिका की गांड से लेकर पीठ तक हाथ चला रहे थे. मनिका के मखमली स्पर्श ने उनके लंड को तान दिया था और वह अब मनिका की जाँघ के नीचे दबा हुआ कसमसा रहा था.

जयसिंह ने अपने दाहिने हाथ को उनकी टांग पर रखी मनिका की जाँघ के नीचे डाला और अपने लंड को सीधा कर थोड़ा आज़ाद किया. वे अपना हाथ वापस निकालने लगे ही थे कि उनकी उत्तेजना चरम पर आ पहुँची. उन्होंने अपना हाथ बाहर न निकाल, मनिका की टांगों के बीच दे दिया और उसकी जवान योनि को छुआ. जयसिंह के बदन में मानो गरमाहट का एक सैलाब सा उठने लगा. मनिका की योनि उनके हाथ में किसी तपते अंगारे सी महसूस हो रही थी. वे आनंद से निढाल हो गए और बरबस ही अपनी बेटी की कसी हुई चूत को दबाने लगे.

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वाह अब आएगा मजा
 

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अगली सुबह मनिका की आँख एक बार फिर जयसिंह से पहले खुल गई.

वैसे भी रात की घटना के बाद उसे ज़्यादा गहरी नींद नहीं आई थी. उठते ही उसकी नज़र अपने पिता की तरफ़ गई. जयसिंह की करवट अब दूसरी तरफ़ थी, मगर उनके सुडौल कूल्हों की बनावट बरमुडे में से झलक रही थी. मनिका की धड़कनें बढ़ने लगी.

“पापा की बॉडी… हाय उनके बम्स कितने बड़े हैं… और उनका डिक तो…”

मनिका ने किसी तरह अपने-आप को सम्भाला और उठ कर बाथरूम में गई. टॉयलेट सीट पर बैठ कर जब वो पेशाब करने लगी तो उसे अपनी योनि में एक तरंग उठती हुई महसूस हुई. उसका रोम-रोम सिहर उठा था.

“पापा का हाथ मेरी पुसी पर था… हाय! कैसे ज़ोर से दब गया था जब मैं पीछे हटी थी… ये मैं फिर से उल्टा-सीधा सोचने लगी हूँ…”

कुछ देर बाद मनिका फ़्रेश हो कर बाहर निकल आई. जयसिंह अभी भी सो रहे थे.

कुछ देर खड़े-खड़े उन्हें देखने के बाद, जैसे किसी मंत्र की वशीभूत सी वो दबे पाँव बेड की दूसरी ओर गई.

उसके पिता का बरमूडा पिछली रात की भाँति ही तना हुआ था. जयसिंह का लंड सुबह की मस्ती में था. मनिका ने एक पल उसे निहारा और फिर किसी चोरनी की तरह जल्दी से पलट कर काउच पर जा बैठी. लेकिन वहाँ बैठे-बैठे भी उसे जयसिंह का पूरा नजारा मिल रहा था.

“मेरा तो दिमाग़ ख़राब हो गया है… ये मैं क्या सोच रही हूँ… पापा कितने अच्छे हैं… मुझे कितना प्यार से रखते हैं… और एक मैं हूँ कि… और वो गंदा सपना… पक्का उन्हें तो मैं बिगड़ैल ही लगती होऊँगी…”

मनिका ने मुँह फेर कर अपने विचारों के क्रम को सम्भालना चाहा. लेकिन लाख कोशिश के बाद भी उसका चेहरा थोड़ी-थोड़ी देर में अपने पिता की देह की ओर घूम जाता था. आज मानो एक-एक पल मुश्किल से कट रहा था.

उधर रोज़ जल्दी उठ जाने वाले जयसिंह थे की उठने का नाम नहीं ले रहे थे.

“और मैंने पापा को ऐसे भी बोल दिया कि मेरी फ़्रेंड्स उन्हें मेरा बॉयफ़्रेंड कहती हैं… ऐसी बात अपने पापा को बोलता है कोई भला? पर पापा भी तो अब मुझे गर्लफ़्रेंड के देते हैं… और स्वीटहार्ट और डार्लिंग भी बुलाते हैं कभी-कभी… पर वो तो प्यार से बुलाते हैं… मेरी ही मत मारी गई है…”

आख़िर मनिका ने मन ही मन एक फ़ैसला लिया.

“अब से पापा के साथ बिलकुल अच्छे से रहूँगी… decent… बन के…”

उसका ऐसा सोचना हुआ और जयसिंह करवट ले सीधे लेटे. उनके लंड का तम्बू अब सीधा खड़ा था.

मनिका के कान गरम हो गए.


उस रोज़ जब जयसिंह की आँख खुली तो पाया कि कमरे में हलचल है. वेटर नाश्ता लगा रहा था.

उन्होंने कमरे में नज़र दौड़ाई तो पाया मनिका नहाई-धोई काउच पर बैठी है. उस से भी अचरज की बात थी कि उसने आज एक सलवार-सूट पहन रखा था.

“पापा! उठ गए आप… कितना आलस करते हो…” मनिका ने चहक कर कहा था.
“हम्म… क्या..?” जयसिंह आँखें मलते हुए उठ बैठे.
“पापा, आज मेरे एडमिशन का प्रॉसेस पूरा करना है… और आप इतना देर से उठे हो.”
“हाँ भई… एक दिन जल्दी क्या उठ गई तुम…” जयसिंह होश सम्भालते हुए बोले.

वेटर भी उनकी ठिठोली पर मंद-मंद मुस्कुरा रहा था.

“हाहाहा… पापा मज़ाक़ कर रही हूँ…” मनिका वेटर की तरफ़ देख खिलखिलाई, “और मैं कल भी जल्दी उठी थी…”
“हाँ-हाँ मान लिया… मैं ही लेटलतीफ हूँ…” जयसिंह नाटकीय अन्दाज़ में बोल कर बेड से उठे.

मनिका और वो वेटर दोनों ही उनकी तरफ़ देख रहे थे.

वेटर के चेहरे पर अचरज था और मनिका के चेहरे पर ख़ौफ़ भारी लालिमा.

जयसिंह अपने लंड का तम्बू बिना समेटे ही उठ खड़े हुए थे, और जब उनको इसका एहसास हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

कमरे में खामोशी छा गई.

लेकिन जयसिंह ने यूँ जताया जैसे कुछ हुआ ही न हो, और बाथरूम की ओर बढ़ चले.

“हो गया मैम…” वेटर ने हौले से कहा.
“हैं..?” मनिका की तंद्रा टूटी.
“जी वो ब्रेकफ़ास्ट लग गया है…” वेटर जाने को हुआ.

मनिका ने आदत अनुसार पास रखा जयसिंह का बटुआ उठाया और उसे पाँच सौ रुपए थमा दिए.

“ये आपके फादर हैं?” बैरे ने थोड़ा संयम से पूछा.
“ज… जी…” मनिका ने यंत्रवत कहा.
“Thank you ma’am…”

वेटर के जाने के बाद मनिका धम्म से सोफ़े पर बैठ गई.

“हे राम! उस वेटर के सामने पापा… उनका डिक कैसा लग रहा था… और उस वेटर ने क्या सोचा होगा… कि मैं अपने पापा के साथ ऐसे सोती हूँ… shit!”

उसने आज सुबह जो समझदारी और सुश्रिता से रहने का प्रण लिया था, उसकी धज्जियाँ इस बार उसके पिता उड़ा गए थे.

उसने तो इसी के चलते आज एक सलवार-सूट पहना था और पापा के लिए नाश्ता भी मँगवाया था. लेकिन अब उसका दिमाग़ फिर उसी दिशा में चल पड़ा.

“पापा को पता नहीं चला कि उनका डिक ऐसे… इरेक्ट… है?”

पर फिर उसे ध्यान आया कि जयसिंह भी जल्दी से बाथरूम में चले गए थे. मतलब उन्हें भी इस बात का पता तो चल गया था.

“पर ऑनलाइन तो जो… डिक… मैंने देखे थे… वो नॉर्मल भी थे… I mean… सब तो इरेक्ट नहीं थे… लेकिन पापा का तो हमेशा… ऐसे ही रहता है… हे भगवान! मैं फिर वही सब सोचने लगी… पर वो वेटर तो… अपने साथ वालों को बता देगा… हाय!”

–​

बाथरूम में जयसिंह भी थोड़ा सोच में पड़े थे.

“अनर्थ तो नहीं हो गया… रांड आज पहले कैसे उठ गई… रात को इसकी चूत दबाते हुए कब नींद आ गई पता ही नहीं चला… सुबह उठी होगी तब इसने अपनी हालत देखी तो होगी ही..? और आज सलवार-सूट पहने कैसे बैठी है ये… और उस वेटर के सामने पापा-पापा कर रही थी साली, इधर मैं खड़ा लंड लिए था… चलो वो तो कोई बात नहीं… होटल वालों को अपने पैसे से मतलब है…”

क्यूँकि अंडरवियर तो उनके पास था नहीं सो जयसिंह जब फ़्रेश होकर बाहर आए तो उन्होंने लंड को बरमुडे के इलास्टिक में दबा लिया था.

मनिका सोफ़े पर थोड़ा सधी हुई बैठी थी. उनकी तरफ़ देख उसने हल्की सी मुस्कान दी.

“पापा, ब्रेकफ़ास्ट..?”
“हाँ भई. क्या कुछ है देखें, आज तो जल्दी उठ कर मेम-साहिबा ने ऑर्डर किया है.” जयसिंह ने माहौल थोड़ा सम्भालने के उद्देश्य से मज़ाक़ किया.
“हेहे पापा… आज मैंने पास्ता और जूस, और सैंडविच मंगाए हैं.”

मनिका ने सूट की चुन्नी अपनी छाती के आगे सेट करते हुए कहा.

दोनों बैठ कर नाश्ता करने लगे. जयसिंह ने रोज़ की तरह अख़बार खोल लिया था.

उधर मनिका की नज़र ना चाहते हुए भी उनकी टांगों के बीच जा ठहरी.

जयसिंह ज़रा टांगें खोल कर बैठे थे, जिससे बरमूडा उनके अधोभाग पर कस गया था. लंड को ऊपर कर दबाने की वजह से मनिका को लंड की एक मूसल-नुमा आकृति नज़र आ रही थी. उसकी चौड़ाई देख पास्ता उसके हलक में जैसे अटक सा गया था. लंड की वह आकृति जयसिंह कि टी-शर्ट के नीचे जाकर विलीन हो रही थी.

“Oh god! Is that papa’s cock?”

फिर उसका ध्यान बरमुडे में कसमसा कर क़ैद जयसिंह के टट्टों पर गया.

“And his balls..!”

अनायास ही उसकी आँखों के सामने वो पॉर्न साइट का नजारा तैर गया जिसमें वो लड़की उस मर्द का लंड पकड़ कर उसके टट्टे चाट रही थी.

मनिका ने झटपट जयसिंह की तरफ़ देखा, कि कहीं उन्होंने उसकी नज़र भाँप ना ली हो. लेकिन वे तो अख़बार पढ़ने में तल्लीन थे.

“छी: मैं क्या सोचती जा रही हूँ कल से…” उसने अपने-आप को धिक्कारा.

–​

नाश्ता कर जयसिंह नहाने घुस गए.

मनिका ने वेटर को बुला कर टेबल साफ़ करवा दी और काउच पर जा बैठी.

कुछ देर बाद जयसिंह तैयार हो कर निकल आए. जब उन्होंने मनिका से कहा कि उसके कॉलेज का काम पूरा कर आते हैं, तो मनिका बोली,

“पापा, आप चले जाओ ना… मेरा वैसे भी काम नहीं है वहाँ कुछ…”
“अरे, पर तुम क्या करोगी अकेले…”
“कुछ नहीं पापा, थोड़ा रेस्ट करने का मन है आज.”
“अच्छा जी. एक दिन जल्दी क्या उठी कि नाश्ता करते ही वापस सोने की तैयारी.” जयसिंह ने मज़ाक़ में उलाहना दिया.
“हेहे पापा… आप चले जाओ ना… please?” मनिका ने झेंपते हुए कहा.
“ठीक है, ठीक है…”

जयसिंह को अंदेशा हो चला था कि मनिका का मन अशांत है. अपने प्लान को सफल बनाने के लिए वे उसे इसी तरह असमंजस में रखना चाहते थे. वे जानते थे कि जितना वह अकेले में सोचेगी और परेशान होगी, उतना ही उसे बहलाना उनके लिए आसान होता जाएगा. सो वे उसे वहीं काउच पर बैठा छोड़ उसकी कॉलेज की फ़ीस जमा कराने निकल पड़े.

वैसे अपनी अनुपस्थिति में भी मनिका को सताने का एक प्लान उनके मन में बन चुका था.



जयसिंह के चले जाने के कुछ देर बाद मनिका अपना अशांत मन लिया काउच से उठी.

अपनी चुन्नी एक तरफ़ रख वो बेड पर जा लेटी और सोचने लगी,

“अब बस… मैंने जबसे वो गंदी वेबसाइट देखी है तभी से मेरा दिमाग़ ख़राब होने लगा है… अपने पापा के बारे में गंदा-गंदा सोच रही हूँ. पापा और मेरे बीच एक स्पेशल रिश्ता बन गया है… लेकिन मैं पता नहीं क्या-क्या सोचे जा रही हूँ… सुबह जो हुआ वो पापा से अनजाने में हुआ था… वरना रोज़ तो ऐसा नहीं होता… बस क़िस्मत ही ख़राब चल रही है, एक गलती सुधारने जाती हूँ उतने में कुछ और अनर्थ हो जाता है…”

उसका ऐसा सोचना था कि ‘टिंग!’ उसके फ़ोन की मेसेज टोन बजी.

उसने देखा पापा का मेसेज आया था. न जाने क्यूँ वो थोड़ा असहज हो गई.

फिर जब उसने मेसेज पढ़ा तो उसका दिल और तेज धड़क उठा.

Papa: Kya kar rahi hai meri jaan?

मनिका ने जयसिंह के सम्बोधन पर बहकते अपने मन को क़ाबू करते हुए लिखा.

Manika: Kuch nahin papa, bas rest hi kar rahi thi. Aap pahunch gaye?

उसने देखा कि उसका जवाब जाते ही जयसिंह टाइप करने लगे थे.

Papa: Haan, pahunch to gaya hu lekin bheed kaafi hai… aur fees waali line bhi kaafi lambi hai.
Manika: Oh… mujhe aa jana chahiye tha aapke saath… main karwa aati fees deposit.
Papa: Arey koi baat nahin… tum chinta matt karo. Aaj tumhara admission pakka karwa kar hi aaunga.
Manika: Ji papa.
Papa: Waise agar tum saath aa jaati to mera mann thoda laga rehta. Ab yahan baith kar koi aur girlfriend dekhni padegi.

मनिका अनायास ही मुस्का उठी थी.

Manika: Dekh lo to… main kahan kuch keh rahi hu.
Papa: Nahin bhyi… mere liye meri girlfriend hi achhi hai.
Manika: Hehe papa…

इसके बाद कुछ देर तक जयसिंह का कोई जवाब नहीं आया.

पापा शायद फ़ीस वाला काम करने लग गए हों यह सोचकर मनिका ने फ़ोन एक तरफ़ रखा ही था कि एक के बाद एक उसके फ़ोन में मेसेज आने लगे, ‘टिंग, टिंग, टिंग!’

मनिका ने फ़ोन अनलॉक कर देखा तो पाया कि पापा उसकी तस्वीरें भेज रहे थे, जो उन्होंने उसके नए कपड़ों में लीं थी.

एक-एक कर तस्वीरें डाउनलोड होने लगी और मनिका की सरगर्मी बढ़ने लगी.

शुरू की तस्वीरों में तो वह जींस और टॉप पहने थी लेकिन फिर जब उसकी शॉर्ट्स और स्कर्ट वाली फ़ोटो आईं तो मनिका के गाल गरम होने लगे. पिछली रात की घटना के बाद अब उसे ये सभी पिक्स बहुत ज़्यादा अभद्र लग रही थी.

“Oh God! These pics are so revealing… मैंने उस वक्त क्यूँ नहीं सोचा ये..?”

लेकिन अभी तो जयसिंह का खेल बाक़ी था. उन्होंने उसकी पार्टी ड्रेस वाली फ़ोटो भेजनी शुरू की.

मनिका को याद आया कि उस दिन जब वो इन फ़ोटोज़ को डिलीट कर रही थी उसी बीच पापा के ऑफ़िस से कॉल आ गई थी. मतलब ये सब पिक्स पापा के पास ही पड़ी थी.

“हाय!” उसके मुँह से बरबस ही निकला.

फिर वो तस्वीरें आईं जिनमें वह उनकी गोद में बैठी थी.

“पर ये तो मैंने डिलीट करी थी ना…?” उसके मन में खटका, “शायद सारी नहीं की…”

अपना उभरा वक्ष, गोरी जाँघें और उसके चेहरे के साथ लगा जयसिंह का मुस्कुराता चेहरा देख वो आतंकित हो उठी.

तभी जयसिंह ने उसकी लेग्गिंग्स वाली तस्वीरें भेजनी शुरू कर दी. पहली तस्वीर देखते ही मनिका के होश उड़ गए.

कैमरे से तस्वीर लेने पर वैसे भी ज़्यादा विस्तृत छवि उभर कर आती है. उन तस्वीरों में उसकी वो महीन स्किन-कलर की लेग्गिंग मानो नज़र ही नहीं आ रही थी. ऊपर से जयसिंह ने उसके बाथरूम से बाहर आते ही फ़ोटो लेना शुरू कर दिया था. हर तस्वीर में वह उनके क़रीब आती जा रही थी, और ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उसने नीचे सिर्फ़ पैंटी पहन रखी है.

“हाऽऽऽऽ! पापा ने ऐसी पिक्स ली थी उस दिन..!” मनिका को बुख़ार आने लगा था.

आख़िरी की कुछ तस्वीरों में, जिनमें वह अपने पिता के बिलकुल सामने खड़ी इठला रही थी, उसके अधोभाग का एक-एक उभार साफ़ नज़र आ रहा था. उस छोटी सी पैंटी में उभर रहे अपने योनि के कसाव को देख मनिका के माथे पर पसीने की बूँदें छलक आईं थी.

Papa: Ye lo bhyi tumhari pics…

इस बार मेसेज टोन बजते ही मनिका उचक पड़ी थी. कांपते हाथों से उसने लिखा,

Manika: Thank you papa…
Papa: Pasand aayi pics tumhen?

इधर मनिका का दिल दहल रहा था, फिर भी उसने लिखा,

Manika: Ji papa…
Papa: Chalo achcha hai, varna tum hamesha kehti rehti ho ki aapko photo lena nahin aata.

ये बात मनिका ने जयसिंह से कई बार कही थी जब वे घूमने जाते थे और एक दूसरे की फ़ोटो खींचा करते थे. लेकिन अब उस से कुछ कहते न बना.

Manika: Hehe papa… kaam khatam ho gaya?
Papa: Abhi kahan… aadha ghanta aur lag jayega yahan se nikalne mein…
Manika: Oh… okay.
Papa: Tab tak tum rest karlo, fir kahin bahar lunch pe chalte hain, what say?
Manika: Ji papa.
Papa: Bye sweetheart, see you soon 😘
Manika: Bye papa.

मनिका ने फिर से वो तस्वीरें देखनी शुरू की. हर फ़ोटो के साथ उसके बदन का ताव बढ़ता जा रहा था.

“पापा के फ़ोन में ये सारी पिक्स हैं… हाय राम! पापा पक्का मुझे बिगड़ैल समझते होंगे ये पिक्स देखने के बाद तो… पर वो कुछ कहते क्यूँ नहीं..? अभी बाहर कहीं जाने का बोल रहे थे… उनको फ़र्क़ नहीं पड़ता क्या?”

उसके अंतर्मन ने उसे कचोटा,

“क्या उन्हें ऐसी पिक्स देख कर… वैसा नहीं लगता होगा?”

मनिका का हाथ उस फ़ोटो पर रुका हुआ था जिसमें वो उस छोटी सी पार्टी ड्रेस में जयसिंह की गोद में बैठी थी. उसकी जाँघें लगभग पूरी नंगी थी, ऐसा लग रहा था मानो उसने नीचे कुछ पहना ही ना हो. उसे ऐसा लगा कि उसने ये तस्वीर पहले भी देखी है.

उसने कांपती अंगुलियों से फिर एक बार ब्राउज़र खोल सर्च किया “Big Black Cock Lover”. एक दो क्लिक करते ही उसे वो साइट मिल गई, और कुछ ही पल बाद वो फ़ोटो भी. ठीक वैसा ही दृश्य था, उसकी हमउम्र वो गोरी लड़की उस काले आदमी की गोद में बैठी थी. उसने भी एक काली टी-शर्ट पहनी थी, जिसके नीचे गोरी जाँघें उघड़ी पड़ी थी, बस मनिका और जयसिंह वाली तस्वीर के मुक़ाबले उसका वक्ष थोड़ा ज़्यादा नज़र आ रहा था.

मनिका ने झटपट वो साइट बंद कर दी. आतंकित, आशंकित मन से उसने फ़ोन एक तरफ़ रखा और पास रखे दूसरे तकिए को बाँहों में भींच आँखें मींच ली.

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कमरे में खटर-पटर सुन मनिका की तंद्रा टूटी.

जयसिंह आ चुके थे. मनिका को याद आया कि उनके पास भी कमरे में घुसने के लिए की-कार्ड था. वो थोड़ा घबरा कर उठ बैठी.

अपने पिता को देखते ही उसका हाथ अपने वक्ष की ओर गया था. उसकी चुन्नी तो काउच पर रखी थी.

“अरे उठ गई…” जयसिंह ने मुस्कुरा कर कहा और उसकी ओर आने लगे.
“ज… जी पापा… आ गए आप?” मनिका से और कुछ कहते न बना.
“हाँ भई आ गया हूँ, तभी तो दिखाई पड़ रहा हूँ सामने…” जयसिंह ने कुछ दिन पहले उसके किए मज़ाक़ की तरह ही चुटकी ली.
“हेहे पापा…” मनिका का ध्यान तो उसके पहने खुले गले के सूट में अटका था. चुन्नी भी मुई दूर पड़ी थी.

जयसिंह उसके पास आ बैठे. उनके हाथ में एक काग़ज़ था, जिस उन्होंने उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा,

“लो भई… अब आप पक्की दिल्ली की रहनेवाली हो गई हैं.”

अपने चिंतित मन के बावजूद मनिका का ध्यान एक पल भटक गया. उसने अपने एडमिशन वाली स्लिप को हाथ में लेते हुए ख़ुशी से कहा,

“Oh papa! Really! Thank you so much!”
“Anything for you my darling.” जयसिंह का फिर वही सम्बोधन था, फिर उन्होंने पूछा, “लंच करने चलें फिर?”
“जी पापा…” मनिका ने थोड़ा धीमे से सिर हिलाते हुए कहा.

उस दिन जयसिंह उसे एक हेरिटेज रेस्टोरेंट में खाना खिलाने लेकर गए. वहाँ बिलकुल राजसी ठाठ-बाठ से उनका स्वागत सत्कार किया गया. मनिका भी अपने मन की शंकाओं से मुक्त हो एन्जॉय करने लगी. खाना खा लेने के बाद उसने और जयसिंह ने वहाँ रखे पुराने जमाने के फ़र्निचर और साजो-सामान के साथ कुछ तस्वीरें भी ली. उस दौरान एक पुराने तख़्त पर बैठ जयसिंह ने उसे अपनी गोद में आने का इशारा किया था. मनिका एक पल तो ठिठक गई थी, लेकिन फिर उनकी गोद में जा बैठी. उसने सोचा कहीं उसके मना कर देने पर पापा को अजीब ना लग जाए.

खाना-पीना कर वे दोनों वापस होटल लौट आए.

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लेकिन कमरे में आते ही एक बार फिर मनिका थोड़ी आशंकित हो गई.

“सो मनिका जी… अब तो पैकिंग वग़ैरह कर ली जाए? सब काम हो गए दिल्ली के… कि नहीं?” जयसिंह काउच पर बैठते हुए बोले.
“हेहे पापा… हाँ हो तो गए…” उनका सहज बर्ताव देख मनिका भी थोड़ी सहज हुई.
“या और कुछ दिन मस्ती करनी है..?” जयसिंह ने मुस्कुरा कर कहा.
“हैं… अब क्या कहेंगे घर पे..?” मनिका ने अचरज से पूछा.
“अरे उसकी टेन्शन तुम मत लो… रुकना है तो बताओ…”

मनिका कुछ पल चुप रहने के बाद बोली,

“नहीं पापा. अब चलते हैं घर. वैसे भी मुझे कुछ दिन में वापस आना ही होगा.”
“जैसी तुम्हारी मर्ज़ी…” जयसिंह ने नाटकीय अन्दाज़ में सिर झुकाते हुए कहा.
“हाहाहा… पापा कितने नाटक आते हैं आपको.” मनिका खिलखिला उठी.

उसके बाद जयसिंह ने ट्रेन में सीट करवाने के लिए अपने ऑफ़िस में फ़ोन किया. ट्रेन का रिज़र्वेशन एक दिन बाद का मिला.

“जहाँ इतने दिन रुक गए वहाँ एक दिन और सही… क्यूँ?” जयसिंह ने फिर मज़ाक़िया अन्दाज़ में मनिका से कहा था.

मनिका ने भी मुस्कुरा कर हामी भर दी थी.

अब जयसिंह काउच पर जा बैठे और टीवी चला लिया. मनिका भी बिस्तर में बैठी अपने फ़ोन में देख रही थी. हालाँकि उसका ध्यान अपने पिता की ओर ही था.

“पापा कितने आराम से बात कर रहे हैं… और मैं… कितना फ़ालतू दिमाग़ चला रही हूँ दो दिन से… पर वो पिक्स वाली बात… पापा ने तो कुछ नहीं कहा पर… सॉरी बोलूँ क्या उनको?”

इसी ऊहापोह में वो दिन भी बीत गया.

उस शाम मनिका ने उठ कर थोड़ी बहुत पैकिंग कर ली थी. बाक़ी उनके पहनने के कपड़े इत्यादि उसने अगले दिन पैक करने का सोच छोड़ दिए थे.

रात को डिनर के बाद जयसिंह के कहने पर वे कुछ देर होटल के पार्क में घूम आए थे. हालाँकि जयसिंह ने जताया नहीं लेकिन मनिका की चुप्पी पर उनका पूरा ध्यान था.

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घूमने के बाद उन्होंने मनिका को उसकी फ़ेवरेट आइसक्रीम खिलाई थी और फिर वे कमरे में आ गए.

रोज़ की तरह मनिका नहाने चली गई.

बाहर जयसिंह ने अब अपने प्लान के आख़िरी चरण का उदघाटन शुरू किया. मनिका के जाते ही जयसिंह ने उसकी अटैची खोली और उसमें रखा लांज़रे बॉक्स निकला. उसमें मनिका की गुलाबी और आसमानी थोंग रखी थी.

“मतलब आज रांड हरी या बैंगनी कच्छी में है… मेरा बैंगन कब लेगी पता नहीं…” उन्होंने हवस से हाँफते हुए सोचा था.

फिर उन्होंने उसकी आसमानी थोंग निकाल कर सब सामान जस का तस रख दिया.

कुछ देर बाद मनिका नहा कर निकाल आई. जयसिंह पिछली रोज़ की तरह ही सिर्फ़ तौलिया लपेटे बैठे थे. लेकिन आज उन्होंने टांगें नहीं खोल रखीं थी. आख़िर रोज़-रोज़ एक पैंतरा काम में लेने से बात बिगड़ सकती थी.

एक बार फिर मनिका उन्हें देख अचकचाकर खड़ी हो गई थी. तो वे मुस्कुराते हुए उठे, और उस समय बहुत ही चतुराई से सिर्फ़ इतने पैर खोले कि मनिका को उनके लटकते लौड़े की झलक मिल जाए.
बाथरूम से घुसते वक्त उन्होंने एक नज़र मुड़ कर देखा तो मनिका को निढाल सा बेड पर बैठते पाया. उसकी नज़र नीची थी.

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“हे भगवान! फिर से… पापा का डिक… मेरी नज़र भी तो सीधा वहीं जाती है…” मनिका ने बेसुध बैठे हुए सोचा.

इसी तरह बैठे हुए मनिका अपने आप को कोस रही थी कि जयसिंह नहा कर निकल भी आए. मनिका ने अब तक बिस्तर में घुस कर कम्बल ओढ़ लिया था. उसे क्या पता था अभी तो उसके पिता उस पर एक और वज्रपात करने वाले थे.

जयसिंह अपने कपड़े और तौलिया रखने बिस्तर की बग़ल में पहुँचे. मनिका उसी तरफ़ सोया करती थी. उन्होंने बड़ी ही चतुराई से अपने कपड़ों के बीच छुपाई उसकी थोंग वहाँ सामान के पास नीचे गिरा दी.

“हाँ भई… क्या इरादा है फिर?” जयसिंह ने मनिका को बहलाते हुए कहा.
“क्या पापा… कुछ इरादा नहीं है मेरा तो…” मनिका हल्का मुस्काई.
“पूरा सामान नहीं पैक किया तुमने तो पूछ रहा हूँ… कहीं रुकने का इरादा तो नहीं?”
“हेहे… नहीं पापा. ट्रेन तो परसों की है, सो कल पैक कर लूँगी बाक़ी का सामान.” मनिका बोली.
“अच्छा-अच्छा…” कहते हुए जयसिंह अपनी अटैची में सामान रखने लगे.

मनिका उनकी ओर ही देख रही थी.

सामान रखने के बाद जयसिंह थोड़ा घूमे और फिर थम गए. मनिका ने देखा कि उन्होंने अपना पैर एक ओर कर फ़र्श से कुछ उठाया था.

“पूरा दिन इस रूमाल को जेब में ढूँढ रहा था… और ये यहाँ… ओह!” जयसिंह ने किसी मंझे हुए ऐक्टर की तरह प्रतिक्रिया दी.
मनिका कुछ समझ पाती उस से पहले ही, उन्होंने अपने हाथ में पकड़ी पैंटी उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा,

“ये तो आपकी चीज़ लग रही है.”

मनिका सन्न रह गई.

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वाह क्या बात ह इसी कहानी आज तक नहीं पढ़ा बहुत ही सेक्सी और लौड़ा को खड़ा कर देनी वाली कहानी ह

अब मोनिका भी लौड़ा के प्रति आकर्षित हो रही ह मगर मोनिका को पता नहीं ह जब मोटा और लंबा उसके बाप का लौड़ा उसकी छोटी सी कमसिन अंचुदी बुर में जाएगा तो उसकी क्या हालत होगी

अब तो मेरी राइटर साहिबा ही बता पाएगी
 
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