31 - राँड
हितेश कमरे में दाखिल हुआ तो अंधेरे में मनिका को बेड के पास खड़ा देख एक पल ठिठक गया.
"आऽऽऽ..." उसके मुँह से निकला.
"क...क्या?" मनिका ने घबरा कर कहा. हितेश की आवाज़ सुन कहीं उसकी माँ ऊपर आ गई तो?
"ओह! दीदी डरा दिया आपने." हितेश बोला.
"क्या कर रहा है इतनी रात को, सोता क्यूँ नहीं?"
डरी होने के बावजूद मनिका ने आवाज़ में थोड़ी सख़्ती लाते हुए कहा था. उधर हितेश ने गेट के पास लगे स्विच से कमरे की लाइट ऑन कर दी थी।
"अरे दीदी वो कनु के पास मेरे लैपटॉप का चार्जर था. वो लेने आया... था." हितेश बोलते-बोलते लड़खड़ा गया. मनिका ने गंजी और शॉर्ट्स वाला वही नाइट सूट पहन रखा था जिसने उसके पिता को बहका दिया था.
"ले ले जा, और टाइम से सो जाना." मनिका ने धड़कते दिल से कहा.
"हाँ हाँ, आप भी मम्मी की तरह चिढ़ते रहते हो बस." हितेश ने नज़र घुमा जल्दी से टेबल की ओर जाते हुए कहा.
हितेश ने जल्दी से चार्जर निकाला था और कमरे से बाहर निकल गया था. मनिका ने मन ही मन शुक्र मनाया, पर अभी मुसीबत टली नहीं थी. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जयसिंह उसके कमरे में चले आए थे और वो भी सिर्फ़ बरमूडा पहन कर. अब जल्दी से पापा को नीचे भेजना पड़ेगा.
हितेश के जाते ही मनिका लगभग भाग कर बाथरूम की तरफ़ गई.
-
आमतौर पर जल्दी से ना घबराने वाले जयसिंह भी बाथरूम के दरवाज़े की ओट में थोड़ा घबराए हुए खड़े थे. लेकिन हितेश और मनिका के बीच की बातचीत सुनने के बाद उनका संयम लौटने लगा था. हितेश सिर्फ़ अपने काम से आया था न कि उनकी आहट या बातचीत सुनकर. तभी मनिका बाथरूम में घुसी.
"पापा! आप जाओ जल्दी..." उसने फुसफुसाते हुए कहा.
जयसिंह ने हाथ से लाइट का स्विच टटोला और बाथरूम में भी उजाला हो गया. उन्हें इस तरह सामने पा कर मनिका ठिठक गई और पीछे हटी. जयसिंह ने आगे बढ़ उसे पकड़ना चाहा था.
"पापाऽऽऽ! पागल हो गए हो क्या आप. जाओ ना!" मनिका के चेहरे पर घबराहट साफ़ झलक रही थी.
"क्या हुआ मनिका, बात नहीं कर रही मुझसे?" जयसिंह ने उसकी कलाई थाम अपनी ओर खींचा.
"कर लूँगी पापा... आप प्लीज़ अभी चले जाओ. हितेश आ जाएगा..." मनिका ने मिन्नत की.
"पहले बताओ मुझे क्या हुआ?" जयसिंह ने हाथ से उसका चेहरा अपनी ओर घुमाया.
"कुछ नहीं पापा... थोड़ा अजीब सा लग रहा था..?" पहले ही डरी हुई मनिका ने उनके स्पर्श से कांपते हुए कहा.
"क्या अजीब लग रहा है?" जयसिंह ने उसकी आँखों में झांक कर पूछा.
"आ... आपके साथ ऐसे..." मनिका बड़बड़ाई.
"हम्म." कहते हुए जयसिंह ने उसे अपने नग्न आग़ोश में ले लिया.
"पापा प्लीज़... मत करो ना." मनिका ने कहा.
"क्या?" जयसिंह ने उसकी पीठ सहलाते हुए उसके कान में कहा था.
डर और उत्तेजना का एक पुराना रिश्ता है. पकड़े जाने का डर और जयसिंह के प्रति उसका आकर्षण अब मनिका के उन नैतिक मूल्यों पर हावी होने लगे थे जिनके चलते उसने अपने पिता से दूरी बनाने का प्रयास किया था.
जयसिंह उसके बदन को सहलाते हुए उसके कान में मीठी-मीठी बातें किए जा रहे थे, कि वह बहुत सुंदर है और कैसे वे उसे इतना चाहते हैं. आख़िर मनिका के हाथ, जो उसने उनका आलिंगन रोकने के लिए जयसिंह के कंधों पर रख रखे थे, ढीले पड़ने लगे. ये एहसास होते ही जयसिंह ने उसे बाँहों में कस लिया था.
पूरे दिन की चिंता के बाद जयसिंह का सहारा पाते ही मनिका निढाल हो गई, और उनके बाजुओं में अपने शरीर को ढीला छोड़ समाने लगी.
"ओह पापा! आप तो मेरी जान निकाल कर ही मानोगे..." उसने तड़पते हुए कहा.
"हाहा, अरे अपनी जान की जान कैसे निकाल सकता हूँ मैं... मेरी जान तो तुमने निकाल रखी है सुबह से, क्या हुआ बताओ ना, क्यूँ नाराज़ हो?" जयसिंह ने उसके कान के पास मादकता से फुसफुसा कर कहा.
"ऊँह... पापा, आज वो दादी जो कह रही थी..."
"क्या कह रही थी?"
"आपको पता तो है... आप भी तो वहीं बैठे थे." मनिका ने जयसिंह की छाती में मुँह छुपा रखा था.
"नहीं मुझे नहीं पता तुम किस बात के लिए कह रही हो." जयसिंह अनजान बने रहे.
"रहने दो फिर..."
"नहीं, बताओ ना, क्या कह दिया दादी ने ऐसा कि तुम मुझसे नाराज़ हो गई, मैं भी तो जानूँ?"
"आप मानते ही नहीं मेरी कोई बात... आपको पता तो है मैं उस... रा...'राँड'... वाली बात का कह रही हूँ."
"हैं? लेकिन उस से तुम्हारी नाराज़गी का क्या वास्ता?" जयसिंह भोले बनते हुए बोले.
"मैं भी तो... उन लड़कियों जैसे कपड़े... आप को पता तो है मैं क्या कह रही हूँ!" मनिका ने चेहरा ऊपर कर एक नज़र उनके चेहरे पर डाली थी. उसके माथे पर शिकन थी.
"ओहो, तुम भी ना..." जयसिंह ने कहा और एकदम से पीछे हट अपना एक हाथ मनिका के घुटनों के पीछे लेजा कर उसे गोद में उठा लिया.
"पापा! क्या कर रहे हो?" मनिका सकपका गई और उसकी घबराहट लौट आई.
जयसिंह ने उसकी प्रतिक्रिया को नज़रअन्दाज़ कर दिया और उसे लिए हुए बाथरूम से बाहर आ गए. वे चलते हुए कमरे के दरवाज़े तक गए और मनिका की आँखों में देखते हुए दरवाज़े की कुंडी की तरफ़ देखा. मनिका उनका इशारा समझ गई और उसने कांपता हुआ हाथ बढ़ा गेट अंदर से बंद कर दिया. अब जयसिंह उसे लेकर बिस्तर की ओर बढ़े.
"मनिका, देखो तुम जो सोच रही हो वो ग़लत नहीं है."
जयसिंह मनिका को बिस्तर पर अपनी गोद में लिए बैठे थे. जयसिंह के इस तरह उसे उठाने के बाद शॉर्ट्स खिंच कर ऊपर हो गईं थी और मनिका के नितम्ब बीते कल की भाँति नग्न हो चुके थे और अब जयसिंह की नंगी जांघ पर टिके थे.
"पापा?" शर्म से तार-तार मनिका ने सवालिया निगाह से उन्हें देखा था.
"तुम्हारी दादी का उन लड़कियों को राँड कहना अपनी जगह सही है. क्यूँकि तुम्हारी दादी की परवरिश एक अलग जमाने में हुई है. उसी तरह वो लड़कियाँ भी अपनी जगह सही हैं, क्यूँकि वो नए जमाने की मॉडर्न लड़कियाँ है, जैसे कि तुम हो." जयसिंह बोले.
"तो फिर पापा, दादी के हिसाब से तो मैं भी..." मनिका अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाई.
"हाँ, तुम भी एक राँड हो." जयसिंह ने अपने हाथ से उसका गाल सहलाया था और फिर अंगूठे से उसके होंठों को मसलते हुए कहा था.
मनिका पर जैसे घड़ों पानी गिर पड़ा था. उसने जयसिंह से अलग होने की कोशिश करते हुए कहा,
"हाय पापा! मतलब आप भी मुझे रा... रा... बिगड़ैल समझते हो. आप पहले झूठ कह रहे थे कि नहीं समझते..."
"हम्म. मेरी पूरी बात सुनो पहले." जयसिंह ने मनिका को अपनी गिरफ़्त में जकड़ते हुए कहा.
"मुझे नहीं सुनना... हाय आप कितने गंदे हो." मनिका के आँसू निकल पड़े.
"देखो मनिका, मैंने तुमसे कहा था कि लोग क्या कहेंगे इसकी फ़िक्र करोगी तो कभी ख़ुश नहीं रह पाओगी. लेकिन तुम वही सब वापस सोचने लगी."
"लेकिन लोग नहीं, आप भी तो मुझे ऐसे बोल रहे हो..." मनिका ने रुँधे गले से कहा.
"और क्या ये सच नहीं है?" जयसिंह बोले.
मनिका से कुछ कहते न बना.
"देखो मनिका, मैं तुम्हें बिगड़ैल नहीं समझता, ये मैंने तुम्हें पहले भी कहा था और अब भी कह रहा हूँ, लेकिन जिन लड़कियों को तुम्हारी दादी राँड कह रही थी, तुम उनके जैसी हो ये हम दोनों जानते हैं, और मैं ये मानता हूँ कि ये तुम्हारा नेचर है, तुम्हें वैसा पहनावा, वैसा बर्ताव अच्छा लगता है और इसके लिए मैं तुम्हें बुरा नहीं समझता." जयसिंह ने कहा.
"प... पर पापा... बात तो वही हुई ना... आप मुझे ऐसा गंदा समझते हो." मनिका ने फिर से उनसे दूर जाना चाहा.
"नहीं, बात वही नहीं हुई. तुम्हारी दादी या कोई भी और उन लड़कियों को नफ़रत से देखते हैं और मैं तुम्हें प्यार से देखता हूँ. ये फ़र्क़ है. अगर तुम राँड भी हो तो मेरी राँड हो." जयसिंह ने एक बार फिर उसके चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहा.
जयसिंह द्वारा उसे इस तरह जलील किए जाने पर भी मनिका मानो उनके मोह से बंध गई थी. उसके पापा उसे अपनी राँड कह रहे थे. "हाय! कितना गंदा बोल रहे हैं पापा मुझे... लेकिन मुझे कुछ-कुछ हो रहा है." उसके गालों पर ग्लानि और पश्चाताप की लाली की जगह अब हया की सुर्ख़ी ने ले ली थी.
जयसिंह भी उसके बदलते हाव-भाव ताड़ गए थे. उन्होंने झट उसे अपने सीने से लगा लिया, और मनिका की ओर से कोई प्रतिकार भी नहीं हुआ.
"हम्म... तो हो ना फिर तुम पापा कि राँड गर्लफ़्रेंड?" जयसिंह ने हौले से अपनी बेटी के अधनंगे नितम्बों को सहलाते हुए कहा.
"हाय पापा! कितनी गंदी हूँ मैं... हायऽऽऽऽ." मनिका उनके जिस्म में समाती जा रही थी.
"गंदी बच्ची को अभी ठीक कर देता हूँ..." कहते हुए जयसिंह ने मनिका के कूल्हों पर लगातार तीन-चार चपत लगा दीं.
"आऽऽऽऽ पापा..." मनिका की आ निकल गई थी और फिर अपने भाई के जगे होने का ख़याल मन में आते ही उसने अपनी सिसक को जयसिंह के कंधे पर होंठ गड़ाते हुए दबा लिया था.
कुछ पल बाद जयसिंह ने हौले से मनिका को पीछे हटाया, मनिका ने शर्मीली नज़र से उन्हें देखा और अपना होंठ दाँतो में दबा कर लजा गई.
"तो फिर अब मेरी गुड नाइट किस्स का टाइम हो गया है." जयसिंह ने शरारती अन्दाज़ में कहा.
"हेहे... गुड नाइट पापा!" मनिका मुस्का दी और धीरे से उनके गाल पर चुम्बन देने के लिए आगे हुई.
लेकिन जयसिंह ने ऐन वक्त पर अपना मुँह घुमा उसके होंठों पर होंठ रख दिए.
-