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Incest बेटी की जवानी - बाप ने अपनी ही बेटी को पटाया - 🔥 Super Hot 🔥

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कहानी में अंग्रेज़ी संवाद अब देवनागरी की जगह लैटिन में अप्डेट किया गया है. साथ ही, कहानी के कुछ अध्याय डिलीट कर दिए गए हैं, उनकी जगह नए पोस्ट कर रही हूँ. पुराने पाठक शुरू से या फिर 'बुरा सपना' से आगे पढ़ें.

INDEX:

 

karthik90

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31 - राँड

हितेश कमरे में दाखिल हुआ तो अंधेरे में मनिका को बेड के पास खड़ा देख एक पल ठिठक गया.
"आऽऽऽ..." उसके मुँह से निकला.
"क...क्या?" मनिका ने घबरा कर कहा. हितेश की आवाज़ सुन कहीं उसकी माँ ऊपर आ गई तो?
"ओह! दीदी डरा दिया आपने." हितेश बोला.
"क्या कर रहा है इतनी रात को, सोता क्यूँ नहीं?"

डरी होने के बावजूद मनिका ने आवाज़ में थोड़ी सख़्ती लाते हुए कहा था. उधर हितेश ने गेट के पास लगे स्विच से कमरे की लाइट ऑन कर दी थी।

"अरे दीदी वो कनु के पास मेरे लैपटॉप का चार्जर था. वो लेने आया... था." हितेश बोलते-बोलते लड़खड़ा गया. मनिका ने गंजी और शॉर्ट्स वाला वही नाइट सूट पहन रखा था जिसने उसके पिता को बहका दिया था.
"ले ले जा, और टाइम से सो जाना." मनिका ने धड़कते दिल से कहा.
"हाँ हाँ, आप भी मम्मी की तरह चिढ़ते रहते हो बस." हितेश ने नज़र घुमा जल्दी से टेबल की ओर जाते हुए कहा.

हितेश ने जल्दी से चार्जर निकाला था और कमरे से बाहर निकल गया था. मनिका ने मन ही मन शुक्र मनाया, पर अभी मुसीबत टली नहीं थी. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जयसिंह उसके कमरे में चले आए थे और वो भी सिर्फ़ बरमूडा पहन कर. अब जल्दी से पापा को नीचे भेजना पड़ेगा.

हितेश के जाते ही मनिका लगभग भाग कर बाथरूम की तरफ़ गई.

-​

आमतौर पर जल्दी से ना घबराने वाले जयसिंह भी बाथरूम के दरवाज़े की ओट में थोड़ा घबराए हुए खड़े थे. लेकिन हितेश और मनिका के बीच की बातचीत सुनने के बाद उनका संयम लौटने लगा था. हितेश सिर्फ़ अपने काम से आया था न कि उनकी आहट या बातचीत सुनकर. तभी मनिका बाथरूम में घुसी.

"पापा! आप जाओ जल्दी..." उसने फुसफुसाते हुए कहा.

जयसिंह ने हाथ से लाइट का स्विच टटोला और बाथरूम में भी उजाला हो गया. उन्हें इस तरह सामने पा कर मनिका ठिठक गई और पीछे हटी. जयसिंह ने आगे बढ़ उसे पकड़ना चाहा था.

"पापाऽऽऽ! पागल हो गए हो क्या आप. जाओ ना!" मनिका के चेहरे पर घबराहट साफ़ झलक रही थी.
"क्या हुआ मनिका, बात नहीं कर रही मुझसे?" जयसिंह ने उसकी कलाई थाम अपनी ओर खींचा.
"कर लूँगी पापा... आप प्लीज़ अभी चले जाओ. हितेश आ जाएगा..." मनिका ने मिन्नत की.
"पहले बताओ मुझे क्या हुआ?" जयसिंह ने हाथ से उसका चेहरा अपनी ओर घुमाया.
"कुछ नहीं पापा... थोड़ा अजीब सा लग रहा था..?" पहले ही डरी हुई मनिका ने उनके स्पर्श से कांपते हुए कहा.
"क्या अजीब लग रहा है?" जयसिंह ने उसकी आँखों में झांक कर पूछा.
"आ... आपके साथ ऐसे..." मनिका बड़बड़ाई.
"हम्म." कहते हुए जयसिंह ने उसे अपने नग्न आग़ोश में ले लिया.
"पापा प्लीज़... मत करो ना." मनिका ने कहा.
"क्या?" जयसिंह ने उसकी पीठ सहलाते हुए उसके कान में कहा था.

डर और उत्तेजना का एक पुराना रिश्ता है. पकड़े जाने का डर और जयसिंह के प्रति उसका आकर्षण अब मनिका के उन नैतिक मूल्यों पर हावी होने लगे थे जिनके चलते उसने अपने पिता से दूरी बनाने का प्रयास किया था.

जयसिंह उसके बदन को सहलाते हुए उसके कान में मीठी-मीठी बातें किए जा रहे थे, कि वह बहुत सुंदर है और कैसे वे उसे इतना चाहते हैं. आख़िर मनिका के हाथ, जो उसने उनका आलिंगन रोकने के लिए जयसिंह के कंधों पर रख रखे थे, ढीले पड़ने लगे. ये एहसास होते ही जयसिंह ने उसे बाँहों में कस लिया था.

पूरे दिन की चिंता के बाद जयसिंह का सहारा पाते ही मनिका निढाल हो गई, और उनके बाजुओं में अपने शरीर को ढीला छोड़ समाने लगी.

"ओह पापा! आप तो मेरी जान निकाल कर ही मानोगे..." उसने तड़पते हुए कहा.
"हाहा, अरे अपनी जान की जान कैसे निकाल सकता हूँ मैं... मेरी जान तो तुमने निकाल रखी है सुबह से, क्या हुआ बताओ ना, क्यूँ नाराज़ हो?" जयसिंह ने उसके कान के पास मादकता से फुसफुसा कर कहा.
"ऊँह... पापा, आज वो दादी जो कह रही थी..."
"क्या कह रही थी?"
"आपको पता तो है... आप भी तो वहीं बैठे थे." मनिका ने जयसिंह की छाती में मुँह छुपा रखा था.
"नहीं मुझे नहीं पता तुम किस बात के लिए कह रही हो." जयसिंह अनजान बने रहे.
"रहने दो फिर..."
"नहीं, बताओ ना, क्या कह दिया दादी ने ऐसा कि तुम मुझसे नाराज़ हो गई, मैं भी तो जानूँ?"
"आप मानते ही नहीं मेरी कोई बात... आपको पता तो है मैं उस... रा...'राँड'... वाली बात का कह रही हूँ."
"हैं? लेकिन उस से तुम्हारी नाराज़गी का क्या वास्ता?" जयसिंह भोले बनते हुए बोले.
"मैं भी तो... उन लड़कियों जैसे कपड़े... आप को पता तो है मैं क्या कह रही हूँ!" मनिका ने चेहरा ऊपर कर एक नज़र उनके चेहरे पर डाली थी. उसके माथे पर शिकन थी.
"ओहो, तुम भी ना..." जयसिंह ने कहा और एकदम से पीछे हट अपना एक हाथ मनिका के घुटनों के पीछे लेजा कर उसे गोद में उठा लिया.
"पापा! क्या कर रहे हो?" मनिका सकपका गई और उसकी घबराहट लौट आई.

जयसिंह ने उसकी प्रतिक्रिया को नज़रअन्दाज़ कर दिया और उसे लिए हुए बाथरूम से बाहर आ गए. वे चलते हुए कमरे के दरवाज़े तक गए और मनिका की आँखों में देखते हुए दरवाज़े की कुंडी की तरफ़ देखा. मनिका उनका इशारा समझ गई और उसने कांपता हुआ हाथ बढ़ा गेट अंदर से बंद कर दिया. अब जयसिंह उसे लेकर बिस्तर की ओर बढ़े.

"मनिका, देखो तुम जो सोच रही हो वो ग़लत नहीं है."

जयसिंह मनिका को बिस्तर पर अपनी गोद में लिए बैठे थे. जयसिंह के इस तरह उसे उठाने के बाद शॉर्ट्स खिंच कर ऊपर हो गईं थी और मनिका के नितम्ब बीते कल की भाँति नग्न हो चुके थे और अब जयसिंह की नंगी जांघ पर टिके थे.

"पापा?" शर्म से तार-तार मनिका ने सवालिया निगाह से उन्हें देखा था.
"तुम्हारी दादी का उन लड़कियों को राँड कहना अपनी जगह सही है. क्यूँकि तुम्हारी दादी की परवरिश एक अलग जमाने में हुई है. उसी तरह वो लड़कियाँ भी अपनी जगह सही हैं, क्यूँकि वो नए जमाने की मॉडर्न लड़कियाँ है, जैसे कि तुम हो." जयसिंह बोले.
"तो फिर पापा, दादी के हिसाब से तो मैं भी..." मनिका अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाई.
"हाँ, तुम भी एक राँड हो." जयसिंह ने अपने हाथ से उसका गाल सहलाया था और फिर अंगूठे से उसके होंठों को मसलते हुए कहा था.

मनिका पर जैसे घड़ों पानी गिर पड़ा था. उसने जयसिंह से अलग होने की कोशिश करते हुए कहा,

"हाय पापा! मतलब आप भी मुझे रा... रा... बिगड़ैल समझते हो. आप पहले झूठ कह रहे थे कि नहीं समझते..."
"हम्म. मेरी पूरी बात सुनो पहले." जयसिंह ने मनिका को अपनी गिरफ़्त में जकड़ते हुए कहा.
"मुझे नहीं सुनना... हाय आप कितने गंदे हो." मनिका के आँसू निकल पड़े.
"देखो मनिका, मैंने तुमसे कहा था कि लोग क्या कहेंगे इसकी फ़िक्र करोगी तो कभी ख़ुश नहीं रह पाओगी. लेकिन तुम वही सब वापस सोचने लगी."
"लेकिन लोग नहीं, आप भी तो मुझे ऐसे बोल रहे हो..." मनिका ने रुँधे गले से कहा.
"और क्या ये सच नहीं है?" जयसिंह बोले.

मनिका से कुछ कहते न बना.

"देखो मनिका, मैं तुम्हें बिगड़ैल नहीं समझता, ये मैंने तुम्हें पहले भी कहा था और अब भी कह रहा हूँ, लेकिन जिन लड़कियों को तुम्हारी दादी राँड कह रही थी, तुम उनके जैसी हो ये हम दोनों जानते हैं, और मैं ये मानता हूँ कि ये तुम्हारा नेचर है, तुम्हें वैसा पहनावा, वैसा बर्ताव अच्छा लगता है और इसके लिए मैं तुम्हें बुरा नहीं समझता." जयसिंह ने कहा.
"प... पर पापा... बात तो वही हुई ना... आप मुझे ऐसा गंदा समझते हो." मनिका ने फिर से उनसे दूर जाना चाहा.
"नहीं, बात वही नहीं हुई. तुम्हारी दादी या कोई भी और उन लड़कियों को नफ़रत से देखते हैं और मैं तुम्हें प्यार से देखता हूँ. ये फ़र्क़ है. अगर तुम राँड भी हो तो मेरी राँड हो." जयसिंह ने एक बार फिर उसके चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहा.

जयसिंह द्वारा उसे इस तरह जलील किए जाने पर भी मनिका मानो उनके मोह से बंध गई थी. उसके पापा उसे अपनी राँड कह रहे थे. "हाय! कितना गंदा बोल रहे हैं पापा मुझे... लेकिन मुझे कुछ-कुछ हो रहा है." उसके गालों पर ग्लानि और पश्चाताप की लाली की जगह अब हया की सुर्ख़ी ने ले ली थी.

जयसिंह भी उसके बदलते हाव-भाव ताड़ गए थे. उन्होंने झट उसे अपने सीने से लगा लिया, और मनिका की ओर से कोई प्रतिकार भी नहीं हुआ.

"हम्म... तो हो ना फिर तुम पापा कि राँड गर्लफ़्रेंड?" जयसिंह ने हौले से अपनी बेटी के अधनंगे नितम्बों को सहलाते हुए कहा.
"हाय पापा! कितनी गंदी हूँ मैं... हायऽऽऽऽ." मनिका उनके जिस्म में समाती जा रही थी.
"गंदी बच्ची को अभी ठीक कर देता हूँ..." कहते हुए जयसिंह ने मनिका के कूल्हों पर लगातार तीन-चार चपत लगा दीं.
"आऽऽऽऽ पापा..." मनिका की आ निकल गई थी और फिर अपने भाई के जगे होने का ख़याल मन में आते ही उसने अपनी सिसक को जयसिंह के कंधे पर होंठ गड़ाते हुए दबा लिया था.

कुछ पल बाद जयसिंह ने हौले से मनिका को पीछे हटाया, मनिका ने शर्मीली नज़र से उन्हें देखा और अपना होंठ दाँतो में दबा कर लजा गई.

"तो फिर अब मेरी गुड नाइट किस्स का टाइम हो गया है." जयसिंह ने शरारती अन्दाज़ में कहा.
"हेहे... गुड नाइट पापा!" मनिका मुस्का दी और धीरे से उनके गाल पर चुम्बन देने के लिए आगे हुई.

लेकिन जयसिंह ने ऐन वक्त पर अपना मुँह घुमा उसके होंठों पर होंठ रख दिए.

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31 - राँड

हितेश कमरे में दाखिल हुआ तो अंधेरे में मनिका को बेड के पास खड़ा देख एक पल ठिठक गया.
"आऽऽऽ..." उसके मुँह से निकला.
"क...क्या?" मनिका ने घबरा कर कहा. हितेश की आवाज़ सुन कहीं उसकी माँ ऊपर आ गई तो?
"ओह! दीदी डरा दिया आपने." हितेश बोला.
"क्या कर रहा है इतनी रात को, सोता क्यूँ नहीं?"

डरी होने के बावजूद मनिका ने आवाज़ में थोड़ी सख़्ती लाते हुए कहा था. उधर हितेश ने गेट के पास लगे स्विच से कमरे की लाइट ऑन कर दी थी।

"अरे दीदी वो कनु के पास मेरे लैपटॉप का चार्जर था. वो लेने आया... था." हितेश बोलते-बोलते लड़खड़ा गया. मनिका ने गंजी और शॉर्ट्स वाला वही नाइट सूट पहन रखा था जिसने उसके पिता को बहका दिया था.
"ले ले जा, और टाइम से सो जाना." मनिका ने धड़कते दिल से कहा.
"हाँ हाँ, आप भी मम्मी की तरह चिढ़ते रहते हो बस." हितेश ने नज़र घुमा जल्दी से टेबल की ओर जाते हुए कहा.

हितेश ने जल्दी से चार्जर निकाला था और कमरे से बाहर निकल गया था. मनिका ने मन ही मन शुक्र मनाया, पर अभी मुसीबत टली नहीं थी. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जयसिंह उसके कमरे में चले आए थे और वो भी सिर्फ़ बरमूडा पहन कर. अब जल्दी से पापा को नीचे भेजना पड़ेगा.

हितेश के जाते ही मनिका लगभग भाग कर बाथरूम की तरफ़ गई.

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आमतौर पर जल्दी से ना घबराने वाले जयसिंह भी बाथरूम के दरवाज़े की ओट में थोड़ा घबराए हुए खड़े थे. लेकिन हितेश और मनिका के बीच की बातचीत सुनने के बाद उनका संयम लौटने लगा था. हितेश सिर्फ़ अपने काम से आया था न कि उनकी आहट या बातचीत सुनकर. तभी मनिका बाथरूम में घुसी.

"पापा! आप जाओ जल्दी..." उसने फुसफुसाते हुए कहा.

जयसिंह ने हाथ से लाइट का स्विच टटोला और बाथरूम में भी उजाला हो गया. उन्हें इस तरह सामने पा कर मनिका ठिठक गई और पीछे हटी. जयसिंह ने आगे बढ़ उसे पकड़ना चाहा था.

"पापाऽऽऽ! पागल हो गए हो क्या आप. जाओ ना!" मनिका के चेहरे पर घबराहट साफ़ झलक रही थी.
"क्या हुआ मनिका, बात नहीं कर रही मुझसे?" जयसिंह ने उसकी कलाई थाम अपनी ओर खींचा.
"कर लूँगी पापा... आप प्लीज़ अभी चले जाओ. हितेश आ जाएगा..." मनिका ने मिन्नत की.
"पहले बताओ मुझे क्या हुआ?" जयसिंह ने हाथ से उसका चेहरा अपनी ओर घुमाया.
"कुछ नहीं पापा... थोड़ा अजीब सा लग रहा था..?" पहले ही डरी हुई मनिका ने उनके स्पर्श से कांपते हुए कहा.
"क्या अजीब लग रहा है?" जयसिंह ने उसकी आँखों में झांक कर पूछा.
"आ... आपके साथ ऐसे..." मनिका बड़बड़ाई.
"हम्म." कहते हुए जयसिंह ने उसे अपने नग्न आग़ोश में ले लिया.
"पापा प्लीज़... मत करो ना." मनिका ने कहा.
"क्या?" जयसिंह ने उसकी पीठ सहलाते हुए उसके कान में कहा था.

डर और उत्तेजना का एक पुराना रिश्ता है. पकड़े जाने का डर और जयसिंह के प्रति उसका आकर्षण अब मनिका के उन नैतिक मूल्यों पर हावी होने लगे थे जिनके चलते उसने अपने पिता से दूरी बनाने का प्रयास किया था.

जयसिंह उसके बदन को सहलाते हुए उसके कान में मीठी-मीठी बातें किए जा रहे थे, कि वह बहुत सुंदर है और कैसे वे उसे इतना चाहते हैं. आख़िर मनिका के हाथ, जो उसने उनका आलिंगन रोकने के लिए जयसिंह के कंधों पर रख रखे थे, ढीले पड़ने लगे. ये एहसास होते ही जयसिंह ने उसे बाँहों में कस लिया था.

पूरे दिन की चिंता के बाद जयसिंह का सहारा पाते ही मनिका निढाल हो गई, और उनके बाजुओं में अपने शरीर को ढीला छोड़ समाने लगी.

"ओह पापा! आप तो मेरी जान निकाल कर ही मानोगे..." उसने तड़पते हुए कहा.
"हाहा, अरे अपनी जान की जान कैसे निकाल सकता हूँ मैं... मेरी जान तो तुमने निकाल रखी है सुबह से, क्या हुआ बताओ ना, क्यूँ नाराज़ हो?" जयसिंह ने उसके कान के पास मादकता से फुसफुसा कर कहा.
"ऊँह... पापा, आज वो दादी जो कह रही थी..."
"क्या कह रही थी?"
"आपको पता तो है... आप भी तो वहीं बैठे थे." मनिका ने जयसिंह की छाती में मुँह छुपा रखा था.
"नहीं मुझे नहीं पता तुम किस बात के लिए कह रही हो." जयसिंह अनजान बने रहे.
"रहने दो फिर..."
"नहीं, बताओ ना, क्या कह दिया दादी ने ऐसा कि तुम मुझसे नाराज़ हो गई, मैं भी तो जानूँ?"
"आप मानते ही नहीं मेरी कोई बात... आपको पता तो है मैं उस... रा...'राँड'... वाली बात का कह रही हूँ."
"हैं? लेकिन उस से तुम्हारी नाराज़गी का क्या वास्ता?" जयसिंह भोले बनते हुए बोले.
"मैं भी तो... उन लड़कियों जैसे कपड़े... आप को पता तो है मैं क्या कह रही हूँ!" मनिका ने चेहरा ऊपर कर एक नज़र उनके चेहरे पर डाली थी. उसके माथे पर शिकन थी.
"ओहो, तुम भी ना..." जयसिंह ने कहा और एकदम से पीछे हट अपना एक हाथ मनिका के घुटनों के पीछे लेजा कर उसे गोद में उठा लिया.
"पापा! क्या कर रहे हो?" मनिका सकपका गई और उसकी घबराहट लौट आई.

जयसिंह ने उसकी प्रतिक्रिया को नज़रअन्दाज़ कर दिया और उसे लिए हुए बाथरूम से बाहर आ गए. वे चलते हुए कमरे के दरवाज़े तक गए और मनिका की आँखों में देखते हुए दरवाज़े की कुंडी की तरफ़ देखा. मनिका उनका इशारा समझ गई और उसने कांपता हुआ हाथ बढ़ा गेट अंदर से बंद कर दिया. अब जयसिंह उसे लेकर बिस्तर की ओर बढ़े.

"मनिका, देखो तुम जो सोच रही हो वो ग़लत नहीं है."

जयसिंह मनिका को बिस्तर पर अपनी गोद में लिए बैठे थे. जयसिंह के इस तरह उसे उठाने के बाद शॉर्ट्स खिंच कर ऊपर हो गईं थी और मनिका के नितम्ब बीते कल की भाँति नग्न हो चुके थे और अब जयसिंह की नंगी जांघ पर टिके थे.

"पापा?" शर्म से तार-तार मनिका ने सवालिया निगाह से उन्हें देखा था.
"तुम्हारी दादी का उन लड़कियों को राँड कहना अपनी जगह सही है. क्यूँकि तुम्हारी दादी की परवरिश एक अलग जमाने में हुई है. उसी तरह वो लड़कियाँ भी अपनी जगह सही हैं, क्यूँकि वो नए जमाने की मॉडर्न लड़कियाँ है, जैसे कि तुम हो." जयसिंह बोले.
"तो फिर पापा, दादी के हिसाब से तो मैं भी..." मनिका अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाई.
"हाँ, तुम भी एक राँड हो." जयसिंह ने अपने हाथ से उसका गाल सहलाया था और फिर अंगूठे से उसके होंठों को मसलते हुए कहा था.

मनिका पर जैसे घड़ों पानी गिर पड़ा था. उसने जयसिंह से अलग होने की कोशिश करते हुए कहा,

"हाय पापा! मतलब आप भी मुझे रा... रा... बिगड़ैल समझते हो. आप पहले झूठ कह रहे थे कि नहीं समझते..."
"हम्म. मेरी पूरी बात सुनो पहले." जयसिंह ने मनिका को अपनी गिरफ़्त में जकड़ते हुए कहा.
"मुझे नहीं सुनना... हाय आप कितने गंदे हो." मनिका के आँसू निकल पड़े.
"देखो मनिका, मैंने तुमसे कहा था कि लोग क्या कहेंगे इसकी फ़िक्र करोगी तो कभी ख़ुश नहीं रह पाओगी. लेकिन तुम वही सब वापस सोचने लगी."
"लेकिन लोग नहीं, आप भी तो मुझे ऐसे बोल रहे हो..." मनिका ने रुँधे गले से कहा.
"और क्या ये सच नहीं है?" जयसिंह बोले.

मनिका से कुछ कहते न बना.

"देखो मनिका, मैं तुम्हें बिगड़ैल नहीं समझता, ये मैंने तुम्हें पहले भी कहा था और अब भी कह रहा हूँ, लेकिन जिन लड़कियों को तुम्हारी दादी राँड कह रही थी, तुम उनके जैसी हो ये हम दोनों जानते हैं, और मैं ये मानता हूँ कि ये तुम्हारा नेचर है, तुम्हें वैसा पहनावा, वैसा बर्ताव अच्छा लगता है और इसके लिए मैं तुम्हें बुरा नहीं समझता." जयसिंह ने कहा.
"प... पर पापा... बात तो वही हुई ना... आप मुझे ऐसा गंदा समझते हो." मनिका ने फिर से उनसे दूर जाना चाहा.
"नहीं, बात वही नहीं हुई. तुम्हारी दादी या कोई भी और उन लड़कियों को नफ़रत से देखते हैं और मैं तुम्हें प्यार से देखता हूँ. ये फ़र्क़ है. अगर तुम राँड भी हो तो मेरी राँड हो." जयसिंह ने एक बार फिर उसके चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहा.

जयसिंह द्वारा उसे इस तरह जलील किए जाने पर भी मनिका मानो उनके मोह से बंध गई थी. उसके पापा उसे अपनी राँड कह रहे थे. "हाय! कितना गंदा बोल रहे हैं पापा मुझे... लेकिन मुझे कुछ-कुछ हो रहा है." उसके गालों पर ग्लानि और पश्चाताप की लाली की जगह अब हया की सुर्ख़ी ने ले ली थी.

जयसिंह भी उसके बदलते हाव-भाव ताड़ गए थे. उन्होंने झट उसे अपने सीने से लगा लिया, और मनिका की ओर से कोई प्रतिकार भी नहीं हुआ.

"हम्म... तो हो ना फिर तुम पापा कि राँड गर्लफ़्रेंड?" जयसिंह ने हौले से अपनी बेटी के अधनंगे नितम्बों को सहलाते हुए कहा.
"हाय पापा! कितनी गंदी हूँ मैं... हायऽऽऽऽ." मनिका उनके जिस्म में समाती जा रही थी.
"गंदी बच्ची को अभी ठीक कर देता हूँ..." कहते हुए जयसिंह ने मनिका के कूल्हों पर लगातार तीन-चार चपत लगा दीं.
"आऽऽऽऽ पापा..." मनिका की आ निकल गई थी और फिर अपने भाई के जगे होने का ख़याल मन में आते ही उसने अपनी सिसक को जयसिंह के कंधे पर होंठ गड़ाते हुए दबा लिया था.

कुछ पल बाद जयसिंह ने हौले से मनिका को पीछे हटाया, मनिका ने शर्मीली नज़र से उन्हें देखा और अपना होंठ दाँतो में दबा कर लजा गई.

"तो फिर अब मेरी गुड नाइट किस्स का टाइम हो गया है." जयसिंह ने शरारती अन्दाज़ में कहा.
"हेहे... गुड नाइट पापा!" मनिका मुस्का दी और धीरे से उनके गाल पर चुम्बन देने के लिए आगे हुई.

लेकिन जयसिंह ने ऐन वक्त पर अपना मुँह घुमा उसके होंठों पर होंठ रख दिए.

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स्वागत है फिर से आपका 🙂
 
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32 - अपवित्र रिश्ता

जयसिंह जा चुके थे.

मनिका अपने बिस्तर पर औंधे मुँह लेटी हुई थी. उसके सुर्ख़ होंठों में एक अजीब सी दहक उठ रही थी.

"हाय! Papa kissed me... oh my god! My first kiss..." मनिका ने तकिए में मुँह छिपाते हुए सोचा.

जयसिंह ने जैसे ही उसे चूमा था, उसका दिमाग़ कुछ पल के लिए सन्न रह गया था और साँसे थम गयीं थी. उसने अपने होंठ भींच लिए. लेकिन जयसिंह ने उसे चूमना जारी रखा और उसके अर्धनग्न कूल्हों को सहला-सहला कर थपकियाँ देते रहे. आख़िर उसकी थमी साँसें जवाब दे गईं और उसने एक सिसक भरने के लिए अपने होंठ खोले थे. जयसिंह को तो इसी का इंतज़ार था. उन्होंने अपनी जीभ उसके मुँह में डालते हुए उसके होंठों को अपने होंठों में दबा लिया था और चूसने लगे.

वे कभी उसका ऊपर का होंठ चूसते तो कभी नीचे वाले होंठ को दांतों से दबा कर खींचते और फिर उसके मुँह में जीभ डाल उसकी जीभ को चूसते. इधर मनिका निढाल सी पल-पल बस उनकी नंगी छाती में अपना वक्ष गड़ा उनके जिस्म के साथ मिल जाने की कोशिश कर रही थी. उसकी आँखें बंद दी और उसे कुछ नहीं सूझ रहा था.

न जाने कितनी ही देर तक बाप-बेटी इसी तरह पाप के भागीदार बने रहे थे. जो एक पतली सी दीवार उनके जायज़ और नाजायज़ रिश्ते के बीच खड़ी थी वो अब गिर चुकी थी. हालाँकि पिता-पुत्री के पावन रिश्ते को वे पहले भी तार-तार कर चुके थे लेकिन जयसिंह के उसे होंठों पर चूमने के साथ ही उनके लिए वापसी के सभी दरवाज़े बंद हो चुके थे. मनिका ने अब तक जो आत्मग्लानि और शर्म महसूस की थी और जयसिंह ने शुरुआत में थोड़ा बहुत पश्चाताप किया था, अब उनके कोई मायने नहीं रह गए थे.

पापिनि मनिका अपने पापी पिता के साथ अपने ही घर में आलिंगन कर रही थी. जहाँ उसकी गंदी हरकतों से अनजान माँ और एक ज़माना देख चुकी दादी नीचे कमरे में सो रहीं थी, जहाँ उसका भोला सा छोटा भाई पास के कमरे में कम्प्यूटर चला रहा था, और जहाँ आज उसे उसकी छोटी बहन अकेला छोड़ पढ़ने गई थी. आज उसी बिस्तर पर मनिका ने अपना यौवन अपने अधेड़ लेकिन मर्दाना पिता के हवाले कर दिया था जिस पर वह रोज़ अपनी अबोध बहन के साथ सोती थी.

जयसिंह ने उसे इतने जुनून से चूमा था कि उसके होंठ हल्के-हल्के सूज गए थे.

आख़िर जब उनके उन्माद का सबब टूटा तो वे धीरे से अलग हुए. मनिका अब जयसिंह से आँख मिलाने की स्थिति में नहीं थी. जयसिंह ने उसे अपने साथ सटा कर सुला लिया था और उसके कानों में मीठी-मीठी बातें करने लगे. इस दौरान उनके हाथ उसके जिस्म पर चलते जा रहे थे, कभी वे उसकी पीठ और कमर सहलाते तो कभी उसके कूल्हे थपथपाते और उसकी नंगी जाँघें दबाते. मनिका बेसुध सी उनकी बातें सुन सिसकियाँ लेती और वे उसे फिर चूम लेते. लेकिन उनकी लाख कोशिशों के बाद भी मनिका ने उनसे नज़र न मिलाई और उनके आग़ोश में मुँह दबाए उनसे चिपटी रही. लगभग एक घंटा बीतते-बीतते मनिका को उनके पकड़े जाने की चिंता होने लगी थी.

आख़िर उसने हौले से कहा था,

"पापा... उह... अब जाओ ना... कोई आ जाएगा..."

जयसिंह भी जानते थे कि ख़तरा तो है. वे कुछ देर और उसका जिस्म सहलाने के बाद धीरे से उस से अलग हुए.

"हम्म... आज तो नींद बहुत अच्छी आएगी... है ना?"

उनके इस सवाल पर बरबस ही मनिका की आँखें उनके चेहरे पर चली गई थी, और फिर उसका सुर्ख़ चेहरा और सुर्ख़ हो गया और उसने पलट कर तकिए में मुँह छिपा लिया.

"हाहाहा..." जयसिंह दबी आवाज़ में हंसते हुए उठ बैठे और फिर 'थप्प' के साथ उलटी लेटी मनिका के कूल्हों पर एक चपत जमाई.
"ऊँहह्ह्..." मनिका ने तड़प कर अपना अधोभाग थोड़ा ऊपर उठा दिया. मानो अपने पिता को अपना जिस्म पेश कर रही हो.

जयसिंह की उत्तेजना आज सारी हदें पार कर चुकी थी, लेकिन मनिका के ऐसा करते ही वे मानो और बेक़ाबू हो गए.

"साली रंडी, छिनाल... देखो कैसे गांड उठा-उठा कर दे रही है..." सोचते हुए वे उन्माद और ग़ुस्से से भर उठे. आख़िर थी तो मनिका उनकी बेटी ही.

उन्होंने पकड़े जाने की सारी परवाह छोड़ चार-पांच ज़ोरदार हाथ मनिका के नंगे कूल्हों पर जड़ दिए. लेकिन मनिका मानो यही चाहती थी, उसने उनके हर ज़ोरदार प्रहार के बदले में अपना अधोभाग ऊपर उठा कर अगली चोट के लिए पेश किया था.

जयसिंह जानते थे कि अगर उन्होंने अपने-आप को नहीं सम्भाला तो कोई आहट सुन आ सकता है. आख़िर उन्होंने अपने हवस से पागल होते जा रहे मन को वश में करते हुए हौले से मनिका के उठे हुए अधोभाग को सहलाया और बोले,

"गुड नाइट डार्लिंग."

मनिका की तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया लेकिन उसकी ज़रूरत भी नहीं थी. जयसिंह को अपना जवाब मिल चुका था.

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'टिंग' की आवाज़ सुन मनिका की तंद्रा टूटी.

जयसिंह का मेसेज आया था. उनको गए अभी 5 मिनट से ज़्यादा नहीं हुए थे और मनिका अपने विचारों को सम्भाल भी नहीं पाई थी.

Papa: Kya kar rahi ho darling?

अपने पिता का मेसेज पढ़ते ही मनिका के कांपते हाथ से फ़ोन दो-तीन बार छूट कर बिस्तर पर गिर पड़ा. आख़िर उसने फ़ोन को दोनों हाथों से पकड़ा.

Manika: Sleeping.
Papa: Fir mujhse kaun baat karega?
Manika: Aap bhi so jao.
Papa: Ab neend nahi aa rahi. Tumhe aa rahi hai?
Manika: Papa matt satao na.
Papa: Arey ab main apni girlfriend se baat bhi nahi kar sakta kya?
Manika: Hmmm.
Papa: Kya hmmm?
Manika: Kuch nahin.
Papa: Bolo na darling.
Manika: Papa, I love you.
Papa: I love you too sweetheart, you know that.
Manika: Yes papa.

कुछ देर के लिए जयसिंह का कोई मेसेज नहीं आया. मनिका से भी कुछ कहते नहीं बना. फिर एक बार फिर स्क्रीन पर लिखा आने लगा "Papa is typing".

Papa: Kiss kaisi lagi?

अब जवाब का इंतज़ार करने कि बारी जयसिंह की थी.

Manika: Matt satao na.
Papa: Bolo na, kaisi lagi meri kiss?
Papa: Pehle kisi ko kiss kiya hai?
Papa: Bolo na Manika.
Manika: No papa, I haven't kissed anybody.
Papa: Matlab tumhari first kiss thi?
Manika: Yes papa.
Papa: Kaisi lagi?
Manika: Haay, aap to maan hi nahi rahe.
Manika: It was so sweet papa, I love you so much.
Papa: Mujhe pehle pata hota ki tum itni tasty ho to itne din waste nahi karta 😘
Manika: Oh papa, stop it na, kuch bhi bolte ho.
Manika: You are so tasty too papa 🙈❤️
Papa: Ab to sirf tasty waali kiss hi karunga main.
Manika: No papa... koi dekh lega... please na.

जयसिंह का आशय भाँपते ही मनिका थोड़ा डर गई, रोज़-रोज़ इस तरह से किस्स करना, वो भी घर पर रहते हुए, ख़तरे से ख़ाली नहीं था.

Papa: Kuch nahin hoga, main hoon na.
Manika: Fir bhi papa, I am scared.
Papa: Don't be scared darling, I will take care of everything.
Manika: Okay pa.
Papa: Vaise ek baat bolun?

जयसिंह का ऐसा कहते ही मनिका का दिल धड़क उठा, उसके निर्लज्ज पिता अब ना जाने क्या कहने वाले थे.

Manika: Kya?
Papa: I like the way you dress Manika. You look so beautiful.
Manika: Hehe... ye to aap hamesha kehte ho.
Papa: Haan... lekin main tumhare underwear ki baat kar raha hu.

मनिका एक पल के लिए फिर से बेसुध सी हो गई, उसने आँखें बंद कर लीं और सोचने लगी "हाय पापा कितने गंदे और चालबाज़ हैं, कैसे मुझे अपनी बातों में फँसा लेते हैं... उह... underwear का बोल रहे हैं... हाय!"

Manika: Papaa!
Papa: Kya hua darling?
Manika: Kyun sataate ho?
Papa: Main kahan sataata hu, sataati to tum ho chhoti chhoti panty pehen ke.
Papa: Aur tumhari bra bhi kaafi beautiful design waali hain 😘
Manika: Haay papa, stop it na.
Papa: Arey taareef karna kaam hai boyfriend ka.
Manika: Papaa! Kitne gande ho aap...
Papa: Haha... aur tum?

कुछ देर मनिका का कोई जवाब न आया, फिर

Manika: Main bhi 🙈
Papa: Waise tumne abhi tak apna figure nahin bataya mujhe.
Manika: Ishh papa... aap to maan hi nahin rahe.
Papa: Batao na please.
Manika: Kya karoge jaan kar?
Papa: Tumhe nayi bra aur panty dilwaunga na.

एक वो दिन था जब मनिका उनकी इस बात पर भड़क उठी थी और एक ये दिन था जब उनकी ऐसी गंदी बात ने उसे तड़पा दिया था.

Manika: Happ. Main apne aap le lungi.
Papa: Na. Abse tum sirf meri pasand ke underwear pehenogi.

जयसिंह के जवाब में एक आदेश छुपा था. मनिका उनके इस मर्दाना शक्ति प्रदर्शन से दहक उठी थी और अपने तकिए से आलिंगन कर सिसकने लगी. कुछ देर बाद उसने लिखा,

Manika: Ji.
Papa: To size batao na bra ka, panty to mujhe pata hai 34 hai.
Manika: Haay papa, matt chhedo na...
Papa: Bolo na, mujhe achha lagega. You don't want to make me happy darling?
Manika: 32D
Papa: Umm... so big you have become my darling... pata hi nahi chala kab itni jawan ho gayi.
Manika: Haay papa, kuch bhi kehte rehte ho. Ye message delete kar dena please🤞🏻
Papa: Poora figure batao na ek baar.
Manika: 32-27-34... happy?
Papa: Yes. Very happy, my girlfriend is so sexy 😘
Manika: Thank you papa! You are also very handsome papa.
Papa: Ek aur baat poochun?
Manika: Ab kya?
Manika: Sote kyu nahi aap, mujhe sataate ja rahe ho.
Papa: Bas last question.
Papa: Mera matlab aaj ka last question.
Manika: Haha... aap koi aur shaitaani hi karoge I know, chalo poocho.

हवस के हिचकोलों से तड़पती मनिका जयसिंह के अगले सवाल का इंतज़ार करने लगी. उधर जयसिंह कुछ टाइप करते फिर मिटा देते, फिर टाइप करते, फिर मिटा देते. आख़िर लगभग दो मिनट बाद, मनिका पर एक और गाज गिराने, उनका मेसेज आया.

Papa: Ye sexy underwear kabse pehen rahi ho?

इस बात का जवाब सोच मनिका बिस्तर पर पड़ी-पड़ी ही चक्कर खाने लगी. जब उसका कोई जवाब नहीं आया तो जयसिंह ने एक-दो मेसेज और कर डाले.

Papa: Batao na. Kisne sikhaya tumhen iss tarah ki panty pehen-na?
Papa: Ghar mein to maine kisi ko aisi underwear pehente nahi dekha.
Papa: Madhu ne to aaj tak aise underwear nahin pehne.

अपनी माँ का नाम आते ही मनिका के अंदर की ईर्ष्या जाग उठी.

Manika: Papa please na, so jao na.
Manika: And please don't compare me with her.
Papa: Haha, I am not comparing darling, there is no one like you sweety.
Manika: Hmmm.
Papa: Arey sach keh raha hu, maine to pehle bhi kaha hai ki vo tumhari khoobsoorti se jalti hai.
Manika: Hmmm.

जयसिंह समझ गए कि मनिका थोड़ी रूठ गई है.

Papa: Sorry na darling. Batao na ab.
Manika: Kya karoge jaan kar.
Papa: Kaha na mujhe tumhari har baat jaan ni hai.
Manika: Please na papa. Aap mujhe vaise hi bigdail samjhte ho.
Papa: Ab to mujhe jaan na hai... batao.

जयसिंह के मेसेज में फिर से एक आदेश छुपा था, और यही मनिका को उन्हें अपनी अंतरंग बातें बताने पर विवश करता था.

उसने जवाब लिख भेजा.

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जयसिंह को लगा था कि मनिका के होंठों को चूमते हुए वे अपनी उत्तेजना का चरम महसूस कर चुके थे, लेकिन वे ग़लत थे. मनिका के लिखे कुछ शब्दों ने उनकी स्खलित न होने वाली प्रतिज्ञा तोड़ डाली थी. उनके लंड ने एक तीव्र उछाल मारा और वे रोक पाते उस से पहले वीर्य की एक धार उनके बरमुडे में छूट गई.

वे हवस से हाँफने लगे, "साली राँड... हाय रंडी, कुतिया, इतने सालों से ऐसी कच्छियाँ पहन रही है... आऽऽऽऽऽऽऽऽ!"

कुछ देर बाद उनका उफान थोड़ा शांत हुआ. मनिका की ओर से कोई और मेसेज नहीं आया था. लेकिन उधर वो भी धड़कते दिल से अपने पिता की प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रही थी. आख़िर वे फिर से लिखने लगे.

Papa: Neeche aao mere room mein.
Manika: No no papa. Kya hua?
Papa: Come down Manika, come to my room now.

उनके जवाब ने मनिका को आतंकित कर दिया था. पापा क्या करने वाले थे.

Manika: Please papa, koi uth jaayega.
Papa: Kuch nahin hoga, bol dena paani peene aayi thi.
Manika: But what happened papa?
Papa: Come.
Manika: You are scaring me papa. Abhi to aap gaye the mil ke.
Papa: Don't be scared darling, just come once.
Manika: Please na.
Papa: Come Manika.
Manika: Okay.

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मनिका धड़कते दिल से उठी. उसने अपने अस्त-व्यस्त कपड़ों को थोड़ा ठीक करने की कोशिश कि लेकिन वह जानती थी कि उसका कोई फ़ायदा नहीं है. "पता नहीं पापा को क्या हो गया? Is he angry with me?"

लेकिन अपना लिखा जवाब सोच उसके भी रोंगटे खड़े हो गए थे, "क्या यार, झूठ ही कह देती. I am so dumb. पापा से झूठ भी नहीं कह पाती."

मनिका धीरे-धीरे कर कमरे से बाहर निकली और किसी चोरनी की तरह सीढ़ियाँ उतरते हुए अपने माँ-बाप के कमरे के बाहर पहुँची. उसने बहुत ही हौले से कमरे का दरवाज़ा खोला और जल्दी से अंदर घुस दरवाज़ा बंद कर दिया.

"कुंडी लगा दो." अंधेरे में जयसिंह की धीमी सी आवाज़ आई.
"पापाऽऽ, क्या हुआ?" मनिका ने घबराई आवाज़ में पूछा लेकिन उनके कहे अनुसार कुंडी भी लगा दी.

'खट' जयसिंह ने लाइट का स्विच ऑन किया, वे बिस्तर पर ही बैठे थे. मनिका रौशनी होते ही घबरा गई और सधे पाँव उनके पास आ कर फुसफुसाई.

"Papa, switch off the lights... कोई आ जाएगा!"

लेकिन जयसिंह ने उसकी बात अनसुना करते हुए एक पल में उसका हाथ पकड़ अपनी ओर खींचा और झटके से बिस्तर पर ले लिया. मनिका कुछ समझ पाती उस से पहले ही जयसिंह उसके ऊपर थे और उसे अपनी मज़बूत गिरफ़्त में ले रखा था. उनकी आँखें हवस से लाल हो रखीं थी.

"पपाऽऽ?"
"क्या सच में तब से पहन रही हो?"

मनिका उनका आशय समझ गई थी, उसका चेहरा तमतमा उठा.

"जी पापा." उसने आँखें मींचते हुए कहा.

जयसिंह की गिरफ़्त और मज़बूत हो गई. उसका जवान वक्ष उनकी विशाल छाती में गड़ने लगा. एक अजीब सी चुभन जो जवान होती लड़कियों की छाती में होती है और जो सिर्फ़ किसी मर्द के आलिंगन से ही शांत हो सकती है, मनिका को मदहोश करने लगी.

जब कुछ देर तक जयसिंह कुछ नहीं बोले तो मनिका ने हौले से आँखें खोल उनकी तरफ़ देखा. उनके चेहरे पर वही उन्माद था जो उसने उस गंदी पॉर्न फ़िल्म में देखा था. लेकिन अब उसे वह सब गंदा नहीं लग रहा था.

"पपाऽऽ? क्या हुआ पापाऽऽऽऽऽऽं" वो फुसफुसाई.

जयसिंह कुछ नहीं बोले लेकिन उनकी आँखें कह रहीं थी वो उसका पूरा जवाब चाहते हैं.

"वो पापा, summer vacations में गई थी ना जयपुर, मासी के यहाँ... तब वहाँ... शॉपिंग करते टाइम... लीं थी फ़र्स्ट टाइम..."

जयसिंह ने उसे कमर से पकड़ ऊपर उठाया और बरमुडे में खड़े अपने लिंग पर बिठा लिया.

"आऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ" मनिका को जैसे ही एहसास हुआ उसके पिता क्या कर रहे हैं, वो थरथराने लगी. इस बार वो फुसफुसाई न थी.
"पापा को बताया नहीं कभी... हम्म..." जयसिंह ने उसके कान में कहा. वे धीरे-धीरे अपना लिंग कपड़ों के अंदर से ही उसकी योनि पर गड़ा रहे थे.
"स्ससस... सॉरी पापा... सॉरी... बताया नहीं... क्या करते हो... हाय."

जब एक बार पाप का आग़ाज़ हो जाता है तो फिर उसकी कोई सीमा नहीं रहती.

"हम्म... सॉरी से काम नहीं चलेगा... क्यूँ नहीं बताया? बोलो." जयसिंह ने शॉर्ट्स के नीचे वाले भाग में हाथ फँसा कर ऊपर खींचा और उसके कूल्हे उघाड़ उन्हें हाथों से कचोटते हुए कहा.
"आऽऽऽ... papa someone will come... क्या कर रहे हो... हाय... सॉरी ना... I love youuu..."
"अबसे सिर्फ़ मेरी पसंद की पैंटी पहनोगी... बोलो..."
"जी पापा..."

जयसिंह ने एक बार फिर उसके होंठ चूमने शुरू किए. इस बार मनिका ने अपना मुँह बंद करने की बिलकुल कोशिश नहीं की थी.

"कौनसी पैंटी पहनी है?" जयसिंह ने एक पल के लिए उसके चेहरे से मुँह हटा कर पूछा.
"पाऽऽऽ... क्या?"
"पैंटी का कलर बताओ..."
"आऽऽ..."
"बताओ..."
"ग्रीन... पापा... ग्रीन."

जयसिंह ने अब एक हाथ पीछे से उसकी टी-शर्ट में डाला और उसकी पीठ सहलाने लगे. उनका हाथ उसके ब्रा स्ट्रैप के ऊपर से आ-जा रहा था.

"और ब्रा?"
"प्पपप... पिंक." मनिका सिसकी.
"हम्म... अबसे रोज़ बताओगी."
"येस पापा..."

उनके इस आवेश को महसूस करके ही मनिका अपनी सुध-बुध खो बैठी थी. जयसिंह उसके होंठ चूसने लगे.

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