30 - उलझन
जब इंसान का नैतिक पतन होने लगता है तो कोई सीमा उसे बांध नहीं सकती. जैसे जयसिंह ने पिता-पुत्री के रिश्ते को ताक पर रखते हुए अपनी बेटी के लिए गंदे इरादे पाले थे ठीक वही एहसास अब मनिका को हो रहे थे. अपने पिता के साथ वो अंतरंग पल बिताने के बाद जब वह आकार सोई तो उसके तन-मन में आग लगी हुई थी. यह सोच-सोच कर उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा रहा था कि कितनी बेशर्मी से उसने अपने पिता का आलिंगन किया था. उनका उसके नग्न नितम्बों को सहलाना,
“ऊँह!”
इतना सोचना था कि बरबस ही मनिका की आह निकल गई थी.
अब इस बात में कोई शक-
शुबहा या गुंजाइश नहीं बची थी कि उसने अपने पिता के साथ एक नापाक रिश्ता बना लिया था. फिर भी उसका मन मानो उनके ही बारे में सोचना चाह रहा था. जब जयसिंह ने उसके नितम्बों पर चपत लगाई थी मनिका को अपनी योनि में एक गरमाहट और गीलेपन का एहसास हुआ था, जो उसने पहले कभी महसूस न किया था. वो क्षण याद आते ही मनिका ने पाँव सिकोड़ कर अपने जिस्म को भींच लिया. ऊपर से माहवारी का वो विकट समय, उसकी साँसें गहरी होने लगी.
उस आख़िरी आलिंगन के बाद भी जयसिंह ने उसे जाने न दिया था जब तक उसने उनसे अलग हो कर कुछ और मिन्नतें नहीं की थी. पूरा समय वे उसके नितम्ब सहलाते रहे थे. जब उन्होंने उसे आख़िरकार जाने दिया था उस से पहले बड़ी ही बेशर्मी से उसके वक्ष को घूरते रहे थे. मनिका ने भी जब देखा कि उनकी नज़रें कहाँ है तो न जाने क्यूँ अपना वक्ष थोड़ा आगे की तरफ़ तान दिया था जिस पर उसके पिता के चेहरे पर एक हवस भरी मुस्कान तैर गई थी.
आश्चर्य की बात यह थी कि इस तरह जलील होने के बाद भी कमरे से बाहर निकलते ही मनिका का मन वापस अपने पिता के पास जाने को करने लगा था. कुछ समय बाद कनिका भी उठी और आकर लेट गई थी. लेकिन मनिका को फिर एक बार देर तक नींद नहीं आई.
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लेकिन जब अगली सुबह मनिका की आँख खुली तो उसके मन में कुछ अलग ही भाव थे. वो एक बार फिर जल्दी उठ गई थी और कनिका अभी स्कूल के लिए तैयार हो कमरे से बाहर निकल ही रही थी. जब वो बाथरूम गई थी तो पाया कि उसके पिरीयडस् ख़त्म होने को थे. उसका मन कुछ उदास था, अब रात की अपनी सोच पर उसे ग़ुस्सा भी आ रहा था और शर्म भी.
वैसे तो वह अधिकतर नाश्ता करने के बाद नहाया करती थी लेकिन आज उसे एक गंदा सा एहसास हो रहा था. सो वो बाथरूम से निकली और अपना तौलिया लेकर वापस नहाने घुस गई. नहा लेने के बाद जब उसने अपना बदन सुखाया था तो बाथरूम में लगे शीशे पर उसकी नज़र चली गई थी. अपनी नग्नता देख ना जाने क्यूँ वह सिहर गई थी.
एक अजीब सा एहसास था वो, मानो आज पहली बार वह अपने पिता की नज़र से अपना बदन देख रही थी. उसके अंग-अंग में कसाव था, जिसे उसके पापा कितनी बेशर्मी से ताड़ते थे. एक पल के लिए उसने मुड़ कर अपने अधोभाग को शीशे में देखा था फिर यह जान कर कि उसके पिता उसे इस स्थिति में देख चुके थे उसका बदन काँपने लगा था.
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जब मनिका नीचे आई तो देखा उसके भाई-बहन डाइनिंग टेबल पर बैठे थे और माँ भी रसोई से निकल कर आ रही थी. उसने एक लम्बा कुर्ता पहन था जो उसके बदन को अच्छे से ढँके हुए था. असमंजस से भरी मनिका ने जब अपने परिवार को देखा तो उसकी आँखें नम होने लगी. ये कैसा रास्ता था जिसपर वह चल पड़ी थी, और उसके पापा भी, क्या उन दोनों के लिए कोई वापसी न थी?
मनिका भी आकर उनके साथ बैठ गई और अनमनी सी प्लेट में नाश्ते का सामान रखने लगी.
तभी जयसिंह भी कमरे से निकल आए. हमेशा की तरह मनिका की नज़र उनसे मिली और फिर झुक गई. जयसिंह आ कर उसकी बग़ल वाली कुर्सी पर बैठ गए थे. बैठते ही उन्होंने अपना हाथ मनिका की पीठ पर रखते हुए सहलाया था और सबसे मुस्कुराते हुए बोले थे,
"Good morning."
"Good morning papa." कनिका और हितेश ने कहा था.
उनके हाथ लगाते ही मनिका थोड़ी उचक कर आगे हो गई थी, और उनके अभिवादन का भी कोई जवाब नहीं दिया था. जयसिंह ने हाथ हटाते हुए एक सवालिया निगाह से उसे देखा.
"Good morning, papa." मनिका ने अपनी प्लेट में देखते हुए धीमे स्वर में कहा.
तभी मधु भी आकर बैठ गई और आम बातचीत का दौर चल पड़ा. कुछ देर तो मनिका बैठी हाँ-हूँ करती रही फिर 'ज़्यादा खाने का मन नहीं है' कह उठ खड़ी हुई. मधु ने उसे कहा कि कम से कम सब नाश्ता कर लें तब तक उनके साथ बैठी रहे मगर वो कुछ बहाना कर वापस अपने कमरे में आ गई. उसे आकर बैठे हुए कुछ ही पल बीते होंगे कि जयसिंह का मेसेज आ गया.
Papa: Kya hua?
लेकिन मनिका ने उसका कोई जवाब नहीं दिया और फ़ोन एक तरफ़ रख लेट गई. कुछ-कुछ देर में फ़ोन में मेसेज आते जा रहे थे मगर मनिका आँखें मींचे पड़ी रही. आख़िर रात को कम सोई होने और मानसिक थकान के चलते मनिका की आँख लग गई. दोपहर के खाने के समय जब उसकी माँ ने बाई जी को उसे बुलाने भेजा था तब भी मनिका ने खाने से इनकार कर दिया था.
कुछ देर बाद उसकी बहन भी स्कूल से लौट आई. उसे सोता देख उसने भी उसे पूछा कि क्या वह ठीक है, मगर मनिका ने उसे भी टाल दिया. उसे सब कुछ बेमानी लग रहा था और जयसिंह से ज़्यादा अपने आप पर खीझ और ग़ुस्सा आ रहा था कि उसने यह सब कैसे हो जाने दिया.
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उधर ऑफ़िस में बैठे हुए जयसिंह भी मनिका के इस बर्ताव से हैरान-परेशान हो रहे थे. कल रात तक तो सब ठीक था, बल्कि उन्हें तो ऐसा लगा था कि मंज़िल अब ज़्यादा दूर नहीं,
"क्या हो गया साली कुतिया जवाब नहीं दे रही..." उन्होंने झुंझलाते हुए सोचा था.
उन्होंने तीन चार-बार मनिका को मेसेज किया था और उसे डार्लिंग व स्वीटहार्ट जैसे शब्दों से रिझाने की कोशिश की थी. मगर मनिका ने उनके मेसेज पढ़े तक नहीं थे. यह देख उनका संशय और अधिक बढ़ गया था. पूरा दिन ऑफ़िस के कामकाज में उनका मन नहीं लगा और शाम होते-होते उन्होंने तय किया कि आज घर जल्दी चला जाए.
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जब जयसिंह घर आए तो पाया कि उनकी पत्नी, माँ और भाभी हॉल में बैठीं चाय पी रहीं थी. पूछने पर पता चला कि हितेश क्रिकेट खेलने गया है और मनिका-कनिका अपने कमरे में हैं. जयसिंह भी उनके पास बैठ गए और बतियाने लगे, लेकिन उनका ध्यान मनिका में ही लगा हुआ था. कुछ देर बाद मधु ने केतली उठा कर देखी, उसमें अभी चाय बाक़ी थी, तो वह अपनी सास और जेठानी से थोड़ी और चाय लेने को कहने लगी. मगर दोनों ने ही मना कर दिया.
जयसिंह को मौक़ा मिल गया था. उन्होंने मधु से कहा कि लड़कियों को भी चाय के लिए नीचे बुला ले. बेचारी मधु उनका कुतर्क कैसे समझ पाती, वो उठी और सीढ़ियों के पास जाकर आवाज़ दी,
"मनि! कनु! नीचे आ जाओ चाय पी लो, क्या सारा दिन कमरे में घुसी रहती हो."
"हाँ मम्मा आ रहे हैं." कुछ पल बाद कनिका की आवाज़ आई थी.
एक-आध मिनट बाद कनिका कमरे से निकाल आई और सीढ़ियाँ उतरने लगी. जयसिंह ने आशंकित मन से देखा ही था जब मनिका भी उसके पीछे-पीछे आती दिखी. उनकी नज़र मिली और मनिका एक पल के लिए ठिठक गई थी. पर फिर नीचे उतर आई.
दोनों लड़कियाँ भी आ कर बैठ गई और एक बार फिर औरतों में बातचीत चल पड़ी. आज मनिका जयसिंह के पास आ कर नहीं बैठी थी. जयसिंह नज़रें चुरा कर कभी-कभी उसे देख रहे थे और उधर मनिका की नज़र भी अक्सर उनसे मिल रही थी. मगर उसके चेहरे से लग रहा था कि कुछ गड़बड़ है. जयसिंह की परेशानी बढ़ती जा रही
थी जब गेट बजा और जयसिंह के भाई की बेटी नीरा अंदर आई.
घर की औरतों के जमघट के बीच जयसिंह अब अकेले मर्द थे.
नीरा और कनिका क्यूँकि हम उम्र थी और एक ही क्लास में पढ़ती थी तो उनके बीच अलग बातें चल पड़ीं. सिर्फ़ मनिका और जयसिंह ही अब कटे-कटे बैठे थे. नीरा के आ जाने के बाद चाय कम पड़ गई, सो मधु ने बाई जी को आवाज़ दी कि और चाय बना लाए.
उधर कनिका और नीरा ने हॉल में लगा टी.वी. चला लिया था, और एक फ़िल्मी गानों का चैनल देखने लगीं. घर में एक शोरगुल भरा माहौल बन गया था. जयसिंह को लगने लगा था कि अभी के
लिया यहाँ से उठ का जाना ही ठीक होगा. तभी बाई जी चाय लेकर आ गई और मधु ने उनके कप में फिर से चाय डाल दी. इस दौरान बातचीत रुक गई थी और थोड़ी शांति हुई. सिर्फ़ टी.वी. पर चल रहे गाने की आवाज़ आ रही थी.
मनिका की दादी ने टी.वी. देख रही कनिका और नीरा की ओर देखा था. टेलिविज़न में एक रीमिक्स गाना चल रहा था जिसमें लड़कियाँ शॉर्ट्स और गंजियाँ पहने नाच रही थी.
दादी पुराने ज़माने की औरत थी, वो बोल पड़ीं,
"या आजकल
रि राँडां न तो कोई लाग-शरम ही ना है."
कनिका और नीरा उनकी बात सुन लोटपोट होने लगी,
"क्या दादी... हाहाहा... फिर से कहना प्लीज़..." कनिका हंसते हुए बोली.
"चुप करो दोनों... ये क्या देखती रहती है सारा दिन, पढ़ाई करने को कहते ही नींद आने लगती है तुझे." मधु ने चेताया.
"हाहाहा... अरे पढ़ लूँगी मम्मा..." कनिका ने मुँह बनाते हुए कहा और फिर मुड़ कर फिर से नीरा के साथ खुसपुस करने लगी.
मगर दादी की बात सुनते ही मनिका की नज़र जयसिंह से मिली थी. बात का आशय समझ मनिका को पिछले कुछ दिनों का अपना चाल-चलन याद आ गया था, और एक शब्द उसके मन में घर कर गया 'राँड'. सो जब जयसिंह की नज़र उस से मिली तो वो शर्म से पानी-पानी हो गई.
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कुछ देर बाद जयसिंह वहाँ से उठ कर अपने कमरे में चले गए थे.
थोड़ी देर बाद मनिका की ताई जी ने भी नीरा से उठ कर घर चलने को कहा. शाम ढल आई थी और मनिका के ताऊजी घर आने ही वाले थे. इस पर कनिका और नीरा में फिर से कुछ खुसर-पुसर हुई और फिर नीरा ने आँखें टिमटिमाते हुए मधु से पूछा,
"चाची! आज कनु हमारे इधर सो जाए?"
"क्यूँ? ये खुद तो पढ़ती नहीं है तुझे और ख़राब करेगी..." मधु ने कहा था, मगर उसका लहजा मज़ाक़िया था.
"क्या है मम्मा... पढ़ने के लिए ही जा रही हूँ. आप ही तो कहते रहते हो कि नीरा से सीखो..." कनिका ने भी अंत में आते-आते शरारती मुस्कान के साथ जोड़ दिया था.
"अच्छा
भई चली जाना. भौजी ध्यान रखना इनका." मधु ने उठते हुए कहा. "चल अभी ये बर्तन किचन में रख के आ पहले."
सब उठ खड़े हुए. मनिका ने भी एक दो बर्तन उठाए और रसोई में रखने के बाद वापस अपने कमरे में चली आई.
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'राँड'
वो शब्द रह-रह कर मनिका के मन में गूंज रहा था. दिल्ली में अपना रहन-सहन और पहनावा याद कर उसकी लज्जा और बढ़ती जा रही थी. उसे याद आने लगा कि कैसे पहली बार वो बुरा सपना देखने के बाद जब वह उठी थी तो उसने सोचा भी था के अपने पिता के साथ शीलता से रहेगी. मगर अगली सुबह अपनी बात पर क़ायम न रह सकी थी. बल्कि कुछ ग़लत हो रहा है यह एहसास हो जाने के बाद भी उसने जयसिंह से करीबी बढ़ाए रखी थी.
"हाय! पापा के सामने कैसे वो कपड़े पहन-पहन कर दिखाए थे और वो लेग्गिंग़्स में तो अंडरवियर भी दिख रही थी. पापा भी कैसे गंदे हैं, सब देखते थे और मुझे रोकते भी नहीं थे. Obviously, he liked seeing me like that! और मैं भी उनका साथ देती रही... हाय! दादी सही कहती है, क्या मैं सच में...?
'राँड'
डिनर के लिए कनिका उसे बुलाने आई तब उसकी तंद्रा टूटी.
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मनिका का खाने का मन तो नहीं था मगर अपनी माँ के सवालों से बचने के लिए वो जैसे तैसे नीचे आई थी. टेबल ख़ाली था, कनिका फिर से टेलिविज़न के सामने जमी थी और उसकी माँ किचन में थी. हितेश और जयसिंह भी अपने-अपने कमरों में थे. दादी को खाना कमरे में ही दिया जाता था सो वे वहाँ नहीं थी.
मनिका हमेशा से ही अपने पिता के बग़ल वाली कुर्सी पर बैठती आई थी. लेकिन आज वो जाकर उनके स्थान से दूसरी तरफ़ साइड वाली कुर्सी पर बैठ गई. कुछ देर बाद सीढ़ियों से उछलता हुआ हितेश भी उतर आया और उसकी माँ भी टेबल पर आ बैठी. मधु ने कनिका को भी एक उलाहना दिया और आकर डिनर करने को बोला. तभी जयसिंह भी अपने कमरे से निकल आए.
कनिका जब टेबल के पास आई तो मनिका को अपने स्थान पर बैठे पाया.
"दीदी आप मेरी जगह बैठ गए." कनिका ने मचलते हुए कहा.
"हेहे..." मनिका एक झूठी हंसी के साथ बैठी रही.
"Yayy... आज मैं पापा के पास बैठूँगी." कनिका बैठते हुए बोली थी.
अपनी छोटी बहन के मुँह से यह सुन मनिका के रोंगटे खड़े हो गए थे. उसने अपने मन में आते विचारों को झटक कर दूर करना चाहा था. मगर फिर उसकी नज़र अपने पिता से मिली जो उसे ही देख रहे थे और वो सिमट कर जैसे कुर्सी में गड़ने लगी.
डिनर ख़त्म होते-होते क्या बातचीत चली मनिका को कुछ ध्यान न रहा था. लेकिन जब सब उठने लगे तो मधु ने कहा,
"कनु टाइम देख क्या हो गया है, जाना नहीं है तुझे?"
"हाँ मम्मा बस बुक्स लेकर आई ऊपर से..."
"कहाँ जा रही है?" जयसिंह ने पूछा.
"अरे पापा, आज मैं और नीरा पढ़ाई करेंगे, तो ताऊजी के घर सोऊँगी." कनिका ने सीढ़ियों की तरफ़ जाते हुए बताया.
"अच्छा-अच्छा." जयसिंह बोले.
"हाँ ज़रूर, क्यूँ नहीं." मधु ने व्यंग्य किया.
"मम्मा... क्या है?" कह कनिका नख़रे से भागती हुई सीढ़ियाँ चढ़ गई.
जयसिंह ने एक नज़र मनिका की तरफ़ डाली थी मगर वो उठ कर वाशबेसिन पर हाथ धो रही थी.
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जयसिंह की परेशानी भी अब बढ़ती जा रही थी, क्या पिछली रात उन्होंने मनिका को ज़्यादा छेड़ दिया था? जिस वजह से अब वो उनसे दूरी बना रही थी, अगर कहीं उसने किसी से कुछ कह दिया तो क्या होगा ये अंदेशा भी उन्हें सता रहा था. उन्होंने एक बार फिर से उसे बहलाने के लिए मेसेज किए मगर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. समय ज़्यादा नहीं हुआ था लेकिन सब अपने-अपने कमरों में जा चुके थे. आख़िर कुछ सोच कर वे उठे और अपनी अलमारी खोली.
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रात के क़रीब 10:30 बजे होंगे जब जयसिंह का फिर से मेसेज आया. कमरे की लाइट बंद थी मगर एक नाइट बल्ब जल रहा था. मनिका ने नोटिफ़िकेशन देखा मगर मेसेज नहीं खोला. एक के बाद एक कई मेसेज आते गए थे. आख़िर जयसिंह ने मेसेज करना बंद कर दिया. दिन में इतना सो लेने के बाद नींद मनिका की आँखों से दूर थी.
वो लेटी हुई सोच ही रही थी जब उसके कमरे का दरवाज़ा धीरे से खुलने लगा. हल्की रौशनी में उसने देखा कि जयसिंह अंदर आ रहे हैं.
मनिका उचक कर उठ बैठी और खड़ी होने लगी. उसका दिल धड़-धड़ कर रहा था.
"पापा उसके रूम में आ गए थे और उन्होंने... सिर्फ़ बरमूडा पहना था!"
डर के मारे उसका बुरा हाल था. मनिका बेड से उतरी ही तब तक जयसिंह भी उसकी तरफ़ आने लगे थे.
"क्या हुआ?" जयसिंह का सवाल था.
उन्होंने अपने हाथ उसे थामने के लिए बढ़ाए मगर मनिका पीछे हट गई.
"आप यहाँ क्या कर... रहे हो?" मनिका कांपते स्वर में बोली.
"क्या हुआ मनिका, नाराज़ हो क्या?" जयसिंह ने उसकी बात अनसुना करते हुए कहा.
"पापा! आप जाओ... कोई आ जाएगा, आपने कुछ पहना नहीं है..."
"पहले बताओ क्या हुआ है?"
जयसिंह उसके क़रीब आते जा रहे थे. अब मनिका के पास पीछे हटने के लिए भी जगह नहीं थी. उसके पैर बेड से टकराए.
"आप जाओ पहले, मैंने मेसेज कर... करती हूँ." मनिका लड़खड़ाते हुए बोली.
"नहीं, पहले बताओ क्यूँ नाराज़ हो?" जयसिंह अब उसके बिल्कुल क़रीब आ गए थे.
"पापा ऐसा क्यूँ कर रहे हो... प्लीज़!" मनिका गिड़गिड़ाई.
उन्होंने उसके कंधों से उसे पकड़ लिया था.
'खट्ट!'
फिर दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई. हितेश ने अपने कमरे का गेट खोला था.
एक पल के लिए दोनों के बीच सन्नाटा पसर गया.
"हितेश... हितेश जगा हुआ है... पापाऽऽऽ अब क्या होगा?" मनिका हाथ हवा में हिलाते हुए बोली.
फिर उसे बाथरूम का खुला गेट दिखा, बदहवास सी मनिका ने उन्हें इशारा करते हुए उस ओर धकेला. जयसिंह भी उसकी बात समझ गए और झट बाथरूम के अंदर घुसे, और तभी मनिका के कमरे का गेट फिर से खुला और उसका भाई हितेश अंदर दाखिल हुआ.
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