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Romance बेडु पाको बारो मासा

blinkit

I don't step aside. I step up.
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सुबह के सात बजे थे लेकिन ठण्ड और आसमान में घिरे काले बादलों ने अभी तक अँधेरा फैलाया हुआ था, एक तो दिल्ली में ठण्ड कुछ ज़ायदा ही पड़ती है और जनवरी के महीने में तो लगता है सूरज दिल्ली का रास्ता ही भूल जाता है, लेकिन आज तो आसमान में लगे बदलो और और तेज़ चलती हवाओं ने कहर ही ढाह रखा था, सड़क किनारे खम्भों पर लगी इक्का दुक्का टियूब लाइट अंधेरे से लड़ने की नाकाम कोशिश कर रही थी,

ये उन दिनों की बात है जब दिल्ली में द्वारका और उसके आस पास का इलाका धीरे धीरे प्रगति कर रहा था, अबसे कुछ साल पहले तक यहाँ खेत और इन खेतो के किनारे कीकर के जंगल हुआ करते थे, लेकिन अब दिल्ली की सरकार ने इन ज़मीनो का अधिग्रहण करके यहाँ एक वेल प्लैनेड सिटी डेवेलोप कर दिया था और इसी क्रम में अब यहाँ नयी इमारतों का निर्माण होना चालू हो चूका था, कुछ बिल्डिंग्स बन भी चुकी थी और इसमें लोगो ने रहना स्टार्ट कर दिया था लेकिन अभी भी जायदातर एरिया खाली था,

इसी द्वारका से सटे पालम गांव की एक सुनसान सड़क पर कंधो पर अपना स्कूल का बस्ता संभाले नीतू तेज़ कदमो से अपने बस स्टैंड की ओर भागी जा रही थी, ठंडी हवा पूरी तेज़ी के साथ उसके कोमल शरीर को भेदने की कोशिश करती तो नीतू भी उतनी ही तेज़ी के साथ स्टैंड की ओर दौड़ने लगती। ठण्ड का आलम ये थे की आज ऑफिस जाने वाले लोगो की भीड़ भी नदारत थी, शायद लोग ठण्ड और बारिश को देखते हुए घर से बाहर ही नहीं निकले थे,

इतनी ठण्ड में स्कूल जाने का मन तो नीतू का भी नहीं था लेकिन उसे मजबूरीवश जाना पड़ रहा था, नीतू पढ़ने में होशियार थी, एक दिन अगर स्कूल नहीं जाती तो कुछ फर्क नहीं पड़ता, वैसे भी वो छुट्टिया नाम मात्र की करती थी, लेकिन आज उसका का इतिहास का टेस्ट था, अगर ये टेस्ट और किसी विषय में होता तो नीतू को कोई फरक नहीं पड़ता टेस्ट छोड़ने में लेकिन ये विषय उसकी हेड मैडम पढ़ाती थी इसलिए स्कूल जाना उसकी मजबूरी थी।

नीतू मन ही मन हेड मैडम को कोसती हुई अपने स्टैंड पर जा पहुंची, स्टैंड पर पहुंचते ही नीतू का मूड फिर से सड़ गया, स्टैंड बिलकुल खाली पड़ा था, उसके साथ इस स्टैंड से ४ बच्चे और उसके स्कूल जाते थे लेकिन आज स्टैंड पर कोई नज़र नहीं आरहा था, नीतू ने अपनी गोरी गोरी कलाईयों पर बंधी ब्लैक स्ट्राप वाली घडी में टाइम देखा सात बीस हो रहे थे, बस आने में अभी दस मिनट बचे थे , नीतू बस स्टैंड के शेड के नीचे खड़ी हो कर ठंडी हवा से बचने की नाकाम कोशिश करने लगी, लेकिन यहाँ हवा और ज़यादा ठंडी थी, बस स्टैंड के ऊपर एक छोटा सा शेड तो था लेकिन स्टैंड के पीछे कोई दीवार नहीं थी जिसके कारण पीछे के पार्क में लगे पेड़ो से टकरा कर जो हवा आरही थी वो और ज़ायदा ठंडी और तेज़ थी, ये पार्क कहने मात्र के लिए ही पार्क था, असल में ये एक पुराना कीकड़ का जंगल था जिसे सरकार ने साफसुथरा करके पार्क बना दिया था, लेकिन कुछ ही समय में ये पहले से और ज़ायदा बदहाल हो गया और अब ये जुवारियों और शराबियों का अड्डा बन गया, गांव के सारे जुवारी और शराबी दिन भर यही पड़े रहते थे।

नीतू को पालम का ये इलाका बिलकुल पसंद नहीं था, उसने बहुत बार अपने पापा को बोला था की पालम में घर लेने से अच्छा था की वो द्वारका की किसी सोसाइटी में फ्लैट ले ले लेकिन क्या कर सकती थी, उसके पापा सीधे साधे आदमी थे, आर्मी में कप्तान थे, पहले तो पोस्टिंग पर परिवार को साथ ले ले कर जाते थे लेकिन फिर जब बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ने लगा तो उन्होंने दिल्ली में अपना मकान लेने का ठान लिया, आर्मी हेड ऑफिस के नज़दीक यही एरिया उनको ठीक लगा और बाकि की पट्टी प्रॉपर्टी डीलर ने पढ़ा का उनको यहाँ एक मकान औने पौने दाम पर दिला दिया। वैसे तो इलाका ठीक था, यहाँ और भी बहुत सी पहाड़ी फॅमिली रहती थी लेकिन आस पास के गंवार और उनकी हेकड़ी वाला माहौल को देख कर नीतू को कुढ़न सी होती थी।

यहाँ आने से पहले नीतू का परिवार आर्मी एरिया में रहता था, वहा सारे परिवार साफ़ सुथरे और तरीके से रहते थे लेकिन यहाँ के ढंग ही अलग थे, खैर वो बेचारी कर ही क्या सकती थी, अभी आठवीं की स्टूडेंट थी और अभी सारा धयान पढाई में था।

नीतू को स्टैंड पर खड़े खड़े दस मिनट हो चुके थे लेकिन बस का अभी तक कुछ अता पता नहीं था और ना ही किसी दूसरे स्टूडेंट्स का, नीतू बार बार उम्मीद भरी निगाहो से बस के आने वाले रस्ते की ओर देखती और फिर वापस मायूस हो कर स्टैंड के खम्भे से टेक लगा कर खड़ी हो जाती।

नीतू बस का इन्तिज़ार करते हुए अपने खयालो में खोयी हुई की तभी अचानक उसके नथुनों में शराब की गन्दी तीखी बदबू टकराई , ये बदबू पार्क के पीछे से आयी थी, पहले तो वो बुरा सा मुँह बना कर रह गयी लेकिन जब शराब की बदबू तेज़ होनी लगी तो नीतू बदबू का कारण जानने के लिए गर्दन घुमाई, अभी उसकी गर्दन घूमी भी नहीं थी की अचानक एक मज़बूत हाथ उसके मुँह पर आ पड़ा और किसी ढक्कन के जैसे उसके मुँह पर चिपक गया, नीतू के गले से एक घुटी हुई चीख निकली लेकिन उसकी चीख उस मज़बूत हाथ के अंदर ही दम तोड़ गयी, नीतू बचने के लिए हाथ पैर मारने लगी लेकिन उस व्यक्ति की मज़बूत चुंगल से नहीं निकल पायी।

नीतू को हाथ पैर चलता देख देख कर शराबी ने दूसरे हाथ से अपना कम्बल खींच कर नीतू के शरीर को पूरा ढक लिया, नीतू दर से काँप गयी लेकिन उसके तेज़ दिमाग ने अंदाज़ा लगा लिया था की अगर वो शराबी उसको इसी तरह कम्बल में लपेट कर जंगलनुमा पार्क में ले गया तो फिर उसका बचना मुश्किल है।

नीतू की उम्र कम ज़रूर थी लेकिन उसके शरीर में पहाड़ी खून था, उसके परिवार को सदा मेहनत करने की आदत ने उसके शरीर को मज़बूत बना रखा था, नीतू ने अपने शरीर की पूरी ताकत लगा कर कर अपने हाथो से शराबी के उस हाथ को पकड़ लिया जिस से उसने उसके मुँह को दबा रखा था, उसने अपने दोनों हाथो की मेहनत और भरपूर शक्ति लगा कर उसके हाथ की पहली ऊँगली को पकड़ा और और पूरी ताकत से उसे पीछे की ओर खींच दिया, शराबी दर्द से बिलबिलाया और उसकी नीतू के मुँह पर पकड़ ढीली हुई, मुँह पर जैसे ही हाथ ढीला हुआ तो नीतू ने अपना मुँह खोल कर शराबी के हाथ को मुँह में भर कर अपने मज़बूत नुकीले दांतो से चबा डाला, शराबी दर्द से चिल्लाया और और बस उसी पल में नीतू शराबी की चुंगुल से मछली की तरह फिसल कर ज़मीन पर गिर पड़ी।

शराबी की ऐसे विरोध की उम्मीद नहीं थी इसलिए वो हड़बड़ा गया और फिर झुक कर नीतू को पकड़ने की कोशिश करने लगा इतने में ही किसी ने हल्ला मचाया

- ये क्या हो रहा है ? पीछे हट, इस लड़की से दूर हो।।।।

शराबी अभी नीतू के हमले से ठीक से संभाला भी नहीं था और ऊपर से किसी मर्द की आवाज़ सुन कर बिन कुछ देखे सुने कम्बल संभालता हुआ पार्क की ओर भाग निकला।

नीतू ज़मीन पर पड़ी हाफ रही थी और उसकी आँखों से छलक कर आंसू उसके गोर गाल को भींगा रहे थे,

- तुम ठीक हो गुड़िया ? उस आदमी ने नीतू के पास AA कर पूछा ?
नीतू : हाँ मैं ठीक हूँ कहते हुए सर हिलाया
- क्या हुआ था ? कौन था ये शराबी ?
नीतू : पता नहीं अंकल, मैं यहाँ खड़ी थी तो इसने पीछे से मुँह बंद करके मुझे उठा लिया और जंगल की ओर ले जा रहा था।
- कोई बात नहीं बेटा , तुमको चोट तो नहीं आयी ?
नीतू : नहीं अंकल मैं ठीक हूँ कहते हुए नीतू उठ खड़ी हुई और अपने kapdo पर लगी मिटटी झाड़ने लगी
- तुम किस स्कूल में पढ़ती हो ?
नीतू : जी वर्धवान पुब्लिक स्कूल में
- कोई नहीं आओ मेरे साथ, मैं उधर ही ऑफिस जा रहा हूँ तुमको छोड़ दूंगा
नीतू : नहीं अंकल थैंक यू , मेरी बस आने वाली ही होगी मैं चली जाउंगी ,
- डरो मत बेटा, मैं तुम्हे अपनी गाडी से छोड़ दूंगा स्कूल, और अगर तुमको किसी बात कर डर है तो मैं गाडी की खिड़की खुली रखूँगा, मैं नहीं चाहता की तुम यहाँ अकेली खड़ी रहो, कही कोई दिक्कत आगयी फिर ?

नीतू ने भी मन ही मन डर रही थी, सामने वाले व्यक्ति अपने पहनावे से पढ़ा लिखा और सभ्य मालूम होता था, उम्र कोई पैंतीस साल रही होगी, देखने में अच्छा खासा स्मार्ट आदमी था सामने ही उसकी सेंट्रो कार खड़ी थी, नीतू ने हाँ में सर हिलाया और कार की ओर बढ़ गयी।

सामने वाले व्यक्ति ने नीतू के लिए गाडी का दरवाज़ा खोला और खुद घूम कर ड्राइवर सीट पर आकर बैठ गया, नीतू को गाडी में बैठ कर सकून महसूस हुआ, गाडी अंदर से गर्म थी, उस व्यक्ति ने गाडी में गयेर में डाली और आगे बढ़ी दी,

- अगर तुमको डर लग रहा है तो तुम अपने साइड की विंडो खोल सकती है, बाहर ठण्ड बहुत है इसलिए मैंने बंद कर रखी है साडी विंडोज
नीतू : नहीं अंकल ठीक है

नीतू उस व्यक्ति अंकल तो बुला रही थी लकिन उस व्यक्ति का व्यक्तित्व को देख कर उसे अंकल बुलाने में अजीब सा लग रहा था
थोड़ी दूर चल कर गाडी मेनरोड पर आगयी ,

- तुम्हारा क्या नाम है बेटा ?
नीतू : जी नीतू, नहीं निष्ठां चौहान।
- हां हां हां नीतू या निष्ठा कोई एक फाइनल कर लो
नीतू : नीतू ही ठीक है , निष्ठां चौहान स्कूल में
- हां हां मुझे निष्ठां चौहान नाम ही अच्छा लग रहा है, नाम के अनुसार ही तुम बहादुर लड़की हो, बहुत हिम्मत से तुमने उस शराबी से मुक़ाबला किया।
नीतू : थैंक यू अंकल
- मेरा नाम विनीत कपूर है, और मैं यही जनकपुरी रहता हूँ तुम चाहो तो मुझे विनीत जी बुला सकती हूँ
नीतू : थैंक यू विनीत जी, अपनी मेरी हेल्प की उस शराबी को भगाने में
विनीत : अरे मैं हेल्प करता उस से पहले ही तुमने उसे धूल चटा दी थी
नीतू : फिर भी
विनीत : ओह्ह डोंट मेंशन इट

थोड़ी देर में ही नीतू का स्कूल आगया और विनीत ने स्कूल के गेट पर नीतू को ड्राप कर दिया, नीतू ने विनीत को थैंक यू कहा और दौड़ कर स्कूल के अंदर चली गयी
 

blinkit

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तो दोस्तों ये मेरी दूसरी कहानी है, आप सबने मेरी पहली कहानी जवानी जानेमन को जो प्यार दिया वो मेरे लिए यादगार रहेगा, आशा है की आपको ये कहानी भी पसंद आएगी और इस कहानी को भी भरपूर प्यार मिलेगा जैसा आप सब ने मेरी पहली कहानी को दिया था

धन्यवाद्
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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एक कुमाऊँनीं लोक गीत पर आधारित है इस कहानी का शीर्षक!
लेकिन बेडु (अंजीर) तो केवल भाद्रपद (बरसात) में पकता है, बारहों महीने नहीं! तो, जो चीज़ प्राकृतिक रूप से केवल एक निश्चित समय पर पकती है, वो पूरे बारहों महीने पक रही है।
ऐसी एक ही वस्तु का पता है हमको - और वो है प्रेम! लिहाज़ा, कहानी का टैग भी रोमांस ही है।
कहानी का केवल एक ही अपडेट आया है, इसलिए कयास नहीं लगाना चाहिए - लेकिन, नीतू और विनीत एक बेमेल जोड़ी हैं।
देखते हैं आगे किस दिशा में जाती है!
देवनागरी में लिखी कहानियाँ पढ़नी ही मुझे अच्छी लगती हैं, और अगर सही तरह से लिखी जाएँ तो आनंद आ जाता है।
साधुवाद! :)
 

Delta101

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agle update ki pratiksha hai...
 
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blinkit

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एक कुमाऊँनीं लोक गीत पर आधारित है इस कहानी का शीर्षक!
लेकिन बेडु (अंजीर) तो केवल भाद्रपद (बरसात) में पकता है, बारहों महीने नहीं! तो, जो चीज़ प्राकृतिक रूप से केवल एक निश्चित समय पर पकती है, वो पूरे बारहों महीने पक रही है।
ऐसी एक ही वस्तु का पता है हमको - और वो है प्रेम! लिहाज़ा, कहानी का टैग भी रोमांस ही है।
कहानी का केवल एक ही अपडेट आया है, इसलिए कयास नहीं लगाना चाहिए - लेकिन, नीतू और विनीत एक बेमेल जोड़ी हैं।
देखते हैं आगे किस दिशा में जाती है!
देवनागरी में लिखी कहानियाँ पढ़नी ही मुझे अच्छी लगती हैं, और अगर सही तरह से लिखी जाएँ तो आनंद आ जाता है।
साधुवाद! :)
सही कहा AVS Ji, इस कहानी का शीर्षक मैंने उसी कुमाउँनी लोकगीत से लिया है, असल में इस कहानी का शीर्षक मैंने पहाड़ी मौसम रखा था लेकिन एक अन्य लेखक ने इसी शीर्षक से एक कहानी लिख रहे है इसलिए मैंने इस लोकगीत की प्रथम पंक्ति को अपनी कहानी का शीर्षक बना लिया, मैं कोई लेखक नहीं हूँ बस कभी कभार खाली दिमाग में कुछ विचार आजाते है किसी घटना को देख कर या पढ़ कर तो उसकी अपनी शब्दों में लिखने की कोशिश कर लेता हूँ, आशा करता हु की कुछ दिलचस्प लिख पाऊ ताकि आप जैसे महान लेखकों का आशीर्वाद मिल सके।

जिन पाठको को इस लोकगीत के के बारे में नहीं पता उनके लिए एक छोटा सा परिचय।

बेडु पाको बारमासा (हिन्दी: पहाड़ी अंजीर वर्ष भर पकते हैं), उत्तराखण्ड का एक प्रसिद्ध कुमाऊँनी लोकगीत है, जिसके रचयिता स्व. बृजेन्द्र लाल शाह हैं। मोहन उप्रेती तथा बृजमोहन शाह द्वारा संगीतबद्ध यह गीत दुनिया भर में उत्तराखण्डियों द्वारा सुना जाता है। इसे दिल्ली में तीन मूर्ति भवन में एक अन्तर्राष्ट्रीय सभा के सम्मान में प्रदर्शित किया गया, जिससे इसे अधिक प्रसिद्धि मिली। भारत के पहले प्रधानमंत्री, जवाहर लाल नेहरू ने इस लोकगीत को देश का सर्वश्रेष्ठ लोकगीत कहा था।
 

blinkit

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इस घटना के कुछ वर्ष बीतने के बाद

कंप्यूटर पर बजते गाने की धुन पर गुनगुनाते हुए समीर ने बालो में अंतिम बार कंघा चला कर कंघे को बेड की ओर उछाल दिया, अपना बैग कंधे पर लटकाया और बाइक की चाभी और हेलमेट उठा लिया, इतने में किसी ने बाहर से बेल बजायी, बेल बजाने वाला जैसे बेल बजा कर स्विच पर से ऊँगली हटाना ही भूल गया था, बेल लगातार बजती जा रही थी, समीर ने लगातार बजती बेल पर कोई धयान नहीं दिया और ना ही कोई हड़बड़ी दिखाई, बल्कि आराम से अपना बैग और हेलमेट संभालता हुआ दरवाज़े पर आया और दरवाज़ा खोला और चौखट से टेक लगा कर खड़ा हो गया, सामने उसका जिगरी दोस्त अंकुश कमर पर तौलिया लपेटे खड़ा था,

अंकुश : साले इतना टाइम लगता है गेट खोलने में, कब से घंटी बजा रहा हूँ
समीर : ओह्ह नई इनफार्मेशन, लगातार घंटी दबाने से गेट जल्दी खुलता है, ज़रूर गेट और घंटी में कोई कनेक्शन है,

अंकुश : साले बकवास मत कर ये बता सुबह सुबह कहा तैयार हो कर जा रहा है ?
समीर : काम करने सरकार, सब आप जैसे अमीर बाप के बेटे नहीं होते, कुछ हम जैसे गरीब भी है इस दुनिया में

अंकुश : हरामखोर कितना बोलता है तू, सीधे सीधे बता, दिमाग मत ख़राब कर
समीर : अबे बताया तो काम है इसलिए जा रहा हूँ

अंकुश : साले यही फ्लैट तेरा घर है और यही से तू ऑफिस भी चलता है फिर अब ये कौन सी नयी जगह आगयी जहा तू काम करने जा रहा है ?
समीर : अबे पागल इंसान ऑफिस से बाहर क्लाइंट से मिलने जाना होता है कभी माल लेने जाना होता है, सब काम यही बैठे बैठे हो जायेगा क्या ?, तू बता तुझे क्या काम है मुझसे ?

अंकुश : पहले तू बता कहा जा रहा है इतनी सुबह सुबह
समीर : क्लाइंट से मिलने जा रहा हूँ, और सुबह नहीं है सवा दस बज चुके है, तुझे जल्दी लग रहा होगा साले, दिन के १२ बजे तक तो सोता रहता है तू (समीर ने ताना मारा)

अंकुश : बारह नहीं दो बजे
समीर : हाँ सच कहा तूने, अब तू बता तू आज इतनी जल्दी कैसे उठ गया और मुझसे क्या काम है ?

अंकुश : कुछ नहीं, तू जहा जा रहा था वो कैंसिल कर, मैं बस नहाकर आरहा हूँ फिर दोनों भाई घूमने चलते है
समीर : तू जा नहाने मैंने कोन सा रोका है, लेकिन मैं जा रहा हूँ क्लाइंट के पास, घूमने दो बजे के बाद चलेंगे

अंकुश : नहीं, आज तू मेरे साथ चल रहा है, सब कैंसिल कर, समझा कर, आज दोनों भाई मस्ती करेंगे
समीर : अच्छा ठीक है पहले पूरी बात बता नहीं तो मैं चला

अंकुश : कुछ नहीं यार बस आज तृषा से मिलने चलना है
समीर : कौन तृषा ?

अंकुश : अबे वही तृषा जो तूने मुझे गिफ्ट करी थी साले
समीर : ओह्ह वो रॉंग नंबर वाली ? तू अब भी उस से बात कर रहा है ?

अंकुश : हाँ लगतार बात हो रही है, लेकिन आज उसने मिलने के लिए बुलाया है
समीर : ठीक है फिर तू जा, मेरा क्या काम, वैसे भी तू एक्सपर्ट शिकारी है, अकेले शिकार करता है

अंकुश : हाँ करता हूँ शिकार, तेरे जैसा चूतिया थोड़ी हूँ, जो शिकार सामने देख के भी छोड़ दे, तुझे उसी ने बुलाया है, बोल रही है की समीर को ज़रूर साथ लाना, वो तुझसे मिलना चाहती है
समीर : चल भाग, मेरा क्या लेना देना उस से, तू जा और दोनों ऐश करो, मुझे वैसे भी कबाब में हड्डी बनना पसंद नहीं

अंकुश : ड्रामे मत कर, तू चल रहा है बस फाइनल, वैसे भी वहा तीन तीन लेंडियां आरही है समझ बात को यार
समीर : अब ये दो एक्स्ट्रा कहा से आगयी

अंकुश : बाद में, लेट हो रहा है, मैं नहा कर आता हूँ फिर बताऊंगा।

इतना कह कर अंकुश दौड़ कर अपने फ्लैट में घुस गया। अंकुश और समीर लगभग एक ही उम्र के थे , दो साल पहले एकसाथ ही इस बिल्डिंग में फ्लैट किराये पर लिया था, दोनों का फ्लैट अलग अलग था लेकिन फ्लोर कॉमन था, दोनों अकेले रहते थे इसलिए कुछ समय में आपस में दोस्ती भी हो गयी। अंकुश के पिता जी अच्छे पद पर सरकारी नौकर पर थे, परिवार में केवल माता पिता और एक बहन थी, पैसे कि कोई कमी नहीं थी, ग्रेजुएशन कर चूका था और अब एक प्राइवेट इंस्टिट्यूट से कॉम्पीशन की तैयारी कर रहा था, तैयारी तो बस घरवालों को दिखाने के लिए थी, असलियत में तो वो बस ऐश कर रहा था, कुछ ज़ायदा शौक नहीं थे लड़कीबाजी को छोड़ कर, पट्ठे को बस नयी नयी चूत चोदने का चस्का था और इसके लिए वो किसी हद तक जा सकता था।

समीर का परिवार गरीबी में जी रहा था उसके पिता की मृत्यु के बाद इसलिए समीर ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और कमाने लग गया, पहले कुछ समय तक नौकरी की फिर दो साल पहले उसने अपना खुद का बिज़नेस स्टार्ट कर लिया, जो अब धीरे धीरे उसकी जिंदगी को सुखी बना रहा था।

अबसे कुछ महीने पहले एक रात समीर के मोबाइल पर किसी की कॉल आयी थी, उस समय समीर सो रहा था, सुबह उठकर उसने मिस कॉल देख कर कॉल बैक किया तो वो कॉल तृषा ने उठायी थी, पहले तो थोड़ी नोक झोक हुई लेकिन पता नहीं क्यों तृषा को समीर के बातचीत का तरीका भा गया और उसने जानभूझ कर बात लम्बी खींच दी, लेकिन समीर बात के मूड में नहीं था इसलिए उसने अपना फ़ोन अंकुश को पकड़ा दिया था, और अंकुर ठहरा पक्का शिकारी, उसने तृषा से नंबर एक्सचेंज किया और फिर धीरे धीरे अपनी लच्छेदार बातों में उलझा लिया और आज उसी का फल था जो वो मिलने आ रही थी।
 

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लगभग आधे घंटे बाद अंकुश तैयार हो कर आगया, समीर ने गेट खुला ही छोड़ दिया था इसलिए अंकुश सीधा कमरे में घुसता चला आया,

अंकुश : चल भाई जल्दी लेट हो रहा है,
समीर : कहा चलना है ?
अंकुश : "अरे बताया तो, तृषा से मिलने जाना है, कितनी बार एक बात को रिपीट करू" अंकुश झल्लाया
समीर : अबे पागल इंसान, जगह, कौन सी जगह, एरिया जाना है ?"
अंकुश : ओह्ह तो ऐसे बोल ना, जनकपुरी चलना है
समीर : हम्म तो फिर बाइक बेकार है, बहुत टाइम लग जायेगा, मेट्रो से चलते है जल्दी पहुंचेंगे
अंकुश : हाँ ठीक है, लेकिन मुझे मेट्रो का रास्ता नहीं पता, तुझे पता है तो चल

समीर : मुझे पता है सब, यहाँ से इंदरप्रस्थ मेट्रो स्टेशन तक चलेंगे बाइक से वहा बाइक पार्क करके डायरेक्ट द्वारका वाली मेट्रो से जनकपुरी
अंकुश : भीड़ होगी यार

समीर : अरे ये नई लाइन स्टार्ट हुई है इंदरप्रस्था से द्वारका तक के लिए इसमें भीड़ नहीं होती, रिठाला वाली में होती है, तू चल के देख लियो
अंकुश : ठीक है फिर चल, अब देर मत कर, मैंने उनको आधा घंटा पहले ही बोल दिया था की हम निकल चुके है

दोनों ने पहले अपने फ्लैट को लॉक किया और फिर जल्दी जल्दी मेट्रो स्टेशन pahuch गए, जबसे ये मेट्रो लाइन स्टार्ट हुई थी तब से कई बार समीर इस ब्लू लाइन मेट्रो की सवारी कर चूका था इसलिए उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई और थोड़ी देर बाद ही दोनों मेट्रो में बैठे हुए थे।

समीर : देख लिया मेट्रो खाली है ना, कोई भीड़ तो नहीं ?
अंकुश : नहीं यार, बिलकुल खाली है ये तो।

समीर : हाँ ! बस थोड़े दिन की और बात है एकबार जब ये आनंद विहार से जुड़ जाएगी तब देखना भीड़, अभी बीच में सड़े ही स्टार्ट कर दी है
अंकुश : हां छोड़, तब की तब देखि जाएगी

समीर : हाँ ठीक है, अब ये बता की ये 3 ladkiyon का क्या चक्कर है
अंकुश : अरे कुछ नहीं यार बस तृषा से बात चल रही थी इतने dino से तो मैंने usko मिलने का बोलै, उसके एग्जाम चल रहे थे इसलिए mana कर दिया, अब kal इसके एग्जाम finish हुए है तो आज मिलने के लिए ready हो गयी है

समीर : ठीक है लेकिन ये 2 ladkiyan कौन है ?
अंकुश : अरे ये दोनों उसकी saheli है, shayad अकेले aate हुए ghabra रही होगी इसलिए अपनी सहेलियों के साथ aarahi है,

समीर : अच्छा ! और मैं कहा फिट हो रहा हूँ iss story में ?
अंकुश : अरे तू तो hero है इस story का, ha ha

समीर : चूतिया मत बना पूरी बात बता ?
अंकुश : अरे नहीं बना कोई चूतिया तुझे यार, जब उसने बताया की वो अपनी दो सहेलियों के साथ आएगी तो मैंने भी बोल दिया की मेरे साथ मेरा दोस्त समीर भी आएगा, तेरा नाम सुन कर उसने भी बोलै की समीर को ज़रूर लेके आना।

समीर : हम्म ठीक है, और कोई बात ? कोई झूट सच बोला हो तूने
अंकुश : कुछ खास नहीं, बस यही की ये फ्लैट्स हमारा अपना है रेंट का नहीं और तू भी पढाई करता है मेरे साथ

समीर : तूने बताया क्यों नहीं की मैं काम करता हूँ
अंकुश : अरे फिर हम दोनों को ज़ायदा उम्र का समझती ना, उसने अभी बारहवीं का एग्जाम दिया है, तीन चार साल छोटी हम दोनों से
 

red_devil_98

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Congratulations bhai nai kahani ke liye bohot saari 🥳🥳🙏
Ummid hai ki yeh kahani bhi pahle wali ko tarah jabardast aur Lazawab ho(kyuki saari kahani ek raat mein kar di thi maine, bohot hi bhadiya kahani thi👌👌😍 )
Aur haa ek jaruri baat yeh puchna tha ki, kya yeh kahani bhi picchle wali ki tarah iski bhi reality ending rahegi kyuki agar aisa hua toh maafi chahunga kyuki tab main nai padh paaunga iss kahani aage kyuki uss pehle wale kahani ko jab poora padha tha, sahi bata raha hu ek do mahine tak dimag mein uske characters ghumte rahe the aur apni panauti zindagi se relate hone lage the characters(jaise hero, heroine aur heroine ki maa ke jaisi kismat thi teeno ki) isiliye request hai ki agar happy ya reality ending agar hai toh pahle hi bata dena kyuki phir se waisi feeling se nai gujarna chahta kyuki apni toh lagi hui hai aur upar se jo kahani ke characters padhke apna mann bahlate hai unke saath bhi bura ho ya fir satisfactory na ho toh aur bhi bura lagta,isiliye ek reader ke naate bas request hi kar sakta hu,please.🙏🙏🙏
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
19,331
40,072
259
Congratulations भाई नई कहानी के लिए।

पिछली कहानी में तो आपने अपने कई पाठकों को रुला दिया, इस बार आशा है की अंत में मिलन जरूर करवाएंगे।

फिलहाल तो कहानी अभी ट्रैक पर आई नही तो कोई कॉमेंट नही, पर आगे के अपडेट्स की प्रतीक्षा।
 
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