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सुबह के सात बजे थे लेकिन ठण्ड और आसमान में घिरे काले बादलों ने अभी तक अँधेरा फैलाया हुआ था, एक तो दिल्ली में ठण्ड कुछ ज़ायदा ही पड़ती है और जनवरी के महीने में तो लगता है सूरज दिल्ली का रास्ता ही भूल जाता है, लेकिन आज तो आसमान में लगे बदलो और और तेज़ चलती हवाओं ने कहर ही ढाह रखा था, सड़क किनारे खम्भों पर लगी इक्का दुक्का टियूब लाइट अंधेरे से लड़ने की नाकाम कोशिश कर रही थी,
ये उन दिनों की बात है जब दिल्ली में द्वारका और उसके आस पास का इलाका धीरे धीरे प्रगति कर रहा था, अबसे कुछ साल पहले तक यहाँ खेत और इन खेतो के किनारे कीकर के जंगल हुआ करते थे, लेकिन अब दिल्ली की सरकार ने इन ज़मीनो का अधिग्रहण करके यहाँ एक वेल प्लैनेड सिटी डेवेलोप कर दिया था और इसी क्रम में अब यहाँ नयी इमारतों का निर्माण होना चालू हो चूका था, कुछ बिल्डिंग्स बन भी चुकी थी और इसमें लोगो ने रहना स्टार्ट कर दिया था लेकिन अभी भी जायदातर एरिया खाली था,
इसी द्वारका से सटे पालम गांव की एक सुनसान सड़क पर कंधो पर अपना स्कूल का बस्ता संभाले नीतू तेज़ कदमो से अपने बस स्टैंड की ओर भागी जा रही थी, ठंडी हवा पूरी तेज़ी के साथ उसके कोमल शरीर को भेदने की कोशिश करती तो नीतू भी उतनी ही तेज़ी के साथ स्टैंड की ओर दौड़ने लगती। ठण्ड का आलम ये थे की आज ऑफिस जाने वाले लोगो की भीड़ भी नदारत थी, शायद लोग ठण्ड और बारिश को देखते हुए घर से बाहर ही नहीं निकले थे,
इतनी ठण्ड में स्कूल जाने का मन तो नीतू का भी नहीं था लेकिन उसे मजबूरीवश जाना पड़ रहा था, नीतू पढ़ने में होशियार थी, एक दिन अगर स्कूल नहीं जाती तो कुछ फर्क नहीं पड़ता, वैसे भी वो छुट्टिया नाम मात्र की करती थी, लेकिन आज उसका का इतिहास का टेस्ट था, अगर ये टेस्ट और किसी विषय में होता तो नीतू को कोई फरक नहीं पड़ता टेस्ट छोड़ने में लेकिन ये विषय उसकी हेड मैडम पढ़ाती थी इसलिए स्कूल जाना उसकी मजबूरी थी।
नीतू मन ही मन हेड मैडम को कोसती हुई अपने स्टैंड पर जा पहुंची, स्टैंड पर पहुंचते ही नीतू का मूड फिर से सड़ गया, स्टैंड बिलकुल खाली पड़ा था, उसके साथ इस स्टैंड से ४ बच्चे और उसके स्कूल जाते थे लेकिन आज स्टैंड पर कोई नज़र नहीं आरहा था, नीतू ने अपनी गोरी गोरी कलाईयों पर बंधी ब्लैक स्ट्राप वाली घडी में टाइम देखा सात बीस हो रहे थे, बस आने में अभी दस मिनट बचे थे , नीतू बस स्टैंड के शेड के नीचे खड़ी हो कर ठंडी हवा से बचने की नाकाम कोशिश करने लगी, लेकिन यहाँ हवा और ज़यादा ठंडी थी, बस स्टैंड के ऊपर एक छोटा सा शेड तो था लेकिन स्टैंड के पीछे कोई दीवार नहीं थी जिसके कारण पीछे के पार्क में लगे पेड़ो से टकरा कर जो हवा आरही थी वो और ज़ायदा ठंडी और तेज़ थी, ये पार्क कहने मात्र के लिए ही पार्क था, असल में ये एक पुराना कीकड़ का जंगल था जिसे सरकार ने साफसुथरा करके पार्क बना दिया था, लेकिन कुछ ही समय में ये पहले से और ज़ायदा बदहाल हो गया और अब ये जुवारियों और शराबियों का अड्डा बन गया, गांव के सारे जुवारी और शराबी दिन भर यही पड़े रहते थे।
नीतू को पालम का ये इलाका बिलकुल पसंद नहीं था, उसने बहुत बार अपने पापा को बोला था की पालम में घर लेने से अच्छा था की वो द्वारका की किसी सोसाइटी में फ्लैट ले ले लेकिन क्या कर सकती थी, उसके पापा सीधे साधे आदमी थे, आर्मी में कप्तान थे, पहले तो पोस्टिंग पर परिवार को साथ ले ले कर जाते थे लेकिन फिर जब बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ने लगा तो उन्होंने दिल्ली में अपना मकान लेने का ठान लिया, आर्मी हेड ऑफिस के नज़दीक यही एरिया उनको ठीक लगा और बाकि की पट्टी प्रॉपर्टी डीलर ने पढ़ा का उनको यहाँ एक मकान औने पौने दाम पर दिला दिया। वैसे तो इलाका ठीक था, यहाँ और भी बहुत सी पहाड़ी फॅमिली रहती थी लेकिन आस पास के गंवार और उनकी हेकड़ी वाला माहौल को देख कर नीतू को कुढ़न सी होती थी।
यहाँ आने से पहले नीतू का परिवार आर्मी एरिया में रहता था, वहा सारे परिवार साफ़ सुथरे और तरीके से रहते थे लेकिन यहाँ के ढंग ही अलग थे, खैर वो बेचारी कर ही क्या सकती थी, अभी आठवीं की स्टूडेंट थी और अभी सारा धयान पढाई में था।
नीतू को स्टैंड पर खड़े खड़े दस मिनट हो चुके थे लेकिन बस का अभी तक कुछ अता पता नहीं था और ना ही किसी दूसरे स्टूडेंट्स का, नीतू बार बार उम्मीद भरी निगाहो से बस के आने वाले रस्ते की ओर देखती और फिर वापस मायूस हो कर स्टैंड के खम्भे से टेक लगा कर खड़ी हो जाती।
नीतू बस का इन्तिज़ार करते हुए अपने खयालो में खोयी हुई की तभी अचानक उसके नथुनों में शराब की गन्दी तीखी बदबू टकराई , ये बदबू पार्क के पीछे से आयी थी, पहले तो वो बुरा सा मुँह बना कर रह गयी लेकिन जब शराब की बदबू तेज़ होनी लगी तो नीतू बदबू का कारण जानने के लिए गर्दन घुमाई, अभी उसकी गर्दन घूमी भी नहीं थी की अचानक एक मज़बूत हाथ उसके मुँह पर आ पड़ा और किसी ढक्कन के जैसे उसके मुँह पर चिपक गया, नीतू के गले से एक घुटी हुई चीख निकली लेकिन उसकी चीख उस मज़बूत हाथ के अंदर ही दम तोड़ गयी, नीतू बचने के लिए हाथ पैर मारने लगी लेकिन उस व्यक्ति की मज़बूत चुंगल से नहीं निकल पायी।
नीतू को हाथ पैर चलता देख देख कर शराबी ने दूसरे हाथ से अपना कम्बल खींच कर नीतू के शरीर को पूरा ढक लिया, नीतू दर से काँप गयी लेकिन उसके तेज़ दिमाग ने अंदाज़ा लगा लिया था की अगर वो शराबी उसको इसी तरह कम्बल में लपेट कर जंगलनुमा पार्क में ले गया तो फिर उसका बचना मुश्किल है।
नीतू की उम्र कम ज़रूर थी लेकिन उसके शरीर में पहाड़ी खून था, उसके परिवार को सदा मेहनत करने की आदत ने उसके शरीर को मज़बूत बना रखा था, नीतू ने अपने शरीर की पूरी ताकत लगा कर कर अपने हाथो से शराबी के उस हाथ को पकड़ लिया जिस से उसने उसके मुँह को दबा रखा था, उसने अपने दोनों हाथो की मेहनत और भरपूर शक्ति लगा कर उसके हाथ की पहली ऊँगली को पकड़ा और और पूरी ताकत से उसे पीछे की ओर खींच दिया, शराबी दर्द से बिलबिलाया और उसकी नीतू के मुँह पर पकड़ ढीली हुई, मुँह पर जैसे ही हाथ ढीला हुआ तो नीतू ने अपना मुँह खोल कर शराबी के हाथ को मुँह में भर कर अपने मज़बूत नुकीले दांतो से चबा डाला, शराबी दर्द से चिल्लाया और और बस उसी पल में नीतू शराबी की चुंगुल से मछली की तरह फिसल कर ज़मीन पर गिर पड़ी।
शराबी की ऐसे विरोध की उम्मीद नहीं थी इसलिए वो हड़बड़ा गया और फिर झुक कर नीतू को पकड़ने की कोशिश करने लगा इतने में ही किसी ने हल्ला मचाया
- ये क्या हो रहा है ? पीछे हट, इस लड़की से दूर हो।।।।
शराबी अभी नीतू के हमले से ठीक से संभाला भी नहीं था और ऊपर से किसी मर्द की आवाज़ सुन कर बिन कुछ देखे सुने कम्बल संभालता हुआ पार्क की ओर भाग निकला।
नीतू ज़मीन पर पड़ी हाफ रही थी और उसकी आँखों से छलक कर आंसू उसके गोर गाल को भींगा रहे थे,
- तुम ठीक हो गुड़िया ? उस आदमी ने नीतू के पास AA कर पूछा ?
नीतू : हाँ मैं ठीक हूँ कहते हुए सर हिलाया
- क्या हुआ था ? कौन था ये शराबी ?
नीतू : पता नहीं अंकल, मैं यहाँ खड़ी थी तो इसने पीछे से मुँह बंद करके मुझे उठा लिया और जंगल की ओर ले जा रहा था।
- कोई बात नहीं बेटा , तुमको चोट तो नहीं आयी ?
नीतू : नहीं अंकल मैं ठीक हूँ कहते हुए नीतू उठ खड़ी हुई और अपने kapdo पर लगी मिटटी झाड़ने लगी
- तुम किस स्कूल में पढ़ती हो ?
नीतू : जी वर्धवान पुब्लिक स्कूल में
- कोई नहीं आओ मेरे साथ, मैं उधर ही ऑफिस जा रहा हूँ तुमको छोड़ दूंगा
नीतू : नहीं अंकल थैंक यू , मेरी बस आने वाली ही होगी मैं चली जाउंगी ,
- डरो मत बेटा, मैं तुम्हे अपनी गाडी से छोड़ दूंगा स्कूल, और अगर तुमको किसी बात कर डर है तो मैं गाडी की खिड़की खुली रखूँगा, मैं नहीं चाहता की तुम यहाँ अकेली खड़ी रहो, कही कोई दिक्कत आगयी फिर ?
नीतू ने भी मन ही मन डर रही थी, सामने वाले व्यक्ति अपने पहनावे से पढ़ा लिखा और सभ्य मालूम होता था, उम्र कोई पैंतीस साल रही होगी, देखने में अच्छा खासा स्मार्ट आदमी था सामने ही उसकी सेंट्रो कार खड़ी थी, नीतू ने हाँ में सर हिलाया और कार की ओर बढ़ गयी।
सामने वाले व्यक्ति ने नीतू के लिए गाडी का दरवाज़ा खोला और खुद घूम कर ड्राइवर सीट पर आकर बैठ गया, नीतू को गाडी में बैठ कर सकून महसूस हुआ, गाडी अंदर से गर्म थी, उस व्यक्ति ने गाडी में गयेर में डाली और आगे बढ़ी दी,
- अगर तुमको डर लग रहा है तो तुम अपने साइड की विंडो खोल सकती है, बाहर ठण्ड बहुत है इसलिए मैंने बंद कर रखी है साडी विंडोज
नीतू : नहीं अंकल ठीक है
नीतू उस व्यक्ति अंकल तो बुला रही थी लकिन उस व्यक्ति का व्यक्तित्व को देख कर उसे अंकल बुलाने में अजीब सा लग रहा था
थोड़ी दूर चल कर गाडी मेनरोड पर आगयी ,
- तुम्हारा क्या नाम है बेटा ?
नीतू : जी नीतू, नहीं निष्ठां चौहान।
- हां हां हां नीतू या निष्ठा कोई एक फाइनल कर लो
नीतू : नीतू ही ठीक है , निष्ठां चौहान स्कूल में
- हां हां मुझे निष्ठां चौहान नाम ही अच्छा लग रहा है, नाम के अनुसार ही तुम बहादुर लड़की हो, बहुत हिम्मत से तुमने उस शराबी से मुक़ाबला किया।
नीतू : थैंक यू अंकल
- मेरा नाम विनीत कपूर है, और मैं यही जनकपुरी रहता हूँ तुम चाहो तो मुझे विनीत जी बुला सकती हूँ
नीतू : थैंक यू विनीत जी, अपनी मेरी हेल्प की उस शराबी को भगाने में
विनीत : अरे मैं हेल्प करता उस से पहले ही तुमने उसे धूल चटा दी थी
नीतू : फिर भी
विनीत : ओह्ह डोंट मेंशन इट
थोड़ी देर में ही नीतू का स्कूल आगया और विनीत ने स्कूल के गेट पर नीतू को ड्राप कर दिया, नीतू ने विनीत को थैंक यू कहा और दौड़ कर स्कूल के अंदर चली गयी
ये उन दिनों की बात है जब दिल्ली में द्वारका और उसके आस पास का इलाका धीरे धीरे प्रगति कर रहा था, अबसे कुछ साल पहले तक यहाँ खेत और इन खेतो के किनारे कीकर के जंगल हुआ करते थे, लेकिन अब दिल्ली की सरकार ने इन ज़मीनो का अधिग्रहण करके यहाँ एक वेल प्लैनेड सिटी डेवेलोप कर दिया था और इसी क्रम में अब यहाँ नयी इमारतों का निर्माण होना चालू हो चूका था, कुछ बिल्डिंग्स बन भी चुकी थी और इसमें लोगो ने रहना स्टार्ट कर दिया था लेकिन अभी भी जायदातर एरिया खाली था,
इसी द्वारका से सटे पालम गांव की एक सुनसान सड़क पर कंधो पर अपना स्कूल का बस्ता संभाले नीतू तेज़ कदमो से अपने बस स्टैंड की ओर भागी जा रही थी, ठंडी हवा पूरी तेज़ी के साथ उसके कोमल शरीर को भेदने की कोशिश करती तो नीतू भी उतनी ही तेज़ी के साथ स्टैंड की ओर दौड़ने लगती। ठण्ड का आलम ये थे की आज ऑफिस जाने वाले लोगो की भीड़ भी नदारत थी, शायद लोग ठण्ड और बारिश को देखते हुए घर से बाहर ही नहीं निकले थे,
इतनी ठण्ड में स्कूल जाने का मन तो नीतू का भी नहीं था लेकिन उसे मजबूरीवश जाना पड़ रहा था, नीतू पढ़ने में होशियार थी, एक दिन अगर स्कूल नहीं जाती तो कुछ फर्क नहीं पड़ता, वैसे भी वो छुट्टिया नाम मात्र की करती थी, लेकिन आज उसका का इतिहास का टेस्ट था, अगर ये टेस्ट और किसी विषय में होता तो नीतू को कोई फरक नहीं पड़ता टेस्ट छोड़ने में लेकिन ये विषय उसकी हेड मैडम पढ़ाती थी इसलिए स्कूल जाना उसकी मजबूरी थी।
नीतू मन ही मन हेड मैडम को कोसती हुई अपने स्टैंड पर जा पहुंची, स्टैंड पर पहुंचते ही नीतू का मूड फिर से सड़ गया, स्टैंड बिलकुल खाली पड़ा था, उसके साथ इस स्टैंड से ४ बच्चे और उसके स्कूल जाते थे लेकिन आज स्टैंड पर कोई नज़र नहीं आरहा था, नीतू ने अपनी गोरी गोरी कलाईयों पर बंधी ब्लैक स्ट्राप वाली घडी में टाइम देखा सात बीस हो रहे थे, बस आने में अभी दस मिनट बचे थे , नीतू बस स्टैंड के शेड के नीचे खड़ी हो कर ठंडी हवा से बचने की नाकाम कोशिश करने लगी, लेकिन यहाँ हवा और ज़यादा ठंडी थी, बस स्टैंड के ऊपर एक छोटा सा शेड तो था लेकिन स्टैंड के पीछे कोई दीवार नहीं थी जिसके कारण पीछे के पार्क में लगे पेड़ो से टकरा कर जो हवा आरही थी वो और ज़ायदा ठंडी और तेज़ थी, ये पार्क कहने मात्र के लिए ही पार्क था, असल में ये एक पुराना कीकड़ का जंगल था जिसे सरकार ने साफसुथरा करके पार्क बना दिया था, लेकिन कुछ ही समय में ये पहले से और ज़ायदा बदहाल हो गया और अब ये जुवारियों और शराबियों का अड्डा बन गया, गांव के सारे जुवारी और शराबी दिन भर यही पड़े रहते थे।
नीतू को पालम का ये इलाका बिलकुल पसंद नहीं था, उसने बहुत बार अपने पापा को बोला था की पालम में घर लेने से अच्छा था की वो द्वारका की किसी सोसाइटी में फ्लैट ले ले लेकिन क्या कर सकती थी, उसके पापा सीधे साधे आदमी थे, आर्मी में कप्तान थे, पहले तो पोस्टिंग पर परिवार को साथ ले ले कर जाते थे लेकिन फिर जब बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ने लगा तो उन्होंने दिल्ली में अपना मकान लेने का ठान लिया, आर्मी हेड ऑफिस के नज़दीक यही एरिया उनको ठीक लगा और बाकि की पट्टी प्रॉपर्टी डीलर ने पढ़ा का उनको यहाँ एक मकान औने पौने दाम पर दिला दिया। वैसे तो इलाका ठीक था, यहाँ और भी बहुत सी पहाड़ी फॅमिली रहती थी लेकिन आस पास के गंवार और उनकी हेकड़ी वाला माहौल को देख कर नीतू को कुढ़न सी होती थी।
यहाँ आने से पहले नीतू का परिवार आर्मी एरिया में रहता था, वहा सारे परिवार साफ़ सुथरे और तरीके से रहते थे लेकिन यहाँ के ढंग ही अलग थे, खैर वो बेचारी कर ही क्या सकती थी, अभी आठवीं की स्टूडेंट थी और अभी सारा धयान पढाई में था।
नीतू को स्टैंड पर खड़े खड़े दस मिनट हो चुके थे लेकिन बस का अभी तक कुछ अता पता नहीं था और ना ही किसी दूसरे स्टूडेंट्स का, नीतू बार बार उम्मीद भरी निगाहो से बस के आने वाले रस्ते की ओर देखती और फिर वापस मायूस हो कर स्टैंड के खम्भे से टेक लगा कर खड़ी हो जाती।
नीतू बस का इन्तिज़ार करते हुए अपने खयालो में खोयी हुई की तभी अचानक उसके नथुनों में शराब की गन्दी तीखी बदबू टकराई , ये बदबू पार्क के पीछे से आयी थी, पहले तो वो बुरा सा मुँह बना कर रह गयी लेकिन जब शराब की बदबू तेज़ होनी लगी तो नीतू बदबू का कारण जानने के लिए गर्दन घुमाई, अभी उसकी गर्दन घूमी भी नहीं थी की अचानक एक मज़बूत हाथ उसके मुँह पर आ पड़ा और किसी ढक्कन के जैसे उसके मुँह पर चिपक गया, नीतू के गले से एक घुटी हुई चीख निकली लेकिन उसकी चीख उस मज़बूत हाथ के अंदर ही दम तोड़ गयी, नीतू बचने के लिए हाथ पैर मारने लगी लेकिन उस व्यक्ति की मज़बूत चुंगल से नहीं निकल पायी।
नीतू को हाथ पैर चलता देख देख कर शराबी ने दूसरे हाथ से अपना कम्बल खींच कर नीतू के शरीर को पूरा ढक लिया, नीतू दर से काँप गयी लेकिन उसके तेज़ दिमाग ने अंदाज़ा लगा लिया था की अगर वो शराबी उसको इसी तरह कम्बल में लपेट कर जंगलनुमा पार्क में ले गया तो फिर उसका बचना मुश्किल है।
नीतू की उम्र कम ज़रूर थी लेकिन उसके शरीर में पहाड़ी खून था, उसके परिवार को सदा मेहनत करने की आदत ने उसके शरीर को मज़बूत बना रखा था, नीतू ने अपने शरीर की पूरी ताकत लगा कर कर अपने हाथो से शराबी के उस हाथ को पकड़ लिया जिस से उसने उसके मुँह को दबा रखा था, उसने अपने दोनों हाथो की मेहनत और भरपूर शक्ति लगा कर उसके हाथ की पहली ऊँगली को पकड़ा और और पूरी ताकत से उसे पीछे की ओर खींच दिया, शराबी दर्द से बिलबिलाया और उसकी नीतू के मुँह पर पकड़ ढीली हुई, मुँह पर जैसे ही हाथ ढीला हुआ तो नीतू ने अपना मुँह खोल कर शराबी के हाथ को मुँह में भर कर अपने मज़बूत नुकीले दांतो से चबा डाला, शराबी दर्द से चिल्लाया और और बस उसी पल में नीतू शराबी की चुंगुल से मछली की तरह फिसल कर ज़मीन पर गिर पड़ी।
शराबी की ऐसे विरोध की उम्मीद नहीं थी इसलिए वो हड़बड़ा गया और फिर झुक कर नीतू को पकड़ने की कोशिश करने लगा इतने में ही किसी ने हल्ला मचाया
- ये क्या हो रहा है ? पीछे हट, इस लड़की से दूर हो।।।।
शराबी अभी नीतू के हमले से ठीक से संभाला भी नहीं था और ऊपर से किसी मर्द की आवाज़ सुन कर बिन कुछ देखे सुने कम्बल संभालता हुआ पार्क की ओर भाग निकला।
नीतू ज़मीन पर पड़ी हाफ रही थी और उसकी आँखों से छलक कर आंसू उसके गोर गाल को भींगा रहे थे,
- तुम ठीक हो गुड़िया ? उस आदमी ने नीतू के पास AA कर पूछा ?
नीतू : हाँ मैं ठीक हूँ कहते हुए सर हिलाया
- क्या हुआ था ? कौन था ये शराबी ?
नीतू : पता नहीं अंकल, मैं यहाँ खड़ी थी तो इसने पीछे से मुँह बंद करके मुझे उठा लिया और जंगल की ओर ले जा रहा था।
- कोई बात नहीं बेटा , तुमको चोट तो नहीं आयी ?
नीतू : नहीं अंकल मैं ठीक हूँ कहते हुए नीतू उठ खड़ी हुई और अपने kapdo पर लगी मिटटी झाड़ने लगी
- तुम किस स्कूल में पढ़ती हो ?
नीतू : जी वर्धवान पुब्लिक स्कूल में
- कोई नहीं आओ मेरे साथ, मैं उधर ही ऑफिस जा रहा हूँ तुमको छोड़ दूंगा
नीतू : नहीं अंकल थैंक यू , मेरी बस आने वाली ही होगी मैं चली जाउंगी ,
- डरो मत बेटा, मैं तुम्हे अपनी गाडी से छोड़ दूंगा स्कूल, और अगर तुमको किसी बात कर डर है तो मैं गाडी की खिड़की खुली रखूँगा, मैं नहीं चाहता की तुम यहाँ अकेली खड़ी रहो, कही कोई दिक्कत आगयी फिर ?
नीतू ने भी मन ही मन डर रही थी, सामने वाले व्यक्ति अपने पहनावे से पढ़ा लिखा और सभ्य मालूम होता था, उम्र कोई पैंतीस साल रही होगी, देखने में अच्छा खासा स्मार्ट आदमी था सामने ही उसकी सेंट्रो कार खड़ी थी, नीतू ने हाँ में सर हिलाया और कार की ओर बढ़ गयी।
सामने वाले व्यक्ति ने नीतू के लिए गाडी का दरवाज़ा खोला और खुद घूम कर ड्राइवर सीट पर आकर बैठ गया, नीतू को गाडी में बैठ कर सकून महसूस हुआ, गाडी अंदर से गर्म थी, उस व्यक्ति ने गाडी में गयेर में डाली और आगे बढ़ी दी,
- अगर तुमको डर लग रहा है तो तुम अपने साइड की विंडो खोल सकती है, बाहर ठण्ड बहुत है इसलिए मैंने बंद कर रखी है साडी विंडोज
नीतू : नहीं अंकल ठीक है
नीतू उस व्यक्ति अंकल तो बुला रही थी लकिन उस व्यक्ति का व्यक्तित्व को देख कर उसे अंकल बुलाने में अजीब सा लग रहा था
थोड़ी दूर चल कर गाडी मेनरोड पर आगयी ,
- तुम्हारा क्या नाम है बेटा ?
नीतू : जी नीतू, नहीं निष्ठां चौहान।
- हां हां हां नीतू या निष्ठा कोई एक फाइनल कर लो
नीतू : नीतू ही ठीक है , निष्ठां चौहान स्कूल में
- हां हां मुझे निष्ठां चौहान नाम ही अच्छा लग रहा है, नाम के अनुसार ही तुम बहादुर लड़की हो, बहुत हिम्मत से तुमने उस शराबी से मुक़ाबला किया।
नीतू : थैंक यू अंकल
- मेरा नाम विनीत कपूर है, और मैं यही जनकपुरी रहता हूँ तुम चाहो तो मुझे विनीत जी बुला सकती हूँ
नीतू : थैंक यू विनीत जी, अपनी मेरी हेल्प की उस शराबी को भगाने में
विनीत : अरे मैं हेल्प करता उस से पहले ही तुमने उसे धूल चटा दी थी
नीतू : फिर भी
विनीत : ओह्ह डोंट मेंशन इट
थोड़ी देर में ही नीतू का स्कूल आगया और विनीत ने स्कूल के गेट पर नीतू को ड्राप कर दिया, नीतू ने विनीत को थैंक यू कहा और दौड़ कर स्कूल के अंदर चली गयी