- 3,254
- 6,781
- 159
अध्याय - 101
━━━━━━༻♥༺━━━━━━
रूपा के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई और साथ ही उसके होठों पर मुस्कान भी उभर आई। ये देख रूपचंद्र ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और फिर पलंग से नीचे उतर कर दरवाज़े की तरफ बढ़ गया। जैसे ही वो दरवाज़ा खोल कर बाहर गया तो रूपा झट से पलंग पर से उतर कर दरवाज़े के पास पहुंची। दरवाजे को उसने फ़ौरन ही बंद किया और फिर तेज़ी से पलंग पर आ कर पीठ के बल लेट गई। छत के कुंडे पर झूलते पंखे पर निगाहें जमाए वो जाने क्या क्या सोचते हुए मुस्कुराने लगी।
अब आगे....
हवेली पहुंचे तो पता चला पिता जी अपने नए मुंशी के साथ कहीं गए हुए हैं। इधर मां भाभी से पूछने लगीं कि उन्हें खेतों में घूमने पर कैसा लगा? जवाब में भाभी ने बड़ी ही सफाई से झूठ बोल कर जो कुछ उन्हें बताया उसे सुन कर मैं खुद भी मन ही मन चकित रह गया। अगर मां मुझसे पूछतीं तो यकीनन मुझसे जवाब देते ना बनता क्योंकि मैं भाभी को ले कर खेत गया ही नहीं था। ख़ैर मां के साथ साथ बाकी सब भी भाभी का खिला हुआ चेहरा देख कर खुश हो गए थे। मां ने भाभी को अपने कमरे में जा कर आराम करने को कहा तो वो चली गईं। मैं भी उनके पीछे चल पड़ा क्योंकि मुझे भी अपने कमरे में आराम करना था।
दूसरी तरफ आ कर जब मैं भाभी के पीछे पीछे सीढियां चढ़ने लगा तो भाभी ने सहसा पलट कर मुझसे कहा____"आज तुम्हारी वजह से मुझे मां जी से झूठ बोलना पड़ा। इस बात से मुझे बहुत बुरा महसूस हो रहा है।"
"आपको मां से झूठ बोलने की ज़रूरत ही नहीं थी।" मैंने अधीरता से कहा____"आप मां से सब कुछ सच सच बता देतीं। मां को तो वैसे भी एक दिन इस सच्चाई का पता चलना ही है कि मैं एक मामूली से किसान की बेटी से प्रेम करता हूं।"
"वो तो ठीक है लेकिन सच का पता सही वक्त पर चले तभी बेहतर परिणाम निकलते हैं।" भाभी ने कहा____"यही सोच कर मैंने मां जी से इस बारे में कुछ नहीं बताया। ख़ैर छोड़ो, जाओ तुम भी आराम करो अब।"
भाभी कहने के साथ ही वापस सीढियां चढ़ने लगीं। जल्दी ही हम दोनों ऊपर आ कर अपने अपने कमरे की तरफ बढ़ गए। सच कहूं तो आज मैं बड़ा खुश था। सिर्फ इस लिए ही नहीं कि मैंने भाभी को अनुराधा से मिलवाया था बल्कि इस लिए भी कि उन्हें अनुराधा का और मेरा रिश्ता मंज़ूर था और वो इस रिश्ते को अंजाम तक पहुंचाने में मेरा साथ देने को बोल चुकीं थी।
अपने कमरे में आ कर मैंने अपने कपड़े उतारे और फिर लुंगी लपेट कर पलंग पर लेट गया। ऊपर मैंने बनियान पहन रखा था। पलंग पर लेट कर मैं आंखें बंद किए आज घटित हुई बातों के बारे में सोच ही रहा था कि तभी मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मेरे बेहद ही नज़दीक कोई खड़ा है। मैंने फ़ौरन ही अपनी आंखें खोल दी। नज़र पलंग के दाईं तरफ बिल्कुल मेरे चेहरे के क़रीब खड़ी नए मुंशी की बेटी कजरी पर पड़ी। वो मेरे चेहरे को बड़े ही गौर से देखने में लगी हुई थी और फिर जैसे ही उसने मुझे पट्ट से आंखें खोलते देखा तो बुरी तरह हड़बड़ा गई और साथ ही दो क़दम पीछे हट गई। उसके चेहरे पर कुछ पलों के लिए घबराहट के भाव उभरे थे किंतु जल्दी ही उसने खुद को सम्हाल कर अपने होठों पर मुस्कान सजा ली थी।
"ये क्या हरकत है?" मैं क्योंकि उसकी हरकतों और आदतों से आजिज़ आ गया था इस लिए फ़ौरन ही उठ कर थोड़ा सख़्त भाव से बोल पड़ा____"चोरी छुपे मेरे कमरे में आने का क्या मतलब है?"
"ज...जी?? ह...हमारा मतलब है कि ये आप क्या कह रहे हैं कुंवर जी?" कजरी हड़बड़ाते हुए बोली____"हम तो आपको ये कहने के लिए आपके कमरे में आए थे कि खाना खा लीजिए। नीचे सब आपका इंतज़ार कर रहे हैं।"
"उसके लिए तुम मुझे दरवाज़े से ही आवाज़ दे कर उठा सकती थी।" मैंने पहले की तरह ही सख़्त भाव से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"चोरी छुपे इस तरह मेरे बिस्तर के इतने क़रीब आ कर क्यों खड़ी थी तुम?"
"अ...आप सो रहे थे न।" कजरी ने अपनी हालत को सम्हालते हुए कहा____"इस लिए हम सोच में पड़ गए थे कि आपको आवाज़ दे कर उठाएं या ना उठाएं? हमने सुना है कि सोते में अगर आपको कोई उठा देता है तो आप नाराज़ हो जाते हैं।"
मैं अच्छी तरह जानता था कि कजरी बहाने बना रही थी। वो खुद को निर्दोष साबित करने पर लगी हुई थी किंतु उसे सबक सिखाने का ये सही वक्त नहीं था इस लिए मैंने भी ज़्यादा उससे बात करना ठीक नहीं समझा। उसे जाने का बोल कर मैं वापस लेट गया। कजरी के जाने के बाद मैं कुछ देर तक उसके बारे में सोचता रहा और फिर उठ कर अपने कपड़े पहनने लगा। कुछ ही देर में मैं नीचे आ कर सबके साथ खाना खाने लगा। कजरी की वजह से मेरा मूड थोड़ा ख़राब हो गया था। मैं अच्छी तरह समझ गया था कि वो मुझसे क्या चाहती थी किंतु उसे इस बात का इल्म ही नहीं था कि वो किस आग से खेलने की तमन्ना कर बैठी थी।
गुज़रे हुए वक्त में मैं यकीनन एक बुरा इंसान था और लोग मुझे अय्याशियों के लिए जानते थे लेकिन आज के वक्त में मैं एक अच्छा इंसान बनने की राह पर था। मैंने अनुराधा को ही नहीं बल्कि अपनी भाभी को भी वचन दिया था कि अब से मैं एक अच्छा इंसान ही बनूंगा। कजरी की हरकतें उसके निम्न दर्जे के चरित्र का प्रमाण दे रहीं थी और ये मेरे लिए सहन करना ज़रा भी मुमकिन नहीं था। मैंने मन ही मन फ़ैसला किया कि उसके बारे में जल्द से जल्द कुछ करना ही होगा। बहरहाल खाना खाने के बाद मैंने अपने कमरे में लगभग एक घंटा आराम किया और फिर मोटर साइकिल ले कर खेतों की तरफ चला गया।
शाम तक मैं खेतों पर ही रहा। भुवन से मैं अक्सर राय परामर्श लेता रहता था और साथ ही पुराने मजदूरों से भी जिसके चलते मैं काफी कुछ सीख गया था और काफी कुछ समझने भी लगा था। इतने समय में मुझे ये समझ आया कि खेती बाड़ी के अलावा भी ज़मीनों पर कोई ऐसी चीज़ उगाई जाए जिससे कम समय में फसल तैयार हो और उसके द्वारा अच्छी खासी आय भी प्राप्त हो सके। ऐसा करने से मजदूरों को भी खाली नहीं बैठना पड़ेगा, क्योंकि खाली बैठने से उनका भी नुकसान होता था। आख़िर उन्हें तो उतनी ही आय प्राप्त होती थी जितने दिन वो मेहनत करते थे। यही सोच कर मैंने ये सब करने का सोचा था। भुवन के साथ साथ कुछ मजदूर लोग भी मेरी इस सोच से सहमत थे और खुश भी हुए थे। अतः मैंने ऐसा ही करने का सोच लिया और अगले ही दिन से कुछ मजदूरों को हमारी कुछ खाली पड़ी ज़मीन को अच्छे से तैयार करने का हुकुम दे दिया। मजदूर लोग दोगुने जोश के साथ काम करने के लिए तैयार हो गए थे। शाम को मैं वापस हवेली आ गया। आज काफी थक गया था अतः खाना खा कर और फिर अपने कमरे में जा कर पलंग पर लेट गया।
✮✮✮✮
उस वक्त रात के लगभग बारह बज रहे थे। आज आसमान साफ तो था किन्तु क्षितिज पर से चांद नदारद था। अनगिनत तारे ही अपनी टिमटिमाहट से धरती को रोशन करने की नाकाम कोशिशों में लगे थे। पूरा गांव सन्नाटे के आधीन था। घरों के अंदर लोग गहरी नींद में सोए हुए थे। बिजली हमेशा की तरह गुल थी इस लिए घरों की किसी भी खिड़की में रोशनी नज़र नहीं आ रही थी। पूरे गांव में गहन तो नहीं किंतु नीम अंधेरा ज़रूर विद्यमान था।
इसी नीम अंधेरे में सहसा चंद्रकांत के घर का दरवाज़ा खुला। अंदर छाए गहन अंधेरे से निकल कर बाहर नीम अंधेरे में किसी साए की तरह जो व्यक्ति नज़र आया वो चंद्रकांत था। नीम अंधेरे में उसके जिस्म पर मौजूद सफ़ेद कमीज धुंधली सी नज़र आई, अलबत्ता नीचे शायद उसने लुंगी लपेट रखी थी।
दरवाज़े से बाहर आ कर वो एकदम से ठिठक कर इधर उधर देखने लगा और फिर घर के बाएं तरफ चल पड़ा। कुछ ही पलों में वो उस जगह पहुंचा जहां पर कुछ दिन पहले उसने अपने बेटे रघुवीर की खून से लथपथ लाश पड़ी देखी थी। घर के तीन तरफ लकड़ी की बल्लियों द्वारा उसने क़रीब चार फुट ऊंची बाउंड्री बनवा रखी थी। बाएं तरफ उसी लकड़ी की बाउंड्री के क़रीब पहुंच कर वो रुक गया। कुछ पलों तक उसने नीम अंधेरे में इधर उधर देखा और फिर दोनों हाथों से अपनी लुंगी को जांघों तक उठा कर वो उसी जगह पर बैठता चला गया। कुछ ही पलों में ख़ामोश वातावरण में उसके पेशाब करने की मध्यम आवाज़ गूंजने लगी।
चंद्रकांत पेशाब करने के बाद उठा और अपनी लुंगी को जांघों से नीचे गिरा कर अपनी नंगी टांगों को ढंक लिया। चंद्रकांत को इस जगह पर आते ही अपने बेटे की याद आ जाती थी जिसके चलते वो बेहद दुखी हो जाया करता था। इस वक्त भी उसे अपने बेटे की याद आई तो वो दुखी हो गया। कुछ पलों तक दुखी अवस्था में जाने क्या सोचते हुए वो खड़ा रहा और फिर गहरी सांस ले कर वापस घर के दरवाज़े की तरफ भारी क़दमों से चल पड़ा।
अभी वो कुछ ही क़दम चला था कि सहसा गहन सन्नाटे में उसे किसी आहट का आभास हुआ जिसके चलते वो एकदम से अपनी जगह पर रुक गया। उसकी पहले से ही बढ़ी हुई धड़कनें अंजाने भय की वजह से एकदम से रुक गईं सी प्रतीत हुईं। हालाकि जल्दी ही उसने खुद को सम्हाल कर होश में ले आया। उसके कान किसी हिरण के जैसे किसी भी आहट को सुनने के लिए मानों खड़े हो गए थे। उसने महसूस किया कि अगले कुछ ही पलों में उसकी धड़कनें किसी हथौड़े की तरह उसकी पसलियों पर चोंट करने लगीं हैं।
जब कुछ देर तक उसे किसी आहट का आभास न हुआ तो वो इसे अपना वहम समझ कर हौले से आगे बढ़ चला। हालाकि उसके दोनों कान अब भी किसी भी प्रकार की आहट को सुनने के लिए मानों पूरी तरह तैयार थे। अभी वो अपने घर के दरवाज़े के बस थोड़ा ही क़रीब पहुंचा था कि सहसा फिर से आहट हुई और इस बार उसने आहट को साफ सुना। आहट उसके पीछे से आई थी। पलक झपकते ही इस एहसास के चलते उसके तिरपन कांप गए कि इस गहन सन्नाटे और अंधेरे में उसके क़रीब ही कहीं कोई मौजूद है।
बिजली की तरह ज़हन में उसे अपने बेटे के हत्यारे का ख़याल कौंध गया जिसके चलते उसके पूरे जिस्म में मौत की सिहरन सी दौड़ गई। कुछ पलों तक तो उसे समझ में ही न आया कि क्या करे किंतु तभी इस एहसास ने उसके जबड़े सख़्त कर दिए कि उसके बेटे का हत्यारा उसके आस पास ही मौजूद है। ये उसके लिए बहुत ही अच्छा मौका है अपने बेटे के हत्यारे से बदला लेने का। वो भी उस हरामजादे को वैसी ही मौत देगा जैसे उसने उसके बेटे को दी थी, बल्कि उससे भी ज़्यादा बद्तर मौत देगा वो उसे।
अगले कुछ ही पलों में बदले की भावना के चलते चंद्रकांत के अंदर आक्रोश, गुस्सा और नफ़रत ने अपना प्रबल रूप धारण कर लिया। अगले ही पल वो एक झटके से पलटा और उस दिशा की तरफ मुट्ठियां भींचे देखने लगा जिस तरफ से उसे आहट सुनाई दी थी। उससे कुछ ही क़दम की दूरी पर लकड़ी की बाउंड्री थी जो उसे धुंधली सी नज़र आ रही थी। चंद्रकांत बेख़ौफ हो कर तेज़ी से आगे बढ़ चला। बाउंड्री के क़रीब पहुंच कर वो रुका और आंखें फाड़ फाड़ कर देखने लगा किंतु एक तो उमर का तकाज़ा दूसरे नीम अंधेरा जिसके चलते उसे कोई नज़र न आया। चंद्रकांत सख़्त भाव लिए और मुट्ठियां भींचे चारो तरफ देखने लगा। सहसा तभी एक जगह पर उसकी निगाह ठहर गई। बाउंड्री के बीच लकड़ी के दरवाज़े के बगल में उसे कोई आकृति खड़ी हुई नज़र आई। उसने आंखें सिकोड़ कर उस आकृति को पहचानने की कोशिश की किंतु पहचान न सका।
चंद्रकांत बेख़ौफ हो कर एक झटके में उस आकृति की तरफ बढ़ चला। बदले की प्रबल भावना में डूबे चंद्रकांत को ये तक ख़याल नहीं रहा था कि इस वक्त वो निहत्था है और अगर सच में यहां पर उसके बेटे का हत्यारा मौजूद है तो वो निहत्था कैसे उसका सामना कर सकेगा? ख़ैर जल्दी ही वो उस आकृति के क़रीब पहुंच गया। क़रीब पहुंचने पर उसे नीम अंधेरे में साफ दिखा कि वो आकृति असल में किसी इंसानी साए की थी।
एक ऐसे साए की जिसके जिस्म का कोई भी अंग नज़र नहीं आ रहा था बल्कि उसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था। सिर से ले कर पांव तक वो सफ़ेद लिबास में खुद को छुपाए हुए था। उसके दोनों हाथ चंद्रकांत को नज़र ना आए। शायद उसने उन्हें अपने पीछे छुपा रखा था। उस सफ़ेद लिबास में छुपे साए को देख चंद्रकांत पलक झपकते ही बुत बन गया। समूचे जिस्म में डर की वजह से मौत की सिहरन दौड़ गई।
सहसा उसके ज़हन में एक ज़ोरदार धमाका सा हुआ। बिजली की तरह उसके ज़हन में पंचायत के दिन दादा ठाकुर द्वारा पूछी गई बात गूंज उठी। दादा ठाकुर ने उससे ही नहीं बल्कि गौरी शंकर से भी पूछा था कि क्या वो किसी सफ़ेदपोश को जानते हैं अथवा क्या उनका संबंध सफ़ेदपोश से है? उस दिन दादा ठाकुर के इन सवालों का जवाब ना गौरी शंकर के पास था और ना ही खुद उसके पास। दोनों ने सफ़ेदपोश के बारे में अपनी अनभिज्ञता ही ज़ाहिर की थी।
'तो क्या यही है वो सफ़ेदपोश?' गहन सोचों में डूब गए चंद्रकांत के ज़हन में ये सवाल उभरा____'क्या यही वो सफ़ेदपोश है जिसने दादा ठाकुर के अनुसार उनके बेटे वैभव को कई बार जान से मारने की कोशिश की थी?'
चंद्रकांत आश्चर्यजनक रूप से ख़ामोश हो गया था और जाने क्या क्या सोचे जा रहा था। उसे ये तक ख़याल नहीं रह गया था कि कुछ देर पहले वो किस तरह की भावना में डूबा हुआ उस आकृति की तरफ बढ़ा था। अचानक चंद्रकांत के मन में ख़याल उभरा कि क्या इस सफ़ेदपोश ने मेरे बेटे की हत्या की होगी? अगर हां तो क्यों? अगले ही पल उसने सोचा____'किन्तु इससे तो मेरी अथवा मेरे बेटे की कोई दुश्मनी ही नहीं थी। फिर भला ये क्यों मेरे बेटे की हत्या करेगा? बल्कि इसकी दुश्मनी तो दादा ठाकुर के बेटे वैभव से है। यकीनन वैभव ने इसकी भी बहन बेटी अथवा बीवी के साथ बलात्कार कर के इसके ऊपर अत्याचार किया होगा। तभी तो इसने कई बार वैभव को जान से मार देना चाहा था। वो तो उस हरामजादे की किस्मत ही अच्छी थी जो वो हर बार इससे बच गया था मगर कब तक बचेगा आख़िर?'
"लगता है मुझे अपने इतने क़रीब देख कर तू किसी और ही दुनिया में पहुंच गया है।" तभी सहसा सन्नाटे में सामने मौजूद सफ़ेदपोश की अजीब सी किन्तु धीमी आवाज़ गूंजी जिससे चंद्रकांत पलक झपकते ही सोचों के भंवर से बाहर आ गया। उसने हड़बड़ा कर सफ़ेदपोश की तरफ देखा।
"क...क...कौन हो तुम???" चंद्रकांत उसको पहचानते हुए भी मारे हड़बड़ाहट के पूछ बैठा____"और यहां किस लिए आए हो?"
"इस गांव की बड़ी बड़ी हस्तियां मुझे सफ़ेदपोश के नाम से जानती हैं।" सफ़ेदपोश ने अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"और हां तू भी जानता है मुझे। मेरे सामने अंजान बनने की तेरी ये कोशिश बेकार है चंद्रकांत। रही बात मेरे यहां आने की तो ये समझ ले कि मौत नाम की बला कभी भी कहीं भी आ जा सकती है।"
सफ़ेदपोश की आवाज़ में और उसकी बातों में जाने ऐसा क्या था कि सुन कर चंद्रकांत के समूचे जिस्म में सर्द लहर दौड़ गई। उसने अपनी टांगें कांपती हुई महसूस की। चेहरा पलक झपकते ही पसीना छोड़ने लगा। उसके हलक से कोई आवाज़ न निकल सकी। सूख गए गले को उसने ज़बरदस्ती तर करने की कोशिश की और फिर पलक झपकते ही ख़राब हो गई अपनी हालत को काबू करने की कोशिश में लग गया।
"ल...लेकिन यहां क्यों आए हो तुम?" फिर उसने बड़ी मुश्किल से सफ़ेदपोश से पूछा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि सफ़ेदपोश उसके घर के बाहर क्यों आ गया था और अगर उससे ही मिलने आया था तो आख़िर वो क्या चाहता था उससे?
"लगता है अपने बेटे की मौत का ग़म बड़ा जल्दी भूल गया है तू।" सफ़ेदपोश ने ठंडे स्वर में कहा____"क्या तेरी रगों में दौड़ता हुआ लहू सच में पानी हो गया है चंद्रकांत?"
"न...नहीं तो।" चंद्रकांत अजीब भाव से बोल पड़ा____"कुछ भी नहीं भूला हूं मैं। अपने बेटे के हत्यारे को पाताल से भी खोज निकालूंगा और अपने बेटे की हत्या करने की उसे अपने हाथों से सज़ा दूंगा।"
"बहुत खूब।" सफ़ेदपोश अपनी अजीब सी आवाज़ में कह उठा____"बदला लेने के लिए सीने में कुछ ऐसी ही आग होनी चाहिए। वैसे क्या लगता है तुझे, तू या कोई भी तेरे बेटे के हत्यारे का पता लगा सकेगा?"
"क...क्या मतलब??" चंद्रकांत बुरी तरह चकरा गया, फिर जल्दी ही सम्हल कर बोला____"ऐसा क्यों कह रहे हो तुम?"
"वो इस लिए क्योंकि मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तू क्या किसी के बाप के फ़रिश्ते भी उस शख़्स का पता नहीं लगा सकते जिसने तेरे बेटे की हत्या की है।" सफ़ेदपोश ने बड़े अजीब भाव से किंतु अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"लेकिन मैं....मैं अच्छी तरह जानता हूं उसे। इसी वक्त तुझे बता सकता हूं कि तेरे बेटे का हत्यारा कौन है?"
"क....क्या????" चंद्रकांत बुरी तरह उछल पड़ा____"म...मेरा मतलब है कि क्या तुम सच कह रहे हो? क्या सच में तुम इसी वक्त मेरे बेटे के हत्यारे के बारे में बता सकते हो?"
"बेशक।" सफ़ेदपोश ने कहा____"मैं सब कुछ बता सकता हूं क्योंकि मैं फरिश्तों से भी ऊपर की चीज़ हूं। जो कोई नहीं कर सकता वो मैं कर सकता हूं।"
चंद्रकांत किसी बेजान पुतले की तरह आश्चर्य से आंखें फाड़े सफ़ेदपोश की धुंधली सी आकृति को देखता रह गया। सहसा उसके ज़हन में विस्फोट सा हुआ तो जैसे उसे होश आया। उसने अपने ज़हन को झटक कर सफ़ेदपोश की तरफ देखा। लकड़ी की बाउंड्री के उस पार वो सफ़ेद किंतु धुंधली सी आकृति के रूप ने नज़र आ रहा था। चंद्रकांत को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो सचमुच फ़रिश्तों से ऊपर की ही चीज़ है।
"म...मुझे बताओ।" चंद्रकांत एकदम से व्याकुल और पगलाए हुए अंदाज़ में बोल पड़ा____"मुझे जल्दी से बताओ कि वो हत्यारा कौन है जिसने मेरे इकलौते बेटे की हत्या कर के मेरे वंश का नाश कर दिया है? भगवान के लिए जल्दी से उस हत्यारे का नाम बता दो मुझे। मैं तुम्हारे पांव पड़ता हूं। बस एक बार उसका नाम बता दो, बदले में तुम मुझसे जो मांगोगे मैं बिना सोचे समझे तुम्हें दे दूंगा।"
"बदले में क्या कर सकता है तू मेरे लिए?" सामने खड़े सफ़ेदपोश ने कुछ पलों तक सोचने के बाद सर्द लहजे में उससे पूछा।
"जो भी तुम कहोगे...मैं करूंगा।" चंद्रकांत ने झट से कहा____"बस तुम मुझे मेरे बेटे के हत्यारे का नाम बता दो।"
"जिस तरह तू अपने बेटे के हत्यारे का नाम जानने के लिए मरा जा रहा है, सोच रहा हूं पहले तुझे उस हत्यारे का नाम ही बता दूं।" सफ़ेदपोश ने अजीब भाव से कहा____"लेकिन ये भी सोचता हूं कि अगर मैंने तुझे उसका नाम बता दिया और बाद में तू मेरे लिए कुछ भी करने से मुकर गया तो...??"
"नहीं नहीं, ऐसा कभी नहीं होगा।" चंद्रकांत ने हड़बड़ाते हुए झट से कहा____"मैं अपने मरे हुए बेटे की क़सम खा कर कहता हूं कि बाद में मैं किसी भी बात से नहीं मुकरूंगा। बल्कि वही करूंगा जो करने को तुम कहोगे।"
"ऐसा पहली बार ही हो रहा है कि मैं किसी से अपना काम करवाने से पहले सामने वाले पर भरोसा कर के खुद उसका भला करने जा रहा हूं।" सफ़ेदपोश ने अपनी अजीब आवाज़ में कहा____"मैं अभी इसी वक्त तुझे तेरे बेटे के हत्यारे का नाम बताए देता हूं किंतु एक बात तू अच्छी तरह समझ ले। अगर बाद में तू अपने वादे से मुकर कर मेरा कोई काम नहीं किया तो ये तेरे और तेरे परिवार के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं होगा।"
"म...मेरा यकीन करो।" चंद्रकांत ने पूरी दृढ़ता से कहा____"मैं सच में वही करूंगा जो तुम कहोगे। अपने मरे हुए बेटे की क़सम खा चुका हूं मैं। क्या इतने पर भी तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है?"
"यकीन हो गया है तुझ पर तभी तो तुझसे अपना काम करवाने से पहले मैंने तेरा भला करने का सोच लिया है।" सफ़ेदपोश ने कहा____"लेकिन तुझे आगाह इस लिए किया है कि अगर तू बाद में अपने वादे से मुकर गया तो फिर अपने और अपने परिवार के बुरे अंजाम का ज़िम्मेदार तू ख़ुद ही होगा।"
कहने के साथ ही सफ़ेदपोश ने चंद्रकांत को अपना कान उसके क़रीब लाने को कहा तो चंद्रकांत पहले तो चौंका, फिर अपनी बढ़ी हुई धड़कनों के साथ आगे बढ़ा। उसने अपना एक कान सफ़ेदपोश की तरफ बढ़ाया तो सफ़ेदपोश आगे बढ़ कर उसके कान में काफी देर तक जाने क्या कहता रहा।
"उम्मीद है कि अब तू उस हत्यारे से अपने बेटे की हत्या का बदला ले कर अपने दिल की आग को ठंडा कर लेगा।" सफ़ेदपोश ने उसके कान से सफ़ेद नक़ाब में छुपा अपना मुंह हटा कर कहा____"और हां, तेरे पास समय बिल्कुल ही कम है। मैं कल रात किसी भी वक्त यहां पर आ सकता हूं और फिर तुझे अपना काम करने का हुकुम दे सकता हूं। अपना वादा तोड़ कर मेरा काम न करने की सूरत में क्या होगा इस बात को भूलना मत।"
कहने के साथ ही सफ़ेदपोश ने इधर उधर अपनी निगाह घुमाई और फिर पलट कर हवा के झोंके की तरह कुछ ही पलों में अंधेरे में ग़ायब हो गया। उसके ग़ायब होते ही चंद्रकांत को जैसे होश आया। अगले कुछ ही पलों में उसके अंदर एक ऐसी आग सुलग उठी जिससे उसके जबड़े कस गए और मुट्ठियां भिंच गईं। दिलो दिमाग़ में मचल उठी आंधी को लिए वो पलटा और घर के दरवाज़े की तरफ बढ़ता चला गया।
✮✮✮✮
सफ़ेदपोश अंधेरे में भी तेज़ी से एक तरफ को बढ़ता चला जा रहा था। कुछ ही दूरी पर आसमान से थोड़ा नीचे धुंधली सी आकृति के रूप में उसे पेड़ पौधे दिखने लगे थे। उसकी रफ़्तार और भी तेज़ हो गई। ज़ाहिर है वो अपनी मंजिल पर पहुंचने में देर नहीं करना चाहता था। ज़मीन पर तेज़ तेज़ पड़ते उसके क़दमों से ख़ामोश वातावरण में अजीब सी आवाज़ें पैदा हो रहीं थी। कुछ ही देर में उसे धुंधले नज़र आने वाले पेड़ पौधे थोड़ा स्पष्ट से नज़र आने लगे। तेज़ चलने की वजह से उसकी सांसें भारी हो गईं थी।
अभी वो उन पेड़ पौधों से थोड़ा इधर ही था कि तभी वो चौंका और साथ ही ठिठक भी गया। अपनी एड़ी पर फिरकिनी की मानिंद घूम कर उसने एक तरफ निगाह डाली तो नीम अंधेरे में उसे हिलते डुलते कुछ साए नज़र आए। ये देख वो फ़ौरन ही वापस घूमा और लगभग दौड़ते हुए उन पेड़ पौधों की तरफ भाग चला। उसने भागते हुए ही पलट कर देखा कि हिलते डुलते नज़र आने वाले वो साए भी बड़ी तेज़ी से उसकी तरफ दौड़ लगा चुके थे। सफ़ेदपोश जल्द ही पेड़ पौधों के पास पहुंच गया। यहां कई सारे पेड़ पौधे थे। ऐसा लगता था जैसे ये कोई बगीचा था। सफ़ेदपोश तेज़ी से ढेर सारे पेड़ पौधों के बीच घुसता चला गया। यहां की ज़मीन पर शायद पेड़ों के सूखे पत्ते मौजूद थे जिसकी वजह से सफ़ेदपोश द्वारा तेज़ तेज़ चलने से फर्र फर्र की आवाज़ें पैदा होने लगीं थी जो फिज़ा में छाए सन्नाटे में अजीब सा भय पैदा करने लगीं थी।
सफ़ेदपोश बगीचे के अंदर अभी कुछ ही दूर चला था कि तभी एक तरफ से कोई ज़ोर से चिल्लाया। कदाचित सूखे पत्तों से पैदा होने वाली आवाज़ों को सुन कर ही कोई चिल्लाया था और बोला था____"कौन है उधर?"
इस आवाज़ को सुन कर सफ़ेदपोश बुरी तरह हड़बड़ा गया। यकीनन वो घबरा भी गया होगा किंतु वो रुका नहीं बल्कि और भी तेज़ी से आगे की तरफ भागने लगा। तभी फिर से कोई ज़ोर से चिल्लाते हुए पुकारा। सफ़ेदपोश ने महसूस किया कि पुकारने वाला उसके पीछे ही भागता हुआ आने लगा है तो वो झटके से रुक गया। अपने एक हाथ को उसने सफ़ेद लबादे में कहीं घुसाया। कुछ ही पलों में उसका वो हाथ उसके लबादे से बाहर आ गया। अपनी जगह पर खड़े खड़े ही वो आहिस्ता से पलटा और अपने उस हाथ को हवा में उठा दिया। अगले ही पल ख़ामोश वातावरण में धांय की बड़ी तेज़ आवाज़ गूंज उठी। ऐसा लगा जैसे सन्नाटे में कोई धमाका हो गया हो। सफ़ेदपोश के हाथ में शायद रिवॉल्वर था जिससे उसने गोली चलाई थी। गोली चलते ही किसी की ज़ोरदार चीख़ फिज़ा में गूंज उठी और साथ ही सूखे पत्तों पर किसी के भरभरा कर गिरने की आवाज़ भी हुई।
सफ़ेदपोश ने झट से रिवॉल्वर को अपने सफ़ेद लबादे में ठूंसा और फिर वो वापस पलटा ही था कि तभी उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कई सारे लोग बगीचे में दाखिल हो गए हैं क्योंकि ज़मीन पर पड़े सूखे पत्तों पर ढेर सारी आवाज़ें आने लगीं थी। ये महसूस करते ही सफ़ेदपोश तेज़ी से आगे की तरफ भागता चला गया और फिर अचानक ही अंधेरे में इस तरह ग़ायब हो गया जैसे उसका यहां कहीं कोई वजूद ही न हो।
━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
सुबह के सात बजे थे लेकिन ठण्ड और आसमान में घिरे काले बादलों ने अभी तक अँधेरा फैलाया हुआ था, एक तो दिल्ली में ठण्ड कुछ ज़ायदा ही पड़ती है और जनवरी के महीने में तो लगता है सूरज दिल्ली का रास्ता ही भूल जाता है, लेकिन आज तो आसमान में लगे बदलो और और तेज़ चलती हवाओं ने कहर ही ढाह रखा था, सड़क किनारे खम्भों पर लगी इक्का दुक्का टियूब लाइट अंधेरे से लड़ने की नाकाम कोशिश कर रही थी,
ये उन दिनों की बात है जब दिल्ली में द्वारका और उसके आस पास का इलाका धीरे धीरे प्रगति कर रहा था, अबसे कुछ साल पहले तक यहाँ खेत और इन खेतो के किनारे कीकर के जंगल हुआ करते थे, लेकिन अब दिल्ली की सरकार ने इन ज़मीनो का अधिग्रहण करके यहाँ एक वेल प्लैनेड सिटी डेवेलोप कर दिया था और इसी क्रम में अब यहाँ नयी इमारतों का निर्माण होना चालू हो चूका था, कुछ बिल्डिंग्स बन भी चुकी थी और इसमें लोगो ने रहना स्टार्ट कर दिया था लेकिन अभी भी जायदातर एरिया खाली था,
इसी द्वारका से सटे पालम गांव की एक सुनसान सड़क पर कंधो पर अपना स्कूल का बस्ता संभाले नीतू तेज़ कदमो से अपने बस स्टैंड की ओर भागी जा रही थी, ठंडी हवा पूरी तेज़ी के साथ उसके कोमल शरीर को भेदने की कोशिश करती तो नीतू भी उतनी ही तेज़ी के साथ स्टैंड की ओर दौड़ने लगती। ठण्ड का आलम ये थे की आज ऑफिस जाने वाले लोगो की भीड़ भी नदारत थी, शायद लोग ठण्ड और बारिश को देखते हुए घर से बाहर ही नहीं निकले थे,
इतनी ठण्ड में स्कूल जाने का मन तो नीतू का भी नहीं था लेकिन उसे मजबूरीवश जाना पड़ रहा था, नीतू पढ़ने में होशियार थी, एक दिन अगर स्कूल नहीं जाती तो कुछ फर्क नहीं पड़ता, वैसे भी वो छुट्टिया नाम मात्र की करती थी, लेकिन आज उसका का इतिहास का टेस्ट था, अगर ये टेस्ट और किसी विषय में होता तो नीतू को कोई फरक नहीं पड़ता टेस्ट छोड़ने में लेकिन ये विषय उसकी हेड मैडम पढ़ाती थी इसलिए स्कूल जाना उसकी मजबूरी थी।
नीतू मन ही मन हेड मैडम को कोसती हुई अपने स्टैंड पर जा पहुंची, स्टैंड पर पहुंचते ही नीतू का मूड फिर से सड़ गया, स्टैंड बिलकुल खाली पड़ा था, उसके साथ इस स्टैंड से ४ बच्चे और उसके स्कूल जाते थे लेकिन आज स्टैंड पर कोई नज़र नहीं आरहा था, नीतू ने अपनी गोरी गोरी कलाईयों पर बंधी ब्लैक स्ट्राप वाली घडी में टाइम देखा सात बीस हो रहे थे, बस आने में अभी दस मिनट बचे थे , नीतू बस स्टैंड के शेड के नीचे खड़ी हो कर ठंडी हवा से बचने की नाकाम कोशिश करने लगी, लेकिन यहाँ हवा और ज़यादा ठंडी थी, बस स्टैंड के ऊपर एक छोटा सा शेड तो था लेकिन स्टैंड के पीछे कोई दीवार नहीं थी जिसके कारण पीछे के पार्क में लगे पेड़ो से टकरा कर जो हवा आरही थी वो और ज़ायदा ठंडी और तेज़ थी, ये पार्क कहने मात्र के लिए ही पार्क था, असल में ये एक पुराना कीकड़ का जंगल था जिसे सरकार ने साफसुथरा करके पार्क बना दिया था, लेकिन कुछ ही समय में ये पहले से और ज़ायदा बदहाल हो गया और अब ये जुवारियों और शराबियों का अड्डा बन गया, गांव के सारे जुवारी और शराबी दिन भर यही पड़े रहते थे।
नीतू को पालम का ये इलाका बिलकुल पसंद नहीं था, उसने बहुत बार अपने पापा को बोला था की पालम में घर लेने से अच्छा था की वो द्वारका की किसी सोसाइटी में फ्लैट ले ले लेकिन क्या कर सकती थी, उसके पापा सीधे साधे आदमी थे, आर्मी में कप्तान थे, पहले तो पोस्टिंग पर परिवार को साथ ले ले कर जाते थे लेकिन फिर जब बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ने लगा तो उन्होंने दिल्ली में अपना मकान लेने का ठान लिया, आर्मी हेड ऑफिस के नज़दीक यही एरिया उनको ठीक लगा और बाकि की पट्टी प्रॉपर्टी डीलर ने पढ़ा का उनको यहाँ एक मकान औने पौने दाम पर दिला दिया। वैसे तो इलाका ठीक था, यहाँ और भी बहुत सी पहाड़ी फॅमिली रहती थी लेकिन आस पास के गंवार और उनकी हेकड़ी वाला माहौल को देख कर नीतू को कुढ़न सी होती थी।
यहाँ आने से पहले नीतू का परिवार आर्मी एरिया में रहता था, वहा सारे परिवार साफ़ सुथरे और तरीके से रहते थे लेकिन यहाँ के ढंग ही अलग थे, खैर वो बेचारी कर ही क्या सकती थी, अभी आठवीं की स्टूडेंट थी और अभी सारा धयान पढाई में था।
नीतू को स्टैंड पर खड़े खड़े दस मिनट हो चुके थे लेकिन बस का अभी तक कुछ अता पता नहीं था और ना ही किसी दूसरे स्टूडेंट्स का, नीतू बार बार उम्मीद भरी निगाहो से बस के आने वाले रस्ते की ओर देखती और फिर वापस मायूस हो कर स्टैंड के खम्भे से टेक लगा कर खड़ी हो जाती।
नीतू बस का इन्तिज़ार करते हुए अपने खयालो में खोयी हुई की तभी अचानक उसके नथुनों में शराब की गन्दी तीखी बदबू टकराई , ये बदबू पार्क के पीछे से आयी थी, पहले तो वो बुरा सा मुँह बना कर रह गयी लेकिन जब शराब की बदबू तेज़ होनी लगी तो नीतू बदबू का कारण जानने के लिए गर्दन घुमाई, अभी उसकी गर्दन घूमी भी नहीं थी की अचानक एक मज़बूत हाथ उसके मुँह पर आ पड़ा और किसी ढक्कन के जैसे उसके मुँह पर चिपक गया, नीतू के गले से एक घुटी हुई चीख निकली लेकिन उसकी चीख उस मज़बूत हाथ के अंदर ही दम तोड़ गयी, नीतू बचने के लिए हाथ पैर मारने लगी लेकिन उस व्यक्ति की मज़बूत चुंगल से नहीं निकल पायी।
नीतू को हाथ पैर चलता देख देख कर शराबी ने दूसरे हाथ से अपना कम्बल खींच कर नीतू के शरीर को पूरा ढक लिया, नीतू दर से काँप गयी लेकिन उसके तेज़ दिमाग ने अंदाज़ा लगा लिया था की अगर वो शराबी उसको इसी तरह कम्बल में लपेट कर जंगलनुमा पार्क में ले गया तो फिर उसका बचना मुश्किल है।
नीतू की उम्र कम ज़रूर थी लेकिन उसके शरीर में पहाड़ी खून था, उसके परिवार को सदा मेहनत करने की आदत ने उसके शरीर को मज़बूत बना रखा था, नीतू ने अपने शरीर की पूरी ताकत लगा कर कर अपने हाथो से शराबी के उस हाथ को पकड़ लिया जिस से उसने उसके मुँह को दबा रखा था, उसने अपने दोनों हाथो की मेहनत और भरपूर शक्ति लगा कर उसके हाथ की पहली ऊँगली को पकड़ा और और पूरी ताकत से उसे पीछे की ओर खींच दिया, शराबी दर्द से बिलबिलाया और उसकी नीतू के मुँह पर पकड़ ढीली हुई, मुँह पर जैसे ही हाथ ढीला हुआ तो नीतू ने अपना मुँह खोल कर शराबी के हाथ को मुँह में भर कर अपने मज़बूत नुकीले दांतो से चबा डाला, शराबी दर्द से चिल्लाया और और बस उसी पल में नीतू शराबी की चुंगुल से मछली की तरह फिसल कर ज़मीन पर गिर पड़ी।
शराबी की ऐसे विरोध की उम्मीद नहीं थी इसलिए वो हड़बड़ा गया और फिर झुक कर नीतू को पकड़ने की कोशिश करने लगा इतने में ही किसी ने हल्ला मचाया
- ये क्या हो रहा है ? पीछे हट, इस लड़की से दूर हो।।।।
शराबी अभी नीतू के हमले से ठीक से संभाला भी नहीं था और ऊपर से किसी मर्द की आवाज़ सुन कर बिन कुछ देखे सुने कम्बल संभालता हुआ पार्क की ओर भाग निकला।
नीतू ज़मीन पर पड़ी हाफ रही थी और उसकी आँखों से छलक कर आंसू उसके गोर गाल को भींगा रहे थे,
- तुम ठीक हो गुड़िया ? उस आदमी ने नीतू के पास AA कर पूछा ?
नीतू : हाँ मैं ठीक हूँ कहते हुए सर हिलाया
- क्या हुआ था ? कौन था ये शराबी ?
नीतू : पता नहीं अंकल, मैं यहाँ खड़ी थी तो इसने पीछे से मुँह बंद करके मुझे उठा लिया और जंगल की ओर ले जा रहा था।
- कोई बात नहीं बेटा , तुमको चोट तो नहीं आयी ?
नीतू : नहीं अंकल मैं ठीक हूँ कहते हुए नीतू उठ खड़ी हुई और अपने kapdo पर लगी मिटटी झाड़ने लगी
- तुम किस स्कूल में पढ़ती हो ?
नीतू : जी वर्धवान पुब्लिक स्कूल में
- कोई नहीं आओ मेरे साथ, मैं उधर ही ऑफिस जा रहा हूँ तुमको छोड़ दूंगा
नीतू : नहीं अंकल थैंक यू , मेरी बस आने वाली ही होगी मैं चली जाउंगी ,
- डरो मत बेटा, मैं तुम्हे अपनी गाडी से छोड़ दूंगा स्कूल, और अगर तुमको किसी बात कर डर है तो मैं गाडी की खिड़की खुली रखूँगा, मैं नहीं चाहता की तुम यहाँ अकेली खड़ी रहो, कही कोई दिक्कत आगयी फिर ?
नीतू ने भी मन ही मन डर रही थी, सामने वाले व्यक्ति अपने पहनावे से पढ़ा लिखा और सभ्य मालूम होता था, उम्र कोई पैंतीस साल रही होगी, देखने में अच्छा खासा स्मार्ट आदमी था सामने ही उसकी सेंट्रो कार खड़ी थी, नीतू ने हाँ में सर हिलाया और कार की ओर बढ़ गयी।
सामने वाले व्यक्ति ने नीतू के लिए गाडी का दरवाज़ा खोला और खुद घूम कर ड्राइवर सीट पर आकर बैठ गया, नीतू को गाडी में बैठ कर सकून महसूस हुआ, गाडी अंदर से गर्म थी, उस व्यक्ति ने गाडी में गयेर में डाली और आगे बढ़ी दी,
- अगर तुमको डर लग रहा है तो तुम अपने साइड की विंडो खोल सकती है, बाहर ठण्ड बहुत है इसलिए मैंने बंद कर रखी है साडी विंडोज
नीतू : नहीं अंकल ठीक है
नीतू उस व्यक्ति अंकल तो बुला रही थी लकिन उस व्यक्ति का व्यक्तित्व को देख कर उसे अंकल बुलाने में अजीब सा लग रहा था
थोड़ी दूर चल कर गाडी मेनरोड पर आगयी ,
- तुम्हारा क्या नाम है बेटा ?
नीतू : जी नीतू, नहीं निष्ठां चौहान।
- हां हां हां नीतू या निष्ठा कोई एक फाइनल कर लो
नीतू : नीतू ही ठीक है , निष्ठां चौहान स्कूल में
- हां हां मुझे निष्ठां चौहान नाम ही अच्छा लग रहा है, नाम के अनुसार ही तुम बहादुर लड़की हो, बहुत हिम्मत से तुमने उस शराबी से मुक़ाबला किया।
नीतू : थैंक यू अंकल
- मेरा नाम विनीत कपूर है, और मैं यही जनकपुरी रहता हूँ तुम चाहो तो मुझे विनीत जी बुला सकती हूँ
नीतू : थैंक यू विनीत जी, अपनी मेरी हेल्प की उस शराबी को भगाने में
विनीत : अरे मैं हेल्प करता उस से पहले ही तुमने उसे धूल चटा दी थी
नीतू : फिर भी
विनीत : ओह्ह डोंट मेंशन इट
थोड़ी देर में ही नीतू का स्कूल आगया और विनीत ने स्कूल के गेट पर नीतू को ड्राप कर दिया, नीतू ने विनीत को थैंक यू कहा और दौड़ कर स्कूल के अंदर चली गयी
इस घटना के कुछ वर्ष बीतने के बाद
कंप्यूटर पर बजते गाने की धुन पर गुनगुनाते हुए समीर ने बालो में अंतिम बार कंघा चला कर कंघे को बेड की ओर उछाल दिया, अपना बैग कंधे पर लटकाया और बाइक की चाभी और हेलमेट उठा लिया, इतने में किसी ने बाहर से बेल बजायी, बेल बजाने वाला जैसे बेल बजा कर स्विच पर से ऊँगली हटाना ही भूल गया था, बेल लगातार बजती जा रही थी, समीर ने लगातार बजती बेल पर कोई धयान नहीं दिया और ना ही कोई हड़बड़ी दिखाई, बल्कि आराम से अपना बैग और हेलमेट संभालता हुआ दरवाज़े पर आया और दरवाज़ा खोला और चौखट से टेक लगा कर खड़ा हो गया, सामने उसका जिगरी दोस्त अंकुश कमर पर तौलिया लपेटे खड़ा था,
अंकुश : साले इतना टाइम लगता है गेट खोलने में, कब से घंटी बजा रहा हूँ
समीर : ओह्ह नई इनफार्मेशन, लगातार घंटी दबाने से गेट जल्दी खुलता है, ज़रूर गेट और घंटी में कोई कनेक्शन है,
अंकुश : साले बकवास मत कर ये बता सुबह सुबह कहा तैयार हो कर जा रहा है ?
समीर : काम करने सरकार, सब आप जैसे अमीर बाप के बेटे नहीं होते, कुछ हम जैसे गरीब भी है इस दुनिया में
अंकुश : हरामखोर कितना बोलता है तू, सीधे सीधे बता, दिमाग मत ख़राब कर
समीर : अबे बताया तो काम है इसलिए जा रहा हूँ
अंकुश : साले यही फ्लैट तेरा घर है और यही से तू ऑफिस भी चलता है फिर अब ये कौन सी नयी जगह आगयी जहा तू काम करने जा रहा है ?
समीर : अबे पागल इंसान ऑफिस से बाहर क्लाइंट से मिलने जाना होता है कभी माल लेने जाना होता है, सब काम यही बैठे बैठे हो जायेगा क्या ?, तू बता तुझे क्या काम है मुझसे ?
अंकुश : पहले तू बता कहा जा रहा है इतनी सुबह सुबह
समीर : क्लाइंट से मिलने जा रहा हूँ, और सुबह नहीं है सवा दस बज चुके है, तुझे जल्दी लग रहा होगा साले, दिन के १२ बजे तक तो सोता रहता है तू (समीर ने ताना मारा)
अंकुश : बारह नहीं दो बजे
समीर : हाँ सच कहा तूने, अब तू बता तू आज इतनी जल्दी कैसे उठ गया और मुझसे क्या काम है ?
अंकुश : कुछ नहीं, तू जहा जा रहा था वो कैंसिल कर, मैं बस नहाकर आरहा हूँ फिर दोनों भाई घूमने चलते है
समीर : तू जा नहाने मैंने कोन सा रोका है, लेकिन मैं जा रहा हूँ क्लाइंट के पास, घूमने दो बजे के बाद चलेंगे
अंकुश : नहीं, आज तू मेरे साथ चल रहा है, सब कैंसिल कर, समझा कर, आज दोनों भाई मस्ती करेंगे
समीर : अच्छा ठीक है पहले पूरी बात बता नहीं तो मैं चला
अंकुश : कुछ नहीं यार बस आज तृषा से मिलने चलना है
समीर : कौन तृषा ?
अंकुश : अबे वही तृषा जो तूने मुझे गिफ्ट करी थी साले
समीर : ओह्ह वो रॉंग नंबर वाली ? तू अब भी उस से बात कर रहा है ?
अंकुश : हाँ लगतार बात हो रही है, लेकिन आज उसने मिलने के लिए बुलाया है
समीर : ठीक है फिर तू जा, मेरा क्या काम, वैसे भी तू एक्सपर्ट शिकारी है, अकेले शिकार करता है
अंकुश : हाँ करता हूँ शिकार, तेरे जैसा चूतिया थोड़ी हूँ, जो शिकार सामने देख के भी छोड़ दे, तुझे उसी ने बुलाया है, बोल रही है की समीर को ज़रूर साथ लाना, वो तुझसे मिलना चाहती है
समीर : चल भाग, मेरा क्या लेना देना उस से, तू जा और दोनों ऐश करो, मुझे वैसे भी कबाब में हड्डी बनना पसंद नहीं
अंकुश : ड्रामे मत कर, तू चल रहा है बस फाइनल, वैसे भी वहा तीन तीन लेंडियां आरही है समझ बात को यार
समीर : अब ये दो एक्स्ट्रा कहा से आगयी
अंकुश : बाद में, लेट हो रहा है, मैं नहा कर आता हूँ फिर बताऊंगा।
इतना कह कर अंकुश दौड़ कर अपने फ्लैट में घुस गया। अंकुश और समीर लगभग एक ही उम्र के थे , दो साल पहले एकसाथ ही इस बिल्डिंग में फ्लैट किराये पर लिया था, दोनों का फ्लैट अलग अलग था लेकिन फ्लोर कॉमन था, दोनों अकेले रहते थे इसलिए कुछ समय में आपस में दोस्ती भी हो गयी। अंकुश के पिता जी अच्छे पद पर सरकारी नौकर पर थे, परिवार में केवल माता पिता और एक बहन थी, पैसे कि कोई कमी नहीं थी, ग्रेजुएशन कर चूका था और अब एक प्राइवेट इंस्टिट्यूट से कॉम्पीशन की तैयारी कर रहा था, तैयारी तो बस घरवालों को दिखाने के लिए थी, असलियत में तो वो बस ऐश कर रहा था, कुछ ज़ायदा शौक नहीं थे लड़कीबाजी को छोड़ कर, पट्ठे को बस नयी नयी चूत चोदने का चस्का था और इसके लिए वो किसी हद तक जा सकता था।
समीर का परिवार गरीबी में जी रहा था उसके पिता की मृत्यु के बाद इसलिए समीर ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और कमाने लग गया, पहले कुछ समय तक नौकरी की फिर दो साल पहले उसने अपना खुद का बिज़नेस स्टार्ट कर लिया, जो अब धीरे धीरे उसकी जिंदगी को सुखी बना रहा था।
अबसे कुछ महीने पहले एक रात समीर के मोबाइल पर किसी की कॉल आयी थी, उस समय समीर सो रहा था, सुबह उठकर उसने मिस कॉल देख कर कॉल बैक किया तो वो कॉल तृषा ने उठायी थी, पहले तो थोड़ी नोक झोक हुई लेकिन पता नहीं क्यों तृषा को समीर के बातचीत का तरीका भा गया और उसने जानभूझ कर बात लम्बी खींच दी, लेकिन समीर बात के मूड में नहीं था इसलिए उसने अपना फ़ोन अंकुश को पकड़ा दिया था, और अंकुर ठहरा पक्का शिकारी, उसने तृषा से नंबर एक्सचेंज किया और फिर धीरे धीरे अपनी लच्छेदार बातों में उलझा लिया और आज उसी का फल था जो वो मिलने आ रही थी।
लगभग आधे घंटे बाद अंकुश तैयार हो कर आगया, समीर ने गेट खुला ही छोड़ दिया था इसलिए अंकुश सीधा कमरे में घुसता चला आया,
अंकुश : चल भाई जल्दी लेट हो रहा है,
समीर : कहा चलना है ?
अंकुश : "अरे बताया तो, तृषा से मिलने जाना है, कितनी बार एक बात को रिपीट करू" अंकुश झल्लाया
समीर : अबे पागल इंसान, जगह, कौन सी जगह, एरिया जाना है ?"
अंकुश : ओह्ह तो ऐसे बोल ना, जनकपुरी चलना है
समीर : हम्म तो फिर बाइक बेकार है, बहुत टाइम लग जायेगा, मेट्रो से चलते है जल्दी पहुंचेंगे
अंकुश : हाँ ठीक है, लेकिन मुझे मेट्रो का रास्ता नहीं पता, तुझे पता है तो चल
समीर : मुझे पता है सब, यहाँ से इंदरप्रस्थ मेट्रो स्टेशन तक चलेंगे बाइक से वहा बाइक पार्क करके डायरेक्ट द्वारका वाली मेट्रो से जनकपुरी
अंकुश : भीड़ होगी यार
समीर : अरे ये नई लाइन स्टार्ट हुई है इंदरप्रस्था से द्वारका तक के लिए इसमें भीड़ नहीं होती, रिठाला वाली में होती है, तू चल के देख लियो
अंकुश : ठीक है फिर चल, अब देर मत कर, मैंने उनको आधा घंटा पहले ही बोल दिया था की हम निकल चुके है
दोनों ने पहले अपने फ्लैट को लॉक किया और फिर जल्दी जल्दी मेट्रो स्टेशन pahuch गए, जबसे ये मेट्रो लाइन स्टार्ट हुई थी तब से कई बार समीर इस ब्लू लाइन मेट्रो की सवारी कर चूका था इसलिए उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई और थोड़ी देर बाद ही दोनों मेट्रो में बैठे हुए थे।
समीर : देख लिया मेट्रो खाली है ना, कोई भीड़ तो नहीं ?
अंकुश : नहीं यार, बिलकुल खाली है ये तो।
समीर : हाँ ! बस थोड़े दिन की और बात है एकबार जब ये आनंद विहार से जुड़ जाएगी तब देखना भीड़, अभी बीच में सड़े ही स्टार्ट कर दी है
अंकुश : हां छोड़, तब की तब देखि जाएगी
समीर : हाँ ठीक है, अब ये बता की ये 3 ladkiyon का क्या चक्कर है
अंकुश : अरे कुछ नहीं यार बस तृषा से बात चल रही थी इतने dino से तो मैंने usko मिलने का बोलै, उसके एग्जाम चल रहे थे इसलिए mana कर दिया, अब kal इसके एग्जाम finish हुए है तो आज मिलने के लिए ready हो गयी है
समीर : ठीक है लेकिन ये 2 ladkiyan कौन है ?
अंकुश : अरे ये दोनों उसकी saheli है, shayad अकेले aate हुए ghabra रही होगी इसलिए अपनी सहेलियों के साथ aarahi है,
समीर : अच्छा ! और मैं कहा फिट हो रहा हूँ iss story में ?
अंकुश : अरे तू तो hero है इस story का, ha ha
समीर : चूतिया मत बना पूरी बात बता ?
अंकुश : अरे नहीं बना कोई चूतिया तुझे यार, जब उसने बताया की वो अपनी दो सहेलियों के साथ आएगी तो मैंने भी बोल दिया की मेरे साथ मेरा दोस्त समीर भी आएगा, तेरा नाम सुन कर उसने भी बोलै की समीर को ज़रूर लेके आना।
समीर : हम्म ठीक है, और कोई बात ? कोई झूट सच बोला हो तूने
अंकुश : कुछ खास नहीं, बस यही की ये फ्लैट्स हमारा अपना है रेंट का नहीं और तू भी पढाई करता है मेरे साथ
समीर : तूने बताया क्यों नहीं की मैं काम करता हूँ
अंकुश : अरे फिर हम दोनों को ज़ायदा उम्र का समझती ना, उसने अभी बारहवीं का एग्जाम दिया है, तीन चार साल छोटी हम दोनों से
रास्ते में अंकुश ने समीर को उसकी और तृषा की बातचीत के बारे में थोड़ी जानकारी दे दी थी, दोनों बातें करते करते जनकपुरी स्टेशन पहुंच गए, मेट्रो में ही तृषा का कई बार कॉल आया, वो काफी देर से वेट कर रही थी अंकुश और समीर का।
मेट्रो स्टेशन से बहार आकर अंकुश ने तृषा को कॉल किया तो तृषा ने बताया की वो रिलायंस ट्रेंड मॉल में है और उन दोनों का वेट कर रही है, इससे पहले अंकुश कुछ बोलता समीर ने अंकुश के हाथ से मोबाइल छीन कर कॉल काट दी ।
अंकुश : चूतिया है क्या ? वो अपनी लोकेशन बता आरही थी और तूने कॉल कट कर दी।
समीर : चूतिया मैं नहीं तू है , साले वो हमें रिलायंस ट्रेंड में बुला रही है, वहा केवल शॉपिंग हो सकती है बैठ कर बातें नहीं, और अगर काउंटर पर जा कर उसने बोल दिया की शॉपिंग का बिल पे कर दो तब क्या करेंगे, पहली बार मिल रहे है कही हमारा ही चूतिया ना कट जाये।
अंकुश : बात तो सही है फिर क्या करे ?
समीर : कुछ नहीं, सीधा बोल के सत्यम सिनेमा के नीचे मिल जाये, सत्यम सिनेमा की ही बुल्डिंग में मक्डोनल्ड है, अगर तेरी बंदी ठीक लगी तो
वही बैठ जायेगे, इस टाइम वह भीड़ नहीं होती, और अगर कोई चूतिया बनने वाली लड़की लगी तो वही बाजू में ग्रिल्ड सैंडविच बनता है वही से कुछ खिलाकर टाल देंगे। बोल क्या बोलता है?
अंकुश : परफेक्ट प्लान है , साले तू ये सब सोच कैसे लेता है, मैं तो सीधा वही जाता जहा लौंडिया बुला रही थी।
समीर : क्यूंकि मैं दिमाग से सोचता हूँ तेरी तरह लण्ड से नहीं।
अंकुश : हे हे हे तभी आजतक तूने अपने लण्ड को कुंवारा रखा हुआ है, कुछ इसका भी धयान कर ले इसकी भी प्यास बुझवा
समीर : प्यास भी बुझ जाएगी जब समय होगा तब फिलहाल तू कॉल कर और जो समझाया है वो बोल उसको।
अंकुश ने समीर के बताये अनुसार ही उनको अपनी लोकेशन समझायी और उन्हें सत्यम सिनेमाज के नीचे मिलने के लिए बुला लिया।
कॉल कट होने के बाद समीर अंकुश का हाथ खींच कर थोड़ी दूर पर बने एक स्टाल पर ले गया और वह से एक पानी की बोतल ले कर वही खड़ा गया।
अंकुश : चल भाई, सिनेमा के नीचे खड़े होते है
समीर : तू पानी पि पहले और मैं भी पि लू फिर चलते है
अंकुश : अबे पानी तो वहा भी पि सकते है
समीर : ठीक है तू वही पि लेना मुझे तो यही पि लेनेदे
समीर अंकुश से मसखरी करता हुआ धीरे धीरे पानी पीता रहा, वो जान बुझ कर समय बर्बाद कर रहा था, उसे मालूम था की अंकुश लड़कीबाजी के चक्कर में पगलाया रहता है, वो डायरेक्ट उन लड़कियों से मिलने से पहले उनको दूर से एक नज़र देख लेना चाहता था, अंकुश बेसब्रा हो रहा था लेकिन समीर कुछ न कुछ बहाना बना कर उसे टालता रहा। आखिर दस मिनट के इन्तिज़ार के बाद दूर से उसे तीन लड़किया एक साथ आती नज़र आयी, तीनो लगभग एक ही उम्र की थी, समीर को उन लड़कियों की चाल में एक झिझक नज़र आयी, उनमे से एक लड़की जो एक दम क्यूट और कांच की गुड़िया जैसे थी वो कुछ ज़ायदा ही झिझक रही थी, मानो वो आना न चाहती हो लेकिन ज़बरदस्ती करने पर साथ आयी हो, दूसरी लड़की जो एक दम गोरी भक थी और छरहरे शरीर की मालिक थी वो भी झिझक रही थी लेकिन थोड़ा कम, जो लड़की सबसे आगे थी वो बोल्ड मालूम होती थी, वो एक दम बिंदास अंदाज़ में उन दोनों लड़कियों का नेतृत्व कर रही थी। समीर ने अंदाज़ा लगा लिया था की वही तृषा होगी और ये दोनों लड़किया उसकी सहेलियां है।
अंकुश ने भी उनको देख लिया था और अब वो बेचैनी से उनकी ओर जाना चाहता था लेकिन समीर ने अंकुश का हाथ तब तक नहीं छोड़ा जब तक की उसके मोबाइल पर तृषा की कॉल नहीं आगयी, समीर ने दूर से ही तृषा को कॉल मिलते हुए देख लिया था, उसका अंदाज़ा एकदम सही था उस ग्रुप की लीडर वही थी। समीर ने अंकुश का हाथ छोड़ दिया, दोनों चलते हुए लड़कियों के पास जा पहुंचे।
"हमे यहाँ बुला कर कहा भाग गए थे तुम दोनों" चहके हुए तृषा ने शिकायत की
"बस आप का वेट करते करते प्यास लग आयी तो पानी लेने चले गए थे " समीर ने झट से बात बनायीं, उसे डर था की कहीं अंकुश कुछ बोल न दे
"हाँ प्यास तो मुझे भी लग रही है " कह कर तृषा ने हाथ बढ़ाया
समीर ने तुरंत पानी की बोतल तृषा को पकड़ा दी, तृषा ने दो घूंट पानी पि कर बोतल समीर की ओर बढ़ा दी लेकिन बीच में ही बोतल अंकुश ने तृषा के हाथ से ले ली।
पानी पी कर तृषा ने सबसे पहले अंकुश की ओर गौर से देखा, अंकुश पांच फुट छह इंच का गोरा चिट्टा और स्मार्ट दिखने वाला लड़का था, फेस एक दम गोल मटोल फरदीन खान के जैसा, वही समीर पांच फुट नौ इंच का पतले शरीर का लड़का था, रंग समीर का भी गोरा था लेकिन ज़ायदा नहीं, समीर में एक मर्दानापन था अंकुश की तुलना में जो उसे एक अलग ही लुक देता था।
"तो तुम हो अंकुश और ये है महान इंसान समीर, ऍम आयी राइट ?" तृषा ने ऐसा बोलकर एक अदा से अपना हाथ आगे बढ़ाया, जिसको अंकुश ने लपक कर अपने हाथो में थाम लिया और गर्मजोशी के साथ हैंडशेक किया।
"वाह तुमने बिलकुल सही पहचाना, मैंने भी तुमको पहचान लिया, तुम तृषा हो" अंकुश बतीसी दिखता हुआ मुस्कुराया
"हाँ बिलकुल ठीक, और ये मेरी फ्रैंड्स है, ये आस्था और ये नीतू" तृषा ने अपनी सहेलियों का परिचय कराया
हैंडशेक के बाद अब अंकुश समीर की ओर देखने लगा, वो जानना चाहता था की अब प्लान के हिसाब से कहा चला जाये, मैक्डोनाल्ड या सैंडविच वाले के पास, मन में अंकुश मना रहा था की समीर मैक्डोनल्स ही चले, क्यूंकि वो इन तीनो लड़कियों को इम्प्रेस करना चाहता था।
समीर अंकुश के मन की बात समझ गया, उसने अंकुश को इशारा किया और फिर वो पांचो मैक्डोनल्स में आकर बैठ गए।
अभी दोपहर नहीं हुई थी और वर्किंग डे था इसलिए आज यहाँ कोई खास भीड़ नहीं थी उन्होंने एक टेबल पसंद की जिस पर ये पांचो आराम से बैठ सकते थे और वह जा कर सबने अपनी अपनी सीट संभल ली
टेबल की एक ओर सबसे पहले अंकुश बैठा फिर तृषा और फिर आस्था, टेबल के दूसरे ओर की सीट समीर ने संभाल ली और उसके बगल में नीतू बैठ गयी, अभी तक तक जायदातर बातचीत अंकुश और तृषा के बीच में ही हो रही थी, तृषा लगभग पांच फुट की थी, रंग साफ़ था लेकिन बहुत गोरी नहीं, नाक नक्शा सुन्दर था लेकिन जो बात उसमे सबसे अलग थी वो थे उसके स्तन। तृषा के स्तन काम से काम चौंतीस साइज के ज़रूर रहे होंगे, इस उम्र में इस साइज के स्तन बहुत काम लड़कियों के होते है, ऊपर से उसने वि गले वाला टॉप डाला हुआ था जिसके कारण उसके बड़े बड़े उभर बहाने से अपने दर्शन करा ही देते थे।
आस्था एक दम गोरी चिट्टी नाज़ुक सी लड़की थी, एक दम क्यूट, छोटी छोटी आंखे और प्यारी सी स्माइल, लेकिन डरी सहमी सी शायद वो पहली बार इस तरह अनजबी लड़को से मिल रही थी। उसका शरीर एक दम परफेक्ट शेप और साइज का था जैसे ईश्वर ने किसी लड़के की प्राथना सुन कर उसे ये रूप दिया हो।
वही तीसरी लड़की थी नीतू, गोरा रंग, लम्बे काले बाल, लगभग पांच फ़ीट हाइट, बड़ी बड़ी सुन्दर काली आँखे, जैसे लड़कपन वाली विद्या बालन। अबसे थोड़ी देर पहले वाली झिझक अब गायब थी और एकदम रिलैक्स हो कर च्विंग गम चबा रही थी
तृषा बातूनी लड़की थी, बैठते ही उसने स्टार्ट ले लिया, जायदातर बात अंकुश और तृषा ही कर रहे थे बाकी समीर, नीतू और आस्था उन दोनों की बकवास सुन कर मज़े ले रहे थे और कभी कभी उनकी किसी बात को सुन कर मुस्कुरा देते, तृषा अंकुश से बातें करते करते समीर की ओर भी नज़र दौड़ा लेती थी, समीर अब थोड़ा बोर होने लगा था, लेकिन चुपचाप बैठा रहा।
कुछ देर बाद तृषा समीर की ओर सम्बोधित हुई
"और महान इंसान आपके क्या हाल है " उसने मज़ाकिया अंदाज़ में समीर से पूछा
"मैं तो एक दम ठीक हूँ, तुम देख ही सकती हो ? वैसे तुम मुझे बार बार महान इंसान क्यों बुला रही हो ?" समीर ने सवाल किया
"क्यूंकि तुम हो ही महान, इसलिए कहा " तृषा का जवाब आया
"पता नहीं तुम ऐसा क्यों बोल रही हो, मैं सच में नहीं समझ पाया" समीर कंफ्यूज था
तृषा अब नीतू और आस्था की ओर सम्बोधित हुई
"नीतू तुझे पता है ना मैं समीर को महान इंसान क्यों बोल रही हूँ ?"
"नहीं यार मुझे नहीं पता, तू ही बता दे" नीतू ने कंधे उचकाए
"अच्छा तो फिर सुनो, बात ये है की जिस दिन हमारा मैथ्स का प्रीबोर्ड था उस से पहले वाली रात को मैं पढाई कर रही थी, लेट नाईट में
मुझे कुछ कन्फूज़न हुई तो मैंने तेरा फ़ोन मिलाया, गलती से फ़ोन इन महाशय का लग गया, कोई बात नहीं इन्होने फ़ोन नहीं उठाया, अगले दिन इनका फ़ोन आता है मेरे पास दिन में, की आपने कॉल किया था, मैंने कहा हां किया था, इसने बड़ी इज़्ज़त से पूछा मैडम आप कौन है, मैडम सुन कर मुझे गुस्सा आगया तो मैंने बोल दिया की रात में कहा थे, रात में फ़ोन उठाते तो बताती अपना नाम "
" फिर ?" नीतू ने जिज्ञासा दिखाई
"फिर क्या, इन महाशय का जवाब था, सो रहा था, शरीफ इंसान रात के तीन बजे सो रहे होते है "
मुझे इतना गुस्सा आया इसका जवाब सुनकर, इसका मतलब ये शरीफ इंसान है और मैं बदमाश" तृषा बोलते बोलते तमतमा गयी थी
"और आगे सुनो, जब मैं बहस करने लगी तो इस महान इंसान ने महानता दिखते हुए अपना फ़ोन अंकुश को पकड़ा दिया " तृषा ने चिड़े हुए अंदाज़ में कहा
"लड़के तो मरते रहते है किसी सुन्दर लड़की से बात करने के लिए और ये यहाँ बात करने से बच रहा था, तो बताओ अगर मैं इसको महान इंसान बोल रही हो तो कौन सा गलत कर रही हूँ " तृषा ने अपने मन की भड़ास निकली
"अरे तुम बेकार में बुरा मान रही हो, ये ऐसा ही है शुरू से, उल्लू है उल्लू " अंकुश ने बात ख़तम करने की कोशिश की
"अरे तो मैंने गलत क्या किया, मैं सो रहा था तो यही तो बोलूंगा की सो रहा हूँ, अब रात के तीन बजे कौन जागता है? और फिर तुम बात बढ़ा रही थी तो मैंने फ़ोन अंकुश को इसलिए दे दिया क्यंकि उसको एक्सपेरिस है लड़कियों से बात करने का, मुझे नहीं है " समीर ने भी अपनी सफाई दी।
"अरे तो इसमें इतना बुरा माने की क्या बात है, हो जाता है, तू क्यों इतनी खिचाई कर रही है समीर की " खामोश बैठी आस्था ने समीर का बचाव किया, उसे समीर पर तरस आरहा था
"अरे मैं बुरा नहीं मान रही यार, फ़ोन पर इसकी आवाज़ सुनके अच्छा लगा था तो जान भूझ कर बात लम्बी खींच रही थी लेकिन इसने भाव ही नहीं दिया बस इसी बात का मलाल है , और तू क्यों फेवर ले रही है इस समीर के बच्चे का " तृषा ने आँख मारते हुए कहा
तृषा की मसखरी पर सब मुस्कुरा दिए।
कुछ देर में समीर ने उनसे आर्डर के बारे में पूछा और सीट से उठ गया, अंकुश अपनी सीट पर बैठा रहा, अब उसने अपनी लच्छेदार बातों में तीनो लड़कियों को उलझाना शरू कर दिया था, समीर ने सब के लिए आर्डर किया और वही एक साइड में खड़ा होकर आर्डर का इंतज़ार करने लगा।
आर्डर पांच ट्रे में लगा था, समीर दो ट्रे तो उठा लाया और टेबल पर रख दी, उसे तीन ट्रे और लानी थी, उसने अंकुश को चलने के लिए कहा, इस से पहले अंकुश कोई जवाब देता आस्था अपनी सीट से खड़ी हो गयी और समीर के साथ चल दी ।
समीर ने २ ट्रे खुद संभाली और एक ट्रे आस्था को पकड़ा दी, दोनों साथ साथ चलते हुए टेबल के पास पहुंचे, दोनों ने देखा की तृषा ने अंकुश से कुछ कहा और फिर वो दोनों खिलखिला कर है पड़े, नीतू भी मुस्कुराकर उनका साथ दे रही थी।
"क्या बोल रही तू हमारी ओर देख कर ?" आस्था ने ट्रे टेबल पर रखते हुए तृषा पूछा
"कुछ नहीं बस ऐसे ही मज़ाक कर रहे थे ?" झट से अंकुश का जवाब आया
"नहीं कोई तो बात थी जो तुम दोनों हमारी ओर देख कर कमेंट मार रहे थे " आस्था को जिज्ञासा हो चली थी
"अरे कुछ नहीं यार, मैं तो अंकुश को बोल रहा थी की ऐसा लग रहा है की हम बच्चे है और तुम दोनों जिम्मेदार माँ बाप जो हमारे लिए खाना ले कर आरहे हो " तृषा बोल कर फिर से खिलखिला कर है पड़ी
आस्था ने समीर की ओर नज़रे उठा कर देखा और शर्मा कर नज़रे नीची कर ली, उसके होंटो पर एक प्यारी सी मुस्कान थी, शर्म की लाली से उसके गाल गुलाबी होने लगे थे।
समीर ने बात बदलते हुए सबको खाना स्टार्ट करने के लिए कहा और खुद बर्गर का रेपर खोल कर बर्गर खाने लगा, लगभग आधे घंटे तक उन सबने खूब बातें की और एक दूसरे को छेड़ते रहे, उनको देख कर कहीं से भी लग रहा था की ये आज पहली बार एक दूसरे से मिल रहे थे।
खाने का बाद बहुत देर तक वो जनकपुरी की मार्किट घूमे फिर और जब शाम का समय होने लगा तब उन पांचो ने एक दूसरे से विदा ली, जाते जाते तृषा ने समीर बताया की अगर उसे आस्था पसंद है तो वो उसकी सेटिंग करा सकती है क्यूंकि उसके विचार से आस्था को भी समीर पसंद आया था। समीर ने बात हंस कर टाल दी।
घर वापिस आकर समीर सोफे में पसर गया सुबह से घूम घूम कर वो थक गया था, उसने जेब से मोबाइल निकल कर टेबल पर रखा और आंख बंद कर रिलैक्स करने लगा, तभी उसके मोबाइल पर एक छोटी सी मिस कॉल आयी, समीर फ़ोन उठाया और फ़ौरन वापिस कॉल मिलाया, उधर से भी फ़ोन झट से उठ गया
"हेलो बेबी " उधर से किसी लड़की ने कहा
"ओह्ह हाय जानेमन " समीर ने जवाब दिया
"बहुत बुरे हो आप" लड़की ने शिकायत की
"क्यों मैंने क्या किया "समीर ने मासूमियत से पूछा
"मैंने पुरे दिन कितना मिस आपको लेकिन आपने मुझे एक एसएमएस तक नहीं किया " लड़की ने मीठी शिकायत की
"ओह्ह सॉरी बेबी, आज थोड़ा बिजी हो गया था अंकुश के चक्कर में इसलिए टाइम नहीं मिल पाया " समीर ने सफाई दी
"ओह्ह उस बहनचोद के चक्कर में क्यों पड़ते हो आप? एक नंबर का ठरकी है वो "
"अरे नहीं बेबी उसको थोड़ा काम था इसलिए चला गया था, छोड़ो उसकी बात तुम बताओ कैसी हो "
"कुछ नहीं बस अपने नोना बेबी को मिस कर रही हूँ " लड़की ने रोमांटिक स्वर में कहा
"ओह्ह बेबी आयी मिस यू तू " समीर ने भी उसी स्वर में जवाब दिया
"हम्म बेबी इस सैटरडे को मिल रहे है ना हम "
"हाँ बेबी, बताओ कहा चलना है ?"
"कहीं नहीं चलना है, बस मैं सुबह में आजाऊंगी और फिर हम दोनों सारा दिन बिस्तर में घुसे रहेंगे " लड़की ने उत्तेजना भरे स्वर में कहा
"पक्का बेबी, मैं सैटरडे को तुम्हारा इन्तिज़ार करूँगा " समीर ने भी उतावले स्वर में जवाब दिया
"हाँ आप एक दिन पहले ही सारा काम करके रखना, मैं नहीं चाहती उस दिन कोई हमें डिस्टर्ब करे, खास तौर से आपका कमीना पडोसी " लड़की के स्वर में कटुता थी
"फ़िक्र मत करो बेबी मैं सब सेट करके रखूँगा, बस तुम टाइम पर आजाना "
"वो आप चिंता मत करो, अच्छा सुनो कंडोम है ना आपके पास ?"
"हाँ बेबी है "
"आप चेक कर लो एक और बार, काम से काम चार होने चाहिए, इस बार काम से काम चार बार चुदवाूँगी, पिछली बार तीन ही कंडोम थे, आप एक काम करो दस वाला पैकेट लेकर रख लो, हमारा ३ वाले से गुज़ारा नहीं होगा "
"ओह्ह तुम चिंता मत करो बेबी, मैं पहले ही लेक रखा हुआ दस वाला, मैं अपने लिए नहाने का साबुन लेने गया था तो तभी एक दस वाला पैकेट ले लिया था "
"ओह्ह गुड, समझदार हो गए हो, कौन सा लिया ?"
"इस बार डुरेक्स लिया है डॉटेड, सेफ भी मज़ा भी"
"हाँ सुना है डुरेक्स अच्छा होता है। "
"हाँ इंटरनेशनल ब्रांड है, तुम्हे पता है ना इस मामले में कोई रिस्क नहीं लेना चाहता, सस्ते के चक्कर में कोई बेकार का पन्गा न हो जाये "
"हाँ जानती हूँ की आपको मेरी चिंता है, तभी तो अपना सबकुछ आपके हवाले कर दिया है " उसकी आवाज़ में ढेरो प्रेम था
"आयी लव यू सुनहरी, आयी लव यू सो वैरी मच " समीर की आवाज़ में दुनिआ भर का प्रेम था।
" आयी लव यू तू समीर, अच्छा बाई, मैं जा रही है मुम्मा आगयी है, कल बात करते है"।
"बस एक मिनट बेबी, जाते जाते एक किस तो दे जाओ " समीर ने गुज़ारिश की
"मुआहहह मेरी जान, आज ये ले लो, बाकी सैटरडे को जहा जहां की मांगोगे सब दे दूंगी, अब रखो फ़ोन जल्दी से, बाई "
इतना कह कर सुनहरी ने फ़ोन कट कर दिया।
समीर ने फ़ोन को एक और रख कर सोफे पर पसर गया।
समीर सोफे पर लेता लेता सुनहरी के हसीं सपनो में खो गया, पिछले दो साल से समीर और सुनहरी का प्रेम प्रसंग चल रहा था, दोनों को एक दूसरे से बेपनाह प्यार था, दिन का खली टाइम दोनों एक दूसरे बात करते गुज़रते थे और लगभग हर शनिवार को पुरे हफ्ते की भड़ास चुदाई करके निकलते थे, दोनों चुदाई के पक्के खिलाडी थे, पिछले दो साल से एक दूसरे को चोद रहे थे लेकिन फिर भी एक दूसरे को देखकर ऐसे टूट पड़ते जैसे जन्मो के बिछड़े हो।
दोनों चुदाई में पक्के तो थे ही साथ ही छुपाने में भी माहिर थे, दो साल साल से इश्क़ और चुदाई का खेल खेल रहे थे लेकिन क्या मजाल जो किसी को कानो कान भनक लगने दी हो, इतनी महारत से उन्होंने अपने प्रेम को छुपा के रखा था की अंकुश जैसा घाघ इंसान भी अंदाज़ा नहीं लगा पाया था।
समीर और सुनहरी ने तय कर लिया था की जैसे ही समीर की दीदी की शादी हो जायगी दोनों अपने माँ बाप से बात करके शादी कर लगे, समीर ने तय कर लिया था की सुनहरी ही उसका पहला और आखिरी प्यार है, यही कारन था की उसे दूसरी लड़कियों में कोई इंट्रेस्ट नहीं था, समीर अंकुश की तरह खिलेंद्र किस्म का इंसान नहीं था, उसका उसका तो ये पक्का निर्णय था की जिस से प्यार किया उसी से शादी और उसी के साथ जीवन का अंतिम पल।
उस दिन की मुलाकात के बाद समीर की तृषा से दो चार बार बात हुई लेकिन समीर की ओर से कोई खास रिस्पांस ना देख कर धीरे धीरे तृषा ने भी कॉल करना छोड़ दिया। इस घटना के लगभग तीन महीने बाद एक दिन अचानक तृषा का कॉल आया, समीर ने कॉल पिक किया
"यार समीर कहा है तू " तृषा ने सीधे सीधे सवाल किया
"घर पर हूँ, क्यों क्या हुआ?"
"यार आज अंकुश को मिलना था हमसे लेकिन वो फ़ोन नहीं उठा रहा है, क्या तू बात करा देगा उस से " तृषा थोड़ा झल्लायी हुई थी
"मैं करा तो देता लेकिन अंकुश तो आज सुबह ही अपने होम टाउन चला गया, उसे कुछ काम था " समीर ने बताया
"कब गया वो कमीना, और कहा गया है वो ?"
"वो आगरा का है, तो आज सुबह की ट्रैन से चला गया अब तक पहुंच भी गया होगा "
"अरे यार उसने फसा दिया मुझे" तृषा झुंझलाई
"हुआ क्या है ? क्या मैं जान सकता हूँ ?" समीर ने जानना चाहा
"अरे यार, आज एडमिशन के लिए डाक्यूमेंट्स और बैंक ड्राफ्ट जमा करना था उनिवेर्सिटी में, अंकुश ने बोला था की वो ड्राफ्ट बनवा देगा और मुझे यहाँ कॉलेज में दे देगा आज, अब मैं उसका वेट कर रही हूँ तो फ़ोन नहीं उठा रहा है। "
"तो अब तुम्हे अंकुश चाहिए या ड्राफ्ट " समीर ने तृषा को छेड़ा
"यार ड्राफ्ट मिल जाये तो फिर उस कुत्ते अंकुश की शकल भी नहीं देखूंगी " तृषा ने चिढ़ते हुए कहा
"okay तुम ड्राफ्ट की डिटेल्स मेरे इसी नंबर पर sms करो, मैं कुछ कोशिश करता हूँ"
समीर का बिज़नेस अकाउंट था बैंक में इसलिए ज़ायदा टाइम नहीं लगा और उसका ड्राफ्ट बन गया, लगभग एक घंटे बाद उसने तृषा को कॉल किया और बताया की उसका ड्राफ्ट रेडी है, तृषा ख़ुशी से झूम उठी, लेकिन अब समस्या ये थी की अगर वो समीर से ड्राफ्ट लेने मयूर विहार आती और फिर कॉलेज जाती तब तक बहुत टाइम लग जाता और काउंटर बंद हो जाता, इसका भी समाधान समीर को ही करना पड़ा और ड्राफ्ट लेकर वो तृषा के पास उसके कॉलेज जा पंहुचा, काउंटर बस बंद ही होने वाला था, तृषा और आस्था दोनों ने एक ही कॉलेज में एडमिशन लिया था, आस्था अपना ड्राफ्ट घर से ले कर आयी थी तो उसका काम हो चूका था, जब तक तृषा फॉर्म सुब्मिशन की लाइन में थी तब तक समीर और आस्था ने आपस में बातचीत करके के अपना टाइम गुज़ार लिया।
आस्था के पिता जी एक बड़ी कंपनी में अकउंटेंट थे, उनका परिवार असम का था लेकिन पिछले बीस पच्चीस सालो से उनका परिवार दिल्ली में रह रहा था इसलिए उसकी भाषा और रहन सहन बिल्कुल दिल्ली वाला ही था, आस्था जितनी खूबसूरत थी उतना ही उसका बोलने का तरीका, बिलकुल किसी मासूम बच्चे के जैसे धीरे धीरे मिठास के साथ बात करती थी, किसी को भी हैरत हो सकती थी की इतना मृदु बोलने वाली लड़की और तृषा जैसी पटाखा की दोस्त कैसे हो सकती है,
थोड़ी देर में ही फ्री होने के बाद वो तीनो कॉलेज के बहार आये, समीर ने अपनी बाइक बहार ही खड़ी की हुई थी, बाइक देख कर तृषा की आँखे चमक गयी
"समीर ये बाइक किसकी है ?"
"ये बाइक मेरी ही है, क्यों क्या हुआ "
"अरे यार ये CBZ है ना, एक दम मस्ती लगती है मुझे, एक काम कर तू हमे बाइक से ही हमारे घर पंहुचा दे। "
"ठीक है इसमें कौन सी बात है, पंहुचा दूंगा, बैठो तुम दोनों "
समीर ने बाइक निकली और बाइक स्टार्ट करके बैठ गया, उसके पीछे तृषा बैठी और तृषा के पीछे आस्था, ये उस समय की बात है जब CBZ का पहला मॉडल आया था और उसकी सीट गहरी हुआ करती थी, तृषा जब समीर के पीछे बैठी तो उसके भाड़ी चूतड़ समीर और सीट के बीच में फस गया और उसके पीछे ऊँचे वाली हिस्से पर आस्था बैठ गयी, बाइक पर तीन लोग होने के कारण तीनो एक दूसरे से चिपक कर बैठे थे, तृषा की भड़ी भरकम चूचिया समीर की पीठ से चिपकी हुई थी। समीर ने इन सब पर ज़ायदा धयान नहीं दिया और बाइक स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी।
रास्ता समीर का देखा हुआ था और उनदिनों आजकल के जैसा ट्रिफिक भी नहीं हुआ करता था और न पुलिस की इतनी धर पकड़, इसलिए समीर आराम से उनको लेकर जनकपुरी तक आगया,
"यही तक या और कही जाना है तुम दोनों को "
"अरे यहाँ नहीं, यहाँ से थोड़ा आगे, पालम सुना है वही रहते हम, जब यहाँ तक ले आया है तो वहा तक भी ड्राप कर दे " तृषा ने अपने चूचियों का दबाव समीर की पीठ पर डालते हुए कहा "
"हाँ मालूम है मुझे पालम का रास्ता, कोई नहीं मैं ड्राप कर दूंगा "
"थैंक यू Mr Sheerf इंसान " कहते हुए तृषा ने समीर का कन्धा थपथपाया
समीर ने बाइक पालम की ओर मोड़ दी और थोड़ी देर में ही उसने दोनों के पालम के बस स्टैंड पर ड्राप कर दिया, दोनों ने समीर का बहुत धन्याद किया, खास तौर से तृषा ने,आखिर आज उसका फॉर्म समीर के कारण ही सब्मिट हो पाया था, समीर भी उनको ड्राप कर जल्दी से फुर्र हो गया क्योंकि उसको सुनहरी को कॉल करना था, सुनहरी कई बार समीर को मिस कॉल कर चुकी थी।
समीर के जाने के बाद तृषा और आस्था अपने घर की ओर चल दी, उन दोनों का माकन आमने सामने था, लेकिन उस से पहले नीतू का माकन पड़ता था, इसलिए दोनों नीतू के घर चली गयी, नीतू अपने रूम में थी इसलिए उसकी मम्मी को नमस्ते करके वो दोनों सीधा नीतू के रूम में घुस गयी।
नीतू बिस्तर में पसरी एक मागज़ीने के पन्ने पलट रही थी, उन दोनों को देख कर झट से उठ कर बैठ गयी।
"कहा से आरही हो तुम दोनों ?" नीतू ने उन दोनों को एक साथ देख कर पूछा
"अरे कॉलेज गए थे एडमिशन के लिए, बताया तो था तुझे, तेरा तो एडमिशन तेरी दीदी ने करा दिया लेकिन हमे खुद जाना पड़ा " तृषा ने टोंट मारा
अरे तो मेरा कॉलेज अलग है और तुम्हारा अलग, और दीदी ने वही से अपनी ग्रेजुएशन की है तो सारा स्टाफ जनता है दीदी को तो आसानी से काम हो गया " नीतू ने सफाई दी
"हाँ भाई बड़े लोग, लेकिन कोई बात नहीं हमारा भी हो गया एडमिशन, फॉर्म सबमिट होगया "
"वाह, ये तो अच्छा हुआ, तो अब इस ख़ुशी में पार्टी हो जाये, तुम दोनों की तरफ से " नीतू ने छेड़ा
"हाँ ले ले पार्टी, लेकिन आज नहीं, दो तीन दिन के बाद का कोई प्लान बनाते है, हम तीनो और समीर "
"कौन समीर ? वो उस दिन मक्डोनल्ड वाला "
"हाँ वही शरीफ इंसान " तृषा बोल कर हंस पड़ी
"मतलब हम पांचो फिर से घूमने चलेंगे " अबकी बार आस्था ने पूछा
"जी नहीं केवल चार, उस कुत्ते अंकुश को नहीं बुलाऊंगी मैं "
"क्यों क्या हुआ ? उस दिन तो तेरी बहुत बन रही थी अंकुश के साथ" नीतू ने कुरेदा
"अरे उस कुत्ते के कारण ही आज मेरा एडमिशन अटक गया था, वो तो भला हो समीर का जो ड्राफ्ट बनवा लाया और टाइम से पंहुचा भी दिया कॉलेज तक नहीं तो आज लंका लग जाती "
"हाँ ये बात तो सही है तृषा, समीर ने बहुत हेल्प की तेरी और हमें यहाँ तक पंहुचा कर भी गया, वाकई में वो शरीफ ही है " आस्था ने तृषा की हाँ में हाँ मिलाया
"ओह्हो तुझे बड़ा प्यार आ रहा है समीर पर, हेल्प उसने मेरी की और अच्छाई तुझे नज़र आरही है, चल कोई ना जा तुझे समीर गिफ्ट किया, जा सिमरन जा जी ले अपनी ज़िन्दगी अपने समीर के साथ" तृषा ने फिल्मी डायलाग मारा
"अरे तो अब अच्छे को अच्छा भी न बोलू" आस्था शर्माती हुई बोली, आस्था को शर्माता देख कर तृषा और नीतू खिलखिला कर है पड़ी
तीन ने ऐसे ही बहुत देर तक वहा बैठ कर चुहलबाजियां की और फिर अपने अपने घर की ओर निकल गयी।

Starting jitni thrilling thi Nitu ke liye aage chalkar aisa laga ke mukhya kirdar Samir he aur shayad he in 4 kanyao me se koi akkad makkad kar ke uske sath gaanth baandhega !
Sahi he
