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Romance बेडु पाको बारो मासा

blinkit

I don't step aside. I step up.
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धन्यवाद् रिकी भाई, आप का यहाँ होना ही सम्मान की बात है, मेरी पिछली कहानी में आपने मेरा बहुत मान बढ़ाया था, आशा है यहाँ भी आप स्नेहा और साथ मिलेगा।

अभी कहानी की शरुवात भर है देखते है ये कहानी कहा तक पहुँचती है।
 

blinkit

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रास्ते में अंकुश ने समीर को उसकी और तृषा की बातचीत के बारे में थोड़ी जानकारी दे दी थी, दोनों बातें करते करते जनकपुरी स्टेशन पहुंच गए, मेट्रो में ही तृषा का कई बार कॉल आया, वो काफी देर से वेट कर रही थी अंकुश और समीर का।

मेट्रो स्टेशन से बहार आकर अंकुश ने तृषा को कॉल किया तो तृषा ने बताया की वो रिलायंस ट्रेंड मॉल में है और उन दोनों का वेट कर रही है, इससे पहले अंकुश कुछ बोलता समीर ने अंकुश के हाथ से मोबाइल छीन कर कॉल काट दी ।

अंकुश : चूतिया है क्या ? वो अपनी लोकेशन बता आरही थी और तूने कॉल कट कर दी।
समीर : चूतिया मैं नहीं तू है , साले वो हमें रिलायंस ट्रेंड में बुला रही है, वहा केवल शॉपिंग हो सकती है बैठ कर बातें नहीं, और अगर काउंटर पर जा कर उसने बोल दिया की शॉपिंग का बिल पे कर दो तब क्या करेंगे, पहली बार मिल रहे है कही हमारा ही चूतिया ना कट जाये।

अंकुश : बात तो सही है फिर क्या करे ?
समीर : कुछ नहीं, सीधा बोल के सत्यम सिनेमा के नीचे मिल जाये, सत्यम सिनेमा की ही बुल्डिंग में मक्डोनल्ड है, अगर तेरी बंदी ठीक लगी तो
वही बैठ जायेगे, इस टाइम वह भीड़ नहीं होती, और अगर कोई चूतिया बनने वाली लड़की लगी तो वही बाजू में ग्रिल्ड सैंडविच बनता है वही से कुछ खिलाकर टाल देंगे। बोल क्या बोलता है?

अंकुश : परफेक्ट प्लान है , साले तू ये सब सोच कैसे लेता है, मैं तो सीधा वही जाता जहा लौंडिया बुला रही थी।
समीर : क्यूंकि मैं दिमाग से सोचता हूँ तेरी तरह लण्ड से नहीं।

अंकुश : हे हे हे तभी आजतक तूने अपने लण्ड को कुंवारा रखा हुआ है, कुछ इसका भी धयान कर ले इसकी भी प्यास बुझवा
समीर : प्यास भी बुझ जाएगी जब समय होगा तब फिलहाल तू कॉल कर और जो समझाया है वो बोल उसको।

अंकुश ने समीर के बताये अनुसार ही उनको अपनी लोकेशन समझायी और उन्हें सत्यम सिनेमाज के नीचे मिलने के लिए बुला लिया।
कॉल कट होने के बाद समीर अंकुश का हाथ खींच कर थोड़ी दूर पर बने एक स्टाल पर ले गया और वह से एक पानी की बोतल ले कर वही खड़ा गया।

अंकुश : चल भाई, सिनेमा के नीचे खड़े होते है
समीर : तू पानी पि पहले और मैं भी पि लू फिर चलते है

अंकुश : अबे पानी तो वहा भी पि सकते है
समीर : ठीक है तू वही पि लेना मुझे तो यही पि लेनेदे

समीर अंकुश से मसखरी करता हुआ धीरे धीरे पानी पीता रहा, वो जान बुझ कर समय बर्बाद कर रहा था, उसे मालूम था की अंकुश लड़कीबाजी के चक्कर में पगलाया रहता है, वो डायरेक्ट उन लड़कियों से मिलने से पहले उनको दूर से एक नज़र देख लेना चाहता था, अंकुश बेसब्रा हो रहा था लेकिन समीर कुछ न कुछ बहाना बना कर उसे टालता रहा। आखिर दस मिनट के इन्तिज़ार के बाद दूर से उसे तीन लड़किया एक साथ आती नज़र आयी, तीनो लगभग एक ही उम्र की थी, समीर को उन लड़कियों की चाल में एक झिझक नज़र आयी, उनमे से एक लड़की जो एक दम क्यूट और कांच की गुड़िया जैसे थी वो कुछ ज़ायदा ही झिझक रही थी, मानो वो आना न चाहती हो लेकिन ज़बरदस्ती करने पर साथ आयी हो, दूसरी लड़की जो एक दम गोरी भक थी और छरहरे शरीर की मालिक थी वो भी झिझक रही थी लेकिन थोड़ा कम, जो लड़की सबसे आगे थी वो बोल्ड मालूम होती थी, वो एक दम बिंदास अंदाज़ में उन दोनों लड़कियों का नेतृत्व कर रही थी। समीर ने अंदाज़ा लगा लिया था की वही तृषा होगी और ये दोनों लड़किया उसकी सहेलियां है।

अंकुश ने भी उनको देख लिया था और अब वो बेचैनी से उनकी ओर जाना चाहता था लेकिन समीर ने अंकुश का हाथ तब तक नहीं छोड़ा जब तक की उसके मोबाइल पर तृषा की कॉल नहीं आगयी, समीर ने दूर से ही तृषा को कॉल मिलते हुए देख लिया था, उसका अंदाज़ा एकदम सही था उस ग्रुप की लीडर वही थी। समीर ने अंकुश का हाथ छोड़ दिया, दोनों चलते हुए लड़कियों के पास जा पहुंचे।

"हमे यहाँ बुला कर कहा भाग गए थे तुम दोनों" चहके हुए तृषा ने शिकायत की
"बस आप का वेट करते करते प्यास लग आयी तो पानी लेने चले गए थे " समीर ने झट से बात बनायीं, उसे डर था की कहीं अंकुश कुछ बोल न दे
"हाँ प्यास तो मुझे भी लग रही है " कह कर तृषा ने हाथ बढ़ाया
समीर ने तुरंत पानी की बोतल तृषा को पकड़ा दी, तृषा ने दो घूंट पानी पि कर बोतल समीर की ओर बढ़ा दी लेकिन बीच में ही बोतल अंकुश ने तृषा के हाथ से ले ली।

पानी पी कर तृषा ने सबसे पहले अंकुश की ओर गौर से देखा, अंकुश पांच फुट छह इंच का गोरा चिट्टा और स्मार्ट दिखने वाला लड़का था, फेस एक दम गोल मटोल फरदीन खान के जैसा, वही समीर पांच फुट नौ इंच का पतले शरीर का लड़का था, रंग समीर का भी गोरा था लेकिन ज़ायदा नहीं, समीर में एक मर्दानापन था अंकुश की तुलना में जो उसे एक अलग ही लुक देता था।

"तो तुम हो अंकुश और ये है महान इंसान समीर, ऍम आयी राइट ?" तृषा ने ऐसा बोलकर एक अदा से अपना हाथ आगे बढ़ाया, जिसको अंकुश ने लपक कर अपने हाथो में थाम लिया और गर्मजोशी के साथ हैंडशेक किया।
"वाह तुमने बिलकुल सही पहचाना, मैंने भी तुमको पहचान लिया, तुम तृषा हो" अंकुश बतीसी दिखता हुआ मुस्कुराया

"हाँ बिलकुल ठीक, और ये मेरी फ्रैंड्स है, ये आस्था और ये नीतू" तृषा ने अपनी सहेलियों का परिचय कराया

हैंडशेक के बाद अब अंकुश समीर की ओर देखने लगा, वो जानना चाहता था की अब प्लान के हिसाब से कहा चला जाये, मैक्डोनाल्ड या सैंडविच वाले के पास, मन में अंकुश मना रहा था की समीर मैक्डोनल्स ही चले, क्यूंकि वो इन तीनो लड़कियों को इम्प्रेस करना चाहता था।
समीर अंकुश के मन की बात समझ गया, उसने अंकुश को इशारा किया और फिर वो पांचो मैक्डोनल्स में आकर बैठ गए।

अभी दोपहर नहीं हुई थी और वर्किंग डे था इसलिए आज यहाँ कोई खास भीड़ नहीं थी उन्होंने एक टेबल पसंद की जिस पर ये पांचो आराम से बैठ सकते थे और वह जा कर सबने अपनी अपनी सीट संभल ली

टेबल की एक ओर सबसे पहले अंकुश बैठा फिर तृषा और फिर आस्था, टेबल के दूसरे ओर की सीट समीर ने संभाल ली और उसके बगल में नीतू बैठ गयी, अभी तक तक जायदातर बातचीत अंकुश और तृषा के बीच में ही हो रही थी, तृषा लगभग पांच फुट की थी, रंग साफ़ था लेकिन बहुत गोरी नहीं, नाक नक्शा सुन्दर था लेकिन जो बात उसमे सबसे अलग थी वो थे उसके स्तन। तृषा के स्तन काम से काम चौंतीस साइज के ज़रूर रहे होंगे, इस उम्र में इस साइज के स्तन बहुत काम लड़कियों के होते है, ऊपर से उसने वि गले वाला टॉप डाला हुआ था जिसके कारण उसके बड़े बड़े उभर बहाने से अपने दर्शन करा ही देते थे।

आस्था एक दम गोरी चिट्टी नाज़ुक सी लड़की थी, एक दम क्यूट, छोटी छोटी आंखे और प्यारी सी स्माइल, लेकिन डरी सहमी सी शायद वो पहली बार इस तरह अनजबी लड़को से मिल रही थी। उसका शरीर एक दम परफेक्ट शेप और साइज का था जैसे ईश्वर ने किसी लड़के की प्राथना सुन कर उसे ये रूप दिया हो।

वही तीसरी लड़की थी नीतू, गोरा रंग, लम्बे काले बाल, लगभग पांच फ़ीट हाइट, बड़ी बड़ी सुन्दर काली आँखे, जैसे लड़कपन वाली विद्या बालन। अबसे थोड़ी देर पहले वाली झिझक अब गायब थी और एकदम रिलैक्स हो कर च्विंग गम चबा रही थी
 

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तृषा बातूनी लड़की थी, बैठते ही उसने स्टार्ट ले लिया, जायदातर बात अंकुश और तृषा ही कर रहे थे बाकी समीर, नीतू और आस्था उन दोनों की बकवास सुन कर मज़े ले रहे थे और कभी कभी उनकी किसी बात को सुन कर मुस्कुरा देते, तृषा अंकुश से बातें करते करते समीर की ओर भी नज़र दौड़ा लेती थी, समीर अब थोड़ा बोर होने लगा था, लेकिन चुपचाप बैठा रहा।

कुछ देर बाद तृषा समीर की ओर सम्बोधित हुई

"और महान इंसान आपके क्या हाल है " उसने मज़ाकिया अंदाज़ में समीर से पूछा
"मैं तो एक दम ठीक हूँ, तुम देख ही सकती हो ? वैसे तुम मुझे बार बार महान इंसान क्यों बुला रही हो ?" समीर ने सवाल किया

"क्यूंकि तुम हो ही महान, इसलिए कहा " तृषा का जवाब आया
"पता नहीं तुम ऐसा क्यों बोल रही हो, मैं सच में नहीं समझ पाया" समीर कंफ्यूज था

तृषा अब नीतू और आस्था की ओर सम्बोधित हुई
"नीतू तुझे पता है ना मैं समीर को महान इंसान क्यों बोल रही हूँ ?"

"नहीं यार मुझे नहीं पता, तू ही बता दे" नीतू ने कंधे उचकाए

"अच्छा तो फिर सुनो, बात ये है की जिस दिन हमारा मैथ्स का प्रीबोर्ड था उस से पहले वाली रात को मैं पढाई कर रही थी, लेट नाईट में
मुझे कुछ कन्फूज़न हुई तो मैंने तेरा फ़ोन मिलाया, गलती से फ़ोन इन महाशय का लग गया, कोई बात नहीं इन्होने फ़ोन नहीं उठाया, अगले दिन इनका फ़ोन आता है मेरे पास दिन में, की आपने कॉल किया था, मैंने कहा हां किया था, इसने बड़ी इज़्ज़त से पूछा मैडम आप कौन है, मैडम सुन कर मुझे गुस्सा आगया तो मैंने बोल दिया की रात में कहा थे, रात में फ़ोन उठाते तो बताती अपना नाम "

" फिर ?" नीतू ने जिज्ञासा दिखाई
"फिर क्या, इन महाशय का जवाब था, सो रहा था, शरीफ इंसान रात के तीन बजे सो रहे होते है "
मुझे इतना गुस्सा आया इसका जवाब सुनकर, इसका मतलब ये शरीफ इंसान है और मैं बदमाश" तृषा बोलते बोलते तमतमा गयी थी

"और आगे सुनो, जब मैं बहस करने लगी तो इस महान इंसान ने महानता दिखते हुए अपना फ़ोन अंकुश को पकड़ा दिया " तृषा ने चिड़े हुए अंदाज़ में कहा

"लड़के तो मरते रहते है किसी सुन्दर लड़की से बात करने के लिए और ये यहाँ बात करने से बच रहा था, तो बताओ अगर मैं इसको महान इंसान बोल रही हो तो कौन सा गलत कर रही हूँ " तृषा ने अपने मन की भड़ास निकली

"अरे तुम बेकार में बुरा मान रही हो, ये ऐसा ही है शुरू से, उल्लू है उल्लू " अंकुश ने बात ख़तम करने की कोशिश की
"अरे तो मैंने गलत क्या किया, मैं सो रहा था तो यही तो बोलूंगा की सो रहा हूँ, अब रात के तीन बजे कौन जागता है? और फिर तुम बात बढ़ा रही थी तो मैंने फ़ोन अंकुश को इसलिए दे दिया क्यंकि उसको एक्सपेरिस है लड़कियों से बात करने का, मुझे नहीं है " समीर ने भी अपनी सफाई दी।

"अरे तो इसमें इतना बुरा माने की क्या बात है, हो जाता है, तू क्यों इतनी खिचाई कर रही है समीर की " खामोश बैठी आस्था ने समीर का बचाव किया, उसे समीर पर तरस आरहा था

"अरे मैं बुरा नहीं मान रही यार, फ़ोन पर इसकी आवाज़ सुनके अच्छा लगा था तो जान भूझ कर बात लम्बी खींच रही थी लेकिन इसने भाव ही नहीं दिया बस इसी बात का मलाल है , और तू क्यों फेवर ले रही है इस समीर के बच्चे का " तृषा ने आँख मारते हुए कहा

तृषा की मसखरी पर सब मुस्कुरा दिए।

कुछ देर में समीर ने उनसे आर्डर के बारे में पूछा और सीट से उठ गया, अंकुश अपनी सीट पर बैठा रहा, अब उसने अपनी लच्छेदार बातों में तीनो लड़कियों को उलझाना शरू कर दिया था, समीर ने सब के लिए आर्डर किया और वही एक साइड में खड़ा होकर आर्डर का इंतज़ार करने लगा।

आर्डर पांच ट्रे में लगा था, समीर दो ट्रे तो उठा लाया और टेबल पर रख दी, उसे तीन ट्रे और लानी थी, उसने अंकुश को चलने के लिए कहा, इस से पहले अंकुश कोई जवाब देता आस्था अपनी सीट से खड़ी हो गयी और समीर के साथ चल दी ।

समीर ने २ ट्रे खुद संभाली और एक ट्रे आस्था को पकड़ा दी, दोनों साथ साथ चलते हुए टेबल के पास पहुंचे, दोनों ने देखा की तृषा ने अंकुश से कुछ कहा और फिर वो दोनों खिलखिला कर है पड़े, नीतू भी मुस्कुराकर उनका साथ दे रही थी।

"क्या बोल रही तू हमारी ओर देख कर ?" आस्था ने ट्रे टेबल पर रखते हुए तृषा पूछा
"कुछ नहीं बस ऐसे ही मज़ाक कर रहे थे ?" झट से अंकुश का जवाब आया

"नहीं कोई तो बात थी जो तुम दोनों हमारी ओर देख कर कमेंट मार रहे थे " आस्था को जिज्ञासा हो चली थी
"अरे कुछ नहीं यार, मैं तो अंकुश को बोल रहा थी की ऐसा लग रहा है की हम बच्चे है और तुम दोनों जिम्मेदार माँ बाप जो हमारे लिए खाना ले कर आरहे हो " तृषा बोल कर फिर से खिलखिला कर है पड़ी

आस्था ने समीर की ओर नज़रे उठा कर देखा और शर्मा कर नज़रे नीची कर ली, उसके होंटो पर एक प्यारी सी मुस्कान थी, शर्म की लाली से उसके गाल गुलाबी होने लगे थे।

समीर ने बात बदलते हुए सबको खाना स्टार्ट करने के लिए कहा और खुद बर्गर का रेपर खोल कर बर्गर खाने लगा, लगभग आधे घंटे तक उन सबने खूब बातें की और एक दूसरे को छेड़ते रहे, उनको देख कर कहीं से भी लग रहा था की ये आज पहली बार एक दूसरे से मिल रहे थे।

खाने का बाद बहुत देर तक वो जनकपुरी की मार्किट घूमे फिर और जब शाम का समय होने लगा तब उन पांचो ने एक दूसरे से विदा ली, जाते जाते तृषा ने समीर बताया की अगर उसे आस्था पसंद है तो वो उसकी सेटिंग करा सकती है क्यूंकि उसके विचार से आस्था को भी समीर पसंद आया था। समीर ने बात हंस कर टाल दी।

घर वापिस आकर समीर सोफे में पसर गया सुबह से घूम घूम कर वो थक गया था, उसने जेब से मोबाइल निकल कर टेबल पर रखा और आंख बंद कर रिलैक्स करने लगा, तभी उसके मोबाइल पर एक छोटी सी मिस कॉल आयी, समीर फ़ोन उठाया और फ़ौरन वापिस कॉल मिलाया, उधर से भी फ़ोन झट से उठ गया

"हेलो बेबी " उधर से किसी लड़की ने कहा
"ओह्ह हाय जानेमन " समीर ने जवाब दिया

"बहुत बुरे हो आप" लड़की ने शिकायत की
"क्यों मैंने क्या किया "समीर ने मासूमियत से पूछा

"मैंने पुरे दिन कितना मिस आपको लेकिन आपने मुझे एक एसएमएस तक नहीं किया " लड़की ने मीठी शिकायत की
"ओह्ह सॉरी बेबी, आज थोड़ा बिजी हो गया था अंकुश के चक्कर में इसलिए टाइम नहीं मिल पाया " समीर ने सफाई दी

"ओह्ह उस बहनचोद के चक्कर में क्यों पड़ते हो आप? एक नंबर का ठरकी है वो "
"अरे नहीं बेबी उसको थोड़ा काम था इसलिए चला गया था, छोड़ो उसकी बात तुम बताओ कैसी हो "

"कुछ नहीं बस अपने नोना बेबी को मिस कर रही हूँ " लड़की ने रोमांटिक स्वर में कहा
"ओह्ह बेबी आयी मिस यू तू " समीर ने भी उसी स्वर में जवाब दिया

"हम्म बेबी इस सैटरडे को मिल रहे है ना हम "
"हाँ बेबी, बताओ कहा चलना है ?"

"कहीं नहीं चलना है, बस मैं सुबह में आजाऊंगी और फिर हम दोनों सारा दिन बिस्तर में घुसे रहेंगे " लड़की ने उत्तेजना भरे स्वर में कहा
"पक्का बेबी, मैं सैटरडे को तुम्हारा इन्तिज़ार करूँगा " समीर ने भी उतावले स्वर में जवाब दिया

"हाँ आप एक दिन पहले ही सारा काम करके रखना, मैं नहीं चाहती उस दिन कोई हमें डिस्टर्ब करे, खास तौर से आपका कमीना पडोसी " लड़की के स्वर में कटुता थी
"फ़िक्र मत करो बेबी मैं सब सेट करके रखूँगा, बस तुम टाइम पर आजाना "

"वो आप चिंता मत करो, अच्छा सुनो कंडोम है ना आपके पास ?"
"हाँ बेबी है "

"आप चेक कर लो एक और बार, काम से काम चार होने चाहिए, इस बार काम से काम चार बार चुदवाूँगी, पिछली बार तीन ही कंडोम थे, आप एक काम करो दस वाला पैकेट लेकर रख लो, हमारा ३ वाले से गुज़ारा नहीं होगा "
"ओह्ह तुम चिंता मत करो बेबी, मैं पहले ही लेक रखा हुआ दस वाला, मैं अपने लिए नहाने का साबुन लेने गया था तो तभी एक दस वाला पैकेट ले लिया था "

"ओह्ह गुड, समझदार हो गए हो, कौन सा लिया ?"
"इस बार डुरेक्स लिया है डॉटेड, सेफ भी मज़ा भी"

"हाँ सुना है डुरेक्स अच्छा होता है। "
"हाँ इंटरनेशनल ब्रांड है, तुम्हे पता है ना इस मामले में कोई रिस्क नहीं लेना चाहता, सस्ते के चक्कर में कोई बेकार का पन्गा न हो जाये "

"हाँ जानती हूँ की आपको मेरी चिंता है, तभी तो अपना सबकुछ आपके हवाले कर दिया है " उसकी आवाज़ में ढेरो प्रेम था
"आयी लव यू सुनहरी, आयी लव यू सो वैरी मच " समीर की आवाज़ में दुनिआ भर का प्रेम था।

" आयी लव यू तू समीर, अच्छा बाई, मैं जा रही है मुम्मा आगयी है, कल बात करते है"।
"बस एक मिनट बेबी, जाते जाते एक किस तो दे जाओ " समीर ने गुज़ारिश की

"मुआहहह मेरी जान, आज ये ले लो, बाकी सैटरडे को जहा जहां की मांगोगे सब दे दूंगी, अब रखो फ़ोन जल्दी से, बाई "
इतना कह कर सुनहरी ने फ़ोन कट कर दिया।

समीर ने फ़ोन को एक और रख कर सोफे पर पसर गया।

समीर सोफे पर लेता लेता सुनहरी के हसीं सपनो में खो गया, पिछले दो साल से समीर और सुनहरी का प्रेम प्रसंग चल रहा था, दोनों को एक दूसरे से बेपनाह प्यार था, दिन का खली टाइम दोनों एक दूसरे बात करते गुज़रते थे और लगभग हर शनिवार को पुरे हफ्ते की भड़ास चुदाई करके निकलते थे, दोनों चुदाई के पक्के खिलाडी थे, पिछले दो साल से एक दूसरे को चोद रहे थे लेकिन फिर भी एक दूसरे को देखकर ऐसे टूट पड़ते जैसे जन्मो के बिछड़े हो।

दोनों चुदाई में पक्के तो थे ही साथ ही छुपाने में भी माहिर थे, दो साल साल से इश्क़ और चुदाई का खेल खेल रहे थे लेकिन क्या मजाल जो किसी को कानो कान भनक लगने दी हो, इतनी महारत से उन्होंने अपने प्रेम को छुपा के रखा था की अंकुश जैसा घाघ इंसान भी अंदाज़ा नहीं लगा पाया था।

समीर और सुनहरी ने तय कर लिया था की जैसे ही समीर की दीदी की शादी हो जायगी दोनों अपने माँ बाप से बात करके शादी कर लगे, समीर ने तय कर लिया था की सुनहरी ही उसका पहला और आखिरी प्यार है, यही कारन था की उसे दूसरी लड़कियों में कोई इंट्रेस्ट नहीं था, समीर अंकुश की तरह खिलेंद्र किस्म का इंसान नहीं था, उसका उसका तो ये पक्का निर्णय था की जिस से प्यार किया उसी से शादी और उसी के साथ जीवन का अंतिम पल।
 
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उस दिन की मुलाकात के बाद समीर की तृषा से दो चार बार बात हुई लेकिन समीर की ओर से कोई खास रिस्पांस ना देख कर धीरे धीरे तृषा ने भी कॉल करना छोड़ दिया। इस घटना के लगभग तीन महीने बाद एक दिन अचानक तृषा का कॉल आया, समीर ने कॉल पिक किया

"यार समीर कहा है तू " तृषा ने सीधे सीधे सवाल किया
"घर पर हूँ, क्यों क्या हुआ?"

"यार आज अंकुश को मिलना था हमसे लेकिन वो फ़ोन नहीं उठा रहा है, क्या तू बात करा देगा उस से " तृषा थोड़ा झल्लायी हुई थी
"मैं करा तो देता लेकिन अंकुश तो आज सुबह ही अपने होम टाउन चला गया, उसे कुछ काम था " समीर ने बताया

"कब गया वो कमीना, और कहा गया है वो ?"
"वो आगरा का है, तो आज सुबह की ट्रैन से चला गया अब तक पहुंच भी गया होगा "

"अरे यार उसने फसा दिया मुझे" तृषा झुंझलाई
"हुआ क्या है ? क्या मैं जान सकता हूँ ?" समीर ने जानना चाहा

"अरे यार, आज एडमिशन के लिए डाक्यूमेंट्स और बैंक ड्राफ्ट जमा करना था उनिवेर्सिटी में, अंकुश ने बोला था की वो ड्राफ्ट बनवा देगा और मुझे यहाँ कॉलेज में दे देगा आज, अब मैं उसका वेट कर रही हूँ तो फ़ोन नहीं उठा रहा है। "

"तो अब तुम्हे अंकुश चाहिए या ड्राफ्ट " समीर ने तृषा को छेड़ा
"यार ड्राफ्ट मिल जाये तो फिर उस कुत्ते अंकुश की शकल भी नहीं देखूंगी " तृषा ने चिढ़ते हुए कहा

"okay तुम ड्राफ्ट की डिटेल्स मेरे इसी नंबर पर sms करो, मैं कुछ कोशिश करता हूँ"

समीर का बिज़नेस अकाउंट था बैंक में इसलिए ज़ायदा टाइम नहीं लगा और उसका ड्राफ्ट बन गया, लगभग एक घंटे बाद उसने तृषा को कॉल किया और बताया की उसका ड्राफ्ट रेडी है, तृषा ख़ुशी से झूम उठी, लेकिन अब समस्या ये थी की अगर वो समीर से ड्राफ्ट लेने मयूर विहार आती और फिर कॉलेज जाती तब तक बहुत टाइम लग जाता और काउंटर बंद हो जाता, इसका भी समाधान समीर को ही करना पड़ा और ड्राफ्ट लेकर वो तृषा के पास उसके कॉलेज जा पंहुचा, काउंटर बस बंद ही होने वाला था, तृषा और आस्था दोनों ने एक ही कॉलेज में एडमिशन लिया था, आस्था अपना ड्राफ्ट घर से ले कर आयी थी तो उसका काम हो चूका था, जब तक तृषा फॉर्म सुब्मिशन की लाइन में थी तब तक समीर और आस्था ने आपस में बातचीत करके के अपना टाइम गुज़ार लिया।

आस्था के पिता जी एक बड़ी कंपनी में अकउंटेंट थे, उनका परिवार असम का था लेकिन पिछले बीस पच्चीस सालो से उनका परिवार दिल्ली में रह रहा था इसलिए उसकी भाषा और रहन सहन बिल्कुल दिल्ली वाला ही था, आस्था जितनी खूबसूरत थी उतना ही उसका बोलने का तरीका, बिलकुल किसी मासूम बच्चे के जैसे धीरे धीरे मिठास के साथ बात करती थी, किसी को भी हैरत हो सकती थी की इतना मृदु बोलने वाली लड़की और तृषा जैसी पटाखा की दोस्त कैसे हो सकती है,

थोड़ी देर में ही फ्री होने के बाद वो तीनो कॉलेज के बहार आये, समीर ने अपनी बाइक बहार ही खड़ी की हुई थी, बाइक देख कर तृषा की आँखे चमक गयी

"समीर ये बाइक किसकी है ?"
"ये बाइक मेरी ही है, क्यों क्या हुआ "

"अरे यार ये CBZ है ना, एक दम मस्ती लगती है मुझे, एक काम कर तू हमे बाइक से ही हमारे घर पंहुचा दे। "
"ठीक है इसमें कौन सी बात है, पंहुचा दूंगा, बैठो तुम दोनों "

समीर ने बाइक निकली और बाइक स्टार्ट करके बैठ गया, उसके पीछे तृषा बैठी और तृषा के पीछे आस्था, ये उस समय की बात है जब CBZ का पहला मॉडल आया था और उसकी सीट गहरी हुआ करती थी, तृषा जब समीर के पीछे बैठी तो उसके भाड़ी चूतड़ समीर और सीट के बीच में फस गया और उसके पीछे ऊँचे वाली हिस्से पर आस्था बैठ गयी, बाइक पर तीन लोग होने के कारण तीनो एक दूसरे से चिपक कर बैठे थे, तृषा की भड़ी भरकम चूचिया समीर की पीठ से चिपकी हुई थी। समीर ने इन सब पर ज़ायदा धयान नहीं दिया और बाइक स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी।

रास्ता समीर का देखा हुआ था और उनदिनों आजकल के जैसा ट्रिफिक भी नहीं हुआ करता था और न पुलिस की इतनी धर पकड़, इसलिए समीर आराम से उनको लेकर जनकपुरी तक आगया,

"यही तक या और कही जाना है तुम दोनों को "
"अरे यहाँ नहीं, यहाँ से थोड़ा आगे, पालम सुना है वही रहते हम, जब यहाँ तक ले आया है तो वहा तक भी ड्राप कर दे " तृषा ने अपने चूचियों का दबाव समीर की पीठ पर डालते हुए कहा "

"हाँ मालूम है मुझे पालम का रास्ता, कोई नहीं मैं ड्राप कर दूंगा "
"थैंक यू Mr Sheerf इंसान " कहते हुए तृषा ने समीर का कन्धा थपथपाया

समीर ने बाइक पालम की ओर मोड़ दी और थोड़ी देर में ही उसने दोनों के पालम के बस स्टैंड पर ड्राप कर दिया, दोनों ने समीर का बहुत धन्याद किया, खास तौर से तृषा ने,आखिर आज उसका फॉर्म समीर के कारण ही सब्मिट हो पाया था, समीर भी उनको ड्राप कर जल्दी से फुर्र हो गया क्योंकि उसको सुनहरी को कॉल करना था, सुनहरी कई बार समीर को मिस कॉल कर चुकी थी।

समीर के जाने के बाद तृषा और आस्था अपने घर की ओर चल दी, उन दोनों का माकन आमने सामने था, लेकिन उस से पहले नीतू का माकन पड़ता था, इसलिए दोनों नीतू के घर चली गयी, नीतू अपने रूम में थी इसलिए उसकी मम्मी को नमस्ते करके वो दोनों सीधा नीतू के रूम में घुस गयी।

नीतू बिस्तर में पसरी एक मागज़ीने के पन्ने पलट रही थी, उन दोनों को देख कर झट से उठ कर बैठ गयी।

"कहा से आरही हो तुम दोनों ?" नीतू ने उन दोनों को एक साथ देख कर पूछा
"अरे कॉलेज गए थे एडमिशन के लिए, बताया तो था तुझे, तेरा तो एडमिशन तेरी दीदी ने करा दिया लेकिन हमे खुद जाना पड़ा " तृषा ने टोंट मारा

अरे तो मेरा कॉलेज अलग है और तुम्हारा अलग, और दीदी ने वही से अपनी ग्रेजुएशन की है तो सारा स्टाफ जनता है दीदी को तो आसानी से काम हो गया " नीतू ने सफाई दी
"हाँ भाई बड़े लोग, लेकिन कोई बात नहीं हमारा भी हो गया एडमिशन, फॉर्म सबमिट होगया "

"वाह, ये तो अच्छा हुआ, तो अब इस ख़ुशी में पार्टी हो जाये, तुम दोनों की तरफ से " नीतू ने छेड़ा
"हाँ ले ले पार्टी, लेकिन आज नहीं, दो तीन दिन के बाद का कोई प्लान बनाते है, हम तीनो और समीर "

"कौन समीर ? वो उस दिन मक्डोनल्ड वाला "
"हाँ वही शरीफ इंसान " तृषा बोल कर हंस पड़ी

"मतलब हम पांचो फिर से घूमने चलेंगे " अबकी बार आस्था ने पूछा
"जी नहीं केवल चार, उस कुत्ते अंकुश को नहीं बुलाऊंगी मैं "

"क्यों क्या हुआ ? उस दिन तो तेरी बहुत बन रही थी अंकुश के साथ" नीतू ने कुरेदा
"अरे उस कुत्ते के कारण ही आज मेरा एडमिशन अटक गया था, वो तो भला हो समीर का जो ड्राफ्ट बनवा लाया और टाइम से पंहुचा भी दिया कॉलेज तक नहीं तो आज लंका लग जाती "

"हाँ ये बात तो सही है तृषा, समीर ने बहुत हेल्प की तेरी और हमें यहाँ तक पंहुचा कर भी गया, वाकई में वो शरीफ ही है " आस्था ने तृषा की हाँ में हाँ मिलाया

"ओह्हो तुझे बड़ा प्यार आ रहा है समीर पर, हेल्प उसने मेरी की और अच्छाई तुझे नज़र आरही है, चल कोई ना जा तुझे समीर गिफ्ट किया, जा सिमरन जा जी ले अपनी ज़िन्दगी अपने समीर के साथ" तृषा ने फिल्मी डायलाग मारा
"अरे तो अब अच्छे को अच्छा भी न बोलू" आस्था शर्माती हुई बोली, आस्था को शर्माता देख कर तृषा और नीतू खिलखिला कर है पड़ी

तीन ने ऐसे ही बहुत देर तक वहा बैठ कर चुहलबाजियां की और फिर अपने अपने घर की ओर निकल गयी।
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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आपके हिसाब से तो ये कहानी नीतू की होनी चाहिए, और हीरो तो एब्वियसली समीर ही है। फिर ये आस्था से ज्यादा बात, और ये नई चिड़िया कौन आ गई।
 

blinkit

I don't step aside. I step up.
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आपके हिसाब से तो ये कहानी नीतू की होनी चाहिए, और हीरो तो एब्वियसली समीर ही है। फिर ये आस्था से ज्यादा बात, और ये नई चिड़िया कौन आ गई।
bas bhai dekhte hai zindagi kya khel khelti hai, dekhna rahega ki taar kaise aik dusre se judte hai

aap ke cooment ka shukriya
 

blinkit

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Congratulations bhai nai kahani ke liye bohot saari 🥳🥳🙏
Ummid hai ki yeh kahani bhi pahle wali ko tarah jabardast aur Lazawab ho(kyuki saari kahani ek raat mein kar di thi maine, bohot hi bhadiya kahani thi👌👌😍 )
Aur haa ek jaruri baat yeh puchna tha ki, kya yeh kahani bhi picchle wali ki tarah iski bhi reality ending rahegi kyuki agar aisa hua toh maafi chahunga kyuki tab main nai padh paaunga iss kahani aage kyuki uss pehle wale kahani ko jab poora padha tha, sahi bata raha hu ek do mahine tak dimag mein uske characters ghumte rahe the aur apni panauti zindagi se relate hone lage the characters(jaise hero, heroine aur heroine ki maa ke jaisi kismat thi teeno ki) isiliye request hai ki agar happy ya reality ending agar hai toh pahle hi bata dena kyuki phir se waisi feeling se nai gujarna chahta kyuki apni toh lagi hui hai aur upar se jo kahani ke characters padhke apna mann bahlate hai unke saath bhi bura ho ya fir satisfactory na ho toh aur bhi bura lagta,isiliye ek reader ke naate bas request hi kar sakta hu,please.🙏🙏🙏

Thank You red devil brother, abhi end plan nahi kiya hai, dekhte hai ye story kaise progress karti hai usi ke according ending hogi.
jaisa maine pahle bhi kai comments ke reply me bhi likha ki main koi writer nahi hoon, bus koi ghtna ya baat janam leti hai dimag me ya kisi news me padhkar to us ghatna ko yaha likhne ki koshish kar deta hoon.

pichli kahani ke karan aapko jo kasht hua uske liye chhama, baki mujhe jaise nausikhiye ke liye aapka comment kisi award ke jaisa hai, fir bhi agar meri pichli kahani ki ending se aap ko dukh hua hai to mere pass us kahani ka Happy ending bhi hai, agar kabhi samay mila to main us kahani ka ek alternate ending aapke liye zarur likh dunga, usme aik chhota sa reveal bhi hai, mujhe asaha hai ki aap ko pasand aayega.

us kahani me samir aik mature 35-36 saal ka vyakti hai isliye thoda gambheer hai, saath hi chandrma par itne dukh aaye ki wo bhi kam umar me maturity ka bhaar apne kandho par le baithi. is kahani me adhiktar yuva charectors hai, isliye ye kahni abhi tak vibrent bani hui hai, dekhte hai kahani aage badhne ke saath kya hota hai.

aasha hai ki aapka saath bana rahega.
 

red_devil_98

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Thank You red devil brother, abhi end plan nahi kiya hai, dekhte hai ye story kaise progress karti hai usi ke according ending hogi.
jaisa maine pahle bhi kai comments ke reply me bhi likha ki main koi writer nahi hoon, bus koi ghtna ya baat janam leti hai dimag me ya kisi news me padhkar to us ghatna ko yaha likhne ki koshish kar deta hoon.

pichli kahani ke karan aapko jo kasht hua uske liye chhama, baki mujhe jaise nausikhiye ke liye aapka comment kisi award ke jaisa hai, fir bhi agar meri pichli kahani ki ending se aap ko dukh hua hai to mere pass us kahani ka Happy ending bhi hai, agar kabhi samay mila to main us kahani ka ek alternate ending aapke liye zarur likh dunga, usme aik chhota sa reveal bhi hai, mujhe asaha hai ki aap ko pasand aayega.

us kahani me samir aik mature 35-36 saal ka vyakti hai isliye thoda gambheer hai, saath hi chandrma par itne dukh aaye ki wo bhi kam umar me maturity ka bhaar apne kandho par le baithi. is kahani me adhiktar yuva charectors hai, isliye ye kahni abhi tak vibrent bani hui hai, dekhte hai kahani aage badhne ke saath kya hota hai.

aasha hai ki aapka saath bana rahega.
Dukh jara bhi nai hua tha writer bhai😅, bas teeno character ke andar apni zindagi ke kuch lamhe dikh gaye the jinko main bhulana hi chahta hu.

Ending se mujhe koi problem nai hai kyuki ending perfect thi teeno ke liye uss waqt moment happy aur sad dono tha lekin teeno ke liye future ke liye ummid ki ek kiran thi jo zindagi jeene ka sabse important point bolo ya hissa hai jo ek tarah se happy ending bhi thi teeno ke liye.

Aur writer bhai aisa mat bolo ki tum writer nai ho yeh apman hoga mere respect ka jo tumhare liye picchle kahani ko padh kar aayi hai kyuki pahle hi kaha tha tumhari kahani sirf kahani nai hai mere
Iiye ek sabak, ek tajurba, ek jaani pechani ehsaas hai apne khud ke life experience ke , bhale hi tumko lage ki main kuch overreact kar raha hu😅😅 lekin yeh kahani mere liye perfect thi,hai aur rahegi.
 
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आप के दूसरी स्टोरी के लिए हार्दिक शुभकामना ।

इस स्टोरी मे भी आपने वही शमां बांधा है जो आपने अपनी पहली स्टोरी मे किया था । लेकिन कुछ फर्क भी आया है और वह है पहले से भी आपकी अच्छी पकड़ देवनागरी लिपि पर ।
इस स्टोरी मे जिस तरह आपने दिल्ली शहर के आसपास जगहों का जिक्र घटनाक्रम के अनुसार किया है वह बहुत ही बेहतरीन है । द्वारका , पालम , जनकपुरी , इंद्रप्रस्थ , आनंद विहार जैसे जगहों पर केंद्रित स्टोरी परफेक्ट रियलिस्टिक का आभास कराता है ।

शुरुआत कुछ वर्ष पूर्व के एक घटनाक्रम से हुई जहां कमसिन उम्र की एक लड़की निष्ठा चौहान एक शराबी और रेपिस्ट से खुद को बचाती है और एक मैच्योर पुरुष विनीत कपूर उसे अपनी कार मे लिफ्ट देता है ।
इसके बाद स्टोरी के किरदार बदल जाते है और स्टोरी की विषय वस्तु भी चेंज हो जाती है ।

समीर एक मध्यमवर्गीय और संघर्षशील नवयुवक है जो इस स्टोरी का प्रमुख नायक प्रतीत होता है । शायद यह कहानी उसी के इर्द-गिर्द चलेगी । और जहां तक नायिका की बात है तो उसके दावेदार कई किरदार है । वैसे मुझे आस्था सबसे मजबूत दावेदार लगती है लेकिन सुनहरी , तृषा और नीतू का रोल्स भी काफी दमदार होना चाहिए।

अंकुश एक बेपरवाह , स्वछंद और प्ले ब्वाय के किरदार मे है । उसके लिए औरत एक सेक्स की वस्तु है जबकि समीर की सोच अंकुश के बिल्कुल अलग है । वह उस लड़की को अपना जीवन संगिनी बनाना चाहता है जो लगभग दो साल से उसका बिस्तर गर्म कर रही है ।
देखते है अपने इर्द-गिर्द मंडरा रही ऐसी खुबसूरत और हाॅट हसीनाओं के बावजूद भी वह संयम कैसे बनाए रखता है !

मुझे ऐसा भी प्रतीत हो रहा है कि प्रजेंट के किरदार का सम्बंध किसी न किसी रूप से निष्ठा और विनीत कपूर से भी होगा । वो किस रूप मे आयेंगे , यह देखना दिलचस्पी भरा होगा।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग।
 
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