तृषा बातूनी लड़की थी, बैठते ही उसने स्टार्ट ले लिया, जायदातर बात अंकुश और तृषा ही कर रहे थे बाकी समीर, नीतू और आस्था उन दोनों की बकवास सुन कर मज़े ले रहे थे और कभी कभी उनकी किसी बात को सुन कर मुस्कुरा देते, तृषा अंकुश से बातें करते करते समीर की ओर भी नज़र दौड़ा लेती थी, समीर अब थोड़ा बोर होने लगा था, लेकिन चुपचाप बैठा रहा।
कुछ देर बाद तृषा समीर की ओर सम्बोधित हुई
"और महान इंसान आपके क्या हाल है " उसने मज़ाकिया अंदाज़ में समीर से पूछा
"मैं तो एक दम ठीक हूँ, तुम देख ही सकती हो ? वैसे तुम मुझे बार बार महान इंसान क्यों बुला रही हो ?" समीर ने सवाल किया
"क्यूंकि तुम हो ही महान, इसलिए कहा " तृषा का जवाब आया
"पता नहीं तुम ऐसा क्यों बोल रही हो, मैं सच में नहीं समझ पाया" समीर कंफ्यूज था
तृषा अब नीतू और आस्था की ओर सम्बोधित हुई
"नीतू तुझे पता है ना मैं समीर को महान इंसान क्यों बोल रही हूँ ?"
"नहीं यार मुझे नहीं पता, तू ही बता दे" नीतू ने कंधे उचकाए
"अच्छा तो फिर सुनो, बात ये है की जिस दिन हमारा मैथ्स का प्रीबोर्ड था उस से पहले वाली रात को मैं पढाई कर रही थी, लेट नाईट में
मुझे कुछ कन्फूज़न हुई तो मैंने तेरा फ़ोन मिलाया, गलती से फ़ोन इन महाशय का लग गया, कोई बात नहीं इन्होने फ़ोन नहीं उठाया, अगले दिन इनका फ़ोन आता है मेरे पास दिन में, की आपने कॉल किया था, मैंने कहा हां किया था, इसने बड़ी इज़्ज़त से पूछा मैडम आप कौन है, मैडम सुन कर मुझे गुस्सा आगया तो मैंने बोल दिया की रात में कहा थे, रात में फ़ोन उठाते तो बताती अपना नाम "
" फिर ?" नीतू ने जिज्ञासा दिखाई
"फिर क्या, इन महाशय का जवाब था, सो रहा था, शरीफ इंसान रात के तीन बजे सो रहे होते है "
मुझे इतना गुस्सा आया इसका जवाब सुनकर, इसका मतलब ये शरीफ इंसान है और मैं बदमाश" तृषा बोलते बोलते तमतमा गयी थी
"और आगे सुनो, जब मैं बहस करने लगी तो इस महान इंसान ने महानता दिखते हुए अपना फ़ोन अंकुश को पकड़ा दिया " तृषा ने चिड़े हुए अंदाज़ में कहा
"लड़के तो मरते रहते है किसी सुन्दर लड़की से बात करने के लिए और ये यहाँ बात करने से बच रहा था, तो बताओ अगर मैं इसको महान इंसान बोल रही हो तो कौन सा गलत कर रही हूँ " तृषा ने अपने मन की भड़ास निकली
"अरे तुम बेकार में बुरा मान रही हो, ये ऐसा ही है शुरू से, उल्लू है उल्लू " अंकुश ने बात ख़तम करने की कोशिश की
"अरे तो मैंने गलत क्या किया, मैं सो रहा था तो यही तो बोलूंगा की सो रहा हूँ, अब रात के तीन बजे कौन जागता है? और फिर तुम बात बढ़ा रही थी तो मैंने फ़ोन अंकुश को इसलिए दे दिया क्यंकि उसको एक्सपेरिस है लड़कियों से बात करने का, मुझे नहीं है " समीर ने भी अपनी सफाई दी।
"अरे तो इसमें इतना बुरा माने की क्या बात है, हो जाता है, तू क्यों इतनी खिचाई कर रही है समीर की " खामोश बैठी आस्था ने समीर का बचाव किया, उसे समीर पर तरस आरहा था
"अरे मैं बुरा नहीं मान रही यार, फ़ोन पर इसकी आवाज़ सुनके अच्छा लगा था तो जान भूझ कर बात लम्बी खींच रही थी लेकिन इसने भाव ही नहीं दिया बस इसी बात का मलाल है , और तू क्यों फेवर ले रही है इस समीर के बच्चे का " तृषा ने आँख मारते हुए कहा
तृषा की मसखरी पर सब मुस्कुरा दिए।
कुछ देर में समीर ने उनसे आर्डर के बारे में पूछा और सीट से उठ गया, अंकुश अपनी सीट पर बैठा रहा, अब उसने अपनी लच्छेदार बातों में तीनो लड़कियों को उलझाना शरू कर दिया था, समीर ने सब के लिए आर्डर किया और वही एक साइड में खड़ा होकर आर्डर का इंतज़ार करने लगा।
आर्डर पांच ट्रे में लगा था, समीर दो ट्रे तो उठा लाया और टेबल पर रख दी, उसे तीन ट्रे और लानी थी, उसने अंकुश को चलने के लिए कहा, इस से पहले अंकुश कोई जवाब देता आस्था अपनी सीट से खड़ी हो गयी और समीर के साथ चल दी ।
समीर ने २ ट्रे खुद संभाली और एक ट्रे आस्था को पकड़ा दी, दोनों साथ साथ चलते हुए टेबल के पास पहुंचे, दोनों ने देखा की तृषा ने अंकुश से कुछ कहा और फिर वो दोनों खिलखिला कर है पड़े, नीतू भी मुस्कुराकर उनका साथ दे रही थी।
"क्या बोल रही तू हमारी ओर देख कर ?" आस्था ने ट्रे टेबल पर रखते हुए तृषा पूछा
"कुछ नहीं बस ऐसे ही मज़ाक कर रहे थे ?" झट से अंकुश का जवाब आया
"नहीं कोई तो बात थी जो तुम दोनों हमारी ओर देख कर कमेंट मार रहे थे " आस्था को जिज्ञासा हो चली थी
"अरे कुछ नहीं यार, मैं तो अंकुश को बोल रहा थी की ऐसा लग रहा है की हम बच्चे है और तुम दोनों जिम्मेदार माँ बाप जो हमारे लिए खाना ले कर आरहे हो " तृषा बोल कर फिर से खिलखिला कर है पड़ी
आस्था ने समीर की ओर नज़रे उठा कर देखा और शर्मा कर नज़रे नीची कर ली, उसके होंटो पर एक प्यारी सी मुस्कान थी, शर्म की लाली से उसके गाल गुलाबी होने लगे थे।
समीर ने बात बदलते हुए सबको खाना स्टार्ट करने के लिए कहा और खुद बर्गर का रेपर खोल कर बर्गर खाने लगा, लगभग आधे घंटे तक उन सबने खूब बातें की और एक दूसरे को छेड़ते रहे, उनको देख कर कहीं से भी लग रहा था की ये आज पहली बार एक दूसरे से मिल रहे थे।
खाने का बाद बहुत देर तक वो जनकपुरी की मार्किट घूमे फिर और जब शाम का समय होने लगा तब उन पांचो ने एक दूसरे से विदा ली, जाते जाते तृषा ने समीर बताया की अगर उसे आस्था पसंद है तो वो उसकी सेटिंग करा सकती है क्यूंकि उसके विचार से आस्था को भी समीर पसंद आया था। समीर ने बात हंस कर टाल दी।
घर वापिस आकर समीर सोफे में पसर गया सुबह से घूम घूम कर वो थक गया था, उसने जेब से मोबाइल निकल कर टेबल पर रखा और आंख बंद कर रिलैक्स करने लगा, तभी उसके मोबाइल पर एक छोटी सी मिस कॉल आयी, समीर फ़ोन उठाया और फ़ौरन वापिस कॉल मिलाया, उधर से भी फ़ोन झट से उठ गया
"हेलो बेबी " उधर से किसी लड़की ने कहा
"ओह्ह हाय जानेमन " समीर ने जवाब दिया
"बहुत बुरे हो आप" लड़की ने शिकायत की
"क्यों मैंने क्या किया "समीर ने मासूमियत से पूछा
"मैंने पुरे दिन कितना मिस आपको लेकिन आपने मुझे एक एसएमएस तक नहीं किया " लड़की ने मीठी शिकायत की
"ओह्ह सॉरी बेबी, आज थोड़ा बिजी हो गया था अंकुश के चक्कर में इसलिए टाइम नहीं मिल पाया " समीर ने सफाई दी
"ओह्ह उस बहनचोद के चक्कर में क्यों पड़ते हो आप? एक नंबर का ठरकी है वो "
"अरे नहीं बेबी उसको थोड़ा काम था इसलिए चला गया था, छोड़ो उसकी बात तुम बताओ कैसी हो "
"कुछ नहीं बस अपने नोना बेबी को मिस कर रही हूँ " लड़की ने रोमांटिक स्वर में कहा
"ओह्ह बेबी आयी मिस यू तू " समीर ने भी उसी स्वर में जवाब दिया
"हम्म बेबी इस सैटरडे को मिल रहे है ना हम "
"हाँ बेबी, बताओ कहा चलना है ?"
"कहीं नहीं चलना है, बस मैं सुबह में आजाऊंगी और फिर हम दोनों सारा दिन बिस्तर में घुसे रहेंगे " लड़की ने उत्तेजना भरे स्वर में कहा
"पक्का बेबी, मैं सैटरडे को तुम्हारा इन्तिज़ार करूँगा " समीर ने भी उतावले स्वर में जवाब दिया
"हाँ आप एक दिन पहले ही सारा काम करके रखना, मैं नहीं चाहती उस दिन कोई हमें डिस्टर्ब करे, खास तौर से आपका कमीना पडोसी " लड़की के स्वर में कटुता थी
"फ़िक्र मत करो बेबी मैं सब सेट करके रखूँगा, बस तुम टाइम पर आजाना "
"वो आप चिंता मत करो, अच्छा सुनो कंडोम है ना आपके पास ?"
"हाँ बेबी है "
"आप चेक कर लो एक और बार, काम से काम चार होने चाहिए, इस बार काम से काम चार बार चुदवाूँगी, पिछली बार तीन ही कंडोम थे, आप एक काम करो दस वाला पैकेट लेकर रख लो, हमारा ३ वाले से गुज़ारा नहीं होगा "
"ओह्ह तुम चिंता मत करो बेबी, मैं पहले ही लेक रखा हुआ दस वाला, मैं अपने लिए नहाने का साबुन लेने गया था तो तभी एक दस वाला पैकेट ले लिया था "
"ओह्ह गुड, समझदार हो गए हो, कौन सा लिया ?"
"इस बार डुरेक्स लिया है डॉटेड, सेफ भी मज़ा भी"
"हाँ सुना है डुरेक्स अच्छा होता है। "
"हाँ इंटरनेशनल ब्रांड है, तुम्हे पता है ना इस मामले में कोई रिस्क नहीं लेना चाहता, सस्ते के चक्कर में कोई बेकार का पन्गा न हो जाये "
"हाँ जानती हूँ की आपको मेरी चिंता है, तभी तो अपना सबकुछ आपके हवाले कर दिया है " उसकी आवाज़ में ढेरो प्रेम था
"आयी लव यू सुनहरी, आयी लव यू सो वैरी मच " समीर की आवाज़ में दुनिआ भर का प्रेम था।
" आयी लव यू तू समीर, अच्छा बाई, मैं जा रही है मुम्मा आगयी है, कल बात करते है"।
"बस एक मिनट बेबी, जाते जाते एक किस तो दे जाओ " समीर ने गुज़ारिश की
"मुआहहह मेरी जान, आज ये ले लो, बाकी सैटरडे को जहा जहां की मांगोगे सब दे दूंगी, अब रखो फ़ोन जल्दी से, बाई "
इतना कह कर सुनहरी ने फ़ोन कट कर दिया।
समीर ने फ़ोन को एक और रख कर सोफे पर पसर गया।
समीर सोफे पर लेता लेता सुनहरी के हसीं सपनो में खो गया, पिछले दो साल से समीर और सुनहरी का प्रेम प्रसंग चल रहा था, दोनों को एक दूसरे से बेपनाह प्यार था, दिन का खली टाइम दोनों एक दूसरे बात करते गुज़रते थे और लगभग हर शनिवार को पुरे हफ्ते की भड़ास चुदाई करके निकलते थे, दोनों चुदाई के पक्के खिलाडी थे, पिछले दो साल से एक दूसरे को चोद रहे थे लेकिन फिर भी एक दूसरे को देखकर ऐसे टूट पड़ते जैसे जन्मो के बिछड़े हो।
दोनों चुदाई में पक्के तो थे ही साथ ही छुपाने में भी माहिर थे, दो साल साल से इश्क़ और चुदाई का खेल खेल रहे थे लेकिन क्या मजाल जो किसी को कानो कान भनक लगने दी हो, इतनी महारत से उन्होंने अपने प्रेम को छुपा के रखा था की अंकुश जैसा घाघ इंसान भी अंदाज़ा नहीं लगा पाया था।
समीर और सुनहरी ने तय कर लिया था की जैसे ही समीर की दीदी की शादी हो जायगी दोनों अपने माँ बाप से बात करके शादी कर लगे, समीर ने तय कर लिया था की सुनहरी ही उसका पहला और आखिरी प्यार है, यही कारन था की उसे दूसरी लड़कियों में कोई इंट्रेस्ट नहीं था, समीर अंकुश की तरह खिलेंद्र किस्म का इंसान नहीं था, उसका उसका तो ये पक्का निर्णय था की जिस से प्यार किया उसी से शादी और उसी के साथ जीवन का अंतिम पल।