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Incest बेरहम है तेरा बेटा......1

कौन सा पात्र आपको ज्यादा पसदं है।

  • सोनू- कस्तुरी

    Votes: 7 77.8%
  • सोनू- फातीमा

    Votes: 2 22.2%
  • बेचन- शीला

    Votes: 0 0.0%
  • बेचन- सुगना

    Votes: 3 33.3%
  • कल्लू- मालती

    Votes: 2 22.2%

  • Total voters
    9
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Alagsi

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Ek no Manas
बेरहम है तेरा बेटा.....१
अपडेट-----१४




खिड़की से झांकते हुए पाया की, उसका भाई बेचन उसकी औरत शीला को अपनी बाहों में जकड़े हुए उसकी एक चूची को अपने हाथ के मुट्ठी में एक दम से दबोचे हुए था। और शीला छटपटा कर उसे छोड़ने को क रही थी।

अद्भुद नज़ारा था , शीला की उम्र लगभग 55 साल की होगी लेकिन फिर भी इस उम्र में गजब की भरी हुई बदन लिए हुए किसी भी जवान मर्द का पानी निकाल सकती थी।

शीला-- आह.. छोड़िए ना देवर जी, क्या कर रहे हो, आपके भईया अगर आ गए ना तो हम दोनों की खैर नहीं।


बेचन(शीला की चूचियों को मसलते हुए)-- आह भाभी लगता है भईया तुझे कुछ ज्यादा ही मजा देते है... जो तुझे अपने इस देवर पर तरस नहीं आ रहा है.... और कहते हुए शीला की चूचियों को जोर से दबा दिया।

शीला......- आ.......ह, देवर जी, मार डालोगे क्या।
शीला बेचन की बाहों में किसी खिलौने की तरह पड़ी हुई थी, जिसे बेचन बड़े मजे ले ले कर उसकी चूचियां मसल रहा था।



बेचन--- एक बार पुरी नंगी हो जा ..... भाभी , बस एक बार।

शीला की बची खुची जवानी बेचन के इस तरह मसलने से रंग लाने लगी थी, वो जानबूझ कर नाटक कर रही थी।
शीला-- नहीं देवर जी छोड़िए मुझे, ये सब अच्छा नहीं लगता अब इस उम्र में। आपके भईया अगर......
बेचन बीच में ही बात काटते हुए-- अरे भाभी आप तो भईया के उपर ही अटकी पड़ी हो कब से.... तभी बेचन ने शीला की ब्लाउस अपनी उंगलियों में पकड़ जोर से खींच कर फाड़ दिया।
शीला -- हाय री दाईया.... ये क्या किया आपने देवर जी... और अपने दोनों हाथो से अपनी चूचियों को छुपाने लगी।



बेचन,-- क्यू तड़पा रही है भाभी , देख ना तेरी ये मस्त चूचियां देख कर मेरे लंड की क्या हालत हो गई है।

अनायास ही शीला की नजर बेचन के पजामे पर पड़ी जो अब तक वहां पर तम्बू बना था..... ये देख शीला शर्मा गई और अपनी आंखे नीचे कर ली।

बेचन शीला को इस कदर शरमाते देख उसकी हिम्मत बढ़ गई वो झट से खाट पर से उठा और शीला को अपनी बांहों में कस कर दबोच लिया।
बेचन-- क्या हुआ भाभी लगता है पसंद नहीं तुझे?
शीला कुछ बोल नहीं पाई और अपना सर नीचे ही झुका कर रखी रही।

बेचन-- भाभी अब सहा नहीं जाता... निकाल दे अपनी ये साड़ी और बन जा अपने देवर की रखैल...।
शीला ये सुनते ही पूरी की पूरी अंदर तक हिल गई..... उसके जांघो के बीच काफी सा लो से वो झनझनाहट जो आनी बंद हो गई थी, बेचैन के एक शब्द ने उसके बूर को आखिर गुदगुदा ही दिया,,।

शीला-- देवर जी आप जाओ यहां से,
शीला बोल ही रही थी कि उसने नजर उठा कर जैसे ही बेचन की तरफ देखा बेचन ने अपना पायजामा निकाल कर अपना लंड हाथ में ले लिया था और उसे धीरे धीरे आगे पीछे कर रहा था।
६ इंच का लंड देख शीला की जवानी बेकाबू होने लगी, थोड़ा सा शर्म और इज्जत की मारी शीला अपनी नजर झुकाए वहीं खड़ी रही...।

ये देख बेचन की हालत और खराब होने लगी उसका लंड तो पहले से ही उफान मार रहा था। जब से अपनी मां को चोदा था उसने और अब अपनी बिटिया सीमा का बूर खोलने की खुशी उसके तन बदन दोनों को आग लगा रही थी।

बेचन--- अरे भाभी, देख ना मेरा लंड खड़ा है और तू है कि अपनी मुंडी झुकाए खड़ी है।
चल आजा मेरी जान अपने देवर का लंड अपने मुंह में ले के चूस......।

शीला तो मानो जैसे पानी पानी हो गई थी क्युकी आज तक ऐसी बाते उसके मर्द ने भी उससे नहीं करी थी, और लंड चूसने का सुन कर तो तो उसके भोसड़े में तो जैसे तहलका मच गया हो, क्युकी लंड चूसना तो आज तक वो सिर्फ गाली गलौच के समय ही सुनी थी लेकिन कभी चूसा नहीं था।

शीला के लिए लंड चूसने का ये पहला अहेसास था, लेकिन मारे शर्म से वो खुल नहीं पा रही थीं।
शीला ये सब सोच ही रही थी कि तभी बेचन ने आगे बढ़कर उसकी साड़ी के पल्लू को पकड़ लिया और एक झटके में खींचने लगा जिससे शीला चारो तरफ नाचने लगी और उसकी साड़ी देखते देखते ही उसके बदन पर से उतरने लगी......।

शीला--- नहीं देवर जी ऐसा मत करो, ये ग़लत है।
लेकिन बेचन ने आखिर उसकी साड़ी को पूरा उतार ही दिया, अब शीला सिर्फ पेटीकोट में और एक नीले रंग के ब्लाउज में खड़ी थी।
अपनी मोटी मोटी कमर लिए शीला अपनी दोनों हाथो से अपने ब्लाउज के ऊपर हाथ रख उसे छुपाने की कोशिश कर रही थी।

और इधर बेचन शीला की बड़ी बड़ी चूचियां और मोटी गांड़ देख पागल हुए जा रहा था।

बेचन--- आह भाभी, कसम से क्या गांड़ है तेरी, मज़ा आ जाएगा जब तेरी गांड़ में मेरा लंड घुसेगा तो।

शीला ऐसी बाते सुनकर और शर्मा जाती लेकिन उसे ऐसी बातों में मजा भी बहुत आ रहा था।

शीला--- आप बहुत गंदे हो देवर जी, ऐसी गंदी बातें कर के आप को शर्म नहीं आ रही है?

बेचन(अपने लंड को मसलते हुए)---- आह , मेरी शीला रानी.... भईया नहीं करते क्या तुझसे ऐसी बाते?

शीला--- वो तुम्हारी तरह गंदे थोड़ी है, वो ऐसी गंदी बाते कभी नहीं करते।

बेचन ने शीला को फिर से एक बार अपनी बाहों में कस कर भर लिया... और शीला का पेटी कोट उपर उठाते हुए उसके दोनों बड़ी बड़ी चूतड़ों को अपनी हथेलियों में दबोच उसे जोर जोर से मसलने लगा।

शीला--- हाय..... राम, क्या..... आ.... कर रहे हो.... दर्द हो रहा है...। छोड़ दो देवर..... जी।

बेचन--- अरे शीला रानी, तेरी गांड़ हैं ही इतनी मस्त, पता नहीं वो भंडवा मेरा भाई तेरी गांड़ की नथ क्यू नही उतार पाया।

शीला--- आह.... देवर जी...धीरे.... करो।
बेचन-- भईया ने कभी नहीं दबाया तेरी इन मस्त चूतड़ों को?

शीला-- बेचन की बाहों में पड़ी... आह न.... नहीं।
बेचन-- तू चिंता मत कर शीला रानी, अब से तेरी गांड़ की सेवा में करूंगा, तेरी इस मोटी गांड़ में अपना लंड डाल कर खूब तेरी गांड़ करूंगा। क्यू मरवाएगी ना अपनी ये गांड़ मुझसे?

शीला को बहुत ज्यादा शर्म आ रही थी, ऐसी बाते उसके बदन में आग भी लगा रही थी और उसकी शर्म उसे रोक रही थी, वो भी चाहती थी की पूरा खुल कर मजे लू लेकिन गांव की औरतं इतनी जल्दी भला कैसे बेशर्म हो सकती है।

शीला-- आह हटो, आप इतनी गंदी गंदी बात कर रहे हो, मुझे शर्म आती है, आप तो बेशर्म हो कर मेरी मसले जा रहे हो और पूछते हो की।

बेचन- - क्या मसले जा रहा हूं भाभी?
शीला-- आप मसल रहे हो, तो आ....ह, आप को नहीं पता क्या?

बेचन-- मुझे नहीं पता तू ही बता दे ना मेरी , रखैल ।

शीला-- आप मर्द लोग ऐसे ही होते हो.... आह, खुद तो मजे लेते हो औरतों को मसल मसल कर और दर्द की परवाह तो होती नहीं त आप मर्दों को।

बेचन ने शीला के बूर में अपनी दो उंगलियों को घिसोड़ कचकाच पेलने लगा, शीला की बूर पानी उगलने लगी।

शीला--- आह..... अम्मा. हाय री.... देवर जी, ।
बेचन-- तेरी बूर तो पानी छोड़ रही है भाभी, कसम से बहुत कसी कसी लग रही है।
बेचन खड़े खड़े ही , अपनी उंगलियां शीला की बूर में पेले जा रहा था.... और शीला भी मस्त मज़े में अपनी टांगे चौड़ी कर के उंगलियां पेलवाने का मजा ले रही थी।
पूरे कमरे में शीला की सिसकारियों से आवाज़ गूंज रही थी, और शेशन खिड़की से ये नज़ारा देख पागल हो गया था, वो कभी सोच भी नहीं सकता था की उसकी औरत ये सब भी कर सकती है... शीला जिस तरह बेचन की बाहों में खड़ी अपनी दोनों टांगे चौड़ी कर के अपनी बूर बेचन की उंगलियों से पिलवा रही थी, वो नज़ारा ही एक दम मादक भरा था।
शेशन ने अपनी औरत को कभी भी नंगा नहीं देखा था, रात के अंधेरे में ही उस की चूद्दाई कर देता था, और अब तो उसका लंड भी खड़ा नहीं होता।

बेचन--- (उंगलियां पेलते हुए)--- कैसा लग रहा है भाभी, मजा आ रहा है कि नहीं।

शीला--- आह....म.... देवर जी, आप गंदे हो, आह दैया री... कितना अंदर डालोगे अपनी आह उंगलियां.... फाड़ दोगे क्या अपनी भाभी की बूर।

अपनी औरत के मुंह से ऐसी बात सुनकर शेशन का हाल बेहाल हो गया, क्युकी शीला भी ऐसी बाते कर सकती है उसे पता नहीं था।

और इधर बेचन समझ चुका था , की भाभी की बूर अब लंड मांग रही है, और वैसे भी काफी समय हो गया था उसे लगा उसका भाई कभी भी आ सकता है तो जल्दी से पहले चोद लेता हूं बाद में फिर कभी इत्मीनान से इसे चोदूंगा और वैसे भी अब ये मना नहीं करेगी।

बेचन--- भाभी अपना पेटीकोट उठा कर झुक जा, अब तेरी बूर में अपना लंड डालूंगा और चोदूंगा नहीं तो तेरा bhandwa मर्द आ जायेगा।

शीला--- आह, देवर जी नहीं मत करो ना मत चोदो मुझे... लेकिन शीला ने अपनी पेटीकोट को ऊपर सरका कर खाट पकड़ झुक गई....।

बेचन के सामने अब शीला पूरी नंगी बड़ी बड़ी गांड़ थी, और उसकी झांटों से घिरी बूर बेचन के ६ इंच लंड को और कड़क बना रही थी।
बेचन ने समय का तकाज़ा समझ जल्दी से चोदने का फैसला लिया हालांकि वो शीला को और रगड़ना और मसलना चाहता था लेकिन उसे डर था कि कहीं अगर शेसन आ गया तो गड़बड़ हो जाएगा।


बेचन--- आह भाभी, क्या मस्त गांड़ है.... तेरी गांड़ में ही डाल दूं क्या?
शीला अपनी पेटीकोट उठाए अपनी गांड़ बाहर की तरफ निकले झुकी थी कसम से क्या नज़ारा था जिस तरह से एक ५७ साल की औरत अपनी मदमस्त गांड़ खो ले.... अपने देवर के लंड का इंतजार कर रही थी।

शीला--- नहीं... देवर जी उसमे मत डालो... ।
बेचन(फिर से शीला के बूर में उंगलियां डाल)--- तो कहा डालू रानी.... तेरी इस बूर में डालू, बहुत गरम है... देख कैसे पानी चुआ रही है मेरे लंड के लिए।

शीला से अब रहा नहीं जा रहा था उसका बूर एकदम से गरम हो चुका था और वो थोड़ी भी देरी नहीं करना चाहती थी।

शीला--- आह, देवर जी , कब तक झुकाए रखोगे अपनी रखैल को... डाल भी दो अब।

खिड़की में से झांकता हुए शेसन अपनी औरत के मुंह से बेचन की रखैल वाली बात सुनकर लाल पीला हो गया... वो सोचने लगा वाह री शीला तू इतनी बड़ी छीनाल है मै कभी समझ ही नहीं पाया।

और इधर जैसे ही बेचन ने अपनी भाभी के मुंह से अपनी रखैल शब्द सुना तो पागल हो गया और अपना कड़क लंड शीला के बूर की फांकों में फंसा जोर का धक्का मारा और पूरा लंड एक बार में ही घुसा दिया।

शीला---- हाय री.... मेरी बूर... फाड़ दिया...aaaaaaaaaaaa... निकाल लो बहुत दर्द हो रहा है....आह... नहीं... धी...... रे...।

शीला की चिल्लहट, और बेचन की पागलों जैसी दक्केमारी देख कर शेसन सन्न रह गया.... उसने ऐसी चूदाईई ना कभी देखी थी और ना कभी की थी.... शीला पूरी हिल जाती जब बेचन जोर जोर से शीला की बूर में धक्का मारता... और शीला अपना मुंह खोले चिल्लाती।

बेचन--- आह.... भाभी बहुत मज़ा आ रहा है तेरी बूर में... कैसा लग रहा है तेरे देवर का लंड।

शीला को भी अब मज़ा आने लगा था , शीला बेचन के जोश की दीवानी हो गई थी जीस तरह वो उसे कस कस कर चोद रहा था.... उसे उसके पति ने कभी नहीं चोदा था।

शीला-- आह.... देवर जी, बहुत मज़ा आ रहा है.... आह पहले क्यों नहीं चोदा अपनी भाभी को.... कब से सुख गई थी मेरी बूर... हा... हा... देवर जी ऐसे ही आह.... मा इतना मज़ा कभी नहीं आया था री।

बेचन की रफ्तार और तेज हो गई पूरे कमरे में फच्छ फाच्छ की आवाज़ और शीला की सिसकारियां माहौल को और भी मादक बना रही थी।

बेचन-- आह शीला, पहले ही चोद देता तुझे गलती हो गई... अब ले अपने देवर का लंड ।

शीला--- आह देवर जी..... बहुत अन्दर जा रहा है आपका लंड बहुत मज़ा आ रहा है... मेरा तो... आह पानी निकलने वाला है... चोदो मुझे ऐसे ही, मै गई देवर जी..... आह।

बेचन--- आह भाभी मेरा भी निकलने वाला है... कहा डालू अपना पानी।

शीला--- आ........... मेरी बु..... र में ही डाल दो.... और शीला अपनी का बदन अकड़ने लगा और वो झरने लगी.... और बेचन ने भी एक दमदार धक्का लगाया और अपना पूरा पानी शीला की बूर में भरने लगा।

तूफ़ान गुजर गया था.... दोनों अपनी सांसों को काबू में कर रहे थे.... शीला अब अपना पेटीकोट नीचे कर के खड़ी हो चुकी थी और बेचन अपना ढीला पड़ चुका लंड हाथ में लिए खड़ा बोला।

बेचन--- मज़ा आया भाभी।
शीला तो शर्मा गई.... पूरा।
शीला--- धत बेशरम..... कह कर अपनी साड़ी पहनने लगी।

बेचन--- शीला को पीछे से अपनी बाहों में भर कर उसकी दोनो चूचियां मसलने लगता है।

शीला-- आह.... अभी आपका मन नहीं भरा जो फिर से लग गए।
बेचन-- अरे मेरी जान तू है ही इतनी मस्त की तुझे देख फिर से मन हो जाता है।

शीला--- नहीं.. छोड़ो मुझे, एक तो चोद चोद कर मेरी हालत खराब कर दी आपने और फिर से मन हो रहा है..... अब जाओ नहीं तो आपके भईया आ जाएंगे।

बेचन--- अभी तो जा रहा हूं हूं रानी.... लेकिन फिर कब चुद्वाएगी?
शीला ये सुन शर्मा जाती है..... और बोली।

शीला--- अब तो मै आपकी ही हूं जब मन करे तब चोद लेना।
ये बात सुन कर शेसन एक दम टूट सा गया और कुत्ते जैसा मुंह बनाकर बाहर चला गया........।

और फिर कुछ देर बाद बेचन भी अपने घर पर चल दिया।

हॉस्पिटल में बैठी सुनीता के साथ साथ फातिमा , राजू, और अनीता चुप थे।
सुनीता की हालत तो समझ में ही नहीं आ रही थी दीवार के सहारे अपना सर टिकाए लगातार उपर ताक रही थी..... उसे सोनू के बचपन के दिन याद आ गए... वो सोचने लगी कि एक बच्चे के लिए मै पूरी पांच साल तड़पती रही कहा कहा नहीं गई मंदिरों में हर जगह और जब भगवान ने मुझे एक बच्चा दिया तो मुझे उसकी कद्र ही नहीं.... यही सोचते सोचते उसकी आंखे भर आती है......
 

Alagsi

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सुनीता एक दम बेसुध अस्पताल में बैठी थी। उसे अपने कीये पर बहुत पछतावा था। लेकीन अब जो होना था वो तो हो गया था।

सुनीता की आंखो से आसूं , सुखने का नाम ही नही ले रहा था।

अस्पताल में सभी लोग मौजुद थे, अनन्या , आरती , कीरन और राजू।

ईन सब को तो ये पता भी नही था की, आखीर सुनीता ने सोनू को कीसलीये मारा!

खैर अनन्या से सुनीता काकी की हालत देखी नही गयी। अनन्या सुनीता के पास जाकर , उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली -

अन्नया - अब चुप हो जा काकी, सोनू बील्कुल ठीक है।

सुनीता , अनन्या की बात सुनकर और जोर -जोर से रोने लगती है।

तभी वँहा फातीमा भी आ जाती है। वो कीसी तरह सुनीता को चुप कराके उसे घर ले कर आ जाती है।

सुनीता जैसे ही घर पहुचीं , वो फीर से रोने लगती है।

सुनीता - मुझे मेरे बेटे के पास जाना है।

फातीमा , सुनीता को समझाते हुए बोली-

फातीमा - देख सुनीता, इस समय तेरा सोनू के सामने जाना ठीक नही होगा! वो तूझे देखना भी नही चाहता!

फातीमा की बात सुनकर, सुनीता ने रोते हुए कहा-

सुनीता - हां तो , मैं उसकी मां हूं। अगर गलती से मार दीया तो। क्या वो मुझसे इतना नाराज़ हो जायेगा की बात भी नही करेगा!

फातीमा को सुनीता की बात पर बहुत तेज गुस्सा आया!

फातीमा - जब इतना ही प्यार था तूझे , तो मारने से पहले सोचा नही क्या? और तू कस्तूरी जब गांड मराने की औकात नही थी तो, क्यूं गांड मराने लगी उससे?

फातीमा का गुस्सा देख, सुनीता भी शांत हो गयी। तभी पास में खाट पर लेटी कस्तुरी ने बोला-

कस्तुरी - वो.....वो। फातीमा दीदी मैं तो बुर ही चुदवा रही थी। लेकीन पता नही मेरे मुहं से क्या नीकल गया जीस पर सोनू गुस्सा हो गया!

कस्तुरी की बात सुनकर , सुनीता बोली-

सुनीता - सब मेरी गलती है, जानते हुए भी की ये सब गलत है। फीर भी मैने सोनू को नही रोका लेकीन, अब आगे से वो तुम लोग के नज़दीक भी नही भटकेगा!


इस बात पर फातीमा को कुछ ज्यादा झटका लगा, लेकीन वो भी समझती थी की ॥ इस समय ये सब के उपर बात करना अच्छा नही होगा!



'' दीन गुजरता गया करीब दस दीन लगे , उसके बाद सोनू को अस्पताल से घर लाया गया!

इन दस दीनो में सुनीता को सोनू से मीलने नही दीया गया! और ये दस दीन सुनीता के लीये दस साल जैसे लगे!


''सुनीता आज बहुत खुश थी, क्यूकीं आज़ सोनू घर जो आने वाला था। इन दस दीनो में कस्तुरी भी खाट पर से उठ तो गयी थी, लेकीन सोनू ने उसकी ऐसी गांड मारी थी की, वो अभी तक अच्छे से चल नही पा रही थी।


खैर, राजू और उसके पापा ने सोनू को अस्पताल से सीधा घर ले कर आयें। सुनीता सुबह से ही कभी अंदर तो कभी बाहर आती जाती.....वो सोनू को देखने के लीये इतना बेताब थी की। जैसे ही सोनू घर पर आया , सुनीता सोनू की तरफ बढ़ी , लेकीन तभी फातीमा ने उसे रोक लीया और ना में सर हीलाते हुए बोली 'अभी नही'

सुनीता की पलके एक बार फीर भीग गयी, और जैसे भीख मागते हुए बोली !

सुनीता - बस एक बार! फातीमा

फातीमा - ठीक है, तेरा ही बेटा है। मैं कौन होती हूं रोकने वाली, लेकीन एक बार उसे खाना खाने दे, फीर मील लेना!

सुनीता बेचारी , मरती क्या ना करती अपनी आंखो में आशूं लीये दुसरे कमरे में चली गयी!

॥ बात तो सच है की, जीतना प्यार मां अपने बेटे से करती है, उसके आगे दुनीया का कोयी भी प्यार फीका है॥ एक औरत अगर वफा कर सकती है तो , सीर्फ मां के रुप में। क्यूकीं इस प्यार में कोयी स्वार्थ नही....ना ही पैसो का और ना ही जीस्म का।

वो तो कुछ नसीब वाले होते है, जीन्हे अपनी मां का प्यार सारी हदें तोड़ने के बाद मील जाता है।


सोनू खाना खाने के बाद, खाट पर लेटा अपनी आंखे बंद कर के, कुछ सोच रहा था की तभी उसके हाथ पर कीसी का हाथ महसुस हुआ।

सोनू ने अपनी आंखे खोली तो देखा की उसकी 'मां' बैठी थी।

सुनीता बीना कुछ बोलो सोनू को बड़े प्यार से , एकटक नीहारती रही......उसकी पलके अभी भी नम थी......सोनू भी अपनी नज़रे चुराई नही और उसने भी अपनी नज़रें अपनी मां के नज़रो से टकरा ली!

सुनीता - गुस्सा तो बहुत होगा तू मुझपे? लेकीन तेरे गुस्से से कहीं ज्यादा पछतावा मुझे हो रहा है।

सुनीता ने प्यार से सोनू के चेहरे को अपनी हथेलीयौं में भरती हुई फीर बोली-

सुनीता - मुझे माफ़ कर दे मेरे लाल ! कसम खाती हूं, आज के बाद कभी तूझ पर हाथ नही उठाउगीं! तेरे बीना मैं जी नही सकती.....

सोनू थोड़ा उठकर बैठता हुआ बोला-

सोनू - तूने सही कहा मां, तेरे बीना जीने का मतलब ही नही। सीर्फ ये जनम ही नही आने वाले हर जनम में मैं तेरे साथ जीना चाहता हूं। अब हर जनम में मैं तेरा बेटा बनूगां की नही ये तो नही पता। लेकीन सुना है की जो भी जोड़ा सात फेरे लेता है वो सात जनम तक का साथ पाता है। तो इसी लीये मैं अब तेरे साथ सात फेरे लूगां और सात जनम तक तेरे साथ तो जरुर रहूगां॥ भले ही हर जनम में तेरा पहला पती मेरा बाप ही क्यूं ना हो।

सुनीता की आंखे फटी की फटी रह गयी, वो कभी सोच भी नही सकती थी की, सोनू ऐसा भी सोच सकता है। उसके बदन में ना जाने कैसी कपकपीं दौड़ने लगी, मानो ज़मीन पैरो तले खीसक गयी हो।

सुनीता - ये....ये.....तू कैसी बाते कर रहा है। पागल हो गया है क्या....शरम नही आती तूझे?

सोनू थोड़ा मुस्कुराया और फीर बोला-

सोनू - शरम तो तूझे आनी चाहीए, अपने होने वाली पति से कोयी ऐसे बात करता है ?

सोनू ने अभी अपनी बात, पूरी भी नही की थी की- उसके गाल पर जोर का तमाचा सुनीता ने जड़ दीया!

सोनू अपना गाल थामे फीर एक बार मुस्कुराया और बोला-

सोनू - ओ.....हो! अभी कुछ देर पहले तो बड़ी कसमें खायी जा रही थी की, आज के बाद कभी हाथ नही उठाउगीं तो अभी क्या था? अच्छा.........मै भी कीतना पागल हूं! वो कसम तो मां के नाते ना मारने की थी, शायद ये थप्पड़ मेरी होने वाली पत्नी ने मारा है!

सुनीता अपने दोनो हाथो सें अपने कान को दबाती हुई बोली-

सुनीता - चुप.......हो जा.......भगवान के लीये चुप हो जा! ये सब सुनने.........

तभी सोनू ने अपनी मां की बात काटते हुए बोला-

सोनू - पुराना हो गया है!

सुनीता अपने कानो पर से हाथ हटाते हुए बोली !

सुनीता - क्या बोला तूने?
सोनू - यहीं की ये सब पुराना हो गया है!

सुनीता - क्या पुराना हो गया है?
सोनू - यही अभी जो तू बोल रही थी की, ये सब सुनने से पहले मै मर क्यूं नही गयीं.....अगैरा - बगैरा!

सुनीता - हे भगवान! इतनी बड़ी बात कह कर अभी तू मज़ाक कर रहा है। मेरे मार से तेरा उपर का ढीला तो नही हो गया!

सोनू - अरे ऐसा क्या कह दीया मैने?

सुनीता चौकंते हुए) - हे भगवान ! तूने अभी कहा की तू मुझसे शादी करेगा और बोल रहा है की ऐसा क्या कह दीया तूने!

सोनू अपने चेहरे पर एक हल्की मुस्कान लाते हुए बोला -

सोनू - हां तो सीर्फ शादी करने के लीये बोला है, ताकी एक बार तू मेरी पत्नी बन जाये तो तू मुझे मार ना सके। नही तो तू मेरी जान ही ले लेगी........बाकी और कुछ गंदा मत सोच तू!


ये सुनते ही सुनीता, इतनी जोर से हसने लगी की, मारे हसीं के ओ कुछ बोल नही पा रही थी। सुनीता को हसता देख सोनू भी हसने लगा!

सुनीता - हे भगवान ! तूने तो मेरी जान ही नीकाल दी थी। मुझे लगा की तू........

सोनू बीच में ही बात काटते हुए बोला-

सोनू - तूझे लगा की मैं सच में तूझसे शादी करुगां!

सुनीता - हां !

सोनू - मेरा दीन इतना भी खराब नही है की, मै बुडंढ़ीयों से शादी करुं!

ये बात शायद सुनीता को अच्छा नही लगा, और वो मज़ाक में ही बोली -

सुनीता - अच्छा........अगर बुड्ढ़ीया पसंद नही है, तो फीर फातीमा और कस्तुरी के तलवे क्यूं चाटता है?

सोनू - तूने शायद ध्यान से देखा नही, मै नही बल्की वो लोग चाटती है मेरा ....लं

सोनू आगे कुछ बोलता , इससे पहले ही सुनीता ने उसके मुह पर अपना हाथ रखते हुए बोली-

सुनीता - चुप कर बेशरम, अपनी मां के सामने ऐसी बात करते हुए शरम नही आती!

सोनू - जब मां को देखने में शरम नही आयी, तो भला मुझे बोलने में क्या शरम ?

सुनीता मारे शरम के पानी - पानी हो गयी....लेकीन फीर भी उसने अपना सर नीचे कीये बोली-

सुनीता - मैने क्या देख लीया?

सोनू - क्यूं उस दीन देखा नही तो मारा क्यूं?

सुनीता के पास अब कोयी जवाब''नही था! लेकीन फीर भी शरम करते हुए बोली-

सुनीता - अरे.....वो....'वो ....मैं!

सोनू - क्या ......वो.....वो मैं?

सुनीता अपने गीर हुए बालो के लटो को अपने कानो पर चढ़ाती हुए हीचकीचाते हुए बोली-

सुनीता - वो....तो मैं.....उस दीन पानी लेने आंगन में गयी थी तो, मुझे चीखने चील्लाने की आवाज़ सुनायी दी । तब मैं उपर आयी, नही तो मुझे क्या पड़ी थी?

सोनू - चल अच्छा हुआ मां की तू ''औरत'' नही है,॥

सुनीता ने झट से अपनी नज़रे सोनू के तरफ करते हुए बोली-

सुनीता - तू पागल - वागल हो गया है क्या? मैं औरत नही हूं क्या?

सोनू को आज पहली बार अपनी मां से बात करने में बहुत मज़ा आ रहा था!

सोनू - अगर तू औरत होती तो, तेरा भी मन करता ये सब करने को!

सुनीता को अंदाजा भी न था की, सोनू ये बात भी बोल देगा!

सुनीता - तू तो बेशरम है ही, मुझे भी बना रहा है, लेकीन जब तूझे शरम नही तो भला मै तेरे सामने क्यूं शरम करु। तूझे जानना है ना मेरा मन करता है की नही। अरे पागल मैं भी एक औरत हूं , कभी - कभी मन करता है।


सोनू - तो फीर क्या करती है मां तू (अपना हाथ जगन्नाथ)

ये बोलकर सोनू हंसने लगता है.......इस पर सुनीता बोली-

सुनीता - मतलब क्या है इसका?

सोनू जोर - जोर से हंसते हुए अपनी एक उगंली बंद मुठ्ढी में से खोलकर आगे - पीछे करते हुए इशारा कीया!

ये देखकर सुनीता शरम से लाल हो गयी, वो थोड़ा मुस्कुराते हुए सोनू को मज़ाकीया अँदाज में मारने लगी!

सुनीता - मैं तेरे साथ बात नही कर पाउगीं, इतनी गंदी बात अपने मां से ऐसे कर लेता है की मुझे भी पता नही लगता!

सोनू - हां तो गलत क्या बोल दीया? अब मन करता है तो, पापा तो है नही ! बाहर का तो सवाल ही नही उठता तो बचा तो वहीं ना!

सुनीता - बेटा ये बात तू भी अच्छी तरह से जानता है की पूरे गांव के मर्द मेरे एक इशारे पर क्या-क्या कर सकते है,. (और फीर सुनीता मज़ाकीया अंदाज में) - लेकीन फीर सोचती हूं की, अगर बाहर कही कुछ मैने कर दीया तो , तू कहीं मुह दीखाने लायक नही रहेगा!


सोनू - रुको........ये क्या बात हुई की , मुह तू काला करवाये और बाहर मैं मुह दीखाने लायक नही रहुगां?

सुनीता हंसते हुए बोली - हां बेटा, क्यूकीं बाहर तो तू ही घुमता हे। तो लोग तूझे ताना मारेगें ना की इसकी मां क्या-क्या गुल खीला रही है।


सोनू - तो इसका मतलब, तू मेरे लीये इतना कुछ सहती है मां!

सुनीता नाटकी अंदाज में मुहं बनाते हुए बोली!

सुनीता - और नही तो क्या ?

सोनू - नही मां मैं अब तूझे और नही सहने दे सकता , कल से मैं आ जाउगां रात में ॥ अब तूझे और उंगली करने की जरुरत नही!

सुनीता ये सुनकर हंसने लगी और बोली -

सुनीता - ओ.......हो, जरा इन शाहबजादे को देखो कैसे मौका मार रहे है!

सोनू - इसमे मौका मारने की क्या बात है, जब तू मेरे लीये इतना कर रही है, तो मेरा भी फर्ज़ तो बनता है ना मां!

सुनीता - तो.......तू ही क्यूँ? तू बाहर कीसी के साथ भी तो बोल सकता था ना!

सोनू - क्यूं मुझसे डर लग रहा है?
सुनीता - तुझसे क्यूं डर लगेगा?

सोनू - अरे मेरा मतलब, मेरे उस चीज से!

सुनीता को समझते देर नही लगी, की सोनू अपने लंड के बारे में बात कर रहा है।

सुनीता - बेशरम! कही का, अभी इतना भी बड़ा नही हुआ है तू!

सोनू - अच्छा.......तो इसका मतलब अभी और बड़ा होगा?

सुनीता मरती क्या न करती, इस बात पर जो हंसना चालू कीया तो रुकने का नाम ही नही ले रही थी.......सोनू भी हस -हस कर थक चुका था!


सोनू - अच्छा.......मां अब तू जा। मुझे थोड़ा आराम करने दे!

सुनीता - क्यूं मन भर गया क्या मां से , बेशरम!
सोनू - नही मां, बस थोड़ा आराम करने का मन कर रहा है।

सुनीता - अच्छा.......ठीक है तू, आराम कर ॥ और हां तूझे बुरा लगा हो तो माफ कर देना!

सोनू - कीस बात का मां?

सुनीता - वही ......बाहर कीसी के साथ मैं चक्कर चलाउ तो, 'उस बात का!

सोनू - और मुझे भी माफ़ कर देना मां !

सुनीता - कीस बात के लीए?

सोनू - वही ........मेरे साथ चक्कर चलाने वाली बात के लीये!


सुनीता कुछ देर तक कुछ नही बोली ॥ लेकीन फीर मुस्कुरा कर बोली!

सुनीता - मां के साथ चक्कर चलाना इतना आसान नही...........!

सोनू - मुश्कील भी नही !

सुनीता - हां......बल्की बहुत मुश्कील है!

सोनू - मुश्कील से हासींल की हुई चीज ही ''सुख देती है।

सुनीता - दुनीया - समाज क्या बोलेगी?

सोनू - मेरी दुनीया तो तू हैं॥

सुनीता - मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर.......तू शादी कर ले!

सोनू - अब तो दुनीया गयी भाड़ में माँ। अब तू ही मेरी पत्नी बनेगी!

सुनीता - बस ........बेटा। सपने मत दीखा......अकेले रहने की आदत हो गयी है। मेरी कीस्मत में जीवनसाथी नही बल्की सुनी राहें है ! बस


सोनू - एक बात पुछुं ?
सुनीता - ह्मम्म्म.....

सोनू - सुनी राहों पर साथ चलने का हक देगी मुझे?

सुनीता - तुझसे अच्छा हमसफर कोई नही। लेकीन इसका हक़ मैं नही दे सकती!

सोनू - अब तू मुझे पागल कर रही है मां, तुझे पता है । मन कर रहा है तूझे बाहों में भरकर अपना बना लू! लेकीन बीना तेरी सहमती के कर भी नही सकता!

सुनीता - तूझे क्या ? तेरे पास तो दो - दो है।

सोनू - पर तेरी बांहो में जो मज़ा है, वो कही नही!

सुनीता - मां ऐसी ही होती है। मां बनकर बाहों में भरे तो सारे दुख समेट ले। और पत्नी बनकर बाहों में ले तो आनंद की चरम पर बीठा दे!

सोनू - तो हमे रोक कौन सी चीज रही है मा।

सुनीता - मा - बेटे का पवीत्र रीश्ता!


सोनू - जीस दीन ये रीश्ते की दीवार टुटी.....उस दीन.!

तभी सुनीता ने अपनी एक उगंली सोनू के मुह पर रख कर चुप कराते हुए बोली-

सुनीता - मुझे पता है....तेरी..............बेरहमी!

सोनू - सह तो लोगी ना .!

सुनीता ने ऐसी शरम की लालीमा अपने चेहरे पर बीखेर कर बोली की .........सोनू का दील धड़कने लगा.!

सुनीता -- वो ........तो हर औरत करती है।
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Alagsi

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सुनीता की अचानक आंख खुल जाती है......वो खाट पर उठ कर बैठ जाती है......और अपने सीने पर हाथ रखती हुई खुद से बोली-

सुनीता (मन में) - हे भगवान , ये कैसा सपना देख रही थी मैं....अपने बेटे की दुल्हन बनने जा रही थी मैं.....शुकर है ये सपना ही था.....नही तो पता नही क्या अनर्थ हो जाता!!

''भोर हो गयी थी....चीड़ीयों की चहचहाहट से सुनीता को पता चल गया था.....वो खाट पर से उठकर घर के बाहर दुवारे आ जाती है , और भोर की ताजा और शीतल हवां एक गहरी सांस लेती है......आज सुनीता बहुत खुश थी...क्यूकीं आज सोनू अस्पताल से घर आने वाला था.....लेकीन उसकी खुशी ज्यादा देर तक टीक ना सकी....अपने बेटे का उसके प्रती रुठापन , उसकी खुशी को चंद लम्हो में गायब कर देती है!!


खैर सुनीता अपने मन को समझाते हुए घर के कामों में लग जाती है......!


'दीन का सुरज नीकलते ही......सुनीता , कस्तूरी के साथ रसोयीं घर में खाना बनाने लगती है....वो खाना बनाते हुए अपनी नज़र कस्तूरी पर भी डाल देती....कस्तूरी की चाल बदल चुकी थी.....और ये देख कर सुनीता अपनी हंसी नही रोक पायी और खीलखीला कर हंस पड़ी , हालाकीं सुनीता अपने मुहं पर हाथ रख कर अपनी हंसी को दबाने की नाकाम कोशीश करती है....लेकीन कस्तूरी की नज़रें सुनीता के उपर चली ही जाती है!!

कस्तूरी - क्या हुआ दीदी.....बड़ी हंसी आ रही है? अच्छा आज सोनू घर आने वाला है...इसलीये खुश हो लगता है....!

....कस्तूरी की बात सुनकर ....सुनीता एक बार फीर हंस पड़ी.....कस्तूरी को समझ नही आया तो वो फीर बोली-

कस्तूरी - अरे क्या हुआ दीदी??
सुनीता अपनी हंसी को काबूं में करते हुए बोली-


सुनीता - अरे कुछ नही.....बस ऐसे ही कुछ याद आ गया था...!

कस्तूरी - अच्छा......क्या याद आ गया था दीदी, मुझे भी बताओ ना??

सुनीता एक फीर जोर - जोर से हसते हुए बोली-

सुनीता - जीसे अनाड़ी समझ रही थी तुम और फातीमा.....सोनू ने तुम दोनो को नानी याद करा दी.....तेरी तो चाल ही बदल गयी....!

'सुनीता की बात पर , कस्तूरी का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है....वो अपना मुह दुसरी तरफ करके अपने हाथो से अपना मुह छुपा लेती है......ये देखकर सुनीता , कस्तूरी के कंधे पर हाथ रखती हु ई बोली-

सुनीता - ओ .....हो.....मेरी देवरानी को शर्म आ रही है....!

कस्तुरी - दीदी......छोड़ो ना , तुम भी ना......एक तो ना जाने कहां से बेरहम बेटा पैदा कर दीया है!!

सुनीता - ह्म्म......अच्छा है , अब तुम लोग मेरे बेटे के उपर डोरे डालना बंद करो......क्यूकीं अब अगर चुदवाते हुए तुम लोग मर भी गयी ना तो , मैं तो अपने लाल को कुछ बोलने से रही!!

कस्तूरी - ऐसा मत करो दीदी......बीना सोनू के तो मर जाउगीं मै......!

सुनीता - अच्छा.....तो मतलब और फड़वाने का मन है??

कस्तूरी ये बात सुनकर....शर्म से लाल होते हुए बोली-

कस्तूरी - ह्म्म्म्म.......लेकीन बुर बस पीछे नही लुगीं....!

सुनीता - पीछे क्यू नहीं.....उसका जंहा मन करेगा....वहां डालेगा...!

ये सुनकर......कस्तूरी मुस्कुराते हुए बोली-

कस्तूरी - मतलब ये दीदी की तुम चाहती हो की मेरी जान जाये.....!

ये कहकर.....दोनो हंसने लगती है.......!


-----------------------------------------

कल्लू अपने घर पर......खाट पर एकदम शातं बैठा था , और उसकी मां मालती नीचे बैठकर सब्जी काट रही थी.....कल्लू को यूं शातं देख कर मालती बोली-

मालती - क्या हुआ बेटा....इस तरह मन लटकाये क्यूं बैठा है??

कल्लू - कुछ नही मां.....बस सोनू के बारे में सोच रहा था.....!

मालती - अरे हां , तू तो उससे मीलने जाने वाला था ना......!

कल्लू - हां मां......लेकीन.....नही गया.....क्यूकीं मैं नही चाहता की अब मेरी फीर से दोस्ती हो ,

ये सुनकर......मालती का चेहरा मुरझा जाता है...!

मालती - क्यूं बेटा??

कल्लू - क्यूकीं मैं उसके कमीने पन से वाकीफ हूं....दोस्ती होने पर वो घर आने लगेगा ॥ और घर आने लगा तो वो मेरी मां जरुर चोद कर जायेगा!! और ये मै चाहता नही......

.......कल्लू की बात सुनकर , मालती को वो दृश्य सामने आने लगा....जब सोनू , सोहन की गांड बेरहमी से उसके सामने ही मार रहा था!!

मालती - अरे बेटा.......तुझे अपनी मां पर भरोसा नही है क्या?? अब तो तू है मेरी आग शांत करने के लीये तो भला मैं क्यूं उस बेरहम के पास जाने लगी.....!

कल्लू - अच्छा तो वो बेरहम है......और मै क्या हूं??
इतना कहते हुए.....कल्लू अपनी मां को पकड़ कर खीचतां हुआ खाट पर लीटा देता है , और खुद उसके उपर चढ़ जात है!!

मालती - आह.......तू भी उससे कुछ कम नही....बस थोड़ा लंड कम पड़ जाता है तेरा और जल्दी झड़ जाता है!!

.....ये बात कल्लू के गांड में लगी.....उसने बोला-

कल्लू - अच्छा.....तो मेरा लंड तूझे छोटा पड़ता है.....तो जा.....जाके उससे ही चुदवा!! रंडी.....

ये कहकर.....कल्लू खाट पर से उठ कर चला जाता है!!

मालती - अरे बेटा.....मज़ाक कर रही थी....कहा जा रहा है ??

....लेकीन तब तक कल्लू मालती की बात सुनते हुए घर से बाहर चला जाता है!!





Update chhota dene ke liye sorry dosto......kal se real update milega
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Alagsi

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अगला अपडेट.......







सोनू हास्पीटल से घर आ गया था.......वो अपने कमरे में खाट पर लेटा था !! राजू भी उसके बगल में बैठा था.....!

राजू - कैसी तबीयत है अब भैया??

सोनू राजू की तरफ देखते हुए बोला.....

सोनू - अब बेहतर लग रहा है....हल्का - हल्का सर में दर्द है बस !!

राजू - सब ठीक हो जायेगा भैया.....बस तुम आराम करो!!

और ये कहकर....राजू वहां से जाने के लीये उठा ही था की , वो एक पल के लीये रुकते हुए बोला-

राजू - भैया लेकीन , आपको काकी ने मारा क्यू??

राजू का सवाल सुनकर....सोनू भी हैरानी मे पड़ गया....वो सोचने लगा की अब इसे क्या बताउं की मां ने कीस लीये मारा.....चाची को चोद रहा था इसलीये....?

राजू - क्या हुआ भैया ? कुछ गलत पुछ लीया क्या....अच्छा तुम आराम करो! बाद में बता देना....!

सोनू (मन) - आह......चलो जान में जान आयी !

राजू के जाते ही......सोनू अपनी आंखे बंद कर लेता है । आंखे बंद करते ही उसके सामने वैभवी का चेहरा आ जाता है!

....सोनू उठ कर खाट पर बैठ जाता है!!

सोनू (मन में) - मैं बार - बार इसके बारे में ही क्यूं सोच रहा हूं.....? क्यूं इसका चेहरा मेरी आंखो के सामने आ जाता है ? जब उसने कह दीया की वो कीसी और से प्यार करती है ! नही , मुझे उसे भूलना ही होगा.......उसे क्या अब तो मैं औरत जात के मुह ही नही लगूगां......एक ने मेरे दील को तोड़ा तो दुसरी ने मेरा सर फोड़ा.....! अब तो बस काम से काम रखना है......हां ये मेरे लीये सही होगा .....!


......उधर सुनीता , सोनू को एक नज़र भर देखने के लीये बेचैन थी.......लेकीन फातीमा.....उसे सोनू के सामने आने से रोक रही थी!

फातीमा - नही सुनीता.....तू समझ , अभी तू सोनू के सामने मत जा....अगर वो तूझे देखेगा तो उसकी तबीयत और बीगड़ जायेगी!!

.....ये तो सुनीता का दील ही जानता था....की उसके उपर क्या बीत रही थी.....एक मां होकर भी अपने बेटे से दुर रहना , उसके दील पर दुखो का पहाड़ टुटने जैसा था.....खैर सुनीता ने अपनी भीगी पलको को अपने नाजुक हाथो से पोछते हुए अपने दील को समझा लीया.....लेकीन उसके मन में एक सवाल घर कर के बैठ गया था की......आखीर कब तक??

......सुनीता रोते हुए अपने कमरे मे चली गयी.....


''फातीमा.....कस्तूरी के साथ ओसार में बैठी थी!

फातीमा - और तू भी , कुछ दीनो तक उसके सामने तक मत जाना......!

कस्तूरी भी क्या करती.....उसने हां में अपना सर हीला दीया.....! थोड़ी देर के बाद......फातीमा उठ कर सोनू के कमरे की तरफ जाती है.....!

'फातीमा को कमरे में देख , सोनू उठ कर बैठ जाता है.....सोनू को उठने में थोड़ी तकलीफ हो रही थी....ये देखकर , फातीमा लपकते हुए सोनू को पकड़ लेती है!

फातीमा - अरे नही सोनू....तू लेटा रह ,, तेरी तबीयत अभी ठीक नही है!!
फातीमा सोनू को वापस लीटा देती है , और उसके बगल में बैठ जाती है !

फातीमा - अल्लाह करे तू जल्दी से ठीक हो जाये!

फातीमा की बात सुनते हुए सोनू थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला-

सोनू - ये तो तुम्हारे अल्लाह और मेरे भगवान ने मेरी गलतीयों की सजा दी है...!

फातीमा - अरे भला तूने क्या गलती कर दी? जो अल्लाह तूझे सजा देगा?

सोनू - अब ये गलती नही तो और क्या है? जीनके पैरो में अपनी जगह बनानी चाहीये.....मैने उनके बुर मे् आशीयां बना रहा था....तो सजा तो मीलनी ही थी!!

सोनू की बात सुनकर......एक पल के लीये फातीमां भी हैरान रह गयी की , ये सोनू कैसी बहकी- बहकी बातें कर रहा है!

फातीमा - अरे तूने कुछ गलत नही कीया है बेटा.....बल्की तूने तो एक औरत को पूरा कीया है.......तू अभी ये सब मत सोच , तू सीर्फ आराम कर!!

'अचानक सोनू के आखों से आसूं नीकलने लगते है....उसने फातीमा के हाथो को अपने हाथो में लेते हुए बोला-

सोनू - अब ये सब सोचने लायक , मेरी मां ने छोड़ा ही नही.....!

सोनू के आखों में आसूं देखकर और इस तरह की बाते सुनकर वो असमंजस में पड़ गयी !

फातीमा - मतलब......मै समझी नही....और तू रो क्यूं रहा है ? क्या कहना क्या चाहता है तू??

सोनू (रोते हुए) - मां ने तो मुझे कही का नही छोड़ा.....!

'अब फातीमा की बेचैनी बढ़ने लगी......वो हैरत भरे लहजे से सोनू के हाथो को अपनी हथेलीयों में भरती हुई थोड़ा रुवासीं होकर बोली-

फातीमा - अल्लाह के लीये.....वो मत बोलना जीस बात का मुझे डर सता रहा है.....!!

सोनू के आखों से आसूओं की धारा बहने लगी.... वो एक गहरी सांस लेते हुए-

सोनू - मां के डंडे ने तो मेरे डंडे को ही सुला दीया.......!

.......ये सुनते ही , फातीमा के उपर मानो पहाड़ टुट पड़ा हो.....आखों से चमक और चेहरे की रंगत ही गायब हो गयी.....!

फातीमा - दे......देख....तू....तू.....अगर हम सब से नाराज है तो.....तो.....हम सब को....जो चाहे....वो सजा दे .मगर अल्लाह के लीये ऐसी बाते मत बोल....!

सोनू - जब से होश आया.....पहले दो - चार दीन लगा की शायद दीमाग में चोट लगने की वजह से होगा......लेकीन आज पूरे दस दीन हो गये ।

फातीमा की मानो , आखें ही बाहर नीकल पड़ी हो......वो फफक - फफक कर रो पड़ी !

फातीमा - हाय अल्लाह.......ये क्या हो गया????

सोनू - ये बात मां को मत बताना.......!

फातीमा - हम डक्टराईन साहीबा के पास.....चलते है । इसका इलाज करायेगें ठीक हो जायेगा!

सोनू - अगर नही ठीक हुआ तो?? मैं शरमीदां नही होना चाहता......!

फातीमा भी सोनू के दील का हाल समझ रही थी......उसके पास कहने के लीये कुछ भी नही बचा , सीवाय आसुंओं के........!

सोनू और फातीमां दोनो एक दुसरे को देख रहे थे......!

फातीमां - तो अब तू सुनीता से नाराज़ नही है.....?

सोनू - पहले था......लेकीन वो मां है ना.....और भला कोयी अपनी मां से कैसे नाराज़ रह सकता है??

फातीमा , सोनू की बात सुनकर रोने लगती है....और कमरे से बाहर चली जाती है!!

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सुनीता की नज़रें , सोनू को जी भर कर देखने को बेताब थी.....!
तो एक तरफ़ , फातीमा के उपर सोनू के बातो का पहाड़ टुट पड़ा था !!

सोनू अपने कमरे में सोया था....सुनीता सबकी नज़रो से बचते हुए दबे पावं , सोनू के कमरे में जाती है , सुनीता सोनू को देखते ही .....उसकी आंखे भर आती है...!!

'उसका दील कर रहा था की, वो सोनू को अपने गले से लगा ले ' लेकीन वो जानती थी की ये मुमकीन नही है !! वो सोनू को एकटक नीहारती रही.......तभी सोनू थोड़ा कसमसाया....!!
'
'सोनू को कसमसाता देख....सुनीता वापस कमरे से जाने लगी''''''तभी सोनू की आवाज़ आयी!!

सोनू - मां.........!

'मां शब्द कानो में पड़ते ही , सुनीता के पांव थम जाते है !! उसे एक पल के लीये तो अपने कानो पर भरोसा नही हुआ.......सहमी हुई सुनीता , सोनू की तरफ घुमती है!!

'सोनू की नज़रे , सुनीता को ही देख रही थी!! सुनीता बीना देरी के........सोनू के पास आकर । उसके हाथो को पकड़ कर रोने लगती है!!

'अपनी मां को इस तरह रोता देख.....सोनू बोला-

सोनू - अरे.....मां तू रो क्यूं रही है?? मैं ठीक हू!

'लेकीन सुनीता के आशूं , मानो रुकने का नाम ही नही ले रही थी !! सोनू खाट पर उठ कर बैठ जाता है.....और अपनी मां को अपने सीने से लगाते हुए बोला-

सोनू - अरे......मारती भी तू है, और रोती भी तू है...! चल अब चुप हो जा....नही तो मैं फीर से रुठ जाउगां तुझसे !!

सोनू की बात सुनते ही , सुनीता अपने आप को शातं कराते हुए.....सोनू के सीने से लीपटे हुए बोली-

सुनीता - नही.....मेरे लाल , ऐसा मत करना नही तो मैं जीते जी मर जाउगीं , मै तो ये सोच - सोच कर मरती रही की तू अब मुझसे कभी बात नही करेगा....लेकीन भगवान ने मेरी सुन ली ! मेरा लाल मुझसे रुठा नही.....!.मैं....मैं.... कसम खाती हूं की, आज के बाद सें.....बल्की अभी से मैं अपने लाल के उपर कभी हाथ नही उठाउगी,,


'अपनी मां की बात सुनते हुए....सोनू मुस्कुराते हुए बोला-

सोनू - तू हाथ कहा उठाती है , तू तो भाला....वाला उठाती है सीधा....!!

ये कहकर.....सोनू हंसने लगता है, सुनीता की भी हल्की सी हंसी नीकल जाती है...और वो सोनू के सीने पर हल्के हाथ के मुके से मारते हुए बोली-

सुनीता - अब से कुछ भी नही!!

सोनू - अब मैं ऐसा कोयी काम ही नही करुगां मां.....जीससे तूझे कोयी तकलीफ हो!!

'सुनीता सोनू से अलग होते हुए.....उसके माथे पर चुमती हुई बोली-

सुनीता - मुझे अब तुझसे कोयी तकलीफ़ भी नही होगी....तू चाहे जो भी करे!!

'अपनी मां की बात सुनते हुए.....सोनू फुसफुसाते हुए बोला-

सोनू- अब क्या मां....:तूने मुझे कुछ करने लायक छोड़ा ही कहां!!

सोनू की आवाज़ काफी धीमी थी....जीससे सुनीता कुछ समझ नही पायी.....!

सुनीता - कुछ कहा बेटा तूने??

सोनू - नही....वो....वो....मै , पुछ रहा था की चाची कैसी है??
'
'सुनीता सोनू की बात सुनकर....हल्के से मुस्कुराते हुए बोली-

सुनीता - हां.....पहले से बेहतर है , लेकीन थोड़ी चाल बदल गयी है!!

''अपनी मां की बाते सूनकर....सोनू को बहुत शर्म आयी....वो अपना सर नीचे झुका लेता है!! ये देख सुनीता बोली-

सुनीता - अच्छा अब तू आराम कर.....!!

'सोनू हां में सर हीलाते हुए.....बीना अपनी मां के तरफ़ देखे खाट पर लेट जाता है......सुनीता समझ जाती है , की सोनू को शरम आ रही है!!

''सुनीता....सोनू के कमरे से बाहर आ जाती है!! आज वो बहुत खुश थी.....खुबसूरत चेहरे की लालीमा फीर से खील उठी थी......!!

......सुनीता के दीन और राते , सोनू के सेवा में कटने लगे थे.....कस्तूरी भी पहले सोनू के सामने नही आ रही थी...लेकीन सोनू ने कस्तूरी को भी फीर से अपने दील में जगह दे दी थी!!

सोनू की दीन रात , सेवा करती सुनीता......देखते-देखते पूरे दो महीने बीत गये और सोनू एकदम ठीक हो गया था !! ये देख सब बहुत खुश थे....

'सुनीता के खुशी इतनी बढ़ गयी थी की....उसके रुप और यौवन में और गज़ब का नीखार आ गया था...! गांव के मर्द तो सुनीता के नाम की मुठ मार-मार कर जी रहे थे !! ऐसा शायद ही कोयी मर्द हो जो सुनीता को एक नज़र भर देखे बीना रहे!! और ये बात सुनीता भी जानती थी..

.....गांव के मर्दो की तादाद कुछ ज्यादा ही सुनीता के दीवाने हो गये थे......जीसे भी मौका मीलता वो आ जाता घर पर भाभी-भाभी करते !! और ये देख सुनीता को बहुत गुस्सा आता.....क्यूकीं उसे ये लगता की कहीं सोनू कुछ उल्टा ना सोच ले!! क्यूंकी कुछ दीनो से सुनीता ये देख रही थी की ....अगर गांव का कोयी भी आदमी घर पर आता तो सोनू अपने मां के पास से उठ कर चला जाता!!

''और यही बात सुनीता के मन में डर पैदा कर रही थी की , कही सोनू कुछ गलत तो नही समझ रहा.....क्यूकीं वैसे भी रोज कोयी ना कोयी पहुचां रहता !! और सबसे ज्यादा जो आ रहा था......वो था ''बेचन'

****खैर ,घर के सब लोग मीलकर.....फसल की कटायी कर चूके थे ,, यहां तक की फातीमा भी सुनीता के फसल की पूरी कटायी करवायी!! मानो वो भी परीवार का एक हीस्सा हो......!

थोड़ी सी फसल बची थी काटने को.....तो सुनीता , फातीमा , कस्तुरी , आरती ये सब मीलकर फसल काट रहे थे ! और सोनू वहीं पास में खेतो की पगडंडी पर बैठा था!!

.....तभी अचानक से , फातीमा को चक्कर आया और वो वहीं खेत में गीर गयी!!

'ये देख सब घबरा गये.....सोनू ने झट से फातीमा को अपनी बांहो में उठाया और खेतो में से भागते हुए , गांव के सरकारी अस्पताल की तरफ भागा.....!!

सुनीता , कस्तुरी , आरतीं ये सब भी बहुत घबरा गये थे.....वो भी सोनू के पीछे-पीछे लग गये!!

''अस्पताल में पहुचते ही पारुल ने फातीमा का चेकअप कीया और एक इजेक्शन दीया....सब लोग घबरा रहे थे.....कुछ ही देर में फातीमा को होश आ जाता है ...ये देख सुनीता के जान में जान आ जाती है....!

सुनीता - अब ठीक है फातीमा??
फातीमा - हां.....सुनीता , बस अचानक से ये सब कैसे??

तभी पारुल मुस्कुराते हुए बोली--

पारुल - अरे फातीमा.....इस चक्कर आने का कारण तो आज तक मैने बहुत औरतो को बतायी है.....लेकीन तूम्हे बताते हुए आज मुझे बहुत खुशी हो रही है!!

''डाक्टराईन की बात पर तो सब असमजंस में पड़ गये की आखीर ऐसी क्या बात है???

सुनीता - ह.....हम कुछ समझे नही , डक्टराईन साहीबा!!

पारुल मुस्कुराते हुए एक लबीं सास लेती है.....सब पारुल का मुह ही देख रहे थे !!

पारुल - अरे......सुनीता जी , फातीमा मां बनने वाली है.....!!

....फीर क्या था...ये बात पर तो सबके अंदर खुशी की लहर दौड़ गयी.....फातीमां को तो अपने कानो पर भरोसा ही नही हो रहा था......क्यूकी ये ख्वाब देखते-देखते उसकी आधी जीदंगी बीत गयी थी!!

फातीमा की आंखे नम हो गयी.....उसने पारुल के हाथो को पकड़ते हुए करुण स्वर बोली-

फातीमा - स......सच में डक्टराईन साहीबा , मै मां बनने वाली हूं??


पारुल ने भी.....अपना हाथ , फातीमा के हाथो पर रखते हुए हां में सर हीला देती है !!

सुनीता और पारुल , फातीमा के दील में उठ रही खुशी को समझ सकते थे!!

तभी वहां सोनू आ जाता है.....उसके हाथ में पानी का ग्लास था ,,

सोनू - डक्टराईन साहीबा.....क्या हो गया था? ये अचानक से कैसे????

पारुल - अरे सोनू बेटा.....तूम्हारा छोटा भाई आने वाला है....फातीमा मां बनने वाली है!!

ये सुनकर सोनू बहुत खुश हुआ और उसके मुह से नीकल पड़ा--

सोनू - तो वो मेरा भाई कैसे हुआ....? वो तो मेरा....अ......अ.....(सोनू संभलते ही बात पलट) क्या हुआ मां?

पारुल - अरे सोनू.....फातीमा तुम्हारी काकी है तो वो तुम्हारा चचेरा भाई हुआ ना.....!

सोनू - अरे......हां , ये तो मै भूल ही गया था.....भाई ही हुआ!!

सुनीता और फातीमा एक दुसरे को देखकर....मुस्कुरा रही थी!!

सुनीता (मन में) - अरे डक्टराईन साहीबा.....अब बाप को भाई बनाओगी तों झटका तो लगेगा ही ना.......
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