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Incest बेरहम है तेरा बेटा......1

कौन सा पात्र आपको ज्यादा पसदं है।

  • सोनू- कस्तुरी

    Votes: 7 77.8%
  • सोनू- फातीमा

    Votes: 2 22.2%
  • बेचन- शीला

    Votes: 0 0.0%
  • बेचन- सुगना

    Votes: 3 33.3%
  • कल्लू- मालती

    Votes: 2 22.2%

  • Total voters
    9
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Nikhil143

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बेरहम है तेरा बेटा--1
अपडेट- 6





"बेचन खाट पर लेटा यही सच रहा था की. सीमा की चुचींया कीतनी मस्त है। अगर उस रात अम्मा नही आयी हैती तो उसकी चुचीयां तो मैं मसल चुका होता,

दीन के 12 बजे थे, और बेचन झुमरी के बगल वाली खाट पर लेटा था। तभी उसकी मां सुगना आ जाती है।

सुगना-- बेटा, ये गेहूं की बोरी जरा छत पर पहुचां दे।

बेचन खाट पर से उठ जाता है, और गेंहू की बोरीया लेके छत पर जाने लगता है। उसके पीछे पीछे सुगना भी छत पर आ जाती है।

बेचन गेहुं की बोरीया रखते हुए)-- अम्मा सीमा कहा रह गयी?

सुगना(गुस्से में)- क्यूं क्या काम था तुझे उससे?

बेचन-- कुछ काम नही था अम्मा, मैं तो बस ऐसे ही!

सुगना-- अरे थोड़ी तो शरम कर, तूझे अपनी बेटी की शादी करने के वजाय तू खुद उसके साथ....छी।

बाचन-- कलती हो गयी अम्मा, वो उस रात सीमा को खाट पर बीठाने के चक्कर में उसे गोद में उठाया तो मैं थोड़ा बहक गया।

सुगना-- अच्छा , अच्छा ठीक है। आगे से कुछ ऐसा वैसा मत करना॥

बेचन-- मेरी प्यारी अम्मा, ठीक है। नही करुगां,

सुगना-- अच्छा जरा ये गेंहू की बोरी खोल और गेंहू पानी की बाल्टी में भीगो।

बेचन फटाफट गेंहू की बोरी खोल गेहूं को पानी के बाल्टी में डाल देता है।
की बाल्टी में डाल देता है।

सुगना गेंहू को हाथ डाल कर साफ करने लगती है, बेचन वही एक तरफ बैठ जाता है,

सुगना-- क्यूं करता है रे तू ऐसा? घर तेरी औरत है फीर भी तू अपनी बेटी पर।

बेचन-- अरे अम्मा हो गयी गलती, आगे से नही होगी।

सुगना-- चल ठीक है, तू जा झुमरी के पास बैठ उसे पानी वानी की जरुरत पड़ी तो।

बेचन- ठीक है अम्मा, और उठकर नीचे चला आता है।

बेचन जैसे ही निचे आता है, उसे उसकी बेटी सीमा नजर आती है। जो झुमरी के खाट के पास बैठी थी और उसके साथ उसकी सहेली रीता थी।

बेचन- अरे रीता बिटीया तुम?
रीता-- हां काका वो सीमा को छोड़ने आयी थी। (रीता एक 23 साल की भरे बदन वाली लड़की थी, थोड़ी सावलीं मगर बदन में कसावट कमाल की थी। उसकी चुचीयां सीमा से थोड़ी बड़ी थी, लेकीन गांड के मामले में सीमा का कोइ जवाब नही था)

रीता-- अच्छा सीमा मैं चलती हूं॥
सीमा-- ठीक है रीता।
रीता के जाते ही, बेचन सीमा के खाट की तरफ बढ़ा तभी बाहर से आवाज आती है....बेचन वो बेचन घर पर है क्या?

बेचन आवाज सुनते ही बाहर आ जाता है, बाहर उसका बड़ा भाइ शेसन खड़ा था।

बेचन-- क्या हुआ भैय्या?
शेसन-- मेरा खेत का पानी हो गया है, जा जाके तू लगा ले पानी॥

बेचन-- ठीक है, और कहते हुए खेत की तरफ निकल देता है।

सोनू खेत के झोपड़े में बैढा था, और उसे भुख भी लग रही थी रोज की तरह उसकी मां खाना लेकर आ जाती है।

सोनू-- बहुत सही टाइम पर आयी है, मा चल खोल जल्दी और दे मुझे।

ये सुनकर सुनीता हकपका जाती है।

सुनिता-- क....क्या खोलू। और क्या दू?
सोनू-- अरे खाना दे मां, मुझे भुख लगी है।

सुनीता ठंडी सास भरते हुए मन में-- हे भगवान इस लड़के ने तो मुझे डरा ही दीया, मुझे लगा ये कुछ और ही मांग रहा है, और फीर सुनीता के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान ठहर जाती है।

सुनीता खाने की थाली सोनू के तरफ बढ़ा देती है।और वही सोनू के बगल में बैठ जाती है।

सोनू खाना खाने लगता है।

सुनीता-- सोच रही हूं अब तेरी शादी करा दू।
सोनू-- क्यूं मां इतनी जल्दी क्या है?
सुनीता-- अरे घर में बहु होगी तो तेरे लीये खाना बनायेगी, तेरी सेवा करेगी।

सोनू-- मां मै बुडढा नही हुआ हूं जो मेरी सेवा करेगी, और रही बात खाना की तो उसके लीये तू है ना।

सुनीता-- हां अब तू मुझे ही परेशान कर, उतनी दुर से तुझे खाना लाने में मेरा पांव दुखने लगता है।

सोनू-- अब तू मत लाया कर मां , मै खुद ही आ जाया करुगां॥ और वैसे भी अब तेरी उमर हो चली है, तू आराम कीया कर।

सुनीता-- क्यूं रे मैं तूझे बुडढी दीखती हूं?
सोनू-- नही, मां मेरे कहने का मतलब ये नही था।

सुनिता का चेहरा उतर गया था जो सोनू साफ साफ देख सकता था।

सुनीता-- सही है तेरे कहने का मतलब एक बुडढी को बुडढी नही तो और क्या बोलेगा?

सोनू इतना तो जानता था की, उसकी मा बहुत खुबसुरत है। वो तो बस उसके मुह से 'पांव दुखने की बात' पर नीकल गया की तेरी उमर हो चुकी है।

सोनू -- वैसे मेरी बुडढी मां कयामत लगती है।

सुनीता ये सुनकर शरमा जाती है, और बोली।

सुनीता-- बाते बनाने में आगे है, तू वैसे बहुत भोला बनता है। अपनी मां को कयामत बोलता है. शरम नही आती तूझे जरा सा भी।

सोनू-- अपनी मां से कैसी शरम, जो बात है तुझमे वो बात बोल दी मैने।

सुनीता-- मैं तुझे कहां से कयामत लगती हू भला।

सोनू-- बताऊं,
सुनीता-- बता जरा।

सोनू-- तू सुन पायेगी क्या मां॥

सुनीता(शरमाते हुए)-- नही रहने दे बेशरम।

सोनू-- जब तू शरमाती है, तो आधा से ज्यादा कत्ल तो ऐसे ही हो जाता है। अगर तू मेरी मां नही होती तो।

सुनीता-- मां नही होती तो क्या?
सोनू-- फीर तो मेरे मजे थे।

सुनीता ये सुन कर बुरी तरह शरमा जाती है, और सोनू के गाल पर थपकी लगाती हुए.....बेशरम.......मैं तेरी मां हू।

सोनू-- वही तो रोना है।
सुनीता-- अच्छा मतलब मैं तेरी मां हू तो तुझे अच्छा नही लगता।

सोनू-- अरे नही मां तू मेरी मां है, ये मेरा सौभाग्य है, और वैसे भी दुनीया में खुबसुरत औरतो की कमी थोड़ी है, जो मैं अपनी मां पर ही बुरी नज़र डालूगां॥

सुनीता ये सुनकर उसे साफ हो गया था की उसके बेटे की नज़र में मै सीर्फ उसकी मां हू और कुछ नही, लेकीन उसे एक बात अंदर ही अंदर खाये जा रही थी जो सोनू ने बोला ' की दुनीया में औरतो की कमी थोड़ी है, जो वो अपने मां पर ही'

पता नही क्यूं आज सुनीता को उन सारी औरतो से नफरत सी हो रही थी।

सोनू खाना खा चूका था। और हाथ मुह धो के वापस आ कर खाट पर बैठ गया।

सुनीता-- उस दीन भोला बनने की नाटक क्यूं कर रहा था?

सोनू--कीस दीन मां?
सुनीता-- जीस दीन भैंस ले के जाने का था, पता तेरे उपर सब हसं रहे थे की तू अनाड़ी है।

सोनू-- लगता है मेरी प्यारी मां को रास नही आया की कोइ मुझे अनाड़ी बोले।

सुनीता-- हा तो...दुनीया की कोइ मां नही सह सकती की कोइ भी उसके बेटे को अनाड़ी बोले।

सोनू-- वैसे कौन बोल रहा था अनाड़ी?
सुनीता-- तेरी चाचीयां और फातीमा।

सोनू-- और तू?
सुनीता-- हां तो तेरी हरकते वैसी ही थी, तो मुझे भी वैसा ही लगा।

सोनू-- तू बोले अनाड़ी मुझे कोइ फर्क नही मां॥
सुनीता-- क्यूं मेरे बोलने पर फर्क क्यूं नही होता तूझे?

सोनू-- क्यूकीं मैं तुझे साबीत नही कर सकता ना मां॥

सुनीता ये बात समझ गयी की सोनू क्या बोलना चाहता है, वो बुरी तरह शरमा गयी, सोनू की बाते उसके रोम रोम में हलचल मचा देता।

सुनीता-- और बाकी लोगो को कैसे साबीत करेगा।
सोनू-- फातीमा काकी को साबीत कर दीया है, अब जा कर पुछ लेना की मैं अनाड़ी हू यां खीलाड़ी।

सोनू को ये नही पता की वो जो बोल रहा है, वो सुनीता ने पुरा खेल देखा था। फीर भी सुनीता बोली।

सुनीता-- ऐसा क्या कीया तूने फातीमा के साथ।

सोनू-- काकी तेरी सहेली है, तू खुद पुछ लेना।

सुनीता-- अच्छा बाबा पुछ लूगीं , अब तू आराम कर मैं चलती हू ॥ रात को तेरा पसदींदा आलू का पराठा बना कर रखुगीं॥

सोनू-- ठीक है मेरी प्यारी मां और अनायास ही उसके होठ सुनीता के गाल को चुम लेते है, सुनीता के बदन में सीरहन सी उठ जाती है,

सुनीता-- बदमाश. और उठ कर थाली लेकर जैसे ही कुछ दुर जाती है, सोनू उसे आवाज देता है॥

सोनू -- मां,
सुनीता(पीछे घुमते हुए)-- हां क्या हुआ?

सोनू-- कुछ नही, बस आज बहुत अच्छा लगा , तुने पहली बार मेरे साथ इतना प्यार से बात की। ऐसे ही कभी कभी करते रहना।

सुनीता ये सुनकर उसकी आंख भर आती है, और वो झट से सोनू के पास आकर उसे सीने से लगा लेती है।

सुनीता-- मुझे माफ कर दे बेटा, आज के बाद मैं तुझे कभी नही डाटुगीं॥

सोनू-- सोनू, अलग होते हुए- ऐसा मत करना मां॥ मुझे कभी कभी डाटते रहना।

सुनीता-- क्यूं?
सोनू-- नही तो मुझे तुझसे प्यार हो जायेगा, मां बेटे वाला नही।
सुनीता-- तो कैसा प्यार?

सोनू-- जैसा तू पापा से करती थी। वो वाला,

सुनीता-- धत बेशरम और वहा से शरमाते हुए भाग जाती है...।


"घर में मालती खाट पर लेटी, साड़ी के उपर से ही अपनी बुर रगड़ रही थी।और उसके ज़हन में सिर्फ सोनू का वो घोड़े जैसा लंड नज़र आ रहा था।

मालीती(मन में ही)-- अरे कीतना बड़ा था सोनू का लंड , मैने तो आज तक इतना मोटा लंड देखा ही नही था। कैसे सोहन की गांड फाड़ रहा था...बेरहम
यही सोचते सोचते उसको मस्ती चढ़ जाती है....तभी अँदर कोइ आ जाता है। जीसे देख मालती चौंक जाती है, और अपने बुर पर से हाथ हटा खाट पर से खड़ी हो जाती है।

मालती-- कल्लू ब.....बेटा तू!

कल्लू-- हां मां तू बाहर कपड़े डाल कर भूल जाती है, क्या ? बाहर बारीश होने जैसा मौसम बन रहा है, जो भी कपड़े सुखे थे सब फीर से गीले हो जाते।

मालती-- अरे हा बेटा ध्यान ही नही रहा। अच्छा हुआ तू लाया, अब चल मैं खाना लाती हूं तू खा ले।
और फीर मालती रसोइ घर में जाने लगती है, तभी उसके दीमाग में पता नही कहा से सोनू की कही हुइ बात याद आती है, की उसने तो अपनी बड़ी मा को भी चोद दीया है,

मालती खाना ले कर आती है, और खाट पर बैठे अपने बेटे को देकर वही जमीन पर बैठ जाती है।

मालती(मन में)-- अगर उसकी बड़ी मां अपने बेटे से चुदवा सकती है, तो क्या मैं अपने बेटे के साथ.....नही...नही ये गलत है।
तभी उसकी नज़र कल्लू पर पड़ती है,

कल्लू आराम से खाना खा रहा था,
ना चाहते हुए भी मालती कल्लू को निहारे जा रही थी,

मालती(मन में)-- मेरा बेटा, सोनू के जैसा थोड़ी है, जो अपनी मां पर ही बुरी नज़र डालेगा। लेकीन मैं ही पागल हूं जो अपने ही बेटे के बारे में गदां सोच रही हू, लेकीन क्या करु जब से लंड देखी हू तब से मेरी बुर फड़पड़ा रही है। क्या करू? बाहर चुदवाउगीं तो बदनामी होगी,लेकीन लंड तो चाहीए ही। मेरे लिये अच्छा होगा की अपने बेटे के नीचे ही पड़ी रहु जिंदगी भर....लेकीन इसे पटाउ कैसे ? अगर ये बुरा मान गया तो....अब जो होगा देखा जायेगा?

मालती-- बेटा पानी बरसने लगा, तूने सारे कपड़े तो नीकाले थे ना?
कल्लू-- हां मां॥
मालती-- मैं फीर भी देख कर आती हूं कही कोइ छुट तो नही गया और कहते हुए बाहर चली जाती है,

जब वो जा रही थी तो कल्लू कनखी से उसकी बड़ी बड़ी गांड देख रहा था, मालती दरवाजे के पास पहुच कर छट से पिछे मुड़ जाती है, और कल्लू को देखती है, जो उसकी मटकती गांड की तरफ देख रहा था।

कल्लू हड़बड़ा कर अपनी नज़र दुसरी तरफ कर लेता है, लेकीन तब तक मालती समझ चुकी थी की ये मेरी गांड ही देख रहा था। मालती थोड़ा सा मुस्कुराइ और बाहर आ गयी।

कल्लू(मन में)-- हे भगवान कही मां ने देख तो नही लीया की मैं उसकी...नही नही देखी होती तो अब तक मेरी पीटाइ हो जाती, लेकीन क्या गांड है साली की, 1 साल से देखते आ रहा हू चुप चुप के लेकीन कुछ कर नही पा रहा हूं....

तभी वहां मालती आ जाती है, वो इकदम पानी में भीगी थी, ये देख कल्लू चिल्लाया!

कल्लू-- मां तू पागल हो कयी है, क्या ठंढी के मौसम में क्यूं भीग रही है? ठंढ लग जायेगी तो।

मालती(ठंढी से कापते हुए)-- बेटा वो मै....आ....छी (छिंकते हुए)
कल्लू-- देखा सर्दी लग गयी ना, चल अब जल्दी कपड़े बदल ले।

मालती वही खड़ी खड़ी अपनी साड़ी खोल देती है, भीगा हुआ ब्लाउज जो मालती की बड़ी बड़ी चुचीयों को एक अच्छा सा शेप दे रहा था, और उसका पेटीकोट पूरा उसके गांड से चिपका उसकी खुबसुरती को बढ़ा रहा था। और कल्लू के सोये हुए लंड की लम्बाइ भी।

कल्लू तो बस मुहं खोले अपनी मां की गदराइ हुइ जवानी देख रहा था।

मालती-- अप खड़े खड़े देखता ही रहेगा या मेरी साड़ी भी लायेगा अंदर से। मुछे ठंढ लग रही है...आ...छी:॥

कल्लू-- हां.... लाता हू।
और अंदर से जाकर साड़ी और पेटी कोट लेकर आता हैं॥

मालती-- अरे बेटा तूने मेरी अंगीया(ब्रा) और चड्ढ़ी नही लाई(कहकर हल्का सा मुस्कुरा देती है)

कल्लू तो ये सुनकर ही पागल हो जाता है, वो झट से अंदर जाता है और उसकी एक काले कलर की ब्रा लेता है, और फीर उसकी चडढी लेकर जैसे ही आता है, उसके दिमाग मे खुरापात है, उसने चडढी के सामने एक बडा सा होल कर दिया और फीर जल्दी से लाकर अपनी मां को दे दीया।

मालती-- अब मुझे ही देखता रहेगा या, मुह पिछे घुमायेगा। मुझे कपड़े बदलने है,

कल्लू अपना मुह पिछे घुमा लेता है, मालती अपना कपड़ा बदलने लगती है। लेकीन जब वो चड्ढी पनहने लगती है, तो उसे चड्ढी में बड़ा सा होल दीखा ये देख कर मालती मुस्कुराते हुए मन में-- वाह बेटा, मुझे लगा आग सीर्फ मेरे बुर में ही लगी है। लेकीन मुझे क्या पता था की तेरा भी लंड सुलग रहा है...और सोचते सोचते चड्ढी पहन लेती है,

मालती-- मैने कपड़े पहन लीये है, अब तू मुह घुमा सकता है।

कल्लू पलट जाता है, और खाट पर बैठ जाता है।

कल्लू-- मां खाना क्या बनायेगी आज?
मालती कल्लू के बगल में बैठती हुई-- जो मेरा बेटा बोले, वही बनाउगीं॥

कल्लू-- मां तू बता ना तूझे क्या पंसद है।

मालती-- मुझे जो पंसद है तू खीला पायेगा?

कल्लू-- अरे मां तू बोल तो सही।
मालती-- मुझे तो बैंगन पंसद है।

कल्लू इतना भी ना समझ नही था, वो समझ कया था की उसकी मां ने उसे उसकी गांड देखते हुए देख लीया था। और फीर होल वाली चड्ढी भी पहन ली और कुछ बोली नही, और अब इसे बैंगन खाना है।

कल्लू-- मां तूझे बैंगन कब से पंसद आने लगा?
मालती-- बेटा जब से सुनिता के घर में देखा तब से।

कल्लू हड़बड़ाया और सोचने लगा की इसने सुनीता काकी के घर में....कही सोनू ने तो नही दिखाया इसे( ये सोचकर ही उसकी गांड जलने लगती है)
क्यूकीं सोनू और उसकी बनती नही थी।

कल्लू-- मतलब तू मेरे दुश्मन के घर बैंगन देख कर आयी है, तो वही क्यूं नही खा ली?

मालती ये जानती थी की इसका सोनू से नही बनता,
मालती-- अरे तू नाराज़ क्यूं हो रहा है मेरे लाल, मैं बैंगन कहीं भी देखु लेकीन खाउगीं तो सिर्फ अपने घर की।

ये सुन कल्लू खुश हो जाता है॥

कल्लू-- मां मुझे भी तुझे अपना बैंगन खीलाने में बहुत मजा आयेगा।
मालती (शरमाते हुए)-- मुझे भी मजा आयेगा बेटा।

कल्लू -- मां तूझे ठंढ लग रही होगी मैं रज़ाइ ला देता हू फिर तू ओढ़ कर बैठ।
मालती-- ठीक है बेटा।

कल्लू अंदर से एक रज़ाइ ला कर दे देता है, मालती वो रज़ाइ ओढ़ कर बैठ जाती है।
मालती-- तूझे ठंढ़ी नही लग रही है क्या?
कल्लू-- लग तो रही है,

मालती-- अभी शाम होने में समय है। आजा तू भी रज़ाइ में थोड़ी तेर सो लेते है, तू भी तो कपड़े धो कर थक गया होगा?

कल्लू समझ जाता है की मां को बैंगन खिलाने का इससे अच्छा मौका नही मिलेगा, वो अपनी मां के साथ रज़ाई में घुस जाता है.....


कहानी जारी रहेगी....
 

Nikhil143

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बेरहम है तेरा बेटा--1


अपडेट-----7



कल्लू रज़ाई में अपनी मां के साथ लेटा था, उसका शरीर इकदम गरम हो गया था।
उधर मालती अपने बेटे की तरफ से कोइ प्रतीक्रीया चाहती थी, तभी उसे अपनी कमर पर कल्लू का हाथ महसुस हुआ,

मालती सीहर गयी, और अपनी आंखे बंद कर ली।

कल्लू ने उसकी कमर को थोड़ा अपने हाथ से मसला॥

मालती-- आ....ह बेटा क्या कर रहा है?
कल्लू-- कुछ तो नही मां॥
मालती-- मेरी कमर क्यूं दबा रहा है?
कल्लू-- वो तूझे ठंढी लगी है ना इसलीये। मैं दबाउं मां॥

मालती-- दबा लेकीन गलत जगह क्यूं दबा रहा है?
कल्लू-- फीर कहां दबाउं मां?
मालती कल्लू की तरफ अपना मुह करती हुइ बोली।

मालती-- चड्ढी में छेंद करना जानता हैं, और कहा दबाना है वो नही जानता तू।

कल्लू सुन कर थोड़ा मुस्कुरा देता है।

मालती-- हसं क्यू रहा हैं?
कल्लू-- हसं इसलीये रहा हू , की तूने फीर भी चड्ढी पहन ली।
मालती-- बेशरम....इक तो अपनी मां के चड्ढी में छेंद करता है और उपर से हस रहा है। बोल क्यूं छेद की थी तूने?

कल्लू(मालती के कान में)-- ताकी तेरा छेंद देख सकू।
तभी बाहर से आवाज आती है.....मालती अरी वो मालती।

दोनो आवाज सुनते ही घबरा कर अलग हो जाते है, मालती घर के बाहर नीकली तो उसे गांव की 3, 4 औरते दीखी,

मालती-- क्यां हुआ? रमा।
रमा-- अरे वो अपने सरपंच है ना, वो चल बसे।
मालती-- क्या? कैसे -
रमा-- पता नही सब वही गये है, हम भी जा रहे है, चल तू भी॥

मालती भी उन लोग के साथ चल देती है, और इधर कल्लू भी अपना सायकील उठा कर चल देता है।


सरपंच के घर पर भीड़ लगी हुई थी, पुरा गावं के लोग भी इकट्ठा हुए थे। रोने बीलखने की आवाजें गुंज रही थी।

सोनू भी वही था, वो अपने बड़े पापा के पास खड़ा था।
रजींदर-- अरे सुना रात को सोये तो सुबह उठे ही नही।

तभी वहा कार आकर रुकती है। उसमे से डाक्टर पारुल अपनी बेटी वैभवी के साथ उतरती है।

रजिंदर-- अरे सोनू जा कुर्सी ले के आ जल्दी।
सोनू सरपंच के घर में कुर्सी लाने चला जाता है, और दो कुर्सी ले के आता है। एक कुर्सी पारुल को देता है, और दुसरा कुर्सी वैभवी के तरफ बढ़ा देता है।

वैभवी-- कैसे हुआ ये?
सोनू-- पता नही सब तो यही कह रहे है की , रात को सोये तो सुबह उठे ही नही।

वैभवी-- लेकीन मुझे तो कुछ और ही लग रहा है।
सोनू-- क्या लग रहा है?
वैभवी-- उसे तुमसे क्या वो मां डाक्टर है बता देगी। और वैसे भी मैं तुमसे बात क्यू कर रही हूं॥

सोनू (धिरे से)-- शायद प्यार हो गया हो मुझसे।
वैभवी-- प्यार और तुमसे....हं..कभी थोपड़ा देखा है आइने में। तुमने ही कहा था ना मैं बहुत खुबसुरत हूं॥

सोनू-- आप तो परी लगती है।
वैभवी-- तो परी के साथ , इसान का मेल नही होता।
सोनू-- हाय यही अदा तो अपकी मुझे पागल कर देती है।
वैभवी-- इडीयट् । बात करने की तमीज़ नही है क्या तुम्हे?

सोनू-- आप सीखा दो ना।
वैभवी कुछ बोलती इससे पहले ही उसके बड़े पापा बोले-

रजिंदर-- उधर क्या कर रहा है, चल जा ट्रेक्टर ले के आ मट्टी(लाश) लेके चलने का वक्त हो गया है,

सोनू वहा से जाकर ट्रेक्टर ले के आता है, और सब मट्टी के साथ गंगा कीनारे चल देते है।

शाम को सब घर वापस आ जाते है, सोनू थोड़ी देर सरपंच के घर पर बैठता है और फीर सीधा घर पर आ जाता है।
शाम के करीब 7 बज गये थे, और अंधेरा हो चुका था। घर में सुनिता के साथ साथ कस्तुरी और अनिता भी बैठे थे।

कस्तुरी-- अरे सोनू बेटा बाहर ही रह।
सोनू बाहर ही रुक जाता है,
सोनू-- क्यू चाची क्या हुआ?
कस्तुरी-- अरे मट्टी से आ रहा है, पैर धो ले और कपड़े बाहर उतार कर आ।

सोनू पैर धोता है, और फटाफट कपड़े बदल कर अंदर आ जाता है।

कस्तुरी-- आज तेरे मन का पराठा बनायी हूं॥
सोनू -- नही चाची, आज सब गांव में भुखे रहेगें, एक मट्टी उठी है, ॥

कस्तुरी-- हां बेटा वो तो है,
सोनू बैठा यही सोच रहा था की, अब तो फातीमा काकी के घर जा नही सकता, और एक मादरचोद बड़ी अम्मा थी तो अपनी मां चुदाने गयी है अपनी मायके, अब लंड को बुर मीले तो मीले कहा। सोचते सोचते उसकी नज़र कस्तुरी पर पड़ी, जो की वो सोनू को ही देख रही थी,

कस्तुरी-- क्या हुआ बेटा कुछ चाहिए क्या?
सोनू(मन में)-- हा साली तेरी बुर देगी मुझे?
सोनू-- नही कुछ नही चाहिए।

कस्तुरी(सोनू की तरफ देखते हुए)-- मुझे लगा कुछ चाहिए, और अपनी चुचीया हल्की सी दबा देती है। और सोनू को देख कर मुस्कुरा देती है।

उसकी ये हरकत सोनू के सीवा कोई और नही देख पाता। सोनू देखते ही समझ जाता है की ये साली की भी बुर गरम है।

सोनू भी बीना डर के सबसे नज़रे चुराये कस्तुरी को आंख मार देता है।कस्तुरी ये देख कर शरमा जाती है।

सोनू उसके साथ ऐसे ही बैठे 2 घंटे तक हरकते करता रहा।

सोनू-- मां मै उपर छत पर सोने जा रहा हूं॥
सुनीता-- क्यूं बेटा उपर छत पर क्यूं सोने जा रहा है।
सोनू-- आज से मैं वही सोउगां मां॥

सुनिता-- ठीक है, बेटा।

और सोनू उठ कर जाते जाते कस्तुरी को इशारा कर देता है। कस्तुरी भी हां में सर हीला कर शरमा जाती है।

करीब आधे घंटे और बैठने के बाद सब लोग सोने चले जाते है।
कस्तुरी अन्नया के साथ लेटी थी और वो अनन्या के सो जाने का इंतजार कर रही थी।

करीब 2 घंटा हो गया लेकीन अनन्या और उसके बगल .के खाट पर लेटी कस्तुरी की बेटी आरती दोनो बाते ही कर रही थी।

कस्तुरी-- तुम लोग सोवोगे नही क्या?
आरती-- नही मां आज पता नही क्यूं निदं नही आ रही है।

कस्तुरी-- हां तुझे निंद कैसे आयेगी , तेरी मां की बुर जो चुदने वाली है।

कस्तुरी-- तो तुम लोग चिल्लाओ ,मुझे तो निंद आ रही है। मै जा रही हूं छत पर सोने। और वैसे भी छत पर सोनू सो ही रहा है।

अनन्या-- हां जा तू चाची, हमें पता नही कब निदं आयेगी?

छत पर सोनू बल्ब की रौशनी में अपने खाट पर लेटा था।
और इधर जैसे जैसे कस्तुरी सिढ़िया चढ़ रही थी, वैसे वैसे उसकी सांसे बढ़ रही थी,
कस्तुरी छत पर आकर पहले सिढ़ियो का दरवाजा बंद करती है। और सोनू के कमरे में अंदर आती है।

सोनू-- क्या बात है बहुत जल्दी आ गयी।
कस्तुरी (अंदर से कड़ी लगाते हुए)- हां तो क्या करु? वो अनन्या और आरती सोने का नाम ही नही ले रही थी। लेकीन तू मुझे यहां क्यूं बुलाया है॥


सोनू-- तूझे चोदने!
कस्तुरी-- धत बेशरम, भला कोइ अपनी चाची के साथ ऐसा कोई करता हैं क्या?

सोनू-- साली तेरी जैसी उठी उठी गांड और भरी भरी चुचीया जीसकी चाची के पास होगी। वो चुतीया ही होगा जो नही चोदेगा?

कस्तुरी शरमा जाती है-- सोनू ऐसे बात मत कर, मुझे शरम आ रही है।
सोनू-- शरमायेगी तो चुदवायेगी कैसे?
कस्तुरी-- मुझे नही चुदवाना।
सोनू-- चल साड़ी उतार ॥ आज पुरी रात है तुझे चोद चोद कर अपनी रंडी बनाउगां॥

कस्तुरी-- नही ना सोनू ऐसा नही करते।
सोनू-- नखरे मत कर मादरचोद। चल साड़ी उतार जल्दी,

कस्तुरी भी नही चाहती थी की उसके बदन पर एक भी कपड़ा रहे। उसने अपनी साड़ी के साथ साथ पुरा कपड़ा निकाल कर नंगी हो गयी।

कस्तुरी-- कैसा लगा तेरी चाची का जीस्म।
सोनू-- साली तू तो रंडी है। इकदम अपतक शरम आ रही थी।
कस्तुरी-- हां मैं तेरी रंडी हू सीर्फ तेरी। और खाट पर आकर बैठ जाती है। चोद चोद कर अपनी रखैल बना ले सोनू, और जैसे रज़ाइ हटाती है। सोनू का लंबा मोटा लंड तन कर खड़ा था।

कस्तुरी-- हाय रे...ये तेरा लंड है या...घोड़े का।
सोनू-- अपनी बुर में लेगी तो बताना , की कैसा है मेरा लंड। चल अब चुस इसे मुंह में लेके।

कस्तुरी सोनू का लंड अपने हाथ में लेती है।
कस्तुरी-- अरे ये तेरा लंड तो मेरी मुट्ठी में भी नही आ रहा है। पता नही ये मेरी बुर का क्या हाल करेगा।

सोनू-- साली अब मुह में डालेगी....आह हां मेरी रंडी ऐसे ही चुस।
कस्तुरी अपना मुहं खोले सोनू का लंड अपने हलक तक उतार लेती, वो सच में बहुत बड़ी चुदक्कड़ थी, खासते हुए भी वो सोनू का लंड अपने गले में उतार लेती॥

कस्तुरी-- आह ऐसा लंड मैने अपनी जिंदगी में पहली बार देखा है।

सोनू-- अह , साली मुझे भी पहली बार तेरी जैसी रंडी मिली है, आह जो कमाल चुसती है।

कस्तुरी(सांस लेते हुए)-- तेरी कुतीया हूं ना तो चुसुगीं ही। कैसा चुस रही है तेरी रंडी चाची।

सोनू-- बोल मत आह मादरचोद , क्या चुसती है। अपनी बेटी से कब चुसवायेगी।

कस्तुरी-- पहले उसकी मां को तो चोद ले।

सोनु-- उसकी मां तो चोदुंगा ही।
कस्तुरी--- कसम.सेे।ये। तेरा। लंड देख कर तो कोइ भी औरत तेरे सामने कुतीया बन जाायेगी....।

सोनू ने उसे खाट पर लिटा दीया... और उसके.उपर चढ़ गया, उसकी.चुुुचीयों कोअपने द़ातो में दबा कर उपर की तरफ खीचने.लगा......।

कस्तुरी----- आ..........आ.......ह, न....ही सो......नू , दर...द कर ...रहा हैईईईई........इआ,
कस्तुरी दर्द से तीलमीला गई..उसे फातीमा की चुदााई देखने के बाद ये तो पताा चल गया थाकी सोनू बेरहम है, लेकीन इतंनाय नहीी जानती.थी।

सोनू का.तो काम ही था बेरहमी से चोदना......,

कस्तुरी---- आह..बेरहम तेरा ये लंड देख कर तो कोई भी औरत....आह पागल हो जायेगी लेेकीन तेरा दिया हुआ. दर्द सब औरतें नही सह पायेगी रे.......आ....मां ...मेरी... चु....चीयांं.।

सोनू ने आखीर उसकी नीप्पल से.खुन का कतरा नीकाल ही.दिया...।

कस्तुरी---- .हाय रे द इया, जब तक तुझे खुन नही दीखता तब तक तूझे चैन नही मीलता ना.बेरहम........।
 

Sunny Singh Rathore

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बेरहम है तेरा बेटा--1


अपडेट-----7



कल्लू रज़ाई में अपनी मां के साथ लेटा था, उसका शरीर इकदम गरम हो गया था।
उधर मालती अपने बेटे की तरफ से कोइ प्रतीक्रीया चाहती थी, तभी उसे अपनी कमर पर कल्लू का हाथ महसुस हुआ,

मालती सीहर गयी, और अपनी आंखे बंद कर ली।

कल्लू ने उसकी कमर को थोड़ा अपने हाथ से मसला॥

मालती-- आ....ह बेटा क्या कर रहा है?
कल्लू-- कुछ तो नही मां॥
मालती-- मेरी कमर क्यूं दबा रहा है?
कल्लू-- वो तूझे ठंढी लगी है ना इसलीये। मैं दबाउं मां॥

मालती-- दबा लेकीन गलत जगह क्यूं दबा रहा है?
कल्लू-- फीर कहां दबाउं मां?
मालती कल्लू की तरफ अपना मुह करती हुइ बोली।

मालती-- चड्ढी में छेंद करना जानता हैं, और कहा दबाना है वो नही जानता तू।

कल्लू सुन कर थोड़ा मुस्कुरा देता है।

मालती-- हसं क्यू रहा हैं?
कल्लू-- हसं इसलीये रहा हू , की तूने फीर भी चड्ढी पहन ली।
मालती-- बेशरम....इक तो अपनी मां के चड्ढी में छेंद करता है और उपर से हस रहा है। बोल क्यूं छेद की थी तूने?

कल्लू(मालती के कान में)-- ताकी तेरा छेंद देख सकू।
तभी बाहर से आवाज आती है.....मालती अरी वो मालती।

दोनो आवाज सुनते ही घबरा कर अलग हो जाते है, मालती घर के बाहर नीकली तो उसे गांव की 3, 4 औरते दीखी,

मालती-- क्यां हुआ? रमा।
रमा-- अरे वो अपने सरपंच है ना, वो चल बसे।
मालती-- क्या? कैसे -
रमा-- पता नही सब वही गये है, हम भी जा रहे है, चल तू भी॥

मालती भी उन लोग के साथ चल देती है, और इधर कल्लू भी अपना सायकील उठा कर चल देता है।


सरपंच के घर पर भीड़ लगी हुई थी, पुरा गावं के लोग भी इकट्ठा हुए थे। रोने बीलखने की आवाजें गुंज रही थी।

सोनू भी वही था, वो अपने बड़े पापा के पास खड़ा था।
रजींदर-- अरे सुना रात को सोये तो सुबह उठे ही नही।

तभी वहा कार आकर रुकती है। उसमे से डाक्टर पारुल अपनी बेटी वैभवी के साथ उतरती है।

रजिंदर-- अरे सोनू जा कुर्सी ले के आ जल्दी।
सोनू सरपंच के घर में कुर्सी लाने चला जाता है, और दो कुर्सी ले के आता है। एक कुर्सी पारुल को देता है, और दुसरा कुर्सी वैभवी के तरफ बढ़ा देता है।

वैभवी-- कैसे हुआ ये?
सोनू-- पता नही सब तो यही कह रहे है की , रात को सोये तो सुबह उठे ही नही।

वैभवी-- लेकीन मुझे तो कुछ और ही लग रहा है।
सोनू-- क्या लग रहा है?
वैभवी-- उसे तुमसे क्या वो मां डाक्टर है बता देगी। और वैसे भी मैं तुमसे बात क्यू कर रही हूं॥

सोनू (धिरे से)-- शायद प्यार हो गया हो मुझसे।
वैभवी-- प्यार और तुमसे....हं..कभी थोपड़ा देखा है आइने में। तुमने ही कहा था ना मैं बहुत खुबसुरत हूं॥

सोनू-- आप तो परी लगती है।
वैभवी-- तो परी के साथ , इसान का मेल नही होता।
सोनू-- हाय यही अदा तो अपकी मुझे पागल कर देती है।
वैभवी-- इडीयट् । बात करने की तमीज़ नही है क्या तुम्हे?

सोनू-- आप सीखा दो ना।
वैभवी कुछ बोलती इससे पहले ही उसके बड़े पापा बोले-

रजिंदर-- उधर क्या कर रहा है, चल जा ट्रेक्टर ले के आ मट्टी(लाश) लेके चलने का वक्त हो गया है,

सोनू वहा से जाकर ट्रेक्टर ले के आता है, और सब मट्टी के साथ गंगा कीनारे चल देते है।

शाम को सब घर वापस आ जाते है, सोनू थोड़ी देर सरपंच के घर पर बैठता है और फीर सीधा घर पर आ जाता है।
शाम के करीब 7 बज गये थे, और अंधेरा हो चुका था। घर में सुनिता के साथ साथ कस्तुरी और अनिता भी बैठे थे।

कस्तुरी-- अरे सोनू बेटा बाहर ही रह।
सोनू बाहर ही रुक जाता है,
सोनू-- क्यू चाची क्या हुआ?
कस्तुरी-- अरे मट्टी से आ रहा है, पैर धो ले और कपड़े बाहर उतार कर आ।

सोनू पैर धोता है, और फटाफट कपड़े बदल कर अंदर आ जाता है।

कस्तुरी-- आज तेरे मन का पराठा बनायी हूं॥
सोनू -- नही चाची, आज सब गांव में भुखे रहेगें, एक मट्टी उठी है, ॥

कस्तुरी-- हां बेटा वो तो है,
सोनू बैठा यही सोच रहा था की, अब तो फातीमा काकी के घर जा नही सकता, और एक मादरचोद बड़ी अम्मा थी तो अपनी मां चुदाने गयी है अपनी मायके, अब लंड को बुर मीले तो मीले कहा। सोचते सोचते उसकी नज़र कस्तुरी पर पड़ी, जो की वो सोनू को ही देख रही थी,

कस्तुरी-- क्या हुआ बेटा कुछ चाहिए क्या?
सोनू(मन में)-- हा साली तेरी बुर देगी मुझे?
सोनू-- नही कुछ नही चाहिए।

कस्तुरी(सोनू की तरफ देखते हुए)-- मुझे लगा कुछ चाहिए, और अपनी चुचीया हल्की सी दबा देती है। और सोनू को देख कर मुस्कुरा देती है।

उसकी ये हरकत सोनू के सीवा कोई और नही देख पाता। सोनू देखते ही समझ जाता है की ये साली की भी बुर गरम है।

सोनू भी बीना डर के सबसे नज़रे चुराये कस्तुरी को आंख मार देता है।कस्तुरी ये देख कर शरमा जाती है।

सोनू उसके साथ ऐसे ही बैठे 2 घंटे तक हरकते करता रहा।

सोनू-- मां मै उपर छत पर सोने जा रहा हूं॥
सुनीता-- क्यूं बेटा उपर छत पर क्यूं सोने जा रहा है।
सोनू-- आज से मैं वही सोउगां मां॥

सुनिता-- ठीक है, बेटा।

और सोनू उठ कर जाते जाते कस्तुरी को इशारा कर देता है। कस्तुरी भी हां में सर हीला कर शरमा जाती है।

करीब आधे घंटे और बैठने के बाद सब लोग सोने चले जाते है।
कस्तुरी अन्नया के साथ लेटी थी और वो अनन्या के सो जाने का इंतजार कर रही थी।

करीब 2 घंटा हो गया लेकीन अनन्या और उसके बगल .के खाट पर लेटी कस्तुरी की बेटी आरती दोनो बाते ही कर रही थी।

कस्तुरी-- तुम लोग सोवोगे नही क्या?
आरती-- नही मां आज पता नही क्यूं निदं नही आ रही है।

कस्तुरी-- हां तुझे निंद कैसे आयेगी , तेरी मां की बुर जो चुदने वाली है।

कस्तुरी-- तो तुम लोग चिल्लाओ ,मुझे तो निंद आ रही है। मै जा रही हूं छत पर सोने। और वैसे भी छत पर सोनू सो ही रहा है।

अनन्या-- हां जा तू चाची, हमें पता नही कब निदं आयेगी?

छत पर सोनू बल्ब की रौशनी में अपने खाट पर लेटा था।
और इधर जैसे जैसे कस्तुरी सिढ़िया चढ़ रही थी, वैसे वैसे उसकी सांसे बढ़ रही थी,
कस्तुरी छत पर आकर पहले सिढ़ियो का दरवाजा बंद करती है। और सोनू के कमरे में अंदर आती है।

सोनू-- क्या बात है बहुत जल्दी आ गयी।
कस्तुरी (अंदर से कड़ी लगाते हुए)- हां तो क्या करु? वो अनन्या और आरती सोने का नाम ही नही ले रही थी। लेकीन तू मुझे यहां क्यूं बुलाया है॥


सोनू-- तूझे चोदने!
कस्तुरी-- धत बेशरम, भला कोइ अपनी चाची के साथ ऐसा कोई करता हैं क्या?

सोनू-- साली तेरी जैसी उठी उठी गांड और भरी भरी चुचीया जीसकी चाची के पास होगी। वो चुतीया ही होगा जो नही चोदेगा?

कस्तुरी शरमा जाती है-- सोनू ऐसे बात मत कर, मुझे शरम आ रही है।
सोनू-- शरमायेगी तो चुदवायेगी कैसे?
कस्तुरी-- मुझे नही चुदवाना।
सोनू-- चल साड़ी उतार ॥ आज पुरी रात है तुझे चोद चोद कर अपनी रंडी बनाउगां॥

कस्तुरी-- नही ना सोनू ऐसा नही करते।
सोनू-- नखरे मत कर मादरचोद। चल साड़ी उतार जल्दी,

कस्तुरी भी नही चाहती थी की उसके बदन पर एक भी कपड़ा रहे। उसने अपनी साड़ी के साथ साथ पुरा कपड़ा निकाल कर नंगी हो गयी।

कस्तुरी-- कैसा लगा तेरी चाची का जीस्म।
सोनू-- साली तू तो रंडी है। इकदम अपतक शरम आ रही थी।
कस्तुरी-- हां मैं तेरी रंडी हू सीर्फ तेरी। और खाट पर आकर बैठ जाती है। चोद चोद कर अपनी रखैल बना ले सोनू, और जैसे रज़ाइ हटाती है। सोनू का लंबा मोटा लंड तन कर खड़ा था।

कस्तुरी-- हाय रे...ये तेरा लंड है या...घोड़े का।
सोनू-- अपनी बुर में लेगी तो बताना , की कैसा है मेरा लंड। चल अब चुस इसे मुंह में लेके।

कस्तुरी सोनू का लंड अपने हाथ में लेती है।
कस्तुरी-- अरे ये तेरा लंड तो मेरी मुट्ठी में भी नही आ रहा है। पता नही ये मेरी बुर का क्या हाल करेगा।

सोनू-- साली अब मुह में डालेगी....आह हां मेरी रंडी ऐसे ही चुस।
कस्तुरी अपना मुहं खोले सोनू का लंड अपने हलक तक उतार लेती, वो सच में बहुत बड़ी चुदक्कड़ थी, खासते हुए भी वो सोनू का लंड अपने गले में उतार लेती॥

कस्तुरी-- आह ऐसा लंड मैने अपनी जिंदगी में पहली बार देखा है।

सोनू-- अह , साली मुझे भी पहली बार तेरी जैसी रंडी मिली है, आह जो कमाल चुसती है।

कस्तुरी(सांस लेते हुए)-- तेरी कुतीया हूं ना तो चुसुगीं ही। कैसा चुस रही है तेरी रंडी चाची।

सोनू-- बोल मत आह मादरचोद , क्या चुसती है। अपनी बेटी से कब चुसवायेगी।

कस्तुरी-- पहले उसकी मां को तो चोद ले।

सोनु-- उसकी मां तो चोदुंगा ही।
कस्तुरी--- कसम.सेे।ये। तेरा। लंड देख कर तो कोइ भी औरत तेरे सामने कुतीया बन जाायेगी....।

सोनू ने उसे खाट पर लिटा दीया... और उसके.उपर चढ़ गया, उसकी.चुुुचीयों कोअपने द़ातो में दबा कर उपर की तरफ खीचने.लगा......।

कस्तुरी----- आ..........आ.......ह, न....ही सो......नू , दर...द कर ...रहा हैईईईई........इआ,
कस्तुरी दर्द से तीलमीला गई..उसे फातीमा की चुदााई देखने के बाद ये तो पताा चल गया थाकी सोनू बेरहम है, लेकीन इतंनाय नहीी जानती.थी।

सोनू का.तो काम ही था बेरहमी से चोदना......,

कस्तुरी---- आह..बेरहम तेरा ये लंड देख कर तो कोई भी औरत....आह पागल हो जायेगी लेेकीन तेरा दिया हुआ. दर्द सब औरतें नही सह पायेगी रे.......आ....मां ...मेरी... चु....चीयांं.।

सोनू ने आखीर उसकी नीप्पल से.खुन का कतरा नीकाल ही.दिया...।

कस्तुरी---- .हाय रे द इया, जब तक तुझे खुन नही दीखता तब तक तूझे चैन नही मीलता ना.बेरहम........।
Bhai aise hi regular updates dete raho to maza aane jaye
 

Ben Tennyson

Its Hero Time !!
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बहुत ही बेहतरीन अपडेट दिये है भाई सारे के सारे !! चाची का लाँग लाची कर ही दिया !!
 
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Stone cold

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कल्लू रज़ाई में अपनी मां के साथ लेटा था, उसका शरीर इकदम गरम हो गया था।
उधर मालती अपने बेटे की तरफ से कोइ प्रतीक्रीया चाहती थी, तभी उसे अपनी कमर पर कल्लू का हाथ महसुस हुआ,

मालती सीहर गयी, और अपनी आंखे बंद कर ली।

कल्लू ने उसकी कमर को थोड़ा अपने हाथ से मसला॥

मालती-- आ....ह बेटा क्या कर रहा है?
कल्लू-- कुछ तो नही मां॥
मालती-- मेरी कमर क्यूं दबा रहा है?
कल्लू-- वो तूझे ठंढी लगी है ना इसलीये। मैं दबाउं मां॥

मालती-- दबा लेकीन गलत जगह क्यूं दबा रहा है?
कल्लू-- फीर कहां दबाउं मां?
मालती कल्लू की तरफ अपना मुह करती हुइ बोली।

मालती-- चड्ढी में छेंद करना जानता हैं, और कहा दबाना है वो नही जानता तू।

कल्लू सुन कर थोड़ा मुस्कुरा देता है।

मालती-- हसं क्यू रहा हैं?
कल्लू-- हसं इसलीये रहा हू , की तूने फीर भी चड्ढी पहन ली।
मालती-- बेशरम....इक तो अपनी मां के चड्ढी में छेंद करता है और उपर से हस रहा है। बोल क्यूं छेद की थी तूने?

कल्लू(मालती के कान में)-- ताकी तेरा छेंद देख सकू।
तभी बाहर से आवाज आती है.....मालती अरी वो मालती।

दोनो आवाज सुनते ही घबरा कर अलग हो जाते है, मालती घर के बाहर नीकली तो उसे गांव की 3, 4 औरते दीखी,

मालती-- क्यां हुआ? रमा।
रमा-- अरे वो अपने सरपंच है ना, वो चल बसे।
मालती-- क्या? कैसे -
रमा-- पता नही सब वही गये है, हम भी जा रहे है, चल तू भी॥

मालती भी उन लोग के साथ चल देती है, और इधर कल्लू भी अपना सायकील उठा कर चल देता है।


सरपंच के घर पर भीड़ लगी हुई थी, पुरा गावं के लोग भी इकट्ठा हुए थे। रोने बीलखने की आवाजें गुंज रही थी।

सोनू भी वही था, वो अपने बड़े पापा के पास खड़ा था।
रजींदर-- अरे सुना रात को सोये तो सुबह उठे ही नही।

तभी वहा कार आकर रुकती है। उसमे से डाक्टर पारुल अपनी बेटी वैभवी के साथ उतरती है।

रजिंदर-- अरे सोनू जा कुर्सी ले के आ जल्दी।
सोनू सरपंच के घर में कुर्सी लाने चला जाता है, और दो कुर्सी ले के आता है। एक कुर्सी पारुल को देता है, और दुसरा कुर्सी वैभवी के तरफ बढ़ा देता है।

वैभवी-- कैसे हुआ ये?
सोनू-- पता नही सब तो यही कह रहे है की , रात को सोये तो सुबह उठे ही नही।

वैभवी-- लेकीन मुझे तो कुछ और ही लग रहा है।
सोनू-- क्या लग रहा है?
वैभवी-- उसे तुमसे क्या वो मां डाक्टर है बता देगी। और वैसे भी मैं तुमसे बात क्यू कर रही हूं॥

सोनू (धिरे से)-- शायद प्यार हो गया हो मुझसे।
वैभवी-- प्यार और तुमसे....हं..कभी थोपड़ा देखा है आइने में। तुमने ही कहा था ना मैं बहुत खुबसुरत हूं॥

सोनू-- आप तो परी लगती है।
वैभवी-- तो परी के साथ , इसान का मेल नही होता।
सोनू-- हाय यही अदा तो अपकी मुझे पागल कर देती है।
वैभवी-- इडीयट् । बात करने की तमीज़ नही है क्या तुम्हे?

सोनू-- आप सीखा दो ना।
वैभवी कुछ बोलती इससे पहले ही उसके बड़े पापा बोले-

रजिंदर-- उधर क्या कर रहा है, चल जा ट्रेक्टर ले के आ मट्टी(लाश) लेके चलने का वक्त हो गया है,

सोनू वहा से जाकर ट्रेक्टर ले के आता है, और सब मट्टी के साथ गंगा कीनारे चल देते है।

शाम को सब घर वापस आ जाते है, सोनू थोड़ी देर सरपंच के घर पर बैठता है और फीर सीधा घर पर आ जाता है।
शाम के करीब 7 बज गये थे, और अंधेरा हो चुका था। घर में सुनिता के साथ साथ कस्तुरी और अनिता भी बैठे थे।

कस्तुरी-- अरे सोनू बेटा बाहर ही रह।
सोनू बाहर ही रुक जाता है,
सोनू-- क्यू चाची क्या हुआ?
कस्तुरी-- अरे मट्टी से आ रहा है, पैर धो ले और कपड़े बाहर उतार कर आ।

सोनू पैर धोता है, और फटाफट कपड़े बदल कर अंदर आ जाता है।

कस्तुरी-- आज तेरे मन का पराठा बनायी हूं॥
सोनू -- नही चाची, आज सब गांव में भुखे रहेगें, एक मट्टी उठी है, ॥

कस्तुरी-- हां बेटा वो तो है,
सोनू बैठा यही सोच रहा था की, अब तो फातीमा काकी के घर जा नही सकता, और एक मादरचोद बड़ी अम्मा थी तो अपनी मां चुदाने गयी है अपनी मायके, अब लंड को बुर मीले तो मीले कहा। सोचते सोचते उसकी नज़र कस्तुरी पर पड़ी, जो की वो सोनू को ही देख रही थी,

कस्तुरी-- क्या हुआ बेटा कुछ चाहिए क्या?
सोनू(मन में)-- हा साली तेरी बुर देगी मुझे?
सोनू-- नही कुछ नही चाहिए।

कस्तुरी(सोनू की तरफ देखते हुए)-- मुझे लगा कुछ चाहिए, और अपनी चुचीया हल्की सी दबा देती है। और सोनू को देख कर मुस्कुरा देती है।

उसकी ये हरकत सोनू के सीवा कोई और नही देख पाता। सोनू देखते ही समझ जाता है की ये साली की भी बुर गरम है।

सोनू भी बीना डर के सबसे नज़रे चुराये कस्तुरी को आंख मार देता है।कस्तुरी ये देख कर शरमा जाती है।

सोनू उसके साथ ऐसे ही बैठे 2 घंटे तक हरकते करता रहा।

सोनू-- मां मै उपर छत पर सोने जा रहा हूं॥
सुनीता-- क्यूं बेटा उपर छत पर क्यूं सोने जा रहा है।
सोनू-- आज से मैं वही सोउगां मां॥

सुनिता-- ठीक है, बेटा।

और सोनू उठ कर जाते जाते कस्तुरी को इशारा कर देता है। कस्तुरी भी हां में सर हीला कर शरमा जाती है।

करीब आधे घंटे और बैठने के बाद सब लोग सोने चले जाते है।
कस्तुरी अन्नया के साथ लेटी थी और वो अनन्या के सो जाने का इंतजार कर रही थी।

करीब 2 घंटा हो गया लेकीन अनन्या और उसके बगल .के खाट पर लेटी कस्तुरी की बेटी आरती दोनो बाते ही कर रही थी।

कस्तुरी-- तुम लोग सोवोगे नही क्या?
आरती-- नही मां आज पता नही क्यूं निदं नही आ रही है।

कस्तुरी-- हां तुझे निंद कैसे आयेगी , तेरी मां की बुर जो चुदने वाली है।

कस्तुरी-- तो तुम लोग चिल्लाओ ,मुझे तो निंद आ रही है। मै जा रही हूं छत पर सोने। और वैसे भी छत पर सोनू सो ही रहा है।

अनन्या-- हां जा तू चाची, हमें पता नही कब निदं आयेगी?

छत पर सोनू बल्ब की रौशनी में अपने खाट पर लेटा था।
और इधर जैसे जैसे कस्तुरी सिढ़िया चढ़ रही थी, वैसे वैसे उसकी सांसे बढ़ रही थी,
कस्तुरी छत पर आकर पहले सिढ़ियो का दरवाजा बंद करती है। और सोनू के कमरे में अंदर आती है।

सोनू-- क्या बात है बहुत जल्दी आ गयी।
कस्तुरी (अंदर से कड़ी लगाते हुए)- हां तो क्या करु? वो अनन्या और आरती सोने का नाम ही नही ले रही थी। लेकीन तू मुझे यहां क्यूं बुलाया है॥


सोनू-- तूझे चोदने!
कस्तुरी-- धत बेशरम, भला कोइ अपनी चाची के साथ ऐसा कोई करता हैं क्या?

सोनू-- साली तेरी जैसी उठी उठी गांड और भरी भरी चुचीया जीसकी चाची के पास होगी। वो चुतीया ही होगा जो नही चोदेगा?

कस्तुरी शरमा जाती है-- सोनू ऐसे बात मत कर, मुझे शरम आ रही है।
सोनू-- शरमायेगी तो चुदवायेगी कैसे?
कस्तुरी-- मुझे नही चुदवाना।
सोनू-- चल साड़ी उतार ॥ आज पुरी रात है तुझे चोद चोद कर अपनी रंडी बनाउगां॥

कस्तुरी-- नही ना सोनू ऐसा नही करते।
सोनू-- नखरे मत कर मादरचोद। चल साड़ी उतार जल्दी,

कस्तुरी भी नही चाहती थी की उसके बदन पर एक भी कपड़ा रहे। उसने अपनी साड़ी के साथ साथ पुरा कपड़ा निकाल कर नंगी हो गयी।

कस्तुरी-- कैसा लगा तेरी चाची का जीस्म।
सोनू-- साली तू तो रंडी है। इकदम अपतक शरम आ रही थी।
कस्तुरी-- हां मैं तेरी रंडी हू सीर्फ तेरी। और खाट पर आकर बैठ जाती है। चोद चोद कर अपनी रखैल बना ले सोनू, और जैसे रज़ाइ हटाती है। सोनू का लंबा मोटा लंड तन कर खड़ा था।

कस्तुरी-- हाय रे...ये तेरा लंड है या...घोड़े का।
सोनू-- अपनी बुर में लेगी तो बताना , की कैसा है मेरा लंड। चल अब चुस इसे मुंह में लेके।

कस्तुरी सोनू का लंड अपने हाथ में लेती है।
कस्तुरी-- अरे ये तेरा लंड तो मेरी मुट्ठी में भी नही आ रहा है। पता नही ये मेरी बुर का क्या हाल करेगा।

सोनू-- साली अब मुह में डालेगी....आह हां मेरी रंडी ऐसे ही चुस।
कस्तुरी अपना मुहं खोले सोनू का लंड अपने हलक तक उतार लेती, वो सच में बहुत बड़ी चुदक्कड़ थी, खासते हुए भी वो सोनू का लंड अपने गले में उतार लेती॥

कस्तुरी-- आह ऐसा लंड मैने अपनी जिंदगी में पहली बार देखा है।

सोनू-- अह , साली मुझे भी पहली बार तेरी जैसी रंडी मिली है, आह जो कमाल चुसती है।

कस्तुरी(सांस लेते हुए)-- तेरी कुतीया हूं ना तो चुसुगीं ही। कैसा चुस रही है तेरी रंडी चाची।

सोनू-- बोल मत आह मादरचोद , क्या चुसती है। अपनी बेटी से कब चुसवायेगी।

कस्तुरी-- पहले उसकी मां को तो चोद ले।

सोनु-- उसकी मां तो चोदुंगा ही।
कस्तुरी--- कसम.सेे।ये। तेरा। लंड देख कर तो कोइ भी औरत तेरे सामने कुतीया बन जाायेगी....।

सोनू ने उसे खाट पर लिटा दीया... और उसके.उपर चढ़ गया, उसकी.चुुुचीयों कोअपने द़ातो में दबा कर उपर की तरफ खीचने.लगा......।

कस्तुरी----- आ..........आ.......ह, न....ही सो......नू , दर...द कर ...रहा हैईईईई........इआ,
कस्तुरी दर्द से तीलमीला गई..उसे फातीमा की चुदााई देखने के बाद ये तो पताा चल गया थाकी सोनू बेरहम है, लेकीन इतंनाय नहीी जानती.थी।

सोनू का.तो काम ही था बेरहमी से चोदना......,

कस्तुरी---- आह..बेरहम तेरा ये लंड देख कर तो कोई भी औरत....आह पागल हो जायेगी लेेकीन तेरा दिया हुआ. दर्द सब औरतें नही सह पायेगी रे.......आ....मां ...मेरी... चु....चीयांं.।

सोनू ने आखीर उसकी नीप्पल से.खुन का कतरा नीकाल ही.दिया...।

कस्तुरी---- .हाय रे द इया, जब तक तुझे खुन नही दीखता तब तक तूझे चैन नही मीलता ना.बेरहम........।
Hot update bro
Lekin bhai update late mat diya karo
Aap ki story mast hai isse interest hat ta hai
 

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' फातीमां कमरें में जाती है , तो देखती है सोनू खाट पर लेटा हुआ था।

फातीमा-- नीदं आ रही है क्यां सोनू बेटा?
सोनू-- नही काकी, बस ऐसे ही लेटा था।
फातीमां एक लाल कलर की सलवार कमीज पहने हुइ थी। उसके सलवार में उसकी गांड काफी कसी हुइ थी, सोनू की नजर जैसे ही उसकी बड़ी बड़ी और कसी हुइ गांड पर पड़ती है। उसका लंड सलामी देने लगता है।

तभी फातीमा सोनू के बगल में बैठ जाती है, और अपना दुपट्टा हटा कर खाट पर रख देती है।

सोनू के सामने उसकी बड़ी बड़ी गोल चुचींया जो की कमीज में से आजाद होने को चाहती थी देख कर सोनू मस्त हो जाता है।

सोनू की नज़र अभी भी उसकी चुचींयो को ही घुर रही थी।

फातीमां-- क्या देख रहा है सोनू बेटा।
सोनू (भोलू बनते हुए)-- ये आपकी कीतनी बड़ी बड़ी है।

फातीमा-- क्या बड़ी बड़ी है? बेटा
सोनू फातीमां के चुचीयों की तरफ इशारा करते हुए।

फातीमा-- अच्छा मेरी इसकी बात कर रहा है। क्यूं तुझे अच्छी नही लगी?

सोनू-- अच्छी है काकी।

फातीमा-- जब तेरी शादी होगी ना तो तेरी औरत की भी ऐसी ही होगी।

सोनू-- काकी लोग शादी करते है। तो बच्चा पैदा हो जाता है वो कैसे?

फातीमा को पता था की ये अनाड़ी है। और वैसे भी यही सब सीखाने तो सुनिता ने इसे भेजा है॥

फातीमा-- अरे सोनू बेटा सीर्फ शादी करने से बच्चे पैदा नही होते। बल्की कुछ और करना होता है।

सोनू(मन में)-- काकी आज तो तू गयी।

सोनू-- और क्या करना होता है?

फातीमा-- तुझे पता है आज जब तेरी भैंस गरम थी, तब तू उसे भानू के सांड के पास ले गया था।

सोनू-- हां काकी, पता है।

फातीमा-- तो सांड ने क्या कीया?

सोनू-- वो अपना बड़ा सा पता नही क्या नीकाला और भैसं के पीछे डाल कर धक्का मारने लगा।

फातीमा-- हां बेटा, वैसे ही जम मर्द औरत के अंदर डालकर धक्का मारता है। तब वो गर्भवती होती है।

लेकीन उससे पहले औरत को भी गरम करना पड़ता है।

सोनू--काकी ये औरत गरम कैसे होती है,

अंदर कमये में से नजारा देख रही सुनीता , कस्तुरी और अनिता।

कस्तुरी- अब बताओ फातीमा दीदी औरत गरम कैसे होती है।

फातीमा-- बेटा, तूझे कैसे समझाउ मैं की औरत को कैसे गरम करते है।

सोनू-- काकी तू बता मैं समझ जाउगां॥

फातीमा अपने मन में सोचती है की सोनू तो अभी नादान है। तो वैसे भी इसको सीखाना पड़ेगा ही॥

फातीमा-- बेटा औरत को गरम करने के लीये औरत के बदन के साथ खेलना पड़ता है।

सोनू-- काकी मैं समझ नही रहा हू?
फातीमा-- अरे सोनू बेटा, औरत के जीस्म के साथ खेलना मतलब, उसकी चुम्मीया लेना। और अपनी चुचीयों की तरफ इशार करते हुए, उसका ये दबाना ये सब करने से औरत गरम होती है।

सोनू(अपना पासा फेंकते हुए)- क्या काकी तुम झूठ बोल रही है।

फातीमा-- अरे नही बेटा सच कह रही हूं॥

सोनू-- तो मैं एक बार तूझे गरम करना चाहता हू। फीर पता चलेगा काकी तू झूठ बोल रही है या सच।

ये सुनकर फातीमा असमंजस में पड़ जाती है, की ये सोनू ने क्या कह दीया ॥ भला मैं इसके साथ कैसे?

अंदर कमरे में सुनीता के साथ साथ कस्तुरी और अनीता का भी रंग उड़ चुका था।

सोनू-- क्या हुआ काकी लगता है तू सच में झूठ बोल रही थी।

फातीमा(हकलाते हुए)-- न...नही बेटा ॥ अच्छा ठीक है तू कर ले लेकीन कीसी को भी बताना मत।

सोनू-- ठीक है काकी, नही बताउगां॥

॥ अंदर कमरे में खीड़की के पास खड़ी सुनीता बोली नही कस्तुरी ये गलत है। मुझे इसे रोकना पड़ेगा, और जैसे ही वो जाने को होती है, कस्तुरी उसका हाथ पकड़ लेती है।

कस्तुरी-- रहने दो दीदी, सोनू सीखने आया था। अब कर के सीखेगा,

सुनीता-- लेकीन!

कस्तुरी-- लेकीन वेकीन कुछ नही। आप ही चाहती थी ना की कम से कम उसे ये सब पता हो। तो आप क्यूं खेल बीगाड़ रही हो,
अब आप खड़ी रहो और अपने अनाड़ी बेटे को देखो कैसे खेलता है।

सुनिता-- अनाड़ी मत बोल मेरे बेटे को।
कस्तुरी-- अनाड़ी को अनाड़ी नही तो क्या बोलू। दुसरा कोइ होता तो अब तक फातीमा के उपर चढ़ चुका होता। और वैसे भी ये खेल के बाद पता चल ही जायेगा की सोनू बेटा अनाड़ी है या खीलाड़ी॥

सुनिता कुछ नही बोलती और चुप चाप खड़ी रहती थी क्यूकीं कहीं ना कहीं उसके बेटे की हरकते एक अनाड़ी के जैसे ही थी। वो इसी लीये कमरे मे जा रही थी ताकी वो इस खेल को रोक सके नही तो कल को यही औरतें ताना मारेगीं की तेरे बेटे को कुछ नही आता।

अंदर कमरे में खाट पर फातीमा लेटी हुइ थी।

फातीमा-- देख क्या रहा है बेटा चढ़ जा मेरे उपर।
सोनू फातीमा के उपर लेट जाता है, जैसे ही सोनू फातीमा के उपर चढ़ता है, दोनो के तन बदन में सीहरन होने लगती है।

फातीमा की तो आंखे बंद हो जाती है...लेकीन जब काफी समय से सोनू के तरफ से कोइ प्रतीक्रीया नही होती तो वो अपनी आंखे खोलती है।

फातीमा-- अब चढ़ा ही रहेगा या कुछ करेगा भी।

सोनू-- सोच रहा हूं कि कहा से शुरु करुं।

फातीमा-- या अल्लाह! इस लड़के को क्या बताउं मैं॥ बेटा तेरा जहा से मन करे वहा से शुरु कर।

सोनू की हालत तो फातीमा की चुचीयां देख कर ही खराब हो चुकी थी लेकीन वो ये अनाड़ी वाला खेल थोड़ा और देर तक खेलना चाहता था।

सोनू अपना हाथ धिरे से फातीमा की चुचीयों पर रख हल्के हल्के दबाने लगता है।

फातीमा-- आह...बेटा थोड़ा जोर से दबा...आह,
सोनू-- काकी तूझे दर्द होगा।

ये सुनकर कस्तुरी और अनीता हसं पड़ती है। सुनीता को थोड़ा भी अच्छा नही लग रहा था उसके बेटे के उपर हसंना।

फातीमा-- बेटा मर्द औरत के दर्द की परवाह नही करते, क्यूकीं औरत को दर्द में भी मजा है।

सोनू थोड़ा और तेज तेज दबाने लगता।

फातीमा-- हां....बेटा....ऐसे ही आह...दबा ,
सोनू-- काकी तेरी चुचीयां तो बड़ी बड़ी है।

फातीमा-- आह...बेटा तू..उझे...मेरी चुचीयां अच्छी....आह नही लगी क्या?
सोनू-- अच्छी है काकी। अपना ये कपड़े उतारो ना।

फातीमा-- आह बेटा तू ...उही उतार दे ना।

सोनू फातीमा का कमीज निकाल देता है, फातीमा की बड़ी बड़ी गोरी चुचीयां उसकी ब्रा मे से नीकलने को हो रही थी।

ये देख सोनू बेसब्र हो जाता है, और ब्रा के उपर से ही दबाने लगता है।

फातीमा-- आ....ह सोनू मेरी चुचीयां....ह दबाने में मजा आ रहा है तूझे।

सोनू-- हा काकी, लेकीन मुझे वो छेंद देखना है। जीसमे डालते है।

फातीमा-- आह बेटा मेरे नीचे ही है, देख ले मेरी सलवार उतार के।

सोनू के हाथ की उंगलीयो को ज्यादा देर नही लगी उसके सलवार के नाड़े को खोलने में॥

॥ अब फातीमा एक लाल कलर की चडढी में थी, फातीमा खाट पर नंगी लेटी बहुत गजब ढा रही थी। सोनू का लंड ना चाहते हुए भी पैटं मे खड़ा होने लगता है। लेकीन पैटं मे ज्यादा जगह ना होने के वजह से उसे लंड मे दर्द महसुस होने लगता है।

सोनू ने फातीमा की चडढी भी उतार दी जीससे उसकी गोरी और फुली बुर दीख जाती है।

फातीमा-- क्यूं बेटा दीखा छेदं॥
सोनू उसके बुर की फ़ाके खोलते हुए- हां काकी अब दीखा

फातीमा और अंदर से नजारा देखने वालो की हंसी नीकल पड़ती है।

फातीमा-- तूने मेरा तो देख लीया तेरा कब दिखायेगा?

फातीमा के मुह से ये शब्द सुनकर सुनिता की धड़कन तेज हो जाती है, क्यूकी एक मां के लीये कुछ अलग ही अहेसास होता है, अपने बेटे का लंड देखना।
॥ शायद इसका एक वजह ये भी हो सकता है की समाज इसकी इजाजत नही देता। और एक मां के मन में इस प्रकार का खयाल जो ना के बराबर है।


सोनू-- काकी मै तो दीखा दूगां लेकीन कुछ और तो बता की, और क्या क्या करते है औरत के साथ।

फातीमा-- बस बेटा इतना ही करते है। और अंत मे ये छेंद मे डालकर धक्के लगा लगा कर खेल को खत्म करते है।

सोनू-- हसंते हुए) - बहुत खुब काकी , तूने तो मुझे बहुत कुछ सीखा दीया। "चल अप थोड़ा बहुत मैं भी तुझे कुछ सीखा देता हूं।

फातीमा (हसंते हुए)- अले ले, अब मेरा अनाड़ी बेटा मुझे सीखायेगा।

सोनू (मन मे)- चल बेटा अब बहुत हो गया अनाड़ी पन, अब जरा कमीनापन दीखा, यही सोचते सोचते उसने अपना पैंट उतार फेकां॥

सोनू अपनी चडढी जैसे ही नीकालता है, फातीमा की आंखे फटी रह जाती है, और उधर कस्तुरी, अनीता और सुनिता का भी यही हाल था।

सुनिता मन में)-- हाय रे दइया, ये इसका लंड है की घोड़े का। लेकीन फीर, ये मै क्या सोच रही हू, और मुझे पसीना क्यू आ रहा है।

फातिमा-- हाय रब्बा, ये...ये तेरा तो बहुत बड़ा है।
सोनू-- क्यूं सच में बड़ा है।
फातीमा-- हां बेटा। कसम से मैने अपनी जींदगी में ऐसा लंड कभी नही देखा।

सोनू-- तो अब देख ले।
फातीमा-- हट जा बेशरम, मुझे शरम आ रही है।

सोनू-- शरम आ रही है सा....ली।
फातीमा-- सोनू अपनी काकी से ऐसे बात करते है?

सोनू--तो कैसे बात करते है, मादरचोद। अनाड़ी समझी थी मुझे कुतीया। चल मुह में ले और चुस इसे ,

अंदर खड़ी सुनिता, कस्तुरी और अनिता की आंखे फटी की फटी रह जाती है।

फातीमा-- छी भला इसे कोइ मुह में लेता है क्या?
सोनू झटके में फातीमा का बाल खीचकर उसे खाट पर से नीचे अपने घुटने के नीचे बीठा देता है।
फातीमा जोर से चील्लाती है-- आ....आ.. न...नही सोनू दर्द हो रहा है। छोड़ मेरा बाल......।

सोनू-- मुह खोल साली और चुस इसे।

फातीमा मरती क्या ना करती अपना मुह खोल कर सोनू का लंड मुह में लेने लगती है।

सोनू-- ले साली जल्दी।

फातीमा(रोते हुए)-- हां तो मैं क्या करु, इतना मोटा है जा ही नही रहा है।

सोनू-- कुतीया के जैसा मुह खोल, फीर जायेगा।

सुनीता सोनू का ये रुप देख कर दंग रह जाती है, वो सोचने लग जाती है...

फातीमा सोनू का लंड मुह में भर लेती है, और चुसने लगती है।

सोनू-- आह साली, ऐसे ही चुस आह तेरा मुह कीतन गरम है।

अंदर से देख रही कस्तुरी और अनीता का हाथ भी अब उनकी बुर पर था। सुनीता का भी मन मचलने लगा था।

सोनू के घुटने के निचे बैठी फातीमा कुतीया की तरह मुह खोले उसका लंड चुस रही थी।

ये देख कस्तुरी-- हाय दीदी क्या कुतीया की तरह अपना घोड़े जैसा लंड चुसा रहा है। काश मैं फातीमा की जगह होती।

कमरे में अंधेरा होने की वजह से वो लोग एक दुसरे को देख नही पा रहे थे। कस्तुरी अपनी एक उगंलीया बुर में डाल चुकी थी।

सोनू -- थोड़ा और अंदर डाल मुह मेआह ।
फातीमा अपना मुह और अंदर लेती है। और आगे पिछे करने लगती है।

कुछ देर ऐसे ही चुसने के बाद सोनू अपना लंड निकाल लेता है। और फातीमा को खाट पर लीटा देता है।

सोनू उसकी एक चुची को अपने हाथ से जोर जोर मसलने लगता है।

फातीमा-- आ...............आ...........सोनू धिरे......दर्द हो रहा है।
सोनू-- चुप साली कुतीया इतनी बड़ी बड़ी चुचीयां ली है। इसको तो मैं ऐसे ही मसलूगां॥

फातीमा-- आह........बे रहम तूझे तो मै...कल देख लूगीं तेरी मां से बता दूगीं॥

सोनू अपना मुह उसकी चुचीयों में लगा कर जोर जोर से चुसने लगता है।

अब फातीमा को भी मजा आने लगता है।

फातीमा-- आह , बेरहम ऐसे ही चुस नीचोड़ ले अपनी काकी की चुचींया आह बेटा इतना मजा मुझे कभी न...हइ........इ..........जोर से चील्लाती है।

सोनू ने उसका निप्पल दात में लेकर काट जो लीया था। फातीमा के कटे निप्पल से खुन नीकल जाता है।

सोनू-- चल मेरी रांड कुतीया बन जा। तेरा बुर फाड़ता हू।

फातीमा अपनी गांड खीड़की की तरफ कीये कुतीया बन जाती है।

फातीमा-- बेटा आराम से डालना, तेरा बहुत बड़ा है।

सोनू उसके गांड पर जोर का थप्पड़ मारता है। और उसकी बुर पर अपना लंड टीकाये जोर के धक्के के साथ अपना लंड जड़ तक घुसा देता है।

फातीमा-- आ............मां..........मर गयी.........नीकाल इ.......से........मुझे नही लेनां......मेरी......बुर।

सुनिता , कस्तुरी और अनीता की नजर सीधा फातीमा के बुर पर पड़ती है। सोनू का लंड उसके बुर को फैला चुका था, और उसके बुर से होते हुए सोनू के लंड से उसका खुन टपक रहा था।

सुनिता के मुह से आवाज ही नीकल रही थी, वो बस आखे फाड़े वो नजारा देख रही थी।

और इधर फातीमा का बुरा हाल हो गया था, पुरे कमरे में उसकी चिखे गुंज रही थी, और सोनू बेरहमी से उसे चोदे जा रहा था।

फातीमा-- हाय रे...........सुनी.......ता मुझे......बचा.......अपने आह बे.........रहम बेटे से......मेरी बुर फाड़ दे........गा।

कस्तुरी-- आह फातीमा फाड़ेगा नही फाड़ दी मेरे सोनू ने।

सोनू-- छटपटा मत मादरचोद कुतीया बनी रही।
फातीमा अपनी गांड उठाये सोनू के लंड से जोर जोर से चुद रही थी, उसे बहुत दर्द हो रहा था, और वो बस चील्लाये जा रही थी,

आखीर वो समय आया जब दर्द का मजंर थमा और फातीमा की पुरी खुल चुकी बुर सोनू के लंड को पच्च पच्च की आवाजो के साथ अपने बुर में ले रही थी।

अब फातीमा की आवाजे सीसकीयो में बदल चुकी थी। उसकी सीसकीया ये बंया कर रहीं थी की अब उसे मजा आ रहा है।

फातीमा-- आह सोनू...मजा आ रहा है...अपनी फातीमा काकी को आ....ह बेरहमी से क्यूं चोदा रे...

सोनू-- चुप कर साली और मेरा लंड ले।

फातीमा-- आह....सोनू तेरा ये लंड आह मुझे ब....हुत मजा दे रहा है। चोद आह बेटा, आज से मै तेरी रखैल हू, बे....रहम और फातीमा झड़ने लगती है,

सोनू भी झड़ने वाला था वो भी फातीमा की गांड पर जोर का थप्पड़ मारता है, और खाट पर चढ़ फातीमा की कमर पकड़ हवा मे उठा कर एक जोर जोर से पेलने लगता है।

फातीमा दर्द से तीलमीला जाती है, अपना हाथ खाट पर टीकाये अपनी बुर का दर्द बरदाशत नही कर पा रही थी, और वो इधर उधर छटपटाने लगती है, लेकीन सोनू उसकी कमर पकड़े हवा में उढाये बस चोदे जा रहा था।

सोनू-- आह ले साली कुतीया, मेरा पानी अपने बुर में और एक जोर का धक्का मार अपना लंड सीधा उसके बुर की गहराइ में उतार देता है।

फातीमा दर्द के मारे अपना मुह कीसी कुतीया की तरह खोल जोर से चील्लाती है, और सोनू के लंड का पानी अपने बच्चेदानी के मुह पर गिरता साफ महसुस कर रही थी।

सोनू अपना पुरा पानी छोड़ उसके गांड पर जोर का थप्पड़ मारा-- आह साली मजा आ गया तेरा बुर चोद कर, और खाट पर लेट जाता है।

फातीमा वैसे ही पड़ी दर्द से अब भी रो रही थी, और सोनू लेटे लेटे वैस ही निंद मे चला जाता है।

ये चुदाइ का मजंर देख कस्तुरी और अनीता के बुर ने बहुत ज्यादा पानी छोड़ा।

सुनीता-- बेरहम कीसी कुतीया की तरह चोद चोद कर फातीमा की हालत क्या कर दी है।

कस्तूरी-- हा दीदी फातीमा की बुर तो देखो कैसे चौड़ी हो कर दी है, तेरे बेरहम बेटे के लंड ने, और खुद आराम से सो रहा है।

सुनिता चल अब चलते है,
कस्तुरी-- थोड़ा फातीमा से मील कर चलते है।

सुनिता-- नही, उसकी जीस तरह से चुदाइ हुई है, वो रात भर रोयेगी...।

अनीता-- बेचारी...दीदी अनाड़ी समझ अपनी बुर फड़वा ली,

और तीनो हंसते हुए घर से बाहर नीकल अपने घर की तरफ चल देती है,

फातीमा रोते रोते आधी रात बित गयी, फीर वो रोते रोते सोनू के सीने पर अपना सर रखी लेट जाती है, और उसे बांहो मे भर कुछ समय बाद वो भी निंद की आगोश में चली जाती है.......।


सुबह सोनू की निंद तब खुलती है जब उसे कोइ जगाता है,

सोनू की आंख खुली तो पाया उसके सामने उसकी मां ,कस्तुरी और अनिता खड़ी थी, उसके बगल में फातीमा काकी भी नही थी।

सुनिता-- सोता ही रहेगा, की घर भी चलेगा।

सोनू की हालत खराब हो जाती है, क्यूकीं वो पुरी तरह नंगा था।

और ये बात सब को पता था,
॥ तभी फातीमा वहां हाथ में चाय लिये आती है, वो बहुत मुश्कील से चल पा रही थी।

कस्तुरी-- अरे काकी तुम भचक भचक कर क्यूं चल रही हो, और मुस्कूरा देती है।

फातीमा-- मुझसे क्या पुछ रही है, तेरे भतीजे से पुछ उसने ही ये हालत की है।

सोनू का सुनते ही गांड फट जाती है..

सुनिता-- क्यूं बेटा क्या कीया तूने फातीमा के साथ?

सोनू को कुछ समझ नही आ रहा था की क्या बोले तभी

फातीमा-- अरे सोनू ने कल मुझे धक्का गलती से धक्का मारा और मै निजे उस लकड़ी पर गीर गयी तो थोड़ा चोट आ गयी।

ये सुनकर सोनू के जान में जान आता है,

सुनिता-- चल बेटा अब घर जा, और जरा देख कर धक्का मारा कर लगने पर दर्द होता है, और हल्का सा मुस्कुराते हुए दुसरे कमरे में सब चली जाती है।

सोनू भी फटाफट अपने कपड़े पहन बाहर निकलता है। और घर की ओर चल देता है।


दुसरे कमरे मे बैठी कस्तुरी जोर जोर से हसंने लगती है।

सुनिता-- क्यूं हसं रही है?

कस्तुरी-- अरे कल रात फातीमा दिदी की ऐसी हालत थी, उसी पर। कैसे कुतीया की तरह चिल्ला रही थी।

फातीमा-- हस ले, अगर तू उसके निचे होती और जब अपना मुसल लंड तेरी बुर में डालकर चोदता तब समझ में आता।

कस्तुरी-- अरे सोनू के निचे आने के लीये तो मैं हर दर्द सह लूगीं दिदी।

सुनिता-- चुप कर तुम लोग मेरे बेटे की जान लोगे क्या?

फातीमा-- अरे सुनिता जान तो तेरा बेरहम बेटा निकाल देता है, ऐसे चोदता है की, बुर के साथ साथ पुरा बदन कांप उठता है।

सुनिता-- मेरे बेटे ने तेरी ऐसी हालत कर दी है, फीर भी तू उसका बखान कर रही है।

फातीमा-- तू भी एक औरत है, और एक औरत से बेहतर कोई नही समझ पाता की असली मर्द ऐसा ही होता है।

सुनिता शरमा जाती है, -- तूने तो कल मेरे बेटे को थका दीया।

फातीमा-- ओ हो, और जो तेरा बेटा मुझे कुतीया बना कर गंदी गंदी गालीया दे रहा था। और मेरी बुर का बैडं बजा रहा था उसका कुछ नही।

सुनिता-- तू भी तो उसको भड़का रही थी, की आज से मैं तेरी रखैल हूं फलाना ढेकाना।

फातीमा(शरमाते हुए)-- हा तो मैं हू उसकी रखैल।

कस्तुरी-- तेरा तो हो गया दीदी, हम लोग का नसीब ही खराब है।

फातीमा-- अरे मेरी मान तो सोनू को पटा ले, और जिंदगी भर मजे लुटना।

अनिता-- अरे दिदी हम उनकी चाचींया है, और भला?

फातीमा-- अरे तुम्हारे हिंदुओ में एक कहावत है।

कस्तुरी-- कैसी कहावत?

फातीमा-- बता जरा सुनिता।
"सुनिता शरमा जाती है,

कस्तुरी अब शरमाना बंद करो और बताओ दिदी।

सुनिता-- अरे वो..कहावत है.....(वो पुत ही क्या जो 'चोदे' ना चाची की 'चुत')

कस्तुरी-- आय हाय दिदी दील खुश कर दीया, अब तो मै सोनू को अपना बना कर ही रहुगीं॥

सुनिता-- शरम कर वो तेरे बेटा है।
कस्तुरी-- बेटा वो तुम्हारा है, मेरा तो भतीजा है।

फातीमा-- वैसे मां बेटे के लिये भी कोइ कहावत है क्या?

सुनिता-- चुप कर छिनाल, और सब हसंने लगते है॥



बारीश के हल्की हल्की फव्वारे गीर रही थी, और बेचन अपने खाट पर लेटा था। और उसके आंखो में उसकी बेटी की बड़ी बड़ी चुचीयों का तस्वीर सामने आ जाता.....।


॥ कहानी को लाइक और रिप्लाइ करने के लीये'थैंक्स' दोस्तो अपडेट मिलता रहेगा..... Take care of your health my friends!
Ye update bhi mast bhai fatima ki fad hi diya
 
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