बेरहम है तेरा बेटा--1
अपडेट- 6
"बेचन खाट पर लेटा यही सच रहा था की. सीमा की चुचींया कीतनी मस्त है। अगर उस रात अम्मा नही आयी हैती तो उसकी चुचीयां तो मैं मसल चुका होता,
दीन के 12 बजे थे, और बेचन झुमरी के बगल वाली खाट पर लेटा था। तभी उसकी मां सुगना आ जाती है।
सुगना-- बेटा, ये गेहूं की बोरी जरा छत पर पहुचां दे।
बेचन खाट पर से उठ जाता है, और गेंहू की बोरीया लेके छत पर जाने लगता है। उसके पीछे पीछे सुगना भी छत पर आ जाती है।
बेचन गेहुं की बोरीया रखते हुए)-- अम्मा सीमा कहा रह गयी?
सुगना(गुस्से में)- क्यूं क्या काम था तुझे उससे?
बेचन-- कुछ काम नही था अम्मा, मैं तो बस ऐसे ही!
सुगना-- अरे थोड़ी तो शरम कर, तूझे अपनी बेटी की शादी करने के वजाय तू खुद उसके साथ....छी।
बाचन-- कलती हो गयी अम्मा, वो उस रात सीमा को खाट पर बीठाने के चक्कर में उसे गोद में उठाया तो मैं थोड़ा बहक गया।
सुगना-- अच्छा , अच्छा ठीक है। आगे से कुछ ऐसा वैसा मत करना॥
बेचन-- मेरी प्यारी अम्मा, ठीक है। नही करुगां,
सुगना-- अच्छा जरा ये गेंहू की बोरी खोल और गेंहू पानी की बाल्टी में भीगो।
बेचन फटाफट गेंहू की बोरी खोल गेहूं को पानी के बाल्टी में डाल देता है।
की बाल्टी में डाल देता है।
सुगना गेंहू को हाथ डाल कर साफ करने लगती है, बेचन वही एक तरफ बैठ जाता है,
सुगना-- क्यूं करता है रे तू ऐसा? घर तेरी औरत है फीर भी तू अपनी बेटी पर।
बेचन-- अरे अम्मा हो गयी गलती, आगे से नही होगी।
सुगना-- चल ठीक है, तू जा झुमरी के पास बैठ उसे पानी वानी की जरुरत पड़ी तो।
बेचन- ठीक है अम्मा, और उठकर नीचे चला आता है।
बेचन जैसे ही निचे आता है, उसे उसकी बेटी सीमा नजर आती है। जो झुमरी के खाट के पास बैठी थी और उसके साथ उसकी सहेली रीता थी।
बेचन- अरे रीता बिटीया तुम?
रीता-- हां काका वो सीमा को छोड़ने आयी थी। (रीता एक 23 साल की भरे बदन वाली लड़की थी, थोड़ी सावलीं मगर बदन में कसावट कमाल की थी। उसकी चुचीयां सीमा से थोड़ी बड़ी थी, लेकीन गांड के मामले में सीमा का कोइ जवाब नही था)
रीता-- अच्छा सीमा मैं चलती हूं॥
सीमा-- ठीक है रीता।
रीता के जाते ही, बेचन सीमा के खाट की तरफ बढ़ा तभी बाहर से आवाज आती है....बेचन वो बेचन घर पर है क्या?
बेचन आवाज सुनते ही बाहर आ जाता है, बाहर उसका बड़ा भाइ शेसन खड़ा था।
बेचन-- क्या हुआ भैय्या?
शेसन-- मेरा खेत का पानी हो गया है, जा जाके तू लगा ले पानी॥
बेचन-- ठीक है, और कहते हुए खेत की तरफ निकल देता है।
सोनू खेत के झोपड़े में बैढा था, और उसे भुख भी लग रही थी रोज की तरह उसकी मां खाना लेकर आ जाती है।
सोनू-- बहुत सही टाइम पर आयी है, मा चल खोल जल्दी और दे मुझे।
ये सुनकर सुनीता हकपका जाती है।
सुनिता-- क....क्या खोलू। और क्या दू?
सोनू-- अरे खाना दे मां, मुझे भुख लगी है।
सुनीता ठंडी सास भरते हुए मन में-- हे भगवान इस लड़के ने तो मुझे डरा ही दीया, मुझे लगा ये कुछ और ही मांग रहा है, और फीर सुनीता के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान ठहर जाती है।
सुनीता खाने की थाली सोनू के तरफ बढ़ा देती है।और वही सोनू के बगल में बैठ जाती है।
सोनू खाना खाने लगता है।
सुनीता-- सोच रही हूं अब तेरी शादी करा दू।
सोनू-- क्यूं मां इतनी जल्दी क्या है?
सुनीता-- अरे घर में बहु होगी तो तेरे लीये खाना बनायेगी, तेरी सेवा करेगी।
सोनू-- मां मै बुडढा नही हुआ हूं जो मेरी सेवा करेगी, और रही बात खाना की तो उसके लीये तू है ना।
सुनीता-- हां अब तू मुझे ही परेशान कर, उतनी दुर से तुझे खाना लाने में मेरा पांव दुखने लगता है।
सोनू-- अब तू मत लाया कर मां , मै खुद ही आ जाया करुगां॥ और वैसे भी अब तेरी उमर हो चली है, तू आराम कीया कर।
सुनीता-- क्यूं रे मैं तूझे बुडढी दीखती हूं?
सोनू-- नही, मां मेरे कहने का मतलब ये नही था।
सुनिता का चेहरा उतर गया था जो सोनू साफ साफ देख सकता था।
सुनीता-- सही है तेरे कहने का मतलब एक बुडढी को बुडढी नही तो और क्या बोलेगा?
सोनू इतना तो जानता था की, उसकी मा बहुत खुबसुरत है। वो तो बस उसके मुह से 'पांव दुखने की बात' पर नीकल गया की तेरी उमर हो चुकी है।
सोनू -- वैसे मेरी बुडढी मां कयामत लगती है।
सुनीता ये सुनकर शरमा जाती है, और बोली।
सुनीता-- बाते बनाने में आगे है, तू वैसे बहुत भोला बनता है। अपनी मां को कयामत बोलता है. शरम नही आती तूझे जरा सा भी।
सोनू-- अपनी मां से कैसी शरम, जो बात है तुझमे वो बात बोल दी मैने।
सुनीता-- मैं तुझे कहां से कयामत लगती हू भला।
सोनू-- बताऊं,
सुनीता-- बता जरा।
सोनू-- तू सुन पायेगी क्या मां॥
सुनीता(शरमाते हुए)-- नही रहने दे बेशरम।
सोनू-- जब तू शरमाती है, तो आधा से ज्यादा कत्ल तो ऐसे ही हो जाता है। अगर तू मेरी मां नही होती तो।
सुनीता-- मां नही होती तो क्या?
सोनू-- फीर तो मेरे मजे थे।
सुनीता ये सुन कर बुरी तरह शरमा जाती है, और सोनू के गाल पर थपकी लगाती हुए.....बेशरम.......मैं तेरी मां हू।
सोनू-- वही तो रोना है।
सुनीता-- अच्छा मतलब मैं तेरी मां हू तो तुझे अच्छा नही लगता।
सोनू-- अरे नही मां तू मेरी मां है, ये मेरा सौभाग्य है, और वैसे भी दुनीया में खुबसुरत औरतो की कमी थोड़ी है, जो मैं अपनी मां पर ही बुरी नज़र डालूगां॥
सुनीता ये सुनकर उसे साफ हो गया था की उसके बेटे की नज़र में मै सीर्फ उसकी मां हू और कुछ नही, लेकीन उसे एक बात अंदर ही अंदर खाये जा रही थी जो सोनू ने बोला ' की दुनीया में औरतो की कमी थोड़ी है, जो वो अपने मां पर ही'
पता नही क्यूं आज सुनीता को उन सारी औरतो से नफरत सी हो रही थी।
सोनू खाना खा चूका था। और हाथ मुह धो के वापस आ कर खाट पर बैठ गया।
सुनीता-- उस दीन भोला बनने की नाटक क्यूं कर रहा था?
सोनू--कीस दीन मां?
सुनीता-- जीस दीन भैंस ले के जाने का था, पता तेरे उपर सब हसं रहे थे की तू अनाड़ी है।
सोनू-- लगता है मेरी प्यारी मां को रास नही आया की कोइ मुझे अनाड़ी बोले।
सुनीता-- हा तो...दुनीया की कोइ मां नही सह सकती की कोइ भी उसके बेटे को अनाड़ी बोले।
सोनू-- वैसे कौन बोल रहा था अनाड़ी?
सुनीता-- तेरी चाचीयां और फातीमा।
सोनू-- और तू?
सुनीता-- हां तो तेरी हरकते वैसी ही थी, तो मुझे भी वैसा ही लगा।
सोनू-- तू बोले अनाड़ी मुझे कोइ फर्क नही मां॥
सुनीता-- क्यूं मेरे बोलने पर फर्क क्यूं नही होता तूझे?
सोनू-- क्यूकीं मैं तुझे साबीत नही कर सकता ना मां॥
सुनीता ये बात समझ गयी की सोनू क्या बोलना चाहता है, वो बुरी तरह शरमा गयी, सोनू की बाते उसके रोम रोम में हलचल मचा देता।
सुनीता-- और बाकी लोगो को कैसे साबीत करेगा।
सोनू-- फातीमा काकी को साबीत कर दीया है, अब जा कर पुछ लेना की मैं अनाड़ी हू यां खीलाड़ी।
सोनू को ये नही पता की वो जो बोल रहा है, वो सुनीता ने पुरा खेल देखा था। फीर भी सुनीता बोली।
सुनीता-- ऐसा क्या कीया तूने फातीमा के साथ।
सोनू-- काकी तेरी सहेली है, तू खुद पुछ लेना।
सुनीता-- अच्छा बाबा पुछ लूगीं , अब तू आराम कर मैं चलती हू ॥ रात को तेरा पसदींदा आलू का पराठा बना कर रखुगीं॥
सोनू-- ठीक है मेरी प्यारी मां और अनायास ही उसके होठ सुनीता के गाल को चुम लेते है, सुनीता के बदन में सीरहन सी उठ जाती है,
सुनीता-- बदमाश. और उठ कर थाली लेकर जैसे ही कुछ दुर जाती है, सोनू उसे आवाज देता है॥
सोनू -- मां,
सुनीता(पीछे घुमते हुए)-- हां क्या हुआ?
सोनू-- कुछ नही, बस आज बहुत अच्छा लगा , तुने पहली बार मेरे साथ इतना प्यार से बात की। ऐसे ही कभी कभी करते रहना।
सुनीता ये सुनकर उसकी आंख भर आती है, और वो झट से सोनू के पास आकर उसे सीने से लगा लेती है।
सुनीता-- मुझे माफ कर दे बेटा, आज के बाद मैं तुझे कभी नही डाटुगीं॥
सोनू-- सोनू, अलग होते हुए- ऐसा मत करना मां॥ मुझे कभी कभी डाटते रहना।
सुनीता-- क्यूं?
सोनू-- नही तो मुझे तुझसे प्यार हो जायेगा, मां बेटे वाला नही।
सुनीता-- तो कैसा प्यार?
सोनू-- जैसा तू पापा से करती थी। वो वाला,
सुनीता-- धत बेशरम और वहा से शरमाते हुए भाग जाती है...।
"घर में मालती खाट पर लेटी, साड़ी के उपर से ही अपनी बुर रगड़ रही थी।और उसके ज़हन में सिर्फ सोनू का वो घोड़े जैसा लंड नज़र आ रहा था।
मालीती(मन में ही)-- अरे कीतना बड़ा था सोनू का लंड , मैने तो आज तक इतना मोटा लंड देखा ही नही था। कैसे सोहन की गांड फाड़ रहा था...बेरहम
यही सोचते सोचते उसको मस्ती चढ़ जाती है....तभी अँदर कोइ आ जाता है। जीसे देख मालती चौंक जाती है, और अपने बुर पर से हाथ हटा खाट पर से खड़ी हो जाती है।
मालती-- कल्लू ब.....बेटा तू!
कल्लू-- हां मां तू बाहर कपड़े डाल कर भूल जाती है, क्या ? बाहर बारीश होने जैसा मौसम बन रहा है, जो भी कपड़े सुखे थे सब फीर से गीले हो जाते।
मालती-- अरे हा बेटा ध्यान ही नही रहा। अच्छा हुआ तू लाया, अब चल मैं खाना लाती हूं तू खा ले।
और फीर मालती रसोइ घर में जाने लगती है, तभी उसके दीमाग में पता नही कहा से सोनू की कही हुइ बात याद आती है, की उसने तो अपनी बड़ी मा को भी चोद दीया है,
मालती खाना ले कर आती है, और खाट पर बैठे अपने बेटे को देकर वही जमीन पर बैठ जाती है।
मालती(मन में)-- अगर उसकी बड़ी मां अपने बेटे से चुदवा सकती है, तो क्या मैं अपने बेटे के साथ.....नही...नही ये गलत है।
तभी उसकी नज़र कल्लू पर पड़ती है,
कल्लू आराम से खाना खा रहा था,
ना चाहते हुए भी मालती कल्लू को निहारे जा रही थी,
मालती(मन में)-- मेरा बेटा, सोनू के जैसा थोड़ी है, जो अपनी मां पर ही बुरी नज़र डालेगा। लेकीन मैं ही पागल हूं जो अपने ही बेटे के बारे में गदां सोच रही हू, लेकीन क्या करु जब से लंड देखी हू तब से मेरी बुर फड़पड़ा रही है। क्या करू? बाहर चुदवाउगीं तो बदनामी होगी,लेकीन लंड तो चाहीए ही। मेरे लिये अच्छा होगा की अपने बेटे के नीचे ही पड़ी रहु जिंदगी भर....लेकीन इसे पटाउ कैसे ? अगर ये बुरा मान गया तो....अब जो होगा देखा जायेगा?
मालती-- बेटा पानी बरसने लगा, तूने सारे कपड़े तो नीकाले थे ना?
कल्लू-- हां मां॥
मालती-- मैं फीर भी देख कर आती हूं कही कोइ छुट तो नही गया और कहते हुए बाहर चली जाती है,
जब वो जा रही थी तो कल्लू कनखी से उसकी बड़ी बड़ी गांड देख रहा था, मालती दरवाजे के पास पहुच कर छट से पिछे मुड़ जाती है, और कल्लू को देखती है, जो उसकी मटकती गांड की तरफ देख रहा था।
कल्लू हड़बड़ा कर अपनी नज़र दुसरी तरफ कर लेता है, लेकीन तब तक मालती समझ चुकी थी की ये मेरी गांड ही देख रहा था। मालती थोड़ा सा मुस्कुराइ और बाहर आ गयी।
कल्लू(मन में)-- हे भगवान कही मां ने देख तो नही लीया की मैं उसकी...नही नही देखी होती तो अब तक मेरी पीटाइ हो जाती, लेकीन क्या गांड है साली की, 1 साल से देखते आ रहा हू चुप चुप के लेकीन कुछ कर नही पा रहा हूं....
तभी वहां मालती आ जाती है, वो इकदम पानी में भीगी थी, ये देख कल्लू चिल्लाया!
कल्लू-- मां तू पागल हो कयी है, क्या ठंढी के मौसम में क्यूं भीग रही है? ठंढ लग जायेगी तो।
मालती(ठंढी से कापते हुए)-- बेटा वो मै....आ....छी (छिंकते हुए)
कल्लू-- देखा सर्दी लग गयी ना, चल अब जल्दी कपड़े बदल ले।
मालती वही खड़ी खड़ी अपनी साड़ी खोल देती है, भीगा हुआ ब्लाउज जो मालती की बड़ी बड़ी चुचीयों को एक अच्छा सा शेप दे रहा था, और उसका पेटीकोट पूरा उसके गांड से चिपका उसकी खुबसुरती को बढ़ा रहा था। और कल्लू के सोये हुए लंड की लम्बाइ भी।
कल्लू तो बस मुहं खोले अपनी मां की गदराइ हुइ जवानी देख रहा था।
मालती-- अप खड़े खड़े देखता ही रहेगा या मेरी साड़ी भी लायेगा अंदर से। मुछे ठंढ लग रही है...आ...छी:॥
कल्लू-- हां.... लाता हू।
और अंदर से जाकर साड़ी और पेटी कोट लेकर आता हैं॥
मालती-- अरे बेटा तूने मेरी अंगीया(ब्रा) और चड्ढ़ी नही लाई(कहकर हल्का सा मुस्कुरा देती है)
कल्लू तो ये सुनकर ही पागल हो जाता है, वो झट से अंदर जाता है और उसकी एक काले कलर की ब्रा लेता है, और फीर उसकी चडढी लेकर जैसे ही आता है, उसके दिमाग मे खुरापात है, उसने चडढी के सामने एक बडा सा होल कर दिया और फीर जल्दी से लाकर अपनी मां को दे दीया।
मालती-- अब मुझे ही देखता रहेगा या, मुह पिछे घुमायेगा। मुझे कपड़े बदलने है,
कल्लू अपना मुह पिछे घुमा लेता है, मालती अपना कपड़ा बदलने लगती है। लेकीन जब वो चड्ढी पनहने लगती है, तो उसे चड्ढी में बड़ा सा होल दीखा ये देख कर मालती मुस्कुराते हुए मन में-- वाह बेटा, मुझे लगा आग सीर्फ मेरे बुर में ही लगी है। लेकीन मुझे क्या पता था की तेरा भी लंड सुलग रहा है...और सोचते सोचते चड्ढी पहन लेती है,
मालती-- मैने कपड़े पहन लीये है, अब तू मुह घुमा सकता है।
कल्लू पलट जाता है, और खाट पर बैठ जाता है।
कल्लू-- मां खाना क्या बनायेगी आज?
मालती कल्लू के बगल में बैठती हुई-- जो मेरा बेटा बोले, वही बनाउगीं॥
कल्लू-- मां तू बता ना तूझे क्या पंसद है।
मालती-- मुझे जो पंसद है तू खीला पायेगा?
कल्लू-- अरे मां तू बोल तो सही।
मालती-- मुझे तो बैंगन पंसद है।
कल्लू इतना भी ना समझ नही था, वो समझ कया था की उसकी मां ने उसे उसकी गांड देखते हुए देख लीया था। और फीर होल वाली चड्ढी भी पहन ली और कुछ बोली नही, और अब इसे बैंगन खाना है।
कल्लू-- मां तूझे बैंगन कब से पंसद आने लगा?
मालती-- बेटा जब से सुनिता के घर में देखा तब से।
कल्लू हड़बड़ाया और सोचने लगा की इसने सुनीता काकी के घर में....कही सोनू ने तो नही दिखाया इसे( ये सोचकर ही उसकी गांड जलने लगती है)
क्यूकीं सोनू और उसकी बनती नही थी।
कल्लू-- मतलब तू मेरे दुश्मन के घर बैंगन देख कर आयी है, तो वही क्यूं नही खा ली?
मालती ये जानती थी की इसका सोनू से नही बनता,
मालती-- अरे तू नाराज़ क्यूं हो रहा है मेरे लाल, मैं बैंगन कहीं भी देखु लेकीन खाउगीं तो सिर्फ अपने घर की।
ये सुन कल्लू खुश हो जाता है॥
कल्लू-- मां मुझे भी तुझे अपना बैंगन खीलाने में बहुत मजा आयेगा।
मालती (शरमाते हुए)-- मुझे भी मजा आयेगा बेटा।
कल्लू -- मां तूझे ठंढ लग रही होगी मैं रज़ाइ ला देता हू फिर तू ओढ़ कर बैठ।
मालती-- ठीक है बेटा।
कल्लू अंदर से एक रज़ाइ ला कर दे देता है, मालती वो रज़ाइ ओढ़ कर बैठ जाती है।
मालती-- तूझे ठंढ़ी नही लग रही है क्या?
कल्लू-- लग तो रही है,
मालती-- अभी शाम होने में समय है। आजा तू भी रज़ाइ में थोड़ी तेर सो लेते है, तू भी तो कपड़े धो कर थक गया होगा?
कल्लू समझ जाता है की मां को बैंगन खिलाने का इससे अच्छा मौका नही मिलेगा, वो अपनी मां के साथ रज़ाई में घुस जाता है.....
कहानी जारी रहेगी....
अपडेट- 6
"बेचन खाट पर लेटा यही सच रहा था की. सीमा की चुचींया कीतनी मस्त है। अगर उस रात अम्मा नही आयी हैती तो उसकी चुचीयां तो मैं मसल चुका होता,
दीन के 12 बजे थे, और बेचन झुमरी के बगल वाली खाट पर लेटा था। तभी उसकी मां सुगना आ जाती है।
सुगना-- बेटा, ये गेहूं की बोरी जरा छत पर पहुचां दे।
बेचन खाट पर से उठ जाता है, और गेंहू की बोरीया लेके छत पर जाने लगता है। उसके पीछे पीछे सुगना भी छत पर आ जाती है।
बेचन गेहुं की बोरीया रखते हुए)-- अम्मा सीमा कहा रह गयी?
सुगना(गुस्से में)- क्यूं क्या काम था तुझे उससे?
बेचन-- कुछ काम नही था अम्मा, मैं तो बस ऐसे ही!
सुगना-- अरे थोड़ी तो शरम कर, तूझे अपनी बेटी की शादी करने के वजाय तू खुद उसके साथ....छी।
बाचन-- कलती हो गयी अम्मा, वो उस रात सीमा को खाट पर बीठाने के चक्कर में उसे गोद में उठाया तो मैं थोड़ा बहक गया।
सुगना-- अच्छा , अच्छा ठीक है। आगे से कुछ ऐसा वैसा मत करना॥
बेचन-- मेरी प्यारी अम्मा, ठीक है। नही करुगां,
सुगना-- अच्छा जरा ये गेंहू की बोरी खोल और गेंहू पानी की बाल्टी में भीगो।
बेचन फटाफट गेंहू की बोरी खोल गेहूं को पानी के बाल्टी में डाल देता है।
की बाल्टी में डाल देता है।
सुगना गेंहू को हाथ डाल कर साफ करने लगती है, बेचन वही एक तरफ बैठ जाता है,
सुगना-- क्यूं करता है रे तू ऐसा? घर तेरी औरत है फीर भी तू अपनी बेटी पर।
बेचन-- अरे अम्मा हो गयी गलती, आगे से नही होगी।
सुगना-- चल ठीक है, तू जा झुमरी के पास बैठ उसे पानी वानी की जरुरत पड़ी तो।
बेचन- ठीक है अम्मा, और उठकर नीचे चला आता है।
बेचन जैसे ही निचे आता है, उसे उसकी बेटी सीमा नजर आती है। जो झुमरी के खाट के पास बैठी थी और उसके साथ उसकी सहेली रीता थी।
बेचन- अरे रीता बिटीया तुम?
रीता-- हां काका वो सीमा को छोड़ने आयी थी। (रीता एक 23 साल की भरे बदन वाली लड़की थी, थोड़ी सावलीं मगर बदन में कसावट कमाल की थी। उसकी चुचीयां सीमा से थोड़ी बड़ी थी, लेकीन गांड के मामले में सीमा का कोइ जवाब नही था)
रीता-- अच्छा सीमा मैं चलती हूं॥
सीमा-- ठीक है रीता।
रीता के जाते ही, बेचन सीमा के खाट की तरफ बढ़ा तभी बाहर से आवाज आती है....बेचन वो बेचन घर पर है क्या?
बेचन आवाज सुनते ही बाहर आ जाता है, बाहर उसका बड़ा भाइ शेसन खड़ा था।
बेचन-- क्या हुआ भैय्या?
शेसन-- मेरा खेत का पानी हो गया है, जा जाके तू लगा ले पानी॥
बेचन-- ठीक है, और कहते हुए खेत की तरफ निकल देता है।
सोनू खेत के झोपड़े में बैढा था, और उसे भुख भी लग रही थी रोज की तरह उसकी मां खाना लेकर आ जाती है।
सोनू-- बहुत सही टाइम पर आयी है, मा चल खोल जल्दी और दे मुझे।
ये सुनकर सुनीता हकपका जाती है।
सुनिता-- क....क्या खोलू। और क्या दू?
सोनू-- अरे खाना दे मां, मुझे भुख लगी है।
सुनीता ठंडी सास भरते हुए मन में-- हे भगवान इस लड़के ने तो मुझे डरा ही दीया, मुझे लगा ये कुछ और ही मांग रहा है, और फीर सुनीता के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान ठहर जाती है।
सुनीता खाने की थाली सोनू के तरफ बढ़ा देती है।और वही सोनू के बगल में बैठ जाती है।
सोनू खाना खाने लगता है।
सुनीता-- सोच रही हूं अब तेरी शादी करा दू।
सोनू-- क्यूं मां इतनी जल्दी क्या है?
सुनीता-- अरे घर में बहु होगी तो तेरे लीये खाना बनायेगी, तेरी सेवा करेगी।
सोनू-- मां मै बुडढा नही हुआ हूं जो मेरी सेवा करेगी, और रही बात खाना की तो उसके लीये तू है ना।
सुनीता-- हां अब तू मुझे ही परेशान कर, उतनी दुर से तुझे खाना लाने में मेरा पांव दुखने लगता है।
सोनू-- अब तू मत लाया कर मां , मै खुद ही आ जाया करुगां॥ और वैसे भी अब तेरी उमर हो चली है, तू आराम कीया कर।
सुनीता-- क्यूं रे मैं तूझे बुडढी दीखती हूं?
सोनू-- नही, मां मेरे कहने का मतलब ये नही था।
सुनिता का चेहरा उतर गया था जो सोनू साफ साफ देख सकता था।
सुनीता-- सही है तेरे कहने का मतलब एक बुडढी को बुडढी नही तो और क्या बोलेगा?
सोनू इतना तो जानता था की, उसकी मा बहुत खुबसुरत है। वो तो बस उसके मुह से 'पांव दुखने की बात' पर नीकल गया की तेरी उमर हो चुकी है।
सोनू -- वैसे मेरी बुडढी मां कयामत लगती है।
सुनीता ये सुनकर शरमा जाती है, और बोली।
सुनीता-- बाते बनाने में आगे है, तू वैसे बहुत भोला बनता है। अपनी मां को कयामत बोलता है. शरम नही आती तूझे जरा सा भी।
सोनू-- अपनी मां से कैसी शरम, जो बात है तुझमे वो बात बोल दी मैने।
सुनीता-- मैं तुझे कहां से कयामत लगती हू भला।
सोनू-- बताऊं,
सुनीता-- बता जरा।
सोनू-- तू सुन पायेगी क्या मां॥
सुनीता(शरमाते हुए)-- नही रहने दे बेशरम।
सोनू-- जब तू शरमाती है, तो आधा से ज्यादा कत्ल तो ऐसे ही हो जाता है। अगर तू मेरी मां नही होती तो।
सुनीता-- मां नही होती तो क्या?
सोनू-- फीर तो मेरे मजे थे।
सुनीता ये सुन कर बुरी तरह शरमा जाती है, और सोनू के गाल पर थपकी लगाती हुए.....बेशरम.......मैं तेरी मां हू।
सोनू-- वही तो रोना है।
सुनीता-- अच्छा मतलब मैं तेरी मां हू तो तुझे अच्छा नही लगता।
सोनू-- अरे नही मां तू मेरी मां है, ये मेरा सौभाग्य है, और वैसे भी दुनीया में खुबसुरत औरतो की कमी थोड़ी है, जो मैं अपनी मां पर ही बुरी नज़र डालूगां॥
सुनीता ये सुनकर उसे साफ हो गया था की उसके बेटे की नज़र में मै सीर्फ उसकी मां हू और कुछ नही, लेकीन उसे एक बात अंदर ही अंदर खाये जा रही थी जो सोनू ने बोला ' की दुनीया में औरतो की कमी थोड़ी है, जो वो अपने मां पर ही'
पता नही क्यूं आज सुनीता को उन सारी औरतो से नफरत सी हो रही थी।
सोनू खाना खा चूका था। और हाथ मुह धो के वापस आ कर खाट पर बैठ गया।
सुनीता-- उस दीन भोला बनने की नाटक क्यूं कर रहा था?
सोनू--कीस दीन मां?
सुनीता-- जीस दीन भैंस ले के जाने का था, पता तेरे उपर सब हसं रहे थे की तू अनाड़ी है।
सोनू-- लगता है मेरी प्यारी मां को रास नही आया की कोइ मुझे अनाड़ी बोले।
सुनीता-- हा तो...दुनीया की कोइ मां नही सह सकती की कोइ भी उसके बेटे को अनाड़ी बोले।
सोनू-- वैसे कौन बोल रहा था अनाड़ी?
सुनीता-- तेरी चाचीयां और फातीमा।
सोनू-- और तू?
सुनीता-- हां तो तेरी हरकते वैसी ही थी, तो मुझे भी वैसा ही लगा।
सोनू-- तू बोले अनाड़ी मुझे कोइ फर्क नही मां॥
सुनीता-- क्यूं मेरे बोलने पर फर्क क्यूं नही होता तूझे?
सोनू-- क्यूकीं मैं तुझे साबीत नही कर सकता ना मां॥
सुनीता ये बात समझ गयी की सोनू क्या बोलना चाहता है, वो बुरी तरह शरमा गयी, सोनू की बाते उसके रोम रोम में हलचल मचा देता।
सुनीता-- और बाकी लोगो को कैसे साबीत करेगा।
सोनू-- फातीमा काकी को साबीत कर दीया है, अब जा कर पुछ लेना की मैं अनाड़ी हू यां खीलाड़ी।
सोनू को ये नही पता की वो जो बोल रहा है, वो सुनीता ने पुरा खेल देखा था। फीर भी सुनीता बोली।
सुनीता-- ऐसा क्या कीया तूने फातीमा के साथ।
सोनू-- काकी तेरी सहेली है, तू खुद पुछ लेना।
सुनीता-- अच्छा बाबा पुछ लूगीं , अब तू आराम कर मैं चलती हू ॥ रात को तेरा पसदींदा आलू का पराठा बना कर रखुगीं॥
सोनू-- ठीक है मेरी प्यारी मां और अनायास ही उसके होठ सुनीता के गाल को चुम लेते है, सुनीता के बदन में सीरहन सी उठ जाती है,
सुनीता-- बदमाश. और उठ कर थाली लेकर जैसे ही कुछ दुर जाती है, सोनू उसे आवाज देता है॥
सोनू -- मां,
सुनीता(पीछे घुमते हुए)-- हां क्या हुआ?
सोनू-- कुछ नही, बस आज बहुत अच्छा लगा , तुने पहली बार मेरे साथ इतना प्यार से बात की। ऐसे ही कभी कभी करते रहना।
सुनीता ये सुनकर उसकी आंख भर आती है, और वो झट से सोनू के पास आकर उसे सीने से लगा लेती है।
सुनीता-- मुझे माफ कर दे बेटा, आज के बाद मैं तुझे कभी नही डाटुगीं॥
सोनू-- सोनू, अलग होते हुए- ऐसा मत करना मां॥ मुझे कभी कभी डाटते रहना।
सुनीता-- क्यूं?
सोनू-- नही तो मुझे तुझसे प्यार हो जायेगा, मां बेटे वाला नही।
सुनीता-- तो कैसा प्यार?
सोनू-- जैसा तू पापा से करती थी। वो वाला,
सुनीता-- धत बेशरम और वहा से शरमाते हुए भाग जाती है...।
"घर में मालती खाट पर लेटी, साड़ी के उपर से ही अपनी बुर रगड़ रही थी।और उसके ज़हन में सिर्फ सोनू का वो घोड़े जैसा लंड नज़र आ रहा था।
मालीती(मन में ही)-- अरे कीतना बड़ा था सोनू का लंड , मैने तो आज तक इतना मोटा लंड देखा ही नही था। कैसे सोहन की गांड फाड़ रहा था...बेरहम
यही सोचते सोचते उसको मस्ती चढ़ जाती है....तभी अँदर कोइ आ जाता है। जीसे देख मालती चौंक जाती है, और अपने बुर पर से हाथ हटा खाट पर से खड़ी हो जाती है।
मालती-- कल्लू ब.....बेटा तू!
कल्लू-- हां मां तू बाहर कपड़े डाल कर भूल जाती है, क्या ? बाहर बारीश होने जैसा मौसम बन रहा है, जो भी कपड़े सुखे थे सब फीर से गीले हो जाते।
मालती-- अरे हा बेटा ध्यान ही नही रहा। अच्छा हुआ तू लाया, अब चल मैं खाना लाती हूं तू खा ले।
और फीर मालती रसोइ घर में जाने लगती है, तभी उसके दीमाग में पता नही कहा से सोनू की कही हुइ बात याद आती है, की उसने तो अपनी बड़ी मा को भी चोद दीया है,
मालती खाना ले कर आती है, और खाट पर बैठे अपने बेटे को देकर वही जमीन पर बैठ जाती है।
मालती(मन में)-- अगर उसकी बड़ी मां अपने बेटे से चुदवा सकती है, तो क्या मैं अपने बेटे के साथ.....नही...नही ये गलत है।
तभी उसकी नज़र कल्लू पर पड़ती है,
कल्लू आराम से खाना खा रहा था,
ना चाहते हुए भी मालती कल्लू को निहारे जा रही थी,
मालती(मन में)-- मेरा बेटा, सोनू के जैसा थोड़ी है, जो अपनी मां पर ही बुरी नज़र डालेगा। लेकीन मैं ही पागल हूं जो अपने ही बेटे के बारे में गदां सोच रही हू, लेकीन क्या करु जब से लंड देखी हू तब से मेरी बुर फड़पड़ा रही है। क्या करू? बाहर चुदवाउगीं तो बदनामी होगी,लेकीन लंड तो चाहीए ही। मेरे लिये अच्छा होगा की अपने बेटे के नीचे ही पड़ी रहु जिंदगी भर....लेकीन इसे पटाउ कैसे ? अगर ये बुरा मान गया तो....अब जो होगा देखा जायेगा?
मालती-- बेटा पानी बरसने लगा, तूने सारे कपड़े तो नीकाले थे ना?
कल्लू-- हां मां॥
मालती-- मैं फीर भी देख कर आती हूं कही कोइ छुट तो नही गया और कहते हुए बाहर चली जाती है,
जब वो जा रही थी तो कल्लू कनखी से उसकी बड़ी बड़ी गांड देख रहा था, मालती दरवाजे के पास पहुच कर छट से पिछे मुड़ जाती है, और कल्लू को देखती है, जो उसकी मटकती गांड की तरफ देख रहा था।
कल्लू हड़बड़ा कर अपनी नज़र दुसरी तरफ कर लेता है, लेकीन तब तक मालती समझ चुकी थी की ये मेरी गांड ही देख रहा था। मालती थोड़ा सा मुस्कुराइ और बाहर आ गयी।
कल्लू(मन में)-- हे भगवान कही मां ने देख तो नही लीया की मैं उसकी...नही नही देखी होती तो अब तक मेरी पीटाइ हो जाती, लेकीन क्या गांड है साली की, 1 साल से देखते आ रहा हू चुप चुप के लेकीन कुछ कर नही पा रहा हूं....
तभी वहां मालती आ जाती है, वो इकदम पानी में भीगी थी, ये देख कल्लू चिल्लाया!
कल्लू-- मां तू पागल हो कयी है, क्या ठंढी के मौसम में क्यूं भीग रही है? ठंढ लग जायेगी तो।
मालती(ठंढी से कापते हुए)-- बेटा वो मै....आ....छी (छिंकते हुए)
कल्लू-- देखा सर्दी लग गयी ना, चल अब जल्दी कपड़े बदल ले।
मालती वही खड़ी खड़ी अपनी साड़ी खोल देती है, भीगा हुआ ब्लाउज जो मालती की बड़ी बड़ी चुचीयों को एक अच्छा सा शेप दे रहा था, और उसका पेटीकोट पूरा उसके गांड से चिपका उसकी खुबसुरती को बढ़ा रहा था। और कल्लू के सोये हुए लंड की लम्बाइ भी।
कल्लू तो बस मुहं खोले अपनी मां की गदराइ हुइ जवानी देख रहा था।
मालती-- अप खड़े खड़े देखता ही रहेगा या मेरी साड़ी भी लायेगा अंदर से। मुछे ठंढ लग रही है...आ...छी:॥
कल्लू-- हां.... लाता हू।
और अंदर से जाकर साड़ी और पेटी कोट लेकर आता हैं॥
मालती-- अरे बेटा तूने मेरी अंगीया(ब्रा) और चड्ढ़ी नही लाई(कहकर हल्का सा मुस्कुरा देती है)
कल्लू तो ये सुनकर ही पागल हो जाता है, वो झट से अंदर जाता है और उसकी एक काले कलर की ब्रा लेता है, और फीर उसकी चडढी लेकर जैसे ही आता है, उसके दिमाग मे खुरापात है, उसने चडढी के सामने एक बडा सा होल कर दिया और फीर जल्दी से लाकर अपनी मां को दे दीया।
मालती-- अब मुझे ही देखता रहेगा या, मुह पिछे घुमायेगा। मुझे कपड़े बदलने है,
कल्लू अपना मुह पिछे घुमा लेता है, मालती अपना कपड़ा बदलने लगती है। लेकीन जब वो चड्ढी पनहने लगती है, तो उसे चड्ढी में बड़ा सा होल दीखा ये देख कर मालती मुस्कुराते हुए मन में-- वाह बेटा, मुझे लगा आग सीर्फ मेरे बुर में ही लगी है। लेकीन मुझे क्या पता था की तेरा भी लंड सुलग रहा है...और सोचते सोचते चड्ढी पहन लेती है,
मालती-- मैने कपड़े पहन लीये है, अब तू मुह घुमा सकता है।
कल्लू पलट जाता है, और खाट पर बैठ जाता है।
कल्लू-- मां खाना क्या बनायेगी आज?
मालती कल्लू के बगल में बैठती हुई-- जो मेरा बेटा बोले, वही बनाउगीं॥
कल्लू-- मां तू बता ना तूझे क्या पंसद है।
मालती-- मुझे जो पंसद है तू खीला पायेगा?
कल्लू-- अरे मां तू बोल तो सही।
मालती-- मुझे तो बैंगन पंसद है।
कल्लू इतना भी ना समझ नही था, वो समझ कया था की उसकी मां ने उसे उसकी गांड देखते हुए देख लीया था। और फीर होल वाली चड्ढी भी पहन ली और कुछ बोली नही, और अब इसे बैंगन खाना है।
कल्लू-- मां तूझे बैंगन कब से पंसद आने लगा?
मालती-- बेटा जब से सुनिता के घर में देखा तब से।
कल्लू हड़बड़ाया और सोचने लगा की इसने सुनीता काकी के घर में....कही सोनू ने तो नही दिखाया इसे( ये सोचकर ही उसकी गांड जलने लगती है)
क्यूकीं सोनू और उसकी बनती नही थी।
कल्लू-- मतलब तू मेरे दुश्मन के घर बैंगन देख कर आयी है, तो वही क्यूं नही खा ली?
मालती ये जानती थी की इसका सोनू से नही बनता,
मालती-- अरे तू नाराज़ क्यूं हो रहा है मेरे लाल, मैं बैंगन कहीं भी देखु लेकीन खाउगीं तो सिर्फ अपने घर की।
ये सुन कल्लू खुश हो जाता है॥
कल्लू-- मां मुझे भी तुझे अपना बैंगन खीलाने में बहुत मजा आयेगा।
मालती (शरमाते हुए)-- मुझे भी मजा आयेगा बेटा।
कल्लू -- मां तूझे ठंढ लग रही होगी मैं रज़ाइ ला देता हू फिर तू ओढ़ कर बैठ।
मालती-- ठीक है बेटा।
कल्लू अंदर से एक रज़ाइ ला कर दे देता है, मालती वो रज़ाइ ओढ़ कर बैठ जाती है।
मालती-- तूझे ठंढ़ी नही लग रही है क्या?
कल्लू-- लग तो रही है,
मालती-- अभी शाम होने में समय है। आजा तू भी रज़ाइ में थोड़ी तेर सो लेते है, तू भी तो कपड़े धो कर थक गया होगा?
कल्लू समझ जाता है की मां को बैंगन खिलाने का इससे अच्छा मौका नही मिलेगा, वो अपनी मां के साथ रज़ाई में घुस जाता है.....
कहानी जारी रहेगी....