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NICE update bhaiअध्याय साठ
जहाँ एक तरफ भद्रा अपने ही मस्ती मे मस्त हो कर सो रहा था तो वही दूसरी तरफ पताल लोक के गहराइयों मे इस वक़्त महासुरों के एक बीज ने अपना साम्राज्य स्थापित कर दिया था
पाताल लोक के उस भाग मे जो भी मौजूद था उसे उन्होंने अपने जादुई धुए के मदद से अपने वश में ले लिया था और जो भी उस भाग में कदम रखता वो भी तुरंत उन महासुरों के वश मे आ जाता चाहे वो की असुर हो या कोई मायावी जीव
लेकिन उस धुए से कोई बच नही पाया था ऐसे मे एक शक्स बिना रुके उस हिस्से के अंदर जा रहा था और आश्चर्य की बात थी कि उस पर इस जादुई धुए का कुछ भी असर नहीं हो रहा था
और जब उस महासूर के सिपाहियों ने एक अज्ञात असुर को अपने इलाके मे आते देखा तो वो सभी हमला करने के लिए उसके पास बढ़ने लगे लेकिन उन्हे इस बात का बोध नही था कि ये उनके लिए कितना भारी पड़ सकता हैं
शायद अगर अभी उनके पास उनकी बुद्धि होती तो वो ये गलती नही करते अभी वो सब उस पर आक्रमण करते उससे पहले ही वहाँ वातावरण में फिर एक बार महासूर की आवाज गूंजने लगी जिसने उन सभी लोगों को रोक दिया
महासूर :- असुर कुल गुरु महान आचार्य शुक्राचार्य को मेरा प्रणाम
शुक्राचार्य:- आप भी मेरा प्रणाम स्वीकार करे महासूर
महासूर :- कहिये आपका यहाँ आना कैसे हुआ और क्या मकसद था मुझे और मेरे भाईयों को समय से पूर्व इस संसार मे लाने का
शुक्राचार्य :- मेरे जीवन का एक मात्र मकसद यही है कि असुर जाती को त्रिलोक विजयी बनाउ और इसी मकसद से मैने सभी महासुरों को समय से पूर्व बुलाया है
महासूर :- मैने आपसे पहले भी कहाँ था कि जब तक असुर जातियों में एकता नही होगी तब तक आपकी सारी योजनाएं विफल जायेंगी जिसका उदाहरण अभी हाल ही मे हुआ संग्राम जहाँ पर आप जीता हुआ युद्ध हार गए
शुक्राचार्य:- मे आपकी इस बात से सर्वथा सहमत हूँ इसीलिए मैने अपने सबसे काबिल शिष्य को असुर कुल का सम्राट बनाया है और अब मे चाहता हूँ कि आप और आपके सभी भाई असुर कुल के मार्गदर्शक बने
महासूर :- सर्व प्रथम हमे उस बालक को रोकने के लिए कोई उपाय करना होगा जो बालक सातों अस्त्रों को इतनी कुशलता से इस्तेमाल करने के लिए सक्षम है उससे बिना किसी योजना के ललकारना सबसे बड़ी मूर्खता होगी
शुक्राचार्य :- मे आपके सुझाव को ध्यान मे रखूँगा पहले मे उस बालक को खुद से परखूँगा और उसके बाद खास अपने हाथों से उसके लिए जाल बिछऊंगा
महासूर :- अब आप जाइये और एक विशाल और शक्तिशाली योद्धाओं की फौज तैयार कीजिये क्योंकि अब जैसे ही 15 दिन पूर्ण होंगे वैसे ही ये विश्व इस युग के महाप्रलयंकारी और विध्वंशक युद्ध का साक्षी बनेगा
शुक्राचार्य :- अब आपसे मुलाकात 15 दिनों पश्चात ही होगी
महासुर:- नही मेरा अनुभव कह रहा है कि आप 15 दिनों की अवधी पूर्ण होने से पूर्व ही आने वाले हो
जहाँ एक तरफ इन दोनों ने अपनी पूरी योजना बना ली थी
तो वही दूसरी तरफ मे दुनिया की सारी परेशानियों को भूल कर अपनी दोनों प्रेमिकाओं को अपने आलिंगन मे लेकर चैन की नींद सो रहा था की तभी मुझे मेरे शरीर में अचानक पीड़ा होने लगी जिससे मेरी नींद खुल गई
और जब मे अपनी आँखे खोली तो मुझे एक बहुत बड़ा झटका लगा क्योंकि इस वक़्त न मेरे पास मै जहाँ शांति प्रिया लेटी हुई थी वहा अब कोई नहीं था
और जब मे पूरी तरह होश मे आया तब मुझे ज्ञात हुआ की मे अपने कमरे न होके किसी और ही दुनिया में पहुँच गया था जहाँ एक तरह घना जंगल तो दूसरी तरफ असीमित समुद्र उपर तपता आग उगलता सूरज तो नीचे रेत ही रेत
मे अभी इस सब का निरीक्षण कर ही रहा था कि तभी मुझे वहाँ पर एक जगह से तेज प्रकाश आते दिखाई देने लगा जो देखकर मे तुरंत उस प्रकाश के तरफ बढ़ने लगा
और जैसे ही मे वहाँ पहुँचा वैसे ही मुझे वहाँ पर 7 पुरुष दिखाई दिये उन सातों के चेहरे पर उगी हुई सफेद दाड़ी और बालों को देखकर ऐसा लगता कि वो सातों अब वृद्ध हो चुके है
लेकिन उनके चेहरे का तेज देखकर ऐसा लगता कि उन सभीने अभी अपनी गृहावस्था मे प्रवेश किया है पहले तो मे उन्हे देखकर सोच मे पड़ गया
क्योंकि मुझे लग रहा था कि मैने इन्हे पहले भी कही देखा है और जब मुझे याद आ गया तब मे तुरंत उनके सामने झुक गया
क्योंकि मेरे सामने कोई और नही बल्कि पूरे संसार के प्रथम सप्त ऋषि मौजूद थे जिनके बारे में मुझे महागुरु ने बताया था
गुरु नंदी :- आपको हमारे सामने झुकने की आवश्यकता नहीं है कुमार
मै :- आप सब इस संसार के सर्व प्रथम सप्तऋषि है
गुरु अग्नि:- हम सभी आपकी भावनाओं का सन्मान करते है कुमार लेकिन अभी हमारे पास इस सभी शिष्टाचार का समय नही है आज से ठीक 15 दिन बाद इस संसार में फिरसे एक बार महासुरों के अन्यायों का साक्षी बनेगा और इस अनर्थ को रोकने के लिए स्वयं आदिदेव ने तुम्हे चुना है
गुरु पृथ्वी :- और हम यहाँ तुम्हे उसके लिए ही तैयार करने आये है आने वाले युद्ध मे न सिर्फ अकेले पृथ्वी गृह बल्कि पूरे संसार का भविष्य दांव पर लगा है
मे :- सप्तस्त्रो के शक्तियों के मदद से और आप सबसे शिक्षा लेने के बाद में किसी भी असुर या महासूर को हरा सकता हूँ
गुरु काल :- आत्मविश्वास अच्छा है कुमार लेकिन घमंड नही आपको हम सभी एक एक करके आपको शिक्षा प्रदान करेंगे और जब तक आप वो शिक्षा को ग्रहण करके हमारी परीक्षाओं में आप उत्तीर्ण न हो जाओ तब तक आप अपनी दुनिया में वापस नही जा सकते
मै :- मे तैयार हूँ सबके लिए
गुरु काल :- याद रखना इस दुनिया मे आप किसी भी अस्त्र का इस्तेमाल नही कर पाओगे
मे :- तो मे अस्त्रों की शक्तियों को काबू करना उनका इस्तेमाल करना कैसे सीखूँगा
गुरु नंदी :- वो आपको अस्त्र स्वयं सिखा देंगे लेकिन पहले आपको खुदको उसके लिए शक्तिशाली बनाना होगा
गुरु जल :- याद रखना कुमार अस्त्र आपको नही आप अस्त्रों को ऊर्जा देते हो आप जितने शक्तिशाली होंगे उतने ही ज्यादा शक्तिशाली अस्त्र होंगे
मै :- ठीक है अब जो भी हो मे हार नही मानूँगा
मेरे इतना बोलते ही वहाँ के आसमान का रंग नीले से बदल कर लाल रंग मे बदल गया और पूरे आसमान मे भयंकर बिजलियाँ कडकड़ाने लगी ऐसा लगने लगा था की कोई बहुत बड़ी अनहोनी होने वाली है
ये सब देखकर एक बार की तो मेरे मन में भी भय और पीछे हटने के ख्यालों ने जन्म ले लिया था लेकिन मैने तुरंत ही उन्हे अपने मन से निकालने लगा और पूर्ण दृढ़ता के साथ मे सप्तऋषियों के समक्ष खड़ा हो गया
गुरु काल :- लगता हैं अब तुम तैयार हो तो सबसे पहले तुम्हे शिक्षा देंगे गुरु नंदी याद रखना इस जगह पर कोई भी अस्त्र या शस्त्र काम नही करता यहाँ केवल तुम्हे अपने बुद्धि और बाहु बल से ही हर चुनौती को पार करना होगा
उनके इतना बोलने के बाद मे और गुरु नंदी अचानक गायब हो गए
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आज के लिए इतना ही
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NICE update bhai thanksअध्याय इक्सठ
जहाँ एक तरफ मे उस मायावी दुनिया में कैद था तो वही दूसरी तरफ मायासुर ने विराज को मारने के बाद लगभद पूरे पाताल लोक को अपने कब्जे में ले लिया था
जहाँ पहले पाताल लोक में केवल काम क्रीड़ा और मदिरा के नशे मे धुत्त योद्धाओं का आमना सामना होता और कोई एक मारा जाता या कभी कभी दोनों मारे जाते और स्त्रियाँ तो वहा केवल भोग विलास की वस्तु थी
तो वही अब मायासुर ने पूरे पाताल लोक में सारे मदिरा और वैश्या घरों को बंद कर दिया था और सभी असुर असुरियों को केवल आने वाले युद्ध के लिए ही तैयार रहने का आदेश दिया था यहाँ तक असुर कुमारों को भी उसने युद्ध मे सैनिकों का सामान उठाने के लिए तैयार किया था
और अगर कोई भी जरा सी चु चा करता तो तुरंत उसका सर धड़ से अलग होता और अगर कोई स्त्री उसके सामने अपनी आवाज उठाने की गुस्ताखी करती तो उस सबके सामने एकसाथ कई असुरों द्वारा बेरहमी से भोगा जाता
साफ कहे तो मायासुर ने आने वाले युद्ध मे विजय सुनिश्चित करने के बजाए प्रजा के मन में विद्रोह की सोच को जरूर सुनिश्चित कर दिया था अभी तक सारे असुर मायासुर का कहा मान रहे थे
तो इसी वजह से की उसके साथ स्वयं आचार्य शुक्राचार्य है और कोई भी असुर उनके खिलाफ विद्रोह की आवाज नही उठा सकता था और इसी का फायदा उठा कर मायासुर लगभग पूरे पाताल लोक में अपना राज कायम कर लिया था
अब पूरे पाताल लोक में केवल दो ही जगह ऐसी थी जहाँ पर अभी तक मायासुर ने अपना राज तो दूर बल्कि कदम भी नही रखा था और वो दो जगहे थी शुक्राचार्य का राज्य जहाँ पर सारे असुर आ जा सकते थे
लेकिन जिन्होंने वहा पर किसी भी तरफ के दुर्व्यवहार करने की इच्छा रखी उसका सामना करने स्वयं शुक्राचार्य आ जाते और पूरे पाताल लोक में ऐसा एक असुर भी नही था जो शुक्राचार्य से युद्ध करने की इच्छा रखे
अगर साफ कहा जाए तो वहा जिसने भी राज करने की इच्छा से कदम रखा उसे वहा केवल और केवल 6*6 की कब्र नसीब हुई जिसमे उन्हे वहा के मिट्टी मे पनपने वाले सूक्ष्म जीव नोच नोच कर खाते
इसीलिए आज तक पाताल लोक में जितने भी राजा ही उन सभी ने गुरु शुक्राचार्य के उस भाग के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया था भले ही उनके पास पूरे पाताल लोक की ही शक्ति क्यों न हो लेकिन
वो सभी जानते थे की शुक्राचार्य को हराने में केवल त्रिदेव ही सक्षम थे और सारे असुरो का उनके प्रति भरोषा और आदर भी अतुल्य था इसी कारण से जब मायासुर के आतंक से तंग आकर कुछ असुरों ने शुक्राचार्य से मदद मांगी
तो शुक्राचार्य ने उस मदद के रूप मे सारे असुर बालकों को औरतो को अपने राज्य में रहने का स्थान दीया जिससे उनके प्रति सबका आदर और विश्वास पहले से भी दोगुना बढ़ गया
तो वही दूसरी जगह वही भाग था जहाँ पर महासूर ने अपना राज्य स्थापित किया था वहा मायासुर जाना तो चाहता था ताकि वो महासूर से मिलकर कोई प्रबल योजना बना पाए
आखिर कौन राजा नही चाहेगा की आने वाले युद्ध मे ऐसा की महा शक्तिशाली और प्रबल पक्ष उनके साथ खड़ा हो न की उनके विरोध में और मायासुर को इस बात का भी बोध था कि अगर कोई एक महासूर ने उसकी मैत्री को स्वीकार करे तो सारे महासूर उसके साथ हो जायेंगे
और सबसे बड़ी बात सप्तस्त्रों की तोड़ थे ये महासूर ये सारी बात उसे और उकसा रही थी आगे बढ़ने के लिए लेकिन शुक्राचार्य का साफ आदेश था की उनके कोई भी मतलब कोई भी उस भाग में प्रवेश नही करेगा
और यही एक बात थी की हर बार मायासुर उस भाग की सीमा पर आता और केवल वहा के हाल का निरीक्षण करता कुछ सिपाहियों ने जिज्ञासा वश उस भाग में जाने की गुस्ताखी की थी
लेकिन जिन्होंने भी उस भाग में कदम रखा वो सब केवल वहा की प्रजा जो अब नरभक्षी बन गए थे उनके आहार मे शामिल हो जाते जिसके कारण बाकी कोई भी वहा जाने से अब डरने लगा था
तो वही इस वक़्त गुरु शुक्राचार्य और मायासुर दोनों उसी जगह पर थे जहाँ कुछ समय पहले महायुद्ध हुआ था जिसमे भद्रा ने आके पुरा पासा ही पलट दिया था और अभी उस जगह पर वो दोनों मौजूद थे
और उनके अलावा वहा शहीद हुए लाखों असुरी सिपाहियों जली कटी लाशे जो देखकर मायासुर समझ नही पा रहा था कि आखिर शुक्राचार्य उसे लेकर यहाँ क्यों आये है
जिससे उसके मन इसका कारण जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी और इसी जिज्ञासा वश उसने अपने गुरु से पूछने लगा
मायासुर :- गुरुवर आपने अभी तक बताया नही की आखिर हम यहाँ पर आये क्यों है आखिर इन शिपहियों के मृत देह और अस्थियों से क्या कार्य है
शुक्राचार्य :- धीरज मायासुर धीरज रखो सब पता चल जायेगा
अभी फिर से मायासुर कुछ बोलता या पूछता उससे पहले ही शुक्राचार्य का शरीर हवा में उड़ने लगा और वो अपनी आँखे बंद करके जोरों से मंत्र जाप करने लगे और जब वो मंत्र पढ़ रहे थे
वैसे वैसे वहा की पूरी धरती मे कंपन होने लगी थी वहा के आसमान मे भयंकर बिजलियाँ चमकने लगी थी और जब मायासुर ने वो मंत्र ध्यान से सुना तो उसके चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान आ गयी
जैसे किसी छोटे बालक को उसका मनपसंद खिलौना मिल गया हो इसके पीछे कि वजह थी वो विद्या जो गुरु शुक्राचार्य इस्तेमाल कर रहा था और वो विद्या थी मृत संजीवनी विद्या
हमारी संस्कृति में इस विद्या के बारे में वर्णित किया गया है की अपने गुरु की आज्ञा से एक शिष्य ने भगवान आदिदेव को गुरु बनाने के लिए कठोर तप किया. जिसके परिणाम स्वरूप भगवान आदिदेव ने प्रसन्न होकर उस शिष्य को मृत संजीवनी की विद्या दी,
जिससे किसी मृत को भी जीवित किया जा सकता है. भगवान आदिदेव से यह ज्ञान प्राप्त करने के बाद वो शिष्य दैत्यगुरु शुक्राचार्य बन गया. जिसके बाद दैत्य देवों द्वारा मारे गए अपने शिष्यों को जीवित कर देते
.लेकिन इसका प्रयोग करने से पहले इसे सिद्ध करना बहुत जरूरी है. सिद्ध करने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है. मान्यता है कि यदि मंत्र सिद्ध हो जाए तो किसी मृत व्यक्ति के कान में चुपचाप इस मंत्र को बोलने से वो व्यक्ति फिर से जीवित हो सकता है.
और इसी महान विद्या का इस्तेमाल करके शुक्राचार्य ने वहा पर शहीद हुए सारे असुरी सैनिकों को पुनर्जीवित कर दिया था जो देखकर मायासुर और बाकी सब शुक्राचार्य के सामने झुक गए थे
आज पहली बार मायासुर ने साक्षात रूप से इस विद्या को देखा था और ये देखकर आज उसे इस बात का यकीन हो गया था की भले ही शिष्य कितना ही बड़ा तोप बन जाए लेकिन गुरु हमेशा गुरु ही रहेगा
लेकिन इस विद्या का एक नियम था कि ये एक योद्धा पर केवल एक ही बार काम करता है
जहाँ एक तरफ ये सब हो रहा था तो वही दूसरी तरफ इस वक़्त मे और गुरु नंदी किसी बड़े मैदान में थे जहाँ पर बहुत सी भयानक और क्रूर दिखने वाले असुरो की मूर्तियाँ भी थी
जिन्हे देखकर लग रहा था कि मानो अभी जीवित हो जायेंगी और हमला करेंगे मे उन मूर्तियों को देखकर उत्साहित हो गया था और उन्हे बार बार देख रहा था और जब गुरु नंदी ने मुझे उन मूर्तियों को देखते पाकर गुरु नंदी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी
गुरु नंदी :- इन मूर्तियों को ऐसे क्यों घूर रहे हो कुमार
मै:- इन्हे देखकर ऐसा लगता हैं कि ये सब जीवित है
गुरु नंदी :- सही कहा आपने ये सब महासुरों की सेना का हिस्सा है जिन्हे हमने मूर्तियों में तब्दील कर दिया था और जब महासूर जागेंगे तब ये सभी पुन्हा दैत्य रूप धारण करेंगे
मै :- अच्छा
उसके बाद मे और गुरु नंदी एक दूसरे के आमने सामने खड़े हो गए और उसके बाद गुरु नंदी ने मुझे बहुत सी चीजों की जानकारी दी बहुत से ऐसी विद्याएँ भी सिखाई जो बहुत उपयोगी थे
जिसके बाद गुरु जल, वानर अग्नि, पृथ्वी, सिँह और काल सभी गुरुओं ने एक एक करके मुझे अपने अपने अस्त्रों से जुड़ी जानकारी बताई अलग अलग विद्याएँ सिखाई और बीच बीच में वो सभी मेरे साथ युद्ध अभ्यास भी करते
ऐसे ही न जाने कितना समय बीत गया लेकिन ये शिक्षा बंद नही हुई वो मुझे सिखाते जाते और जब हमारी ये शिक्षा पूरी हुई तो तो सारे गुरु मेरे सामने खड़े थे
गुरु नंदी :- कुमार जो ज्ञान हम आपको दे सकते थे वो सभी ज्ञान हम आपको दे चुके है अब आप उसका इस्तेमाल कैसे करते हो ये आपके उपर निर्भर करता है
अभी उन्होंने इतना बोला ही था कि तभी वहा की जमीन थर थर कांपने लगी आसमान मे फिर से एक बार बिजलियाँ चमकने लगी तो वही ये सब देखकर सारे गुरुओं के चेहरे का रंग उड़ गया था उनके आँखों मे भय साफ दिख रहा था
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आज के लिए इतना ही
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NICE UPDATE BHAI THANKS AMAZING AWESOMEअध्याय बाशठ
गुरु नंदी :- कुमार जो ज्ञान हम आपको दे सकते थे वो सभी ज्ञान हम आपको दे चुके है अब आप उसका इस्तेमाल कैसे करते हो ये आपके उपर निर्भर करता है
अभी उन्होंने इतना बोला ही था कि तभी वहा की जमीन थर थर कांपने लगी आसमान मे फिर से एक बार बिजलियाँ चमकने लगी तो वही ये सब देखकर सारे गुरुओं के चेहरे का रंग उड़ गया था उनके आँखों मे भय साफ दिख रहा था
उन्हे देख ऐसा लग रहा था कि जैसे उन्होंने किसी अनहोनी को महसूस कर लिया था अभी मे उनसे इस सब का कारण पूछता उससे पहले ही वहा पर जितनी भी पत्थर की मूर्तियाँ थी वो सभी धीरे धीरे जीवित होने लगी
जो देखकर मुझे गुरु नंदी की कही बात याद आने लगी की ये सेना तभी जागेगी जब महासूर जागेंगे इसका मतलब की महासूर जाग चुके है और इससे पहले की मे कुछ और सोच पाता
उससे पहले ही उन सभी मूर्तियों ने हम पर हमला बोल दिया मे अभी अपने सोच मे गुम था कि तभी उन मूर्तियों मेसे एक ने मेरे उपर अपने गदा से वार किया जिससे मे दो कदम पीछे हो गया और जमीन पर गिर पड़ा
और जैसे ही गुरु नंदी ने मुझे गिरते देखा तो उन्होंने तुरंत अपने हाथों मे पकड़ी हुई तलवार को मेरे तरफ फेक दिया जिससे वो तलवार ठीक मेरे सामने आके गिर गई
लेकिन जब मैने उस तलवार को उठाने की कोशिश की तो वो तलवार इतनी भारी थी कि उसको उठाना तो दूर मे उसे हिला भी नही पा रहा था
गुरु नंदी :- वो नंदी अस्त्र से जुड़ी हुई तलवार है उस उठाने के लिए अपने शरीर मे 100 हाथियों की ताकत समाओ कुमार अह्ह्ह
मे :- नहीं....
अभी गुरु नंदी मुझे ये बात बता रहे थे की तभी कुछ सिपाहियों ने उनके भटके हुए ध्यान का फायदा उठा कर सीधा उनके सर को उनके धड़ से अलग कर दिया जो देखकर मेरे होश ही उड़ गये
मे उस तलवार को छोड़ अपने अस्त्रों की शक्ति पर ध्यान लगाने लगा लेकिन मेरे सारे प्रयत्न विफल जाते अभी मे इस कोशिश में लगा हुआ था कि तभी मुझे एक चीख सुनाई दी जो गुरु वानर की थी
जिनको उन दैत्यों ने घेर लिया था और एक दैत्य ने उनका एक हाथ काट दिया था और बाकी दैत्य उनका ये हाल देखकर नाच रहे थे
तो वही ये देखकर मे अपनी पूरी गति से उनके तरफ बढ़ने लगा मे शिबू की मायावी तलवारों को भी याद किया लेकिन वो भी नाकाम रहा मे खुदको बड़ा बेबस महसूस कर रहा था
गुरु वानर :- कुमार अपनी गति को अपने भार से जोड़ो तुम्हे अपने दिल और दिमाग को एक करना होगा अह्ह्ह बचाओ भद्रा
उनके यही आखरी बोल थे जो उन्होंने मरने से पहले बोले थे जी हाँ जब वो मुझे गति बढ़ाने के लिए बोल रहे थे की तभी एक दैत्य ने अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दी और उनका सर आके सीधा मेरे पैरों के पास गिरा
जिसे देखकर मेरे कदम वही थम गए मुझे यकीन नहीं हो रहा था की मेरे सामने 2 अस्त्र धारकों को दैत्यों ने मार दिया और मे कुछ भी नही कर पाया क्या मे सच्ची मे सातों अस्त्रों के काबिल हूँ क्या मे सच्ची मे इस महान जिम्मेदारी को संभाल सकता हूँ
अभी मे ये सब सोच ही रहा था कि तभी आसमान से कही से एक आग का गोला आके मेरे से टकरा गया जिसे मैं दुर उड़ता हुआ जा गिरा अब तक मुझे बहुत चोटे आ चुकी थी
मे बार बार अपने सप्त अस्त्रों की शक्ति को जाग्रुत करने का प्रयास करता या फिर शिबू की मायावी तलवारों को प्रकट करने का प्रयत्न करता लेकिन उससे कुछ भी नहीं होता
जिसके बाद मेने भी अब उनके इस्तेमाल करने के सोच को टाल दिया और अपने बाहुबल का इस्तेमाल करने लगा लेकिन उन असुरों की खाल इतनी मजबूत थी की मेरा कोई भी प्रहार उन्हे कुछ भी चोट नही कर पा रही थी
ऐसा लग रहा था कि जैसे मे किसी पहाड़ पर अपने बाहु बल का प्रयोग कर रहा हूँ मै अभी तक एक दैत्य को नही मार पा रहा था
तो वही उन दैत्य सेना ने अभी तक गुरु नंदी और वानर के साथ साथ गुरु अग्नि, जल, सिँह को मार दिया था उन तीनों ने मुझे आखरी साँस तक मदद के लिए बुलाया था
लेकिन मे उनके पास पहुँच कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था उन्हे मरते हुए देखने के सिवा मुझे खुद पर इतना क्रोध आ रहा था कि मे चाह कर भी कुछ नही कर पा रहा था मे बार बार खुद से एक ही सवाल पूछ रहा था
कि क्या इसीलिए मुझे चुना गया था की मे सबको मरते देखु क्या इसीलिए मुझे महान शक्तियाँ दी गई थी अब तक मे खुद को सर्व शक्तिशाली मानता था मुझे कोई नही हरा सकता मे ये हूँ वो हूँ
लेकिन आज जैसे मुझे किसी ने आइना दिखा दिया था की मे कुछ नही हूँ अगर मे इन मामूली दैत्यों से नही लड़ पा रहा हूँ तो मे महासुरों से क्या खाक लडूंगा ऐसे ही कई सारे खयाल मेरे मन में जनम ले रहे थे
और अभी मे इन सब ख्यालों से झूँझ रहा था कि तभी मेरी नज़र गुरु पृथ्वी पर गयी जिन्हे दैत्यों ने घेर लिया था और उन्हे वो मारने वाले थे की तभी मे उनके पास पहुँच गया
और उन असुरों पर वार करने लगा लेकिन अंजाम हर बार एक ही होता मेरे लात घुसे उनपर विफल जाते लेकिन उनका एक ही वार मुझे घायल करने के लिए काफी था
गुरु पृथ्वी :- कुमार इन पर लात घूसों का असर नहीं होगा इन्हे मारने के लिए तुम्हे अपने शरीर के हर हिस्से को मजबूत करना होगा बिल्कुल किसी अभेद्य कवच की तरह तभी तुम इनके वार से बच पाओगे तुम्हे जो हमने सिखाया है उसे याद करो
अभी वो इतना बोले ही थे की तभी कही से एक तीर आया और वो सीधा उनके गर्दन मे जा घुसा और वो सीधा जमीन पर गिर पड़े जो देखकर अब मे पूरी तरह से टूट गया था
मे खुद की सुध बुध खो कर वही घुटनों के बल बैठ कर रोने लगा था इस बात से अनजान की जिन्होंने गुरु पृथ्वी को मारा वो सब मेरे सामने ही है और उनका अगला शिकार मे ही हूँ
अभी वो सभी अपने अस्त्र को लिए मेरे तरफ बढ़ रहे थे की तभी किसी ने मुझे पीछे खिंचा और जब मेने मुझे पीछे खींचने वाले का चेहरा देखा तो वो गुरु काल थे जो बहुत क्रोध में थे जिन्हे देखकर मे वही जमीन पर बैठकर रोने लगा
मै :- मुझसे कुछ भी उम्मीद मत रखिये गुरु काल में कुछ नही कर पाऊंगा
गुरु काल :- तुमसे उम्मीद है किस को जब तुम्हारे सामने गुरु नंदी मारे गए थे और तुमने कुछ नही किया तभी मे जान गया था कि तुम बिना अस्त्रों के कुछ भी नही हो तुम केवल एक रोते हुए बालक हो जो केवल रो सकता हैं नही वो संसार की रक्षा करने मे सक्षम है नही अपने अपनों की न वो बुराई से लोहा ले सकता हैं न ही अपने माता पिता का प्रतिशोध ले सकता हैं
गुरु काल की ये सारी बात सुनकर अब मेरे अंदर क्रोध बढ़ रहा था मेरे आँखों मे आँसू अब सुख गए थे और दिमाग मे केवल अपने माता पिता पर हुए अत्याचार दिख रहे थे
गुरु काल :- क्रोध आ रहा है क्या तुम्हे हाँ लेकिन तुम रोने के अलावा कर भी क्या सकते हो अगर तुम युद्ध उनको खतम करने के लिए हथियार नही उठा सकते तो कायरों के तरफ कही छुप जाओ क्योंकि उनसे अकेले युद्ध करना और तुम्हे बचना मे एक साथ नही कर सकता जाओ छुप जाओ कायरों के तरह
इतना बोलके गुरु काल फिर से युद्ध के मैदान में कूद पड़े और सब सैनिकों को खतम करने लगे तो वही अब तक उनकी सारी बातों से मुझे क्रोध आ गया था और उसी क्रोध के वश मे आकर मे भी युद्ध के मैदान में कूद पडा
और इस क्रोध के कारण शायद मेरा बल भी बढ़ गया था क्योंकि जहाँ पहले उन दैत्यों पर मेरा एक वार भी ठीक से नही हो रहा था तो वही अब मेरे एक घुसे से वो असुर 10 कदम दूर जाके गिर रहे थे जो देखकर गुरु काल के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गयी थी
गुरु काल :- शब्बाश कुमार अब आप अपने क्रोध को अपनी ऊर्जा मे बदलो इन पर तुम्हारे बाहुबल से नही बल्कि मायाबल से आक्रमण करो जो तलवार गुरु नंदी ने दी थी उसका इस्तेमाल करो
अभी उन्होंने इतना बोला था की तभी वहा एक जोरदार धमाका हुआ जिस धमाके से वहा हर तरफ धुआ फैल गया और जब धुआ हटा तो वहा पर सातों महासूर खड़े थे जिन्हे देखकर मेरा क्रोध बढ़ रहा था
और उसी क्रोध के आवेश मे मैं सीधा उन महासुरों के उपर टूट पड़ा लेकिन जैसे ही मे उनके पास पहुंचा वैसे ही उन सब ने मुझे घेर लिया और मुझ पर वार करने लगे जिससे मे चोटिल हो गया था
और अभी मे कुछ कर पाता उससे पहले ही महादंश ने मुझे उठाकर दूर फेक दिया और उसके बाद क्रोधासुर ने अपना एक तिर मेरे उपर छोड़ दिया लेकिन इसके पहले की वो तिर मुझ तक पहुँच पाता
उससे पहले ही गुरु काल मेरे और उस तिर के मध्य आ गए और वो तिर उनके सीने मे धस गया और वो सीधा मेरे पैरों के पास गिर गए जो देखकर मेने तुरंत उनके सर अपने गोद मे ले लिया मुझे ऐसा लग रहा था की वो कुछ बोलने की कोशिश कर रहे हैं
गुरु काल :- याद रखना अपने सारे नकारत्मक भावों को अपनी ऊर्जा बनाओ अगर तुम ऐसा कर पाए तो दुनिया की कोई भी शक्ति तुम्हे हरा नहीं पायेगी
इतना बोलते हुए उन्होंने मेरे गोद मे ही दम तोड़ दिया तो वही गुरु काल का निर्जीव शरीर को अपने गोद मे महसूस करके मेरा क्रोध अपनी चरम पर पहुँच गया था
जिसके चलते मे फिर एक बार उन महासुरों के तरफ दौड़ पड़ा लेकिन इसबार भी वही हुआ जो पिछली बार हुआ था महादंश ने मुझे किसी खिलौने समान उठाकर दूर फेक दिया लेकिन मे रुका नही
अभी मे फिर से कोशिश करता की तभी मेरा ध्यान गुरु नंदी की दी हुई तलवार पर पड़ी और जैसे ही मैने उसे देखा मेरे मन में सारे गुरुओं द्वारा बताई हुई बाते आ गयी जिसके चलते मे वही तलवार के पास बैठकर ध्यान लगाने लगा
जिसके बाद मुझे अपने शरीर में बहुत से बदलाव महसूस होने लगे और अभी मे ध्यान बैठा था की तभी क्रोधासुर ने फिर से एक तिर मेरे तरफ छोड़ दिया और जैसे ही वो तिर मेरे शरीर से टकराया
वैसे ही उस तिर के मुह पर लगे ही तिखा हिस्सा टूट कर तिर से अलग हो गया इसके पीछे का कारण था मेरा शरीर जो अब किसी अभेद्य कवच के तरह मजबूत हो गया था
और उस तिर के नाकाम होते ही मेने अपना हाथ आगे बढ़ाकर तलवार को पकड़ लिया और अपनी आँखे खोल दी जो की अब पूरी लाल हो गयी थी जैसे मानो उनके अंदर रक्त उतर आया है
और जो तलवार अब तक पूरी ताकत लगाकर भी मुझसे उठ नही रही थी वो अब मैने अपने एक हाथ मे ऐसे उठा रखी थी की जैसे खिलौने की तलवार हो और जैसे ही मे उस तलवार को उठाकर आगे बढ़ने लगा की तभी......
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आज के लिए इतना ही
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Nice update....अध्याय चौहत्तर
शांति :- हमने सब कार्य पूर्ण तो कर दिये है और किसी भी वक़्त असुरों के द्वारा आक्रमण हो सकता हैं लेकिन फिर भी अभी तक भद्रा लौट कर नही आया है
प्रिया :- कहीं उसे कुछ हो तो नही गया
दमयंती :- नही ऐसा नहीं हो सकता उसने अपने ब्रामहारक्षस के रूप पर काबू कर लिया है जब की अभी भी वो मानव यौनि मै हि हैं और यही सबूत काफी है उसके शक्तियों की सीमा जानने के लिए उसे मारने के लिए उसके शत्रुओं के पास केवल एक ही रास्ता है
प्रिया :- कौनसा
त्रिलोकेश्वर :- ब्रम्हास्त्र वही एक अस्त्र है जिससे किसी भी जीव को मार सकता हैं
महागुरू :- ये सारी बाते छोड़ो अब आगे होने वाले युद्ध का विचार करो हम सब को अब सतर्क रहना चाहिए
गुरु नंदी :- इसमें क्या परेशान होना हमने सभी संभावित मार्गों पर पहले ही कवच लगा दिये है जैसे ही वो हमला करेंगे हमे पता चल जायेगा
महागुरु :- भद्रा सही था तुम सब कभी भी असुर बुद्धि से सोच नही पाओगे
शांति :- असुर बुद्धि मतलब
शिबू :- जब भद्रा अपने अभियान पर गया था तो उसके कुछ ही समय बाद मेरे, महागुरु के और सम्राट के हम तीनों के मस्तिष्क में उसकी आवाज सुनाई देने लगी और तब उसने हमे उसके योजना के तीसरे चरण और सबसे महत्व पूर्ण चरण के बारे में बताया
जब शिबू ने ये कहाँ तो वहाँ पर सब जन अपने खुर्चियों से खड़े हो गए उन्हे इस की जरा भी उम्मीद नहीं थी कि भद्रा इस महायुद्ध से जुड़े हुए किसी भी योजना से उन्हे अंजान रखेगा
प्रिया :- इसके बारे में उसने हमे क्यों नही बताया
महागुरु :- क्योंकि इस योजना की जरूरत तभी पड़ेगी जब हम सभी के उपर जीवन या मरण का सवाल होगा और भद्रा नही चाहता था कि हमे उस योजना की जरूरत पड़े कभी भी
दमयंती :- क्या थी वो योजना
अभी कोई कुछ और बोलता की तभी आश्रम की पूरी जमीन हिलने लगी थी धरती मे कंपन इतनी तेज थी की किसी से ठीक से खड़ा भी नही हुआ जा रहा था
अभी सब उस अचानक आये हुए भूकंप से उलझ रहे थे की तभी अचानक वो कंपन एकाएक रुक गया इस कंपन को महसूस करने के बाद जहाँ पर सभी हैरान थे
तो वही महागुरु, शिबू और त्रिलोकेश्वर इन तीनों के चेहरों पर हैरानगी के साथ साथ डर के भाव भी दिख रहे थे और इससे पहले की वहाँ कुछ और होता की तभी बाहर से सबके चीखने चिल्लाने की आवाजे आने लगी
जो सुनकर सभी तुरंत बाहर आ गए और जब सब बाहर आये तो सब हैरान रह गए क्योंकि आसमान से आश्रम पर लगातार आग के गोले बरस रहे थे जिससे कुछ लोग जख्मी भी हो गए थे
जो देख कर गुरु अग्नि और गुरु जल दोनों ने एक साथ आग पर काबू पाने का कार्य आरंभ कर दिया और अभी उन्होंने आग पर काबू पा लिया था
की तभी उन्हे वहाँ असुरी ऊर्जा का अनुभव होने लगा और जब उन्होंने अपने चारों तरफ देखा तो उन्हे वहाँ हर तरफ असुर दिखाई देने लगे जिन्हे देखकर वहाँ सभी दंग रह गए
तो वही आश्रम के बाहर मायासुर और उसकी सेना मौजूद थी तो वही उसके साथ सातों महासुर भी मौजूद थे अपनी सेना के साथ
महागुरु :- भद्रा को इसी बात का डर था की हमारे जाल बिछाने से पहले ही असुर सेना के कुछ सिपाही धरती लोक पर न आ जाये और वो हमारे बिछाये जाल को तबाह न कर दे
शिबू :- महागुरु और सम्राट हमारे पास उस योजना का इस्तेमाल करने के अलावा और कोई रास्ता नही है जो भद्रा ने बनाई थी
महागुरु :- आप सही कह रहे हो शिबू अब हो जाए अंतिम युद्ध अब आर या पार की जंग होगी
त्रिलोकेश्वर :- अब अगर तिर को धनुष चढ़ा दिया है तो अब उसका संधान करने मे दैर कैसी
तीनो एक साथ :- युद्ध क्षेत्र प्रकटम
उनके इतना बोलते ही वहाँ पर हर तरह प्रकाश फैल गया और जब प्रकाश हटा तो वहाँ का हाल देखकर सभी दंग रह गए क्युंकि जहाँ कुछ पल पहले तक आसमान में से आग बरस रही थी
वही अब देखकर ऐसा लगता कि वहाँ पर आसमान मे ही आग लगी हुई हो तो वही अब उन्हे अपने चारों तरफ kuc मायावी द्वार बने हुए दिखाई दे रहे थे जिसके दूसरी तरफ उन्हे केवल खाली मैदान दिखाई दे रहा था
महागुरु :- कोई कुछ पूछे उससे पहले ही मे आप सब को बता दूँ की हम सब अपने जीवन के उन मुकाम पर खड़े हैं जहाँ पर इस वक्त हमे वो फैसला लेना है जिसका सीधा संबंध हमारे जीवन मरण पर होगा ये युद्ध क्षेत्र मायावी है एक बार अगर हमने यहाँ पर कदम रखा तो जब तक शत्रु पक्ष हार नही जाता या मैदान छोड़ कर भाग नही जाता तब तक हम मेसे कोई भी मैदान छोड़ नही पायेगा इसलिए इस युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश करने से पहले दो बारा सोच लो एक बार युद्ध आरंभ हो गया तो हम अपने मर्जी से कभी भी वापस नही आ पाएंगे
शिबू :- यही वक्त का इंतज़ार तो हर योद्धा करता है आज या तो हम विजयी होंगे या शहीद होंगे लेकिन युद्ध मे से पीछे हटकर कायर नही कहलाएंगे
सभी एक साथ :- बिल्कुल सही
त्रिलोकेश्वर :- अगर ऐसा है तो (जोर से चिल्लाकर) आक्रमण
त्रिलोकेश्वर के तरफ से इशारा मिलने के तुरंत बाद सभी लोग उन मायावी द्वारों से दौड़ते हुए युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश कर गए
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आज के लिए इतना ही
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NICE UPDATE BHAIअध्याय त्रेशष्ठ
उस तिर के मुह पर लगे ही तिखा हिस्सा टूट कर तिर से अलग हो गया इसके पीछे का कारण था मेरा शरीर जो अब किसी अभेद्य कवच के तरह मजबूत हो गया था
और उस तिर के नाकाम होते ही मेने अपना हाथ आगे बढ़ाकर तलवार को पकड़ लिया और अपनी आँखे खोल दी जो की अब पूरी लाल हो गयी थी जैसे मानो उनके अंदर रक्त उतर आया है
और जो तलवार अब तक पूरी ताकत लगाकर भी मुझसे उठ नही रही थी वो अब मैने अपने एक हाथ मे ऐसे उठा रखी थी की जैसे खिलौने की तलवार हो और जैसे ही मे उस तलवार को उठाकर आगे बढ़ने लगा की तभी......
मेरे सामने जो सैनिक खड़े थे वो सभी फिर से पत्थर की मूर्तियों में बदल गए और जहाँ मेरे सामने जो सातों महासूर खड़े थे वो सभी सप्त ऋषियों मे तब्दील हो गए
ये सब देखकर तो जैसे मेरे होश ही उड़ गये थे मे बस वहाँ का हाल देखकर उलझ गया था कभी उन पत्थर मे बदले हुए सैनिकों को देखता तो कभी सप्तऋषियों को देखता
वही मेरे दिलका हाल समझकर गुरु काल मेरे करीब आये और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए वो बोले
गुरु काल :- क्या सोच रहे हो कुमार क्या अभी तक समझे नही की ये केवल एक मायाजाल था
में:- नही गुरुवर मे समझ गया था की ये सब एक माया जाल है लेकिन क्यों ये समझ नही पा रहा हूँ
गुरु काल:- ये सब कुछ तुम्हे तुम्हारी शक्तियों से पहचान कराने के लिए अपने अस्तित्व का बोध कराने के लिए और सबसे बढ़कर तुम्हारे काबिलियत की परीक्षा लेने के लिए था
मै:- परीक्षा लेकिन किस लिए
गुरु काल :- सबसे पहले हमे ये जानना था की अगर कभी ऐसी परिस्थिति जब आपको हमले के बारे मे अंदाजा भी न हो तब अगर आकासमात हमला हो जाए तो आप उस कैसे लढोगे लेकिन आप तो अपने ही सोच मे गुम थे और इसी का फायदा उठा कर आप पर अपनी गदा से वार किया लेकिन अगर ते असल युद्ध होता तो गदा से नही बल्कि किसी घातक अस्त्र से वार होता और युद्ध वही खतम हो जाता याद रखना कुमार युद्ध मे दूसरा मौका नही होता
मै :- मै समझ गया गुरुवर अगली बार चाहे जो भी हो मे सतर्क रहूँगा
गुरु नंदी :- फिर हमे ये जांचना था की अगर युद्ध के मैदान में आपके अस्त्र निष्क्रिय हो जाए तो क्या होगा और इसीलिए हमने ऐसी माया का निर्माण किया जिसमे आपके सप्त अस्त्रों के साथ साथ और कोई भी शक्ति काम न करे लेकिन जब आपने सप्त अस्त्र जगाने का प्रयास किया और उसमे आप असफल हो गए थे लेकिन फिर भी आप बार बार उसी को जाग्रुत करने का प्रयास कर रहे थे जबकि आपको हमने पहले ही कहाँ था की यहाँ पर सप्त अस्त्र का नही करेंगे
मै :- मुझे क्षमा करना गुरु नंदी मे आप सबको मरते देख कर इतना क्रोध और आपको बचा न पाने के नाकामी मे इतना मायूस हो गया था की मे कुछ सोच समझ नहीं पा रहा था
गुरु अग्नि:- यही आपका अगला सबक भी है कुमार की युद्ध हमेशा नर संहार साथ लाता हैं इस मे हो सकता हैं आपके साथी मारे जाए या फिर वो मारे जाए जिन्हे आप खुद से भी ज्यादा चाहते हो और अगर आप बीच युद्ध मे उनका शोक करते बैठे तो उनके साथ आप भी मारे जाओगे और इसीलिए हम सभी बार बार आपके सामने मर रहे थे ताकि हम देख पाए की क्या करते हो आप
मै :- और इसमें भी मैने आपको निराश किया मे आप सबको मरते देख टूट गया था खासकर तब जब आप सभी मुझसे उम्मीद लगाकर बैठे थे मे सोचने लगा था की क्या सच्ची मे मैं आपके इस विश्वास और शक्तियों के काबिल हूँ
गुरु पृथ्वी :- काबिलियत पर भरोशा यही आपका अगला सबक है कुमार आपके पूरे जीवन काल मे ऐसे कई सारे मौके आयेंगे जब आपको खुद की काबिलियत पर शक होगा लेकिन आपको ये समझना होगा कि जब तक आप खुदको काबिल नही मानोगे तब तक कोई अन्य भी आपको काबिल नही मानेगा
गुरु काल :- अब सबसे अहम सबक
मै (बीच मे ही रोकते हुए) :- मे जानता हूँ गुरुवर अपने अंदर के सभी नाकारत्मक विचारों और भावनाओं को अपनी ऊर्जा बनाना और उसी ऊर्जा को अपने शत्रुओं के खिलाफ इस्तेमाल करना
गुरु काल :- बिल्कुल सही कुमार अब आप आने वाले युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार है एक बात का याद रखना आप अस्त्रों को शक्तिशाली बनाते हो न की अस्त्र आपको शक्ति देंगे
मै :- ठीक है गुरुवर ये बात मे पूरी तरह से समझ चुका हूँ
गुरु सिँह :- अब सबसे महत्वपूर्ण बात कुमार महासुरों को आप सप्त अस्त्रों से नही हरा पाओगे
मै (हैरानी से) :- क्या लेकिन सप्त अस्त्रों के मदद से ही तो आप सबने भी उन्हे एक बार हराया था तो अब क्यों नही
गुरु वानर :- नही कुमार हमने सप्त अस्त्रों के मदद से केवल उन्हे कैद किया था उनका जन्म सप्तस्त्रों के अंश से ही हुआ था जिसके कारण उनका अंत सप्तस्त्रों के द्वारा नही हो सकता तुम उन्हे चोटिल कर सकते हो कैद कर सकते हो लेकिन खतम नही कर सकते हो उसके लिए तुम्हे एक खास अस्त्र की आवश्यकता है
मै :- कौनसा अस्त्र मुझे वो कहाँ मिलेगा
गुरु काल :- वो अस्त्र कौनसा है और किधर मिलेगा ये तुम्हे खूद ढूँढना होगा हम केवल तुम्हे इतना बता सकते है कि उसकी जानकारी तुम्हे उसी जगह पर मिलेगी जहाँ पर जन्म लेने के बाद तुमने पहली बार अस्त्र की शक्ति को महसूस किया था और एक बात याद रखना अगर किसी बेगुनाह को तुम्हारे कारण हानि पहुंची तो वो अस्त्र तुम्हे कभी नही मिलेगा अब तुम जाओ थोड़ा आराम करलो 15 दिनों पश्चात तुम्हे आराम करने का कोई मौका नहीं मिलेगा
मै :- आराम से याद आया मुझे अजीबो गरीब सपने दिखते है
फिर मैने उन्हे मेरे सपने के बारे में सब बता दिया और फिर उन सपनो को लेकर आश्रम मे ही बातों को भी उन्हे बता दिया
गुरु काल :- शिबू ने सही कहा था महासूर ही वो जीव है जो ये सब कर रहे है और इस सब से तुम्हारा ये संबंध है कि उन सब को बचाने की जो शक्ति है वो केवल और केवल तुम्हारे पास है सप्तस्रों की शक्ति और सप्तस्त्र तुम्हे तुम्हारे जिम्मेदारियों से तुम्हारे कर्मों से उस अवगत करा रहे है
मै :- लेकिन मुझे पता कैसे चलेगा की ये सब हो किस ग्रह पर हो रहा है
गुरु वानर :- पूरे संसार में सात ऐसे ग्रह है जो महासुरों को जन्म देने वाली ऊर्जा रखते है
सबसे पहला ग्रह है वेदस्त ग्रह (अध्याय सत्तावन वाला) ये ग्रह अपने शांत और निर्मल हसीन वतावरण के लिए जाना जाता हैं इसीलिए यहाँ पर जरूर गजासूर से सामना होगा
फिर दूसरा ग्रह है महर लोक जहां सारे ऋषि-मुनि रहते हैं महर लोक में रहने वाले बहुत ही तेज गति से अलग-अलग लोकों पर जा सकते हैं। इनकी गति इस हद तक तेज हैं जिसे आधुनिक विज्ञान के लिए समझ पाना नामुकिन है इसीलिए केशासुर तुम्हे यही मिलेगा
तीसरा ग्रह है भुवर-लोक यह सूर्य, ग्रहों, तारों और पृथ्वी और सूर्य के बीच के स्थान का स्थान है। यह एक वास्तविक क्षेत्र, वातावरण, आत्मा और सार का स्थान है इसीलिए यहाँ पर महादंश ने अपना राज्य स्थापित किया है
चौथा ग्रह है तप-लोक: यह तपस या अन्य देवी-देवताओं का निवास स्थान है उनके तपो बल से यहाँ पर बलासुर अपना राज आसानी से स्थापित कर सकता हैं फिर आता है
महातल-लोक: महातल कई फन वाले नागों का निवास स्थान है, कद्रू के पुत्र कुहका, तक्षक, कालिया और सुषेण के क्रोधवशा समूह के नेतृत्व में हैं इसीलिए यहाँ पर तुम्हारा सामना विशांतक से होगा
जिसके बाद आता है रसातल-लोक: यह दानवों और दैत्यों का घर है, जो देवताओं के चिर शत्रु हैं यहाँ पर ज्वालासुर का राज्य स्थापित होगा
और सबसे आखिरी और सबसे शक्तिशाली ग्रह है पाताल लोक इस ग्रह पर महासुरों के नायक क्रोधासुर से आमना सामना होगा
गुरु वानर :- याद रखना कुमार इन सबसे लड़ने जाने से पहले तुम्हे उस अस्त्र को जरूर पाना है
मै :- आप निश्चित रहियेगा सप्तऋषियों मे आपको भरोशा दिलाता हूं की जिस युद्ध को आपने शतकों पहले अधूरा छोड़ा था उसी युद्ध को मे अंजाम तक पहॅुचाऊँगा
सभी गुरु एक साथ :- विजयी भवः
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आज के लिए इतना ही
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Awesome updateअध्याय चौहत्तर
शांति :- हमने सब कार्य पूर्ण तो कर दिये है और किसी भी वक़्त असुरों के द्वारा आक्रमण हो सकता हैं लेकिन फिर भी अभी तक भद्रा लौट कर नही आया है
प्रिया :- कहीं उसे कुछ हो तो नही गया
दमयंती :- नही ऐसा नहीं हो सकता उसने अपने ब्रामहारक्षस के रूप पर काबू कर लिया है जब की अभी भी वो मानव यौनि मै हि हैं और यही सबूत काफी है उसके शक्तियों की सीमा जानने के लिए उसे मारने के लिए उसके शत्रुओं के पास केवल एक ही रास्ता है
प्रिया :- कौनसा
त्रिलोकेश्वर :- ब्रम्हास्त्र वही एक अस्त्र है जिससे किसी भी जीव को मार सकता हैं
महागुरू :- ये सारी बाते छोड़ो अब आगे होने वाले युद्ध का विचार करो हम सब को अब सतर्क रहना चाहिए
गुरु नंदी :- इसमें क्या परेशान होना हमने सभी संभावित मार्गों पर पहले ही कवच लगा दिये है जैसे ही वो हमला करेंगे हमे पता चल जायेगा
महागुरु :- भद्रा सही था तुम सब कभी भी असुर बुद्धि से सोच नही पाओगे
शांति :- असुर बुद्धि मतलब
शिबू :- जब भद्रा अपने अभियान पर गया था तो उसके कुछ ही समय बाद मेरे, महागुरु के और सम्राट के हम तीनों के मस्तिष्क में उसकी आवाज सुनाई देने लगी और तब उसने हमे उसके योजना के तीसरे चरण और सबसे महत्व पूर्ण चरण के बारे में बताया
जब शिबू ने ये कहाँ तो वहाँ पर सब जन अपने खुर्चियों से खड़े हो गए उन्हे इस की जरा भी उम्मीद नहीं थी कि भद्रा इस महायुद्ध से जुड़े हुए किसी भी योजना से उन्हे अंजान रखेगा
प्रिया :- इसके बारे में उसने हमे क्यों नही बताया
महागुरु :- क्योंकि इस योजना की जरूरत तभी पड़ेगी जब हम सभी के उपर जीवन या मरण का सवाल होगा और भद्रा नही चाहता था कि हमे उस योजना की जरूरत पड़े कभी भी
दमयंती :- क्या थी वो योजना
अभी कोई कुछ और बोलता की तभी आश्रम की पूरी जमीन हिलने लगी थी धरती मे कंपन इतनी तेज थी की किसी से ठीक से खड़ा भी नही हुआ जा रहा था
अभी सब उस अचानक आये हुए भूकंप से उलझ रहे थे की तभी अचानक वो कंपन एकाएक रुक गया इस कंपन को महसूस करने के बाद जहाँ पर सभी हैरान थे
तो वही महागुरु, शिबू और त्रिलोकेश्वर इन तीनों के चेहरों पर हैरानगी के साथ साथ डर के भाव भी दिख रहे थे और इससे पहले की वहाँ कुछ और होता की तभी बाहर से सबके चीखने चिल्लाने की आवाजे आने लगी
जो सुनकर सभी तुरंत बाहर आ गए और जब सब बाहर आये तो सब हैरान रह गए क्योंकि आसमान से आश्रम पर लगातार आग के गोले बरस रहे थे जिससे कुछ लोग जख्मी भी हो गए थे
जो देख कर गुरु अग्नि और गुरु जल दोनों ने एक साथ आग पर काबू पाने का कार्य आरंभ कर दिया और अभी उन्होंने आग पर काबू पा लिया था
की तभी उन्हे वहाँ असुरी ऊर्जा का अनुभव होने लगा और जब उन्होंने अपने चारों तरफ देखा तो उन्हे वहाँ हर तरफ असुर दिखाई देने लगे जिन्हे देखकर वहाँ सभी दंग रह गए
तो वही आश्रम के बाहर मायासुर और उसकी सेना मौजूद थी तो वही उसके साथ सातों महासुर भी मौजूद थे अपनी सेना के साथ
महागुरु :- भद्रा को इसी बात का डर था की हमारे जाल बिछाने से पहले ही असुर सेना के कुछ सिपाही धरती लोक पर न आ जाये और वो हमारे बिछाये जाल को तबाह न कर दे
शिबू :- महागुरु और सम्राट हमारे पास उस योजना का इस्तेमाल करने के अलावा और कोई रास्ता नही है जो भद्रा ने बनाई थी
महागुरु :- आप सही कह रहे हो शिबू अब हो जाए अंतिम युद्ध अब आर या पार की जंग होगी
त्रिलोकेश्वर :- अब अगर तिर को धनुष चढ़ा दिया है तो अब उसका संधान करने मे दैर कैसी
तीनो एक साथ :- युद्ध क्षेत्र प्रकटम
उनके इतना बोलते ही वहाँ पर हर तरह प्रकाश फैल गया और जब प्रकाश हटा तो वहाँ का हाल देखकर सभी दंग रह गए क्युंकि जहाँ कुछ पल पहले तक आसमान में से आग बरस रही थी
वही अब देखकर ऐसा लगता कि वहाँ पर आसमान मे ही आग लगी हुई हो तो वही अब उन्हे अपने चारों तरफ kuc मायावी द्वार बने हुए दिखाई दे रहे थे जिसके दूसरी तरफ उन्हे केवल खाली मैदान दिखाई दे रहा था
महागुरु :- कोई कुछ पूछे उससे पहले ही मे आप सब को बता दूँ की हम सब अपने जीवन के उन मुकाम पर खड़े हैं जहाँ पर इस वक्त हमे वो फैसला लेना है जिसका सीधा संबंध हमारे जीवन मरण पर होगा ये युद्ध क्षेत्र मायावी है एक बार अगर हमने यहाँ पर कदम रखा तो जब तक शत्रु पक्ष हार नही जाता या मैदान छोड़ कर भाग नही जाता तब तक हम मेसे कोई भी मैदान छोड़ नही पायेगा इसलिए इस युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश करने से पहले दो बारा सोच लो एक बार युद्ध आरंभ हो गया तो हम अपने मर्जी से कभी भी वापस नही आ पाएंगे
शिबू :- यही वक्त का इंतज़ार तो हर योद्धा करता है आज या तो हम विजयी होंगे या शहीद होंगे लेकिन युद्ध मे से पीछे हटकर कायर नही कहलाएंगे
सभी एक साथ :- बिल्कुल सही
त्रिलोकेश्वर :- अगर ऐसा है तो (जोर से चिल्लाकर) आक्रमण
त्रिलोकेश्वर के तरफ से इशारा मिलने के तुरंत बाद सभी लोग उन मायावी द्वारों से दौड़ते हुए युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश कर गए
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आज के लिए इतना ही
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