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Fantasy ब्रह्माराक्षस

kas1709

Well-Known Member
10,009
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213
अध्याय तिहत्तर

अब मेरे पूरे शरीर से अग्नि निकलने लगी जिसे वो कुरुमा ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने अपनी पकड़ को ढीला कर दिया जिसके बाद मैंने एक ऊंची छलांग मारी और कुरुमा के ठीक सामने खड़ा हो गया

अब तक मे इतना तो समझ गया था की इसे मारना या ताकत के जौर पर काबू करना बहुत मुश्किल है और मेरे पास उतना समय भी नही है यही सोचकर मैने अपने आकार को थोड़ा कम किया

और एक छलांग लगा कर उस कुरुमा के पीठ पर बैठ गया और इससे पहले की वो कुछ समझ पाता उससे पहले ही मैने अपनी पूरी ऊर्जा की अपने सप्तचक्रों मे प्रवाहित की और ऐसे होते ही

मैने अपनी सप्तचक्रों की ऊर्जा को कुरुमा के शरीर में प्रवाहित कर दिया जिससे अब हम दोनों की ऊर्जा एक हो गयी थी

जिसके बाद मैने उस कुरुमा की सारी ऊर्जा और उसके जीवन ऊर्जा को अपने अंदर सोख लिया


(ये कुमार की शक्तियों मे से एक है जो उसके ब्रामहारक्षस के ऊर्जा मे सम्मलित है)

और जैसे ही मैने ऐसा किया वैसे ही वो दर्द से तड़पने लगा और जैसे ही उसका तड़पना बंद हुआ वो एक लाल ऊर्जा मे तब्दील होकर मेरे शरीर मे समा गया

जिसके बाद उस मैदान मे धरती के नीचे से एक बड़ा पत्थर निकला जिसके उपर तलवार का चित्र बना हुआ था और उसके पास कुछ लिखा हुआ था

*शब्बाश मानव आज तुमने कुरुमा को हराकर उसे अपना गुलाम बना लिया है अब वो तुम्हारे एक आदेश पर पूरे ग्रह को खतम कर देगा लेकिन याद रखना बड़ी ताकत के साथ आती है बड़ी जिम्मेदारिया अब तुम्हे मिले हुए सभी संदेशों को यहाँ तलवार के उपर रख दो जिसके बाद तुम्हे मिलेगा वो अजेय अस्त्र जिससे तुम्हे मिलेगा वो अजेय अस्त्र जिससे तुम उन महासुरों के अंदर के सप्तस्त्रों के अंश का विनाश कर पाओगे याद रखना तुम इस अजेय अस्त्र को केवल 7 बार इस्तेमाल कर पाओगे यानी हर महासुर के लिए केवल 1 ही मौका होगा*

ये पढ़ने के बाद मैने सारे संदेशों को उस तलवार के उपर रख दिया जिसके बाद उस पत्थर पर 7 अलग अलग तलवारे आ गयी जो कुछ देर मे ही एक दूसरे मे समा कर एक तलवार बन गई


और फिर वो तलवार मेरे शरीर में समा गयी और उस के समाते ही मे उसी जगह पर आ गया जहाँ से सब आरंभ हुआ था कालविजय आश्रम के पीछे नदी के पास जब मे वहाँ पहुंचा तो मे हैरान रह गया

क्योंकि वहाँ का पुरा आसमान लाल हो गया था जैसे आसमान मे खून उतर आया हो और जब मे आश्रम में पहुँचा तो वहाँ की हालत और भी खराब थी वहाँ आश्रम की सारी जगह पर केवल तबाही ही दिखाई दे रही थी

ये सब देखकर मे बहुत हैरान हो गया था जिसके बाद में आश्रम मे यहाँ वहाँ घूम कर हर तरफ देख रहा था कि तभी मेरी नज़र एक कोने में गयी जहाँ आश्रम का ही एक आदमी दर्द से कराह रहा था

जब मे उसके पास पहुँचा तब तक उसका काफी खून निकल चुका था इसीलिए मैने सबसे पहले उसके उपर अपने शक्तियों का इस्तेमाल कर उसके घाव और दर्द का उपचार किया


जिसके बाद वो मुझे मेरे जाने के बाद यहाँ जो कुछ भी हुआ वो सब बताने लगा

उसके बताये मुताबिक़ मेरे जाने से लेकर अगले 13 दिनों तक तो कुछ नही हुआ केवल वहाँ सब मुझे लेकर चिंता मे थे क्योंकि मे 7 दिनों का बोल कर गया था लेकिन 13 दिनों तक नही आया था

कुछ घंटे पहले

अभी सब लोग आराम से आश्रम मे बैठकर युद्ध की रणनिति बना रहे थे आज भद्रा के जाने के बाद से चौदहवा दिन था और जैसा भद्रा ने बताया था

उसके अनुसार आज का दिन ही वो दिन था जब गुरु शुक्राचार्य का यज्ञ पूर्ण तरफ से कामयाब हो जायेगा और सातों महासुर अपने आतंक को फैलाने के लिए पुनर्जन्म लेंगे

और उन्हे रोकने की शक्ति केवल एक ही मे है और वो है भद्रा लेकिन वहाँ पर जितने भी लोग मौजूद थे उन मेसे किसी को भी ये नही पता था की भद्रा इस वक़्त कहाँ है वो किसी को भी नही पता

वो कब लौटेगा ये भी किसी को नही पता था वो 7 दिन का बोलके गया था लेकिन आज चौदहवा दिन है परंतु अभी तक भद्रा तो दूर उसका कोई समाचार तक नही आया था

सब लोग इसी चिंता मे डूबे हुए थे की अब आगे क्या होगा और उन्हे क्या करना है जाने से पहले जो भी कार्य भद्रा ने उन्हे दिया दिया था वो सब कुछ पूर्ण कर दिया था


असुरों के जो भी संभावित प्रवेश द्वार थी उन सब जगहों पर प्राणघाती जाल बिछा दिये थे तो वही औषधि और अस्त्र शस्त्रों का भी बहुत अधिक प्रमाण मे जमा करके रख दिया था

तो वही शिबू ने सभी योद्धाओं को कुछ ऐसे युद्ध कलाएँ सिखा दी थी जिनके इस्तेमाल से वो सभी पहले से भी अधिक शक्ति शाली हो गए थे अब सब लोग केवल युद्ध के आरंभ होने का इंतज़ार कर रहे थे

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Nice update....
 
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dhparikh

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228
अध्याय तिहत्तर

अब मेरे पूरे शरीर से अग्नि निकलने लगी जिसे वो कुरुमा ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने अपनी पकड़ को ढीला कर दिया जिसके बाद मैंने एक ऊंची छलांग मारी और कुरुमा के ठीक सामने खड़ा हो गया

अब तक मे इतना तो समझ गया था की इसे मारना या ताकत के जौर पर काबू करना बहुत मुश्किल है और मेरे पास उतना समय भी नही है यही सोचकर मैने अपने आकार को थोड़ा कम किया

और एक छलांग लगा कर उस कुरुमा के पीठ पर बैठ गया और इससे पहले की वो कुछ समझ पाता उससे पहले ही मैने अपनी पूरी ऊर्जा की अपने सप्तचक्रों मे प्रवाहित की और ऐसे होते ही

मैने अपनी सप्तचक्रों की ऊर्जा को कुरुमा के शरीर में प्रवाहित कर दिया जिससे अब हम दोनों की ऊर्जा एक हो गयी थी

जिसके बाद मैने उस कुरुमा की सारी ऊर्जा और उसके जीवन ऊर्जा को अपने अंदर सोख लिया


(ये कुमार की शक्तियों मे से एक है जो उसके ब्रामहारक्षस के ऊर्जा मे सम्मलित है)

और जैसे ही मैने ऐसा किया वैसे ही वो दर्द से तड़पने लगा और जैसे ही उसका तड़पना बंद हुआ वो एक लाल ऊर्जा मे तब्दील होकर मेरे शरीर मे समा गया

जिसके बाद उस मैदान मे धरती के नीचे से एक बड़ा पत्थर निकला जिसके उपर तलवार का चित्र बना हुआ था और उसके पास कुछ लिखा हुआ था

*शब्बाश मानव आज तुमने कुरुमा को हराकर उसे अपना गुलाम बना लिया है अब वो तुम्हारे एक आदेश पर पूरे ग्रह को खतम कर देगा लेकिन याद रखना बड़ी ताकत के साथ आती है बड़ी जिम्मेदारिया अब तुम्हे मिले हुए सभी संदेशों को यहाँ तलवार के उपर रख दो जिसके बाद तुम्हे मिलेगा वो अजेय अस्त्र जिससे तुम्हे मिलेगा वो अजेय अस्त्र जिससे तुम उन महासुरों के अंदर के सप्तस्त्रों के अंश का विनाश कर पाओगे याद रखना तुम इस अजेय अस्त्र को केवल 7 बार इस्तेमाल कर पाओगे यानी हर महासुर के लिए केवल 1 ही मौका होगा*

ये पढ़ने के बाद मैने सारे संदेशों को उस तलवार के उपर रख दिया जिसके बाद उस पत्थर पर 7 अलग अलग तलवारे आ गयी जो कुछ देर मे ही एक दूसरे मे समा कर एक तलवार बन गई


और फिर वो तलवार मेरे शरीर में समा गयी और उस के समाते ही मे उसी जगह पर आ गया जहाँ से सब आरंभ हुआ था कालविजय आश्रम के पीछे नदी के पास जब मे वहाँ पहुंचा तो मे हैरान रह गया

क्योंकि वहाँ का पुरा आसमान लाल हो गया था जैसे आसमान मे खून उतर आया हो और जब मे आश्रम में पहुँचा तो वहाँ की हालत और भी खराब थी वहाँ आश्रम की सारी जगह पर केवल तबाही ही दिखाई दे रही थी

ये सब देखकर मे बहुत हैरान हो गया था जिसके बाद में आश्रम मे यहाँ वहाँ घूम कर हर तरफ देख रहा था कि तभी मेरी नज़र एक कोने में गयी जहाँ आश्रम का ही एक आदमी दर्द से कराह रहा था

जब मे उसके पास पहुँचा तब तक उसका काफी खून निकल चुका था इसीलिए मैने सबसे पहले उसके उपर अपने शक्तियों का इस्तेमाल कर उसके घाव और दर्द का उपचार किया


जिसके बाद वो मुझे मेरे जाने के बाद यहाँ जो कुछ भी हुआ वो सब बताने लगा

उसके बताये मुताबिक़ मेरे जाने से लेकर अगले 13 दिनों तक तो कुछ नही हुआ केवल वहाँ सब मुझे लेकर चिंता मे थे क्योंकि मे 7 दिनों का बोल कर गया था लेकिन 13 दिनों तक नही आया था

कुछ घंटे पहले

अभी सब लोग आराम से आश्रम मे बैठकर युद्ध की रणनिति बना रहे थे आज भद्रा के जाने के बाद से चौदहवा दिन था और जैसा भद्रा ने बताया था

उसके अनुसार आज का दिन ही वो दिन था जब गुरु शुक्राचार्य का यज्ञ पूर्ण तरफ से कामयाब हो जायेगा और सातों महासुर अपने आतंक को फैलाने के लिए पुनर्जन्म लेंगे

और उन्हे रोकने की शक्ति केवल एक ही मे है और वो है भद्रा लेकिन वहाँ पर जितने भी लोग मौजूद थे उन मेसे किसी को भी ये नही पता था की भद्रा इस वक़्त कहाँ है वो किसी को भी नही पता

वो कब लौटेगा ये भी किसी को नही पता था वो 7 दिन का बोलके गया था लेकिन आज चौदहवा दिन है परंतु अभी तक भद्रा तो दूर उसका कोई समाचार तक नही आया था

सब लोग इसी चिंता मे डूबे हुए थे की अब आगे क्या होगा और उन्हे क्या करना है जाने से पहले जो भी कार्य भद्रा ने उन्हे दिया दिया था वो सब कुछ पूर्ण कर दिया था


असुरों के जो भी संभावित प्रवेश द्वार थी उन सब जगहों पर प्राणघाती जाल बिछा दिये थे तो वही औषधि और अस्त्र शस्त्रों का भी बहुत अधिक प्रमाण मे जमा करके रख दिया था

तो वही शिबू ने सभी योद्धाओं को कुछ ऐसे युद्ध कलाएँ सिखा दी थी जिनके इस्तेमाल से वो सभी पहले से भी अधिक शक्ति शाली हो गए थे अब सब लोग केवल युद्ध के आरंभ होने का इंतज़ार कर रहे थे

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आज के लिए इतना ही

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Nice update....
 
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parkas

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303
अध्याय तिहत्तर

अब मेरे पूरे शरीर से अग्नि निकलने लगी जिसे वो कुरुमा ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने अपनी पकड़ को ढीला कर दिया जिसके बाद मैंने एक ऊंची छलांग मारी और कुरुमा के ठीक सामने खड़ा हो गया

अब तक मे इतना तो समझ गया था की इसे मारना या ताकत के जौर पर काबू करना बहुत मुश्किल है और मेरे पास उतना समय भी नही है यही सोचकर मैने अपने आकार को थोड़ा कम किया

और एक छलांग लगा कर उस कुरुमा के पीठ पर बैठ गया और इससे पहले की वो कुछ समझ पाता उससे पहले ही मैने अपनी पूरी ऊर्जा की अपने सप्तचक्रों मे प्रवाहित की और ऐसे होते ही

मैने अपनी सप्तचक्रों की ऊर्जा को कुरुमा के शरीर में प्रवाहित कर दिया जिससे अब हम दोनों की ऊर्जा एक हो गयी थी

जिसके बाद मैने उस कुरुमा की सारी ऊर्जा और उसके जीवन ऊर्जा को अपने अंदर सोख लिया


(ये कुमार की शक्तियों मे से एक है जो उसके ब्रामहारक्षस के ऊर्जा मे सम्मलित है)

और जैसे ही मैने ऐसा किया वैसे ही वो दर्द से तड़पने लगा और जैसे ही उसका तड़पना बंद हुआ वो एक लाल ऊर्जा मे तब्दील होकर मेरे शरीर मे समा गया

जिसके बाद उस मैदान मे धरती के नीचे से एक बड़ा पत्थर निकला जिसके उपर तलवार का चित्र बना हुआ था और उसके पास कुछ लिखा हुआ था

*शब्बाश मानव आज तुमने कुरुमा को हराकर उसे अपना गुलाम बना लिया है अब वो तुम्हारे एक आदेश पर पूरे ग्रह को खतम कर देगा लेकिन याद रखना बड़ी ताकत के साथ आती है बड़ी जिम्मेदारिया अब तुम्हे मिले हुए सभी संदेशों को यहाँ तलवार के उपर रख दो जिसके बाद तुम्हे मिलेगा वो अजेय अस्त्र जिससे तुम्हे मिलेगा वो अजेय अस्त्र जिससे तुम उन महासुरों के अंदर के सप्तस्त्रों के अंश का विनाश कर पाओगे याद रखना तुम इस अजेय अस्त्र को केवल 7 बार इस्तेमाल कर पाओगे यानी हर महासुर के लिए केवल 1 ही मौका होगा*

ये पढ़ने के बाद मैने सारे संदेशों को उस तलवार के उपर रख दिया जिसके बाद उस पत्थर पर 7 अलग अलग तलवारे आ गयी जो कुछ देर मे ही एक दूसरे मे समा कर एक तलवार बन गई


और फिर वो तलवार मेरे शरीर में समा गयी और उस के समाते ही मे उसी जगह पर आ गया जहाँ से सब आरंभ हुआ था कालविजय आश्रम के पीछे नदी के पास जब मे वहाँ पहुंचा तो मे हैरान रह गया

क्योंकि वहाँ का पुरा आसमान लाल हो गया था जैसे आसमान मे खून उतर आया हो और जब मे आश्रम में पहुँचा तो वहाँ की हालत और भी खराब थी वहाँ आश्रम की सारी जगह पर केवल तबाही ही दिखाई दे रही थी

ये सब देखकर मे बहुत हैरान हो गया था जिसके बाद में आश्रम मे यहाँ वहाँ घूम कर हर तरफ देख रहा था कि तभी मेरी नज़र एक कोने में गयी जहाँ आश्रम का ही एक आदमी दर्द से कराह रहा था

जब मे उसके पास पहुँचा तब तक उसका काफी खून निकल चुका था इसीलिए मैने सबसे पहले उसके उपर अपने शक्तियों का इस्तेमाल कर उसके घाव और दर्द का उपचार किया


जिसके बाद वो मुझे मेरे जाने के बाद यहाँ जो कुछ भी हुआ वो सब बताने लगा

उसके बताये मुताबिक़ मेरे जाने से लेकर अगले 13 दिनों तक तो कुछ नही हुआ केवल वहाँ सब मुझे लेकर चिंता मे थे क्योंकि मे 7 दिनों का बोल कर गया था लेकिन 13 दिनों तक नही आया था

कुछ घंटे पहले

अभी सब लोग आराम से आश्रम मे बैठकर युद्ध की रणनिति बना रहे थे आज भद्रा के जाने के बाद से चौदहवा दिन था और जैसा भद्रा ने बताया था

उसके अनुसार आज का दिन ही वो दिन था जब गुरु शुक्राचार्य का यज्ञ पूर्ण तरफ से कामयाब हो जायेगा और सातों महासुर अपने आतंक को फैलाने के लिए पुनर्जन्म लेंगे

और उन्हे रोकने की शक्ति केवल एक ही मे है और वो है भद्रा लेकिन वहाँ पर जितने भी लोग मौजूद थे उन मेसे किसी को भी ये नही पता था की भद्रा इस वक़्त कहाँ है वो किसी को भी नही पता

वो कब लौटेगा ये भी किसी को नही पता था वो 7 दिन का बोलके गया था लेकिन आज चौदहवा दिन है परंतु अभी तक भद्रा तो दूर उसका कोई समाचार तक नही आया था

सब लोग इसी चिंता मे डूबे हुए थे की अब आगे क्या होगा और उन्हे क्या करना है जाने से पहले जो भी कार्य भद्रा ने उन्हे दिया दिया था वो सब कुछ पूर्ण कर दिया था


असुरों के जो भी संभावित प्रवेश द्वार थी उन सब जगहों पर प्राणघाती जाल बिछा दिये थे तो वही औषधि और अस्त्र शस्त्रों का भी बहुत अधिक प्रमाण मे जमा करके रख दिया था

तो वही शिबू ने सभी योद्धाओं को कुछ ऐसे युद्ध कलाएँ सिखा दी थी जिनके इस्तेमाल से वो सभी पहले से भी अधिक शक्ति शाली हो गए थे अब सब लोग केवल युद्ध के आरंभ होने का इंतज़ार कर रहे थे

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Bahut hi badhiya update diya hai VAJRADHIKARI bhai....
Nice and awesome update....
 
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Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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Vajradhikari hai agley update ka besabri se intjaar rahega :declare:
 

sunoanuj

Well-Known Member
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अध्याय तिहत्तर

अब मेरे पूरे शरीर से अग्नि निकलने लगी जिसे वो कुरुमा ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने अपनी पकड़ को ढीला कर दिया जिसके बाद मैंने एक ऊंची छलांग मारी और कुरुमा के ठीक सामने खड़ा हो गया

अब तक मे इतना तो समझ गया था की इसे मारना या ताकत के जौर पर काबू करना बहुत मुश्किल है और मेरे पास उतना समय भी नही है यही सोचकर मैने अपने आकार को थोड़ा कम किया

और एक छलांग लगा कर उस कुरुमा के पीठ पर बैठ गया और इससे पहले की वो कुछ समझ पाता उससे पहले ही मैने अपनी पूरी ऊर्जा की अपने सप्तचक्रों मे प्रवाहित की और ऐसे होते ही

मैने अपनी सप्तचक्रों की ऊर्जा को कुरुमा के शरीर में प्रवाहित कर दिया जिससे अब हम दोनों की ऊर्जा एक हो गयी थी

जिसके बाद मैने उस कुरुमा की सारी ऊर्जा और उसके जीवन ऊर्जा को अपने अंदर सोख लिया

(ये कुमार की शक्तियों मे से एक है जो उसके ब्रामहारक्षस के ऊर्जा मे सम्मलित है)

और जैसे ही मैने ऐसा किया वैसे ही वो दर्द से तड़पने लगा और जैसे ही उसका तड़पना बंद हुआ वो एक लाल ऊर्जा मे तब्दील होकर मेरे शरीर मे समा गया

जिसके बाद उस मैदान मे धरती के नीचे से एक बड़ा पत्थर निकला जिसके उपर तलवार का चित्र बना हुआ था और उसके पास कुछ लिखा हुआ था

*शब्बाश मानव आज तुमने कुरुमा को हराकर उसे अपना गुलाम बना लिया है अब वो तुम्हारे एक आदेश पर पूरे ग्रह को खतम कर देगा लेकिन याद रखना बड़ी ताकत के साथ आती है बड़ी जिम्मेदारिया अब तुम्हे मिले हुए सभी संदेशों को यहाँ तलवार के उपर रख दो जिसके बाद तुम्हे मिलेगा वो अजेय अस्त्र जिससे तुम्हे मिलेगा वो अजेय अस्त्र जिससे तुम उन महासुरों के अंदर के सप्तस्त्रों के अंश का विनाश कर पाओगे याद रखना तुम इस अजेय अस्त्र को केवल 7 बार इस्तेमाल कर पाओगे यानी हर महासुर के लिए केवल 1 ही मौका होगा*

ये पढ़ने के बाद मैने सारे संदेशों को उस तलवार के उपर रख दिया जिसके बाद उस पत्थर पर 7 अलग अलग तलवारे आ गयी जो कुछ देर मे ही एक दूसरे मे समा कर एक तलवार बन गई

और फिर वो तलवार मेरे शरीर में समा गयी और उस के समाते ही मे उसी जगह पर आ गया जहाँ से सब आरंभ हुआ था कालविजय आश्रम के पीछे नदी के पास जब मे वहाँ पहुंचा तो मे हैरान रह गया

क्योंकि वहाँ का पुरा आसमान लाल हो गया था जैसे आसमान मे खून उतर आया हो और जब मे आश्रम में पहुँचा तो वहाँ की हालत और भी खराब थी वहाँ आश्रम की सारी जगह पर केवल तबाही ही दिखाई दे रही थी

ये सब देखकर मे बहुत हैरान हो गया था जिसके बाद में आश्रम मे यहाँ वहाँ घूम कर हर तरफ देख रहा था कि तभी मेरी नज़र एक कोने में गयी जहाँ आश्रम का ही एक आदमी दर्द से कराह रहा था

जब मे उसके पास पहुँचा तब तक उसका काफी खून निकल चुका था इसीलिए मैने सबसे पहले उसके उपर अपने शक्तियों का इस्तेमाल कर उसके घाव और दर्द का उपचार किया

जिसके बाद वो मुझे मेरे जाने के बाद यहाँ जो कुछ भी हुआ वो सब बताने लगा

उसके बताये मुताबिक़ मेरे जाने से लेकर अगले 13 दिनों तक तो कुछ नही हुआ केवल वहाँ सब मुझे लेकर चिंता मे थे क्योंकि मे 7 दिनों का बोल कर गया था लेकिन 13 दिनों तक नही आया था

कुछ घंटे पहले

अभी सब लोग आराम से आश्रम मे बैठकर युद्ध की रणनिति बना रहे थे आज भद्रा के जाने के बाद से चौदहवा दिन था और जैसा भद्रा ने बताया था

उसके अनुसार आज का दिन ही वो दिन था जब गुरु शुक्राचार्य का यज्ञ पूर्ण तरफ से कामयाब हो जायेगा और सातों महासुर अपने आतंक को फैलाने के लिए पुनर्जन्म लेंगे

और उन्हे रोकने की शक्ति केवल एक ही मे है और वो है भद्रा लेकिन वहाँ पर जितने भी लोग मौजूद थे उन मेसे किसी को भी ये नही पता था की भद्रा इस वक़्त कहाँ है वो किसी को भी नही पता

वो कब लौटेगा ये भी किसी को नही पता था वो 7 दिन का बोलके गया था लेकिन आज चौदहवा दिन है परंतु अभी तक भद्रा तो दूर उसका कोई समाचार तक नही आया था

सब लोग इसी चिंता मे डूबे हुए थे की अब आगे क्या होगा और उन्हे क्या करना है जाने से पहले जो भी कार्य भद्रा ने उन्हे दिया दिया था वो सब कुछ पूर्ण कर दिया था

असुरों के जो भी संभावित प्रवेश द्वार थी उन सब जगहों पर प्राणघाती जाल बिछा दिये थे तो वही औषधि और अस्त्र शस्त्रों का भी बहुत अधिक प्रमाण मे जमा करके रख दिया था

तो वही शिबू ने सभी योद्धाओं को कुछ ऐसे युद्ध कलाएँ सिखा दी थी जिनके इस्तेमाल से वो सभी पहले से भी अधिक शक्ति शाली हो गए थे अब सब लोग केवल युद्ध के आरंभ होने का इंतज़ार कर रहे थे

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आज के लिए इतना ही

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Bahut hi jabardast adbhut updates….
 
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Shanu

Deadman786
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Awesome update Bhai 😊 ☺️
 
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VAJRADHIKARI

Hello dosto
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अध्याय चौहत्तर

शांति :- हमने सब कार्य पूर्ण तो कर दिये है और किसी भी वक़्त असुरों के द्वारा आक्रमण हो सकता हैं लेकिन फिर भी अभी तक भद्रा लौट कर नही आया है

प्रिया :- कहीं उसे कुछ हो तो नही गया

दमयंती :- नही ऐसा नहीं हो सकता उसने अपने ब्रामहारक्षस के रूप पर काबू कर लिया है जब की अभी भी वो मानव यौनि मै हि हैं और यही सबूत काफी है उसके शक्तियों की सीमा जानने के लिए उसे मारने के लिए उसके शत्रुओं के पास केवल एक ही रास्ता है

प्रिया :- कौनसा

त्रिलोकेश्वर :- ब्रम्हास्त्र वही एक अस्त्र है जिससे किसी भी जीव को मार सकता हैं

महागुरू :- ये सारी बाते छोड़ो अब आगे होने वाले युद्ध का विचार करो हम सब को अब सतर्क रहना चाहिए

गुरु नंदी :- इसमें क्या परेशान होना हमने सभी संभावित मार्गों पर पहले ही कवच लगा दिये है जैसे ही वो हमला करेंगे हमे पता चल जायेगा

महागुरु :- भद्रा सही था तुम सब कभी भी असुर बुद्धि से सोच नही पाओगे

शांति :- असुर बुद्धि मतलब

शिबू :- जब भद्रा अपने अभियान पर गया था तो उसके कुछ ही समय बाद मेरे, महागुरु के और सम्राट के हम तीनों के मस्तिष्क में उसकी आवाज सुनाई देने लगी और तब उसने हमे उसके योजना के तीसरे चरण और सबसे महत्व पूर्ण चरण के बारे में बताया

जब शिबू ने ये कहाँ तो वहाँ पर सब जन अपने खुर्चियों से खड़े हो गए उन्हे इस की जरा भी उम्मीद नहीं थी कि भद्रा इस महायुद्ध से जुड़े हुए किसी भी योजना से उन्हे अंजान रखेगा

प्रिया :- इसके बारे में उसने हमे क्यों नही बताया

महागुरु :- क्योंकि इस योजना की जरूरत तभी पड़ेगी जब हम सभी के उपर जीवन या मरण का सवाल होगा और भद्रा नही चाहता था कि हमे उस योजना की जरूरत पड़े कभी भी

दमयंती :- क्या थी वो योजना

अभी कोई कुछ और बोलता की तभी आश्रम की पूरी जमीन हिलने लगी थी धरती मे कंपन इतनी तेज थी की किसी से ठीक से खड़ा भी नही हुआ जा रहा था

अभी सब उस अचानक आये हुए भूकंप से उलझ रहे थे की तभी अचानक वो कंपन एकाएक रुक गया इस कंपन को महसूस करने के बाद जहाँ पर सभी हैरान थे

तो वही महागुरु, शिबू और त्रिलोकेश्वर इन तीनों के चेहरों पर हैरानगी के साथ साथ डर के भाव भी दिख रहे थे और इससे पहले की वहाँ कुछ और होता की तभी बाहर से सबके चीखने चिल्लाने की आवाजे आने लगी

जो सुनकर सभी तुरंत बाहर आ गए और जब सब बाहर आये तो सब हैरान रह गए क्योंकि आसमान से आश्रम पर लगातार आग के गोले बरस रहे थे जिससे कुछ लोग जख्मी भी हो गए थे

जो देख कर गुरु अग्नि और गुरु जल दोनों ने एक साथ आग पर काबू पाने का कार्य आरंभ कर दिया और अभी उन्होंने आग पर काबू पा लिया था

की तभी उन्हे वहाँ असुरी ऊर्जा का अनुभव होने लगा और जब उन्होंने अपने चारों तरफ देखा तो उन्हे वहाँ हर तरफ असुर दिखाई देने लगे जिन्हे देखकर वहाँ सभी दंग रह गए

तो वही आश्रम के बाहर मायासुर और उसकी सेना मौजूद थी तो वही उसके साथ सातों महासुर भी मौजूद थे अपनी सेना के साथ

महागुरु :- भद्रा को इसी बात का डर था की हमारे जाल बिछाने से पहले ही असुर सेना के कुछ सिपाही धरती लोक पर न आ जाये और वो हमारे बिछाये जाल को तबाह न कर दे

शिबू :- महागुरु और सम्राट हमारे पास उस योजना का इस्तेमाल करने के अलावा और कोई रास्ता नही है जो भद्रा ने बनाई थी

महागुरु :- आप सही कह रहे हो शिबू अब हो जाए अंतिम युद्ध अब आर या पार की जंग होगी

त्रिलोकेश्वर :- अब अगर तिर को धनुष चढ़ा दिया है तो अब उसका संधान करने मे दैर कैसी

तीनो एक साथ :- युद्ध क्षेत्र प्रकटम

उनके इतना बोलते ही वहाँ पर हर तरह प्रकाश फैल गया और जब प्रकाश हटा तो वहाँ का हाल देखकर सभी दंग रह गए क्युंकि जहाँ कुछ पल पहले तक आसमान में से आग बरस रही थी

वही अब देखकर ऐसा लगता कि वहाँ पर आसमान मे ही आग लगी हुई हो तो वही अब उन्हे अपने चारों तरफ kuc मायावी द्वार बने हुए दिखाई दे रहे थे जिसके दूसरी तरफ उन्हे केवल खाली मैदान दिखाई दे रहा था

महागुरु :- कोई कुछ पूछे उससे पहले ही मे आप सब को बता दूँ की हम सब अपने जीवन के उन मुकाम पर खड़े हैं जहाँ पर इस वक्त हमे वो फैसला लेना है जिसका सीधा संबंध हमारे जीवन मरण पर होगा ये युद्ध क्षेत्र मायावी है एक बार अगर हमने यहाँ पर कदम रखा तो जब तक शत्रु पक्ष हार नही जाता या मैदान छोड़ कर भाग नही जाता तब तक हम मेसे कोई भी मैदान छोड़ नही पायेगा इसलिए इस युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश करने से पहले दो बारा सोच लो एक बार युद्ध आरंभ हो गया तो हम अपने मर्जी से कभी भी वापस नही आ पाएंगे

शिबू :- यही वक्त का इंतज़ार तो हर योद्धा करता है आज या तो हम विजयी होंगे या शहीद होंगे लेकिन युद्ध मे से पीछे हटकर कायर नही कहलाएंगे

सभी एक साथ :- बिल्कुल सही

त्रिलोकेश्वर :- अगर ऐसा है तो (जोर से चिल्लाकर) आक्रमण

त्रिलोकेश्वर के तरफ से इशारा मिलने के तुरंत बाद सभी लोग उन मायावी द्वारों से दौड़ते हुए युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश कर गए

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आज के लिए इतना ही

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