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बहुत ही खूबसूरत शरूवात हूवी है। बहुत ही अच्छे तरीके से विश्व को दर्शाया, और उसमे बने भिन भीन ग्रुप का इतिहास भी अच्छे से समझ दिया। देखते है आगे क्या क्या होता है।सबका स्वागत है ब्रह्माराक्षस के किरदारों के परिचय और कहानी मैं उल्लेखित विश्व के विश्व निर्माण के बारे में जानकारी के इस अध्याय मैं
तो सबसे पहले हम इस विश्व से मिल लेते है उसे जान लेते है
इस कहानी का विश्व हमारे असल विश्व से अधिक भिन्न नहीं है केवल कुछ बदलाव किए है
इस विश्वास बहुत जीवों का निवास है जिनमे 2 संघों का निर्माण किया है एक संघ है अच्छाई का तो दूसरा संघ है बुराई का ईन दोनों पक्षों मे हर पल युद्ध होता रहता था जिससे यहा की धरती रक्त रंजीत हो जाया करती थी दोनों ही पक्षों को इस वजह से बहुत ज्यादा हानि और नर संहार का सामना करना पड़ रहा था इसी के चलते ईन दोनों पक्षों के उच्च स्तरीय अधिकारियों ने यह फैसला किया कि उन मेसे कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे पक्ष के सीमा का उल्लंघन नहीं करेगी जिसके बाद हर तरफ सुख और शांति का वातावरण फैल गया
लेकिन ये ज्यादा समय ना चला जैसे जैसे समय बढ़ रहा था वैसे ही दोनो पक्षों के शक्ति शाली लोगों मे अहंकार का जन्म होने लगा और उसी के चलते जहा बुराई का पक्ष अपने समाज का विस्तार करने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा था तो वही अच्छाई का पक्ष अपने ही जलन के चलते अपने ही साथियो का विनाश करने के लिए आतुर था
और इसी जलन के वजह से इस कहानी की शुरूवात हुई कहानी पर जाने से पहले हम इस विश्व की रचना के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेते हैं
इस विश्व मे तीन पक्ष है पहला है अच्छाई इस पक्ष में वही लोग है जो कि अपने सभी दुष्कर्मों को सभी मोह माया को छोड़ कर खुद को संसार की भलाई और रक्षा के लिए समर्पित कर देते हैं
तो दूसरा पर है प्राणी पक्ष इस पक्ष में आम मानव या ऐसे जीव जो अभी भी सत्कर्म और दुष्कर्म के बीच फंसे हुए हैं जो कि ना पूर्णतः सत्य के मार्ग पर है और ना ही बुराई के मार्ग पर
वही तीसरा पक्ष पर है बुराई का जिसमें वो जीव है जो पाप और दुष्कर्म को ही अपने जीवन का सार समझ कर जीते है इनका उद्देश्य एक ही है कि इनके अलावा इस संसार मे कोई भी शक्ति ना हो
जब संसार मे अच्छाई और बुराई के पक्ष में महा संग्राम हो रहा था था तभी आसमान से एक बहुत बड़ा शक्ति पुंज धरती पर आके गिरा जिसे पाने के लिए बुराई के पक्ष ने हर सम्भव प्रयास किया परंतु उस पुंज ने खुद को अच्छाई के पक्ष के अधीन कर दिया जिसके बाद महा संग्राम मे बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाये जाने लगा जिसके बाद वो पुंज सात अस्त्रों मे बदल गया जिनमें महा चमत्कारिक शक्तियों का वास था जिन्हें सप्त शक्ति कहा जाता है और यही कारण है कि बुराई पक्ष इसे पाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा था
लेकिन उन अस्त्रों ने अच्छाई के पक्ष में से सात योद्धाओं को अपने धारक के रूप मे चुन लिया था और उन सात योद्धाओं के संघ को सप्तऋषि के नाम से जाना जाता है
तो वही इस किस्से के बाद अच्छाई के पक्ष में कुछ साधु अपने ही साथियों से ईर्ष्या करने लगे जिसका फायदा बुराई का पक्ष लेने लगा इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन सप्तऋषि ने सभी सप्त अस्त्रों को छुपा दिया जब तक उनकी जरूरत ना ना हो और उसी के साथ ही अच्छाई के पक्ष को तीन आश्रमों मे विभाजित कर दिया जहा सबको उनके कर्मों के अनुसार स्थान दिया जाता
सबसे पहले आता है कालदृष्टि आश्रम यह सबसे निचले स्तर पर कार्यरत हैं इनका कार्य इतना ही है कि वह इस इस संसार में ग्यान का प्रसार करे
फिर आता है काल दिशा आश्रम जो कि मध्यम स्तर पर कार्यरत हैं इनका कार्य ये है कि यह अपने संपूर्ण जीवन काल में अपनी संस्कृति अपनी परंपरा और अच्छाई की सुरक्षा करे किसी भी कीमत पर
और सबसे आखिर और उच्च स्तरीय आश्रम है काल विजय आश्रम ये आश्रम इस संसार मे अच्छाई के रक्षण के साथ ही बुराई का विनाश हो ये सुनिश्चित करता है
हर आश्रम की देख रेख और सुरक्षा की जिम्मेदारी सप्तऋषि की थी इसीलिए उन्होंने हर आश्रम में 2-2 ऋषि के संघ मे रहने का निश्चय किया और जो सातवा ऋषि बचा जो कि बाकी 6 ऋषि मे सबसे ज्यादा शक्ति शाली के साथ ही ज्ञानी भी थे उन्हें मायावी महागुरु का सम्मान देके उन्हें तीनों आश्रम और सातों अस्त्रों के सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई
इस कहानी में हर दिन अपडेट देना थोड़ा मुश्किल होगा इसीलिए 1 दिन के गैप से अपडेट आएँगे
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आज के लिए इतना ही
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Bahut hi badhiya update diya hai VAJRADHIKARI bhai.....अध्याय पहला
जैसे कि सबने पढ़ा कि कैसे अच्छाई को मिली नई शक्तियों के कारण अच्छाई के साथ देने वाले लोग अपने ही साथियों से ईर्ष्या करने लगे उन्हें अपने ही साथियों से जलन होने लगी जिसका फायदा बुराई का पक्ष लिया करता है
और इसी जलन का शिकार बना एक साधु और साध्वी का जोड़ा दोनों भी विवाहित थे और पूरे संसार के मायावी शक्तियों से पूर्णतः शिक्षित और जानकार थे और वो अपनी सभी शक्तियों का प्रयोग केवल संसार के भलाई के लिए करते थे जिससे वो सब जगह पर प्रसिद्ध होने लगे लेकिन उनके आसपास के लोगों को यह अछा नहीं लगता था इसी के चलते उन्होंने एक षड्यंत्र का निर्माण किया और उन साधु साध्वी का रूप लेकर एक महान विद्वान साधु के यज्ञ स्थान पर संभोग क्रिया करने लगे
जिससे वो यज्ञ निष्फल हो गया और वो साधु क्रोधित हो गए लेकिन वो दोनों बहरूपिये वहां से भाग निकले लेकिन उस साधु ने उनका नकली चेहरा देख लिया था जिससे वह सीधे उन साधु साध्वी के घर जा पहुचे जहा वो दोनों अपने अजन्मे पुत्र के लिए प्राथना कर रहे थे
और जब उन्होंने उस साधु को अपने द्वार पर देखा तो वो आती प्रसन्न हो उठे परंतु उनका क्रोधित चेहरा देख कर डर गए और उनसे इस क्रोध का कारण पूछने लगे लेकिन उस साधु ने बिना कुछ कहे और बिना कुछ सुने उन्हें अक्षम्य श्राप दे दिया जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो जाती लेकिन उनके किए पुण्य कर्म के कारण उनकी मृत्यु नहीं हुई परंतु वो असुर रूप मे परावर्तित हो गए लेकिन उनके कर्मों और ज्ञान के वजह से वो ब्रम्हाराक्षस बन गए
और जब उन दोनों को इस षड्यंत्र का पता चला तो उन्होंने उन सभी साधुओं का अंत कर दिया और उन्हें भी अपने तरह ही ब्रह्माराक्षस का रूप लेने के लिए मजबूर कर दिया और तब से जो भी वेद पाठ करने वाला ज्ञानी विद्वान साधु या व्यक्ति कोई भी अक्षम्य अपराध करता वो ब्रह्माराक्षस का रूप लेने के लिए मजबूर हो जाते इसीलिए उनका स्थान पाताल लोक मे हो गया और उस दिन से वो दोनों साधु साध्वी पाताल लोक मे रहकर भी अच्छाई का साथ देते परंतु इस वजह से उनका पुत्र जिसने इस संसार मे कदम भी नहीं रखा था वो मृत्यु को प्राप्त हो गया और इस का पूर्ण दोष उन्हीं ज्ञानी साधु पर आया जिसने श्राप दिया था इसी कारण वह भी ब्रह्माराक्षस के रूप में परावर्तित हो गया
तो वही इस तरह पूरे संसार में इस बात का खुलासा हो गया और सभी साधु महात्मा अपने अपने दुष्कर्म की माफ़ी पाने के लिए उसका प्रायश्चित करने के लिए अलग अलग तरीके करने लगे लेकिन विधि के विधान और कर्मों के फल से कोई बच ना सका और इस तरह ब्रह्माराक्षस प्रजाति का निर्माण हुआ
तो वही इस सब के ज्ञात होते ही सप्तऋषियों ने एक आपातकालीन बैठक बुलायी और फिर सबने मिलकर फैसला किया कि हर 100 सालों में अस्त्रों की जिम्मेदारी वह अपने उत्तराधिकारी को देकर अपने कर्मों का दंड पाने के लिए मुक्त हो जाएंगे और तभी से यह नियम को लागू किया गया
तो वही उन साधु साध्वी जो अब ब्रह्माराक्षस प्रजाति के सम्राट और साम्राज्ञी के रूप मे थे वो भी उन सप्त अस्त्रों की सुरक्षा के लिए अपना योगदान देने लगे और इसी वजह से उन सप्तऋषियों ने मिलके अपनी सप्त शक्ति से उन दोनों को इंसानी रूप देने का फैसला किया लेकिन इसके लिए उन्हें उचित विद्या और मंत्र नहीं मिल पा रहा था इसी वजह से वो हर पल उन अस्त्रों की शक्ति को और अधिक जानने का प्रयास करते रहे और जब उन्हें उस मंत्र का पता चला तो उन्होंने तुरंत उसका इस्तेमाल उन दोनों पर किया लेकिन वो निष्फल हो गया जिससे सभी लोग निराश होकर अपने अपने नियमित कार्यों में लाग गए
और समय का पहिया अपनी गति से चलने लगा कई शतक गुजर गए सप्तर्षियों की कई पीढ़ियों को शस्त्र धारक बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था परंतु जैसे जैसे संसार में पाप का साम्राज्य स्थापित होने लगा तो अस्त्रों ने भी अपने धारक के चुनाव को और अधिक कठिन और लगभग नामुमकिन बना दिया जिस वजह से कोई भी व्यक्ति अब धारक नहीं बन पाई और उनको उन अस्त्रों की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई और उन अस्त्रों की शक्तियां ना होने के कारण सब चिंतित होने लगे क्यूंकि जब पाप का साम्राज्य स्थापित हुआ तब से लेकर अब तक बुराई के पक्ष ने असीमित मायावी शक्तियों को ग्रहण कर लिया था और वह महा शक्ति शाली हो गए थे इसी कारण से अब अस्त्रों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई थी तब उन्हीं दो साधु साध्वी ने जिनका नाम त्रिलोकेश्वर और दमयन्ती था
उन्होंने अपने ग्यान और ब्रह्माराक्षस की शक्तियों के मदद से नए सप्तर्षियों को वो अलौकिक ग्यान और विद्या प्रदान की जिसका पता केवल देवता और असुरों को था और जब वह ग्यान सप्तर्षियों को प्राप्त हुआ तो बहुत से असुर और बुराई के पक्ष के अन्य साथी क्रोधित हो गए और उन्होंने उन दोनों के खिलाफ षडयंत्र रचना शुरू कर दिया जिसमें उनका साथ खुद ब्रह्माराक्षसोँ ने दिया लेकिन सब जानते थे कि उनपर सीधा हमला करने से वो सभी मारे जाते इसीलिए उन्होंने छल का सहारा लेना सही समझा
तो वही जब कलयुग का आरंभ हुआ तो असुरों को यह सही समय लगा और उन्होंने अपने सालों पुराना बदला लेने के लिए योजना बनाना शुरू कर दिया और फिर वो समय आया जब पूरे संसार में कलयुग का प्रभाव फैल गया और अच्छाई का पक्ष कमजोर पड़ने लगा लेकिन तभी उस वक़्त के सप्तर्षियों ने प्राचीन ग्रंथों में से कई सारी प्राचीन विद्या सीख ली जिनको प्राचीन काल में अस्त्रों की शक्तियों के आगे तुच्छ समझकर भुला दिया गया था उन्हीं शक्तियों मे उन सप्तर्षियों को कुछ ऐसे मंत्र मिले जिनसे उन अस्त्रों की शक्तियों को जागृत करके इस्तेमाल किया जा सकता था परंतु उन अस्त्रों के धारक की शक्तियों के आगे ये मंत्र तुच्छ समझे जाने जाते थे इसीलिए अब तक इनके बारे में जानकारी किसी को भी नहीं थी परंतु समय की मांग ने सबको ईन शक्तियों से मिला दिया था
१/०१/२००२
इस तारिक को एक बहुत ही विचित्र घटना घटीं इतिहास में पहली बार एक ब्रह्माराक्षस जन्म लेने वाला था यह बात हर जगह पर आग की तरह फैल गई क्यूंकि मृत्यु के बाद बहुत से ज्ञानी विद्वान लोग ब्रह्माराक्षस बने हुए थे लेकिन जिसका जन्म ही ब्रह्माराक्षस की रूप मे हुआ हो ऐसा यह पहला बालक था और उसके माता पिता कोई और नहीं बल्कि ब्रह्माराक्षस प्रजाति के सम्राट और साम्राज्ञी थे और जब एक ब्रह्माराक्षस ने सम्राज्ञी की हालत देखी तो उसने बताया कि जो बालक श्राप के प्रभाव से मारा गया था वो पुनर्जन्म लेने वाला है लेकिन इस बार वो बालक जन्म से ही ब्रह्माराक्षस होगा और वो सभी से ज्यादा शक्तिशाली होगा ये सब बताने वाला ब्रह्माराक्षस और कोई नहीं वही साधु था जिसने त्रिलोकेश्वर और दमयन्ती को श्राप दिया था
ऐसे ही १ वर्ष बीत गया और वो समय आ गया जब साम्राज्ञी दमयन्ती अपने बालक को जन्म देने वाली थी लेकिन असुरों के छल से इस वक्त तक सम्राट और साम्राज्ञी दोनों बेहद कमजोर हो गए थे और जब दमयन्ती ने बच्चे को जन्म दिया तो वहां मौजूद सभी चकित रह गए क्यूंकि बालक इंसानी रूप मे था जिससे सब लोग निराश हो गए शिवाय सम्राट और साम्राज्ञी के क्यूंकि उन्हें एहसास हो गया था कि ये इंसानी रूप सप्तअस्त्रों की शक्ति का नतीज़ा है जिस शक्ति का इस्तेमाल उन दोनों को इंसानी रूप देने के लिए हुआ था परंतु सबको लगा कि वो निष्फल हो गई लेकिन असल मे वो शक्ति उन दोनों के शरीर में समा गई थी और अब वो पूर्ण शक्ति उस बालक के अंदर थी
अभी वो दोनों इस बात की खुशिया मना पाते उससे पहले ही उन पर आक्रमण हो गया जो कि उनके अपने साथियों ने किया था साम्राज्ञी तो बालक को जन्म देने वजह से और असुरों द्वारा किए गए छल से अत्याधिक कमजोर थी तो वही कमजोर तो सम्राट भी थे लेकिन उन्होंने अपनी बची हुई सभी शक्ति को एकत्रित कर के अपने पुत्र के लिए एक विशेष प्रकार के कवच का निर्माण किया जिससे उस बच्चे के शक्तियों का एहसास होना बंद हो गया और उन्होंने उस बालक को अपने जादू से कहीं दूर भेज दिया लेकिन इस सब के कारण वो बेहद कमजोर हो गए और इसी का फायदा उठाकर असुरों ने उन्हें कैद कर दिया और उनका हुकुम माने ऐसे ब्रह्माराक्षस को सम्राट घोषित किया गया
उन्होंने त्रिलोकेश्वर और दमयन्ती को मारने का भी प्रयास किया परंतु ब्रह्माराक्षस को मारने के लिए ब्रम्हास्त्र की जरूरत होती है जो उनके पास नहीं था और ना वो इतने सक्षम थे कि ब्रम्हास्त्र जैसी शक्ति का इस्तेमाल कर सके
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आज के लिए इतना ही
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Nice and beautiful introduction of the story.....किरदारों का परिचय
त्रिलोकेश्वर = ब्रह्माराक्षस प्रजाति का सम्राट फिलहाल असुरों की कैद मे है
दमयन्ती = ब्रह्माराक्षस प्रजाति की सम्राज्ञी यह भी असुरों की कैद में है
विक्रांत = ब्रह्माराक्षस प्रजाति का गुरु इसने ही श्राप दे कर त्रिलोकेश्वर और दमयन्ती को ब्रह्माराक्षस बनने पर मजबूर किया था
काली = ब्रह्माराक्षस प्रजाति का नया सम्राट असुरों का गुलाम
मायासुर = असुरों का सेनापति
मोहिनी = असुरों की योद्धा
कामिनी = असुरों की योद्धा
विराज = असुरों का सम्राट
असुरों के बाकी के साथी = प्रेत, भूत, पिशाच, नरभेड़िये, तांत्रिक
शैलेश = अस्त्र धारक / रक्षक अस्त्र क्रमांक 7 नंदी अस्त्र आम लोगों के लिए एक सफल व्यापारी (Business man) बेहद आमिर और शक्तिशाली व्यक्ती परंतु वही सर्वोत्तम साधु जिन्होंने नंदी अस्त्र को जागृत कर दिया है और उसकी शक्तियों का प्रयोग करने मे सक्षम भले ही अस्त्र को वह पूरी तरह से धारण करने मे असक्षम रहे लेकिन फिर भी अकेले हज़ारों की सेना को मार गिराये
गौरव = अस्त्र धारक / रक्षक अस्त्र क्रमांक 6 वानर अस्त्र आम लोगों के लिए एक सफल पहलवान (gymnast) बेहद स्फूर्त और तेज व्यक्ती परंतु वही सर्वोत्तम प्रबंधक अपने ग्यान के मदद से हर परिस्थिति में से निकलने के लिए योजना बनाना इनके लिए सबसे आसान काम है इन्होने भी वानर अस्त्र को जागृत किया है और उसकी शक्तियों का प्रयोग करने मे सक्षम भले ही अस्त्र को वह पूरी तरह से धारण करने मे असक्षम रहे लेकिन फिर भी इनकी गति इतनी की प्रकाश के गति से एक जगह से दूसरी जगह जाने मे सक्षम
यह दोनों भी कालदृष्टि आश्रम के स्वामी हैं ये दोनों वहां पर वास नहीं करते हैं लेकिन फिर भी अपने कर्तव्य चुकाने के लिए कभी भी असफल नहीं हुए इसी वजह से इनकी दोहरी जिंदगी से किसी अन्य साधु को कोई आपत्ति नहीं है
साहिल = अस्त्र धारक / रक्षक अस्त्र क्रमांक 5 अग्नि अस्त्र ये सज्जन आम लोगों के इलाक़ों से दूर चीन देश के सीमा पर बने जंगलों में रहते हैं वहां की सरकार भी इनका और इनके बुद्धी का गुणगान करने के लिए मजबूर है यह एक उत्तम योद्धा है और चीन के जंगली आदिवासियों को अपने शिष्य रूप मे स्वीकार करके अच्छाई पक्ष के लिए सैन्य का निर्माण कर रहे हैं इन्होंने भी अग्नि अस्त्र को जागृत किया है और उसकी शक्तियों का प्रयोग करने मे सक्षम है भले ही अस्त्र को वह पूरी तरह से धारण करने मे असक्षम रहे लेकिन फिर भी इनकी शक्ति जब जगती है तो यह अकेले ही बड़ी से बड़ी सेना को जलाकर राख में बदल दे
दिलावर = अस्त्र धारक / रक्षक अस्त्र क्रमांक 4 जल अस्त्र आम लोगों के लिए एक सफल तैराक अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर विजेता बेहद स्फूर्त और तेज व्यक्ती परंतु वही सर्वोत्तम प्रबंधक अपने ग्यान के मदद से हर परिस्थिति में से निकलने के लिए योजना बनाना इनके लिए सबसे आसान काम है इन्होने भी अपने जल अस्त्र को जागृत किया है लेकिन अस्त्र को वह पूरी तरह से धारण करने मे असक्षम रहे लेकिन फिर भी इनकी जल शक्ति इतनी प्रबल है कि ये अकेले बड़े से बड़े समुद्र को सूखा दे या फिर किसी सूखे हुए समुद्र को पुनर्जीवित कर दे साथ ही यह किसी भी समुद्री जीव की भाषा समझ सकते हैं और बोल सकते हैं
यह दोनों भी काल दिशा आश्रम के स्वामी हैं ये दोनों भी वहां वास नहीं करते लेकिन जब भी इनकी जरूरत होती है ये तुरंत आश्रम पहुच जाते हैं
शांति = अस्त्र धारक / रक्षक अस्त्र क्रमांक 3 धरती अस्त्र आम लोगों के लिए एक सफल वैद्य (डॉक्टर) बेहद समझदार और शांत स्वभाव की व्यक्ती परंतु वही इन्हें चारो वेदों का ग्यान है ख़ासकर आयुर्वेद का ये अपने ग्यान के मदद से हर मनुष्य का इलाज करती है और उन की हैसियत के हिसाब से ही उनसे धन लेती है इन्होने भी अपने धरती अस्त्र को जागृत किया है परंतु यह भी बाकी सब की तरह अस्त्र को पूरी तरह से धारण करने मे असक्षम रहे लेकिन फिर भी इनका शरीर चट्टान जैसे मजबूत है और उससे भी मजबूत है इनका विश्वास जो हर मुश्किल से मुश्किल काम को करने की ताकत इन्हें देता है और साथ ही यह किसी भी धरती पर रहने वाले हर प्राणी और मनुष्य की भाषा बोल और समझ सकते हैं
दिग्विजय = अस्त्र धारक / रक्षक अस्त्र क्रमांक 2 सिँह अस्त्र आम लोगों के लिए RAW एजेंट बेहद स्फूर्त और दिलेर व्यक्ती तो वही सर्वोत्तम योद्धा चाहे सामने कोई भी हो ये किसी से भी नहीं डरते जिस वजह से जो काम बाकी लोग करने मे कतराते है वो काम ये मुस्कराते हुए करते हैं इन्होने भी अपने सिंह अस्त्र को जाग्रत किया है परंतु बाकी सब के जैसे ही पूरी तरह से धारण करने मे असक्षम रहे लेकिन फिर भी इनका बल इतना ज्यादा है कि ये बड़ी से बड़ी chattan को अपने एक घुसे मे चकनाचूर कर दे
यह दोनों भी काल विजय आश्रम के स्वामी हैं यह दोनों भी बाकियों की तरह अपनी दोहरी जिंदगी जीते हैं
सबसे आखिरी और शक्तिमान अस्त्र हैं काल अस्त्र इसके धारक / रक्षक है गुरु राघवेन्द्र इनको इनके ग्यान और अनुभव के आधार पर मायावी महागुरु का स्थान प्राप्त हुआ है बाकी 6 धारक आश्रम की व्यवस्था और जिम्मेदारी इन्हीं के उपर छोडकर शहर में अपनी अलग जिंदगी जीते हैं इन्होंने अपनी पूरे जीवन-भर केवल आश्रम में रहकर वहां की स्थिति और व्यवस्था सम्भाले हुए हैं ये हमेशा इसी प्रयास मे रहते हैं कि कभी भी किसी भी अच्छाई पक्ष के योद्धा पर संकट ना आए
इस कहानी मे एक किरदार और है और वो है भद्रा गुरु राघवेंद्र का शिष्य जिसे वो अपने पुत्र की तरह मानते हैं उनके पास जो भी ग्यान और विद्या है सब उन्होंने भद्रा को भी दी है भद्रा अब तक तो आश्रम मे ही रहता था परंतु उसके 21 वे जन्मदिन के बाद से गुरुदेव ने उसे शहर भेज दिया जहा उसे आधुनिक युग के ग्यान और यंत्र के विज्ञान का निरीक्षण करके समझना था इसीलिए वो पिछले 1 साल से शहर मे रह रहा है इसके और भी राज है जो समय के साथ बाहर आयेंगे और यही इस कहानी का नायक भी है
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आज के लिए इतना ही
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भाई क्या आज अगला अपडेट आएगा या नहीं आएगा।कल मिलेगा