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intezaar rahega VAJRADHIKARI bhai....कल मिलेगा
मिलेगा ना मेंने कहा मतलब हो गयाभाई क्या आज अगला अपडेट आएगा या नहीं आएगा।
Nice updateअध्याय दूसरा
१/१/२००२
आज अच्छाई के पक्ष के लिए बड़ा ही खास दिन था आज के ही दिन उनके आश्रमों की स्थापना हुई थी जिस वजह से आज सातों अस्त्र धारक एकसाथ एक जगह पर मौजूद थे काल विजय आश्रम के मध्य में इस समारोह की सारी व्यवस्था की गयी थी और जब सभी अस्त्र धारक एक साथ एक जगह पर आए तो आकाश आतिशबाजी होने लगी और फिर इस समारोह का आरम्भ हो गया जिसमें हर कोई अपनी अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए उत्साहित थे और अभी समारोह के आरंभ के पूर्व सभी लोग काल विजय आश्रम. के पास मे बने एक नदी पर जाकर अपने पूर्वजों को नमन करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करने वाले थे यही इस समारोह का पहला पड़ाव था
अभी सब उस नदी के पास पहुंचे ही थे कि तभी उन्हें वहां किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई देने लगी जिसे सुन कर वह सभी बहुत ज्यादा चकित हो गए थे क्यूंकि आश्रम का ये इलाक़ा बेहद मजबूत सुरक्षा कवच से घिरा हुआ था जिसको भेदन करना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं था
जब सभी उस आवाज की दिशा में पहुचे तो उन्हें वहां एक बालक दिखाई दिया जो कि जमीन पर गिरा हुआ था और वो सूरज के उष्म तापमान के कारण के कारण रो रहा था उसके शरीर को देख कर ही लग रहा था कि वह अभी कुछ घंटों पहले ही जन्मा है
उस बालक को देखते ही गुरु राघवेंद्र ने अपने दो शिष्यों को उस बालक को ले आने का आदेश दिया लेकिन इससे पहले कि वो दो सेवक उस बालक तक पहुचते उससे पहले ही उस जगह पर एक नर-भक्षी वाघ आ गया जिसे देख शांति तुरंत ही आगे बढ़ी और उन दोनों सेवकों के आगे खाड़ी हो गई और फिर अपनी आखें बंद कर के उस शेर के साथ संपर्क बनाने लगी
शांति :- तुम कोण हो और आश्रम के इस हिस्से में कैसे आए
शांति इस वक़्त वाघ की भाषा बोल रही थी जो वहां मौजूद कोई भी समझ नहीं पा रहा था शिवाय उस वाघ के
वाघ :- मे टहल रहा था तब मुझे इस दिशा से किसी बच्चे के रोने की आवाज आने लगी इसीलिए मे इस दिशा में आया
शांति :- बालक के बारे मे सोचने के लिए धन्यवाद वाघ जी परंतु अब यहा से हम सम्भाल लेंगे
वाघ :- ठीक है आपका शक्ति स्त्रोत मे महसूस कर पा रहा हूं इसीलिए मे आप पर भरोसा कर रहा हूं
इतना बोलकर वो वाघ वहां से चला गया जिसके बाद शांति ने उस बालक को गोद में उठाया और जब उसने बालक के चेहरे पर नजर डाली तो जैसे शांति पत्थर की मूर्त बन गई वो सिर्फ एक टक उस बालक के और देखने लगी जैसे कि उसे बाकी सबसे कोई लेना देना नहीं था उसकी नीली आखें मासूम सा चेहरा शांति को किसी और ही दुनिया में ले जा रहा था तो वही जैसे ही शांति उस बालक को उठाया बालक का रोना बंद हो गया
जब सब ने शांति को ऐसे मूर्ति बना देखा तो सब शांति को आवाज देने लगे लेकिन शांति तो किसी और ही दुनिया मे गुण थी ये देख कर दिग्विजय शांति के पास पहुंचा और हल्के से उसके कंधे को पकड़कर हिलाने लगा जिससे शांति होश में आ गई और फिर वो उस बच्चे को लेके राघवेन्द्र के पास पहुंच गई
शांति :- वो वाघ इस बच्चे के रोने की आवाज सुनकर ही यहां आया था
राघवेन्द्र :- ठीक है परंतु तुम्हें क्या हुआ था कितने आवाज दिए तुम्हें
शांति :- माफ़ करना गुरुजी मे इस बालक के सुंदरता मे खो गई थी
राघवेन्द्र :- कोई बात नहीं
इतना बोलकर राघवेन्द्र ने बालक को गोद में लिया और उसके माथे पर हाथ रख कर उसके बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयास करने लगे लेकिन जैसे ही वो उस बालक के मस्तिष्क तक पहुंच सकते उससे पहले ही उन्हें एक झटका लगा जिससे उनका हाथ उस बालक के माथे से हट गया ये देख कर राघवेन्द्र चकित हो गए थे उन्हें ये तो पता चल गया था कि वे किसी आम इंसान का पुत्र नहीं है लेकिन ये किसका पुत्र है और आश्रम के इस हिस्से में कैसे आया ये अभी तक पहेली थी किसे सुलझाने के लिए राघवेन्द्र ने फिर से एक बार उस बालक के सर पर हाथ रखकर उसके अस्तित्व तक पहुंचने का प्रयास किया जिसके लिए इस बार उन्होंने अपने अस्त्र की शक्ति को भी जागृत किया था लेकिन फिर भी उनके हाथ निराशा ही आयी परंतु इस बार उन्होंने कुछ अलग महसूस किया उन्हें लगा जैसे अस्त्र की शक्ति उस बालक के तरफ आकर्षित हो रही है और इस बात का एहसास होते ही उन्होंने अपने अस्त्र की शक्तियों को सुप्त कर दिया
गौरव :- कुछ पता चला गुरुदेव आपको इस बालक के बारे में
राघवेन्द्र :- हाँ इस बालक के माता पिता को कुछ लोगों ने मार डाला और फिर इस बच्चे को मरने के लिए नदी मे छोड़ दिया जिस वजह से ये नदी के बहाव के साथ आश्रम की और आ गया (झूठी कहानी)
जब राघवेन्द्र ने ये कहानी सुनायी तो सब बालक को सहानुभूति के साथ देखने लगे तो वही राघवेन्द्र बच्चे के बारे में सबको बताना ठीक नहीं समझ रहे थे इसीलिए उन्होंने सबसे कह दिया कि " यह बालक आश्रम में ही रहेगा और वो खुद इस बालक को शिक्षा देंगे" राघवेन्द्र के इस फैसले पर कोई कुछ नहीं बोला क्यूंकि सब जानते थे कि राघवेन्द्र जो भी करते हैं वो सबके और आश्रम के हित में ही करते हैं
इसके बाद सबने कार्यक्रम को फिर से आरंभ किया और पूरे कार्यक्रम के दौरान शांति उस बालक को अपने साथ लेकर ही घूम रही थी जैसे कि उसे किसी और से कोई लेना-देना नहीं हो तो वही बाकी अस्त्र धारक उसकी ऐसी हालत देख कर मंद मंद मुस्करा रहे थे ऐसे ही आज का दिन गुजर गया जिसके बाद कुछ दिन शांति ही उस बच्चे का ध्यान रख रही लेकिन अब उसे शहर भी तो जाना था वहां पर उसका खुद का हॉस्पिटल था जिसकी जिम्मेदारी उस पर ही थी
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आज के लिए इतना ही
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Bahut hi shaandar update diya hai VAJRADHIKARI bhai......अध्याय दूसरा
१/१/२००२
आज अच्छाई के पक्ष के लिए बड़ा ही खास दिन था आज के ही दिन उनके आश्रमों की स्थापना हुई थी जिस वजह से आज सातों अस्त्र धारक एकसाथ एक जगह पर मौजूद थे काल विजय आश्रम के मध्य में इस समारोह की सारी व्यवस्था की गयी थी और जब सभी अस्त्र धारक एक साथ एक जगह पर आए तो आकाश आतिशबाजी होने लगी और फिर इस समारोह का आरम्भ हो गया जिसमें हर कोई अपनी अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए उत्साहित थे और अभी समारोह के आरंभ के पूर्व सभी लोग काल विजय आश्रम. के पास मे बने एक नदी पर जाकर अपने पूर्वजों को नमन करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करने वाले थे यही इस समारोह का पहला पड़ाव था
अभी सब उस नदी के पास पहुंचे ही थे कि तभी उन्हें वहां किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई देने लगी जिसे सुन कर वह सभी बहुत ज्यादा चकित हो गए थे क्यूंकि आश्रम का ये इलाक़ा बेहद मजबूत सुरक्षा कवच से घिरा हुआ था जिसको भेदन करना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं था
जब सभी उस आवाज की दिशा में पहुचे तो उन्हें वहां एक बालक दिखाई दिया जो कि जमीन पर गिरा हुआ था और वो सूरज के उष्म तापमान के कारण के कारण रो रहा था उसके शरीर को देख कर ही लग रहा था कि वह अभी कुछ घंटों पहले ही जन्मा है
उस बालक को देखते ही गुरु राघवेंद्र ने अपने दो शिष्यों को उस बालक को ले आने का आदेश दिया लेकिन इससे पहले कि वो दो सेवक उस बालक तक पहुचते उससे पहले ही उस जगह पर एक नर-भक्षी वाघ आ गया जिसे देख शांति तुरंत ही आगे बढ़ी और उन दोनों सेवकों के आगे खाड़ी हो गई और फिर अपनी आखें बंद कर के उस शेर के साथ संपर्क बनाने लगी
शांति :- तुम कोण हो और आश्रम के इस हिस्से में कैसे आए
शांति इस वक़्त वाघ की भाषा बोल रही थी जो वहां मौजूद कोई भी समझ नहीं पा रहा था शिवाय उस वाघ के
वाघ :- मे टहल रहा था तब मुझे इस दिशा से किसी बच्चे के रोने की आवाज आने लगी इसीलिए मे इस दिशा में आया
शांति :- बालक के बारे मे सोचने के लिए धन्यवाद वाघ जी परंतु अब यहा से हम सम्भाल लेंगे
वाघ :- ठीक है आपका शक्ति स्त्रोत मे महसूस कर पा रहा हूं इसीलिए मे आप पर भरोसा कर रहा हूं
इतना बोलकर वो वाघ वहां से चला गया जिसके बाद शांति ने उस बालक को गोद में उठाया और जब उसने बालक के चेहरे पर नजर डाली तो जैसे शांति पत्थर की मूर्त बन गई वो सिर्फ एक टक उस बालक के और देखने लगी जैसे कि उसे बाकी सबसे कोई लेना देना नहीं था उसकी नीली आखें मासूम सा चेहरा शांति को किसी और ही दुनिया में ले जा रहा था तो वही जैसे ही शांति उस बालक को उठाया बालक का रोना बंद हो गया
जब सब ने शांति को ऐसे मूर्ति बना देखा तो सब शांति को आवाज देने लगे लेकिन शांति तो किसी और ही दुनिया मे गुण थी ये देख कर दिग्विजय शांति के पास पहुंचा और हल्के से उसके कंधे को पकड़कर हिलाने लगा जिससे शांति होश में आ गई और फिर वो उस बच्चे को लेके राघवेन्द्र के पास पहुंच गई
शांति :- वो वाघ इस बच्चे के रोने की आवाज सुनकर ही यहां आया था
राघवेन्द्र :- ठीक है परंतु तुम्हें क्या हुआ था कितने आवाज दिए तुम्हें
शांति :- माफ़ करना गुरुजी मे इस बालक के सुंदरता मे खो गई थी
राघवेन्द्र :- कोई बात नहीं
इतना बोलकर राघवेन्द्र ने बालक को गोद में लिया और उसके माथे पर हाथ रख कर उसके बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयास करने लगे लेकिन जैसे ही वो उस बालक के मस्तिष्क तक पहुंच सकते उससे पहले ही उन्हें एक झटका लगा जिससे उनका हाथ उस बालक के माथे से हट गया ये देख कर राघवेन्द्र चकित हो गए थे उन्हें ये तो पता चल गया था कि वे किसी आम इंसान का पुत्र नहीं है लेकिन ये किसका पुत्र है और आश्रम के इस हिस्से में कैसे आया ये अभी तक पहेली थी किसे सुलझाने के लिए राघवेन्द्र ने फिर से एक बार उस बालक के सर पर हाथ रखकर उसके अस्तित्व तक पहुंचने का प्रयास किया जिसके लिए इस बार उन्होंने अपने अस्त्र की शक्ति को भी जागृत किया था लेकिन फिर भी उनके हाथ निराशा ही आयी परंतु इस बार उन्होंने कुछ अलग महसूस किया उन्हें लगा जैसे अस्त्र की शक्ति उस बालक के तरफ आकर्षित हो रही है और इस बात का एहसास होते ही उन्होंने अपने अस्त्र की शक्तियों को सुप्त कर दिया
गौरव :- कुछ पता चला गुरुदेव आपको इस बालक के बारे में
राघवेन्द्र :- हाँ इस बालक के माता पिता को कुछ लोगों ने मार डाला और फिर इस बच्चे को मरने के लिए नदी मे छोड़ दिया जिस वजह से ये नदी के बहाव के साथ आश्रम की और आ गया (झूठी कहानी)
जब राघवेन्द्र ने ये कहानी सुनायी तो सब बालक को सहानुभूति के साथ देखने लगे तो वही राघवेन्द्र बच्चे के बारे में सबको बताना ठीक नहीं समझ रहे थे इसीलिए उन्होंने सबसे कह दिया कि " यह बालक आश्रम में ही रहेगा और वो खुद इस बालक को शिक्षा देंगे" राघवेन्द्र के इस फैसले पर कोई कुछ नहीं बोला क्यूंकि सब जानते थे कि राघवेन्द्र जो भी करते हैं वो सबके और आश्रम के हित में ही करते हैं
इसके बाद सबने कार्यक्रम को फिर से आरंभ किया और पूरे कार्यक्रम के दौरान शांति उस बालक को अपने साथ लेकर ही घूम रही थी जैसे कि उसे किसी और से कोई लेना-देना नहीं हो तो वही बाकी अस्त्र धारक उसकी ऐसी हालत देख कर मंद मंद मुस्करा रहे थे ऐसे ही आज का दिन गुजर गया जिसके बाद कुछ दिन शांति ही उस बच्चे का ध्यान रख रही लेकिन अब उसे शहर भी तो जाना था वहां पर उसका खुद का हॉस्पिटल था जिसकी जिम्मेदारी उस पर ही थी
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आज के लिए इतना ही
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