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Fantasy ब्रह्माराक्षस

VAJRADHIKARI

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अध्याय दूसरा

१/१/२००२

आज अच्छाई के पक्ष के लिए बड़ा ही खास दिन था आज के ही दिन उनके आश्रमों की स्थापना हुई थी जिस वजह से आज सातों अस्त्र धारक एकसाथ एक जगह पर मौजूद थे काल विजय आश्रम के मध्य में इस समारोह की सारी व्यवस्था की गयी थी और जब सभी अस्त्र धारक एक साथ एक जगह पर आए तो आकाश आतिशबाजी होने लगी और फिर इस समारोह का आरम्भ हो गया जिसमें हर कोई अपनी अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए उत्साहित थे और अभी समारोह के आरंभ के पूर्व सभी लोग काल विजय आश्रम. के पास मे बने एक नदी पर जाकर अपने पूर्वजों को नमन करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करने वाले थे यही इस समारोह का पहला पड़ाव था

अभी सब उस नदी के पास पहुंचे ही थे कि तभी उन्हें वहां किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई देने लगी जिसे सुन कर वह सभी बहुत ज्यादा चकित हो गए थे क्यूंकि आश्रम का ये इलाक़ा बेहद मजबूत सुरक्षा कवच से घिरा हुआ था जिसको भेदन करना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं था

जब सभी उस आवाज की दिशा में पहुचे तो उन्हें वहां एक बालक दिखाई दिया जो कि जमीन पर गिरा हुआ था और वो सूरज के उष्म तापमान के कारण के कारण रो रहा था उसके शरीर को देख कर ही लग रहा था कि वह अभी कुछ घंटों पहले ही जन्मा है

उस बालक को देखते ही गुरु राघवेंद्र ने अपने दो शिष्यों को उस बालक को ले आने का आदेश दिया लेकिन इससे पहले कि वो दो सेवक उस बालक तक पहुचते उससे पहले ही उस जगह पर एक नर-भक्षी वाघ आ गया जिसे देख शांति तुरंत ही आगे बढ़ी और उन दोनों सेवकों के आगे खाड़ी हो गई और फिर अपनी आखें बंद कर के उस शेर के साथ संपर्क बनाने लगी

शांति :- तुम कोण हो और आश्रम के इस हिस्से में कैसे आए

शांति इस वक़्त वाघ की भाषा बोल रही थी जो वहां मौजूद कोई भी समझ नहीं पा रहा था शिवाय उस वाघ के

वाघ :- मे टहल रहा था तब मुझे इस दिशा से किसी बच्चे के रोने की आवाज आने लगी इसीलिए मे इस दिशा में आया

शांति :- बालक के बारे मे सोचने के लिए धन्यवाद वाघ जी परंतु अब यहा से हम सम्भाल लेंगे

वाघ :- ठीक है आपका शक्ति स्त्रोत मे महसूस कर पा रहा हूं इसीलिए मे आप पर भरोसा कर रहा हूं

इतना बोलकर वो वाघ वहां से चला गया जिसके बाद शांति ने उस बालक को गोद में उठाया और जब उसने बालक के चेहरे पर नजर डाली तो जैसे शांति पत्थर की मूर्त बन गई वो सिर्फ एक टक उस बालक के और देखने लगी जैसे कि उसे बाकी सबसे कोई लेना देना नहीं था उसकी नीली आखें मासूम सा चेहरा शांति को किसी और ही दुनिया में ले जा रहा था तो वही जैसे ही शांति उस बालक को उठाया बालक का रोना बंद हो गया

जब सब ने शांति को ऐसे मूर्ति बना देखा तो सब शांति को आवाज देने लगे लेकिन शांति तो किसी और ही दुनिया मे गुण थी ये देख कर दिग्विजय शांति के पास पहुंचा और हल्के से उसके कंधे को पकड़कर हिलाने लगा जिससे शांति होश में आ गई और फिर वो उस बच्चे को लेके राघवेन्द्र के पास पहुंच गई

शांति :- वो वाघ इस बच्चे के रोने की आवाज सुनकर ही यहां आया था

राघवेन्द्र :- ठीक है परंतु तुम्हें क्या हुआ था कितने आवाज दिए तुम्हें

शांति :- माफ़ करना गुरुजी मे इस बालक के सुंदरता मे खो गई थी

राघवेन्द्र :- कोई बात नहीं

इतना बोलकर राघवेन्द्र ने बालक को गोद में लिया और उसके माथे पर हाथ रख कर उसके बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयास करने लगे लेकिन जैसे ही वो उस बालक के मस्तिष्क तक पहुंच सकते उससे पहले ही उन्हें एक झटका लगा जिससे उनका हाथ उस बालक के माथे से हट गया ये देख कर राघवेन्द्र चकित हो गए थे उन्हें ये तो पता चल गया था कि वे किसी आम इंसान का पुत्र नहीं है लेकिन ये किसका पुत्र है और आश्रम के इस हिस्से में कैसे आया ये अभी तक पहेली थी किसे सुलझाने के लिए राघवेन्द्र ने फिर से एक बार उस बालक के सर पर हाथ रखकर उसके अस्तित्व तक पहुंचने का प्रयास किया जिसके लिए इस बार उन्होंने अपने अस्त्र की शक्ति को भी जागृत किया था लेकिन फिर भी उनके हाथ निराशा ही आयी परंतु इस बार उन्होंने कुछ अलग महसूस किया उन्हें लगा जैसे अस्त्र की शक्ति उस बालक के तरफ आकर्षित हो रही है और इस बात का एहसास होते ही उन्होंने अपने अस्त्र की शक्तियों को सुप्त कर दिया

गौरव :- कुछ पता चला गुरुदेव आपको इस बालक के बारे में

राघवेन्द्र :- हाँ इस बालक के माता पिता को कुछ लोगों ने मार डाला और फिर इस बच्चे को मरने के लिए नदी मे छोड़ दिया जिस वजह से ये नदी के बहाव के साथ आश्रम की और आ गया (झूठी कहानी)

जब राघवेन्द्र ने ये कहानी सुनायी तो सब बालक को सहानुभूति के साथ देखने लगे तो वही राघवेन्द्र बच्चे के बारे में सबको बताना ठीक नहीं समझ रहे थे इसीलिए उन्होंने सबसे कह दिया कि " यह बालक आश्रम में ही रहेगा और वो खुद इस बालक को शिक्षा देंगे" राघवेन्द्र के इस फैसले पर कोई कुछ नहीं बोला क्यूंकि सब जानते थे कि राघवेन्द्र जो भी करते हैं वो सबके और आश्रम के हित में ही करते हैं

इसके बाद सबने कार्यक्रम को फिर से आरंभ किया और पूरे कार्यक्रम के दौरान शांति उस बालक को अपने साथ लेकर ही घूम रही थी जैसे कि उसे किसी और से कोई लेना-देना नहीं हो तो वही बाकी अस्त्र धारक उसकी ऐसी हालत देख कर मंद मंद मुस्करा रहे थे ऐसे ही आज का दिन गुजर गया जिसके बाद कुछ दिन शांति ही उस बच्चे का ध्यान रख रही लेकिन अब उसे शहर भी तो जाना था वहां पर उसका खुद का हॉस्पिटल था जिसकी जिम्मेदारी उस पर ही थी

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आज के लिए इतना ही

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DesiPriyaRai

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अध्याय दूसरा

१/१/२००२

आज अच्छाई के पक्ष के लिए बड़ा ही खास दिन था आज के ही दिन उनके आश्रमों की स्थापना हुई थी जिस वजह से आज सातों अस्त्र धारक एकसाथ एक जगह पर मौजूद थे काल विजय आश्रम के मध्य में इस समारोह की सारी व्यवस्था की गयी थी और जब सभी अस्त्र धारक एक साथ एक जगह पर आए तो आकाश आतिशबाजी होने लगी और फिर इस समारोह का आरम्भ हो गया जिसमें हर कोई अपनी अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए उत्साहित थे और अभी समारोह के आरंभ के पूर्व सभी लोग काल विजय आश्रम. के पास मे बने एक नदी पर जाकर अपने पूर्वजों को नमन करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करने वाले थे यही इस समारोह का पहला पड़ाव था

अभी सब उस नदी के पास पहुंचे ही थे कि तभी उन्हें वहां किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई देने लगी जिसे सुन कर वह सभी बहुत ज्यादा चकित हो गए थे क्यूंकि आश्रम का ये इलाक़ा बेहद मजबूत सुरक्षा कवच से घिरा हुआ था जिसको भेदन करना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं था

जब सभी उस आवाज की दिशा में पहुचे तो उन्हें वहां एक बालक दिखाई दिया जो कि जमीन पर गिरा हुआ था और वो सूरज के उष्म तापमान के कारण के कारण रो रहा था उसके शरीर को देख कर ही लग रहा था कि वह अभी कुछ घंटों पहले ही जन्मा है

उस बालक को देखते ही गुरु राघवेंद्र ने अपने दो शिष्यों को उस बालक को ले आने का आदेश दिया लेकिन इससे पहले कि वो दो सेवक उस बालक तक पहुचते उससे पहले ही उस जगह पर एक नर-भक्षी वाघ आ गया जिसे देख शांति तुरंत ही आगे बढ़ी और उन दोनों सेवकों के आगे खाड़ी हो गई और फिर अपनी आखें बंद कर के उस शेर के साथ संपर्क बनाने लगी

शांति :- तुम कोण हो और आश्रम के इस हिस्से में कैसे आए

शांति इस वक़्त वाघ की भाषा बोल रही थी जो वहां मौजूद कोई भी समझ नहीं पा रहा था शिवाय उस वाघ के

वाघ :- मे टहल रहा था तब मुझे इस दिशा से किसी बच्चे के रोने की आवाज आने लगी इसीलिए मे इस दिशा में आया

शांति :- बालक के बारे मे सोचने के लिए धन्यवाद वाघ जी परंतु अब यहा से हम सम्भाल लेंगे

वाघ :- ठीक है आपका शक्ति स्त्रोत मे महसूस कर पा रहा हूं इसीलिए मे आप पर भरोसा कर रहा हूं

इतना बोलकर वो वाघ वहां से चला गया जिसके बाद शांति ने उस बालक को गोद में उठाया और जब उसने बालक के चेहरे पर नजर डाली तो जैसे शांति पत्थर की मूर्त बन गई वो सिर्फ एक टक उस बालक के और देखने लगी जैसे कि उसे बाकी सबसे कोई लेना देना नहीं था उसकी नीली आखें मासूम सा चेहरा शांति को किसी और ही दुनिया में ले जा रहा था तो वही जैसे ही शांति उस बालक को उठाया बालक का रोना बंद हो गया

जब सब ने शांति को ऐसे मूर्ति बना देखा तो सब शांति को आवाज देने लगे लेकिन शांति तो किसी और ही दुनिया मे गुण थी ये देख कर दिग्विजय शांति के पास पहुंचा और हल्के से उसके कंधे को पकड़कर हिलाने लगा जिससे शांति होश में आ गई और फिर वो उस बच्चे को लेके राघवेन्द्र के पास पहुंच गई

शांति :- वो वाघ इस बच्चे के रोने की आवाज सुनकर ही यहां आया था

राघवेन्द्र :- ठीक है परंतु तुम्हें क्या हुआ था कितने आवाज दिए तुम्हें

शांति :- माफ़ करना गुरुजी मे इस बालक के सुंदरता मे खो गई थी

राघवेन्द्र :- कोई बात नहीं

इतना बोलकर राघवेन्द्र ने बालक को गोद में लिया और उसके माथे पर हाथ रख कर उसके बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयास करने लगे लेकिन जैसे ही वो उस बालक के मस्तिष्क तक पहुंच सकते उससे पहले ही उन्हें एक झटका लगा जिससे उनका हाथ उस बालक के माथे से हट गया ये देख कर राघवेन्द्र चकित हो गए थे उन्हें ये तो पता चल गया था कि वे किसी आम इंसान का पुत्र नहीं है लेकिन ये किसका पुत्र है और आश्रम के इस हिस्से में कैसे आया ये अभी तक पहेली थी किसे सुलझाने के लिए राघवेन्द्र ने फिर से एक बार उस बालक के सर पर हाथ रखकर उसके अस्तित्व तक पहुंचने का प्रयास किया जिसके लिए इस बार उन्होंने अपने अस्त्र की शक्ति को भी जागृत किया था लेकिन फिर भी उनके हाथ निराशा ही आयी परंतु इस बार उन्होंने कुछ अलग महसूस किया उन्हें लगा जैसे अस्त्र की शक्ति उस बालक के तरफ आकर्षित हो रही है और इस बात का एहसास होते ही उन्होंने अपने अस्त्र की शक्तियों को सुप्त कर दिया

गौरव :- कुछ पता चला गुरुदेव आपको इस बालक के बारे में

राघवेन्द्र :- हाँ इस बालक के माता पिता को कुछ लोगों ने मार डाला और फिर इस बच्चे को मरने के लिए नदी मे छोड़ दिया जिस वजह से ये नदी के बहाव के साथ आश्रम की और आ गया (झूठी कहानी)

जब राघवेन्द्र ने ये कहानी सुनायी तो सब बालक को सहानुभूति के साथ देखने लगे तो वही राघवेन्द्र बच्चे के बारे में सबको बताना ठीक नहीं समझ रहे थे इसीलिए उन्होंने सबसे कह दिया कि " यह बालक आश्रम में ही रहेगा और वो खुद इस बालक को शिक्षा देंगे" राघवेन्द्र के इस फैसले पर कोई कुछ नहीं बोला क्यूंकि सब जानते थे कि राघवेन्द्र जो भी करते हैं वो सबके और आश्रम के हित में ही करते हैं

इसके बाद सबने कार्यक्रम को फिर से आरंभ किया और पूरे कार्यक्रम के दौरान शांति उस बालक को अपने साथ लेकर ही घूम रही थी जैसे कि उसे किसी और से कोई लेना-देना नहीं हो तो वही बाकी अस्त्र धारक उसकी ऐसी हालत देख कर मंद मंद मुस्करा रहे थे ऐसे ही आज का दिन गुजर गया जिसके बाद कुछ दिन शांति ही उस बच्चे का ध्यान रख रही लेकिन अब उसे शहर भी तो जाना था वहां पर उसका खुद का हॉस्पिटल था जिसकी जिम्मेदारी उस पर ही थी

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आज के लिए इतना ही

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Nice update
 

parkas

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अभी सब उस नदी के पास पहुंचे ही थे कि तभी उन्हें वहां किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई देने लगी जिसे सुन कर वह सभी बहुत ज्यादा चकित हो गए थे क्यूंकि आश्रम का ये इलाक़ा बेहद मजबूत सुरक्षा कवच से घिरा हुआ था जिसको भेदन करना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं था

जब सभी उस आवाज की दिशा में पहुचे तो उन्हें वहां एक बालक दिखाई दिया जो कि जमीन पर गिरा हुआ था और वो सूरज के उष्म तापमान के कारण के कारण रो रहा था उसके शरीर को देख कर ही लग रहा था कि वह अभी कुछ घंटों पहले ही जन्मा है

उस बालक को देखते ही गुरु राघवेंद्र ने अपने दो शिष्यों को उस बालक को ले आने का आदेश दिया लेकिन इससे पहले कि वो दो सेवक उस बालक तक पहुचते उससे पहले ही उस जगह पर एक नर-भक्षी वाघ आ गया जिसे देख शांति तुरंत ही आगे बढ़ी और उन दोनों सेवकों के आगे खाड़ी हो गई और फिर अपनी आखें बंद कर के उस शेर के साथ संपर्क बनाने लगी

शांति :- तुम कोण हो और आश्रम के इस हिस्से में कैसे आए

शांति इस वक़्त वाघ की भाषा बोल रही थी जो वहां मौजूद कोई भी समझ नहीं पा रहा था शिवाय उस वाघ के

वाघ :- मे टहल रहा था तब मुझे इस दिशा से किसी बच्चे के रोने की आवाज आने लगी इसीलिए मे इस दिशा में आया

शांति :- बालक के बारे मे सोचने के लिए धन्यवाद वाघ जी परंतु अब यहा से हम सम्भाल लेंगे

वाघ :- ठीक है आपका शक्ति स्त्रोत मे महसूस कर पा रहा हूं इसीलिए मे आप पर भरोसा कर रहा हूं

इतना बोलकर वो वाघ वहां से चला गया जिसके बाद शांति ने उस बालक को गोद में उठाया और जब उसने बालक के चेहरे पर नजर डाली तो जैसे शांति पत्थर की मूर्त बन गई वो सिर्फ एक टक उस बालक के और देखने लगी जैसे कि उसे बाकी सबसे कोई लेना देना नहीं था उसकी नीली आखें मासूम सा चेहरा शांति को किसी और ही दुनिया में ले जा रहा था तो वही जैसे ही शांति उस बालक को उठाया बालक का रोना बंद हो गया

जब सब ने शांति को ऐसे मूर्ति बना देखा तो सब शांति को आवाज देने लगे लेकिन शांति तो किसी और ही दुनिया मे गुण थी ये देख कर दिग्विजय शांति के पास पहुंचा और हल्के से उसके कंधे को पकड़कर हिलाने लगा जिससे शांति होश में आ गई और फिर वो उस बच्चे को लेके राघवेन्द्र के पास पहुंच गई

शांति :- वो वाघ इस बच्चे के रोने की आवाज सुनकर ही यहां आया था

राघवेन्द्र :- ठीक है परंतु तुम्हें क्या हुआ था कितने आवाज दिए तुम्हें

शांति :- माफ़ करना गुरुजी मे इस बालक के सुंदरता मे खो गई थी

राघवेन्द्र :- कोई बात नहीं

इतना बोलकर राघवेन्द्र ने बालक को गोद में लिया और उसके माथे पर हाथ रख कर उसके बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयास करने लगे लेकिन जैसे ही वो उस बालक के मस्तिष्क तक पहुंच सकते उससे पहले ही उन्हें एक झटका लगा जिससे उनका हाथ उस बालक के माथे से हट गया ये देख कर राघवेन्द्र चकित हो गए थे उन्हें ये तो पता चल गया था कि वे किसी आम इंसान का पुत्र नहीं है लेकिन ये किसका पुत्र है और आश्रम के इस हिस्से में कैसे आया ये अभी तक पहेली थी किसे सुलझाने के लिए राघवेन्द्र ने फिर से एक बार उस बालक के सर पर हाथ रखकर उसके अस्तित्व तक पहुंचने का प्रयास किया जिसके लिए इस बार उन्होंने अपने अस्त्र की शक्ति को भी जागृत किया था लेकिन फिर भी उनके हाथ निराशा ही आयी परंतु इस बार उन्होंने कुछ अलग महसूस किया उन्हें लगा जैसे अस्त्र की शक्ति उस बालक के तरफ आकर्षित हो रही है और इस बात का एहसास होते ही उन्होंने अपने अस्त्र की शक्तियों को सुप्त कर दिया

गौरव :- कुछ पता चला गुरुदेव आपको इस बालक के बारे में

राघवेन्द्र :- हाँ इस बालक के माता पिता को कुछ लोगों ने मार डाला और फिर इस बच्चे को मरने के लिए नदी मे छोड़ दिया जिस वजह से ये नदी के बहाव के साथ आश्रम की और आ गया (झूठी कहानी)

जब राघवेन्द्र ने ये कहानी सुनायी तो सब बालक को सहानुभूति के साथ देखने लगे तो वही राघवेन्द्र बच्चे के बारे में सबको बताना ठीक नहीं समझ रहे थे इसीलिए उन्होंने सबसे कह दिया कि " यह बालक आश्रम में ही रहेगा और वो खुद इस बालक को शिक्षा देंगे" राघवेन्द्र के इस फैसले पर कोई कुछ नहीं बोला क्यूंकि सब जानते थे कि राघवेन्द्र जो भी करते हैं वो सबके और आश्रम के हित में ही करते हैं

इसके बाद सबने कार्यक्रम को फिर से आरंभ किया और पूरे कार्यक्रम के दौरान शांति उस बालक को अपने साथ लेकर ही घूम रही थी जैसे कि उसे किसी और से कोई लेना-देना नहीं हो तो वही बाकी अस्त्र धारक उसकी ऐसी हालत देख कर मंद मंद मुस्करा रहे थे ऐसे ही आज का दिन गुजर गया जिसके बाद कुछ दिन शांति ही उस बच्चे का ध्यान रख रही लेकिन अब उसे शहर भी तो जाना था वहां पर उसका खुद का हॉस्पिटल था जिसकी जिम्मेदारी उस पर ही थी

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Bahut hi shaandar update diya hai VAJRADHIKARI bhai......
Nice and awesome update.....
 

VAJRADHIKARI

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अध्याय तीसरा

तो ऐसे ही समय गुजरता गया और जल्द ही वो बालक 5 साल का हो गया और तभी से राघवेन्द्र ने उस बालक को सब कुछ सिखाना शुरू किया छोटी छोटी जादुई कला से लेकर बड़े से बड़े मायावी हमले तक सब उसे सीखा दिया था तो वही जब भी आश्रम में बाकी गुरुओं मे से कोई भी आता (यहा गुरु का अर्थ अस्त्र धारक से है) तो वो सभी भी भद्रा को अलग अलग कला सीखते जिन मंत्रों से वो अपने अस्त्रों को इस्तेमाल करते वही मंत्र उन्होंने भद्रा को भी सीखा दिए थे जिससे अब वो तीनों ही आश्रमों मे गुरुओं के बाद सबसे शक्तिशाली योद्धा था

१/१/२०२४

आज उस हादसे के बाद 22 वर्षो का समय गुजर चुका था संसार में बहुत से बदलाव भी आए थे जैसे कि अभी आश्रम पहले से भी ज्यादा गुप्त और सख्त हो गए थे जब से आश्रम में सबको ब्रह्माराक्षसों पर हुए हमले के बारे में जानकारी प्राप्त हुई थी तब से सब लोग गंभीर हो गए थे यहा तक कि सारे गुरु भी बिना अति आवश्यक कार्य के आश्रम के तरफ देखते भी नहीं थे तो वही भद्रा के 15 साल पूरे होते ही राघवेन्द्र ने उससे वचन ले लिया कि जब तक प्राणों का संकट ना वो कोई मायावी विद्या इस्तेमाल नहीं करेगा और वहीं भद्रा राघवेन्द्र के कहने पर खुदका सर भी काट सकता है तो वह इस वचन के लिए कैसे मना कर पाता

जब भद्रा 21 बरस का हुआ तो राघवेन्द्र ने उसे शहर जाके वहां के तौर तरीकों को सीखने के लिए बोल दिया अभी बचपन से ही मायावी शक्तियों का अध्ययन करने से भद्रा का दिमाग इतना तेजी से विकास कर रहा था कि वह एक बार जो देख ले पढ़ ले या सिर्फ सुन भी ले तुरंत ही उसके दीमाग मे किसी तस्वीर की तरह छ्प जाता इसीलिए शहर आने के बाद वो शहर की रंगत मे रंग गया था पढाई की चिंता तो उसे थी ही नहीं क्यूँकी कॉलेज मे जो भी पढ़ाते उसने वो सब पहले ही ग्रंथों में पढ़ लिया था सिर्फ भाषा का अन्तर था बस टेक्नोलॉजी उसके लिए नयी थी जिसे भी उसने एक साल मे इस प्रकार सीख लिया था जैसे बचपन से ही सीखते आ रहा हो

वही शहर में रहते हुए उसके तीन दोस्त भी बने और उन्हीं के साथ वो पूरा दिन रहता है

1) केशव = ये भद्रा के ही क्लास में है और उसका सबसे पहला दोस्त यही है इसे दूसरों से पंगा लेने की आदत है har वक़्त किसी ना किसी से लड़ते रहता है

2) रवि = ये केशव के बचपन का दोस्त है लेकिन ये डरपोक किस्म का है इसे बस कोई घूर के देख ले तो ये डर जाए

3) प्रिया = ये शहर के बड़े व्यापारी की इकलौती बेटी है लेकिन बहुत सुलझी हुई है शहर के अंदर ही इसके पिता के 2 होटल्स है जिन मे से एक ये संभालती है और ये दिल ही दिल में भद्रा की दीवानी भी है बस इसने उसे बताया नहीं है ये बात केवल रवि और केशव को पता है

अब से कहानी भद्रा की जुबानी

आज भद्रा का 22 वा जन्मदिन था जिसके लिए उसके दोस्तों ने कुछ खास इन्तेजाम किए थे जिससे भद्रा अनजान था

आज सुबह जब मेरी नींद खुली तो मुझे खुदको अपना जन्मदिन याद नहीं था लेकिन हाँ नए साल के शुरू होने का उत्साह जरूर था जिसके बाद सबसे पहले मेंने अपनी दिनचर्या अनुसार ध्यान लगाकर अपने दिल दिमाग को शुद्ध करके शांत किया और फिर नहाने चला गया आज मुझे मेरे शरीर में कुछ बदलाव महसूस हुए थे जिनपर मेने ध्यान नहीं दिया क्यूंकि मुझे लगा था कि ये सब मेरे अन्दर की शक्तियों के वजह से हो रहा था

और जब मे घर से बाहर निकला तो मेरे घर के बाहर मेरे तीनों दोस्त मौजूद थे जिनको देख कर मे दंग रह गया क्यूंकि आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ था कि वो मेरे घर पर आए

में :- क्या बात है आज तुम तीनों की नींद जल्दी खुल गई मुझे लगा था कि आज भी मुझे तुम्हें लेने तुम्हारे घर आना होगा

केशव :- अच्छा है कि तुम्हें याद तो है कि आज क्या है

में :- इसमे क्या है ये तो सब को पता है कि आज नए साल का पहला दिन है

मेरी बात सुन कर उन तीनों ने भी अपना सर पीट लिया

में :- क्या हुआ अपना सर क्यु पीट रहे हो

रवि :- कुछ नहीं आओ तुम गाड़ी में बैठो

इतना बोलकर उन तीनों ने मुझे पकड़ कर गाड़ी में बिठा दिया और फिर प्रिया गाड़ी चलाने लगी हम तीनों को भी गाड़ी चलाना नहीं आती थी अभी मे गाड़ी में बैठ कर हमेशा की तरह गाने सुन रहा था कि तभी मेने ध्यान दिया कि हमारी गाड़ी कॉलेज से अलग रास्ते पर जा रही थी

में :- ये क्या कॉलेज का रास्ता तो पीछे रह गया

केशव :- हाँ आज हम कॉलेज नहीं जा रहे हैं आज कुछ अलग सोचा है

में :- अच्छा क्या सोचा है तुमने

रवि :- वो हम नहीं बतायेंगे तुम इंतजार करो

में :- ठीक है मत बताओ

ये बोलकर मे फिर से गाने सुनने लगा तो वही जब हम पहुचें तो मेने देखा कि ये प्रिया का ही होटल था जिसे वो उसके फ्री टाइम में संभालती थी अभी मे कुछ बोलता की तभी उन तीनों ने मेरे आखों के उपर पट्टी बाँध दी और फिर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अंदर ले गए और जब हम अंदर पहुचें तो वहां जाने के बाद उन्होंने मेरे आखों की पट्टी खोली और जब मेने अपनी आखें खोली तो वहाँ पर पूरा होटल सजाया हुआ था और सामने प्रिया केशव और रवि तीनों के भी माता पिता मौजूद थे जिन्हें देख कर मेंने सबसे पहले उन सबके पैर छुए फिर उन सबके सामने खड़ा हो कर

में :- नए साल की आप सबको बहुत बहुत बधाई

मेरी बात सुनकर वो सभी दंग रह गए जिसके बाद केशव ने आकर मेरे सर पे मारते हुए कहा

केशव :- पागल आज तेरा जन्म दिन भी है

केशव की बात सुनकर सभी हसने लगे जिसके बाद सभी ने मिलकर मेरा जन्म दिन मनाया जिसके बाद सबने मुझे बहुत से तोहफे भी दिए सभी बड़े मुझे बहुत मानते थे

जिसके बाद हम सबने मिलकर खाना शुरू किया अभी हम खाना खाते की तभी मुझे याद आया कि शांति ने भी मुझे आज अपने घर पर बुलाया था ये याद आते ही मे वहाँ से निकलने वाला था कि तभी वहां प्रिया के पिता आ गए ये ज्यादा तर देश से बाहर ही रहते थे इनका नाम शान था

शान :- कहा चले birthday boy बिना हमसे मिले ही चल दिये

में :- नहीं ऐसा नहीं है सर वो मुझे नहीं पता था कि आप आने वाले हो

शान :- अरे कैसे नहीं आता जिसके वजह से मुझे लाखों का नुकसान हुआ उससे कैसे ना मिलता

प्रिया :- (अचानक से) पिताजी

में :- लाखों का नुकसान कैसे मे समझा नहीं

शान :- अरे तुम्हारे जन्मदिन की पार्टी के लिए इसने नए साल की जो भी बुकिंग थी वो सब को मना कर दिया जिससे हमें सबको उनके पैसे रिटर्न करने पड़े

उनकी बात सुनकर मे दंग रह गया था बोलना तो मे चाहता था लेकिन वो हक्क नहीं था प्रिया मेरे लिए एक खास दोस्त लेकिन उसे इस नादानी के लिए उसके माता पिता के सामने परायों के सामने बोलने का अधिकार नहीं था

में :- माफ़ करना सर लेकिन अब ये आपका मेरे ऊपर उधार रहा जिसे मे जल्द ही चुका दूंगा

जिसके बाद मे उन सबके साथ ही बैठ गया क्यूँकी प्रिया के पिता अभीं आए थे और उनके आते ही तुरंत निकल जाना अच्छा नहीं लगता

रानी (प्रिया की माँ) :- (शान से) आप इतनी जल्दी कैसे आप तो किसी मीटिंग में जाने वाले थे

शान :- हाँ इस शहर के सबसे बड़े बिजनेस मैन शैलेश सिंघानिया से मिलने जाना था लेकिन उनके पास हम जैसे छोटे बिजनेस मैन को मिलने का समय कहा है

जैसे ही उन्होंने अपनी बात पूरी की वैसे ही मेरे दिमाग की घंटी बज उठी क्यूंकि वो जिस शैलेश की बात कर रहे थे वो कोई और नहीं बल्कि गुरु नंदी थे अब मुझे मेरा उधार चुकाने का तरीका मिल गया था फिर मे वहाँ से निकल गया शांति से मिलने

(यहा मे एक बात साफ़ कर देता हूं बचपन से ही मे और शांति दोस्तों के तरह ही एक दूसरे से मिलते थे जिससे में और वो एक दूसरे के साथ काफी खुल गए थे तो वही बाकियों को मेंने हमेशा अपने गुरुओं के रूप में ही देखा है इसीलिए उनसे मेरा व्यावहार गुरु शिष्य जैसा ही है लेकिन वो सभी मुझे अपने परिवार समान ही मानते हैं)

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आज के लिए इतना ही

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