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Nice update....अध्याय इक्यावन
इस वक़्त उस युद्ध मैदान मे एक तरफ पूरी असुरी सेना थी तो दूसरी तरफ अच्छाई के योद्धा थे जिनमे कुछ चोटिल हो गए थे और जब दोनों पक्ष आमने सामने आ गए तो सही मायने में युद्ध आरंभ हो गया था
जिसमे आज कोई एक ही पक्ष जीतता और दूसरे पक्ष को मृत्यु प्राप्त होती अभी सब एक दूसरे के सामने थे की तभी कामिनी ने असुरी सैनिकों को इशारा कर दिया जिससे असुरी सेना पूरी तेजी से आगे बढ़ने लगी
तो वही महागुरु ने भी अपने सिपाहियों को लढने का इशारा किया जिसके बाद एक एक अच्छाई के योद्धा के लिए 100 असुरी सैनिक मौजूद थे
लेकिन इससे पहले की वो असुरी सैनिक आगे बढ़ पाते उससे पहले ही प्रिया ने अपनी सैन्य टुकड़ी के तरफ एक इशारा किया जिससे सारे धनुर्धर और भाले धारकों ने तुरंत अपने गुलाबी आग से जलते हुए तिर और भालों को उनकी तरफ फेक दिये
जिससे असुरी सेना का एक हिस्सा युद्ध शुरू होने से पहले ही मारा गया
तो वही जब महागुरु ने योध्दाओं की हालत देखी तो बहुत से योद्धा उनके भी चोटिल हो गए थे जो देखके महागुरु ने अपनी आँखे बंद कर दी और फिर से अपने धनुष की प्रत्यंचा खिचने लगे
साथ मे वो अपने मन मे ही कुछ मंत्र बोलने लगे थे और जैसे ही उन्होंने अपनी आँखे खोली तो वैसे ही उनके धनुष पर एक बान आ गया जिसे उन्होंने तुरंत आसमान मे छोड़ दिया
जो कुछ देर उपर जाके पुन्हा नीचे आ गया और वो सीधा अच्छाई पक्ष के सेना बिचो बीच जाके गिरा और देखते ही देखते सारे जख्मी योध्दा पुन्हा चुस्त और दुरुस्त हो गए
ये वही वक्त था जब मायासुर ने वो सफेद गोले का निर्माण किया था जिसमे युद्ध का मंजर देखके न सिर्फ वो दोनों बल्कि उस युद्ध के मैदान का हर एक शख्स दंग था
शैलेश :- महागुरु ये कैसी विद्या थी
महागुरु :- विसोशन अस्त्र ये भी एक दिव्यस्त्र हैं जब तुम सभी उन निष्क्रिय अस्त्रों पर अपना समय गवां रहे थे तब मे ऐसे ही दिव्यस्त्रों के आवहाँन कर रहा था
प्रिया:- बीचमे टोकने के लिए माफी लेकिन जुबान नही हाथ चलाने का समय है
प्रिया की बात सुनकर महागुरु ने भी अपने योध्दाओं को हमला करने के लिए कहा जिससे अब दोनों ही पक्ष आपस में पूरी तरह भीड़ चुके थे हर कोई अपने अपने तरीके से युद्ध कर रहा था
जहाँ पंचतत्व सेना अपने आप मे ही तीन संघो मे बट गयी थी
पहले संघ मे अग्नि तत्व और आकाश तत्व थे जो सारे असुरों पर अग्नि और विद्युत शक्ति का मिश्रित वार करते जा रहे थे
तो वही दूसरे संघ मे जल और पृथ्वी तत्व एक साथ थे जहाँ पृथ्वी तत्व सभी असुरों के चारों तरफ मिट्टी की परत चढ़ा देते
तो वही जल तत्व उस मिट्टी के परत मे जल को मिला कर खिचड का निर्माण कर देते और उस खिचड के कारण उन असुरों का दम घुटने लगता और वो वही मारे जाते
तो वही तीसरा संघ वायु तत्व का वायु तत्व सैनिक एक ही बार मे 4 से 5 असुरों को हवा में उड़ा कर जोर से जमीन पर पटक देते जिससे उनका खेल वही खतम हो जाता
तो वही सारे गुरु भी असुरी सेना के टुकड़ी को अकेले मारे जा रहे थे जहाँ सिँह वानर और नंदी गुरु ये तीनों अपने अपने अस्त्रों के शक्ति से पूरी के पूरी टुकड़ी को एक ही बार मे खतम कर दे रहे थे
तो वही शांति दिलावर और साहिल अपने बाहुबल और मायावी अस्त्रों के मदद से असुरी सेना का खतम किये जा रहे थे
तो वही प्रिया मायावी जादूगरों की सेना के साथ असुरी सेना पर कहर बनके गिर रही थी सारे असुरी सैनिक उसके हाथों बहुत बुरी तरीके से मर रहे थे
तो वही सबसे आखिर मे महागुरु धनुर्धर और भालों के संघ के साथ सभी असुरी सेना पर आसमान से कहर बरसा रहे थे जैसा मेने आपको पहले कहा था की मायावी धनुषों की एक खासियत है जो केवल महागुरु ही जानते है
और वो है वो सारे धनुष महागुरु के ही धनुष के प्रतिरूप है जिस कारण जो बान महागुरु के धनुष से संधान होगा वही बान अगर महागुरु चाहे तो उन सारे धनुष से एक साथ संधान किया जा सकता हैं
और इस खूबी का महागुरु बड़ी ही कुशलता से प्रयोग कर रहे थे हर बार वो किसी भी दिव्यस्त्र का वार असुरों पर करते तो वही दिव्यस्त्र उन सभी धनुर्धर सैनिकों के धनुष से भी संधान होता
और इसी युक्ति से कुछ ही देर में 1,00,000 की असुरी सेना अब केवल 50,000 की रह गयी थी जो देखकर अच्छाई के पक्ष मे एक अलग उत्साह छा गया था वो सभी और भी तेजी से असुरों को मारने मे लग गए
तो वही अपनी सेना का ये हाल होता देख कर कामिनी और मोहिनी ने अपनी शक्तियों से वहाँ मायाजाल फैलाने का प्रयास भी किया था जिसमे एक पल के लिए कामयाब भी हो गए थे
जिसमे उन्होंने पूरी असुरी सेना को अदृश्य बना दिया था जिससे एक बार फिर से अच्छाई के योद्धा जख्मी होने लगे थे की तभी महागुरु ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर शब्द वेदास्त्र का इस्तेमाल किया
जिससे देखते ही देखते अदृश्य हो चुकी असुरी सेना सबको दिखने लगी और उसके तुरंत बाद महागुरु असुरी सेना पर इंद्रास्त्र का इस्तेमाल किया और जिससे पूरी असुरी सेना पर तीरों की बारिश होने लगी थी
तो वही इससे पहले की कमीनी और मोहिनी दोनों फिर से की माया रच पाते उससे पहले ही प्रिया और शांति ने उन दोनों पर हमला बोल दिया
तो वही इस सब के बाद असुरी सेना की संख्या अब केवल 25,000 ही रह गयी थी तो वही अच्छाई के पक्ष मे अब तक केवल 400 se 450 योध्दा शहीद हुए थे
तो वही ये युद्ध मायावी गोले के मदद से शुक्राचार्य और मायासुर भी देख रहे थे और ये सब देखकर जहाँ मायासुर क्रोध में था तो वही शुक्राचार्य पूरी लडाई गौर से देख रहा था
मायासुर:- इन्होंने क्या हाल कर दिया है हमारे सेना का अब मे उन्हे छोडूंगा नही मे खुद इन्हे खतम करूँगा
इतना बोलके मायासुर वहा से जाने लगा तो वही मायासुर को जाते देख कर शुक्राचार्य ने उसका हाथ पकड़ कर रोक दिया
शुक्राचार्य:- रुक जाओ मायासुर अभी इस युद्ध मे तुम्हारी बारी नही आई है अब अपने महाकाय असुरों को भेजो और उनके साथ विध्वंशक और उसके पांचो साथियों को भी भेजो जिससे राघवेंद्र के दिव्यस्त्र भी किसी काम के न रहे
मायासुर :- जो आज्ञा गुरुवर
वही युद्ध के मैदान में महागुरु ने अग्नये अस्त्र से युद्ध खतम करना चाहा और फिर अपने धनुष से उस अस्त्र को छोड़ भी दिया जिससे वहा बचे कुचे असुरों पर आग की बड़ी लहर गिरने लगी
लेकिन इससे पहले की असुरी सेना को कोई हानि पहुंचा पाती उससे पहले ही वहा एक बड़ी पानी की लहर आ गयी जिसने उस आग की लहर को बुझा दिया जो देखकर सभी हैरान हो गए थे
और जब सबने उस दिशा में देखा जहाँ से वो लहर आई थी तो वहा पर इस वक़्त कुल 10 असुर थे जिनकी ऊँचाई किसी पर्वत समान थी और उन 10 मेसे 6 असुर कुछ अलग ही दिख रहे थे
और बाकी 4 आम महाकाय असुर दिख रहे थे तो वही जहाँ उन्हे देख कर सभी दंग थे की तभी उन 6 मेसे एक ने अपने धनुष से तिर छोड़ा जो सीधा धनुर्धर टुकड़ी के उपर गया और
जैसे ही वो तिर धनुर्धर टुकड़ी के उपर पहुंचा वैसे ही उस सैन्य टुकड़ी पर अचानक बड़ी बड़ी चट्टाने गिरने लगी जो देखकर महागुरु और बाकी सब दंग रह गए
महागुरु :- (मन में) पहले वरुणास्त्र और अब पर्वतास्त्र ये कोई आम असुर नही है इनसे लड़ने के लिए मुझे अपना पुरा जोर लगाना होगा
इतना सोचते ही महागुरु सतर्क हो गए और उन्होंने तुरंत ही उन असुरों पर फिर से एक बार इंद्रस्त्र के मदद से तीरों की बारिश कर दी लेकिन तभी उस असुर ने भी अपने धनुष से अंतर्ध्यनास्त्र को छोड़ दिया
जिसने उन सारे तीरों को कही गायब कर दिया और फिर तुरंत ही उसने महागुरु पर और अच्छाई के पक्ष पर नागास्त्र से वार कर दिया जिससे हर तरफ भयंकर और विषैले सर्प आ गए जिन्हे देखकर महागुरु ने तुरंत अपने गरूड़ा अस्त्र का वार कर दिया
जिससे हर तरफ भयंकर गरुड़ आ गए जिन्होंने सारे सर्पों को देखते ही देखते खतम कर दिया और फिर उन दोनों के बीच शुरू हुआ युद्ध जिसमे दोनों भी अपने अपने अस्त्रों का इस्तेमाल एक दूसरे पर कर रहे थे
की तभी उस असुर ने महागुरु पर वरुणापाश से वार किया और इससे पहले की महागुरु उससे बच पाते की उस पाश ने महागुरु को अपने कब्जे मे ले लिया
और ये देखते ही सभी का ध्यान उस तरफ चला गया और नाजाने किस वजह से लेकिन सारे अस्त्र धारक गुरुओं की जो अस्त्र ऊर्जा थी वो गायब हो गयी थी जैसे कि उनके अस्त्र भी निष्क्रिय हो गए है और इसी बात का फायदा उठा कर सारे असुरों ने हारे हुए युद्ध को और सभी योद्धाओं को वापस अपने कब्जे मे ले लिया
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आज के लिए इतना ही
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Nice update...अध्याय इक्यावन
इस वक़्त उस युद्ध मैदान मे एक तरफ पूरी असुरी सेना थी तो दूसरी तरफ अच्छाई के योद्धा थे जिनमे कुछ चोटिल हो गए थे और जब दोनों पक्ष आमने सामने आ गए तो सही मायने में युद्ध आरंभ हो गया था
जिसमे आज कोई एक ही पक्ष जीतता और दूसरे पक्ष को मृत्यु प्राप्त होती अभी सब एक दूसरे के सामने थे की तभी कामिनी ने असुरी सैनिकों को इशारा कर दिया जिससे असुरी सेना पूरी तेजी से आगे बढ़ने लगी
तो वही महागुरु ने भी अपने सिपाहियों को लढने का इशारा किया जिसके बाद एक एक अच्छाई के योद्धा के लिए 100 असुरी सैनिक मौजूद थे
लेकिन इससे पहले की वो असुरी सैनिक आगे बढ़ पाते उससे पहले ही प्रिया ने अपनी सैन्य टुकड़ी के तरफ एक इशारा किया जिससे सारे धनुर्धर और भाले धारकों ने तुरंत अपने गुलाबी आग से जलते हुए तिर और भालों को उनकी तरफ फेक दिये
जिससे असुरी सेना का एक हिस्सा युद्ध शुरू होने से पहले ही मारा गया
तो वही जब महागुरु ने योध्दाओं की हालत देखी तो बहुत से योद्धा उनके भी चोटिल हो गए थे जो देखके महागुरु ने अपनी आँखे बंद कर दी और फिर से अपने धनुष की प्रत्यंचा खिचने लगे
साथ मे वो अपने मन मे ही कुछ मंत्र बोलने लगे थे और जैसे ही उन्होंने अपनी आँखे खोली तो वैसे ही उनके धनुष पर एक बान आ गया जिसे उन्होंने तुरंत आसमान मे छोड़ दिया
जो कुछ देर उपर जाके पुन्हा नीचे आ गया और वो सीधा अच्छाई पक्ष के सेना बिचो बीच जाके गिरा और देखते ही देखते सारे जख्मी योध्दा पुन्हा चुस्त और दुरुस्त हो गए
ये वही वक्त था जब मायासुर ने वो सफेद गोले का निर्माण किया था जिसमे युद्ध का मंजर देखके न सिर्फ वो दोनों बल्कि उस युद्ध के मैदान का हर एक शख्स दंग था
शैलेश :- महागुरु ये कैसी विद्या थी
महागुरु :- विसोशन अस्त्र ये भी एक दिव्यस्त्र हैं जब तुम सभी उन निष्क्रिय अस्त्रों पर अपना समय गवां रहे थे तब मे ऐसे ही दिव्यस्त्रों के आवहाँन कर रहा था
प्रिया:- बीचमे टोकने के लिए माफी लेकिन जुबान नही हाथ चलाने का समय है
प्रिया की बात सुनकर महागुरु ने भी अपने योध्दाओं को हमला करने के लिए कहा जिससे अब दोनों ही पक्ष आपस में पूरी तरह भीड़ चुके थे हर कोई अपने अपने तरीके से युद्ध कर रहा था
जहाँ पंचतत्व सेना अपने आप मे ही तीन संघो मे बट गयी थी
पहले संघ मे अग्नि तत्व और आकाश तत्व थे जो सारे असुरों पर अग्नि और विद्युत शक्ति का मिश्रित वार करते जा रहे थे
तो वही दूसरे संघ मे जल और पृथ्वी तत्व एक साथ थे जहाँ पृथ्वी तत्व सभी असुरों के चारों तरफ मिट्टी की परत चढ़ा देते
तो वही जल तत्व उस मिट्टी के परत मे जल को मिला कर खिचड का निर्माण कर देते और उस खिचड के कारण उन असुरों का दम घुटने लगता और वो वही मारे जाते
तो वही तीसरा संघ वायु तत्व का वायु तत्व सैनिक एक ही बार मे 4 से 5 असुरों को हवा में उड़ा कर जोर से जमीन पर पटक देते जिससे उनका खेल वही खतम हो जाता
तो वही सारे गुरु भी असुरी सेना के टुकड़ी को अकेले मारे जा रहे थे जहाँ सिँह वानर और नंदी गुरु ये तीनों अपने अपने अस्त्रों के शक्ति से पूरी के पूरी टुकड़ी को एक ही बार मे खतम कर दे रहे थे
तो वही शांति दिलावर और साहिल अपने बाहुबल और मायावी अस्त्रों के मदद से असुरी सेना का खतम किये जा रहे थे
तो वही प्रिया मायावी जादूगरों की सेना के साथ असुरी सेना पर कहर बनके गिर रही थी सारे असुरी सैनिक उसके हाथों बहुत बुरी तरीके से मर रहे थे
तो वही सबसे आखिर मे महागुरु धनुर्धर और भालों के संघ के साथ सभी असुरी सेना पर आसमान से कहर बरसा रहे थे जैसा मेने आपको पहले कहा था की मायावी धनुषों की एक खासियत है जो केवल महागुरु ही जानते है
और वो है वो सारे धनुष महागुरु के ही धनुष के प्रतिरूप है जिस कारण जो बान महागुरु के धनुष से संधान होगा वही बान अगर महागुरु चाहे तो उन सारे धनुष से एक साथ संधान किया जा सकता हैं
और इस खूबी का महागुरु बड़ी ही कुशलता से प्रयोग कर रहे थे हर बार वो किसी भी दिव्यस्त्र का वार असुरों पर करते तो वही दिव्यस्त्र उन सभी धनुर्धर सैनिकों के धनुष से भी संधान होता
और इसी युक्ति से कुछ ही देर में 1,00,000 की असुरी सेना अब केवल 50,000 की रह गयी थी जो देखकर अच्छाई के पक्ष मे एक अलग उत्साह छा गया था वो सभी और भी तेजी से असुरों को मारने मे लग गए
तो वही अपनी सेना का ये हाल होता देख कर कामिनी और मोहिनी ने अपनी शक्तियों से वहाँ मायाजाल फैलाने का प्रयास भी किया था जिसमे एक पल के लिए कामयाब भी हो गए थे
जिसमे उन्होंने पूरी असुरी सेना को अदृश्य बना दिया था जिससे एक बार फिर से अच्छाई के योद्धा जख्मी होने लगे थे की तभी महागुरु ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर शब्द वेदास्त्र का इस्तेमाल किया
जिससे देखते ही देखते अदृश्य हो चुकी असुरी सेना सबको दिखने लगी और उसके तुरंत बाद महागुरु असुरी सेना पर इंद्रास्त्र का इस्तेमाल किया और जिससे पूरी असुरी सेना पर तीरों की बारिश होने लगी थी
तो वही इससे पहले की कमीनी और मोहिनी दोनों फिर से की माया रच पाते उससे पहले ही प्रिया और शांति ने उन दोनों पर हमला बोल दिया
तो वही इस सब के बाद असुरी सेना की संख्या अब केवल 25,000 ही रह गयी थी तो वही अच्छाई के पक्ष मे अब तक केवल 400 se 450 योध्दा शहीद हुए थे
तो वही ये युद्ध मायावी गोले के मदद से शुक्राचार्य और मायासुर भी देख रहे थे और ये सब देखकर जहाँ मायासुर क्रोध में था तो वही शुक्राचार्य पूरी लडाई गौर से देख रहा था
मायासुर:- इन्होंने क्या हाल कर दिया है हमारे सेना का अब मे उन्हे छोडूंगा नही मे खुद इन्हे खतम करूँगा
इतना बोलके मायासुर वहा से जाने लगा तो वही मायासुर को जाते देख कर शुक्राचार्य ने उसका हाथ पकड़ कर रोक दिया
शुक्राचार्य:- रुक जाओ मायासुर अभी इस युद्ध मे तुम्हारी बारी नही आई है अब अपने महाकाय असुरों को भेजो और उनके साथ विध्वंशक और उसके पांचो साथियों को भी भेजो जिससे राघवेंद्र के दिव्यस्त्र भी किसी काम के न रहे
मायासुर :- जो आज्ञा गुरुवर
वही युद्ध के मैदान में महागुरु ने अग्नये अस्त्र से युद्ध खतम करना चाहा और फिर अपने धनुष से उस अस्त्र को छोड़ भी दिया जिससे वहा बचे कुचे असुरों पर आग की बड़ी लहर गिरने लगी
लेकिन इससे पहले की असुरी सेना को कोई हानि पहुंचा पाती उससे पहले ही वहा एक बड़ी पानी की लहर आ गयी जिसने उस आग की लहर को बुझा दिया जो देखकर सभी हैरान हो गए थे
और जब सबने उस दिशा में देखा जहाँ से वो लहर आई थी तो वहा पर इस वक़्त कुल 10 असुर थे जिनकी ऊँचाई किसी पर्वत समान थी और उन 10 मेसे 6 असुर कुछ अलग ही दिख रहे थे
और बाकी 4 आम महाकाय असुर दिख रहे थे तो वही जहाँ उन्हे देख कर सभी दंग थे की तभी उन 6 मेसे एक ने अपने धनुष से तिर छोड़ा जो सीधा धनुर्धर टुकड़ी के उपर गया और
जैसे ही वो तिर धनुर्धर टुकड़ी के उपर पहुंचा वैसे ही उस सैन्य टुकड़ी पर अचानक बड़ी बड़ी चट्टाने गिरने लगी जो देखकर महागुरु और बाकी सब दंग रह गए
महागुरु :- (मन में) पहले वरुणास्त्र और अब पर्वतास्त्र ये कोई आम असुर नही है इनसे लड़ने के लिए मुझे अपना पुरा जोर लगाना होगा
इतना सोचते ही महागुरु सतर्क हो गए और उन्होंने तुरंत ही उन असुरों पर फिर से एक बार इंद्रस्त्र के मदद से तीरों की बारिश कर दी लेकिन तभी उस असुर ने भी अपने धनुष से अंतर्ध्यनास्त्र को छोड़ दिया
जिसने उन सारे तीरों को कही गायब कर दिया और फिर तुरंत ही उसने महागुरु पर और अच्छाई के पक्ष पर नागास्त्र से वार कर दिया जिससे हर तरफ भयंकर और विषैले सर्प आ गए जिन्हे देखकर महागुरु ने तुरंत अपने गरूड़ा अस्त्र का वार कर दिया
जिससे हर तरफ भयंकर गरुड़ आ गए जिन्होंने सारे सर्पों को देखते ही देखते खतम कर दिया और फिर उन दोनों के बीच शुरू हुआ युद्ध जिसमे दोनों भी अपने अपने अस्त्रों का इस्तेमाल एक दूसरे पर कर रहे थे
की तभी उस असुर ने महागुरु पर वरुणापाश से वार किया और इससे पहले की महागुरु उससे बच पाते की उस पाश ने महागुरु को अपने कब्जे मे ले लिया
और ये देखते ही सभी का ध्यान उस तरफ चला गया और नाजाने किस वजह से लेकिन सारे अस्त्र धारक गुरुओं की जो अस्त्र ऊर्जा थी वो गायब हो गयी थी जैसे कि उनके अस्त्र भी निष्क्रिय हो गए है और इसी बात का फायदा उठा कर सारे असुरों ने हारे हुए युद्ध को और सभी योद्धाओं को वापस अपने कब्जे मे ले लिया
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आज के लिए इतना ही
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Woh nind ki dawa leke so Gaya haiNice update bhai ji lekin Ye bhadra kahan hai