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Fantasy ब्रह्माराक्षस

Rohit1988

Well-Known Member
2,349
7,224
158
अध्याय बावन

जहाँ एक तरफ युद्ध हाथ से निकलता जा रहा था सारे अच्छाई के सिपाही बहुत बुरी तरह जख्मी हो गए थे और सारे गुरुओं को उन खास असुरों ने वरुण पाश मे कैद कर लिया था

जो देख कर मायासुर और शुक्राचार्य दोनों भी अपने जीत पर खुशियाँ मना रहे थे की तभी अटल लोक की जमीन हिलने लगी वहा अचानक से एक तेज भूकंप आने लगा जिससे वहा खड़े सबका संतुलन बिगड़ गया

तो वही दूसरी तरफ इस वक्त मे उसी अंधेरी जगह पर मे जमीन मे बैठे कर ध्यान लगाकर अपने सारे शक्तियों को काबू करने मे लगा हुआ था मुझे पता भी नही चल रहा था कि मुझे ध्यान लगते कितना समय हो गया है या कितने दिन हो गए है


मे केवल अपने अंदर वास कर रही सारी शक्तियों को काबू करने मे लगा हुआ था जिस दौरान मुझे कुछ ऐसी शक्तियाँ भी दिखती जिनको पहले मुझे आजाद करना पड़ता और फिर उन्हे काबू करना पड़ता

जिनमे अब तक वो शिबू का सिंहासन भी था और साथ मे एक और चीज भी थी और वो थी शैतानी गदा जो की उस शैतान के पास से मेरे शरीर में समा गयी थी (अध्याय उँतिस)

जिसे काबू करते हुए मुझे अब तक सबसे ज्यादा समय लगा था और पीड़ा भी सर्वाधिक हुई थी और उस गदा को काबू करते ही मेरे मस्तिष्क मे बहुत सारे चित्र दिखने लगे थे

तो वही अभी भी मुझे कुमार की आवाज नही सुनाई दी थी जिस वजह से मे बिना रुके ध्यान में बैठ कर अपनी शक्तियों को काबू पाने के सफर में आगे बढ़ते जा रहा था


की उसके बाद मुझे वहा 6 अलग अलग रंग के ऊर्जा गोले दिखते जा रहे थे जो की किसी अजीब से बंधन बंधे हुए थे जिनको मैने जैसे ही आज़ाद कराया वैसे ही वो 6 के 6 गोले एक साथ मेरे तरफ बढ़ने लगे

और इससे पहले की मे कुछ करता उससे पहले ही वो सभी गोले किसी बंदूक के गोली समान मेरे शरीर में समा गए और जैसे ही वो गोले मेरे शरीर के अंदर समा गए वैसे ही मेरे सामने कुछ चित्र बनकर आ गए

जिन्हे देखकर मे दंग रह गया और अभी मे उन चित्रों को ध्यान से देख पता उससे पहले ही मेरे शरीर में इतनी तीर्व पीड़ा होने लगी की मानो जैसे कोई मेरे शरीर को जबरदस्ती खींच कर 2 हिस्सों में बाँट रहा हो

और इसी वजह से मेरी चीखे निकालने लगी जिसके बाद मैने जैसे तैसे करके अपने दर्द को काबू किया और फिर धीरे धीरे मेरा दर्द भी कम हो गया था और अभी मुझे थोड़ी राहत मिली थी

कि तभी मेरे शरीर को झटके लगने लगे ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे शरीर मे एक साथ बहुत सारे विस्फोटक फटने लगे थे और इससे पहले की मे कुछ समझ पाता मेरा शरीर किसी अंगार के तरह जलने लगा

जिसे मे जितनी शांत करने का प्रयास करता उतनी ही तेजी से मेरे शरीर में गर्मी फैलती और आखिर मे ऐसा लगा की जैसे मेरा शरीर ही फट गया हो जिस कारण से मे वही उसी जगह पर बेहोश हो गया

और जब मुझे होश आया तो मे अभी भी उसी जगह पर था और मेरे सामने इस वक़्त कुमार खड़ा था जिसके चेहरे पर हल्के चिंता के बादल दिख रहे थे

कुमार:- क्या हुआ भद्रा तुम ठीक तो हो

मे:- हा मे ठीक हूँ बस थोड़ा बदन दर्द कर रहा है वैसे तुम इतने चिंता मे क्यों हो

कुमार:- एक दुःखद समाचार है

मै :- (चिंता से) क्या हुआ सब ठीक तो है न

कुमार:- युद्ध आरंभ हो गया है और अब बाजी हमारे हाथ से निकल चुकी हैं और अगर हमने जल्दी नही की तो संसार पर बुराई का राज हो जायेगा लेकिन

मै :- लेकिन क्या मुझे पूरी बात बताओ

कुमार :- तुम्हारी हालत अभी ठीक नहीं है कि तुम इस सफर को अंत तक ले जाओ तुम्हे आराम की जरूरत है लेकिन हमारे पास उतना समय नही है

मै :- तुम चिंता मत करो मे बिल्कुल ठीक हूँ भी तुम मुझे ये बताओ अब आगे मेरी कोनसी शक्ति को आज़ाद करना है

कुमार :- अब तुम्हे तुम्हारी सबसे ताकतवर और सबसे महत्वपूर्ण शक्ति को पचनना है और वो है तुम्हारी पहचान तुम्हारा अस्तित्व

इतना बोलके कुमार तुरंत मेरे अंदर समा गया और उसके समाते ही मेरे आँखों के सामने शुरवात से सबकुछ दिखने लगा (अध्याय 1 से अबतक) सब कुछ मे देख पा रहा था मे सुन पा रहा था मे महसुस कर सकता था

और जब मुझे मेरे असलियत का बोध हुआ तो मुझे ऐसे लगने लगा की जैसे मेरे अंदर का शक्तियों के समुद्र मे अचानक से सुनामी आ गयी हो जिससे मेरे पूरे शरीर को फिर से झटके लगने लगे


और उस वजह से मेरी आँखे फिर एक बार बंद होने लगी थी और जब मैने अपनी आँखे खोली तो मे इस वक़्त अपनी कुटिया मे था जहाँ मेरे शरीर पर कुछ पट्टी बंधी हुई थी

और मेरे सर के पास मे मुझे जल अग्नि और कालास्त्र रखे हुए मिल गए जिन्हे देखकर मेरे होंठों पर मुस्कान छा गयी हुआ यू की जब सभी अस्त्रों के युं एकाएक निष्क्रिय होने पर चर्चा कर रहे थे

की तभी महागुरु को इस बात का अंदाजा हो गया था कि शायद पृथ्वी अस्त्र जैसे बाकी अस्त्रों ने भी मुझे अपना धारक चुन लिया हो लेकिन उन्हे इस बात पर पुरा यकीन नहीं था


क्योंकि इसके होने के शक्यताएं बहुत ही कम थी क्योंकि उनके ज्ञान अनुसार किसी एक ही धारक का बहुस्त्रों को धारण करना नामुंकिन था लेकिन फिर भी उन्होंने इसे परखने के लिए ये सभी अस्त्र मेरे सर के पास रख दिये थे

तो वही मेरे होश मे आते ही वो सभी अस्त्र चमकने लगे और मेरे शरीर मे समा गए जिसके बाद में पूरी तेजी से धरती की परत को तोड़ते हुए सीधा अटल लोक पहुँच गया अटल लोक तामसिक शक्तियों को आरंभ स्थान था

जिस कारण वहा उतरते ही मेरी राक्षसी शक्तियों का भी प्रमाण बढ़ गया था जिस वजह से मेरे शरीर से एक ऊर्जा लहर निकली और उस लहर के निकलने के साथ ही पूरे अटल लोक में भूकंप आ गया

जिससे हर जगह हड़कंप मच गया तो वही मेरे सामने अब युद्ध का मैदान था जिसमे मेरे सभी प्रियजनों को बंदी बनाकर रखा था जो देखकर मेरी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और फिर मैने अपनी शैतानी गदा को याद किया


जिसके तुरंत बाद वो गदा मेरे हाथ मे आ गयी जिसके तुरंत बाद मैने वो गदा उन असुरों पर फेक के मारी जिससे वो गदा एक के बाद एक सभी असुर सैनिकों को चीरते हुए मेरे पास वापस आ गयी

जब वो गदा मेरे पास वापस आई तो पूरी तरीके से रक्तरंजित हो गयी थी तो वही जब उन महासुरों ne सभी असुरों को एक एक करके जमीन पर गिरते देखा तो वो सभी दंग हो गए थे और उन्ही के साथ सभी गुरुओं को भी हैरानी हुई थी और


इससे पहले की कोई कुछ कर पाता मे उस युद्ध के मैदान में अंदर प्रवेश कर गया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

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Fabulous update bro
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
21,916
57,980
259
अध्याय बावन

जहाँ एक तरफ युद्ध हाथ से निकलता जा रहा था सारे अच्छाई के सिपाही बहुत बुरी तरह जख्मी हो गए थे और सारे गुरुओं को उन खास असुरों ने वरुण पाश मे कैद कर लिया था

जो देख कर मायासुर और शुक्राचार्य दोनों भी अपने जीत पर खुशियाँ मना रहे थे की तभी अटल लोक की जमीन हिलने लगी वहा अचानक से एक तेज भूकंप आने लगा जिससे वहा खड़े सबका संतुलन बिगड़ गया

तो वही दूसरी तरफ इस वक्त मे उसी अंधेरी जगह पर मे जमीन मे बैठे कर ध्यान लगाकर अपने सारे शक्तियों को काबू करने मे लगा हुआ था मुझे पता भी नही चल रहा था कि मुझे ध्यान लगते कितना समय हो गया है या कितने दिन हो गए है


मे केवल अपने अंदर वास कर रही सारी शक्तियों को काबू करने मे लगा हुआ था जिस दौरान मुझे कुछ ऐसी शक्तियाँ भी दिखती जिनको पहले मुझे आजाद करना पड़ता और फिर उन्हे काबू करना पड़ता

जिनमे अब तक वो शिबू का सिंहासन भी था और साथ मे एक और चीज भी थी और वो थी शैतानी गदा जो की उस शैतान के पास से मेरे शरीर में समा गयी थी (अध्याय उँतिस)

जिसे काबू करते हुए मुझे अब तक सबसे ज्यादा समय लगा था और पीड़ा भी सर्वाधिक हुई थी और उस गदा को काबू करते ही मेरे मस्तिष्क मे बहुत सारे चित्र दिखने लगे थे

तो वही अभी भी मुझे कुमार की आवाज नही सुनाई दी थी जिस वजह से मे बिना रुके ध्यान में बैठ कर अपनी शक्तियों को काबू पाने के सफर में आगे बढ़ते जा रहा था


की उसके बाद मुझे वहा 6 अलग अलग रंग के ऊर्जा गोले दिखते जा रहे थे जो की किसी अजीब से बंधन बंधे हुए थे जिनको मैने जैसे ही आज़ाद कराया वैसे ही वो 6 के 6 गोले एक साथ मेरे तरफ बढ़ने लगे

और इससे पहले की मे कुछ करता उससे पहले ही वो सभी गोले किसी बंदूक के गोली समान मेरे शरीर में समा गए और जैसे ही वो गोले मेरे शरीर के अंदर समा गए वैसे ही मेरे सामने कुछ चित्र बनकर आ गए

जिन्हे देखकर मे दंग रह गया और अभी मे उन चित्रों को ध्यान से देख पता उससे पहले ही मेरे शरीर में इतनी तीर्व पीड़ा होने लगी की मानो जैसे कोई मेरे शरीर को जबरदस्ती खींच कर 2 हिस्सों में बाँट रहा हो

और इसी वजह से मेरी चीखे निकालने लगी जिसके बाद मैने जैसे तैसे करके अपने दर्द को काबू किया और फिर धीरे धीरे मेरा दर्द भी कम हो गया था और अभी मुझे थोड़ी राहत मिली थी

कि तभी मेरे शरीर को झटके लगने लगे ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे शरीर मे एक साथ बहुत सारे विस्फोटक फटने लगे थे और इससे पहले की मे कुछ समझ पाता मेरा शरीर किसी अंगार के तरह जलने लगा

जिसे मे जितनी शांत करने का प्रयास करता उतनी ही तेजी से मेरे शरीर में गर्मी फैलती और आखिर मे ऐसा लगा की जैसे मेरा शरीर ही फट गया हो जिस कारण से मे वही उसी जगह पर बेहोश हो गया

और जब मुझे होश आया तो मे अभी भी उसी जगह पर था और मेरे सामने इस वक़्त कुमार खड़ा था जिसके चेहरे पर हल्के चिंता के बादल दिख रहे थे

कुमार:- क्या हुआ भद्रा तुम ठीक तो हो

मे:- हा मे ठीक हूँ बस थोड़ा बदन दर्द कर रहा है वैसे तुम इतने चिंता मे क्यों हो

कुमार:- एक दुःखद समाचार है

मै :- (चिंता से) क्या हुआ सब ठीक तो है न

कुमार:- युद्ध आरंभ हो गया है और अब बाजी हमारे हाथ से निकल चुकी हैं और अगर हमने जल्दी नही की तो संसार पर बुराई का राज हो जायेगा लेकिन

मै :- लेकिन क्या मुझे पूरी बात बताओ

कुमार :- तुम्हारी हालत अभी ठीक नहीं है कि तुम इस सफर को अंत तक ले जाओ तुम्हे आराम की जरूरत है लेकिन हमारे पास उतना समय नही है

मै :- तुम चिंता मत करो मे बिल्कुल ठीक हूँ भी तुम मुझे ये बताओ अब आगे मेरी कोनसी शक्ति को आज़ाद करना है

कुमार :- अब तुम्हे तुम्हारी सबसे ताकतवर और सबसे महत्वपूर्ण शक्ति को पचनना है और वो है तुम्हारी पहचान तुम्हारा अस्तित्व

इतना बोलके कुमार तुरंत मेरे अंदर समा गया और उसके समाते ही मेरे आँखों के सामने शुरवात से सबकुछ दिखने लगा (अध्याय 1 से अबतक) सब कुछ मे देख पा रहा था मे सुन पा रहा था मे महसुस कर सकता था

और जब मुझे मेरे असलियत का बोध हुआ तो मुझे ऐसे लगने लगा की जैसे मेरे अंदर का शक्तियों के समुद्र मे अचानक से सुनामी आ गयी हो जिससे मेरे पूरे शरीर को फिर से झटके लगने लगे


और उस वजह से मेरी आँखे फिर एक बार बंद होने लगी थी और जब मैने अपनी आँखे खोली तो मे इस वक़्त अपनी कुटिया मे था जहाँ मेरे शरीर पर कुछ पट्टी बंधी हुई थी

और मेरे सर के पास मे मुझे जल अग्नि और कालास्त्र रखे हुए मिल गए जिन्हे देखकर मेरे होंठों पर मुस्कान छा गयी हुआ यू की जब सभी अस्त्रों के युं एकाएक निष्क्रिय होने पर चर्चा कर रहे थे

की तभी महागुरु को इस बात का अंदाजा हो गया था कि शायद पृथ्वी अस्त्र जैसे बाकी अस्त्रों ने भी मुझे अपना धारक चुन लिया हो लेकिन उन्हे इस बात पर पुरा यकीन नहीं था


क्योंकि इसके होने के शक्यताएं बहुत ही कम थी क्योंकि उनके ज्ञान अनुसार किसी एक ही धारक का बहुस्त्रों को धारण करना नामुंकिन था लेकिन फिर भी उन्होंने इसे परखने के लिए ये सभी अस्त्र मेरे सर के पास रख दिये थे

तो वही मेरे होश मे आते ही वो सभी अस्त्र चमकने लगे और मेरे शरीर मे समा गए जिसके बाद में पूरी तेजी से धरती की परत को तोड़ते हुए सीधा अटल लोक पहुँच गया अटल लोक तामसिक शक्तियों को आरंभ स्थान था

जिस कारण वहा उतरते ही मेरी राक्षसी शक्तियों का भी प्रमाण बढ़ गया था जिस वजह से मेरे शरीर से एक ऊर्जा लहर निकली और उस लहर के निकलने के साथ ही पूरे अटल लोक में भूकंप आ गया

जिससे हर जगह हड़कंप मच गया तो वही मेरे सामने अब युद्ध का मैदान था जिसमे मेरे सभी प्रियजनों को बंदी बनाकर रखा था जो देखकर मेरी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और फिर मैने अपनी शैतानी गदा को याद किया


जिसके तुरंत बाद वो गदा मेरे हाथ मे आ गयी जिसके तुरंत बाद मैने वो गदा उन असुरों पर फेक के मारी जिससे वो गदा एक के बाद एक सभी असुर सैनिकों को चीरते हुए मेरे पास वापस आ गयी

जब वो गदा मेरे पास वापस आई तो पूरी तरीके से रक्तरंजित हो गयी थी तो वही जब उन महासुरों ne सभी असुरों को एक एक करके जमीन पर गिरते देखा तो वो सभी दंग हो गए थे और उन्ही के साथ सभी गुरुओं को भी हैरानी हुई थी और


इससे पहले की कोई कुछ कर पाता मे उस युद्ध के मैदान में अंदर प्रवेश कर गया

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आज के लिए इतना ही

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Ati uttam👍 bohot hi umda vivran diya hai vhadra ki saktiyo ke baare me or bohot hi shandar update 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
Dekhte hai ki bhadra kaise un asuro ki leta hai :D . Awesome story :superb:
👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻💯🔥🔥🔥🔥❣️❣️❣️❣️❣️
 

VAJRADHIKARI

Hello dosto
1,452
17,260
144
अध्याय तिरेपन

मेरे सामने अब युद्ध का मैदान था जिसमे मेरे सभी प्रियजनों को बंदी बनाकर रखा था जो देखकर मेरी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और फिर मैने अपनी शैतानी गदा को याद किया

जिसके तुरंत बाद वो गदा मेरे हाथ मे आ गयी जिसके तुरंत बाद मैने वो गदा उन असुरों पर फेक के मारी जिससे वो गदा एक के बाद एक सभी असुर सैनिकों को चीरते हुए मेरे पास वापस आ गयी

जब वो गदा मेरे पास वापस आई तो पूरी तरीके से रक्तरंजित हो गयी थी तो वही जब उन महासुरों ने सभी असुरों को एक एक करके जमीन पर गिरते देखा तो वो सभी दंग हो गए थे और उन्ही के साथ सभी गुरुओं को भी हैरानी हुई थी और

इससे पहले की कोई कुछ कर पाता मे उस युद्ध के मैदान में अंदर प्रवेश कर गया और जब सबने मुझे वहा देखा तो सारे अच्छाई योद्धा खुश हो गए और ये भी कहा जाए तो उन सबके अंदर एक नई ऊर्जा नया जोश आ गया था

तो वही सारे गुरु भी मुझे सही सलामत देखकर खुश थे तो वही जब मायासुर ने मुझे वहा देखा तो उसने तुरंत शुक्राचार्य को मेरे बारे में बताया

जिसके बाद शुक्राचार्य ने उस विध्वंशक और उसके साथियों को मुझे उनके दिव्यास्त्रों से मारने का हुकुम दिया जिसका पालन करते हुए उस विध्वंशक (धनुष वाला असुर) ने मुझपर सबसे पहले पर्वतास्त्र से वार किया

और जब वो मुझ पर वार कर रहा था की तभी मेरा ध्यान भी उनके तरफ गया जो देखकर मैने तुरंत ही अपने सप्तस्रों ताकत को जाग्रुत किया जिससे वहा एक साथ तीन चीखे सुनाई दी

जो किसी और की नही बल्कि गुरु सिंह, नंदी और वानर की थी क्योंकि जैसे ही मैने अपनी ऊर्जा को जाग्रुत किया वैसे ही उन तीनों के शरीर मे कैद बाकी तीनों अस्त्र भी तुरंत उनके शरीर से निकल के आ गए

जिस वजह से उन्हे हल्की पीड़ा होने लगी थी लेकिन वो उसे सहन करने मे सक्षम थे लेकिन उस पीड़ा के बाद जो उन्हे सदमा लगा उस वहा युद्ध मैदान मे ही क्या बल्कि वहा से कोसों दूर खड़े शुक्राचार्य और मायासुर भी नही सह पाए थे

क्योंकि जिन अस्त्रों को वो सभी सबसे महान शक्ति और ताकतवर शक्ति मानते थे वो शक्ति के सातों भाग मेरे शरीर के चारों तरफ गोल गोल घूम रहे थे

तो वही उस असुर द्वारा चलाया हुआ पर्वतास्त्र मुझ पर पर्वतों की बारिश कर रहा था पृथ्वी अस्त्र ने उन पर्वतों को फूलों मे बदल दिये थे

तो वही उन सप्तस्त्रों को मेरे शरीर में एकत्रित समाते देख कर शुक्राचार्य ने तुरंत ही मायासुर को तुरंत ही ये युद्ध रोकने के लिए कहा

लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी क्योंकि जैसे ही वो सप्तस्त्र मेरे अंदर समाये वैसे ही मैने अग्नि अस्त्र का आवहांन किया और देखते ही देखते वहा मौजूद सारे जीवित और म्रुत असुर जल के राख हो गए थे खुद विध्वंशक का विध्वंश हो गया था

जो देखकर मोहिनी और कामिनी पहले ही भाग गयी थी तो वही मायासुर ने जब अपने इतने शक्तिशाली योद्धाओं को मरते देखा तो वो गुस्से से आग बबुला होने लगा और वो अपने क्रोध के आवेश मे आकर कोई गलती करता उससे पहले शुक्राचार्य ने उसे रोक लिया

शुक्राचार्य :- मायासुर क्रोध मे बुद्धि का त्याग मत करो अब बाजी हमारे हाथों से निकल चुकी हैं उस लड़के के पास पहले सिर्फ एक ही अस्त्र था तब भी उसने तुम्हारी हालत खराब कर दी थी लेकिन अब उसके पास तो सातों अस्त्रों की शक्ति है और साथ मे शिबू ने उसे और कितनी शक्तियां दी है वो भी हमे पता नही है इसीलिए भलाई इसी मे है कि फिलहाल हम अपने अभियान पर ध्यान केंद्रित करे

मायासुर :- ji गुरु देव तो अब आप ही मुझे पथ प्रदर्शित करे

मायासुर की बात सुनकर शुक्राचार्य ने अपना हाथ उठाया और उनके हाथों में एक काले रंग की रोशनी मे चमचमाती तलवार आ गयी जो उन्होंने मायासुर के तरफ बढ़ा दी जिसे देखकर मायासुर दंग रह गया

मायासुर :- गुरुवर कही ये तलवार वो... वो

शुक्राचार्य :- बिल्कुल सही पहचाना ये वही अस्त्र है जो तुमने उस ढोंगी से मंगाई थी

मायासुर :- क्या उसने इसे ढूंढ लिया था मुझे लगा नही था

शुक्राचार्य:- वो इस काबिल था ही नही की वो इस स्तर की शक्ति को ढूंढ पाए इसे मैने ही छुपाया था सही समय के इंतज़ार में और आज वो समय पुरा हुआ जाओ योजना के अगले चरण का आगाज करो और हर कदम फुक फुक कर रखना क्योंकि जीत के इस मुकाम पर आके अगर मुझे हार का मुह देखना पडा तो सौगंध है मुझे मेरे इष्ट प्रभु आदिदेव की इस पूरे संसार मे मौत का ऐसा नाच होगा कि देव असुर मनुष्य प्राणी सब वो कहर देखेंगे कि उम्मीद तक किसीने नही की होगी

शुक्राचार्य की क्रोध से भरी आवाज सुन कर मायासुर का शरीर भी भय से कांप रहा था इसीलिए उसने वहा रुकना और ठीक नहीं समझा

मायासुर :- जो आपकी आज्ञा गुरुदेव

इतना बोलकर मायासुर वहा से गायब हो गया और उसके बाद शुक्राचार्य भी अपने ध्यान मे बैठ गये

तो वही दूसरी तरफ सभी असुरों को मारने के बाद मैने सबको वरुणपाश से आजाद कराया सब अभी भी मेरे कारनामे से दंग थे केवल महागुरु थे जिनके चेहरे पर परेशानी न होकर एक जंग जीती मुस्कान थी

और जैसे ही वो आजाद हुए वैसे ही उन्होंने अपना धनुष उठाया और उसकी प्रत्यंचा खिचने लगे जिससे जल्द ही उनके धनुष पर विसोशन अस्त्र आ गया और जैसे ही महागुरु ने उस अस्त्र को आसमान मे छोड़ा

वैसे ही उस अस्त्र के परिणाम से सारे जख्मी सिपाही और योद्धा फिर से ठीक हो गए और सब मेरी जयकार लगाने लगे जो देखते हुए महागुरु ने एक और तिर आसमान में चलाया

जिससे मेरे उपर सुगंधित फूलों की वर्षा होने लगी थी जिसके बाद सब लोग और जोश के साथ मेरे नाम की जयकारा लगाने लगे सब लोग चाहते थे की वो मुझे अपने कंधे पे उठाकर ले चले

और इसीलिए वो आगे बढ़ने वाले थे की मैने उन्हे रोक दिया और फिर मे महागुरु और बाकी गुरुओं के सामने पहुंच जो की मेरी इस जीत से खुश थे और मुझसे बहुत ज्यादा सवाल जवाब करने वाले थे

लेकिन उतना समय अभी मेरे पास नही था क्योंकि हर बितते वक़्त के साथ मेरे कानों मे मेरे जहन में शरीर के रोम रोम में मुझे मेरे माता पिता की पुकार उनका दर्द से करहना उनके पीड़ा से बहते आँसू उनका वो विलाप गूंज रहा था

मे चाहता तो अपनी असलियत का पता चलते ही मे उन्हे बचाने चला जाता लेकिन अगर मुझे यहाँ आने मे जरा भी देरी होती तो इस अच्छाई और बुराई के जंग मे बुराई जीत जाती और उसके बदले मे अच्छाई को अपने इतने सारे काबिल योद्धा खोने पड़ते

और इसके लिए मेरे माता पिता ही क्या मे भी खुदको माफ नहीं कर पाता परंतु अब युद्ध हम जीत गए थे और अब मेरा एक पल भी यहाँ रुकना सही नही था इसीलिए मे वहा से जाने लगा लेकिन तभी महागुरु ने मुझे रोक दिया

महागुरु :- किधर जा रहे हो भद्रा आज तुमने इतनी बड़ी जीत अपने नाम की है उसके बाद भी तुम्हारे मुख की परेशानी अभी तक बरकरार है

मे :- महागुरु मे जानता हूँ कि आप सबके मन में आज के बारे में बहुत सारे सवाल होंगे लेकिन अभी मुझे एक सबसे महत्वपूर्ण काम करना है मुझे आज्ञा दे

इतना बोलके मे बिना उनकी कोई बात सुने निकल आया लेकिन वहाँ से मे अकेले नही निकला था कोई था जो मेरे गति के बराबर ही उड़ते हुए मेरे पास आ गया था

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

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Shekhu69

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Bahut hi shaandaar Lajawab update dekhte hain ki bhadra kaise apne mata pita ko chudwata hai very nice
 

Rohit1988

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अध्याय तिरेपन

मेरे सामने अब युद्ध का मैदान था जिसमे मेरे सभी प्रियजनों को बंदी बनाकर रखा था जो देखकर मेरी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और फिर मैने अपनी शैतानी गदा को याद किया

जिसके तुरंत बाद वो गदा मेरे हाथ मे आ गयी जिसके तुरंत बाद मैने वो गदा उन असुरों पर फेक के मारी जिससे वो गदा एक के बाद एक सभी असुर सैनिकों को चीरते हुए मेरे पास वापस आ गयी

जब वो गदा मेरे पास वापस आई तो पूरी तरीके से रक्तरंजित हो गयी थी तो वही जब उन महासुरों ने सभी असुरों को एक एक करके जमीन पर गिरते देखा तो वो सभी दंग हो गए थे और उन्ही के साथ सभी गुरुओं को भी हैरानी हुई थी और


इससे पहले की कोई कुछ कर पाता मे उस युद्ध के मैदान में अंदर प्रवेश कर गया और जब सबने मुझे वहा देखा तो सारे अच्छाई योद्धा खुश हो गए और ये भी कहा जाए तो उन सबके अंदर एक नई ऊर्जा नया जोश आ गया था

तो वही सारे गुरु भी मुझे सही सलामत देखकर खुश थे तो वही जब मायासुर ने मुझे वहा देखा तो उसने तुरंत शुक्राचार्य को मेरे बारे में बताया

जिसके बाद शुक्राचार्य ने उस विध्वंशक और उसके साथियों को मुझे उनके दिव्यास्त्रों से मारने का हुकुम दिया जिसका पालन करते हुए उस विध्वंशक (धनुष वाला असुर) ने मुझपर सबसे पहले पर्वतास्त्र से वार किया

और जब वो मुझ पर वार कर रहा था की तभी मेरा ध्यान भी उनके तरफ गया जो देखकर मैने तुरंत ही अपने सप्तस्रों ताकत को जाग्रुत किया जिससे वहा एक साथ तीन चीखे सुनाई दी


जो किसी और की नही बल्कि गुरु सिंह, नंदी और वानर की थी क्योंकि जैसे ही मैने अपनी ऊर्जा को जाग्रुत किया वैसे ही उन तीनों के शरीर मे कैद बाकी तीनों अस्त्र भी तुरंत उनके शरीर से निकल के आ गए

जिस वजह से उन्हे हल्की पीड़ा होने लगी थी लेकिन वो उसे सहन करने मे सक्षम थे लेकिन उस पीड़ा के बाद जो उन्हे सदमा लगा उस वहा युद्ध मैदान मे ही क्या बल्कि वहा से कोसों दूर खड़े शुक्राचार्य और मायासुर भी नही सह पाए थे

क्योंकि जिन अस्त्रों को वो सभी सबसे महान शक्ति और ताकतवर शक्ति मानते थे वो शक्ति के सातों भाग मेरे शरीर के चारों तरफ गोल गोल घूम रहे थे

तो वही उस असुर द्वारा चलाया हुआ पर्वतास्त्र मुझ पर पर्वतों की बारिश कर रहा था पृथ्वी अस्त्र ने उन पर्वतों को फूलों मे बदल दिये थे

तो वही उन सप्तस्त्रों को मेरे शरीर में एकत्रित समाते देख कर शुक्राचार्य ने तुरंत ही मायासुर को तुरंत ही ये युद्ध रोकने के लिए कहा

लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी क्योंकि जैसे ही वो सप्तस्त्र मेरे अंदर समाये वैसे ही मैने अग्नि अस्त्र का आवहांन किया और देखते ही देखते वहा मौजूद सारे जीवित और म्रुत असुर जल के राख हो गए थे खुद विध्वंशक का विध्वंश हो गया था

जो देखकर मोहिनी और कामिनी पहले ही भाग गयी थी तो वही मायासुर ने जब अपने इतने शक्तिशाली योद्धाओं को मरते देखा तो वो गुस्से से आग बबुला होने लगा और वो अपने क्रोध के आवेश मे आकर कोई गलती करता उससे पहले शुक्राचार्य ने उसे रोक लिया

शुक्राचार्य :- मायासुर क्रोध मे बुद्धि का त्याग मत करो अब बाजी हमारे हाथों से निकल चुकी हैं उस लड़के के पास पहले सिर्फ एक ही अस्त्र था तब भी उसने तुम्हारी हालत खराब कर दी थी लेकिन अब उसके पास तो सातों अस्त्रों की शक्ति है और साथ मे शिबू ने उसे और कितनी शक्तियां दी है वो भी हमे पता नही है इसीलिए भलाई इसी मे है कि फिलहाल हम अपने अभियान पर ध्यान केंद्रित करे

मायासुर :- ji गुरु देव तो अब आप ही मुझे पथ प्रदर्शित करे

मायासुर की बात सुनकर शुक्राचार्य ने अपना हाथ उठाया और उनके हाथों में एक काले रंग की रोशनी मे चमचमाती तलवार आ गयी जो उन्होंने मायासुर के तरफ बढ़ा दी जिसे देखकर मायासुर दंग रह गया

मायासुर :- गुरुवर कही ये तलवार वो... वो

शुक्राचार्य :- बिल्कुल सही पहचाना ये वही अस्त्र है जो तुमने उस ढोंगी से मंगाई थी

मायासुर :- क्या उसने इसे ढूंढ लिया था मुझे लगा नही था

शुक्राचार्य:- वो इस काबिल था ही नही की वो इस स्तर की शक्ति को ढूंढ पाए इसे मैने ही छुपाया था सही समय के इंतज़ार में और आज वो समय पुरा हुआ जाओ योजना के अगले चरण का आगाज करो और हर कदम फुक फुक कर रखना क्योंकि जीत के इस मुकाम पर आके अगर मुझे हार का मुह देखना पडा तो सौगंध है मुझे मेरे इष्ट प्रभु आदिदेव की इस पूरे संसार मे मौत का ऐसा नाच होगा कि देव असुर मनुष्य प्राणी सब वो कहर देखेंगे कि उम्मीद तक किसीने नही की होगी

शुक्राचार्य की क्रोध से भरी आवाज सुन कर मायासुर का शरीर भी भय से कांप रहा था इसीलिए उसने वहा रुकना और ठीक नहीं समझा

मायासुर :- जो आपकी आज्ञा गुरुदेव

इतना बोलकर मायासुर वहा से गायब हो गया और उसके बाद शुक्राचार्य भी अपने ध्यान मे बैठ गये


तो वही दूसरी तरफ सभी असुरों को मारने के बाद मैने सबको वरुणपाश से आजाद कराया सब अभी भी मेरे कारनामे से दंग थे केवल महागुरु थे जिनके चेहरे पर परेशानी न होकर एक जंग जीती मुस्कान थी

और जैसे ही वो आजाद हुए वैसे ही उन्होंने अपना धनुष उठाया और उसकी प्रत्यंचा खिचने लगे जिससे जल्द ही उनके धनुष पर विसोशन अस्त्र आ गया और जैसे ही महागुरु ने उस अस्त्र को आसमान मे छोड़ा

वैसे ही उस अस्त्र के परिणाम से सारे जख्मी सिपाही और योद्धा फिर से ठीक हो गए और सब मेरी जयकार लगाने लगे जो देखते हुए महागुरु ने एक और तिर आसमान में चलाया

जिससे मेरे उपर सुगंधित फूलों की वर्षा होने लगी थी जिसके बाद सब लोग और जोश के साथ मेरे नाम की जयकारा लगाने लगे सब लोग चाहते थे की वो मुझे अपने कंधे पे उठाकर ले चले

और इसीलिए वो आगे बढ़ने वाले थे की मैने उन्हे रोक दिया और फिर मे महागुरु और बाकी गुरुओं के सामने पहुंच जो की मेरी इस जीत से खुश थे और मुझसे बहुत ज्यादा सवाल जवाब करने वाले थे

लेकिन उतना समय अभी मेरे पास नही था क्योंकि हर बितते वक़्त के साथ मेरे कानों मे मेरे जहन में शरीर के रोम रोम में मुझे मेरे माता पिता की पुकार उनका दर्द से करहना उनके पीड़ा से बहते आँसू उनका वो विलाप गूंज रहा था

मे चाहता तो अपनी असलियत का पता चलते ही मे उन्हे बचाने चला जाता लेकिन अगर मुझे यहाँ आने मे जरा भी देरी होती तो इस अच्छाई और बुराई के जंग मे बुराई जीत जाती और उसके बदले मे अच्छाई को अपने इतने सारे काबिल योद्धा खोने पड़ते

और इसके लिए मेरे माता पिता ही क्या मे भी खुदको माफ नहीं कर पाता परंतु अब युद्ध हम जीत गए थे और अब मेरा एक पल भी यहाँ रुकना सही नही था इसीलिए मे वहा से जाने लगा लेकिन तभी महागुरु ने मुझे रोक दिया

महागुरु :- किधर जा रहे हो भद्रा आज तुमने इतनी बड़ी जीत अपने नाम की है उसके बाद भी तुम्हारे मुख की परेशानी अभी तक बरकरार है

मे :- महागुरु मे जानता हूँ कि आप सबके मन में आज के बारे में बहुत सारे सवाल होंगे लेकिन अभी मुझे एक सबसे महत्वपूर्ण काम करना है मुझे आज्ञा दे

इतना बोलके मे बिना उनकी कोई बात सुने निकल आया लेकिन वहाँ से मे अकेले नही निकला था कोई था जो मेरे गति के बराबर ही उड़ते हुए मेरे पास आ गया था

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आज के लिए इतना ही

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अध्याय बावन

जहाँ एक तरफ युद्ध हाथ से निकलता जा रहा था सारे अच्छाई के सिपाही बहुत बुरी तरह जख्मी हो गए थे और सारे गुरुओं को उन खास असुरों ने वरुण पाश मे कैद कर लिया था

जो देख कर मायासुर और शुक्राचार्य दोनों भी अपने जीत पर खुशियाँ मना रहे थे की तभी अटल लोक की जमीन हिलने लगी वहा अचानक से एक तेज भूकंप आने लगा जिससे वहा खड़े सबका संतुलन बिगड़ गया

तो वही दूसरी तरफ इस वक्त मे उसी अंधेरी जगह पर मे जमीन मे बैठे कर ध्यान लगाकर अपने सारे शक्तियों को काबू करने मे लगा हुआ था मुझे पता भी नही चल रहा था कि मुझे ध्यान लगते कितना समय हो गया है या कितने दिन हो गए है


मे केवल अपने अंदर वास कर रही सारी शक्तियों को काबू करने मे लगा हुआ था जिस दौरान मुझे कुछ ऐसी शक्तियाँ भी दिखती जिनको पहले मुझे आजाद करना पड़ता और फिर उन्हे काबू करना पड़ता

जिनमे अब तक वो शिबू का सिंहासन भी था और साथ मे एक और चीज भी थी और वो थी शैतानी गदा जो की उस शैतान के पास से मेरे शरीर में समा गयी थी (अध्याय उँतिस)

जिसे काबू करते हुए मुझे अब तक सबसे ज्यादा समय लगा था और पीड़ा भी सर्वाधिक हुई थी और उस गदा को काबू करते ही मेरे मस्तिष्क मे बहुत सारे चित्र दिखने लगे थे

तो वही अभी भी मुझे कुमार की आवाज नही सुनाई दी थी जिस वजह से मे बिना रुके ध्यान में बैठ कर अपनी शक्तियों को काबू पाने के सफर में आगे बढ़ते जा रहा था


की उसके बाद मुझे वहा 6 अलग अलग रंग के ऊर्जा गोले दिखते जा रहे थे जो की किसी अजीब से बंधन बंधे हुए थे जिनको मैने जैसे ही आज़ाद कराया वैसे ही वो 6 के 6 गोले एक साथ मेरे तरफ बढ़ने लगे

और इससे पहले की मे कुछ करता उससे पहले ही वो सभी गोले किसी बंदूक के गोली समान मेरे शरीर में समा गए और जैसे ही वो गोले मेरे शरीर के अंदर समा गए वैसे ही मेरे सामने कुछ चित्र बनकर आ गए

जिन्हे देखकर मे दंग रह गया और अभी मे उन चित्रों को ध्यान से देख पता उससे पहले ही मेरे शरीर में इतनी तीर्व पीड़ा होने लगी की मानो जैसे कोई मेरे शरीर को जबरदस्ती खींच कर 2 हिस्सों में बाँट रहा हो

और इसी वजह से मेरी चीखे निकालने लगी जिसके बाद मैने जैसे तैसे करके अपने दर्द को काबू किया और फिर धीरे धीरे मेरा दर्द भी कम हो गया था और अभी मुझे थोड़ी राहत मिली थी

कि तभी मेरे शरीर को झटके लगने लगे ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे शरीर मे एक साथ बहुत सारे विस्फोटक फटने लगे थे और इससे पहले की मे कुछ समझ पाता मेरा शरीर किसी अंगार के तरह जलने लगा

जिसे मे जितनी शांत करने का प्रयास करता उतनी ही तेजी से मेरे शरीर में गर्मी फैलती और आखिर मे ऐसा लगा की जैसे मेरा शरीर ही फट गया हो जिस कारण से मे वही उसी जगह पर बेहोश हो गया

और जब मुझे होश आया तो मे अभी भी उसी जगह पर था और मेरे सामने इस वक़्त कुमार खड़ा था जिसके चेहरे पर हल्के चिंता के बादल दिख रहे थे

कुमार:- क्या हुआ भद्रा तुम ठीक तो हो

मे:- हा मे ठीक हूँ बस थोड़ा बदन दर्द कर रहा है वैसे तुम इतने चिंता मे क्यों हो

कुमार:- एक दुःखद समाचार है

मै :- (चिंता से) क्या हुआ सब ठीक तो है न

कुमार:- युद्ध आरंभ हो गया है और अब बाजी हमारे हाथ से निकल चुकी हैं और अगर हमने जल्दी नही की तो संसार पर बुराई का राज हो जायेगा लेकिन

मै :- लेकिन क्या मुझे पूरी बात बताओ

कुमार :- तुम्हारी हालत अभी ठीक नहीं है कि तुम इस सफर को अंत तक ले जाओ तुम्हे आराम की जरूरत है लेकिन हमारे पास उतना समय नही है

मै :- तुम चिंता मत करो मे बिल्कुल ठीक हूँ भी तुम मुझे ये बताओ अब आगे मेरी कोनसी शक्ति को आज़ाद करना है

कुमार :- अब तुम्हे तुम्हारी सबसे ताकतवर और सबसे महत्वपूर्ण शक्ति को पचनना है और वो है तुम्हारी पहचान तुम्हारा अस्तित्व

इतना बोलके कुमार तुरंत मेरे अंदर समा गया और उसके समाते ही मेरे आँखों के सामने शुरवात से सबकुछ दिखने लगा (अध्याय 1 से अबतक) सब कुछ मे देख पा रहा था मे सुन पा रहा था मे महसुस कर सकता था

और जब मुझे मेरे असलियत का बोध हुआ तो मुझे ऐसे लगने लगा की जैसे मेरे अंदर का शक्तियों के समुद्र मे अचानक से सुनामी आ गयी हो जिससे मेरे पूरे शरीर को फिर से झटके लगने लगे


और उस वजह से मेरी आँखे फिर एक बार बंद होने लगी थी और जब मैने अपनी आँखे खोली तो मे इस वक़्त अपनी कुटिया मे था जहाँ मेरे शरीर पर कुछ पट्टी बंधी हुई थी

और मेरे सर के पास मे मुझे जल अग्नि और कालास्त्र रखे हुए मिल गए जिन्हे देखकर मेरे होंठों पर मुस्कान छा गयी हुआ यू की जब सभी अस्त्रों के युं एकाएक निष्क्रिय होने पर चर्चा कर रहे थे

की तभी महागुरु को इस बात का अंदाजा हो गया था कि शायद पृथ्वी अस्त्र जैसे बाकी अस्त्रों ने भी मुझे अपना धारक चुन लिया हो लेकिन उन्हे इस बात पर पुरा यकीन नहीं था


क्योंकि इसके होने के शक्यताएं बहुत ही कम थी क्योंकि उनके ज्ञान अनुसार किसी एक ही धारक का बहुस्त्रों को धारण करना नामुंकिन था लेकिन फिर भी उन्होंने इसे परखने के लिए ये सभी अस्त्र मेरे सर के पास रख दिये थे

तो वही मेरे होश मे आते ही वो सभी अस्त्र चमकने लगे और मेरे शरीर मे समा गए जिसके बाद में पूरी तेजी से धरती की परत को तोड़ते हुए सीधा अटल लोक पहुँच गया अटल लोक तामसिक शक्तियों को आरंभ स्थान था

जिस कारण वहा उतरते ही मेरी राक्षसी शक्तियों का भी प्रमाण बढ़ गया था जिस वजह से मेरे शरीर से एक ऊर्जा लहर निकली और उस लहर के निकलने के साथ ही पूरे अटल लोक में भूकंप आ गया

जिससे हर जगह हड़कंप मच गया तो वही मेरे सामने अब युद्ध का मैदान था जिसमे मेरे सभी प्रियजनों को बंदी बनाकर रखा था जो देखकर मेरी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और फिर मैने अपनी शैतानी गदा को याद किया


जिसके तुरंत बाद वो गदा मेरे हाथ मे आ गयी जिसके तुरंत बाद मैने वो गदा उन असुरों पर फेक के मारी जिससे वो गदा एक के बाद एक सभी असुर सैनिकों को चीरते हुए मेरे पास वापस आ गयी

जब वो गदा मेरे पास वापस आई तो पूरी तरीके से रक्तरंजित हो गयी थी तो वही जब उन महासुरों ne सभी असुरों को एक एक करके जमीन पर गिरते देखा तो वो सभी दंग हो गए थे और उन्ही के साथ सभी गुरुओं को भी हैरानी हुई थी और


इससे पहले की कोई कुछ कर पाता मे उस युद्ध के मैदान में अंदर प्रवेश कर गया

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अध्याय तिरेपन

मेरे सामने अब युद्ध का मैदान था जिसमे मेरे सभी प्रियजनों को बंदी बनाकर रखा था जो देखकर मेरी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और फिर मैने अपनी शैतानी गदा को याद किया

जिसके तुरंत बाद वो गदा मेरे हाथ मे आ गयी जिसके तुरंत बाद मैने वो गदा उन असुरों पर फेक के मारी जिससे वो गदा एक के बाद एक सभी असुर सैनिकों को चीरते हुए मेरे पास वापस आ गयी

जब वो गदा मेरे पास वापस आई तो पूरी तरीके से रक्तरंजित हो गयी थी तो वही जब उन महासुरों ने सभी असुरों को एक एक करके जमीन पर गिरते देखा तो वो सभी दंग हो गए थे और उन्ही के साथ सभी गुरुओं को भी हैरानी हुई थी और


इससे पहले की कोई कुछ कर पाता मे उस युद्ध के मैदान में अंदर प्रवेश कर गया और जब सबने मुझे वहा देखा तो सारे अच्छाई योद्धा खुश हो गए और ये भी कहा जाए तो उन सबके अंदर एक नई ऊर्जा नया जोश आ गया था

तो वही सारे गुरु भी मुझे सही सलामत देखकर खुश थे तो वही जब मायासुर ने मुझे वहा देखा तो उसने तुरंत शुक्राचार्य को मेरे बारे में बताया

जिसके बाद शुक्राचार्य ने उस विध्वंशक और उसके साथियों को मुझे उनके दिव्यास्त्रों से मारने का हुकुम दिया जिसका पालन करते हुए उस विध्वंशक (धनुष वाला असुर) ने मुझपर सबसे पहले पर्वतास्त्र से वार किया

और जब वो मुझ पर वार कर रहा था की तभी मेरा ध्यान भी उनके तरफ गया जो देखकर मैने तुरंत ही अपने सप्तस्रों ताकत को जाग्रुत किया जिससे वहा एक साथ तीन चीखे सुनाई दी


जो किसी और की नही बल्कि गुरु सिंह, नंदी और वानर की थी क्योंकि जैसे ही मैने अपनी ऊर्जा को जाग्रुत किया वैसे ही उन तीनों के शरीर मे कैद बाकी तीनों अस्त्र भी तुरंत उनके शरीर से निकल के आ गए

जिस वजह से उन्हे हल्की पीड़ा होने लगी थी लेकिन वो उसे सहन करने मे सक्षम थे लेकिन उस पीड़ा के बाद जो उन्हे सदमा लगा उस वहा युद्ध मैदान मे ही क्या बल्कि वहा से कोसों दूर खड़े शुक्राचार्य और मायासुर भी नही सह पाए थे

क्योंकि जिन अस्त्रों को वो सभी सबसे महान शक्ति और ताकतवर शक्ति मानते थे वो शक्ति के सातों भाग मेरे शरीर के चारों तरफ गोल गोल घूम रहे थे

तो वही उस असुर द्वारा चलाया हुआ पर्वतास्त्र मुझ पर पर्वतों की बारिश कर रहा था पृथ्वी अस्त्र ने उन पर्वतों को फूलों मे बदल दिये थे

तो वही उन सप्तस्त्रों को मेरे शरीर में एकत्रित समाते देख कर शुक्राचार्य ने तुरंत ही मायासुर को तुरंत ही ये युद्ध रोकने के लिए कहा

लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी क्योंकि जैसे ही वो सप्तस्त्र मेरे अंदर समाये वैसे ही मैने अग्नि अस्त्र का आवहांन किया और देखते ही देखते वहा मौजूद सारे जीवित और म्रुत असुर जल के राख हो गए थे खुद विध्वंशक का विध्वंश हो गया था

जो देखकर मोहिनी और कामिनी पहले ही भाग गयी थी तो वही मायासुर ने जब अपने इतने शक्तिशाली योद्धाओं को मरते देखा तो वो गुस्से से आग बबुला होने लगा और वो अपने क्रोध के आवेश मे आकर कोई गलती करता उससे पहले शुक्राचार्य ने उसे रोक लिया

शुक्राचार्य :- मायासुर क्रोध मे बुद्धि का त्याग मत करो अब बाजी हमारे हाथों से निकल चुकी हैं उस लड़के के पास पहले सिर्फ एक ही अस्त्र था तब भी उसने तुम्हारी हालत खराब कर दी थी लेकिन अब उसके पास तो सातों अस्त्रों की शक्ति है और साथ मे शिबू ने उसे और कितनी शक्तियां दी है वो भी हमे पता नही है इसीलिए भलाई इसी मे है कि फिलहाल हम अपने अभियान पर ध्यान केंद्रित करे

मायासुर :- ji गुरु देव तो अब आप ही मुझे पथ प्रदर्शित करे

मायासुर की बात सुनकर शुक्राचार्य ने अपना हाथ उठाया और उनके हाथों में एक काले रंग की रोशनी मे चमचमाती तलवार आ गयी जो उन्होंने मायासुर के तरफ बढ़ा दी जिसे देखकर मायासुर दंग रह गया

मायासुर :- गुरुवर कही ये तलवार वो... वो

शुक्राचार्य :- बिल्कुल सही पहचाना ये वही अस्त्र है जो तुमने उस ढोंगी से मंगाई थी

मायासुर :- क्या उसने इसे ढूंढ लिया था मुझे लगा नही था

शुक्राचार्य:- वो इस काबिल था ही नही की वो इस स्तर की शक्ति को ढूंढ पाए इसे मैने ही छुपाया था सही समय के इंतज़ार में और आज वो समय पुरा हुआ जाओ योजना के अगले चरण का आगाज करो और हर कदम फुक फुक कर रखना क्योंकि जीत के इस मुकाम पर आके अगर मुझे हार का मुह देखना पडा तो सौगंध है मुझे मेरे इष्ट प्रभु आदिदेव की इस पूरे संसार मे मौत का ऐसा नाच होगा कि देव असुर मनुष्य प्राणी सब वो कहर देखेंगे कि उम्मीद तक किसीने नही की होगी

शुक्राचार्य की क्रोध से भरी आवाज सुन कर मायासुर का शरीर भी भय से कांप रहा था इसीलिए उसने वहा रुकना और ठीक नहीं समझा

मायासुर :- जो आपकी आज्ञा गुरुदेव

इतना बोलकर मायासुर वहा से गायब हो गया और उसके बाद शुक्राचार्य भी अपने ध्यान मे बैठ गये


तो वही दूसरी तरफ सभी असुरों को मारने के बाद मैने सबको वरुणपाश से आजाद कराया सब अभी भी मेरे कारनामे से दंग थे केवल महागुरु थे जिनके चेहरे पर परेशानी न होकर एक जंग जीती मुस्कान थी

और जैसे ही वो आजाद हुए वैसे ही उन्होंने अपना धनुष उठाया और उसकी प्रत्यंचा खिचने लगे जिससे जल्द ही उनके धनुष पर विसोशन अस्त्र आ गया और जैसे ही महागुरु ने उस अस्त्र को आसमान मे छोड़ा

वैसे ही उस अस्त्र के परिणाम से सारे जख्मी सिपाही और योद्धा फिर से ठीक हो गए और सब मेरी जयकार लगाने लगे जो देखते हुए महागुरु ने एक और तिर आसमान में चलाया

जिससे मेरे उपर सुगंधित फूलों की वर्षा होने लगी थी जिसके बाद सब लोग और जोश के साथ मेरे नाम की जयकारा लगाने लगे सब लोग चाहते थे की वो मुझे अपने कंधे पे उठाकर ले चले

और इसीलिए वो आगे बढ़ने वाले थे की मैने उन्हे रोक दिया और फिर मे महागुरु और बाकी गुरुओं के सामने पहुंच जो की मेरी इस जीत से खुश थे और मुझसे बहुत ज्यादा सवाल जवाब करने वाले थे

लेकिन उतना समय अभी मेरे पास नही था क्योंकि हर बितते वक़्त के साथ मेरे कानों मे मेरे जहन में शरीर के रोम रोम में मुझे मेरे माता पिता की पुकार उनका दर्द से करहना उनके पीड़ा से बहते आँसू उनका वो विलाप गूंज रहा था

मे चाहता तो अपनी असलियत का पता चलते ही मे उन्हे बचाने चला जाता लेकिन अगर मुझे यहाँ आने मे जरा भी देरी होती तो इस अच्छाई और बुराई के जंग मे बुराई जीत जाती और उसके बदले मे अच्छाई को अपने इतने सारे काबिल योद्धा खोने पड़ते

और इसके लिए मेरे माता पिता ही क्या मे भी खुदको माफ नहीं कर पाता परंतु अब युद्ध हम जीत गए थे और अब मेरा एक पल भी यहाँ रुकना सही नही था इसीलिए मे वहा से जाने लगा लेकिन तभी महागुरु ने मुझे रोक दिया

महागुरु :- किधर जा रहे हो भद्रा आज तुमने इतनी बड़ी जीत अपने नाम की है उसके बाद भी तुम्हारे मुख की परेशानी अभी तक बरकरार है

मे :- महागुरु मे जानता हूँ कि आप सबके मन में आज के बारे में बहुत सारे सवाल होंगे लेकिन अभी मुझे एक सबसे महत्वपूर्ण काम करना है मुझे आज्ञा दे

इतना बोलके मे बिना उनकी कोई बात सुने निकल आया लेकिन वहाँ से मे अकेले नही निकला था कोई था जो मेरे गति के बराबर ही उड़ते हुए मेरे पास आ गया था

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आज के लिए इतना ही

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Fantastic update bhidhu
 
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