Update:-139
सजा तय हो चुकी थी और बची खुची जिंदगी अब अंधेरों में गुजरने वाली थी। विक्रम, प्रकाश और लोकेश को जिंदा रखने का सारा इंतजाम वहां पहले से कर दिया गया था, और उन्हें हर हाल में जिंदा रखना था। हर वक़्त अपने मौत कि कामना करे ऐसी ज़िन्दगी देकर, तीनों वहां से निकल गए।
ऐमी:- आरव वीरदोयी की एक छोटी सी टीम के साथ तुम आगे बढ़ो, और उसकी एक टीम के साथ हम आगे बढ़ते हैं।
अपस्यु:- ज्यादा काम सेहत के लिए अच्छा नहीं है स्वीटी, 1 महीने का विश्राम लेंगे।
आरव:- कमिनेपन की हद। जब-जब इसने कहा है हम कुछ दिनों के लिए कोई काम नहीं करेंगे, तब-तब ये अकेले पूरे व्यूह की रचना कर जाता है। मेरे इंगेजमेंट के वक़्त भी इसने सबको स्टैंडबाय में रखा था और किसी को बिना खबर किए सारा खेल रच दिया। मुझे तुमपर विश्वास नहीं।
ऐमी:- और मुझे भी..
अपस्यु:- तुम दोनो थोड़ा धीरज धरो। मैंने तुम दोनों को 1 महीने का विश्राम दिया है। मैं भी विश्राम में ही रहूंगा बस बहुत ही धीमे तरीके से आगे चलेंगे। इस पूरे इवेंट का बॉस मैं हूं, शुरू में ही तय हो गया था, कोई सवाल।
आरव:- बस मरना मत, कोई सवाल नही।
ऐमी:- मै अब तुमसे दूर नहीं रह सकती, बाकी 1 महीने का विश्राम मंजूर है।
अपस्यु:- ठीक है चलो अब मां के पास, 5 बजने ही वाले है।
हेलीकॉप्टर वहीं निमेष गांव के पास ही लैंड हुई, जहां नंदनी रघुवंशी पहले से ही पहुंची हुई थी। सच ही है आज के युग में धन ही धर्म है। कुंवर सिंह के जिस परिवार को लोग अब तक बुरा कहते आ रहे थे, 24 घंटे के अंदर सबके विचार स्वतः ही बदल गए।
ना तो खुद को सच्चा साबित करने की जरूरत हुई और ना ही कोई दलील पेश किए गए, लेकिन फिर भी गांव के लोग कुंवर सिंह राठौड़ जिंदाबाद, नंदनी रघुवंशी जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। एक प्रशिक्षित टीम वहीं खड़ी थी जो गांव वालों को पूरा नक्शा समझा रही थी और कानूनी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर लिए जा रहे थे।
नंदनी गांव के पंचायत भवन में बैठी वहां के लोगों को सुन रही थी, अपनें दोनो बेटे और बहू को देखकर नंदनी मुस्कुराने लगी और धीमे से कुंजल के कान में कुछ कहने लगी। कुंजल, नंदनी की बात सुनकर थोड़ी हैरान हुई और वहां से उठकर दोनो के पास चली आयी…. "मां बोल रही है वो ये सारा काम खुद हैंडल करना चाहती है, वीरभद्र के यहां तबतक तुम लोग रिश्ते की बात शुरू करो।"..
ऐमी, हंसती हुई… "तो तुम क्यों इतना मायूस बनी हुई हो।"..
कुंजल:- सब लोग बाहर आओ, यहां नहीं बात करना मुझे…
चारो बाहर निकल कर आए, कुंजल अपस्यु और ऐमी पर बरसती हुई…. "मैंने तो बस ऐसे ही कही थी, आप लोग तो सीरियसली मेरी शादी वीरे से करवाने पर उतारू हो गए। मां को किसने बताया, इस बारे में।
आरव:- वैसे तेरे और वीरे की शादी होगी तो जुगलबंदी अच्छी सुनने को मिलेगी.. वीरे जी, कुंजल जी..
कुंजल, आरव का कॉलर पकड़ती… "ज्यादा मज़ाक किए तो मैं मुंह तोड़ दूंगी।"
अपस्यु:- हद है, तुझे अरेंज मैरेज भी करना है, लड़का घर जमाई भी चाहिए और जब हम रिश्ते की बात करने जा रहे हैं तब तू गुंडई पर उतर आयी है..
कुंजल:- ऑफ ओ … मैं कही क्या मुझे अभी शादी करनी है, लड़का ढूंढो अभी। देखो मेरा दिमाग मत खराब करो और हां मुझे वीरे पसंद नहीं।
ऐमी:- मतलब कोई और पसंद है..
"हद है यार"… कुंजल नकियाते हुए कहने लगी और चिढ़कर वहां से भाग गई। उसे ऐसे भागते देख तीनों हसने लगे। तकरीबन 1 घंटे बाद नंदनी वहां का सारा काम निपटाकर वीरभद्र के घर चली आयी।
नंदनी के कदम उस घर में क्या परे ऐसा लगा जैसे श्री कृष्ण, सुदामा के यहां पधारे हो। आव भगत और स्वागत में कोई कमी नहीं थी। लेकिन माहौल तब बिगड़ गया जब नंदनी तकरीबन 40 लोगों के बीच में यह बात कहने लगी कि वो उसके घर रिश्ता लेकर आयी है।
जैसे ही यह बात कुंजल के कान में गई वो बौखलाकर नंदनी के ओर जाने लगी किन्तु स्वास्तिका मामले को संभालती हुई उसका हाथ पकड़कर रोकती हुई, उससे बात खत्म होने तक का इंतजार करने के लिए धीमे से कहीं।
इधर वीरभद्र की मां ये बात सुनकर क्या कहे और क्या ना कहे उसे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था। वो घबराई सी आवाज़ में पूछने लगी…. "जी आप ये क्या कह रही है।"..
नंदनी:- हां आपने बिल्कुल सही सुना है। मुझे मेरे बेटे पार्थ के लिए आपकी बेटी निम्मी का हाथ चाहिए। दोनो एक दूसरे को देख चुके है। पार्थ को निम्मी बेहद पसंद है, आप चाहे तो निम्मी से पूछ लीजिए, यदि उसे भी पार्थ पसंद हो तो हम दोनों कि सगाई करते हुए चले जाएंगे।
पार्थ जो तब से केवल ख़ामोश बैठा हुआ था, नंदनी की बात सुनकर बिल्कुल हैरान सा हो गया। हालांकि हैरान वहां 2 लोग थे। एक तो कुंजल, जिसका सर दर्द केवल इतनी सी बात को लेकर हो गया, कि वो बस समझाने के लिए वीरे और उसकी शादी की बात कह रही थी और लोगों ने सीरियसली ले लिया।
दूसरे अपने पार्थ भईया जो निम्मी की पजल में डूबे थे कि निम्मी उस शाम किस ओर इशारा कर गई जो अब तक वो समझ नहीं पाया और अगर जल्द ही उसने निम्मी बातों का सही मतलब नहीं निकाल पाया तो वो दृश्य के साथ चली जाएगी।
पार्थ, स्वास्तिका से… "नॉटी, ये आंटी अचानक से रिश्ते की बात करने आ गई"…
स्वास्तिका:- क्यों तुझे अच्छा नहीं लगा। रुक एक मिनट, मां पार्थ कुछ कह रहा है..
नंदनी:- हां बोलो ना पार्थ..
पार्थ:- मैं कहां कुछ बोल रहा था, वो स्वास्तिका को सुनने में कुछ गलतफमियां हुई थी शायद….. (फिर धीमे से स्वास्तिका से) पागल है क्या तू नॉटी..
स्वास्तिका:- डफर कहीं का.. उस दिन निम्मी ने साफ तौर पर तो कही थी कि वो गांव के लोगो और उनकी नजर को जानती है, इसलिए किसी को अपने मुंह नहीं लगने देती। वहीं उसने लोकेश के बारे में भी बताया, जबकि उसे पता था कि तुम यह बात जानते हो..
पार्थ:- कमिने हो तुम सब, छिपकर मेरी बात सुन रहे थे।
स्वास्तिका:- तेरे लिए हमारा बात सुनना मायने रखता है या निम्मी।
पार्थ:- निम्मी…
स्वास्तिका:- हां तो ध्यान से सुन, निम्मी का साफ इशारा था, तुम उससे अच्छे लगते हो, बस दूसरी लड़कियों को ताड़ना बंद कर दो और वो अपना प्यार तुम्हे तब दिखाएगी जब उसकी मां तुम्हारे और उसके रिश्ते के लिए राजी हो जाए।
पार्थ:- पहले प्यार का इजहार करने में क्या परेशानी थी?
स्वास्तिका:- गधा है तू, डफर। यह गांव है। यहां प्यार मतलब सेक्स और शादी मतलब इमोशन।
पार्थ:- अती बेवकूफ हो, प्यार मतलब सेक्स कब से होने लगा..
स्वास्तिका:- तुझे बात की गहराई को जाननी है तो अपस्यु से मिल ले। हद है यार, ये गांव है, यहां जात में शादी होती है, और एक ही गांव लड़का और लड़की की शादी भी नहीं होती। ऐसे में वो किसी से प्यार करके, फिर उसके लिए घरवालों से लड़े, बाद में उसके घरवाले दोनो को कबूल करते है या इमोशनल ब्लैकमेल करके उसकी शादी कहीं और करवा देते है, उतना रिस्क वो नहीं लेना चाहती थी, इसलिए उसने मन बना लिया था कि जिससे शादी होगी, प्यार उसी से कर लेगी और तबतक वो अपने काम में व्यस्त रहेगी। बस ये मेरी समीक्षा है और शायद सारी बातें समझा दी मैंने। अपस्यु को भी पता है ये बात, तभी तो उसने कल लोकेश की कहानी समाप्त करने के बाद भी तेरे लिए सोचा और ना जाने कब मां से बात करके ये सब प्लान कर लिया, वरना देर रात तक तो वो हम सब से बातें ही कर रहा था।
पार्थ:- यार कितना गजब है ना अपस्यु। इतना बड़ा काम करने के बाद तो दिमाग में जीत कि खुशी ही चलती। लेकिन फिर भी उसे मेरा ख्याल रहा।
स्वास्तिका:- ज्यादा इमोशनल ना हो। बात हम सब में से किसी की भी होती तो वो लोकेश का काम भले 4 दिन में समाप्त करता, लेकिन अपना काम पहले कर देता।
दोनो अपनी बात कर रहे थे और दोनो में से किसी का ध्यान वहां के माहौल पर तबतक नहीं गया, जबतक नंदनी ने पार्थ से ये नहीं कह दी कि जाकर तैयार होकर आए, बस कुछ ही देर में उसकी सगाई है। पार्थ को ऐसा लगा जैसे बिन मांगे सब मुराद मिल गई है।
इधर स्वास्तिका खुद गई और निम्मी को तैयार करके लाई। अलहड़ सी दिखने वाली लगी, जब सगाई के लिए तैयार होकर अाई थी, तब पहली बार उसकी खूबसूरती का भी पता लग रहा था। और चेहरे पर आयी वो शर्मो-हया, जो घरवालों के पास होने के कारन निम्मी मेहसूस कर रही थी और लोगों को वो साफ दिख रहा था।
इन दोनों का काम तो हो गया, साथ ही साथ जब सब फुरसत हुए तो कुंजल से क्या बदला लिया गया था। स्वास्तिका और ऐमी ने तो जैसे उसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया हो। जबतक वो नंदनी के आंचल में अपना मुंह ना छिपा ली, तबतक सब उसे चिढ़ाते ही चले गए।
सभी कार्यक्रम पूर्ण होने में काफी समय लग चुका था, इसलिए तय यह हुआ कि एक रात वीरभद्र की मेहमान नवाजी स्वीकार करने के बाद कल सुबह सब यहां से निकलेंगे। नंदनी की बात मानते हुए हर कोई वहीं रुक गया सिवाय अपस्यु के जिसके दिमाग में कल रात से ही कुछ और चल रहा था, जिसे वो फिलहाल किसी के साथ साझा नहीं कर सकता था।
थोड़ी सी मेहनत थोड़ी सी झूठ और अपस्यु जिस हेलीकॉप्टर से आया था उसी हेलीकॉप्टर में बैठकर अपने हाई टेक गांव निमेष पहुंच गया था। जैसे ही अपस्यु वहां के महल में दाखिल हुआ, सामने हॉल में ही….. "इतने सारे घर खाली परे हैं फिर भी यहां हॉल में"…
नीलू:- तू चालू रख रे, मज़ा ना खराब करो… उम्म्म ! अभी निकलो यहां से या बैठकर टीवी देखो, लेकिन मज़े को बर्बाद नहीं करो…
अपस्यु अपना सर पीटते हुए वहां से चला गया और नीलू को अपना मज़ा खत्म करके, काया के साथ कमरे में आने के लिए बोल दिया। तकरीबन आधे घंटे बाद दोनो कमरे में पहुंची….
अपस्यु:- हद है, खुले हॉल में सेक्स कौन करता है, यार इतने तो कमरे है यहां..
नीलू:- वो लड़का बेचारा अपनी मां के पास हमेशा के लिए जा रहा था और आज तक यहां किसी लड़की को टच भी नहीं कर पाया था, जबकि उसके सामने कई लोग मज़े लिया करते थे। बेचारे पर दया आ गई और वक़्त कम था, इसलिए उसकी हसरत वहीं पूरी कर दी। अब क्या तुम इस बात को लेकर टोक रहे.. वैसे तुम्हे यहां कौन सी याद खींचकर ले आयी।
अपस्यु:- बस ऐसे ताने की जरूरत नहीं। सेक्स की भूख नहीं खींच लाई मुझे, जो ऐसे पूछ रही हैं मैम। आप सब आदरणीय है और मुझे आपके लाइफ स्टाइल से कोई आपत्ती नहीं, मुझे एक बड़ा काम निपटाना है और उसपर कल से काम शुरू करना है।
काया:- मतलब हमारी मदद चाहिए।
अपस्यु:- हां मदद कि उम्मीद से आया हूं।
नीलू:- इसमें हमारा क्या फायदा होगा..
अपस्यु:- क्या फायदा चाहिए।
नीलू:- सम्मान..
अपस्यु:- मतलब..
नीलू:- जाने अंजाने में हम बहुत गलत कर गए हैं, अब कुछ ऐसा काम चाहिए जो अपने आप में लगे कि इस जीवन में कुछ तो अच्छा किया है।
अपस्यु:- हम्मम ! आज के बाद कभी ऐसा मेहसूस नहीं होगा कि पहले कभी गलत की हो।
नीलू:- मै तैयार हूं।
काया:- तुम्हारे काम के लिए हम सब तैयार है, और आखरी तक तैयार रहेंगे..
अपस्यु:- ठीक है फिर तैयार रहो, किसी की लंका भेदनी है।
काया:- हमे करना क्या होगा।
अपस्यु:- 3 लोगों को पूरी तरह सड़क पर लाना।
काया:- उनकी डिटेल..
अपस्यु कुछ तस्वीरें दिखाते…. "इस तस्वीर में जो लड़की है.."
जबतक अपस्यु इतना बोल रहा था तभी बीच में नीलू कहने लगी… "सात्विक आश्रम के संचालक महादीपी की भांजी और अनुप्रिया की बेटी कलकी है। दूसरा उसका छोटा भाई परमहंस और तीसरा सबसे छोटा भाई युक्तेश्वर है। जिल्लत की नई ऊंचाई दिखाई थी इसने मुझे। मेरा चरित्र क्या है इसे अच्छे से समझाया था मुझे। दोनो ही कमिने पन की नई परिभाषा है, बिल्कुल मीठा जहर।