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Update-1
टिंग टोंग….टिंग टोंग….टिंग टोंग
इसी तरह कुछ देर तक doorbell बजने पर सत्तू उर्फ सतेंद्र की नींद खुली, थोड़ा झुंझलाकर उठते हुए कमरे के दरवाजे तक आया और दरवाजा खोलकर बोला- कौन है इतनी सुबह सुबह यार?
पोस्टमैन- सत्येंद्र आप ही हैं
सत्येंद्र- हां मैं ही हूं।
सतेंद्र सामने पोस्टमैन को देखकर थोड़ा खुश हो गया, समझ गया कि घर से चिट्ठी आयी है जरूर।
पोस्टमैन एक चिट्ठी थमा कर चला गया, सतेंद्र लेटर देखकर खुश हुआ, लेटर उसके गांव से आया था, आंख मीजता वापिस आया औऱ वापिस बिस्तर पर लेटकर अपनी माँ द्वारा भेजा गया लेटर खोलकर पढ़ने लगा।
सतेन्द्र उत्तर प्रदेश के राजगढ़ गांव का रहने वाला एक लड़का था जो कि लखनऊ में रहकर अपनी पढ़ाई के साथ साथ एक छोटी सी पार्ट टाइम नौकरी भी करता था।
सतेन्द्र के घर में उसके पिता "इंद्रजीत", मां "अंजली", बड़े भैया "योगेंद्र", बड़ी भाभी "सौम्या", छोटे भैया "जितेंद्र" छोटी भाभी "अल्का" थी।
सतेन्द्र की एक बहन भी थी "किरन", जिसकी शादी हो चुकी थी, सतेन्द्र सबसे छोटा होने की वजह से सबका लाडला था, लखनऊ उसको कोई आने नही देना चाहता था क्योंकि वो सबका लाडला था उसका साथ सबको अच्छा लगता था, पर जिद करके वो पढ़ने के लिए लखनऊ आया था अभी एक साल पहले, कॉलेज में दाखिला लिया और खाली वक्त में आवारागर्दी में न पड़ जाऊं इसलिए एक पार्ट टाइम नौकरी पकड़ ली थी, बचपन से ही बड़ा नटखट और तेज था सतेन्द्र, इसलिए सबका लाडला था, खासकर अपनी माँ, बहन और भाभियों का। अपने बाबू से डरता था पर छोटी भाभी और बहन के साथ अक्सर मस्ती मजाक में लगा रहता था, बड़ी भाभी के साथ भी मस्ती मजाक हो जाता था पर ज्यादा नही और माँ तो माँ ही थी
सतेन्द्र के दोनों भैया दुबई में कोई छोटी मोटी नौकरी करते थे, पहले बड़ा भाई गया था दुबई फिर वो छोटे भैया को भी लिवा गया पर सतेन्द्र का कोई मन नही था दुबई रहकर कमाने का, वो तो सोच रखा था कि एग्रीकल्चर की पढ़ाई खत्म करके किसानी करेगा और खेती से पैसा कमाएगा, दोनों भाई दुबई से साल में एक बार ही एक महीने के लिए आते थे, उस वक्त मोबाइल फ़ोन की सुविधा नही होने की वजह से चिट्टी का चलन था।
सतेन्द्र अपनी बड़ी भाभी को भाभी माँ और छोटी भाभी को छोटकी भौजी बोलता था, दरअसल जब अलका इस घर में ब्याह के आयी थी उस वक्त सत्तू उनको भी भाभी माँ ही बोलता था पर एक दिन अलका ने ही कहा कि मेरे प्यारे देवर जी मुझे तुम छोटकी भौजी बुलाया करो, इसका सिर्फ एक कारण था कि अलका और सत्तू की उम्र में कोई ज्यादा अंतर नही था, इसलिए अलका को बहुत अजीब लगता था जब सत्तू उनको भाभी माँ बोलता था, इसलिए उसने सत्तू को भाभी माँ न बोलकर छोटकी भौजी बोलने के लिए कहा था, दोनों में हंसी मजाक भी बहुत होता था, छोटे छोटे कामों में वो घर के अंदर अपनी छोटकी भौजी का हाँथ बंटाता था।
पर सत्तू की बड़ी भाभी ने तो सत्तू का काफी बचपना देखा था जब वो ब्याह के आयी थी तो सत्तू उस वक्त छोटा था, इसलिए वो उनको भाभी माँ बोलता था और उन्हें ये पसंद था क्योंकि सौम्या ने सत्तू को बहुत लाड़ प्यार से पाला पोसा भी था। बचपन से ही उसकी आदत बड़ी भाभी को भाभी माँ बोलने की पड़ी हुई थी
सतेन्द्र को माँ को चिट्ठी पढ़कर पता चला कि उसको अब शीघ्र ही घर जाना होगा अब कोई बहाना नही चलेगा क्योंकि उसकी शादी को अब मात्र एक महीना रह गया था और शादी के 15 दिन पहले उसे परंपरा के अनुसार एक कर्म पूरा करना होगा तभी उसकी शादी हो सकती है और उसका आने वाला वैवाहिक जीवन सुखमय होगा, ये कर्म उस शख्स को तब बताया जाता था जब उसकी शादी को एक महीना रह जाए, इस कर्म के बारे में किसी को कुछ पता नही होता था कि इसमें करना क्या है?
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इसी तरह कुछ देर तक doorbell बजने पर सत्तू उर्फ सतेंद्र की नींद खुली, थोड़ा झुंझलाकर उठते हुए कमरे के दरवाजे तक आया और दरवाजा खोलकर बोला- कौन है इतनी सुबह सुबह यार?
पोस्टमैन- सत्येंद्र आप ही हैं
सत्येंद्र- हां मैं ही हूं।
सतेंद्र सामने पोस्टमैन को देखकर थोड़ा खुश हो गया, समझ गया कि घर से चिट्ठी आयी है जरूर।
पोस्टमैन एक चिट्ठी थमा कर चला गया, सतेंद्र लेटर देखकर खुश हुआ, लेटर उसके गांव से आया था, आंख मीजता वापिस आया औऱ वापिस बिस्तर पर लेटकर अपनी माँ द्वारा भेजा गया लेटर खोलकर पढ़ने लगा।
सतेन्द्र उत्तर प्रदेश के राजगढ़ गांव का रहने वाला एक लड़का था जो कि लखनऊ में रहकर अपनी पढ़ाई के साथ साथ एक छोटी सी पार्ट टाइम नौकरी भी करता था।
सतेन्द्र के घर में उसके पिता "इंद्रजीत", मां "अंजली", बड़े भैया "योगेंद्र", बड़ी भाभी "सौम्या", छोटे भैया "जितेंद्र" छोटी भाभी "अल्का" थी।
सतेन्द्र की एक बहन भी थी "किरन", जिसकी शादी हो चुकी थी, सतेन्द्र सबसे छोटा होने की वजह से सबका लाडला था, लखनऊ उसको कोई आने नही देना चाहता था क्योंकि वो सबका लाडला था उसका साथ सबको अच्छा लगता था, पर जिद करके वो पढ़ने के लिए लखनऊ आया था अभी एक साल पहले, कॉलेज में दाखिला लिया और खाली वक्त में आवारागर्दी में न पड़ जाऊं इसलिए एक पार्ट टाइम नौकरी पकड़ ली थी, बचपन से ही बड़ा नटखट और तेज था सतेन्द्र, इसलिए सबका लाडला था, खासकर अपनी माँ, बहन और भाभियों का। अपने बाबू से डरता था पर छोटी भाभी और बहन के साथ अक्सर मस्ती मजाक में लगा रहता था, बड़ी भाभी के साथ भी मस्ती मजाक हो जाता था पर ज्यादा नही और माँ तो माँ ही थी
सतेन्द्र के दोनों भैया दुबई में कोई छोटी मोटी नौकरी करते थे, पहले बड़ा भाई गया था दुबई फिर वो छोटे भैया को भी लिवा गया पर सतेन्द्र का कोई मन नही था दुबई रहकर कमाने का, वो तो सोच रखा था कि एग्रीकल्चर की पढ़ाई खत्म करके किसानी करेगा और खेती से पैसा कमाएगा, दोनों भाई दुबई से साल में एक बार ही एक महीने के लिए आते थे, उस वक्त मोबाइल फ़ोन की सुविधा नही होने की वजह से चिट्टी का चलन था।
सतेन्द्र अपनी बड़ी भाभी को भाभी माँ और छोटी भाभी को छोटकी भौजी बोलता था, दरअसल जब अलका इस घर में ब्याह के आयी थी उस वक्त सत्तू उनको भी भाभी माँ ही बोलता था पर एक दिन अलका ने ही कहा कि मेरे प्यारे देवर जी मुझे तुम छोटकी भौजी बुलाया करो, इसका सिर्फ एक कारण था कि अलका और सत्तू की उम्र में कोई ज्यादा अंतर नही था, इसलिए अलका को बहुत अजीब लगता था जब सत्तू उनको भाभी माँ बोलता था, इसलिए उसने सत्तू को भाभी माँ न बोलकर छोटकी भौजी बोलने के लिए कहा था, दोनों में हंसी मजाक भी बहुत होता था, छोटे छोटे कामों में वो घर के अंदर अपनी छोटकी भौजी का हाँथ बंटाता था।
पर सत्तू की बड़ी भाभी ने तो सत्तू का काफी बचपना देखा था जब वो ब्याह के आयी थी तो सत्तू उस वक्त छोटा था, इसलिए वो उनको भाभी माँ बोलता था और उन्हें ये पसंद था क्योंकि सौम्या ने सत्तू को बहुत लाड़ प्यार से पाला पोसा भी था। बचपन से ही उसकी आदत बड़ी भाभी को भाभी माँ बोलने की पड़ी हुई थी
सतेन्द्र को माँ को चिट्ठी पढ़कर पता चला कि उसको अब शीघ्र ही घर जाना होगा अब कोई बहाना नही चलेगा क्योंकि उसकी शादी को अब मात्र एक महीना रह गया था और शादी के 15 दिन पहले उसे परंपरा के अनुसार एक कर्म पूरा करना होगा तभी उसकी शादी हो सकती है और उसका आने वाला वैवाहिक जीवन सुखमय होगा, ये कर्म उस शख्स को तब बताया जाता था जब उसकी शादी को एक महीना रह जाए, इस कर्म के बारे में किसी को कुछ पता नही होता था कि इसमें करना क्या है?