• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery भटकइयाँ के फल

S_Kumar

Your Friend
490
4,081
139
Update-1

टिंग टोंग….टिंग टोंग….टिंग टोंग
इसी तरह कुछ देर तक doorbell बजने पर सत्तू उर्फ सतेंद्र की नींद खुली, थोड़ा झुंझलाकर उठते हुए कमरे के दरवाजे तक आया और दरवाजा खोलकर बोला- कौन है इतनी सुबह सुबह यार?

पोस्टमैन- सत्येंद्र आप ही हैं

सत्येंद्र- हां मैं ही हूं।

सतेंद्र सामने पोस्टमैन को देखकर थोड़ा खुश हो गया, समझ गया कि घर से चिट्ठी आयी है जरूर।

पोस्टमैन एक चिट्ठी थमा कर चला गया, सतेंद्र लेटर देखकर खुश हुआ, लेटर उसके गांव से आया था, आंख मीजता वापिस आया औऱ वापिस बिस्तर पर लेटकर अपनी माँ द्वारा भेजा गया लेटर खोलकर पढ़ने लगा।

सतेन्द्र उत्तर प्रदेश के राजगढ़ गांव का रहने वाला एक लड़का था जो कि लखनऊ में रहकर अपनी पढ़ाई के साथ साथ एक छोटी सी पार्ट टाइम नौकरी भी करता था।

सतेन्द्र के घर में उसके पिता "इंद्रजीत", मां "अंजली", बड़े भैया "योगेंद्र", बड़ी भाभी "सौम्या", छोटे भैया "जितेंद्र" छोटी भाभी "अल्का" थी।

सतेन्द्र की एक बहन भी थी "किरन", जिसकी शादी हो चुकी थी, सतेन्द्र सबसे छोटा होने की वजह से सबका लाडला था, लखनऊ उसको कोई आने नही देना चाहता था क्योंकि वो सबका लाडला था उसका साथ सबको अच्छा लगता था, पर जिद करके वो पढ़ने के लिए लखनऊ आया था अभी एक साल पहले, कॉलेज में दाखिला लिया और खाली वक्त में आवारागर्दी में न पड़ जाऊं इसलिए एक पार्ट टाइम नौकरी पकड़ ली थी, बचपन से ही बड़ा नटखट और तेज था सतेन्द्र, इसलिए सबका लाडला था, खासकर अपनी माँ, बहन और भाभियों का। अपने बाबू से डरता था पर छोटी भाभी और बहन के साथ अक्सर मस्ती मजाक में लगा रहता था, बड़ी भाभी के साथ भी मस्ती मजाक हो जाता था पर ज्यादा नही और माँ तो माँ ही थी

सतेन्द्र के दोनों भैया दुबई में कोई छोटी मोटी नौकरी करते थे, पहले बड़ा भाई गया था दुबई फिर वो छोटे भैया को भी लिवा गया पर सतेन्द्र का कोई मन नही था दुबई रहकर कमाने का, वो तो सोच रखा था कि एग्रीकल्चर की पढ़ाई खत्म करके किसानी करेगा और खेती से पैसा कमाएगा, दोनों भाई दुबई से साल में एक बार ही एक महीने के लिए आते थे, उस वक्त मोबाइल फ़ोन की सुविधा नही होने की वजह से चिट्टी का चलन था।

सतेन्द्र अपनी बड़ी भाभी को भाभी माँ और छोटी भाभी को छोटकी भौजी बोलता था, दरअसल जब अलका इस घर में ब्याह के आयी थी उस वक्त सत्तू उनको भी भाभी माँ ही बोलता था पर एक दिन अलका ने ही कहा कि मेरे प्यारे देवर जी मुझे तुम छोटकी भौजी बुलाया करो, इसका सिर्फ एक कारण था कि अलका और सत्तू की उम्र में कोई ज्यादा अंतर नही था, इसलिए अलका को बहुत अजीब लगता था जब सत्तू उनको भाभी माँ बोलता था, इसलिए उसने सत्तू को भाभी माँ न बोलकर छोटकी भौजी बोलने के लिए कहा था, दोनों में हंसी मजाक भी बहुत होता था, छोटे छोटे कामों में वो घर के अंदर अपनी छोटकी भौजी का हाँथ बंटाता था।

पर सत्तू की बड़ी भाभी ने तो सत्तू का काफी बचपना देखा था जब वो ब्याह के आयी थी तो सत्तू उस वक्त छोटा था, इसलिए वो उनको भाभी माँ बोलता था और उन्हें ये पसंद था क्योंकि सौम्या ने सत्तू को बहुत लाड़ प्यार से पाला पोसा भी था। बचपन से ही उसकी आदत बड़ी भाभी को भाभी माँ बोलने की पड़ी हुई थी

सतेन्द्र को माँ को चिट्ठी पढ़कर पता चला कि उसको अब शीघ्र ही घर जाना होगा अब कोई बहाना नही चलेगा क्योंकि उसकी शादी को अब मात्र एक महीना रह गया था और शादी के 15 दिन पहले उसे परंपरा के अनुसार एक कर्म पूरा करना होगा तभी उसकी शादी हो सकती है और उसका आने वाला वैवाहिक जीवन सुखमय होगा, ये कर्म उस शख्स को तब बताया जाता था जब उसकी शादी को एक महीना रह जाए, इस कर्म के बारे में किसी को कुछ पता नही होता था कि इसमें करना क्या है?
 

odin chacha

Banned
1,415
3,452
143
Aapke har story mast hoti hai sir aasha karte hain ki is kahani bhi koi record break karegi......mast update thaa
 
  • Like
Reactions: Sanju@

S_Kumar

Your Friend
490
4,081
139
Update- 2

उस चिट्ठी में भी सत्तू की माँ ने बस उसे जल्द ही वक्त रहते घर बुलाया था, कर्म के बारे में उन्होंने ज्यादा कुछ लिखा नही, क्योंकि उन्हें खुद नही पता था इसके बारे में, बस उन्होंने यही लिखा था कि तेरे बाबू ही बात करेंगे इस विषय में तू बस अब आ जा, ज्यादा दिन नही रह गए हैं, सत्येन्द्र ने चिट्टी पढ़ी और थोड़ा सोच में डूब गया कि आखिर कौन सा कर्म, क्या करना होगा इसमें, इससे पहले तो उसे ये सब पता नही था, खैर अब तो गांव जा के ही पता चलेगा, एक उत्सुकता ने उसे अब जल्दी से जल्दी गांव जाने के लिए विवश कर दिया।

सत्तू ने अपनी कंपनी और कॉलेज से अगले ही दिन छुट्टी ली और पहुंच गया अपने घर, घर जब पहुंचा तो उसकी छोटकी भाभी ने उसे घर के द्वार पर नीम के पेड़ के पास ही रोक दिया उसे आता देखकर वो पहले ही घर के अंदर से एक लोटा जल लेकर आई थी उसमे कुछ चावल के दाने और तुलसी के पत्ते डालकर उन्होंने सत्तू के सर के ऊपर सात बार घुमाया और फिर नीम के पेड़ को जल अर्पित करके अपने देवर का घर में बहुत ही स्नेह और लाड़ से स्वागत किया।

अलका- आओ मेरे देवर जी, अब चलो घर में।

सत्तू- छोटकी भौजी...जब भी मैं घर आता हूँ हर बार आप लोटे में जल लेकर मेरी नज़र उतारती हो ये क्यों करती हो, क्या है ये?

अलका- ये….ये तो इसलिए किया जाता है मेरे देवर जी कि रास्ते में अगर कोई ऊपरी छाया या हवा या नज़र लगी हो तो वो उतर जाए और घर का प्यारा सदस्य स्वक्छ होकर घर में प्रवेश करे…..समझे बुद्धूराम

सत्तू- जिसकी छोटकी भौजी इतना ख्याल रखने वाली हो उसको भला किसी की क्या नज़र लगेगी।

अलका और सत्तू दोनों एक साथ द्वार से चलकर घर के दरवाजे की ओर बातें करते हुए जाने लगे।

अलका- तभी अपनी छोटकी भौजी का बहुत खयाल है न तुम्हें, जब शादी को एक महीना रह गया तब ही आये हो, इससे पहले नही आ सकते थे, कितनी याद आती थी तुम्हारी।

सत्तू- याद तो मुझे भी बहुत आती थी तुम सबकी भौजी...ऐसा मत बोलो तुम तो मेरी प्यारी भौजी हो, अपने परिवार से कोई कितने दिन दूर रहेगा, तुम्हे तो पता है पढ़ाई की वजह से जल्दी जल्दी नही आ सकता, एक बार पढ़ाई पूरी हो जाये फिर तो यहीं रहूंगा अपनी भौजी के पास।

अलका- भौजी के पास रहोगे या अपनी दुल्हनिया के साथ रहोगे।

सत्तू- अरे बाबा दोनों के साथ

और अलका जोर से हंस पड़ती है कि तभी सत्तू के बाबू घर से बाहर आते हैं जिन्हें देखकर अलका झट से घूंघट कर लेती है।

सत्तू अपने बाबू के पैर छूकर प्रणाम करता है।

इन्द्रजीत- आ गए बेटा, सफर कैसा रहा, रास्ते में कोई दिक्कत तो नही हुई न।

सत्तू- नही बाबू कोई दिक्कत नही हुई आराम से आ गया, आप कैसे हैं?

इंद्रजीत- मैं ठीक हूं बेटा….तू घर में जा, पानी वानी पी...मैं जरा एक घंटे में खेत से आता हूँ कुछ काम है।

सत्तू- ठीक है पिताजी।

सत्तू घर में जाता है

सत्तू ने बड़ी भाभी मां (सौम्या) और अपनी माँ (अंजली) के पैर छूकर उन्हें प्रणाम किया और जब जानबूझकर छोटकी भाभी (अल्का) के पैर छूने चला तो वो लपककर पीछे हटते हुए ये बोली " अरे न न सत्तू, मेरे पैर न छुआ कर मुझे बहुत अजीब लगता है, फिर भी सत्तू ने जानबूझकर मजाक में जबरदस्ती छोटकी भाभी के पैर छू ही लिए और वो शरमा कर फिर हंसते हुए खूब आशीर्वाद देने लगी और सब हंसने लगे।

अंजली- अरे तो क्या हो गया दुलहिन, है तो सतेंद्र तुमसे पद में छोटा ही न, पैर छू कर आशीर्वाद लेता है तो दे दिया करो, अब आ गया है न तो दे खूब आशीर्वाद….(सत्येन्द्र की तरफ देखते हुए) सतेंद्र देख जब तक तू नही आया था तब तक ये मेरी जान खा रखी थी कि अम्मा देवर जी कब आएंगे?...कब आएंगे?….तेरे से न जाने कितना लगाव है इसे…..ले अब आ गया तेरा देवर…..अब शर्मा मत दे आशीर्वाद…..अब तो खुश है न।

अलका- हां अम्मा बहुत….अम्मा भले ही मेरा पद बड़ा है पर मैं अपने देवर जी को अपना दोस्त मानती हूं, इसलिए मुझे अजीब लगता है और रही बात मेरे आशीर्वाद की तो वो तो हमेशा ही इनके साथ है।

अंजली- बेटा मुझे तो लगता है तेरी शादी न इसी के साथ होनी चाहिए थी, इतना तो ये जितेंद्र को नही याद करती होगी जितना तुझे करती है।

ये सुनकर अलका बेहद शर्मा गयी और सब हंस पड़े।

सौम्या(बड़ी भाभी माँ) - तो अम्मा बदल देते हैं न

और सब फिर जोर से हंस पड़े, अलका और शर्मा गयी- क्या दीदी आप भी, बस भी करो, वो मेरा लाडला देवर है याद नही करूँगी।

सौम्या- लाडला तो ये हम सबका है...अच्छा जा अपने लाडले के लिए पानी वानी तो ले आ।

अल्का गयी और झट से मिठाईयां और पानी लेकर आई।

सत्तू का जबरदस्त स्वागत हुआ, सत्तू की बहन किरन भी आ चुकी थी, खूब हंसी मजाक भी हुआ, शादी का घर था सब प्रफुल्लित थे, कई काम हो चुके थे कई काम होने अभी बाकी थे, जिसमे सबसे बड़ा काम था वो कर्म, जिसे सत्तू को पूरा करना था।

शाम को ही सतेन्द्र के पिता ने उसको कमरे में बुलाया वहां उसकी माँ भी बैठी थी।

इंद्रजीत- बेटा तुम्हे एक महीना पहले इसलिए बुलाया है कि अब वक्त बहुत कम रह गया है, मुझे तुम्हे कुछ बताना है।

सतेन्द्र- हां बाबू जी कहिए।

इंद्रजीत- बेटा हमारे खानदान में, हमारे कुल में और हमारे कुल के अलावा दो चार कुल और हैं गांव में, जिनमे न जाने कब से एक अजीब तरीक़े की परंपरा चली आ रही है, जिसको पूरा करना ही होता है, और अगर उसको न किया जाए तो शादी नही हो सकती, और अगर जबरदस्ती शादी कर भी दी तो आने वाले उस शख़्स के जीवन में अनेक तरह की परेशानियां आती ही रहती हैं और उसका जीवन नर्क हो जाता है, और कभी कभी तो अनहोनी भी हो जाती है, इसलिए इस कर्म को उसे करना ही पड़ता है जिसकी शादी हो।

सत्तू ये सुनकर चकित रह गया, उसके मन में कई सवाल उठने लगे, इससे पहले उसे इस बारे में बिल्कुल पता नही था, क्या इससे पहले किसी को बताया नही जाता? आखिर ये परंपरा और कर्म क्या है? क्यों है? हमारे खानदान के अलावा गांव के और कौन कौन से कुल में भी ये परंपरा है? और सबसे बड़ी बात इस कर्म के बारे में किसी को कुछ पता क्यों नही होता? अगर ये परंपरा है तो इसको इतना गुप्त क्यों रखा गया है? और यह पीढ़ी दर पीढ़ी संचालित कैसे किया जाता है? क्या दोनों भैया ने भी अपनी शादी के वक्त ये कर्म किया था जरूर किया होगा और देखो सच में मुझे इसका आभास तक नही हुआ, कितना गुप्त कर्म है ये।

सत्तू के मन में कई तरह की भावनाएं जन्म लेने लगी, आश्चर्य, कौतूहल, जिज्ञासा, कि परंपरा शुरू किसने की होगी और क्यों की होगी? ऐसा क्यों होता है कि अगर इसको न किया जाए तो अनेकों परेशानियां आती है।

उसने ये सारे प्रश्न एक ही बार में अपने बाबू के सामने रख दिया तो उसके बाबू ने उससे कहा- देखो बेटा ये किसने शुरू किया, क्यों किया, किन परिस्थितियों में किया होगा और इसको न करने से परेशानियां क्यों आती हैं ये तो मुझे नही पता और न ही मेरे पिता ने मुझे बताया, बताते भी क्या उन्हें भी नही पता होगा, पर हमारे गांव में एक कुल में एक बार इस कर्म को करने से मना कर दिया और शादी के दो महीने बाद ही दुल्हन की मौत हो गयी, इसलिए भी सब डर गए और दुबारा किसी की हिम्मत नही हुई कि इसको टाल दें, और फिर सब वैसे भी सोचते हैं कि जब इतना कुछ होता ही है तो मन्नत के तौर पर एक कर्म और कर लेते हैं इसमें क्या हो जाएगा, इसमें कुछ घट तो नही जाएगा, इसलिए इस कर्म को करते ही है, जोखिम उठाकर क्या फायदा?

सत्तू- हां बाबू बात तो सही है। पर विस्तार से बताइए कि इसमें क्या करना होता है, कैसे पता चलता है और आगे इसको कैसे संचालित किया जाता है।
 

S_Kumar

Your Friend
490
4,081
139
Update- 3

इंद्रजीत- बेटा परंपरा के अनुसार हर पुरुष अपने जीवन में अपनी शादी होने और पुत्र होने के बाद, जब बच्चे हो जायें और वो वयस्क हो जाये तो अपने पुत्रों के हिसाब से अपने पोतों के लिए, पुत्र के लिए नही बल्कि अपने पोतों के लिए कर्म लिखता है, वो लगभग ये मानकर चलता है कि उसके पांच पोते होंगे और पांच कर्म पांच पोतों के लिए लिखता है, ये मानकर चलता है कि पांच पोते होंगे और अगर कम हुए तो जो बचेंगे वो खाली चले जायेंगे और अगर ज्यादा पैदा हुए तो क्रम से वही कर्म दुबारा बचे हुए पोतों के लिए दोहराया जाएगा, अब जैसे कि तुम्हारे दादा ने पांच कर्म लिखे होंगे और तुम हुए तीन भाई तो दो कर्म खाली चले गए होंगे और अगर पांच से ज्यादा होते तो वही कर्म दोहरा दिया जाता। ये कर्म बेटे के लिए नही पोतों के लिए लिखा जाता है, और कर्म लिखकर उसको रखा कहाँ है ये बताया बेटों को जाता है वो भी उनकी शादी के वक्त जैसे कि मेरे लिए मेरे दादा जी ने लिखा था और तुम तीनो भाइयों के लिए तुम्हारे दादा जी ने लिखा है

सत्तू अब और अचंभित हो गया - तो क्या भैया लोग अपना कर्म पूरा कर चुके हैं?

इंद्रजीत- हाँ बिल्कुल, तभी तो उनकी शादी पूर्ण हुई है।

सत्तू- और दोनों भैया अपने अपने पोतों के लिए कर्म लिख चुके हैं।

इंद्रजीत- हाँ बेटा बिल्कुल।

सत्तू- देखो जरा भी भनक नही लगी, मुझे तो पता ही नही।

इंद्रजीत- यही तो रहस्य है इस कर्म का की इस कर्म के बारे में तब बातचीत की जाती है और केवल उसी से बातचीत की जाती है जिसकी शादी हो, कर्म पूरा होने के बाद उससे प्रण कराया जाता है कि वह किसी को भी इस विषय में बिल्कुल नही बताएगा, वह बताएगा तो सिर्फ अपने बेटे को की उसने वह कर्म अपने पोते के लिए लिखकर कहाँ रखा है फिर उसका बेटा अपने बेटे को उसकी शादी के वक्त ये बताएगा कि वह कर्म उसे कैसे पता चलेगा कि वह कहां रखा है।

सत्तू- मैं समझा नही बाबू जी

इंद्रजीत- देखो जैसे तुम्हारे दादा जी ने तुम तीनो भाइयों के लिए कर्म लिखकर रख दिया और जब मेरी शादी होने लगी तो मुझे ये बताया कि मेरे दादा जी ने मतलब तुम्हारे परदादा ने मेरे लिए मेरा कर्म कहाँ रखा है और उन्होंने अपने पोतों के लिए मतलब तुम लोगों के लिए कर्म कहाँ रखा है, सिर्फ ये बताया कि कर्म कहाँ रखा है ये नही बताया कि उसमे लिखा क्या होगा क्योंकि ये तो उन्हें खुद ही नही पता होगा, मेरे कर्म के लिए उन्हें नही पता होगा और जो कर्म उन्होंने तुम्हारे लिए लिखा है वो तो उन्हें पता ही होगा पर वो वचनबद्ध होने की वजह से मुझे बताएंगे नही, इसलिए मुझे ये नही पता कि तुम्हारे कर्म में लिखा क्या है परंतु ये पता है कि वो रखा कहाँ है। इसी तरह तुम तुम्हारी शादी पूर्ण होने के बाद जब तुम्हे पुत्र हो जाएंगे तो उनके अनुसार पांच का हिसाब लगाते हुए अपने पोतों का कर्म लिखोगे और उसको कहाँ रखोगे ये अपने पुत्र को बताओगे जब तुम्हारे पुत्र की शादी होने लगेगी उस वक्त और उसे ये भी बताओगे की मैंने उसके लिए जो कर्म लिखा है वो कहाँ रखा है।

सत्तू- अच्छा मतलब दो काम हुए जब पुत्र की शादी होने लगेगी तो उसको ये बताना है कि उसके दादा ने उसके लिए कर्म लिखकर कहाँ रखा है और खुद उसने अपने पोतों के लिए कर्म लिखकर कहाँ रखा है, औऱ कर्म पांच पोते होंगे ये मानकर पांच कर्म लिखना है, फिर यही सिलसिला आगे चलता जाएगा। इसमें ये तो पता होता है कि मैंने अपने पोतों के लिए क्या कर्म लिखा है पर ये नही पता होता कि मेरे पुत्र के लिए उसके दादा ने क्या कर्म लिखा होगा और अपना लिखा हुआ भी कभी किसी को बताना नही है।

इंद्रजीत- बिल्कुल बिल्कुल बेटा अब सही समझे।

सत्तू- तो बाबू जी आपने मेरे पुत्र मतलब अपने पोते के लिए कर्म लिख दिया है, लेकिन आप तो हम तीनों भाइयों के पुत्रों के लिए कर्म लिखोगे न।

इंद्रजीत- लिखूंगा नही लिख कर रख भी दिया है, बच्चे हो जाने के बाद जब वो किशोर अवस्था में प्रवेश करने लगे तो उनके हिसाब से पोतों के लिए कर्म लिखा जाता है जितने बेटे हों उसी हिसाब से पांच पांच मान कर लिखा जाता है, अब जैसे तुम तीन भाई हो तो मैंने 15 कर्म लिखकर रख दिया है, पांच तुम्हारे पुत्रों के लिए, पांच योगेंद्र और पांच जितेंद्र के पुत्रों के लिए, समझे अब।

सत्तू- हां बाबू जी समझ तो गया पर मान लो उस पुरुष की किसी वजह से मृत्यु हो जाये तो ये सिलसिला तो टूट ही जायेगा फिर उसके पुत्र और पोतों को उनका कर्म कैसे पता चलेगा? और इस कर्म को लिखकर हर कोई रखता कहाँ है?

इंद्रजीत- यह कर्म लिखकर गांव के किसी भी परिवार में कोई भी एक दूसरे के यहां रखते हैं, जैसे कि तुम्हारा कर्म सुखराम नाई के घर में जमीन में गाड़कर रखा हुआ है, तुम्हारे दोनों भाइयों का कहाँ रखा हुआ था ये मैं तुम्हे नही बता सकता, कर्म लिखकर रखने के बाद जिस घर में जिस परिवार के लोगों को ये जिम्मेदारी दी जाती है ये उनका भी फ़र्ज़ होता है कि समय आने पर जिसका वो कर्म है उसको वो लोग जानकारी दें, ये उनका भी फ़र्ज़ होता है, और यह इश्लिये है कि मान लो किसी की मृत्यु हो जाय तो उसके पुत्र और पोतों को अपने कर्म मिल जाएं और उनको इस परंपरा की जानकारी उस परिवार द्वारा दे दी जाय, इश्लिये कर्म किसी दूसरे परिवार के यहां उनकी जिम्मेदारी पर उनके वहां रखा जाता है। तुम्हारा कर्म सुखराम नाई के यहां तुम्हारे दादा जी ने रखा हुआ है। अगर मैं तुम्हे ये सब न भी बताऊं तो सुखराम नाई तुम्हे जरूर बताएगा क्योंकि ये उसकी भी जिम्मेदारी है, देख लेना वो कल ही घर आएगा तुमसे मिलने और तुम्हे अपने घर लिवा जाएगा, तुम कल खुद ही चले जाना उसके घर और अपना कर्म ले लेना और एकांत में उसको पढ़कर समझकर कर्म पूरा होने पर उसको जला देना।

सत्तू- ठीक है बाबू जी और बाबू जी इस कर्म को लिखकर रखते कैसे हैं? क्या हमारे घर भी किसी कुल के लोगों का कर्म रखा हुआ है?

इन्द्रजीत- कर्म को एक अच्छे से मोटे कागज पर लिखकर एक अच्छे से पके हुए मिट्टी के घड़े में डालकर उसपर अपना नाम अपने पुत्र का नाम और फिर किस नम्बर का वो कर्म है वो लिखना होता है जैसे एक, दो, तीन….जो भी हो, जैसे तुम्हारे कर्म के घड़े पर पहले सबसे ऊपर तुम्हारे दादा जी का नाम होगा फिर मेरा नाम लिखा होगा फिर लिखा होगा तीन, समझे अब

सत्तू- हाँ बाबू जी समझ गया

इन्द्रजीत- और हमारे घर भी दो कुल के परिवारों का कर्म रखा जाता है, दो घर की जिम्मेदारी हमारे पास है, वो मैं तुम्हे बाद में बताऊंगा की किस परिवार की है वो।

तभी सतेन्द्र का ध्यान अपनी माँ पर गया जो कि सब सुनते हुए बड़े प्यार से बीच बीच में मुस्कुरा दे रही थी।

सत्तू- पर बाबू जी जैसा कि आपने कहा कि किसी और को नही पता चलना चाहिए तो आपने तो माँ के सामने ही मुझे सबकुछ बताया।

इन्द्रजीत- घर की स्त्रियों के लिए कोई परहेज नही है, उनको बताया जा सकता है पर ये नही बताना की तुमने अपने पोतों के लिए क्या कर्म लिखा है बस ये सब बता सकते हो कि तुम्हारा कर्म कहाँ रखा हुआ है, तुम्हारे खुद के कर्म में लिखा क्या है अगर उसको पूर्ण करने में घर की किसी स्त्री या पुरुष की भागीदारी है तब तो उसको बताना ही पड़ेगा पर वचन भी लेना होगा कि वो कभी किसी को न बताएं।

सत्येंद्र सारी बात समझ जाता है, उसके बाबू उठकर चले जाते है और उसकी माँ अंजली उसके लिए खाना लगाने को उसकी बड़ी भाभी को कहती है, आज का दिन बड़ी जिज्ञासा में बीतता है पर घर का माहौल बहुत खुशनुमा था, छोटकी भाभी अलका सत्तू से दिन भर हंसी मजाक करती रहती है जिसमे बीच बीच में बड़ी भाभी सौम्या और बहन किरन भी खूब खुलकर हंसी मजाक में लगी हुई थी। कभी कभी सत्तू थोड़ा अश्लील मजाक से झेंप भी जाता पर फिर भाभियों को ऐसा छेड़ता की वो भी शर्म से लाल हो जाती।
 
Top