• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery भटकइयाँ के फल

sunoanuj

Well-Known Member
3,153
8,406
159
Yeh bhi story adhe main hi band ho gyi tine achi achi story band hote huye achi nhi lagti


Sahi kaha mitr bahut achee story thi yeh bhi…
 
  • Like
Reactions: Shubham babu

Game888

Hum hai rahi pyar ke
2,991
6,070
143
Update-1

टिंग टोंग….टिंग टोंग….टिंग टोंग
इसी तरह कुछ देर तक doorbell बजने पर सत्तू उर्फ सतेंद्र की नींद खुली, थोड़ा झुंझलाकर उठते हुए कमरे के दरवाजे तक आया और दरवाजा खोलकर बोला- कौन है इतनी सुबह सुबह यार?

पोस्टमैन- सत्येंद्र आप ही हैं

सत्येंद्र- हां मैं ही हूं।

सतेंद्र सामने पोस्टमैन को देखकर थोड़ा खुश हो गया, समझ गया कि घर से चिट्ठी आयी है जरूर।

पोस्टमैन एक चिट्ठी थमा कर चला गया, सतेंद्र लेटर देखकर खुश हुआ, लेटर उसके गांव से आया था, आंख मीजता वापिस आया औऱ वापिस बिस्तर पर लेटकर अपनी माँ द्वारा भेजा गया लेटर खोलकर पढ़ने लगा।

सतेन्द्र उत्तर प्रदेश के राजगढ़ गांव का रहने वाला एक लड़का था जो कि लखनऊ में रहकर अपनी पढ़ाई के साथ साथ एक छोटी सी पार्ट टाइम नौकरी भी करता था।

सतेन्द्र के घर में उसके पिता "इंद्रजीत", मां "अंजली", बड़े भैया "योगेंद्र", बड़ी भाभी "सौम्या", छोटे भैया "जितेंद्र" छोटी भाभी "अल्का" थी।

सतेन्द्र की एक बहन भी थी "किरन", जिसकी शादी हो चुकी थी, सतेन्द्र सबसे छोटा होने की वजह से सबका लाडला था, लखनऊ उसको कोई आने नही देना चाहता था क्योंकि वो सबका लाडला था उसका साथ सबको अच्छा लगता था, पर जिद करके वो पढ़ने के लिए लखनऊ आया था अभी एक साल पहले, कॉलेज में दाखिला लिया और खाली वक्त में आवारागर्दी में न पड़ जाऊं इसलिए एक पार्ट टाइम नौकरी पकड़ ली थी, बचपन से ही बड़ा नटखट और तेज था सतेन्द्र, इसलिए सबका लाडला था, खासकर अपनी माँ, बहन और भाभियों का। अपने बाबू से डरता था पर छोटी भाभी और बहन के साथ अक्सर मस्ती मजाक में लगा रहता था, बड़ी भाभी के साथ भी मस्ती मजाक हो जाता था पर ज्यादा नही और माँ तो माँ ही थी

सतेन्द्र के दोनों भैया दुबई में कोई छोटी मोटी नौकरी करते थे, पहले बड़ा भाई गया था दुबई फिर वो छोटे भैया को भी लिवा गया पर सतेन्द्र का कोई मन नही था दुबई रहकर कमाने का, वो तो सोच रखा था कि एग्रीकल्चर की पढ़ाई खत्म करके किसानी करेगा और खेती से पैसा कमाएगा, दोनों भाई दुबई से साल में एक बार ही एक महीने के लिए आते थे, उस वक्त मोबाइल फ़ोन की सुविधा नही होने की वजह से चिट्टी का चलन था।

सतेन्द्र अपनी बड़ी भाभी को भाभी माँ और छोटी भाभी को छोटकी भौजी बोलता था, दरअसल जब अलका इस घर में ब्याह के आयी थी उस वक्त सत्तू उनको भी भाभी माँ ही बोलता था पर एक दिन अलका ने ही कहा कि मेरे प्यारे देवर जी मुझे तुम छोटकी भौजी बुलाया करो, इसका सिर्फ एक कारण था कि अलका और सत्तू की उम्र में कोई ज्यादा अंतर नही था, इसलिए अलका को बहुत अजीब लगता था जब सत्तू उनको भाभी माँ बोलता था, इसलिए उसने सत्तू को भाभी माँ न बोलकर छोटकी भौजी बोलने के लिए कहा था, दोनों में हंसी मजाक भी बहुत होता था, छोटे छोटे कामों में वो घर के अंदर अपनी छोटकी भौजी का हाँथ बंटाता था।

पर सत्तू की बड़ी भाभी ने तो सत्तू का काफी बचपना देखा था जब वो ब्याह के आयी थी तो सत्तू उस वक्त छोटा था, इसलिए वो उनको भाभी माँ बोलता था और उन्हें ये पसंद था क्योंकि सौम्या ने सत्तू को बहुत लाड़ प्यार से पाला पोसा भी था। बचपन से ही उसकी आदत बड़ी भाभी को भाभी माँ बोलने की पड़ी हुई थी

सतेन्द्र को माँ को चिट्ठी पढ़कर पता चला कि उसको अब शीघ्र ही घर जाना होगा अब कोई बहाना नही चलेगा क्योंकि उसकी शादी को अब मात्र एक महीना रह गया था और शादी के 15 दिन पहले उसे परंपरा के अनुसार एक कर्म पूरा करना होगा तभी उसकी शादी हो सकती है और उसका आने वाला वैवाहिक जीवन सुखमय होगा, ये कर्म उस शख्स को तब बताया जाता था जब उसकी शादी को एक महीना रह जाए, इस कर्म के बारे में किसी को कुछ पता नही होता था कि इसमें करना क्या है?
Nice update
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
2,991
6,070
143
Update- 8

अल्का दरअसल किरन को घर में भी चकमा देकर भाग निकली थी, पर जैसे ही बाहर बरामदे तक पहुंची किरन ने पकड़ ही लिया, और अल्का के कान पकड़ के खींचें तो अल्का विनती करते हुए गिड़गिड़ाई- ओह दीदी बस.....ऊऊईई अम्मा मेरे कान

किरन- अब बोलो.....अब बोलोगी ऐसे.....भाई है वो मेरा.....कुछ भी बोलती हो "दिन में भैया रात में सैयां", भैया भी कहीं सैयां होता है"।

तभी अल्का ने किरन को जोर से गुदगुदी लगाई जिससे किरन की पकड़ छूट गयी और अल्का फिर जान छुड़ा के भागी- "हां बोलूंगी......बना के देखो सैयां मजा बहुत आएगा ननद रानी", एक बार बना लो मेरे कहने पे, मालिश कराती होगी भैया से तभी पता है....तुम्हें की थकने के बाद मालिश जरूरी है"।

किरन फिर अल्का के पीछे दौड़ी- रुक जाओ भौजी आज तुम्हारी गर्मी तो मैं निकाल के रहूंगी, छोडूंगी नही।

जैसे ही अल्का भागती हुई बाहर द्वार पे आयी तो सौम्या और सत्तू को देखकर ठिठक गयी, किरन एकदम उसके पीछे थी, वो भी रुकते रुकते अल्का से टकराकर उसके ऊपर गिरते गिरते बची।

दोनों अपनी मस्ती भूलकर सामने हो रहे लाड़ दुलार को देखकर ठिठक गयी, और हंस पड़ी।

अलका- लो मैं तो अभी पल्लू भी नही पकड़ा पाई देवर जी को ठीक से और दीदी को देखो बाजी मार ली।

किरन- अरे भौजी ऐसे मत बोल बड़ी भाभी ने सुन भी लिया तो गुस्सा हो जाएंगी, भैया को बेटा मानती हैं वो।

अल्का- वो तो मैं जानती हूं, पर आज पहली बार देख रही हूं किरन मैं, देवर भाभी के रूप में बसे माँ बेटे का ऐसा दुलार।

अल्का सौम्या को छेड़ते हुए- अरे दीदी रो क्यों रही हो तुम्हारे लाडले बेटे की बिदाई थोड़ी होगी, शादी के बाद वो दुल्हन लेके आएगा न कि जाएगा, वो कहीं नही जाने वाला तुम्हे छोड़के।

किरन और अलका हंसने लगे, सत्तू और सौम्या भी मुस्कुरा उठे।

सौम्या और सत्येंद्र उनको देखकर झेंपते हुए अलग हुए तो सत्येन्द्र ने अल्का को दिखाते हुए अपनी सौम्या भाभी की नम आंखों को पोछा और बोला- ये मेरी भाभी माँ है न जो इनका दिल बहुत नरम है, झट से आंसू छलक आते हैं।

सौम्या- पगले ये खुशी के आंसू है।

अल्का- आज बहुत प्यार आ रहा है मेरे देवर जी को अपनी बड़ी भौजी पर, कभी हमें भी कर लिया करो प्यार.....जी

किरन अल्का को चिकोटी काटते हुए बोली- तुम्हें तो दूसरा वाला प्यार मिलेगा.......नरम वाला प्यार नही सख्त डंडे वाला प्यार.......बहुत बौरा गयी हो न तुम।

सब जोर से हंस पड़े, अलका झेंप गयी और किरन को इशारे से "बाद में बताऊंगी तुन्हें" बोलकर सत्तू की तरफ देखने लगी, जो अल्का को ही देख रहा था।

अभी ये सब हंसी मजाक और ठिठोली हो ही रही थी कि सौम्या के बडे भाई दूर से आते हुए दिखाई दिए तो सब चुप हो गए, किरन बोली- भाभी आपके भैया आ गए, मैं एक और खाट बिछा देती हूं।

द्वार पर नजदीक आकर उन्होंने साईकल रोकी और सत्तू ने उठकर उनसे प्रणाम किया, सौम्या भी उठ गई और सबने उन्हें नमस्ते किया, अल्का दौड़कर गयी उनके लिए पानी लेकर आई।

सौम्या- भैया कैसे आना हुआ सब ठीक तो है, और साईकल से क्यों बाइक कहाँ है?

सौम्या के भैया- बहन सब ठीक है, बाइक खराब थी इसलिए साईकिल से ही चला आया, अम्मा ने तुम्हारे लिए कुछ सामान भेजा है, सुनार के यहां से पायल बनाने के लिए जो तुम बोल के आयी थी न वो बन गयी थी, तो वही अम्मा ने भेजा है और अपने हाँथ से देसी लड्डू और लाई भेजी है, लो ये रखो, और हाँ वो पायल देख लेना, डिज़ाइन सही बनाया है न, कुछ कमी हो तो अभी बता दे, तुरंत सुधार के दूसरा दे देगा, नही तो लगन का टाइम चल रहा है, बाद में बहुत व्यस्त हो जाएगा।

सौम्या- अच्छा भैया अभी देख के पहन के बताती हूँ, किरन अल्का ले देख कैसी है ये पायल

सौम्या ने किरन और अल्का को देखते हुए बोला।

दोनों पायल की डिज़ाइन देखने लगी।

सत्तू और सौम्या के भैय्या खाट पे बैठ गए और बातें करने लगे।

सौम्या- पर भैया मैंने तो तीन पायल बनाने को बोला था, अपनी ननद और देवरानी के लिए भी, वो कहाँ है?

भाई- बहना अभी ये खाली तुम्हारा ही बनाया है, अगर ये डिज़ाइन अच्छा लग रहा है तो ऐसे ही बाकी के भी बनाने हैं या कोई और डिज़ाइन चाहिए।

अल्का- दीदी ये डिज़ाइन तो बहुत अच्छा लग रहा है क्यों किरन यही बनवा लेते हैं।

किरन- हां भौजी ये डिज़ाइन अच्छा है.....बड़ी भाभी यही वाला मेरे लिए भी बनवाओ न।

सौम्या- भैया यही वाला बोलना सोनार को, ऐसे ही दो डिज़ाइन और चाहिए, शादी में एक जैसा ही पहनेंगे हम तीनों।

किरन और अल्का- हां भैया ऐसा ही, साइज तो दे दिया था न दीदी।

सौम्या- हाँ वो तो मैं पहले ही दे आयी थी।

तभी सौम्या के भैया उठकर खड़े हुए और बोले- अच्छा तो फिर मैं चलता हूँ बहना, यही समान देना था, अब शादी नज़दीक आ जायेगी तब ही आना होगा।

अल्का- अरे भैया ऐसे कैसे, खड़े घोड़े पे सवार होके आये और वैसे ही जल्दी से चले भी जा रहे हो, क्या बहन के यहां अच्छा नही लग रहा क्या?

सौम्या के भैया- अरे नही बहना ऐसी बात नही, दरअसल आना तो है ही शादी में तो आना ही है, अभी ये काम जरूरी था इसलिए वक्त निकाल कर चला आया, अभी रोको मत आऊँगा फिर जल्दी ही।

सबने रोकना चाहा पर सौम्या के भैय्या " जरूरी काम है मुझे बहुत" ऐसा बताकर पानी वानी पीकर वापिस चले गए।

अल्का का मन थोड़ा उदास हो गया, दरअसल अल्का का कोई भाई नही था, वो बस चार बहनें ही थी, अल्का उनमें से सबसे छोटी थी, कभी कभी वो इस बात को सोचकर उदास हो जाती थी कि काश उसका भी कोई सगा भाई होता, तो वो भी आज उसके मायके से उसके लिए ऐसे ही आता जैसे दीदी के भैया आते रहते हैं।

अल्का का मन हल्का सा उदास हो गया उसको छुपाने की उसने कोशिश की पर तब तक सब समझ गए, ये बात तो सब जानते ही थे कि अलका सिर्फ चार बहनें हैं, उनका एक चचेरा भाई है पर चाचा लोगों से हमेशा दोनों परिवार का छत्तीस का आंकड़ा रहता है तनाव इतना है कि बोलचाल बहुत पहले से ही बंद है, आना जाना तो बहुत दूर की बात है।

सब भांप गए कि कौन सी बात अल्का को थोड़ा सा उदास कर गयी है, पर हंसी उसके चेहरे पर बरकरार थी, फिर भी अपनों ने जान ही लिया था।

अल्का- अच्छा दीदी चलो मैं अब खाना बनाती हूँ, पिताजी भी आने वाले होंगे, किरन दीदी तुम मेरे प्यारे देवर जी के साथ मिलकर पीला रंग दीवार पे लगा दो, मैं जाके खाना बना लेती हूं।

अल्का ऐसा कहकर घर में चली गयी, सत्तू ने किरन को बोला- दीदी तुम रंग लगाना शुरू करो मैं आता हूँ।

सत्तू ने बड़ी भाभी का हाँथ हल्का सा दबाकर इशारा किया कि वो छोटकी भाभी के मन में आई उदासी को झट से दूर करके आता है, इस दुनियां में मेरी सबसे अच्छी हरदम चहकने वाली भाभी के मन में उदासी आये ये उसे बर्दाश्त नही, अलका ने भी मुस्कुराकर सहमति दी, और किरन बोली- भैया जा संभाल ले भौजी को मैं शुरू करती हूं तब तक, उदास होके गयी है घर में, पर चहरे पर झलकने नही दिया पगली ने।

सौम्या- झलकने तो तू भी नही देती कभी।

सत्तू- किस बात के लिए भाभी माँ।

किरन बीच में टोकते हुए- कुछ नही भैया, भाभी भी न बस, भाभी बोलना नही, आपको कसम है।

सौम्या अब चुप हो गयी- अच्छा बाबा नही बोलती।

सत्तू- क्या दीदी, बताओ न, बताने लायक बात नही है क्या?

किरन- हां बस यही समझ ले........अब जा न तू..... जा जल्दी छोटकी भौजी के होंठों पे मुस्कुराहट ला के जल्दी आना, तेरे से ही खुश होती हैं वो।

सत्तू घर में जाने लगा पर उसके मन में अब ये एक बात और खटकने लगी कि किरन दीदी का क्या राज है, क्या ऐसा है जो वो चेहरे पर झलकने नही देती पर मन में है, भाभी माँ तो यही कह रही थी, पर दीदी ने उन्हें कसम देकर रोक दिया खैर पता तो मैं लगा ही लूंगा।

सत्येंद्र घर में गया- भौजी ओ मेरी छोटकी भौजी?

अल्का मिट्टी की मटकी में रखे चावल छोटी सी कटोरी से एक थाली में बीनने के लिए निकाल रही थी सत्तू की आवाज सुनकर झट से पलटी और हंसते हुए बोली- कर चुके तुम ब्याह मेरे देवर जी, भौजी के बिना रह पाते नही हो जरा भी, और चले हो शादी करने, इतने दिन शहर में कैसे रहते हो फिर........हम्म्म्म।

सत्तू ने कुछ नही बोला अपना हाँथ बढ़ा के प्यारी सी भाभी का प्यारा सा चेहरा दोनों हांथों में ले लिया और एक टक कुछ पल आंखों में देखता रहा, अल्का मुस्कुराती रही वो भी आंखों में थोड़ा हिचकिचा कर देखने लगी, सत्तू बोला- ये मेरी छोटकी भौजी न बहुत शातिर है, देखो कितनी देर से आंखों में झांक रहा हूँ, उस दर्द को ढूंढने की कोशिश कर रहा हूँ, पर इतनी माहिर है कि उस दर्द को इतनी गहराई में छुपा रखा है कि आसानी से वो किसी को नज़र भी न आये।

इतना सुनते ही अलका की आंखों में उसके दिल में छुपा दर्द आंसू बनकर ऐसे बाहर आया जैसे पानी की गहराई में कोई तैरने वाली चीज जबरदस्ती डुबोई गयी हो और छूटते ही वो तैरकर ऊपर आ जाये, सुबक पड़ी वो।

सत्तू ने झट से गले लगा लिया- भौजी.......ओ मेरी भौजी......न रोना नही......मैं जानता हूँ तुम्हारी प्यारी आंखों में क्यों आ रहे है आंसू।

अल्का रोते हुए- काश की मेरा कोई भाई होता?

सत्तू ने तुरंत अल्का का चेहरा फिर आगे किया और जल्दी से उसके आंसू पोछे- आज के बाद बिल्कुल रोना नही, मुझे बिल्कुल बर्दाश्त नही इन आँखों में आंसू।

अल्का- नही रोउंगी, पर इस खालीपन को तो कोई नही भर सकता न, मैं खुद अपने आपको समझाती हूँ पर कभी कभी मन उदास हो ही जाता है।

सत्तू- आज मैं अपनी इस प्यारी भाभी की उदासी हमेशा हमेशा के लिए जड़ से खत्म ही कर देता हूँ, तुमने ये कैसे सोचा कि तुम्हारा कोई भाई नही है, मैं ही हूँ तुम्हारा भाई, मैं बनूंगा तुम्हारा भाई, अपनी भौजी को मैं किसी कीमत पर उदास नही देख सकता, तुम्हे ये कमी हमेशा खलती है न, अब नही खलने दूंगा मैं।

अल्का आश्चर्य से सत्तू की आंखों में देखने लगी- ये क्या बोल रहे हो तुम, तुम मेरे देवर हो, ऐसा कैसे हो सकता है, मैं भौजी हूँ तुम्हारी, मैं अपने देवर को नही खोना चाहती, ऐसा कैसे हो सकता है की तुम मेरे भाई बनोगे?

सत्तू- मेरी प्यारी भौजी, मैंने कब कहा कि तुम अपने देवर को खो दोगी, ये मेरा और तुम्हारा सीक्रेट रहेगा, देवर तो मैं अपनी भौजी का हूँ ही, पर उस खालीपन को, उस जगह पर जहां थोड़ा सा अंधेरा है जिसकी वजह से मेरी चहेती भौजी कभी कभी उदास हो जाती है, उसको जड़ से खत्म करना चाहता हूं, मैं नही चाहता कि मेरी भौजी जीवन में अब कभी इस बात को लेकर उदास हो कि उसका कोई भाई नही है, इसलिए मैं अपनी ही सगी भौजी का भैया भी बनने के लिए तैयार हूं, आज से मैं ही तुम्हारा भाई भी हूँ और देवर भी।

अल्का एक टक सत्येंद्र की आंखों में देखती रह गयी, कुछ देर के लिए मानो शून्य हो गयी, फिर बोली- तूने तो मुझे एक ही बार में सबकुछ दे दिया मेरे सत्तू.......ओह मेरे देवर जी, और कस के उससे लिपट गयी, कुछ देर उसने सत्तू को महसूस किया, सत्तू भी अल्का से लिपट गया, उन दोनों के बदन में एक दूसरे के बदन के स्पर्श से आज जो मिली जुली अजीब सी सनसनाहट पैदा हो रही थी वो दोनों को ही कंफ्यूज कर रही थी, मन डोल भी रहा था और स्वयं को बहकने से संभाल भी रहा था, जीवन में आज पहली बार भावनाओं के आवेश में बहकर दोनों एक दूसरे से लिपट गए थे।

अल्का ने धीरे से सत्तू के कान में कहा- भैया

सत्तू गनगना सा गया फिर बोला- बहना

अल्का- सिर्फ बहना

सत्तू- ओ मेरी प्यारी बहना..... मेरी दीदी

अल्का- और

सत्तू- और....भौजी

अल्का- अच्छा मैं तुम्हारी बड़ी बहन हूँ या छोटी।

सत्तू- तुम कैसा चाहती हो भौजी?

अल्का- मैं तो छोटी बहन बनना चाहती हूं, तुम मेरे बड़े भैया, मैं तुम्हारी छोटी बहन।

सत्तू- ठीक है, आज से हम छुप छुपकर ये रिश्ता निभाएंगे।

अल्का- बिल्कुल, पर राखी के दिन?

सत्तू- तुम छुपकर मुझे राखी बांध देना न।

अल्का मुस्कुरा उठी, चेहरा उसका खिल गया कुछ देर सोचकर बोली- ढेर सारे गिफ्ट लूंगी मैं अपने भैया से।

सत्तू- तो हम कौनसा पीछे हटने वाले हैं, ले लेना।

अल्का चहक उठी, उसकी खुशी का ठिकाना नही था, एक बार फिर उसकी आंखें नम हो गयी, बोली- एक ही बार में तूने कितनी खुशियां दे दी मुझे मेरे सत्तू, एक मैं हूँ जो तुम्हे कुछ न दे पाई।

सत्तू- अब दुबारा ऐसा मत बोलना, नही तो कभी बात नही करूँगा फिर।

अल्का- फिर तो मर ही जाएगी तेरी भौजी तेरे बिना और ये नई नवेली बहन।

सत्तू- फिर वही उल्टी बात।

अल्का- अच्छा बाबा अब नही बोलूंगी उल्टी बात।

कुछ देर एक दूसरे की आंखों में देखने के बाद अल्का मुस्कुराकर बोली- अच्छा मेरे भैया जी अब छोड़ो भी बहना को, वो जरा खाना बना ले, नही तो कोई देख लेगा तो गज़ब हो जाएगा।

सत्तू ने अल्का को बाहों से आजाद कर दिया, पर जल्दी से गालों पे आज पहली बार एक चुम्बन लिया तो अलका सनसना गयी, उसे ये बिल्कुल अंदाजा नही था कि सत्तू ऐसा करेगा।

अल्का चौंकते हुए- ये क्या.....बहन को कोई ऐसे चूमता है।

सत्तू- ये चुम्बन बहन के लिए नही भौजी के लिए था, वही भौजी जो कुछ देर पहले मुझे आंखों से प्यार बरसा रही थी दीवार सजाते वक्त।

अल्का का चेहरा शर्म से लाल हो गया, धीरे से बोली- अच्छा जाओ अब.....भैया,..... मेरे देवर जी कोई देख लेगा।

सत्तू अल्का को देखता हुआ जाने लगता है अल्का शर्माते हुए उसे जाता हुआ देखती रह जाती है।
Zabardast updates maaza agaya padkar
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
2,991
6,070
143
Update- 12

किरन के घर आने के बाद सत्येंद्र भी कुछ देर बाद घर आ गया, किरन तो मानो जैसे आज मिली खुशी को समेट ही नही पा रही थी, उसके चेहरे पर हल्की शर्म, लालिमा और नए अहसाह से उठ रही मुस्कुराहट साफ देखी जा सकती थी, जिसको वह छुपाने का भरकस प्रयास तो कर ही रही थी, पर जब जब सत्तू सामने आता तो उसे देखकर मुस्कुरा ही पड़ती।

सत्तू को तो दोगुनी उत्तेजना हो रही थी, अल्का ने तो उसे राखी बांधकर जो भाई बनाया था उसकी उत्तेजना परम आनंददायक तो थी ही और ऊपर से उसकी सगी बहन अब उसकी भाभी बन गयी थी।

यही सब सोचते हुए जैसे ही वो अपने घर में कमरे में गया, अल्का उसके पास आई और इधर उधर देखकर धीरे से बोली- भैया....ओ मेरे भैया जी।

सत्तू ने पलटकर जैसे ही देखा अल्का को खींचकर अपनी बाहों में भर लिया।

अल्का इधर उधर देखते हुए थोड़ा कसमसा कर बोली- कोई देख न ले भैया, थोड़ा सब्र रखो, दीदी बार बार घर के अंदर आ जा रही हैं, और अम्मा भी।

सत्तू ने सब अनसुना कर दिया और जल्दी से अल्का के रसभरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये, अल्का की आँखें बंद हो गयी, उसने कुछ देर सत्येन्द्र को अपने होंठों का रस पिलाया, तभी किसी के आने की आहट हुई तो दोनों झट से अलग हो गए।

अल्का- देवर जी, अपने कपड़े दे दो क्या धोना है, मैं धोने जा रही थी कपड़े।

(अल्का ने एक आंख मारते हुए सत्तू से कहा)

सत्तू- हां भौजी ये लो, ये सब धो डालो।

(सत्तू ने कुछ कपड़े अल्का को देते हुए कहा)

तभी सत्तू की अम्मा घर में सामने जाते हुए दिखी, अल्का ने झट से सत्तू के कान हल्का सा पकड़े और बोली- अभी अम्मा देख लेती तो....थोड़ा सा भी सब्र नही है...मेरे भैया को।

सत्तू- कैसे सब्र होगा, जब इतनी रसीली बहन हो पास में।

अल्का शर्मा गयी, सत्तू के T Shirt का कॉलर पकड़ के बोली- इसको भी उतार के दो इसको भी धोना है।

सत्तू ने झट से अल्का के सामने ही पहनी हुई T Shirt उतार दी, अल्का ने सत्तू के ऊपरी नग्न बदन को मुस्कुराकर निहारते हुए वो T Shirt जैसे ही ली, उसकी जेब में रखा वो कर्म का कागज फर्श पर गिर पड़ा, ये कागज इस T Shirt में तब से पड़ा हुआ था जब सुखराम के यहां से आते वक्त सत्तू ने रास्ते में इसे पढ़ा और फिर इसको जेब में रख लिया था, तभी से ये जेब में पड़ा ही था, और इत्तेफ़ाक़ देखो न इसपर किसी की नज़र पड़ी और एक दो दिन में जो हुआ सत्तू उसमें इतना खो गया कि उसको अपने कर्म का ध्यान ही नही रहा, अब जब कागज T Shirt से निकलकर जमीन पर गिरा, तो सत्तू उसको देखकर चौंक गया, सत्तू के उठाने के पहले ही अल्का ने वो कागज उठा लिया, पर वो स्वयं ही सत्तू को देते हुए बोली- ये कैसा कागज है? देखो अभी कपड़ो के साथ धुल जाता न, क्या है ये?

सत्तू- है मेरी बहना कुछ बताऊंगा बाद में।

अल्का- ऐसा क्या है इसमें, बहुत पुराना सा कागज है ये।

सत्तू- अब तुम भी थोड़ा सब्र रखो मेरी बहना, बताऊंगा।

अल्का मुस्कुराती हुई कपड़े लेकर चली गयी, सत्तू का तो माथा ठनक गया, इतना लापरवाह वो कैसे हो सकता है, अगर ये कागज किसी और के हाँथ लग जाता तो। कागज में लिखी सारी बातें उसके दिमाग में घूम गयी, कर्म भी समय से पूरा करना था, घर की कोई भी स्त्री अब नही बची थी जो उस कर्म के दायरे में न आती हो, ये क्या इत्तेफ़ाक़ था, क्या ये होनी थी जो उसने उसकी सगी बहन को उसकी भाभी बनवा दिया, स्वयं उसके मुंह से, उस वक्त उसे न तो उस कागज का ध्यान था और न ही उसमें लिखे कर्म का, ये सब क्या हो रहा था, ये सब उसने भावनाओं में बहकर या न जाने क्या था उसमे बंधकर ये सब कर डाला, उसे खुद भी यकीन नही हो रहा था, पर इतना तो जरूर था कि कोई तो है जो उसका रास्ता बना रही है और ये कोई और नही "होनी" ही है।

सत्तू उस कर्म के बारे में सोचने लगा, उसको ये कर्म वक्त रहते पूरा भी करना था।

उस कागज को उसने फिर भी फाड़ा नही, अपने ही कमरे में छुपाकर रख दिया, ये सोचकर कि जब कर्म पूरा हो जाएगा तो इसको जला देगा।

दोपहर के वक्त सौम्या ने आवाज लगाई- अल्का...... किरन।

दोनों एक साथ- हाँ.... भौजी., हाँ.....दीदी

सौम्या- दोनों जा के खेत से शाम के लिए थोड़ा चार इकठ्ठा कर लो गायों और भैंसों को देने के लिए..... अब बाबू तो हैं नही और अम्मा भी व्यस्त हैं दूसरे काम में.....तुम दोनों ही चली जाओ।

सत्तू उस वक्त किसी काम से अपने मित्र के यहां गया हुआ था।

सत्तू जब आया तो देखा घर में केवल सौम्या भाभी ही थी।

सत्तू- भाभी मां, कहाँ गए हैं सब?

सौम्या- आ गए देवर जी....अल्का और किरन तो खेत में गए हैं और अम्मा पड़ोस में गयी हुई है किसी काम से।

सत्येंद्र सौम्या के कमरे में आ गया, उस वक्त वो नहा कर आई थी और आईने के सामने कंघी कर रही थी, महरूम रंग की साड़ी में सौम्या गज़ब ढा रही थी, जैसा नाम था उसका वैसी वो थी भी, गोरा गोरा भरा हुआ बदन, चौड़े नितंब, मोटे मोटे दोनों स्तन, अभी अभी बस नहा कर आई ही थी और श्रृंगारदान के सामने बैठकर गीले बालों को सुखा रही थी, गीले बालों से टपककर पानी सौम्या के ब्लॉउज को पीठ पर और साइड से हल्का हल्का भिगो चुका था, ब्लॉउज भीगने पर साइड से गोरी गोरी चूची हल्का हल्का ब्लॉउज के ऊपर से ही चमक रही थी, जिसपर सत्तू का ध्यान जाते ही वो कुछ देर वहां देखता रहा, सौम्या इस बात से बेखबर हाँथ उठा उठा कर कभी बालों को कंघी करती कभी थोड़ा झटक झटक कर बाल सुखाती, झटकने से मोटे मोटे दूध कलश और हिल जाते, जिसे देखकर सत्तू बेसुध सा हो रहा था, अपनी भाभी माँ को उसने पहले कभी ऐसे नही देखा था, पर इस कर्म ने तो उसका उसके घर ही सभी स्त्रियों के प्रति सोच ही बदलकर रख दिया था, जबकि उसकी खुद की शादी होने वाली थी, सब कुछ उसको मिलता, पर उसकी जो सोच अब बदल गयी थी वो उसके अधीन हो चुका था।

सत्तू ने सौम्या से पूछा- कब तक आएंगे सब भाभी माँ?

सौम्या ने कंघी करते हुए पलटकर सत्तू की ओर देखते हुए कहा- अभी अभी तो गए हैं, वक्त तो लग ही जायेगा आने में सब को......बैठ न खड़ा क्यों है....जब से आया है बस खड़ा खड़ा मुझे ही देखे जा रहा है, अपनी भाभी माँ को आज पहली बार देख रहा है क्या?

सत्तू पास में ही बेड पर बैठ जाता है- नही भाभी माँ, देख तो मैं आपको बचपन से रहा हूँ पर न जाने क्यों आज आपको बस देखने का मन किये जा रहा है।

सौम्या जोर से हंसते हुए बोली- अच्छा तो ये बात है....तो देख ले तू अपनी भाभी माँ को.....कहाँ भागी जा रही हूं मैं?....रुक पानी लाती हूँ तेरे लिए......कहाँ गया था तू?......मुझे बता कर जाया कर.....अम्मा भी पूछ रही थी?

सत्तू- अच्छा मेरी भाभी माँ..... अब से बिना आपको बताए मैं कहीं नही जाया करूँगा.....मैं जानता हूँ आप मेरी बहुत फिक्र करती हैं।

सौम्या कंघी करके उठी और सत्तू के बगल से जाते हुए उसके सर पर बालों को हल्का सा सहलाते हुए, ये बोलते हुए उसके लिए पानी लाने निकली की "ये हुई न मेरे देवर वाली बात"।

सत्तू पहले तो बेड के किनारे बैठा था पर फिर वो सिरहाने पर टेक लगा कर ठीक से दोनों पैर ऊपर करके बैठ गया।

सौम्या उसके लिए पानी लायी और उसके बगल में ही बेड पर बैठ गयी।

सत्तू- बच्चे कहाँ गए हैं?

सौम्या- किरन और अल्का के साथ खेत में गए हैं जिद करके......पर आज मेरे देवर जी ऐसे क्यों पूछ रहे हैं बार बार.....ह्म्म्म.....हम दोनों ही घर में हैं बाबा कोई नही है.....लो पानी पियो पहले।

सत्तू ने पानी पिया और सौम्या को देखने लगा।

सौम्या भी उसको देखते हुए बगल में बैठे बैठे हल्का हल्का उसके बालों पर हाँथ फेरती रही फिर बोली- कितना बड़ा हो गया न तू......शादी होने वाली है तेरी.....ये मेरा देवर देखते देखते कितनी जल्दी इतना बड़ा हो गया।

सत्तू थोड़ा उदास हो गया, सौम्या ने भांप लिया और बोली- क्या हुआ, चेहरे पर ये उदासी क्यों, तुम्हें तो खुश होना चाहिए, नई दुल्हनिया आने वाली है जीवन में.... ह्म्म्म

सत्तू- उदास न होऊं तो और क्या करूँ? इस जवानी ने मेरा बचपन तो छीन लिया न, मेरा वो हक़ तो छीन ही लिया न जब मैं बेधड़क अपनी भाभी माँ की गोद में समा जाता था, न किसी का डर होता था न किसी बात का संकोच, आखिर समय ने कुछ दिया है तो कुछ छीना भी तो है न, अगर पाने वाली चीज की खुशी से खोने वाली चीज का दुख कहीं ज्यादा गहरा हो तो पाने वाली चीज में वो सुख नही रह जाता..भाभी माँ, सोचो न एक वक्त वो होता था जब मैं निसंकोच आपकी गोदी में समा जाता था और आप मुझे प्यार कर लेती थी, पर आज....क्या मैं ऐसा कर सकता हूँ.....नही न.....क्या फायदा ऐसा बड़ा होने से जिसने मुझे मेरी भाभी माँ छीन ली।

ये सुनते ही सौम्या के आंसू छलक आते हैं, वो एक टक सत्तू की आंखों में देखने लगती है, सत्तू की आंखों में भी आंसू आ जाते हैं।

सौम्या झट से बेड पर चढ़कर सत्तू के बगल में बैठते हुए उसे गोदी में लेकर अपने गले से लगा लेती है, वो रुआँसी सी हो गयी थी, सत्तू की भी आँखे छलक आयी थी।

सौम्या- मुझे माफ़ करदे सत्तू......तू मुझे इतना miss करता है......मैं कितनी गंदी हूँ न....मैं अपने देवर को कैसे भूल सकती हूं.....तू चाहे कितना भी बड़ा हो जाये तू मेरा वही प्यारा सा सत्तू है, ऐसा नही है कि मैं तुझे याद नही करती या तुझे गोद में लेकर प्यार नही करना चाहती पर यही सोचकर रह जाती थी कि कोई देख न ले, कोई क्या सोचेगा, आज तुझे उदास देखकर मुझे खुद पर शर्म आ गयी कि मैं कैसे बदल सकती हूं, नही मेरे सत्तू मैं बदली नही हूँ मैं वही हूँ, वही तेरी सौम्या भाभी।

सत्तू ने सौम्या के गालों पर बहते आंसू को पोछा और बोला- मैं भी तो कितना गंदा हूँ न, देखो न कैसे मैंने अपनी प्यारी सी भाभी को रुला दिया।

सौम्या- नही सत्तू....तूने मुझे रुलाया नही है......बल्कि तूने तो भटकी हुई अपनी भाभी को दुबारा पा लिया है।

सत्तू- मैं तुम्हें कहीं खोने ही नही दूंगा.....तुम ही खो जाओगी तो मैं जीऊंगा कैसे?

सौम्या- मेरे बिना तू नही रह पाएगा....अगर मुझे कुछ हो गया तो....

सत्तू ने तुरंत सौम्या के लबों पर उंगली रखते हुए बोला- ये क्या बोले जा रही हो.....मर जाऊंगा मैं आपके बिना.....मेरी जीवनदायनी हो तुम, तुमने मुझे पाल पोषकर बड़ा किया है....आपके बिना मैं रह पाऊंगा क्या?.......आपको पता है पालने वाला जन्म देने वाले से भी कहीं बड़ा होता है।

ये सुनते ही सौम्या आत्मविभोर होकर सत्तू से लिपट जाती है, दोनों एक दूसरे को कस के बाहों में भर लेते हैं। सौम्या के एक बार फिर से आंसू छलक आते हैं वो बस सत्तू के कान में धीरे से बोलती है- मुझे माफ़ करदे सत्तू।

सत्तू- भाभी....मेरी भाभी माँ.... ये क्या बोल रही हो तुम.....अब ऐसा मत बोलना की "मुझे माफ़ कर दे" तुम्हारी कोई गलती थोड़ी है, तुम्हारी जगह कोई भी दुसरी औरत होती तो वो भी यही करती, अब इन प्यारी प्यारी आंखों से आंसू नही आने चाहिए, जिसने मुझे जीवन दिया उसकी आँखों में आंसू मैं बर्दाश्त नही कर सकता।

(सत्तू ने सौम्या के आंसू पोछते हुए कहा, दरअसल सौम्या बहुत मार्मिक हृदय की थी, झट से उसकी आँखों में आंसू आ जाते थे, अल्का की तरह वो बहुत चंचल और बातूनी नही थी, उसका स्वभाव अलग था, सुन्दरता में वो किसी भी तरह से किसी से भी कम नही थी, हाँ इतना जरूर था कि उसका बदन भरा हुआ था जो कि उसकी सुंदरता को और चार चांद लगा देता था)

सौम्या सत्तू को अच्छे से बाहों में लेकर बेड पर बैठ जाती है, सत्तू अब इस गमहीन माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए ऐसी ऐसी बातें करने लगता है कि सौम्या खिलखिला कर हंस पड़ती है, सारा माहौल बदल जाता है, दोनों कभी हंसते, कभी एक दूसरे की आंखों में देखते, सौम्या बीच बीच में सत्तू को दुलारती, कभी उसके माथे को चूमती, कभी बालों में उंगलियां फेरती, बचपन की बहुत सारी बातें करते हुए सौम्या ने बीच में कहा- रुक बाहर का दरवाजा बंद करके आती हूँ, कहीं कोई आ न जाये।

सत्तू- खुला ही रहने दो न भाभी, बंद करके रखोगी तो किसी को भी शक होगा।

सौम्या ने सत्तू की को देखा और बोली- शक.....अगर होता भी है तो होने दो....अब नही सोचना मुझे इस बारे में कुछ भी। वैसे मैं बस हल्का सा दरवाजा सटा कर आती हूँ।

सत्तू- तुम रुको भाभी मैं करके आता हूँ।

सौम्या फिर बेड पर लेट ही गयी और सत्तू बाहर का गेट हल्का सा सटा कर आ गया, आकर देखा तो सौम्या बाल खुले करके बेड पर लेटी सत्तू को ही निहार नही थी, उसकी आँखों में देखता हुआ वो भी बेड पर उसकी बगल में लेट गया, सौम्या खुद ही और नज़दीक आ गयी और देखते ही देखते न जाने कब दोनों ने एक दूसरे को बाहों में भर लिया, अभी तक सौम्या को sensation नही हुआ था पर अब जैसे ही लेटकर सत्तू ने उसे बाहों में भरा उसे एक अजीब सा अहसाह हुआ, भले ही सत्तू को वो एक बेटे की तरह देखती आयी थी पर अब वो बड़ा हो चुका था, और काफी अरसे बाद ही इस तरह वो उसके साथ लेटी थी, चाहे जो भी हो था तो वो एक पुरुष ही, इससे पहले अभी कुछ देर पहले ही जब बैठकर वो उसे बाहों में लिए थी तब तक भी उसे ऐसी फीलिंग नही आई थी, पर जिस कदर वो लेटकर एक दूसरे में समाये थे वो केवल एक देवर भाभी का वात्सल्य प्रेम नही था उसमे कुछ मिक्स था जिससे अब उसका बदन सनसना गया था, जिस कदर सत्तू ने उसे आगोश में भरा था, वो कुछ अलग सा था, और इस अलग से अहसाह को महसूस करते ही सौम्या की लगभग एक साल से दबी हुई पुरूष स्पर्श की इच्छा जागृत हो उठी, दिल के किसी कोने में वो अपने बेटे जैसे सत्तू को एक पुरूष के रूप में स्वीकार करके हल्का लजा सी गयी, पर उसने जरा भी सत्तू को ये अहसाह नही होने दिया की उसके इस तरह स्पर्श से उसे कैसा महसूस हुआ है, अपना सिर उसने सत्तू के सीने में छुपा लिया।

सत्तू- भाभी जब मैं छोटा था तो ऐसे ही सोता था न आपके पास।

सौम्या मुस्कुराते हुए- नही ऐसे तो नही सोते थे।

सौम्या कहकर हंसने लगी

सत्तू- क्या? ऐसे नही सोता था.....क्या भाभी ऐसे ही तो सोता था।

सौम्या- ऐसे नही एक बच्चे की तरह सोते थे......समझे।

सत्तू- तो क्या अब बच्चे की तरह नही सो रहा हूँ?

सौम्या हल्का सा शर्मा कर- नही......जी बिल्कुल नही......ऐसे सो रहे हो जैसे कोई मर्द अपनी.......

कहते हुए सौम्या शर्मा कर उसके सीने में छुप सी गयी।

सत्तू को को मन ही मन बहुत खुशी हो रही थी।

सत्तू- जैसे कोई मर्द.....आगे....मैं समझ नही भाभी....बता तो दो।

सौम्या ने सिर उठा के सत्तू को देखा फिर बोली- जैसे कोई मर्द अपनी बीवी के साथ सोता है.....जब तू छोटा था तो ऐसे थोड़ी सोता था।

सत्तू- भाभी.....अब जहां तक मुझे याद है मैं तो आपसे ऐसे ही लिपट कर सोता था।

सौम्या- हाँ पर अब वो छोटा बच्चा अब बच्चा थोड़ी न रहा।

सत्तू- तो अजीब लग रहा है मेरी भाभी माँ को।

सौम्या का चेहरा अब शर्म से लाल हो गया वो सत्तू के सीने में फिर दुबक गयी।

सत्तू- पता है भाभी माँ कैसी लग रही हो।

सौम्या धीरे से- कैसी?

सत्तू- जैसे कि मेरी बच्ची हो तुम, एक छोटी सी बच्ची की तरह कैसे दुबकी हुई हो।

सौम्या मंद मंद मुस्कुरा उठी फिर बोली- हाँ तो अभी तक तुम मेरे बेटे जैसे, मेरे बच्चे जैसे थे और....लो अब मैं भी तुम्हारी बच्ची बन जाती हूँ।

सत्तू- हां क्यों नही.....जब आपने मुझे बचपन से अपना बच्चा बना के प्यार दिया है तो मैं भी अब अपनी भाभी माँ को अपनी बच्ची की तरह प्यार दूंगा।

सौम्या फिर हंस पड़ी- मैं बच्ची हूँ तुम्हारी।

ऐसा कहकर सौम्या हँसते हुए सत्तू को देखने लगी

सत्तू- क्यों नही........(कुछ देर एक दूसरे को देखने के बाद सत्तू फिर धीरे से बोला)......मेरी बच्ची।

सौम्या- धत्त.....कैसा लग रहा है......बहुत अजीब लग रहा है ऐसे न बोल।

सत्तू अब कहाँ चुप होने वाला था, उसने धीरे धीरे कई बार सौम्या के कानों में "मेरी बच्ची", "मेरा बच्चा" "मेरा शोना" बोलता रहा और हर बार सौम्या कभी खिलखिलाकर हंस देती, कभी आंख बंद कर एक अजीब से रोमांच को महसूस करती, कभी सत्तू के सीने में प्यार से मुक्का मारती, बार बार शर्माकर यही बोलती की "तेरी बच्ची हूँ मैं.....बहुत अजीब सा लग रहा है।"

जब काफी देर से सत्तू सौम्या को बार बार "मेरी बच्ची" बोलता रहा तो सौम्या ने साड़ी का पल्लू उठा के चेहरा ढंक लिया और बोली- जा मैं नही सुनती।

सत्तू- नही सुनने के लिए कान ढका जाता है, न कि चेहरा।

सौम्या फिर हंस पड़ी और झट से अब खुद ही बोल पड़ी- अच्छा मेरे बाबू जी....मुझे नही पता था।

सत्तू उसे देखने लगा फिर बोला- मैं बाबू जी हूँ तुम्हारा?

सौम्या अब थोड़ा शरारत से- क्यों नही, जब मैं तुम्हारी बच्ची हुई, तो हुए न तुम मेरे बाबू जी....अब मैं भी बाबू बोलूंगी...... बहुत देर से बच्ची बच्ची बोले जा रहे हो।

सत्तू ने फिर कह दिया- मेरी बच्ची

सौम्या शर्माकर- मेरे बाबू जी

सत्तू- मेरी प्यारी बच्ची

सौम्या हंसते हुए- मेरे प्यारे बाबू जी

(दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते हुए कई बार ऐसे बोलते रहे, पर सौम्या का बदन अंदर से हर बार गनगना जा रहा था, वो शर्म से दोहरी भी होती जा रही थी और बराबर साथ भी दे रही थी)

तभी सत्तू बोला- कौन से बाबू?

सौम्या ने सवालिया निगाहों से सत्तू को देखा और बोली- मतलब

सत्तू- बाबू जी तो दो हुए न, एक पिता और एक ससुर जी.....तो मैं कौन सा?

सौम्या ने एक मुक्का सत्तू के सीने में मारा- जैसी मैं बच्ची वैसे मेरे बाबू जी.....और क्या?

सत्तू- पर सबसे ज्यादा मजा किसमे आ रहा है...... मेरी बच्ची

सौम्या अब काफी खुल सी गयी थी उसने झट से सत्तू के गाल पर चिकोटी काटी और बोली- जिसमे मेरे बाबू जी को मजा आ रहा होगा उसमे ही मुझे भी आएगा।

(सौम्या शर्माते हुए धीरे धीरे खुलती जा रही थी)

सत्तू- पर मन तो कह रहा है कि एक बार चेक करूँ।

सौम्या मुस्कुराते हुए सत्तू की आंखों में देखती रही, दोनों ने एक दूसरे को बाहों में कसा हुआ था, सौम्या धीमी आवाज में बोली- तो कर लो चेक।

(सौम्या की आवाज अब थोड़ी भारी सी होने लगी थी)

सत्तू जो सौम्या के दाईं तरह लेटा हुआ था वो उसके ऊपर धीरे से चढ़ने लगा, सौम्या उसकी मंशा समझ वासना से भर गई, उसकी सांसें धीरे धीरे तेज होने लगी, झट से उसने साड़ी का पल्लू अपने चेहरे पर डाल लिया, शर्म से वो अब पानी पानी हुई जा रही थी, पर न जाने क्यों वो सत्तू को रोक न सकी, आंखें बंद किये बस वो उसे अपने ऊपर चढ़ाती गयी और सत्तू धीरे धीरे अपनी भाभी माँ के ऊपर चढ़ता गया, कुछ ही पलों में वो सौम्या के ऊपर चढ़ चुका था, मस्ती और वासना में वो सुध बुध खो बैठी थी, जैसे ही सत्तू सौम्या के ऊपर पूरी तरह चढ़ा उसने पीठ के नीचे हाँथ ले जाकर सौम्या को कस के बाहों में भर लिया, और अब जो सौम्या के मुँह से आवाज निकली वो एक मादक सिसकारी थी, जिसको दोनों ही अच्छे से समझ
चुके थे कि ये मादक सिसकारी कब और क्यों निकलती है और इसका मतलब क्या होता है।

सौम्या मदहोशी में खोई हुई थी सत्तू ने पीठ के नीचे से दोनों हाँथ निकालकर सौम्या के पैरों को पकड़ा और जैसे ही हल्का सा फैलाने की कोशिश की सौम्या ने खुद ही अपने दोनों पैर फैलाकर उसकी कमर में लपेट दिए, दोनों ही अब एक दूसरे की मंशा जान चुके थे, दोनों की ही सांसें तेज चलने लगी।

सौम्या का गदराया भरपूर बदन सत्तू के नीचे दबा हुआ था, पैर कमर पर लिपटे होने की वजह से साड़ी घुटनों के ऊपर तक उठ गई थी जिससे सौम्या के नंगे गोरे गोरे पैर दिन की रोशनी में चमक उठे।

सत्तू को अब पूर्ण विश्वास हो चुका था कि सौम्या के मन में भी क्या है, और उसे ये सब अच्छा लग रहा है, उसने अपनी भाभी के मन को टटोलने के लिए, की उसे कौन से बाबू सोच कर ज्यादा उत्तेजना हो रही है, धीरे से उसके कान में कहा- मेरी बच्ची...मेरी बहू

सौम्या ये सुनते ही गनगना सी गयी, सत्तू ने कई बार उसे बहू कहकर बुलाया, हर बार सौम्या हल्का सा गनगना जाती और कस के सत्तू को भींच लेती, पर कुछ देर बाद जैसे ही सत्तू ने उसके कान में फिर धीरे से बोला- मेरी बच्ची मेरी बेटी

सौम्या के मुँह से सिसकी फुट पड़ी, सत्तू ने फिर एक दो बार सौम्या के कान में "मेरी बेटी", "मेरी बिटिया" बोला और हर बार सौम्या सिसकते हुए कराह उठी। सत्तू का लंड खड़ा होकर लोहे की तरह हो गया, जो कि सौम्या की जाँघों के बीच चुभता हुआ उसे बखूबी महसूस होने लगा, जिससे अब सौम्या का बुरा हाल होने लगा, आज जीवन में पहली बार वो सत्तू का लंड महसूस कर रही थी, उस सत्तू का जो उसके बेटे के समान था, जिसको उसने कभी अपनी गोद मे खिलाया था, कभी कभी वो जब छोटा था तो वो उसके सारे कपड़े उतार के मालिश कर दिया करती थी उस वक्त का उसका छोटा सा नुन्नू आज कितना बड़ा और मोटा सा तना हुआ उसे साड़ी के ऊपर से अपनी बूर पर चुभता हुआ महसूस हो रहा था, जिसको महसूस कर वो खुद को मदहोश होने से नही रोक पा रही थी।

ऊपर से सत्तू ने जो उसे बेटी कहकर बुलाया तो एक अजीब सी गुदगुदी उसके पूरे बदन में दौड़ गयी।

सत्तू बार बार उसे मेरी बेटी, मेरी बिटिया रानी कहकर बुला रहा था, जब उससे रहा नही गया तो उसने भी धीरे से सिसकते हुए बोल ही दिया- पिताजी......मेरे पापा

सत्तू की सिसकी निकल गयी, (उसे विश्वास नही हुआ कि उसकी सौम्या भाभी "बाप बेटी के बीच" सोचकर वासना में डूबती हैं) वो फिर बोला- बेटी...मेरी बेटी


सौम्या मदहोशी में- पापा..... मेरे पापा

सत्तू- तू मेरी बेटी है न

सौम्या- आआह!.....हां.... मैं आपकी बेटी हूँ... आपकी बिटिया रानी.....मुझे अपनी बेटी बना ले सत्तू

सत्तू से अब रहा नही गया, वो समझ गया कि उसकी भाभी को कहां बहुत मजा आ रहा है, उसने अब अपने लंड से सौम्या की बूर पर सूखे सूखे हल्के हल्के धक्के मारने लगा, सौम्या बेहद शर्माते हुए सत्तू के गाल पर हल्का सा काट बैठी, उसके मुंह से हल्की हल्की सिसकारी फूटने लगी, सत्तू ने साड़ी के ऊपर से ही अपनी भाभी माँ की बूर पर लंड रगड़ते हुए फिर धीरे से बोला- मेरी बेटी

सौम्या फिर सिसकते हुए बोल पड़ी- आआह पापा..... मेरे प्यारे पापा...... करो न

"करो न" शब्द सुनकर सत्तू मानो पागल सा हो गया, उसे विश्वास नही हुआ कि आज उसकी वो भाभी जो उसकी माँ समान थी, इतनी मदहोश हो जाएगी कि वो इस कदर बोल पड़ेगी की "करो न"।

सत्तू धीरे से बोला- क्या करूँ मेरी बिटिया

सौम्या- अपनी बिटिया को प्यार...प्यार करो न पापा।

सत्तू बहुत शातिर था, वो इससे आगे नही बढ़ना चाहता था, वो तो बस अपनी भाभी माँ की दबी हुई कामेच्छा को जगाना चाहता था, इसलिए आज वो सौम्या को यहां तक ले आया था, और सच तो ये है कि सौम्या के मन में भी ये कहीं न कहीं था, तभी दोनों यहां तक आ पाए थे।

सत्तू- अब तुम मेरी बेटी बन गयी हो तो मैं अपनी बेटी को तसल्ली से प्यार करना चाहूंगा, जब किसी के आने का कोई डर न हो, थोड़ा सब्र रखोगी मेरी बेटी।

सौम्या ने आंखें खोलकर सत्तू को वासना भरी आंखों से देखा, और फिर शर्मा कर बोली- मैं इंतज़ार करूँगी।

सौम्या की कामेच्छा जाग चुकी थी। सत्तू ने अब कुछ ऐसा किया कि सौम्या हल्का सा चिहुँक सी गयी पूरा कमरा सिसकारी से गूंज उठा, सत्तू ने अपने दाएं हाँथ से सौम्या की बूर को साड़ी के ऊपर से ही मुठ्ठी में भरकर हल्का सा भींच दिया, सौम्या सिसक पड़ी और धीरे से खुद ही बोली- पापा बस

तभी बाहर किसी की आहट की आवाज हुई और दोनों बेमन से झट से फटाफट अलग हुए, सौम्या ने जल्दी से अपनी साड़ी को ठीक किया और सत्तू अपना खड़ा लंड ठीक करता हुआ चुपके से कमरे से निकलकर अपने कमरे में जाकर आंख बंद करके लेट गया, जैसे मानो वो काफी देर से सो रहा हो।
Very seductive and erotic update
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
2,991
6,070
143
Behtareen kamuk kahani ka iss tarah adhura rahna ghore apraadh hai sabhi ke dilo me machalti kaam Agni ka taap writer mahoday ko lagegi aur kahani puri na karne par virah ki Agni me jaalna padega 🤣🤣🤣
 
Top