Update- 10
किरन घर में जाते ही आवाज लगाते हुए बोली-भौजी......कहाँ हो?......बाबू जी आ गए हैं......पानी दे जरा उनको पीने के लिए।
अल्का- हां दीदी......अभी आयी.....ये आंटा गूंध रही हूं, जरा ले लोगी, मेरे हांथ में आंटा लगा है।
किरन- अच्छा रहने दे मैं खुद ही ले लूँगी....... काला वाला देसी गुड़ कहाँ रखा है।
अल्का- वहीं कोठरी में बड़की संदूक के बगल में मटकी में रखा है।
किरन ने जल्दी से भउकी उठायी और उसमे गुड़ निकाल कर एक लोटे में पानी लिया और कोठरी से निकल कर रसोई के सामने से जब जाने लगी, तो अचानक ही सामने अल्का पर नज़र पड़ी जो उकडू बैठ कर हुमच हुमच कर आटे को अच्छे से गूँथने में लगी थी, पल्लू सरक कर नीचे गिरा हुआ था और ब्लॉउज में गोरी गोरी दोनों मखमली चूचीयाँ ऐसे थिरक रही थी की उनको देखकर किरन की भी सिसकी निकल गयी, दोनों गुदाज दूध के कलश ऐसे उभरकर बाहर आने को तैयार थे की मानो ब्लॉउज के अंदर उनका दम घुट रहा हो, गोरी गोरी दोनों चुचियों के बीच की घाटी ने तो किरन का मन मोह लिया।
वो तुरंत रुककर बोली- हाय भौजी काश मैं भैया होती।
अल्का का ध्यान अब किरन पर गया- क्यों?
जल्दी से किरन ने जीभ को बड़े ही कामुक ढंग से अपने होंठों पर फिराते हुए आंखों से छलकती चूची की ओर इशारा किया, तो अल्का ने सर झुका कर अपनी चूचीयों को देखा और लजाते हुए मुस्कुराकर बोली- तेरे खरबूजे क्या कम हैं क्या, हाय देखो कैसे दोनों खरबूजे की दोनों मूंगफली ब्लॉउज के ऊपर से ही झलक रही है, गुड़ तो तू ले ही जा रही है, बस उसमे ये मूंगफली मिला ले और फिर बन जायेगा ग़ज़्ज़क और बाबू को खिला देना, मस्त न हो जायें बाबू तो कहना। हाय तुम्हारे खरबूजे मेरी ननद रानी।
अल्का तो थी ही बदमाश, ईंट का जवाब पत्थर से दे दिया उसने, किरन शर्म से दोहरी हो गयी - तुम आंटा गूंथ लो फिर बताती हूँ तुम्हे, मूंगफली की ग़ज़्ज़क बहुत बनानी आती है न तुम्हें, तुम्हारी मूंगफली नही दबोची न तो मेरा नाम नही।
दोनों हंसने लगी, अल्का बोली- अच्छा जा पहले खरबूजा खिला के आओ फिर मूंगफली दबोचना।
किरन शर्म की लाली चेहरे पर लिए बाहर आई और तब तक सत्तू ने काम खत्म कर लिया था, तब तक सौम्या भी वहां आ गयी थी और सत्तू की अम्मा भी, सत्तू के बाबू ने पानी पिया और सब शादी का कार्ड देखने लगे, इधर उधर की बातें होने लगी। किरन बार बार कनखियों से सत्तू को देखती, हल्का मुस्कुराती, सत्तू कभी अपनी भाभी मां को देखता कभी बहन किरन और मां को, शादी के कार्ड को कल से ही बांटने का निर्णय लिया गया, सत्तू के बाबू ने कल दो चार रिश्तेदारियों में जाने की बात कही, सत्तू बोला- बाबू जी मैं चला जाऊंगा। तो उन्होंने उसको एक दो दिन बाद से बाटने के लिए बोला, उनका कहना था कि अभी एक दो दिन तुम घर के काम देख लो, फिर कार्ड बाटने में मदद करना, बातचीत खत्म हुई और सबने खाना खाया, शाम हो गयी।
सत्तू शाम को बहाना करके बाजार गया, उसने रसगुल्ले लिये और एक नाक की नथनी खरीदी, घर आके समान छुपा के रख दिया। रात का इंतज़ार होने लगा, इधर किरन ने अपने मन का दुख एक कागज पर लिखा और उसको अपने ब्लॉउज में खोंस लिया, अल्का ने रात को सबका खाना परोसने से पहले अपने कमरे में रेशम के सुंदर धागों से एक प्यारी सी राखी बनाई और थाली का सारा सामान तैयार कर लिया, सबने फिर खाना खाया और अपनी अपनी खाट पर सोने की तैयारी होने लगी, सौम्या और किरन अपने अपने कमरे में सोती थी, किरन वैसे तो कभी अल्का के साथ या कभी सौम्या के साथ या फिर कभी बाहर अम्मा के बगल में खाट डाल के सो जाया करती थी, पर आज वो अम्मा के साथ बाहर ही सो रही थी। अल्का ने सोने से पहले नहाया और अपने कमरे में आके लेट गयी, नींद न तो सत्तू की आंखों में थी और न ही अल्का के, किरन का भी मन हल्का हल्का मचल रहा था, कुछ देर न जाने क्या सोचते सोचते वो नींद की आगोश में चली गयी।
जैसे ही 2 बजने में कुछ वक्त बाकी रह गया सत्तू धीरे से खाट से उठा और दबे पांव घर में चला गया, अल्का ने दरवाजा पहले ही खुला रख छोड़ा था, रात के अंधेरे में बहुत हल्का हल्का दिख रहा था, किसी तरह अपने कमरे तक पंहुचा, सत्तू ने अपने कमरे में जाकर कुर्ता पहना, अब तक आंखें अंधेरे में अभ्यस्थ हो गयी थीं, उसने रसगुल्ले का डब्बा लिया और नथनी की डिब्बी जेब में डालकर धीरे से दबे पांव छत पर गया, रात के अंधेरे में वो छत पर इधर उधर देखने लगा, अंधेरा होने के बावजूद भी हल्का हल्का दिखाई दे रहा था, आंखें अब तक तो इतनी अभ्यस्त हो ही गयी थी, छत पर उत्तर की तरफ कोने में छत की बाउंड्री की दीवार से सटकर अल्का खड़ी थी, सत्तू नजदीक गया, दोनों एक दूसरे को देखकर मानो चहक उठे, सत्तू से रहा नही गया उसने अल्का को बाहों में भर ही लिया, अल्का धीरे से भैया कहते हुए सत्येन्द्र की बाहों में ऐसे समा गई मानो बरसों की प्यासी हो, रेशमी साड़ी में उसका बदन और भी उत्तेजना बढ़ा रहा था, अल्का बार बार सत्तू को "भैया....मेरे प्यारे भैया....कहाँ थे अब तक......क्यों तड़पाया अपनी बहन को इतना.....अब कभी मुझे अकेला मत छोड़ना......आज मैं कितनी खुश हूं अपने भैया को पाकर" बोले जा रही थी।
सत्येंद्र के मुंह से भी "ओह मेरी बहन.....आज मुझे एक और बहन मिल गयी, तू कितनी प्यारी है.....अपनी ही भौजी को बहन के रूप में पाकर बहुत प्यारा और गुदगुदी जैसा अहसास हो रहा है।"
ये सुनकर अल्का मुस्कुरा उठी।
ऐसा कहकर सत्येंद्र ने अल्का को और कस के बाहों में भींच से लिया, उसके हाँथ हल्का सा अल्का की पीठ सहलाने लगे, जिसका अहसाह अल्का को बखूबी हुआ और लजाते हुए उसने "आह भैया" कहकर अपनी आँखें बंद कर ली, और जब अल्का के मुंह से आह भैया निकला तो सत्येन्द्र मन ही मन झूम उठा, उसने एक दो बार और कस कस के अल्का की पीठ को सहलाया तो अल्का अब हल्का सा सिसक भी उठी पर जल्दी से अपने को संभालते हुए बोली- ये सब बाद में पहले राखी।
सत्येन्द्र- क्या सब बाद में मेरी बहना।
अल्का हल्का सा शर्माते हुए- यही......बहन को बाहों में लेना।
सत्येन्द्र- अभी मन नही भरा।
अल्का- मैं चाहती भी नही की मेरे भैया का मेरे से मन भरे (अल्का ने ये बात सत्तू के कान में धीरे से कही)...पर पहले पूरी तरह बहन तो बना लो।
सत्येन्द्र- बहन तो तुम मेरी हो ही.....बन गयी न बहन।
अल्का- पवित्र राखी का धागा बंधने के बाद......जितना जी करे उतना बाहों में भर लेना.....चलो बैठो...... मेरे भैया राजा।
अल्का ने बगल में रखी चटाई अंधेरे में बिछाई और दोनों आमने सामने बैठ गए, अल्का ने राखी की थाली बीच में रखी।
अल्का- किसी को आहट तो नही लगी तुम्हारे आने की।
सत्तू- नही......सब सो चुके हैं।
अल्का हल्का सा हंस दी फिर बोली- इसलिए ही तो रात के 2 बजे का वक्त रखा था।
ऐसा कहते हुए अल्का ने जैसे ही थाली में रखी माचिस उठा के जलाई, एक छोटी सी रोशनी ने दोनों के चहरे को जगमगा दिया, सत्तू अपनी अल्का को देखता ही रह गया, अल्का ने पल्लू सर पर रख लिया था, गोरा गोरा चांद सा मुखड़ा इतना खूबसूरत था कि कुछ पल वो अल्का को देखता ही रह गया, आज की अल्का उसने पहले कभी नही देखी थी, अल्का ने भी सत्तू को एक पल के लिए निहारा फिर मुस्कुराकर थाली में रखे दिए को जला दिया, दिए कि हल्की रोशनी फैल गयी, सत्तू तो एक टक अल्का को देखे ही जा रहा था और अल्का मुस्कुरा मुस्कुरा कर थाली सजा रही थी।
जैसे ही अल्का ने अपनी हाँथ की बनाई हुई रेशम के धागे की राखी थाली में रखी सत्तू ने उसे उठाकर देखा- कितनी प्यारी राखी बनाई है मेरी बहना ने, सच ये राखी बहुत अनमोल है, कितनी खूबसूरत है ये बिल्कुल मेरी बहन जितनी।
अल्का- तुम्हें पसंद आई भैया.....जल्दी जल्दी में बनाई मैंने, ज्यादा वक्त मिल नही पाया न।
सत्तू- इतनी खूबसूरत राखी मैंने आजतक नही देखी, कितना पवित्र है ये धागा.....पवित्र धागा।
अल्का- जैसे मेरा और आपका प्यार।
दोनों एक दूसरे को मुस्कुराते हुए देखने लगे।
अल्का- मिठाई लाये हो न भैया।
अब जाके सत्तू का सम्मोहन टूटा, अल्का हंस पड़ी- आज पहली बार देख रहे हो क्या?
सत्तू- सच आज जो देख रहा हूँ......पहली बार ही देख रहा हूँ.......कितनी खूबसूरत हो तुम.....बहुत.....बहुत खूबसूरत हो।
अल्का हंस पड़ी- बस बस, दुबारा बेसुध मत हो जाना मेरे भैया।
सत्तू ने रसगुल्ले का डिब्बा अल्का को थामते हुए कहा- बिल्कुल ऐसी ही मीठी हो तुम।
अल्का हंस पड़ी और डिब्बा खोला- सफेद बडे बडे रसगुल्ले देखकर वो सत्तू को देखने लगी और मुस्कुरा उठी, मेरे भैया को पता है मेरी पसंद।
सत्तू- क्यों नही पता होगी, बहन की पसंद भाई को तो पता होती ही है।
अल्का ने डब्बा बगल में रखा और सत्तू ने एक रुमाल निकाल कर अपने सर पर रख लिया, अलका ने थाली उठाकर सत्येंद्र की आरती की, सत्तू मंत्रमुग्ध सा अल्का को देख रहा था, आरती करने के बाद अल्का ने थाली में रखी रोली से सत्तू के माथे पर टीका किया, और अब उसने राखी उठायी और सत्तू ने सीधा हाँथ आगे कर दिया, अल्का "भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना" वाला गाना हल्का हल्का गुनगुनाते हुए राखी का पवित्र धागा उसकी कलाई पर बांधने लगी, दोनों के बदन में अलग ही रोमांच भरता जा रहा था सत्तू बस एक टक अल्का को देखे जा रहा था।
राखी बांधने के बाद अल्का ने कलाई में बंधी राखी को बड़े प्यार से चूमा और जैसे ही सर उठा के सत्तू को देखा वो उसे एक टक निहार रहा था, अलका ने धीरे से कहा- लो बन गयी मैं अब आपकी बहन.....ये कितना सुखद है.....इस राखी की लाज रखना मेरे भैया।
सत्तू ने बीच से थाली बगल में सरकाई और अल्का को खींच बाहों में भर लिया, अल्का भी झट से सत्तू की बाहों में जा समाई, सत्तू- "मेरी बहन"
अल्का थोड़ा भावुक होकर- "मेरे भैया आज से मैं और आप एक हैं।"
काफी देर तक दोनों चुपचाप एक दूसरे की बाहों में समाय एक दूसरे की रूह तक उतरते रहे, फिर अल्का धीरे से बोली- दिया जल रहा है, रोशनी में कोई देख न ले, पहले अंधेरा कर लो भैया, दिए को थोड़ा ओट में सरका दो।
सत्तू ने दिए को एक हाँथ से दीवार के किनारे रखकर उसके चारों तरफ बगल में पड़ी ईंट रखकर कुछ ऐसा ढंक दिया कि रोशनी बहुत कम हो गयी।
जैसे ही अल्का को दुबारा बाहों में कसना चाहा अल्का ने बगल में पड़े रसगुल्ले के डब्बे को उठाकर एक रसगुल्ला उसमें से निकालकर बोला- रसगुल्ला तो मैंने खिलाया ही नही अपने भैया को।
सत्तू- इस पवित्र बंधन की रसीली मिठाई तो हम एक साथ खाएंगे।
अल्का- एक साथ......मतलब
सत्तू ने अल्का के हाँथ से वो रसगुल्ला लिया और बोला तुम मुँह खोलो।
अल्का ने आ कर दिया।
सत्तू ने वो बड़ा सा रस टपकाता रसगुल्ला अलका के मुंह मे आधा भरा और बोला पकड़े रहना, अल्का को समझते देर न लगी और वो गनगना सी गयी, उसने आँखे बंद कर ली, सत्तू ने आधे रसगुल्ले को धीरे से मुंह मे भरा, दोनों के होंठ टकरा गए, अल्का पूरी तरह सिरह उठी और झट से सत्तू से कस के लिपट गयी, चूचीयाँ तो दोनों मानो रगड़ सी गयी सत्तू से सीने पर इतनी कस के अल्का उससे लिपटी हुई थी।
सत्तू- कितना मीठा बना दिया बहना तुमने इस रसगुल्ले को अपने होंठों से छूकर।
सत्तू ने रसगुल्ला मुँह में भरे भरे अल्का के कान में धीरे से कहा तो वो और भी सिरह गयी, चुप करके बस लिपटी हुई थी सत्तू से, और दोनों एक दूसरे से लिपटे हुए रसगुल्ले का आनंद लेने लगे, सत्तू- बहना एक और
अल्का ने एक रसगुल्ला और उठाया तो सत्तू बोला- पहले मेरी गोद में ठीक से बैठो।
अल्का- कैसे बैठूं बताओ।
सत्तू- दोनों पैर मेरी कमर के अगल बगल लपेटकर मेरी गोद में बैठो न।
अल्का- वैसे? (अल्का बेहद शर्मा गयी)
सत्तू- हां वैसे.....बैठो न
अल्का ने एक बार आस पास घूम कर देखा, हालांकि अंधेरा था, पर फिर भी वह पहले आश्वस्त हुई और धीरे से एक हाँथ में रसगुल्ला लिए दूसरे हाँथ से अपनी रेशमी साड़ी को थोड़ा ऊपर करके अपने दोनों पैर सत्तू के अगल बगल रखकर उसकी गोद मे बैठती चली गयी,
अब क्योंकि वो दोनों पैर खोलकर और अपने भैया की कमर पर लपेट कर उसकी गोद में बैठी थी जिससे उसकी साड़ी घुटनों तक उठ गई थी और उसकी अंदरूनी मांसल नग्न जांघे सत्तू की जाँघों पर सेट हो गयी थी, आज जीवन में पहली बार कोई जवान स्त्री जो कि उसकी भौजी और बहन थी जिसने अभी अभी उसे राखी बांधी थी, उसकी गोद में इस तरह साड़ी उठाकर सिर्फ एक बार कहने पर ही बैठ गयी थी, इस अहसाह से ही सत्तू का लंड संभालते संभालते भी तनकर लोहे ही तरह खड़ा हो ही गया, और क्योंकि पायजामे का कपड़ा हल्का था तो बखूबी उसका सख्त लन्ड अल्का की कच्छी के ऊपर से उसकी प्यासी बूर पर छूने लगा, जिससे अल्का बार बार सिरहकर, सिसक कर "ओह भैया" बोलते हुए सत्तू से लिपट ही जा रही थी, दोनों ही जान रहे थे कि वो क्या कर रहे हैं, लेकिन करना भी चाह रहे थे।
जोश के मारे सत्तू के तने हुए लन्ड की हलचल को जब अल्का ने अपनी बूर पर महसूस किया तो एक अजीब सी सनसनाहट से उसका बदन गनगना गया, लज़्ज़ा से भरकर वो झट से फिर से सत्तू की गोद में बैठे बैठे उससे लिपट गयी, उसके दिल की तेज धड़कन को सतेंद्र बहुत अच्छे से महसूस कर रहा था।
सत्येन्द्र के हाँथ अल्का की पीठ को हौले हौले सहला रहे थे जिससे अल्का सिसक उठी।
अल्का ने थोड़ा भारी आवाज में धीरे से कहा- भैया रसगुल्ला खा लो न, सारा रस टपक रहा है।
सत्तू- खिलाओ न मेरी बहना।
अल्का ने बड़ी अदा से रसगुल्ला आधा मुँह में लिया और सत्तू के होंठ जैसे ही रसगुल्ला काटते वक्त अल्का के होंठ से छुए, अल्का "बस" बोलते हुए झट से सत्तू से लिपट गयी।
सत्तू तरसता हुआ बोला- बहन.......छूने दो न
अल्का धीरे से कान में- क्या भैया?
सत्तू- अपने नाजुक होंठ।
अल्का शर्म के मारे दोहरी हो गयी, चुप से लिपटी रही साँसे उसकी काफी तेज ऊपर नीचे होने लगी।
सत्तू ने उसकी ब्लॉउज में से झांकती नंगी पीठ को हल्का सा दबाया और फिर बोला- बोलो न बहना, क्या इस पल को यादगार नही बनाओगी?
अल्का फिर भी कुछ न बोली बस उसकी साँसे ऊपर नीचे होती रहीं, कुछ पल के बाद उसने धीरे से "भैया" बोलते हुए सत्तू की गर्दन पर हल्का सा अपने नाजुक होंठ रगड़कर सिग्नल दिया, दोनों के रोएँ तक रोमांच में खड़े हो गए।
सत्तू अल्का को गोद में लिए लिए धीरे धीरे चटाई पर लेटता चला गया, जैसे जैसे अल्का चटाई पर लेटती गयी सत्तू अपनी बहन पर चढ़ता चला गया, दोनों के बदन एक हो गए, लज़्ज़ा और शर्म के साथ दोनों बुरी तरह एक दूसरे ले लिपटे हुए थे, अल्का के मुँह से हल्की हल्की सिसकियां निकलने लगी, सत्तू ने अल्का के दोनों पैरों को अलग किया तो अल्का ने पैर उठाकर सत्तू की कमर पर लपेट दिए, ऐसा करने से सत्तू के दहाड़ते लन्ड को रास्ता मिल गया और जैसे ही उसने कच्छी के ऊपर से अलका की फूली हुई प्यासी बूर पर दस्तक दी, अल्का बुरी तरह शर्माकर सत्तू से चिपकते हुए मचल उठी "बस भैया", इतना ही उसके मुंह से निकला और मस्ती में उसकी आंखें बंद हो गयी।
सत्तू ने धीरे से उसका चेहरा थामा और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये।
सब भूल गए दोनों, कुछ पता ही नही चला कि कब अल्का के होंठ खुल गए और दोनों एक दूसरे के मुँह में जीभ डाल डाल के एक दूसरे को चूमने लगे, हल्का हल्का अल्का सिसकते हुए "आह भैया....मेरे भैया....कहाँ थे अबतक" और सत्तू "मेरी बहना... मेरी जान....कितनी रसीली है तू.....तेरे गाल तेरे होंठ" बोले जा रहे थे।
दोनों बेसुध होकर तब तक एक दूसरे के चुम्बन में डूबे रहे जब तक होंठों में हल्का हल्का दर्द नही होने लगा, सत्तू का लन्ड पूरा सख्त होकर कच्छी के ऊपर से अल्का की बूर पर कब से दस्तक दे रहा था, जिसे महसूस करके अल्का लजाकर बार बार सिसक जा रही थी, सत्तू से रहा नही जा रहा था क्योंकि अल्का की बूर की फांके कच्छी के ऊपर ही उसे बखूबी महसूस हो रही थी जिसके बीच में वो अपना बेकाबू लन्ड काफी देर से हल्का हल्का रगड़ ही रहा था, अल्का के लिए भी बर्दाश्त कर पाना बहुत मुश्किल हो रहा था पर जैसे ही सत्तू ने एक दो सूखे धक्के बूर पर मारे अल्का ने सिसकते हुए उसके नितम्बों पर हाँथ रखते हुए उसे रोक लिया और स्थिति को काबू करते हुए बड़ी मुश्किल से सत्तू को समझाते हुए बोली-
"आह भैया सुनो न.....ये सब अभी नही"
सत्तू - मुझसे बर्दास्त नही हो रहा बहना, मुझे चखना है.....आज तक कभी नही चखा इसको।
ये सुनकर अल्का बहुत गर्म हो गयी फिर भी संभलते हुए बोली- आपको क्या लगता है आपकी बहन आपको चखायगी नही, इस चीज़ से आपको वंचित रखेगी, वो तो खुद तड़प रही है।
सत्तू- फिर मेरी बहना..... फिर.....चखने दो न।
अल्का- पर मेरे भैया अभी थोड़ा सब्र रखो, ऐसी चीज़ अच्छे से खाई जाती है, जल्दबाजी में नही, मैं नही चाहती कि मेरी इस अनमोल चीज़ को मेरे भैया जल्दी जल्दी खाएं, अभी देखो वक्त बहुत कम है हम पकड़े जा सकते हैं.... इसलिए अभी सब्र रखो.... जैसे इतना दिन सब्र रखे वैसे ही थोड़ा सा और.....जल्द ही मौका निकाल के चखाउंगी इसको तुम्हें।
सत्तू- "ओह मेरी बहन...तू कितनी अच्छी है"
दोनों फिर बुरी तरह लिपट गए, सत्तू ने धीरे से अल्का के कान में कहा- "बहुत रसीली हो तुम"
अल्का ने भी धीरे से मचलते हुए कहा- "मेरे भैया"
सत्तू ने जल्दी जल्दी अल्का के गालों और होंठों को कई बार फिर चूमा और अल्का हौले हौले मचलती सिसकती रही।
सत्तू ने कहा- पता है मैं अपनी बहना के लिए क्या गिफ्ट लाया हूँ।
अल्का - गिफ्ट
सत्तू- ह्म्म्म गिफ्ट
अल्का- तो लाओ दो मेरा गिफ्ट, राखी की बंधाई।
अल्का थोड़ा हंस के बोली।
सत्तू ने जेब से नथनी का डिब्बा निकाला और उसके हाँथ पर रख दिया।
दिए को थोड़ा पास लेके आया।
अल्का- ये क्या है?
सत्तू- डिबिया तो खोलो।
अलका ने डिबिया खोली और नथनी देखते ही खुशी से झूम उठी- इतनी प्यारी?
सत्तू- प्यारी बहना के लिए तो प्यारी सी ही नथनी होगी न।
अल्का फिर खुशी से लिपट गयी सत्तू से, सत्तू ने उसे फिर हल्के हल्के चूमा, अल्का बोली- तो पहनाओ अपने हाँथ से भैया अपनी बहना को।
सत्तू ने नथनी अल्का को पहनाई और उस नथनी को चूम लिया "कितनी प्यारी लग रही है मेरी बहना इसे पहनकर....बहुत खूबसूरत"
अल्का- मेरे भैया का प्यार है न इसमें, तो मेरी सुंदरता तो निखारेगी ही ये।
फिर अल्का और सत्तू उठ गए, समान समेटकर दोनों नीचे आये, सत्तू ने नीचे उतरते वक्त एक बार फिर अल्का को सीढ़ियों पर बाहों में भरकर चूम लिया, किसी तरह दोनों ने अपने को संभाला और सत्तू फिर चुपके से बाहर आ गया, अल्का दबे पांव अपने कमरे में चली गयी समान रखा, नथनी उतारकर संभाल कर रखी और साड़ी बदली और पलंग पर लेट गयी, नींद अब भी आंखों से कोसों दूर थी, वो छुवन वो अहसाह अलग ही सनसनी बदन में पैदा कर रही थी, मंद मंद मुस्कुराते हुए जैसे ही उसने अपनी योनि को छुआ, मखमली योनि पूरी तरह गीली हो चुकी थी, मुस्कुराते हुए वो बस न जाने कब तक "मेरे भैया...ओ मेरे सैयां" बुदबुदाते हुए धीरे धीरे सो गई।