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Update- 17
अल्का सत्तू के नीचे लेटी उसको अपने बाहों में लिए कुछ देर तो आश्चर्य से सोचती रही, फिर बोली- मुझे विश्वास नही होता भैया, ससुरजी ने ऐसा कर्म आपके हिस्से में लिखा है।
सत्तू- विश्वास तो मुझे भी नही हुआ था मेरी प्यारी बहना.... पर....क्या तुम मेरा साथ दोगी?
अल्का ने सत्तू के चेहरे को हाथों में भर लिया और बोली- मेरे भैया साथ तो मैं वैसे भी तुम्हारा देती, अब तो एक कारण भी मिल गया...मैं कितनी भाग्यशाली हूँ...और ससुर जी को बहुत बहुत शुक्रिया जो उन्होंने इस कर्म को अंजाम देने में मेरी हिस्सेदारी को चुना.....क्या एक बहन कभी चाहेगी की उसके भाई की शादीशुदा जिंदगी में कोई समस्या आये....इसके लिए वो अपने भाई के लिए कुछ भी करेगी....कुछ भी।
सत्तू ने कामुकता को बढ़ाने के लिए बोला- कुछ भी...
अल्का- हाँ बाबा कुछ भी
सत्तू- वो भी दोगी.....अपने भैया को
अल्का ने जानबूझ के अंधेरे में सत्तू की आंखों में देखते हुए बोला- वो क्या....मेरे....भैया जी।
सत्तू- वही जहां से मेरी बहन पेशाब करती है।
अल्का ने अपना चेहरा शर्म से सत्तू के सीने में छुपा लिया।
सत्तू- अच्छा बाबा पेशाब नही....जहाँ से मेरी बहन मूतती है...मुझे उसका प्यार चाहिए।
अल्का- गंदे भैया....बहुत गंदे हो तुम....समझते भी नही, कोई भाई अपनी बहन की वो मांगता है....कैसा लगेगा मुझे बहुत शर्म आएगी.....और तो और ये पाप है।
सत्तू का लंड पूरा लोहे की तरह सख्त होकर अल्का की साड़ी के ऊपर से ही ठीक उसकी बूर पर गड़ने लगा, सत्तू के मोटे लंड के अहसाह से आनंदित तो वो भी हो रही थी पर जानबूझ के सत्तू को तड़पाने के लिए ऐसी बातें कर रही थी।
सत्तू- पाप है ये?
अल्का (धीरे से) - ह्म्म्म...बहुत बड़ा पाप।
कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है, फिर अल्का ही धीरे से फिर बोली- पर पाप का अपना ही मजा होता है न भैया....मुझे अपने भैया के साथ वो मजा चाहिए.....अगर ये कर्म नही भी होता तो भी मैं अपने भैया को वो सब देती....मेरे भाई का हक़ है कि वो मुझे चखे...क्योंकि मैं अपने भैया के बिना नही रह सकती।
सत्तू- ओह! मेरी जान
सत्तू ने अपने होंठ अल्का के नरम तड़पते हुए होंठों पर रख दिये, आज पहली बार दोनों के होंठ मिले थे, दोनों बेसुध से होकर एक दूसरे के होंठों को चूमने लगे, दोनों ही मदहोशी में एक दूसरे के होंठों को कभी धीरे धीरे चूमते तो कभी खा जाने वाली स्थिति तक निचोड़ते, एकाएक सत्तू ने अल्का के मुंह में अपनी जीभ डालनी चाही तो अल्का ने झट से मुंह खोला और सत्तू की पूरी जीभ अल्का के मुंह मे समा गई, अपने देवर की पूरी जीभ आज अपने मुंह में महसूस कर अल्का पूरी गनगना गयी और झट से "ओह भैया" की सिसकारी भरते हुए जीभ मुंह से निकाल कर उससे लिपट गयी।
सत्तू- क्या हुआ मेरी बहना... अच्छा नही लगा।
अल्का- बहुत मेरे भैया....बहुत.....इतनी प्यारी सी गुदगुदी हुई कि मैं झेल नही पाई...रुको थोड़ी देर।
कुछ देर रुकने के बाद अल्का ने फिर से सत्तू की आंखों में देखते अपना मुंह खोल दिया, सत्तू इशारा समझते ही पहले तो अपनी जीभ को अलका के होंठों पर गोल गोल फिराया फिर धीरे से उसके मुंह मे पूरी जीभ डाल कर पूरे मुंह के चप्पे चप्पे को छूने लगा, अल्का मस्ती में सत्तू को सहलाने लगी, सत्तू कभी अपनी जीभ को अल्का के मुंह में तालु पर छुवाता कभी अंदरूनी गालों पर रगड़ता, अलका अपना पूरा मुंह खोले अपने भैया को अपने होंठ और जीभ का रस पिलाने में मगन थी, जब सत्तू अपनी जीभ को अलका की जीभ के नीचे ले जाता तो अलका भी अपनी जीभ को ऊपर उठा लेती और फिर अपनी जीभ से सत्तू के जीभ को दबाती, काफी देर तक सत्तू की जीभ अल्का के मुखरस पीती रही, जब अल्का को मुंह खोले खोले थोड़ा दर्द होने लगा, तो उसने सत्तू की जीभ को लॉलीपॉप की तरह चूसना शुरू कर दिया, अब सत्तू थोड़ा शांत हो गया, कुछ देर अल्का सत्तू की जीभ को चूसती रही, फिर शरमाकर उससे लिपट गयी।
सत्तू- हाय मेरी बहना।
अल्का धीरे से पलटी मारकर सत्तू के ऊपर चढ़ते हुए- आया मजा...भैया।
सत्तू- बहन मजा देगी तो आएगा नही....बहन जैसा मजा कहीं नही।
सत्तू ने अल्का को फिर से नीचे पलटा और उसपर चढ़ गया, उसके गालों को चूमने लगा, अल्का हल्का हल्का सिसकने लगी, सत्तू ने अपना एक हाँथ धीरे से अल्का की दाईं चूची पर रखा तो अल्का ने एक कामुक मुस्कान से सत्तू को देखा, सत्तू उसकी आँखों में देखता हुआ पूरी चूची को ब्लॉउज के ऊपर से हथेली में भरकर हल्का सा दबाने लगा। अल्का धीरे धीरे कराहने लगी, "ओओओओहहहह...भैया...धीरे धीरे., सत्तू ने चूची दबाते दबाते निप्पल को हल्का सा मसला तो अलका तेजी से सिसक उठी, "ऊऊऊईईईई अम्मा.....धीरे से भैया, धीरे धीरे मसलों न.....दर्द होता है" अल्का की दोनों चूचीयाँ कामोत्तेजना में सख्त होती जा रही थी, सत्तू से रहा नही गया तो उसने ब्लॉउज के बटन खोलने के लिए जैसे ही हाँथ लगाया, अल्का ने सत्तू का हाँथ शर्म और उत्तेजना से काँपते अपने हांथों से थाम लिया और बोली- भैया... वो भटकइयाँ के फल हैं आपके पास?
सत्तू ने बोला- नही मेरी जान...अभी तो नही हैं।
अल्का- इसके आगे हम बढ़े तो फिर रुक नही पाएंगे, मैं ये चाहती हूं कि हम दोनों भाई बहन इस पाप का मजा उस फल के साथ लें।
अल्का के मुंह से "पाप का मजा" सुनकर सत्तू मस्त हो गया, उसे उम्मीद कम थी कि अल्का इतना खुलकर कामुक तरीके से बोलेगी, जोश में उसने कपड़ों के ऊपर से ही अपने लंड को अल्का की बूर पर हौले हौले रगड़ने लगा, "ओह मेरी बहना, काश वो फल आज ही लाया होता तो आज अपनी बहन को भोग लेता"
अल्का धीरे से सिसकते हुए बोली- तो बस एक दिन और इंतजार कर लो मेरे भैया...कल भोग लेना अपनी बहन को।
अल्का की बूर अब रिसने लगी थी।
सत्तू- अभी जा के ले आऊं जंगल से।
अल्का ने हल्का सा हंसते हुए एक मुक्का सत्तू की पीठ पर मारा- इतनी बेसब्री...पता है भोर होने में कुछ ही घंटे बाकी होंगे, बस एक दिन और...फिर भोग लेना।
सत्तू- अच्छा....भोग लेना।
अल्का- हम्म्म्म
सत्तू- हाय... मेरी बहना
अल्का शर्म से सत्तू से कस के लिपट गयी।
सत्तू- पर कहाँ कैसे, यहीं छत पर।
अल्का- नही, मेरे कमरे में।
सत्तू- पर कैसे बगल में ही सौम्या भाभी मां का कमरा है।
अल्का- दीदी और अम्मा कल रहेंगी नही न, कल वो बाबू जी के साथ तुम्हारी नानी के यहां जाएंगी, शादी का न्यौता देने।
सत्तू- और किरन।
अल्का- किरन दीदी को तो मैं संभाल लूंगी... मेरे भैया।
सत्तू दे दनादन अल्का को चूमने लगा तो अल्का हल्के से हंसते हुए उसका साथ देने लगी।
कुछ देर बाद बेमन से दोनों उठे और अलका ने गद्दे को उठाकर वापिस उसी जगह पर रख दिया और फिर दोनों दबे पांव धीरे से नीचे आ गए, सत्तू चुपके से बाहर आकर अपनी खाट पर लेट गया, और अल्का अपने कमरे में आकर बेड पर लेट गयी, नींद दोनों के ही आंखों से कोसो दूर थी, फिर भी कोशिश करते करते, बिस्तर पर करवट बदलते बदलते दोनों कुछ देर बाद सो ही गए।
Excellent update... Kissing scene ka description ek dam mast tha... Ab dekhna hai, aaj ka din kaise kaatenge hamare sattu bhai.